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इकाई पाठ – योजना

 कक्षा – नवमीं
 पुस्तक – स्पर्श (भाग-१)
 विषय-वस्तु – कविता
 प्रकरण – ‘ पद ’ - रैदास
शिक्षण- उद्देश्य :-
1. ज्ञानात्मक –
1. कविता का रसास्वादन करना।
2. छात्रों को आध्यात्मिक मूल्यों से अवगत कराना।
3. कविता की विषयवस्तु को पूर्व में सुनी या पढ़ी हुई कविता से संबद्ध करना।
4. नए शब्दों के अर्थ समझकर अपने शब्द- भंडार में वृद्धि करना।
5. साहित्य के पद्य –विधा (पद) की जानकारी देना।
6. छात्रों को कवि एवं उनके पदों के बारे में जानकारी देना।
7. आध्यात्मिक मूल्यों की ओर प्रेरित करना।
8. आदिकालीन कविता की विशेषताओं से अवगत कराना।
2. कौशलात्मक -
1. स्वयं कविता लिखने की योग्यता का विकास करना।
2. आदिकालीन कविताओं की तुलना अन्य कविताओं से करना।
3. ईश्वर के प्रति आस्था एवं भक्ति की भावना जागृत करना।
3. बोधात्मक –
1. आध्यात्मिकता एवं रहस्यवाद पर प्रकाश डालना।
2. रचनाकार के उद्देश्य को स्पष्ट करना।
3. कविता में वर्णित भावों को हॄदयंगम करना।
4. ईश्वर के प्रति भक्ति –भाव प्रकट करना।
4. प्रयोगात्मक –
1. कविता के भाव को अपने दैनिक जीवन के व्यवहार के संदर्भ में जोड़कर देखना।
2. पद को समझकर स्वयं पद लिखने का प्रयास करना ।
3. कविता का के न्द्रीय भाव अपने शब्दों में लिखना।
सहायक शिक्षण – सामग्री:-
1. चाक , डस्टर आदि।
2. पावर प्वाइंट के द्वारा पाठ की प्रस्तुति।
पूर्व ज्ञान:-
1. कविता - रचना के बारे में ज्ञान है।
2. ईश्वर के प्रति भक्ति की भावना है।
3. साहित्यिक-लेख की थोड़ी-बहुत जानकारी है।
4. सामाजिक व्यवहार से वाक़िफ़ हैं।
5. मानवीय स्वभाव की जानकारी है।

प्रस्तावना – प्रश्न :-
1. बच्चो! क्या आपने कोई पद पढ़ा है ?
2. क्या आपने संत रैदास की कोई रचना पढ़ी है ?
3. ईश्वर के प्रति आप अपना विश्वास किस तरह प्रकट करते हैं ?
4. आप अपने आपसे क्या अपेक्षाएँ करते हैं ?
उद्देश्य कथन :- बच्चो! आज हम आदिकालीन कवि ‘ रैदास ’ के द्वारा रचित ईश्वर-भक्ति एवं आध्यात्मिक मूल्यों से प्रेरित पाठ ‘
पद ’ का अध्ययन करेंगे।
पाठ की इकाइयाँ—
प्रथम अन्विति— ( अब कै से………………भक्ति करै रैदासा।। )
 राम नाम की रट न छू टना।
 भगवान और भक्त की तुलना करना।
 कवि के द्वारा अपनी भक्ति प्रकट करना।
द्वितीय अन्विति :- ( ऐसी लाल…………….ते सभै सरै॥ )
 भगवान का अपने भक्त के प्रति प्रेम।
 ईश्वर का गुणगान।
 प्रसिद्ध संत कवियों का वर्णन।
 ईश्वर के द्वारा ही सकल कार्य की सिद्धि होना।

शिक्षण विधि :-

क्रमांक अध्यापक - क्रिया छात्र - क्रिया

१. कविता का के न्द्रीय भाव :-


पहले पद में कवि अपने आराध्य को याद करते हुए उनसे कविता को ध्यानपूर्वक पढ़्ना और सुनना तथा समझने का प्रयत्न
अपनी तुलना करता है। उसका प्रभु बाहर कहीं किसी मंदिर या करना। साथ ही अपनी शंकाओं तथा जिज्ञासाओं का निराकरण
करना।
मस्ज़िद में नहीं विराजता वरन उसके अपने अंतस में सदा
विद्यमान रहता है। यही नहीं , वह हर हाल में , हर काल में
उससे श्रेष्ठ और सर्वगुण संपन्न है। इसीलिए तो कवि को उन
जैसा बनने की प्रेरणा मिलती है।
दूसरे पद में भगवान की अपार उदारता , कृ पा और उनके
समदर्शी स्वभाव का वर्णन है। रैदास कहते हैं कि भगवान ने
तथाकथित निम्न कु ल के भक्तों को भी सहज-भाव से अपनाया
है और उन्हें लोक में सम्माननीय स्थान दिया है।

