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• गु गो व द दोऊ खड़े, काके लागूं पायं। [SAAVYA]

ब लहार गु आपने, गो व द दयो बताय ।।

अथ: कबीरदास जी कहते ह क मेरे स मख


ु गु और ई वर दोन खड़े ह और म इस द ु वधा
म हूँ क पहले कसके चरण पश क ँ । ले कन इस ि थ त म पहले गु के चरण पश
करना ह उ चत है य क गु ने ह ई वर तक जाने का माग बताया है।

• ऐसी वाणी बो लये मन का आपा खोय।[KANIKSHA]

औरन को शीतल करे , आपहुं शीतल होय।।

अथ: कबीर दास जी कहते ह क अपने मुख से ऐसी वाणी का इ तेमाल क िजये जो दस
ू र
को शीतलता का अहसास कराये और िजससे वयं को भी शीतलता का अनुभव हो।

• बुरा जो दे खन म चला, बुरा न म या कोय। [VRATIKA]

जो मन खोजै आपने, मुझसे बुरा न कोय।।

अथ: कबीर दास जी कहते ह क जब म इस संसार म बुराई ढूंढने नकला तो मुझे कोई बुरा
नह ं मला। जब मने अपने अंदर झांककर दे खा तो पाया क मुझसे बुरा कोई नह ं है।

• करता था सो य कया, अब कर य प छताय। [PALOD]

बोया पेड़ बबल


ू का, आम कहाँ से खाय।।

अथ: कबीर दास जी कहते ह क िजन बरु े काय को तू करता था वह तन


ू े य कये। अब
करने के बाद पछताने से या लाभ होगा। य द बबूल का पेड़ बोया है तो पेड़ पर बबूल के ह
फल लगगे, उसमे आम के फल नह ं लग सकते। कबीर दास जी समझा रहे ह क इंसान
जैसा कम करे गा, उसे वैसा ह फल मलेग
 जा त न पूछो साधु क , पछ
ू ल िजए ान। [YASH]

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो यान॥

 आवत गार एक है , उलटत होई अनेक। [NITTYA]


कह कबीर नह ं उल टए, वह एक क एक॥

 माला तो कर म फर, जीभ फरै मख


ु माह ।ं [LAKSHITA]
मनवा तो दहू दस फरै , यह तो सु मरन नाह ॥

 कबीर घास न नीं दये, जो पाऊँ त ल होई। [HARSHITA]


उड़ी पड़े जब आं ख म, खर दहु े ल होई॥

 जग म बैर कोई नह ,ं जो मन सीतल होय। [RAGHUVANSHI]


या आपा को डा र दे , दया करै सब कोय॥

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