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मगध मग शाकल्द्वीपी और भूमिहार भ्रम निवारण - Bhumantra
मगध मग शाकल्द्वीपी और भूमिहार भ्रम निवारण - Bhumantra
अनेकानेक विद्वानों ने मनगढं त या बिना पढे लिख डाला है कि मगध का नाम शाकल्द्वीपि ब्राह्मणों के नाम पर पड़ा है। शाकल्द्वीपि
ब्राह्मणों के विषय मे कहा जाता है कि भगवान् श्रीकृ ष्ण साम्ब के रोग निवारणार्थ उन्हे शाक द्वीप से
भारत लेकर आये थे , उनके भूलोक त्याग के पश्चात् गरूड जी के साथ शाकद्वीप लौटने के क्रम मे
क्रन्दन सुन वे सर्वप्रथम मगध क्षेत्र मे उतरे । (प्रमाण -पं श्री गौरीनाथ पाठक की पुस्तक मगदर्शन )
– किं तु इन्होने इस कथा के संबंध मे कोई शास्त्रीय प्रमाण न दिया है न कोई श्लोक उद्धृत किया है
फिर भी इस कथा की सत्यता मान भी लें तो लिखा है – “मगध मे उतरे ” अर्थात् शाकल्द्वीपियों के
आगमन के पूर्व भी उस प्रदेश का नाम मगध ही था।
महाभारत मे आदिपर्व के बाद ही सभा पर्व है , उसके बहुत समय बाद साम्ब का प्रकरण आता है।
सभा पर्व मे भी जरासंध को मागध कह के संबोधित किया है भीम ने। देखें –
( श्रीकृ ष्ण मे नीति है,मुझ (भीम) मे बल है और अर्जुन मे विजय की शक्ति है। हम तीनो मिलकर मगधराज के वध का कार्य पूरा कर
लेंगे, ठीक उसी तरह जैसे तीनों अग्नियाँ यज्ञ की सिद्धी कर देती हैं।)
इससे भी स्पष्ट जरासंध के जन्म तथा पिता का वर्णन देते समय भी श्रीकृ ष्ण उन्हे मगध का राजा बताते हैं जबकि ये सर्वविदित है कि
जरासंध श्रीकृ ष्ण से उम्र मे काफी बड़ा था फिर साम्ब की तो बात ही अलग है –
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( मगध देश में बृहद्रथ नाम से प्रसिद्ध एक बलवान् राजा राज्य करते थे।वे तीन अक्षौहिणी सेना के स्वामी और युद्ध में बडे अभिमान के
साथ लडने वाले थे।)
कु छ लोग भ्रामक तथ्य देते हैं कि लिंग पुराण के ५३ वें अध्याय मे ऐसा लिखा है। लिङ्गपुराण मे शाक द्वीप का वर्णन है न कि शाकल्द्वीपि
ब्राह्मण का स्वयं देखें : –
(शाक द्वीप में भी सात पर्वत हैं, उन्हें जानिए, हे श्रेष्ठ मुनियो ! उदय, रै वत , श्यामक , शोभा सम्पन्न राज पर्वत हैं । अम्बिके य के बाद
सभी प्रकार के औषधियों से युक्त रम्य पर्वत है।उसके बाद के सरी पर्वत है जहाँ से के सर सुगंध युक्त वायु उत्पन्न होती हैं।) पूर्णतया
भूगोल का वर्णन है किसी जीव का नही।
एक और भ्रामक प्रचार है कि शाकल्द्वीपियों को मग कहा जाता था उन्ही के नाम पर मगध नाम पडा ये भी सर्वथा भ्रामक है उन्हे मग
नही मङ्ग कहा गया है शास्त्रों में प्रमाण स्वयं देखें –
नरे श्वर! उनमे मंग जनपद में अधिकतर ब्राह्मण निवास करते हैं।वे सब के सब अपने कर्त्तव्य पालन में तत्पर रहते हैं।)
अतः सुस्पष्ट है कि मग ब्राह्मण या मगध ब्राह्मण शाकल्द्वीपियों से सर्वथा भिन्न विशुद्ध मगध के ही ब्राह्मण हैं जिनके नाम पर कीकट प्रदेश
मगध कहा गया।
