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Rahim Ke Dohe Class 7 Hindi Chapter


11 Summary, Explanation and
Question Answers
by admin | Apr 18, 2022 | CBSE Class 7 Hindi Lessons Explanation, Notes, NCERT
Question Answers | 0 comments

Rahim Ke Dohe Class 7 Hindi Vasant Bhag 2


Chapter 11 Summary, Explanation with
Video and Question Answers
Rahim Ke Dohe Class 7 Hindi Vasant Bhag 2 book Chapter 11 Rahim Ke Dohe
Summary and detailed explanation of lesson “Rahim Ke Dohe” along with
meanings of di!cult words. Given here is the complete explanation of the lesson,
along with all the exercises, Questions and Answers are given at the back of the
lesson. Take Free Online MCQs Test for Class 7.

इस लेख में हम िहं दी कक्षा 7 ” वसंत भाग – 2 ” के पाठ – 11 ” रहीम के दोहे ” किवता के पाठ – प्रवेश , पाठ –
सार , पाठ – व्याख्या , किठन – शब्दों के अथर् और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर , इन सभी के
बारे में चचार् करेंगे –

रहीम के दोहे कक्षा 7 पाठ 11


रहीम के दोहे पाठ प्रवेश रहीम के दोहे पाठ की व्याख्या

रहीम के दोहे पाठ सार रहीम के दोहे प्रश्न-अभ्यास

किव पिरचय –
किव – रहीम

पाठ प्रवेश ( रहीम के दोहे ) –


रहीम जी के दोहे जीवन की हर िस्थित जुड़े होते हैं। रहीम जी के दोहों में हर तरह की सीख होती है िजससे
व्यिक्त को जीवन के हर पहलु का ज्ञान होता है। रहीम जी के दोहे जीवन की वास्तिवकता का पिरचय तो देते ही
हैं , उसके साथ ही प्रेम , त्याग और जीवन की प्रत्येक पिरिस्थित में िकस तरह सरलता से जीवन जीना चािहए
इसकी प्रेरणा भी देते हैं।

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रहीम के दोहे पाठ सार (Class 7)


प्रस्तुत दोहों में रहीम जी ने कहा है िक जब आपके पास धन – सम्पित होती है , तब तो बहुत से लोग आपके
िमत्र बन जाते हैं। लेिकन उन में से जो िमत्र मुसीबत के समय भी आपके साथ रहता है वही आपका सच्चा िमत्र
होता है। रहीम जी ये भी सीख देते हैं िक एक तरफा प्रेम भी घातक होता है क्योंिक जब मछली को पकड़ने के
िलए जाल खींचा जाता है तो पानी तो मछली का साथ छोड़ देता है लेिकन मछली को पानी के प्रेम के कारण प्राण
त्यागने पड़ते हैं। रहीम जी सज्जन लोगों के एक गुण को बताते हुए कहते हैं िक िजस तरह पेड़ कभी अपना फल
नहीं खाते , नदी – तालाब कभी अपना जल नहीं पीते , उसी तरह सज्जन व्यिक्त धन का संग्रह अपने िलए नहीं
बिल्क दू सरों की भलाई के िलए करते हैं। रहीम जी ने िनधर्न व्यिक्तयों की तुलना अिश्वन महीने के बादलों से की
है क्योंिक िनधर्न लोगों का बीते हुए सुख के िदनों की बातें करना वैसे ही बेकार होता है जैसे अिश्वन महीने के
बादलों का गरजना। क्योंिक अिश्वन महीने के बादल भी बेकार में ही गरजते है , बरसते नहीं हैं। और अंत में रहीम
जी कहते हैं िक िजस तरह धरती गमीर् , सदीर् , बरसात , तूफान आिद सभी प्रकार की पिरिस्थितयों का सामना एक
समान भाव से करती है उसी तरह मनुष्य को भी अपने जीवन की प्रत्येक पिरिस्थित का सामना सहज रूप से करना
चािहए।

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रहीम के दोहे पाठ व्याख्या


दोहा

किह ‘ रहीम ’ संपित सगे , बनत बहुत बहु रीित।


िबपित – कसौटी जे कसे , सोई सांचे मीत॥

किठन शब्द
किह – कहना
सगे – सगे-संबंधी
बनत – बनना
बहु – सारे , अिधक
रीित – रीित-िरवाज
िबपित – कसौटी – मुसीबत के समय
कसे – काम आना
सोई – वही
सांचे – सच्चा
मीत – िमत्र

