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इकाई-8

कबीर
प्रशांत बथर्वाल
अनुवादक : जया ओझा

संरचना
 कबीर िह�द ू या मिु �लम?
 कबीर एवं धमर्

.in
 कबीर के दशर्न म� “�व”
 कबीर का सामािजक एवं नैितक दशर्न : बेगमपुरा की क�पना

es
 कबीर एवं नारी

di
 िन�कषार्�मक अवलोकन
अ�यास प्र�न

 संदभर्-सच
ू ी
tu
ls
15वीं शता�दी म� रहने वाले संत किव कबीर का म�यकालीन भारत म� भिक्त आंदोलन पर
ca

प्रभाव पड़ा। उनका ज�म 1398 म� काशी म� हुआ था एवं 1518 म� मगहर के िनकट म�ृ यु
हो गई थी। कबीर के जीवन तथा काय� के बारे म� मौजद
ू ा सामग्री थोड़ी धुंधली है । कबीर के
iti

स�पूणर् जीवनी म� उनके जीवन के कालानुक्रिमक प्रगित जैसे बचपन, जीवन, उपलि�धय� एवं
ol

काय� पर वहृ त जानकारी सि�मिलत है । कबीर के श�द िसख धमर् के पिवत्र ग्रंथ, ग�
ु ग्रंथ
.p

सािहब म� पाए जा सकते ह�i। कबीर जीवन कथा के अनुसार, वह एक िवधवा ब्रा�मण के पुत्र
w

थे िजसने समाज के भय से अपने नवजात पुत्र को लहरतारा ताल (तालाब) के िकनारे एक


टोकरी म� छोड़ िदया था। नवजात का पालन-पोषण नी� व नीमा नामक मिु �लम दं पित
w

�वारा िकया गया, िज�ह�ने उसे “कबीर” नाम िदया, िजसका शाि�दक अथर् “महान” है ii।
w

पिरणाम�व�प, वय�क होने तक कबीर का भरण-पोषण एक मिु �लम पिरवार �वारा िकया
गया। कबीर भिक्त आंदोलन के इितहास म� सबसे मह�वपूणर् सध
ु ारक� म� से एक थे। उ�ह�ने
िह�द-ू मिु �लम एकता के मह�व का प्रचार िकया। वह इस िव�वास पर अिडग थे िक ई�वर
एक है , एवं ई�वर तथा अ�लाह एक ही होने के पथ
ृ क् नाम ह�। उ�ह�ने अपने िश�य� म� ई�वर
के प्रित प्रितब�धता की भावना को उ�प�न िकया एवं समाज के सद�य� के बीच भाईचारे को
बढ़ावा िदया। उनके दाशर्िनक िवचार अ�य�त ही सरल थे। �यापक �प से उ�ह� भिक्त
आंदोलन का आ�याि�मक प्रणेता माना जाता है । उनके �वारा अपने नाम�ोतीय ‘दोहा’iii के
मा�यम से भिक्त का प्रचार िकया, जो पौरािणक हो गया।

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कबीर एक अरबी श�द है िजसे एक महान काज़ी �वारा िदया गया। कबीर ने अपने एक
दोहे म� कहा है —

कबीरा तू ही कबी� तू तोरे नाम कबीर


राम रतन तब पाई जड़ पिहले तजिह सरीरiv

(अथार्त ्, आप महान है , आप वही है , आपका नाम कबीर है , राम तभी िमलते ह� जब


शारीिरक लगाव �याग कर िदया जाता है )

कबीर िनगण
ुर् (अि�त�वहीन) ब्र�मा के अनुयायी थे, जो स�व (होने), रजस (बनने) तथा
v
तमस (करने) के तीन� गण
ु � से सव��च ह� । कबीर के अनस
ु ार ई�वर ना तो ज�म लेता है ,

.in
ना ही म�ृ यु को प्रा�त होता है , अिपतु वह शा�वत �प से िव�यमान है । िजस प्रकार पानी से
बफर् बनता है तथा बफर् पुन: पानी म� िपघल जाता है अथार्त ् वह अपने �व�प म� वापस आ

es
जाता है ठीक उसी प्रकार ई�वर है । कबीर ने कभी अ�लाह व राम म� भेद नहीं िकया; वह
सदै व लोग� को उपदे श दे ते थे िक ये एक ही ई�वर के पथ
ृ क् -पथ
ृ क् नाम है । उनका मानना है

di
िक लोग� के बीच प्रेम तथा बंधु�व का धमर् होना चािहए, िजसम� उ�च व िन�न वगर् या उ�च
tu
व िन�न जाितय� के बीच अंतर ना हो। उ�ह�ने भिक्त को प्रो�सािहत िकया तथा �वयं को
ls
ई�वर के प्रित समिपर्त कर िदया जो धमर् या जाित सभी म� �वतंत्र है । अपने बा�याव�था से
ही उनका कमर् की धारणा म� िव�वास रहा। मल
ू त: कबीर सामािजक मानदं ड� की आलोचना
ca

एवं अपने सामािजक दशर्न के िलए जाने जाते ह�। उ�ह�ने अपने दोहे श�द� तथा बीजक के
iti

िविभ�न अ�याय� के मा�यम से मह�वपूणर् भिू मका िनभाई, उदाहरणत: रमणी, चौतीसा,
कहारा, वसंत, िहंडो�ड, िवप्रमितसी, िबरहुली एवं कबीर ग्रंथावली के िविभ�न अंग तथा ग�
ol


ग्रंथ सािहब म� बानी के �लोक, श�द व गौरी समाज म� , राजनीितक, सामािजक धािमर्क तथा
.p

vi
ु य है ।
सां�कृितक पिरवतर्न लाने म� मख्
w

कबीर िह�द ू या मिु �लम?


w

कबीर की दख
ु द म�ृ यु के प�चात ् िहंदओ
ु ं व मस
ु लमान� दोन� ने अपने-अपने धािमर्क िव�वास�,
w

