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इस्लामिक बैंकिंग: बैंकिंग की एक नई विधा

प्रो० महबबू आलम


वाणिज्य विभाग
इस्लामिक बैंकिंग, बैंकिंग की एक ऐसी विधि को संदर्भित करता है जो इस्लामी काननू (शरिया) पर आधारित है जो
ब्याज आधारित बैंकिंग को प्रतिबंधित करता है और के वल लाभ साझा करने के आधार पर बैंकिंग की अनमु ति देता है। यह
अवधारणा पवित्र कुरान की एक आयत पर आधारित है जो कहती है कि "अल्लाह ने के वल वैध व्यापार की अनुमति दी है
और ब्याज पर प्रतिबध
ं लगाया है। यह ब्याज के खिलाफ है, क्योंकि माना जाता है कि ब्याज शोषण और अनुत्पादक
आय का कारण बनता है”। इस्लामिक बैंकिंग का पारंपरिक बैंकिंग के समान उद्देश्य है, सिवाय इसके कि यह शरीयत के नियमों
(लेन-देन पर इस्लामी नियम) के अनसु ार संचालित होता है। इसलिए, आज, इस्लामिक बैंकिंग से मतलब के वल ब्याज मक्त
ु ऋण
देने वाली ऋण देने वाली संस्था से नहीं है, बल्कि शरिया-अनपु ालन (इस्लामिक आर्थिक मानदडं ों का सख्त पालन) वित्तीय
सेवाओ ं जैसे इस्लामिक म्यचू अ
ु ल फंड, इस्लामिक बॉन्ड (सक
ु ु क), इस्लामिक का एक पैकेज है। बीमा (तकफुल), इस्लामिक
क्रेडिट कार्ड और अन्य प्रौद्योगिकी-संचालित सेवाएं जैसे एटीएम और ऑनलाइन बैंकिंग, इन सभी का भारत में जबरदस्त बाजार
है।

इस्लामिक बैंकिंग में बैंक फंड्स के ट्रस्ट्री (रुपये की देखभाल करने वाला) की भमि
ू का निभाता है। बैंक में लोग पैसे जमा करते हैं
और जब चाहें वहां से निकाल सकते हैं। यहां बचत खाता पर ब्याज कमाने की अनमु ति नहीं है, लेकिन जब बैंक आपके पैसे से
कुछ लाभ कमाती है तो वह इस लाभ का कुछ हिस्सा खाताधारक को भी गिफ्ट के रूप में दे देती है l

अके ले के रल में कथित तौर पर 200 छोटे इस्लामिक बैंकिंग संस्थान हैं। इनमें से प्रत्येक बैंक की जमा राशि एक लाख
रुपये से लेकर दस लाख रुपये तक है और वे के वल मसु लमानों को उधार देने तक सीमित नहीं हैं। कई पश्चिमी देशों में मख्ु यधारा के
बैंक अब उन मस्लि
ु म ग्राहकों को परू ा करने के लिए विशेष गैर -ब्याज विभाग खोल रहे हैं जो न तो भगु तान करने से इनकार करते हैं
और न ही ब्याज अर्जित करते हैं। लेकिन यह स्पष्ट रूप से विशेष जरूरतों वाले ग्राहकों के आला-बाजार की प्रतिक्रिया है।
पारंपरिक बैंकरों और नीति निर्माताओ ं द्वारा ब्याज मक्त
ु धन के विचार को गभं ीरता से लेने से पहले अभी भी एक लबं ा रास्ता तय
करना है।

