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1 21/04/2015 Typing Started on H K Srinivasa Rao
2 31/05/2015 Typing Ended on H K Srinivasa Rao
3 29/08/2015 Ist Proof Reading & Correction M S Venugopal & H K Srinivasa Rao
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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Blessed by Lord and with His divine grace, we are pleased to publish this
Magnanimous Work of Sri Acharya Madhwa. It is a humble effort to make
available this Great work to Sadhakas who are interested in the noble path of
propagating Acharya Madhwa’s Philosophy.
With great humility, we solicit the readers to bring to our notice any inadvertant
typographical mistakes that could have crept in, despite great care. We would be
pleased to incorporate such corrections in the next versions. Users can contact
us, for editable version, to facilitate any value additions.
ಕೃತಜ್ಞತ ಗಳು
ಅರಾಧಂಗಿಯನನು ಕರನಣಿಸಿ ಸಾಧನ ಗ
ಅವಕಾಶಮಾಡಿದ ಪೂಜಯ ಅತ ೆ ಮಾವಂದಿರಾದ,
ದಿವಂಗತರಾದ ಯಶ ೀದಾಬಾಯಿ ಕ ಬಿ ಮತನೆ
ಬಿಂದನಮಾಧವರಾವ್ ಕ ಆರ್ ಅವರ
ಸ್ಮರಣಾರ್ಧ ಈ ಜ್ಞಾನಯಜ್ಞ.
ಕೃತಜ್ಞತ ಗಳು
ಸ್ಂಸ್ೃತದಲ್ಲಿರನವ ಅನನಸ್ವರ-ಅನನನಾಸಿಕದ ಸ್ಪಷ್ಟವಾದ ವ ೈವಿಧಯತ ಯನ, ಕನುಡ
ಭಾಷ ಯಲ್ಲಿಯ ಇರನವಾಗ, ಅದರ ಜ್ಞಾನದ ಗಂಧವ ೀ ಇಲಿದವರಂತ , ಕನುಡಿಗರನ ಇದನನು
ಕಡ ಗಣಿಸಿರನವುದನ ಏಕ ೀ ತಿಳಿಯದಾಗಿದ . ಸ್ರಿಯಾದ ಉಚ್ಾಾರಣ ಗಾಗಿ, ಸ್ರಿಯಾದ
ಅನನಸಾವರ-ಅನನಾಸಿಕಗಳು ಅವಶಯಕ. ಆದದರಿಂದ, ಶರಮವಹಿಸಿ, ಸ್ರಿಯಾದ ಅನನನಾಸಿಕ,
ಅನನಸಾವರಗಳನನು ಬಳಸ್ಲಾಗಿದ . ಓದನಗರನ ಇದನನು ಗಮನಿಸಿ ಮನಿುಸ್ಬ ೀಕಾಗಿ
ಪ್ಾರರ್ಥಧಸ್ಲಾಗಿದ .
ಗರಂರ್ ಋಣ- ತನರದಿೀಪಕ – ಗನರನರಾಜ ಅಸ ೀಸಿಯೀಷ್ನ್
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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TableofContents
ಕೃತಜ್ಞತ ಗಳು ............................................................................................................................................ 2
िन्त्रचीनिका................................................................................................................................................ 29
आनन्दमयाधिकरणम ्॥1-1-6॥................................................................................................................... 34
अन्तस्त्तत्त्वाधिकरणम ्॥1-1-7॥................................................................................................................... 36
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ जीवमख्
ु यप्राणभिङ्गान्िे नत चेन्िोपासारैववध्यादाश्रश्रतत्वाहदह तद्योगात ् ॐ ॥1-1-12-31 ॥ .......................................... 40
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ शब्दाहदभ्योऽन्तः प्रनतष्ठािान्िे नत चेन्ि तथा दृष््युपदे शादसम्भवात ् पुरुषववधमवप चै िमधीयते ॐ ॥ 1-2-7-57 ............ 48
ॐ अिुस्मत
त ेर्ाादररः ॐ ॥ 1-2-7-61 ॥ ....................................................................................................... 49
ॐ िािम
ु ािमतच्छब्दात ् ॐ ॥ 1-3-1-66 ॥ ................................................................................................. 50
ॐ प्राणभच्
त च ॐ ॥ 1-3-1-67 ॥ .............................................................................................................. 50
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ अक्षरमम्र्रान्तधत
त ेः ॐ ॥ 1-3-3-73 ॥ ........................................................................................................ 52
ॐ अन्यभावव्यावत्त
त े श्च ॐ ॥ 1-3-3-75 ॥ ......................................................................................................... 52
ॐ धत
त ेश्च महहम्िोऽस्यान्स्मन्िुपिब्धे ः ॐ ॥ 1-3-5-79 ॥ ...................................................................................... 54
ॐ उत्तराच्चेदाववभत
ू ा स्वरूपस्तु ॐ ॥ 1-3-5-82 ॥ ................................................................................................. 55
दे वताधिकरणम ्॥1-3-8॥................................................................................................................................ 57
ॐ तदप
ु यावप र्ादरायणः सम्भवात ् ॐ ॥ 1-3-8-89 ॥ ........................................................................................... 57
ॐ समाििामरूपत्वाच्चावत्त
त ावप्यववरोधो दशािात ् स्मत
त े श्च ॐ ॥ 1-3-8-93 ॥ ................................................................ 59
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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कम्पनाधिकरणम ्॥1-3-10॥...................................................................................................................... 62
ॐ ज्योनतदा शि
ा ात ् ॐ ॥ 1-3-11-103 ॥ ..................................................................................................... 62
ॐ सष
ु प्ु त्यत्ु रान्त्योभे देि ॐ ॥ 1-3-13-105 ॥ ............................................................................................. 62
ब्राह्मणाधिकरणम ्॥1-3-14॥..................................................................................................................... 63
त ीयपादसारसङ्ग्रहः ...............................................................................................................................
तत 63
ॐ आिम
ु ानिकमप्येकेषाभमनत चे न्ि शरीररूपकववन्यस्तगह
त ीतेदाशयानत च ॐ ॥ 1-4-1-107 ॥ ....................................... 63
ज्योततरुपक्रमाधिकरणम ्॥1-4-2॥................................................................................................................ 66
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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नििीराध्याराः॥2॥ ................................................................................................................... 73
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भोक्त्रधिकरणम ्॥2-1-5॥.......................................................................................................................... 77
आरम्भणाधिकरणम ्॥॥2-1-6॥................................................................................................................... 78
॥ 2-1-6-153॥ ................................................................................................................................... 79
ॐ अश्माहदवच्च तदिप
ु पवत्तः ॐ ॥ 2-1-7-159 ॥ .......................................................................................... 81
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आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ ववकरणत्वान्िेनत चे त ् तदक्
ु तम ् ॐ ॥ 2-1-8-167 ॥ ......................................................................................... 83
न प्रयोिनाधिकरणम ्॥2-1-9॥......................................................................................................................... 83
प्रथमपादसारसङ्ग्रहः ...................................................................................................................................... 85
ॐ प्रवत्त
त े श्च ॐ ॥ 2-2-1-175 ॥ .................................................................................................................... 86
ॐ अभ्यप
ु गमे ऽप्यथााभावात ् ॐ ॥ 2-2-3-179 ॥ .................................................................................................. 87
ॐ समवायाभ्यप
ु गमाच्च साम्यादिवन्स्थतेः ॐ ॥ 2-2-6-186 ॥............................................................................... 89
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ समद
ु ाय उभयहे तक
ु े ऽवप तदप्रान्प्तः ॐ ॥ 2-2-7-191 ॥ ................................................................................ 90
ॐ अिुस्मत
त े श्च ॐ ॥ 2-2-7-198 ॥.......................................................................................................... 92
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ पथ
त गुपदे शात ् ॐ ॥ 2-3-14-246 ॥ ...................................................................................................... 106
म
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॥2-3-18-266॥....................................................................................................................................... 112
इनि श्रीमदाद्राघवजन्द्ररनिकृ ि िन्त्रचीनिकारां नििीराध्यारस्य िृिीराः िाचाः ्मदाा्ाः ॥ श्रीकृ ष्णाि यममदा् म ............... 114
अथ द्ववतीयाध्यायस्य चतुथाः पादः ॥2-4॥ ....................................................................................................... 114
प्राणाधिकरणम ्॥2-4-1॥ .............................................................................................................................. 114
ॐ तत्पूवक
ा त्वाद्वाचः ॐ॥ 2-4-3-276 ॥ ....................................................................................................... 115
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ ि वायुक्ररये पथ
त ु गुपदे शात ् ॐ ॥ 2-4-6-281 ॥ ......................................................................................... 116
ॐ सङ्ज्ञामूनताक् िन्त प्तस्तु त्ररवत्त कुवात उपदे शात ् ॐ॥ 2-4-12-292॥ ....................................................................... 119
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आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ु त्वाधिकरणम ्॥3-1-6॥..........................................................................................................................
अश्रत 122
ॐ अश्रत
ु त्वाहदनत चेन्िेष्टाहदकाररणां प्रतीतेः ॐ ॥ 3-1-6-300 ॥............................................................................ 122
॥3-1-10-304॥....................................................................................................................................... 123
ॐ सक
ु त तदष्ु कतते एवे नत तु र्ादररः ॐ ॥ 3-1-12-306 ॥....................................................................................... 124
ॐ ि तत
त ीये तथोपिब्धे ः ॐ ॥ 3-1-15-313 ॥ ................................................................................................ 126
ॐ तत
त ीये शब्दावरोधः संशोकजस्य ॐ ॥ 3-1-15-316 ॥ ..................................................................................... 127
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ अन्याश्रधन्ष्ठते पव
ू व
ा दभभिापात ् ॐ ॥ 3-1-18-320 ॥ ................................................................................. 128
॥3-2-1-326॥.................................................................................................................................... 130
॥3-2-2-328॥.................................................................................................................................... 130
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ अत एव चोपमा सूयक
ा ाहदवत ् ॐ ॥ 3-2-10-341 ॥ ....................................................................................... 135
॥3-2-12-343॥....................................................................................................................................... 136
ॐ पूवव
ा द्वा ॐ ॥ 3-2-15-353 ॥ ................................................................................................................ 139
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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॥3-3-2-371॥.................................................................................................................................... 144
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ आत्मगह
त ीनतररतरवदत्त
ु रात ् ॐ ॥ 3-3-9-382 ॥ .............................................................................................. 148
ॐ कायााख्यािादपूवम
ा ्ॐ ॥ 3-3-11-384 ॥ .................................................................................................... 149
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ तन्न्िधाारणाथानियमस्तद्दृष्टे ः पथ
त ग्नध्यप्रनतर्न्धः फिम ् ॐ ॥3-3-25-408 ॥ ................................................. 157
ॐ प्रदािवदे व हह तदक्
ु तम ् ॐ ॥ 3-3-26-409 ॥ ......................................................................................... 158
ॐ प्रज्ञान्तरप थ
त क्त्ववद्दृन्ष्टश्च तदक्
ु तम ् ॐ ॥ 3-3-32-417 ॥ ......................................................................... 161
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ ि वाऽतत्सहभावश्रत
ु ेः ॐ ॥ 3-3-42-432 ॥ ................................................................................................. 166
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ तल
ु यम ् तु दशािम ् ॐ ॥ 3-4-1-442 ॥ ................................................................................................. 169
ॐ शमदमाद्यप
ु े त ः स्यात ् तथाऽवपतु तद्ववधे स्तदङ्गतया तेषामवश्यािष्ु ठे यत्वात ् ॐ ॥ 3-4-4-460 ॥ ............................ 174
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ ववशेषािग्र
ु हं च ॐ ॥ 3-4-5-471 ॥ .......................................................................................................... 177
ॐ र्हहस्तूभयथाऽवप स्मत
त े राचाराच्च ॐ ॥ 3-4-6-476 ॥ ..................................................................................... 178
ॐ सहकायान्तरववश्रधःपक्षे ण तत
त ीयं तद्वतो ववध्याहदवत ् ॐ ॥ 3-4-7-479 ॥ ............................................................. 180
ॐ ऐहहकमप्रस्तत
ु प्रनतर्न्धे तद्दशािात ् ॐ ॥ 3-4-10-483 ॥................................................................................. 181
ॐ एवं मुन्क्तफिानियमस्तदवस्थावधत
त े स्तदवस्थावधत
त ेः ॐ ॥ 3-4-11-484 ॥ ............................................. 181
म
अर् चिर्ायध्याराः॥4॥ ............................................................................................................ 182
म
अर् चिर्ायध्यारस्य प्रर्मदााः िाचाः ॥4-1॥ .................................................................................... 182
आवत्त्ृ यधिकरणम ्॥4-1-1॥............................................................................................................................ 182
ॐ आववत त्तरसकतदप
ु दे शात ् ॐ ॥ 4-1-1-485 ॥ ................................................................................................... 182
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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इनत श्रीरार्वे न्द्रयनतकततायां तन्रदीवपकायां चतु थााध्यायस्य प्रथमः पादः सम्पू णःा श्रीकतष्णापाणमस्तु ॥ ................................ 188
ॐ सोऽध्यक्षे तदप
ु गमाहदभ्यः ॐ ॥ 4-2-3-507 ॥ ........................................................................................ 189
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ समिा चासत्त यप
ु रमादमत ु ोष्य ॐ॥ 4-2-6-510॥ .................................................................................
त त्वं चािप 190
म
अर् चिर्ायध्यारस्य िृिीराः िाचाः ॥4-3॥ ................................................................................... 195
अधचवराद्यधिकरणम ्॥4-3-1॥......................................................................................................................... 195
ॐ अश्रचरा ाहदिा तत्प्रश्रथते ः ॐ ॥ 4-3-1-526 ॥ ................................................................................................. 195
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ वैद्यत
ु ेिैव ततस्तच्ुते ः ॐ ॥ 4-3-5-531 ॥ ........................................................................................... 197
ॐ स्मत
त ेश्च ॐ ॥ 4-3-6-536 ॥ ............................................................................................................. 198
ॐ एवमप्युपन्यासात ् पूवभ
ा ावादववरोधं र्ादरायणः ॐ ॥4-4-5-548॥ ................................................................ 201
ॐ सङ्कलपादे व च तच्रत
ु ेः ॐ ॥ 4-4-6-549 ॥ .......................................................................................... 202
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ द्वादशाहवदभ
ु यववधं र्ादरायणोऽतः ॐ ॥ 4-4-8-553 ॥ .................................................................................. 203
ॐ तन्वभावे सन्ध्यवदप
ु पत्ते ः ॐ ॥ 4-4-8-554 ॥ .............................................................................................. 203
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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िन्त्रचीनिका
प्रर्मदााद्याराः (्मदान्वराध्याराः) ॥1 ॥
म ्म्पूमं चोषािीिं रमदाािनिमदा।्
प्रमम्यगम
म िन्याि क
िूम यबोधं गरू ् 1॥
् म मदायाः ्ूत्रार् य्ङ्ग्रहमदा ॥
ब्रह्मरुद्रानचनभाः ज्ञािार्ं अनर् यिो िारारमाः वा्त्वजि अविीरय –उत्सन्नाि ् वजचाि ् अनभव्यनक्तिूवक
य ं
अत्र आद्यतु रोाः ॐकाराः ‘स्रवत्यिोङ्कृिं ब्रह्म िर्ाच्च नवशीरयि’ज इनि श्रनम िन्द्धाः। आद्याः
दृष्टादृष्टार्ाःय । अि एव एित्सूत्रावरवत्वाि ।्
्वय्त्रू षज म अिषङ्गाः
म ि स्याि ् इनि ्वय्त्र
ू षज म अदृष्टमदाात्रार् यिराऽऽच अिषङ्गार
म अ्ंनहििरा ि्यतिज।
अन्त्याः अदृष्टमदाात्रार् याः। ि ्ूत्रावरवाः। अन्वरप्रनिरोग्र्मदाि यक इनि रावि।् ओङ्कारार्शब्द
मदाङ्गलफलक क्रमदााि ् म िूत्यायितु रयवाचक ।
गम ओनमदात्यजिि ् रोग्रिरा
म भूिब्रह्मनवशजषममदा।् अर्जनि रोग्रिरा अनधकाराि इत्यन्वज
न्ज्ञा्ागम ् नि। अि इनि ‘रस्य प्र्ाचाि’्
इत्यानच म ानचस्थं
निमयरश्रत्य फलानचिरामदाृश्रिज। ब्रह्मशब्दाः म िूत्य यर् याः
गम ्ि ्
नचचनचनिलक्षमनवष्णवम ाची। ‘् नवष्णरम ाह नह िं ब्रह्मजत्याचक्षिज’ इत्यक्तज
म ाः। ब्रह्ममो न्ज्ञा्ा इनि
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥1-1-3-3 ॥
ॐ शास्त्ररोनित्वाि ॐ
म लक्षमस्य अनिव्यानिनिरा्ार प्राममदाच्य
अत्र िरज प्रागक्त म िज। िस्य ्म जानचकारमस्य इनि वियि।ज
म
शास्त्रं वजचाः िचि्ानरि रुषजरह्यन्थश्च रोनिाः ज्ञन्कारमं प्रमदाामं इनि रावि ् रस्य िि ् शास्त्ररोनि।
म ि िाशिम िानचिा वा ि ्म जानचकारमं ज्ञजरनमदानि
िस्य भावाः ित्त्वं िस्मानचत्यर्ाःय । अिमदाािज
िानिव्यान्ाः इनि भावाः। वजचरोनित्वाि ् इनि वाच्यज शास्त्र इत्यनक्ताः
म ‘ऋग्र्ाःम ्ामदाार्वायश्च’ इनि
म
स्मृत्यक्तशास्त्रह्यहमार। म
िजि अिमदाािं ‘ि ैव शास्त्रं कमवत्मय िि’् इत्यक्तिाश
म िम िाद्यशास्त्रं च
व्यावनियिमदा।् ‘मदााित्वाि’् इनि वाच्यज ‘रोनित्वाि’् म
इत्यनक्ताः मदााित्वोििाचिार।
शास्त्रिचलभ्यभ्रान्त्यहजििम ाकस्यज्ञन्हजिोाः मदााििाध्र व्याि।् ऋगाचजाः अिानचत्वानचिा निचोषत्वजि शास्त्र
म लाभाि।् अस्य स्मृनििराि आगिार्
म भ्रान्त्यहजित्व
इत्यक्त्या ् िय ा नचनन्द्रकारां बोध्या ॥3॥
्
्मदान्वरानधकरममदा ॥1-1-4॥
् ॥1-1-4-4॥
ॐ ित्त म ्मदान्वराि ॐ
अत्र िरज ििम रनिव्यान्निरा्ार नवष्णोरजव ्गत्कारमत्वजि शास्त्ररोनित्वं ्मदार्थ्यि।ज शास्त्ररोिीनि
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥1-1-5-5 ॥
ॐ ईक्षिजिायशब्दमदा ॐ
अत्र िरज ्ंशब्दोक्तवाच्यत्वं ्वयशास्त्ररोनित्वं च ्मदार्थ्यि।ज
िनचनि वियि ज । ि नवद्यिज शब्दाः वाचकाः रस्य िचशब्दं अवाच्यमदा।् ईक्षिजनरनि धािनम िचेशिज िचर्ाःय
ईक्षमं लक्ष्यिज। िस्य च अ्म्बद्धस्य अहजित्व ्
म ाि ्म्बन्धस्य म ििगमदाज
य ानचरूिस्य श्रत्य
च किृत्व म ि नविक्षज
्
बाधकाभावप्र्ङ्गजि च अरोगाि नक्रराकमदाय ् ् ब्रह्म अशब्दं ि
भावस्यैव न्नद्धाः। ईक्षिजाः ईक्षमीरत्वाि िच
नकतु म वाच्यमदाजव इत्यर् याः। ि च अन्द्धो हजिाःम । ‘िनरशरं
म म ईक्षिज’ इनि श्रिम ाःज । ि चाप्ररो्कत्वमदा।्
िरुषं
म द्यस्य शब्दाि ् ईक्षमं वचिवृनत्तमदातु रा ि रक्त
अक्षािमदाािावज म नमदानि िात्परायि।् ि अशब्दं ईक्षिजनरनि
् ॥1-1-5-6 ॥
ॐ ग मश्चजन्नात्मशब्दाि ॐ
म
िरुषमदाीक्षि म बद्धो ्ीवाः ि नवष्णाःम अि ईक्षमीरत्वं ित्र अन्द्धनमदानि चजन्न।
इत्याच ईक्षमीराः नत्रगम
आत्मािं िश्रजनचत्याच ईक्षमीरज आत्मप्रचश्रवमाि।् उिलक्षममदाजिि ् ।
म
िरुषब्रह्मानचशब्दानचत्यर् याः।प्राक ् िनचत्यन्वरार अशब्दनमदात्यक्त
म ावनि इह आत्मिचान्वरार ग म इनि
ि ं म - निचेशाः॥
् ॥1-1-5-7 ॥
ॐ िनन्नष्ठस्य मदाोक्षोिचजशाि ॐ
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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िनन्नष्ठस्य आत्मनिष्ठस्य। म
‘रस्यािनवत्ताः प्रनिबद्धम आत्मा, िस्य लोकाः ् उ लोक एव’ इनि
मदाोक्षोिचजशाि ्ि ग माः आत्मशब्दजिोक्त इत्यर्ाःय । ग मज्ञािाि ्गम
म निवृनत्तरूिमदाक्त्य
म रोगानचनि भावाः।
्
अि एव प्राग ्ीव म
इनि वाच्यज ग म इत्यनक्ताः।
इिश्च ि ग म्स्थजत्याह—
ॐ हजरत्वावचिाच्च ॐ ॥1-1-5-8 ॥
‘िमदाजवक म र्’ इनि आत्मशब्दार् यस्य हजरत्वावचिाि ्
ै ं ्ािर् आत्मािं अन्या वाचो नवमदाञ्च
म रत्ववचिाि ्
प्रत्यिाहज अन्यस्य हजरत्ववचिाच्चजत्यर् याः। ्धम ारां िम ग मशब्दस्य
मदााराशबलब्रह्मिरत्वमदािम त्य
ज ्ूत्रत्ररं व्याख्यािमदा।् ित्त्वप्रचीि-्न्न्याररत्नावल्यो् म ि
कज वलमदाात्मशब्दानचबलाचीक्षमीरो ि ग माः। नकतु म िनन्नष्ठस्यजत्यानच्ूत्रिरोक्तहजिभ्य
म ामदािीनि
िनन्नष्ठस्यजत्यानच्ूत्रिरमदान्यर्ा व्याख्यािमदा।्
मय ो वाच्य इत्याह—
इिश्च निगम
् ॥1-1-5-9 ॥
ॐ स्वाप्यराि ॐ
मय नमदानि च प्रकृ िमदा।् ‘आत्मन्यजवात्मािं नवलािरनि’ इनि श्रत्य
िाशब्दनमदानि वियि।ज निगम म क्त
म त्वाच्च
मय ं ब्रह्म िाशब्दं नकतु म वाच्यमदाजवनज ि बनहरजव रोज्यमदा।् कमिोऽरं श्रत्य
निगम म क्त मय इनि चजि ्
म ो निगम
ॐ गनि्ामदाान्याि ् ॐ ॥1-1-5-10 ॥
ित्त म शास्त्ररोिीनि वियि।ज गिजाः ्वयशाखोत्पाद्यज्ञािस्य ्ामदाान्याि ् ्मदााित्वाि ् एकरूित्वश्रवमाि ्
म राः’ इत्याच िचजव नवष्ण्वाख्यं ब्रह्मवै कारमत्वजि ्वयशास्त्ररोनि ि त्वन्यत्र अन्यर्ा
‘्वे वजच रक्त
उच्यि इत्यर् याः।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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उच्यिज॥2॥
्
आिन्दमदारानधकरममदा॥1-1-6॥
् ॥1-1-6-12 ॥
ॐ आिन्दमदारोऽभ्या्ाि ॐ
अत्र िरज गनम म्ामदाान्यवाचका म वाचकाश्चिामदाात्मकााः
गम शब्दााः ्मदान्वीरतु ज।िनत्त्वनि
म ि।ज आिन्दमदार इत्यिलक्षममदा
अध्यारिनर्मदाान् ्ाध्याि यकिरा प्रनििरं प्रारजम अिविय म ।् िैनत्तरीरज
श्रिम ा आिन्दमदाराचराः िञ्च ित्त म िचजव ब्रह्मवै । आिन्दमदारानचशब्दवाच्यं ब्रह्मवै इत्यर् याः। एवमदाह्यजऽनि
प्रनििरमदार्ो ध्यजराः। कमिाः अभ्या्ाि ् । अत्र अभ्या्शब्दजि िचजकचजशोऽ्कृ दुनक्तमदाात्रं गृ्रमिज।
प्रनिप्रकरमं ‘रजऽन्नं ब्रह्मोिा्िज’ इत्यानचरूि जम ब्रह्मशब्दश्रवमानचत्यर्ाःय । रिा ‘अन्योऽतु र आत्मा’,
‘एिमदान्नमदारमदाात्मािमदािम ्ङ्क्रानमदानि’, ‘एिमदान्नमदारमदाात्मािमदािम ्ङ्क्रम्य’ इनि प्रनिप्रकरमं नत्राः
श्रवमाचात्मशब्दाभ्या्ानचत्यर्ाःय । रिा ‘अन्नं ब्रह्मजनि व्य्ािाि’् इत्यत्तराि
म म
वाकज ्
ब्रह्मशब्द्त्त्वाि निाः
श्रवमजि ज र् याः॥उत्तरं
ब्रह्मशब्दाभ्या्ाचजवत्य कल्पिरं चनन्द्रकोक्तमदा।् श्रिम
अन्नमदारस्यानचत्वजऽप्यािन्दमदारस्यजिरोिलक्षकत्वजिोनक्ताः न्ज्ञा्ाक्षजिकावरवत्वानचिूविय क्षहजिोाः ्त्त्वाि ्
म
्वायि जनक्षिािन्दवानचत्वाच्च। आद्यकल्पज ब्रह्मशब्दानचनि वाच्यजऽभ्या्ानचत्यनक्तनवय
ज्ञािािन्दमदाररोाः
्ोऽप्य्ीनि ्ूचिार॥
उक्तमदाानक्षप्य ्मदााधत्तज—
म िॐ
ॐ नवकारशब्दान्नजनि चजन्न प्राचराय ् ॥1-1-6-13 ॥
म ि ् प्राचराय
य मदारट्शब्दाचन्नमदारानचि य ब्रह्मजनि चजन्न। प्राचराय
नवकारार्क म र् यत्वाचत्र मदारट्शब्द्ािस्यजत्यर् याः।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
ॐ िद्धजिव्यिचज
शाच्च ॐ ॥1-1-6-14 ॥
म र् य इनि च। िस्य नवष्णो्त्र िूमायिन्दत्वज ‘को ्रमजवान्याि’्
आिन्दमदार्नत्त्वनि वियि।ज मदारट ् प्राचराय
म िचजशानचत्यर् याः। ् त्रं िनचनि िचं िन्त्रमदा।् रनच आिन्दमदारो ि ब्रह्म,
इनि लोकचजष्टकत्वाख्यहजिव्य
म र्ाःय िचा आकाशाख्यनवष्णोाः िूमायिन्दत्वज हजि ं म ि ब्रूरानचनि भावाः॥
मदारट ् च ि प्राचराय
म
ॐ िजिरोऽििित्तज
ाः ॐ ॥1-1-6-16 ॥
आिन्दमदारानचनरनि वियि।ज इिर्नचिरो नवनष्ण्विरश्चिमदाम ख
मय ानचि य भवनि। कमिाः? ‘ब्रह्मनवचाप्नोनि
िरमदा’् इत्यक्तमदा
म नम क्तहजिज्ञ
म ािनवषरत्वस्याििित्तज
म ाः। िस्यैव अन्नमदारानचत्वजिोक्तत्वानचत्यर् याः। ‘नवभाषा
म ऽज नस्त्ररामदा’् इत्यत्र नवभाषा गम
गम म इनि रोगनवभागोक्तज रििित्तज
म नरनि ्ाध म । एवमदाह्यजऽनि ॥
इिश्च ैवनमदात्याह —
ॐ भजचव्यिचजशाच्च ॐ ॥1-1-6-17 ॥
आिन्दमदारो िजिर इनि वियि।ज आिन्दमदाराद्भजचव्यिचजशाच्चािन्दमदारो िजिर इत्यर् याः। ‘् एको ब्रह्मम
आिन्दाः’ इत्यानचिा नवनरञ्चाचजाः म ा
िनरनमदािािन्दत्वमदाक्त्व ‘रिो वाच’ इत्यािन्दमदारस्य
िूमायिन्दत्वोक्तज नरनि भावाः। ्धम ारां िम आिन्दमदाराचजाः नवनरञ्चानचत्वं म िज।
रज्य
मदानम क्तहजिज्ञ
म ाित्वानचब्रह्मधमदाायमां ब्रह्माभजचाज्जीवािां कर्नञ्चदुिित्तजनरत्याशङ्कारां ‘भजचव्यिचजशाच्च’ इनि
्ूत्रमदा।् ित्र चशब्दो ि कज वलनमदािर आिन्दमदारानचिेनि नकतु म ब्रह्मनभन्नश्च िजत्यर्े ‘् रश्चारं िरुषज
म ।
्
‘रश्चा्ावानचत्यज’ इत्याचावनधष्ठािृत्वानचिा ब्रह्मभजचस्य व्यिचजशानचनि व्याख्यािमदा ॥
म ाः। शरीरत्वात्मत्वाद्यिमदाािनवरोधानचत्यि
िन्वस्त्वािन्दमदारानचब्रयह्म। िद्भजचो नवनरञ्चाचजि य रक्त म आह—
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
ॐ कामदााच्च िािमदाािािज
क्षा ॐ ॥1-1-6-18 ॥
चोऽवधारमज। अदृष्टजऽर्े म ािमदाािाि
शष्क म जक्षा ि काराय। कामदााि ् कामदाचानरत्वाचजवत्य
ज र् याः।
् िम श्च
प्रत्यक्षस्यािैिऽज प्र्राि श्र ज ‘िद्ग मम्ारत्वाि’् इत्यत्र निरस्यत्वाचिमदाािामदाज
म म ।्
वाशङ्क्य प्रत्यक्तमदा
् ॥1-1-7-20 ॥
ॐ अतु ्द्धमदाोिचजशाि ॐ
अत्र िरज अतु स्थत्वनलङ्गिारा अनध चैवगि ्वयिामदा्मदान्वराः नक्ररिज। िनत्त्वनि वियि।ज श्रिम नमदानि
शजषाः। ‘अतु ाःप्रनवष्टं किायरमदा’,् ‘अतु श्चन्द्रमदान्’ इनि िैनत्तरीरज अतु ाःश्रिम ं ब्रह्मवै ि ि म इन्द्रानचाः ।
िस्यब्रह्ममो धमदाायमां ्मदाद्रम स्थत्व ब्रह्माण्डवीरयत्वानचरूिामां ित्रातु ाः श्रिम ज ‘अतु ाः ्मदाद्रम ज’,
ॐ भजचव्यिचजशाच्चान्याः ॐ ॥1-1-7-21 ॥
म रज। िनचनि वियि।ज इन्द्रानचभ्य इनि रोग्रिरा लभ्यिज। ि कज वलं िच्छब्दार्ो
चाः ्मदाच्च
नवष्णरम तु ाःश्रिम ाः नकतु म इन्द्रानचभ्योऽन्यश्च। कमिाः ? ‘इन्द्रस्यात्मा’, ‘वारोरात्मािमदा’् इत्याच
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥1-1-8-22 ॥
ॐ आकाश्निङ्गाि ॐ
अत्र िरज आनधभ निक्वयिामदा्मदान्वर उच्यिज। प्राधान्याचन्योिलक्षकत्वजि आकाशस्योनक्ताः।
िनत्त्वनि वियि।ज ‘आकाश इनि होवाच’ इनि छान्दोग्रस्थाकाशो हनररजव। मदाहारोगनविद्रूनढभ्यां
म वृ्त्यना ब्रह्मिर आकाशशब्द इनि रावि ्। ि ि म रूढ्या भूिाकाशमदा।् ‘् एषाः िरोवरीरािद्घीर्ाः
मदाख्य म
ॐ अि एव प्रामाः ॐ ॥1-1-9-23 ॥
अत्र िरज आध्यानत्मकाशजषिामदा्मदान्वर उच्यिज। प्राधान्याचन्योिलक्षमत्वजि प्रामोनक्ताः।‘ििै त्वं
म प्रामो ब्रह्म ैव। ि ि म रूढ्या मदाख्य
प्राम’ इत्यक्ताः म प्रामाः। कमिाः? अि एव ‘श्रीश्च िज लक्ष्मीश्च ित्न्य ’ इनि
् ॥1-1-10-24 ॥
ॐ ज्योनिश्चरमानभधािाि ॐ
अत्र िरज ्ूक्तगिाशजषिामदा्मदान्वर उच्यिज। प्रकाशवानचत्वजि प्राधान्यािा िूवायक्षिज कहृचरा नह
म िरा वा अन्योिलक्षमत्वजि ज्योनिष उनक्ताः। ‘ज्योनिहृयचर आनहिमदा’् इनि ्ूक्तोक्तं ज्योनिाः
ित्वरक्त
ित्त म ब्रह्मवै । ि त्वनि्ूक्तगित्वानचिा अनिाः। ‘नव मदाज कमाय ििरिाः’ इत्यानचिा कमायचीिां
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
य निगचाि िर्ा
ॐ छन्दोऽनभधािान्नजनि चजन्न िर्ा चजिोऽिम ्
नह चशयिमदा ॐ
॥1-1-11-25 ॥
रिोऽि इत्यर् याः। अप्रन्द्धिचजि ब्रह्ममो निचेशो नकं प्ररो्िमदाि उक्तं— िर्जनि।
य गम
गािानचकिृत्व म नवनशष्टिरा चजिस्यि यमारोिा्िारजत्यर् याः। निगचाि ् ‘गारत्री वा इचं ्वयमदा’् इनि
ब्रह्मजनि िनरहारोऽनभमदािाः॥
् ॥1-1-11-26 ॥
ॐ भूिानचिाचव्यिचजशोिित्तजश्च ैवमदा ॐ
भूि ं नवश्वमदाानचरयस्यामदाृिस्यामदाृिाख्यस्वरूिस्य िद्भूिानच। भूिानच चा् िाचश्च। िस्य व्यिचजशाः। एवं
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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उक्तमदाानक्षप्य ्मदााधत्तज—
् ॥1-1-11-27॥
ॐ उिचजशभजचान्नजनि चजन्नोभरनस्मन्नप्यनवरोधाि ॐ
य त्वनचवाःिरत्वरूिोिचजशभजचाि ् िच ् िरं ब्रह्माख्यमदाजकं वनस्त्वत्यक्त
गारत्रीज्योनिषोद्यमस्थ म नमदानि
म ं ि रक्त
म
ॐ प्राम्र्ाऽिगमदााि ् ॥1-1-12-28 ॥
ॐ
अत्र िरज अन्यप्रािकबहनलङ्गरिम िामदा्मदान्वर उच्यिज। ऐिरजर ज बहकृ त्वाः ‘िा वा एिा’ इत्यारभ्य श्रिम ाः
प्रामो रर्ा ‘ििैत्वं प्राम’ इत्यरं ब्रह्म िर्ा अरं च ित्त म ब्रह्मवै । ि ि म इन्द्र्ीवमदाख्य
म प्रामााः। कमिाः?
उक्तमदाानक्षप्य ्मदााधत्तज—
् ॥1-1-12-29 ॥
ॐ ि वक्तमरात्मोिचजशानचनि चजचध्यात्म्म्भन्धभूमदाा ्रमनस्मि ॐ
वक्तमबृहिी्हस्रं
य वक्तमनवयश्वानमदात्रस्यजन्द्रम
ज ‘प्रामो वा अहमदास्मृष ज’ इनि आत्मि एव प्रामिरोिचजशान्न
प्रामो ब्रह्मजनि चजन्नजनि शजषाः। कमिाः? नह रस्माि ् अनस्मि ् प्रकरमज अद्यात्मं चजहषज म नवष्णचम हज भूिषज म
इन्द्रनवश्वानमदात्रानचष म ्म्बन्धभूमदाा्म्बन्धबाहल्यमदा,् ‘प्रामोऽहं प्रामस्त्वं प्रामाः ्वायनम भूिानि’
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
इत्यक्तबह्वध्यात्सम्बन्ध इनि रावि,् व्यिनचश्रिज रिोऽिाः प्रामो नवष्णनम रत्यर् याः। इन्द्रजम
प्रामाख्यब्रह्ममाः ्वयगित्वमदाजवोच्यिज ि िम प्रामत्वजिात्मोिनचश्रि इनि भावाः। रिा
ज रा ‘प्रामो वा अहमदा’्
अस्मनन्नन्द्रजऽनधकात्मिाः ्म्बन्धभूमदाा आवजशबाहल्यं नह रस्माचस्त्यिाः िचिक्ष
म
इत्यनक्तनरत्यर् याः। आत्मोिचजशानचत्यजव िूिौ वक्तमनरत्यनक्ताः
म शास्त्रवक्तारं प्रनि इन्द्रस्य ि नवप्रलम्भ इनि
िूविय क्षज रनम क्त्ूचिार्ाय। ्म्बन्धजत्यनक्तरै
म क्यनिवृ्त्यनर्ाय॥
् ॥1-1-12-30 ॥
ॐ शास्त्रदृष्ट्यािूिचजशो वामदाचजववि ॐ
िरम वज । शा्ीनि शास्त्रमदातु रायमदाी। ‘्ंनवच्छास्त्रं िरं िचमदा’् इत्याचजाः। िच ् दृष्ट्य ैव ‘प्रामो वा अहमदा’्
म शो ि ि म िचाम्येनजि। वामदाचजववि ् वामदाचजवोिचजशवि।् रर्ा वामदाचजवोऽतु रायनमदादृष्ट्या ‘अहं
इत्यिचज
म
मदािरभवमदा ’् इत्याद्याह ििनचत्यर् याः। अतु रायनमदादृष्ट्यजनि वाच्यज शास्त्रजत्यनक्ताः
म ्वय शा्ृत्वाि ्
ित्तच्छब्दवाच्यिजनि ज्ञाििार्ाय। ‘ित्तन्नाम्नोच्यिज नवष्णाःम ्वयशा्ृत्वहजििम ाः’ इत्याचजाः।
म
ॐ ्ीवमदाख्यप्रामनलङ्गान्नज ्
नि चजन्नोिा्ात्रैनवध्याचानश्रित्वानचह िद्योगाि ॐ
॥1-1-12-31 ॥
प्रामो ब्रह्मजनि वियि।ज िजत्यितु रं शास्त्रदृष्या िूिचजश इनि च । ‘िं शिं वषायण्रभ्याच यि’् इनि
शिारष्ट्वम ानचरूि्ीवनलङ्गाि ् प्राम्ंवाचानचमदाख्य
म प्रामनलङ्गान्न प्रामो ब्रह्मजनि चजन्न। ‘िं शिमदा’्
म ाः। ‘उचा्ीिवचा्ां ि ’ इत्य चा्ीन्यं ि म
इत्यानच्ीवप्रामनलङ्गोिचजशाः िचतु रायनमदादृष्ट्य ैव रक्त
बा्रमरूि जमजत्यनवरोधाः। नकमदार्ाय अतु रायम्यनम क्तनरत्यि उक्तमदा ्उिा्त्य
ज ानच। अतु व्याय्त्वबनहष्ठत्वभजच ि
ज
ब्रह्मोिा्ारााः त्रैनवध्यानचह प्रकरमज ‘् एिमदाजव ्ीमदाािं नवचारैिरा िारा प्रािद्यि’ इनि ‘् एिमदाजव
म
िरुषं ब्रह्मििमदामदािश्रि’् इनि ‘एिद्ध स्म वै िनििािाह मदानहचा् ऐिरजराः’ इनि च िि-्
त्रैनवध्यस्यानश्रित्वादुक्तत्वाि ् इत्यर् याः। एकरैवोिा्रा अलं नकं त्रैनवध्यिजत्यि उक्तमदा —िद्योगाि
् ।्
िस्योिा्ात्रैनवध्यस्यानचकानरभजचिज रोगाद्यमक्तत्वानचत्यर्ाःय । म ’
‘िूरमगम इनि म िज
गम
्मदाा्निषजधस्यानित्यत्वोक्तज रुिा्त्रैनवध्यानचनि ्ाध।म ्ंज्ञाप्रमदाामत्वानचत्यानचवि।् एवमदाह्यजऽनि।
म ’ ् इनि नवशजषमदािानश्रत्य ‘गरम ोश्च हलाः’ इत्यत्स
‘ण्रा्श्रन्थो रच म गयस्यवै ाश्ररमािा, ‘रोगाख्यारां ण्वल
म ्
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥1-2-1-32 ॥
ॐ ्वयत्र प्रन्द्धोिचजशाि ॐ
अत्र िरज ्वयत्रावनस्थित्वरूििादृशभावाख्यनलङ्ग्मदान्वराः नक्ररिज। िनत्त्वनि वियि।ज उच्यमदाािनमदानि
शजषाः। ्वयत्र ‘एिमदास्यामदाजि ं नचनव’ इत्यानचिा ‘्वेष म भूिषज ’म इत्यतु जि िृनर्व्यानचषूच्यमदाािं ित्त म ब्रह्मवै ।
ित्वानचत्यो ्ीवो वा। कमिाः? प्रन्द्धस्य ब्रह्मण्रजव श्रत्य
म ाच प्रन्द्धस्य ब्रह्मशब्दस्य ‘एिमदाजव
प्रन्नद्धबाध्ूचिार।
इिश्च ैवनमदात्याह —
म
ॐ नववनक्षिगमोिित्तज
श्च ॐ ॥1-2-1-33 ॥
्वयत्र िनत्त्वनि वियि।ज नववनक्षिािां वक्तं म रोग्रािां वक्ष्यमदाामािानमदानि वा, उि्ंहारस्थािानमदानि रावि,्
म ािां ‘् रोऽिोऽश्रिम ’ इत्याद्यमक्ताश्रिम त्वानचधमदाायमामदािम ित्तजश्च िृनर्व्याच
िात्परयनवषरामानमदानि वा, गम
म मय ािामदािम ्ंहारस्थत्वानचिा प्राबल्य ्ूचिार।
नरत्यर्ाःय । नववनक्षिजत्यनम क्तगम
ब्रह्मवै । ्ीवाचावििित्तज
म
अिव्याख्यािज ि म नववनक्षि एिच्छ्रमत्याचावनभमदािो दूरज शक्तस्यानि ित्तच्छनक्तप्रबोधिार्ं ित्र
म ्स्य लीलरोिित्तजदूरय स्थस्यानि शक्तस्य ित्र ित्रावस्थािं व्यर् यनमदानि ि
ित्रावस्थािरूिो रो गम
् िमदा॥्
चोद्यनमदानि वृत्यतु रमदा अनभप्रज
म ् म ि शारीराः ॐ ॥1-2-1-34॥
ॐ अििित्तज
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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इिश्च ि शारीर्र्जत्याह—
य िचजशाच्च ॐ ॥1-2-1-35 ॥
ॐ कमदायकिृव्य
भावप्रधािोऽरमदा।् ्वयत्रोच्यमदाािस्यजनि शानररस्यजनि च नविनरमम्यािविय
म ि।ज एिस्यानमदानि िृनर्व्याच
् ॥1-2-1-36 ॥
ॐ शब्दनवशजषाि ॐ
शब्दस्य ब्रह्मशब्दस्य। नवशजषाि ् ्ावधारमत्वरूिनवशजषाच ् ब्रह्मशब्दो ि शारीरिर इत्यर् याः। ‘एिमदाजव
् ्ीवज ि रक्त
म ब्रह्मत्वं स्याि िच्च
ब्रह्मजत्याचक्षिज’ इनि ्ावधारमब्रह्मशब्दत्वज मदाख्य म नमदानि भावाः॥
इिश्च्वयत्रोच्यमदाािं ब्रह्मजत्याह —
ज ॐ ॥1-2-1-37 ॥
ॐ स्मृिश्च
‘अहमदाात्मा गडम ाकज श ्वयभि
ू ाशरनस्थिाः’ इनि स्मृिश्च
ज ्वयत्र िचजवत्य
ज र् याः। स्मृिाःज स्ववचित्वजऽनि
म
िरोक्तार्ायिवाचरूित्वाि ्
िदुनक्ताः। एवमदाह्यजऽनि॥
उक्तमदाानक्षप्य ्मदााधत्तज -
॥1-2-1-38 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म मदा।्
रक्त शा्रम नि व्या्त्वजि शास्त्रदृष्ट्यानि िरिारोगानचनि चजन्न। नकं
म ा
ब्रह्ममोऽल्प कस्त्वाद्यमनक्तव्य यर्ायअरक्त वा। िाद्य इत्याह - निचाय्यत्वाचजवमदा।्
य कत्स्वचक्षमदाम रय त्वानचिोिास्यत्वान्न व्यर्ेत्यर्ाःय । अन्त्यज आह — व्योमदावि।् रर्ा व्या्स्यानि
अभक
व्योम्न एकै कचजशऽज वनस्थनिाः िर्ा ब्रह्ममोऽनि भूिाशराच मय ज त्यर् याः।
नस्थनिरक्त अत्र
व्योमदावैषम्यमदाल्पश्रिम ाःज इत्यत्र ्मदााधास्यिज। म ावनि
उिा्ात्रैनवध्यानचत्यक्त निचाय्यत्वानचनि
ििम रुनक्तरुिा्ारा ज्ञािस्वरूित्वप्रचशयिार। ‘चार मय चशयि ज’ इनि धािोाः। िजिोिा्ा मदााि्नक्रराऽर् य
म ज नि िच्छ्रमनिरमदाािनमदानि ि शङ्क्यमदा॥्
हीिानि रक्त
ििम रुक्तमदाानक्षप्याह —
् ॥1-2-1-39 ॥
ज ाि ॐ
ॐ ्म्भोगप्रान्नरनि चजन्न वैशष्य
्मदाािो भोगाः ्म्भोगाः। व्योमदावि ् ्वय्ीवशरीरस्थत्वज ित्समदाािभोगप्रान्ब्रयह्मम इनि चजन्न। कमिाः?
