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KABIR SCHOOL 2020-21


CLASS :VII SUBJECT :HINDI
TOPIC : ‘रहीम के दोहे ’ (CW)

कार्य का क्रम

चित्र

नए शब्द

शब्दार्थ

भावार्थ

दोहे से

दोहों के आगे

नए शब्द:-

संपति छााँड़ि

सरवर तनर्थन
पातछली मोह

मछरी िरुवर

शब्दार्य:-

कहह – कहना सगे – ररश्िेदार (अपने) रीि – िरीका


बिपति – संकट (कहिनाई) िेई – वे ही सााँिे – सच्िे
मीि – ममत्र (अपने) िहह – िहना िजि – छोड़ना
मीनन – मछमलयााँ नीर – िल िऊ – िि भी
छोह- प्रेम (प्यार) परकाि – दस
ू रों के मलए काम हहि – भलाई
सिहहं – संग्रह (ििि) सि
ु ान – सज्िन/ज्ञानी र्ोर्े – खोखले
िादर – िादल क्वार – आजश्वन ( मसिंिर-अक्टूिर का महीना)
घहराि – गिथना भए – हो िािे है रीि- ढं ग
सीि- सदी (िं ड) घाम – र्ूप मेह- िाररश
परे – पड़ना सो- सारा सहह- सहना
दे ह- शरीर

रहीम के दोहे भावार्य

1)कहह ‘रहीम’ संपति सगे, िनि िहुि िहु रीति।

बिपति-कसौटी िे कसे, सोई सांिे मीि॥

रहीम के दोहे अर्थ सहहि: रहीम के इस दोहे में वे कहिे हैं कक हमारे सगे-संिंर्ी िो ककसी
संपत्ति की िरह होिे हैं, िो िहुि सारे रीति-ररवािों के िाद िनिे हैं। परं िु िो व्यजक्ि मुसीिि
में आपकी सहायिा कर, आपके काम आए, वही आपका सच्िा ममत्र होिा है ।

2)िाल परे िल िाि िहह, िजि मीनन को मोह।

‘रहहमन’ मछरी नीर को िऊ न छााँड़ति छोह॥

रहीम के दोहे अर्थ सहहि: रहीम दास के इस दोहे में उन्होंने सच्िे प्रेम के िारे में ििाया है ।
उनके अनुसार, िि नदी में मछली पकड़ने के मलए िाल डालकर िाहर तनकाला िािा है , िो
िल िो उसी समय िाहर तनकल िािा है। उसे मछली से कोई प्रेम नहीं होिा। मगर, मछली
पानी के प्रेम को भल
ू नहीं पािी है और उसी के त्तवयोग में प्राण त्याग दे िी है ।

3)िरुवर फल नहहं खाि है , सरवर त्तपयहह न पान।

कहह रहीम पर काि हहि, संपति साँिहह सि


ु ान॥

रहीम के दोहे अर्थ सहहि: रहीम िी ने अपने इस दोहे में कहा है कक जिस प्रकार वक्ष
ृ अपने
फल खुद नहीं खािे और नदी-िालाि अपना पानी स्वयं नहीं पीिे। िीक उसी प्रकार, सज्िन
और अच्छे व्यजक्ि अपने संचिि र्न का उपयोग केवल अपने मलए नहीं करिे, वो उस र्न से
दस
ू रों का भला करिे हैं।

4)र्ोर्े िादर क्वार के, ज्यों ‘रहीम’ घहराि ।


र्नी पुरुष तनर्थन भये, करैं पातछली िाि ॥

रहीम के दोहे अर्थ सहहि: इस दोहे में रहीम दास िी ने कहा है कक जिस प्रकार िाररश और
सदी के िीि के समय में िादल केवल गरििे हैं, िरसिे नहीं हैं। उसी प्रकार, कंगाल होने के
िाद अमीर व्यजक्ि अपने त्तपछले समय की िड़ी-िड़ी िािें करिे रहिे हैं, जिनका कोई मूल्य नहीं
होिा है।

5)र्रिी की सी रीि है , सीि घाम औ मेह ।

िैसी परे सो सहह रहै, त्‍


यों रहीम यह दे ह॥

रहीम के दोहे अर्थ सहहि: रहीम िी ने अपने इस दोहे में मनष्ु य के शरीर की सहनशीलिा के
िारे में ििाया है। वो कहिे हैं कक मनुष्य के शरीर की सहनशजक्ि बिल्कुल इस र्रिी के
समान ही है । जिस िरह र्रिी सदी, गमी, िरसाि आहद सभी मौसम झेल लेिी है, िीक उसी
िरह हमारा शरीर भी िीवन के सख
ु -दख
ु रूपी हर मौसम को सहन कर लेिा है ।

दोहे से

प्रश्न 1) पाि में हदए गए दोहों की कोई पंजक्ि कर्न है और कोई कर्न को प्रमाणणि
करनेवाला उदाहरण। इन दोनों प्रकार की पंजक्ियों को पहिान कर अलग-अलग मलणखए। .

