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DU/SOL - Assignment Based Evaluation - 2020.

Questions- Answer
B.A. (hons) Sem-II
Political Science – The world after1945/history
Code -(12315214)
Name:- …………………………………….. Date:-
SOL Roll no-………………………………………… Semester:-
Exam Roll No-……………………………………………
Subject-…………………………………………………….
Paper Code-……………………………………………

Q-4. वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? इसके ववभिन्न आयामों का वणणन कीजिए।
Ans- वैश्वीकरण एक सतत प्रक्रिया है जिसमें दनु नया के सिी दे श एक-दस
ू रे से
आर्थणक, रािनीनतक और साांस्कृनतक रूप से अांतर्णसांर्द्ध होते हैं। इस प्रक्रिया में
सिी सांिव स्तरों पर वैजश्वक सांचार र्ढ़ता है और ववश्व में एकरूपता और क्षेत्रीयता
दोनों की प्रवनृ त र्ढ़ती है । यह सच है क्रक इसमें सवाणर्धक दृश्यमान प्रिाव आर्थणक
स्तर पर होते हैं पर यह र्ाकी स्तरों पर िी समान रूप से प्रिावी है ।

वैश्वीकरण का सकारात्मक प्रिाव िहााँ समूचे ववश्व को एक वैजश्वक ग्राम में तब्दील
कर धीरे -धीरे ववश्व-नागररक की ववमा तक पहुाँचा रहा वहीां अपने नकारात्मक प्रिाव
में यह सांपूणण ववश्व को यह एक नव-साम्राज्यवाद युग में ले िाता प्रतीत हो रहा है ।

1992 वैश्वीकरण का सूत्रपात करने वाली नई आर्थणक नीनतयों को पेश करते समय
तत्कालीन केन्रीय ववत्त मांत्री (वतणमान प्रधानमांत्री) मनमोहन भसांह ने सुधारों के
पयाणवरणीय आयामों पर ददल्ली में एक िाषण ददया था। उस िाषण में उनका मुख्य
तकण ये था क्रक पयाणवरण सांरक्षण के भलये आर्थणक सांसाधनों की आवश्यकता होती है
िो उनकी नई नीनतयों से हाभसल हो िाएाँगे।
आर्थणक वैश्वीकरण के ननम्नभलखित प्रिाव रहे हैं :-
-अथणव्यवस्था का तेिी से ववकास सुननजश्चत करने के भलये र्ुननयादी ढााँचे और
सांसाधनों के दोहन की क्षमता में िारी इिाफा िरूरी था। इसके भलये सम्पन्न वगण
द्वारा अन्धाधुन्ध उपिोग को र्ढ़ावा ददया गया। इस दौरान हमारी अथणव्यवस्था मााँग
केजन्रत रही है और इस र्ात पर कोई ध्यान नहीां दे ना चाहता क्रक क्रकतनी मााँग (और
क्रकस उद्दे श्य से) िायि व वाांछनीय मानी िा सकती है और उसके क्या पररणाम
हो रहे हैं।
- व्यापाार (ननयाणत व आयात) उदारीकरण के दो पररणाम रहे हैं ववदे शी मुरा िुटाने
के भलये प्राकृनतक सांसाधनों का तेिी से दोहन तथा िारत में उपिोक्ता वस्तुओां व
कचरे का र्डे पैमाने पर आयात (तेिी से र्ढ़ते घरे लू कचरे के अलावा)। इससे कचरे
के ननस्तारण और स्वास््य के भलये गम्िीर समस्याएाँ पैदा हुई हैं तथा वाननकी,
मछुवाही, चरवाही, िेती, स्वास््य व दस्तकारी से िुडे परम्परागत रोिगारों पर र्हुत
र्ुरा असर पडा है ।

- पयाणवरणीय मानकों व ननयमों में ढील दे दी गई है या उनके उल्लांघन को


निरअन्दाि कर ददया िा रहा है ताक्रक दे शी और ववदे शी, दोनों तरह की कम्पननयों
को ननवेश के भलये अनुकूल माहौल भमले।

