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BASHIR BADR-Musafir (Hindi)
BASHIR BADR-Musafir (Hindi)
- डॉ.राहत ब
मुसा फ़र
बशीर ब
संकलन एवं संपादन: स चन चौधरी
मंजुल प ल शग हाउस
First published in India by
ISBN 978-81-8322-590-8
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ग़ज़ल मतलब………………“डॉ. बशीर ब ”
पैदाइश: 15 फ़रवरी सन् 1935 ई. बमुक़ाम कानपुर
मोह मद हसन:
“ग़ज़लगो क है सयत से बशीर ब क सला हयत पर ईमान ना
लाना कु है।”
आले अहमद सु र:
“नई ग़ज़ल म ह तान और पा क तान म जो नाम बहरहाल
आयगे उनम बशीर ब का नाम भी होगा।”
नदा फ़ाज़ली:
“बशीर ब क आवाज़ र से पहचानी जाती है, ये ब त बड़ी
बात है।”
वैसे तो बशीर ब के कई शेर ब त मक़बूल ए ले कन उजाले अपनी याद
के……..शेर क शोहरत बशीर ब क अपनी शोहरत से कई गुना यादा बड़ी है य क
सवा रय से लेकर द तर , लीडर और ता लबे-इ म तक हर जगह ये शेर नज़र आ जाता है
और प ँच जाता है। यहाँ एक वा क़या रा क़मुल फ़ के साथ भी पेश आया जब मने
अपने एक उ ताद से उनका ऑटो ाफ़ लया तो उ ह ने मुझे बशीर ब का यही शेर लख
कर दया:
उजाले अपनी याद के हमारे साथ रहने दो
ना जाने कस गली म ज़ दगी क शाम हो जाए
मेरी आ है क तुमको ज़ दगी म क़ा मयाबी मले।
आगो डॉ. मो. शरीफ ख़ाँ, 2 मई सन् 1975 ई.
इसम दलच प बात ये थी क ना मुझे मालूम था क ये कसका शेर है ना मेरे उ ताद
को। इस शेर क शोहरत का ये आलम था क उसने अपने शायर क शोहरत को ब त पीछे
छोड़ दया।
बशीर ब ने शायरी क तजुबागाह म एक और तजुबा कया था जसको उ ह ने
“नसरी ग़ज़ल नाम दया था ले कन इस तजुब से वो ख़ुद मुतमइन नह थे इस लये चंद न री
ग़ज़ल लखकर इस तजुब को तक कर दया। माहनामा फ़नून” मई सन् 2008 ((Vol.
111) Issue V) औरंगाबाद म अलीम सबा नवेद का मज़मून… “उ शायरी म हैयती
तजब” म उ ह ने लखा है:
“उ ग़ज़ल से जस तरह आज़ाद ग़ज़ल का वजूद आ
उसी तरह “नसरी ग़ज़ल” भी वजूद म आई जसके मो जद बशीर ब ह,
उनक नसरी ग़ज़ल ह त रोज़ा “मोचा” (गया) 8 जुलाई सन् 1972 ई. म
शाए । मौसूफ़ ने अपनी न ी ग़ज़ल के मुख़त लफ़ नमूने (Sample)
रखे ह।
मसलन:
1. ऐसा ताक़तवर तख़लीक़ तजुबा जसे पुराने आहंग के साथ मुर ब होने
क क़तई ज़ रत ना हो।
2. ऐसे बराबर मसरे जनक तक़तीअ क जाए तो नए वज़न म बराबर ह गे
मगर मरव जा शेरी औज़ान के मुता बक़ न ह ।
3. नसरी फ़ या जुमले जो शायरी ह मगर पुरानी न म कम ह उनको
मसरा मानकर शेरी ग़ज़ल कहना।
ग़ा लबन मौसूफ़ ने बीस नसरी ग़ज़ल कही ह जनम सफ़ चार नसरी
ग़ज़ल “मोचा” के लए रवाना क थ । उनक नसरी ग़ज़ल म
महाकाती और अफ़सानवी ढं ग है। अ फ़ाज़ म खुर रापन कह -कह
ज़बान म सतही पन ऊद कर आया है। शायद जानबूझकर इस ज़बान
और ढं ग को नसरी ग़ज़ल का ला ज़मा क़रार दया हो। उनका याल है
क ग़ज़ल क हज़ार तह ह उनक ऊपरी तह म एक ऐसी दलदली तह
है जसम कुंद ज़हन हाथ पांव मारता और धँसता रहता है और शायर
तमाशा दे खना पसंद करता है। मगर नाचीज़ ने जो नसरी ग़ज़ल कही ह
उनम इन दलदली तह का शायबा र तक नह मलता।”
(माहाना फनून, औरंगाबाद, मई सन् 2008 ई.)
बशीर ब ने अपने शेरी सफ़र के इ तदाई दौर म न म भी लख जो माहनामा
“शायर” मु बई सत बर सन् 1951 ई. म “माज़ी व हाल” के उनवान से छप । “ग़ा लब से
शकायत” नई क़दर हैदराबाद पाक ज द नं. 3 शुमारा नं. 6, सफ़हा नं. 98 पर शाए ई
थ । इस न म का आ ख़री शेर था:
“ये यक़ र खये बहरहाल हम मलना है
जैसे तारीख़ के अवराक़ बहम होते ह”
डॉ. रफ़अत सु तान क कताब “बशीर ब नई आवाज़” जो सन् 2001 ई. म शाए
ई है, सफ़हा नं. 104 पर लखती ह:
“बशीर ब ने ग़ज़ल के मज़ाज के करदार ग़ज़ल क नज़ाक़त,
मासू मयत और तक़ स को मज ह कये बग़ैर नई सोच नये लहजे के
साथ असरी ह सयत को इस तरह गर त म लया है क शेर क अदबी
मतन को पस मंज़र म जाने नह दया, ये एक मु कल काम था। इस
मु कल को हल करने के लये उ ह ने अपने तजुबात और मुशा हदात क
बु नयाद तआक़कुल के बजाए वजदान पर रखी इसी लये उनक ग़ज़ल
क जड़ दल क गहराईय म उतरी ई ह। दल क म को नम करने के
लए आँसु का बहाव उ ट तरफ़ होता है, शेर:
अब के आँसू आँख से दल म उतरे
ख़ बदला द रया ने कैसे बहने का
बशीर ब ने नई ग़ज़ल को ल जी और मानवी सतह पर ब त कुछ दया
है।”
(नई आवाज़-डॉ. रफ़अत सु तान)
बशीर ब अपनी ग़ज़ल क मुता द कताब के साथ-साथ मुशायर के मक़बूल शायर
ह। यही वजह है क मुशायर के असरात ने उनक शायरी क ज़बान, उसलूब और लेहजे को
बदल कर रख दया। “आमद” और इमेज” क ग़ज़ल फ़ारसी तरक ब से और इज़ाफ़त से
पाक होने लग वना उनक ग़ज़ल के पहले मजमुए “इकाई” म बेशुमार अ फ़ाज़ फारसी
तरक ब से बो झल नज़र आते ह। बशीर ब “आमद” म ख़ुद लखते ह:
“अब ग़ज़ल का आलमी और जद द मंज़रनामा फ़ारसी-ज़दा उ ग़ज़ल के तरीक़ए
कार और मंज़रनाम से मुख़त लफ़ हो चला है, ये कारनामा मेरा है क मेरी ग़ज़ल इस सफ़र
का आग़ाज़ थी।”
बशीर ब क और ब त सी ख़ू बय के साथ क वो साफ़ दल इंसान ह, ग़ सा उ ह
कम आता है। सलीक़ा और सादगी के साथ मज़ाज म इ केसारी, बेहद रहम दल और
मेहरबान इंसान ह। मन कसी को समझते नह और अगर उनको समझा दया जाए क
फ़लाँ इंसान मनी कर रहा है तो भी मु कल से इसका यक़ न करना। हर एक पर हद दजा
ऐ तमाद, उनक ज़ दगी क कोई बात कभी राज़ नह रही। खुली कताब क तरह उनक
अदबी और घरेलू ज़ दगी ह। कम दज पर कोई भी काम करना कभी भी मंज़ूर नह आ।
यही वजह थी क ज़ दगी के हालात साज़गार होने के बाद दे र से एम.ए. और फर
पी.एच.डी. करने अलीगढ़ मु लम यू नव सट प ँचे।
बशीर ब ने सन् 1969 ई. म अलीगढ़ मु लम यू नव सट से इ तयाज़ी तौर पर उ
म एम.ए. कया। इ तयाज़ात म ये शा मल है क जब सन् 1968 ई. म बशीर ब ने एम.ए.
ी वयस कया तो एम.ए. के तमाम सरे मज़ामीन के टॉपस तु बा म सबसे यादा नंबर
लाने का रकॉड बशीर ब का था तब उ ह इं लै ड के एक ोफ़ेसर के नाम से “सर
व लयम मा स कॉलर शप” मली। इसके बाद सन 1969 ई. म तमाम एम.ए. (फ़ायनल)
के मज़ामीन के तु बा म टॉप करने वाल म अ वल आए तो “राधाकृ णन ाइज़” मला।
तालीमी सल सला जारी रखते ए ोफ़ेसर आले अहमद सु र क नगरानी म पी.एच.डी.