रीित-िरवाज� तथा परं पराओं के अनुसार दाह सं�कार करने के िलए उनके अवशेष� का दावा
िकया। परं तु सािह�य म� प्र�तुत व�
ृ ांत म� कहा गया है िक कबीर के मत
ृ शरीर के आवरण को
हटाने के बाद, लोग� को केवल कुछ फूल िमले जो दो गाँव� के बीच िबखरे हुए थे, िजसके
बाद उ�ह�ने अपनी परं पराओं के अनुसार दफन िकया। कबीर अपनी एक उ�घोषणा म� कहते
ह� िक, वह िह�द ू व इ�लाम दोन� धमर् से संबंिधत थे परं तु दोन� ही धमर् ‘ई�वर को पथ
ृ क् ’
करता है vii। जबिक इस दे श म� कोई िह�द ू या मस
ु लमान नहीं है । िह�द ू व इ�लाम एक ही
धमर् है । �वयं म� चम�कार दे खने के िलए िह�द-ू मिु �लम धमर् के आडंबर का कफन उतरना
होगा।

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कबीर उन �यिक्तय� म� से ह� जो धािमर्क मा�यताओं से परे है । सिदय� से जनता �वारा
जनसाधारण को यह समझाने का प्रय�न िकया गया िक कबीर िह�द ू थे या मिु �लम, इसको
समझाने के िलए वो शा�त्र� व अ�य �ोत� के आधार पर सभी प्रकार के साथ तक� के आधार
पर आए, परं तु संभवत: ही कभी उस संदेश को समझने का प्रयास िकया होगा जो कबीर
�वारा प्र�तत
ु िकया गया। वा�तव म� , उनका ज�म एक मिु �लम पिरवार म� हुआ था िफर भी
नैितकता व िश�टाचार िसखाने के िलए वह इ�लाम की सामा�य सीमाओं से परे जाते ह�।
उनके �वारा प्र�येक ओर से िविश�ट व�तओ
ु ं को दे खा गया तथा िव�व के प्र�येक िह�स� म�
िव�तािरत भी िकया गया। कुछ लोग� �वारा दावा िकया गया िक कबीर का उ�दे �य लोग� को
िह�द ू या इ�लाम म� पिरवितर्त करना है परं तु वा�तव म� कबीर का मख्
ु य उ�दे �य मानव को

.in
मानव जाित के सार संबंिधत िवषय� से अवगत कराना था ना िक लोग� को िह�द ू या
इ�लाम म� पिरवितर्त करने का प्रयास था। इस प्रकार कबीर एक ऐसे �यिक्त थे जो धमर् से

es
ऊपर व उससे परे थे।

di
कबीर एवं धमर्

tu
कबीर के अनुसार कमर् पूजा तु�य तथा कतर्�य धमर् तु�य है । लोग� को अपने जीवन म�
ls
कतर्�य� को �वीकार करना चािहए िजससे उनका जीवन सदै व बना रहे । वह कहते ह� िक
जनमानस को अपने उ�रदािय�व� से कभी भागना नहीं चािहए अथार्त ् स�यास नहीं लेना
ca

चािहए। उ�ह�ने पािरवािरक जीवन के मह�व को पहचाना तथा उनका स�मान िकया, इसे ही
iti

वह जीवन का स�चा उ�दे �य मानते थे। जैसा की पूरे मानव इितहास म� िदखाया गया है ,
गहन �यान के िलए िहमालय के यात्रा की आव�यकता नहीं होती, इसे उन लोग� �वारा प्रा�त
ol

िकया जा सकता है जो अपने समद


ु ाय� से दरू रहने के बजाय अपने समद
ु ाय� म� रहना पसंद
.p

करते ह�। कबीर �वयं इसके �प�ट उदाहरण थे। वह अपने भिक्त अ�यास के िलए साधारण
w

मनु�य� के साथ सह-अि�त�व म� रहे । प�थर� की पूजा करने के बजाय उ�ह�ने आम


जनमानस को भिक्त अ�यास करने की उिचत िविध बताई। बुनाई की मशीन, खड़ाव, �द्राक्ष
w

की माल (जो उ�ह�ने अपने ग�


ु �वामी रामानंद से प्रा�त की थी), जंग रिहत ित्रशूल एवं
w

अ�य सभी व�तए


ु ँ जो कबीर भिव�य म� उपयोग कर सकते थे वह सभी कबीर मठ म�
उपल�ध ह�। सिदय� से, कबीर के दशर्न ने सामािजक व �यावहािरक अिभ�यिक्त को िविभ�न
ि�थितय� म� पाया है , इसने स�पूणर् इितहास म� िह�द ू और मिु �लम आदश� के संलयन के
�प म� कायर् िकया है । िह�द ू धमर् के अनय
ु ायी के �प म� , कबीर ने पन
ु जर्�म की अवधारणा के
साथ-साथ कमर् के िनयम को भी �वीकार िकया। एक ई�वर की पिु �ट, जाित �यव�था व
मिू तर् पूजा के िवरोध की प्रेरणा उ�ह�ने इ�लाम से िलया। कबीर िजन मौिलक धािमर्क
मा�यताओं का पालन करते ह�, वह अ�यंत ही सरल है । उनके अनुसार जीवन दो आ�याि�मक
िस�धांत� के टकराव का पिरणाम है , एक �यिक्तगत आ�मा (जीवा�मा) है , दस
ू रा ई�वर

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(परमा�मा) और यह भेद मह�वपूणर् है । उनका मानना है िक मोक्ष इन दो िद�य िस�धांत� को
एकल करने व इनम� सामंज�य बनाने की प्रिक्रया है । इस प्रकार कबीर एक ऐितहािसक चिरत्र
है िजसने भारतीय इितहास म� मह�वपण
ू र् भिू मका िनभाई। िह�द,ू िसख व मस
ु लमान सबके
िलए एक ही समय म� उनका आ�याि�मक मह�व है इसिलए वह अ�िवतीय ह�। कबीर �वारा
सभी धम� की आलोचना प्रखरता से की गई िजससे भारतीय दशर्न को एक नई िदशा प्रदान
हुई। अ�िवतीय सादगी एवं शैली के साथ, कबीर आ�मा, अंतरता�मा, जाग�कता की भावना
व अि�त�व की जीवन शिक्त को इस प्रकार से छूने म� सक्षम थे जो सादगी एवं शैली दोन�
म� असमान है । कबीर के आगमन से पूव,र् धम� के बीच संघषर् का दौर था, जो उनकी अपनी
धािमर्क िवचारधाराओं की अलग-अलग �याख्याओं पिरणाम�व�प उ�प�न हुआ। इस अविध म�

.in
धािमर्क मतभेद उन प्रथाओं एवं परं पराओं पर हवी हो गए िजनका पालन िकया जा रहा था।
यह संघषर् लंबे समय तक चला। पिरणाम�व�प धािमर्क क�टरतावाद तथा अमीर व गरीब के

es
बीच खाई का ज�म हुआ। उ�च व िन�न जाितय� के अलगाव के साथ ही ब्र�मणवाद की
�थापना िन�न जाितय� के शोषण के साथ हुई। यह उस �या�त सामािजक असंतुलन का

di
प्राथिमक कारण रहा। उस समय नीित एवं नैितकता िस�धांत� पर आधािरत नहीं थी, अिपतु
एक अ�पसंख्यक समद tu
ु ाय के �वाथीर् उ�दे �य� को परू ा करने के िलए थी। यहाँ धािमर्क
ls
परं पराओं को अनुिचत तरीके से िन�पािदत िकया गया तथा इसे आम जनमानस के मन म�
ca

भय पैदा करने के िलए एक उपकरण के �प म� पिरवितर्त कर िदया गया। पिरणाम�व�प


आिथर्क व सामािजक जीवन को िवकृत तथा िवकास व प्रगित को बािधत कर िदया गया।
iti

िब्रिटश राज के समय िवशेषकर दिक्षण भारत म� �यिक्तय� को समद्र


ु पार करने या िवदे िशय�
ol

को �यापार करने की अनुमित पर प्रितबंध पूणत


र् : धािमर्क मा�यताओं पर आधािरत था। वणर्
एवं जाित �यव�था ने स�यता पर िव�वंसक जैसी ि�थित उ�प�न की, िजसके पिरणाम�व�प
.p

सामािजक, आिथर्क, राजनीितक, सां�कृितक एवं धािमर्क िगरावट दे खने को िमला।


w

भारत का धािमर्क एवं आ�याि�मक दशर्न वेद� व वैचािरक �कूल� (चावार्क, जैन, बु�ध,
w

सांख्य, योग, �याय, वैशेिषक, मीमांसा तथा वेदा�त) से प्रभािवत रहा, जो सभी वेद� पर
w

आधािरत है । प्रारं भ से ही यह भारतीय समाज एवं जीवन शैली म� गहनता से समािहत हो


गया है । दस
ू री ओर, यह अलग प्रकार से प्रकट हुआ िजसम� धािमर्क व अनु�ठान के�द्रीय
�तर पर थे। इसके साथ ही आ�याि�मकता को ज्ञानमागर् के अनुसार एक मा�यिमक �थान
पर ले जाया गया। स�पण
ू र् इितहास म� पज
ू ा व कमर्कांड� को सव�पिर मह�व् िदया गया है ,
पिरणाम�व�प धमर् की गलत �याख्याएँ, अंधिव�वास, व गलत प्रथाओं का आरं भ हुआ। इसने
समदु ाय को उसके वा�तिवक आ�याि�मक झुकाव एवं तकर्वादी दशर्न से दरू �थानांतिरत कर
िदया। इससे छल, धमर् म� �यापार, जाितवाद, ज�म के आधार पर बिह�कृित तथा वण� की
�थापना के यग
ु को बनाए रखने म� मदद िमली, जो समय के साथ एक क्रम बन गया।

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कबीर ने िविभ�न तकनीक� के म�यम से, मानव जाित को उनकी मल
ू ि�थित म� वापस लाने
एवं शु�ध ज्ञान प्रदान करने, खोए हुए ज्ञान व खोए हुए लोग� को उनकी मल
ू अवधारणा तथा
जीवन शैली म� वापस लाने का भरसक प्रयास िकया, परं तु वह असफल रहे । कबीर कहते ह�,
यह ठीक उन लोग� की मनः ि�थित है जो बाहरी �याख्याओं म� उलझे हुए ह�, वह अपने
उिचत प्रकाश म� स�य को दे खने म� असफल रहे ह�। यह वा�तव म� उनकी ओर से गहराई
तक जाने तथा शु�ध सोच का िव�लेषण करने म� िवफलता थी, िजसके पिरणाम�व�प
वा�तिवकता की एक गलत धारणा प्र�तत
ु की गई। स�ची अवधारणा मल
ू के िब�कुल
िवपरीत थी। पशु व मानव बिल, मिू तर् पूजा, प्राकृितक पयार्वरण की तबाही, तथा अंधिव�वास
म� िल�त होने जैसी भ्र�ट प्रथाएँ उस पूरे समय म� आम थी।

.in
जब भारत म� धािमर्क इितहास की बात आती है तब कबीर को महान संत के �प म�
स�मािनत िकया जाता है । कबीर की िशक्षा के साथ िनगण
ुर् भिक्त को पहली बार उ�री भारत

es
म� मह�वपूणर् प्रकार से प्र�तािवत िकया गया था, कबीर पहले िशक्षक थे िजनके �वारा िहंदओ
ु ं

di
एवं मस
ु लमान� दोन� के िलए अ�यथर्ना िकया गया। कबीर की वाक्पटुता इतनी शिक्तशाली
थी िक उनके श�द उ�र भारत म� पंजाब व राज�थान से लेकर िबहार तक जंगल म� लगे
tu
आग की तरह फैल गए। कबीर बानी की परू ी अविध म� , हम उन पिरि�थय� का िचत्रण करते
ls
ह� िजनका हम दै िनक आधार पर सामना करते ह�। अतएव यह हमारे करीब है , पिरणाम�व�प
ca

हम इसे आज भी प्रासंिगक मानते ह�। उनकी बानी एक ऐसा श�द है िजसे प्रायः �थानीय
भाषा म� सुन जाता है । कबीर की बानी सामािजक एवं �यिक्तगत, नैितक तथा आ�याि�मक
iti

