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कक्षा:11- बी
पाली:दूसरी पाली
विषय: हिंदी
कबीर
परिचय
कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के
भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे
हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में
ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के
प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के
भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित
किया। उनका लेखन सिखों ☬ के आदि
ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।
साई इतना दीजिये, जामें कु टुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु ना भूखा जाय।।
कबीरदास जी कहते हैं कि हे परमात्मा मुझे बस इतना दीजिये जिससे कि मेरे परिवार का भरण पोषण
हो सके । जिससे मैं अपना भी पेट भर सकूं और मेरे द्वार पर आया हुआ कोई भी साधु-संत कभी भूखा
न जाये।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पायं।
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय ।।
कबीरदास जी कहते हैं कि मेरे सम्मुख गुरु और ईश्वर दोनों खड़े हैं और मैं इस दुविधा में हूँ की पहले
किसके चरण स्पर्श करूँ । लेकिन इस स्थिति में पहले गुरु के चरण स्पर्श करना ही उचित है क्योंकि
गुरु ने ही ईश्वर तक जाने का मार्ग बताया है।
सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज ।
सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाए ।
अगर मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बनाऊं और दुनियां के सभी वृक्षों की कलम बना लूँ और
सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी गुरु के गुणों को लिखना संभव नहीं है।