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विषय-सूची

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स्वर्ग बना सकते हैं रामायण की चौपाई 
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मेरी प्रिय
पुस्तक : रामायण
जीवन परिचय रामधारी सिहं 'दिनकर'
दिनकर' जी का जन्म 24 सितंबर 1908 को बिहार के बेगसू राय
जिले के सिमरिया गाँव में एक सामान्य किसान 'रवि सिहं ' तथा
उनकी पत्नी 'मनरूप देवी' के पत्रु के रूप में हुआ था। उन्होंने
सामाजिक और आर्थिक समानता और शोषण के खिलाफ
कविताओ ं की रचना की। एक प्रगतिवादी और मानववादी कवि के
रूप में उन्होंने ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओ ं को ओजस्वी और
प्रखर शब्दों का तानाबाना दिया। उनकी महान रचनाओ ं में रश्मिरथी
और परशरु ाम की प्रतीक्षा शामिल है। उर्वशी को छोड़कर दिनकर की
अधिकतर रचनाएँ वीर रस से ओतप्रोत है। भषू ण के बाद उन्हें वीर
रस का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है।
कविता का कें द्रीय भाव
इस धरती पर सबका जन्म समान रूप से हुआ है । ईश्वर ने हमें बनाया है और साथ
ही यह धरती , हवा, प्रकाश आदि सब उपभोग करने के लिए दिए , परंतु मनष्ु य ने
लोभवश उन पर अधिकार जमाना शरू ु कर दिया और समाज में भेद-भाव को
जन्म मिला । कवि के अनसु ार धरती पर इतनी सामग्री उपलब्ध है कि यदि हम सब
मिल बांट कर उपभोग करें तब भी वह समाप्त नहीं होगी । कवि कहते हैं कि सबको
सबका अधिकार मिले और मार-धाड़ , लड़ाई-झगड़ा , स्वार्थ , यह सब इस धरती
से विदा हो जाए तो यह धरती पल भर में ही स्वर्ग बन जाएगी ।
प्रस्ततु कविता में भीष्म पितामह यधि
सारांश
ु ष्ठिर को उपदेश देते हुए कहते हैं कि इस धरती पर जन्म लेने
वाले प्रत्येक व्यक्ति का इस भमि
ू पर समान हक़ है इसलिए प्रकृति प्रदत्त सभी वस्तओ ु ं का उपभोग
आपस में मिल बाँटकर करना चाहिए। मार्ग में आने वाली हर रुकावट का का सामना भी मिलकर
करना चाहिए। हर व्यक्ति को हर एक के सख ु दःु ख को समझना होगा। किन्तु कुछ स्वार्थी मनष्ु यों
ने लोभवश उन पर अधिकार जमाना शरू ु कर दिया है और समाज में भेद-भाव को जन्म दिया है
जिससे सघं र्ष की सष्टिृ हो रही है। ईश्वर ने इस ससं ार को इतना सखु ों का विशाल भडं ार दिया है कि
यदि मनष्ु य चाहे तो इस धरती को स्वर्ग बना सकता है। अत: मनष्ु यों को अपने लोभ का त्याग
कर समाज में स्वतंत्रता, समानता और बंधत्ु व की स्थापना करनी चाहिए और धरती को स्वर्ग के
समान बनाने की कोशिश करनी चाहिए।
भावार्थ/ व्याख्या
भावार्थ – प्रस्ततु पंक्तियों में भीष्म पितामह यधि
ु ष्ठिर से कहते है कि यह
धर्मराज यह भमि ू किसी की धरती किसी की खरीदी हुई दासी नहीं है। इस पर जन्म लेने वाले सभी एक
नहीं क्रीत है दासी समान है। सभी इस धरती के निवासी हैं। पितामह भीष्म यधि
ु ष्ठिर कहते हैं कि
है जन्मना समान परस्पर हर व्यक्ति को समान रूप से प्रकाश और वायु चाहिए। उसके जीवन का