- अथणव्यवस्था को ववदे शी ननवेश के भलये िोल दे ने की विह से ऐसी-ऐसी कम्पननयााँ


िी िारत में चली आई हैं जिनका पयाणवरण (और/या सामाजिक मुद्दों) पर र्हुत
र्दनाम ट्रै क ररकॉर्ण रहा है । ऊपर से उनके भलये पयाणवरण और सामाजिक समानता
प्रावधानों को और कमिोर करने के भलये दर्ाव र्नाया िा रहा है । घरे लू कम्पननयों
के आकार और ताकत में िी िर्दण स्त इिाफा हुआ है और अर् वे िी इसी तरह का
दर्ाव र्नाने लगी हैं।

- ववभिन्न क्षेत्रों के ननिीकरण से उनके प्रदशणन में कुछ हद तक सुधार तो आता


है लेक्रकन यह व्यवस्था पयाणवरणीय मानकों की अवहे लना या उनमें ढील को िी
र्ेलगाम छूट दे दे ती है । अगर मनमोहन भसांह का वह दावा सच्चा होता तो अर् तक
दे श के पयाणवरण की रक्षा के भलये हमारे पास र्हुत सारे उपाय और कायणिम होते।
लेक्रकन सच ये है क्रक पयाणवरणीय सांकट तो पहले से और ज्यादा गम्िीर हो गया है ।
हमने आगे ददिाया है क्रक यह वैश्वीकरण की प्रक्रिया का एक अपररहायण और
अवविाज्य अांग है । जिस तरह यह भसद्धान्त गरीर्ों के भलये काम नहीां कर पाता
क्रक अथणव्यवस्था की ववकास दर र्ढ़ने से तरक्की के लाि एक ददन ररस-ररसकर
गरीर्ों तक िी पहुाँच िाएाँगे (दट्रकल र्ाउन भसद्धान्त) उसी तरह ‘ननवेश के भलये
सांसाधनों की आवश्यकता’ का तकण िी पयाणवरण की सेहत नहीां र्चा सकता।

- यहााँ ये स्पष्ट कर दे ना िरूरी है क्रक नीचे हमने कई क्षेत्रों और गनतववर्धयों की


िो आलोचना की है उसका ये मतलर् नहीां है क्रक हम उन व्यवसायों और गनतववर्धयों
के खिलाफ हैं। हम ये नहीां कह रहे हैं क्रक िनन, फूलों की िेती, औद्योर्गक मछुवाही,
आयात और ननयाणत आदद नहीां होना चादहए। गौर करने वाली र्ात भसफण ये हैं क्रक न
केवल हम ये सवाल उठाएाँ क्रक हमें उनकी िरूरत है या नहीां, र्जल्क ये िी पूछें क्रक
हमें उनकी क्रकस हद तक, क्रकस मकसद के भलये और क्रकन हालात में िरूरत है । ये
ऐसे सवाल हैं जिनको क्रफलहाल पीछे धकेल ददया गया है । दस
ू री र्ात ये है क्रक नीचे
उजल्लखित र्हुत सारे रुझान केवल वैश्वीकरण की मौिूदा मुदहम का ही नतीिा नहीां
है । उनमें से र्हुत सारे ऐसे हैं िो वपछले 5-6 दशकों में अपनाए गए ‘ववकास’ का
नतीिा हैं और/या वे अभिशासन, सामाजिक-आर्थणक असमानता व दस
ू री मूलिूत
समस्याओां का नतीिा है । वैश्वीकरण के इस दौर ने उन्हें न केवल और ज्यादा सघन
कर ददया है र्जल्क ऐसे नए-नए पहलू िी सामने ला ददये हैं िो िारत के पयाणवरण
व समाि के भलये इस तरह के ‘ववकास’ के ितरों को और ज्यादा र्ढ़ाते िा रहे हैं

