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कक्षा-८

दिनांक-२८.०४.२२

विषय-हिंदी साहित्य

(साखी)

निर्देश नीचे दिए गए कार्य को ध्यान पू र्व क पढ़ें , समझे एवं शु द्ध-शु द्ध अपनी साहित्य पु स्तिका में

लिखें।
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प्रश्न- उत्तर

1) गु रु गोबिंद दोऊ खड़े , काके लागू पाय


ँ ।

बलिहारी गु रु आपनो, जिन गोबिंद दियौ बताय।।

क) स
ं त कबीर ने गु रु और ईश्वर की तु लना किस प्रकार की है तथा इस दोहे के माध्यम से क्या सीख दी

है?

उत्तर- प्रस्तु त पंक्ति द्वारा कबीर दास जी ने गु रु और इश्वर की तु लना करते हुए यह बताया है कि हमें

पहले गु रु के चरणों में ही अपना शीश झु काना चाहिए, क्योंकि गु रु ने ही हम सबको ईश्वर तक पहु
ँ चने

का मार्ग बताया है। भाव यह है कि गु रु की कृपा से हम भगवान तक पहु


ँ चते हैं। इसलिए गु रु का स्थान

ईश्वर से भी ऊ
ँ चा है।

ख) 'गु रु' और 'भगवान' को अपने सामने पाकर कबीर के सामने कौन सी समस्या उत्पन्न हुई? कबीर ने

उसका हल किस प्रकार निकाला और क्यों?

उत्तर- इस साखी में कबीर ने यह स्पष्ट किया है कि 'गु रु' का स्थान 'ईश्वर' से भी ऊ
ँ चा है। यदि हमारे समक्ष

'गु रु' और 'भगवान' दोनों खड़े हों तो हमें किस के चरण पहले छूने चाहिए। कबीर इस प्रश्न का उत्तर स्वयं

ही दे ते हुए कहते हैं कि हमें पहले गु रु के चरण स्पर्श करना चाहिए, क्योंकि गु रु ने ही हमें ईश्वर तक

पहु
ँ चाया है अर्थात ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया है।

ग) 'बलिहारी गु रु आपनो' कबीर ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तर- कबीर अपने गु रु पर बलिहारी हो जाना चाहते हैं क्योंकि गु रु द्वारा दी गई शिक्षा से ही हम

सत्य-असत्य, सही- गलत, अच्छाई-बु राई, पाप-पु ण्य में अंतर कर सकते हैं। वे हमें सही शिक्षा, दिशा

प्रदान करते हैं। अतः गु रु का स्थान सर्वोपरि है।


घ) 'गु रु गोविंद दोऊ खड़े '- शीर्षक साखी के आधार पर गु रु का महत्व प्रतिपादित कीजिए।

उत्तर- ईश्वर और गु रु में दे खा जाए तो गु रु का स्थान सबसे ऊ


ँ चा है,क्योंकि वह हमारे जीवन के हर पहलू

से हमें अवगत कराते हैं। सही ज्ञान दे कर सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रे रित करते हैं।

(2) जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।

प्रे म गली अति साँकरी, तामे दो न समाहि।।

क) 'जब 'मैं ' था तब हरि नहीं'-दोहै में 'मैं ' शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया गया है? 'जब मैं था तब हरि

नहीं' पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- 'मैं ' का अर्थ होता है अहंकार, स


ं त कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक मनु ष्य में अहंकार की

भावना होती है,तब तक उसे ईश्वर का साक्षात्कार नहीं होता है। ईश्वर का वास वहाँ होता है, जहाँ 'मैं ' नहीं

होता। अहम और मानवता दोनों एक साथ नहीं रह सकते । कबीरदास जी कहते हैं कि प्रे म की गली

बहुत तंग है।

ख) कबीर के अनु सार प्रे म की गली की क्या विशे षता है? प्रे म की गली में कौन-सी दो बातें एक साथ

नहीं रह सकतीं और क्यों?

उत्तर- इस साखी में कबीरदास जी ने यह स्पष्ट किया है कि ईश्वर प्राप्ति तथा साक्षात्कार के मार्ग में

सबसे बड़ी बाधा मनु ष्य के अहंकार ही है। केवल अहंकार शू न्य होकर ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।

प्रे म गली इतनी पतली है, जिसमें अहंकार और ईश्वर दोनों नहीं समा सकते ।

ग) उपर्युक्त साखी द्वारा कवि क्या स


ं दे श दे ना चाहते हैं?

