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तल
ु सी भरोसे राम के , निर्भय हो के सोए| ईश्वर पर भरोसा करिए और बिना किसी भय के चैन की नींद सोइए| कोई अनहोनी नहीं
5 तल
ु सीदास अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए|| होने वाली और यदि कुछ अनिष्ट होना ही है तो वो हो के रहेगा इसलिए व्यर्थ की चिंता
छोड़ अपना काम करिए|
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि। रहीम कहते हैं कि बड़ी वस्तु को देख कर छोटी वस्तु को फें क नहीं देना चाहिए अर्थात्
6 रहीम दास जहाँ काम आवे सईु , कहा करे तरवारि। । बड़े व्यक्ति को देखकर छोटे व्यक्ति को नहीं त्यागना चाहिए।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय । यहाँ रहीम जी हमें रिश्तों की अहमियत समझा रहे हैं। इस दोहे में वो कहते हैं कि रिश्ते
टूटे पे फिर ना जरु े , जरु े गाँठ परी जाय। । हमारी ज़िदं गी का एक बहुत ख़ास हिस्सा होते हैं। अपनी गलतियों और बरु े व्यवहार
की वजह से हमें रिश्तों के कोमल बंधन को नक ु सान नहीं पहुचँ ाना चाहिए। अगर
7 रहीमदास
कड़वी बातों के वार से कोमल रिश्ते एक बार टूट कर अलग हो जाएँ , तो फिर उन्हें
फिर से पहले जैसा करना बहुत मश्कि ु ल हो जाता है। इसलिए हमें अपने रिश्तों को
हमेशा प्यार से सहेज कर रखना चाहिए।
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये। कबीर दास जी कहते हैं, कि प्रत्येक मनष्ु य को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो श्रोता
औरन को शीतल करे , आपहुं शीतल होय ।। (सनु ने वाले) के मन को आनदि ं त (अच्छी लगे) करे । ऐसी भाषा सनु ने वालो को तो
8 कबीरदास सख ु का अनभु व कराती ही है, इसके साथ स्वयं का मन भी आनदं का अनभु व करता
है। ऐसी ही मीठी वाणी के उपयोग से हम किसी भी व्यक्ति को उसके प्रति हमारे प्यार
और आदर का एहसास करा सकते है।
गरुु गोविन्द दोऊ खड़े , काके लागू पाय| कबीर दास जी ने इस दोहे में गरुु की महिमा का वर्णन किया है। वे कहते हैं कि जीवन में
बलिहारी गरुु आपने , गोविन्द दियो बताय|| कभी ऐसी परिस्थिति आ जाये की जब गरुु और गोविन्द (ईश्वर) एक साथ खड़े मिलें
9 कबीरदास
तब पहले किन्हें प्रणाम करना चाहिए। गरुु ने ही गोविन्द से हमारा परिचय कराया है
इसलिए गरुु का स्थान गोविन्द से भी ऊँचा है।
दया धर्म का मल
ू है, पाप मल
ू अभिमान। तलु सीदास जी ने कहा की धर्म दया भावना से उत्पन्न होती और अभिमान तो के वल
10 तल
ु सीदास तल
ु सी दया न छाड़ि
ं ए, जब लग घट में प्राण॥ पाप को ही जन्म देता हैं, मनष्ु य के शरीर में जब तक प्राण हैं तब तक दया भावना कभी
नहीं छोड़नी चाहिए।
तल
ु सी इस ससं ार में, भाति
ं भाति
ं के लोग। सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव सजं ोग॥ अर्थ : तल ु सीदास जी कहते हैं कि इस
11 तल
ु सीदास सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव सजं ोग। ससं ार में तरह-तरह के लोग रहते हैं। आप सबसे हँस कर मिलो और बोलो जैसे नाव
नदी से संयोग कर के पार लगती है, वैसे आप भी इस भव सागर को पार कर लो।
दःु ख में समि
ु रन सब करे , सख ु में करै न कोय। दःु ख में हर इसं ान ईश्वर को याद करता है लेकिन सखु में सब ईश्वर को भल
ू जाते हैं।
12 कबीरदास जो सख ु में समि
ु रन करे , दःु ख काहे को होय ॥ अगर सख ु में भी ईश्वर को याद करो तो दःु ख कभी आएगा ही नहीं।