जैसे िवषय� म� हमारी सहायता करती है । कबीर का अनुसरण करने का अथर् है अपने
ol

आंतिरक �व के साथ तालमेल िबठाना तथा �वयं को खोजना। �वयं को एक�प के �वीकार
करना अ�यंत आव�यक है । यह अपने पिरवेश के साथ अिधक तालमेल िबठाने की प्रिक्रया है ।
.p

प्रायः कबीर धमर् के सभी बाहरी यांित्रक घटक� के घोर िवरोधी थे, उ�ह�ने प्रतीका�मक तरीक�
w

से सवर्�यापी वा�तिवकता का प्रितिनिध�व करने के िलए भगवान के िविभ�न वै�णव तथा


w

इ�लामी नाम� को िनयोिजत िकया। इससे पता चलता है िक कबीर ने दोन� धम� के सध
ु ारक
w

के �प म� कायर् िकया, प्र�येक से त�व� को िलया एवं उ�ह� एक ही तकर्संगत दशर्न म� िमल
िदया। संभवतः यह धािमर्क िव�वास� तथा िवचारधाराओं से प्रभािवत राजनीितक कलह को
समा�त करने के िलए िकया गया था। मह�वपूणर् राजनीितक व सामािजक प्रभाव होने के
अलावा, इस तकर्संगतता ने तकर्संगत धािमर्क सं�कृित की एक नई लहर के आगमन का
आरं भ िकया, िजसने स�पूणर् तरीके से नए िवचार प्रिक्रया का रा�ता साफ कर िदया।

कबीर के दशर्न म� “�व”

कबीर का दशर्न मानव अि�त�व के सामािजक तथा आ�याि�मक दोन� पहलओ


ु ं से संबंिधत
है । प्रवचन तथा एक आ�याि�मक अवधारणा होने के अलावा, भिक्त अपने सभी

125
अिभ�यिक्तय� म� ई�वर के प्रित अपने प्रेम की अिभ�यिक्त के �प म� अपना जीवन जीने का
कायर् भी है । अपने वा�तिवक �प म� कबीर का दशर्न न केवल मानवीय एवं ई�वरीय क�िद्रत
है अिपत,ु यह सामािजक व नैितक उ�मख
ु भी है । कबीर के दशर्न म� स�भाव, समानता तथा
भिक्त मह�वपूणर् िवषय है , यह उनके लेख� म� पिरलिक्षत भी होते ह�। उनके दशर्न म� , सेवा
के �पक के �प म� सेवा करने के अथर् के साथ, भिक्त का पहलू प्रमख
ु है । यह जीवन का
एक तरीका है िजसने सभी िलंग�, जाितय�, सामािजक वग�, न�ल� तथा जाितय� के लोग� को
भगवान के नाम पर एक साथ ला िदया है । पन
ु जर्�म की अवधारणा तथा कमर् के िनयम
कबीर के दशर्न म� ग्रहण की गए ह� जैसे िक जाित �यव�था की अ�वीकृित तथा मिू तर् पूजा
का िवरोध। कबीर िजन मौिलक अवधारणाओं का पालन करते ह� वह अ�यंत ही सहज है ।

.in
कबीर के अनुसार, जीवन का अंितम उ�दे �य ना केवल दो आ�याि�मक िस�धांत�, �यिक्तगत
आ�मा (जीवा�मा) तथा ई�वर (परमा�मा) का िमलन है , अिपत,ु कम भाग्यशाली की सेवा एवं

es
अंदर एक नैितक आचार-संिहता का �यिक्तगत िवकास भी है । मोक्ष की यात्रा म� अलग-थलग
होने के बजाय सेवा की अवधारणा आव�यक है ।

di
त�वमीमांसा का संबंध वा�तिवकता, यथाथर्ता, तथा आि�त�वता जैसे अ�य मूलभत
tu ू
प्र�न� से है । जब भारतीय दशर्न की बात आती है तो त�वमीमांसा ब्र�म, आ�मा, सत, जीव
ls
तथा जगत जैसी अवधारणाओं से संबंिधत हो जाता है । त�वमीमांसा ज्ञानमीमांसा,
ca

स�ामीमांसा, िवचारधारा, अि�त�ववाद, रह�यवाद तथा अ�य संबंिधत िवषय� के अ�ययन के


िलए मंच प्रदान करता है । दशर्नशा�त्र का �टलेज िव�वकोश त�वमीमांसा का िव�तत
ृ िववरण
iti

प्रदान करता है .... त�वमीमांसा दशर्न का एक िव�तत


ृ िवषय है , जो अ�वेषण के दो �प�
ol

�वारा प्रिति�ठत है । पहला, वा�तिवकता की प्रकृित का �यापक परीक्षण; क्या ऐसा


.p

सावर्भौिमक िस�धांत ह� जो प्र�येक व�तु (जो उपल�ध ह�) पर लागू होता है जो वा�तिवक है ?
व�तुओं का अि�त�व हम� उनके बारे म� तब तक कुछ नहीं बताता जब तक हम उ�ह� उनके
w

संदभर् से बाहर नहीं िनकालते एवं उनकी िविश�ट प्रकृित को नहीं दे खते, जो उ�ह� एक दस
ू रे
w

से अलग अकरती है । अ�वेषण के दस


ू रे �प का संबंध वा�तव म� स�य को उजागर करने से
w

है , तथा यह सामा�यतः ऐसे उ�र प्रदान करता है जो दै िनक अनुभव के ठीक िवपरीत होते
ह�। जब इन दोन� प्र�न� के संदभर् म� िवचार िकया जाता है तब प्रायः यह पाया जाता है िक
त�वमीमांसा स�ामीमांसा से िनकटता से संबंिधत है , इन दोन� प्र�न� को अि�त�व को
समझने म� सि�मिलत िकया जाता है । श�द ‘त�वमीमांसा’ प्रकृित के अ�ययन को संदिभर्त
करता है जो प्रकृित के अ�ययन का अनुसरण करता है । �टलेज िव�वकोश के अनुसार अर�तू
ने इसे ‘प्रथम दशर्न’ एवं ‘अि�त�व का िवज्ञान’ (ऑ�ट�लॉजी श�द का कमोबेश अथर्) कहा।
य�यिप इस िवषय पर उनके लेखन को ‘त�वमीमांसा’ के �प म� जाना जाने लगा जो ग्रीक म�
प्राकृितक चीज� के बाद के िलए आता है अथार्त ् प्रकृित के अ�ययन के बाद क्या आता है ।

