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हिंदी परियोजना

शाश्वत मिश्रा
9J कार्य
मैं अपनी अध्यापिका श्रीमती अंजू त्रिवेदी का
आभार प्रकट करता हूं कि उन्होंने मुझे इस
अद्भुत परियोजना कार्य करने का अवसर
प्रदान किया। इस परियोजना कार्य के लिए
अभिस्वीकृ ति अनुसंधान करते हुए मुझे बहुत सी नई चीजों
का ज्ञान हुआ।मैं अपने माता-पिता को भी
आभार व्यक्त करना चाहता हूं जिन्होंने मुझे
इस परियोजना कार्य को समय सीमा के
भीतर पूर्ण करने में मदद की।
निंदक नियरे राखिए, आंगन
कु टी छवाय,
बिना पानी, साबुन बिना,
निर्माण करे सुभाय।
-कबीरदास
विषय-सूची
01 04
काकी पाठ का
चित्र अध्यन
02
संत कबीरदास का
03
उदेश्य
कबीर की साखी
परिचय
चित्र अध्यन

वृक्षारोपण
प्रस्तुत चित्र में हमें कई बच्चे पेड़ लगाते हुए दिखाई दे रहे हैं।
किसी भी पेड़ से रहित बंजर भूमि में पेड़ों को लगाने या बीज बोने की प्रक्रिया को
वृक्षारोपण कहते हैं। यह विशेष रूप से देशों में विदेशी वृक्षों को लगाने की एक प्रक्रिया
है।
आज के इस आधुनिक युग में पेड़ो की संख्या में बहुत कमी हो रही और मनुष्य जीवन
के लिए बहुत ही उपयोगी है इसलिए वृक्षारोपण करना बहुत जरूरी है। आसान शब्दों में
कहा जाये तो वृक्षारोपण नए वनों का निर्माण है।
मनुष्य के जीवन में वृक्षों का बहुत ही विशेष महत्व है। पेड़ धरती माता के बेटे हैं और
हमारे मित्र भी। वृक्षों से हमें फल, सब्जियां, लकड़ियां, आदि प्राप्त होती हैं। लकड़ी से
फर्नीचर, कागज़, गोंद, आदि वस्तुएँ तैयार की जाती हैं। इसके अलावा पेड़ों से बहुत
सारी औषधियां तैयार की जाती है, जो हमारे शरीर से संबंधित कई प्रकार के रोगों का
उपचार करने में हमारी मदद करती है।
वह निरं तर पेड़ों को काटते जा रहा है जिस कारण हमारे पर्यावरण में दुष्परिणाम पड़ रहे
हैं और मनुष्य को कई प्रकार के प्राकृ तिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है।
पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है, पहाड़ों का बर्फ लगातार पिघल रहा है, जिससे
बाढ़ का खतरा बना रहता है। पेड़ पौधे प्रकृ ति की शान है इस कारण इंसान धरती पर
बचे हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि पेड़ हमारे मित्र हैं। पेड़ों की जड़ें मिट्टी को कसकर जकड़े
रहती हैं। जड़ों के कारण उपजाऊ मिट्टी हवा मे उड़ने (मृदा अपरदन) से बची रहती है। पेड़
समय पर बारिश करने में हमारी मदद करते हैं। सचमुच पेड़ हमारे सच्चे दोस्त हैं। हमें
उनकी रक्षा करनी होगी।
पेड़ ना के वल हमें शुद्ध हवा प्रदान करते हैं बल्कि पर्यावरण को भी सुंदर बनाते हैं। पेड़
पर पक्षी अपना घोंसला बनाकर रहते हैं। तपती धूप में यह मनुष्य को छाया प्रदान कर
उसे गर्मियों से बचाने में मदद करती हैं। पेड़ों के ना होने से मनुष्य का जीवन संकट में
आ जाएगा। मनुष्य सुख सुविधाओं के लालच में आकर पेड़ों का शत्रु बन बैठा है।
पेड़-पौधे खुद धूप और तूफान सहते हैं और हमें शीतल हवा और छाया प्रदान करते हैं ना
कभी किसी से भेदभाव करते हैं और ना कभी किसी को अपना और पराया कहते हैं।
हमें इनकी रक्षा करनी होगी और लोगों को पेड़ काटने से रोकना होगा, इनका हम पर
बहुत उपकार है, यदि हमारे जीवन में हमें एक अच्छा जीवन चाहिए तो हमें अपने बच्चों
की तरह इन पेड़-पौधों को पालना होगा। शुद्ध हवा और ऑक्सीजन के बिना मानव
जीवन असंभव है।
कई प्रकार के प्राकृ तिक आपदाओं और प्रदूषण से भुगतने के पश्चात अब लोगों को
वृक्षारोपण का महत्व समझने आने लगा है। अब शहर से लेकर गाँव तक लोगों और
सरकार ने मिलझूल कई कार्यक्रमों की शुरुवात की है जिससे की वृक्षारोपण को
बढ़ावा मिले। स्कू ल और कॉलेज में भी बच्चों और अध्यापकों द्वारा नियमित रूप से
वृक्षारोपण के कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।

