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Educator-Rohit Sir MODEL ESSAY for Essay Batch Students of BCW only

जैसी करनी, वैसी भरनी

Prepared by :- BCW Team


Objective:-
Each & every concept illustrated by the Faculty has been framed with a proper flow as
directed in the class.
Students are advised to frame their essays in a similar manner in starting stage.

राजेश, लालन-पालन में बचपन से ही एक मुश्किल बच्चा रहा था। स्वभाव से वो हठी और जजद्दी था, और
अपने माता-जपता, जनममला दे वी और कुमारन की बातें कभी नहीीं सुनना चाहता था। अन्य माता-जपता की
तरह,भले ही वे उसमें अच्छे सींस्कार डालने, व्यावहाररक बनाने की, और एक अच्छा इीं सान बनाने की
जकतनी भी कोजशश करते थे, वो उनकी एक नहीीं सुनता था। वह उनकी सीखोीं और सु-सींस्कार दे ने के
उनके प्रयासोीं के श्कखलाफ जवद्रोही प्रवृजि का होने लगा था। जैसे-जैसे वह बडा होता गया, अपनी हरकतोीं
और स्वभाव की वजह से, राजेश अपने माता-जपता से दू र होता चला गया। उसने, उनके साथ समय जबताने
से भी इनकार कर जदया, वह हमेशा पररवार के जमावडे या आपसी-बातचीत से बचने के बहाने ढू ीं ढता रहा।
उसने कभी भी उनकी सुजि नहीीं ली, और न ही कभी उनका हाल-चाल ही जानने की चेष्टा की। उसका
आचरण ऐसा था जैसे वो जबल्कुल ही भूल चुका था जक वो उसके माता-जपता थे।

अपनी सींतान के व्यवहार से, कुमारन और जनममला दे वी का जदल टू ट गया। वे समझ नहीीं पा रहे थे जक
उनका बेटा ऐसा क्ोीं जनकला। उन्ोींने हमेशा उसे प्यार, स्नेह और सहृदयता से पालने की पूरी कोजशश
की थी, और हर सींभव प्रयास जकया था जक उनका बच्चा एक बेहतर इीं सान बने, पर दु भामग्य से ऐसा लगता
था जक उनके सारे प्रयास व्यथम चले गए थे। इस तरह साल बीतते गए और राजेश की शादी हो गई और
उसका एक बेटा हुआ - राजू। कुमारन और जनममला दे वी पौत्र रत्न की प्राश्कि से बहुत खुश थे, लेजकन राजेश
बहुत व्यजथत था। वह कभी-कभार ही राजू को उनसे जमलवाने लाता था, और जब वह आता था, तो वह
हमेशा जाने की ही जल्दी में रहता था।

जैसे-जैसे राजू बडा होता गया, वह अपने जपता के साथ वैसा ही व्यवहार करने लगा, जैसा व्यवहार उसने
अपने जपता को अपने दादा-दादी के साथ करते हुए दे खा था। उसने कभी भी अपने जपता की जरूरतोीं या
इच्छाओीं पर ध्यान नहीीं जदया, और हमेशा अपने जहतोीं को ही वरीयता दी। वह शायद ही कभी उनसे जमलने
जाता था, और जब वह उनसे जमलने आता भी था, तो वह हमेशा जाने की ही जल्दी में रहता था। अपने
सींतान की उदासीनता से ममामहत राजेश की समझ में नहीीं आ रहा था जक उसका बेटा उसके साथ आश्कखर
ऐसा व्यवहार क्ोीं कर रहा है। उसने अपने बारे में हमेशा सोचा था जक वह एक अच्छा जपता था, लेजकन
अब उसे यह एहसास हुआ जक वो स्वयीं अपने माता-जपता के प्रजत कभी भी व्यावहाररक नहीीं रहा। उसने
उन्ें वह प्यार और सम्मान कभी नहीीं जदया जजसके वे हकदार थे, और अपने पुत्र के उसी आचरण और
अपने प्रजत उसी उदासीनता से सींति राजू अब एक तरह से वही काट रहा था जो उसने बोया था। राजेश
ने जो अनुभव जकया, लोकजप्रय उिर भारतीय कहावत "जैसी करनी, वैसी भरनी" जजसका भावाथम कमोबेश
"आप जो बोते हैं वही काटते हैं " है, उसे प्रभावी ढीं ग से साराींजशत करता है। कहावत "आप जो बोते हैं
वही काटते हैं " एक सदियोों पुरानी कहावत है दजसका तात्पयय है दक हमारे कायों/कमों के पररणाम
होते हैं, और हमें अपने दकए गए आचरणोों तथा फैसलोों का पररणाम भुगतना पड़ता है। यह कहावत,
वास्तव में पूवी दशमन की अविारणाओीं से सींदजभमत है जहााँ व्यश्कि के साथ होने वाले अच्छे -बुरे अनुभवोीं को
उसके अतीत मे जकए गए कमों का प्रजतफल माना जाता है।