का मक़ाला “आज़ाद के बाद क ग़ज़ल का तनक़ द मुता लआ” लखा। सन 1972 ई. म
डॉ े ट क ड ी मलने के बाद वह ले चरर हो गए। कुछ अस बाद अलीगढ़ से मेरठ
कॉलेज म रीडर और स शोअबा उ क है सयत से दस -तदरीस म लगे रहे। इसम शक
नह क बशीर ब क ग़ज़ल मक़बूल-े ख़ासो-आम है। वो उ ग़ज़ल के मेहबूब शायर तो ह
ही ना क़द न भी उनक शायरी को नज़र अंदाज़ नह कर पाते।
बशीर ब जैसी तख़लीक़ सला हयत के शायर ग़ज़ल क नया म ब त कम ह। ऐसे
नौजवान शायर तो ब त ह जो मुशायर म बशीर ब क नक़ल करके उनक बेपनाह
मक़बू लयत से र को-हसद करते ह और उनके बनाए ए उसलूब पर चलने क को शश कर
रहे ह।
इ तदा से अभी तक बशीर ब क ग़ज़ल म एक नयापन मलता है। “इकाई” क
शायरी के बाद बशीर ब के कलाम म इज़ाफ़त नह मलती। उनक ग़ज़ल रवायती,
अलामती इज़हारात से आरी है। अपने ज बे और अहसास क आहट को उ ह ने तख़ युल
क नगेहदारी म इस तरह समेटा है क उनक ग़ज़ल म पैकर का जल-तरंग सा सुनाई दे ता
है।
बशीर ब इ तेआराती और तमसीली इज़हार से मुना सबत के बावजूद वो तशबीह से
मु ह रफ़ नह होते और उससे पैकर-आफ़रीनी का काम लेते ह ले कन उनके अशआर म
महसूस होता है क तजुब क ताज़गी ने अज़-ख़ुद-मौज़ूँ तशबीहात तलाश कर ली ह। ऐसी
तशबीहात जो सरे शोअरा के यहाँ नायाब ह,
मसलन:
बात क जैसे पानी म जलते ए दये
कमरे म नम नम उजाला सा भर गया
मसलन:
धूप खेत म उतर कर ज़ाफ़रानी हो गई
सुरमई अशजार क पोशाक धानी हो गई
मसलन:
वो बा कोनी से आए तो रा ता क जाए
सड़क पे चलने लगे तो हमारे जैसा है
मसलन:
मेरी शोहरत सयासत से महफूज़ है
ये तवाइफ़ भी अ मत बचा ले गई
जी ब त चाहता है सच बोल
या कर हौसला नह होता
कुछ तो मजबू रयाँ रह ह गी
यूँ कोई बेवफ़ा नह होता
सब खले ह कसी के आ रज़ पर
इस बरस बाग़ म गुलाब कहाँ
मसलन:
मछ लयाँ चल रही ह पंज पर
जनके चेहरे ह लड़ कय जैसे
- डॉ. राहत ब
ग़ज़ल के स चे शेर ब च क वो मासू मयत ह जनम हज़ार साल क बुजग
मु कुराती है और फर साठ साला तज बाकर ज़हन व दल म फूल जैसे ब चे कुछ पाने क
ज़द म मचलने लगते ह। शायद ऐसा ही कोई ल हा होगा जब सयासी ज़ मेदा रय और
अज़मत क श सयत इं दरा गांधी ने अपनी एक राज़दार सहेली ऋता शु ला टे गौर शखर
पथ, रांची-4 को अपने दल का कोई अहसास इस शेर के बसीले से वाब ता कया था।
उजाले अपनी याद के हमारे साथ रहने दो
न जाने कस गली म ज़ दगी क शाम हो जाए
यही वो शेर है जो मश र फ़ म ऐ े स मीना कुमारी ने (अं ेज़ी रसाला) टार ए ड
टाइल म अपने हाथ से उ म लखकर छपवाया था और ह तान के स ानी ज़ैल सह
ने अपनी आ ख़री तक़रीर को इसी पर समा त कया था। शायरी यहाँ ये सवाल पूछती है क
ग़ज़ल म ये बूढ़े लोग बारह तेरह साल के य हो जाते ह जब क आज क ग़ज़ल अपने
ब च का तआ फ़ इस तरह कराती है -
मु तसर बात करो बेजा वज़ाहत मत करो
ये नई नया है ब च म ज़हानत है ब त
ग़ज़ल क रेज़ा याली म टन और फ़रदौसी क मुसलसल बयानी और कमरे क
बेजान आँख कैसे हज़ार साल क धड़कन म बदल जाती है।
म अपने ब च को समझाने के लए ये कहना चाहता ँ क शायरी म ऐसा नह होता
क बाप क वरासत बाप के मरने के बाद बेटे क हो जाय। ये वरासत सफ़ उसको े नग
दे ती है। या न मीर के इं तक़ाल के बाद मीर का बेटा उनके घर का वाक़ई मा लक है ले कन
ग़ज़ल म तो उसे अपना घर ख़ुद ही बनाना पड़ेगा।
- बशीर ब
1955 म मस रख (सीतापुर) के तरही मुशायरे क सदारत एक बुजग सूरत
तहसीलदार कर रहे थे तीन शायर अपना कलाम पढ़ चुके थे क चौथे शायर क है सयत से
नौख़ेज़ और नौजवान बशीर ब ने अपना शेर पढ़ा…
उजाले अपनी याद के हमारे साथ रहने दो
न जाने कस गली म ज़ दगी क शाम हो जाए
इस पर मह फ़ल झूम ही रही थी क बुजग सदरे मुशायरा ने मुशायरे के ख़ म होने का
एलान कर दया, उनका कहना था क इस ज़मीन म इससे बेहतर शेर मु कन नह ।
- दै नक जागरण 14-02-94
बशीर ब के पास एक ऐसी ज़बान है जो, ज़ दगी के मु कल से मु कल हालात को
बड़ी सादगी से बयान कर दे ती है। उनक शायरी इतनी आम-फ़हम है क हर दज का इंसान
उनको बड़ी आसानी से पढ़कर-सुनकर-दोहराकर, कभी ख़ुद को तो कभी कसी और को
तस ली से भर दे ता है।
और तो और
कुछ तो मजबू रयाँ रही ह गी
यूँ कोई बेवफ़ा नह होता
जैसे कुछ शेर ऐसे ह क जनक वजह से कई कम पढ़े - लखे लोग भी पढ़े - लखे नज़र
आने लगते ह।
अब इससे यादा और या हो सकता है क अगर बशीर ब के बारे म कुछ कहना हो
तो वह बात कहने के लए भी उ ह के ल ज़ को दोहराना पड़ता है - ‘ आ करो क ये
पौधा सदा हरा ही रहे।’
- राजकुमार केसवानी
म पहली बार बशीर साहब से उनके घर पर मला। म जब उनसे मलने गया तब डॉ.
राहत ब जी (बशीर साहब क बेगम) ने मुझे बताया क साहब अभी सो रहे ह, आप कल
दोपहर 2 बजे आकर मल ली जएगा। म उनसे मलने के लए बेचैन था, सो अगले दन
ठ क दोपहर 2 बजे उनसे मलने के लए प ँच गया। बशीर साहब से मलकर ब त ख़ुशी
ई। अब तक मने उनक पु तक से ग़ज़ल व शायरी ब त पढ़ थी, ले कन दल म एक
वा हश थी क म कभी उनसे ब होऊँ, और ख़ुद उनसे कुछ शेर सुनू।ँ ज़ दगी ने मुझ
पर ये एहसान भी कर दया, और वो पल सामने था जब मने अपने दल क बात बशीर
साहब के सामने रख द । तब बशीर साहब ने ख़ुश होकर मुझे कुछ शेर सुनाए, वो ये थे…
उजाले अपनी याद के हमारे साथ रहने दो
न जाने कस गली म ज़ दगी क शाम हो जाये
लोग टू ट जाते ह एक घर बनाने म
तुम तरस नह खाते ब तयाँ जलाने म
बशीर साहब जहाँ अपनी ग़ज़ल व शायरी म मोह बत क बात करते ह, वह असल
ज़ दगी म भी उनक जबाँ मोह बत क बोली बोलती है। वो एक अ छे शायर होने के साथ-
साथ ब त अ छे इ सान भी ह। जब म उनसे मला तो उनक कुछ बात मेरे दल को छू ग ।
म बशीर साहब का ब त बड़ा फ़ैन ँ। उ ह ने मुझे अपनी एक कताब (ऑथे टक ी स)
भट क , उसके लए म उनका ब त शु गुज़ार ँ। मेरी एक इ छा थी क म उनक ग़ज़ल से
अपनी पसंद दा ग़ज़ल चय नत करके उ ह का शत क ँ , इसके लए मने उनसे अनुम त
मांगी और उ ह ने मुझे ख़ुशी से अनुम त दे द । म डॉ. बशीर ब का अ यंत आभारी ँ क
उ ह ने मुझे चय नत ग़ज़ल का शत करवाने क अनुम त द । इस पु तक के काशन क
तैयारी म अपने छोटे भाई व पन, र व व दो त मान, अजुन भैया के ारा दए गए सहयोग
के लए म उनका भी आभारी ँ।
- स चन चौधरी
बशीर ब के एज़ाज़ात (स मान/ त ा)
1. ‘प ी’ सन् 1999 ई. कूमत ह द
2. पोएट ऑफ़ द इयर अवॉड सन् 1989 ई. यूयॉक, अमेरीका
3. मीर तक़ मीर कुल ह द अवॉड सन् 1997 ई., म य दे श उ अकादमी, भोपाल
(एम.पी.)
