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कबीरदास 15व ी ी सद के भारत य रहस्यवाद कवव और स त थे। वे वहन्द

सावहत्य के भक्तिकाल के ववर्गुण शाखा के ज्ञावीमर् ी उपशाखा के महावीतम कवव हैं ।


विक रव ाओ वीीे वहन्द प्रदे श के भक्ति आ दोवल को हु रे स्तर तक प्रभाववत वकया।
वउक रव ाएँ वसक्ीोी ी के आवद ग् थ में सक्तिवलत क यु हैं । वे वहन्दू धमग व
िस्लाम को मावीते हुए धमग एक सवोच्च ईश्वर में ववश्वास रखते थे। उन्ीोवीी ी ीे
सामाज में फै ल कर् र वतयो , कमगका ड, अ धववश्वास क वव दा क और सामावजक
बर्राियो क कड आलोव ा भ । वउके ज ववकाल के दौरावी वहन्दू और मर्सलमावी
दोवीीोी ी वीीे उन्ीेी बहुत सहयोर् वकया। कब र प थ वीीामक सम्प्रदाय विक
वशक्षाओ के वअर्याय हैं ।] हजार प्रसाद वववेद वीीे िन्ीेी मस्तमौला कहा।

ज वव परर य
लहरतरब जन्म स्थल
कब र साहब का जन्म कब हुआ, यह ठ क-ठ क ज्ञात वीह ी ी है । मोटे तौर पर वउका
जन्म
14व ी ी-15व ी ी शताब्द में काश (वतगमावी समय का वाराणस ) में हुआ था। एक
मान्यता के वअर्सार वउका जन्म वस 1398 (स वत 1455), में ज्येष्ठ मास क पूवणगमा को
ब्रह्ममूहतग के
समय हुआ था। वउक िस ल ला को वउके वअर्याय कब र साहे ब प्रकट वदवस के रूप
में वमाते हैं । वे जर्लाहे का कम करते थे।

भाषा

कब र क भाषा सधर्क्कड एव प मेल िख ड है । विक भाषा में वह द भाषा क


सभ बोवलयो के शब्द सक्तिवलत हैं । राजस्थावी , हरयाणव , प जाब , खड बोल ,
अवध , ब्रजभाषा के शब्दो क बहुलता है । ऐसा मावीीा जाता है क रमैवी और सबद
में ब्रजभाषा क अवधकता है तो साख में राजस्थावी व प जाब वमल खड बोल क ।
कृ वतया

वक्षवतमोवह सेवी वीीे कब र साहे ब ज वीीारा वलिखत मर्ख्य रूप से छह ग् थ हैं :

• कबीर साखी: िस ग् थ में कब र साहे ब ज सािखयो के माध्यम से सर्रता


(आत्मा) को आत्म और परमात्म ज्ञावी समझाया करते थे।
• कबीर बीजक: कब र क वाण का स ग्ह वउके वशष्य धमगदास वीीे ब जक
वीीाम से वस् 1464 में वकया। िस ग् थ में मर्ख्य रूप से पद्य भार् है । ब जक
के त वी भार् वकए एु हैं —

• कबीर शब्दावली: िस ग् थ में मर्ख्य रूप से कब र साहे ब ज वीीे आत्मा को


अवपे वअमोल शब्दो के माध्यम से परमात्मा वक जावीकार बताई है ।

• कबीर दोहवाली: िस ग् थ में मर्ख्य तौर पर कब र साहे ब ज के दोहे


वसवलत हैं ।

• कबीर ग्रंथावली: िस ग् थ में कब र साहे ब ज के पद व दोहे वसवलत वकये ये


हैं ।

• कबीर सागर: यह सूक्ष्म वेद है वजसमें परमात्मा वक ववस्तृत जावीकार है ।

रचना अथथ प्रय क्त छं द


रमैवी रामायण ौपाई और भाषा ब्रजभाषा और पूव बोल
सबद शब्द दोहा र् ीे य पद ब्रजभाषा और पूव बोल राजस्थावी
साख साक्ष दोहा प जाब वमल खड बोल

दोहे

कबीर साहेब जी के प्रससद्ध दोहे :


कबीर,हाड़ चाम लहू ना मेरे, जाने कोई सतनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूं कबीर असवनाशी।।

भावाथथ: कब र साहे ब ज िस वाण में कह रहे हैं वक मेरा शर र हड्ड और मा स का


वबा वीह ी ी है । वजसको मेरा वीीारा वदया याु सवताम और सारराम प्राप्त है , वह मेरे
िस भेद को जावीता है । मैं ह सबका मोक्षदायक हँ , तथा मैं ह अवववाश परमात्मा हँ ।

क्या मांग ुु क छ सथर ना रहाई, दे खत नैन चला जग


जाई। एक लख पूत सवा लख नाती, उस रावण कै दीवा न
बाती।

भावाथथ: यवद एक वमर्ष्य अवपे एक पर्त्र से व श क बेल को सदा वबाए रक्तखा ाहता
है तो यह उसक भूल है । जैसे ल का के राजा रावण के एक लाख पर्त्र थे तथा सवा लाख
वीीात थे। वतगमावी में उसके कर् ल (व श) में कोई घर में द प जलावीीे वाला भ वीह
ी ी है । सब वीष्ट हो एु । िसवलए हे मावीव! परमात्मा से तू यह क्या माँ ताु है जो स्थाई ह
वीह ी ी है । सतयर्र् में सतसर्कृ त कह टे रा, त्रेता वीीाम मर्ववन्द्र मेरा। वीीापर में
करुणामय कहलाया, कलयर्र् में वीीाम कब र धराया।।

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