(यह भी पढ़े – मगध में नक्सल का प्रमुख टारगेट भूमिहार जाति ही क्यों ? – बाबू झूलन सिंह )
कु छ वाग्विलासी आत्मप्रवंचना करते हैं कि शब्दकल्पद्रुम मे ‘ ऋतवत’ शब्द शाकल्द्वीपियों के अर्थ मे है जबकि सत्य यह है कि ऋतवत
का प्रयोग शब्दकल्पद्रुम मे मगों के लिए है न कि मङ्ग अर्थात् शाकल्द्वीपियों के लिए।
इसका प्रमाण ये भी है कि अथर्ववेद में ऋतावत शब्द मगध के परिपेक्ष्य मे तथा आध्यात्म काण्ड मे भी व्रात्यों की स्तुति मे आया है – ऐसे
मे जब शाकल्द्वीपि महाभारत काल मे यहाँ आये हैं तो अथर्ववेद रचना का काल निश्चित द्वापर से पूर्व का है और उसमे भी मगध नाम
उपर से व्रात्य स्तुति मे ऋतायत – इस से स्पष्ट है कि ये शाकल्द्वीपि विद्वान भ्रम के शिकार हैं।
एक और प्रमाण अधिकांश शाकद्वीपि विद्वान स्वयं के सूर्यपूजक होने का दावा करते हैं जबकि महाभारत भीष्म पर्व मे स्वयं वेदव्यास ने
लिखा है कि शाकद्वीपि भगवान् शंकर की पूजा करते हैं प्रमाण देखें-
को
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इस से स्पष्ट है कि मगध के प्राचीन “मग” ब्राह्मण ही सूर्य पूजक हैं जबकि शाकल्द्वीपि बाद के कालों में आए और शिवोपासना शुरु की ।
मगध क्षेत्र के किसी भी शाकल्द्वीपि ब्राह्मण के गाँव मे आज भी कोई प्राचीन सूर्य मंदिर नही है।
यह टिकारी राज्य का लिखित दस्तावेज है कि १८६४ तक ये मगध मे वैद्य का कार्य करते थे – १८६४ मे टिकारी नरे श की अनुशंसा पर
इन्हे पाण्डित्याघिकार मिला था भूमिहार ब्राह्मण पंडितों से।
मगध क्षेत्र में देव मायर आदि अति प्राचीन सूर्य मंदिर जिन गाँवों मे हैं वो मगध के बाभनों अर्थात भूमिहार ब्राह्मणों का गाँव है तथा वही
वहाँ परं परा से पुजारी रहे हैं जिसका स्पष्ट प्रमाण बंगाल गजेटियर , देव की पाण्डित्य परं परा , मुगल दस्तावेजों तथा प्राप्त ताम्र पत्रों से
मिलता है।
वैसे भी यह सोचने वाली बात है क्या इनके आगमन से पूर्व मगध मे पाण्डित्य आचार्य कु लगुरु न थे, यदि परं परा से राज्य का वर्णन है तो
निश्चित धर्मदण्ड होगा । बाहरी पंडित का सत्कार भले हो किन्तु कु ल गुरु थोडे बदले जाते हैं कभी ?
अग्रहार वो गाँव होता है जहाँ के वल समगोत्रिय ब्राह्मण रहें बाकि अन्य जातियों के गाँव थोडी दू र पर अग्रहार क्षेत्र मे सेवा देने के लिए रहे
, १९५९ मे बिहार के राज्यपाल रं गनाथ दिवाकर ने अपनी पुस्तक – बिहार थ्रू द एजेज मे आर्क्यूलॉजिकल तथा शास्त्रीय प्रमाणों के
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आधार पर बिहार के जिन जिन गाँवों को अग्रहार गाँव चिन्हित किया सभी भूमिहार ब्राह्मणों के गाँव थे – और आज़ तक विशुद्ध रूप से
वैसे हैं कु छ भाँजों के गाँव मे बस जाने से थोडा संख्या अन्य गोत्र का भी हुआ है।
धूपमाल्यैर्जपैश्चापि ह्यपहारै स्थैव च।भोजयन्ति सहस्त्रांशुं तेनेते भोजकाः स्मृता ।।( भवि० ब्रा०
अ० ११७)
धन्यवाद्
मगध पुत्र
अंबुज शर्मा
संदर्भ –
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