4. उ र दे श उ अकादमी अवॉड सन् 1969 ई.
5. “इ तयाज़-ए-मीर” मीर तक़ मीर अकादमी, लखनऊ
6. बहार उ अकादमी, पटना सन् 1986 ई.
7. अमीर ख़ुसरो अवॉड, द ली सन् 2000 ई.
8. अख़त ल ईमान अवॉड, द ली सन् 2000 ई.
9. चराग़ हसन हसरत अवॉड, ज मू क मीर सन् 2000 ई.
10. सा ह य अकादमी अवॉड, द ली सन् 1999 ई.
11. ज े बशीर ब अवॉड बई, सन् 2000 ई. (मज लसे फ़रोग़-ए-उ अदब बई,
दोहा)
12. डी लट (D. Lit.) (आनरेरी ड ी) सी.सी. यू नव सट , मेरठ।
फ़राइज़ः (कत )
* ले चरर अलीगढ़ मु लम यू नव सट अलीगढ़ (इ तदाई चंद साल)
* स बोड ऑफ़ टडीज़ रसच ड ी कमेट , मेरठ
* स शोअबा उ मेरठ कॉलेज, मेरठ
* बल म य दे श उ अकादमी, भोपाल
* मे बर सा ह य अकादमी, ह द, द ली
* न मज लसे इंतेज़ा मया तर क़ उ बोड (मकज़ी कूमत हद) द ली
* ए सपट इनामी कमेट , हमाचल दे श अकादमी
* मे बर बोड ऑफ़ टडीज़, कु े यू नव सट
* मे बर बोड ऑफ़ टडीज़ ए ड ए ज़ी यू टव कमेट (गवनर नामनी) बरकतउ ला
यू नव सट , भोपाल
* चेयरमेन म य दे श उ अकादमी, भोपाल सन् 2005 ई. से 2012 तक।
अनु म
ग़ज़ल
चंद नई ग़ज़ल
1. यार कह दे के ज़ दगी या है
2. दा से इ कार करेगा, चल झूटे
3. ‘ब ’, ‘बशीर’ सुख़नवर, नाच गली म ब दर, अली दा म त क़ल दर
4. सर-सर हवा म सरके है संदल क ओढ़नी
5. सुनसान रा त से सवारी न आएगी
6. इस तरह साथ नभना है ार सा
7. आहन म ढलती जाएगी इ क सव सद
8. भोपाल क ग़ज़ल ने वो तरज नका लयाँ
9. बेसदा ग़ज़ल न लख वीरान राह क तरह
10. चाय क याली म नीली टे बलेट घोली
11. इबादत क तरह म ये काम करता ँ
12. धड़कन धड़कन धड़क रहा है अ लाह तेरो नाम
13. ग़ज़ालाँ! दे खना दलदार तार क अटारी म
14. अ लफ़ अ लफ़ है उसे शीन क़ाफ़ करते नह
15. चांद को चांदनी दखाऊँ या
16. कहाँ पर है मं ज़ल ख़बर ही नह
चु नदा शेर
ग़ज़ल
1
कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये
तु हारे नाम क इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये
1987
2
यूँ ही बेसबब न फरा करो, कोई शाम घर भी रहा
करो
वो ग़ज़ल क स ची कताब है उसे चुपके चुपके
पढ़ा करो
_________________
1. पदादार े मका
2. बेपदा
3
कभी यूँ भी आ मेरी आँख म, के मेरी नज़र को
ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे , मगर उसके बाद सहर न हो
_________________
1. न ालीन
4
वो नह मला तो मलाल या, जो गुज़र गया सो
गुज़र गया
उसे याद कर के न दल खा, जो गुज़र गया सो
गुज़र गया
1989
_________________
1. ल बा
2. छोटा
3. फ़क़ र
4. अमर व
5
ना जी भर के दे खा, ना कुछ बात क
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात क
1959
_________________
1. आँसू भरी आँख
6
आँख म रहा दल म उतर कर नह दे खा
क ती के मुसा फ़र ने सम दर नह दे खा
1978
7
मोह बत म दखावे क दो ती न मला
अगर गले नह मलता, तो हाथ भी न मला
ब त अजीब है ये क़बत 1 क री भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मला
1986
_________________
1. नज़द क
8
वो चांदनी का बदन ख़ुशबु का साया है
ब त अज़ीज़ हम है मगर पराया है
1975
9
ख़ुश रहे या ब त उदास रहे
ज़ दगी तेरे आस-पास रहे
चांद इन बद लय से नकलेगा
कोई आयेगा दल को आस रहे
1970
10
मुझसे बछड़ के ख़ुश रहते हो
मेरी तरह तुम भी झूटे हो
1983
11
सुन ली जो ख़ुदा ने वो आ तुम तो नह हो
दरवाज़े पे द तक क सदा तुम तो नह हो
1986
12
कौन आया रा ते, आईना-ख़ाने हो गये
रात रौशन हो गई है, दन भी सुहाने हो गये
1984
13
जो क ँगा सच क ँगा, यही फ़ैसला कया है
जो लखूँगा सच लखूँगा, यही फ़ैसला कया है
जो ब त क़द म2 होगा, जो ब त ज़द द3 होगा
उसे सबसे छ न लूँगा, यही फ़ैसला कया है
_________________
1. मन को मोह लेने वाला
2. पुराना
3. आधु नक
14
राह म कौन आ गया कुछ पता नह
उसको तलाश करते रहे जो मला नह
1980
15
सूरज-चंदा जैसी जोड़ी हम दोन
दन का राजा रात क रानी हम दोन
इक जे से मल कर पूरे होते ह
आधी आधी एक कहानी हम दोन
1976
16
सर झुकाओगे तो प थर, दे वता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जायेगा
1988
17
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
क अपने सवा कुछ दखाई न दे
मुझे ऐसी ज त नह चा हए
जहाँ से मद ना दखाई न दे
1977
18
मेरे साथ तुम भी आ करो, यूँ कसी के हक़ म बुरा
न हो
कह और हो न ये हादसा, कोई रा ते म जुदा न हो
1985
19
लोग टू ट जाते ह एक घर बनाने म
तुम तरस नह खाते, ब तयाँ जलाने म
फ़ा ता क मजबूरी ये भी कह नह सकती
कौन साँप रखता है, उसके आ शयाने म
1976
21
बरस भी जाओ कभी बा रश क रहमत हो
हज़ार र रहो तुम मरी मोह बत हो
_________________
1. ती ता, आ ध य
22
हमारा दल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये
चराग़ क तरह आँख जल जब शाम हो जाये
1956
23
वो ग़ज़ल वाल का असलूब1 समझते ह गे
चांद कहते ह कसे ख़ूब समझते ह गे
1976
_________________
1. शैली
2. प े
3. ख़त
4. बुरा, ऐबदार
24
चल मुसा फ़र, ब याँ जलने लग
आसमानी घं टयाँ बजने लग
दन के सारे कपड़े ढ ले हो गए
रात क सब चो लयाँ कसने लग
1971
_________________
1. जामुनी
25
परखना मत, परखने म कोई अपना नह रहता
कसी भी आईने म दे र तक चेहरा नह रहता
1996
26
जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे
हज़ार तरफ़ से नशाने लगे
वह ज़द प का क़ालीन है
गुल के जहाँ शा मयाने लगे
1984
27
चमक रही है पर म, उड़ान क ख़ुशबू
बुला रही है ब त आसमान क ख़ुशबू
1959
_________________
1. बेतरतीब
29
ह ठ पे मोह बत के फ़साने नह आते
सा हल पे सम दर के ख़ज़ाने नह आते
1980
_________________
1. दो त
30
हँसी मासूम-सी ब च क कॉपी म इबारत-सी
हरन क पीठ पर बैठे प र दे क शरारत-सी
वो जैसे स दय म गम कपड़े द फ़क़ र को
लब पे मु कुराहट थी मगर कैसी हक़ारत-सी
1980
_________________
1. तबाह और लुट ई
2. गम
31
ये कसक दल क दल म चुभी रह गई
ज़ दगी म तु हारी कमी रह गई
एक म, एक तुम, एक द वार थी
ज़ दगी आधी-आधी बँट रह गई
1980
32
माट क क ची गागर को या खोना, या पाना
बाबा
माट को माट है रहना, माट म मल जाना बाबा
1971
33
म ज़म ता आसमाँ, वो क़ैद आ तशदान म
धूप र ता बन गई, सूरज म और इ सान म
इन नई न ल ने सूरज आज तक दे खा नह
रात ह तान म है, रात पा क तान म
1998
34
कोई फूल धूप क प य म, हरे रबन से बँधा आ
वो ग़ज़ल का लहजा नया-नया, न कहा आ न सुना
आ
1975
35
कभी यूँ मल कोई मसलेहत, कोई ख़ौफ़ दल म
ज़रा न हो
मुझे अपनी कोई ख़बर न हो, तुझे अपना कोई पता
न हो
1980
36
कसे ख़बर थी तुझे इस तरह सजाऊँगा
ज़माना दे खेगा, और म न दे ख पाऊँगा
1970
_________________
1. तकलीफ़
37
कहाँ आँसु क ये, सौग़ात होगी
नये लोग ह गे, नयी बात होगी
1973
38
कोई हाथ नह ख़ाली है
बाबा, ये नगरी कैसी है
उसका भी कुछ हक़ है आ ख़र
उसने मुझसे नफ़रत क है
अब ग़म से या नाता तोड़
ज़ा लम बचपन का साथी है
1960
39
