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Praveen Kumar

Singh
Pratishtha Pandey
Shivam Dubey
Riya Gupta
Class – IX
अकबर के नवरत्न
अबुल फजल
फै जी
तानसेन
राजा बीरबल
राजा टोडरमल
राजा मान सिंह
अब्दुल रहीम खानखाना
फकीर अजिओं-दिन
मुल्लाह दो पिअज़ा
अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना
तथा जीवन के व्यावहारिक पक्षों का उद्घाटन
o अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना (रहीम) अकबर के किया।
नवरत्नों में एक थे।
o रहीम को अरबी, फ़ारसी, तुर्की और हिन्दी का
o इनके पिता बैरम खाँ मुगल सम्राट अकबर के अच्छा ज्ञान था। इन्होंने ब्रज और अवधी दोनों
संरक्षक थे। भाषाओं में लिखा।

o रहीम बहुत दयालु स्वभाव के थे तथा हिन्दू- o प्रमुख रचनाएँ – श्रृंगार सोरठा, मदनाष्टक,
मुसलमान दोनों धर्मों को समान आदर की दृष्टि रहीम सतसई
से देखते थे।

o इन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा नीति, भक्ति,ज्ञान


दोहा – 1

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोडो चटकाय ।


टू टे से फिर न मिले, मिले गाँठ परि जाय ॥
व्याख्या

रहीम कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है । इसे झटका देकर तोड़ना उचित
नहीं होता ।

प्रेम से भरा रिश्ता कभी किसी छोटी सी बात पर बिना सोचे समझे नही तोड़ देना
चाहिए ।

यदि यह प्रेम का धागा एक बार टू ट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और
यदि मिल भी जाए तो टू टे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है.
दोहा – 2

रहिमन निज मन की बिथा


, मन ही राखो गोय ।
सुनी अठिलैहैं लोग सब, बां
टी न लेंहैं कोय ॥

शब्दार्थ
व्याख्या
• रहीम कहते है कि अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर
ही रखना चाहिए।
• अपने दुख को अपने मन में ही रखनी चाहिए। दूसरों को सुनाने से
लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं,उसे बाँटकर कम करने वाला
कोई नहीं होता.
दोहा – 3

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।


रहिमन मूलहिं सींचिबो, फू लै फलै सींचिबो

शब्दार्थ
व्याख्या
रहीम के अनुसार एक समय पर एक कार्य करना उचित होगा ।
मतलब , जो कार्य हम करते हैं उसी में मन लगाकर ( एकाग्र-चित्त होकर) ही उसे अच्छी
तरह पूरा कर पाते हैं ।

एक ही समय अनेक कार्य करने की कोशिश करेंगे तो सारे-के -सारे काम विफल पड जाएंगे ।

यह सब उसी प्रकार है जैसे कोई माली पेड़ की जड़ को सींचता है तो वह पेड़ फलता -


फू लता है । यदि माली पेड़ की जड़ के स्थान पर उसकी पत्तियों , डालियों, फू लों की
पंखुड़ियों आदि को अलग-अलग सींचता रहेगा तो एक दिन वह पेड़ सूख जाएगा, नष्ट हो
जाएगा ।
दोहा – 5

 
दीरघ दोहा अरथ के , आख
र थोरे आहिं ।
ज्यों रहीम नट कुं डली , सि
मिटि कू दि चढ़ि जाहिं ॥

शब्दार्थ
व्याख्या
• प्रस्तुत दोहे में ' दोहा ' छन्द की विशेषता का वर्णन हुआ है । गागर में
सागर भरने की अद्भुत क्षमता दोहा छन्द की ख़ासियत है ।

• प्रस्तुत बात को ' नट ' के उदाहरण देकर रहीम और स्पष्ट कर देते हैं ।
दोहा – 6

धनि रहीम जल पंक को ल


घु जिय पिअत आघाय ।
उदधि बड़ाई कौन है , जग
त पिआसो जाय ॥

शब्दार्थ
व्याख्या

• रहीम बताते हैं कि कीचड़ का पानी भी धन्य है क्योंकि उससे न


जाने कितने छोटे-छोटे प्राणी अपनी प्यास बुझाते हैं । इसके
विपरीत विशाल जल का भंडार होकर भी सागर किसी की प्यास
नहीं बुझा सकता ।
दोहा – 8

बिगरी बात बने नहीं, लाख


करो किन कोय । रहिमन फा
को, मथे न माखन होय ॥ टे दूध

शब्दार्थ
व्याख्या
• मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए,क्योंकि किसी कारणवश
यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है,
• जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ
कर मक्खन नहीं निकाला जा सके गा ।
दोहा – 9

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु


न दीजिए डारि । ज आवे सु
ई, कहा
करे तरवारि ॥

शब्दार्थ
व्याख्या
• रहीम कहते हैं कि बड़ी वस्तु को देख कर छोटी वस्तु को फें क नहीं देना
चाहिए. जहां छोटी सी सुई काम आती है, वहाँ तलवार बेचारी क्या कर
सकती है ?
दोहा – 10

रहिमन निज संपति बिना,


कोउ न बिपति सहाय ।
बिनु पानी ज्यों जलज को,
नहीं रवि सके बचाय ॥

शब्दार्थ
व्याख्या

• जब किसी व्यक्ति आपत्ति या विपदा में पड़ती है तो उसकी रक्षा


के लिए और कोई नहीं आएगा
• अपना सामर्थ्य,ज्ञान,विवेक एवं सोच-समझ ही उसका रक्षक
बनेगा..
• प्रस्तुत आशय को 'कमल' और 'सूरज' के उदाहरण के माध्यम
से प्रकट किया है ।
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