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उस समय दाशर्िनक मल
ू िस�धांत� की कुछ मल
ू भत
ू पिरभाषाएँ मौजूद थीं, सभी धम�
तथा भारत के सभी िह�स� के संत� ने उस समय �या�त दाशर्िनक मल
ू िस�धांत� की कुछ
बिु नयादी पिरभाषाओं को अपनी �याख्या दे कर भारतीय दशर्न शा�त्र की इस धार म� योगदान
िदया। उनके �वारा प्राचीन भारतीय दाशर्िनक भाषा के श�द� को अनुकूिलत िकया गया है ,
परं तु अपने श�द� म� उनक� �याख्याियत िकया है । उनका दावा है िक नाम (भगवान का
नाम) मौजद
ू है वो कहते ह� जब भी म� इसका पाठ करता हूँ, मझ
ु े रं ग िदखाई दे ता है ; कुछ
का दावा है िक उनकी िज�वा �वािद�ट लगती है ; कुछ प्रकाश दे खने का दावा करते ह�। हम
इन अनुभव� को ‘रह�यमय’ के �प म� संदिभर्त करते ह�, िजसका अथर् है िक वह िकसी ऐसी
चीज पर आधािरत है जो वा�तिवक तो है िफर भी अिनि�चत है ।

.in
कबीर को ई�वर की उपि�थित को लेकर कभी भी कोई संदेह नहीं था। उनके अनुसार

es
ई�वर की अवधारणा दे वताओं की भौितक अिभ�यिक्त का प्रितिनिध�व नहीं करती है । ई�वर
की प्राि�त �यिक्तगत अनुभव�, रह�यो�घाटन तथा तािकर्क तकर् के साथ-साथ अ�य मा�यम�

di
ु ार ई�वर हमारे �दय म� िनवास करते ह�। ब्र�मांड म� केवल एक ही
से होती है । उनके अनस
ई�वर है । भगवान के दो अलग-अलग �यिक्त�व है , एक को सगुण�व तथा दस
ू रे को
िनगण
ुर् �व के नाम से जान जाता है । िनगण
tu
ुर् �व के दो अथर् है , पहला ‘िनरपेक्ष’ एवं दस
ू रा
ls
‘नाम’। िनरपेक्ष अि�त�व एक अलग तथा िविश�ट इकाई के �प म� मौजद
ू है । िह�द ू धमर्
ca

ई�वर की मानव�पी अवधारणा म� िव�वास नहीं करता है । कबीर के दशर्न म� ई�वर के दस


ू रे
भाग को ‘नाम’ की धारणा �वारा दशार्या गया है , जो ई�वर की सबसे मौिलक व मल
ू भत

iti

अवधारणा है । नाम की अवधारणा को आगे एक िवशेष श�द के �प म� िवकिसत िकया गया


ol

िजसे ‘सबदा’ कहा गया। पिरणाम�व�प, ई�वर की मल


ू भत
ू समझ म� बदलाव ने लोग� की
.p

पूजा करने के तरीके एवं उनकी मिु क्त की अवधारणा को �वचािलत �प से बदल िदया।
�यिक्त जैसे जैसे ई�वर की प्राि�त के मागर् पर आगे बढ़ता है , वैसे-वैसे ग�
ु की भिू मका
w

मह�वपूणर् हो जाती है । ग�
ु की कृपा से ही मोक्ष या जीवनमिु क्त का मागर् प्रा�त करना संभव
w

है । कबीर की अवधारणा म� जाित, वगर्, िलंग, आिथर्क या राजनीितक ि�थित जैसा कोई बंधन
w

नहीं है जो िकसी को जीवनमिु क्त के क्षेत्र को प्रा�त करने से रोकता है ।

यह नेक मागर् हम� आ�याि�मक �तर तथा आ�याि�मक अनश


ु ासन के अ�यास तक ले
जाता है । ई�वर प्राि�त का मागर् सतग�
ु �वारा िनद� िशत है , िज�ह� सव��च �यिक्त के �प म�
ु के मागर्दशर्न के िबना इस मागर् पर बढ़ना असंभव है । नई
भी जाना जाता है । सतग�
िवकिसत �यान प�धित ने धािमर्क तथा आ�याि�मक समझ के िलए एक नया मंच तैयार
ु ा था जो उसका उपयोग करना चाहते थे। इस प्रकार के योग
िकया यह उन सभी के िलए खल
का वणर्न करने के िलए ‘सबदा-सिु तर् योग’viii तथा ‘सहज-योग’ix श�द का प्रयोग िकया जाता

127
है । कबीर इस योग प्रणाली के पहले व सबसे प्रिस�ध सं�थापक थे तथा सबसे प्रभावशाली भी
थे। इस प�धित के दो सबसे मह�वपूणर् पहलू िन�न है —

1) यह िनगण
ुर् तथा िनराकार भगवान की िविध है , एवं

2) यह जाित, सामािजक, आिथर्क वगर् या िलंग, पहचान जैसी सामािजक ि�थित की परवाह
की िबना सभी के िलए खुला है ।

बस आव�यकता है प्रेम, स�पूणर् समपर्ण तथा ई�वर के प्रित अटूट प्रितब�धता की। कबीर के
सािह�य एवं श�दावली म� �यान को ‘लू लगन’x के साथ-साथ अ�य परं पराओं म� ‘लगन
लगाना’xi व ‘सरू त लगाना’xii कहा जाता है ।

.in
कबीर का सामािजक एवं नैितक दशर्न : बेगमपुरा की क�पना

es
सामािजक दशर्न इस बात का अ�ययन है िक �यिक्त समह
ू � म� कैसे बातचीत या �यवहार
करता है । यह सामािजक िवषय� व अ�य अ�य पहलओ
ु ं का परीक्षण करता है । इसम� समाज

di
के धािमर्क, सां�कृितक, एवं सामािजक �यवहार शािमल है । इस प्रकार यह सामािजक दशर्न
tu
करता है । इसम� नैितकता एवं सदाचार जैसे सामािजक आदशर् ह�। सामािजक िव�व एक
िवमान की भांित है , सामािजक धरातल एक मानिसक क्षेत्र है । इसे तीन भाग� म� बाँटा गया
ls
है —1) धमर् 2) सं�कृित 3) समाजxiii। सामािजक दशर्न म� धमर् का अिधक मह�व है । धमर् तीन
ca

