You are on page 1of 2

1-अन्धों में काना राजा= (मूर्खो में कुछ पढ़ा-लिर्खा व्यक्ति)

2-अकेला चना भाड़ नह ों फधड़ सकता= (अकेिा आदमी लिना दू सर ों के सहय ग के क ई िड़ा काम नहीों कर सकता।)

3-अधजल गगर छलकत जाय= (लजसके पास थ ड़ा ज्ञान ह ता हैं , वह उसका प्रदर्श न या आडम्बर करता है ।)

4. अब पछताए हधत क्या जब चचचड़यााँ चु ग गई खे त= (समय लनकि जाने के पश्चात् पछताना व्यथश ह ता है )

5. अों धेर नगर चौपट राजा, टका से र भाज टका से र खाजा= (जहााँ मालिक मूर्खश ह वहााँ सद् गुण ों का आदर नही ों
ह ता।)

6. अपन -अपन डफल , अपना-अपना राग=(क ई काम लनयम-कायदे से न करना)


प्रयधग- इस ऑलिस में त ज लजसके मन में आता, वह करता है । इसी क कहते हैं - अपनी-अपनी डििी, अपना-अपना
राग।

7. अपन करन पार उतरन = (मनु ष्य क अपने कमश के अनु सार ही िि लमिता है )

8. अन्त भला तध सब भला= (पररणाम अच्छा ह जाए त सि कुछ माना जाता है ।)

9. आ बै ल मु झे मार= (स्वयों मुसीित म ि िेना)

10. इधर कुआाँ और उधर खाई= (हर तरि लवपलि ह ना)

11. एक मछल सारे तालाब कध गों दा कर दे त है= (एक र्खराि चीज सारी चीज ों क र्खराि कर दे ती है ।)

12, एक अकेला, दध ग्यारह= (सों गठन में र्क्ति ह ती है )

13. का वर्ाा जब कृचर् सु खाने= (समय लनकि जाने पर मदद करना व्यथश है )

14. गागर में सागर भरना= (कम र्ब् ों में िहुत कुछ कहना)

15. गरजने वाले बादल बरसते नह ों हैं= (ज िहुत िढ़-िढ़ कर िातें करते हैं , वे काम कम करते हैं ।)

16. जहााँ चाह, वहााँ राह= (जि लकसी काम क करने की व्यक्ति की इच्छा ह ती है त उसे उसका साधन भी लमि ही
जाता है ।)

17. जाकध राखै साइयााँ, मारर सकै ना कधय= (लजसका रक्षक ईश्वर है उसका क ई कुछ नहीों लिगाड़ सकता)

18. मन के हारे हार है , मन के ज ते ज त= (भारी से भारी लवपलि पड़ने पर भी साहस नहीों छ ड़ना चालहए)
प्रयधग- रमा िहन! 'मन के हारे हार है , मन के जीते जीत'। तु म अपने मन क दृढ़ कर ।

19. मे रे मन कछु और है , दाता के कछु और= (लकसी की आकाों क्षाएाँ सदै व पू री नहीों ह ती)
प्रयधग- मैंने स चा था लक िी.एड. करके अध्यापक िनूाँ गा, िेलकन िन गया सों पादक; यह कहावत सही है - 'मेरे मन कछु
और है , दाता के कछु और'।

20. लातधों के भू त बातधों से नह ों मानते= (दु ष्ट प्रकृलत के ि ग समझाने से नहीों मानते)
प्रयधग- मैंने रामू के साथ भिमनसी का िताश व लकया, पर वह नहीों माना। ठीक ही है - 'िात ों के भू त िात ों से नहीों मानते'।
21. लाल गु दड़ में नह ों चछपता= (मेधावी ि ग दीन-हीन अवस्था में भी प्रकट ह जाते हैं ।)

22. चवनाशकाले चवपर त बुद्धि= (लवपलि पड़ने पर िुक्ति का काम न करना)


प्रयधग- लवनार् के समय रावण की िुक्ति भ्रष्ट ह गई थी। ठीक ही कहा है - 'लवनार्कािे लवपरीत िुक्ति'।

