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पाठ – दोहे

कवि -- कबीर
कबीरदास जी भक्तिकाल के प्रमुख कवि हैं । िह निर्ण ु
िादी विचारधारा के प्रमुख कवि थे । उिका माििा था कक
ईश्िर निर्ण
ु , निराकार , सिु व्यापक,अिादद और अिंि है
।उिके दोहे िैनिक मूल्यों की शिक्षा दे िे हैं ।
कवि -- कबीर
कार्ा काको धि हरै ,कोयल
काको दे ि ।
मीठे बोल सुिाय के, जर् अपिा
कर लेि
• कागा - कौआ
• काको – ककसका
• हरै - चरु ाना
• सनु ाय के - सन ु ा कर
• - प्रस्तत ु दोहे के माध्यम से कबीर जी ने मीठी वाणी का महत्त्व बताते हुए सदा
मीठा बोलने की प्रेरणा दी है । कवव कहते हैं कक कौआ न तो ककसी का धन
छीनता है और न ही कोयल ककसी को धन दे ती है । लेककन किर भी
लोग कोयल की मीठी आवाज़ सन ु ना चाहते हैं और कौए को अपनी
मड ुंु ेर तक से उड़ा दे ते हैं ।इस अन्तर को स्पष्ट करते हुए कबीर जी
कहते हैं कक यह सारा कमाल तो वाणी का है ।कोयल अपनी मीठी वाणी
से प्रभाववत करके सबको अपना बना लेती है और कोयल की कककश
वाणी को कोई सन ु ना नही चाहता ।इसी प्रकार मीठा बोलने वाले लोग
सबके वप्रय होते हैं ।
साधु ऐसा चाहहए , जैसा सप ू सभु ाय ।
सार – सार को गहह रहे , थोथा देइ उड़ाय
।।
• साधु – सज्जन
• सप ू – अनाज छाुंटने वाली छलनी
• सभ ु ाय- स्वभाव
• गहह रहै - ग्रहण करना
• थोथा- छछलका
• दे इ उड़ाय- उड़ा दे ना
• प्रस्ततु दोहे में कबीर जी सज्जन व्यक्तत की ववशेषता बताते हुए
कहते हैं कक सज्जन पुरुष का स्वभाव अनाज छााँटने वाली छलनी
के समान होता है ।क्जस प्रकार छलनी छछलकों व बेकार दानों को
उड़ा दे ती है और साफ़ दानों को अपने पास रख लेती है । उसी
प्रकार सज्जन पुरुष सभी दग ु ंण दरू कर के सद्गुणों को अपनाता है
और स्वयुं को समद् ृ ध बनाता है ।

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