भगवान दोनों ही मेरे सम्मुख खड़े है, परन्तु गुरु ने ईश्वर को जानने का मार्ग दिखा दिया है। कहने का भाव यह है कि जब आपके समक्ष गुरु और ईश्वर दोनों विधमान हो तो पहले गुरु के चरणों में अपना शीश झुकाना चाहिए, क्योंकि गुरु ने ही हमें भगवान के पास पहुँचने का ज्ञान प्रदान किया है।
2 पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित
भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुंच गए, पर सभी विद्वान न हो सके । कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के के वल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, तो वही सच्चा ज्ञानी होगा। 3 दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय॥ परमात्मा कबीर जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवान् को याद करते हैं पर सुख में कोई नहीं करता। यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों ।
4 जो रहीम उत्तम प्रकृ ति, का करि
सकत कु संग। चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥ रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छे स्वभाव का होता है,उसे बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती। जैसे ज़हरीले साँप चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई ज़हरीला प्रभाव नहीं डाल पाते।
5 रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो
चटकाय. टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय. अर्थ: रहीम कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नही होता.
6 तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर
पियहिं न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥ रहीम कहते हैं कि परोपकारी लोग परहित के लिए ही संपत्ति को संचित करते हैं। जैसे वृक्ष फलों का भक्षण नहीं करते हैं और ना ही सरोवर जल पीते हैं बल्कि इनकी सृजित संपत्ति दूसरों के काम ही आती है।