इसके सभी निवासी। विकास बाधारहित होना चाहिए। इसके अलावा उसका जीवन भय से मक्त ु
सबको मक्त ु प्रकाश चाहिए होना चाहिए।
सबको मक्त
ु समीरण
बाधा रहित विकास, मक्तु
आशक ं ाओ ं से जीवन।
भावार्थ/ व्याख्या
लेकिन विघ्न अनेक अभी
भावार्थ- भीष्म पितामह यधि
ु ष्ठिर से कहते हैं कि इस धरती को स्वर्ग बनाने के
लिए अनेक बाधाएँ खड़ी हैं। विभिन्न वर्गों में बँटे हुए समाज में समानता को लाना
इस पथ पर अड़े हुए हैं
कठिन है। धर्म जाति-पाति,वर्ग- तथा वर्ण भेद जैसी अनेकों मसु ीबतों ने इसं ान का
मानवता की राह रोककर मार्ग रोक रखा है।भीष्म पितामह यधि
ु ष्ठिर से कहते हैं कि जब तक इस धरती पर
पर्वत अड़े हुए हैं । रहने वाले मानव को न्याय के अनसु ार सख ु -सविु धाएँ प्राप्त नहीं हो जातीं तब तक
न्यायोचित सखु सलु भ नहीं वह चैन से नहीं बैठ सकता। ऐसी स्थिति में तो समचू े विश्व में शांति खोजने पर भी
जब तक मानव-मानव को नहीं मिलेगी।
चैन कहाँ धरती पर तब तक
शांति कहाँ इस भव को?
भावार्थ/ व्याख्या
जब तक मनजु -मनजु का यह भावार्थ– कवि का मानना है कि अन्याय के विरुद्ध मानवता का आन्दोलन
सखु भाग नहीं सम होगा का शोर तब तक कम नहीं होगा जब तक प्रकृति के साधन सबको समान रूप
शमित न होगा कोलाहल से नहीं मिल जाते।मानव अपने कर्तव्यों को भल ू कर संदहे के जाल में फँ सकर
रह गया है। भयभीत होकर वह अपनी शक्ति को बढ़ाने और सांसारिक चीजों
संघर्ष नहीं कम होगा।
का संग्रह करने में जटु ा हुआ है। कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि मानव
के वल स्वयं का हित साधने में दिन-रात संघर्षरत है। उसे किसी भी तरह इस
उसे भल
ू वह फँ सा परस्पर
धरती पर रहने वाले अन्य लोगों की परवाह नहीं है। ऐसे में शांति की कल्पना
ही शंका में भय में करना असंभव है।
लगा हुआ के वल अपने में
और भोग-संचय में।
भावार्थ/ व्याख्या
प्रभु के दिए हुए सखु इतने भावार्थ– ईश्वर ने मानव को इस धरती पर अनेक प्रकार के सखु ों का इतना
हैं विकीर्ण धरती पर विशाल भडं ार दिया हुआ है कि यदि उसका सही ढंग से इस्तेमाल किया जाय
तो धरती के सभी मानव भी उसका उपभोग करके खत्म नहीं कर सकते।  ईश्वर
भोग सकें जो उन्हें जगत में,
ने मानव को जो अमल्ू य भडं ार दिया है, उससे धरती के सभी मानव तप्तृ हो
कहाँ अभी इतने नर? सकते हैं। यदि मनष्ु य स्वार्थ रहित होकर यदि इन सख ु ों को समतापर्वू क भोगे तो
सबको सख ु भी प्राप्त होगा और सभी संतष्टु भी रहेंगे। आवश्यकता है तो परस्पर
सब हो सकते तष्टु एक-सा तालमेल की। ऐसा करके यदि वे चाहें तो धरती को स्वर्ग में बदल सकते हैं।
सब सख ु पा सकते हैं
चाहें तो पल में धरती को
स्वर्ग बना सकते हैं।
मेरी प्रिय पुस्तक : रामायण
मझु े पस्ु तके पढ़ना बहूत पसदं है और मैंने बहूत सारी किताबें भी पढ़ी है लेकिन रामायण मेरी पसदं ीदा पस्ु तक है, जिसे
मै समय-समय पर पढ़ता रहता हू।ँ यह एक धार्मिक पस्ु तक है जो हमें अच्छा और पवित्र बनाने में मदद करती है। यह
