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साखी

प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित है । यहााँ पर पााँ ि साखखयााँ दी गई है । प्रत्येक साखी
में कबीरदास ने नीचतपरक चिक्षा दे ने का प्रयास चकया है ।
गुरू गोचिन्द दोऊ खडे , काके लागूं पाूं य।

बचलहारी गुरू अपने गोचिन्द चदयो बताय।।

प्रथम साखी में कचि ने गुरु के महत्त्व को प्रचतपाचदत चकया है चक यचद गुरु और गोचिूंद
दोनोूं उनके सामने खडे हो तो िे पहले गुरु के िरण स्पिश करें गे कारण गुरु ने ही उन्हें
ईश्वर का ज्ञान चदया है ।

भािाथश- कबीरदास कहते हैं चक जब गुरू और गोचिूंद अथाश त् ईश्वर एक साथ खडे होूं
तो चकसे प्रणाम करना िाचहए– गुरू को अथिा गोचिूंद को? ऐसी खथथचत में कबीरदास
कहते हैं चक गुरू के श्रीिरणोूं में िीि झुकाना उत्तम है चजनकी कृपा रूपी प्रसाद से
गोचिूंद का दिशन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

जब मैं था तब हरर नहीूं अब हरर है मैं नाहीूं।


प्रेम गली अचत साूं करी जामें दो न समाहीूं॥

दसरी साखी में कचि ने कहा है चक अहूं कार को चमटाकर की ईश्वर की प्राखप्त हो
सकती है ।
भािाथश- कबीरदास कहते हैं चक जब तक मन में अहूं कार था तब तक ईश्वर का
साक्षात्कार न हुआ, जब अहूं कार (अहम्) समाप्त हुआ तभी प्रभु चमले। जब ईश्वर का
साक्षात्कार हुआ, तब अहूं कार स्वत: ही नष्ट हो गया।

प्रेम की गली अत्यूंत तूंग होती है । चजस प्रकार चकसी तूंग गली में दो व्यखियोूं को
थथान नहीूं चदया जा सकता ठीक उसी प्रकार प्रेम की गली में अहूं कार और ईश्वर इन
दोनोूं िीज़ोूं को थथान नहीूं चमल सकता है । भाि यह है चक यचद ईश्वर का साक्षात्कार
करना हो तो अहूं कार का त्याग करना आिश्यक है । िैसे तो ईश्वर प्राखप्त के चलए
अनेक प्रकार के कृत्योूं की आिश्यकता होती है परूं तु कबीर के अनुसार अहूं कार का
त्याग सबसे महत्त्वपणश कृत्य है । अहूं कारी व्यखि के चलए ईश्वर को पाना कचठन है ।
अहूं कारहीन व्यखि सरल हृदय का हो जाता है और ऐसे व्यखि को ईश्वर तुरूंत प्राप्त
हो जाते हैं ।

कााँ कर पाथर जोरर कै, मसचजद लई बनाय।

ता िचि मुल्ला बााँ ग दे , क्या बहरा हुआ खुदाय॥

तीसरी साखी में कचि ने मुसलमानोूं पर व्यूंग करते हुए कहा है चक ईश्वर की उपासना
िाूं त रहकर भी की जा सकती है ।

भािाथश- प्रस्तुत दोहे में कबीर ने इस्लाम की धाचमशक कुरीचतयोूं पर कटाक्ष चकया है ।
कबीर के अनुसार मनुष्य को सच्ची भखि करनी िाचहए क्योूंचक ढोूंग पाखूंड चदखािे से
ईश्वर नहीूं प्राप्त होते। कबीर कहते हैं चक कूंकड पत्थर एकचित करके मनुष्य ने
मखिद बना ली। उसी मखिद में मौलिी जोर जोर से चिल्लाकर नमाज़ अदा करता है
अथाश त मुगे की तरह बााँग दे ता है तथा ईश्वर का आह्वान करता है । इसी रूचििाचदता
पर व्यूंग करते हुए िे मानि समाज से प्रश्न करते हैं चक क्या खुदा बहरा है ? जो हमें
इस तरह से चिल्लाने की आिश्यकता पड रही है । क्या िाूं चत से की गयी एिूं मन ही
मन में की गयी प्राथशना ईश्वर तक नहीूं पहुाँ िती है ? िे इस दोहे में ढोूंग आडूं बर तथा
पाखूंड का चिरोध करते हुए नज़र आते हैं । ईश्वर तो सिशज्ञ हैं।
पाहन पजे हरर चमले, तो मैं पजाँ पहार।

ताते ये िाकी भली, पीस खाय सूंसार॥

िौथी साखी में कचि ने चहन्दु ओूं की मचतश पजा का खूंडन चकया है चक पत्थर पजने से
भगिान की प्राखप्त नहीूं हो सकती है ।

भािाथश- इस दोहे द्वारा कबीरदास ने मचतश-पजा जैसे बाह्य आडूं बरोूं का चिरोध चकया है ।
कबीर के अनुसार यचद ईश्वर पत्थर पजने से चमलता तो िे पहाडोूं की पजा करना िुरू
कर दे ते परन्तु ऐसा सूंभि नहीूं है । कबीर मचतश पजा के थथान पर घर की िक्की को
पजने कहते है चजससे अन्न पीसकर खाते हैं । चजसमें अन्न पीस कर लोग अपना पेट
भरते हैं ।

सात समूंद की मचस करौूं, लेखचन सब बरनाय।

सब धरती कागद करौूं, हरर गुन चलखा न जाय।।

पााँ ििी साखी में कचि ने ईश्वर को अनूंत बताया है । कचि के अनुसार ईश्वर की मचहमा
का बखान नहीूं चकया जा सकता।
भािाथश- कबीरदास कहते हैं चक इस परी धरती के बराबर बडा कागज, दु चनया के
सभी िृक्षोूं की कलम और सातोूं समुद्ोूं की के बराबर स्याही बनाकर भी हरर के गुणोूं
का बखान नहीूं कर सकता

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