अगर तलाश क ँ कोई मल ही जायेगा
मगर तु हारी तरह कौन मुझे चाहेगा
न जाने कब तेरे दल पर नई सी द तक हो
मकान ख़ाली आ है तो कोई आयेगा
1986
40
अब तेरे-मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो
हम लोग जब मल, तो कोई सरा भी हो
1987
41
घर से नकले अगर हम बहक जाएंगे
वो गुलाबी कटोरे छलक जाएंगे
1982
_________________
1. श द
2. धीरे-धीरे
3. च ह
42
ग़ज़ल का नर अपनी आँख को सखायगे
रोयगे ब त ले कन, आँसू नह आयगे
कह दे ना सम दर से, हम ओस के मोती ह
द रया क तरह तुझसे मलने नह आयगे
1988
43
अब है टू टा-सा दल, ख़ुद से बेज़ार-सा
इस हवेली म लगता था दरबार-सा
म फ़ र त क सोहबत के लायक़ नह
हमसफ़र कोई होता गुनहगार-सा
बात या है के मश र लोग के घर
मौत का सोग होता है, योहार-सा
1976
45
आग को गुलज़ार कर दे , बफ़ को द रया करे
दे खने वाला तेरी आवाज़ को दे खा करे
1998
46
सया हय के बने हफ़-हफ़1 धोते ह
ये लोग रात म काग़ज़ कहाँ भगोते ह
चमकती है कह स दय म आँसु से ज़म
ग़ज़ल के शेर कहाँ रोज़-रोज़ होते ह
1978
_________________
1. अ र
2. न कपट, न छल
3. पुराने
47
अपनी उदास धूप तो घर-घर चली गई
ये रोशनी लक र के बाहर चली गई
1971
48
सोचा नह अ छा-बुरा, दे खा-सुना कुछ भी नह
माँगा ख़ुदा से रात- दन, तेरे सवा कुछ भी नह
1979
49
आ चांदनी भी मेरी तरह जाग रही है
पलक पे सतार को लये रात खड़ी है
द न ए रात के क़ से इक छत क ख़ामोशी म
स ाट क चादर ओढ़े ये द वार पुरानी है
1980
_________________
1. तेज वी
51
कोई जाता है यहाँ से न कोई आता है
ये दया अपने अँधेरे म घुटा जाता है
1970
_________________
1. बादल
52
सुनो, पानी म ये कस क सदा है
कोई द रया क तह म रो रहा है
समेटो और सीने म छु पा लो
ये स ाटा ब त फैला आ है
1970
_________________
1. ब कुल नया
53
शेर मेरे कहाँ थे कसी के लए
मने सब कुछ लखा है तु हारे लए
ज़ दगी और म दो अलग तो नह
मेरे सब फूल-काँटे इसी के लए
ज़हन म तत लयाँ उड़ रह ह ब त
कोई धागा नह बाँधने के लए
1978
54
अदब क हद म ँ म बे-अदब नह होता
तु हारा तज़ करा1 अब रोज़ो-शब2 नह होता
1988
_________________
1. चचा
2. दन रात
55
सु ह होती है छु पा लो हमको
रात भर चाहने वालो हमको
हम हक़ क़त ह नज़र आते ह
दा तान म छु पा लो हमको
दन न पा जाये कह शब का राज़
सु ह से पहले उठा लो हमको
हम ज़माने के सताये ह ब त
अपने सीने से लगा लो हमको
व त के ह ठ हम छू लगे
अन कहे बोल ह गा लो हमको
1972
56
सीने म आग, आग म आहन भी चा हए
रम झम बरसता बात से सावन भी चा हए
सीने म आफ़ताब सा इक दल ज़ र हो
हर घर म एक धूप का आँगन भी चा हए
हम आदमी ह या कोई बे हस च ान ह
दल म कसी के नाम क धड़कन भी चा हए
1970
57
हमारी शोहरत क मौत बेनामो- नशाँ होगी
न कोई तज़ करा1 होगा न कोई दा ताँ होगी
1970
_________________
1. चचा
2. च च
3. पूवज
58
कोई न जान सका वो कहाँ से आया था
और उसने धूप से बादल को य मलाया था
1970
59
दमाग़ भी कोई मस फ़ छापाख़ाना है
वो शोर जैसे के अख़बार छपता रहता है
1964
60
उदासी आसमाँ है दल मेरा कतना अकेला है
प र दा शाम के पुल पर ब त ख़ामोश बैठा है
1986
61
( पयाबाज याला पया जाए ना के नाम)
न म दर न म जद न दै रो-हरम
हमारी कह भी सुनी जाए ना
सुनाते-सुनाते सहर हो गई
मगर बात दल क कही जाए ना
1987
62
एक चेहरा साथ-साथ रहा जो मला नह
कसको तलाश करते रहे कुछ पता नह
एक द वार वो भी शीशे क
दो बदन पास-पास जलते ह
1977
64
‘ब ’ दो आँख ब त ढूँ ढ रही ह तुम को
चांद क चौदहव तारीख़ है ऊपर दे खो
मु त ज़र कब से है अवराक़े- कताबे-ह ती
दल का कुछ रंग करो नोके-क़लम को चूमो
1963
_________________
1. सु दरता
65
सँवार नोक पलक अब 1 म ख़म कर दे
ग़ र उस पे ब त सजता है मगर कह दो
इसी म उसका भला है ग़ र कम कर दे
1978
_________________
1. भव
2. स माननीय
66
शोलए-गुल, गुलाबे-शोला या
आग और फूल का ये र ता या
कतनी स दय क क़ मत का अम
कोई समझे बसाते-ल हा या
दल ख को सभी सताते ह
शे’र या, गीत या, फ़साना या
सब ह करदार इक कहानी के
वरना शैतान या, फ़ र ता या
जान कर हम बशीर ‘ब ’ ए
इसम तक़द र का न व ता या
1960
67
आया ही नह हम को आ ह ता गुज़र जाना
शीशे का मुक़ र है टकरा के बखर जाना
1970
68
स दय क गठरी सर पर ले जाती है
नया ब ची बन कर वापस आती है
म शीशे के घर म प थर क मछली
द रया क ख़ुशबू, मुझम य आती है
1998
69
जुगनू कोई सतार क मह फ़ल म खो गया
इतना न कर मलाल, जो होना था हो गया
जानता ँ क एक दन मुझको
व त बदलेगा डायरी क तरह
1957
71
म ग़ज़ल क ँ, म ग़ज़ल पढँ , मुझे दे तो ने-ख़याल
दे
तरा ग़म ही है मेरी तर बयत1, मुझे दे तो रंजो-
मलाल दे
1989
_________________
1. श ण
2. उ थान
3. पतन
4. पेट
72
गुलाब क तरह दल अपना शबनम म भगोते ह
मोह बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग होते ह
1986
73
चांद का टु कड़ा न सूरज का नुमाइ दा ँ
म न इस बात पे नाज़ाँ ँ न श मदा ँ
द न हो जाएगा जो सैकड़ मन म म
ग़ा लबन म भी उसी शहर का बा श दा ँ
1970
_________________
1. ाचीन
74
स ाटा या चुपके-चुपके कहता है
सारी नया कसका रैन-बसेरा है
आ ह ता-आ ह ता दल पर द तक दो
धीरे-धीरे ये दरवाज़ा खुलता है
1972
75
तार भरी पलक क बरसाई ई ग़ज़ल
है कौन परोए जो बखराई ई ग़ज़ल
_________________
1. ग़ज़ल क जान ( े मका)
76
अजनबी पेड़ के साये म मोह बत है ब त
घर से नकले तो ये नया ख़ूबसूरत है ब त
सात स क़ म भर कर द न कर द नफ़रत
आज इ साँ को मोह बत क ज़ रत है ब त
सच अदालत से सयासत तक ब त मस फ़7 है
झूठ बोलो, झूठ म अब भी मोह बत है ब त
_________________
1. सं त
2. असंगत, बेकार
3. व तार
4. समझदारी
5. तता, काय-भार
6. नधनता, ग़रीबी
7. त
77
हर बात म महके ए ज बात क ख़ुशबू
याद आई ब त पहली मुलाक़ात क ख़ुशबू
1975
78
यार पंछ , सोच पजरा, दोन अपने साथ ह
एक स चा, एक झूठा, दोन अपने साथ ह
1977
80
नाम उसी का नाम सवेरे शाम लखा
शेर लखा या ख़त उसको गुमनाम लखा
उस ब चे क कॉपी अ सर पढ़ता ँ
सूरज के माथे पर जसने शाम लखा
1998
81
कोई चराग़ नह है मगर उजाला है
ग़ज़ल क शाख़ पे इक फूल खलने वाला है
नकल के पास क म जद से एक ब चे ने
फ़साद म जली मूरत पे हार डाला है
1955
82
व ते- ख़सत कह तारे कह जुगनू आए
हार पहनाने मुझे फूल से बाजू आए
1992
_________________
1. हरन
83
ज़म से आँच, ज़म तोड़कर नकलती है
अजीब तशनगी1 इन बादल से बरसी है
1972
_________________
1. यास
2. जसे स बो धत कया जाए
3. काँध पर
84
उसको आईना बनाया, धूप का चेहरा मुझे
रा ता फूल का सबको, आग का द रया मुझे
1981
85
दालान क धूप, छत क शाम कहाँ
घर से बाहर घर जैसा आराम कहाँ
च दा के ब ते म सूखी रोट है
काजू, कश मश, प ते और बादाम कहाँ
86
वाब इन आँख का कोई चुराकर ले जाए
क़ के सूखे ए फूल उठाकर ले जाए
1978
87
कसने मुझको सदा द बता कौन है
ऐ, हवा तेरे घर म छपा कौन है