बाल्मीकि द्वारा लिखित ‘सस्ं कृत में एक महाकाव्य है और इसे सतं कवि तल ु सी दास द्वारा सदंु र हिदं ी कविता में प्रस्ततु
किया गया है। यह सामाजिक ज्ञान के सिद्धांतों के अलावा भक्ति गीतों से भरा है। इसमें राम की जीवन गाथा है जिन्हें
भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। इस पस्ु तक ने मझु े सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। रामायण सिर्फ मेरी ही
प्रिय पस्ु तक नहीं है बल्कि यह दनि
ु या के हजारों लाखों लोगों की भी प्रिय पस्ु तक है।  इडं ोनेशिया जैसे मस्लिु म बाहुल्य
देशों में रामायण को बड़ी इज्जत की दृष्टि से देखा जाता है और किसी भी बच्चे के जन्म के समय रामायण का पाठ
किया जाता है। रामायण से जीवन को सकारात्मक तरीके  से जीने की सीख मिलती है जिसमें श्री राम कर्तव्य की मर्ति ू
हैं तथा लक्ष्मण आज्ञा पालन तथा सेवा की मर्ति ू हैं जहां मां सीता चरित्र की मर्ति
ू हैं वही श्री हनुमान वीरता तथा
साहस की मर्ति
ू हैं रामायण से जीवन के सभी पहलओ ु ं पर सीख मिलती है।
यह पस्ु तक आदर्शों से भरी है। पस्ु तक में एक आदर्श पिता और एक आदर्श पत्रु को दर्शाया गया है। राम
अयोध्या के राजा दशरथ के पत्रु थे। उन्होंने अपने पिता के आदेशों का पालन करने के लिए, वह 14 साल के
लिए अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास चले गए। वनवास में के दौरान लंका के राजा
रावण ने सीता की अपहरण किया था। तत्पश्चात भगवान राम ने लंका पर आक्रमण कर रावण को हराया और
सीता, लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस आ गए। यह यद्ध ु बरु ाई पर अच्छाई की जीत थी। रामायण हमें कई
सबक सिखाती है। यह पस्ु तक हमें एक अच्छा बेटा, अच्छा पति, अच्छा भाई और एक अच्छा इसं ान बनना
सिखाती है। 
पस्ु तक में दिए गए उदाहरणों से, हम सीखते हैं कि हमें अपने माता-पिता, भाई, बहन, दोस्त, दश्ु मन, शिक्षक
और अपने से बड़ों के साथ कै सा व्यवहार करना चाहिए। यहाँ तक ​कि निम्न जाति के लोगों के साथ भी कै सा
व्यवहार करना चाहिए। एक प्रकार से हम इस पस्ु तक को दनि ु या का चरित्र - निर्माण की सर्वश्रेष्ठ पस्ु तक कह
सकते हैं। इसलिए मझु े यह पस्ु तक पढ़ना बहूत पसदं है और हम सभी को रामायण की इस पस्ु तक को अवश्य
पढ़ना चाहिए। मझु े इस पवित्र पस्ु तक पर गर्व है।
मेरी प्रिय पस्ु तक ने मझु े जीवन जीने का तरीका सिखाया तथा मैं इस पस्ु तक को हर
किसी को एक बार पढ़ने की सलाह जरूर देता हूं लेकिन सिर्फ पढ़ लेना उपयक्त ु
नहीं होगा बल्कि इसके ज्ञान को सामान्य जनजीवन में उतारना ही सही तरीका
होगा।
बालकाण्ड
1. मंगल भवन अमंगल हारी
द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी॥1॥
भावार्थ:- जो मंगल करने वाले और अमंगल हो दूर करने वाले है, वो दशरथ नंदन श्री राम है वो मुझपर अपनी
कृ पा करे।॥1॥

2. होइहि सोइ जो राम रचि राखा।


को करि तर्क बढ़ावै साखा॥2॥