वृक्षारोपण न के वल शासन का कर्तव्य है बल्कि हमारा भी कर्तव्य है। प्रत्येक नागरिक


का यह कर्तव्य है कि वृक्षों को ना काटे और काटने से भी रोके । अधिकाधिक वृक्षारोपण
करें, ताकि वनों से हमें पर्यटन की सुविधा, पशु पक्षी का दर्शन, प्राकृ तिक संतुलन,
वनस्पति आदि का लाभ मिलते रहे। अगर वन संपदा नष्ट हो जाएंगी तो प्रकृ ति को
कोप से बचाना बहुत ही मुश्किल होगा।
कबीरदास का परिचय
कबीर जी 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी
साहित्य के भक्तिकालीन युग में परमेश्वर की भक्ति के लिए एक महान प्रवर्तक के रूप में
उभरे । इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित
किया।
 उनका लेखन सिक्खों के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है ।वे हिन्दू
धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे।
उन्होंने सामाज में फै ली कु रीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक
बुराइयों की कड़ी आलोचना भी ।
उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें बहुत प्रताड़ित किया।
कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं।
कबीरदास का परिचय
कबीर साहेब
कबीर जी द्वारा14वीं-15वीं
का (लगभग लिखितशताब्दी)
मुख्य जन्म
रूप से छहकाशी,
स्थान ग्रंथ हैं:
उत्तर है। कबीर का प्राकट् य
कबीर
सन साखी: इस ग्रंथ
1398 (संवत 1455),में कबीर साहेब
में ज्येष्ठ मासजीकी
साखियों
पूर्णिमाकेकोमाध्यम से सुरता
ब्रह्ममूहर्त के समय (आत्मा)
कमलकोके आत्म
पुष्प
और परमात्म ज्ञान समझाया करते थे। पर हुआ था।
कबीर बीजक:
कबीर जीइस
का ग्रंथ
जन्ममें माता
मुख्यपिता रूप से
से नहीं
पद्ध भाग
हुआ है।
बल्कि वह हर युग में अपने निज धाम
कबीर शब्दावली: इस सतलोक ग्रंथ में मुख्य रूप से पृथ्वी
से चलकर कबीरपर साहेब जी ने होते
अवतरित आत्मा हैं। को अपने अनमोल
शब्दों
 कबीर के जी
माध्यम से परमात्मा
लीलामय शरीर मेंकि बालकजानकारी
रूप में बताई
नीरु औरहै। नीमा को काशी के लहरतारा तालाब
कबीर दोहवाली: इस ग्रंथ में में मुख्य
एक कमल तौर पर
के कबीर
पुष्प केसाहेब
ऊपरजी मिलेके थे।
दोहे सम्मलित हैं।
कबीर ग्रंथावली: इस ग्रंथ में कबीर साहेब जी के पद व दोहे सम्मलित किये गये हैं।
कबीर सागर: यह सूक्ष्म वेद है जिसमें परमात्मा कि विस्तृत जानकारी है।
कबीरदास की साखियाँ
 गुरु गोविन्द दोऊ खड़े , काके लागू पाय|
बलिहारी गुरु आपने , गोविन्द दियो बताय||
कवि कहते हैं कि मेरे सम्मुख ईश्वर और गुरु दोनों पर
स्थित है माया निश्चय नहीं कर पा रहा हूं कि पहले किस
के चरणों में शीश झुकाऊं सर्वप्रथम मैं गुरु के चरणों में
नमन करता हूं क्योंकि उन्होंने ही मुझे ईश्वर तक पहुंचने
का मार्ग दर्शाया है गुरु के द्वारा दिए गए ज्ञान से ही
मनुष्य को सत्य स्वरुप ईश्वर का बोध होता है गुरु जी
उसे अज्ञानता के अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर
ले जाता है अतः कबीर दास जी ने मनुष्य की जीवन गुरु
के महत्व पर बल दिया है |
कबीरदास की साखियाँ
 जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं ।
प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहीं ॥

कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे मन में अहंकार का


भाव था तब तक मुझे ईश्वर के दर्शन नहीं हुए अब जब
मेरे मन का अंधकार मिट गया है तब मुझे सर्वत्र ईश्वर
का ही रूप दिखाई देता है प्रेम का मार्ग अत्यंत सकरा
होता है इश्क में दो लोग के लिए स्थान नहीं होता है
इसमें या तो अहंकारी रहेगा या भगवान ईश्वर के प्रेम में
स्वयं को मिटाकर ही उन्हें प्राप्त किया जा सकता है |
कबीरदास की साखियाँ
 कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई बनाय,
ता चढ़ि मुल्ला बांग दे का बहरा भया खुदाय|
कबीर दास जी ने मुस्लिम समाज को उसके धार्मिक
आडंबरों पर फट करते हुए कहते हैं कि कं कर पत्थर
जोड़कर मस्जिद बनाई उस पर चढ़कर तुम्हारे मौलवी
ऊं चे स्वर में अजान देकर अल्लाह को पुकारते हैं क्या
तुम्हारा खुदा बहरा हो गया है? कबीर दास जी के
अनुसार इस प्रकार का आडंबर से ईश्वर की प्राप्ति नहीं
होती है उन्हें प्राप्त करने के लिए अपने अंतर्मन में
झांकना आवश्यक है पवित्र मन से सत्य मुख्य मार्ग
पर चलकर ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है |
कबीरदास की साखियाँ
 पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार॥
मूर्ति पूजा जैसे कर्मकांडों पर व्यंग करते हुए कबीर दास
जी ने हिंदू समुदाय समुदाय को भी फटकार लगाई है वह
कहते हैं कि पत्थर को पूजनीय से भगवान मिलते हैं तो
मैं पत्थर के पहाड़ की पूजा करने को तैयार हूं मूर्ति की
पूजा करने से तो बेहतर है कि हम घर में रखी चक्की की
पूजा करें जिसके पीछे अनाज को खाकर जगत का पेट
भरता है कबीर दास जी ने धार्मिक कट्टरता एवं बाह्य
आडंबरों का डट कर विरोध किया है एक समाज
सुधारक कवि थे |
कबीरदास की साखियाँ
 सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं, तऊ हरि गुण लिख्या न जाइ॥

कभी कहते हैं यदि सातों समुद्र की स्याही बनाई जाए


और समोसे बनने प्रदेश से लेखनी बनाई दी जाए और
सारी धरती को कागज बना कर प्रभु के गुणों का वर्णन
किया जाए तो भी यह सामग्री उनके गुणों का बखान
करने के लिए कम पड़ जाएगी घर की महिमा अपरं पार
है उसका शब्दों में वर्णन करना किसी के लिए संभव
नहीं है |
काकी पाठ का उदेश्य
काकी कहानी में एक अबोध तथा मासूम बालक की मातृ वियोग की पीड़ा को
अत्यंत मार्मिक ढंग से व्यक्त किया गया है। कहानी में चित्रित किया गया है कि
बालकों का ह्रदय अत्यंत कोमल, भावुक तथा संवेदनशील होता है। मातृ वियोग की
पीड़ा को सहन नहीं कर पाते हैं। श्यामू की मां की मृत्यु के बाद वह उस मातृ वियोग
की पीड़ा को सहन कर नहीं पाता है और उनको वापस लाने की पतंग द्वारा बाल
सुलभ चेष्टा करता है। बच्चों की मनोवैज्ञानिक स्थिति को स्पष्ट करना है इस
कहानी का मुख्य उद्देश्य हैं ।
मैने अपने इस परियोजना कार्य को बनाने में निम्नलिखित वेबसाइट्स से ली हैं:-
1.www.wikipedia.com
2.www.shutterstock.com
3. अपनी हिंदी पाठ् य पुस्तक

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