इस्लामिक बैंकिंग का इतिहास

मिस्र में 1963 में स्थापित मिट-गमर सेविग्ं स बैंक को आमतौर पर आधनि
ु क दनि
ु या में इस्लामिक बैंकिंग का पहला
उदाहरण कहा जाता है। जब मिट-गमर ने व्यवसायों को पैसा उधार दिया, तो उसने लाभ-साझाकरण मॉडल के आधार पर ऐसा
किया। राजनीतिक कारणों से 1967 में मिट-गमर परियोजना को बदं कर दिया गया था, लेकिन सचं ालन के अपने वर्ष के दौरान,
बैंक ने बहुत सावधानी बरती, के वल अपने व्यवसाय ऋण आवेदनों का लगभग 40% स्वीकृ त किया। हालाकि
ं , आर्थिक रूप से
अच्छे समय में बैंक का डिफॉल्ट रे शियो जीरो बताया गया था। 1971 में मिस्र सरकार ने Interest Free “Nasir Social Bank”
की स्थापना की गई और 1973 में 20 सदस्य देशों के साथ “Islamic Development Bank” की स्थापना की गई। इसका
उद्देश्य सदस्य देशों को शरिया के अनसु ार मस्लि
ु म समदु ायों की सामाजिक प्रगति और आर्थिक विकास का समर्थन करना है। बैंक
की वर्तमान सदस्यता में 56 देश शामिल हैं। इसके साथ ही बहुत से इस्लामिक बैंकों को विभिन्न देशों में खोला जाने लगा। नब्बे के
दशक में उन्होंने अपने कार्यों को यरू ोप और मध्य एशिया में फै ला दिया।

1960 के दशक की शरुु आत में, इस्लामिक बैंकिंग आधनि


ु क दनि
ु या में फिर से उभरी और 1975 के बाद से, कई नए
ब्याज मक्त
ु बैंक खल
ु गए हैं। हालाँकि इनमें से अधिकांश संस्थान मस्लि
ु म देशों में स्थापित किए गए थे , लेकिन इस्लामिक बैंक
1980 के दशक की शरुु आत में पश्चिमी यरू ोप में भी खल
ु े।आज परू ी तरह से ब्याज मक्त
ु वित्तीय प्रणाली वाले तीन देश हैं:
पाकिस्तान, सडू ान और ईरान।भारत में पहला इस्लामिक बैंक कोच्चि में खल
ु ा था जिसमे राज्य की हिस्सेदारी 11% हैl

इस्लामी वित्त के मुख्य क्षेत्र

1.इस्लामी बैंकिंग
2. इस्लामी पजंू ी बाजार (आईसीएम)
3. इस्लामी बीमा (Takaful)
4. इस्लामिक फिनटेक
इस्लामिक बैंकिंग के प्रकार (Types of Islamic Banking)

1. रीबा (Riba)

2. हराम और हलाली (Haram and Halali)

3. घरारी (Gharari)

4. मेसिर और क़िमारी (Messir and Kimari)

5. शरीयत बोर्ड (Sharia Board)