् ॥1-2-2-40 ॥
ॐ अत्ताचराचरह्यहमाि ॐ
म
अत्र िरज ्ंहाररूिनक्ररात्मकनलङ्ग्मदान्वर उच्यिज। ‘्वं वा अनत्त’ इत्यक्तात्ता ित्त म ब्रह्मवै । ि
त्वनचनिाः। ्वयनमदानि चराचरस्याद्यिरा ह्यहमानचत्यर् याः। िनचत्यिवृम त्तरज निनि वाच्यज िनं म िचेशाः ‘् िरा
वाचा िजिाऽत्मिा’ इत्याच ् इनि िनम िङ्गिच्छब्दजि प्रकृ िमदाृत्यरजम व निमेरश्रिम ावच्य
म ि इनि
म ि।
िचिरोधज म िग
श्रत्य म मदााि ् ्वेनि वाच्यज चराचरजनि िच ् व्याख्याििज ोनक्ताः
्ङ्कोचशङ्कानिरा्ार॥
इिश्च ैवनमदात्याह—
ॐ प्रकरमाच्च ॐ ॥1-2-2-41 ॥
ज र् याः ॥2॥
‘ि ैवजह नकञ्चि’ इत्यानच ब्रह्मप्रकरमाच्छात्ता ब्रह्मवै त्य
्
गहम ानधकरममदा॥1-2-3॥
् ॥1-2-3-42 ॥
म प्रनवष्टावात्माि नह िद्दशयिाि ॐ
ॐ गहां
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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अत्र िरज कमदायफलभोगरूिनक्ररानलङ्गं ्मदान्वीरिज। ऋिं निबतु ानवनि रोग्रिरान्वजनि। ‘ऋिं निबतु
म ृ िस्य
्क लोकज गहम ां प्रनवष्ट ’ इनि म क्त
श्रत्य म ऋिं निबतु ावात्मािावजव
इिश्च ैवनमदात्याह –
ॐ नवशजषमाच्च ॐ ॥1-2-3-43॥
‘राः ्जिरम ी्ािािामदाक्षरं ब्रह्म रत्परमदा’् इत्यजकवचिजि ्िज त्व
म ब्रह्मत्वानचिा च नवशजषमाच्च
इिश्च ैवानमदात्याह—
ॐ स्थािानचव्यिचजशाच्च ॐ ॥1-2-4-45 ॥
स्थािमदानक्ष। आनचिचाि ् िचनधष्ठािृ गृ्रमिज। स्थािानचशब्दाि ् स्थािानचशनक्तरुिलक्ष्यिज।
ज र्ाःय । ‘िद्यचनस्मि ््नि यवोचकं वा न्ञ्चनि’
स्थािरूिानक्षशक्तज रनधष्ठािृशक्तज श्चव्यिचजशाच्चातु रो ब्रह्मवै त्य
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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प्रकरमबलाच्च ैवनमदात्याह—
म
ॐ ्खनवनशष्टानभधािाचज
व च ॐ ॥1-2-4-46 ॥
म ं च ्ख
नवनशष्टं च ित्सख म नवनशष्टं ‘कडारााः कमदायधाररज’ इनि िरनििािाः। ्ख
म िज नवनशष्टनमदानि वा,
अ् म कं ब्रह्मजत्यक्ता
म ब्रह्मनवद्या। अनक्षनवद्या त्वनििराऽनस्त्वत्यि आह -
प्रजरकातु रजम भाव्यमदा।् िस्यानि िर्जत्यिवस्थािाि।् अङ्गीकृ त्य चजचमदानम चिमदा।् अिजरनि प्रजरम
े
्ीवत्व्ाम्यजि प्रजरमा्म्भवाच्चजत्यर् याः॥4॥
्
अतु रायम्यनधकरममदा॥1-2-5॥
् ॥1-2-5-49॥
ॐ अतु रायम्यनधचैवानचष म िद्धमदायव्यिचजशाि ॐ
म ं निरमदािाख्यं नक्ररात्मकं नलङ्गं ्मदान्वीरिज। अनध चैवानचिचजि
अत्र िरज अतु ाःनस्थनिरूिभावरक्त
ित्तत्प्रकरमं लक्ष्यिज। िनचनि िन्त्रमदा।् िनत्वत्यन्। ‘एष ि आत्माऽतु रायम्यमदाृि’ इनि श्रिम ोऽतु रायमदाी
ब्रह्मवै ि ि म प्रकृ नि्त्तचनभमदाािी ्ीवो वा। कमिाः? अनध चैवानध भूिानचप्रकरमजष म िस्यातु रायनमदामाः
्म्बनन्धिरा िस्य ब्रह्ममो धमदायस्य ‘रं िृनर्वी ि वजच राः िृनर्वीमदातु रो रमदारनि’ इत्यानचिा
िृनर्व्याद्यनवनचित्वातु रत्वाचजव्य यिचजशानचत्यर्ाःय । िनत्त्वत्यिवृम त्तावनि िनं म िचेशो निमेरश्रत्य
म ि्ाराि
म ।्
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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िद्धमदायव्यिचजशानचत्यजव िूिायवनधचैवत्य म
ज नक्ताः िृनर्व्याचजाः चजिित्व्ूचिार्ाय। िजि ्डावजद्यत्वं
म नमदानि ि शङ्क्यमदा।्
प्रकृ त्याचावनि रक्त
् नि्ीव नकं ि स्यािानमदात्यि आह-
िि म िृनर्व्यानचशरीरत्वानलङ्गाि प्रकृ
् ॥1-2-5-50॥
ॐ ि च स्माियमदािद्धमदाायनभलािाि ॐ
म ं प्रधािमदा।् अतु रायमदाी िचजव ि ि म स्मािं शारीरो
चस्त्वर्े। शारीरश्चजत्यिकृम ष्यिज। स्मािं ्ाङ्ख्यस्मृत्यक्त
म
ॐ अदृश्रत्वानचगमको धमदाोक्तज ाः ॐ ॥1-2-6-52 ॥
म ा रस्य ‘अक्षराि ्िरिाः िर इत्यक्तिरस्य
अत्र िरज अभावात्मकनलङ्गं ्मदान्वीरिज। अदृश्रत्वाचरो गम म
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म ां
भजचव्यिचजशाच्च ि नवनरञ्चरुद्रानवनि रर्ाक्रमदां हजि।ू चशब्दस्य ि कज वलं धमदाोक्तज ाः नकन्त्वाभ्यां हजिभ्य
चजत्यर्ाःय । िजिान्यत्रानि न्द्धातु हजिोाः िरिक्षनिरा्ऽज नि व्यािर इनि ्ूनचिमदा।् नचचनचिोाः
प्रकृ नित्वजि ैक्यं ्ीवत्वजि च ब्रह्मरुद्ररोनरनि इिरानवनि चत्वारो अनि गृ्रमतु इत्यप्याहाः॥
इिश्च ैवनमदात्याह—
ॐ रूिोिन्या्ाच्च ॐ ॥1-2-6-54 ॥
“रचा िश्राः िश्रिज रुग्मदावमयमदा”् इनि रुग्मदावमोिन्या्ाच्च अदृश्रत्वानचगम
म को ब्रह्मवै त्य
ज र् याः। अन्यजषां
म रूििरा िस्यैवात्र ह्यहमानचनि भावाः॥6॥
नमदाश्ररूित्वजि नवष्णोरजव शद्ध
्
वैश्वािरानधकरममदा॥1-2-7॥
् ॥1-2-7-55॥
ॐ वैश्वािराः ्ाधारमशब्दनवशजषाि ॐ
अत्र िरज िाचकत्वाद्यिजकनलङ्गरिम ं वैश्वािरिामदा ्मदान्वीरिज। िनत्त्वत्यन्। “आत्मािं
वैश्वािरमदािम ा्ज”, ‘अरमदानिवैश्वािराः’ इत्याच श्रिम वैश्वािरो ब्रह्मवै ि ि म अनिाः। कमिाः?
म ाधारमस्यानि वैश्वािरशब्दस्य नवशजषाचात्मिचजि नवशजषमानचत्यर् याः।
्ाधरारमशब्दस्य अिानवष्ण्
म ि इत्यिाः ्मदााख्यामदााह—
म ोऽनि रज्य
आत्मशब्दाः अिावमदाख्य
म
ॐ स्मरयमदााममदािमदाािं स्यानचनि ॐ ॥1-2-7-56॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म म
ऽिजि जत्यिमदाािमदा
वैश्वािरो ब्रह्मजत्यन्। िजि इनिशब्दान्वराः। अिमदाीरिज ।् “अहं वैश्वािर” इनि
म
गीिारां स्मरयमदाामं नवष्णोवैश्वािरत्वमदात्रानि ् एव वैश्वािर इत्यस्यािमदाािकं स्यानचत्यर् याः। “अहं
उक्तमदाानक्षप्याह—
म शाच्म्भवाि ि् रुषनवधमदानि
ॐ शब्दानचभ्योऽतु ाः प्रनिष्ठािान्नजनि चजन्न िर्ा दृष्ट्यिचज म
च ैिमदाधीरिज ॐ ॥ 1-2-7-57
आनचिचानिङ्गानि। अतु ाः प्रनिष्ठािजि ित्कमदाोिलक्ष्यिज। ‘अरमदानिाः’ इत्याद्यनिशब्दाि ् ‘वैश्वािरज िच ्
हिमदा’् इनि ‘हृचरं गाहयित्यमदा’् इत्यानचिा होमदााद्याधारत्वगाहयित्याद्यङ्गत्वनलङ्गजभ्यो ‘रोऽरमदातु ाः
म ’, ‘रजि जचमदान्नं िच्यिज’ इत्यतु ाः प्रनिष्ठािजि िचिव्यािाराि ् िाचकत्वजिातु ाः प्रनिष्ठािानचनि वा
िरुषज
वैश्वारिो ि ब्रह्मजनि चजि।् ि। कमिाः? िर्ा अग्न्यानचिामदानलङ्गकमदायवत्त्वजि दृष्ट्यिम चजशाि ्उिा्िोिचजशाि ्
िजषां ्ावकाशत्वानचनि भावाः। दृनष्टिाचाि ्िानवद्यमदाािध्यािनमदानि ्ूनचिमदा।् नकञ्च ‘को ि आत्मा नकं
म
ब्रह्म’ इत्यिक्रमदाोक्तात्मत्वाद्य्म्भवाि।् ब्रह्मप्रकरमाच्चजनि रावि।् अनि नकञ्चजत्यर्ाःय । एिं वैश्वािरं
म
िरुषनवधं म
िरुषो रनिध्निधमदाधीरिज छन्दोगा रिोऽिोऽिीनि रोज्यमदा।् ‘शीष्णो द्य ाः ्मदावियि’
इत्यानचिा म
िरुष्ू म
क्तोक्तिरुषनवधमदाज
विै ं ‘मदाूद्धवै ्िम ्
ज ा’ इत्यानचिा अधीरि इनि
म
ित्समदााख्यािाचिीत्यर्ाःय । चशब्दाः िरुष्ू
क्तस्य वैष्णवत्वप्रन्नद्धद्योिकाः। अतु ाः प्रनिष्ठािस्य
कमदायत्वाि ् िृर्गनम क्ताः। ित्पप्रचीि ज ि म प्रधािनलङ्गत्वाि ् िृर्गक्त म मदा।् िर्ा चजिोि यमजत्यत्र
म नमदात्यक्त
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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निनमदात्तातु रमदााह—
िदुिा् ित्प्रान्ाः कमिाः? िर्ा नह चशयरनि। ‘िं रर्ा रर्ोिा्िज िचजव भवनि’ इनि नह प्रन्द्धा श्रनम िाः
म ि।्
् ैनमदानिमदािं रर्ा िर्ा चशयरिीत्यर् याः भविीत्यस्य प्राप्नवतु ीत्यर्ाय
ब्रह्मोिा्ावग्न्यानचप्रान्ाः कर्नमदात्यि आह —
् ॥ 1-2-7-63 ॥
ॐ आमदािनतु च ैिमदानस्मि ॐ
म नस्मन्नग्न्याच । िस्य चजविा भूिञ्चजनि प्रकृ ित्वाि।् ‘रोऽि
चशब्दाः शङ्काव्यावियकाः। एिं नवष्णमदा
निष्ठि’ ् इत्यानचिा आमदािनतु श्रिम र इत्यर् याः। अग्न्यानचप्रान्िचजि ित्स्थब्रह्मप्रा्जनवयवनक्षित्वानचनि
म ि्ाराचज
भावाः। श्रत्य म िनमदानि िनं म िचेशाः। ् ैनमदान्याद्यमनक्त्जषां प्रन्द्ध्यर्ाय। शब्दािां लोकव्यवहारानवरोधं
् क्तानचनिरमदां चाहजनि ् ैनमदािजनििरुिाचािमदा॥्
वचि ्ू
इनि श्रीमदाद्राघवजन्द्ररनिकृ िारां िन्त्रचीनिकारां प्रर्मदााध्यारस्य नििीराः िाचाः॥1-2॥ श्रीकृ ष्णाि यममदा्॥
म
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
ॐ द्यभ्वाद्यारििं ् ॥ 1-3-1-64 ॥
स्वशब्दाि ॐ
अत्र िरज िादृषं ्वायधारत्वनलङ्गगं ्मदान्वीरिज। िनत्त्वत्यन्। ‘रनस्मि ् द्य ाः िृनर्वी चातु नरक्षमदा’्
इत्यानचिोक्तं द्यमभ्वाद्यारििं ित्त म ब्रह्मवै । ि ि म प्रधािं वाररुम द्र्ीवा वा। स्वशब्दाि ् स्वजनि शब्दाः
स्वशब्द्स्माि।् श्रिम स्वशब्दाभावाि ् ित्परायरात्मशब्दो ह्या्रमाः। ्भारा्जत्यत्र िानमिीरज
रा्शब्दवि।् िमदाजवक म
ै ं ्ािर्ात्मािनमदात्यात्मशब्दानचत्यर्ाःय । आत्मशब्दानचनि वाच्यज स्वजत्यनक्ताः
म ।् िच्छब्दानचत्यक्त
स्वस्य ब्रह्मम एव शब्द इत्यनि नवह्यहजमा्ाधाराण्रं ज्ञािनरिमदा म ावनि शब्दनवशजषो ि
ज्ञानििाः स्यानचनि।
म ाः नकं ि स्यानचत्यि आह —
्ारमदााित्वरूि्ीवनलङ्गाचात्मशब्दाः अमदाख्य
म
ॐ मदाक्तोि्ृ ् ॥ 1-3-1-65 ॥
प्यव्यिचजशाि ॐ
द्व्यजकरोनरत्याचानवव भावप्रधािोऽरमदा।् उि्ृप्यत्वं प्राप्यातु रशून्यत्वज ्नि प्राप्यत्वमदा।् िजिातु रा प्राप्यज
म ोि्ृप्यत्वव्यिचजशाि ् िात्मशब्दोऽमदाख्य
ि व्यनभचाराः। ‘अमदाृिस्यजष ्िज ाःम ’ इत्यमदाृिशनब्दिमदाक्त म इनि
म
ॐ िािमदाािमदािच्छब्दाि ् ॥ 1-3-1-66 ॥
ॐ
द्यमभ्वाद्यारििनमदात्यन्। म
अिमदाीरि म
इत्यिमदाािशब्दज
ि वा म
अिमदाािशब्दाच्छै
नषकज ऽनम कृ िज
म
अिमदाािशब्दज म
ि वा अिमदाािप्रधाििाशिम ि्ाङ्ख्यन्द्धरुद्रप्रधािज ह्या्रमज। रुद्राः प्रधािं च ि
ॐ प्रामभृच्च ॐ ॥ 1-3-1-67 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म ्मदाच्च
चशब्दान्नजनि स्वशब्दानचहजिवश्चािकृम ष्यतु ज। वारश्च म ीरिज। आत्मशब्दमदाक्त
म ोि्ृप्यत्वािच्छब्दजभ्यो
म इनि भावाः। ्ीव
्ीववारू ि द्यमभ्वाद्यारििनमदात्यर् याः। ्ारमदाािानचशब्दोऽनभव्यक्त्यानचिा नवष्ण रक्त
म
इनि वाच्यज प्रामभृनचत्यनक्ताः म
्ह प्रामैनरत्यक्तप्रामभृ म नमदानि िूविय क्षरनम क्त्ूचिार।
त्त्व ं िस्य रक्त
रोगनवभाग उत्तरार् याः। व्याकरमज रञ्जजश्चत्य ्
ज ानचवि।अत्र श्रिम ्ीवमदाात्रनलङ्ग्त्त्वजि िचैक्यस्यैवाह्यज
निरा्ाि।् अि एवास्य स्वशब्दजिोनक्ताः।
ििूभरप्रािकाबाधजि ्ीवब्रह्माभजचोऽनस्त्वत्यि आह —
् ॥ 1-3-1-68 ॥
ॐ भजचव्यिचजशाि ॐ
‘्ष्टंम रचा िश्रत्यन्यमदाीशमदा’् इिीहैव ्ीवब्रह्मभजचव्यिचजशान्नक्य
ै नमदात्यर् याः।
् ॥ 1-3-1-69 ॥
ॐ प्रकरमाि ॐ
‘िज नवद्यज वजनचिव्यज’ इनि िरनवद्यानवषरव्िम आरभ्याधीित्वजि ब्रह्मप्रकरमाचीशशब्दार्ो ब्रह्मजत्यर् याः॥
ॐ नस्थत्यचिाभ्यां च ॐ ॥ 1-3-1-70 ॥
ि ैक्यनमदात्यन्। नस्थनिाः कमदायफलोि्ीविं नविाऽवस्थािमदा।् अचिं िदुि्ीविमदा।् िाभ्यां च
्ीवब्रह्ममोि ैक्यनमदात्यर्ाःय । ‘अन्याः निप्पलं स्वाि्त्यनिश्नन्नन्यो अनभचाकशीनि’ इनि
म ज नरनि भावाः। श्रिम ावचिस्यानचत्वजि अचिनस्थनिभ्यानमदानि वाच्यज
्ीवजशरोरचििद्रनहिनस्थत्यक्त
म
नस्थिजरीश्म्बनन्धत्वजिाभ्यनहिित्वाचल्पाक्षरत्वाच्च व्यत्या्ाः। अत्र िािमदाािमदािच्छब्दानचत्यिवृम ्त्यना
म
अिमदाािं भजचनमदार्थ्ात्वज ि मदाािमदा।् िनिरुद्धमदािि ् भजच्त्यत्वमदा।् अिच्छब्दाि ्
भजच्त्यत्वबोधकशब्दाि।् म
अिमदाािमदाू
लभूिशब्दाभावाच्चजनि म ा
वृ्त्यनतु रमदाक्त्व भजचनमदार्थ्ात्वं
निर्िीरनमदानि वचनतु ॥1॥
्
भूमदाानधकरममदा॥1-3-2॥
् ॥ 1-3-2-71 ॥
म शाि ॐ
ॐ भूमदाा ्म्प्र्ाचाचध्यिचज
म मदा’ ् इत्यक्तो
अत्र िादृशभूमदािामदा ्मदान्वीरिज। ‘रो वै भूमदाा ित्सख म भूमदाा ित्त म ब्रह्म ैव। ि ि म प्रामाः।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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इिश्च ैवनमदात्याह —
ॐ धमदाोिित्तजश्च ॐ ॥ 1-3-2-72 ॥
‘् एवाध्ाि ् ् उिनरष्ठाि’् इत्यक्त्वय
म गित्वानचधमदाायमामदािम ित्तजश्च भूमदाा ब्रह्मवै त्य
ज र् याः। श्रिम
्त्यस्यानचत्वजऽनि ्त्याचजाः प्रमाढ्या भूमदाारत्तत्वोक्तज ाः ्वयस्य ब्रह्मिा्रज भूम्न उनक्तनरत्यजकज।
्
्म्प्र्ाचानचहजिरम िम त्वाच्च। ् ैव हीत्यिो गित्वं चान्यिोऽव्रज मदा॥2॥
्
अक्षरानधकरममदा॥1-3-3॥
इिश्च ैवनमदात्याह —
् ॥ 1-3-3-74 ॥
ॐ ्ा च प्रशा्िाि ॐ
उच्यि इनि शजषाः। ्ा धृनिश्च प्रशा्िाचक्षरस्याज्ञामदाात्रादुच्यिज ‘एिस्य वा अक्षरस्य प्रशा्िज गागी
्ूरायचन्द्रमदा् नवधृि निष्ठिाः’ इत्याच । अिश्चाक्षरं ज र् याः।
ब्रह्मवै त्य ि नह
म
प्रजत्यक्ता्ङ्क म ि इनि भावाः।
ुनचिनवषरत्वािन्यारत्तत्वरूिप्रकृ ष्टशा्िमदाात्रजम ्वयधनृ िरन्यस्य रज्य
इिश्च ैवनमदात्याह —
ज ॐ ॥ 1-3-3-75 ॥
ॐ अन्यभावव्यावृत्तश्च
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ ईक्षनिकमदायव्यिचजशात्साः ॐ॥ 1-3-3-76 ॥
अत्र ‘्चजव ्ोम्य’ इत्यानच्ृनष्टस्थािस्थ्न्नामदा ्मदान्वीरिज। रोग्रिरा ्नचत्यन्वजनि। ् इत्यिजि
िनिनि िरम न्वजनि। ‘्चजव’ इत्याच श्रिम ं ्ि ् ् एव नवष्णरम वज । ि प्रधािमदा।् ईक्षनिरूिं च ित्कमदाय च
िस्य व्यिचजशाि ् ‘िचैक्षि’ इिीक्षमाख्यव्यािारोक्तज ् यडज िचरोगानचत्यर् याः। ईक्षिीत्यजव वाच्यज
म
कमदाेत्यनक्ताः य श्रनम िनरनि ि शङ्क्यमदा।् नवशजषाि ्नक्रराकिृभय ाव
स्वरूिान्यजक्षमाभावात्कर्ं िचैक्षिजनि किृत्व
इनि ्ूचनरिमदाम ।् ित्त्वप्रचीिचनन्द्रकरो् म कमदाेनि ‘ि किृत्व
य ं ि कमदाायनम’ इत्यत्रजव ्ृनष्टरुच्यिज।
ईक्षनिश्च कमदाय च िरोरीक्षम्ृनष्टनक्रररोरुक्तज नरत्यर्ाःय । िनत्त्वत्यिवृम त्तावनि ् इत्यनक्ताः
म ‘एको िारारम
आ्ीि’,् ‘् मदानम िभूत्व
य ा ्मदानचतु रि’् इत्यानच्मदााख्यां ्ूचनरिनम मदात्यक्तमदा
म ्
॥4॥
्
चहरानधकरममदा॥1-3-5॥
इिश्च ैवनमदात्याह—
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ब्रह्मलोकशब्दस्य हृत्पद्मज ‘एिं ब्रह्मलोकमदा’् इनि प्ररोगाि ् ित्स्थस्य ििोकवत्त्वनमदानि भावाः। अस्य
इिश्च ैवनमदात्याह —
ॐ धृिश्च म
ज मदानहम्नोऽस्यानस्मन्निलब्धज
ाः ॐ ॥ 1-3-5-79 ॥
ज ायरमाच्च ‘र आत्मा ् ्िज नम वयधनृ िाः’ इनि ्वयधारकत्वनलङ्गश्रवमाच्च चहरज ब्रह्मवै । एिनिङ्गं
धृिध
हृत्पद्मस्थगनमदानि। कमिाः? अस्य हृत्पद्मस्थस्य मदानहम्नोऽिहििाप्मत्वाचजरनस्मि ् वाक्यज
म हृत्पद्मस्थात्मिरामदाशेि ‘् ्िज ाःम ’ इत्याद्यमक्त्वा ्वे
उिलब्धजनरत्यजकोऽर् याः। ‘र आत्मा’ इनि प्रागक्त
िाप्मािोऽिो निवियतु इत्याद्यमक्तजनरनि भावाः। अन्य् म धृनििचजि धृनिरक्त
म ं वाक्यं गृ्रमिज। अनस्मनन्ननि
आकाश्नस्मि ् शजि ज ्वयस्य वशी’ इत्याद्यमक्त्वा ‘एष ्वेश्वर एष भूििालाः’ इनि नवष्णनम लङ्गोक्त्या
िस्य वैष्णवत्वं न्द्धनमदानि ित्समदााख्यािाद्दहरज नवष्णनम रनि भावाः।
इिश्च ैवनमदात्याह —
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ प्रन्द्धजश्च ॐ ॥ 1-3-5-80 ॥
‘चहरं नविाप्ममदा’् इत्यानचिैनत्तरीरज नवष्णोहृयत्पद्मस्थत्वप्रन्द्धजश्च ित्समदााख्यािाद्दहरज ब्रह्मवै त्य
ज र् याः।
उक्तमदाानक्षप्याह —
् इनि चजन्ना्म्भवाि ॐ
ॐ इिरिरामदाशायि ्ाः ् ॥ 1-3-5-81 ॥
अ्म्भवानचत्यर् याः।
उक्ता्म्भवमदाानक्षप्याह —
उक्तमदाानक्षप्याह —
्
ॐ अल्पश्रिम नज रनि चजि िदुक्तमदा ् ॥ 1-3-5-84 ॥
ॐ
‘चहरं िण्म डरीकमदा’् इत्यानचिा अल्पस्य स्थािस्य श्रवमाद्दहरज ्ाः ि ब्रह्मजनि चजि ् िजनि शजषाः। िि ्
म मदा।्
म ं निचाय्यत्वानचत्यानचिा ्मदाानहिनमदात्यर् याः। व्योम्नोऽम्शिोऽल्प कस्त्वं रक्त
अल्पस्थािस्थत्वमदाक्त
य ानचनि नवशजषशङ्कानिरा्ार् यनमदाचं स्मरममदा।् िनन्नरा्श्च िदुक्तं ित्सवयगित्वजि ैव
नवष्णोरंशस्यानि िूमत्व
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म ं िनमदात्यानचिा िरामदाृश्रि इनि िूविय क्षमदाूलत्वािा, क्रीरातु रमदानि िचधीिनमदानि ज्ञािनरि ं म वजनि।
इत्यक्त
अि एव ‘नकमदा म भानि’ म
इत्यक्तदुज्ञे
रस्य ‘ि ित्र ्ूरो भानि’ इनि प्रत्यनभज्ञािाि ्
्नन्ननहििरामदानशयप्रानििनचकप्राबल्याच्च िचजव िरामदाृश्रि इनि वक्तं म िस्यािकृम िजनरत्याह।
अन्यर्ाऽिकृम िजनरत्यजवावक्ष्यि॥्
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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निरवकाशत्वमदा॥्
ॐ हृद्यिजक्षरा ि म मदािष्यानधकारत्वाि
म ् ॥ 1-3-7-88 ॥
ॐ
‘अङ्गष्टम मदाात्र’ इनि रोग्रिराऽन्वजनि। िनत्त्वत्यन्। िरम वज । अप्यर्े च। हृचीनि ित्स्थावकाश उच्यिज।
म
हृत्स्थावकाशाि जक्षरैव ब्रह्माख्यिरुषोऽङ्ग ष्ठम मदाात्र उच्यिज ि ि म स्वि इत्यर् याः। हृचराकाशरूिस्थािगिं
िद्गिज नवष्णाविम चरर् य इनि भावाः। िम जात्रिनरमदाामिरा व्यक्तहृत्स्थरूिाि जक्षरजत्यनि मदाख्य
म ोऽर् ाःय
इनि नवद्यारा म
मदािष्यानधकारत्वाि ् ‘अङ्गष्ठम मदाात्राः म
िरुषाः’ इनि म नमदात्यर् याः।
रक्त
िश्वानचगिस्याङ्गष्ठम मदाात्रत्वािक्तजम नरनि भावाः॥7॥
्
चजविानधकरममदा॥1-3-8॥
् ॥ 1-3-8-89 ॥
ॐ िदुिरयनि बाचरारमाः ्म्भवाि ॐ
अत्र चजवािामदानधकारोऽ्ीनि प्र्ङ्गादुच्यिज। अनधकार इनि नवभागनविनरमामदााभ्यामदान्। िदुिनर
म
िस्य प्रकृ िस्य मदािष्यत्वस्योिनर नवद्याकमदायभ्यां चजवत्वप्राप्त्यितु रमदानि। चजवािामदािीनि रावि।्
अनधकारोऽन्। कमिाः? ्म्भवाि।् नवनशष्टबद्ध्याचज
म ाः ्म्भवानचनि बाचरारम आहजत्यर् याः। बाचराम
म ज नि
म वत्वस्य ्ानचत्वानचिा मदाोक्षानर्िय ा रक्त
इनि नवमदानि्ूचिार। चजवािानमदानि वाच्यज िदुिरीत्यनक्तचे
्ूचनरिमदाम ।् अिीत्यिजि ि कज वलं िजषां मदािष्यत्वचशारानमदात्याह।
म म त्य
िरम ामगम ज त्र ्िािव्यजि च
्ाहचरायि कृ् चतु ाव्यरजि ैव ्मदाा्निषजधात्तदुिरीनि ्ाध॥
म
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्ातु त्वमदाानक्षप्याह —
्
ॐ शब्द इनि चजन्नािाः प्रभवाि प्रत्यक्षाि म
मदाािाभ्यामदा ्
ॐ॥ 1-3-8-91॥
नवरोध इत्यन्। अिाः शब्दाः प्रकृ िशब्दिराः। प्रभवशब्द्नन्नरमदाावगमदािराः।
म
िदुिरीत्यनक्तलब्ध्ातु त्वज चजविचस्योिप्लवज ्नि शब्दज नित्यज वजचरूिशब्दज अप्रामदााण्राख्यनवरोधाः
स्याि।् िश्चानचन्द्रानचचजविाभावजि वाच्यहीिस्य प्रामदााण्रारोगानचनि चजन्न। अिाः शब्दाि।् ‘धािा रर्ा
य कल्परि’् ‘रर् ैव निरमदााः कालज’ इत्यानचशब्दाि ्चजवािां प्रभवनिरमदाावगमदााि ्प्रवाहरूि जम चजवािां
िूवमदा
नित्यत्वान्न चोष इनि भावाः। शब्दज उिचनरिाऽप्यनम क्ताः स्याचि उक्तं प्रत्यक्षजनि। मदाहिां
प्रभवनिरमदाप्रत्यक्षाचन्यजषामदािम नरििकालो चजववाि ् कालत्वानचत्यिमदाािात्तनन्नरमदाावगमदाानचत्यर्
म ाःय ।
अर्ायि्त्यना चजवप्रवाहनित्यत्वमदााह —
् ॥ 1-3-8-92 ॥
ॐ अि एव च नित्यत्वमदा ॐ
अि एव शब्दनित्यत्वाचजव। म
िचन्यर्ाििि्त्यन ैवजत्यर्ाःय । नित्यत्वं चजवप्रवाहस्यजत्यर् याः। नकं
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् िश्च
ॐ ्मदााििामदारूित्वाच्चावृत्तावप्यनवरोधो चशयिाि स्मृ ज ॐ ॥ 1-3-8-93 ॥
िदुिरीत्यिो चजवािानमदात्यन्वजनि। प्राचीिचजवािां म त्वजि
मदाक्त स्वस्विचजष्ववृत्तावनि िचन्यजषां
ित्समदााििामदारूित्वाि।् ित्त्वप्रचीिरीत्या ्मदाािधमदायकत्वाच्चजनि चशब्दार् याः।
ित्प्रनििाचकै कनवधवजचस्याप्रामदााण्राख्यानवरोधो िान्। िचजव कमि इनि चजि ् चशयिाि।् ‘रर्ा िूवमदा
य ’्
चजवािामदानधकारमदाानक्षिनि —
रोगिरोक्तमदािनधकारचोद्यं ्मदााधत्तज —
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ शग ्
म स्य िचिाचरश्रवमाि िचाऽऽद्रवमाि ् च्यिज नह ॐ
्ू ॥1-3-9-97॥
म । वजचनवद्यानस्वनि प्रकृ िमदा।् शूद्रस्यजत्यर्ायचन्वजनि। अिनधकार
अत्र शूद्रामामदानधकारो िजत्यच्यिज
इत्यन्। आद्य्च्छब्दाः म क्त
श्रत्य म हं्िराः। अन्त्याः म राः।
शक्प िरा म ा
शच
म त्रारमो मदानम ििा ‘अह हारजत्वा शूद्र’ इत्यानच श्रिम , ि रूढ्या। अिाः
आद्रवमानन्ननमदात्ताच्छूद्रजत्यक्ति
शूद्रस्यािनधकार इत्यर् याः। शगम वज ास्य नकं निनमदात्तजत्यि उक्तमदा ्— शगम स्य िचिाचरजनि। ‘कम्वर एिमदा’्
इत्यानचिा हं्कृ िािाचरश्रवमाचस्य ि त्रारमस्य शनम गत्यर्ाःय । कर्ं ज्ञारिज शगम स्य ्ािजत्यि उक्तमदा।्
्ूच्यिज हीनि। नह रस्माि ्‘्ाः ्नञ्जहाि एव क्षत्तारमदावम ाच’ इनि व्यह्यत्वोक्त्या ्ूच्यिज। अिाः शगम स्य
म ा द्रविीनि निरुक्तत्वाद्गकारस्य चत्वज चीघे च शूद्र इनि भवनि। शग्म द्रजनि वाच्यज
ज्ञारि इत्यर्ाःय । शच
श्रिम शूद्रजत्यनम क्ताः शोकानधक्यज्ञाििार। अि एव ्ूत्र ज िद्द्रवमानचनि वाच्यज
म ारव्याख्यािामदााङाकृ िमदा॥्
िचाद्रवमानचत्यक
्
ॐ क्षनत्ररत्वावगिजश्चोत्तरत्र च ैत्ररर्जि नलङ्गाि ॐ॥ 1-3-9-98 ॥
अस्यजत्यन्। आद्रवमानचनि शूद्रस्यािनधकार इनि च। नचत्रश्चा् रर्श्च नचत्रस्थ्स्यजचं च ैत्ररर्मदा।्
भावप्रधािञ्चजचं, िजि। उत्तरत्रास्याद्रवमादुत्तरवाक्यज ि त्रारमस्याद्रवमोक्त्यितु रं ‘अरमदाश्विरीरर्ाः’
म
इत्यत्तरवाक्यज श्रिम िज इत्यर् याः। च ैत्ररर्जि च ैत्ररर्त्वजि नचत्ररर््म्बनन्धत्वजि नलङ्गाि ् नलङ्गजिास्य
ि त्रारमस्य क्षनत्ररत्वावगिजश्च शूद्रशब्दो ि रूढ इनि शूद्रस्यािनधकार इत्यर् याः।
म रर्नश्चत्रिचार्ाःय ।
अश्विरीरक्त म नश्चत्राः’
‘रर्स्त्वश्विरीरक्त इत्याचजाः। रर्जि ज वज
नलङ्गज ित्य वाच्यज
नचत्रिचमदािूवरय र्रोगाि ् क्षनत्ररत्व्म्भाविार् यमदा।् नचत्रजमत्य म
ज क्तावनि िादृशरर्जि जनि न्द्धज रर्ोनक्ताः
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
स्पष्टार्ाय। नचत्रजनि वाच्यज च ैत्रजत्यनक्ताः’ म ख्य
‘हारजत्वा िव’ इत्यक्तमदा म स्वाभानवक्म्बन्धं द्योिनरिमदाम ।् िजि
्
ॐ ्ंस्कारिरामदाशायि िचभावानभलािाच्च ॐ ॥ 1-3-9-99 ॥
म स्कारिराशायि ् शूद्रस्य च
अन्यार् यवचिं िरामदाशयाः। अध्यरिाङ्गत्वजि ‘िमदाध्यािरीि’ इत्यििरिाख्य्ं
‘िानिि य रज्ञो ि ्ंस्काराः’ इनि श्रिम ्ंस्काराभावानबलािाच्च शूद्रस्य वजचनवद्यािनधकार इत्यर् याः। रिा
ू ज रर्स्य वजचव्या्त्वािजचिारा नलङ्गत्वमदानभमदािमदा।् िद्द्वर ं शूद्रजऽप्यनस्त्वत्यिोऽरं रोगाः।
य त्र
िूव्
वजचाङ्ग्ंस्कारभावािजचाभावजि रनर्त्वं ि चजनि रोज्यमदा।् शूद्रं िोििरीिजनि निषजधाभावाच् म िस्यानि
्ंस्कार इत्यिो वा।
म
्ंस्काराभावजऽनि नवनशष्टबद्ध्यानचमदात्त्वाच ् नि्वचनधकाराः स्यानचत्यि आह —
् िश्च
ॐ श्रवमाध्यरिार्यप्रनिषजधाि स्मृ ज ॐ ॥ 1-3-9-101 ॥
म िज। वजचश्रवमाध्यरिार्ायवधारमािां
अर् यिचजिार्ायवधारममदाच्य म ामदा’् इत्यानचिा
म भ्य
‘श्रवमज त्रि्ि
्
प्रनिषजधाि ‘िानिि ज शूद्रस्यािनधकार इत्यर् याः। श्रिम शूद्रिचािक्तजम ाः िृर्क ्
य रज्ञाः शूद्रस्य’ इत्यानचस्मृिश्च
म
स्मृत्यनक्ताः॥9॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
कम्पिानधकरममदा॥1-3-10॥
् ॥ 1-3-10-102 ॥
ॐ कम्पिाि ॐ
अत्र वज्रिामदा ्मदान्वीरिज। रोग्रिरा वज्र इत्यन्वजनि। िनत्त्वत्यन्। म िमदा’्
‘मदाहद्भरं वज्रमदाद्य
म
इत्यक्तवज्रो ब्रह्मवै । ि नत्वन्द्रारधम मदा।् कम्पिाि ‘्गत्सवं
् प्राम ए्नि निाः्ृिमदा’् इनि कम्पिवचिाि ्
्गच्चजष्टकत्वनलङ्गानचत्यर् याः॥10॥
्
ज्योनिरनधकरममदा॥1-3-11॥
् ॥ 1-3-11-103 ॥
ॐ ज्योनिचयशिय ाि ॐ
अत्र ज्योनििायमदा ्मदान्वीरिज। ‘रोऽरं नवज्ञािमदाराः प्रामजष म हृद्यतु ज्योनिाः’ इत्यक्त
म ं ज्योनिब्रयह्मवै । ि ि म
्
्ीवाः। कमिाः? चशयिाि ‘नवष्ण रम वज ज्योनिनवयष्णरम वज ब्रह्म’ इनि श्रिम नज रत्यर् याः। प्राक ् ्मदानन्वित्वजऽप्यभम रत्र
प्रन्द्धत्वजि िृर्गनम क्ताः। एवमदाह्यजऽनि॥11॥
्
आकाशानधकरममदा॥1-3-12॥
् ॥ 1-3-12-104 ॥
ॐ आकाशोऽर्ायतु रत्वानचव्यिचजशाि ॐ
म
अत्राकाशिामदा ्मदान्वीरिज। ‘आकाशो वै िामदा िामदारूिरोनि यवयनहिा’ इत्यक्ताकाश्त्त म ब्रह्मवै । ि
त्वव्याकृ िाकाशाः। कमिाः? अर्ायतु रत्वानचव्यिचजशाि।् अन्योऽर्ोऽर्ायतु रमदा।् नवलक्षमोऽर् याः। िस्य
भावाः। िामदारूिरानहत्यरूिनवलक्षमार् यत्वव्यिचजशाि ् आनचिचाद्ब्रह्मत्वामदाृित्वव्यिचजशानचत्यर्ाःय ।
अर्ायतु रत्वमदाात्रोक्तावनि ‘िामदारूिरोनि यवयनहिा िज रचतु रा िद्ब्रह्म िचमदाृिमदा’् इनि नवषरवाक्यज
्षम प्त्यनधकरममदा
म ्
॥1-3-13॥
ॐ ्षम प्त्य
म त्क्रान्त्योभे
म चिज ॐ ॥ 1-3-13-105 ॥
अत्र स्वप्नानचद्रष्टमत्त्वनलङ्गं ्मदान्वीरिज। व्यिचजशानचत्यन्। स्वप्नानचद्रष्टजनि रोग्रिराऽन्वजनि। ‘् रत्तत्र
म
नकनञ्चत्पश्रत्यिन्वागि्जि भवनि’ इत्यक्तस्वप्नानचद्रष्टा ित्त म ब्रह्मवै । ि ्ीवाः। कमिाः?
म
‘अिन्वागि्जि भवत्य्ङ्गो ्रमरं िरुषाः’ इत्य्ङ्गत्वनलङ्गाि।् ि चाभजचिज नलङ्गोििनत्ताः।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ ित्यानचशब्दजभ्याः ॐ ॥ 1-3-14-106 ॥
म
अत्र ब्राह्ममिामदा ्मदान्वीरिज। ब्राह्मम इनि रोग्रिराऽन्वजनि। ‘एष नित्यो मदानहमदाा ब्राह्ममस्य’ इत्यक्तो
िृिीरिाच्ार्ङ्ग्रहाः
अत्राद्यिरज अ्स्यानवभायवाख्य्निाः, भूमदािरज ्वयगिस्यानि िनरस्पन्दनक्ररा, अक्षरिरज
म मदा,् ईक्षनििरज स्वरूि ैरजव बहभविमदा,् चहरिरज ईशांशस्यानि व्या्िा, अिकृम नििरज
मदाहिोऽप्यमत्व
्ूरायनचकृ िजरीशारत्तत्वमदा,् शब्दानचनि िरज प्रामप्रजरकत्वं श्रत्य
म ाचजाः िूविय वू प्रय ाबल्यं च, चजविािरज
1-4-1-107 ॥
अत्रैश्वरयनवरोध्यवरत्वदुाःनखत्वाद्यर् यकशब्दााः ्मदान्वीरतु ज। अत्राव्यक्त्ीवबद्धानचशब्दो
म
रोग्रिराऽन्वजनि। अनिरजवार्े। आिमदाानिकनमदानि ्ीवाचजरुिलक्षममदा।् िनत्त्वत्यन्। ‘अव्यक्ताि ्
म
िरुषाः िराः’, ‘्ीवा एव ि म दुाःनखिाः’ इत्यक्ताव्यक्तानचशब्दै
म म
रािमदाानिकमदाप्यि म
मदाािगम्यमदा ,् शैनषकष्ठक,्
प्रधािानचरजव कज षानञ्चच्छाखा्ूच्यि इनि चजन्न। अव्यक्तानच ित्त म िरमदामदाख्य
म वृ्त्यना ब्रह्मवै । ि प्रधािानच।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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कमिाः? चशयरनि श्रनम िाः। चशब्दजि स्मृनिाः। ‘अव्यक्तमदाचलं शातु मदा’ ् इनि श्रनम िाः। ‘अव्यक्तोऽक्षर
उच्यिज’ इनि स्मृनिश्च। िर्ा ‘अिजि ्ीवजिात्मिा’ इनि श्रनम िाः। ‘्ीवो नविनरिा ्ाक्षी’ इनि
स्मृनिश्चाव्यक्तानच ब्रह्मजनि रिो चशयरनि िस्मानचत्यर् याः। नवष्णोरजवाव्यक्तानचशब्दवाच्यत्वज कर्मदान्यत्र
व्यवहार इत्यि उक्तमदा।् शरीरजनि। शरीरस्य रूिनमदाव रूिं रस्य िच्छरीररूिं, कमनत्सिं शरीररूिं
शरीररूिकं प्रधािानच ित्र नवन्य्स्य नस्थिस्य नवष्णोरव्यक्तानचिचजि गृहीिजनरत्यर् याः।
म
नवन्य्जत्यक्त्या अव्यक्तानचशब्दवाच्यब्रह्म्म्बन्धाि ् प्रधािाचावव्यक्तानचशब्दव्यवहार इनि चनशयिमदा।्
म शरीरं
वैिरीत्यं नकं िजत्यिाः शरीरजनि। ्ीवशरीरं रर्ा ित्तन्त्रं िर्ा प्रधािाद्यनि ब्रह्मिन्त्रनमदानि। मदाख्य
कमिो िजत्यिाः कज नि। ि नह कमनत्सिं मदाख्य
म शरीरं भविीनि भावाः। नस्थिजनि वाच्यज नवन्य्जत्यनक्ताः
म
िि म नवष्णोरव्यक्तानचशब्दमदाख्य
म ार्त्व
य ऽज िीह िरत्वावनधत्वार्क
य िञ्चम्यानक्ष्ावरत्वदुाःनखत्वाचजश्चारोगजि
् ॥ 1-4-1-109 ॥
ॐ िचधीित्वाचर्यवि ॐ
अवरत्वाक्षजिकानवनधत्वानचवानचिञ्चम्यानचशब्द्ािनमदात्यन्वजनि। अर् यवि ् िरब्रह्मण्रर् यवि ् ि व्यर् यमदा।्
कमिाः? िचधीित्वाि।् अवरत्वदुाःनखत्वानचिनन्ननमदात्तधमदाायमां िस्य नवन्य्िचजि प्रकृ िस्य
ब्रह्ममोऽधीित्वानचत्यर् याः। ब्रह्मण्रवरत्वाचजरभावजऽनि अन्यगिावरत्वाचजाः िचधीित्वात्तत्र ििानचशब्दो
रानज्ञ ्नरशब्दवच्ीनि भावाः।
म िोऽव्यक्तानचशब्दवाच्यं ब्रह्मजत्याह—
इिश्च मदाख्य
ॐ ज्ञजरत्वावचिाच्च ॐ ॥ 1-4-1-110 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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उक्तमदाानक्षप्याह —
मदाहत्परत्वनलङ्गजि प्रधािस्यानि मदामदाम क्ष म रज त्वं वचनि श्रनम िनरनि चजन्न। प्राज्ञो नह। रस्माि ्प्राज्ञो नवष्णरम त्र
म ज्ञ
म नमदानि भावाः॥
उच्यि इत्यर् याः। ्वयिाः िरज मदाहत्परत्वं रक्त
् ॥ 1-4-1-112 ॥
ॐ प्रकरमाि ॐ
‘्ोऽर्ध्िाः िारमदााप्नोनि िनिष्णोाः िरमदां िचमदा’् इनि प्रकरमोक्तार्ोिा्कस्य नवष्णिम चप्राप्त्यक्त्य
म ा
्
निमीिात्प्रकरमाि प्राज्ञ्त्रोच्यि इत्यन्वराः॥
म
ॐ त्ररामामदाजव च ैवमदािन्या्ाः प्रश्नश्च ॐ ॥ 1-4-1-7-113 ॥
आद्यचशब्दो रनम क्त्मदाच्च
म रज। ि कज वलं प्रकरमानचनि। अन्त्याः प्रश्नोिन्या््मदाच्च
म रज। प्राज्ञ इत्यन्।
म
बनद्धस्थत्वाि ् एिदुिनिषचीत्यन्वजनि। एवं ‘वीिमदान्यस्त्व
म ां चदृनशवाम जृत्यमदाम ख म मदा’् इनि
म ात्प्रमदाक्त
‘स्वग्रयमदानिं िनचकज िाः प्र्ािि’ ् इनि, ‘चजवरै त्रानि नवनचनकनत्सिं नकल’ इत्यजवं प्रकारजम त्ररामां
नििृ् मदािस्य-स्वग्रायनि-ब्रह्ममामदाजवोिन्या्ो रिोऽिश्च प्राज्ञ एव ित्र उच्यि इत्यर् याः। त्ररामामदाजवनज ि
कमि इत्यि उक्तमदा ् — प्रश्नश्चजनि। ‘्मदाम िा रर्ा स्यािीिमदान्याःम ’ इनि, ‘् त्वमदानिं स्वग्रयमदाध्यजनष मदाृत्यो
ब्रब्रूनह िमदा’् इनि, ‘रजर ं प्रजि ज नवनचनकत्सा मदािष्यज
म ’ इनि च ैिि ् नत्रिरनवषर एव प्रश्नश्च रिोऽि
म र इत्यजकज। प्रश्नस्यानचत्वजऽनि
उिन्या्नस्त्रिरनवषर इत्यर्ाःय । आद्यश्चो हजि । अन्त्याः ्मदाच्च
प्रनिवचिस्थनिचाय्यवाक्यस्य प्रधाििरत्वशङ्किाि ् िनन्नरन्िमदाम िम न्या्स्याचावनम क्ताः। त्ररामामदाजव
म
चजत्यवज िूिायववज नमदात्यनक्ताः त्ररमदाध्यज प्रधािस्य ि निवजश इनि चशयनरि ं म प्रकारत्ररोक्त्यर्ाय।
उिन्या्स्योक्तत्ररनवषरत्वन्द्ध्यै प्रश्नोनक्ताः।
िि म प्रवृनत्तनिनमदात्त्त्त्वजऽनि प्ररोगप्राचराय
म भावाम जख्य
म िो िाव्यक्तानचशब्दं ब्रह्मजत्यि आह —
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ मदाहिच्च ॐ ॥ 1-4-1-8-114 ॥
म ीरिज। मदाहिि ् मदाहच्छब्दं ब्रह्म रर्ा िर्जत्यर्ाःय । मदाहच्छब्दो
चशब्दाचव्यक्तानचशब्दं ब्रह्मजवनज ि ्मदाच्च
म वत्त्वजि ब्रह्मनम िद्धीिोऽनि ‘मदाहातु ं नवभमदाम ात्मािमदा’् इत्याच
मदाहत्तत्त्वज प्ररोगप्राचरय रर्ा
म ाः िर्ाऽव्यक्तानचशब्दोऽन्यत्र प्रन्द्ध्या ब्रह्मनम िचभावजऽनि
मदाहत्त्वरूिित्प्रवृनत्तनिनमदात्त्त्त्वाम जख्य
म इनि बावाः।
निनमदात्तानिशराम जख्य
् ॥ 1-4-1-9-115 ॥
ॐ चमदा्वचनवशजषाि ॐ
म ्र्ाऽव्यक्तानचरनि
ज न्। चमदा्शब्दो रज्ञिात्रज प्रन्द्धोऽनि रर्ा नशरन् मदाख्य
अव्यक्तानच ब्रह्मवै त्य
म इत्यर् याः। िि म ‘इचं िनच्छर एष ्रमवायनग्बलश्चमदा् ऊर्ध्यबध्नम ’ इत्यिशा्ि्त्त्वात्तस्य
ब्रह्मवै ित्र मदाख्य म
िर्ात्वजऽप्यत्य कमि इत्यि उक्तमदा ् — अनवशजषाि।् ‘िामदाानि ्वायनम’ इनि श्रिम ाःज ‘इचं िनच्छराः’ इनि
म ा
श्रत्य अनवशषाि ् ित्साम्याि।् अस्या म
अप्यिशा्िरूित्वानचनि रावि।् ्मदान्वरस्य
म िूत्य यर् यत्वजऽप्यत्र चोषवानचिां िदुनक्ताः ‘प्राम ऋच इत्यजव नवद्याि’् इत्याच ्वयशब्दवाच्यत्वस्यानि
गम
मदामदाम क्ष म रज त्वोक्तज नरनि बोध्यमदा।् स्पष्टमदाजिचह्यज कल्पिजत्यत्र॥1॥
म ज्ञ
्
ज्योनिरुिक्रमदाानधकरममदा॥1-4-2॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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कल्पिरा म ाचिजि
व्यत्प लोकक्लृ्मदाहारोगवृत्तव्य मय ाचिजि
ज त्प ्वयशब्दवाच्यत्वजि ‘िा वा’
् ॥ 1-4-13-119 ॥
ॐ प्रामाचरो वाक्यशजषाि ॐ
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥ 1-4-5-122 ॥
ॐ ्मदााकषायि ॐ
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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अत्र िरज ज्योनिि यर इव ्वयशब्दा न्यारभजचिज ्मदान्वीरतु ज। िनत्त्वनि प्रकृ िं ब्रह्म िि इत्यन्वजनि। ि
नवरोध इत्यन्। वक्ष्यमदाामं ्गत्पचमदााकृ ष्यिज। ्वयशब्दािानमदानि शजषाः। िूवोक्तहजिनम भाः
् ॥ 1-4-5-123 ॥
ॐ ्गिानचत्वाि ॐ
शब्दािानमदात्यन्। ्गिानचत्वानचत्यावियि।ज नििीरं ज्ञाििरमदा।् शब्दािां ्गिानचत्वािोकािां
्गनि व्यवहाराद्धजिो् यगिानचत्वाि ् ्गिानचत्वज्ञािात्तत्र प्रन्नद्धनरनि शजषाः। लोकािां ्गत्यजव
म नत्तबलात्तत्र प्रन्नद्धब्रयह्मनम मदाख्य
शब्दव्यवहारजम ित्रैव व्यत्प म त्वाज्ञािमदाूलजनि भावाः।
उक्तमदाानक्षप्याह—
म
ॐ ्ीवमदाख्यप्रामनलङ्गानचनि ्
चजि िद्व्याख्यािमदा ्
ॐ॥1-4-5-124 ॥
म ि।ज शब्द्ािं ्वयस्य िचधीित्वात्तत्रार् यवनचनि ि
िचधीित्वाचर् यवनचनि िजनि च मदाण्डूकप्ल मत्याऽिविय
म मदा।् ‘अस्य रचजकां शाखां ्ीवो ्हात्यर् ्ा शष्य
रक्त म नि’ इनि ्ीवज क्वनचि,् ‘वारिम ैव नह लोका
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ब्रह्मज्ञािार् यमदाजव। कमिाः? ‘कनस्मन्न म भगवो नवज्ञािज ्वयनमदाचं नवज्ञािं भवनि’ इनि श िकप्रश्नाि।् ‘िस्मै
म ानमदात्यर् याः। िर्ा ‘कर्ं ि म भगवस्स
् होवाच िज नवद्यज वजनचिव्यज’ इत्यनङ्गर्ो व्याख्यािात्ताभ्यां हजिभ्य
आचजशाः’ इनि, ‘रर्ा ् म्य ैकज ि’ इनि श्वजिकज िूद्दालकप्रश्नव्याख्यािाभ्यानमदात्यर्ाःय । कनस्मि ् ज्ञािज
्वयज्ञािं ्फलं भविीनि प्रश्नज िरनवद्यानवषरब्रह्मज्ञािजि भविीनि व्याख्याििात्परायनचनि भावाः। अनि
ज नत्सद्ध्यनि। नकतु म स्पष्टं च ैवमदाजकज शानकिो ‘र्न्न वजच नकमदाृचा कनरष्यनि’ इनि
च ि कज वलमदार्ायचि
िठतु ीत्यर् याः।
म मदा।् प्रनििचं ब्रह्मिरत्वोक्त्याऽनि ब्रह्मज्ञािन्द्धजरि आह
वैनचकशब्दािां ्गिानचत्वमदान्यार्नय मदानि ि रक्त
—
् ॥ 1-4-5-126 ॥
ॐ वाक्यान्वराि ॐ
निनमदात्तिञ्चमदाीरमदा।् वैनचकशब्दिामदान्यार्ं ्गिानचत्वनमदात्यन्। कमिाः?