दल को प थर ए इक ज़माना आ
इस मकाँ म मगर बोलता कौन है
1981
88
वो शाख़ है न फूल, अगर तत लयाँ न ह
वो घर भी कोई घर है जहाँ ब चयाँ न ह
दो स त ख़ु क़ रो टयाँ कब से लए ए
पानी के इ तज़ार म बैठा आ ँ म
_________________
1. प
92
हवा म ढूँ ढ रही है कोई सदा मुझको
पुकारता है पहाड़ का सल सला मुझको
म आसमानो-ज़म क हद मला दे ता
कोई सतारा अगर झुक के चूमता मुझको
तू एक हाथ म ले आग एक म पानी
तमाम रात हवा म जला बुझा मुझको
1978
93
सर से चादर, बदन से क़बा ले गई
ज़ दगी हम फ़क़ र से या ले गई
म सम दर के सीने म च ान था
रात एक मौज आई, बहा ले गई
हम जो काग़ज़ थे अ क से भीगे ये
य चराग़ क लौ तक हवा ले गई
1978
95
ये चराग़ बेनज़र है ये सतारा बेजबाँ है
अभी तुम से मलता जुलता कोई सरा कहाँ है
1958
_________________
1. अप रवतनशील
2. अमर
96
भीगी ई आँख का ये मंज़र न मलेगा
घर छोड़ के मत जाओ कह घर न मलेगा
1980
97
अ छा तु हारे शहर का द तूर हो गया
जसको गले लगा लया वो र हो गया
काग़ज़ म दब के मर गए क ड़े कताब के
द वाना बे-पढ़े - लखे मश र हो गया
1988
_________________
1. अहं
2. माँग
98
साथ चलते आ रहे ह पास आ सकते नह
इक नद के दो कनार को मला सकते नह
प थर के बतन म आँसु को या रख
फूल को, ज़ के गमल म खला सकते नह
1975
99
ससकते आब म कस क सदा है
कोई द रया क तह म रो रहा है
समेटो और सीने म छु पा लो
ये स ाटा ब त फैला आ है
फल क बाग़वानी म तो बा रश क आ होगी
गुज़रते ख़ूबसूरत बादल को कौन दे खेगा
1980
101
मेरे दल क राख कुरेद मत इसे मु कुरा के हवा न दे
ये चराग़ फर भी चराग़ है कह तेरा हाथ जला न दे
1977
_________________
1. भेद
102
कताब, रसाले न अख़बार पढ़ना
मगर दल को हर रात इक बार पढ़ना
1988
103
अब कसे चाह, कसे ढूँ ढा कर
वो भी आ ख़र मल गया अब या कर
ह क -ह क बा रश होती रहे
हम भी फूल क तरह भीगा कर
1986
104
ख़ुशबू क तरह आया, वो तेज़ हवा म
माँगा था जसे हमने दन रात आ म
1988
105
कभी तो शाम ढले, अपने घर गए होते
कसी क आँख म रहकर सँवर गए होते
ब त दन से है दल अपना ख़ाली-ख़ाली सा
ख़ुशी नह तो उदासी से भर गए होते
106
सु ह का झरना, हमेशा हँसने वाली औरत
झुटपुटे क न दयाँ, ख़ामोश गहरी औरत
1958
_________________
1. न छलता
108
आईना धूप का, दरया म दखाता है मुझे
मेरा मन, मेरे लहजे म बुलाता है मुझे
ध पीते ए ब चे क तरह है दल भी
दन म सो जाता है रात मे जगाता है मुझे
1998
109
सोये कहाँ थे, आँख ने त कये भगोये थे
हम भी कभी कसी के लए ख़ूब रोये थे
1978
_________________
1. नाव
110
है अजीब शहर क ज़ दगी, न सफ़र रहा ना क़याम
है
कह कारोबार सी दोपहर, कह बद मज़ाज सी शाम
है
वो दल म आग लगाएगा, म दल क आग
बुझाऊँगा
उसे अपने काम से काम है, मुझे अपने काम से
काम है
1998
111
सर को हमारी सज़ाएँ न दे
चांदनी रात को ब आएँ न दे
फूल से आ शक़ का नर सीख ले
तत लयाँ ख़ुद कगी, सदाएँ न दे
मो तय को छु पा सी पय क तरह
बेवफ़ा को अपनी वफ़ाएँ न दे
म दर त क सफ़1 का भखारी नह
बेवफ़ा मौसम क क़बाएँ2 न दे
1977
_________________
1. पं
2. चोग़ा
112
उदास रात म कोई तो वाब दे जाओ
मेरे गलास म थोड़ी शराब दे जाओ
ब त-से और भी घर ह ख़ुदा क ब ती म
फ़क़ र कब से खड़ा है जवाब दे जाओ
1977
_________________
1. डू बता आ
113
अपनी जगह जमे ह कहने को कह रहे थे
सब लोग वरना बहते दरया म बह रहे थे
1971
114
तार के चलमन से कोई झाँकता भी हो
इस कायनात म कोई मंज़र नया भी हो
1990
_________________
1. अँधेरा
2. मोती
3. म दर, म जद
4. सोया आ
5. शैली
116
शाम से रा ता तकता होगा
चांद खड़क म अकेला होगा
न द म डू बी महकती साँस
वाब म फूल-सा चेहरा होगा
मु कुराता आ झल मल आँसू
तेरी रहमत का फ़ र ता होगा
पालन म कह पड़े ह गे
कल जो सूरज ब त बड़े ह गे
_________________
1. तभाय, दमाग़
2. परी ाय
3. छ जा
4. जूता
5. श द
119
रगते दौड़ते ए ड बे
साये क तरह झाँकते चेहरे
_________________
1. बेचैनी
120
रात के शहर म तार क कमाँ रौशन है
चांद म कौन है ये कसका मकाँ रौशन है
1967
121
बाहर न आओ, घर म रहो, तुम नशे म हो
सो जाओ, दन को रात करो, तुम नशे म हो
1970
_________________
1. वृ
2. नाव म लगाया जाने वाला परदा, जसम हवा भर जाने से नाव चलती है
3. पृ वी
4. आकार
5. स पूण
6. पीले
7. एक प र दा
123
ज़ दगी मौसम क हजरत है
दल का पतझड़ भी ख़ूबसूरत है
दन म ये हमसे भी गया-गुज़रा
रात म चांद ख़ूबसूरत है
आदमी आज तक अधूरा है
एक औरत, हज़ार औरत है
1987
126
कह चांद राह म खो गया, कह चांदनी भी भटक
गई
म चराग़ वो भी बुझा आ, मरी रात कैसे चमक गई
_________________
1. का , रचना
127
उस दर का दरबान बना दे या अ लाह
मुझको भी सु तान बना दे या अ लाह
1989
128
आज द रया, चढ़ा-चढ़ा-सा है
कोई हम से ख़फ़ा-ख़फ़ा-सा है
दल से एक रोशनी जहाँ म थी
ये द या भी बुझा-बुझा-सा है
शबनमी आग भी जलाती है
फूल का दल जला-जला-सा है
1962
129
आग लहरा के चली है उसे आँचल कर दो
तुम मुझे रात का जलता आ जंगल कर दो
म तु ह दल क सयासत का नर दे ता ँ
अब इसे धूप बना दो, मुझे बादल कर दो
घर बसाने म ये ख़तरा है के घर का मा लक
रात म दे र से आने का सबब पूछेगा
1987
132
(अमरीका-ईराक़ यु पर लखी गई ग़ज़ल)
म ये नया मटाना चाहता ँ
नया सब कुछ बनाना चाहता ँ
मेरे अ दर कोई ज़ा लम छु पा है
म च ड़याघर बनाना चाहता ँ
1990
133
मान मौसम का कहा, छाई घटा, जाम उठा
आग से आग बुझा, फूल खला, जाम उठा
न ज व म ई उ तमाम
आज ये दल पे सादगी या है
_________________
1. छल-कपट
2. महा मा होने का तमाशा
3. कनारा
2
दा से इनकार करेगा, चल झूटे
तू ब च से यार करेगा, चल झूटे
_________________
1. लबास
5
सुनसान रा त से सवारी न आएगी
अब धूल से अट ई लारी न आएगी
अब है टू टा सा दल ख़ुद से बेज़ार-सा
इस हवेली म लगता था दरबार सा
म फ़ र त क सोहबत के लायक़ नह
हमसफ़र कोई होता गुनहगार सा
बात या है क मश र लोग के घर
मौत का सोग होता है योहार सा
_________________
1. गाल
7
आहन म ढलती जाएगी इ क सव सद
फर भी ग़ज़ल सुनाएगी इ क सव सद
जल कर जो राख हो ग दं ग म इस बरस
उन झु गय म आएगी इ क सव सद
स दय से एक ब ची भटकती है रात म
याद के ताक़ पर कहाँ रखी ह बा लयाँ
_________________
1. अनायास, ख़ुद-बख़ुद
9
बेसदा1 ग़ज़ल न लख वीरान राह क तरह
ख़ामोशी अ छ नह आह -कराह क तरह
तुमने द ली दे खी, पर द ली का ख दे खा नह
ग़म कूमत कर रहे ह कज-कुलाह 4 क तरह
_________________
1. गूंगी, बना कसी आवाज़ के
2. जागी ई
3. त
4. वा भमा नय
5. दया-भाव
6. पीर -फ़क़ र के नवास- थल
10
चाय क याली म नीली टे बलेट घोली
सहमे-सहमे हाथ ने इक कताब फर खोली
_________________
1. कोठा
11
इबादत क तरह म यह काम करता ँ
मरा उसूल है पहले सलाम करता ँ
हर गम सद क श त म रहमत क शाल
मौसम मौसम चहक रहा है अ लाह तेरो नाम
_________________
1. ऐ मृग-शावक !