1.रीबा (Riba)
रीवा का उद्देश्य ब्याज दर पर प्रतिबंध है यह इस्लाम का बनि
ु यादी नियम है। जो कुरान और सन्ना से आता है। यह
पारस्परिक बैंकिंग और इस्लामिक बैंकिंग के 20 सबसे अधिक ध्यान देने योग्य अंतर है क्योंकि पारस्परिक बैंकिंग में ऋण लिए हुए
व्यक्ति से शद्ध
ु किया जाता है परंतु इस्लामिक बैंकिंग में इस पर प्रतिबंध है।
ब्याज मक्त
ु इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली को देखते हुए ही बनाया गया है क्योंकि इसके अंतर्गत अगर संपत्ति और देनदारियों
को इसकी हानि और लाभ दोनों के बीच उन्हें अपना पैसा साझा करना होता है। वैसे पारस्परिक बैंकिंग इस्लामिक बैंकिंग उतने भी
अलग नहीं है, जितना लोग सोचते हैं। यही कारण है कि उनके साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए।
2.हराम और हलाली (Haram and Halali)
हराम और हलाल भी इस्लामिक बैंकिंग के दो सिद्धांत हैं। ये शब्द अक्सर इस्लामी खाद्य नियमों से जड़ु े होते हैं। शरीयत
द्वारा अनैतिक, निषिद्ध और अशद्ध
ु माने जाने वाले सभी उत्पादों, सेवाओ ं और आर्थिक कार्यों को “हराम” कहा जाता है। हराम
शब्द में; सअ
ू र का मांस, शराब, हथियार, वेश्यावृत्ति, तंबाकू, अश्लील साहित्य, शामिल हैं।
3.घरारी (Gharari)
घरार का मतलब जोखिम, उद्यम, अनिश्चितता और धोखे होता है और इसे मना नहीं किया जाता है, लेकिन यह
असाधारण रूप से उच्च घरार से बचने के लिए कहा जाता है। यह विशेष रूप से अनबु ंध के इस्लामी काननू (Islamic law of
contract) को प्रभावित करता है। आर्थिक असंतल
ु न के साथ हर आर्थिक लेन-देन काननू द्वारा सख्त और शन्ू य है। उच्च और
निम्न घरार की व्याख्या से मसु लमानों के बीच असहमति और नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं। एक आर्थिक सचं ालन में उच्च
जोखिम से बचने के लिए पक्षों के अधिकारों और कर्तव्यों को व्यक्त करना होता है।
4.मेसिर और क़िमारी (Messir and Kimari)
मेसिर और किमार का अर्थ है: भाग्य का खेल, जिसमें आप दर्घु टना से आसानी से कुछ जीत सकते हैं। यह भाग्य के खेल
की स्थिति है, जब सपं त्ति का अधिग्रहण एक निश्चित घटना के लिए किया जाता है। यदि शेयर बाजार में पजंू ी निवेश मेसीर और
किमार के सिद्धातं के तहत आता है तो मसु लमान समस्या में हैं, लेकिन अधिकाश
ं इस्लामी न्यायविद इस प्रकार के पजंू ी निवेश को
तब तक निर्धारित करते हैं जब तक उद्यमों की गतिविधियों को हलाल के रूप में निर्धारित किया जा सकता है। इसमें शेयरों के साथ
उद्यम को भाग्य का खेल माना जाता है।
5.शरीयत बोर्ड (Sharia Board)
Islamic Financial Institution के रूप में काम करने से पहले , प्रत्येक बैंक एक प्रक्रिया से जड़ु ा हुआ है। इस्लामिक
बैंक का प्रबधं न शरीयत बोर्ड को सचि
ू त करता है और सलाह देता है। शरिया ऑडिट (Sharia audits) में विशिष्ट विशेषज्ञता
वाले आंतरिक कर्मचारी होते हैं। उन्हें लगातार परिचालन गतिविधियों को नियंत्रित करना होगा और परिणामों के बारे में शरीयत
बोर्ड को सचि
ू त करना होगा। The Islamic Financial Services Board (IFSB), जो पारंपरिक बैंकों के लिए बैंकिंग
पर्यवेक्षण (Banking Supervision) पर बेसल समिति के समान है, एक अतिरिक्त बाहरी शरिया ऑडिट (Sharia audit) की
सिफारिश करता है, जो वर्ष में एक बार होता है।
शरिया बोर्ड (Shariah Board) द्वारा लिए गए निर्णय इस्लामिक बैंकिंग के लिए बाध्यकारी हैं और बोर्ड के सदस्यों के
आधार पर भिन्न हो सकते हैं। इससे विभिन्न इस्लामिक बैंकों की तल
ु ना करना मश्कि
ु ल हो जाता है। शरीयबोर्ड का आकार,
संरचना और स्थापना वित्तीय संस्थान के एसोसिएशन के नियमों (Association के articles) या तल
ु नीय दस्तावेज
( comparable documents) के साथ-साथ देश के वैधानिक प्रावधानों पर निर्भर करती है। शरीयत बोर्ड के सदस्यों को शरिया-
विद्वान (Sharia-scholars) कहा जाता है और वे इस्लामी न्यायविद (Islamic jurists) हैं।
पारंपरिक और इस्लामी बैंकिंग में मूलभूत अंतर
पारंपरिक बैंकिंग प्रणालियों और इस्लामी बैंकिंग के बीच प्राथमिक अंतरों में से एक यह है कि इस्लामी बैंकिंग सदू खोरी
और सट्टेबाजी पर रोक लगाती है। शरिया किसी भी प्रकार की सट्टेबाजी या जएु को सख्ती से प्रतिबंधित करता है , जिसे मैसिर कहा
जाता है। शरीयत कर्ज पर ब्याज लेने से भी मना करती है। साथ ही, क़ुरान में मना की गई वस्तओ
ु ं या पदार्थों से जड़ु ा कोई भी
निवेश - जिसमें शराब, जआ
ु और सअ
ू र का मासं शामिल है - भी प्रतिबधि
ं त है। इस तरह, इस्लामिक बैंकिंग को सास्ं कृ तिक रूप से
नैतिक निवेश का एक अलग रूप माना जा सकता है।
इस्लामिक बैंक कै से काम करते हैं?