वाक्यान्वरानन्ननमदात्तानचत्यर्ाःय । कमदायचवज िानचवानचिरा नस्थिवाक्यािामदातु िो
ब्रह्मिरत्वनमदात्यजवरू म नमदात्यानचचोषाः
ं िवाक्यान्वराभावज मदान्दािां प्रनििाचान्वररोग्रिरा ित्र वैमदाख्य
स्यानचनि भावाः॥
म मदा।् ित्कर्नमदात्यि आह —
अन्यार्ं ्ग्वानचत्वनमदात्यक्त
ॐ प्रनिज्ञान्द्धजनलयङ्गमदााश्मदारर्थ्ाः ॐ ॥ 1-4-5-127 ॥
्गिानचत्वमदान्यार् यनमदात्यन्। प्रनिज्ञान्द्धजाः ‘िान्याः िन्था अरिार’ इनि ज्ञािमदाजव मदानम क्तहजिनम रनि
प्रनिज्ञािार् यनिश्चरस्य नलङ्गं शब्दािां ्गिानचत्वं नलङ्गं ्िकं ्ि ्अन्यार्ं भविीत्याश्मदारर्थ्ो मदान्यि
इत्यर् याः। ्नव्रं कमदाायनचस्वरूिज प्रनििानचिज ्नि कमदाायमां क्षद्रम फलकत्वज्ञािाि ्िज्ज्ञािजिाक्षद्रम फलकं
ज्ञािमदाजवोिाचजरनमदानि वैराग्र्िििारा ब्रह्मज्ञािार्ं भविीनि भावाः॥
्
्गिानचत्वमदान्यार् यनमदात्यजिि प्रकारातु रज
माप्याह —
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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अन्यार्ं ्गिानचत्वनमदात्यजिचन्यर्ाप्याह —
म
ॐ प्रकृ निश्च प्रनिज्ञादृष्टातु ाििरोधाि ् ॥ 1-4-6-130 ॥
ॐ
अत्र स्त्रीनलङ्गााः शब्दााः ्मदान्वीरतु ज। श्रीवानचिरा प्राधान्याि ् प्रकृ नििचस्यान्योिलक्षमत्वाि।्
म िो ब्रह्मवै । ि ि म श्रीित्वानच। कमिाः?
िनत्त्वत्यन्। ‘् ैषा प्रकृ निाः’ इत्याद्यमक्तप्रकृ त्यानच मदाख्य
म ्वायनम िामदाान्यनभवचनतु ’ इनि प्रनिज्ञा, ‘रर्ा िद्याः स्यन्दमदाािााः ्मदाद्रम ारमााः
‘हतु ैिमदाजव िरुषं
्मदाद्रम मदानभनवशनतु एवमदाजविै ानि िामदाानि’ इनि दृष्टातु ाः। िरोरििरोधात्तचि
म म
्ारानचत्यर् ाःय । अन्यर्ा
म ारकाः च इनि ित्त्वप्रचीि ज। ि कज वलं िमदााि
िदुिरोधाः स्यानचनि भावाः। ्वयस्त्रीशब्द्मदाच्च म ्
इिश्च ैवनमदात्याह —
ॐ अनभध्योिचजशाच्च ॐ ॥ 1-4-6-131 ॥
म मदाािमदाावियि।ज
प्रकृ निनरत्यिविय नििीरं भावप्रधािमदा।् रोग्रिराऽनभध्यजत्यिजिान्वजनि।
अनभध्यजत्यप्यावियि।ज नििीरं भावप्रधािमदा।् प्रकृ निब्रयह्मवै । कमिाः? प्रकृ नित्वजि
प्रकृ निशब्दवाच्यत्वजिानभध्यारााः इच्छारा उिचजशाि।् ‘प्रकृ निवाय्िजत्यजवं िवजच्छाऽितु ’ इनि स्मृि
िर्ा ब्रह्ममोऽनभध्यात्वोिचजशानचच्छारूित्वोिचजशाि।् ‘्ोऽनभध्या ् ्ूनिाः’ इनि श्रिम ानवत्यर्ाःय ।
प्रकृ निशब्दवाच्यजच्छात्मकत्वाच्च प्रकृ निशब्दं ब्रह्मजनि भावाः॥
आद्योक्तं ्ामदाान्यरूिं नििीरोक्तं िारम्परयरूिं च मदाािं नविा नवनशष्यमदाािाभावाि ्कर्ं प्रकृ त्यानचशब्दं
ब्रह्मजत्यि आह —
् ॥ 1-4-6-132 ॥
ॐ ्ाक्षाच्चोभराम्नािाि ॐ
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
च एव। प्रकृ त्यानचब्रयह्मवै । ्ाक्षाचजव ्ामदाान्यिारम्परे नविोभरस्य प्रकृ त्यानचशब्दत्वस्य िरुषत्वस्य
चाम्नािाि।् ‘एष स्त्री एष िरुषाः’
म इनि श्रिम ानवत्यर्ाःय ॥
् ॥ 1-4-6-133 ॥
ॐ आत्मकृ िजाः िनरमामदााि ॐ
रोग्रिरा प्रकृ िजनरत्यन्वजनि। िनरमामदाानचनि ल्यब्लोि ज िञ्चमदाी। प्रकृ िजाः िनरमामदां नवधार
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म ााः॥
अन्त्यााः स्वािन्त्र्यिोऽन्यज ि म िद्गित्वाच्च नवष्णग
नििीराध्याराः॥2॥
्
ॐ स्मृत्यिवकाशचोषप्र्ङ्ग इनि चजन्नान्यस्मृत्यिवकाशचोषप्र्ङ्गाि ॐ
॥ 2-1-1-136 ॥
अत्र स्मािाय्ाविजचप्रामदााण्रवानचि्चवानचि इनि िजधा। आद्यजऽनि िचि रुषजरत्ववानचि्चवानचि
इनि िजधा। ृ नवरोधोऽत्रोच्यिज।
ित्सवयस्मत्य स्मृिीिां शैव्ाङ्ख्यकामाचानचस्मृिीिां
अन्यिरत्वाभावरूिािवकाशजि म िृत्व
नवष्णक य ानचबोधकश्रिम रज प्रामदााण्रचोषप्र्ङ्ग इनि म ि
िचिरोधज
श्रनम ििेरनज ि चजन्न। अन्या्ां िञ्चरात्रस्मृिीिां म िृत्व
नवष्णक य ाचर्ायतु रिरत्वाभावरूिािवकाशजि
िनिरुधत्वानचिरस्मृिीिामदाजवाप्रामदााण्रचोषप्र्ङ्गाि।् एवञ्च शैवानचस्मृनिष म श्र िस्मृनिनभाः
म िृत्व
प्रनिरुद्धास्वप्रनिबद्धश्रनम िनभरजव नवष्णक य ानचन्नद्धनरनि भावाः। रिा अन्या्ां श्र िस्मृिीिां
म
ॐ इिरजषां चाििलब्धज
ाः ॐ ॥ 2-1-1-137 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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प्रत्यक्षारोग्रज य ाच
नवश्वकिृत्व स्मृनिनवरोधाः शनङ्किाः िनचिरजषां प्रत्यक्ष रोग्रािां
म नरत्यर् याः।
फलािामदाििलब्धज प्रत्यक्षफलनव्ंवाचाचा्ोक्तत्वमदाजव िजत्यवैनचकस्मृिीिामदाप्रामदााण्रनमदानि
्
भावाः। चशब्दाः नकनञ्चि फलोिलब्ध्यङ्गीकारार् ाःय ॥
म
िन्ववैनचकस्मृिीिां मदाध्यज रोगस्मृत्यक्तफलज नव्ंवाचाभावान्नाप्रामदााण्रनमदात्यनधकाशङ्कारामदााह —
म ॐ ॥ 2-1-1-138 ॥
ॐ एिजि रोगाः प्रत्यक्ताः
म फलाििलम्भज
एिजि प्रागक्त म म ं निर्नमदात्यर्ाःय । प्रर्मदां स्वजचिं नििीरं
ि रोगशास्त्रमदानि प्रत्यक्त
य ाल एव स्वजचिाचीिामदादृष्टजनरत्यर्ाःय ॥1॥
गात्रभञ्जिनमदात्याद्यमक्ताभ्या्ावस्थोत्कषक
्
ि नवलक्षमत्वानधकरममदा॥2-1-2॥
् ॥ 2-1-2-139 ॥
ॐ ि नवलक्षमत्वाचस्य िर्ात्वं च शब्दाि ॐ
म नवरोध उच्यिज। अस्य श्रनम िस्मृनिरूिस्य शास्त्रस्य िर्ात्वं शैवानचस्मृनिवचप्रामदााण्रं िान्।
अत्र रक्त्य
श्रिम रज िरुषज
म रत्वजि श्र िस्मृि् म ि नवलक्षमत्वाि,् स्विाः प्रामदााण्ररूिवैलक्षण्राच्च। िर्ात्वं
ज चि्ानरत्वज
म
चाि रुषजरत्वं िचि्ानरत्वरूिं वैलक्षण्रं ्ंवाचािि जक्षत्वरूिं स्विाः प्रमदााण्ररूिं च रर्ाक्रमदां ‘वाचा
नवरूि नित्यरा’ इनि, ‘भारिं िञ्चरात्रं च वजचा’ इनि, ‘ि चक्षिम य श्रोत्रं ि िको ि स्मृनिवेचा ्रमजव िै ं
वजचरनतु ’ इनि शब्दाि ्न्द्धनमदात्यर् याः। िर्ात्वनमदात्यस्योभरत्रान्वराः। एवं च शैवानचस्मृनिवैलक्षण्रान्न
म ा श्रत्य
फलनव्ंवाचरूिरक्त्य म ाचज्िचप्रामदााण्रनमदानि भावाः॥
िि म श्रत्य
म ाचजाः स्विाः प्रामदााण्रजऽनि नव्ंवाचरूिािवाचजिाप्रामदााण्रं स्यानचत्यि आह —
ॐ दृश्रिज ि म ॐ ॥ 2-1-2-140 ॥
म ब्दोऽनधकानरनवशजषद्योिकाः। इिरजषानमदात्यत्र प्र्क्तं फलं अनधकानरमां दृश्रिज। क्वनचनि्ंवाचाः
िश
ै ण्म रनिनमदात्तक इनि भावाः॥2॥
किृवय ग
्
अनभमदाान्यनधकरममदा॥2-1-3॥
ॐ अनभमदाानिव्यिचजश् म नवशजषािगनिभ्यामदा
म ् ॥ 2-1-3-141 ॥
ॐ
म नवरोध उच्यिज। िरम वज । रोग्रिराऽनभमदाानििचजिान्वजनि। ‘मदाृचब्रवीि’,् ‘िा आि ऐक्षतु ’
अत्र दृढरक्त्य
इत्यानचश्रिम ावनभमदाानििश्चजििस्यैव व्यिचजशाः ि िम ्डस्य। रजि मदाृन्न वक्री
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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िजि कर्ं रनम क्तनवरोधमदाात्रजम श्रिम ाःज प्रिीिार् यप्रच्याविनमदानि निर्मदा।् चजििह्यहमज मदाख्य
म ार् यलाभजि
म र्ायबाधिानचनि
श्रत्य हजिोाः। म त्व्ूचकत्वं
मदाख्य य त्वानचनि
चान्यनिरा्ार्क ध्यजरमदा।्
ॐ दृश्रिज च ॐ ॥ 2-1-3-142 ॥
म
रोनगनभरुिलभ्यिज च। अनभमदाािीनि बनद्धनवभागज म ि।ज एिच्च ‘दृश्रतु ज मदानम िनभश्च िााः’
िािविय
्
इत्यानचिाऽव्रज नमदानि भावाः। ्ूत्ररोरजकवचिं ्मदाचम ारानभप्रारमदा॥3॥
्
अ्चनधकरममदा॥2-1-4॥
् ॥ 2-1-4-143 ॥
ॐ अ्नचनि चजन्न प्रनिषजधमदाात्रत्वाि ॐ
अत्र म ि््
श्रत्य म यिकप्रागभावकिृत्व म नवरोध
य ्ाधकरक्त्य उच्यिज। श्रिम ब्रज ह्म
य िरत्वोक्तावप्यन्यत्रानि
ज त्त्वाि।् अत्रा्च्छब्दाः प्रागभाविराः अभावप्रनिरोनगिरश्च। अ्जभायव ज कियनर च शिृप्रत्यरज
वृत्तस्स
्
श्न्ोरिोि ज िञ-्मदाा् ज अ्चभविनमदानि िा्ीत्य्नचनि च रूि्म्भवाि।् रद्यनि शिृ कियरवे ।
य ाधित्वं ि म रनम क्त्ूचिार् यमदा।् अि एवाभाव इनि वाच्यज
िर्ानि छान्द्ो भाव्ाधिाः। किृ्
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
अ्नचत्यनक्ताः, म िगमदा्ू
श्रत्य म चिार्ाय च। अिीिावीिीहाप्यन्वजनि। अिीि अ्ि ्
लरवृनत्तनवयश्वप्रागभावाः ्गत्कारमनमदात्यन्। अिन्यर्ान्द्धिवयम क्षमवृनत्तत्वाि।् ्ामदाान्यव्याप्त्या
घटप्रागभाववि।् ‘अ्चजवचज मदाह्य आ्ीि’् इनि श्रिम श्च
ज त्य ज ा वृनत्ताः। अन्या ि म भाव्ािं अिीि लरज
ज क
् ॥2-1-4-144 ॥
ॐ अिीि िित्प्र्ङ्गाच्मदाञ्ज्मदा ॐ
िच्छब्दाः प्राक ् प्रवृत्ता्त्पराः ्ावधारमाः। वनचनि मदािप्रत्
म त्यरो ि ि म वनिाः। भावप्रधािोऽरमदा।् अिीि
िजचमदानिष्टनमदात्यि आह —
् ॥ 2-1-4-145 ॥
ॐ ि ि म दृष्टातु भावाि ॐ
िरम वज । अत्र दृष्टातु िचजि म
ित्रावधानरिव्यान्मदाूलकमदािमदाािमदा म िज।
च्य िम जात्रस्या्ाधकत्वाि।्
म िज। िचा िचार् य्त्त्व्ाधिज
व्यान््त्त्व्ूचिारैवमदानम क्ताः। प्रलरज ्वाय्त्त्वनमदाष्टनमदानि ि रज्य
म
दृष्टातु भावाचिमदााि्त्त्वानचत्यर् याः। नवमदािोत्पनत्तभायवाधीिा उत्पनत्तत्वाच ् घटोत्पनत्तवि।् नवमदािो
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ स्विक्षचोषाच्च ॐ ॥ 2-1-4-146 ॥
स्विक्षज ्वाय्त्त्विक्षज दृष्टातु ाभावरूिचोषाच्चजत्यर्ाःय । प्रत्यक्षागमदा ि ्ाः । अचशयिाि।् भावत्वं ि म
दुष्टमदा।् श्रिम ी चान्यिरज इनि भावाः॥
॥ 2-1-4-147 ॥
अन्यर्ा य त्र
िूव् ू िरोक्ताच ् अभावाकारमत्वभावकारमत्वरूिाि ्
म ंम
प्रमदाजरािैिरीत्यजिाभावकारमत्वभावाकारमत्वरूिजमाऽप्यिमदााि शक्यमदा।् िकय स्याप्रनिष्ठािाच ्
अप्रनिनष्ठित्वाच ् अव्यवनस्थित्वजिाप्रामदााण्राि।् ि नह प्रनििकय ाः एिावािजवैिादृशं िकय प्रनि नवरोनधिरा
म
प्रवियि ज ि ैिादृशनमदानि निरामदाकमदान्। अिस्सवायिमदाािजष म प्रनििकय स्यावारमीरत्वजि िजषामदाप्रामदााण्राि,्
म ि िच ्-िर्ाधिं िूव्
अिोऽिमदाािज य त्र म नमदानि चजन्न। एवमदाप्यजवं ्नि िकय स्याप्रामदााण्रज ्नि,
ू िरज ि रक्त
रिा एवमदानि ‘रावचजव प्रमदाामजि’ इत्यानचस्मृि प्रमदााममदाूलिकय स्य प्रनिष्ठा अन्यस्य ि म िजत्यक्त
म ावनि
नवप्रनििन्नं चावायकं प्रनि िके मैव ्ाधिीरत्वाि।् नवप्रनििन्नज चार्े स्वस्यानि कज वलागमदाजि
अिध्यव्ारजि स्वमदािज मदाोक्षाबावप्र्ङ्गाि।् अिो रावत्प्रनमदािं िावम जात्र्ाधकिकय ाः प्रनिनष्ठिोऽन्य् म
िजनि भावाः। ्धम ारां ि म िकय मदाात्राप्रामदााण्रज स्वव्याघािचोषाचनिमदाोक्षप्र्ङ्गाः इत्यर् य उक्ताः।
म रनमदात्यनक्ताः
िकायप्रनिष्ठािाचन्यर्ा िक्ययनमदानि वाच्यज अिमदाज म ि िकोऽिमदाािाच
म ् नभद्यि इनि ्ूचनरिमदाम ॥्
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
ॐ भोक्त्राित्तजरनवभागश्चजि स्यािोकवि ् ॥ 2-1-6-149 ॥
ॐ
म नवरोध उच्यिज। भोक्तम्ीवस्य मदाोक्षज ब्रह्मत्वाित्तजाः ‘िरजऽव्यरज ्वय
अत्र बहश्रनम िन्द्धिरा प्रबलरक्त्य
्वयकिृिय नज ि चजि ् िजनि शजषाः। ब्रह्ममो ्ीवाभजच एव िान्। श्र िस्त्वजकीभावप्ररोगाः स्यािोकवि।्
रर्ा लोकज उचकज उचकस्यैकीभावव्यवहारो, रर्ा व प्रानग्वनभन्ना ब्राह्णमाः ्ाम्प्रिमदाजकीभूिा इनि
म
व्यिचजश्र्ा प्रानिन्नस्थािा नभन्नमदािरो ्ीवााः मदाक्त ब्रह्ममैकस्थािा एकमदािर इनि
स्थाि ैक्यानचनिनमदात्तक इत्यर् याः। कमिं एवं लनक्षिलक्षमाश्ररमं श्रिम नज रत्यिोऽनि स्यािोकवि।्
लोकज ऽप्यन्यि् म वस्त्वतु रजमाभजचमदाािन्नं ि दृष्टमदा।् अिाः प्रानिन्निरा प्रिीिस्य ्ीवस्य
म मदा।् ि च प्रािजचप्रिीनिभ्रयमदााः। बाधकाभावानचनि
म ावभजचारोगाच ् बाधकाचजवमदााश्ररमं रक्त
मदाक्त
भावाः॥5॥
्
आरम्भमानधकरममदा॥॥2-1-6॥
ॐ िचिन्यत्वमदाारम्भमशब्दानचभ्याः ॐ ॥ 2-1-6-150 ॥
अत्र बहरनम क्तनवरोधो निरस्यिज। अवरस्यजत्यह्यज अनभधािाि ् स्विन्त्र्ाधिस्यजनि शजषाः।
स्विन्त्र्ाधिस्य िचिन्यत्वं ब्रह्मािन्यत्वं, ि ििोऽन्यत्वमदा।् स्वरूि्ामदार्थ्ायचवज िस्य ्वयकिृत्व
य नमदानि
रावि।् ि त्वन्यि ् स्विन्त्र्ाधिमदािजक्ष्यनज ि भावाः। कमिाः? आरभ्यिज रजि िचारम्भममदािम िाचािमदा।्
आरम्भमिचजिानधष्ठािानच्ाधि्ािं लक्षनरत्वा िचाक्षजिो लक्षमीराः। िर्ा च ‘नकं
नस्वचा्ीचनधष्ठािमदाारम्भमं किमदानत्स्वत्कर्ा्ीि’् इनि स्विन्त्रानधष्ठािाद्याक्षजिकशब्दाि ् अिर
िन्त्रत्वाि ् स्विन्त्रत्वाि ् ्ाधि्त्ताप्रचत्वानचनि आनचिचोक्तव्यनिरजनक हजिभ्य
म श्चजत्यर्ाःय । अत्र
म ब्रह्ममोऽनि स्वािन्त्र्यं िजनि स्याि।् िचिन्यत्वं स्विन्त्र्ाधिस्यजत्यक्तज
स्विन्त्र्ाधिाभाव इत्यक्तज म िचजव
म मदा।् श्रिम वनधष्ठािस्यानचत्वजऽनि आरम्भमशब्दस्य
स्विन्त्र ्ाधिं िान्यनचनि लभ्यि इत्यजवमदाक्त
्ाधकिमदारूिकारमवानचिरा अर् यप्राधान्यात्तस्योनक्ताः। श्रिम ावनधष्ठािानचमदाात्राक्षजिश्रवमजऽनि
म तु रबलाि ् स्वािन्त्र्यजमानधष्ठािाद्याक्षजििरत्वं लभ्यिज।
्ाधि्त्त्वावजचक ‘अद्भ्याः ्म्भूिाः’ इत्यानचश्रत्य
अह्यज िनरहारािक्तज य इनि ध्यजरमदा।् नवद्यारण्रजिाप्याक्षजिार्त्व
म ाः नकं शब्दो ि प्रश्नार्क य स्यैवोक्तज ाः।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ ्त्वाच्चावरस्य ॐ ॥ 2-1-6-152 ॥
चोऽवधारमज। ्ाधिस्यजत्यन्। अवरस्य िचधीिस्य ्ाधिस्य ्त्त्वाचजव ‘अद्भ्य’ इत्यानचवचिं, ि
स्विन्त्रस्य ्त्त्वानचत्यर् याः॥ ्ाधिातु र्त्त्वमदािम त्य म ं , िन्नजत्यानक्षप्याह—
ज िस्यजशाधीित्वमदाक्त
्
ॐ अ्द्व्यिचजशान्नजनि चजन्न धमदाायतु रजम वाक्यशजषाि ॐ
॥ 2-1-6-153॥
भावनिचेशोऽरमदा।् ्ाधिस्यजत्यन्। ‘िा्चा्ीन्नो ्चा्ीत्तचािीं िा्ीद्र्ो िो व्योमदा’ इनि श्रिम
्ाधिस्याऽ्त्त्वव्यिचजशान्नोक्तं म नमदानि
रक्त चजन्न।
स्विन्त्रत्वाव्यक्तत्वानवकृ ित्वानचधमदाायतु रजमवै ा्त्त्वव्यिचजशो ि स्वरूि जमजत्यर् याः। कमिो मदाख्य
म ार् यत्यागाः।
भगवानन्वष्णरम किं म किमदामय न्यर्ा। स्वनभन्नं कारमानभन्नं नभन्नं नवश्वं करोत्य्ाः’ इनि
शब्दातु रानचत्यर् याः। रिा ्ाधिातु रमदाजव ्ृष्ट मदाानस्त्वत्यि उक्तं शब्दजनि। ‘अद्भ्याः ्म्भूिो
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ िटवच्च ॐ ॥ 2-1-6-155 ॥
नवमदािा ्ृनष्टाः किृनय भन्न्ाधि्ाध्या। ्ृनष्टत्वात्पट्ृनष्टवनचत्यर् याः॥
म ाध्यनमदात्यि आह —
िन्वजवं किृनय भन्नस्विन्त्र्ाधि्ाध्यजत्यनि ््
बानधिनमदात्यर् याः॥6
्
इिरव्यिचजशानधकरममदा॥2-1-7॥
ॐ इिरव्यिचजशानद्धिाकरमानचचोषप्र्नक्ताः ॐ ॥ 2-1-7-157 ॥
अत्र श्रत्य म वानचरनम क्तनवरोधो निरस्यिज। अ्द्व्यिचजशानचत्यश्चजनचत्यन्। ् च रद्यर्े। रनचि्रमेश्च
म िभव्ं
िन्न स्यानचत्यि आह —
् ॥ 2-1-7-158 ॥
ॐ अनधकं ि म भजचनिचेशाि ॐ
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
ॐ अश्मदाानचवच्च िचिििनत्ताः ॐ ॥ 2-1-7-159 ॥
चोऽप्यर्ाःय । चजिित्वजऽनि ्ीवस्याश्मदााचजनरवास्विन्त्र्यत्वाि ् स्विाः किृत्व म
य ािििनत्ताः। आनचिचजि
म ाभोऽनि।
्म्भाद्यिजकदृष्टातु ोनक्तरस्वािन्त्र्यहजिोरव्यनभचारचशयिार। एवमदाह्यजऽनि िि एव रोग्रहजिल
अस्वािन्त्र्यं च। नहिानक्ररानचिा म ाच
मदाृनि्प्त्य म ि
्ावय्िीिािभवज न्द्धनमदानि भावाः।
चजिित्वरनम क्तश्चाप्ररोन्कज त्याशराः।
म
उक्तमदािभवनवरोधज
िानक्षप्य िस्य गनिमदााह —
्
ॐ उि्ंहारचशयिान्नजनि चजि क्षीरवनद्ध ॐ ॥ 2-1-7-160 ॥
म
िचिििनत्तनरत्यन्। िञ ् आवियि।ज ्ीव म
उि्ंहारस्यारब्धकारय्मदााििस्यािभवान्न
म
य ािििनत्तनरनि
स्विन्त्रकिृत्व चजन्न। क्षीरवि।् रर्ा गोष म दृश्रमदाािं क्षीरं गोनभन्नकत्रयधीिं िर्ा ्ीवज
म
िन्वीश एवाििलम्भान्नान्। कमि्चधीििजत्यि आह —
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ श्रिम ् म
ज शब्दमदाू ् ॥ 2-1-8-163 ॥
लत्वाि ॐ
अत्राितु ांशस्यािीशस्यैकचजशिज व्यािारज म स्य
अमीरस्त्वानचरक्त मदाहीरस्त्वाच
म नवरोध
व्याघाििरयव्ानरप्रबलरक्त्य उच्यिज। िरम वज । ्ीवानिशजष ज वा। य ज
िजश्वरकिृत्व
कृ त्स्नप्र्क्त्यानचरनम क्तनवरोध इनि प्रकृ िं लभ्यिज। ‘रोऽ् नवरुद्धोऽनवरुद्धो मदािरमदाि
म ाः’म इत्यानचिा
ॐ स्विक्षचोषाच्च ॐ ॥ 2-1-8-165 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥ 2-1-8-166 ॥
ॐ ्वोिजिा च िद्दशयिाि ॐ
म रज। चजविजनि श्रनम िबलािभ्यिज। ्वयशब्दो लक्षमरा ्वयनवषरक्ावयकानलकशनक्तिराः।
चशब्दाः ्मदाच्च
य मदाानक्षप्याह —
ईशकिृत्व
्
ॐ नवकरमत्वान्नजनि चजि िदुक्तमदा ् ॥ 2-1-8-167 ॥
ॐ
िजत्यावियि।ज ‘अचक्षाःम श्रोत्रं िचिानमिाचमदा’् इत्यानच श्रत्य
म ाऽक्ष्यानचकरमशून्यत्वान्नजशस्य किृत्व
य नमदानि
चजन्न। ित्करमरानहत्यं प्राकृ ििाण्रानचनवषरनमदानि ‘ि िस्य कारं करमं च नवद्यि’ इनि ित्रैवोक्तमदा।्
रिोऽि इनि रोज्यमदा।् नवनचत्राश्च हीत्यिजि अशजषनवरोधनिरा्ऽज नि
् ॥ 2-1-9-168 ॥
ॐ ि प्ररो्िवत्त्वाि ॐ
म नवरोध उच्यिज। हजिनम वशजषोक्त्या स्वप्ररो्िार् यनमदानि लभ्यिज। प्रकृ िमदाीशस्य
म दृढरक्त्य
अत्र फलमदाख
य ं
किृत्व ि स्वप्ररो्िार् यमदा।् कमिाः? िप्ररो्िवत्त्वाि।् ि्मदाा्ोऽरमदा।् व्याख्यािाच
ह्चालिाचानवव प्ररो्िाभावानचत्यर् याः।
म
ॐ लोकवत्तलीलाकै वल्यमदा ् ॐ ॥ 2-1-9-169 ॥
िरम वज । मदात्ताचजित्तगािानचका
ृय नक्ररा रर्ा िर्जशस्यानि ्ृनष्टनक्ररा लीलारााः कै वल्यं कज वलं
ज र्ाःय । फलाभावजऽनि ्ख
प्ररो्िवत्तां नविा लीलैवत्य ्
म ोद्रजकाि स्वभावाचज
व नवश्व्ृनष्टनरनि भावाः॥9॥
य
वैषम्यि ैघृण्रानधकरममदा ्
॥2-1-10॥
्
ॐ वैषम्यि ैघृण्य रज ि ्ािजक्षत्वाि िर्ा नह चशयरनि ॐ॥ 2-1-10-170॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ज फलचािृत्वमदाानक्षप्याह —
कमदाायिक्ष्य
् ॥ 2-1-10-171 ॥
ॐ ि कमदाायनवभागानचनि चजन्नािानचत्वाि ॐ
य त्र
िूव् ू ांशोऽिविय म मदा।् रचिक्ष्य
म ि।ज ईशस्य कमदाय्ाि जक्षत्वािैषम्यि ैघृण्य रज िजनि ि रक्त ज फलं चद्याि ्
ज मीरं कमदाय िान्। कमिाः? अनवभागाि ् अस्वािन्त्र्याि।् िस्यािीशकृ ित्वानचनि रावि।्
िचिक्ष
ज रा
स्वकृ िािक्ष फलचािज वैषम्याद्यनि्ारानचनि चजन्न। अिानचत्वात्कमदायमामदा।्
प्रवाहिोऽिानचत्वानचत्यर् याः। िूविय वू क
य मदाायिक्ष्य
ज म रोत्तरं
कृ िमदात्त कमदाायि जक्ष्य फलं म
चचािीत्यक्त
म
ॐ उििद्यिज चाप्यिलभ्यिज च ॐ॥ 2-1-10-172 ॥
ज मजऽनि स्वािन्त्र्यमदािम िद्यि एव। िस्य स्वाधीित्वाि।् एवं
चोऽवधारमज। स्वािन्त्र्यनमदानि शजषाः। कमदाायिक्ष
िनहि िचि जक्षा िामदााििक्ष म षम्याद्यािनत्तनरत्यि उक्तमदा।् उिलभ्यिज चजनि। वैषम्य
ज ैव। िर्ा च ििवै
म
ि ैघृण्य रज इत्यन्। उिलभ्यिज हीदृशं कमदाय्ािजक्षत्वकृ िं वैषम्यं ि ैघृण्य रं च। ‘् काररजत्पण्रमदार्ानि िािं
ि िाविा चोषवाि’ ् इत्याचानवनि प्रत्यजकमदान्वराः। अिो िजचमदानिष्टमदा।् वजचाप्रामदााण्राहजित्व
म ानचनि भावाः।
ॐ ्वयधमदाोिित्तजश्च ॐ ॥ 2-1-11-173 ॥
म िूिौ ्वयचोषरानहत्यज च रक्त्य
अत्र ्वयगम म नवरोध उच्यिज। ्वेषां धमदाायमां ज्ञािािन्दानच्द्ग ममािां
म ज ्नि ित्र शक्तत्वाि,्
दुाःखिजषानचचोषाभावािां चजश उिित्तजाः। ब्रह्म ्चा प्रा््द्ग ममं, ित्प्रजप्सत्व
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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प्रर्मदािाच्ार्ङ्ग्रहाः
स्मृनििरजऽश्र िस्मृत्यप्रामदााण्रमदा।् िनवलक्षमत्वानचिरज श्रनम िश्र िस्मृत्योाः प्रामदााण्रं ित्स्विस्त्वं च।
अनभमदाानििरज अनभमदाानििनिह्यहिचतु धायिशक्त्यानच। अ्नचनि िरज लरज भाव्त्त्वमदा।् भोनक्त्रनि िरज
म
मदाक्त ्ीविरैक्यनिरा्ाः। िचिन्यत्विरज ्ृनष्ट्ाधिािामदाीशरत्तत्वमदा।् इिरजनि िरज ्ीवस्य
य ऽज प्यस्वािन्त्र्यमदा,् ईशस्याििलम्भज
किृत्व म ऽनि ्त्त्वमदा।् श्रिम नज रनि िरज अघनटिघटकनित्यशनक्तमदात्त्वमदा।्
ज त्वजऽनि स्वािन्त्र्यमदा।् अन्त्यिरज ्वयगम
िजनि िरज स्वभाविाः ्ृनष्टाः। वैषम्यिरज कमदाायिक्ष म िूमत्व
य ं
म
ॐ रचिाििित्तज म
श्च िािमदाािमदा ् ॥ 2-2-1-174 ॥
ॐ
अत्र िरज निरीश्वर्ाङ्ख्यमदािं निरस्यिज। प्र्ावाि ् कनत्रयनि लभ्यिज। अिमदाीरि
म म
इत्यिमदाािमदा ।्
म बहलमदा’् इनि कमदायनम ल्यटम ्। मदाहचानचकारं ्कारमं कारयत्वानचनि ्ाङ्ख्यािमदााि
‘कृ त्यल्यटो म कनल्पिं
प्रधािं ि किृ।य कमिाः? रचिाििित्तज
म म
् यडस्य रचनरिृत्वाििित्तज
ाः। चशब्दजि ्ाधकमदाािाभावाच्चजनि
म ीरिज। िि म प्रधािस्य किृत्व
्मदाच्च म
य ज अिमदाािं मदाािनमदात्यिोऽप्याह। रचिजनि। मदाािनमदानि शजषाः। करमज
ल्यटम ्। अिमदाािं
म ि मदाािमदा।् कमिाः? अिमदाािरचिारा
म म दृष्टय त्वानचत्यर् याः। मदाहचानचकं
अििित्तज
्कारमकं ््ािीरकारमकं ्ोिाचािकारमकं स्विन्त्रकारमकं चजनि रचिारां न्द्ध्ाधिानचनि
म
भावाः। एिचर् यमदाजव रचिजत्यिमदाािनमदानि म श्च ि प्रधािनमदात्यवक्ष्यि।् किृत्व
चोनक्ताः। अन्यर्ा अिि्ज य नमदाह
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ज ॐ ॥ 2-2-1-175 ॥
ॐ प्रवृत्तश्च
चजििस्यजनि िूवत्रय ार्ायि ् प्रकृ िमदान्वजनि। िािमदाािनमदात्यन्।
म चशयिानचनि शजषाः। िटानच्ृष्ट
चजििप्रवृनत्तचशयिाच्च म
िािमदाािं प्रधािं कनत्रयत्यर्ाःय । िट्ृनष्टदृष्टातु जि मदाहचानच्ृष्टावनि
म ्श
चजििाधीित्वािमदाािं म कनमदानि भावाः। ित्त्वप्रचीि ज ि म चजििस्यानि निनवयकारस्य ि प्रवृनत्तनरत्यि आह
म
ज । रोऽहमदािभनविा
— प्रवृत्तश्च म
् एष कारयमदाारभ इनि चजििस्य प्रवृत्तरज िभवानचत्य म ।्
क्तमदा
म
्डत्वान्न किृ य प्रधािनमदात्यक्तमदाानक्षप्याह —
ॐ िरोऽम्बवच्चज ्
म ि ित्रानि ॐ ॥ 2-2-1-176 ॥
अिीत्यिजि चजििप्रवृत्तचज श म
य िय ानचत्याकृ ष्यिज। अिमदाािं ि कनत्रयत्यन्। रर्ा िराः क्षीरं स्विो
म
चध्यात्मिा िनरममदािज। रर्ा वा ्लं स्विो गच्छनि िर्ाऽिमदाािं कनत्रयनि चजन्न। ित्रानि
य िय ाि ् ‘एिजि ह वाव िरो मदाण्डं भवनि। एिस्य वाऽक्षरस्य
िरोम्ब्वाचाविीशाख्यचजििप्रवृत्तचज श
प्रशा्िज गानगय प्राच्यो िद्याःस्यन्दतु ’ त्याचानवत्यर् याः। ििश्च ्डत्वं ि व्यनभचारीनि भावाः। स्विाः
िनरमानमदा िराः, अम्प म ि म प्रवृनत्तमदाात्रज दृष्टातु इनि िरोनक्ताः॥
् ॥ 2-2-1-177 ॥
ॐ व्यनिरजकािवनस्थिजश्चाििजक्षत्वाि ॐ
म श
प्रकृ िजशोऽन्वजनि। ‘ि ऋिज त्वनत्क्ररिज’ इनि श्रत्य ज व्यनिरजकजम कस्यानि कमदायमोऽिवस्थािाच्च ि कोऽनि
म
चजििप्रवृत्तरज प्यिवस्थािान्नािमदाािं स्विाः प्रवृनत्तमदानचनि नकमदा म वाच्यनमदात्यर्ाःय । अप्रमदाामकं प्रमदाामनवरुद्धं
च िम जिं िोिाचजरनमदानि भावाः॥1॥
्
अन्यत्राभावानधकरममदा॥2-2-2॥
् ॥ 2-2-2-178 ॥
ॐ अन्यत्राभावाच्च ि िृमानचवि ॐ
अत्र ‘ ि ऋि’ इनि श्रिम ग मय भूिश
ज म ज िरत्व्म्भवान्न म चोष
मदाज प्रागक्त इनि िूवायक्षिज जम
म कप्रधािकिृमदाय िं निरस्यिज। ईशाः प्रकृ ि्त्सृज्य ं ्गच्च। चोऽिक्त्मदा
प्रवृत्तमदाीशगम म म रज। अन्यत्र
च्च
ईशाचन्याधारत्वजि ्गिोऽभावाि ् ित्प्रजरमां नविा कस्यानि कारयस्य ्त्त्वाभावानचनि रावि।् चब्दाि ्
म
य इव िजशोऽिह्याहकमदाात्रं
प्रकृ त्यानचकारम्त्ताचजरिीशारत्तत्वाच्च। िृमाचीिां ि्न्य नकतु म ्वयस्विन्त्र
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
एवजत्यर् याः। ि नह रचधीिं रत्सत्तानच ित्तस्यािह्याहकमदाात्रनमदानि म ानचिा हजिाःम न्द्ध
भावाः। भाष्योक्तश्रत्य
इनि ध्यजरमदा।् अन्यािधीित्वजशाधीित्वरोलायभारैवं नवन्या्ाः॥2॥
्
अभ्यिम गमदाानधकरममदा॥2-2-3॥
म
ॐ अभ्यिगमदाज ् ॥ 2-2-3-179 ॥
ऽप्यर्ायभावाि ॐ
म
ॐ िरुषाश्मदावनचनि ्
चजि िर्ाऽनि ॐ ॥ 2-2-4-180 ॥
म चोषोऽत्रा्ीनि प्रा्ं ्ीवगम
अत्र ि प्रागक्त म कप्रधािकिृवय ाचं निराचष्टज। िजत्यन्। रर्ा िरुषस्य
म
म ाः ॐ ॥ 2-2-4-181 ॥
ॐ अनङ्गत्वाििििज
म त्वज त्वरोच्यमदाािज ्ावय्िीिस्य शरीरमदा ् प्रत्यनङ्गत्त्वस्याििित्तज
्ीवस्य गम म म
ि य िरुषाश्मदादृष्टातु ो म
रक्त
म श्रिम ावस्य हैिक
इत्यर् याः। प्रागक्त म त्वजिािाचराचत्र चशब्दाप्ररोगाः॥4॥
म
अन्यर्ािनमदात्यनधकरममदा ्
॥2-2-5॥
म
ॐ अन्यर्ाऽिनमदाि ् ॥ 2-2-5-182 ॥
च ज्ञशनक्तनवरोगाि ॐ
म ानङ्गत्वाििि्त्यन
अत्र प्रागक्त म म म प्रा्ं ्ीवप्रधािकिृवय ाचं प्रत्याचष्टज। चशब्दजिानङ्गत्वाििित्तज
द्धारज म राकष याः।
अन्यर्ा म ाचन्यर्ा
प्रागक्त ्ीवस्य प्राधान्यजि मय त्वजि
प्रकृ िजगम म
िरुषाश्मदादृष्टातु ज म
ि ैवािनमदाि
म
चानङ्गत्वािििनत्ताः। कमिाः? ज्ञशनक्तनवरोगाि।् ्ािािीनि ज्ञाः। इगिम धज्ञाप्रीनकराः काः। ज्ञस्य िरुषस्य
म
म
शरीर्म्बन्धज शक्त्यभावात्तदुि््िय किरुषकिृ य िक्षज िजि नविा ित्सम्बन्धज ्ामदार्थ्ायभावाच ्
त्व
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्ामदाान्यचोषजमानि प्राक्ति्वयिक्षानन्नराह—
् ॥ 2-2-5-183 ॥
ॐ नवप्रनिषजधाच्चा्मदाञ्ज्मदा ॐ
्वयश्रनम िस्मृनिरनम क्तनवरुद्धत्वाच्चािीश्वरमदािमदा्मदाञ्ज्नमदात्यर् याः॥5॥
्
वैशनज षकानधकरममदा॥2-2-6॥
् ॥ 2-2-6-184 ॥
ॐ मदाहद्दीघयविा ्रसस्विनरमदाण्डलाभ्यामदा ॐ
म निरीशमदािोक्तचोषोऽत्र िा्ीनि प्रा्ं वैशनज षकमदािं निरस्यिज। िञ्चम्यतु ािनिाः।
अत्र प्रागक्त
रोज्यमदा।् भावप्रधािोऽरमदा।रर्ा
् य ाच्च िनरमदाामाच्चिरम मक
मदाहत्वाद्दीघत्व म ानच कारयगिं िनरमदाामं ्ारिज
िस्यां ्त्यामदामषम म म ि
कमदाायित्पाचज म ं
व्यनभचाराद्धजित्व िान्। अनित्यत्वज
म नमदानि भावाः। न्द्धातु जत्वीशस्य वैनचकत्वान्न
म ं ि रक्त
अिव्ाद्यािािजिोत्पाचकाभावाचीशजच्छारा हजित्व
चोष इनि हृचरमदा।् उभरर्ानि िचभावानचत्यजवोक्त कमदाायद्यभावजिान्यर्ान्नद्धं शङ्कज ि। अिो ि
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
कमदाेत्यनक्ताः। म त्वाचदृष्टनवलम्बजि कारयनवलम्बाभावाि।् उभरर्ाऽनि ि कमदाेत्यवज िूिौ
िस्य इच्छैकहजिक
शजषोनक्तरनिष्ट्ूचिार्ाय। उभरर्ाऽनि कमदाायभावानचनि वाच्यज ि कमदाायि इनि भजचिज ोनक्तलयर ज
्त्यामदािीशजच्छारां ि कमदाायिो व्यनभचाराः। िचन्यचानि ि कमदाय अिाः कारायभाव इनि ्ूचनरिमदाम ॥्
्मदावानरकारमं च निराह –
म
ॐ ्मदावाराभ्यिगमदााच्च ्ाम्याचिवनस्थिजाः ॐ ॥ 2-2-6-186 ॥
ज िजषां ्मदावारारिम गमदााच्च िम जिमदा्ि।् कमिाः?