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व्यश्किगत स्तर पर, यह जसद्ाींत स्वयीं के कल्याण और व्यावसाजयक सफलता के रूप में उद् िृत कर सकता
है। उदाहरण के जलए, यजद कोई कजठन अध्ययन करता है और खुद को पढ़ाई मे झोींक दे ता है , तो वह
अच्छे ग्रेड/प्रािाींक प्राि कर सकता है और अकादजमक रूप से सफल हो सकता है । यजद कोई अपनी
पढ़ाई की उपेक्षा करता है , तो वह अकादजमक रूप से सींघर्म कर सकता है तथा अवसरोीं से चूक सकता
है। यह जसद्ाींत पारस्पररक सींबींिोीं पर भी अक्षरशः लागू होता है। यजद कोई दू सरोीं के साथ दया एवीं सम्मान
के साथ व्यवहार करता है , तो उनके आपस मे सकारात्मक सींबींि स्थाजपत होने की प्रबल सींभावना होती
है। यजद वे दू सरोीं के साथ दु व्यमवहार करते हैं , तो फलस्वरूप वे अकेले पड सकते हैं और दू सरोीं से अलग-
थलग हो सकते हैं। उपरोि कहावत, समय की कसौटी पर भी खरी उतरी है और समकालीन पररदृश्ोीं
में भी प्रासींजगक बनी हुई है , जैसा जक िमम, इजतहास, अथमशास्त्र, पयामवरण, राजनीजत, समाज, न्याय तथा
मानव सींसािन जवकास सजहत जवजभन्न क्षेत्रोीं में कई उदाहरणोीं के माध्यम से भली-भाींजत स्पष्ट भी है।

िाजममक दृजष्टकोण से, "जैसी करनी, वैसी भरनी" जहींदू िमम, बौद् िमम और जैन िमम, तीनोीं मे ही कमम के न्याय
का सार, एक मौजलक अविारणा के रूप में दृजष्टगोचर है। यह बताता है जक हम जो भी कायम करते हैं , चाहे
वह अच्छा हो या बुरा, उसका एक पररणाम होता है जो हमें इस जीवन में या भजवष्य में प्रभाजवत अवश् ही
करे गा। "आप जो बोएीं गे वही काटें गे" की अविारणा एक सावमभौजमक जवचार है जो जहींदू िमम, ईसाई िमम
एवीं इस्लाम िमम सजहत जवजभन्न िाजममक परीं पराओीं और मान्यताओीं में पाया जाता है। यह इस जवचार को
व्यि करता है जक हमारे कायों के पररणाम होते हैं और हम उन कायों के फल का अनुभव अवश् करें गे,
चाहे वो सकारात्मक हो या नकारात्मक, इस जीवन में हो या बाद के जीवन में।

''कमम के जनयम'' और "आप जो बोएीं गे वही काटें गे" दोनोीं के ही जवचार में, अपने कायों के जलए व्यश्किगत
जजम्मेदारी की भावना तथा एक समझ है जक हमारे चुने गए जवकल्ोीं का हमारे जीवन और दू सरोीं के जीवन
पर प्रभाव पडता है। ये अविारणाएाँ एक सदाचारी जीवन जीने, अच्छे कमम करने और अशुभ कायों से
यथासींभव बचने के महत्व पर भी जोर दे ती हैं , क्ोींजक ये शुभ आचरण, सकारात्मक पररणाम लाएीं गे और
एक खुशहाल और समृद् जीवन का मागम प्रशस्त करें गे।