यहाँ पर यह प्रश्न उठाना लाजिमी है कि जो बैंक न ब्याज लेता है, न देता है, तो वह अपने कर्मचारियों को वेतन कहां से देता है और
उसके अन्य खर्चे कहां से परू े होते हैं? उल्लेखनीय है कि इस्लामिक बैंक अपने यहां जमा धन से मख्ु य रूप से अचल सम्पत्ति
खरीदते हैं जैसे; मकान, दक
ु ान, घर बनाने वाले भख
ू ंडों आदि। इस्लामिक मॉर्टगेज ट्रांजैक्शन में बैंक सामान खरीदने के लिए
खरीदार को कर्ज नहीं देते बल्कि बैंक खदु ही बेचनेवाले से वह सामान खरीद लेता है और उसे खरीदार के पास लाभ के साथ बेच
देता है। इसके लिए बैंक खरीदार को किश्तों (EMIs) में पेमेंट करने को कहता है।

बैंक को निवेश से जो मनु ाफा होता है उसे ग्राहकों के बीच बाटं ा जाता है और बैंक के अन्य खर्चे परू े किये जाते हैं। साथ
ही यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि यदि बैंक को घाटा होता है तो ग्राहक को भी इसमें हानि उठानी पड़ती है l

इस्लामिक बैंकिंग कई देशों में प्रचलित है। जैसे: Standard Chartered and Hong Kong और Shanghai
Banking Corporation अपने बैंकिंग संचालन के तहत इस्लामिक बैंकिंग को आगे बढ़ा रहे हैं।
इसका मख्ु य मकसद सरिया के सिद्धांत के अनसु ार ज्यादा से ज्यादा मनु ाफा कमाना है। यह पंजू ी के लेनदेन के खिलाफ
नहीं है परंतु इसके कुछ नियमों का पालन करना होता है।
इस्लामिक बैंक अपना पैसा कहां निवेश करते हैं?
इस्लामिक काननू के तहत पैसे कमाने के तीन ही साधन हैं- खेती, शिकार और खनन। फिक्स्ड इनकम और ब्याज देने
वाली सिक्यॉरिटीज, मसलन बॉन्ड्स, डिबेंचर्स आदि की इस्लाम में अनमु ति नहीं है। हालांकि, इस्लामिक काननू में 'सक
ु ू क' की
अवधारणा है जो बॉन्ड के रूप में शरिया आधारित फाइनैंशल प्रॉडक्ट है। इसके अलावा ये बैंक, मकान, दक
ु ान, घर बनाने वाले
भख
ू ंडों आदि पर निवेश करते हैं l
इस्लामिक बैंकों में विकास
अंतर्राष्ट्रीय मद्रु ा कोष के अनसु ार इस्लामी वित्त में वर्तमान में बैंकिंग, लीजिंग, सुकुक (प्रतिभूति) और इक्विटी
बाजार, निवेश कोष, बीमा ("ताकफुल") और सूक्ष्म वित्त शामिल हैं , लेकिन बैंकिंग और सक
ु ु क संपत्ति कुल इस्लामिक
वित्त संपत्ति का लगभग 95 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करती है।
इस्लामिक वित्त परिसंपत्तियां पिछले दशक के दौरान दो अंकों की दर से बढ़ीं, जो 2003 में लगभग US$200 बिलियन
से बढ़कर 2013 के अतं में अनमु ानित US$1.8 ट्रिलियन हो गई। हालाकि
ं , इसके बढ़ते प्रसार के बावजदू , इस्लामी वित्त
परिसपं त्तियां अभी भी खाड़ी सहयोग में कें द्रित हैं। परिषद (जीसीसी) देश, ईरान और मलेशिया, और वैश्विक वित्तीय सपं त्ति के एक
प्रतिशत से भी कम का प्रतिनिधित्व करते हैं।
उदाहरण के लिए, इस्लामिक बैंकिंग ने पिछले एक दशक में पारंपरिक बैंकिंग से बेहतर प्रदर्शन किया, मध्य पर्वू और
एशिया के एक दर्जन देशों में इसकी प्रवेश दर 15 प्रतिशत से अधिक हो गई। इसी अवधि में, सक
ु ु क का निर्गमन 2013 में बीस गनु ा
बढ़कर 120 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुचं गया, और इसका जारीकर्ता आधार अफ्रीका, पर्वी
ू एशिया और यरू ोप में नए
निर्गमों के साथ व्यापक हो रहा है।
2019 में, दनि
ु या भर में वाणिज्यिक इस्लामिक बैंकों की संख्या 428 बैंकों की थी। उसी वर्ष, वैश्विक इस्लामिक बैंकिंग
की कुल संपत्ति लगभग 1.99 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो कुल वैश्विक बैंकिंग संपत्ति का लगभग छह प्रतिशत हिस्सा है।