23. शठे शाठ्यमाचरे त्= (दु ष्ट ों के साथ दु ष्टता का ही व्यवहार करना चालहए)
प्रयधग- राजू ने एक गुोंडे के साथ अच्छा व्यवहार लकया त वह उसे कमज र समझकर झगड़ने िगा। लकसी ने ठीक ही
कहा है - 'र्ठे र्ाठ्यमाचरे त्'।

24. सााँ च कध आाँ च नह ों= (ज मनु ष्य सच्चा ह ता है , उसे डर नहीों ह ता)
प्रयधग- मुकेर्, जि तु मने गिती की ही नहीों है , त लिर डर क् ों रहे ह ? चि सि कुछ सच-सच िता द , क् लों क सााँ च
क आाँ च नहीों ह ती।

25. सच्चे का बधलबाला, झठ


ू े का मुाँह काला= (सच्चे आदमी क सदा यर् और झूठे क अपयर् लमिता है ।)
प्रयधग- आदमी क कभी झूठ नही ों ि िना चालहए, क् लों क सच्चे का ि ििािा और झूठे का मुाँह कािा ह ता है ।

26. हधनहार चबरवान के हधत च कने पात= (ह नहार के िक्षण पहिे से ही लदर्खायी पड़ने िगते है ।)
प्रयधग- वह िड़का जै सा सु न्दर है , वै सा ही सु र्ीि, और जै सा िुक्तिमान है , वै सा ही चों चि। अभी िारह वर्श भी पू रे नही ों
हुए, पर भार्ा और गलणत में उसकी अच्छी पै ठ है । अभी दे र्खने पर स्पष्ट मािूम ह ता है लक समय पर वह सु प्रलसि लवद्वान
ह गा। कहावत भी है , 'ह नहार लिरवान के ह त चीकने पात'।

27. ताल एक हाथ से नह ों बजाई जात = (प्रे म या िड़ाई एकतरिा नहीों ह ती)
प्रयधग- अध्यापक त पढ़ाना चाहते हैं , पर छात्र ही न पढ़े त वे क्ा करें , कहते भी हैं - ' तािी एक हाथ से नहीों िजाई
जाती'

28. दू ध का जला छाछ भ फूाँक-फूाँक कर प ता है= (एक िार ध र्खा र्खाने के िाद िहुत स च-लवचार कर काम करना)
प्रयधग- लपछिी िार एक लदन की गैरहालजरी में राजू क दफ्तर से जवाि लमिा था; इसलिए अि वह दे री से जाने से भी
डरता है , क् लों क 'दू ध का जिा छाछ भी िूाँक-िूाँक कर पीता है '।

29. दू ध का दू ध और पान का पान = (सच्चा न्याय)


प्रयधग- कि पों च ों ने दू ध का दू ध और पानी का पानी कर लदया।

30. खधदा पहाड़ चनकल चु चहया= (िहुत कलठन पररश्रम का थ ड़ा िाभ)


प्रयधग- िच्चा िेचारा लदन भर िाि ििी पर अख़िार िेचता रहा, परों तु उसे कमाई मात्र िीस रुपये की हुई। यह वही िात
है - र्ख दा पहाड़ लनकिी चु लहया।

31चजन ढू ाँ ढ़ा चतन पाइयााँ गहरे पान पै ठ= (पररश्रम का िि अवश्य लमिता है )


प्रयधग- एक िड़का, ज िड़ा आिसी था, िार-िार िेि करता था और दू सरा, ज पररश्रमी था, पहिी िार परीक्षा में
उतीणश ह गया। जि आिसी ने उससे पू छा लक भाई, तु म कैसे एक ही िार में पास कर गये, ति उसने जवाि लदया लक
'लजन ढूाँढ़ा लतन पाइयााँ गहरे पानी पै ठ'।

32जै स करन वै स भरन = (कमश के अनु सार िि लमिता है )


प्रयधग- राधा ने समय पर प्र जे क्ट नही ों लदर्खाया और उसे उसमें र्ू न्य अों क प्राप्त हुए। ठीक ही हुआ- जै सी करनी वै सी
भरनी।

33चजसक लाठ उसक भैं स= (ििवान की ही जीत ह ती है )


प्रयधग- सरपों च ने लजसे चाहा उसे िीज लदया। िेचारे लकसान कुछ न कर पाए। इसे कहते हैं - लजसकी िाठी उसकी भैं स।

You might also like