पौराजणक दृजष्टकोण से, हम इस जसद्ाींत को कई सींदभों में चररताथम होते हुए दे खते हैं। उदाहरण के जलए,
रावण द्वारा सीता जी का अपहरण अींततः उसकी पराजय और मृत्यु के साथ-साथ उनकी व्यश्किगत पीडा
एवीं प्रजतष्ठा की हाजन दोनोीं के रूप में उसके पतन और उसके बुरे कमों के दीं ड का प्रजतफल बना। रावण
द्वारा सीता जी के अपहरण के कारण भगवान राम की सेना और रावण की सेना के बीच एक भीर्ण युद्
हुआ, जो अींततः रावण की पराजय और मृत्यु का कारण बना। रावण के कृत्योीं से उसे बडी व्यश्किगत पीडा
भी हुई। सीता जी का अपहरण करने के बाद, उसने उन्ें अपनी पत्नी बनने के जलए जववश करने की
कोजशश की, लेजकन उन्ोींने इसे ठु करा जदया एवीं भगवान राम के प्रजत पजतव्रता बनीीं रहीीं। इससे रावण को
बडी जनराशा और पीडा हुई, क्ोींजक वह सीता जी को अपने पास नहीीं रख पा रहा था पररणामस्वरूप वह
भावनात्मक रूप से क्षुब्ध हो गया था। रावण के कायों से उसकी प्रजतष्ठा और कीजतम-िरोहर में भी अवनजत
आई। सीता जी का अपहरण करने से पहले वह एक महान शासक और जवद्वान के रूप में जाना जाता था,
लेजकन उसके कृत्योीं के कारण कई लोग उसे एक क्रूर और अनैजतक व्यश्कि के रूप में दे खने लगे। इसने
उसकी कीजतम को कलींजकत जकया और उसे कई लोगोीं की दृजष्ट में जतरस्कार और उपहास का पात्र बना
जदया।

एक ऐजतहाजसक दृजष्टकोण से, रोमन लोगोीं/रोम वाजसयोीं को उनकी सैन्य जवजय और जवजजत लोगोीं के प्रजत
उनके क्रूर व्यवहार के जलए जाना जाता था। अींत में, हालाींजक आीं तररक भ्रष्टाचार, आजथमक अवनजत और
आक्रमणकारी बबमर जनजाजतयोीं के बाहरी दबावोीं के सींयोजन के कारण उनके साम्राज्य का पतन हो गया।
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रोम वाजसयोीं ने अपने कायों के माध्यम से स्वयीं अपने जवनाश के बीज बोए थे, जजसके कारण उनके पडोजसयोीं
द्वारा उनके श्कखलाफ असींतोर् भडकाया गया, और अींततः उन्ें अपने उन कायों का फल भुगतना पडा ।

इसी तरह, 1939 में नाजी जममनी के पोलैंड पर आक्रमण के कारण जद्वतीय जवश्व युद् जिड गया। जहटलर
की आक्रामक जवस्तारवादी नीजतयोीं और सींभाजवत जवनाश की भयावहता के पररणामस्वरूप िुरी राष्ट्ोीं की
शश्कियााँ, जमत्र राष्ट्ोीं की शश्कियोीं के गठबींिन के श्कखलाफ खडी हो गईीं । युद् ने जममनी की पराजय,
उसकी अथमव्यवस्था और बुजनयादी ढाींचे को बुरी तरह नष्ट कर जदया, जजससे पूरा दे श बबामद हो गया।
जमत्र राष्ट्ोीं ने युद् के बाद जममनी को दो अलग-अलग राष्ट्ोीं में जवभाजजत कर जदया यथा, पजिमी जममनी और
पूवी जममनी। यह जवभाजन लगभग 50 वर्ों तक चला और दोनोीं दे शोीं के जलए महत्वपूणम राजनीजतक,
सामाजजक और आजथमक प्रभाव लेकर आया। युद्ोपराींत , कई शीर्म नाजी अजिकाररयोीं को मानवता के
श्कखलाफ उनके अपरािोीं के जलए दोर्ी ठहराने और दीं जडत करने के उद्दे श् से उन पर नूनमबगम में मुकदमा
चलाया गया। कई नाजी नेताओीं को दोर्ी ठहराया गया और मौत की सजा सुनाई गई, जजनमें जहटलर के
नायब/डे प्युटी, रुडोल्फ हेस और प्रचार मींत्री, जोसेफ गोएबल्स शाजमल थे।

