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INTERNATIONAL INDIAN PUBLIC SCHOOL –RIYADH

(2020-21)
Subject: Hindi Grade: VII

11. रहीम के दोहे

1. कहि रिीम संपति सगे, बनि बिुि बिु रीि I


बबपति कसौटी जे कसे, िेई स ाँचे मीि II

शब्दार्थ: संपति – धन-दौलि बबपति – मस


ु ीबि
सगे - अपने कसौटी – परखन
बनि - बन ज िे िैं िेई - विी
बिु - बिुि से स ाँचे - सच्चे
रीि - ढं ग मीि - ममत्र

व्याख्या – रिीम जी कििे िैं कक जब िक मनुष्य के प स धन-दौलि और म न-


सम्म न रिि िै िब िक लोग उसके स थ ररश्िे बन ने के ढं ग तनक लिे रििे िैं
लेककन जो लोग दख
ु , गरीबी और ववपवि के समय क म आिे िैं, विी सच्चे ममत्र
िोिे िैं I

2. ज ल परे जल ज ि बहि, िजज मीनन को मोि I


रहिमन मछरी नीर को, िऊ न छ ाँड़ति छोि ।।

शब्दार्थ: ज ल – ज ल मीनन - मछली


जल - प नी मोि - प्रेम
जि - जि नीर - जल, प नी
बहि - बिन छ ाँड़ति - छोड़न
िजज - त्य गन छोि - प्रेम

व्याख्या – प नी में ज ल ड लने पर मछली िो ज ल में फाँस ज िी िै पर प नी


बिकर तनक ल ज ि िै I रिीम जी कििे िैं कक मछली जल से प्रेम करिी िै
इसमलए उससे अलग िोिे िी प्र ण त्य ग दे िी िै लेककन जल उससे प्रेम निीं करि
इसमलए मछली को ज ल में छोड़कर बि ज ि िै I व स्िव में रिीम जी किन
च ििे िैं कक िमें मछली की िरि ईश्वर से प्रेम करन च हिए I

3. िरुवर फल निीं ख ि िै , सरवर वपयि न प न I


कहि रिीम परक ज हिि, संपति-सचहिं सुज न II

शब्दार्थ: िरुवर - वक्ष


ृ परक ज - दस
ू रों क क यय
खि - ख िे हिि - भल ई
सरवर - सरोवर संपति - धन-दौलि
वपयि - पीिे सचहिं - एकत्र करन / जोड़िे िैं
पन - प नी सज
ु न - बुद्धधम न , सज्जन

व्याख्या – रिीम जी कििे िैं कक दस


ू रों के हिि के क रण वक्ष
ृ अपने फलों को स्वयं
निीं ख िे और सरोवर अपन जल निीं पीिे I इसी प्रक र दस
ू रों के मलए उपक र
की भ वन रखने के क रण िी सज्जन धन जोड़िे िैं I

4. थोथे ब दर क्व र के, ज्यों रिीम घिर ि I


धनी परु
ु ष तनधयन भए, करे प तछली ब ि II

शब्दार्थ: थोथे - खोखले घिर ि – गिर न , उमड़कर आन


ब दर - ब दल तनधयन - गरीब
क्व र – एक मिीने क न म प तछली- वपछली

व्याख्या – रिीम जी कििे िैं कक क्व र के मिीने में ब दल गिर िे िैं लेककन खोखले
िोिे िैं इसमलए बरसिे निीं िैं I स वन के मिीने में ब दल खब
ू बरसिे िैं I जैसे
धनी पुरुष तनधयन िो ज ने पर अमीरी की ब िें करिे रििे िैं जजनक कोई ल भ निीं
िोि I
5. धरिी की-सी रीि िै , सीि घ म औ मेि I
जैसी परे सो सहि रिे , त्यों रिीम यि दे ि II

शब्दार्थ: रीि - तनयम मेि - वष य


सीि - शरद, ज ड़ सहि - सिन
घ म - ग्रीष्म, गरमी त्यों - उसी प्रक र
दे ि - शरीर

व्याख्या – रिीम जी कििे िैं कक धरिी क तनयम िै कक वि सभी ऋिओ


ु ं शरद, ग्रीष्म
व वष य को बर बर रूप से सििी िै , वैसे िी मनष्ु य दे ि को भी जीवन में प्र प्ि सख
ु ों और
दख
ु ों को स म न रूप से सिन च हिए I

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