दोहे का अथर् – रहीम जी इस दोहे में कहते हैं िक हमारे सगे – संबंधी िकसी संपित्त की तरह होते हैं , क्योंिक
संपित्त भी बहुत किठन पिरश्रम से इकट्ठी की जाती है और सगे – संबंधी भी बहुत सारे रीित – िरवाजों के बाद बनते
हैं। परंतु जो व्यिक्त मुसीबत में आपकी सहायता करता है या आपके काम आता है , वही आपका सच्चा िमत्र
होता है।

भावाथर् – सच्चा िमत्र वही है जो मुसीबत में आपका साथ न छोड़े।

दोहा

जाल परे जल जात बिह , तिज मीनन को मोह।


‘ रिहमन ’ मछरी नीर को तऊ न छाँड़ित छोह॥

किठन शब्द –
बिह – बह जाना
तिज – त्याग करना
मीनन – मछली
मोह – प्यार , प्रेम
मछरी – मछली
नीर – जल , पानी
तऊ – तब भी , तथािप
छोह – प्रेम , स्नेह , कृपा , दया

दोहे का अथर् – इस दोहे में रहीम जी ने एक तरफा प्रेम का वणर्न िकया है। रहीम जी के अनुसार , जब िकसी नदी
में मछली को पकड़ने के िलए जाल डालकर बाहर िनकाला जाता है , तो नदी का जल तो उसी समय जाल से
बाहर िनकल जाता है। उसे मछली से कोई प्रेम नहीं होता इसिलए वह मछली को त्याग देता है। परन्तु , मछली
पानी के प्रेम को भूल नहीं पाती है और उसी के िवयोग में प्राण त्याग देती है।

भावाथर् – सच्चा प्रेम वही है जो िकसी भी िस्थित में आपका त्याग न करे और अंत तक आपके िलए ही िजए और
आपके िबना प्राण तक त्याग दे।

दोहा

तरुवर फल निहं खात है , सरवर िपयिह न पान।


किह रहीम पर काज िहत , संपित सँचिह सुजान॥

किठन शब्द
तरुवर – वृक्ष , पेड़
खात – खाना
सरवर – नदी , तालाब
िपयिह – पीना
पान – पानी
काज – कायर् , काम , प्रयोजन
िहत – भलाई , उपकार , कल्याण , मंगल
सँचिह – संिचत िकया हुआ , इकठ्ठा िकया हुआ
सुजान – सज्जन , अच्छे व्यिक्त

दोहे का अथर् – अपने इस दोहे में रहीम जी कहते है िक िजस प्रकार वृक्ष अपने फल खुद नहीं खाते और नदी ,
तालाब अपना पानी कभी स्वयं नहीं पीते। ठीक उसी प्रकार , सज्जन और अच्छे व्यिक्त अपने द्वारा इकठ्ठे िकए गए
धन का उपयोग केवल अपने िहत के िलए प्रयोग नहीं करते , वो उस धन का दू सरों के भले के िलए भी प्रयोग करते
हैं।

भावाथर् – हमें अपनी धन – सम्पित का प्रयोग केवल अपने िलए ही नहीं बिल्क समाज के कल्याण के िलए भी
करना चािहए। तभी समाज का चहुमुखी िवकास संभव है।

दोहा

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थोथे बादर क्वार के , ज्यों ‘ रहीम ’ घहरात ।


धनी पुरुष िनधर्न भये , करैं पािछली बात ॥

किठन शब्द
थोथा –तत्वरिहत , िनकम्मा , बेढंगा , भद्दा
बादर –बादल
क्वार –अिशवन का महीना
ज्यों – जैसे
घहरात – गरजना
धनी – अमीर
िनधर्न –गरीब
भये – हो जाना
करैं –करना
पािछली – िपछली

दोहे का अथर् – इस दोहे में रहीम जी कहते है िक िजस प्रकार बािरश और सदीर् के बीच के समय यािन अिश्वन
महीने में बादल केवल गरजते हैं , बरसते नहीं हैं। उसी प्रकार , कंगाल होने के बाद अमीर व्यिक्त अपने िपछले
समय की बड़ी – बड़ी बातें करते रहते हैं , िजनका कोई मूल्य नहीं होता है।

भावाथर् – सही समय पर न िकए गए काम का बाद में कोई मूल्य नहीं होता।

दोहा

धरती की सी रीत है , सीत घाम औ मेह ।


जैसी परे सो सिह रहै , त्यों रहीम यह देह॥

किठन शब्द
रीत – प्रथा , िरवाज , परंपरा
सीत – सहनशिक्त
घाम – सूयर् का प्रकाश , धूप , कष्ट , िवपित्त
मेह – वषार् , बादल
सिह – सहन करना
त्यों – वैसे
दे ह – शरीर