र्ुननयादी ढााँचा और माल : मााँग ही सर् कुछ है :-

दो अांकों की आर्थणक वद्


ृ र्ध दर के एकमात्र लक्ष्य को ध्यान में रिते हुए मााँग ने
एक ऐसे ईश्वर की है भसयत पा ली है जिस पर आप उां गली नहीां उठा सकते। र्ुननयादी
ढााँचे या कच्चे माल या व्यावसानयक ऊिाण की िरूरत मानव कल्याण और समानता
के आदशों को ध्यान में रिकर तय नहीां हो रही है र्जल्क इसको आर्थणक वद्
ृ र्ध दर
के लक्ष्यों को ध्यान में रिकर तय क्रकया िा रहा है , यद्यवप इस वद्
ृ र्ध दर का
मानव कल्याण के साथ कोई अननवायण सहसम्र्न्ध ददिाई नहीां दे ता।

यही कारण है क्रक वपछले दो-एक दशकों के दौरान नये र्ुननयादी ढााँचे (हाइवे, र्न्दरगाह
और हवाई अड्र्े, शहरी र्ुननयादी ढााँचा और बर्िली घर आदद) के ननमाणण में र्ेतहाशा
इिाफा हुआ है । नतीिा ये है क्रक र्हुत सारी िमीन इन पररयोिनाओां के पेट में
चली गई है । ऐसी ज्यादातर िमीन िांगलों व तटों िैसे प्राकृनतक इलाकों की या
िेतों और चरागाहों की थीां।

1991 से दनु नया की कुछ सर्से ववशाल िनन कम्पननयााँ िारत में ननवेश कर रही
हैं। इनमें ररयो दटांटो जिांक (बिटे न), र्ीएचपी (ऑस्ट्रे भलया), एलकॉन (कनार्ा), नॉस्कण
हाइड्रो (नावे), मेरीडर्यन (कनार्ा), र्ी र्ीयसण (दक्षक्षण अफ्रीका), रे र्थयोन (अमेररका)
और फेल््स र्ॉि (अमेररका) आदद र्डी-र्डी कम्पननयााँ शाभमल हैं। इनमें से र्हुत
सारी कम्पननयों का पयाणवरणीय एवां सामाजिक ररकॉर्ण िारत की अपनी िनन
कम्पननयों िैसा या उनसे िी र्दतर रहा है ।

नीनतगत र्दलावों की ददशा इस लक्ष्य पर केजन्रत रही है क्रक िनन कम्पननयों के


भलये हालात ज्यादा से ज्यादा आसान हो िाएाँ। भमसाल के तौर पर, 1996 में िनन
कम्पननयों को अर्धकतम 25 वगण क्रकलोमीटर िमीन पट्टे पर दी िा सकती थी;
अर् यह सीमा 5,000 वगण क्रकलोमीटर तक र्ढ़ा दी गई है ! पहले से ज्यादा र्डे
इलाकों को िनसुनवाई की शतों से र्ाहर कर ददया गया है । ऐसी ही कई दस
ू री राहतें
िी िनन कम्पननयों को दी गई हैं। 2008 की राष्ट्रीय िननि नीनत में तो यहााँ तक
सुझाव ददया गया है क्रक पयाणवरणीय ननयमन को कम्पननयों की मिी पर छोड ददया
िाए!
ननयाणत : िववष्य की नीलामी:-

वैश्वीकरण के दौर में ननयाणत को र्ढ़ाने की झोंक में इन सारे भसद्धान्तों की िमकर
अवहे लना की गई है । िनन की तरह समुरी मछुवाही िी एक मुख्य लक्ष्य रही है ।
1990-91 में समुरी उत्पादों का ननयाणत 1,39,419 टन था िो 2008-09 में
6,02,835 टन हो गया था। िहााँ पहले हम महि दिणन िर दे शों को थोडे से उत्पाद
िेिा करते थे वहीां अर् हम 90 दे शों को लगिग 475 तरह की चीिों का ननयाणत
करते हैं। दनु नया िर में मात्रा और मूल्य, दोनों भलहाि से िारत दस
ू रा सर्से र्डा
मच्छी िेती उत्पादक दे श र्न गया है । यह सुनने में तो अच्छा लगता है , मगर
इसकी कीमत?