2. पूव दशा
3. प म
14
अ लफ़ अ लफ़ है उसे शीन क़ाफ़ करते नह
दलो- दमाग़ मेरे इ तलाफ़ करते नह
न द तार को आ रही है ब त
अपने घर का पता बताऊँ या
आज स डे है, कल भी छु है
आसमान म घूम आऊँ या
मोह बत क छत है ये ‘राहत’ का घर
जो बँट जाएं, द वारो-दर ही नह
(डॉ. राहत ब क और से डॉ. बशीर ब क नज़र)
चु न दा शेर
(1)
उजाले अपनी याद के हमारे साथ रहने दो
न जाने कस गली म ज़ दगी क शाम हो जाए
(2)
लोग टू ट जाते ह एक घर बनाने म
तुम तरस नह खाते ब तयाँ जलाने म
(3)
मनी जम कर करो ले कन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दो त बन जाय तो श मदा न ह
(4)
हम भी द रया ह, हम अपना नर मालूम है
जस तरफ़ भी चल पड़गे रा ता हो जाएगा
(5)
मुसा फ़र ह हम भी, मुसा फ़र हो तुम भी
कसी मोड़ पर फर मुलाक़ात होगी
(6)
मनी का सफ़र, एक क़दम दो क़दम
तुम भी थक जाओगे, हम भी थक जायगे
(7)
बड़े लोग से मलने म हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ द रया सम दर म मला द रया नह रहता
(8)
लहर पे एक दन तेरी त वीर आएगी
काग़ज़ को हमने आज नद म बहा दया
(9)
गुलाब क तरह शबनम म अपना दल भगोते ह
मुह बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग होते ह
(10)
घड़ी दो घड़ी हम को पलक पे रख
यहाँ आते आते ज़माने लगे
(11)
दे ने वाले ने दया सब कुछ अजब अंदाज़ से
सामने नया पड़ी है और उठा सकते नह
(12)
क सतार को म जानता ँ बचपन से
कह भी जाऊँ मरे साथ-साथ चलते ह
(13)
यहाँ लबास क क़ मत है, आदमी क नह
मुझे गलास बड़े दे , शराब कम कर दे
(14)
फूल सी क़ से अ सर ये सदा आती है
कोई कहता है बचालो म अभी ज़ दा ँ
(15)
पलक भी चमक उठती ह सोते म हमारी
आँख को अभी वाब छु पाने नह आते
(16)
अज़ीम मन चाक़ू चलाओ मौक़ा है
हमारे हाथ हमारी कमर के पीछे ह
(17)
इबादत क तरह म ये काम करता ँ
मरा उसूल है पहले सलाम करता ँ
(18)
कसने जलाई ब तयाँ बाज़ार य लुटे
म चाँद पर गया था मुझे कुछ पता नह
(19)
मुख़ा लफ़त से मरी श सयत सँवरती है
म मन का बड़ा एहतेराम करता ँ
(20)
म डर गया ँ ब त सायादार पेड़ से
ज़रा सी धूप बछा कर क़याम करता ँ
(21)
मुझे ख़ुदा ने ग़ज़ल का दयार ब शा है
ये स तनत म मुह बत के नाम करता ँ
(22)
ज़म माँ भी है, महबूब भी है, बेट भी
ज़म छोड़ के जाऊँ कोई सवाल नह
(23)
पहले से कुछ साफ़ नज़र आई नया
जब से हमने आँख पर प बांधी
(24)
ये प र द भी खेत के मज़ र ह
लौटकर शाम तक अपने घर जाएंगे
(25)
फूल सी उंग लयाँ कं घयाँ बन ग
उलझे बाल से माथा ढँ का दे खकर
(26)
दरवाज़े आ मान के खुलने दो दो त
नकलेगा मु कुराता आ, शामे-ग़म का चांद
(27)
जो क ँगा सच क ँगा यही फैसला कया है
जो लखूँगा सच लखूँगा यही फैसला कया है
(28)
य हवेली के उजड़ने का मुझे अफ़सोस हो
सैकड़ बेघर प रद के ठकाने हो गये
(29)
मटा दये ह सभी फ़ासले मोह बत ने
मरा दमाग़ धड़कता है मेरे दल क तरह
(30)
नफ़रत को मोह बत का एक शेर सुनाता ँ
म लाल पसी मच पलक से उठाता ँ
(31)
मं दर म जद बनते ह बनते बनते मट जाते ह
चमक रहा था चमक रहा है अ लाह तेरो नाम
(32)
हज़ार शेर मेरे सो गये काग़ज़ क क़ म
अजब माँ ँ कोई ब चा मरा ज़ दा नह रहता
(33)
काग़ज़ का ये लबास चराग़ के शहर म
जानाँ संभल-संभल के चलो तुम नशे म हो
(34)
मासूम तत लय को मसलने का शौक़ है
तौबा करो, ख़ुदा से डरो तुम नशे म हो
(35)
यही अंदाज़ है मरा सम दर फ़तह करने का
मरी काग़ज़ क क ती म कई जुगनू भी होते ह
(36)
इमारत क बुल द पे कोई मौसम या
कहाँ से आ गई क चे मकान क ख़ुशबू
(37)
मुझको शाम बता दे ती है
तुम कैसे कपड़े पहने हो
(38)
मुझसे बछड़ के ख़ुश रहते हो
मेरी तरह तुम भी झूठे हो
(39)
धूप कब तक मुझे सताएगी
कल मरे पेड़ भी बड़े ह गे
(40)
रात का इंतज़ार कौन करे
आजकल दन म या नह होता
(41)
आपका शहर ख़ूबसूरत है
या यहाँ आदमी नह रहते
(42)
पढ़ाई लखाई का मौसम कहाँ
कताब म ख़त आने जाने लगे
(43)
बा रश म कसी पेड़ को दे खना
शाल ओढ़े ए भीगता कौन है
(44)
न जी भर के दे खा न कुछ बात क
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात क
(45)
ख़ुदा इस शहर को महफ़ूज़ रखे
ये ब च क तरह हँसता ब त है
(46)
इजाज़त हो तो म इक झूठ बोलूँ
मुझे नया से नफ़रत हो गई है
(47)
घर नया, बतन नये, कपड़े नये
इन पुराने काग़ज़ का या कर
(48)
वो ख़ुद हारे ए ह ज़ दगी से
जो नया पर कूमत कर रहे ह
(49)
मेरी मु म सूखे ए फूल ह
ख़ुशबु को उड़ाकर हवा ले गई
(50)
ख़ुदा, महबूब, शौहर, बाल ब चे
ग़ज़ल दलदार औरत हो गई
(51)
ई शाम याद के इक गाँव से
प र दे उदासी के आने लगे
(52)
रात सर पे लए ँ जंगल म
रा ते क ख़राब बस क तरह
(53)
सात पद म छु प कर दे ख लया
कपड़े बदलो तो दे खता है कोई
(54)
ऐब पुराने घर का ये ही है बाबा
कोई आए न आए घंट बजती है
(55)
अब कसे चाह, कसे ढूँ ढा कर
वो भी आ ख़र मल गया, अब या कर
(56)
कुछ तो मजबू रयाँ रही ह गी
यूँ कोई बेवफ़ा नह होता
(57)
चराग़ को आँख म महफ़ूज़ रखना
बड़ी र तक रात ही रात होगी
(58)
ग़ज़ल अब तक शराब पीती थ
नीम का रस पला रहे ह हम
(59)
उसे उ म तुमने ख़त लखा है
तु हारी इतनी ह मत हो गई है
(60)
ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है
रहे सामने और दखाई न दे
(61)
शीशे का ताज सर पे रखे आ रही थी रात
टकराई हम से चांद सतारे बखर गये
(62)
सुनसान रा त क सवारी न आयेगी
अब धूल क अट ई लारी न आयेगी
(63)
पसीना बंद कमरे क उमस का ज ब है इसम
हमारे तौ लये म धूप क ख़ुशबू कहाँ होगी
(64)
कार से झांकते ए ख़ुशबू के पैरहन
पैदल के वा ते वही डीज़ल क ओढ़नी
(65)
रात तार से उलझ सकती है ज़र से नह
रात को मालूम है जुगनू म ह मत है ब त
(66)
म ख़ुदा का नाम लेकर पी रहा ँ दो त
ज़हर भी इसम अगर होगा दवा हो जाएगा
(67)
तु हारे साथ ये मौसम फ़ र त जैसा है
तु हारे बाद ये मौसम ब त सताएगा
(68)
वो शाख़ है न फूल अगर तत लयाँ न हो