म रज। अवरवावरव्याचीिां नभन्नत्वमदािम त्य
चाः ्मदाच्च
्मदावारस्यानि ्मदावानरभ्यां नभन्नत्व्ाम्याि।् मदाृद्घट्मदावार म िम ित्तरज
इत्यानचनवनशष्टबद्ध्य
्मदावारातु राि जक्षारां ित्राप्यजवं ित्राप्यजवनमदात्यिवस्थािानचत्यर् याः। ्मदावारा्म्भवान्न िरमदााण्वाचीिां
म नमदानि भावाः॥
द्रव्यानचकारमत्वं रक्त
् ॥ 2-2-6-187 ॥
ॐ नित्यमदाजव च भावाि ॐ
नकञ्चजनि चार् याः। ईशजच्छािरमदााण्वानचकारमस्य नित्यं भावानन्नत्यमदाजव च कारं स्यान्न ि म कचानचत्प्रलर
इत्यजवार् याः। रिा ्मदावारस्वजत्यन्। ्त्ता्मदावारो ्निनरनि िरैरङ्गीकृ ित्वाि ् ्मदावारस्य च
् नित्यं ्निमदात्स्यानचत्यर् याः। िर्ाच ्ृनष्ट प्रलरािििनत्तनरनि
नित्यमदाजव भावाि ्वं म भावाः॥
् ॥ 2-2-6-188 ॥
ॐ रूिानचमदात्त्वाच्चनविरयरो चशयिाि ॐ
नकञ्च िानर् यवानचिरमदाामूिां रूि्ानचमदात्त्वाि ् प्रकृ िनित्यत्वनविरयराः अनित्यत्वं भवनि। रद्रूिानचमदाि ्
्
िचनित्यनमदानि घटाच चशयिानचत्यर्ाःय । भ निकत्वजि रूिाचजनवयशषज माि िजशाच व्यनभचाराः॥
् ॥ 2-2-6-189 ॥
ॐ उभरर्ा च चोषाि ॐ
म प्यिजि हजििम ा
उक्तिक्षिरजऽनि चोष्त्त्वानचत्यर्ाःय । आद्यज घटाचजरनि नित्यिािनत्ताः। ित्साम्यस्य अमष्व
म ाधत्वाि।् अन्त्यजऽमूिामदाभावजि द्व्यमक
्् म ानचकारायभाव इनि भावाः।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
्मदाचारानधकरममदा ्
॥2-2-7॥
िादृशामूिां ्चा ्त्त्वाि ् ्मदाचम ारोऽनि ्चा स्यानचनि लरारोगानचनि भावाः। ्मदाचम ारज
म ज ऽिीनि
अिजकहजिक वाच्यज म
उभरजत्यनक्ताः उभाववरवावस्य मदाजलिस्य िदुभरनमदानि
्मदानम चिािजकत्वरूिनमदानलित्वरूििक्षलाभार। ्ङ्ख्यारा अवरवज िरि।् निनत्रभ्यां िरस्यरज्वा।
उभादुचात्तो नित्यनमदानि स्मृिाःज । रिोभशब्दिरायराः अत्रोभरशब्दाः। ्वायनच्ूत्रकै य्यटज उभादुचात्तो
नित्यनमदानि नित्यह्यहमस्य म शब्दस्योभरजत्यवज
्मदाा्ाचावभ रूिनमदात्यजिचर् यज्ञािकत्वोक्तज ाः।
म ाः
एवञ्चोभरहजिक ्मदाचम ार म ाः
इत्यत्रानिनमदानलिोभरहजिक ्मदाचम ारश्चजचन्योन्याश्ररात्तचप्रान्ाः।
म श्चजि ् ्मदाचम ाराः
नवरलोभरहजिक ्चा स्यानचत्यर् याः। कज नचत्त म नमदानलिा म
नवरलाश्चजत्यभरज
म ज ऽनि्मदाचम ारज िचप्रान्ाः। िनचनि ्नन्ननहि्मदाचम ारो बनद्धस्थलरश्चोच्यि
रजऽमव्दुभरहजिक म इनि
िक्षिरस्यानि ्ूत्र एव निरा् इत्यप्याहाः॥
उक्तमदाानक्षप्याह —
्
ॐ इिरजिरप्रत्यरत्वानचनि चजन्नोत्पनत्तमदाात्र निनमदात्तत्वाि ॐ॥2-2-7-192॥
इिर्नहिनमदािरनचिरजिरि।् िस्य प्रत्यरोऽिक्ष
ज ाबनम द्धरयस्य व्यवहाराचज्स्य भाव्त्त्वं िस्माि।्
रदुक्तं प्राक ् लरारोगोऽन्योन्याश्रर इनि च। िन्न। अमग
म िािजकत्व्ङ्ख्यारूिस्य मदाचनभमदाि्मदाचम ारस्य
्चा ्त्त्वजऽनि म
ित्प्रिीनिव्यवहाररोरि जक्षाबद्ध्यधीित्वाि ् म ाि जक्षाबद्ध्यभावज
्ामदाीप्यहजिक म ि
्मदाचम ारप्रिीत्याचजरभावािराद्यमििनत्तनरनि चजन्न। नवरलामूिां म ि्मदाचम ारोत्पनत्तमदाात्रज
नमदानलिामरू
निनमदात्तत्वाचिक्ष म
ज ाबद्ध्याच निनमदात्तत्वाभावानचत्यर्ाःय । क्षनमकवाचज एकै ककारोत्पाचिजि ैवामूिां िाशाचाच
म
चशयि ं ििोऽि जक्षबनद्ध्ि्त्समदा चम ारनवषरप्रिीनिव्यवहारावजकत्र ्वं ि म नमदानि
रक्त कचानि
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
् Page 90
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व्िम ो नवरलामभ्य
म ो नमदानलिामरू म नमदात्याह—
म िा्दृशकारय्ििमदाजवारक्त
् ॥ 2-2-7-193 ॥
ॐ उत्तरोत्पाचज च िूवनय िरोधाि ॐ
म ज त्यन्वजनि। अवधारमजऽनि वा। उत्तरस्य
म रज। नव्दृशकारय्निश्च ि रक्त
िजत्यन्। चाः ्मदाच्च
य
स्व्दृशकारयस्योत्पाच एव िूवस्य कारमस्य निरोधान्नाशानचत्यर्ाःय । क्षनमकवाचज कारमस्य
्दृशकारय्िि एव ्ामदार्थ्ायि ् ित्कारयमदात्प म नमदानि भावाः।
म ाद्य िश्चािै्ादृश्रं ्िरिीत्यजिचप्यरक्त
प्रनिक्षमोत्पनत्तरजव िजत्याह —
्
ॐ प्रनि्ङ्ख्याऽप्रनि्ङ्ख्यानिरोधाप्रान्रनवच्छजचाि ॐ॥ 2-2-7-195॥
म
प्रनि्ङ्ख्या बनद्धाः। म वायबनद्धिू
िचभावोऽप्रनि्ङ्ख्या। बनद्धिू म वनय विाश प्रनि्ङ्ख्याप्रनि्ङ्ख्यानिरोध । िावजव
म िज ।ज
््तु ािनविाशप्रनिक्षमनविाशावच्य म
िरोरप्रान्रिििनत्ताः। कमिाः? अनवच्छजचाि।्
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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कारय्िीिानमदानि वा कारायमानमदानि वा प्रकृ िमदान्वजनि। कारमज ्नि कारं भवत्यजवनज ि निरमदााभ्यिम गमदााि ्
म ाद्य िश्रिीनि वाच्यज उत्पनत्तक्षमस्यैव कारयनवरोगक्षमत्वात्कारयनवरोगकालज कारमं
प्रनिक्षमं कारयमदात्प
म ाचरजि।् िदुत्प्त्यनितु रं च ैवनमदानि कर्ं
्चजवनज ि कारयमदात्प त्वचङ्गीकृ िप्रनिक्षमनविाशाःस्याि।् िर्ा
म ाचरजचवज । ित्कारं च ैवनमदानि कर्ं
्िो नह घटस्यानतु को िाशाः। अिोऽ् ्त्त्वात्कारयमदात्प
त्वचङ्गीकृ ि्तु ािोच्छजचाः स्यानचनि भावाः।
म
अर् यनक्रराकानरत्वरूि्त्त्वान्यर्ाििि्त्यना क्षनमकत्वं भावािामदािम जरनमदात्यि आह —
् ॥ 2-2-7-196 ॥
ॐ उभरर्ा च चोषाि ॐ
कारमज ्नि कारं भवत्यजवनज ि निरमदाजऽनिरमदाज चोभरर्ानि चोषानचत्यर् याः। आद्यज कारमस्यानि
रावत्कारयभानवत्वाि ् ्व्यजिरगोशृङ्गवि ् ि कारयकारमभावाः। अन्त्यज
ित्कालजऽर् यनक्रराभावजिाऽ्त्त्वाि्त्यना ि कचानि ििाः कारय्निनरनि भावाः। ्लाहरमानचरोग्रिरैव
्त्त्वोििनत्तनरनि हृचरमदा।्
्
िि म रत्सि ित्क्षनमकं म
रर्ा चीिाचीत्यिमदाािाि ्
क्षनमकत्वं भावािामदानस्त्वत्यि आह—
् ॥ 2-2-7-197 ॥
ॐ आकाशज चानवशजषाि ॐ
चीि इवाकाशज च िनरमदाामनवशजषाभावानचत्यर् याः। आकाशज िनरमदाामनवशजषाचशयििज िस्याक्षनमकत्वं
म िश्च
ॐ अिस्मृ ज ॐ ॥ 2-2-7-198 ॥
म
िचजवचज नमदानि प्रत्यनभज्ञािाच्च िािमदाािाि ्
क्षनमकत्वं न्द्धनमदानि भावाः॥7॥
्
अ्चनधकरममदा॥2-2-8॥
् ॥ 2-2-8-199 ॥
ॐ िा्िोऽदृष्टत्वाि ॐ
अत्र िरज िरमदाामिम ञ्जवाचोक्तचोषोऽत्र
म िजनि प्रा्ं शून्यमदािं निरस्यिज। नवश्वकारमत्वनमदानि
म मदा।् कमिाः? मदाािाभावानचनि भावाः। कमिो ि
प्रकरमािभ्यिज। अ्िाः शून्यस्य ्गत्कारमत्वं ि रक्त
मदाािनमदात्यिाः अदृष्टत्वाि ्शून्यकारमत्वस्याप्रत्यक्षत्वाि।् क्वानि ित्कारमत्वस्याचशयिाच ् दृष्टातु ाभावजि
म
िािमदाानिकत्वानचनि रावि।् िर्ा अदृष्टत्वाि,् आगमदास्यजनि शजषाः,
शून्यकारमत्वबोधकागमदास्याचशयिानचनि िरम्पररा अदृष्टत्वानचनि हजिरम ोज्याः। िजि
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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अदृष्टमदाप्य्िो ्गत्कारमत्वमदानस्त्वत्यि आह —
् ॥ 29-202 ॥
ॐ वैधम्यायच्च ि स्वप्नानचवि ॐ
अभाव इनि वियि।ज स्वप्न्ाह्यत्वानचवद्रज्जभम ्
म ङ्गानचवच्च ्गचभवोऽ्न्न। कमिाः? वैधम्यायच्च स्वप्न एवारं
ि ्ाह्यि,् म
रज्जनररं ि ्ि य इनि बाधनवषरत्ववैलक्षण्रानचत्यर्ाःय । चशब्दोऽत्र च
बाधाभावानचत्यर् य्ूचिार् याः। ्धम ारां दृश्रत्वानचनमदार्थ्ात्वहजत्विाकरमार् यमदाप्यजिचविारय
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
अििलब्ध्यनधकरममदा ्
॥2-2-9॥
म
ॐ ि भावोऽििलब्धज
ाः ॐ ॥ 2-2-9-203 ॥
म
अत्र िरज िा्िोऽदृष्टत्वानचत्यक्तचोषो िात्रजनि प्रा्ं नवज्ञािमदािं निराह। ्गनचनि प्रकृ िमदा।् भविीनि
भावाः ्द्रूिज्ञािमदा।् ्गि ् भावो ज्ञािात्मकं ि। ज्ञािमदाजव ्गचाकारजम िनरममदाि इनि िजत्यर् याः।
कमिाः? अििलब्धज
म म
रििभवाि।् प्रमदाामाभावानचत्यर्ाःय । उिलनब्धनवरोधानचत्यर्ाःय । ज्ञािज्ञजररोभेचस्य
म
्ानक्षन्द्धत्वानचनि भावाः। ज्ञािनमदानि वाच्यज भाव इत्यनक्तिाय म
ऽ्ि इत्यक्तचोषो िजनि चशयनरिमदाम ।्
कज नचत्त म प्रा् भवम ू शनम द्धनचतु रोनरनि कनवकल्पद्रममदाोक्तज नश्चतु ारूिज्ञािार् यस्य भवम ो रूिनमदानि भावाः।
म ाकं भााः ्ाकारत्वजिानभमदािं ज्ञािनमदानि वाऽनभप्रजत्य भाव इत्यनक्तनरत्याहाः॥
रष्म म
इिश्च ैवनमदात्याह —
ॐ क्षनमकत्वाच्च ॐ ॥ 2-2-9-204 ॥
ि भाव इनि वियि।ज भाव इनि आवियि ज च। भावस्य क्षनमकत्वाच्च आशिम रनविानशत्वाच्च ि भावो
म नमदानि भावाः॥
्गनचत्यर् याः। ्गिाः स्थानरत्वं प्रागक्त
म
ॐ ्वयर्ाऽििित्तज
श्च ॐ ॥ 2-2-9-205 ॥
िजत्यन्। ्वयर्ा प्रत्यर्ं क्षनमकत्वकल्पिज शून्यािैिकल्पिज नवज्ञािािैिकल्पिज प्रकटिज प्रच्छाचिज वा
वजचिजषिक्षा ि ह्या्रमााः। कमिाः? अििित्तज
म ्
ाः उिि्त्यनिम लनक्षिमदाािाभावाि िनिरुद्धत्वाच्चज
त्यर्ाःय ॥9॥
्
ि ैकनस्मन्ननधकरममदा॥2-2-10॥
् ॥ 2-2-10-206 ॥
ॐ ि ैकनस्मन्न्म्भवाि ॐ
ै िक्षोक्तचोषोऽत्रजनि प्रा्ं क्षिमकमदािं निरानक्ररिज। ्त्त्वमदा ,् अ्त्त्वं, ्च्त्त्वं,
अत्र ्वयप्रकारोिगमदाान्नक
्च्निलक्षमत्वं, ्त्त्वज ्नि ्निलक्षमत्वमदा्त्त्वज ्त्य्निलक्षमत्वं, ्च्चात्मकत्वज ्नि
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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अप्रामदाानमकत्वजिा्म्भानवित्वानचत्यर्ाःय ।
रचनि चजहिनरमदाामत्वं ्ीवस्योि जिं िनत्कं ्वयचहज गिचजष्टोिि्त्यनर् यमदामि जरिज। अर् चजहावच्छजचकं
नविात्मिाः िनरमदाामाभावािा आद्य आह—
् ॥ 2-2-10-207 ॥
ॐ एवंचात्माऽकार्त्स्न्यमदा ॐ
् ैिमदािप्र्ङ्ग्नन्नधानििमदाात्मिो चजहिनरमदाामत्वमदाजवनमदानि िरामदाृश्रिज। एवं च चजहिनरमदाामत्वज
य ं ्वयचहज ाव्यानित्वं स्यानचत्यर् याः।
्त्यात्मिो मदाशकानचचजहस्थात्मिो ग्ानचचजहप्रा्ावकात्स्ययमदािूमत्व
ििश्च ि ्वयचहज चजष्टनज ि भावाः। रिाऽऽत्मिो ग्ानचचजहस्थस्य मदाशकानचचजहप्रा्ावात्मिोऽकार्त्स्न्ं चजह
एव कार्त्स्न्ं ि स्याचनिरजकाः स्यानचत्यर्ाःय । ििश्च कारिनरमदाामत्वभङ्ग इनि भावाः।
चशब्दजि ैवैषोऽप्यर् याः ्ङ्ग्रा्रमो ि वृ्त्यनतु रजमत्य
ज क ज ज॥
् ॥ 2-2-10-209 ॥
ॐ अन्त्यावनस्थिजश्चोभरनित्यत्वाचनवशजषाि ॐ
अन्त्यस्यमदानम क्तगिात्मिनरमदाामस्यावनस्थिज्चवच्छजचकिरा नित्यचजहावश्रम्भावजिोभरस्य
म ावात्मिद्दजहरोनि यत्यत्वाचद्यििचजहािामदानि नित्यत्वं स्यानचनवशजषाद्दजहत्वानवशजषानचत्यर्ाःय । वृ्त्यनतु रं
मदाक्त
म ाख्या िस्याश्च नवकारात्तद्रूिाचनि नवकाराि ्
ि,म अन्त्या राऽवनस्थनिाः ्ििोर्ध्यगनिरूिा मदाक्त्य
आत्मिोऽनित्यत्वं स्यानचनि िूवस्म म
य ाचिषङ्गाः। ि कज वलं िनरमदाामानचनि चार्ाःय । एवमदानि िस्य नित्यत्वज
उभरनित्यत्वाचात्मप्रिञ्चरोियरोरनि नित्यत्वािािानिकानरत्वमदाात्रस्य
त्वराऽप्ररो्कीकृ ित्वानिकारनवशजषस्य िाशव्या्त्वजि त्वराऽिङ्गीकारानचनि भावाः। रिा स्थास्नूिां
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
ॐ ित्यर्ामदाञ्जस्याि ् ॥ 2-2-11-210 ॥
ॐ
म
अत्र िरज ि ैकनस्मनन्नत्यक्तचोषोऽत्र िजनि प्रा्ं ् रानचमदािोि लक्षमत्वजि शैवमदािं निरस्यिज। िजनि
म मदा।् कमिाः? ित्यर्ामदाञ्जस्याि
कारमत्वनमदानि च वियि।ज ित्याःम िशिम िजाः ि ्गत्कारमत्वं रक्त म ्
म
ॐ ्म्बन्धाििित्तज
श्च ॐ ॥ 2-2-11-211 ॥
म
ित्यनरत्यन्। ित्यरम शरीरत्वाज्जगिा कारयकिृभय ावरूि ्म्बन्धाििित्तज
म श्च ि ित्याःम किृत्व
य नमदात्यर् याः॥
इिश्च ैवनमदात्याह—
म
ॐ अनधष्ठािाििित्तज
श्च ॐ ॥ 2-2-11-212 ॥
म श्च ि ित्याःम कारमत्वनमदात्यर्ाःय । भूिािां प्रलीित्वजि ्ृष्ट्यानचकालजऽभावानचनि
िृनर्व्याद्यनधष्ठािाििित्तज
म
भावाः। अभावानचनि वाच्यजऽििित्तज म
नरत्यनक्ताः कारकत्वाि ् िस्यैवानधष्ठाित्वज चजििातु रवद्भोगप्राप्त्या
म
िचििित्तज
नरत्यह्यजििचोष्ूचिार॥
रोगिरोक्तमदाानक्षप्याह —
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ित्यनम रत्यन्। नशवो चजहवाि ् ि वा। आद्यज ित्यरम तु वत्त्वं िनरनच्छन्नत्वं स्याि।् अन्त्यज ्वयज्ञिा ि
स्याि।् अशरीनरमो ज्ञािस्यैवाभावानचनि भावाः। वाशब्दो नवकल्पार्ाःय । ि नह िादृशस्य च ैत्रानचवि ्
य ं रक्त
किृत्व म ।् िस्यानि चजहत्वजि
म नमदानि भावाः। एिजि लीलानवह्यहोिाचािमदा्ीनि प्रत्यक्तमदा
् ॥ 2-2-12-215 ॥
ॐ उत्पत्य्म्भवाि ॐ
अत्र य ारजि
िूवन्य निर्मदानि शनक्तमदािं नवशजषचोषनववक्षरा ििम नि यरस्यिज। ि
शनक्त् यगत्कारमनमदात्यन्वजनि। कमिाः? उत्प्त्यन्म्भवाि।् ििोऽित्योत्प्त्यन्म्भवानचत्यर् याः।
म
िरुषािि म हीिस्त्रीमदाात्राचित्योत्पत्तजरचशयिानचनि भावाः॥
गृ
म हीिा शनक्ताः कारमनमदानि मदाध्यमदावामदामदािं निराह—
नशवािगृ
् ॥ 2-2-12-216 ॥
ॐ ि च किाःयम करममदा ॐ
मय ािह्याहकस्य
किश्च म नशवस्य ज्ञािानच्ाधिं िा्ीत्यर्ाःय । नशवस्य कारमोत्पाचिज कज वलशक्तज रशक्तज नरनि
भावाः॥
् ह्याहकाः
ज्ञािचजहानचकारमवाि अि म नशव इत्यमवम ामदामदािं निराह —
ॐ नवप्रनिषजधाच्च ॐ ॥ 2-2-12-218 ॥
म ानचनवरुद्धत्वाच्चा्मदाञ्ज्ं शनक्तमदािनमदानि रोज्यमदा ्
्कलश्रत्य
इनि श्रीमदाद्राघवजन्द्ररनिकृ िारां िन्त्रचीनिकारां नििीराध्यारस्य नििीराः िाचाः ्मदाा्ाः॥
म
श्रीकृ ष्णाि यममदा्॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ अन्ि म ॐ ॥ 2-3-1-220 ॥
िरम वज । अस्त्यजव नवरदुत्पनत्तश्रनम िाः ‘आकाशाः ्म्भूिाः’ इत्यानचकज त्यर् याः।
‘अिानचवाय अरमदााकाशाः’ इनि श्रनम िनवरुद्धजर ं श्रनम िाः। अश्रिम नज रनि चान्द्धनमदात्यि आह—
् ॥ 2-3-1-221 ॥
ॐ ग ण्र्म्भवाि ॐ
अिानचत्वश्रनम िगौमी ग मािानचत्विरा। अ्म्भवाि ् अ्ीत्यक्तोत्पनत्तश्र
म िम ीिामदारोगानचत्यर् याः।
भूिस्य स्वरूििाः, िचनभमदाानििो चजहिाः अवकाशिचनभमदाानििोाः िराधीिनवशजषावान्ि
उत्पनत्त्म्भवजि चिष्टम रनवषरत्वाि ् बहत्वाच्चोत्पनत्तश्रनम त्तरक्त
मय ा। ‘अिानचवाय’ इनि श्रनम िभूिय ज
म ज त्य्वयनवषरत्वाद्भूि ज
्वयर्ाऽरक्त छनत्रविाक्षनमकी वा नचरतु ित्वमदाात्रजम ग मी वा
इिश्च ग मीत्याह —
ॐ शब्दाच्च ॐ ॥ 2-3-1-222 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥ 2-3-1-223 ॥
ॐ स्याच्च ैकस्य ब्रह्मशब्दवि ॐ
म
च एव। िस्योभरत्रान्वराः। एकस्यैवाित्पनत्तवानचशब्दस्य म त्वजऽप्याकाशजऽमदाख्य
नवष्ण मदाख्य म त्वं
अ् म ब्रह्मशब्दो बाधाचन्यत्रामदाख्य
म ाः। इह ि म कमि इत्यि आह—
् भ्याः ॐ ॥ 2-3-1-224 ॥
ॐ प्रनिज्ञाहानिरव्यनिरजकाि शब्दज
म
आकाशजऽप्यित्पनत्तवानचशब्दस्य म त्वज ‘् इचं ्वयमदा्ृ्ि’ इनि प्रनिज्ञाहानिाः स्याि।् ि चात्र
मदाख्य
आकाशो ि श्रिम इनि शङ्क्यमदा।् अव्यनिरजकाचाकाशस्य ्वयमदाध्यिनिित्वानचत्यर्ाःय ।
स्पष्टमदात्राकाशस्योत्पनत्ति य भािीत्यिाः शब्दजभ्य इनि। ‘आत्मा वा इचमदाजक एवाह्यज’, ‘अ्चजवचज मदाह्यज’, ‘इचं
् ॥ 2-3-1-225 ॥
ॐ रावनिकारं ि म नवभागो लोकवि ॐ
नवकार इनि कमदायनम घञ।् ‘रावचवधारम’ इत्यव्यरीभावाः। नवभागिचजि
म । िस्याप्यरनमदाहशक्तो िजनि नवभज्यमदााित्वाि।् रावनिकारं
कमदाायर् यघञतु जिाल्पशनक्तमदाािच्यिज
नवनक्ररमदााम एवार्ो नवभागो नवभक्ताः, अल्पशनक्तमदाानित्यर् याः। रो नवभक्ताः ् नवनक्ररमदााम इनि
व्यान्रुक्ता भवनि। रावचनित्यं कृ िकनमदानिवि।् लोकवद्घटानचवनचत्यर् याः। एिजि नवरदुत्पनत्तमदाि ्
म
नवभक्तत्वाद्घटानचवनचत्यिमदाािं ्ूनचिमदा।् िरम स्म
य ानचत्यर्े। रस्माचजवं िस्मानिकार इत्यजकज।
अिमदाािज म ार् याः ्ि ् अिमदाािस्य
म िािीनि टीकोक्तज ाः। अल्पशनक्तत्वाच्चजनि ित्त्वप्रचीिोक्तज ाः िश्च म
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ अ्म्भव् म ्िोऽििित्तज
म ाः ॐ ॥ 2-3-3-227 ॥
म नवरोध उच्यिज। िरम वज । ्िो ब्रह्ममोऽ्म्भव
अत्र ब्रह्मोत्पनत्तश्रत्य म व। कमिाः?
एवाित्पनत्तरज
म ाः। अ्िस्सकाशाि ् ्ज्जम जिोऽििित्तज
अििित्तज म नरत्यर्ाःय । क्वाप्यचशयिानचनि भावाः। उत्प्त्यन्म्भव
इत्यिवृम त्तावनि िस्य ि नवरनचनि िञाऽनन्वित्वाि ् ििर्म्भव
म म
इत्यनक्ताः। िनम रनि भागोत्पनत्तं
िराधीिनवशजषवान्ं च निराह। ्ि म
इत्यनक्तर्िाः ्च्ारिजनि श्रनम ि्ूचिजि
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ आिाः ॐ ॥ 2-3-5-229 ॥
म नवरोध
अत्राब्जिकश्रत्य उच्यिज। अि्र्ाऽ्रमाहजत्यन् उत्पनत्तमदानचनि च। आिोऽप्यि
एवोत्पनत्तमदात्याः। ि त्विजाः। रस्माि ् ब्रह्मवै चज मदाह्य ‘आ्ीत्तचिोऽ्ृ्ि’ इत्याह श्रनम िनरत्यर् याः। आि
इनि श्र ििृनर्व्याचजरुिलक्षममदा।् धमदाायि ् स्वजचानचदृष्टजरिजरब्जम ज प्रत्यक्षनमदानि नवशजषशङ्कानिवृ्त्यनर्ोऽरं
नवभागाः॥5॥
्
िृनर्व्यनधकरममदा॥2-3-6॥
रत्कृ ष्णं िचन्नस्यजनि कार्ष्ण् यरूिाि,् िृनर्वी वा अन्ननमदानि शब्दातु राि।् आनचिचािजचो
म ज श्चजत्यर् याः। िानधकारमदाात्राचन्नश्रनम िबाधाः शक्य इत्यिो रूि जनि
िाप्रमदााममदाि रुषजरत्वानचत्यानच रक्त
् ॐ ॥ 2-3-7-231 ॥
ॐ िचनभध्यािाचजव ि म िनिङ्गाि ्ाः
म नवरोधमदाक्त्व
अत्रैवमदानधभूिानधचैव्म जश्रत्य म ा ‘रत्प्ररनतु ’, ‘रुद्रो मदाानवशातु क’ इनि
म नवरोध उच्यिज। अनभध्यािनमदाच्छा। ि्
ित्संहारकश्रत्य म द्गि्नञ्जहीषायत्वरूिनवशजषवाची। एवजनि
म ्ूचकाः। िनिङ्गजनि िच्छब्दजि बनद्धस्थं
कै मदात्य म म िज। ् इनि प्रकृ िो नवष्णाःम । ्ंहिेनि
य मदाच्य
नवश्व्ंहिृत्व
रोग्रिराऽन्वजनि। ् नवष्णाःम ्ंहिाय, ि रुद्राः। कमिाः? िचनभध्यािात्तस्य
नवष्णोरनभध्यािात्तस्यानभध्यािानचनि म क्त
श्रत्य म ाचिानचबन्ध्नञ्जहीषायरूिाचजव िनिङ्गात्तस्य
य स्य ्ाधकानिङ्गानचत्यर् याः। अिाचजरनि बन्धस्य लरकिाय नकल नवष्णाःम , नकमदा म
्ानच्गत्संहिृत्व
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्ाचज् यगि इत्यजवकारिात्परयमदा।् ् इनि ‘् िो हनरघृिय मदा’् इनि श्रनम ि्ूचकमदा।् अरं च चनन्द्रकोक्ताः।
म त्वश्रवमाि।् िर्ा च
टीकारां ि म िस्य बन्धलरस्य िचनभध्यािात्तस्यजनि श्रिम िचनभध्यािहजिक
िनिङ्गात्तनचच्छाधीित्वानलङ्काद्बन्धलरकिाय नवष्णनम रत्यिमदाीरिज
म य ाि ् ् नवष्णाःम
। अिानचबन्ध्ंहिृत्व
म
्ानच्गत्संहिायऽिमदाीरि इनि िञ्चम्योवैय्यनधकरण्रमदािम त्य म ोनक्तभायष्यस्यैव व्याख्या।
ज िरम्पररा हजित्व
्
नविरयरानधकरममदा॥2-3-8॥
् ॥ 2-3-9-233 ॥
चजन्नानवशजषाि ॐ
अत्र म व्यत्क्र
प्रागक्त म मदालरस्य नवज्ञािाचाविवाचशङ्कानिरा्िज म नवरोध
लरक्रमदाश्रत्य उच्यिज।
म क्रमदाजमान्यजषां ित्वािां लर इनि शजषाः।
नवज्ञािमदाि्ी नवज्ञािमदाि्त्त्वज अतु रा नविा क्रमदाजम प्रागक्त
कमिाः? िनिङ्गाि ् । ित्रोक्तज ऽर्े ‘मदाि्श्च नवज्ञािमदा’,् ‘रच्छजिाङ्मिन् प्राज्ञ्द्यच्छजज्ज्ञाि’ इनि
म क्ताि
श्रत्य म ्
क्रमदाादुत्पन्नरोाः ्
क्रमदाािराख्यनलङ्गानचनि चजन्न। अनवशजषाि नवज्ञािमदाि्ोरय
र्ोत्पनत्तलर इनि
िनिशजषप्रमदाामाभावानचत्यर्ाःय । नवज्ञािमदाि्ोाः क्रमदाजमनज ि वाच्यजऽतु रजत्यवज रू
ं िोनक्ताः िच ् िराचन्यजषां
म मदाजम लर इत्यर्ायिमदानि्ू
व्यत्क्र म चिार।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
ॐ चराचरव्यिाश्रर् म स्याि िद्व्यिचज ्
शो भाक्त्द्भावभानवत्वाि ॐ
॥ 2-3-9-234 ॥
चरजनि चञ्चलत्वाम जिोरूिनमदानन्द्ररं ििनृ त्तरूिनवज्ञािं चोच्यिज। अचरजत्यचञ्चलत्वाम जि्त्वं
नवज्ञािित्त्वं च। स्यानचनि ्म्भाविारामदा।् ् चा् व्यिचजशश्च िद्व्यिचजशाः। िद्व्यिचजश् म मदाि्श्च
्
नवज्ञािनमदानि मदािोनवज्ञािशब्दरूिो व्यिचजश् म चराचरव्यिाश्रराः स्याि।इनन्द्रिि नृ त्तित्वनवषराः
्म्भानविाः। िर्ानि ् एकचजशनवषराः। इनन्द्ररमदाि्त्त्वरूिमदािाःशब्दार्े
ििनृ त्तनवज्ञािित्त्वरूिनवज्ञािशब्दार्े च ैकचजशनज न्द्ररििनृ त्तरूिमदािोनवज्ञािनवषर एव ि ि म ित्त्वनवषर
इत्यर् याः। िद्भावभानवत्वाि।् चराचरव्यिाश्ररजनि प्रानििनचकमदाात्रं िद्भावनवशषमत्वजिावियि।ज
म िज ।ज िनचनि मदािाः। चराचरव्यिाश्ररजम ्ङ्गमदाानच्वयव्नम वषरकत्वजि
चराचरजनि स्थावर्ङ्गमदाावच्य
िद्भावजि मदािोभावजि आलोचिजि जनि रावि।् भानवत्वाि ् वृनत्तरूिज्ञािस्योत्पद्यमदााित्वानचत्यर् याः।
म ब्दाः श्रिम ग
िश म
ज नय ि्ूचकाः। मदाि इत्याद्यिक्त्वा चराचरजत्यनम क्ताः िद्भावनवशजषमत्वार्ाय। िनचनि िन्त्रमदा।्
ित्र चराचरजष म नवषरज िस्य मदाि्ो भानवत्वानिज्ञािस्यजत्यर् य इत्यजकज। मदािाः शब्दजि मदािोरूिनज न्द्ररं
मदाि्त्त्वं च नवज्ञािशब्दजिानि वृनत्तनवयज्ञािित्त्वं च। िर्ाच मदाि्ो नवज्ञािनमदात्यनम क्तवय्नम ि मदािोभावजि
ज ायरमदााित्वाि ् मदािोरूि जनन्द्ररिज्जन्यवृनत्तनवषरा ि ित्त्वनवषरा इनि ि िनिङ्गनमदानि भावाः।
वृत्त्
भागवानचभक्तशब्दाि ् िस्यजचनमदानि ्म्बन्धमदाात्रजऽनम कृ िज भाक्तो भागनवषर इनि न्द्ध्यिीनि
्
ध्यजरमदा॥9॥
्
आत्मानधकरममदा॥2-3-10॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ ज्ञोऽि एव ॐ ॥ 2-3-11-236 ॥
म नवरोधमदाक्त्व
एवमदानधभूिानधचैवब्रह्मनवषरश्रत्य म ा इिाः िरमदाािाच्मदाान् ्ीवश्रत्य
म नवरोध उच्यिज। अत्र
म श्च ॐ ॥ 2-3-11-237 ॥
ॐ रक्तज
मय त्वाच्चजत्यर् याः। िराधीिचजहरूिनवशजषावान्लक्षमोत्पत्तजरुििन्नत्वानचनि भावाः।
िादृशस्यानि ्िजरक्त
चजहोत्पनत्तनिनमदात्तनवरोध् म रावचात्मजत्यत्र निरन्ष्यिज। एवंरूि्ििज्ीवज नवरन्नरजि न्द्धावप्यत्प
म नत्त
् ॥ 2-3-12-238 ॥
ॐ उत्क्रानतु गत्यागिीिामदा ॐ
म षे आत्मा’ इनि ्ीविनरमदाामश्रत्य
अत्र ‘व्या्ा ्रमात्मािाः’, ‘अम्रम म नवरोध उच्यिज। ज्ञ इत्यन्।
अमनम रनि वक्ष्यमदाामं हजिबम लािा अन्वजनि। ्ीवोऽमरुम त्क्रानतु गत्यागिीिां हजिि
ू ां ्काशानचनि शजषाः।
उत्क्रान्त्यानचमदात्त्वानचनि रावि।् ‘्ोऽस्माच्छरीरादुत्क्रम्यामदा ं म लोकं म ानचमदां
गच्छत्यमदाष्म
लोकमदाागच्छनि’ इनि श्रिम िा्ां श्रिम त्वाि।् व्या्स्य िचरोगाि ्
मदाध्यमदािनरमदाामत्वजऽप्यनित्यत्वाित्तजरुक्तत्वाचमरम वज । व्या्स्यािीशस्य
म स्यानि ्त्त्वानचनि भावाः॥
भूमदाज्योनिि यररोरुत्क्रान्त्याद्यमनक्ताः अक्षरिरन्यारजिामत्व
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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प्र्ङ्गादुत्क्रान्त्याचजाः िरारत्तिामदााह —
म ् ॥ 2-3-12-240 ॥
िनज रनि चजन्निज रानधकाराि ॐ
ॐ िामरिच्छ्रम
ज्ञोऽमिम य। अिच्छ्रमिाःज । ‘व्या्ा ्रमात्माि’ म श्रिम ाःज ।
इत्यिमत्व उत्क्रान्त्यानचकं िम
य िरत्वानचनि रोज्यमदा।् कमि एवनमदात्यि इिरानधकाराि।्
मदािोगिमदाात्मन्यिम चरयि इनि चजन्न। श्रिम ब्रज ह्म
इिरस्य प्रकृ ि ्ीवनभन्नस्य ब्रह्ममोऽनधकाराि।् ‘आत्मजचं ्ृ्नि’ इनि प्रकरमाि ् आत्माि इनि
बहवचिबाधिजि ब्रह्मिरत्वनमदात्यर् याः॥
म इत्यि आह —
अनधकारमदाात्रजम ि बहवचिश्रनम िबाधो रक्त
् ॥ 2-3-12-242 ॥
ॐ अनवरोधश्चन्दिवि ॐ
म ऽज िीत्यन्वजनि।
ज्ञस्यामत्व अनवरोधो चजहव्याप्त्यनवरोधाः चन्दिवि ् चन्दिनबन्दुवि।्
मय ि इनि
एकचजशिनििहनरचन्दिनबन्दोाः स्वांशाःै शरीरव्यान्ाः। ििज्ज्ञस्यानि स्वांशचै हे व्यान्रज्य
म ‘अममदा
भावाः। चन्दिजत्यक्त्या म ात्रोऽप्यरं ्ीवाः’ इनि स्मृनिाः ्ूनचिा॥
उक्तमदाानक्षप्याह
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ अवनस्थनिवैशष्य म
ज ानचनि चजन्नाभ्यिगमदााद्धृनच नह ॐ॥2-3-12-243 ॥
चन्दिस्यजत्यन्। चन्दिनबन्दोचेहज क्वनचि ् ्म्यगन्यत्रा्म्यनगत्यवस्थािवैशष्य
ज ाच ् व्याप्त्यरोगजऽनि
म ा चजह व्यान्नरनि चजन्न। अभ्यिम गमदााि ् ज्ञस्याप्यवनस्थनिवैशष्य
ज्ञस्य िचभवान्न रक्त ज स्यजत्यन्वजनि। हृनच
हीनि श्रनम िप्रिीकोनक्ताः। ‘हृनच ्रमजष आत्मा’ इनि म त्य
श्रत्य ज र्ाःय । ज्ञस्यानि हृनच
् वैषम्यनमदानि भावाः।
्म्यगन्यत्रा्म्यगवनस्थत्यभ्यिम गमदााि ि
्
्रम ामामदांशिस्थात्वजऽप्यन्यजषां िचभावाि प्रकारातु रज
म चजहव्यान्मदााह —
म
ॐ गमािाऽऽलोकवि ् ॥ 2-3-12-244 ॥
ॐ
अमोरनि ज्ञस्य म ानच्चद्ग ममाद्दहज व्यान्रालोकवि।्
गम आलोकस्य चीिाचजाः स्वरूि जम
म िज ावरकानचव्यान्ाः। िर्ा ज्ञस्य स्वरूि जम हृनच नस्थिस्यानि
चीनिकाचावप्यजकत्रावस्थािजऽनि प्रकाशगम
म ानचत्यक्त्या
नचद्ग ममिज चजहज व्यान्नरनि ।गम म ‘नचद्ग ममस्य स्वरूित्वात्तद्व्यान्श्च’ इनि स्मृनिाः ्ूनचिा।
म ीवानभन्नस्य नचद्ग ममस्य कर्ं व्यान्नरत्यि आलोकवनचत्यक्तमदा
अम् म ॥12॥ ्
्
व्यनिरजकानधकरममदा॥2-3-13॥
्
ॐ व्यनिरजको गन्धवि िर्ा च चशयरनि ॐ ॥ 2-3-13-245 ॥
अत्र म नवरोध
ज्ञस्यैकरूित्वािजकरूित्वश्रत्य उच्यिज। ज्ञस्यजत्यन्। अंशनै रनि शजषाः।
य ाः। िर्ाऽमोरनि िचंशव्य
िर्ाशब्दोऽमोरिीत्यर्क ै नय िरजको भजचोऽन्। रिा व्यनिरजको नवभागाः।
म गन्धस्य
बहरूित्वमदा्ीत्यर्ाःय । अत्यतु भजचहीिस्य भजचोऽ्म्भानवि इत्यिो गन्धवनचनि। रर्ा िष्प
म क्त
स्वांशनै वयभाग्र्जनि। िर्ा च ‘् िञ्चधा ््धा चशधा’ इनि श्रत्य म नमदानि भावाः।
म ं बहरूित्वं रक्त
कमिाः? चशयरनि। ‘अर् ैक एव ्ि ् गन्धवद्व्यनिनरच्यिज अर् ैकीभवत्यर् बह्वीभवनि॥’ इनि श्रनम िाः।
चशब्दाि ् ‘अनचन्त्यरजशशक्त्य ैव’ इनि स्मृनिश्च। रिोऽि इनि नभन्नांशशून्यत्वजऽनि ज्ञस्य
रोगारानधिजश्वरप्र्ाचरत्तरोग्म्पचांशनवभाग्म्भवजि बहरूित्वोिित्तजाः। ् एकधा ि
ज रूित्वश्रिम ाःज स्वरूि ैक्यिरत्वानचनि भावाः। श्रनम िाः स्मृनिश्च िर्ा चशयरिीनि वा
््धजत्यक
िर्जत्यस्यान्वराः॥13॥
्
िृर्गम िम चजशानधकरममदा॥2-3-14॥
् ॥ 2-3-14-246 ॥
म शाि ॐ
ॐ िृर्गिचज
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ िद्गम्ारत्वाि
म ि् म िद्व्यिचजशाः प्राज्ञवि ॐ
् ॥ 2-3-14-247 ॥
म िराः। ्ाराः स्वरूिमदा।् िद्व्यिचजशो
ज्ञस्यजत्यन्वजनि। िनचनि स्वात्मोच्यिज। िद्ग ममशब्दाः िद्ग मम्दृशगम
म स्वरूित्वाचजव। ि त्वभजचाि।् प्राज्ञवि ् प्राज्ञस्य
म ्दृशािन्दानचगम
ज्ञस्य िराभजचव्यिचजशाः िरमदाात्मगम
म स्वरूित्वात्तिनचत्यर् याः।
ब्रह्ममो रर्ा ‘्वं खनल्वचं ब्रह्म’ इनि ्गचभजचव्यिचजशो ्गद्ग मम्दृशगम
म रै क्त
ू गम
‘्वयभि मय चैवं त्वं ज्ञािमदाम हयन्’ इनि, ‘गामदाानवश्र च भूिानि धाररानमदा’ इनि
म ्दृशगम
भूम्यानचगिधारकत्वानचगम म ात्मकत्वोक्तज ् यगद्ग मम्ारत्वं प्राज्ञस्य बोध्यमदा।् शास्त्रस्य
्चनधकानरकिरा म रोग्रािामदािािन्दानचरूित्वजऽनि
मदाक्य िाि ् प्रनि
मय ज नि ध्यजरमदा।् ्ूरक
ित्त्वमदा्ीत्यिक्तजम ्द्ग मम्ारत्वाद्यनम क्तरक्त ्
य ानचवनचत्यिजिागित्वं ित्रैव व्यक्तमदा॥14॥
्
रावचनधकरममदा॥2-3-15॥
्
ॐ रावचात्माभानवत्वाच्च ि चोष्द्दशयिाि ॐ॥2-3-15-248॥
अत्र म
्ीवस्वरूिाित्पनत्तिदुिाध्य म नत्तश्रत्य
त्प म त्त
म ोरुिाध्यत्प म
्ीवाित्प्त्यनरोगानचनि प्रा्नवरोधो
म रज। चशयिाच्चजत्यन्वजनि। उिाधजश्चनज ि वा। ज्ञस्यजत्यन्। आत्मजनि ब्रह्मोच्यिज। ज्ञस्य
निरस्यिज। चाः ्मदाच्च
्ीवस्य िदुिाधजश्च रावचात्मभानवत्वाि ् रावत्परमदाात्मभानवत्वान्न चोषाः। ‘्ोऽिानचिा िण्रज
म ि
म
िाि जिािबद्धाः’ म
इत्यानचिाऽिानचिण्रानच्म्बन्धबोधकश्र म प्रामदााण्रचोषज िजत्यर् याः। कमिाः? िद्दशयिाि ्
त्य
स्मरमाच्च। ‘नित्याः िरो नित्यो ्ीव’इनि श्रिम ाःज , ‘आत्मा नित्याः ्ख
म दुाःखज त्वनित्यज’ इनि
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
ं म ानधकरममदा॥2-3-16॥
िस्त्व
् ॥ 2-3-16-249 ॥
ं म ानचवत्त्वस्य्िोऽनभव्यनक्तरोगाि ॐ
ॐ िस्त्व
म ानचरूित्विचभावश्रत्य
अत्र ज्ञस्य ्ख म नवरोध उच्यिज। िरम वज । अस्यजनि िद्ग मम्ारत्विरामदाशाःय ।
रोगाि ् ् म
दुाःखानिमदाक्त आिन्दीभविीत्यानच व्यिचजशस्योिित्तजनरत्यर् याः।
ं ाचजरौविजऽनभव्यक्तज िायर ं प्राक ् िमदााि
अित्योत्पनत्तशनक्तरूििूस्त्व म ् इचािीं िमदाानित्य
म म र्ा एवं
नक्तरय
ज्ञस्वरूिािन्दाचजरावरमनिवृनत्तरूिव्यक्त्या म
‘दुाःखानिमदाक्त आिन्दीभवनि’
ज च्छ्रनम िनवरोधजि ‘नवज्ञािात्मा ्ह चजवश्च
इत्याद्यमिित्तजरि ै ्वैाः ् आिन्दाः’ इत्यस्याप्रामदााण्रािाित्तजज्ञो
ज्ञािािन्दानचरूि एवजनि भावाः। ्ि एवजत्यर् यकिम् म िूविय क्षद्योििार। म
अभीत्यनक्ताः
््म ावािन्दाचजव्यक्त म ानवव ि ्म्यक।् िजि ्ाऽनि ि व्यिचजशहजिनम रनि ि शङ्क्यनमदानि
य ावनि मदाक्त
आह —
म
ॐ नित्योिलब्ध्यििलनब्धप्र्ङ्गोऽन्यिरनिरमदाो वाऽन्यर्ा ॐ ॥2-3-16-250 ॥
अस्यजत्यन्। नत्रनवध्ीवरानशिरो ज्ञशब्दश्च। अन्यिरजनि म िरं
प्रागक्त गृ्रमिज।
स्वाप्यर्म्प्त्यनोरन्यिरजत्यत्रजव वाशब्दो व्यवनस्थिनवकल्पार् याः। अन्यर्ा आवरमािङ्गीकारज ज्ञािां
मदानम क्तरोग्रािां िमदाोरोग्रािां च ्ीवािामदास्यािन्दानचरूित्वस्य रर्ाक्रमदां नित्योिलब्ध्यििलब्ध्योाः
म
प्र्ङ्गाः ्िां म
निरमदाािन्दािभवाः स्याच्िां म
नित्यमदाािन्दाद्यििलनब्धाः स्याि ।्
म
आिन्दाद्यििलनब्धिचज म उच्यिज। अ्रम ा इत्याचानवव। नित्यं दुाःखािभवाः
ि िनिरुद्ध दुाःखािभव म स्याि ्
इत्यर् याः। मदाध्यमदा्ीवािं त्वन्यिरनिरमदााः स्याि।् ्ख
म दुाःखोभरािभवाः
म स्यानिनमदाश्रत्वात्तजषानमदात्यर् याः।
म
आवृिरज भावजऽिभावाभावारोगानचनि म ा।
भावाः। िद्ग ममनज ि ्िां प्रकृ ित्वाद्भावत्वाच्चोिलनब्धाः प्रागक्त
म
िदुभरजनि वाच्यजऽन्यिरजत्यनक्ताः म दुाःखरोरजकािभवकाल
्ख म म
एवान्यिरािभवाः ्ाम्यजि स्यानचनि
चशयनरिमदाम ।् म
िदुभरजत्यक्त कालभजचिज त्य
ज नि प्रिीरजिनज ि कज नचि।् नित्यजनि मदाध्यमदािरमदा।्
म कज॥16॥
अन्यिरजत्यत्तमदााधमदािरनमदात्यज
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
य ानधकरममदा॥2-3-17॥
किृत्व
् ॥ 2-3-17-251 ॥
ॐ किाय शास्त्रार्यवत्त्वाि ॐ
अत्र ‘रत्कमदाय कमरुिज िचनभ्म्पद्यिज’, ‘िान्याः किाय’ इनि ्ीवकिृत्व
य ाकिृत्व म नवरोध उच्यिज। ज्ञ
य श्रत्य
इत्यन्। ज्ञाः किाय। शास्त्रार् यवत्त्वाि ् नवनधनिषजधरूिशास्त्रस्यार् यवत्त्वाि।् अन्यर्ा शास्त्र्ार् यक्यं ि
म ािां िचनवषरत्वानचनि भावाः॥
स्यानचत्यर् याः। ्डजशमदाक्त
य ऽज नि काल्पनिककिृत्व
ज्ञस्याकिृत्व य िज शास्त्र्ार् यक्यमदानस्त्वत्यि आह—
् ॥ 2-3-17-252 ॥
ॐ नवहारोिचजशाि ॐ
य वाि।् ‘्क्षि ् क्रीडि ् रमदामदाामाः स्त्रीनभवाय राि ैवाय’ इनि मदाक्त
ज्ञाः किैव ि कनल्पिकिृत्व म
य ोिचजशानचत्यर् याः॥
नवहारकिृत्व
् ॥ 2-3-17-253 ॥
ॐ उिाचािाि ॐ
ज िज ्ाधिाद्यमिाचािाि ् उिाचािप्रिीिजज्ञाःय कत्रैवत्य
मदाोक्षाद्यमद्दश ज र् याः। प्रत्यक्षन्द्धत्वाि ् किृत्व
य ं ि
काल्पनिकनमदानि भावाः।
म
एवं शास्त्र्ार् यक्यान्यर्ाििि्त्यना म ाऽप्याह —
य ं प्र्ाध्य श्रत्य
प्रत्यक्षजम च किृत्व
एवमदाक्षरनम क्तश्रनम िभ्यो ज्ञाः किाय चजि ् कर्ं ‘िान्याः किाय’ इनि श्रनम िाः, ‘इिर’ इनि ्ूत्र ज प्राक ्
य निरा्श्चजत्यि्चाशरमदााह —
किृत्व
ॐ उिलनब्धवचनिरमदााः ॐ ॥ 2-3-17-255 ॥
म िं ्गम न्धं ्ख
नक्ररारानमदात्यन्। उिलब्धावनिरमदाो रर्ा एवं नक्ररारामदानिरमदा इत्यर् याः। इचं ्रू म रूिं
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥ 2-3-17-256 ॥
ॐ शनक्तनविरयराि ॐ
ज रा ज्ञस्य नविरयराचल्पशनक्तत्वाचस्वािन्त्र्यनमदानि शजषाः॥
ईशशक्त्यिक्ष
इिश्चास्वािन्त्र्यनमदात्याह —
ॐ ्मदााध्यभावाच्च ॐ ॥ 2-3-17-257॥
्मदाानधरलम्बनम द्धाः। िचभावाच्चािूमक
य ामदात्वाच्चास्वािन्त्र्यं ज्ञारि इत्यर् याः। ििश्चानिरमदा इनि िरम्पररा
इमदा हजि ू बोध्य ॥
िि म ज्ञस्यस्विन्त्रकिृत्व म
य ज कर्ं किेत्यनक्ताः। स्विन्त्राः खलु किेत्यि आह—
म
ॐ कृ िप्ररत्नािजक्ष्नवनहिप्रनिषज
धावैरर्थ्ायनचभ्याः ॐ॥ 2-3-17-260 ॥
। कृ िनमदानि कमदाोच्यिज। प्ररत्नजत्यिम लक्षममदा।् आनचिचाचवैषम्यानच गृ्रमिज।
िरम वज । िर इत्यिषज्यिज
म
18-261 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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इिश्च ैवनमदात्याह —
् ॥ 2-3-18-262 ॥
ॐ मदान्त्रवमायि ॐ
अि जराकाष याः। ‘िाचोऽस्य नवश्वा भूिानि’ इनि श्रिम श्च
ज ज्ञाः िरस्यांश इत्यर् याः। िाचोऽम्श
य ाि॥्
इत्यजकार्त्व
इिश्च ैवनमदात्याह —
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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िरो मदात्स्यानचरूिी िरमदाात्मा एवं नभन्नांशो िजत्यर्ाःय । कर्ं प्रकाशानचवि ।् प्रकाशाद्यनभमदाानिवि।् रर्ा
