Professional Documents
Culture Documents
ईश्वरकृष्ण की सांख्यकारिका सम्पूर्ण
ईश्वरकृष्ण की सांख्यकारिका सम्पूर्ण
तोता - अ ण पा डे य
उपो ात
मू ल कृितरिवकृितमहदा ा: कृितिवकृतय: स ।
षोडशक तु िवकारो न कृितन िवकृित: पु ष: ॥ ३ ॥
॥ भावाथ ॥
मूल कृ ित – अिवकृ ित है (िकसी के िवकार से उ प न नही होती ), महत्
आिद ७ (महत् ,अहंकार, और प चत मा ) कृ ित और िवकृ ित (कारण
और काय) ह, १६ (एकादशेि य और प चमहाभूत) केवल िवकार
(काय) ह , पु ष न तो कृ ित (िकसी का कारण) है न ही िवकृ ित (िकसी
से उ प न होने वाला ) है ।
माण
हेतम
ु दिन यम यािप सि यमनेकमाि तं िलंङ्गम् ।
सावयवं परत ं य ं िवपरीतम य म् ॥ १० ॥
॥ भावाथः ॥
य त व(२३) हे तु मत् (िकसी कारण से उ प न) , अिन य (नाशवान्), अ यािप
(सभी जगह या नह हो सकते) सि य(ि यावान्) अनेक, आि त(अपने
कारण पर आि त) िलङ्ग (लय यु ) सावयव (श द पश प रस ग ध
आिद अवयव से यु ) और परत ह । इससे िवपरीत अहे तु मत्, िन य,
िनि य, एक, अनाि त, अिलङ्ग, िनरवयव, वत , अ य त व ( कृ ित)
है ।
य अय क समानता और उनसे िवपरीत पु ष
जननमरणकरणानां ितिनयमादयुगप वृ े ।
पु षबह वं िस ं ग ै ु यिवपयया चैव ॥ १८ ॥
॥ भावाथ ॥
पु ष अनेक ह य िक सबके ज म ,मरण और करण (इि यां) अलग
अलग होती ह । सभी पु ष एक साथ िकसी काय म वृ नही होते ।
सबम तीन गु ण का िवपयय है । कोई स वगु ण के कारण सु खी , तो
कोई रजोगु ण के कारण दु ःखी और कोई तमोगु ण के कारण मूढ होता है
। अतः इन तीन कारण से पु ष का बह व िस होता है ॥
पु ष साि व आिद धम
त मा च िवपयासात् िस ं साि वम य पु ष य ।
कैव यं मा य यं ृ वमकतृभाव ॥ १९ ॥
॥ भावाथ ॥
उन तीन गुण के िवपयय हो जाने से पु ष सा ी मा है यह िस होता है
। वह गु ण से अ य (केवल) है, प र ाजक क तरह म य थ (तट थ) है,
ा है और अक ा है । क ा तो गु ण ह पु ष उनके िवपयय से यु है ।
गु ण का कतृ व
त मा ा यिवशेषा ते यो भू तािन प च प च य: ।
एते मृता िवशेषा: श ता घोरा मू ढा ॥ ३८ ॥
॥ भावाथ ॥
पांच त मा ाएं अिवशेष(िवशेष रिहत) ह उन पांच त मा ाओं से पांच भूत
उ प न होते ह जो िक िवशेष ह (पृिथवी ग ध तथा जल रस त मा के
कारण िवशेष है ) । और ये पांच महाभूत शा त= सु ख व प (स वगु ण
क धानता से), घोर = दु ःख व प (रजोगु ण क धानता से) और मूढ
= मोह व प (तमोगु ण क धानता से) ह ।
िवशेष का िै व य
स य ानािधगमाद् धमादीनामकारण ा ौ ।
ित ित सं कारवशा च िमवद् धृतशरीर: ॥ ६७ ॥
ा े शरीरभेद े च रताथ वात् धानिविनवृतौ ।
ऐकाि तकमा यि तकमु भयं कैव यमा नोित ॥ ६८ ॥
॥ भावाथ ॥
प चीस त व के अ छी तरह ान हो जाने पर धम, अधम, अ ान, वैरा य, अवैरा य,
ऐ य और अनै य मो के ित कारण नह ह यह ान ा हो जाने पर भी पु ष
मु नह होता , च िम (कु हार के चाक) क तरह वह सं कार के कारण मृ यु
से पहले तक शरीर को धारण करता हआ ि थत रहता है । धम, अधम, आिद के ारा
अिजत सं कार का य हो जाने पर जब पु ष शरीर से िभ न हो जाता है । तब वह
धान त व क िनवृि से च रताथ ऐकाि तक और आ यि तक दोन तरह के मो
को ा करता है ॥
उपसंहार