अथमशास्त्र के क्षेत्र में, 2008 का वैजश्वक जविीय सींकट/आजथमक मींदी, इस जसद्ाींत का एक ज्वलींत उदाहरण
है, जो असींगत ऋण-व्यवस्था, जविीय जोश्कखमोीं और हर कीमत पर लाभ की प्रत्याशा के पररणाम स्वरूप
पररलजक्षत हुआ । जो लोग लालच से प्रेररत होकर दनणयय ले रहे थे उनमें से बहुत से लोगोों ने अपना
सौभाग्य और साथ ही अपनी आजीदवका भी खो िी। हालााँजक इन जक्रयाकलापोीं के प्रभाव दू रगामी
थे , जो इस सींकट के बाद वैजश्वक मींदी, लाखोीं लोगोीं की बेरोजगारी, और व्यापक आजथमक कजठनाई के
रूप में सामने आया।

व्यापार में, जब कोंपदनयाों सामादजक और पयायवरणीय पहलोों में दनवेश करती हैं , तो वास्तव में वे
बेहतर प्रदतष्ठा, दनष्ठावान उपभोक्ता, और कमयचाररयोों की सोंतुदि जैसे सोंभादवत लाभोों के बीज बो
रही होती हैं। यजद ये पहलें सफल होती हैं , तो कींपनी बढ़े हुए मुनाफे और अपेक्षाकृत एक अजिक समृद्
व्यवसाय मॉडल का प्रजतफल प्राि कर सकती है। यजद वे कॉपोरे ट सामाजजक उिरदाजयत्व ( कॉपोरे ट
सोशल रे स्पाॉश्किजबजलटी) में जनवेश करने में जवफल रहती हैं , तो उन्ें बजहष्कार, प्रजतष्ठा की क्षजत और घटे
हुए मुनाफे जैसे नकारात्मक पररणामोीं का सामना करना पड सकता है।

पयामवरणीय चुनौजतयााँ भी "आप जो बोते हैं वही काटते हैं " के जसद्ाींत को प्रदजशमत करती हैं।
औद्योगीकरण, वनोीं की कटाई और प्रदू र्ण जैसी मानवीय गजतजवजियोीं ने पयामवरण को अपूरणीय क्षजत
पहुींचाई है, यथा जलवायु पररवतमन, जनवास स्थान का नुकसान और प्रजाजतयोीं का जवलुि होना आजद।
पयायवरण क्षरण के प्रभाव पहले से ही िु दनया के दवदभन्न दहस्ोों में महसूस दकए जाते रहे हैं , साथ
ही प्राकृदतक आपिाओों की आवृदि/बारों बारता और तीव्रता में वृद्धि हुई है , जैसे जोंगल की आग,
बाढ़ और तूफान। ये मुद्दे सतत जवकास और प्राकृजतक सींसािनोीं के जववेकपूणम उपयोग के महत्व पर भी
प्रकाश डालते हैं।

राजनीजतक दृजष्टकोण से, दु जनया के कई जहस्ोीं में जवभाजनकारी राजनीजत के पररणाम स्पष्ट हुए हैं।
ध्रुवीकरण, असजहष्णुता और लोक-लुभावनवाद के पररणामस्वरूप सामाजजक जवखींडन और राजनीजतक
अश्कस्थरता उत्पन्न हुई है। यूरोप, अमेररका और िु दनया के अन्य दहस्ोों में कट्टरपोंथी/चरमपोंथी
आों िोलनोों के उिय ने अल्पसोंख्यक समूहोों को हादशए पर धकेल दिया है, लोकताोंदिक मूल्ोों का
क्षरण हुआ है , और भड़काऊ भाषणोों का प्रचार-प्रसार हुआ है। ऐसी राजनीजत के पररणाम, हेट-क्राईम(
घृणा-जन्य अपराि, जवर्ेशकर नस्लीय,जातीय अथवा िाजममक) में बढ़ोतरी, राजनीजतक जहींसा और
सामाजजक अशाींजत में वृश्कद् के साथ पहले से ही स्पष्ट हैं।
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अींतरराष्ट्ीय पररदृश् में, दपछले िशकोों में पादकस्तान और अफगादनस्तान द्वारा दवदभन्न
आतोंकवािी समूहोों के कदथत समथयन और शरण िे ने के कई िु ष्पररणाम सामने आए हैं , दजनमें
अोंतररािरीय अलगाव, सैन्य हस्तक्षेप, आतोंकवािी हमलोों के कारण जीवन तथा सोंपदि का
नुकसान, और क्षेि में लोंबे समय तक व्याप्त अद्धथथरता।