प्रकाशाः कालाग्न्याद्यनभमदाािी खद्योिानभमदाानिवन्न।
कालाग्न्याद्यनभमदाानिि्ज्ो्लिृनर्व्यनभमदाानिवह्न्याचजरनभन्नांशत्वाि,् खद्योिानभमदाानििां िम
नभन्नांशत्वाि।् िर्ा मदात्स्याचजाः िरमदाात्मस्वरूित्वाज्जीवस्य ि म नभन्नांशत्वान्न िरोाः ्ाम्यनमदानि।
एिजिािंशत्वश्रनम िाः स्वरूिांशत्वनिषजधिरजत्यक्त
म ं भवनि।
ॐ स्मरनतु च ॐ ॥ 2-3-18-265 ॥
्ीवस्य नभन्नांशत्वं मदात्स्याचजरनभिांशत्वमदा।् स्मृनिकिायर इत्यर् याः। ‘एिज स्वांशकलााः ि्
ं म ाः कृ ष्ण् म
्
भगवाि स्वरमदा ’् इनि स्मृि । िूव य वराहाचज्ीवस्य च ‘्गृहज ि रुषं रूिमदा’् इत्यानचिा ‘ऋषरो मदािवो
म ा एिज ि्
चजवा’ इत्यानचिा च नवष्ण्वंशत्वमदाक्त्व ं म ाः िरुषस्य
म स्वरूिांशनवभागााः कृ ष्ण् म कृ ष्ण एव
मदाूलरूप्यजव इनि वराहाचजरनभन्नांशत्वं, ्ीवािां ि म ‘अिाः िरं रचव्यक्तमदा’् इनि स्मृि नभन्नांशत्वं, िर्ा
म
ॐ अिज्ञािनरहार ्
चजह्म्बन्धाज्ज्योनिरानचवि ॐ
॥2-3-18-266॥
म नि ित्पूवक
ज्ञस्यजत्यन्। िरानचत्यन्वजनि। अिज्ञज य प्रवृनत्तरुच्यिज। िनरहारो बन्धनिवृनत्ताः। ज्ञस्य ्ीवस्य
म
चजह्म्बन्धाद्धजिोाः िराचिज्ञािनरहार म नत्तमदाोक्ष ्ाः। ज्योनिरानचवि।् रर्ा ज्योनिषो
ईशािज्ञाधीिप्रवृ
्रमक्ष्यनभमदाानििोऽिभ्रष्टस्य ्जष्मानभमदाानििश्च ित्तद्दजह ्म्बन्धाि ् म
्ूरवय रुमािज्ञरा
ित्तत्प्रवृ्त्यनानच्र्जत्यर्ाःय । उिलक्षममदाजिि।् िरस्य च मदात्स्याचजचहे ्म्बन्धाद्धजिो् ि ् इनि ि ैवं
िर इत्यनि ध्यजरमदा।् कर्मदा?् ज्योनिरानचवि।् ज्योनिषाः प्रभानभमदाानििो अमदाृिाब्ध्यनभमदाानििश्च रर्ा
म
्ूरायद्यिज्ञाधीिप्रवृ
्त्यनानचिाय्ीत्यक्ष्याद्यनभमदाानििा ्ाम्यं िान् िर्जनि रोज्यमदा।् िूवं
म
स्वरूिांशत्वनभन्नांशत्वरोाः प्रकाशानचरत्रांश्रिह्या्रमत्वािि म
ह्या्रमत्वरोज्योनिरानच दृष्टातु इनि भजचाः॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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इिश्च ैवनमदात्याह —
ॐ आभा् एव च ॐ ॥ 2-3-18-268 ॥
ज्ञ आभा् एव ईशप्रनिनबम्ब एव। मदात्स्यानच् म ि िर्ा। अिश्चाव्यनिकर इनि रोज्यमदा।् रोगनवभागाः
प्रर्मदाानिचेशश्चोत्तरार् याः॥18॥
अदृष्टानधकरममदा॥् 2-3-19॥
् ॥ 2-3-19-269 ॥
ॐ अदृष्टनिरमदााि ॐ
अत्र ज्ञस्यजशाभा्त्वािाभा्त्विररोाः ‘रूिं रूिं प्रनिरूिो बभूव’ इनि ‘ि ैवांशो ि ्म्बन्ध’ इनि
म ोरनवरोध उच्यिज। आभा् एवजनि ज्ञ इनि चान्। अदृष्टजनि नवद्याद्यमच्यिज। ज्ञ आभा् एव
श्रत्य
ईशप्रनिनबम्ब एव। अदृष्टानिरमदााि ् नवद्याकमदाय्स्क
ं ारानचवैनचत्र्यानचत्यर्ाःय । नबम्बावैनचत्र्यजऽनि
ित्तचीरािाद्यदृष्टवैनचत्र्यजम चजवचािवमदाािवानचवैनचत्र्य्म्भवजि प्रनिनबम्बत्वं म नमदानि
रक्त भावाः।
स्थािनवशजषानचत्यिो वैलक्षण्रं ित्रैव वक्ष्यिज॥
रागानचवैनचत्र्याचजव प्रनिनबम्बवैनचत्र्यमदानस्त्वत्यि आह —
् ॥ 2-3-19-270 ॥
ॐ अनभ्न्ध्यानचष्वनि च ैवमदा ॐ
अनभ्नन्धनरच्छा। रागिजषमदाोहानचचोषजष्वप्यजर ं वैनचत्र्यमदा।् अदृष्टानिरमदााि।् ि कज वलमदााभा्
इत्यि जरर्ाःय । रागानचवैनचत्र्यं ज ारां
कर्नमदात्यिक्ष म व्यत्वानचनि
िस्यैवाि्िय भावाः।
म ीरिज।
िूविय वू रय ागानचवैनचत्र्याचजव िचनस्त्वत्यि उक्तं चजनि। प्रनिक्षमं वैनचत्र्यं चजनि ्मदाच्च
रागाद्यवैनचत्र्यजऽप्यजकनस्मि ि् नं म ् प्रनिक्षमं दृश्रमदाािं वैनचत्र्यमदादृष्टानिरमदााचजव वाच्यनमदात्यर् याः॥
् ॥ 2-3-19-271 ॥
ॐ प्रचजशानचनि चजन्नातु भायवाि ॐ
एवनमदात्यन्।‘स्वगायनचप्रचजशावैनचत्र्याचजवं वैनचत्र्यमदााभा्स्यानस्त्वनि चजन्न। अतु भायवाि।्
ििैनचत्र्यस्याप्यदृष्टवैनचत्र्य एवातु भायवानचत्यर् याः। निनि यनमदात्तं ििैनचत्र्यारोगानचनि भावाः॥19॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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रावनिकारनन्त्वत्यक्त म िम िज राऽकाशाचजरुत्पनत्तश्रत्य
म रक्त्य म ा म
अित्पनत्त श्रनम िगौमी चजि ्
मय
ि्रमिाचािाभावानचर म िम जिरा प्रामाद्यित्पनत्तश्र
क्त्य म म ा िचनित्यत्वनश्रगौमीनि शङ्कां व्यचम न्िमदाम त्र िाचज
त्य
्रनम क्तकश्रत्य
म नवरोध उच्यिज॥
्
प्रामानधकरममदा॥2-4-1॥
् ॥ 2-4-1-273 ॥
ॐ ग ण्र्म्भवाि ॐ
अिानचत्वश्रनम िगौमी, अिानच्ूक्ष्मनज न्द्ररिरा। अ्म्भवाि ् म ािानचत्वा्म्भवाि।्
मदाख्य िर्ा
म ा ्म्भवानचत्यर्ाःय । निरुिाचाित्वानचत्यनधकाशङ्कानिरा्ार ग मीनि
‘एिस्माज्जारिज’ इत्यानचश्रत्य
म ग मत्वाचन्यादृशग मत्वोक्त्यर् यमदारं रोग इनि कज नचि॥्
ििम रोगाः। प्रागक्त
इिश्च ैवनमदात्याह —
म
ॐ प्रनिज्ञाििरोधाच्च ॐ ॥ 2-4-1-274 ॥
म
‘इचं ्वयमदा्ृ्ि’ इनि प्रनिज्ञाि्ाराच्च प्रामा उत्पनत्तमदातु इत्यर् याः। ‘् प्राममदा्ृ्ि’, ‘् प्रामाि’,्
‘एिस्माज्जारिज प्रामाः’ इत्यानचनवशजषश्रिम ाःज ‘प्रामा एवािाचर’ इनि ्रनम क्तक नवशजषश्रनम ििाः प्राबल्यार्ं
म ्ामदाान्यश्रनम िस्मारमारारं रोगाः॥1॥
प्रागक्त
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
मदािोनधकरममदा॥2-4-2॥
ज ॐ ॥ 2-4-2-275 ॥
ॐ ित्प्राक्ष्रमिश्च
अत्र ‘मदािाः ्वेनन्द्ररानम च’, ‘नित्यं मदािोऽिानचत्वाि’् इत्यिरोमदायिो्म जा्म जश्रत्य
म ोरनवरोध
्वेनन्द्ररानम च’ इनि म
िस्योत्पन्नत्वजि श्रवमानचत्यर्ाःय । चशब्दोऽिक्त्मदा म रज। िचित्पनत्त
च्च म
य त्वािाचाः ॐ॥ 2-4-3-276 ॥
ॐ ित्पूवक
् िं मदािाः िूवं कारमं रस्या्स्या
म नवरोध उच्यिज। वाचो वानगनन्द्ररस्य िि प्रकृ
अत्र वाग््म जा्म जश्रत्य
भावाः। िस्माि ् ित्पूवक
य त्वाि ् ‘मदािाः िूवरू म ररूिमदा’ ् इनि श्रिम ाि ् मदािाःकारमत्वाच ्
य िं वागत्त
म नत्तमदािीत्यर्ाःय ।
वागत्प ‘वाग्वाव नित्या ि ्रमजषोत्पद्यिज’ इनि श्रनम ि् म नित्यवजचोच्चारमरोग्रत्वाच ्
ग मीनि भावाः॥3॥
्
््गत्यनधकरममदा॥2-4-4॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥ 2-4-4-278 ॥
ॐ ह्ाचर् म नस्थिजऽिो ि ैवमदा ॐ
म ाि ् कमदाोच्यिज। निवृत्तमदानि प्रवृत्त्ारूप्याच ् ग ण्रा वृ्त्यना नस्थििचजि
नस्थि इनि बन्धनस्थनिहजित्व
ै क्षण्रद्योिकाः। ह्िाचिारगम ्रम
गृ्रमिज। िवम ल म वाच् म नस्थिज कमदायनवषरज कमदाायर्ायनि। अिाः
ॐ अमवश्च ॐ ॥ 2-4-5-279 ॥
म ािमत्व
अत्र प्रामामत्व म श्रत्य
म नवरोध उच्यिज। प्रामा इत्यन्। प्रामा अमव्ज््ा व्या्ाश्चजत्यर्ाःय ।
िर्ा च ‘अमनम भाः िश्रनि’ इनि श्रत्य म िम िज ‘नचवीव चक्षरम ाििमदा’् इनि श्रनम िाः ि
म ा दूरश्रवमानचरक्त्य
ॐ श्रजष्ठश्च ॐ ॥ 2-4-6-280 ॥
म नवरोध उच्यिज। श्रजष्ठश्च प्राम उत्पनत्तमदााि ्ि कज वलं प्रामा इनि चार् याः।
म प्राम्म जा्म जश्रत्य
अत्र मदाख्य
‘आत्मि एष प्रामो ्ारिज’ इनि श्रनम िाः। ‘रत्प्रान्ाः’ इनि स्मृत्यक्त्वोत्पनत्तमदाृ
म म िम िज ा ‘ि ैष
म रक्त्य
निहजित्व
प्राम उचजनि’ इनि श्रनम िश्च स्थूल्ूक्ष्ममदाख्य
म प्रामनवषरजनि भावाः। ‘एिजि मदाािनरश्वा’ इत्यत्र
म ि जमोत्पत्यक्त
बा्रमवाररू म ावनि ्वयमदात्य म नत्तरत्रोच्यि इनि ध्यजरमदा।्
ू नत्तहजििम ा प्रामरूि जमाप्यत्प
ृ त्प
म
ॐ ि वारनक्ररज म िचज
िृर्ग ् ॥ 2-4-6-281 ॥
म शाि ॐ
म ष्टज ारूिनक्ररज ि भविाः। कमिाः? ‘् प्राममदा्ृ्ि’ इत्यक्त्वा
प्रामोत्पनत्तश्रनम िस्थाः प्रामो बा्रमवारच म
म
ॐ चक्षरानचवि ि् म ित्सहनशष्ट्यानचभ्याः ॐ ॥ 2-4-7-282 ॥
म नवरोध उच्यिज। श्रजष्ठ इत्यन्। िरम वज । श्रजष्ठो मदाख्य
अत्र श्रजष्ठस्वािन्त्र्यास्वािन्त्र्यश्रत्य म प्रामााः
चक्षरम ानचवचजव। चक्षरम ानच रर्जशाधीिं िर्ाऽरमदानि ईशाधीि इनि लभ्यिज। एवजत्यत्प
म त्तानवव
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ िञ्चवृनत्तमदायिोवद्व्यिनचश्रिज ॐ ॥ 2-4-8-284 ॥
म नवरोध उच्यिज। श्रजष्ठ इत्यन्। श्रजष्ठाः िञ्चवृनत्ताः िञ्च
अत्र प्रामािािाचजाः श्रजष्ठस्वरूित्विद्दा्त्वश्रत्य
वृत्तराः प्रामािािव्यािोचाि ्मदाािाख्यरूिानम रस्य ् िर्ा प्रामानचिञ्चस्वरूिवानित्यर् याः।
उिलक्षममदाजिि।् प्रामानचिञ्चचा्वानित्यनि बोध्यमदा।् कमिाः? मदािोवि।् रर्ा मदािाः
म ििाख्यस्वरूिवि,् िज्जन्यमदािाःप्रभृनिवृनत्तिञ्चकवच्च ििि ् श्रजष्ठोऽनि वगयिरवाि ्
मदािोबद्ध्यहङ्कारनचत्तचज
व्यिनचश्रिज ‘अर् िञ्चवृ्त्यन ैिि ् प्रवियि’ज इनि श्रिम रिोऽि इनि रोज्यमदा।् ‘्वे वा एिज मदाख्य
म चा्ा’
म ॐ ॥ 2-4-9-285 ॥
ॐ अमश्च
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म ािमत्व
अत्र श्रजष्ठस्यामत्व म श्रत्य
म नवरोध उच्यिज। श्रजष्ठ इत्यन्। अमश्च
म अमव्य
म ाय्श्चजनि चार् याः। अतु ाः
म ि जम व्या् इनि भावाः। अिाः ‘प्राम एवाध्ाि’् इनि श्रिम ाःज ‘प्रामो वा
प्रामरूि जमाममाः, बनहवायररू
ज्योनिराद्यनधकरममदा॥् 2-4-10॥
् ॥ 2-4-10-286 ॥
ॐ ज्योनिराद्यनधष्ठािं ि म िचामदाििाि ॐ
अत्र चक्षरम ाचज्ीवजशकरमत्वश्रत्य
म नवरोध उच्यिज। िरम जव। िनचनि व्य्ं ्मदा्ं च।
ज्योनिरानचत्यावृनत्ताः। ज्योनिरानचाः अनधष्ठािं रस्य ् िर्ा, िनन्नरामदाकनमदानि रावि।् ‘रोऽि निष्ठि’,्
‘र्ज्न् निष्ठि’ ् इत्यानचश्रिम ाःज अग्न्यानचरूिज्योनिराद्यनधष्ठािं रच ् ब्रह्म ित्त म िचजव ज्योनिराद्यनधष्ठािं
ज्योिीरूिचक्षरम ानचनिरामदाकं , ित्कारमनमदानि रावि।् कमिाः? िचामदाििाि ् िस्य चक्षरम ाद्यनधष्ठािृत्वस्य
‘रश्चक्षनम ष निष्ठि’ ् इत्यानचिा आमदाििानचत्यर्ाःय । ब्रह्मजत्यवज वाच्यज रचग्न्यानचरूिज्योनिराद्यनधष्ठािनमदानि
ब्रह्मनवशजषमोनक्ताः ब्रह्ममोऽग्न्यानचरूिभूिप्रजरकत्वाि ् िचंशभूिचक्षरम ाचजरनि िस्यैव प्रजरकत्वनमदानि रनम क्तं
् ॥ 2-4-10-287 ॥
ॐ प्रामविा शब्दाि ॐ
प्रामा इनन्द्रराण्रस्य ्तु ीनि प्रामवाि ् ्ीवाः िजि। िनचत्यन्। िच ् ब्रह्म प्रामविा ्ीवजि कत्राय
स्वकरमैाः चशयिानच काररनि। ‘एष ्रमिजिात्मिा चक्षषम ा चशयरनि’ इत्यानचशब्दानचनि रोज्यमदा।्
करमािामदािीशप्ररोज्यत्वजऽनि ्ीवस्य िचारत्तकिाःमय कमदाय्ाधित्वाि ् ित्परा श्रनम िनरनि भावाः।
म िरोधाि
श्रत्य म ्
आत्मिजनि म उत्तररोगज प्रामित्सम्बन्धरोरन्वरार्ाय।
्ीवजि जनि वा वाच्यज प्रामविजत्यनक्ताः
् ॥ 2-4-10-288 ॥
ॐ िस्य च नित्यत्वाि ॐ
म ीरिज। िरोरनि प्रामवनचनि
िस्य प्रामविो ्ीवस्य। चशब्दजि प्रामािं ित्सम्बन्धस्य चजनि ्मदाच्च
्नन्नधानिित्वाि।् ्ीवप्रामित्सम्बन्धािां नित्यत्वानचत्यर्ाःय । ्ीवकरम्म्बन्धस्य नचरकालीित्वाि ्
्ीवकरमत्वश्रनम िरुिचनरिार्ेनि ‘ब्रह्ममो वा एिानि करमानि’ इनि श्रत्य
म नवरोध इनि भावाः।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥ 2-4-11-289 ॥
ॐ ि इनन्द्ररानम िद्व्यिचजशाचन्यत्र श्रजष्ठाि ॐ
म नवरोध उच्यिज। ि इनि प्राक ् चशब्दोक्तााः प्रामा उच्यतु ज।
अत्र श्रजष्ठस्यजनन्द्ररािीनन्द्ररत्वश्रत्य
म प्रामाचन्यज िज प्रामा इनन्द्ररानम, ि श्रजष्ठाः। कमिाः? िद्व्यिचजशाि ् िस्य
श्रजष्ठाचन्यत्र मदाख्य
म प्रामस्त्वनिनन्द्ररमदा’् इनि व्यिचजशानचत्यर् याः।
श्रजष्ठाचन्यजषानमदानन्द्ररत्वस्य ‘िाचश वजनन्द्रराण्राहाः। मदाख्य
श्रजष्ठोऽनिनन्द्ररनमदानि वाच्यज श्रजष्ठाचन्यत्रजत्याद्यमनक्ताः श्रजष्ठाचन्यजषानमदानन्द्ररत्वं श्रजष्ठस्य त्वनिनन्द्ररत्वं, ‘प्रामा
वा इनन्द्ररानम’ इनि ्ामदाान्यश्रनम िाः श्रजष्ठाचन्यप्रामनवषरजनि ्ूचनरिमदाम ।् अि एवान्यत्रजनि ््म्यनम क्ताः।
् रम ाचजरनि िन्न स्याि,् ईशवशत्वानवशजषानचत्यि आह —
एवं च श्रजष्ठोऽनिनन्द्ररं चजि चक्ष
ॐ वैलक्षण्राच्च ॐ ॥ 2-4-11-291 ॥
प्रामािां श्रजष्ठस्य च ्ीवप्ररत्नाधीित्विचिधीित्वरूिवैलक्षण्राि ् क्रमदााि ् प्रत्यक्षश्रनम िभ्यां न्द्धं ि
एवजनन्द्ररामीत्यर्ाःय । प्रामािां प्रवृत्ताःज ्ाह्यत्यजव भावजि ््म ावभावजि ्ीवारत्तत्वं प्रत्यक्षन्द्धमदा।् श्रजष्ठस्य
ि म ‘प्रामािर एवानस्मि ि् रजम ्ाह्यनि’ इनि श्रत्य ्
म ा चशब्द्ूनचिरा न्द्धनमदानि ध्यजरमदा॥11॥
्
्ङ्ज्ज्ञामदाूत्य यनधकरममदा॥2-4-12॥
्
ॐ ्ङ्ज्ज्ञामदाूनियक्लृन्् म नत्रवृत्कमवयि उिचजशाि ॐ॥2-4-12-292॥
म नवरोध उच्यिज। िरम वज । मदाूनियचहे ाः। उिलक्षममदाजिि।् ्ंज्ञामदाूत्योाः
अत्र िामदारूिरोाः नवनरञ्चजश्ृष्टत्वश्रत्य
िामदाप्रिञ्चचजहानचरूिप्रिञ्चरोाः क्लृन्ाः ्ृनष्टनस्त्रवृत्कमवयि एव। त्रीनम िज्ोबन्नानि वृमोनि नमदाश्ररिीनि
नत्रवृि।् भावप्रधािमदा।् भावज नक्वबतु ं वा। िज्ोऽबन्नािां नमदाश्रमं कमवयिो नवष्णोरजव ि नवनरञ्चाि।् कमिाः?
उिचजशाि।् ‘्वायनम रूिानम नवनचत्य धीरो िामदाानि कृ त्वा’ इनि श्रिम नज रत्यर्ाःय । ‘नवनरञ्चो वा इचं ्वं
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
मदाां्ानधकरममदा॥2-4-13॥
इनि भावाः।
ज ाि ि् म ििाच्िाचाः ॐ ॥ 2-4-13-294 ॥
ॐ वैशष्य
ज ाि ् ििाचाः भ मदात्वानचनवशजषवाच इत्यर् याः। निरुनक्तरुक्त्वायवधारमार्ाय॥
भूम्यानचभूि्ंरोगवैशष्य
13॥
य मदा् म ॥
म ाः िाचाः ्मदाा्ाः ॥ श्रीकृ ष्णािम
इनि श्रीमदाद्राघवजन्द्ररनिकृ ि िन्त्रचीनिकारां नििीराध्यारस्य चिर्य
नििीराध्याराः ्मदाा्ाः
िृिीराध्याराः॥3॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
िचतु रप्रनिि्त्यननधकरममदा॥3-1-1॥
्
ॐ िचतु रप्रनिित्त रंहनि ्म्पनरष्वक्ताः प्रश्ननिरूिमाभ्यामदा ॐ॥ 3-1-1-295 ॥
म भूििरामदाशयाः। निनमदात्त््मदाी चजरमदा।् ्ीव
अत्र िरज ्ीवस्य भूिानवरोगाः ्ाध्यिज। िनचनि प्रागक्त
इत्यर्ायचन्वजनि। प्र्िम त्वाच ् भूिनै रनि च । ्ीवाः िूवचय हज ं नहत्वा गच्छि ् भूिाःै ्म्पनरष्वक्तो रंहनि
गच्छनि। नकमदार् यमदा।् िचतु रप्रनिित्त चजहातु रप्राप्त्यर् यमदा।् कमिाः? ‘वजत्य रर्ा िञ्चम्यामदााहिावािाः
म
िरुषवच्ो भवनतु ’, ‘इनि ि म िञ्चम्यामदााहिावािाः िरुषवच्ो
म भवनतु ’ इनि प्रश्ननिरूिमाभ्यां ज्ञारि
म
इत्यर् याः। अबिलनक्षिो ्ीवाः िञ्चम्यामदााहि रोनषनि िरुम षवच्ाः िरुष
म इनि िामदावानित्यर्ाःय ।
म
गिावभावज आगि भूि्म्बन्धोक्त्यरोगानचनि भावाः। िचतु रजत्यनक्ताः, भूिगिजाः फलोक्त्यर्ाय। िजि िजषां
चजहभोगचािजि कृ िार्ायिां ्ीवजि ्ह गनिव्य यर्ेनि ि शङ्क्यमदा।् अि एवातु रजत्यनक्ताः।
म प्रा्ानवनि वाच्यज
म
प्रनिित्तानवत्यनक्ताः। रं चजहं प्रनििद्यिज ध्यारत्यतु ज िनमदानि ्ूचिार। ‘रं रं वाऽनि स्मरि’ ्
म
इत्याचजनरत्यजकज। ्म्परीत्यनक्तरामदा नम क्त ित्पनरष्वङ्गोऽस्त्यजवनज ि द्योिनरिमदाम ।् ‘भूिािां नवनिवृनत्त् म
मदारममदा’् इनि स्मृनि् म भागनवषरजत्यह्यज व्यक्तनमदानि भावाः॥1॥
्
त्र्यात्मकत्वानधकरममदा॥3-1-2॥
ॐ त्र्यात्मकत्वाि ि् म भूरस्त्वाि ॐ
् ॥ 3-1-2-296 ॥
अत्र कृ त्स्नभूिनवरोग उच्यिज। अिानमदानि अप्शब्द इनि च शजषाः। िजि िोरन्वराः। रंहिीत्यन्।
ू ाःै ्म्पनरष्वक्तो रंहनि। ि त्वनद्भरजव। ि च प्रश्नानचस्थाप्शब्दनवरोधाः। अिां
्ीवाः ्वयभि
त्र्यात्मकत्वाि ् नक्षनि्लग्न्यात्मकत्वाि ् िदुक्त्या िजषामदाप्यक्त
म ज ाः। त्र्यात्मकत्वजऽनि श्रिम ावप्शब्द् म
म इत्यर्ाःय । नक्षत्यानचिोऽनि बहत्वोक्त्य ै प्रकष यप्रत्यरोनक्ताः॥2॥
भूरस्त्वाचिां बाहल्याच ् रक्त
्
प्रामगत्यनधकरममदा॥3-1-3॥
ॐ प्रामगिजश्च ॐ ॥ 3-1-3-297 ॥
म भूिगनिरजवोिि्त्यना ्ाध्यिज। च् म भूिािां प्रामानविाभाव्मदाच्च
अत्र प्रागक्त म रज। ‘करमैवायव ि
म िज’ इनि श्रिम ्
नवरज्य ज ीवजि ्ह प्रामािां गिजभि म ा
ू य ािां ‘रत्र वाव भूिानि ित्र करमानि’ इनि श्रत्य
म ररं
ै म्पनरष्वक्तो रं हनि ्ीव इत्यर् याः (प्रश्नाच ्ाक्षाच ् भूिगत्यिक्तज
प्रामानविाभूित्वाच्च भूिस्स
रोगाः)॥3॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
अग्न्याद्यनधकरममदा॥3-1-4॥
् ॥ 3-1-4-298 ॥
ॐ अग्न्यानचगनिश्रिम नज रनि चजन्न भाक्तत्वाि ॐ
म
अत्र प्रामगनिरानक्षप्य ्मदार्थ्यि।ज प्रामािानमदात्यिषङ्गाः। िजत्यावियि।ज ‘अनिं वागप्यजनि वािं
प्रामश्चक्षरम ानचत्यं मदािश्चन्द्रमदा्ं नचशाः श्रोत्रमदा’् इनि प्रामािामदाग्न्याचीि ्प्रनि गनिश्रिम िज य प्रामगनि्ीवजि
्हजनि चजन्न। भक्तत्वाि ् भागनवषरत्वाि।् अग्न्यानचश्रिम नज रत्यन्वराः। भूिािामदानि िैरवज गनिज्ञरा।
म
‘िरुषस्य ्
मदाृि ब्रह्मि प्रामा भागि एव ि।म अनधचैवं प्राप्नवनतु
म म
भागिोऽिव्र्नतु िमदा’् इनि स्मृिनज रनि
्
भावाः। भक्तिचं चराचरजत्यत्र व्याख्यािमदा॥4॥
्
प्रर्मदाानधकरममदा॥3-1-5॥
म
ॐ प्रर्मदाजऽश्रवमानचनि चजन्न िा एव ्रमिित्तज
ाः ॐ ॥ 3-1-5-299 ॥
अत्र भूिगनिरानक्षप्य ्ाध्यिज। प्रर्मदा इत्याद्यावियि।ज िजत्यजिच्च। अनििचं नवभज्यान्। ‘एिनस्मन्नि
म
चजवााः श्रद्धां ्ह्वनि’ इनि प्रर्मदाजऽि द्व्याख्यज श्रवमाि ् श्रद्धारक्त
म ्ीवहोमदाश्रवमाि।् प्रर्मदाज
उिक्रमदाजऽश्रवमाि ्भूि्ानहत्याश्रवमाि ् ि भूिाःै िनरष्वक्तो रंहनि ्ीव इनि चजन्न। नह रस्माि ्िा एव
प्र्िम ा आि एव श्रद्धाशब्दजिोच्यतु ज। कमिाः? उिित्तजाः। ‘इनि ि म िञ्चम्यामदााहिावािाः’
म हारस्योिित्तजनरत्यर्ाःय ।
इत्यि्ं चरमदावाक्यज त्र्यात्मकािां श्रवमाि ् प्रर्मदावाक्यजऽनि
म ो ्ीवो ह्या्रम इनि भावाः॥5॥
श्रद्धाशब्दजिा्हिक्षमरा श्रद्धरा त्र्यात्मकानद्भश्च रक्त
्
अश्रिम त्वानधकरममदा॥3-1-6॥
्
भाक्तानधकरममदा॥3-1-7॥
्
ॐ भाक्तं वाऽिात्मनवत्त्वाि िर्ा नह चशयरनि ॐ॥ 3-1-7-301 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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अभूमदा’ इनि कमदायिाः श्रिम मदामदाृित्वं काम्यकनमदायमो भाक्तं भागनवषरं, नकनञ्चत्कालीिनमदानि रावि।् कमिाः?
म
ॐ कृ िात्यरजऽिशरवाि ्
दृष्टस्मृ ् ॥ 3-1-8-302 ॥
निभ्यामदा ॐ
म
अत्र कमदायमां भोगजि निाःशजषािाशा उच्यिज। कृ िस्य कमदायमोऽत्यरज स्वगायनचभोगजि क्षरजऽिशरवाि ्
ॐ रर्जिमदािजवं च ॐ ॥ 3-1-9-303 ॥
अत्र स्वगायचागनिप्रकार उच्यिज। रिा रजि प्रकारजम इिं स्वगायनच प्रनि गिं िर्ा आरानि। अिजवं च
ििोऽन्यमदाागेम चजत्यर्ाःय । म
रर्जिनमदात्यक्त्या ‘धूमदााचभ्रमदाभ्राचाकाशमदााकाशाच्चन्द्रलोकं
रर्जिमदााकाशमदााकाशािारमदाम ’् इनि श्रनम िाः ्ूनचिा। आकाशिरयतु ं रर्जि ं ििोऽवायगन्यर्जनि
भावाः॥9॥
्
चरमानधकरममदा॥3-1-10॥
॥3-1-10-304॥
म िज। रर्जिनमदानि प्रकृ िं गिागिं चरमाि ्कमदाायङ्गभूिाचाराच ् भवनि, ि
अत्र गिागिस्य कमदायफलत्वमदाच्य
ि म रज्ञानचकमदायनभाः। ‘रमदामीरचरमा रमदामीरां रोनिमदाािद्यतु ज’ इत्यानच श्रिम नज रनि चजन्न। िदुिलक्षमार्ाय
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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उक्तमदाानक्षप्याह —
् ॥ 3-1-11-305 ॥
ॐ आिर्यक्यनमदानि चजन्न िचिजक्षत्वाि ॐ
य ं स्याि।् रज्ञनचकृ िां प्रकृ ित्वजि रज
चरमशब्दस्यजनि शजषाः। उिलक्षमार् यत्वज चरमशब्दस्यािर्क्य
म क्त्य ैवोिलक्षम्म्भवानचनि चजन्न। िचि जक्षत्वाि ् िनचनि चरममदाच्य
रज्ञानचकानरमो रमदामीरा इत्यद्यम म िज।
म रमाि जक्षत्वाच ् रज्ञानचकनमदायमां, रमदामीरत्वकिूरत्वरोनरनि शजषाः। रज्ञानचकृ त्वज ््ािजऽनि
्ाि्ाधच
कर्मदाजकजषां रमदामीरत्वमदान्यजषां, किूरत्वनमदानि ि शङ्क्यमदा।् ्ार्ध््ार्ध्ाचारहजिक
म त्वानचनि द्योिनरि ं म
् ॥ 3-1-13-307 ॥
ॐ अनिष्टानचकानरमामदानि च श्रिम मदा ॐ
म । गिागनिनमदात्यन्। इष्टं रागाः। िूिचय त्तानचरानचिचार् याः।
अत्र िािकृ िामदानि गिागिमदा्ीत्यच्यिज
िच ् व्यिनक्त —
् ॥ 3-1-14-308 ॥
म रिज रजषामदाारोहावरोह िद्गनिचशयिाि ॐ
ॐ ्ंरमदािज त्विभू
िरम वज । नििीरार्े ््मदाी। ्म्यग ् रमदािं शा्िं ्म्यग्रमदाशा्िं अिभू
म र ि म अिभू
म रवै
म ािमदान्यजषामदावरोहो िीचस्थािज नित्यिरकज
इिरजषामदानिष्टानचकानरमामदाारोहावरोह कज षानञ्चचारोहो व्यत्थ
िािो भवनि। कमिाः? िद्गनिचशयिाि ् — िजषामदानिष्टानचकानरमां गिजरवज ं नवधगिजाः। ‘्वे वा
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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एिजऽशभम कृ िाः ्ंरमदािज प्रििनतु ’ इत्यानचश्रिम चशयिानचत्यर् याः। ्ंरमदािनमदानि वाच्यज ््म्यनम क्ताः
रमदाशा्िं क्वजत्याकाङ्क्षारां ्म्यग ् रमदािं िािोिरमदाो रत्रजनि व्यत्प
म ्त्यना ्ंरमदािज िरकज इनि ्ूचनरिमदाम , ्
स्मृनिश्च ैवनमदात्याह —
ॐ स्मरनतु च ॐ ॥ 3-1-15-309 ॥
‘गच्छनतु िानििाः ्वे िरकं िात्र ्ंशराः’ इत्यानच, ‘िािहं निषि- क्रराि’ ् इनि, ‘्वयचवज ावरत्वजि रो
्ािानि च कज शवमदा’् इत्यानच स्मरतु ीत्यर् याः। प्रागक्त
म श्रनम ि्मदाच्च
म रज चाः। स्मृनिभूरस्त्वारा
्
बहवचिमदा॥11॥
्
अनि््ानधकरममदा॥3-1-12॥
ॐ अनि ्् ॐ ॥ 3-1-12-310 ॥
म नित्यिरकाः ्मदार्थ्यि।ज ्ंरमदािनमदात्यन्। अनििचाि ् स्मरतु ीत्यन्।
अत्र हनरिजनषमाः प्रागक्त
इत्यर् याः। ‘र रवोऽर् मदाहांश्च ैव’ इत्यानचस्मृनिकिायर इत्यर्ाःय । स्मृि िञ्चािामदाजवानित्यत्वोक्त्या रावनचन्द्र
म ्त्परत्वानचनि भावाः। रद्यनि बहकोट्यो िरकााः। िर्ानि ्् प्रधािािीत्यनिशब्द इनि
इत्यक्तज
ित्वप्रचीिोनक्ताः॥12॥
्
ित्राप्यनधकरममदा॥3-1-13॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
नवद्यानधकरममदा॥3-1-14॥
् ॥ 3-1-14-312 ॥
ॐ नवद्याकमदायमोनरनि ि म प्रकृ ित्वाि ॐ
अत्र भूिािां ्ाधि एव स्वािन्त्र्यं ि ि म नििृरािानचफल प्रा्ानवत्यच्यिज
म । िरम वज । इनिशब्दाः
नवद्याकमदायमोनरत्यन्वजनि। ‘िद्य इत्थं नवदुरे चजमदाऽज रण्रज श्रद्धा िि इत्यिम ा्िज िजऽनच यषमदानभ्म्भवनतु ।
अर् र इमदाज ह्यामदाा इष्टािूि े चत्तनमदात्यिम ा्िज िज धूमदामदा’् इनि नवद्याकमदायरूिमदाागयरोरनि प्रकृ ित्वानचत्यर् याः।
एकज िम िरम प्यर् याः। इनिशब्दो वाक्यनवशजषद्योिकाः। ‘िद्य इत्थं’ इत्यानचवाक्यज
चजवरािाद्यमिस्थािकनवद्याकमदायमोरनि प्रकृ ित्वानचत्यर् य इत्याहाः। नवद्याकमदायिचप्ररोगाि ् ‘नवद्यािर्ाः
कमदायिर्ो ि िन्थाि प्रकीनियि । िनिन् यिनस्त्रधा रानि निरयग ् वा िरकं िमदााः॥’ इनि स्मृनिाः
्ूनचिा॥14॥
्
ि िृिीरानधकरममदा॥3-1-15॥
चाः।
इिश्च ैवनमदात्याह—
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ चशयिाच्च ॐ ॥ 3-1-15-315 ॥
म नमदात्यजिच ् नवनरनञ्चप्रत्यक्षाच्च न्द्धनमदात्यर्ाःय । िच्च ‘िारारमप्र्ाचजि’ इत्यानचस्मृत्या
ि िृिीरज ्ख
बोध्यनमदानि भावाः।
अर्ायिनत्तिोऽप्यजवनमदात्याह —
िृर्गनम क्ताः। ि िृिीरज श्रनम िस्मृनिरनम क्तदृष्ट्यर्ायिनत्तभ्य इनि वाच्यज रोगनवभागो रक्त
म ज ाः स्माियत्वं
ॐ स्मरमाच्च ॐ ॥ 3-1-15-317 ॥
िृिीरज शब्दावरोधाः ्ंशोक्स्यजत्यस्य ‘मदाहािमदानस्त्रधा प्रोक्तमदा’् इत्यानचिा स्मरमानचत्यर् याः। प्राक ्
म
िमदा्ो दुाःखमदाात्रत्वज स्मृत्यनक्ताः। अत्र ि म िमदास्त्र ैनवद्यज िृिीरश्रोिृमदाोहप्रा् चजनि भजचाः। त्रैनवध्यस्य चजनि
चार् य इनि भानि॥15॥
्
ित्स्वाभाव्यानधकरममदा॥3-1-16॥
ॐ ित्स्वाभाव्यािनत्तरुिित्तजाः ॐ ॥ 3-1-16-318 ॥
म । िनचनि नवद्या ्ूत्र ज प्रकृ िधूमदाानचरुच्यिज। िि एव कमदायम
अत्र कनमदायमां धूमदाानचचजविाभविं िजत्यच्यिज
इनि चान्वजनि। ‘धूमदाो भूत्वाऽभ्रं भवनि’ इत्याच धूमदाानचभविं िामदा कनमदायमाः ित्स्वाभाव्यािनत्ताः। िस्य
म इत्यानचवि।् ित्स्वभावस्य भावाः
धूमदााचजाः स्वभाव इव स्वभावो रस्य ् ित्स्वभावाः। ग्मदाख
ित्स्वाभाव्यं धूमदाानचचजविा स्वभाव्दृशस्वभावत्वप्रान्ाः, ि ि म िचैक्य ं ित्प्रचप्रान्वेत्यर् याः। ित्सादृश्रं
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥ 3-1-17-319 ॥
ॐ िानिनचरजम नवशजषाि ॐ
अत्र स्वगायचवरूढस्य कनमदायमाः अनचरजम गभ यवा्ानचप्रान्रुच्यिज। रोनिमदााप्नोिीनि शजषाः। कमदाायत्यन्।
् ॥ 3-1-18-320 ॥
ॐ अन्यानधनष्ठिज िूववय चनभलािाि ॐ
म । व्री्रमानचचजहज प्रवजश इनि शजषाः। कनमदायम इत्यन्। ‘ि इह
अत्र कनमदायमो व्री्रमानचभावो िजत्यच्यिज
व्रीनहरवान्ला मदााषा इनि ्ारतु ज’ इनि व्री्रमानचबावो िामदा अन्यानधनष्ठिज व्री्रमानचचजहज प्रवजश एव। ि
ि म िचनभमदाानित्वमदा।् रजि िच्छजचानचिा दुाःखं कनमदायमाः शङ्क्यजित्य
ज र् याः। कर्ं िनहि व्रीनहरवा इत्य ैक्योनक्ताः?
िूववय ि ् धूमदाो भूत्वनज ि िूवोनक्तरयर्ा िर्जनि। कमिाः? अनभलािाि।् ‘्ोऽवाग्गिाः स्थावराि ् प्रनवश्र
भोगजि’ इत्यानचश्रिम ावनभलािानचत्यर्ाःय । व्री्रमानचचजह इनि वाच्यज अन्यजत्याद्यमनक्ताः स्वगायचवाग्गिस्य
व्री्रमानचचजहािनभमदाािज िजषां वृनद्धि य स्यानचनि ि शङ्क्यमदा।् अन्यजिानभमदाानि्ीवजि अनधनष्टित्वानचनि
वक्तममदा।्
उक्तमदाानक्षप्याह —
् ॥ 3-1-18-321 ॥
म नमदानि चजन्न शब्दाि ॐ
ॐ अशद्ध
म ं दुाःख्ाधिं नहं्ात्वाि ् नि्नहं्ावि।् अिो दुाःख ि शङ्क्य कनमदायम
कमदाेत्यन्वजनि। रज्ञाख्यं कमदाायशद्ध
इत्यरक्त ्
म नमदानि चजन्न। शब्दाि शब्दनवनहित्वानचत्यर् ाःय । नहं्ात्वस्याप्ररो्कत्वानचत्यर्ाःय ॥18॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
रजिोनधकरममदा॥3-1-19॥
ॐ रजिाःन्ग्रोगोऽर् ॐ ॥ 3-1-19-322 ॥
अत्र स्वगायनचवरूढस्य नििृप्रवजशाः ्ाध्यिज। कनमदायम इत्यन्। अर्जत्यितु रं मदाािृरोग इनि शजषाः।
् रोग इत्यर् याः। िर्ा च ‘मदाािरम वज ोचरं व्र्जि’्
कनमदायमो रजिनस्सग्रोगाः नििृ प्रवजशाः। अि ििाः िश्चाि मदाािृ
इनि वचिानवरोधाः। मदाािृरोगस्य िश्चाचनि ्त्त्वाि।् एवजत्यस्यारोगव्यावियकत्वानचत्यर्ाःय । नििृरोग
म
इनि वाच्यज रजिनस्सनगत्यनक्ताः म
नििृप्रवजशाििरोगो ि शङ्क्याः। चजहिनरमामदाार रजि्ोऽि जनक्षित्वजि
म
ईशक्लृप्त्या ित्सजकरोगोिरोगानचनि ्ूचिार्ाय, ‘ििो रजिनस्सचमदाजवािप्रनवशत्यर् मदाािरं’ इनि
श्रनम ि्ूचिार्ाय च॥19॥
्
रोन्यनधकरममदा॥3-1-20॥
् ॥ 3-1-20-323 ॥
ॐ रोिजाः शरीरमदा ॐ
् िाचर्ायतु रज वियि।ज कमदाी
अत्र कनमदायमाः नििृिारा रोनिप्रवजशिज चजहप्रान्स्साध्यिज। अिजत्यन्। िि प्रकृ
नििृक्रमदाजम रोिजाः प्रवजशाितु रं शरीरं लभिज। अिक्वनचि ् मदाान्धािृद्रोमद्रमिचशक
म ाच ििाः शक्त्या िजि
नवि ैव शरीरप्रान्नरत्यर्ाःय ॥
कत्रयभावाि ि् ित्सृनष्टरक्त
मय ज त्यि आह —
म
ॐ निमदाायिारं च ैकज ित्राचरश्च ॐ ॥ 3-2-1-325 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
एक इनि िूवोक्तररोरन्वजनि। एकज शानखिाः ्न्ध्यजऽर्ायिां निमदाायिारं च ‘कामदां कामदां िरुषो निमदायमदाामाः’
म
इत्याहाः। ि ्ृनष्टमदाात्रं श्रूरि इनि चार् याः। ित्राचरश्च म ्ारिज’ इत्यानचिा ्न्ध्यज
‘एिस्माद्यजव ित्रो
म शिज ्ृज्यतु इनि एकज आहनरनि रोज्यमदा।् निमदाायिारनमदानि ित्रज
ित्राचरश्चज म नि च श्रनम िनवशजष्ूचिार् यमदा।्
्
ॐ मदाारामदाात्रं ि म कार्त्स्न्ेिािनभव्यक्त स्वरूित्वाि ॐ
॥3-2-1-326॥
िरम वज । मदाारजनि िन्त्रजम ईशजच्छावा्िज उच्यिज। ्न्ध्यानमदात्यन्। ्न्ध्यं स्वप्न्म्बन्ध्यर् य्ािं
मदाारामदाात्रं ि म मदााराभ्यां ्ंस्कारजशच्छ
ज ाभ्यां मदाात्रं ि म निनमदायिमदाजव। मदााङ् मदााि इत्यिाः कमदायनम त्रप्रत्यराः।
अिानच मदािोगि्ंस्काराि ्उिाचािीकृ त्य ईशाः स्वजच्छरा निनमदात्तजि निनमदायमदाीिज। िान्यजि जत्यर् याः। कमिो
मदाारामदारत्वमदा?् अि े जत्यानच। ्ाकल्यजिािनभव्यक्तस्वरूित्वाि ् मदाारामदाात्रमदाजव, ि
उक्तं कार्त्न्स्स्यि
बा्रमोिाचािकमदा।् िर्ात्वज ्म्यगनभव्यनक्ताः स्यानचत्यर् याः। अिनभव्यक्तज त्याद्यमक्त्या ‘मदािोगिां् म
म ानत्मकाऽर् ज्ञािं च नवष्णश
इत्याद्यमनक्ताः ्ूनचिा। रद्यनि ‘नत्रगम म नक्त्र् ैव च। मदााराशब्दजि भण्रतु ज’
इनि स्मृिाःज , ‘मदाारा वरिम मदानभख्या’ इनि प्रज्ञािामदा् म िाठािा मदााराशब्दस्य प्रज्ञार् यत्वमदा।् िर्ानि
िज्जन्या वा्िाऽत्र लक्ष्यि इत्यचोषाः।
काम्यजष’म इनि, ‘कृ ष्णं कृ ष्णचतु ं िश्रनि’ इत्यानचश्रिम ाःज प्रत्यक्षिाः फलचशयिाच्चजनि हजरर् याः। िनिचाः
्न्ध्यार् यनवचो व्या्ाचराः ‘रिाऽनि ब्राह्ममो ब्रूराि’् इत्याद्याचक्षिज चजत्यर् याः॥1॥
्
िरानभध्यािानधकरममदा॥3-2-2॥
॥3-2-2-328॥
अत्र ्न्ध्यनिरोधारकत्वमदा ् ईशस्योच्यिज। िरम वज । ्न्ध्यानमदात्यन्। िरानभध्यािात्त म ईशजच्छाि एव,
्न्ध्यं निरोनहिं निरोधीरिज। ि ज्ञािजि। नह रस्माचस्य ्ीवस्य बन्धमदाोक्ष िि ईशानचत्यर्ाःय । रिा
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ चजहरोगािा्ोऽनि ॐ ॥ 3-2-3-329 ॥
अत्र ्ाह्यचवस्थाप्रवियकत्वमदा ् ईशस्योच्यिज। अनि; ‘िरानभध्यािात्त’म इत्यिकष
म यकाः। ्नम ््मदाच्च
म ारक
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
प्रबोधानधकरममदा॥3-2-5॥
् ॥ 3-2-5-331 ॥
ॐ अिाः प्रभोधोऽस्माि ॐ
अत्रजशस्य ््म प्रबोधकत्वमदाच्य
म िज। अस्यजत्यन्। ्ीवस्य ्न्प्रबोधाः
म अस्माि ् प्रकृ िाि ् िरमदाात्मिो
भवनि। कमिाः? अिाः ्ीवस्थात्मन्यजव ््म त्वानचत्यर् याः। ईशजि स्वातु नि यवजनशिस्य ित्प्रजरमां नविा
उद्बोद्धमदा म
म शक्यत्वानचनि भावाः। प्रबोध इत्यक्त्या ‘एष एव ््म ं प्रबोधरनि’ इत्यानचश्रनम िाः ्ूच्यिज।
म निशब्दनवनधभ्याः ॐ ॥ 3-2-6-332 ॥
ॐ ् एव च कमदाायिस्मृ
म िज। ् एव प्र्िम ात्मैव ्वायवस्थाप्रवियक इनि शजषाः।
अत्रजशस्य ्वय्िीि्वायवस्थाप्रवियकत्वमदाच्य
चाः िक्षातु रव्यावियकाः। ि चजशकालातु रजऽन्य इनि एवजत्यिोऽर्ायिब्धस्यानि वाचनिकत्वार चशब्दाः
कमिाः? म निशब्दनवनधभ्याः।
कमदाायिस्मृ कमदाेनि धमदाायधमदायरूिं व्यािारमदाात्रं वा। िजि िस्य
म मदाय काररनि। एष ्रमजवा्ाधक
ईशैकारत्तत्वश्रनम िलयक्ष्यिज। ‘् एव ्ाधक म मदाय काररनि’ इनि
् ॥ 3-2-7-333 ॥
म ऽधय्म्पनत्ताः िनरशजषाि ॐ
ॐ मदाग्धज
अत्रजशस्य मदाोहाख्यावातु रावस्थानस्थि्ीवस्य अध यप्राप्यत्वमदामच्यिज। अस्यजत्यात्मिीनि चान्। मदाग्म धज
मदाोहज मदाूछायरां, भावज क्ताः, ्ीवस्य आत्मन्यध यप्रान्ाः। ि ्म्यक ् प्रान्ाः। कमिाः? िनरशजषाि ् -
आत्मनवदूरत्व्ामदाीप्यप्रवजशाध यप्रवजशषज म आद्यनत्रकस्य ‘हृचरस्थाि ् िराज्जीवाः’ इनि स्मृत्या
्ाह्यचाद्यवस्थातु रत्वजिाध यप्रवजशस्यैव िनरशजषानचत्यर् याः। िानिदूर्ामदाीप्यस्यानचरकालीित्वाि ् ि
िस्यमदाोहत्वनमदानि भावाः। स्वप्नानचवि ् ि मदाोहाः स्विन्त्रावस्थजनि द्योििार व्यवधािजिास्योनक्ताः।
्
य स्य प्रिञ्चिमदाजिरै ोगैाः कृ िनमदात्यि िरुक्त्यमदा॥7॥
्म जानच्ूत्रोक्त्ृष्ट्यानचकिृत्व
्
ि स्थाििोऽप्यनधकरममदा॥3-2-8॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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नवरुद्ध्यिज।
उभरत्वनमदानि वाच्यज नलङ्गनमदात्यनम क्ति य िाण्राद्यजकैकचजशिज ािजकत्र नस्थनिाः, नकतु म ्मदाह्यजष म नवह्यहजष्विजकत्र
्त्स्वनि िजषां नभन्नत्वमदाात्रं िजनि द्योिनरिमदाम ।् अभक
य कस्त्वानचत्यत्र व्योमदावि ् ्वयगिस्याप्यजकैकत्र
नस्थनिाः। अल्पश्रिम नज रत्यत्रैकैकत्र नस्थिांशस्यानि िूमत्व म मदा।्
य मदाक्त अत्र च ैकै कत्र नस्थिस्य
म स्थािभजचो ि िरस्योभरत्वज नलङ्गमदा, ्
म ि इनि भजचाः। रूिनमदानि वाच्यज नलङ्ग नमदात्यनक्ताः
्मदाह्यावरवत्वमदाच्य
अप्ररो्कत्वानचनि ित्त्वप्रचीिोक्तनचशाऽर्ायतु र्ूचिार।
उक्तमदाानक्षप्याह —
्
ॐ ि भजचानचनि चजन्न प्रत्यजकमदाििचिाि ॐ॥ 3-2-8-335 ॥
िरस्यजत्यन्। ज िम लक्षममदा।्
भजचत्य ‘कारयकारमबद्ध ’ इनि श्रिम ्ाह्यिद्धो नवश्वाः,
स्वप्नबद्ध्ै््ोऽज्ञािबद्ध; प्राज्ञ इत्यानचभजचचोनषत्वानचवचिाि ् िाभजचाः िरस्यजनि चजन्न।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
अरूिानधकरममदा॥3-2-9॥
् ॥ 3-2-9-337 ॥
ॐ अरूिवचजव नह ित्प्रधाित्वाि ॐ
म िज। िनचनि िन्त्रमदा।् व्य्ं ्मदा्ं च। िि ् प्र्िम ं ब्रह्म अरूिवचजव
अत्रजशस्याप्राकृ िचजहत्वमदाच्य
प्राकृ िानचचजहरनहिमदाजव। रजिानित्यिा ‘अरूिमदािामदारमदा’् इनि श्रनम िनवरोधो वा स्याि।् कमिाः?
