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2-अकेला चना भाड़ नह ों फधड़ सकता= (अकेिा आदमी लिना दू सर ों के सहय ग के क ई िड़ा काम नहीों कर सकता।)
3-अधजल गगर छलकत जाय= (लजसके पास थ ड़ा ज्ञान ह ता हैं , वह उसका प्रदर्श न या आडम्बर करता है ।)
4. अब पछताए हधत क्या जब चचचड़यााँ चु ग गई खे त= (समय लनकि जाने के पश्चात् पछताना व्यथश ह ता है )
5. अों धेर नगर चौपट राजा, टका से र भाज टका से र खाजा= (जहााँ मालिक मूर्खश ह वहााँ सद् गुण ों का आदर नही ों
ह ता।)
7. अपन करन पार उतरन = (मनु ष्य क अपने कमश के अनु सार ही िि लमिता है )
11. एक मछल सारे तालाब कध गों दा कर दे त है= (एक र्खराि चीज सारी चीज ों क र्खराि कर दे ती है ।)
13. का वर्ाा जब कृचर् सु खाने= (समय लनकि जाने पर मदद करना व्यथश है )
14. गागर में सागर भरना= (कम र्ब् ों में िहुत कुछ कहना)
15. गरजने वाले बादल बरसते नह ों हैं= (ज िहुत िढ़-िढ़ कर िातें करते हैं , वे काम कम करते हैं ।)
16. जहााँ चाह, वहााँ राह= (जि लकसी काम क करने की व्यक्ति की इच्छा ह ती है त उसे उसका साधन भी लमि ही
जाता है ।)
17. जाकध राखै साइयााँ, मारर सकै ना कधय= (लजसका रक्षक ईश्वर है उसका क ई कुछ नहीों लिगाड़ सकता)
18. मन के हारे हार है , मन के ज ते ज त= (भारी से भारी लवपलि पड़ने पर भी साहस नहीों छ ड़ना चालहए)
प्रयधग- रमा िहन! 'मन के हारे हार है , मन के जीते जीत'। तु म अपने मन क दृढ़ कर ।
19. मे रे मन कछु और है , दाता के कछु और= (लकसी की आकाों क्षाएाँ सदै व पू री नहीों ह ती)
प्रयधग- मैंने स चा था लक िी.एड. करके अध्यापक िनूाँ गा, िेलकन िन गया सों पादक; यह कहावत सही है - 'मेरे मन कछु
और है , दाता के कछु और'।
20. लातधों के भू त बातधों से नह ों मानते= (दु ष्ट प्रकृलत के ि ग समझाने से नहीों मानते)
प्रयधग- मैंने रामू के साथ भिमनसी का िताश व लकया, पर वह नहीों माना। ठीक ही है - 'िात ों के भू त िात ों से नहीों मानते'।
21. लाल गु दड़ में नह ों चछपता= (मेधावी ि ग दीन-हीन अवस्था में भी प्रकट ह जाते हैं ।)
23. शठे शाठ्यमाचरे त्= (दु ष्ट ों के साथ दु ष्टता का ही व्यवहार करना चालहए)
प्रयधग- राजू ने एक गुोंडे के साथ अच्छा व्यवहार लकया त वह उसे कमज र समझकर झगड़ने िगा। लकसी ने ठीक ही
कहा है - 'र्ठे र्ाठ्यमाचरे त्'।
24. सााँ च कध आाँ च नह ों= (ज मनु ष्य सच्चा ह ता है , उसे डर नहीों ह ता)
प्रयधग- मुकेर्, जि तु मने गिती की ही नहीों है , त लिर डर क् ों रहे ह ? चि सि कुछ सच-सच िता द , क् लों क सााँ च
क आाँ च नहीों ह ती।
26. हधनहार चबरवान के हधत च कने पात= (ह नहार के िक्षण पहिे से ही लदर्खायी पड़ने िगते है ।)
प्रयधग- वह िड़का जै सा सु न्दर है , वै सा ही सु र्ीि, और जै सा िुक्तिमान है , वै सा ही चों चि। अभी िारह वर्श भी पू रे नही ों
हुए, पर भार्ा और गलणत में उसकी अच्छी पै ठ है । अभी दे र्खने पर स्पष्ट मािूम ह ता है लक समय पर वह सु प्रलसि लवद्वान
ह गा। कहावत भी है , 'ह नहार लिरवान के ह त चीकने पात'।
27. ताल एक हाथ से नह ों बजाई जात = (प्रे म या िड़ाई एकतरिा नहीों ह ती)
प्रयधग- अध्यापक त पढ़ाना चाहते हैं , पर छात्र ही न पढ़े त वे क्ा करें , कहते भी हैं - ' तािी एक हाथ से नहीों िजाई
जाती'
28. दू ध का जला छाछ भ फूाँक-फूाँक कर प ता है= (एक िार ध र्खा र्खाने के िाद िहुत स च-लवचार कर काम करना)
प्रयधग- लपछिी िार एक लदन की गैरहालजरी में राजू क दफ्तर से जवाि लमिा था; इसलिए अि वह दे री से जाने से भी
डरता है , क् लों क 'दू ध का जिा छाछ भी िूाँक-िूाँक कर पीता है '।