दोहे का अथर् – रहीम जी ने अपने इस दोहे में मनुष्य के शरीर की सहनशीलता का वणर्न िकया है। वो कहते हैं िक
मनुष्य के शरीर की सहनशिक्त िबल्कुल इस धरती के समान ही है। िजस तरह धरती सदीर् , गमीर् , बरसात आिद
सभी मौसम झेल लेती है , ठीक उसी तरह हमारा शरीर भी जीवन के सुख – दुख रूपी हर कष्ट , िवपित्त के मौसम
को सहन कर लेता है।

भावाथर् – हमें जीवन की िकसी भी िवपित्त या मुसीबत से डरना नहीं चािहए क्योंिक िजस तरह भगवान् ने प्रकृित
को हर कष्ट से उभारना िसखाया है उसी प्रकार भगवान् ने जब हमें बनाया तो हमें भी सभी कष्टों को झेलने की
शिक्त के साथ बनाया है अतः खुद को कभी कमजोर नहीं समझना चािहए।

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Rahim Ke Dohe Question Answers (रहीम के दोहे प्रश्न-


अभ्यास)
प्रश्न 1 – पाठ में िदए गए दोहों की कोई पंिक्त कथन है और कोई कथन को प्रमािणत करने वाला उदाहरण।
इन दोनों प्रकार की पंिक्तयों को पहचान कर अलग – अलग िलिखए।

उत्तर – दोहों में विणर् त िनम्न पंिक्त कथन हैं –

1 – किह रहीम संपित सगे , बनते बहुत बहु रीत।

िबपित कसौटी जे कसे , तेई साँचे मीत ।।1।।

किठन समय में जो िमत्र हमारी सहायता करता है , वही हमारा सच्चा िमत्र होता है।

2 – जाल परे जल जात बिह , तिज मीनन को मोह ।।

रिहमन मछरी नीर को , तऊ न छाँड़ित छोह ।। 2।।

मछली जल से अपार प्रेम करती है इसीिलए उससे िबछु ड़ते ही अपने प्राण त्याग देती है।

िनम्न पंिक्तयों में कथन को प्रमािणत करने के उदाहरण हैं-

1 – तरुवर फल निहं खात है , सरवर िपयत न पान।

किह रहीम परकाज िहत , संपित – सचिहं सुजान ।।3।।

िनस्वाथर् भावना से दू सरों का िहत करना चािहए , जैसे – पेड़ अपने फल नहीं खाते , सरोवर अपना जल नहीं पीते
और सज्जन धन संचय अपने िलए नहीं करते।

2 – थोथे बाद क्वार के , ज्यों रहीम घहरात।

धनी पुरुष िनधर्न भए , करें पािछली बात ।।4।।

कई लोग गरीब होने पर भी िदखावे हेतु अपनी अमीरी की बातें करते रहते हैं , जैसे – आिश्वन के महीने में बादल
केवल गहराते हैं बरसते नहीं।

3 – धरती की – सी रीत है , सीत घाम औ मेह।

जैसी परे सो सिह रहे , त्यों रहीम यह देह।।5।।

मनुष्य को सुख – दुख समान रूप से सहने की शिक्त रखनी चािहए , जैसे – धरती सरदी , गरमी व बरसात सभी
मौसम समान रूप से सहती है।

प्रश्न 2 – रहीम ने क्वार के मास में गरजने वाले बादलों की तुलना ऐसे िनधर्न व्यिक्तयों से क्यों की है जो पहले
कभी धनी थे और बीती बातों को बताकर दू सरों को प्रभािवत करना चाहते हैं ? दोहे के आधार पर आप सावन
के बरसने और गरजने वाले बादलों के िवषय में क्या कहना चाहेंगे?

उत्तर – रहीम जी ने आिश्वन (क्वार) के महीने में आसमान में छाने वाले बादलों की तुलना िनधर्न हो गए धनी
व्यिक्तयों से इसिलए की है , क्योंिक दोनों गरजकर रह जाते हैं , कुछ कर नहीं पाते। बादल बरस नहीं पाते ,
िनधर्न व्यिक्त का धन लौटकर नहीं आता। जो अपने बीते हुए सुखी िदनों की बात करते रहते हैं , उनकी बातें बेकार
और वतर्मान पिरिस्थितयों में अथर्हीन होती हैं। दोहे के आधार पर सावन के बरसने वाले बादल धनी तथा क्वार के
गरजने वाले बादल िनधर्न कहे जा सकते हैं। क्योंिक धनी व्यिक्त सावन के बरसने वाले बादलों की तरह होते हैं
जो अगर अपनी धन – सम्पित का गुणगान करे भी तो उसमें कुछ अथर् प्रतीत होता है।

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