वो घर भी कोई घर है जहाँ ब चयाँ न हो
(69)
उस ब चे क कॉपी अ सर पढ़ता ँ
सूरज के माथे पर जसने शाम लखा
(70)
उसे ये शौक़ था हर रात एक नया हो बदन
दलाल अब के जो लाया उसी क बेट थी
(71)
उदासी पतझड़ क शाम ओढ़े रा ता तकती
पहाड़ी पर हज़ार साल क कोई इमारत सी
(72)
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
तु ह ख़ुदा ने हमारे लए बनाया है
(73)
मेरी आँख के तारे अब न दे ख पाओगे
रात के मुसा फ़र थे, खो गए उजाल म
(74)
म मुह बत से महकता आ ख़त ँ मुझको
ज़ दगी अपनी कताब म दबाकर ले जाए
(75)
बे-व त अगर जाऊँगा, सब च क पड़गे
इक उ ई दन म कभी घर नह दे खा
(76)
सतारे राह के ह मीरो-ग़ा लब-ओ-इक़बाल
क़लम ँ ब चे का, त ती नई, नई ँ म
(77)
जैसे जैसे उ भीगी सादा पोशाक गई
सूट पीला, शट नीली, टाई धानी हो गई
(78)
रात तेरी याद ने दल को इस तरह छे ड़ा
जैसे कोई चुटक ले नम नम गाल म
(79)
बादल हवा क जद पे बरस कर बखर गये
अपनी जगह चमकता आ आफ़ताब है
(80)
मने समझाया क सूरज भी झुकेगा दर पर
वना तार क तरफ़ मुँह कए दरवाज़े थे
(81)
घर कतने ही छोटे ह , घने पेड़ मलगे
शहर से अलग होती है क़ बात क ख़ुशबू
(82)
ह बनो तो मथुरा, मु लम बनो तो म का,
इ साँ अगर रहो तो सारा जहाँ तु हारा
(83)
शोहरत क बुल द भी पल भर का तमाशा है
जस डाल पे बैठे हो, वो टू ट भी सकती है
(84)
म चुप रहा तो और ग़लत-फ़ह मयाँ बढ़
वो भी सुना है उसने, जो मने कहा नह
(85)
म तमाम तारे उठा-उठा के ग़रीब लोग म बाँट ँ
कभी एक रात वो आसमाँ का नज़ाम दे मरे हाथ म
(86)
मकाँ से या मुझे लेना मकाँ तुमको मुबारक हो
मगर ये घास वाला रे मी क़ालीन मेरा है
(87)
मुझको उन स ची बात से अपने झूठ ब त यारे ह
जन स ची बात से स दय इ सान का ख़ून बहा है
(88)
फूल सी ब ची ने मेरे हाथ से छ ना गलास
आज अ मी क तरह वो पूरी औरत सी लगी
(89)
इस माल को काम म लाओ, अपनी पलक साफ़ करो
मैला मैला चाँद नह है, धूल जमी है आँख म
(90)
वो अनपढ़ था फर भी उसने पढ़े लखे लोग से कहा
इक त वीर, कई ख़त भी ह, सा हब आप क र म
(91)
धूप म छाँव हो, छाँव म धूप हो, चांदनी चांदनी चाहत रहे
ये आ है ख़ुदा, मेरा अ छा सनम, मेरी अ छ सी नया सलामत रहे
(92)
मुझे पतझड़ क कहा नयाँ न सुना सुना के उदास कर
नए मौसम का पता बता जो गुज़र गया सो गुज़र गया
(93)
अगर फ़सत मले पानी क तहरीर को पढ़ लेना
हर इक द रया हज़ार साल का अफ़साना कहता है
(94)
आँख खोल के बाह डालो, यूँ खो जाना ठ क नह
नाग भी लपटे रहते ह पीपल क नम जटा म
(95)
ब तु हारी फ़ े सुख़न पर इक अ लामा हँस कर बोले
वो लड़का, नौ उ प र दा, ऊँचा उड़ना सीख रहा है
(96)
हमने तो बाज़ार क नया बेची और ख़रीद है
हमको या मालूम कसी को कैसे चाहा जाता है
(97)
यारो सोना चाँद बोकर, सोना चाँद काटो, जाओ
हमने आँसू क खेती क , नैन नगर आबाद कया है
(98)
कभी यूँ भी आ मरी आँख म क मरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे , मगर उसके बाद सहर न हो
(99)
उसे पाक नज़र से चूमना भी इबादत म शुमार है
कोई फूल लाख क़रीब हो, कभी मने उसको छु आ नह
(100)
ज़ दगी तरी फ़ खलते ही गुलाब का रस नचोड़ लेती है
फूल जैसी उ के सोचते ए ब चे बूढ़े होते जाते ह
(101)
इसी शहर म कई साल से मरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ ह
उ ह मेरी कोई ख़बर नह मुझे उनका कोई पता नह
(102)
कभी सात रंग का फूल ँ कभी धूप ँ कभी धूल ँ
म तमाम कपड़े बदल चुका तरे मौसम क बरात म
(103)
मोह बत से, इनायत से, वफ़ा से चोट लगती है
बखरता फूल ँ, मुझको हवा से चोट लगती है
(104)
एक गाँव म दो बारात, शायद हा बदल गया
मेरी आँख म तेरा आँसू, तेरी आँख म मेरा आँसू
(105)
कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाए
तु हारे नाम क इक ख़ूबसूरत शाम हो जाए
(106)
कसी ने चूम के आँख को ये आ द थी
ज़मीन तेरी ख़ुदा मो तय से नम कर दे
(107)
हर रोज़ हम मलना, हर रोज़ बछड़ना है
म रात क परछा , तू सुबह का चेहरा है
(108)
मेरा ये अहद है क आज से म कोई मंज़र ग़लत न दे खूंगा
मेरी बेट ने मेरी पलक को कतनी पाक ज़गी से चूमा है
(109)
हम शरीफ़ क ज़रा मजबू रयाँ समझा करो
जसको अ छा कह दया उसको बुरा कैसे कह
(110)
उसे कसी क मुह बत का ए तबार नह
उसे ज़माने ने शायद ब त सताया है
(111)
म आग था फूल म त द ल आ कैसे
ब च क तरह कसने चूमा मरे गाल को
(112)
कह दे ना सम दर से हम ओस के मोती ह
द रया क तरह तुझसे मलने नह आयगे
(113)
वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का ह सा है
कोई जो सरा पहने, तो सरा ही लगे
(114)
ख़ुदा क इतनी बड़ी कायनात म मने
बस एक श स को माँगा, मुझे वही न मला
(115)
दल क ब ती पुरानी द ली है
जो भी गुज़रा उसी ने लूटा है
(116)
जी ब त चाहता है सच बोल
या कर हौसला नह होता
(117)
आसमाँ भर गया प र द से
पेड़ कोई हरा गरा होगा
(118)
मोह बत, अदावत, वफ़ा, बे ख़ी
कराए के घर थे बदलते रहे
(119)
आज हम सबके साथ ख़ूब हँसे
और फर दे र तक उदास रहे
(120)
उसका भी कुछ हक़ है आ ख़र
उसने मुझसे नफ़रत क है
(121)
तुम अभी शहर म या नए आये हो
क गए राह म हादसा दे खकर
(122)
थके थके पै डल के बीच चले सूरज
घर क तरफ़ लौट , द तर क शाम
(123)
सब खले ह कसी के गाल पर
इस बरस बाग़ म गुलाब कहाँ
(124)
ज़ म खाते रहो, मु कुराते रहो
अपनी अमरीका से दो ती हो गई
(125)
मुतमइन ह ज़रा अमीरो ग़रीब
हर मुसीबत म डल लास क है
(126)
फूल जैसे ख़ूबसूरत ग़म मले
ज़ दगी से या गला शकवा कर
(127)
ग़ज़ल का नर अपनी आँख को सखाएंगे
रोयगे ब त ले कन आँसू नह आएंगे
(128)
वो चाँदनी का बदन, ख़ुशबु का साया है
ब त अज़ीज़ हम है मगर पराया है
(129)
मुझे मालूम है उसका ठकाना फर कहाँ होगा
प र दा आसमाँ छू ने म जब नाकाम हो जाए
(130)
मुह बत म दखावे क दो ती न मला
अगर गले नह मलता तो हाथ भी न मला
(131)