आन्र प्रदे श व तभमलनार्ु में झीांगा िेती की सामाजिक एवां पयाणवरणीय लागत उसकी
आर्थणक आमदनी से 3.5 गुना ज्यादा र्ैठ रही है (सालाना नुकसान : 6,728 करोड
रुपये; सालाना आय 1,778 करोड रुपये)। िैसे-िैसे नए-नए इलाके झीांगा िेती के
भलये तब्दील होते िाते हैं वैसे-वैसे स्थानीय समुदायों के आहार का मुख्य दहस्सा -
स्थानीय मछभलयााँ, िैसे मुलेट (मुगीलीदाई) और पलण स्पॉट (एट्रोलस सुराटें भसस) -
ित्म होता िाता है । 2008 में समुर से पकडी गई मछभलयों की तादाद 30 लाि
टन तक पहुाँच गई थी और तटवती पानी में (गहरे समुर में नहीां) अनतदोहन के
लक्षण ददिाई दे ने लगे थे और कई प्रिानतयों का अनतदोहन हो चुका था। दसवीां
पांचवषीय योिना के मछुवाही कायणर्ल की ररपोटण के अनुसार, ये समुर को ‘िुली
पहुाँच वाले क्षेत्र’ के रूप में इस्तेमाल करने का नतीिा है िहााँ परम्परागत मछुवाही
समुदायों को कोई पट्टे दारी अर्धकार नहीां ददए गए हैं। तकनीकी िी र्दल चुकी है ।

सरकर का दावा है क्रक नई नीनतयों के तहत र्डे ऑपरे टरों को केवल गहरे समुर में
ही मछली पकडने की इिाित दी िाएगी िहााँ परम्परागत मछुवारे नहीां िाते। मगर
अिी तक के अनुिव तो यही र्ताते हैं क्रक र्डे ट्रॉलर माभलक िी तट के आस-पास
ही मछली पकडना ज्यादा सुगम और सस्ता मानते हैं। ऊपर से ये ट्रॉलर मछभलयों
के प्रिनन के मौसम में िी गैरकानूनी ढां ग से मछभलयााँ पकडने से र्ाि नहीां आते।
इन्हीां कारणों से ट्रॉलर माभलकों और स्थानीय मछुवारों के र्ीच मारपीट की घटनाएाँ
आम हो गई हैं।

आयात उदारीकरण : कूडेदान र्नता िारत:-

वपछले एक दशक के दौरान िारत औद्योर्गक दे शों से आने वाले ितरनाक और


ववषैले कचरे का एक र्डा आयातक र्न गया है । अर् हम मोटा-मोटी 100 तरह का
कचरा आयात करते हैं। इनमें से कुछ दिणन चीिें र्ेहद ितरनाक हैं। धातु कचरे का
आयात सालाना कई भमभलयन टन तक पहुाँच गया है । 1996-97 में कचरे की छीलन
व पीवीसी (्लाजस्टक) कचरे का आयात लगिग 33 टन था िो 2008-09 में
12,224 टन तक िा पहुाँचा था। ्लाजस्टक कचरे का आयात 2003-04 में 1,01,313
टन था िो 2008-09 में 4,65,921 टन यानी चार गुने से िी ज्यादा हो चुका था।
आयानतत कचरे में एक र्हुत र्डा दहस्सा कम््यूटर और इलेक्ट्रॉननक उद्योग का रहा
है और यह लगातार र्ढ़ता िा रहा है । कचरे से सम्र्जन्धत मुद्दों पर काम करने
वाली सांस्था टॉजक्सक्स भलांक की एक िााँच के मुताबर्क, ददल्ली के रीसाइजक्लांग
कारिानों में लगिग 70 प्रनतशत ई-कचरा औद्योर्गक दे शों द्वारा िारत में िेिा
गया था।