�तंभ� पर बना है —ई�वर की धारणा, पाठ तथा दीक्षा। दशर्न एवं कमर्कांड धमर् की दो मल
ू भत

�ेिणयाँ है । उपरोक्त सभी को �यान म� रखते हुए दो प्रकार के सामािजक-धािमर्क िवषय
iti

बताए गए ह�—अंतः-धािमर्क तथा अंतः-धािमर्क िववाद। अंतः धािमर्क िववाद� के कुछ कारण ह�
ol

जैसे—
.p

i. शा�त्र� की अलग-अलग �याख्या


w

ii. समय या �थान म� पिरवतर्न


w

iii. धािमर्क नेताओं के बीच असहमित


w

iv. धमर् म� कठोरता, तथा

v. नए िवचार/ दशर्न का आिव�कार


xiv
मख्
ु यतः दे शी व आक्रमणकारी धम� के बीच अंतः धािमर्क िववाद होते ह� ।

सत्र
ू � म� पिरवतर्न के कारण िब�द,ु क्षेत्र तथा नेता की सम�याएँ िवकिसत होती है , जो
एक समय तक कायर् करती थी परं तु अब प्रासंिगक नहीं हो सकती। क्य�िक गंगा के तट पर
संत� का जमावड़ा व कीतर्न होता था, ऐसा माना जाता था िक जो कोई भी वहाँ रहता है उसे
�वगर् की प्राि�त होती है । परं तु कबीर के िदन� म� ऐसा नहीं होता था। लोग गंगा के तट पर

128
नाम नहीं पढ़ते थे। कबीर यह घोषणा करते ह� िक ‘गंगा तट पर रहने से तु�ह� �वगर् नहीं
िमलेगा’xv। कबीर नार� का पाठ कर� , �यथर् कमर्कांड व फजीर् िव�वास से बच� । उ�ह�ने बताया
िक कुछ लोग सब
ु ह ज�दी नहाते ह� िफर भी वे लोग� को मारते ह� तथा प�थर� की पज
ू ा
करते ह�। ऐसा लगता है की उनम� बु�िध की कमी है । म�ने मिु �लम मौलिवय� व पिवत्र लोग�
को कुरान पढ़ते हुए दे खा है । वे िश�य बनाते ह� तथा उ�ह� बिलदान का मागर् सीखते ह�। िह�द ू
िभक्षु �यान करने का िदखावा करते ह�, जबिक उनका िदमाग गवर् से भरा होता है । वे पीतल
व प�थर की मिू तर्य� का स�मान करते ह� तथा तीथर् यात्रा करते ह�। पज
ु ािरय� के शरीर तथा
माथे पर चंदन के िविश�ट िनशान होते ह�। वो दोन� एक लड़ाई म� मार जाते ह� यहाँ तक की
वो भगवान के रह�य को भी नहीं जानते। घर-घर जाकर मंत्र अिपर्त करते ह� (िश�य बनाते

.in
ह�) एवं अपनी मिहमा का बखान करते ह�। ‘पथर� व कंकड़� से मि�जद बनाते हुए, तुम ऊपर
चढ़ते हो व अज़ान िच�लाते हो क्या अ�लाह बहरा है ?’ ‘उपवास तीथर्यात्रा तथा ग�ु त जल

es
�नान से संसार मर जाता है , परं तु िबना नाम जपे वो बार-बार मरते ह�। यज्ञ, तीथर् म� गलत
िव�वास के िलए संत असहाय प्रािणय� को नुकसान ना पहुँचाएँ नहीं तो शा�त्र� को लाख� बार

di
सन
ु ने से भी पाप नहीं िमटे गा। इन तीथर् याित्रय� के पास अनथर्क िवचार व चोर मानिसकता
tu
होती है । कोई पाप नहीं िमटाया गया परं तु उनके िवचार� म� दस और जोड़ दी गए। श�
ु ध एवं
ls
एकाग्रिचत के िबना तीथर् यात्रा �यथर् है । आप अपने धािमर्क पाखंड को सािबत करते हुए
ca

अितिरक्त पाप� के साथ लौटते ह�। जो लोग पिवत्र नदी म� �नान करते थे वो मर गए, सन ु �
संत� वो राक्षस थे तथा वो पछताएँगे। कबीर कहते ह� िक ‘वह एक �यापारी की तरह है जो
iti

�यान म� बैठता है िफर भी परु �कार चाहता है , तथा एक चरवाहा जो प्रशंसा की उ�मीद म�
ol

खड़ा होता है ’xvi।


.p

िवचार� को दशर्न एवं िदनचयार् बनने म� लंबा समय लगता है । एक धमर् के िनमार्ण के
बाद उसके अनुयायी समह
ू बनाए जाते ह�। कबीर कहते ह� ‘पूवार्ग्रह के कारण सभी लोग
w

xvii
गम
ु राह होते ह�’ तथा एक ही धमर् के भीतर अ�य पंथ� का िनमार्ण करने लगते ह�। कबीर
w

का मानना है िक ब�
ु िधमान �यिक्त कभी धमर् के प्रित पक्षपात नहीं करता इसिलए वह
w

िन�पक्ष �प से भगवान की पूजा करता है । इन पंथ� एवं धािमर्क समह


ू � की कुछ मल
ू भूत
मा�यताएँ होती ह� जो अपिरवतर्नीय तथा �वीकायर् होती है । कुछ अनुयायी तप�या को
�वीकार करते ह� जबिक कुछ सामा�य अि�त�व म� रहते ह�। इ�लाम म� , असहमित दो नेताओं
िसया व स�
ु नी की मा�यता से उपजी है । िह�द ू धमर् के चार मख्
ु य क्षेत्र है । कबीर कहते ह�,
xviii
लोग� �वारा भगवान की खोज की गई कुछ उ�ह� सगण
ु (िवशेषताओं के साथ) कहते ह�,
xix
अ�य उ�ह� िनगण
ुर् (िबना गण
ु � के ) कहते ह�। जो लोग भगवान को खोजने म� िवफल रहे ,
उ�ह�ने यह दावा करते हुए अपने हार की घोषणा की िक वह िनराकार व अग�य ह�।

