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Rahim Ke Dohe Class 7 Hindi Chapter
Rahim Ke Dohe Class 7 Hindi Chapter
इस लेख में हम िहं दी कक्षा 7 ” वसंत भाग – 2 ” के पाठ – 11 ” रहीम के दोहे ” किवता के पाठ – प्रवेश , पाठ –
सार , पाठ – व्याख्या , किठन – शब्दों के अथर् और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर , इन सभी के
बारे में चचार् करेंगे –
किव पिरचय –
किव – रहीम
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किठन शब्द
किह – कहना
सगे – सगे-संबंधी
बनत – बनना
बहु – सारे , अिधक
रीित – रीित-िरवाज
िबपित – कसौटी – मुसीबत के समय
कसे – काम आना
सोई – वही
सांचे – सच्चा
मीत – िमत्र
दोहे का अथर् – रहीम जी इस दोहे में कहते हैं िक हमारे सगे – संबंधी िकसी संपित्त की तरह होते हैं , क्योंिक
संपित्त भी बहुत किठन पिरश्रम से इकट्ठी की जाती है और सगे – संबंधी भी बहुत सारे रीित – िरवाजों के बाद बनते
हैं। परंतु जो व्यिक्त मुसीबत में आपकी सहायता करता है या आपके काम आता है , वही आपका सच्चा िमत्र
होता है।
दोहा
किठन शब्द –
बिह – बह जाना
तिज – त्याग करना
मीनन – मछली
मोह – प्यार , प्रेम
मछरी – मछली
नीर – जल , पानी
तऊ – तब भी , तथािप
छोह – प्रेम , स्नेह , कृपा , दया
दोहे का अथर् – इस दोहे में रहीम जी ने एक तरफा प्रेम का वणर्न िकया है। रहीम जी के अनुसार , जब िकसी नदी
में मछली को पकड़ने के िलए जाल डालकर बाहर िनकाला जाता है , तो नदी का जल तो उसी समय जाल से
बाहर िनकल जाता है। उसे मछली से कोई प्रेम नहीं होता इसिलए वह मछली को त्याग देता है। परन्तु , मछली
पानी के प्रेम को भूल नहीं पाती है और उसी के िवयोग में प्राण त्याग देती है।
भावाथर् – सच्चा प्रेम वही है जो िकसी भी िस्थित में आपका त्याग न करे और अंत तक आपके िलए ही िजए और
आपके िबना प्राण तक त्याग दे।
दोहा
किठन शब्द
तरुवर – वृक्ष , पेड़
खात – खाना
सरवर – नदी , तालाब
िपयिह – पीना
पान – पानी
काज – कायर् , काम , प्रयोजन
िहत – भलाई , उपकार , कल्याण , मंगल
सँचिह – संिचत िकया हुआ , इकठ्ठा िकया हुआ
सुजान – सज्जन , अच्छे व्यिक्त
दोहे का अथर् – अपने इस दोहे में रहीम जी कहते है िक िजस प्रकार वृक्ष अपने फल खुद नहीं खाते और नदी ,
तालाब अपना पानी कभी स्वयं नहीं पीते। ठीक उसी प्रकार , सज्जन और अच्छे व्यिक्त अपने द्वारा इकठ्ठे िकए गए
धन का उपयोग केवल अपने िहत के िलए प्रयोग नहीं करते , वो उस धन का दू सरों के भले के िलए भी प्रयोग करते
हैं।
भावाथर् – हमें अपनी धन – सम्पित का प्रयोग केवल अपने िलए ही नहीं बिल्क समाज के कल्याण के िलए भी
करना चािहए। तभी समाज का चहुमुखी िवकास संभव है।
दोहा
किठन शब्द
थोथा –तत्वरिहत , िनकम्मा , बेढंगा , भद्दा
बादर –बादल
क्वार –अिशवन का महीना
ज्यों – जैसे
घहरात – गरजना
धनी – अमीर
िनधर्न –गरीब
भये – हो जाना
करैं –करना
पािछली – िपछली
दोहे का अथर् – इस दोहे में रहीम जी कहते है िक िजस प्रकार बािरश और सदीर् के बीच के समय यािन अिश्वन