ित्प्रधाित्वाि।् िस्य ब्रह्मम्जभ्याः प्रकृ निभूिभ्य
ज उत्तमदात्वाि।् नहशब्दाः ‘अस्थूलमदािम’म
इत्यानचश्रिम श्च
ज नज ि ्ूचरनि। स्वाधीिजि प्रकृ त्यानचिाऽऽत्मबन्धारोगानचनि भावाः।
् ॥ 3-2-9-338 ॥
ॐ प्रकाशवच्चावैरर्थ्यमदा ॐ
‘रचा िश्राः िश्रिज रुग्मदावमं’, ‘श्रामदााि ् शबलं प्रिद्यज’, ‘्वम मयज्योनिाः’ इत्यानचरूनित्वश्रिम ीिानमदानि
म । कमिाः? रूनित्वाि ्
शजषाः। अवैरर्थ्य वैय्यर्थ्यमदाप्रामदााण्रं च िजत्यर् याः। ् न्दरायद्यभावश्च िजत्यिलक्ष्यिज
ब्रह्मम इनि भावाः। ि्रम यरूनित्वश्रमनिनवरोध इत्यि उक्तं प्रकाशवनचनि। प्रकाशस्यजव, िान् प्रकाश
इत्यानचव्यवहारस्यजवनज ि रावि।् ित्त्वप्रचीिनचशा चशब्दोऽरुनित्वश्रिम ीिां चजत्यन्वजनि।
अवैय्यर्थ्यनमदात्यन्वराः। रर्ा गृहातु श्चाक्षषम ानचप्रकाशज ्त्यनि िस्य ् रानचल नककप्रकाशवैलक्षण्राि ्
म
िान् प्रकाश इत्यनक्त्र्ा म प्रामदााण्रं
रूनित्वजऽनि ब्रह्ममो नवलक्षमाप्राकृ िरूनित्वाच ् अरूिश्रत्य
िजत्यर् याः।
् ॥ 3-2-9-339 ॥
ॐ आह च िम जात्रमदा ॐ
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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रूिनमदानि प्रकृ िमदान्वजनि। िद्ग मम्ारत्वानचनि प्र्िम ज्ञािािन्द िनचनि िरामदाृश्रजि।ज रूिं िम जात्रं
ज्ञािािन्दानचमदाात्रं चाह ‘एकाम्येन प्रत्यर्ारं’, ‘आिन्दमदाात्रमदा्रमदा’् इत्यानचश्रनम िि य प्राकृ िनमदात्यर्ाःय ।
् ॥ 3-2-10-341 ॥
य ानचवि ॐ
ॐ अि एव चोिमदाा ्ूरक
म । उिमदाजत्यितु रं ‘ि भजचाि’् इनि ्ूत्राि ् ‘इनि चजन्न’
अत्रजशस्य ्ीवजि भजचाभजच िजत्यच्यिज
म िीरमदा।् ‘ििो ्रमस्य’ इत्यिो ‘्रमस्य’ इनि च। चाः ्ूरक
इत्यिविय य ानचवच्चजनि नभन्नक्रमदााः। अि एवजनि
िन्त्रमदा।्
रिा ‘अि एव’ इत्यावियि।ज नििीरमदा ् उिमदाजत्यिाः िरं रोज्यमदा।् आद्यं िन्त्रमदा।् उिमदााशब्दाः
उिमदाावत्प्रनिनबम्बिराः। अि एव मदात्स्यानचस्वांशरूिामां ईशजि ज्ञािाद्यनवशजषस्योक्तत्वाचजव। अि एव
्ीवस्यानि स्मरूिांशत्वज मदात्स्याद्यनवशजषािािाचजव उिमदाा प्रनिनबम्बाः ईशप्रनिनबम्बो ्ीवाः। अि एव
ईशप्रनिनबम्बत्वाचजव ्ूरक ्
य ानचवि िजशानभन्नो ्ीव इनि च अस्यार् याः।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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नििीरजऽर्े प्रनिनबम्ब इनि वाच्यज उिमदाजत्यनम क्ताः। अभजचांश एव नववाचाि ् िनन्नरा्ाः। िृर्नगत्यत्रोक्तं
भजचमदािम जत्याभजचस्यानि शङ्किाचि िरुक्त्यमदा।् आद्यवृत्त भजचऽज नवगािाि अभज
् चमदाात्रं शनङ्किमदा॥10॥
्
म
अम्बवचनधकरममदा ्
॥3-2-11॥
म
ॐ अम्बवचह्यहमाि ि् म ि िर्ात्वमदा ॐ
् ॥ 3-2-11-342 ॥
म िज। अम्बवम नचनि ्ादृश्रार्े वनिाः। ि मदाििम ।्
म ानभव्यनक्तरूिफलमदाच्य
अत्रजशभक्तज ाः स्वरूि्ख
स्नजहात्मकाम्बिम चजि मदााि्स्नजहो लक्ष्यिज। िर् ैव ित्त्वप्रचीिोक्तज ाः। ह्यहमं ज्ञािमदा।् अस्य
नवशजषममदाम्बवम नचनि। अम्बवम चह्यहमाच ् ह्यहमाभावाच ् — म दृशज्ञािाभावानचत्यर्ाःय ,
अम्ब्
म ज्ञािाभावानचनि रावि ् — भक्त्यभावानचनि िात्परायर् याः। ‘िर्ात्वमदा’् इत्यिजि ‘अि एव’ इनि
स्नजहरक्त
िूवत्रय प्रकृ िं िद्ग मम्ारत्वरूि्ादृश्रं िरामदाृश्रिज। िनम वयशषज ।ज व्यज्यि इनि शजषाः। भनक्तं नविा
्ख ्
म ात्मकत्वरूि्ादृश्रं ि ि म व्यज्यिज ि ्म्यग व्यज्यि इत्यर् याः।
््म भनक्तं नविाऽनि व्यनक्तर्ीत्यिाः िरुम क्ताः। भनक्तं नविजनि वाच्यज ‘अम्बवम ि’् इत्याद्यमनक्ताः
य ज्ञािाभावानचनि वाच्यज ‘अम्ब’म इत्यनक्तरम्ब
भनविस्वरूिोक्त्यर्ाय। एवमदानि स्नजहिूवक म गम िस्नजहस्यजव
भक्त्यजकचजशस्नजहस्य ्ह्त्वं द्योिनरिमदाम ।् गृह्णानि — अर्ं ि मदाञ्च
म िीनि ज्ञािशब्दार् य्ूचिार
्
ॐ वृनद्ध्रसा्भाक्त्वमदातु भायवादुभर्ामदाञ्जस्याचजवमदा ॐ
॥3-2-12-343॥
अत्र प्राक ् फलहजििम रोक्तभक्तज ्ारिम्यमदाच्य
म िज। अम्बवम चह्यहमिचोक्तभनक्तनरहान्वजनि। भक्तज ाः वृनद्ध
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ चशयिाच्च ॐ ॥ 3-2-12-344 ॥
‘अर्ाि आिन्दस्य मदाीमदाां्ा’ इत्याच फलिारिम्यचशयिाि।् चशब्दाच ् ‘रर्ा भनक्तनवशजषोऽत्र’
इत्यानचस्मरमाच्चजत्यर्ाःय । फलज वैषम्यजऽनि भक्त िि ् कमिाः? अन्यवैषम्यहजिक
म त्वोिित्तजनरनि शङ्कां
िरो नवश्विालकाः। ि स्वभावाि ् िालिन्नद्धाः। कमिाः? नह रस्माि ् प्रकृ िस्य ‘अस्यजचषज ा ्मदाम निाः’
य स्य एिावत्त्वं िावम जात्रत्वं प्रनिषजधनि, ििाः ्ृष्ट्यानचकिृत्व
इत्यानचिा प्रकृ िस्य ्ृनष्टलरकिृत्व य ाच ् भूराः
म ा ् द्यावािृनर्वी नबभनिय’ इनि श्रनम िाः
अनधकं िािृत्वमदानि ब्रवीनि ‘ि ैिावचजिा िरो अन्यचस्त्यक्ष
चशब्दाि ् ‘्ृनष्टं च िालिं च ैव’ इनि स्मृनिश्चाि इत्यर् याः। श्रिम उक्तार् यस्य स्पष्टत्वार
म
स्मृिनज र्त्यननक्ताः॥13॥
्
अव्यक्तानधकरममदा॥3-2-14॥
ॐ िचव्यक्तमदााह नह ॐ ॥3-2-14-346 ॥
म िज। िचर्ं चिनम भाःय ्ूत्र्
अत्रजशिरोक्षस्य िद्भनक्त्न्यप्र्ाचैक्ाध्यत्वमदाच्य म िज। िच ्
ै स्याव्यक्तत्वमदाच्य
म
ॐ अनि ्ंराधिज प्रत्यक्षािमदाािाभ्यामदा ् ॥3-2-14-347 ॥
ॐ
िचव्यक्तनमदात्यन्। भनक्तहीिाराधिजऽनि िच ् ब्रह्मव्यक्तमदाजव। ि व्यज्यिज। कमिाः?
म ािमदाािज
आराधिजऽप्यव्यक्तत्वस्यजत्यन्वजनि। िस्य ज्ञानिप्रत्यक्षजम ्ूक्ष्मत्वहजिक म ि च न्द्धत्वानचनि शजषाः।
म
अज्ञाि जक्षरािमदाािोनक्ताः। ज्ञानिप्रत्यक्षमदाप्य्ीत्यजिच्च ‘ि िमदााराधनरत्वाऽनि’ इत्यानच स्मृत्या बोध्यमदा।्
अव्यक्तस्यािीशस्य स्वशक्त्या ज्ञानििं प्रनि प्रत्यक्षत्वस्याह्यज व्यक्तत्वाच ् अव्यक्तत्वं प्रत्यक्षनमदानि
व्याहनिनरनि ि शङ्क्यमदा।्
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ू य स्य
अिजभि स्थूल्ूक्ष्मरूि जम व्यक्तत्वाव्यक्तत्वच ् ईशस्यानि मदाूलरूि जमाव्यक्तस्य
गृहीिरूि ैव्य यक्तिाऽनस्त्वत्यि आह —
् ॥3-2-14-348 ॥
ज मदा ॐ
ॐ प्रकाशवच्चावैशष्य
िचव्यक्तनमदात्यन्। चो िञर् याः। िच ् ब्रह्म प्रकाशवच्च प्रकाशवन्न, अनिवि ् ्ूक्ष्मरूि जमाव्यक्तमदा ्
स्थूलरूि जम व्यक्तनमदानि ि। नकन्त्वव्यक्तमदाजव। कमिाः? अवैशष्य
ज ं िस्य ब्रह्ममाः अनवशजषत्वं, रि इनि
् ॥3-2-14-349 ॥
ॐ प्रकाशश्च कमदायण्रभ्या्ाि ॐ
म िज। ि नक्ररा। िनचनि ््म्यतु िराऽिविय
कमदायमीनि कमदायकारकमदाच्य म ि।ज कमदायनम कमदायकारकज नवषरभूि ज
् ॥3-2-14-350 ॥
ॐ अिोऽितु जि िर्ा नह नलङ्गमदा ॐ
प्रकाश इत्यन्। अि इनि ‘आह नह’ इनि, ‘प्रकाशस्च’ इत्यत्र चानभप्रजिश्रनम ििरं िरामदाृश्रिज।
्
अनहकमण्डलानधकरममदा॥3-2-15॥
् ॥ 3-2-15-351 ॥
ॐ उभरव्यिचजशात्त्वनहकमण्डलवि ॐ
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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गम ्
म ावाि िचात्मकत्वानचत्यानच रनम क्तनवरोधो ि शङ्क्याः।
् ॥ 3-2-15-352 ॥
ॐ प्रकाशाश्ररविा िज्स्त्वाि ॐ
प्रकाशजनि भास्वररूिं नववक्ष्यिज। प्रकाशाश्ररस्यानचत्यस्य रर्ा प्रकाशत्वं, प्रकानशत्वं ििच ्
म ात्मकस्यजशस्य गनम मत्वनमदात्यर् याः। अन्यच ् नहत्वाऽऽनचत्यदृष्टातु ज को हजिनम रत्यि उक्तं —
गम
िज्स्त्वानचनि। िज्ोरूित्वजिातु रङ्गत्वानचत्यर्ाःय । आनचत्यवनचनि वाच्यज एवमदानम क्तरभजचऽज नि
नवशजषशक्याऽऽश्ररानश्ररभावोऽ्ीनि ्ूचिार। अरं वा दृष्टातु इनि वाशब्दार् याः। एवमदाह्यजऽनि।
ॐ िूववय िा ॐ ॥ 3-2-15-353 ॥
म ात्मकं ब्रह्म गम
े भजचऽज नि िूव य इनि नवनशष्यिज, िर्ा गम
रर्ा कालाः िूवम म ीनि नवनशष्यि इत्यर् याः।
ॐ प्रनिषजधाच्च ॐ ॥ 3-2-15-354 ॥
भजचस्यजनि शजषाः। ‘िजह िािाऽन् नकञ्चि’ इत्यानचश्रिम नकञ्चि गण्म रानच िािा नभन्नं िा्ीनि
म गण्म रानचभजचस्य प्रनिषजधाच्च ि भजच इत्यर् याः॥15॥
गम
्
िरमदािानधकरममदा॥3-2-16॥
ू ाि्म्बन्धभजचव्यिचजशभ्य
ॐ िरमदािाः ्जिम ज ज ाः ॐ
॥ 3-2-16-355॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म ािां अल नककत्वमदाच्य
अत्रजशगम म ्ािनमदानि प्रकृ िमदान्वजनि। आिन्दानचगम
म िज। गम म ्ािं अिाः
य स्योक्तज ाः,
िूमत्व ‘एिस्यैवािन्दस्यान्यानि भूिानि मदाात्रामदािम ्ीवनतु ’ इनि
नबम्बप्रनिनबम्बरूि्म्बन्धोक्तज ाः। मदाात्रानमदात्यस्य प्रनिनबम्बांशनमदात्यर्ायि।् ‘अन्यज्ज्ञािं िम
्ीवािामदान्यज्ज्ञािं िरस्य च’ इनि भजचोक्तज नरत्यर्ाःय ।
इिोऽप्यजवनमदात्याह —
् ॥ 3-2-16-356 ॥
ॐ चशयिाि ॐ
अि इनि प्रकृ िािामदान्यािन्दाचीिानमदानि नविनरमामदाजिान्वराः। चशयिमदािम लक्षममदा।्
म ्ािनमदात्यर्ाःय । िस्याल नककत्वज
मदािोवाग्गोचरत्वाचन्यािन्दाचीिां एिचीरािां िचभाविाः िरमदाीशगम
म ाचावािन्दानचशब्दप्ररोगाः कर्नमदात्यि आह —
श्रत्य
म
ॐ बद्ध्यर्याः ् ॥ 3-2-16-357 ॥
िाचवि ॐ
िाचवि ् िाचस्यजव। आिन्दानचिचप्ररोगाः इनि शजषाः। रर्ा लोकिाचनवलक्षमजश्वनि भूिषज म
म याः भूिािामदाीशांशत्वज्ञािार् याः, ज्ञाििार् य इनि रावि,्
‘िाचोऽस्यनवश्वा भूिानि’ इनि िाचिचप्ररोगो बद्ध्यर्
म
रिा बद्धीनि ण्रतु मदािम त्य म ाःय
ज बोधिार् य इनि व्याख्यजर,ं िर्ा अल नककज ऽप्यािन्दानचिचप्ररोगो बद्ध्यर्
अिकूम लवजद्यत्वा—(अन्योक्तावजद्यत्वनिरा्ा)र्ायनचज्ञाििार्ो म
रक्त इत्यर् याः। म य
बद्ध्यर्
म
इत्यनक्तरािन्दानचिचप्ररोगज प्ररो्िोक्त्यर्ाय। ्ाऽनि स्वमयघटज घटिचस्यजव नकनति्ादृश्रमदाात्रजम
मय ज नि ्ूचिार्ाय॥16॥
म नत्तरक्त
व्यत्प
्
स्थािनवशजषानधकरममदा॥3-2-17॥
्
ॐ स्थािनवशजषाि प्रकाशानचवि ् ॥ 3-2-17-358 ॥
ॐ
अत्र ब्रह्माद्यािन्दाचीिामदा ् ईशािन्दानचप्रनिनबम्बत्वमदाच्य
म िज। प्रकाशानचवि ् ्ूरायनचप्रनिनबम्ब इव। रर्ा
ईशािन्दानचप्रनिनबम्बनमदानि रोज्यमदा।्
इिश्च ैवनमदात्याह —
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ उिित्तजश्च ॐ ॥ 3-2-17-359 ॥
चाः म रज।
्मदाच्च ि कज वलं म िज ,
स्थािगम नकतु म नबम्ब्ामदार्थ्ायच्चनज ि। वैनचत्र्यस्यजत्यन्वजनि।
ज ्ामदार्थ्ायच्च ब्रह्माद्यािन्दाच
नबम्बभूिश वैनचत्र्यस्योिित्तज्त्प्रनिनबम्बं अन्यािन्दानचकमदा।् ्लज
्ूरप्रय निनबम्बाचनि्म जादृष्टजाः, य ातु ज
्ूरक म प्रनिनबम्बाि ्
मदाख िचदृष्टजाः ्ूत्रिरमदार् यवि।्
अदृष्टानिरमदाानचत्यत्र ्ीवािां नवनचत्रत्वाच ् अनवनचत्रब्रह्मप्रनिनबम्बत्वं िजनि चोद्यं निर्मदा।् अत्र ि म
म ा च निरस्यि इनि भजधाः॥17॥
प्रनिनबम्ब इव नबम्बजऽनि वैनचत्र्यं स्यानचनि चोद्यं नवशजषरक्त्य
्
िर्ान्यत्वानधकरममदा॥3-2-18॥
्
ॐ िर्ाऽन्यि प्रनिषज ् ॥ 3-2-18-360 ॥
धाि ॐ
म व्यक्तत्वमदाजव ्ाध्यिज। िनचत्यन्। ध्यािप्रिीिानचनि शजषाः। एिचर्े अि
अत्रजशस्य प्रागक्त
इत्यिवृम नत्तवाय। िच ् ब्रह्म ध्यािप्रिीिाि ् िर्ा ब्रह्मािन्दानचवि ् अन्यि ् नवलक्षममदा।् ि ि म िचजव। रजि
व्यक्तं स्यानचत्यर् याः। कमिाः? प्रनिषजधाि ्‘रम जि्ा ि मदाििजम ’, ‘िचजव ब्रह्म त्वं नवनद्ध िजचं रनचचमदािम ा्िज’
इनि ध्यािज प्रिीिस्य ब्रह्मात्वप्रनिषजधानचत्यर् याः। अन्यनचत्यजव िूिौ म र्ा
िर्जत्यनक्तरय
्ीवािन्दाचजरल्पत्वानचहजिो्िोऽन्यच ् ब्रह्मािन्दानच
िर्ोिा्ाकृ िस्यदुलयक्षमत्वानचहजिो्िोऽन्यद्ब्रह्मजनि म न्यार्ूचिार्ाय।
प्रागक्त िचन्वरारैव
िरनमदात्यिवृम त्तावनि अन्यनचत्यनक्ताः॥
म
्
्वयगित्वानधकरममदा॥3-2-19॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ि कज वलं ्म्भाविामदाात्रनमदात्याह —
एवजशाचजव, धमदायनमदानि कमदायमदाात्रोिलक्षमं, धमदाायधमदाायख्य ं कमदाय कानरिं ्नै मदानिराह। अिाः कमदायम एव च
फलं भविीत्याहजत्यर्ाःय । धमदाायनचनि वाच्यजऽर् यनवशजषलाभारैवं नवन्या्ाः। रानिचायिनम रनि श्रनम िाः
िारम्परयिरजनि भावाः।
्मदााधत्तज —
् ॥3-2-20-365 ॥
ॐ िूवं ि म बाचरारमो हजि म व्यिचजशाि ॐ
धमदायनमदात्यन्। िनम वयशषज ।ज हजनत्वनि भावप्रधािमदा।् िूवोक्तं ब्रह्म धमदां च फलहजि ं म बाचरारमो मदान्यिज। ब्रह्म
किृत्व म िचजशाि।् िण्रज
य िज धमदां करमत्वजि, ि ि म ्ाम्यजिनज ि िोरर्ाःय । कमिाः? हजिव्य म ि िण्रं
म लोकं िरनि
म िचजशानचत्यर्ाःय ।
य करमत्वरूिहजिव्य
इनि ब्रह्मकमदायमोाः किृत्व
िूवनय मदात्यनम क्ताः किृत्व म चजिित्वज्ञप्त्य।ै प्राधान्य्ूचिारजनि कज नचि।् ्ामदाान्यिाः कमदायमाः फलहजित्व
य ोिरक्त म ं
म ं िचिमदािमदाज
प्रागक्त म म कमदायमाः फलहजित्व
वनज ि भावाः। फलमदाि इत्यक्त्या म ं िजनि प्रा्चोद्यनिरा्ार िृिीरो
्
रोगाः। िस्य ब्रह्मवि प्राधान्यव्यचम ा्ारान्त्याः॥20॥
् ॥ 3-3-1-366॥
ॐ ्वयवचज ातु प्रत्यरं चोचिाद्यनवशजषाि ॐ
अत्र िरज ध्यािाङ्ग्वय्च्छास्त्रश्रवममदाििकियव्यिा ्ाध्यिज। प्राक ् िूविय चप्रकृ िं ब्रह्मान्वजनि। अतु ो
निमयराः। उभरोरनि दृष्टोऽतु इत्याचजाः।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्वेवचज िामदातु जि ्वयवचज नवषरश्रवममदािि्ाध्यनिमयरिज ोत्पाद्याः प्रत्यरो ज्ञािं रस्य िद्ब्रह्म। रर्ाशनक्त
्वयवचज ाि ्श्रवमानचिा निमीर ज्ञािव्यं ब्रह्मजनि रावि।् ि ि म स्वस्वशाखामदाात्रोक्तरीत्यजत्यर्ाःय । कमिाः?
ज स्यामदानि ॐ ॥ 3-3-1-367 ॥
ॐ भजचान्नजनि चजचक
‘नवज्ञािमदाािन्दं ब्रह्म’, ‘्त्यं ज्ञािमदाितु ं ब्रह्म’, इत्यानचिा प्रनिशाखं व्भम चज ाि ैकं ब्रह्म
्वयवचज ातु प्रत्यरमदा।् नकतु म स्वस्वशाखाप्रत्यरमदाजव। एकस्यैव व्िम ोऽनधकानरमा ज्ञजरत्वानचनि चजि।्
िजनि िञ आवृनत्ताः। कमिाः? एकस्यामदानि। प्रकृ ित्वाि ् शाखारानमदात्यन्वजनि। भजचानचत्यिषङ्गाः।
म
इिश्च ैवनमदात्याह —
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ं म नक्तमदािक्ष्य
्वयशाखाप्रत्यरं ब्रह्मजत्यषज ोऽनि ित्तत्पश म
ज ैवजनि भावाः। ्नललजत्यनक्ताः ‘रर्ा िचीिां ्नललं
शक्यज ्ागरगं’ इनि श्रनम ि्ूचिार्ाय।
इिश्च ैवनमदात्याह —
ॐ चशयरनि च ॐ ॥ 05-370 ॥
‘्वैश्च वजचाःै िरमदाज नह चजवो न्ज्ञास्य’ इनि श्रनम िचयशरय त्यक्तार्
म य, चशब्दाि ् ‘्वायि ्वजचाि ््नज िहा्ाि’ ्
्
ॐ उि्ंहारोऽर्ायभचज ानिनधशजषवि ्मदाािज चॐ
॥3-3-2-371॥
म ोि्ंहारजम ईशस्य ध्यािं ्ाध्यिज। ्वयवचज नज ि षष्ठ्यतु िराऽिविय
अत्र ्ावयनत्रकगम म ि।ज ब्रह्मजनि च।
म ारोिममदा।् िजि ित्पूवक
उि्ंहारो रगम िच ् बध्य य ं ध्यािं गृ्रमिज। ्वयवचज ािामदार्ायभचज ाि ् ्वयवचज ोक्तार्ायिां
म ािां अिहििाप्मत्वानचचोषाभावािां चाभजचानचनवभागजि उि्ंहाराः कारयाः। अनवभागजि
आिन्दानचगम
म हृत्य ब्रह्म ध्यजरनमदात्यर् याः। कमिाः? नवनधशजषवि।् नशष्यतु इनि शजषानम। नवनधनभाः नशष्टानि
िािि्ं
नवनधशजषानम कमदाायमीवजत्यर् याः। रर्ा नवनहित्वाि ् ्न्ध्यानच कमदाय कारं, एवं ‘उिास्य एकाः िरिाः िरो
ै ्वैाः’ इनि श्रनम िनवनहित्वाच ् उक्तरूिं ध्यािं कारयमदा।् अन्यर्ा प्रत्यवारानचनि भावाः।
रो वजचश्च
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म एव उक्तोि्ंहारो बोध्याः। ि
उक्तस्यािवाचाः ्मदाािज चजनि। च एव। ्मदााि एव रोग्रगम
म
त्वरोग्ररोचिानचनवषर इत्यर्ाःय । उक्तं च ्ाङ्कष यम्ूत्र ज — ‘अचजििा्त्यारोग्रान्यििास्यान्यफलत्व
उक्तमदाानक्षप्याह —
् ॥3-3-2-372॥
ॐ अन्यर्ात्वं च शब्दानचनि चजन्नानवशजषाि ॐ
शब्दाि ् ‘आत्मजत्यवज ोिा्ीि’ इनि शब्दाचन्यर्ात्वं प्रागक्त
म ाचन्यर्ात्वमदा ् उि्ंहाराकियव्यत्वमदा।्
म ाध्यािप्रिीिजनरनि चजन्न। अनवशजषाि।् एिज गम
अवधारमजिात्मत्वाचन्यगम म ा िोिास्या इनि नवशजष ज
्
ॐ ि वा प्रकरमभजचाि िरोवरीरस्त्वानचवि ् ॥3-3-2-373॥
ॐ
उि्ंहार इत्यन्। षोडनशह्यहमवच ् वाशब्दो व्यवनस्थिनवकल्पार् याः। ि वोि्ंहाराः कारयाः। कमिाः?
प्रकरमभजचाि ् िरोवरीरोवैश्वािरानचप्रकरमभजचाि।् अन्यर्ा िन्न स्यानचनि भावाः। एकै कप्रकरमजऽनि
म ोनक्त्म्भवाि ् िद्भजचऽज नि स्याि ् ्वयगम
्वयगम म ो्ंहार इत्यिाः उक्तं िरोवरीरस्त्वानचवनचनि। ‘् एष
म
िरोवरीरािद्गीर्ाः ् एषोऽितु ाः’ इत्यानचप्रकरमजष म िरोवरीरस्त्वानचकं रिा िावम जात्रमदािम ास्यमदाक्त
म ं,
उक्तमदाानक्षप्याह —
्
ॐ ्ङ्ज्ज्ञािश्चजि िदुक्तमदान् ि म िचनि ॐ ॥3-3-2-374॥
्ङ्ज्ज्ञजनि भावप्रधािमदा।् ्वयनवद्यािानमदानि प्रकृ ित्वाचन्वजनि। ‘्ोऽहं िामदानवचजव’ इनि श्रत्य
म ा
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
् Page 145
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् ॥ 3-3-3-375 ॥
ॐ प्रा्जश्च ्मदाञ्ज्मदा ॐ
म ोि्ंहारािि्ं
अत्र प्रागक्त म हाररोाः िरुषभज
म म त्वं ्ाध्यिज। प्रकृ िं उि्ंहारािि्ं
चिज रक्त म हारकियव्य त्वं
म ं च। ि कज वलं कियव्यत्वनमदानि चार्ाःय । कमिाः? प्रा्जाः रोग्रिानवशजषम
्मदाञ्ज्ं, वक्तं म रक्त ज िरोाः
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
नप्ररनशरस्त्वानधकरममदा॥3-3-6॥
् ॥ 3-3-7-379 ॥
ॐ इिरज त्वर्य्ामदाान्याि ॐ
म ोिा्िं ्ाध्यिज। िरम वज । शजषम
अत्र चजवाचीिां बहगम ज ान्वजनि। इिरज ्वायभचज ानचत्यक्त म भ्य
म ्वयगम ज ाः,
म
आिन्दाचर इत्यक्तचि म श्च
भ्य म ााः, मदाद्यमदागम
य इिरज गम म ा इत्यर् याः। चजवानचनभरुि्ंहाराय एवजनि शजषाः।
् ॥ 3-3-8-380 ॥
ॐ आध्यािार प्ररो्िाभावाि ॐ
म ोि्ंहारािि्ं
अत्र प्रागक्त म हाररोाः प्रमदााममदाच्य म ोनक्तरन्वजनि। ्ंज्ञाि
म िज। ्ंज्ञाि इत्यत्र प्रकृ ि ्वयगम
म म ोनक्ताः आ ्मदातु ाि ् ्वयगम
ि ्वयवचज ानचष्वीशस्य ्वयगम
इत्यक्तन्यारज म ोि्ंहारिूवक
य ध्यािार्ाय, आ
म
्म्यगिरूिफल्िकध्यािार्ाय चजत्यर् याः। कमिाः? प्ररो्िाभावाि।्
उक्तरूिध्यािाचन्यप्ररो्िाभावानचत्यर् याः। ्वयवचज ाचजरीशिामदात्वजि िद्ग ममानभधारकत्वमदावज ोि्ंहारज
म ं भवनि।
मदाािनमदात्यक्त
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
फलजनि वाच्यज प्ररो्िजत्यनक्ताः म ोनक्तं प्रनि ध्यािस्य प्ररो्कत्व्ूचिार। नवनधशजषवनचत्यत्र
गम
म ज रुक्तावनि उि्ंहारफलस्य मदाोक्षस्यान्यिाः न्द्धजिष्फ
नवनहित्वरक्त ै ल्यजिाप्ररो्कत्वं िस्या इनि
म ोक्तज रुि्ंहारार्त्व
शङ्काव्यचम ा्ारारं रोगाः। ्ंज्ञाि इनि गम म ािां नवप्रकीमयिरोक्तत्वाि ् ि
य ोक्तावनि गम
िस्या इचं फलनमदात्याशङ्क्य िादृशािामदा ् उि्ंहृत्यध्यािज फलानिशरजऽ्ीनि आङा ्ूचनरत्वा
नवप्रकीमोक्तज रन्यर्ान्नद्धं वक्तं म चारनमदानि।
म ाऽिि्ं
उि्ंहारज मदाािमदाक्त्व म हारजऽनि िचाह —
ॐ आत्मशब्दाच्च ॐ ॥ 3-3-8-381 ॥
आत्मजनि भावप्रधािं ्ावधारमं च। आत्मत्वमदाात्रोिान्नवधारकाः शब्द आत्मशब्दाः
‘आत्मजत्यवज ोिा्ीि’ इनि शब्दाः। िस्माि ् गम य ात्मत्वोिान्नवधारकशब्दाि ्
म ातु रव्यावृनत्तिूवमदा
म ाः शब्दाः आत्मशब्द इनि वा
म हारश्च न्द्ध्यिीनि चार्ाःय । मदािोिामदान्त्र इत्यानचवचात्मिचरक्त
अिि्ं
नवह्यहाः। य ऽज नभमदािजऽप्यत्र
अन्यर्ात्वनमदात्यत्रारोगव्यावृ्त्यनर्त्व मय ोिा्ावप्यशक्ताि ् प्रनि
चिगम म
म म िर्ा िर्ा प्रनििजरनवरोधाः॥8॥
ज त्रोक्तनचशा ित्तद्योग्रिाि्ारज
प्रा्जश्चत्य
्
आत्मगृहीत्यनधकरममदा॥3-3-9॥
् ॥ 3-3-9-382 ॥
ॐ आत्मगृहीनिनरिरवदुत्तराि ॐ
मय ोिान्ाः ्ाध्यिज। आत्मजनि शब्दाि ् िरं आिन्दाचीिानमदानि षष्ठ्यतु त्वजिान्वजनि।
म चिगम म
अत्र प्रागक्त
आत्मिा आत्मशब्दजि आिन्दाचीिां मय ािां
चिगम म गृहीनिाः ह्यहमं उनक्तरन्। रजि
म नचशाऽत्मत्वमदाजकमदाजवोिास्यं स्यानचत्यर् याः। कर्मदाजकजिािजकह्यहममदा?् इिरवि।् ‘्त्यं ज्ञािमदाितु ं
प्रागक्त
ब्रह्म’ इत्यानचवाक्यजि जवािजक्त्यत्वाद्यमनक्त्र्जत्यर्ाःय । कमिाः? उत्तराि।् ‘अत्र ्रमजि ज ्वय एकीभवनतु ,
म
इत्यत्तरवाक्यानचत्यर् ाःय । अत्र ‘प्रामन्नजव प्रामो िामदा भवनि वचि ् वाक ् िश्रि ् चक्षाःम शृण्वि ् श्रोत्रं
म ाि ् ‘एिज’ इनि िरामदाृश्रात्रात्मत्वगम
मदान्वािो मदािाः’ इत्यानचिूव य वाक्योक्त गम म ज एकीभवनतु
्
ॐ अन्वरानचनि चजि स्याचवधारमाि ् ॥ 3-3-10-383 ॥
ॐ
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म ि्ं
अत्रात्मशब्दानित्यक्ताि म हारमदााित्वं आत्मशब्दस्यानक्षप्य ्मदााधीरिज। ‘आत्मशब्दज’ इनि
म ि।ज ‘आ्व्या्जरात्मशब्दाः िरमदास्य’ इत्यक्त्या
््म्यतु िाऽिविय म म ािामदान्वराि, ्
आत्मशब्दज ्वयगम
िस्य म वानचत्वानचनि
्वयगम रावि,् म हारमदााित्वं
अिि्ं म नमदानि
िस्यारक्त चजि ् स्याि ्
म वानचत्वमदाात्मशब्दस्य
्वयगम स्याि ् अङ्गीनक्ररि एव। कमिाः? अवधारमाि ्
ज वधारमानचत्यर् याः। अस्य नवधजाः ब्रह्मानच्वायनधकानरकत्वाि ् आत्मिचजि ्वयगम
आत्मजत्यवज त्य म ािक्त
म
म ाःै ्वैरुिास्योऽ् ब्रह्ममा’ इत्यानचनवरोधाः स्याि।् अिाः ्वयगम
म ा ‘गम
अवधारमजिान्यव्यावृत्यक्त्य म ाि ्
भावाः॥10॥
्
कारायख्यािानधकरममदा॥3-3-11॥
य ॐ
ॐ कारायख्यािाचिूवमदा ् ॥ 3-3-11-384 ॥
म
अत्र ‘िरमदाि’ इत्यक्ताल म ािां ध्यजरत्वमदाच्य
नककगम म ्ािनमदात्यन्वजनि। ‘ध्यजरमदा’् इनि च
म िज। गम
् ॥ 3-3-12-385 ॥
ॐ ्मदााि एवं चाभजचाि ॐ
म ोि्ंहारजऽनि नक्ररामां ि नवनशष्य ्ाः, नकतु म ्ामदाान्यजि जत्यच्य
अत्र वाण्रााः ्वयगम म िज। चोऽप्यर्े,
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ ्म्बन्धाचजवमदान्यत्रानि ॐ ॥ 3-3-12-386 ॥
्म्बन्ध्ाचाम्येनमदा।् अन्यत्रानि नत्रनवक्रमदात्वानचनक्ररानवषरजऽप्यजवमदािम ्ंहाराः कारयाः। ्म्बन्धाि ्
ईशिाचाम्येनाि ् िा्ां नित्यत्वानचनि भावाः। नित्यत्वानचनि वाच्यज एवमदानम क्त्त्र रनम क्त्ूचिार।
म नक्रराचरो भावााः स्वरूिं िान्यनचष्यिज’ इत्यानचवचिान्द्धमदा।् ्म्बन्धानचत्यनक्ताः
िाचाम्येनं च ‘गम म
्
िाचाम्येनजऽनि नवशजषाि नक्ररा ्
िित्त्वं व्यक्त्यात्मिा काचानचत्कत्वनमदात्यानच ्ूचनरिमदाम ॥12॥
्
िवानधकरममदा॥3-3-13॥
् ॥ 3-3-13-387 ॥
ॐ ि वा नवशजषाि ॐ
म ि्ं
अत्र ‘आत्मशब्दाच्च’ इत्यक्ताि म हारमदााित्वं आत्मशब्दस्य ्ाध्यिज। आत्मगृहीनिनरत्यन्।
म ािानमदानि च। वाशब्दो व्यवनस्थिनवकल्पार् याः।
अन्वरानचत्यिाः ्वयगम
म ािामदाात्मिचजि गृहीनिाः। कमिाः? नवशजषाि ् रोग्रिानवशजषानचत्यर्ाःय । आत्मिचस्य
ि वा ्वयगम
्वयगम म ि ित्तद्योग्रबोधकत्वाि।् िजि रस्य रावतु ो गम
म ोनक्तशक्तावनि अनधकानरनवशजषािरोधज म ारगम िच ्
इिश्च ैवनमदात्याह —
ॐ चशयरनि च ॐ ॥ 3-3-13-388 ॥
‘्वायि ् गम
म ाि ् आत्मशब्दो ब्रवीनि ब्रह्माचीिानमदािरजषां ि च ैव’ इनि श्रनम िचयशरय नि ि वा
म ैषोऽर्ाःय न्द्ध इनि चार् याः॥13॥
्वेषामदाात्मिचजि गृहीनिनरत्यर् याः। ि कज वलं नवशजषानचनि रक्त्य
्
्म्भृत्यनधकरममदा॥3-3-14॥
म
ॐ ्म्भृनिद्यव्याप्त्यनि चािाः ॐ ॥ 3-3-14-389 ॥
म स्य ्वोिास्यत्वं िजत्यच्य
अत्र ्म्भृत्यानचगम म िज। अनिाः िजत्यिषङ्गार्
म याः। च एव। ्म्भृनिाः ्म्यग ्
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म मदा।् ित्पक्षज ि
्म्भृनिद्यमव्याप्त्यिीत्यप्रगृ्रम निचेशाः। ्म्भृनिव्यान्वीरैश्वरायचरो चजवोिास्या इत्यक्त
्मदााहाराः॥14॥
म
िरुषानधकरममदा ्
॥3-3-15॥
म
ॐ िरुषनवद्यारामदानि ् ॥3-3-15-390॥
चजिरजषामदािाम्नािाि ॐ
म म
हाराः कारय इनि ्ाध्यिज। ्वयनवद्योक्तमदाारानमदात्यि जरर्ाःय । िरुषनवद्यारां
अत्र ्वयिो गमोि्ं
म म ािामदािाम्नािाि, ् चशब्दाि ् कज षानञ्चचाम्नािाि ् ्वयिो
क्ताख्यानवद्यारां इिरजषां कज षानञ्चच ् गम
िरुष्ू
म ोि्ंहाराः कारय इनि रोज्यमदा।् नकमदा म नवद्यातु रजम ्वायिाम्नािनमदानि कै मदात्य
गम म ्ूचिार्ोऽनिशब्दाः।
् नवद्यािाः ्वयगमोि्ं
एकत्रैव नववनक्षि्वोक्त्यभावाि ्वय म हृनिाः कारेनि भावाः॥15॥
्
वजधानधकरममदा॥3-3-16॥
् ॥ 3-3-16-391 ॥
ॐ वजधाध्यर्यभचज ाि ॐ
म । िजत्यन्। ‘िं प्रत्यञ्चमदानच यषा नवध्य मदामदायि’,् ‘अिज
म स्य रत्याद्यमिास्यत्वं िजत्यच्यिज
अत्र भजचिाचीशगम
त्वचं रािधम ािस्य नभनन्ध’, ‘िरा शृमीनह’ इनि श्रिम वजधानच ि ्वोिास्यमदा।् कमिाः? अर् यभजचाि ्
फलभजचाि।् वजधाद्यमिा्िस्य दुष्ट्िनहं्ानचरूिनवलक्षमफलकत्वाि।् ित्र च रत्याचजरिनधकारानचनि
भावाः॥16॥
्
हान्यनधकरममदा॥3-3-17॥
् म शाछंच्त्य
ॐ हाि िूिारिशब्दशजषत्वाि क म िगािवि
म ्
िदुक्तमदा ्
ॐ
॥ 3-3-17-392 ॥
म ावप्यिम ास्त्यन्त्वमदाच्य
अत्र मदाक्त म िज। िरम वज गािवचजवत्य
ज न्वजिीनि भाष्यज भानि। उिा्िनमदानि
िदुक्तमदा।् िि ् उिा्िमदाक्त
म मदा।् ‘एिि ् ्ामदा गारन्ना्ज’ इत्याच रिोऽि इनि रोज्यमदा।् स्वजच्छरजनि
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
् Page 151
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ध्यजरमदा।्
म प्रा्ानिष्टनिवृ्त्यनर्ाय अ्ूिान्नरत्यि आह —
मदाक्त
्
ॐ ्ाम्परारजिियव्याभावाि िर्ा ्रमन्यज ॐ ॥ 3-3-17-393 ॥
्ाम्परारज मदाोक्षज िियव्यस्य निर्िीरस्यानिष्टस्याभावाि।् कमिाः? नह रस्माचन्यज शानखि्र्ा िठनतु
्
‘िीमो नह िचा ्वायि शोकाि ्
हृचरस्य भवनि’ इनि िस्मानचत्यर् याः।
म 17॥
धात्वतु रािा आगमदाशा्िस्यानित्यत्वािा आध यधािमकस्यजनि िजट ्। िजि िियव्यनज ि ्ाध॥
्
छन्दानधकरममदा॥3-3-18॥
् ॥ 3-3-18-394 ॥
ॐ छन्दि उभरानवरोधाि ॐ
म ािां कमदायकृत्यनिरमदााः ्ाध्यिज, ‘हाि ि’म इत्यन्। कमदायकरमनमदानि शजषाः। अनवरोधाः
अत्र मदाक्त
अभावाः।
म ि म कमदायकरमं छन्दिाः स्वजच्छरा। कमवयनतु ि कमवयनतु चजत्यर् याः। कमिाः? उभरानवरोधाि।्
हाि मदाक्त
नवनधप्रत्यवाररोरभावानचत्यर् याः।
् एव कमि इत्यि आह —
म
ॐ गिजरर्यवत्त्वमदाभरर्ाऽन्यर्ा नह नवरोधाः ॐ ॥ 3-3-18-395 ॥
उभरानवरोध इत्यन्। नहहेि । नह रस्माि ् उभरर्ा नवनधप्रत्यवाररोरभावजि ैव गिजाः
म ज ाः अर् यवत्त्वं िरुषार्
ईशप्रान्रूिमदाक्त म यत्वं, िस्माि ्नवनधप्रत्यवारभाव इत्यर् याः। अन्यर्ा िित्त्वज नवरोधाः
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
् Page 152
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म
उभरिा खनल्वनि प्रन्द्ध्यर्ो वा नहशब्दाः। गिजनरत्यनक्ताः ि क्लजशहानिरूि ैव मदानम क्ताः नकन्त्वीशगनिरूिा
चजनि द्योिनरिमदाम ।्
् ॥ 3-3-18-396 ॥
ॐ उििन्न्िक्षमार्ोिलब्धजलोकवि ॐ
म ाः। कमिाः? ििक्षमस्य
एवं भाव इनि शजषाः। कमदाय कमवयनतु ि कमवयतु ीत्यजवं भाव उििन्नो रक्त
म
ॐ अनिरमदााः ्वेषामदानवरोधाच्छब्दािमदाािाभ्यामदा ् ॥ 3-3-19-397 ॥
ॐ
मय ज रनिरमदााः।
अत्र ब्रह्मचनशयिां मदाोक्षि ैरत्यं ्ाध्यिज। गिजनरत्यन्। ्वेषां ब्रह्मचनशयिां गिजमदाक्त
कज षानञ्चचन्, कज षानञ्चन्नजनि उिा्िावि ् मदाक्त
म ज नि यरमदाो व्यवस्था िान्। नकन्त्वनिरमदा एव। कमिाः?
