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आर्ट इंटीग्रेटेड प्रोजेक्ट

द्वारा – अनुष्का गिरी


प्रस्तुत – श्रीमती अनीता
कक्षा - 11 स
सूचि
प्रमाण पत्र
अभिस्वकृ ति
कबीर साहेब जी
जीवन
• आध्यात्मिक गुरु
परिचय

शिक्षाएं

भाषा • धर्म के प्रति


प्रमाण पत्र
प्रमाणित किया जाता है की अनुष्का काक्ष - 11 वी स्कॉलर्स
एके डमी की छात्रा है। जिन्होने हिंदी प्रयोग के विषय को
सफलतापूर्वबनाया है । परियोजना के दौरन उन्होंने बहुत
अच्छा मौलिक कथा और रचनात्मक प्रतिभा दिखाई ।
अभिस्वकृ ति

मैं अपनी शिक्षिका को धन्यवाद देना चाहती हूं जिन्होने मुझे इस विषय पर
परियोजना बनाने का अवसर प्रदान किया । मुझे परियोजना से कई परकार
की नई जानकारी प्रप्त हुई है ।
मैं अपने माता पिता को धन्यवाद देना चाहूंगी जिन्होने
परियोजना को पूरा करने में मेरी मदद की है ।
धन्यवाद
अनुष्का
कबीर साहेब जी
जीवन परिचय
कबीर साहेब का (लगभग 14वीं-15वींशताब्दी) जन्म स्थान काशी, उत्तर है। कबीर
साहेब का प्राकट्यसन 1398 (संवत 1455), मेंज्येष्ठमास की पूर्णिमा को ब्रह्ममूहर्त
के समय कमल के पुष्प पर हुआ था. कबीर साहेब (परमेश्वर) जी का जन्म माता पिता से
नहींहुआ बल्किवह हर युग मेंअपने निज धाम सतलोक से चलकर पृथ्वी पर अवतरित होते
हैं। कबीर साहेब जी लीलामय शरीर मेंबालक रूप मेंनीरु और नीमा को काशी के लहरतारा
 तालाब मेंएक कमल के पुष्प के ऊपर मिले थे।
परमात्मा कबीर जी जनसाधारण मेंसामान्यतः कलयुग में "कबीर दास" नाम से प्रसिद्धहुआ
तथा उन्होंने बनारस (काशी, उत्तर प्रदेश) मेंजुलाहे की भूमिका की। परंतु विडंबना यह है कि सर्व
सृष्टिके रचनहार, भगवान स्वयं धरती पर अवतरित हुए और स्वयं को दास शब्द से सम्बोधित
किया। कबीर साहेब के वास्तविक रूप से सभी अनजान थे सिवाय उनके जिन्हेंकबीर साहेब ने
स्वयं दर्शन दिए और अपनी वास्तविक स्थिति से परिचित कराया जिनमेंशिख धर्मके परवर्तक
नानक देव जी (तलवंडी, पंजाब), आदरणीय धर्मदास जी ( बांधवगढ़, मध्यप्रदेश), दादू
साहेब जी (गुजरात) आदि आदि शामिल हैं। वेद भी पूर्णपरमेश्वर जी की इस लीला की गवाही देते
हैं (ऋग्वेद मंडल 10 सूक्त 4 मन्त्र 6)। इस मंत्रमेंपरमेश्वर कबीर जी को "तस्कर" अर्थात
छिप कर कार्यकरने वाला कहा है।
आध्यात्मिक गुरु
कबीर साहेब जी को गुरु बनाने की कोई आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि वह
अपने आप में स्वयंभू यानि पूर्ण परमात्मा है। परंतु उन्होंने गुरु मर्यादा व परंपरा
(गुरु शिष्य के नाते) को निभाए रखने के लिए कलयुग में स्वामी रमानंद जी को
अपना गुरु बनाया। कबीर साहेब जी ने ढाई वर्ष के बालक के रूप में पंच गंगा
घाट पर लीलामाय रूप में रोने कि लीला कि थी ।
स्वामी रमानंद जी वहाँ प्रतिदिन सन्नान करने आया करते थे, उस
दिन रमानंद जी की खड़ाऊँ कबीर परमात्मा जी के ढाई वर्ष के
लीलामय शरीर में लगी, उनके मुख से तत्काल 'राम-राम' शब्द
निकला। कबीर जी ने रोने कि लीला की, तब रमानंद जी ने झुककर
उनको गोदी में उठाना चाहा, उस दौरान उनकी (रमानंद जी की)
कं ठी कबीर जी के गले में आ गिरी। तब से ही रमानंद जी कबीर
साहेब जी के गुरु कहलाए।
शिक्षाएं
कबीर साहेब जी की प्रमुख शिक्षाओं
•अहिंसा
•माँसाहार करना माहापाप
•अनुशासन निषेध
•गुरु बनना अति आवश्यक है
•बिना गुरु के दान करना निषेध
•व्यभिचार निषेध
•छू आछात निषेध
कबीर साहेब जी ने अपनी शिक्षाओं में परमात्मा की भक्ति पर जौर दिया है, कबीर परमेशवर जी अपनी वाणी
में कहते हैं कि

◦दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार, तरुवर ज्यों


पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार। |
भाषा
कबीर की भाषा सधुक्कड़ी एवं पंचमेल खिचड़ी है। इनकी भाषा में
हिंदी भाषा की सभी बोलियों के शब्द सम्मिलित हैं। राजस्थानी, 
हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा के शब्दों की
बहुलता है।
ऐसा माना जाता है की रमैनी और सबद में ब्रजभाषा की अधिकता
है तो साखी में राजस्थानी व पंजाबी मिली खड़ी बोली की।
धर्म के प्रति
कबीर साहेब जी के यहाँ साधु संतों का जमावड़ा रहता था।
कबीर साहेब जी ने कलयुग में पढ़े-लिखे ना होने की लीला
की, परंतु वास्तव में वे स्वयं विद्वान है। इसका अंदाजा आप
उनके दोहों से लगा सकते हैं जैसे - 'मसि कागद छु यो नहीं,
कलम गही नहिं हाथ।
 'उन्होंने स्वयं ग्रंथ ना लिखने की भी लीला तथा अपने मुख कमल से
वाणी बोलकर शिष्यों ने उन्हे लिखवाया। आप के समस्त विचारों में
रामनाम (पूर्ण परमात्मा का वास्तविक नाम) की महिमा प्रतिध्वनित
होती है। कबीर परमेश्वर एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के
घोर विरोधी थे। मूर्तिपूजा, रोज़ा, ईद, मस्जिद, मंदिर उनका विचार
था की यहाँ या इन क्रियाओं से आपका मोक्ष संभव नहीं।
धन्यवाद

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