भारत में इस्लामिक बैंकिंग की वर्तमान स्थिति:


भारत में पहला इस्लामिक बैंक कोच्चि में खल
ु ा था जिसमे राज्य की हिस्सेदारी 11% हैl जेद्दा के इस्लामिक डेवेलपमेंट
बैंक (आईडीबी) की शाखा प्रधानमत्रं ी के गृह राज्य गजु रात में खल
ु ेगीl यह बैंक प्रधानमत्रं ी मोदी के क़रीबी ज़फ़र सरे शवाला के
नेतत्ृ व में खल
ु रहा हैl
इस्लामी बैंकिंग के लाभ (Advantage of Islamic Banking)

इस्लामिक बैंकिंग का आधार “Justice in Exchange” है। अनैतिकता का मतलब है कि परू े समाज को नक


ु सान पहुचं ाना ऐसा
इस्लामिक बैंकिंग में मना किया गया है। इस्लामी वित्त के साधनों से बचना चाहिए: –

 ब्याज दरों का लगाना, यह शोषण के सबसे बरु े रूपों में से एक है। जो ब्याज दर इसमें नहीं लगाये जाते है।
 सवि
ं दा पर काम करना जिसमें अनिश्चितता को दर्शाता है। इसमें भौतिक शर्तों को निर्दिष्ट किए बिना बेचने के लिए
सहमत होना या जो विक्रेता के कब्जे में नहीं है, उस वस्तु की बिक्री शामिल करना।
 हेज फंड में डील करना क्योंकि उनमें मेसिर (सट्टा लेनदेन) का तत्व होता है।
 ऐसे लेन-देन जिनमें प्रतिबंधित और हानिकारक उद्योग जैसे ड्रग्स, अवैध हथियार, वेश्यावृत्ति और पोर्नोग्राफ़ी शामिल हैं
उसे तरु ं त रोकना।
इस्लामिक बैंकिंग के नक
ु सान (Disadvantage of Islamic Banking)

1. आदर्श निवेश मॉडल सुविधाजनक नहीं(Ideal investment model not convenient): इस्लामिक बैंकिंग के
आदर्श निवेश मोड मदु ारबाह और मश
ु रकाह मॉडल हैं। मदु राबा मॉडल में, एक पार्टी पंजू ी प्रदान करती है, और दसू री
पार्टी उस पंजू ी का निवेश करती है। इस मॉडल में लाभ पर्वू निर्धारित अनपु ात में वितरण किया जाता है। इस्लामिक
बैंकिंग के तहत चल रहे बैंक के पैसों को गैर इस्लाम के कार्यों में नहीं लगाया जा सकता है। इसलिए इसे Muslim
Bank भी कहा जाता है। 
2. तरलता साधन की अनुपस्थिति (Absence of Liquidity Instrument):  तरलता की कमी और अधिकता
की समस्याओ ं के प्रबंधन के लिए तरलता साधनों का उपयोग किया जाता है। कुछ सबसे महत्वपर्णू तरलता साधन:
ट्रेजरी बिल और अन्य बाजार प्रतिभति
ू यां हैं। दर्भा
ु ग्य से, कई इस्लामी बैंकों में तरलता की कमी है।
3. उन्नत प्रौद्योगिकी और मीडिया का अभाव (Lack of advanced technology and media): हमारी
लगातार बढ़ती डिजिटल दनि
ु या में सभी बैंक धीरे -धीरे डिजिटलाइज होते जा रही है। जो कि अपने खाताधारकों को घर
बैठे बैंकिंग सवि
ु धाएं उपलब्ध करा रहा है। जिसमें कि मोबाइल बैंकिंग, इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग जैसी सवि
ु धाएं शामिल है जो
कि इस्लामिक बैंकिंग के पास नहीं हैं। वर्तमान में कुछ बैंकों ने अपनी वेबसाइट और एप्लीके शन लॉन्च किए हैं।
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