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Unit-II HINDI POETRY-III
Unit-II HINDI POETRY-III
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कबीरदास के दस दोहे
1. गु दे व:
कुमित कीच चेला भरा, गु ान जल होय।
जनम जनम का मोरचा, पल म डाले धोय।।
2. साधु:
संगत कीजै साधु की, कदी न िन ल होय।
लोहा परस पारस ते, सो भी कंचन होय।।
3. भेष:
साधु भया तो ा आ, माला पिह र चार।
बाहर भेष बनाइया, भीतर भरी भंगार।।
4. संगित:
स न सों स न िमले, होवे दो दो बात।
गदहा सों गदहा िमले, खावे दो दो लात।।
5. सेवक:
कबीर कु ा राम का, मुितया मेरा नाँ व ।
डोरी लागी ेम की, िजत खचै ितत जाँ व।।
6. भ :
ेम िबना जो भ है , सो िनज दं भ िवचार।
उदर भरन के कारने, जनम गँवायो सार।।
7. ेम:
ेम न बाड़ी उपजै, ेम न हाट िबकाय।
राजा परजा िजिह चै, शीस दे इ ले जाय।।
8. उपदे श:
पिढ पिढ के प र भये, िल ख िल ख भये जु ईंट।
कबीर अ र ेम की, लगी न एको छींट।।
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9. श :
कागा काको धन हरै , कोयल काको दे त।
मीठा स सुनाय के, जग अपनों क र लेत।।