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रहीम के दोहों का अर्थ

कहि ‘रहीम’ संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।


बिपति-कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत॥

अर्थ:- रहीम इस दोहे में कहते हैं कि जब हमारे पास सम्पत्ति होती है तो बहुत लोग अलग-अलग तरीके
से हमारे सगे बनते हैं और स्वयं को हमारा मित्र कहते हैं | परं तु जो व्यक्ति मुसीबत में हमारी सहायता
कर, हमारे काम आए, वही हमारा सच्चा मित्र होता है ।

जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।


रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह॥

अर्थ:- रहीम दास जी ने इस दोहे में सच्चे प्रेम के बारे में बताया है । उनके अनुसार, जब नदी में मछली
पकड़ने के लिए जाल डालकर बाहर निकाला जाता है , तो जल तो उसी समय बाहर निकल जाता है । उसे
मछली से कोई प्रेम नहीं होता। मगर, मछली पानी के प्रेम को भूल नहीं पाती है और उसी के वियोग में
प्राण त्याग दे ती है ।

तरुवर फल नहिं खात है , सरवर पियत न पान।


कहि रहीम परकाज हित, संपति- सचहिं सज
ु ान॥

अर्थ:- रहीम जी ने इस दोहे में कहा है कि जिस प्रकार वक्ष


ृ अपने फल खद
ु नहीं खाते और नदी-तालाब
अपना पानी स्वयं नहीं पीते। ठीक उसी प्रकार, सज्जन और अच्छे व्यक्ति अपने संचित धन का उपयोग
केवल अपने लिए नहीं करते, वे उस धन का प्रयोग दस
ू रों की भलाई के लिए करते हैं।

थोथे बादर क्वार के, ज्यों ‘रहीम’ घहरात ।


धनी पुरुष निर्धन भये, करें पाछिली बात ॥

अर्थ:- इस दोहे में रहीम दास जी ने कहा है कि जिस प्रकार क्वार (बारिश और सर्दी के बीच के समय में )
के बादल केवल गरजते हैं, बरसते नहीं हैं । उसी प्रकार, कंगाल होने के बाद अमीर व्यक्ति अपने पिछले
समय की बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं, जिनका कोई मूल्य नहीं होता है ।

धरती की सी रीत है , सीत घाम औ मेह ।


जैसी परे सो सहि रहे , त्‍यों रहीम यह दे ह॥

अर्थ:- रहीम जी ने अपने इस दोहे में मनुष्य के शरीर की सहनशीलता के बारे में बताया है । वे कहते हैं
कि मनुष्य के शरीर की सहनशक्ति बिल्कुल इस धरती के समान ही है । जिस तरह धरती सर्दी, गर्मी,
बरसात आदि सभी मौसम झेल लेती है , ठीक उसी तरह मनष्ु य को भी जीवन के सख
ु -दख
ु रूपी हर मौसम
को सहन करने की शक्ति रखनी चाहिए ।

पुस्तिका कार्य

मानसिक मानचित्र :-
पर्यायवाची शब्द :-
जल :- नीर , पानी
ृ :- पेड़ , तरु
वक्ष

रहीम जी का परू ा नाम :-


रहीम के विधा :- कविता
अब्दर्रु हीम ख़ान ए
दोहे
ख़ाना

उद्देश्य :- जीवन की सच्चाइयों


से परिचित कराना करवाना

शब्दार्थ :-

1. सगे – अपने

2. संपति - धन दौलत

3. बिपति-मुसीबत

4. साँचे-सच्चा

5. बहि-बहना

6. तजि- त्यागना

7. मीनन- मछली

8. मोह- प्रेम

9. नीर-पानी

10. तरुवर - पेड़,वक्ष


11. सरवर - तालाब

12. पर काज- दस
ू रे के काम

13. हित-भलाई

14. सुजान - सज्जन व्यक्ति


15. थोथे- खाली

16. क्वार- वर्षा ऋतु के बाद का महीना

17. निर्धन-गरीब

18. पाछिली-पिछली

19. रीत- नियम, तरीका

20. सीत- शीत(सर्दी)

21. घाम- धूप

22. मेह- बारिश

23. दे ह- शरीर

प्रश्नोत्तर :-

1. रहीम के दोहों के आधार पर बताइए कि सच्चे मित्र की क्या विशेषताएँ होती हैं?

उ. कठिन समय में जो मित्र हमारी सहायता करता है और बिना किसी स्वार्थ के हमसे दोस्ती करता है

वही हमारा सच्चा मित्र होता है |

2. सज्जन व्यक्ति के क्या-क्या गण


ु होते हैं?

उ. सज्जन व्यक्ति संपत्ति का अर्जन दस


ू रों की भलाई के लिए करते हैं। उनका धन हमेशा दस
ू रों की

भलाई में खर्च होता है ।वे हमेशा दस


ू रों की भलाई के लिए ही सोचते हैं|

3. धरती और शरीर में क्या समानताएँ हैं?

उ. मनुष्य के शरीर की सहनशक्ति बिल्कुल इस धरती के समान ही है । जिस तरह धरती सर्दी , गर्मी ,

बरसात आदि सभी मौसम झेल लेती है , ठीक उसी तरह हमारा शरीर भी जीवन के सुख – दख
ु रूपी हर

कष्ट , विपत्ति के मौसम को सहन कर लेता है ।

4. रहीम के दोहों की कौन-सी सीख आपको अच्छी लगी जिसका आप अपने जीवन में अनुकरण करना

चाहें गे?

उ. छात्र स्वयं करें गे

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