129
धमर् एवं सं�कृित के बीच के बीच अंतर करना अित आव�यक है । सं�कृित तकर् व
िवज्ञान पर आधािरत है , जबिक धमर् आ�था पर आधािरत है । सां�कृितक कायर्क्रम एक तरह
की पज
ू ा है इसम� वजर्नाएँ ह�। सं�कृित का अपमान धमर् का अपराध है , धमर् नैितकता एवं
सदाचार के बारे म� है , जबिक सं�कृित जीवन शैली के बारे म� है । सां�कृितक पिरवतर्न एक
संक्रमण है , जबिक धािमर्क पिरवतर्न सध
ु ार है । सं�कृित सांसािरक है तथा धमर् आ�याि�मक
है । सं�कृित प्रगित कर सकती है , परं तु धािमर्क प्रगित का ता�पयर् है मोक्ष या आनंद।
सामा�यतः धमर् संिहताब�ध िकया जाता है । इसम� अन�ु ठान, ग्रंथ व िक्रयाएँ शािमल होती ह�
िज�ह� एक िविश�ठ प्रकार से पढ़ाया जात ह� िफर उसको संग्रहीत िकया जाता है । अतएव धमर्
शनैः-शनैः िवकिसत होता है , जबिक सं�कृित को संिहताब�ध नहीं िकया जा सकता है ।

.in
सं�कृित बाहरी पयार्वरणीय ताकत� या बाल� के प्रित प्रितिक्रया करती है । सं�कृित यह
िनधार्िरत करती है की एक समाज क्या करे क्या ना करे , उसम� रहन-सहन, िश�टाचार तथा

es
उ�सव� का िनधार्रण सं�कृित के �वारा िकया जाता है । इस संदभर् म� समाज कई धम� के
लोग� के शांितपूणर् सह-अि�त�व को संदिभर्त करता है । सं�कृित समाज म� मिहलाओं तथा

di
पु�ष� की भिू मका िनधार्िरत करती है । ऐसा माना जाता है िक एक िनि�चत सां�कृितक
tu
वातावरण म� लोग� को कुछ िश�टाचार का पालन करता होता है , जैसे ग�
ु �वारे म� प्रवेश करते
ls
समय िसर ढकने की प्रथा है । यह ना तो धािमर्क कृ�य है ना ही केवल िसख� �वारा इसका
ca

पालन िकया जाता है , परं तु ग�


ु �वारे म� प्रवेश करने वाले को अपना िसर अव�य ढकना पड़ता
है । न केवल िसख धमर् म� , अिपतु कई धम� म� , �यिक्त मंिदर म� प्रवेश करने से पहले अपना
iti

िसर ढक लेते ह�। यही भारतीय सं�कृित है । संत कबीर की कई बात� सां�कृितक िश�टाचार
ol

का उ�लेख करती है । कबीर कहते ह� िक “भगवान मझ


ु े मेरे पिरवार का समथर्न करने के
िलए पयार्�त धन द� ”xx, मेरे आगंतुक� को संतु�ट होना चािहए व मझ
ु े भख
ू नहीं रहना चािहए।
.p

कोई संपि� नहीं होना एवं मेहमान� की सराहना करना। यह िवचार भारतीय सं�कृित से ही
w

आता है ।
w

कबीर एवं नारी


w

स�पण
ू र् इितहास म� , मिहलाओं के िशक्षा की उपेक्षा की गई है , िजससे िनरक्षरता एवं
अंधिव�वास पैदा हुआ है । हम मिहलाओं की भागीदारी को दे खने म� िवफल रहे ह�। िकसी भी
सं�कृित म� मिहलाओं की ि�थित उसके सां�कृितक एवं आ�याि�मक �तर को दशार्ती है ।
कबीर �वारा ि�त्रय� के िवषय म� जो िलखा गया उसको समझने के िलए हम� उस समय के
भारत की पिरि�थित को समझना होगा। प्रारि�भक वैिदक काल म� पु�ष� के समान ही
मिहलाओं की भी िशक्षा, धािमर्क, राजनीितक तथा सामािजक भिू मकाओं तक पहुँच थी। उनके
�वारा कुछ वैिदक गीत भी िलखे गए, परं तु मनु के िनयम� ने वह सब बदल िदया। इस
ु ाम बनाया गया।
िनयम म� मिहलाओं को नीचा िदखाया गया एवं उ�ह� प्रभावी �प से गल

130
िह�द ू समाज म� मिहलाएँ अब केवल सामािजक, �यावसाियक तथा धािमर्क कानून� तक ही
सीिमत थी। अब मिहलाएँ ना केवल घर� तक सीिमत थी, अिपतु ज�म से लेकर म�ृ यु तक
प�
ु ष� �वारा िनयंित्रत की जाती थी। उ�ह� परदे म� रखा गया। कुछ जाितय� म� , कम उम्र की
िवधवाओं को भी दे खने को िमला और उनसे यह अपेक्षा की जाती थी िक वो आजीवन
िवधवा के �प म� अपना जीवन �यतीत करे । िवधवापन से समाज म� गरीबी, सामािजक
अ�वीकृित तथा अकेलापन को बढ़ावा िमला। उस समय क�या भ्रण
ू ह�या भी प्रचलन म� था
जो बेिटय� का ितर�कार करता था। ससरु ाल वाले लड़की के ज�म का आरोप लगा कर
मिहलाओं का ितर�कार करते थे, मिहलाओं को एक पु�ष वािरस पैदा करने के िलए ससरु ाल
पक्ष �वारा दबाव डाला जाता था, िजसके कारण मिहलाओं का �वा��य भी खराब हो जाता