उत्तर- स
ं त कबीर जी कहते हैं कि जब तक मनु ष्य में अहंकार की भावना होती है, तब तक उसे ईश्वर का

साक्षात्कार नहीं होता। ईश्वर का वास वहाँ होता है, जहाँ 'मैं '(अहम) नहीं होता है। अहम और भगवान

दोनों एक साथ नहीं रह सकते । कबीर कहते हैं कि प्रे म की गली बहुत तंग है, उसमें अहंकार और

भगवान दोनों साथ नहीं रह सकते ।

घ) 'प्रे म गली अति साँकरी'- पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- कबीरदास जी इस पंक्ति द्वारा यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि जहाँ अहंकार होता है, वहाँ ईश्वर का

वास कभी नहीं होता। जहाँ अहंकार नहीं होता, वहाँ ईश्वर उपस्थित रहते हैं। अर्थात प्रे म रूपी गली
इतनी पतली है कि उसमें दोनों को जगह नहीं दे सकते । हमें ईश्वर को ही जगह दे नी होगी,क्योंकि इसमें

हमारा ही हित है। भाव यह है कि अहंकारी व्यक्ति कभी भगवान को नहीं पा सकता। ‌

(3) 'काँकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय।

ता चढ़ी मु ल्ला बाँग दे ,क्या बहरा हुआ खु दाय।।

क) कबीरदास जी ने मु सलमानों को किस बात के लिए फटकारा है?

उत्तर- कबीर दास जी ने मु सलमानों को इस बात के लिए फटकारा है, कि वे मसजिद पर चढ़कर

जोर-जोर से बाँग दे कर खु दा को क्यों पु कार रहे हैं? खु दा कोई बहरा नहीं है, जो केवल जोर-जोर से बोलने

से ही पु कार सु नता है। क


ं कर-पत्थर जोड़ कर मस्जिद बनाकर, उस पर चढ़कर जोर-जोर से बाँग दे ना व्यर्थ

है क्योंकि ईश्वर सब कुछ सु नता है।

ख) उपर्युक्त पंक्तियों में निहित व्य


ं ग्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- उपर्युक्त पंक्तियों में यह व्य


ं ग्य किया गया है कि मनु ष्यों ने क
ं कड़- पत्थर आदि से मस्जिद का

निर्माण किया और उसके ऊपर चढ़कर खु दा को याद करते हुए पाँच बार ऊ
ँ चे स्वर में अज़ान अदा करते

हैं। कवि को यही बात हास्यास्पद लगती है। वह पू छते हैं कि क्या उनका खु दा बहरा है, जिसके कारण

उनको इतने ऊ
ँ चे स्वर में जोर-जोर से पु कारा जा रहा है।

ग) उपर्युक्त दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कबीर बाह्य आडंबरों के विरोधी थे ।

उत्तर- इन दोनों साखियों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि कबीर के तत्कालीन समाज में धर्म के नाम

पर कट्टरता, पाख
ं ड एवं बाह्य आडंबर जै से दुर्गुण व्याप्त थे । मनु ष्यों में परस्पर, द्वे ष, ईर्ष्या, दिखावा आदि

बु राइयाँ निहित थीं। पू जा-पाठ का दिखावा करते हुए मनु ष्य स्वयं को धर्म के ठेकेदार समझते थे ।

घ) उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कवि क्या स


ं दे श दे ना चाहते हैं?

उत्तर- कबीरदास जी ने अपने साखियों में प्रचलित रूढ़ियों एवं आडंबरों पर गहरी चोट की है। इस

साखी में कवि मु सलमानों के खु दा को याद करने या पु कारने के ढंग पर करारा व्य
ं ग्य करते हैं। वह कहते

हैं कि क
ं कड़- पत्थर जोड़कर मस्जिद का निर्माण तो कर लिया गया जिस पर चढ़कर मौलवी बाँग दे ते हैं

अर्थात अज़ान की आवाज़ दे ते हैं। कबीर जी प्रश्न पू छते हैं कि क्या खु दा बहरा हो गया है? जिसे स्मरण

करने के लिए जोर-जोर से चिल्लाना आवश्यक है। कवि उपर्युक्त पंक्ति द्वारा हमें यह स
ं दे श दे ना चाहते

हैं।
(4) पाहन पू जे हरि मिले , तो मैं पू ज
ँ ू पहाड़।

ताते थे चाकी भली, पीस खाए स


ं सार।।

क) कबीर हिंदुओं की मू र्ति पू जा पर किस प्रकार व्य


ं ग्य कर रहे हैं?

उत्तर- हिंदू धर्म में मनु ष्य म


ं दिर जाते हैं, वहाँ दे वी-दे वताओं की मू र्ति चंदन, अक्षत आदि से पू जते हैं,

अभिषे क करते हैं, पु ष्प अर्पित करते हैं, ऐसे कर्मकांड में कबीर की आस्था नहीं है। वे इसे प्रदर्शन एवं

पाख
ं ड ही समझते हैं। वे व्य
ं ग्य करते हुए कहते हैं कि यदि मू र्तिपू जा से भगवान की प्राप्ति हो तो वे किसी

भी पहाड़ को पू जेंगे, जिससे उन्हें बड़े भगवान की प्राप्ति हो जाए। यदि हमारा मन कलु षित है, किंतु