२. कवि-परिचय :- ‘ संत रैदास ’ का जन्म सन १९३८ में और निर्वाण कवि के बारे में आवश्यक जानकारियाँ अपनी अभ्यास –पुस्तिका
सन १५१८ में हुआ। मध्ययुगीन साधकों में इनका विशिष्ट में लिखना।
स्थान है। मूर्तिपूजा , तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में रैदास का ज़रा
भी विश्वास न था। वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और
आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे। रैदास ने अपनी
रचनाओं में सरल , व्यावहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है
जिसमें अवधी , राजस्थानी , खड़ीबोली और उर्दू-फ़ारसी के
शब्दों का मिश्रण है। रैदास को उपमा और रूपक अलंकार विशेष
प्रिय रहे हैं। इनका आत्मनिवेदन , दैन्य भाव और सहज भक्ति
पाठक के हॄदय को उद्वेलित करते हैं। रैदास के चालीस पद
सिक्खों के पवित्र ग्रंथ ‘ गुरु ग्रंथ साहब ’ में भी सम्मिलित हैं।

३. शिक्षक के द्वारा पाठ का उच्च स्वर में पठन करना। उच्चारण एवं पठन – शैली को ध्यान से सुनना।

४. कविता के पदों की व्याख्या करना। कविता को हॄदयंगम करने की क्षमता को विकसित करने के लिए
कविता को ध्यान से सुनना। कविता से संबधित अपनी जिज्ञासाओं
का निराकरण करना।

५. कठिन शब्दों के अर्थ :-


बास – गंध , घन – बादल , चितवत – देखना , चकोर – तीतर छात्रों द्वारा शब्दों के अर्थ अपनी अभ्यास-पुस्तिका में लिखना।
की जाति का एक पक्षी जो चंद्रमा का परम प्रेमी माना जाता है
, बरै – बढ़ाना/जलना , सुहागा – सोने को शुद्ध करने के लिए
प्रयोग में आने वाला क्षार द्रव्य , लाल – स्वामी , ग़रीब निवाजु
– दीन-दुखियों पर दया करने वाला , माथै छत्रु धरै – मस्तक
पर स्वामी होने का मुकु ट धारन करता है , छोति – छु आछू त ,
जगत कौ लागै – संसार के लोगों को लगती है , हरिजीऊ – हरि
जी से , नामदेव – महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध संत , तिलोचनु –
एक प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य जो ज्ञानदेव और नामदेव के गुरु थे
, सधना – एक उच्च कोटि के संत जो नामदेव के समकालीन
माने जाते हैं , सैनु – रामानंद का समकालीन संत ।

६. छात्रों द्वारा पठित पदों में होने वाले उच्चारण संबधी अशुद्धियों को दूर करना। छात्रों द्वारा पठन।

७. कविता में आए व्याकरण का व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करना। व्याकरण के इन अंगों के नियम, प्रयोग एवं उदाहरण को अभ्यास-
 तुकांत शब्दों का प्रयोग पुस्तिका में लिखना।
 ब्रज भाषा के शब्दों का प्रचलित रूप

गृह – कार्य :-
1. कविता का सही उच्चारण के साथ उच्च स्वर मेँ पठन करना।
2. पाठ के प्रश्न – अभ्यास करना।
3. कविता का के न्द्रीय भाव संक्षेप में लिखना।
4. पाठ में आए कठिन शब्दों का अपने वाक्यों में प्रयोग करना।

परियोजना कार्य :-
1. भक्त कवि कबीर , गुरु नानक , नामदेव और मीराबाई आदि कवियों की रचनाओं का संग्रह करना।।
2. पाठ में आए दोनों पदों को याद कीजिए और कक्षा में गाकर सुनाइए।
मूल्यांकन :-
निम्न विधियों से मूल्यांकन किया जाएगा :-
1. पाठ्य-पुस्तक के बोधात्मक प्रश्न—
o पहले पद में भगवान और भक्त की तुलना किन-किन चीज़ों से की गई है ?
o दूसरे पद में कवि ने ‘ गरीब निवाज़ु ’ किसे कहा है ?
o रैदास ने अपने स्वामी को किन-किन नामों से पुकारा है है?
o रैदास के पदों का कें द्रीय भाव लिखिए ।

2. इकाई परीक्षाएँ
3. गृह – कार्य
4. परियोजना – कार्य

प्राचार्य के हस्ताक्षर विषय- शिक्षक के हस्ताक्षर

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