.in
था। मनु का कानून आज भी भारतीय समाज पर प्रभाव डालता है । मिहलाओं को शालीन
कपड़े पहनना चािहए तथा मेकअप से बचना चािहए, स�मान के �प म� उ�ह� अपना सर भी

es
ढ़कना चािहए इ�यािद जैसी प्रथाएँ आज भी िव�यमान है ।

di
कबीर की िशक्षाओं ने नर एवं मादा दोन� मनु�य� की गिरमा को उिचतपूणर् �प से
प्र�तुत िकया। सारी सिृ �ट म� सिृ �टकतार् की �याि�त के बारे म� कबीर की रह�यमय अंतर�ि�ट
tu
ने समानता के िवचार को प्रितपािदत िकया। उ�ह�ने कहा िक ज�म या िलंग के आधार पर
ls
भेद करना सवर्था गलत है । कुछ छं द� म� उ�ह�ने सती को पुनः पिरभािषत िकया। कबीर
ca

कहते है सती िवधवा नहीं है जो अपने पित के िचता के पास बैठती है अिपतु वह स�य
बोलने वाली है । हे धािमर्क िव�वान इसे दे ख� तथा अपने �दय म� िवचार कर� । सांसािरक सख

iti

की लालसा होने पर कोई आ�याि�मक प्रेम नहीं हो सकता। माया म� िव�वास रखने वाला
ol

कभी सपने म� भी प्रभु से नहीं िमल सकता, परं तु स�ची आ�मा, द�


ु हन अपना शरीर, िवचार,
भाग्य, घर व �वयं को �याग दे ती है xxi।
.p

पदार् प्रथा मस
ु लमान� के साथ आया। य�
ु ध व िवकृत अथर्�यव�था के समय मिहला एक
w

बड़ी िज�मेदारी होती थी। मिहला की पिवत्रता एवं उसके स�मान की रक्षा करना अ�यंत ही
w

किठन था। परं तु दै िनक जीवन म� पदार् आव�यक नहीं है । कबीर ने अपने रह�यमय िशक्षाओं
w

म� पदार् का वणर्न िकया है , ‘हे मेरी आ�मा-वधू ,पु�ष के सामने घूँघट मत पहनो। इस घूँघट
ु हन� को अपने पित परमा�मा को दे खने से रोक रखा है । पदार् पहनने पर
ने कई आ�मा द�
लोग कुछ िदन� तक ही आपकी प्रशंसा कर� गे, परं तु असली कफन है तु�हारे पित परमा�मा
का नाम सिु मरन। नाम सिु मरन की उनकी हिषर्त प्रशंसा’।

कबीर पदार् की अवधारणा बताते हुए यह यह समझाते ह� िक पदार् क्या है तथा यह क्य�
है ? उनका मानना है िक एक द� ु हन पिरवार के स�मान या गौरव को बनाए रखने के िलए
पदार् का प्रयोग करती है । वा�तव म� वह नरक से पीिड़त है क्य�िक शरीर को दफनाने के बाद
पिरवार का गौरव खो जाएगा। कबीर कहते ह� ‘अपने सभी कम� एवं भ्रांितय� को छोड़ दो जो

131
मानव मे मनमट
ु ाव पैदा करते ह�, क्य�िक सभी के अंदर एक ही ई�वर है जो िनवास करता
है ’xxii। प्राि�त का मागर् संकीणर् है , पीछे मड़
ु ने से �यिक्त धूल म� िमल जाता है । घूँघट के पीछे
िछपी खब
ू सरू त �त्री सरु िक्षत है । आ�याि�मक मागर् एक चोटी सी सीढ़ी के समान है , इसका
ता�पयर् है अपने आपको लालसा, जन
ु ून, अंहकार आिद के कारण से होने वाले सभी कमर्
बंधन� से अपने आपको मक्
ु त करना। आप अपने अंहकार को इस रा�ते पर नहीं ला सकते।
आ�याि�मक मागर् को अ�वीकार करने से भौितक जीवन म�ृ यु म� समा�त हो जाता है ।

िन�कषार्�मक अवलोकन

प्रारि�भक िह�दी सािह�य के इितहास म� कबीर िनिवर्वाद �प से सवर्�े�ठ गीतकार एवं

.in
रह�यवादी थे। उनकी किवता तथा दशर्न ने न केवल िह�दी सािह�य पर अिपतु उ�र भारत
के अिधकतर �यिक्तय� पर भी एक �थायी प्रभाव डाला, जो उनकी म�ृ यु के प�चात ् भी

es
दशक� तक महसस
ू िकया जाता रहा। कबीर �वारा िह�द ू एवं मिु �लम धम� म� �या�त �यथर्
सं�कार� व परं पराओं की िनंदा करते हुए यह कहा गया िक इन दोन� धम� का अंितम

di
xxiii
उ�दे �य एक ही है । कबीर ने स�ग�
ु , संत समागमxxiv (भक्त� एवं संत� का समद
ु ाय) व
tu
नामिसमरनxxv का पक्ष िलया। उ�ह�ने िच�शु�िधxxvi (�दय की शु�धता), सदाचारxxvii (नैितक
�यवहार) तथा िन�काम-कमर्xxviii (कतर्�य के िलए दािय�व) पर बल िदया। इसिलए उ�ह�ने
ls
xxix
समद
ु ाय (समाज-जागिृ त) तथा भाव-भिक्त को जगाया व जाित एवं वगर् िवभाजन को
ca

अ�वीकृत िकया। उ�ह�ने सभी धम� का समथर्न िकया, परं तु उनके झठ


ू े , िछछले व खोखले
कमर्कांड� पर प्रहार िकया। पिरणाम�व�प, भिक्त आंदोलन के समय संत कबीर ने एक
iti

सामािजक क्रांित की शु�आत की तथा क्रांितकारी िवचार� व �ि�टकोण� को प्र�तुत करते हुए
ol

इस क्षेत्र म� अग्रणी बने।


.p

अ�यास प्र�न
w

1. कबीर िह�द-ू मिु �लम एकता के प्रितिब�ब थे। उ�र म� तकर् दीिजए।
w

………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
w

………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………

2. कबीर के सामािजक व नैितक दशर्न म� ‘वेगमपु की क�पना’ क्या थी?


………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
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