उिर:-दोहों में वणणथि तनम्न पंजक्ि कर्न हैं-

1.कहह रहीम संपति सगे, िनिे िहुि िहु रीि।

बिपति कसौटी िे कसे, िेई सााँिे मीि।।1।।

कहिन समय में िो ममत्र हमारी सहायिा करिा है , वही हमारा सच्िा ममत्र होिा है।

2.िाल परे िल िाि िहह, िजि मीनन को मोह।।

रहहमन मछरी नीर को, िऊ न छााँड़ति छोह।। 2।।

मछली िल से अपार प्रेम करिी है इसीमलए उससे बिछुड़िे ही अपने प्राण त्याग दे िी है। तनम्न
पंजक्ियों में कर्न को प्रमाणणि करने के उदाहरण हैं-

1. िरुवर फल नहहं खाि है, सरवर त्तपयि न पान।


कहह रहीम परकाि हहि, संपति-सिहहं सि
ु ान।।3।।

तनस्वार्थ भावना से दस
ू रों का हहि करना िाहहए, िैसे-पेड़ अपने फल नहीं खािे, सरोवर अपना
िल नहीं पीिे और सज्िन र्न संिय अपने मलए नहीं करिे।

2. र्ोर्े िाद क्वार के, ज्यों रहीम घहराि।

र्नी परु
ु ष तनर्थन भए, करें पातछली िाि।।4।।

कई लोग गरीि होने पर भी हदखावे हे िु अपनी अमीरी की िािें करिे रहिे हैं, िैसे-आजश्वन के
महीने में िादल केवल गहरािे हैं िरसिे नहीं।

3. र्रिी की-सी रीि है , सीि घाम औ मेह।

िैसी परे सो सहह रहे, त्यों रहीम यह दे ह।।5।।

मनुष्य को सुख-दख
ु समान रूप से सहने की शजक्ि रखनी िाहहए, िैसे-र्रिी सरदी, गरमी व
िरसाि सभी मौसम समान रूप से सहिी है ।

प्रश्न 2)रहीम ने क्वार के मास में गरिने वाले िादलों की िुलना ऐसे तनर्थन व्यजक्ियों से क्यों
की है िो पहले कभी र्नी र्े और िीिी िािों को ििाकर दस
ू रों को प्रभात्तवि करना िाहिे हैं?
दोहे के आर्ार पर आप सावन के िरसने और गरिनेवाले िादलों के त्तवषय में क्या कहना
िाहें गे?

उिर- रहीम ने आजश्वन (क्वार) के महीने में आसमान में छाने वाले िादलों की िुलना तनर्थन
हो गए र्नी व्यजक्ियों से इसमलए की है , क्योंकक दोनों गरिकर रह िािे हैं, कुछ कर नहीं
पािे। िादल िरस नहीं पािे, तनर्थन व्यजक्ि का र्न लौटकर नहीं आिा। िो अपने िीिे हुए
सुखी हदनों की िाि करिे रहिे हैं, उनकी िािें िेकार और विथमान पररजस्र्तियों में अर्थहीन
होिी हैं। दोहे के आर्ार पर सावन के िरसने वाले िादल र्नी िर्ा क्वार के गरिने वाले
िादल तनर्थन कहे िा सकिे हैं।

दोहों के आगे

प्रश्न 1) नीिे हदए गए दोहों में ििाई गई सच्िाइयों को यहद हम अपने िीवन में उिार लें िो
उसके क्या लाभ होंगे? सोचिए और मलणखए
(क) िरुवर फल ……..
(ख) ……………. संिहहं सुिान।

(ख) र्रिी की-सी ………….

……. यह दे ह॥

उिर-(क) इस दोहे के माध्यम से रहीम यह ििाने का प्रयास कर रहे हैं कक वक्ष


ृ अपने फल
नहीं खािे और सरोवर अपना िल नहीं पीिे उसी प्रकार सज्िन अपना संचिि र्न अपने लाभ
के मलए उपयोग नहीं करिे। उनका र्न दस
ू रों की भलाई में खिथ होिा है । यहद हम इस सच्िाई
को अपने िीवन में उिार लें, अर्ाथि ् अपना लें िो अवश्य ही समाि का कल्याणकारी रूप हमारे
सामने आएगा और राष्र सुंदर रूप से त्तवकमसि होगा।

(ख) इस दोहे के माध्यम से रहीम ििाने का प्रयास कर रहे हैं कक मनुष्य को र्रिी की भााँति
सहनशील होना िाहहए। यहद हम सत्य को अपनाएाँ िो हम िीवन में आने वाले सख
ु -दख
ु को
सहि रूप से स्वीकार कर सकेंगे। अपने मागथ से कभी त्तविमलि नहीं होंगे। हम हर जस्र्ति में
संिुष्ट रहें गे। हमारे मन में संिोष की भावना आएगी।

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