उपिोक्तावाद और कचरा:-

िारत में आर्म्र्रपूणण उपिोग की मौिूदा लहर दे श के मुट्ठी िर अमीर तर्के में
ववदे शी उपिोक्ता वस्तुओां की िूि से पैदा हुई है । अस्सी के दशक में तत्कालीन
प्रधानमांत्री रािीव गाांधी ने आयात क्षेत्र को िोलना शुरू क्रकया था लेक्रकन उपिोक्तावाद
को सर्से र्डा उछाल तिी भमला िर् आर्थणक ‘सुधार’ शुरू क्रकए गए।

ववलाभसता वस्तुओां या लग्िरी गुड्स के उत्पादन में िो िारी इिाफा हुआ है उससे
पयाणवरणीय सन्तुलन पर गहरे असर पडे हैं। इस प्रक्रिया में सांसाधनों के िनन
(िदानें, पेडों की कटाई) से उत्पादन (प्रदष
ू ण, कामकािी ितरे आदद) तक र्हुत सारे
दष्ु पररणाम सामने आते हैं। दद एनिी ररसचण इांस्टीट्यूट (टे री) ने गैर-पुननणवीकरणीय
पदाथों (िैसे िननि पदाथण), औद्योर्गक उपिोक्ता वस्तुओां (जिनमें रे क्रफ्रिरे टर और
एयरकांर्ीशनर िैसे पयाणवरण को नुकसान पहुाँचाने वाले उत्पाद शाभमल हैं), वाहनों
आदद के इस्तेमाल में तेि इिाफे का अध्ययन क्रकया है । ये सारे नुकसान भसफण
िनसांख्या वद्ृ र्ध का पररणाम नहीां है र्जल्क सम्िवतः र्दलती िीवनशैली का पररणाम
ज्यादा हैं। अर् उपिोक्ताओां की पसन्द-नापसन्द िी र्दल रही है । पहले गैर-डर्ब्र्ार्न्द
वस्तुओां की मााँग ज्यादा थी तो अर् डर्ब्र्ार्न्द वस्तुओां की मााँग र्ढ़ गई है । टे री
का अनुमान है क्रक 2047 तक डर्ब्र्ार्न्द या पैकेटों में आने वाली वस्तुओां की पैक्रकां ग
पर होने वाला कागि का उपिोग प्रनतवषण 13.5 क्रकलोग्राम प्रनत व्यजक्त तक

्लाजस्टक पदाथण हमारे लोगों की जिन्दगी में क्रकतनी गहरी पैठ र्ना चुके हैं इसका
महि दो दशक पहले तक उसका अनुमान िी नहीां लगाया िा सकता था। 1991 से
अर् तक हमारी ववभिन्न प्रकार के ्लाजस्टक पदाथों की उत्पादन क्षमता 10 लाि
टन से र्ढ़कर 50 लाि टन से िी काफी ऊपर िा चुकी है । 2000-01 तक िारत
5,400 टन ्लाजस्टक कचरा प्रनतददन और लगिग 20 लाि टन प्रनतवषण पैदा कर
रहा था (र्ाद के आाँकडे उपलब्ध नहीां हैं)।

उपिोग असमानता:-

कार्णन उत्सिणन तो उपिोग असमानता का भसफण एक सांकेतक है । अगर हम उन सारे


उत्पादों और सेवाओां को िी िोड लें िो सर्से अमीर वगों के लोग इस्तेमाल करते
हैं और ये दे िें क्रक वे क्रकतना कचरा पैदा करते हैं तो उनके व्यवहार का पयाणवरणीय
प्रिाव सर्से ननधणन तर्कों के पयाणवरणीय प्रिाव के मुकार्ले और िी ज्यादा ियानक
ददिाई पडेगा।
ववववध सांकट : िोिन, पानी, आिीववका:-

िारत की आर्ादी का एक र्हुत र्डा दहस्सा र्हुत गम्िीर सांकटों – िाद्य असुरक्षा,
पानी की कमी, अपयाण्त ईंधन तथा असुरक्षक्षत आिीववका – से िूझ रहा है । ये
सारे सांकट वैश्वीकरण के मौिूदा चरण से पहले िी मौिूद थे और ववकास के
आधुननक रूपों के आने से पहले िी उनकी आहट सुनाई पडने लगी थी लेक्रकन
मौिूदा ववकास और वैश्वीकरण को इन्हीां सांकटों का इलाि र्ताकर तो लागू क्रकया
गया था। परन्तु इलाि तो दरू की र्ात रही, इस इलाि ने तो इन सांकटों को और
र्ढ़ा ददया है और र्हुत सारे इलाकों व समुदायों में इन्होंने ववकराल रूप ले भलया
है ।