दिखावे के लिए पू जा-अर्चना हम करते हैं, तो यह व्यर्थ ही है। पू जा-अर्चना के साथ मन की पवित्रता

अधिक आवश्यक है।

ख) 'ताते ये चाकी भली'- पंक्ति द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर- कबीरदास जी कहते हैं कि यदि पत्थर की पू जा करने से भगवान मिलते हैं,तो वह पू रा का पू रा

पहाड़ पू जने के लिए तैयार हैं। कवि को मू र्ति पू जा से चक्की की पू जा करना अधिक उपयोगी लगता है

क्योंकि चक्की का उपयोग अनाज पीसने में किया जाता है, पिसे अनाज के आटे की रोटी से स
ं सार के

लोगों का पे ट भरता है।मू र्ति की पू जा तो व्यर्थ है।

ग) 'कबीर एक समाज सु धारक थे '- उपर्युक्त पंक्तियों के स


ं दर्भ में स्पष्ट कीजिए तथा बताइए कि इन

पंक्तियों द्वारा वे क्या स


ं दे श दे रहे हैं?

उत्तर- कबीर निराकार ईश्वर के उपासक थे । इन्होंने मू र्ति पू जा कर्मकांड तथा बाहरी आडंबरों का

खु लकर विरोध किया। ये पवित्र, नैतिक और सादे जीवन को अधिक महत्व दे ते थे । हिंदू और

मु सलमानों की धार्मिक परंपराओं तथा स


ं न्यास को व्यर्थ के आडंबर मानते हुए कबीर ने एक नए मत

की स्थापना की। उन्होंने हिंदू-मु सलमानों के बाह्याडंबरों के लिए उन्हें फटकारा है। धर्म का अर्थ है

विवे क-अच्छा बु रा समझने की बु द्धि। अतः हमें बाह्याडंबरों का परित्याग कर धर्म के मर्म को समझना

चाहिए।

घ) कबीर की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर- कबीर की भाषा का रूप स्थिर नहीं है। कबीरदास जी कवि कम सू फी स


ं त अधिक थे ।वह स्थान-

स्थान पर भ्रमण करते रहते थे । अने क स


ं तों से ज्ञान प्राप्त करते रहते थे । इनके घु मक्कड़ स्वभाव के
कारण इनकी भाषा में ब्रज,अवधी, भोजपु री,राजस्थानी और पंजाबी के शब्द घु ल- मिल गए हैं, इस

कारण इनकी भाषा को सधु क्कड़ी और पंचमे ल खिचड़ी भी कहा जाता है।

(5) सात सम
ं द की मसि करौं, ले खनि सब बनराय ।

सब धरती कागद करौं, हरि गन लिखा न जाय ।।

क) 'भगवान के गु ण अनंत हैं''-कबीर ने यह बात किस प्रकार स्पष्ट की है?

उत्तर- भगवान के गु ण अनंत हैं, उनका वर्णन नहीं किया जा सकता। यह भाव व्यक्त करते हुए

कबीरदास जी कहते हैं कि भगवान के अनंत गु णों का बखान नहीं किया जा सकता, उन्हें स
ं पू र्ण रूप से

लिखकर भी प्रकट नहीं किया जा सकता। इसके लिए यदि सातों समु द्रों की स्याही बनाई जाए और


ं गलों के पे ड़ों की कलमें बनाई जाए तथा समस्त पृथ्वी को कागज के रूप में प्रयोग कर लिया जाए,

तब भी ईश्वर के गु णों का वर्णन नहीं किया जा सकता क्योंकि यह सब ईश्वर के अनंत गु णों का बखान

करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

ख) कवि ने भगवान के गु णों का बखान करने के लिए किन-किन वस्तु ओं की कल्पना की है? वे इस

कार्य के लिए पर्याप्त क्यों नहीं हैं?

उत्तर- स
ं त कबीर जी भगवान के गु णों का बखान करने के लिए अने क वस्तु ओं की कल्पना करते हैं।

कबीरदास जी कहते हैं कि यदि मैं सातों समु द्रों के पानी की स्याही बना लू
ँ और सभी ज
ं गलों के पे ड़ों की

ले खनी बना लू
ँ तथा समस्त धरती का प्रयोग कागज़ के रूप में करु
ँ , तब भी ईश्वर के गु णों का बखान

नहीं किया जा सकता क्योंकि ईश्वर के गु ण अनंत हैं, उनके अनंत गु णों वर्णन करने के लिए ये सभी

वस्तु ए
ँ पर्याप्त नहीं हैं।

ग) ले खनि सब बनराय' का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- प्रस्तु त पंक्ति द्वारा कवि यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि यदि ज
ं गलों के पे ड़ों की कलमें बनाई जाए

तथा समस्त पृथ्वी को कागज़ के रूप में प्रयोग कर लिया जाए, तब भी ईश्वर के गु णों का वर्णन नहीं

किया जा सकता ,क्योंकि यह सब ईश्वर के अनंत गु णों का वर्णन करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

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