भावार्थ:- जो भगवान श्री राम ने पहले से ही रच रखा है,वही होगा। हम्हारे कु छ करने से वो बदल नही सकता।॥
2॥
अन्य चौपाई
3. हो, धीरज धरम मित्र अरु नारी
आपद काल परखिये चारी॥3॥
भावार्थ:- बुरे समय में यह चार चीजे हमेशा परखी जाती है, धैर्य, मित्र, पत्नी और धर्म।॥3॥
4. जेहिके जेहि पर सत्य सनेहू
सो तेहि मिलय न कछु सन्देहू॥4॥
भावार्थ:- सत्य को कोई छिपा नही सकता, सत्य का सूर्य उदय जरुर होता है।॥4॥
अन्य चौपाई
5. रघुकु ल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर वचन न जाई॥6॥
भावार्थ:- रघुकु ल परम्परा में हमेशा वचनों को प्राणों से ज्यादा महत्व दिया गया है।॥6॥
6. हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता
कहहि सुनहि बहुविधि सब संता॥7॥
भावार्थ:- प्रभु श्री राम भी अंनत हो और उनकी कीर्ति भी अपरम्पार है,इसका कोई अंत नही है। बहुत सारे संतो
ने प्रभु की कीर्ति का अलग अलग वर्णन किया है।॥7॥
अन्य चौपाई
7. बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू॥8॥
भावार्थ:- मैं गुरु महाराज के चरण कमलों की रज की वन्दना करता हूँ, जो सुरुचि (सुंदर स्वाद), सुगंध तथा
अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। वह अमर मूल (संजीवनी जड़ी) का सुंदर चूर्ण है, जो सम्पूर्ण भव रोगों के परिवार को
नाश करने वाला है॥8॥
अन्य चौपाई
8. सुकृ ति संभु तन बिमल बिभूती।
मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जन मन मंजु मुकु र मल हरनी।
किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥9॥
भावार्थ:- वह रज सुकृ ति (पुण्यवान्‌पुरुष) रूपी शिवजी के शरीर पर सुशोभित निर्मल विभूति है और सुंदर
कल्याण और आनन्द की जननी है, भक्त के मन रूपी सुंदर दर्पण के मैल को दूर करने वाली और तिलक करने
से गुणों के समूह को वश में करने वाली है॥9॥
अन्य चौपाई
9. श्री गुर पद नख मनि गन जोती।
सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती॥
दलन मोह तम सो सप्रकासू।
बड़े भाग उर आवइ जासू॥10॥

भावार्थ:- श्री गुरु महाराज के चरण-नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के समान है, जिसके स्मरण करते ही
हृदय में दिव्य दृष्टि उत्पन्न हो जाती है। वह प्रकाश अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश करने वाला है, वह जिसके
हृदय में आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं॥10॥
अन्य चौपाई
10. उघरहिं बिमल बिलोचन ही के ।
मिटहिं दोष दुख भव रजनी के ॥
सूझहिं राम चरित मनि मानिक।
गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक॥11॥

भावार्थ:- उसके हृदय में आते ही हृदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और संसार रूपी रात्रि के दोष-दुःख मिट
जाते हैं एवं श्री रामचरित्र रूपी मणि और माणिक्य, गुप्त और प्रकट जहाँ जो जिस खान में है, सब दिखाई पड़ने
लगते हैं॥11॥

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