अनवरोधाि।् ‘्वे गम
म ा ब्रह्ममैव ्रमिास्या
म िान्यैाः’ इनि ित्र श्रनम िनवरोधवनचह िनिरोधाभावाि ।्
म ार्े मदाािं नकनमदात्यि उक्तं — शब्दजनि। ‘ि कनश्चि ् ब्रह्मनवि ् ्ृनिमदािभवनि
अनवरोधजऽप्यक्त म म ो ्रमजव
मदाक्त
भवनि’ इनि शब्दाि, ् ‘नवमदािा ज्ञानििो निरिमदाोक्षााः ज्ञानित्वाि ्म्मिवि
् ’् इत्यिमदाािाचज
म त्यर्ाःय ।
म
उि्ंहरािमदाािि ल्यनिरा्ार अस्य बाधकशून्यत्वश्रनम िमदाूलज वक्तं म िश्चादुनक्ताः। बाधकाभाव्ाधकरोाः
िरोरप्यनम क्ताः ज्ञानििामदानि कज षानञ्चि ् न्ज्ञा्ूिामदािम ्ंहार इवारोग्रत्वं ि शङ्क्यं, िाभ्यां
िचभावनिश्चरानचनि ्ूचनरिमदाम ।् उि्ंहारवैषम्यं वक्तममदाजवानिरमदा इत्यनक्ताः।
म अन्यर्ा निरमदा
्
इत्यवक्ष्यि॥19॥
्
रावचनधकरममदा॥3-3-20॥
् ॥ 3-3-20-398 ॥
ॐ रावचनधकारमदावनस्थनिरानधकानरकामामदा ॐ
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
् Page 153
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्
ॐ अक्षरनधरां त्वनवरोधाः ्ामदाान्यिद्भावाभ्यामदा ि्चवि िदुक्तमदा ्
ॐ
॥ 3-3-20-399 ॥
िरम प्यर्े अ्मदात्वजऽिीनि ्मदानम च्चिोनि। गिानवत्यानधकानरकामानमदानि चान्। अक्षरनधरानमदानि
हजिगम भनय वशजषममदा।्
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥ 3-3-21-400 ॥
ॐ इरचामदाििाि ॐ
अत्रोिा्कािां प्रामवनधत्वं ्ाध्यिज। अनधकानरकमानमदात्यन्। इरनचनि छन्दोगश्रनम िस्थं प्रामवनधत्वं
िरामदाृशनि।
उक्कमदाानक्षप्याह —
्
ॐ अतु रा भूिह्यामदावनचनि चजि िदुक्तमदा ् ॥ 3-3-21-401 ॥
ॐ
्
दृष्टातु बलाि प्रामाः ्ानधकाः अनधकानरत्वानचनि ्ाध्यहजि ू ्म्बद्ध्यजि।ज अक्षरनमदानि नवभागजिान्वजनि।
उक्तमदाानक्षप्याह —
म
ॐ अन्यर्ा भजचािििनत्तनरनि ्
चजन्नोिचजशवि ॐ॥3-3-21-402॥
अन्यर्ा प्राक ् िूविय क्ष्यक्त
म ाचन्यर्ा प्रामाचनधकाभावज अस्यैव ्वोत्तमदात्व इत्यर् याः। भजचािििनत्ताः।
म
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
व्यनिहारानधकरममदा॥3-3-22॥
् ॥ 3-3-22-403 ॥
ॐ व्यनिहारो नवनशंषनतु हीिरवि ॐ
अत्र प्रामाचीशस्योत्तमदात्वं ्ाध्यिज। प्र्िम ं ‘प्रामादुत्तमदात्त्वं नवष्णोाः’ इत्यन्वजनि।
म ं प्रामाि ् ्त्याख्यनवष्णोरुत्तमदात्वमदा।् िरोमदायध्य ज प्रश्नप्रनिवचिरोरश्रवमजऽनि व्यनिहारोऽध्याहराः
रक्त
िोरप्यानधक्यवानचत्वानचनि॥22॥
्
्त्यानधकरममदा॥3-3-23॥
ॐ ् ैव नह ्त्याचराः ॐ ॥ 3-3-23-404 ॥
अत्र प्रामानचशस्वैवोत्तमदात्वं ्ाध्यिज। नहहेि । प्रामानिष्णोरजवोत्तमदात्वनमदात्यन्वजनि। ि ि म बहूिामदा।्
कमिाः? नह रस्माि ् ्त्याचराः ्त्यनवज्ञािमदानिश्रद्धानिष्ठाकृ नि्ख
म भूमदााहमदाात्मिाः प्रामादूर्ध्यमदााम्नािााः
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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आरििानचबोधकश्रनम िगृ्रम
य िज। ‘्वायरििा ्वयकाला ्वेच्छा’ इनि ्वं आरििं रस्या
म ्त्यना ्वयगित्वानचबोधकश्रत्य
इत्यानचव्यत्प म ाचजनरत्यर्ाःय ।
ॐ आचराचलोिाः ॐ ॥ 3-3-24-406 ॥
म िीरमदा।् नश्ररो भगवदुिान्लोिाभावाः आचराि ् निरुिानधकभक्त्यनिशराि,् ि ि म
नश्रर इत्यिविय
बद्धत्वानचत्यर्ाःय ।
् ॥ 3-3-24-407 ॥
ॐ उिनस्थिज्िचिाि ॐ
प्र्िम श
ज स्य उि ्मदाीि ज नस्थिजाः नित्यं नस्थित्वाि।् नश्ररो नित्यं
म त्वनमदात्यर् याः। नित्यं िदुिनस्थनिाः कमिाः? ििचिाि।्
ित्सम्बनन्धत्वजिानिशनरिित्प्र्ाचानन्नत्यमदाक्त
म ’ इनि नित्य्म्बनन्धत्ववचिानचत्यर् याः॥24॥
‘िावजिाविानचनित्य अिानचरक्त
्
निधायरमानधकरममदा॥3-3-25॥
्
ॐ िनन्नधायरमार्यनिरमदा्द्दृष्टजाः िृर्ग्ध्यप्रनिबन्धाः फलमदा ॐ ॥3-3-25-408 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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मदानम क्तहजिदृम ष्टजाः ध्यािाचजव न्द्धो नकं िाभ्यानमदात्यि उक्तं हीनि। श्रोिव्य इनि श्रिम दृष्ट्यर्ं त्ररस्यानि
म नमदात्यि उक्तं — अप्रनिबन्धाः फलमदा।् िद्दृष्टजाः
नवनहित्वानचत्यर्ाःय । नवधािजऽनि कर्ं रक्त
् ॥ 3-3-26-409 ॥
ॐ प्रचािवचजव नह िदुक्तमदा ॐ
अत्रोिा् य गरू
प्रीनििूवक म िज। िनचत्यावृनत्ताः। िि ् श्रवमानचत्ररं प्रचािवचजव।
म िचजशाख्याङ्गमदाच्य
इनि॥26॥
्
नलङ्गभूरस्त्वानधकरममदा॥3-3-27॥
्
ॐ नलङ्गभूरस्त्वाि िनद्ध बलीर्चनि ॐ ॥ 3-3-27-410 ॥
म िज। िि ् गरुम प्रचािं (च) बलीराः श्रवमानचस्वप्ररत्नाचनि ज्ञाि्ाधिज
अत्र गरुम प्र्ाचस्य बलीरस्त्वमदाच्य
बनलष्ठमदा।् कमिाः? नलङ्गभूरस्त्वाि ् नलङ्गबाहल्याि ् बाहल्यचशयिानचत्यर् याः। वृषभानवष्टाच ् वारोाः अह्यजाः
हं््लवार्स्वरूिब्रह्मवरुमाभ्यां च श्रनम िनवद्यजिानि ्त्यकामदाजि ‘भगवांस्त्ववज मदाज कामदाज ब्रूराि’् इनि
कृ िगरुम प्रार्िय ा एकं नलङ्गं ‘अत्र ह ि कञ्चि वीरार’ इनि गरुम कृ िािज्ञा
म च अिरं नलङ्गं , िर्ा
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
ॐ िूवनय वकल्पाःप्रकरमाि स्याि ्
नक्ररामदााि्वि ्
ॐ
॥3-3-28-411 ॥
अत्र िूवप्रय ा्ाचन्योऽनि गरुम ाः स्वीकारय इत्यच्यिज
म । गरुम ाः प्रकृ िाः िूवम य हृ ीिजि गरुम मा िश्चाि ्
े िूवग
् वं त्यक्त्वा िराः स्वीकारो ि वजनि। ि ि म ह्या्रम
प्रा्गरम ोनवयकल्पाः। ्ङ्ग्रा्रमो ि वजनि नवनवधकल्पाः स्याि िू
एवजनि नवनधाः। कमिो ह्या्रमाः? प्रकरमाि।् अिह्यहाः
म म
प्रकृ िाः। अिह्यहस्य प्रकषेम करमाद्धजिोाः।
नक्ररामदााि्वि।् मदााि्ं च ्ा नक्ररा च, ििि ्ध्यािवि।् कडारााः कमदायधारर इनि िरनििािाः। रिा
फलिाः ्मदारोध्यायिरोाः नवकल्प्र्जनि।
म ‘नवकल्पाः ्मदारोभवय िज ’् इनि, ‘नवकल्पाः कामदािो भवजि’् इनि च स्मृनिाः ्ूनचिा। िजि
नवकल्पजत्यक्त्या
य ादुत्तमदाश्चजि ् िराः ्ड ् ह्या्रम एव। ि नवकल्पाः। ्मदाोऽनि िूवायिज्ञरै
िूवस्म म व। अधमदाश्चजन्न ह्या्रम एवजनि
ॐ अनिचजशाच्च ॐ ॥ 3-3-28-412 ॥
य रुम मा ्मदाोत्तमदागरुम स्वीकारारानिचजशाच्च ्मदाोत्तमदा ह्या्रमानवत्यर् याः॥28॥
‘ब्रह्मोिास्व’ इनि श्रिम िूवग
्
नवद्यानधकरममदा॥3-3-29॥
् ॥ 3-3-29-413 ॥
ॐ नवद्य ैव ि म निधायरमाि ॐ
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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कमदायमवै त्य म
ज क्त्या य ाचस्याि िरुक्त्यं
प्रा्नवशजषशङ्कानिरा्ार्त्व ध्यजरमदा।् म ैव
एवजत्यक्त्य
बाद्यतु रोक्त्वयमदानम क्तहजिि
ू ां व्यचम ा् ज बोध्याः। ् च नव्ृिोऽिव्याख्यािज।
म
ॐ चशयिाच्च ॐ ॥ 3-3-29-414 ॥
िन्त्रनमदाचमदा।् ब्रह्म्ाक्षात्काराचनि मदानम क्ताः ि नवद्यामदाात्राि।् रजि ध्यािवैय्यर्थ्यनमदात्यर्ाःय । ‘नविािमदाृिाः’
म ाः कर्मदाजवनमदानि चजि,् चशयिाच्च दृष्ट्वैव िं मदाच्य
इत्यक्तज म ा ‘नविाि’ ् इत्यनि
म ि इनि श्रिम नज रत्यर् याः। नवशजषश्रत्य
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
अिबन्धानधकरममदा ्
॥3-3-31॥
म
ॐ अिबन्धानचभ्याः ॐ ॥ 3-3-31-416 ॥
अत्र प्र्िम चशयिस्य भनक्त्ाध्यत्वं ्ाध्यिज। चशयिनमदात्यन्। अिबन्धो
म म
भनक्ताः। ‘अिबन्ध् म भनक्ताः
स्याि’् इत्यक्त
म ज ाः। शमदाचमदाानचाः आनचिचार्ाःय । श्रवमानच्न्यमदानि ब्रह्मचशयि ं अिबन्धानचभ्यो
म
्
प्रज्ञातु रानधकरममदा॥3-3-32॥
् ॥ 3-3-32-417 ॥
ॐ प्रज्ञातु रिृर्क्त्ववद्दृनष्टश्च िदुक्तमदा ॐ
अत्र ब्रह्मचशयिस्य िारिम्यं ्ाध्यिज। प्रज्ञातु रं प्रज्ञानवशजषाः, अनवनच्छन्निरोक्षज्ञाि्तु ािरूिं
ध्यािमदा।् िस्य िृर्क्त्ववि ् िारिम्यवि ् दृनष्टश्च िृर्क ् िािानवधजत्यर्ाःय । िदुक्तं िट ् दृनष्टिारिम्यमदा ्
उक्तमदा ् ‘अतु दृयष्टरो बनहदृयष्टरोऽविारदृष्ट्याः’ इत्यानचश्रिम ानवत्यर् याः। िर्ा दृनष्टिृर्क्त्वजऽनि ्वयज्ञानििां
मदानम क्तिनरत्यजिि ् ‘दृष्ट्य ैव ्रमविारामामदा’् इनि स्मृिावक्त
म नमदात्यर् याः। िजि ‘दृष्ट्वजव िं’ इनि ्म्पूमदृय ष्टावजव
म
ॐ ि ्ामदाान्याचप्यिलब्धज म नह लोकािनत्ताः ॐ ॥ 3-3-33-418 ॥
ृ य वन्न
मदात्य
अत्र नबम्बज्ञािस्य मदानम क्तहजित्व
म ं ्ाध्यिज। दृनष्टप्र्ङ्ग्नन्नधानििा मदानम क्तर्ाः ब्रह्मस्वरूिं चान्वजनि।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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मदानम क्ताः, नकतु म मदाृनिनवशजषाचितु रं िर्जनि। रूिातु रदृष्टजाः वैफल्यारोगाि ् िस्यााः रत्फलं ् ैव
मदानम क्तनरत्यि उक्तं ि हीनि। रूिातु रदृनष्टफलभूिा मदाहरानचलोकप्रान्ाः मदानम क्ति य भविीत्यर् याः।
म ित्फलनमदाचनमदानि ्ूचिार। दृनष्टिचज प्रकृ िजऽप्यिम लब्धजनरत्यनक्ताः
ित्फलनमदानि वाच्यज लोकािनत्तनरत्यनक्ताः म
् बन्धाः
ॐ िरजम च शब्दस्य िानिध्यं भूरस्त्वाि त्वि म ॐ ॥ 3-3-34-419॥
म ं िजत्यच्य
अत्र भक्तज ाः स्वािन्त्र्यजम दृनष्टहजित्व ्
म िज। च एव। िरम ावियि।ज प्र्ावाि दृष्ट्यानचकनमदात्यन्वज
नि।
भनक्तनरनि वाच्यज म
अिबन्ध इत्यनम क्तरस्य प्राधान्यघटिार। श्रिम
म ब्दाः॥34॥
नवनशष्योक्तज गयनि्ूचक्श
्
एकानधकरममदा॥3-3-35॥
् ॥ 3-3-35-420 ॥
ॐ एक आत्मिाः शरीरज भावाि ॐ
म िज। चजत्यन्। अंशी अंश इत्यजकाः। च एव। ि नभन्नाः।
अत्र रोग्रिािानचत्वार अंशानशिोरैक्यमदाच्य
रजिांशस्योत्प्त्यना रोग्रिािानचत्वं ि स्यानचनि भावाः। कमिाः? आत्मिोऽनम्शिाः ्म्बनन्धनि शरीरज
अंनशकमदाायन् यिशरीरज भावाि।् अंशस्यजनि शजषो वा। एिचर्े आत्मि इत्यावृनत्तवाय। अ्िाद्यं
मय शस्य
म नमदानि भावाः।
्त्त्वानचत्यर् याः। इन्द्राद्यंनशकमदाायन् यिज चजहज ्त्त्वं ििो भजच ज ि रक्त
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥ 3-3-35-421 ॥
ॐ व्यनिरजक्द्भावभानवत्वान्न िूिलनब्धवि ॐ
िरम वज । उिलब्धीत्यिम लक्षममदा।् ज्ञाि्ख
म ाच व्यनिरजक इवांशांनशिोव्यनय िरज् म भजच एवजनि ि। कमिाः?
् ॥ 3-3-36-422 ॥
ॐ अङ्गावबद्धा् म ि शाखा् म नह प्रनिवजचमदा ॐ
अत्र ब्रह्मानचिनरवारचजविोिान्ाः कारेनि ्ाध्यिज। िनम वयशषज ।ज अङ्गाबद्धााः ईशस्याङ्गिरा अवबद्धााः
ब्रह्माद्या इनि वाच्यज अङ्गजत्याद्यमनक्ताः िजषामदािम ान्ि य प्राधान्यजि, नकतु म अङ्गत्वजि जनि ्ूचिार। िजि
ै ं ’ इनि श्रनम िनवरोधो िान्। ित्र प्राधान्यजि ज्ञजरत्वनिरा्ानचनि फनलिमदा।् अङ्गचजवा इनि वाच्यज
‘िमदाजवक
म
अवबद्धा इत्यनक्ताः ज ज । अन्यज ि म — ईशाङ्गजष्ववबद्धााः
अवमदात्वाच ् बद्धत्वाचङ्गत्वनमदात्यङ्गत्वोििाचिारजत्यक
नस्थिा इत्यजव िजषामदाङ्ग चजविात्वं ि ि म िचङ्गत्वजि ैव। म ू िाःज नवष्णोरङ्गानि चजविााः’
‘नवष्णोरङ्ग्मदाद्भ
म ाः। रिो ्नि्त्रैव नस्थिजाः अङ्गत्वमदाजव कमिो िजत्यिोऽवबद्धत्वानचनि वक्तमनमदात्याहाः। व्िम ् म
इत्यक्तज
अङ्गावबद्धा इत्यस्य िारमदार्ाःय । भाष्यानचनवरोधाि।् नकतु ,म अङ्गैाः अङ्गचजवरै वबद्धााः ्म्बद्धा्निषरााः
उिान्िनरचरायचराः काराय इत्यजवार् याः। शाखा् म इत्यजव िूिौ प्रनिवजचनमदात्यनक्ताः
म अनवभक्तवजचस्यानि
म ं ित्त्वप्रचीि ज।
्त्त्वानचत्यक्त
म मदाजषिू ्ंहारजऽनि ि चोष इत्याह —
अधमदास्थािामदात्त
ॐ मदान्त्रानचविाऽनवरोधाः ॐ ॥ 3-3-36-423 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
ॐ भूम्नाः क्रिवज्ज्यारस्त्वं िर्ा च चशयरनि ॐ ॥ 3-3-37-424 ॥
म स्य ्वोिास्यत्वमदाच्य
अत्र भूमदागम म िज। भूमदात्य
ज त्र भावभनवत्रोरैक्यिज धनमदायिरत्वोक्तावनि इह
य रूिधमदायिरो भावप्रधािो वा भूमदाशब्दाः। उिास्य इत्यन्।
निरनिशरिूमत्व
म ाः ्वैरुिास्याः। कमिाः? भूम्नो भूमदागम
भूमदागम म स्य ज्यारस्त्वं ्वयगमज
म ष म प्राधान्यं रिोऽि इनि।
् ॥ 3-3-38-425 ॥
ॐ िािा शब्दानचभजचाि ॐ
म
अत्र भूमदागमस्य म षज म अिस्यू
म िज। भूमदाोिास्य इत्यन्। ्वयगम
िारिम्यजि ैव ्वोिस्यत्वमदाच्य म ो
म िो भूमदागम
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
नवकल्पानधकरममदा॥3-3-39॥
् ॥ 3-3-39-426 ॥
ॐ नवकल्पो नवनशष्टफलत्वाि ॐ
अत्र नबम्बान्योिा्जाः नवकल्पजि म िज।
कियव्यत्वमदाच्य ्ामदाान्योिा्िस्यजनि शजषाः।
नबम्बान्यिृन्ंहोिा्िस्य नवकल्पो नवनवधकल्पाः, कियव्य ं ि वजनि। ि ि म ि कारयमदावज नज ि निरमदााः। कमिाः?
नवनशष्टफलत्वाि ् दुनरिनिवृनत्तरूिफलनवशजषहजित्व
म ानचत्यर्ाःय । रस्य िचि जक्षा िजि कारयमदा ,् अन्यजि ि म
म
ॐ काम्या्रर्ाकामदां ् ॥ 3-3-40-427 ॥
म रन्न वा िूवहय जत्वभावाि ॐ
्मदाच्चीरज
अत्र मदाोक्षान्यकाम्यनवद्योक्तभगवद्रूििद्ग ममोिा् नवशजष उच्यिज। िाःम प्राचीिानिशजष।ज काम्या् म
म ा् म रिाकामदां नवत्तानचकामदााि्ारज
मदाोक्षान्यकाम्य्ाधिजशगम म ीरजरि ्ि वा उि्ंहाराय ि वा।
म म ्मदाच्च
अमदामदाम क्ष
म नम भरुि्ंहारायाः, मदामदाम क्ष
म नम भिेनि िभ
ं म चज िज व्यवनस्थि नवकल्पार्ो वाशब्दाः। मदामदाम क्ष
म नम बिेनि कमिाः?
िूवहय त्व ्
ज भावाि कामदााख्यहज त्वभावानचत्यर् याः। रिा नवनशष्टफलाख्यिूविय रोक्तहजत्वभावानचत्यर् याः।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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इिश्च ैवनमदात्य नह —
ॐ नशष्टजश्च ॐ ॥ 3-3-41-429 ॥
नशनष्टाः नशक्षानवनधनरनि रावि।् ‘रनस्मि रनस्मि
् ् नह चाङ्गज निनवष्टाः िरस्य नचन्त्याः ् िर्ा िर् ैव’
रो
् ॥ 3-3-41-430 ॥
ॐ ्मदााहाराि ॐ
अिजि ििचिमदािम लक्ष्यिज। ‘अङ्गैाः िराद्यज नह चजवा नव्ृष्टा्त्तद्ग ममाि ् िरमदाज ्ंहरजि। िांश्चानि ित्रैव
नवनचन्त्य चजवाि ् स्थािं मदामदाम क्ष म ािां ित्तद्दजवािां
म ाःम िरमदां व्र्जि॥’ इनि प्रकाशकत्वानचगम
चजवनै रनि वाच्यज एवमदानम क्तरनमय क्त्ूचिार। मदाधनम वद्यारां िर्ा क्लृ्त्वानचनि।
म
ॐ गम्ाधारण्रश्र िम श्च
ज ॐ ॥ 3-3-41-431 ॥
म ािामदाीशगम
गम म ािामदािम ास्यत्वस्यजनि रावि, ् श्रिम ाःज
म ािां ्ाधारण्रस्य उिास्यत्वजि ्ाम्यस्य ्वेषां गम
‘्ाधारण्राि ् ्वयगम
म ााः िरस्य ्मदााहाराय्त्त्वदृशो मदामदाम क्ष
म ोाः’ इनि श्रवमाच्चजत्यर् याः।
म त्वाचजवं उिान्ाः कारेनि भावाः॥41॥
्ूरायश्ररचक्षष्ट्वम ाचीिामदानि ईशगम
्
िवानधकरममदा॥3-3-42॥
इिश्च ैवनमदात्याह —
ॐ चशयिाच्च ॐ ॥ 3-4-1-433 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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इनि श्रीराघवजन्द्ररनिकृ िारां िन्त्रचीनिकारां िृिीराध्यारज िृिीराः िाचाः॥3-3॥ श्री कृ ष्णाि यममदा् म
म
िरुषार्ाय ्
नधकरममदा॥3-4-1॥
म
ॐ िरुषार्ोऽिाः शब्दानचनि बाचरारमाः ॐ ॥ 3-4-1-434 ॥
म
अत्र ज्ञािस्य ्वयिरुषार् यहजित्व ्
म मदानहमदाोच्यिज। रचर्ं प्रागिम ा्िा उक्ता िज्ज्ञािमदा अि इनि िरामदाृशनि।
म ैाः अर्थ्यि इनि िरुषार्
िरुष म म य उच्यिज।
य इनि ्वोऽनि िमदार्
उक्तमदाानक्षिनि—
ॐ शजषत्वाि ि् रुषार्य
म वाचो रर्ाऽन्यजनष्वनि ् ैनमदानिाः ॐ॥ 3-4-1-435 ॥
अि इत्यजिनििनरमम्य वियि।ज अस्य ज्ञािस्य म
िरुषार् यवाचाः ‘रं रं’ इनि श्रिम
म न्यिमदार्
स्वगायनचमदाक्त्य म वाचाः शजषत्वाि ् िद्धजिक
म यहजित्व म मदायशषज त्वाि ् ि ्ाक्षाि।् एवं िनहि ज्ञािस्य
प्राधान्यजि श्रिम ििाचाः कर्मदा?् रिाऽन्यजष म ‘स्वगं धिाद्धजहिो वै गृहाच्च प्राप्स्यनतु ’ इनि श्रिम
नवत्तानचष म स्वगयहि म मदायशषज षज म रर्ा ििाच्र्जनि ्नै मदानिमदायन्यि इत्यर् याः। शजषत्वं च ज्ञािस्य कमदाायन्िय ज
ज क
अनिशराधारकत्वं बोध्यमदा।्
ॐ आचारचशयिाच्च ॐ ॥ 3-4-1-436 ॥
म
चो ज्ञानििां च चजवािानमदात्यन्वजनि। आचारस्य कमदाायिष्ठािस्य ‘रज्ञजि रज्ञमदार्तु चजवााः’ इत्याच
चशयिाि।् अि एषा कल्पिा। अन्यर्ाऽऽचारवैय्यर्थ्ायनचत्यर्ाःय ।
म मदा।् स्वगायचावङ्गानङ्गत्वं कमि इत्यि आह —
अस्त्वैिाविा िरोहे ित्व
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ िच्छ्रमिाःज ॐ ॥ 3-4-1-437 ॥
िस्य कमदायप्रनिज्ञािज शजषत्वस्य ‘रचजव नवद्यरा करोनि िचजव वीरयवत्तरं भवनि’ इनि श्रवमाि ्
िच्छजषत्वनमदात्यर् याः। ‘रं रं’ इनि श्रिम मदानि ज्ञािप्राधान्यं रिा िोि जरिज िर्ा कमदायप्राधान्यं श्रिम मदानि
िोि जरिानमदात्यि आह —
् ॥ 3-4-1-438 ॥
ॐ ्मदान्वारम्भमाि ॐ
‘कमदाैव चजहं चैनवकं मदाािषंम वाऽप्यन्वारभजि’् इनि श्रत्य
म ा कमदायमवै ऐनहकामदानम ष्मकचजहाचजाः ्ं प्राधान्यजि
्
अन्वारम्भमाि उत्पाचिोक्तज ाः िस्यैव प्राधान्यं ि ज्ञािशजषत्वं ित्साम्यं वजत्यर् याः।
् ि फलाभावाि ि् शजषत्व्ाधकं िनचत्यि आह —
म वि लीलात्वज
िर्ानि ज्ञान्याचारस्य मदाक्त
् ॥ 3-4-1-439 ॥
ॐ िििो नवधािाि ॐ
‘ज्ञािी च कमदाायनम ्चोनचिानि कमरायचकामदााः’ इनि श्रिम िििाः प्र्िम ज्ञािविाः क्रमदानवधािाि ् ि
लीलात्वनमदात्यर् याः। ि नह नवनहिस्य लीलात्वनमदानि भावाः।
इिश्च ि लीलात्वनमदात्याह —
ॐ निरमदााच्च ॐ ॥ 3-4-1-440 ॥
‘कमवयन्नवज हज कमदाायनम न््ीनवषजि’् इनि श्रत्य
म ा ज्ञानििोऽनि कमदायमो निरनमदाित्वाच्चजत्यर् याः। अकरमज
रा््ूरानचिोिलम्भाच्चजत्यर्ाःय ।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् धानभवनध यिाि।्
रा््ूरान् यिाि लोकािश्वमदाज
म
ॐ िल्यमदा ि् म चशयिमदा ॐ
् ॥ 3-4-1-442 ॥
अनवरोधो बोध्याः।
म
िन्वजवं शजषत्वानचषट्सूत्र्या ज्ञानिमदािष्यामां प्रनिबन्धरिम चजवािां च मदाोक्षान्यिमदार्ो
म ज्ञािशजनषकमदायमा
ॐ अ्ावयनत्रकी ॐ ॥ 3-4-2-443 ॥
म िज। ज्ञािानधकानरिजनि शजषाः। अ्ावयनत्रकी ्वय्िनिष्ठा
अत्र ईशज्ञािं अ्वायनधकानरकनमदात्यच्य
िजत्यर् याः।
् िजत्यि आह —
अनर् यत्वाचजाः ्ाम्याि कर्ं
् ॥ 3-4-2-444 ॥
ॐ नवभागाः शिवि ॐ
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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प्ररो्कनमदानि भावाः।
्
इिोऽन्यि िास्त्यज
व प्ररो्कनमदात्यि आह —
ॐ अध्यरिमदाात्रविाः ॐ ॥ 3-4-2-445 ॥
म िज। रर्ाशनक्त कृ त्स्नाध्यरिविाः अनधकानरिजत्यर्ाःय ।
‘अनधकानरिा’ इत्यन्। मदाात्रजनि कार्त्स्न्यमदाच्य
् ॥ 3-4-3-446 ॥
ॐ िानवशजषाि ॐ
म िज। अनधकानरिजत्यन्। अनवशजषानचत्यावृनत्ताः। चजवाचीिां
अत्र ज्ञािानधकारज िारिम्यमदा्ीत्यच्य
ज ि। एकरूिा ि। कमिाः? अनवशजषाि ् ज्ञािस्याप्यनवशजषप्र्ङ्गाि।्
रज्ञानधकानरिाऽनवशजषम
म त्यर्ाःय । ज्ञािज िारिम्यं च प्रज्ञातु रिृर्क्त्ववद्दृनष्टश्च इत्यत्र ्ानधिनमदानि भावाः।
अनधकाराि्ानरत्वस्यज
म ऽिमदानिवाय
ॐ ्िरज म ॐ ॥ 3-4-4-447 ॥
अत्र ज्ञानििाः ्च्त्प्रवृत्त नवशजष उच्यिज। िजत्यन्। नवनधिचमदा ् अह्यजििं आकृ ष्यिज। ‘् ब्राह्ममाः
कज ि स्याच ् रजि स्याि ् िजि जदृष एव’ इनिश्रिम ज्ञानििो रर्जष्टाचरमं ि नवनधाः। नकतु म ्िम रज
म र् यमदा।् रर्जष्टाचारजऽनि ज्ञािी मदाच्य
ज्ञानि्त्य म ि एवजनि ्ामदार्थ्यप्रकटिारैवोच्यिज। अिमदानिवाय
म ज्ञानििा
म
नक्ररमदाामस्याभ्यिज्ञािमदाात्रं वा। म र्ेि
वाशब्दोऽिरोनक्षमदाात्र्ाधारम्त्य ्ह चजवमदाात्र
म
नवषरािमदानिरूिार् यभजचस्य नवकल्पार्ाःय । ्वयर्ा रर्जष्टाचारो ि नवधीरिज रजि ्च्द्धप्रवृ्त्यनोाः नवशजषो
ि स्यानचनि भावाः।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ उिमदाचं च ॐ ॥ 3-4-4-449 ॥
एक इत्यन्। ज्ञािं प्रकृ िमदा।् चोऽप्यर् याः ्ि ् कमदाय्मदाच्च
म रज। अनिवत्य यिरा प्रा्स्यारब्धकमदायमोऽनि
म
नकनञ्चद्भमक्तस्य ज्ञािजिोिमदाचं फल्रसा्मदाजकज ‘ओनमदात्यच्चाराय म च िािं
तु नरमदामदाात्मािमदानभिश्रोिमदाृद्य िण्रं
म रकालीिं नवकमदाय ि मदानम क्तप्रनिबन्धकनमदानि वाच्यनमदात्यर्ाःय ।
च’ इनि िठनतु । नकमदात्त
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म ं ्त्य
प्रागक्त म ाद्यर् यत्वमदाजवास्यााः ्ाधरनि —
कज षानञ्चन्नजत्यिष्ठजम र ज कामदाचारािनमदानिरज
म म ं निरमदाजि कियव्यत्वं िजत्यक्त
व ि ि म कामदाचारनवनधाः। प्रागक्त म ं
भवनि। कमिाः? ्ाम्यश्रिम ाःज कज िानि प्रकारजम प्रवृत्तावनि ईदृश एवजनि ्ाम्योक्तज ाः। ‘रस्त्वात्मरनिरजव
् ॥ 3-4-4-453 ॥
ॐ नवनधवाय धारमवि ॐ
‘कज ि स्याि’् इनि ज्ञानििो रर्जष्टाचारनवनधाः। वाशब्दोऽनधकानरभजचिज प्रागक्त
म ज ि व्यवनस्थिनवकल्पार् याः।
ि्रम यज्ञस्याप्यजवं स्याचि उक्तं धारमजनि। रर्ा वजचधारमं त्रैवनमयकािामदाजव नवनहिं िर्ा कामदाचारोऽनि
ज र् याः।
ज्ञानििामदाजवत्य
नवनधवेत्यक्तमदा ्
म आनक्षप्याऽऽह —
म
ॐ ्निमदाात्रमदा म
िाचािानचनि चजन्नािूवत्व ्
य ाि ॐ॥3-4-4-454 ॥
ज्ञानिनभरनि ‘्न्ध्यामदािम ा्ीि’ इत्यानच्ामदाान्यनवनधस्वीकाराि ् ‘कज ि स्याि’् इनि श्रनम िाः
म ्नम िमदाात्रमदा।् ि नवनधाः। नवनधत्वज िदुिाचािारोगानचनि चजन्न। कमिाः? अिूवत्व
प्रागक्त य ाि।्
य िानचब्रह्म। ज्ञानििाः अब्रह्मत्वाि ् ब्रह्माधीित्वानचनि रावि।् अाः ब्रह्म िूवं िजि ृ
ित्त्वप्रचीिनचशािूवमदा
रस्य िस्य भाव्स्मानचत्यर् य इत्यजकज। एिदुक्तं भवनि। ‘कज ि स्याि’् इत्यस्यानवनधत्वजि ्नम ित्वज
ज्ञानििां ्वयनवध्यानिदूरत्वजि ्नम िमदाात्रनवषरत्वं स्याि।् म मदा।्
िच्चारक्त ्वयनवध्यनिदूरत्वस्य
ब्रह्मलक्षमत्वाि।् ज्ञानििश्च ब्रह्मवशिरा अब्रह्मत्वानचनि।
य ाि ् ्वयनवध्यनिदूरत्वभराि ् ‘कज ि स्याि’् इनि श्रनम िाः स्वजच्छाचारनवनधाः,
ि कज वलं ज्ञानििोऽिूवत्व
स्पष्टप्रमदाामाच्चजत्याह —
ॐ भावशब्दाच्च ॐ ॥ 3-4-4-455 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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उक्तमदााक्षप्याह —
् ॥ 3-4-4-456 ॥
ॐ िानरप्लवार्ाय इनि चजन्न नवशजनषित्वाि ॐ
‘कज ि स्याि’् इत्यानचश्रिम राः िानरप्लवार्ायाः चञ्चलार्ाय अव्यवनस्थिार्ायाः स्याःम । निरमदाजि ्वयधमदाायचरमं
म
िम जध्य एव कामदाचारजमाचरमं रर्जष्टाचारनवनधनरत्यक्तार् यत्ररस्य नवरुद्धत्वानचनि चजन्न। नवशजनषित्वाि।्
म ा ज्ञानििामदािजकप्रकारत्वानचत्यर् याः।
‘त्रजधा ह ज्ञानििाः’ इत्यानचश्रत्य
िर्श्च नकनमदात्यि आह —
् ॥ 3-4-4-457 ॥
ॐ िर्ा च ैकवाक्योिबन्धाि ॐ
एकवाक्यजनि भावप्रधािमदा।् िर्ा च ज्ञानििां त्रैनवध्यज ्नि ‘कज ि स्याि’् इत्यस्य त्र्यर् यत्वािगम म
म ािं
ॐ अि एव चािीन्धिाद्यििजक्षा ॐ ॥ 3-4-4-458 ॥
अिजनरन्धिं चीििं रनस्मि ्िचनिहोत्रमदा।् अि एव ‘कामदाचारााः कामदाभक्षााः’ इनि श्रिम कामदाचारजऽनि
मदाोक्षि ैय्यत्यस्य उक्तत्वाचजव , ज्ञािस्य मदाोक्षा्िय ज अनिहोत्राद्याश्रमदावमयधमदाायि जक्षा िा्ीत्यर्ाःय । चशब्दो
म न्नं िजषां मदाोक्षज नवनिनश्चिाः।
ज्ञानििाः ्च्त्प्रवृनत्तभ्यां नवशजष्त्त्वजऽिीनि वा, ‘रजषां ज्ञािं ्मदात्प
शभम कमदायनभरानधक्यं नविरीिैनवयिरयराः’ इत्यानचस्मृनिं वा ्मदानम च्चिोनि। िजि िाभ्यां ज्ञानििाः कर्ं नवशजष
इनि निर्मदा।्
म ावजवोिरोगोऽ्।म नकमदाानधक्य इत्यि आह —
्त्प्रवृत्ताःज मदाक्त
् ॥ 3-4-4-459 ॥
ज ा च रज्ञानचश्रिम रज श्ववि ॐ
ॐ ्वायिक्ष
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ज्ञािं प्रकृ िमदा।् ्वयधमदाायि जक्षा च ज्ञािोत्पत्यर् यमदाजव ि मदाोक्षार् यमदा।् कमिाः? रज्ञानचश्रिम ाःज ‘नवनवनचषनतु
रज्ञजि चािजि िि्ा’ इत्यानचश्रिम ाःज । उभरार्ं कमिो िजत्यि उक्तमदा ् — अश्ववि।् गि निवृत्तारां
्
ॐ शमदाचमदााद्यिजम िाः स्याि िर्ाऽनिि ्
म िनिधज्चङ्गिरा िजषामदावश्रािष्ठजम रत्वाि ॐ
॥ 3-4-4-460 ॥
म ऽज नि ज्ञािी शमदाचमदाानच्त्प्रवृ्त्यनिम जिाः स्याि।् कमिाः? िनिधजाः
िर्ानि ज्ञािस्यैव मदानम क्तहजित्व
‘आचारायनिद्यामदावाप्यैिमदाात्मािमदानभिश्रशातु ो भवजद्दातु ो भवजि’् इनि िस्य शमदाचमदााद्यि जित्वस्य
ज्ञानििो नवधािाि।् नकमदार्ोऽरं नवनधनरत्यि उक्तं िनचत्यानच। िचङ्गिरा प्र्िम ज्ञािाङ्गिरा
ज्ञािप्रनिष्ठािकिरा िजषां शमदाचमदााचीिामदावश्रािष्ठजम रत्वानचत्यर् याः। ‘ििो चमदााः कमदाेनि प्रनिष्ठा’
इत्यानचश्रिम नज रनि भावाः।
कर्ं िनहि निनषद्धान्नभो्िजऽनि ज्ञानििो ‘रनच वा अप्यजवं नवनन्ननखलं भक्षरीिैवमदाजव ् भवनि’ इनि
्रसा्ाभावोनक्तनरत्यि आह —
म
ॐ ्वायन्नािमदानिश्च ् ॥ 3-4-4-461 ॥
प्रामात्यरज िद्दशयिाि ॐ
चस्त्वर् याः ्ि ् श्रिम नज वयषरद्योिकाः। ‘रनच हवा इनि श्रिम ्वायन्नािमदानिश्च
म ज्ञानििाः प्रामात्यरनवषरा।
म ीि िचा ि िजि िस्य नवशजष इनि। कमिाः? िद्दशयिाि।् िस्य
रनच ज्ञािी प्रामात्यरकालज निनषद्धमदानि भञ्ज
प्रामात्यरज रर्ालब्धाचिस्य चशयिाि ् वाक्यशजष इत्यर् याः। ‘ि वा अ्ीनवष्यनमदामदाािखाचनन्ननि होवाच
कामदाो मदा उचिािमदा’् इनि उनच्छष्टनमदात्यचकत्यागज
म ि कमल्मषाभक्षमज ्ीविं ि स्यानचनि िद्भक्षमं दृश्रि
इनि नलङ्गचशयिाचजव ज्ञारि इत्यर् याः।
ॐ अबाधाच्च ॐ ॥ 3-4-4-462 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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नकञ्चजनि चार् याः। अन्याय्यािाचरमज ज्ञािज बाधकाभावाि ् ि ैवं कल्पिीरनमदात्यर् याः। ि नििीराः।
अन्द्धजनरनि भावाः।
ि िृिीर इत्याह —
भावाः।
ॐ शब्दश्चािोऽकामदाचारज ॐ॥ 3-4-4-464 ॥
अकामदाचारज ‘एवं िश्रन्न कामदाचनरिं चरजि’् इनि शब्दश्चान् रिोऽिो ि िृिीराः कल्प इत्यर्ाःय ।
ॐ नवनहित्वाच्चाश्रमदाकमदाायनि ॐ ॥ 3-4-4-465 ॥
म रज। ‘िश्रन्निीमदामदाात्मािं कमरायि ् कमदाय’ इनि श्रिम नवनहित्वाि ् आश्रमदााद्यमनचिकमदाय
य मदाय्मदाच्च
अनिवयमध
ॐ ्हकानरत्वजि च ॐ ॥ 3-4-4-466 ॥
म ाि्हकानरत्वजिानि कमदाय कारं, ि नवनहित्वाचजवनज ि चार् याः। नविाऽनि कमदाय ज्ञािाचजव
मदाोक्षहजिज्ञ
मदाोक्षस्वरूिन्द्ध ्म्पूमिय नत्सद्ध्यर्ं कमदाय ्हकानरिराऽिक्ष्य म ब्दार्ो वा
ज ि इनि नवशजषद्योिकिश
म रवाचो व्यावनियिाः। ‘ज्ञािाम जोक्षो भवत्यजव’ इनि स्मृनि्मदाच्च
चशब्दाः। िजि ्मदाच्च म ारक इत्यजकज॥4॥
्
उभरनलङ्गानधकरममदा॥3-4-5॥
् ॥ 3-4-5-467 ॥
ॐ ्वयर्ाऽनिि म ि एवोभरनलङ्गाि ॐ
अत्र ज्ञािस्यानधकानरमदाात्रप्राप्यत्वं ्ाध्यिज। उभशब्दिरायरोऽत्रोभरशब्दाः। ्वयर्ाऽनि
म ि्नत्तश्रवमाद्यिजकोत्साहजनि ि एव प्र्िम रोग्रा एव ज्ञािं प्राप्नवतु ीनि
चजशकालगरू म शजषाः। ि
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
् Page 175
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आह —
स्वभाव एव ्रमवनिष्ठिज’ इनि श्रनम िाः स्वभावस्यािनभभवं चशयरनि। अरोग्रिा च स्वभाव इनि कर्ं
िचनभभव इनि चार् याः। क्षनत्ररत्वानचकं त्वस्वाभानवकनमदानि भावाः।
चजवा्रम मदािष्यामामदाज
म म त्वाित्तजनरत्यि आह —
वं स्वभावत्वं कमिाः? िर्ात्वज फलस्यानि िचिगम म
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म च ॐ ॥ 3-4-5-471 ॥
ॐ नवशजषािह्यहं
म च ‘शृण्वज वीर उह्यमदाह्यम मदा’ ् इनि श्रनम िचयशरय िीत्यन्। अिश्च िद्धजिज्ञ
ज ीशस्य नवशजषािह्यहं
चजवष्व म ािमदानि
ज र् याः।
िजषामदाजवत्य
म ाऽऽह—
चैत्यािां स्वभावानभभवो िजत्यजिच ् रक्त्य
ॐ अिनस्त्विरज्ज्यारोनलङ्गाच्च ॐ ॥ 3-4-5-472 ॥
अि इनि नवशजषनज ि प्र्िम चजवभागस्य िरामदाशयाः। िरम वज । अह्यजऽन्वजनि। अिो
चजवभागानचिरच्रम ्ािमदाजव ज्याराः अनिबहलमदान् रिोऽिाः स्वभावािनभभव इत्यिषङ्गाः।
म अन्यर्ा
चजवभागदूििा स्यानचनि भावाः। ज्यारस्त्वमदाजव कमिाः? नलङ्गाि, ् ‘िस्मान्न्ििानमदाराि’् इनि
म
्ि्ङ्घाप्रवजशोक्त्यन्यर्ािििनत्तरूिनलङ्गाि ।् ‘किीर्ा एव चजवा ज्यार्ा आ्रम ााः’ इनि श्रिम श्च
ज नज ि
चार् याः।
िन्नजत्यिद्रूिमदा।् भावप्रधािमदा।् अभावाः अभूनिाः। भूिरज प्यिम लक्षममदा।् ‘िा्रम ा चैवीमदा’् इनि
निरमदाश्रिम ाःज । ‘िा्रम ामां चैवं रूिं’ इत्यिद्रूित्वश्रिम ाःज । ‘िं भूनिनरनि चजवा उिा्ाञ्चनक्ररज िज बभूवाःम ’,
‘अभूनिनरत्य्रम ा्ज िराबभूवाःम ’ इनि चजवा्रम भूत्यभूनिश्रिम नज रत्यर् याः॥5॥
्
अनधकानरकानधकरममदा॥3-4-6॥
म
ॐ ि चानधकानरकमदानि िििािमदाािाि ्
िचरोगाि ्
ॐ॥3-4-6-4॥
अत्र ज्ञािस्य चजवानचिचािाकानङ्क्षनभरजव प्राप्यत्वं ्ाध्यिज। चशब्दो ज्ञािज
म ोर्ध्यरजिस्त्वाचीनिकियव्यिािो
प्रागक्त चजवानचिचािाकानङ्क्षत्वाख्यजनिकियव्यिातु र्ूचकाः। अनिाः
म ्ूचिार् यमदा।्
कै मदात्य
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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कमिाः? िििािमदाािाि
म ।् अरोग्रमदाारोढंम रिमदाािस्य लोकज िििोिलम्भजि इहानि ब्रह्मानचिचाकाङ्क्षावाि ्
ििनि। अरोग्रारोहप्ररत्नवत्त्वानचनि भावाः। नवमदािो चजवानचनभाः िात्यिज, अशक्यित्पचजच्छुत्वाि ्
म
रा्िचजच्छुवनचनि वा िििािमदाािानचत्यर् ाःय । आद्यज इच्छारा रत्ननवशजषत्वोिगमदाान्नान्नद्धाः।
ॐ उििूवमदा ्
य िीत्यजकज भावशमदािवि िदुक्तमदा ्
ॐ॥3-4-6-475 ॥
म
िाकाङ्क्ष्यनमदात्यन्। आनधकानरकनमदात्यनक्तलब्धं चजविचनमदात्यजिनचहाप्यन्वजनि। उि जनि शब्दाः िूवो रस्य
िदुििूवं चजविचमदा ् उिचजविचनमदात्यर् याः। उिशब्दोऽरं ्मदाीिवनियवाची। ्ङ्ख्यराव्यरा्न्नजत्यत्र मदाञ्जरां
य ोक्तज ाः।
्मदाीि्मदाीनिरूिद्व्यर्त्व
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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िनम वयशषज द्योिकाः। बनह् म चजवनष यगन्धवयिचजभ्यो बनहभूिय ज्ञािभक्त्यानचष्वन् नवशजषाः। ् काः?