पहले िाद्य असुरक्षा पर र्ात करें । हर रोि िूिे पेट सोने वाली आर्ादी का
प्रनतशत 1990 के दशक में 24 प्रनतशत से र्गरकर 2004-06 में 22 प्रनतशत रह
गया था। ये र्हुत मामूली र्गरावट है । इसके साथ यह िी त्य है क्रक दनु नया में
सर्से ज्यादा कुपोवषत और िूिे लोग िारत में ही है । िाद्य एवां कृवष सांगठन
(एफएओ) के मुताबर्क 2004-06 के दौरान यह सांख्या 25.1 करोड यानी दे श की
आर्ादी का लगिग एक चौथाई थी। अिी िी हमारे पास काफी मात्रा में अन्न है ,
िारतीय िाद्य ननगम (एफसीआई) के िण्र्ारों में अिी िी अनाि िरा है । इसके
र्ाविूद हर चौथा दहन्दस्
ु तानी िूिे पेट सोने को मिर्ूर है । हमारे यहााँ एक तर्का
ऐसा है िो अनाि िरीद ही नहीां सकता और सरकार की कल्याण योिनाएाँ उस
तक नहीां पहुाँच पातीां। इक्कीसवीां सदी में िाद्य पदाथों की कीमतों में चौंकाने वाले
इिाफे से ये जस्थनत और िरार् हो गई है । िैसे-िैसे करोडों लोग प्राकृनतक
सांसाधनों तथा कृवष आधाररत आिीववकाओां से वांर्चत होते िा रहे हैं और र्ािार
अथणव्यवस्था पर आर्ित होते िा रहे हैं वैसे-वैसे िोिन केवल नकदी के िररए ही
उपलब्ध होने लगा है िो क्रक ऐसे लोगों के भलये एक र्हुत दल
ु णि सांसाधन है ।
परम्परागत अनाि (िैसे ज्वार) और दलहन अथवा िांगलों व िलाशयों और नददयों
से भमलने वाले िांगली व अधणिांगली आहार आदद परम्परागत पोषण स्रोतों की
उपलब्धता में र्गरावट आई है और उनकी कीमतें िी गरीर्ों की पहुाँच से र्ाहर
चली गई हैं (मसलन नब्र्े के दशक की शुरुआत से दलहन की प्रनत व्यजक्त
उपलब्धता में 26 प्रनतशत र्गरावट आ चुकी है )।

िल असुरक्षा िी उतनी ही गम्िीर है । ग्रामीण और शहरी इलाकों के करोडों लोगों


के भलये पीने क पयाण्त पानी िुटाना एक दैननक सांघषण र्ना हुआ है । िलाशयों,
नददयों व िूभमगत िलस्रोतों का कुप्रर्न्धन, वषाणिल को िीांचने वाले कैचमेंट क्षेत्रों
का क्षरण, र्ार-र्ार आने वाले सूिे, शहरों में आर्ादी की तेि वद्
ृ र्ध, सतही और
िूभमगत स्रोतों का प्रदष
ू ण इसके सर्से प्रमुि कारण है । नीनतयों की ववफलता (िल
सांरक्षण व प्रर्न्धन) तथा िल सांसाधनों पर शजक्तशाली कम्पननयों व अमीर तर्के
का कैं िा इन समस्याओां की एक र्डी िड में है (उदाहरण के भलये , दे श के र्हुत
सारे िागों में जस्थत कोका कोला के र्ॉटभलांग सांयांत्रों ने स्थानीय समुदायों को
सुरक्षक्षत िूभमगत पानी से वांर्चत कर ददया है)।