सर झुकाओगे तो प थर दे वता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा
(132)
अब मले हम तो कई लोग बछड़ जायगे
इ तज़ार और करो अगले जनम तक मेरा
(133)
ज़ दगी तूने मुझे क़ से कम द है ज़म
पाँव फैलाऊँ तो द वार म सर लगता है
(134)
परखना मत, परखने म कोई अपना नह रहता
कसी भी आईने म दे र तक चेहरा नह रहता
(135)
इक मीर था सो आज भी काग़ज़ म क़ैद है
ह द ग़ज़ल का सरा अवतार म ही ँ
(136)
चमकती है कह स दय मे आँसु से ज़म
ग़ज़ल के शेर कहाँ रोज़ रोज़ होते ह
(137)
फूल से आ शक़ का नर सीख ले
तत लयाँ ख़ुद कगी सदाएं न दे
(138)
इतनी सयाह रात म कसको सदाएँ ँ
ऐसा चराग़ दे जो कभी बोलता भी हो
(139)
अ लाह ने नवाज़ दया है तो ख़ुश रहो
तुम या समझ रहे हो ये शोहरत ग़ज़ल से है
(140)
जस दन से चला ँ मरी मं ज़ल पे नज़र है
आँख ने कभी मील का प थर नह दे खा
(141)
उ ह रा त ने, जन पर कभी तुम थे साथ मेरे
मुझे रोक-रोक पूछा, तरा हमसफ़र कहाँ है
(142)
चांद चेहरा, ज फ़ द रया, बात ख़ुशबू, दल चमन
इक तु ह दे कर ख़ुदा ने दे दया या- या मुझे
(143)
उसके लए तो मने यहाँ तक आएं क
मेरी तरह से कोई उसे चाहता भी हो
(144)
आँख म रहा, दल म उतर कर नह दे खा
क ती के मुसा फ़र ने सम दर नह दे खा
(145)
प थर मुझे कहता है मरा चाहने वाला
म मोम ,ँ उसने मुझे छू कर नह दे खा
(146)
इस तरह साथ नभना है ार-सा
म भी तलवार-सा, तू भी तलवार-सा
(147)
इतनी मलती है मेरी ग़ज़ल से सूरत तेरी
लोग तुझको मरा महबूब समझते हांगे
(148)
कसे मालूम था हम दोन इक ब तर पे सोएंगे
हफ़ाज़त के लए तलवार अपने दर याँ होगी
(149)
वो बा कोनी म आए तो रा ता क जाए
सड़क पे चलने लगे तो हमारे जैसा है
(150)
सात सं क़ म भर कर द न कर दो नफ़रत
आज इ सान को मोह बत क ज़ रत है ब त
(151)
सच सयासत से अदालत तक ब त मस फ़ है
झूठ बोलो, झूठ म अब भी मोह बत है ब त
(152)
वो ग़ज़ल वाल का उ लूब समझते हांगे
चांद कहते ह कसे ख़ूब समझते ह गे
(153)
मुझसे या बात लखानी है क अब मेरे लए
कभी सोने, कभी चाँद के क़लम आते ह
(154)
अजब चराग़ ँ दन रात जलता रहता ँ
म थक गया ँ, हवा से कहो बुझाए मुझे
(155)
उन से ज़ र मलना सलीक़े के लोग ह
सर भी क़लम करगे बड़े एहतेराम से
(156)
चांद सा मसरा अकेला है मरे काग़ज़ पर
छत पर आजाओ मेरा शेर मुक मल कर दो
(157)
उसने छू कर मुझे प थर से फर इ सान कया
मु त बाद मरी आँख म आँसू आए
(158)
बा रश छत पे खुली जगह पे होती ह मगर
ग़म वो सावन है जो इन कमर के अंदर बरसे
(159)
आ ख़री बेट क शाद करके सोई रात भर
सु ह ब च क तरह वो ख़ूबसूरत सी लगी
(160)
च ड़य के लए चावल पौध के लये पानी
थोड़ी सी मुह बत दे हम चाहने वाल को
(161)
साथ चलते जा रहे ह पास आ सकते नह
इक नद के दो कनार को मला सकते नह
(162)
मेरे ह ट पे तेरी ख़ुशबू है
छू सकेगी इ ह शराब कहाँ
(163)
भरी दोपहर का फूल खला है
पसीने म लड़क नहाई ई
(164)
दल क ख़ामोशी पे न जाओ
राख के नीचे आग दबी है
(165)
झल मलाते ह क तय म दये
पुल खड़े सो रहे ह पानी म
(166)
फूल सा कुछ कलाम और सही
इक ग़ज़ल उसके नाम और सही
(167)
धड़कन द न हो गई ह गी
दल म द वार य खड़ी कर ली
(168)
दे खो वो फर आ गई फूल पे तत लयाँ
इक रोज़ वो भी आयेगा अफ़सोस मत करो
(169)
नीला सफ़ेद कोट ज़म पर बछा रहा
वो मुझको आसमान पे ले कर चली गई
(170)
म आसमान-ओ-ज़म क हद मला दे ता
कोई सतारा अगर झुक के चूमता मुझको
(171)
द ली हो क लाहौर कोई फ़क़ नह है
सच बोल के हर शहर म ऐसे ही रहोगे
(172)
इक पल क ज़ दगी मुझे बेहद अज़ीज़ है
पलक पे झल मलाऊँगा और टू ट जाऊँगा
(173)
तु हारे घर के सभी रा त को काट गई
हमारे हाथ म कोई लक र ऐसी थी
(174)
उड़ने दो प र द को अभी शोख़ हवा म
फर लौट के बचपन के ज़माने नह आते
(175)
फ़ा ता क मजबूरी ये भी कह नह सकती
कौन साँप रखता है उसके आ शयाने म
(176)
भीगी ई आँख का ये मंज़र न मलेगा
घर छोड़ के मत जाओ कह घर न मलेगा
(177)
सरी कोई लड़क ज़ दगी म आएगी
कतनी दे र लगती है उसको भूल जाने म
(178)
इरादे हौसले, कुछ वाब कुछ भूली ई याद
ग़ज़ल के एक धागे म कई मोती परोए ह
(179)
बात या है क मश र लोग के घर
मौत का सोग होता है योहार सा
(180)
अपनी शोहरत से र रहता ँ
ये बड़ी बद मज़ाज औरत है
(181)
दो त से वफ़ा क उ मीद
कस ज़माने के आदमी हो तुम
(182)
एक दन तुझसे मलने ज़ र आऊँगा
ज़ दगी मुझको तरा पता चा हये
(183)
इक जे से मलकर पूरे होते ह
आधी आधी एक कहानी हम दोन
(184)
नया भर के शहर का क चर य साँ
आबाद त हाई बनती जाती है
(185)
एक म, एक तुम, एक द वार थी
ज़ दगी आधी आधी बँट रह गई
(186)
सर पे ज़मीन लेके हवा के साथ जा
आ ह ता चलने वाल क बारी न आएगी
(187)
सात ज़मीन, एक सतारा नया नया
स दय बाद ग़ज़ल ने कोई नाम लखा
(188)
आपके पास ख़रीदारी क क़ वत है अगर
आज सब लोग कान म सजे रखे ह
(189)
ये फूल मुझे कोई वरासत म मले ह
तुमने मरा काँट भरा ब तर नह दे खा
(190)
सयासत क अपनी अलग इक जबान है
लखा हो जो इक़रार इ कार पढ़ना
(191)
हम पहले नम प क इक शाख़ थे मगर
काटे गये ह इतना क तलवार हो गए
(192)
ये एक पेड़ है आ इससे मलके रो ल हम
यहाँ से तेरे मेरे रा ते बदलते ह
(193)
झुक पलक, घने गेस,ू हस दामन, सुबुक़ आँचल
जहाँ क तपती राह म ये साये याद आते ह
(194)
श फ़ाक आँख, तेज़ क क मुझे लगा
इक मौत का फ़ र ता था हँसता गुज़र गया
(195)
आज क शाम दोबारा न कभी आयेगी
आज क शाम न ये सोच के कल या होगा
(196)
पागल सी इक लड़क ने शायर बना दया
ये शायरी भी है उसी पागल क ओढ़नी
(197)
प थर के जगर वालो ग़म म वो रवानी है
ख़ुद राह बना लेगा, बहता आ पानी है
(198)
जब उसक नवा ज़श होती है ये मोजज़ा तब हो जाता है
अ फ़ाज़ महकने लगते ह, काग़ज़ भी अदब हो जाता है
(199)
कोई हाथ भी न मलाएगा जो गले मलोगे तपाक से
ये नए मज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मला करो