उभरर्ाऽनि आकाङ्क्षारामदािाकाङ्क्षारामदानि ि िििमदा।् कमिाः? ‘चजवनष यगन्धवायमामदा’् इनि स्मृिाःज ।
म
नवहारजनि वाक्यज ्वयकामदाह्यहमोक्तज ाः कर्ं भक्त्यानचकामदा इत्यि आचाराच्चजत्यनक्ताः। म ारक
चाः स्मृनि्मदाच्च
्
इनि भाष्याच भानि। ित्त्वप्रचीि ज ि म चकाराि ‘ऋषभं मदाा ्मदाािािां’ इनि श्रिम श्च
ज त्य ्
म मदा॥6॥
ज क्त
्
म नधकरममदा॥3-4-7॥
फलश्रत्य
प्र्ािामदानि फलमदा्ीत्याह —
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥ 3-4-7-479 ॥
ॐ ्हकारयतु रनवनधाःिक्षजम िृिीरं िििो नवध्यानचवि ॐ
्हकारयतु रजनि िक्षजमनज ि च भावप्रधािमदा।् प्र्ािां ्हकारयतु रत्वजि चजवाि प्रनि
् ्हकानरत्वजि नवधािं
िक्षजम िक्षत्वजि िृिीरं िृिीराः िक्षाः। कर्मदा ?् िििो नवध्यानचवि।् िििाः िनचनि
प्र्िम प्र्ा्निशजषााः नशष्याश्चोच्यतु ज। प्र्ाविो राज्ञाः नशष्यविो गरम ोश्च नवध्यानचवि।् आनचिचाि ्
फलमदा।् ्हकारयतु रजनि बद्ध्याऽि
म म
षङ्गाः। रर्ा प्र्ानशष्यामां रा्गरुम ्हकानरत्वजि नवधािफलं च
म ं ििनचत्यर्ाःय । रर्ा राज्ञो गरम ोश्च िालिज व्याख्यािज च प्र्ािां नशष्यामां च
िरोरजव मदाख्य
म ं िालिानचफलं िजषां त्वल्पं िर्ा चजवािां नवनहिज ज्ञािचािाच प्र्ािां
्हकानरत्वजऽनि िरोरजव मदाख्य
् वािां मदाख्य
्हकारीकरमाि चज म ं फलं प्र्ािामदाल्पनमदानि भावाः।
म
अतु रशब्दाः अिह्या्रमत्वरूिनवशज म
षिराः ित्सहकारीकरमं च चजवािां िजष्विह्यहारज
नि ्ूचरनि। रिा,
्
आचारयाः ्हकारी, प्र्ा् म ्हकारयतु रनमदानि द्योिनरिमदाम अतु रज म
त्यनक्ताः।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥ 3-4-8-481 ॥
ॐ मदा िवनचिरजषामदाप्यिम चजशाि ॐ
मदािम जभायवो मदा िं रनित्वमदा।् ििनचिराश्रमदाधमदाायमामदानि ‘चजवा एव ब्रह्मचानरमो चजवा एव गृहस्था चजव एव
विस्था रर्ा ्रमजि ज मदािम राः’ इनि श्रिम ाविम चजशानचत्यर्ाःय । रचा आश्रमदािरकनमदायत्विज ैव रनििो
चजवािामदाानधक्यं नकमदा म िचा ्वायश्रमदाकनमदायत्विज जनि भावाः॥7॥
्
अन्वरानधकरममदा॥3-4-9॥
् ॥ 3-4-9-482 ॥
ॐ अिानवष्कमवयन्नन्वराि ॐ
अत्रािरोक्षज्ञाि्ङ्गििरोज्ञािस्यानिगोप्यत्वं ्ाध्यिज। अिानवष्कमवयि ्
्भाचत्वरानचष्वानवष्कारमदाकमवयि, ् उिचजशनमदात्यिवत्यं
म , कमरायनचनि शजषाः। कमिाः? अन्वराि ्
म ज नरत्यर्ाःय । अन्वरानचत्यनक्ताः
उिित्तजनरत्यर्ाःय । आनवष्कारज अरोग्रािामदानि ज्ञािप्राप्त्याऽिर् यप्रान्रुिरक्त म
म ज व्यायन्मदात्त्वं वक्तमनमदानि॥9॥
अन्वीरिज ्ाध्यजि ्म्बध्यि इनि रक्त
्
ऐनहकानधकरममदा॥3-4-10॥
म
ॐ ऐनहकमदाप्र्िप्रनिबन्धज ् ॥ 3-4-10-483 ॥
िद्दशयिाि ॐ
अत्र ज्ञािस्य प्रनिबन्धाभावज ्ाधि्म्पूनिय्म जन्यजवोचराः ्ाध्यिज। इह ्म जनि भवमदाैनहकमदा।्
म
ॐ एवं मदानक्तफलानिरमदा्चवस्थावधृ
ि्ज चवस्थावधृिाःज ॐ
॥ 3-4-11-484 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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‘्वयप्रमदाामन्द्धत्वं वक्तममदााध्यारमदाूलिाः।
इनि श्रीमदाद्राघवजन्द्ररनिकृ िारां िन्त्रचीनिकारां िृिीराध्यारस्य चिर्म ाःय िाचाः। िृिीराध्याराः ्म्पूमाःय ॥
म
श्रीकृ ष्णाि यममदा्॥
म ध्याराः॥4॥
अर् चिर्ाय
् ॥ 4-1-1-485 ॥
ॐ आवृनत्तर्कृ दुिचजशाि ॐ
अत्र श्रवमाचजरावृनत्ताः कारेनि ्ाध्यिज। ज्ञािार्ं श्रवमाचजरावृनत्ताः कारेनि शजषाः। कमिाः? ‘् आत्मा
म
ित्त्वमदान्’ इत्यद्दालकज ि श्वजिकज ि ं म प्रनि अ्कृ ि ् अिजकवारं ििोिचजशानचत्यर्ाःय । नशष्यजम
ॐ नलङ्गाच्च ॐ ॥ 4-1-1-486 ॥
‘् ििोऽिप्यि। ििम रजव वरुमं नििरमदािम ््ार’ इत्यानचिा िाच ् भृगोाः श्रवमाचजरावियिरूिनलङ्गाच्च
श्रवमाचीिामदाावृनत्ताः कारेत्यर्ाःय ॥1॥
्
आत्मानधकरममदा॥4-1-2॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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आत्मा नवष्णरम ात्मा मदामदा स्वामदाीत्यजवोिगच्छनतु उिा्िज ्ािनतु च ्तु ाः। ह्याहरनतु च नशष्याि ्
म े स्वामदाीनि ्चोिान्ाः ्वयर्ा कारेत्यर् याः।
नशष्यजभ्य उिनचशनतु रिोऽिो नवष्णमदा
नवषर््मदाी। ‘िामदा ब्रह्मजत्यिम ा्ीि’ इत्याच श्रिम िामदााच प्रिीकज आत्मजत्यिम ान्ि य काराय। िामदाानचकं
ब्रह्मजनि िोिास्यमदा।् कमिाः? ि नह ्ह। नह रस्माि ् ् प्र्िम ो नवष्णाःम प्रिीकं ि भवनि।
् िर्ोिान्ाः। काराय।इत्योिा्जनि यशजधानचनि भावाः।
अि्रोरैक्याभावाि ि
् ॥ 4-1-4-489 ॥
ॐ ब्रह्मदृनष्टरुत्कषायि ॐ
म िज। आत्मजत्यि आत्मशब्दाः ््म्यतु िरा नविनरमम्य वियि।ज
अत्र ब्रह्मत्वोिा्जरावश्रकत्वमदाच्य
आत्मनि ब्रह्मदृनष्टाः ब्रह्मत्वोिा्िं य ोिान्ाः
िूमत्व ्वयर्ा आराय। कमिाः? उत्कषायि ्
म िूमत्व
्वयगम म ानचनि भावाः।
य रूिोत्कष यस्य ब्रह्मिचप्रवृनत्तनिनमदात्तत्वानचत्यर्ाःय । िर्ोिा्जरवज प्रीनिहजित्व
म मत्व
रिा िर्ोिा्जाः उिास्त्यतु रादुत्कृ ष्टत्वानचत्यर् याः। ्वयगमिू य रूिब्रह्मत्वस्य उत्कृ ष्टत्वरूििरा
म ा ‘ब्रह्मदृष्ट्या ्चोिास्यो नवष्णाःम ’ इनि
िर्ोिा्जरन्योिा्िादुत्कषायनचनि भावाः। ब्रह्मदृनष्टनरत्यक्त्य
स्मृनिाः ्ूनचिा। भूम्न इत्यत्रोक्तस्यास्य अवश्रकारयत्वार ििम नरहोनक्ताः॥4॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
आनचत्यानधकरममदा॥4-1-5॥
अङ्गजनष्वत्यत्रोक्तस्यावश्रकत्वोनक्तरत्रजत्यचोषाः॥5॥
्
आ्ीिानधकरममदा॥4-1-6॥
् ॥ 4-1-6-491 ॥
ॐ आ्ीिाः ्म्भवाि ॐ
अत्र ध्यािज आ्िानचनिरमदााः ्ाध्यिज। आ्ीिाः आ्िज उिनवष्ट एव ्चोिा्िं कमरायि।् कमिाः?
्म्भवाि ् आ्ीिस्यैव ्म्भवाि ् अन्यस्या्म्भवानचत्यर् याः।आ्ि्चोिा्िरोाः िरोनवयरोधाि ्
आ्िं िावश्रकनमदात्यि आह —
ॐ ध्यािाच्च ॐ ॥ 4-1-6-492 ॥
भावप्रधािमदा।् आ्ीिजि नक्ररमदाामस्य ध्यािरूित्वाचनवरोधश्चजत्यर्ाःय । स्मरमध्यािभजचिज उिा्िस्य
िैनवध्याि ् नित्यं कारयस्व स्मरमस्य िचिि जक्षत्वजऽनि ध्यािज िचावश्रकमदा।् अन्यर्ा नचत्तनवक्षजिानचनि
भावाः।
् ि जत्यि आह—
प्रत्यहारानचिाऽनि नवक्षजिनिरा्ाि नकमदाा्िज
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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स्मृनिनभरप्या्िस्यावश्रकत्वमदााह —
ॐ स्मरनतु च ॐ ॥ 4-1-6-494 ॥
कृ ष्णाचर उक्तमदार्ं ‘उिनवश्रा्िज’, ‘्मदां कारनशरोह्यीवं’ इत्यानचिा स्मरतु ीत्यर्ाःय ।
स्मृनिबहत्व्ूचिार बहवचिमदा।्
् ॥ 4-1-6-495 ॥
ॐ रत्रैकाह्यिा ित्रा नवशजषाि ॐ
ध्यािस्यजनि नविनरमम्यान्। रत्र चजशकालाच ध्यािस्यैकाह्यिा स्यात्तत्र ध्यािं कारयमदा।् ि ि म
्
ॐ आप्रारमाि ित्रानि ् ॥ 4-1-7-496 ॥
नह दृष्टमदा ॐ
अत्र ध्यािस्य प्ररामातु त्वं ्ाध्यिज। आङ् मदारायचारामदा।् प्रकषेम अरिं प्रारमं िारारमं प्रनि
प्ररामरूिमदाोक्षाः। आ प्रारमाि ्मदाोक्षिरयतु ं ध्यािमदावश्रकनमदानि प्र्िम मदान्वजनि। कमिाः? दृष्टं नह। दृष्टं
श्रनम िाः। नह रस्माि ् ‘् रो ह वै िद्भगवि ्मदािष्यज
म ष म प्रारामातु मदाोङ्कारमदानभध्यारीि’ इनि श्रनम िरस्त्यि
आकडारानचवचरं निचेशाः॥7॥
्
िचनधगमदाानधकरममदा॥4-1-8॥
् ॥4-1-8-497 ॥
ॐ िचनधगमदा उत्तरिूवायघरोर्जषनविाश िद्व्यिचजशाि ॐ
एवं प्रा्नङ्गकं ्मदााप्य अत्रजशज्ञािजि कमदायक्षराख्यफलन्नद्धाः ्ाध्यिज। िनचनि
ब्रह्मदृनष्टनरनिप्रकृ िब्रह्मिरामदाशयाः। िचनधगमदाज ब्रह्मचशयि ज ्नि उत्तरिूवायघरय ोरश्रजषनविाश
ज म
म ं क्षीरिज कमदाय’ इनि स्मृि्
उत्तराघस्या्जषाः िूवायघस्य नविाशो भविीत्यर्ाःय । ‘िाभक्त
अकृ िप्रानरनश्चत्तनवषरत्वस्य वा, अज्ञनवषरत्वस्य वा प्रारब्धनवषरत्वस्य वा कल्पिानचनि भावाः। ि च
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
ॐ अनिहोत्रानच ि म ित्कारायर ैव िद्दशयिाि ॐ
॥4-1-8-500 ॥
िाःम ज्ञानिि् म ि िजनषम इनि नवशजषार् याः। ित्कारयनमदानि कमदायधारर्जत्परुषश्च।
म िनचनि प्र्िम ानधगमदा
उच्यिज।
म व च। ि ि म
ज्ञानििोऽनिहोत्राद्यकाम्यं कमदाय ित्कारायरवै ज्ञािाख्यकारायर ज्ञािकारयमदाोक्षानिशरािभवारै
िाशा ्जषावाप्नोनि। िानि बन्धकमदा।् ज्ञािाि ् िूवक
य ृ िं ज्ञािार िाश्चात्यं ि म अनिशररजत्यर्ाःय । कमिाः?
िद्दशयिाि।् ‘र आत्मािमदाजव लोकमदािम ा्ज ि हास्य कमदाय क्षीरिज’ इनि श्रिम ावक्त
म ार् यस्य चशयिानचत्यर् याः।
म र् यप्रिीिजनरनि भावाः।
अक्षरमदाोक्षानिशरारजनि श्रत्य
म
इिरस्यजत्यस्य व्यवाराचनिहोत्राचीत्यनक्ताः। म नत्वनि वाच्यज एवमदानम क्ताः
िण्रं नवनशष्य प्रचशयिारजनि
म
ॐ अिोऽन्यचिीत्यजकजषामदाभरोाः ॐ ॥ 4-1-8-501 ॥
अिीत्यिाः अ्जषनविाशानवत्यन्। अिारब्धकारयनमदानि च। अिाः प्र्िम ाचकाम्याचन्यि ् काम्यं
म चाप्रारब्धमदानिष्टं चजनि शजषाः, िाशा्जषाववाप्नोनि। ि कज वलमदाघनमदात्यि जरर्ाःय । कमिाः?
िूवोत्तरिण्रं
इत्यजकजषामदाभम रोाः। इनि एवं िूवोत्तरिण्रिािरोस्त्यागज
म म
ि एकज षां शानखिां िाठोऽन् ‘िस्य ित्रा
म ृ त्यां नत्वषतु ाः िािकृ त्यामदा’् इत्यि इत्यियाः।
चारमदािम रनतु ्हृम चाः ्ाधक
म ृ त्यां इत्यविारय अिोऽन्यि ् काम्यमदाप्रारब्धमदानिष्टं च
ित्त्वप्रचीि ज ि म अघस्यैव िाशज कर्ं ्ृहृचाः ्ाधक
म िश्रिीत्यजवं भावानद्ध एकज षां शानखिामदारं िाठो ि ििम रकाम्यिण्म रस्य िाशानचिजनि इनिशब्दस्य
िण्रं
य मदािम त्य
हजत्वर्त्व ज ार् य उक्ताः।
म िप्रवज
िाशनशरस्काल्पफलस्य कमदायमो मदाक्त्य म शाः कर्नमदात्यि आह —
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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अनिहोत्राचीनि ित्कारयरवै नज ि चान्। ‘रचजव नवद्यरा करोनि श्रद्धरोिनिषचा िचजव वीरयवत्तरं भवनि’
म नमदात्यर् याः।
इनि श्रनम िनहि रस्माचस्त्यिोऽकाम्यं ज्ञानिकमदाय मदाोक्षोिरोगीनि रक्त
श्रिम नज रनि वाच्यज प्रिीकह्यहमजि िदुनक्तरज्ञकृ िकमदायमो िश्वराल्पफलकत्वजऽनि ज्ञानिकृ िस्य ि िर्जनि
द्योििार। िच्छ्रमिनज रत्यत्र नवद्यरा म न्यफलार
कृ िं कमदाय मदाक्त्य म मदा।्
शक्तनमदात्यक्त इह िम
मदाोक्षगिानिशरारजनि भजचाः।
म िाि ज चाि्िय
एिनि्ूत्रीन्यारो िजनषमां िण्रज म व्याः।
म
य मदा्॥
श्रीकृ ष्णािम
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म मदाािािां चजवािामदात्त
रर्ा मदाच्य म मदाजष म लराः एवं िचनभमदान्यमदाािािां चजहगािां वागानचवृत्तीिां मदाृनिकालज
् चनरिमदाम ।्
लरो भविीनि प्र्ङ्गाि ्ू
ॐ अि एव च ्वायण्रि म ॐ ॥ 4-2-1-505 ॥
अि इनि प्र्िम शब्दिरामदाशयाः। ्वायनम चैविानि अिस्वनिरम्यनिरामदाकाि
म म म लीरतु
्ारज
म
इत्यिषङ्गाः। कमिाः? अि एव ‘अि ्वे चजवा नवलीरतु ज’ इत्यानचशब्दाचजवत्य
ज र् याः।
् ॥ 4-2-2-506 ॥
ॐ िम जिाः प्राम उत्तराि ॐ
अत्र मदाि्ाः प्रामज लराः ्ाध्यिज। िि ् ‘ित्प्राक ् श्रिम ाःज ’ इनि ईशादुत्पन्नत्वजिोक्तं िूवरय ोगज
वानिरामदाकत्वजि प्र्िम ं वा मदािाः मदािोऽनभमदाािी शजषाः ्िम मयश्च प्रामज वामीिारा चिमदाम ख
मय ज लीरि
म
इत्यिषङ्गाः। कमिाः? उत्तराि।् शब्दानचत्यन्। िूवोक्तवाङ्मि्ीनि शब्दाि ् मदािाः प्राम
म
इत्यत्तराच्छब्दानचत्यर् म
ाःय । मदािाः प्राम इत्यजव िूिौ िनचत्यनक्ताः म
मदाि्ाः प्रामाचित्पन्नत्वज
ि
म िज प्रामाचिूित्वाच्च ि प्रामज लर इनि शङ्का्ूचिार।्मदाानध् म प्रामिारा
वागानच्वयप्रवृनत्तहजित्व
ईश्त्वाि ् ‘मदाि उचक्रमदााि ् मदाीनलि इव प्रामज उत्क्रातु ज िद्यि’ इत्याचज्ि ् ऊित्वानचनि
् नचिाः॥2॥
प्रकृ ष्टाििवानचप्रामिचाि ्ू
्
अध्यक्षानधकरममदा॥4-2-3॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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लीरतु ज। ि त्वजकनस्मन्निानवनि बहवचिार् याः। कमिाः? िच्छ्रमिाःज । िस्य भूिषज म चजवािां लरस्य ‘भूिषज म
चजवा नवलीरतु ज’ इनि श्रवमानचत्यर् याः। ‘अि चजवा नवलीरतु ज’ इनि श्रनम ि् म अह्यज ्ावकाशनरष्यि इनि
भावाः॥4॥
्
ि ैकनस्मन्ननधकरममदा॥4-2-5॥
् रिो नह ॐ ॥ 4-2-5-509 ॥
ॐ ि ैकनस्मि चशय
ू षज म लराः ्मदार्थ्यि।ज भूि इनि नविनरमामदाजि वियि।ज चजवािामदाि लरजऽनि िद्द्वारा
अत्र चजवािां ्वयभि
म इत्यिित्तज
वारावाकाशज च लरजि भूिनज ष्वनि प्रागक्त म ाः एकनस्मन्निावजव भूि ज चजवा नवलीरतु इनि ि
भवनि। कमिाः? नह रस्माि ् ‘िृनर्व्यां ऋभवो नवलीरतु ज वरुमजऽनश्विाविाविराः’ इनि, ‘ऋभवाः
िृनर्व्यां’ इनि, च श्रिम ी प्रत्यजकं भूिषज म चजविालरं चशयरिोऽि इत्यर् याः। ‘अि चजवा नवलीरतु ज’ इनि
म
ॐ ्मदािा चा्ृत्यिक्रमदााचमदाृ म
ित्वं चाििोष्य ॐ॥4-2-6-510॥
म
अत्र नश्ररो नवष्ण लराभावाः ्ाध्यिज। आद्यश्चो िञोऽििकष यकाः। अन्त्योऽवधारमज।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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बोध्यमदा।् ‘िज्ाः िरस्यां’ इनि श्रनम ि् म ‘हरजरत्यतु ्मदाामदाीप्यं लरो लक्ष्म्ााः’ इत्यक्तज
म रनि्ामदाीप्यिरजनि
भावाः।
लरशङ्कारामदारमदाारम्भाः।
म त्वज ्वय्ाम्यमदाीशजि स्याचि आह —
इत्यमदाक्त
् ॥ 4-2-6-511 ॥
ॐ िचिीिजाः ्ं्ारव्यिचजशाि ॐ
िचिीिजाः प्र्िम प्रकृ ि लरस्य ्ं्ारव्यिचजशाि ्ईशज लरस्य मदानम क्तव्यिचजशाच ् ‘ “नवलीिो नह प्रकृ ि
ि रोज्यमदा ् — अिो ि
्ं्ारमदाजनि नवलीिाः िरमदाज्रममदाृित्वमदाजनि” इनि श्रिम ’ इत्यिलक्षमत्वज
म
्वय्ाम्यनमदात्यर् याः।
इिश्च ि ्वय्ाम्यनमदात्याह —
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ िोिमदाचेिािाः ॐ ॥ 4-2-6-513 ॥
अिाः ्ाम्यिचभावरोरजव ्ानधित्वाि ् स्वािन्त्र्याचीशगम
म ा्ाधारण्राििमदाचे
म ि नित्यमदाक्त
म त्वानचिा
इिश्च नकनञ्चत्साम्यनमदात्याह —
उक्तमदाानक्षप्याह —
् ॥ 4-2-6-515 ॥
ॐ प्रनिषजधानचनि चजन्न शारीराि ॐ
अस्यजत्यन्। ‘्वे ्रमजिऽज मवो ्ारतु ज निरतु ज च’ इत्यानच श्रिम ईशाचन्यजष म
नित्य्वयगित्वाद्यभावस्य ईशज िद्भावस्य चोक्त्याऽस्य चजशकालव्याप्त्यानचिाऽनि ्ाम्यस्य प्रनिषजधाि ्
ि चजवचजव्योचेशानचव्याप्त्यानचिाऽनि ्ाम्यनमदानि चजन्न। शरीराि ् ्ीवाि ् ्ाम्यस्यैवश
ज स्य श्रिम
प्रनिषजधाि।् प्रकिज्त्प्रनिषजधाभावानचत्यर् याः। शरीरानचत्यनम क्त्स्य शारीरत्वजि
नित्य्वयगित्वारोगानचनि ्ूचनरिमदाम ।्
् ॥ 4-2-6-516 ॥
ॐ स्पष्टो ्रमजकजषामदा ॐ
एकज षां मदाानधरानन्दिािां ‘अर्ा्मदाा ब्रह्मजन्द्रो रुद्राः’ इनि श्रिम ्ीवािामदाजवा्मदात्वोनक्तिूवक
य ं प्रकृ िजाः
ॐ स्मरयि ज च ॐ ॥ 4-2-6-517 ॥
‘ब्रह्माद्यास्त्व्मदाााः प्रोक्तााः प्रकृ निश्च ्मदाा्मदाा’ इनि स्मरयि ज अ्मदात्वं ्मदाा्मदात्वं
चािश्च ैवनमदात्यर् याः॥6॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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्
िरानधकरममदा॥4-2-7॥
् ॥ 4-2-8-519 ॥
ॐ अनवभागो वचिाि ॐ
अत्र मदाक्त म िज।प्र्िम चजवानचमदाक्त
म ािामदाीशाधीित्वमदाच्य म ािां ्त्यकामदााचजरीशजच्छािाः
अनवभाग्ाचाम्येनमदा।् िजि नवषरिाचाम्येनं लक्ष्यिज। इच्छरैकनवषरत्वं िनचच्छाि्ानरत्वनमदानि
म
रावि।् ि स्वािन्त्र्यमदा।् कमिाः? वचिाि ् कामदाजि मदाज कामदा आगाद्धचृ राद्धचरं मदाृत्योनरनि
वचिानचत्यर्ाःय ॥8॥
्
िचोकोऽनधकरममदा॥4-2-9॥
्
ॐ िचोकोऽह्यज्वलिं ित्प्रकानशििारो नवद्या्ामदार्थ्ायि िच्छज म निरोगाच्च
षगत्यिस्मृ
म हीिाः शिानधकरा ॐ
हाचायिगृ ॥ 4-2-9-520 ॥
म ाऽत्र मदािष्यामा
एवं चजवािां मदाोक्षमदाक्त्व म म र्ं चजहोत्क्रमदामस्याज्ञमदाृनििो वैलक्षण्रं ्ाध्यिज। िनचनि िर
मदाक्त्य
इनि प्रकृ ि ब्रह्मोच्यिज।
उत्क्रानतु कालज िचोक्ो भगवचोक्ो हृचरस्याह्यज ज्वलिं प्रभा प्रादुभवय नि। िाविाऽज्ञाि ् को
नवशजषाः? अि उक्तं िनचनि। िजि प्रकाशजि प्रकानशििाडीिाराः ्ि ् चजहानन्नरायिीनि शजषाः। अज्ञ् म
ि ैवनमदानि ििोऽन् ज्ञानििो नवशजष इनि भावाः। ज्ञस्यानि प्रारब्ध्त्त्वाि ् कर्मदारं नवशजषोऽि उक्तं
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म हीिाः
नवद्या्ामदार्थ्ेि ैव निरायनििेत्याह — हाचेनि। हृत्सम्बनन्धिा हृनचस्थजि नवद्याप्र्न्नजि ईशजिािगृ
् िीत्यर् याः। करा िाड्यजत्यि उक्तं शिजनि।शिानधकरा ्षम म्नाख्यरज
्ि निराय म त्यर्ाःय ।
म निरोगानचत्यिजि ैव िूिौ िच्छजषत्य
गत्यिस्मृ म
ज नक्ताः म ं िजनि ि
नवद्यारा गनिस्मृनि्ाि जक्षत्वज उत्क्रमदामहजित्व
शङ्क्यमदा।् िस्या्च्छजषत्वाि।् ि हीनिकियव्यिामदाि जक्षमदाामो हजिरम हजिनम रनि द्योििारजनि।ित्त्वप्रचीि ज ि म
िचजनि नवच्छजचिज ोत्क्रानतु काल इत्यजकोऽर् य उक्ताः। ित्पक्षज ओमदााङोश्चजनि चकाराचन्यत्रािीनि
्धम ोक्तज ्चोक इनि ्ाध।म िनचनि च नवच्छजचिज िस्य नवदुषो ्ीवस्य हृचराह्यज्वलिं
भविीत्यन्योऽर्ोऽनभमदािाः।
म िाड्यतु ाः अज्ञवत्तमदा् ैव गमदािं स्याि।् अन्यर्ा ित्पचवैरत्य
िार इत्यक्त्या य ानचत्यि आह —
म
ॐ रश्म्यि्ारी ॐ ॥ 4-2-9-521 ॥
‘्हस्रं वा आनचत्यस्य रश्मदार आ् म िाडीष्वाििााः’ इनि श्रत्य
म ा िाड्यतु रािि् ररश्म्यि्ारी
म ्ङ्
ज्ञािी निरायिीत्यन्। िारप्रकाशस्यवैष्णवत्वाचतु ाः प्रकाशस्य ् रत्वाि ् िारिचमदार् यवि।् ‘िचा
उक्तमदाानक्षप्याह —
् ॥ 4-2-9-522 ॥
ॐ निनश िजनि चजन्न ्म्बन्धाि ॐ
म ानतु ि य स्यात्तचा रश्म्यभावानचनि चजन्न। ्म्बन्धाि।् रश्मदाीिानमदात्यिषङ्गाः
रात्र िरयवन्िकमदायमामदात्क्र म
ॐ रावद्दजहभानवत्वाद्दशयरनि च ॐ ॥ 4-2-9-523 ॥
म
्म्बन्धस्यजत्यिषङ्गाः। िाडीरनश्मदा्म्बन्धस्य रावद्दजहाभानवत्वाि।् ि चान्द्धनमदाचमदा।् ‘्ं्ष्टृ ा वा एिज
रश्मदारश्च िाड्यश्च ि ैषां नवरोगो रावनचचं शरीरं ’ इनि श्रनम िचयशरय नि रस्मात्तस्मानचत्यर्ाःय । चो रि
इत्यर्े।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
‘चनक्षमज मदारमाद्यानि स्वगं ब्रह्मोत्तरारमज’ इत्यक्त्या ज्ञानििो चनक्षमारि उत्क्रान्त्यरोगवि ्
म ान्त्यभावोिि्त्यना रात्रावत्क्र
रात्रवप्यत्क्र म ान्त्यिम िाचिारा्ो व्यर् य इत्यि आह —
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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िस्योक्तार् यस्य ‘िजऽनच यषमदाजवानभ्म्भवनतु ’ इनि श्रिम ‘िावजव मदाागौ प्रनर्िावनच यरानचनवयिनश्चिामदा’् इनि
स्मृि च प्रन्द्धजनरत्यर् याः। ‘् वारमदाम ’् इत्यस्य ि म गनिवयक्ष्यिज॥1॥
म
वारशब्दानधकरममदा ्
॥4-3-2॥
म
ॐ वारशब्दाचनवशज ् ॥ 4-3-2-527 ॥
षनवशजषाभ्यामदा ॐ
अत्र वारोरनच यरितु रप्राप्यत्वं ्ाध्यिज। म ब्दािारोाः
अनवशजषनवशजषाभ्यां वारश प्राप्यत्वश्रिम ाःज
म
वारोनिििीरप्राप्यत्वनमदानि शजषाः। ‘रचा ह वै िरुषोऽस्मािोकाि ् प्र ैनि ् वारमदाम ागच्छनि’ इनि
् ॥ 4-3-3-528 ॥
ॐ िनटिोऽनधवरुमाः ्म्बन्धाि ॐ
अत्र िनठिोकस्य ्ंवत्सरलोकाचितु रप्राप्यत्वं ्ाध्यिज। िनटि्िोकाचनध उिनर
् ॥ 4-3-4-529 ॥
ॐ आनिवानहक्निङ्गाि ॐ
म ो वाररम ानिवायनहकाख्यो
अत्रानच यषोऽितु रं प्राप्यवारोरानिवानहकत्वं ्ाध्यिज। नििीरप्राप्यिरा प्रागक्त
मदाख्य म कनश्चि,् ि मदाख्य
म वारिम त्राः म वाराःम । कमिाः? िूवप्रय ाप्यत्वरूििनिङ्गानचत्यर्ाःय ।
्
ॐ उभरव्यामदाोहि िनत्सद्धज
ाः ॐ॥ 4-3-4-530 ॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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भावाः।
्
उत्क्रातु ् म शरीराि स्वाि ् षमदाजव ि।म ििो नह वारोाः ित्रंम च रोऽ् िाम्नाऽऽनिवानहकाः॥
गच्छत्यनछय
ििोऽहं िूविय क्षं चाप्यचम क्संवत्सरं िर्ा। िनटिं वरुमं चजव प्र्ािं ्ूरमदाय वज च॥ ्ोमदां वैश्वािरं चजन्द्रं
ध्रवम ं चजवीं नचवं िर्ा। ििो वार ं म िरं प्राप्य िजि ैनि िरुषोत्तमदामदा
म ् इनि स्मृत्योक्तार्ाःय ्वो ध्यजराः॥4॥
॥’
्
वैद्य मिानधकरममदा॥4-3-5॥
म ि ैव िि्च्छ्रमिाःज ॐ ॥ 4-3-5-531 ॥
ॐ वैद्यिज
म वारोरनतु मदात्वं ्ाध्यिज। िि इत्यितु रमदान्याः प्राप्योऽ्ीनि ि शङ्क्यनमदानि
अत्रजशप्रान्मदाागे मदाख्य
शजषाः। नवद्यमिोऽरं वैद्यिम ाः। िजि नवद्यमत्पनििा वारिम ैव ब्रह्मगमदािश्रवमाि।् ‘् एिाि ् ब्रह्म गमदारनि’
इनि श्रवमानचत्यर् याः।
म
ॐ कारं बाचनररस्यगत्यिित्तज
ाः ॐ ॥ 4-3-6-532 ॥
म नत्तमदाि।् िच ् ब्रह्मजत्यन्वजनि। ‘् एिाि ब्रह्म’
एवं मदाागं नवचारय गम्यमदात्र निरूप्यिज। कारयमदात्प ् इनि श्रिम
म त्वाि ् कर्मदाजवनमदात्यि
मय ाख्यमदाजव वारिम यरिीनि बाचनरमदायन्यिज। ब्रह्मशब्दस्यजश ज मदाख्य
कारं ब्रह्म चिमदाम ख
उक्तमदा ्— अस्यजनि। ‘िर्ानि प्रकृ िजब यन्धो ब्रह्ममा ्ह नभध्यिज’ इत्यक्त्या
म चिमदाम ख
मय मदानम क्तिरयतु ं बन्धस्य
नवशजषश्रनम िबलाच्चामदाख्य
म ार्त्व
य नमदात्याह —
ॐ नवशजनषित्वाच्च ॐ ॥ 4-3-6-533 ॥
मय मदा’् इनि श्रिम चिमदाम ख
‘रनच वाव िरमदानभिश्रनि प्राप्नोनि ब्रह्मामं चिमदाम ख मय त्वजि ब्रह्ममो नवशजनषित्वाच्च
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म ज ाः कर्ं कारयनमदात्यि आह —
‘ब्रह्मनवचाप्नोनि िरं ’ इनि ज्ञानििाः िरप्राप्त्यक्त
म
ॐ ्ामदाीप्यात्तिद्व्यिचज
शाः ॐ ॥ 4-3-6-534 ॥
िरम वज । ज्ञानििाः िरप्रान्व्यिचजशाः िरप्रा्जाः कालिाः ्ामदाीप्याचजव हजिोि य ि म कारयस्याप्राप्यत्वान्न िरस्य
प्रर्मदाप्राप्यत्वानचत्यर् याः। ‘िद्व्यिचजश्’म इत्यनन्विाः ्ि ् ‘ब्रह्मनवि’् इनि श्रनम िगनि्ूचिार्ो वा
म ब्दाः।
िश
िान्त्याः। मदाािाभावानचत्यि आह —
् ॥4-3-6-535 ॥
ॐ कारायत्यरज िचध्यक्षजम ्हािाः िरमदानभधािाि ॐ
कारायमामदात्यरज िाशरूिप्रलरज िचध्यक्षजम कारायमां स्वानमदािा चिमदाम ख मय ाि ्िरं ब्रह्म
मय िज ्ह अिश्चिमदाम ख
इिश्च ैवनमदात्याह—
ज ॐ ॥ 4-3-6-536 ॥
ॐ स्मृिश्च
ब्रह्ममा ्ह िज ्वे ्म्प्रा्ज प्रनि्ञ्चरज। िरस्यातु ज िरात्मािाः प्रनवशनतु िरं िचमदा॥् इनि स्मृिश्च
ज
म एवार्ो ज्ञारि इत्यर्ाःय ।
कारायत्यर इत्यक्त
् ॥ 4-3-6-537 ॥
यम त्वाि ॐ
ॐ िरं ् ैनमदानिमदाख्य
‘् एिाि ् ब्रह्म’ इनि श्रिम िरं ब्रह्म वारगम मदाय रनि ि कारयनमदात्यर् य इनि ् ैनमदानिमदायन्यिज। कमिाः?
म त्वानचत्यर्ाःय ।
ब्रह्मशब्दस्य ित्र मदाख्य
म त्वज िचिििनत्ताः
मदाख्य म म ज त्यि आह —
प्रागक्त
ॐ चशयिाच्च ॐ ॥ 4-3-6-538 ॥
म यमदा।् श्रवमानच्ाधि ैरिरोक्षिरा िरस्यैव ब्रह्ममो चशयिाच्चान्यस्य िचभावाद्यमक्त एवात्र
िरस्यजत्यिवत्य
म ार् यस्वीकार इत्यर्ाःय ।
मदाख्य
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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इिश्च ैवनमदात्याह —
्
ॐ अप्रिीकालम्बिाि िरिीनि ्
बाचरारम उभरर्ा च चोषाि ित्क्रि म ॐ
श्च
॥ 4-3-6-540 ॥
प्रिीकं चजहाः। उिलक्षममदाजिि।् ित्रैव चजहाचावजव ब्रह्म िश्रतु ाः प्रिीकालम्बिााः।
िचन्यजऽप्रिीकालम्बिााः। व्या्िरा ब्रह्म िश्रतु इत्यर् याः। िाि ्िरं िरनि, ि ि म ्वायि।् अन्यािजव
म र् य इनि बाचरारमो मदान्यिज। कमिाः? उभरर्ा च चोषाि।् कांनश्चि ् कारं, कांनश्चि ्
च कारयनमदानि श्रत्य
िरनमदात्यिस्वीकृ त्य ्वायि ् कारयमदावज िरनि ि िरं , िरमदाजव ि कारयनमदात्यङ्गीकारज चोष्त्त्वानचत्यर्ाःय ।
म त्वं, िद्दशयि ं ित्रैवोिास्त्यानच्त्त्वनमदानि िरप्रान्िक्षज रत्साधकमदाक्त
आद्यज ब्रह्मशब्दस्य ित्र मदाख्य म ं
म ं स्याि।् अन्त्यज कारयस्यवै गम्यत्वोििनत्ताः, ‘ब्रह्मामं चिमदाम ख
िचरक्त मय ’ं इनि नवशजनषित्वनमदात्यानच रि ्
म ं स्यानचनि भावाः। उभरप्रान्िक्षज चोषिरािाि इत्यजिट्टीकारामदाजव
म ं िचरक्त
कारयप्रान्िक्षज ्ाधक मदाक्त
िनरहृिमदा।्
म
‘रत्प्रा्मदानभवाञ्छनि ित्प्राप्नोनि’ इनि वचिाि ् इच्छाि्ारज
म म नकं िरोाः प्रान्नरत्यि उक्तं -
म नज ि। श्रनम िह्यहममदाजिि।् ‘् रर्ाकामदाो भवनि ित्क्रिभम वय निरत्क्रिभम वय नि ित्कमदाय कमरुिज
ित्क्रिश्च
िचनभ्म्पद्यिज’ इनि श्रनम िरयिोऽिो िजच्छाि्ारज ् मवै त्य
म म ित्प्रान्ाः, नकतु म कज िनचि क्रमदाज ज र् याः। अत्र श्रिम
रत्प्रा्ीच्छा िज्ज्ञािोिा्िा िरोक्षरै वज ित्प्रा्जरुक्तत्वानचनि भावाः।
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म
अप्रिीकालम्बित्वानचनवशजष ं च ‘चजवा वाव ्वयप्रकाशा ऋषरोऽतु ाःप्रकाशा मदािष्या एव बनहाः
प्रकाशााः’ इनि श्रनम िचयशरय िीत्यर् याः॥6॥
म
म ध्यारस्य िृिीराः िाचाः ्म्पूमाःय ॥ श्रीकृ ष्णाि यममदा्॥
इनि श्रीराघवजन्द्ररनिकृ िारां िन्त्रचीनिकारां चिर्ाय
् ॥ 4-4-1-542 ॥
ॐ ्म्पद्यानवहार स्वजि शब्दाि ॐ
म स्य ब्रह्मािनिक्रमदाजमवै भोगािभवाः
अत्र मदाक्त म ्ाध्यिज। िरनमदात्यन्।
ज्ञािी िरं ब्रह्म ्म्पद्य प्राप्यानवहार िरं ब्रह्मािनिक्रम्य स्वजि रूि जमावनस्थिाः ्ि ् भोगाि ् भङ्क्त
म इनि
शजषाः। ‘एिं ्िज ं म िीत्वायऽन्धाः ्न्नन्धो भवनि’ इनि श्रनम िनवरोध इत्यि उक्तं - शब्दानचनि। ‘इमदाां
घोरामदानशवां िचीं िीत्वैि ं ्िज मदाम ाप्यैििज ैव ्िज िम ा मदाोचिज’ इत्यानचश्रिम नज रत्यर् याः। एिच्छ्रमत्यिरोधज
म ि
म ्ामदाान्यश्रिम रज र्ो वाच्य इनि भावाः।
प्रागक्त
म
्म्पद्यजत्यक्त्या ‘् एवंनवचजवं मदान्वाि एवं िश्रन्नात्मािमदानभ्म्पद्यिै िज ात्मिा रर्ाकामदां ्वायि ्
म
कामदााििभवनि’ इनि श्रनम िाः ्ूच्यिज। स्वजि जनि ‘िरं ज्योनिरुि्म्पद्य स्वजि रूि जमानभनिष्पद्यिज’ इनि
म त्वं स्याि,् ‘एिं ्िज ं म िीत्वाय’ इनि िचनिक्रमदा एव मदाक्त
श्रनम िाः ्ूनचिा। िरािनिक्रमदाज ्रममदाक्त म त्वोक्तज नरनि
म मदा।् स्वरूिानवभायवस्यैव मदानम क्तत्वानचनि। शब्दानचत्यनक्ताः
शङ्कां व्यचम न्ि ं म स्वजि जत्यक्त म श्रनम िनवरोध
निरा्ार्ाय॥1॥
म
मदाक्तानधकरममदा ्
॥4-4-2॥
् ॥ 4-4-2-543 ॥
म प्रनिज्ञािाि ॐ
ॐ मदाक्ताः
अत्र ब्रह्म प्राप्य िचनवहार भोगाि ्भञ्ज म त्वं ्ाध्यिज। ् ित्र िरेनि ्क्षि ्क्रीडि’ ् इत्यत्र
म ािस्य मदाक्त
म उच्यिज। ि ि म नक्रराप्रिीत्या ्ं्ारी। कमिाः? ‘अर् रचैि ं मदाक्त
मदाक्त म ोऽिप्रनवशनि
म मदाोचिज प्रमदाोचिज’
म तु रज मदाक्त
इनि श्रत्य म स्यैवैंनवधभोगप्रनिज्ञािानचत्यर् याः। ‘स्वजि रूि जमानभनिष्पद्यिज’ इत्यिम क्रमदाज स्पष्टं
मदाक्त ् क्त
म त्वस्य प्रनिभािानचनि चार् याः। श्रनम िनवरोधाि मदा म स्यानक्ररत्वं बानधिनमदानि भावाः॥2॥
्
आत्मानधकरममदा॥4-4-3॥
् ॥ 4-4-3-544 ॥
ॐ आत्मा प्रकरमाि ॐ
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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् ॥ 4-4-4-545 ॥
ॐ अनवभागजि दृष्टत्वाि ॐ
म भा्ामदा ् ईशभक्त
अत्र ्ारज्य म भा्ो
म भोगवत्त्वं ्ाध्यिज। अनवभागजि िरमदाात्मभोगानवभागजि ्ारज्य
् ञ्ज
भोगाि भ म िज, ि िार् यक्यजिनज ि रावि।् कमिाः? दृष्टत्वाि।् ‘रािजवाहं शृमोनमदा
म िज। िद्भागािजव कांनश्चत्स्त्भञ्ज
राि ् िश्रानमदा’ इत्यानचश्रिम िर्ा दृष्टत्वानचत्यर् याः। श्रनम िनरनि वाच्यज दृष्टत्वानचत्यनक्ताः
म मदान्त्र्याच
्
रा्भोग्रगािलास्यानचनकनञ्चद्भोक्तृत्वस्य लोकज दृष्टत्वानचनि ्ूचनरिमदाम ॥4॥
्
ब्राह्मानधकरममदा॥4-4-5॥
म
ॐ एवमदाप्यिन्या्ाि िू् वभ
य ावाचनवरोधं बाचरारमाः ॐ ॥4-4-5-548॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म ाः ॐ ॥ 4-4-6-549 ॥
ॐ ्ङ्कल्पाचजव च िच्च्रिज
म स्य ्ङ्कल्पमदाात्र्ाध्यभोगवत्त्वं ्ाध्यिज। मदाक्त
अत्र मदाक्त म ािां ्ङ्कल्पाचजव भोगन्नद्धाः। कमिाः?
िच्छ्रमिाःज । ‘्ङ्कल्पाचजवास्य नििराः ्मदानम त्तष्ठनतु ’ इनि िस्य श्रवमानचत्यर् याः। चशब्द् म लोकज भोगस्य
कमदाय्ाध्यत्वाि ् मदाक्त
म भोगस्यानि प्ररत्नािक्ष
ज नज ि ि वाच्यनमदानि शङ्खाव्यावृ्त्यनर् य इनि टीका।
चकाराचनिष्टभोगोिरमदाश्चजनि ित्त्वप्रचीिोनक्ताः॥6॥
्
अिन्यानधित्यनधकरममदा॥4-4-7॥
ॐ अि एव चािन्यानधिनिाः ॐ ॥ 4-4-7-550 ॥
म चहनमदारिामदाजव निरम्याः स्यानमदानि
म ािामदानिरम्यत्वरानहत्यजि भोगाः ्ाध्यिज। अि एव प्रागक्त
अत्र मदाक्त
म ोऽिन्यानधिनिाः क्लृ्स्वोत्तमदाजभ्योऽन्यानधिनिहीि इत्यर्ाःय । च् म रा्गृहं
्त्य्ङ्कल्पाचजव मदाक्त
प्रनवष्टस्य प्रनिहारिालानचनिरित्ववि ् म स्यािीशगृहं
मदाक्त प्रनवष्टस्यावरनिरम्यिा स्यानचनि
म र इनि ित्त्वप्रचीिोनक्ताः।
शङ्कानिवृ्त्यनर्ेनि टीका। ‘िरमदाोऽनधिनिस्त्वजषां’ इत्यानचप्रमदााम्मदाच्च
म स्वोत्तमदाािां िनित्वं वानरिं स्यानचत्यिोऽिन्यानधिनिनरत्यक्त
अिनधिनिनरत्यक्त ्
म मदा॥7॥
्
अभावानधकरममदा॥4-4-8॥
् ॥ 4-4-8-551 ॥
ॐ अभावं बाचनरराह ्रमजवमदा ॐ
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म स्य बोगािििनत्तनि
अत्र मदाक्त म म ािां बाचनरमदायन्यिज,
यरस्यिज। अभावं नचम जात्रचजहान्यप्राकृ िचजहस्याभावं मदाक्त
रजि दुाःनखत्वानचकमदााशङ्क्यं स्याि।् कमिाः? ‘अशरीरो वाव िचा भवनि’ इनि श्रनम िरजवमदााह नह
रस्मात्तस्मानचत्यर् याः।
चजह्द्भावमदाप्याह —
् ॥ 4-4-8-552 ॥
ॐ भावं ् ैनमदानिनवयकल्पाम्नािाि ॐ
म ािां नचम जात्रचजहान्यप्राकृ िचजहस्य भावं ्त्वं ् ैनमदानिमदायन्यिज। कमिाः? ‘नचिा वा
कचानचच ् भोगार्ं मदाक्त
अनचिा वा’ इनि श्रिम नवकल्पाम्नािानचत्यर् याः।
्
उक्तमदािरोनवयरुद्धत्वाि स्वमदािं नकनमदात्यि आह—
् ॥ 4-4-8-555 ॥
ॐ भावज ्ाह्यिि ॐ
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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ॐ स्वाप्यर्म्प्त्यनोरन्यिरािजक्षमदाानवष्कृ िं नह ॐ ॥4-4-8-557॥
स्वाप्यराः ्नम ्ाः। ्म्पनिमदानमय क्ताः। अन्यिरशब्दोऽत्रोभरिराः। ‘िीमो नह’ इनि वाक्यं ्नम ्मदाक्त्य
म भम रिरं ,
ित्त्वप्रचीिबृहद्भाष्यकमदायनिमयरटीका् म व्यक्तमदा।्
्
्गद्व्यािारानधकरममदा॥4-4-9॥
् ॥ 4-4-9-558 ॥
ॐ ्गद्व्यािारव्यमदा ॐ
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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म आप्नोनि, ि ि म ‘्वायि ्
म स्य भोगजरत्ता ्ाध्यिज। ्ृष्ट्यानच्गद्व्यािारव्ं कामदां मदाक्त
अत्र मदाक्त
म ा ्ृष्ट्यानचकामदााििीत्यर् याः।
कामदाािाप्त्वाऽमदाृिाः’ इनि श्रत्य
कमि इत्यि आह —
ॐ प्रकरमाच्नन्ननहित्वाच्च ॐ ॥ 4-4-9-559 ॥
म म्य’
‘शरीरभजचादूर्ध्यमदात्क्र इनि ्ीवप्रकरमाि ् ्ीवािां ्गञ्जििानच्ामदार्थ्ेऽ्नन्ननहित्वाि ्
् ‘्वायि कामदााि
िनिदूरत्वात्तद्धीित्वानचनि रावि — ् ’ ् इनि श्रिम ाःज ्ङ्कोचो रक्त
म इत्यर् याः।
उक्तमदाानक्षप्याह —
म ब्रह्माचीिामदामदाक्त
मदाक्त म ्गद्व्यािारोऽनि कमिो िजत्यि आह —
कमिाः? ‘इमदां मदाािवमदााविय िावियतु ’ज (छा.4.15.6) इनि श्रनम ि्र्ा चशयरनि नह रिोऽि इत्यर्ाःय ।
म र्ाःय ॥1॥
मदाािवा रत्रावियतु ज ् मदाािवावियाः ्ं्ाराः। िं िावियरतु ीनि श्रत्य
्
नस्थत्यनधकरममदा॥4-4-10॥
म ॐ ॥ 4-4-10-562 ॥
ॐ नस्थनिमदााह चशयरिश्च ैवं प्रत्यक्षािमदाािज
म ािां भोगानचिा वृनद्ध्रसा् िजत्यच्यिज
अत्र मदाक्त म । ‘ब्रह्मनम ्म्पन्नो ि ्ारिज ि निरिज ि हीरिज ि
ू त्वाि’् इत्यिमदाािं
म न्य
िद्धजिश म च एवं एकप्रकारजमावनस्थनिं चशयरिाः। मदाहिां प्रत्यक्षमदा्ीत्यजिि ् ‘ि
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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मदाक्त ्
म ािां भोगनवशजष्त्त्वाि कर्मदाज
वनमदात्यि आह —
ॐ भोगमदाात्र्ाम्यनलङ्गाच्च ॐ ॥ 4-4-11-563 ॥
भोगमदाात्रस्य ्ाम्यज म स्यािन्दवृद्ध्याद्यकारमत्वज
मदाक्त नलङ्गाच्च नलङ्गस्य ्त्त्वाच्चजत्यर् याः।
म
‘एिमदाािन्दमदारमदाात्मािमदािनवश्र ि ्ारिज ि निरिज ि ्रस्िज ि वध यिज रर्ाकामदां चरनि रर्ाकामदां
निबनि रर्ाकामदां रमदािज रर्ाकामदामदािम रमदािज’ इनि श्रिम म स्य
मदाक्त वृद्ध्याद्यभावोनक्तिूवं
् ॥ 4-4-12-564 ॥
ॐ अिावृनत्ताः शब्दाचिावृनत्ताः शब्दाि ॐ
अत्र मदाक्त ् ञ्जािस्याि
म स्य भोगाि भ म िम रावृनत्तरुच्यिज। मदाक्त
म ा िामदािावृनत्ताः, ि ि म ्वयकालस्यानि ्मदााप्त्या
स्वनगयवि ् ििरावृ
म ि’ज इनि शब्दाि ् श्रिम नज रत्यर्ाःय । ज्ञारि इनि शजषाः।
नत्ताः। कमिाः? ‘ि च ििराविय
म
म
्धीन्द्रग रम िाचािां नशष्यजम श्रीशिष्टरज
म ।
राघवजन्द्रम
ज रनििा कृ िोरं िन्त्रचीनिका॥
म ाः िाचाः॥4-4॥
म ध्यारस्य चिर्य
इनि श्रीराघवजन्द्ररनिकृ िारां िन्त्रचीनिकारां चिर्ाय
्मदाा्ोरं िन्त्रचीनिका॥
म
आचारायाः श्रीमदाचाचारायाः ्तु म मदाज ्म ज ्म जनि॥गरुभावं व्यञ्चरनतु भानि श्री ्रिीर् यवाक ् ॥कृ ष्णं वन्दज ्गद्ग मरुमदा ॥
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