िूभमगत पानी का सांकट िासतौर से र्चन्ता का ववषय है । िेती और औद्योर्गक व


शहरी िरूरतों के भलये इसका दोहन दे श के र्हुत सारे िागों में इतने ऊाँचे स्तर पर
पहुाँच गया है क्रक िमीनी िलस्रोत र्हुत तेिी से र्गरते िा रहे हैं। ग्रामीण िारत
में आधे से ज्यादा िूभमगत िलिांर्ों में पानी की िरपाई उतनी तेिी से नहीां हो पा
रही है जितनी तेिी से पानी ननकाला िा रहा है । सांसद में पूछे गए एक सवाल के
िवार् में सरकार ने र्ताया है क्रक दे श के एक नतहाई जिलों में िूभमगत पानी पीने
लायक नहीां है क्योंक्रक उसमें लोहा, फ्लोराइर्, आसेननक और िारापन र्हुत ज्यादा
है ।

िारत में पानी का कुल प्रयोग (लगिग 750 अरर् घन मीटर अिी िी उपलब्ध
मात्रा (लगिग 1869 अरर् घन मीटर) से कम ही है लेक्रकन 2025 के र्ाद यह
किी िी उपलब्ध स्तर को पार कर िाएगा और 2050 तक र्हुत ऊाँचे स्तर पर
िा पहुाँचेगा। यह जस्थनत तर् है िर् हम भसफण मानवीय प्रयोग की र्ात करें । अगर
हम प्राकृनतक इलाकों और दस
ू री अन्य प्रिानतयों के भलये िी पानी के तमाम
इस्तेमालों के र्ारे में सोचें तो दरअसल हम पहले ही सांकट में फाँस चुके हैं।
और अन्त में आिीववका या रोिगार का सांकट है । िैसे-िैसे प्रकृनत का वविांर्न
और िल/िमीन का क्षरण तेि होता िाता है अथवा प्राकृनतक सांसाधनों पर
परम्परागत समुदायों की पहुाँच घटती िाती है वैसे-वैसे वे समुदाय र्ेरोिगार होने
लगते हैं िो पहले स्वरोिगारयुक्त (क्रकसान, भशकारी-सांग्राहक, मछुवारे , चरवाहे ,
दस्तकार आदद) हुआ करते थे। अिी तक ऐसे आिीववका और रोिगारों का क्रकतना
नुकसान हुआ है , इस र्ारे में कोई व्यापक अनुमान उपलब्ध नहीां है । यह अपने
आप में इस र्ात का सांकेत है क्रक इस मुद्दे की क्रकतनी अनदे िी होती रही है ।

सर्से र्ुरा असर घुमन्तू समुदायों पर पडा है । उनके मौसमी आवागमन के रास्ते
अस्त-व्यस्त हो गए हैं, उनकी िीवन शैली व सांस्कृनतयााँ सांकट में हैं या उनकी
अवमानना हो रही है और नाना प्रिावों के चलते उनके अपने र्च्चे उनसे नछटकते
िा रहे हैं। राष्ट्रीय मानववकी सवेक्षण सांस्थान (एांथ्रोपोलॉजिकल सवे ऑफ इांडर्या)
का अनुमान है क्रक िारत में कम-से-कम 276 गैर-चरवाहा घुमन्तू व्यवसाय हैं
(भशकारी-सांग्राहक और र्हेभलये, मछुवारे , दस्तकार, र्ािीगर और कथावाचक, ओझा
आध्याजत्मक व धाभमणक कलाकार, सौदागर आदद)। इनमें से ज्यादातर ितरे में हैं।
कुछ पहले ही ित्म हो चुके हैं या ित्म होते िा रहे हैं और इन व्यवसायों से िो
लोग ववस्थावपत हुए हैं वे या तो असांगदठत क्षेत्र में असुरक्षक्षत, अपमानिनक, कम
आमदनी वाली और शोषण िरी नौकररयााँ करने लगे हैं या र्ेरोिगार हो गए हैं।
दे श के तकरीर्न चार करोड चरवाहा घुमन्तुओां में से ज्यादातर की िी कुछ ऐसी
ही जस्थनत है ।

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