न्याजयक प्रणाली में "आप जो बोते हैं वही काटते हैं " का जसद्ाींत भी भली-भाींजत स्पष्ट है। जवजि का शासन,
न्याय और उिरदाजयत्व / जवाबदे ही, एक स्वस्थ और कायमशील लोकतींत्र के अजत आवश्क तत्व हैं। इन
मूल्योीं को बनाए रखने में जवफलता से दीं डमुश्कि, भ्रष्टाचार तथा नागररकोीं और राज्य के बीच सामाजजक
सामींजस्य का क्षरण होता है। कई िे शोों में, न्याय तक पहुोंच की अपयायप्त सुलभता, भ्रिाचार के
प्रसार के पररणामस्वरूप सामादजक असमानताएों , राजनीदतक अद्धथथरता और दवदध का शासन
चरमरा गया है।

यह दबहार के दलए भी चररताथय है , जहाों अदधकाररयोों के भ्रि आचरण के राज्य और इसके लोगोों पर
िू रगामी पररणाम िे खे गए हैं , दजसमें खराब बुदनयािी ढाोंचा, सामादजक अशाोंदत और राजनीदतक
अद्धथथरता शादमल है। भ्रष्ट अजिकाररयोीं और राजनेताओीं ने इस प्रजक्रया में गरीब जकसानोीं और
आजदवाजसयोीं को जवस्थाजपत करते हुए अवैि रूप से जमीनें हाजसल करने के जलए शश्किशाली व्यश्कियोीं के
साथ साींठगाींठ की । इसने राज्य में व्यापक जवरोि और सामाजजक अशाींजत को जन्म जदया था, क्ोींजक
हाजशये पर खडे समुदायोीं को भूजम और आजीजवका के उनके अजिकार से वींजचत कर जदया गया था। इसके
पररणामस्वरूप वामपींथी उग्रवाद ने राज्य में जडें जमा लीीं, जजसने अींततः राज्य में शाींजत और राजनीजतक
श्कस्थरता को ही सींकट में डाल जदया और ऐसी आपराजिक गजतजवजियोीं में सींजलि अपराजियोीं को प्रश्रय और
बढ़ावा जमला।

अब यह भी स्पि हो गया है दक दकसी िे श के िीर्यकादलक दवकास और समृद्धि के दलए मानव


दवकास के बीज बोना आवश्यक है। मानव जवकास का तात्पयम जनसींख्या के स्वास्थ्य, जशक्षा और
कौशल में सुिार के साथ-साथ आजथमक अवसरोीं और सामाजजक सेवाओीं तक सुगम और सहज प्राप्य
पहुाँच प्रदान करने की प्रजक्रया से है। उदाहरण के जलए, दजक्षण कोररया ने 20वीीं शताब्दी में जशक्षा में भारी
जनवेश जकया, जजसने इसे एक गरीब दे श से दु जनया की सबसे मजबूत अथमव्यवस्थाओीं में से एक, उच्च
जवकजसत दे श में बदलने में मदद की। इसी तरह, स्वास्थ्य सेवाओीं में जनवेश जशशु मृत्यु दर को कम
करने, जीवन प्रत्याशा बढ़ाने और समग्र स्वास्थ्य पररणामोीं में सुिार करने में मदद कर सकता है।
उदाहरण के जलए, क्ूबा ने सावमभौजमक स्वास्थ्य सेवा में जनवेश जकया, जजसके फलस्वरूप इसकी सापेक्ष
गरीबी के बावजूद यहााँ जवश्व में कुि श्रेष्ठ स्वास्थ्य पररणाम जनकाल कर आए हैं।

अींत में, कहावत "जैसी करनी, वैसी भरनी" या "आप जो बोते हैं वही काटते हैं " आज भी उतना ही प्रासींजगक
है जजतना जक पूरे इजतहास में रहा है। इजतहास, अथमशास्त्र, पयामवरण, राजनीजत और न्याय के उदाहरण
बहुिा जववेकपूणम कायों, उिरदाजयत्व और दीघमकाजलक सोच के महत्व को प्रदजशमत करते हैं। हमें यह भली-
भाींजत आाँ कजलत करना चाजहए जक हमारे कायों के पररणाम होते हैं , और हमें अपने कृत्योीं का फल अवश्
ही भोगना पडता है। जववेकपूणम और स्थायी सािनोीं को यथासींभव प्राथजमकता दे कर ही हम आने वाली
पीजढ़योीं के जलए एक उज्जवल भजवष्य सुजनजित कर सकते हैं।

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