महीने में बादल केवल गरजते हैं , बरसते नहीं हैं। उसी प्रकार , कंगाल होने के बाद अमीर व्यिक्त अपने िपछले
समय की बड़ी – बड़ी बातें करते रहते हैं , िजनका कोई मूल्य नहीं होता है।
भावाथर् – सही समय पर न िकए गए काम का बाद में कोई मूल्य नहीं होता।
दोहा
किठन शब्द
रीत – प्रथा , िरवाज , परंपरा
सीत – सहनशिक्त
घाम – सूयर् का प्रकाश , धूप , कष्ट , िवपित्त
मेह – वषार् , बादल
सिह – सहन करना
त्यों – वैसे
दे ह – शरीर
दोहे का अथर् – रहीम जी ने अपने इस दोहे में मनुष्य के शरीर की सहनशीलता का वणर्न िकया है। वो कहते हैं िक
मनुष्य के शरीर की सहनशिक्त िबल्कुल इस धरती के समान ही है। िजस तरह धरती सदीर् , गमीर् , बरसात आिद
सभी मौसम झेल लेती है , ठीक उसी तरह हमारा शरीर भी जीवन के सुख – दुख रूपी हर कष्ट , िवपित्त के मौसम
को सहन कर लेता है।
भावाथर् – हमें जीवन की िकसी भी िवपित्त या मुसीबत से डरना नहीं चािहए क्योंिक िजस तरह भगवान् ने प्रकृित
को हर कष्ट से उभारना िसखाया है उसी प्रकार भगवान् ने जब हमें बनाया तो हमें भी सभी कष्टों को झेलने की
शिक्त के साथ बनाया है अतः खुद को कभी कमजोर नहीं समझना चािहए।
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किठन समय में जो िमत्र हमारी सहायता करता है , वही हमारा सच्चा िमत्र होता है।
मछली जल से अपार प्रेम करती है इसीिलए उससे िबछु ड़ते ही अपने प्राण त्याग देती है।
िनस्वाथर् भावना से दू सरों का िहत करना चािहए , जैसे – पेड़ अपने फल नहीं खाते , सरोवर अपना जल नहीं पीते
और सज्जन धन संचय अपने िलए नहीं करते।
कई लोग गरीब होने पर भी िदखावे हेतु अपनी अमीरी की बातें करते रहते हैं , जैसे – आिश्वन के महीने में बादल
केवल गहराते हैं बरसते नहीं।
मनुष्य को सुख – दुख समान रूप से सहने की शिक्त रखनी चािहए , जैसे – धरती सरदी , गरमी व बरसात सभी
मौसम समान रूप से सहती है।
प्रश्न 2 – रहीम ने क्वार के मास में गरजने वाले बादलों की तुलना ऐसे िनधर्न व्यिक्तयों से क्यों की है जो पहले
कभी धनी थे और बीती बातों को बताकर दू सरों को प्रभािवत करना चाहते हैं ? दोहे के आधार पर आप सावन
के बरसने और गरजने वाले बादलों के िवषय में क्या कहना चाहेंगे?
उत्तर – रहीम जी ने आिश्वन (क्वार) के महीने में आसमान में छाने वाले बादलों की तुलना िनधर्न हो गए धनी
व्यिक्तयों से इसिलए की है , क्योंिक दोनों गरजकर रह जाते हैं , कुछ कर नहीं पाते। बादल बरस नहीं पाते ,
िनधर्न व्यिक्त का धन लौटकर नहीं आता। जो अपने बीते हुए सुखी िदनों की बात करते रहते हैं , उनकी बातें बेकार
और वतर्मान पिरिस्थितयों में अथर्हीन होती हैं। दोहे के आधार पर सावन के बरसने वाले बादल धनी तथा क्वार के
गरजने वाले बादल िनधर्न कहे जा सकते हैं। क्योंिक धनी व्यिक्त सावन के बरसने वाले बादलों की तरह होते हैं
जो अगर अपनी धन – सम्पित का गुणगान करे भी तो उसमें कुछ अथर् प्रतीत होता है।
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