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कक्षा-10 हिन्दी

हिन्दी व्याकरण
✓ पद भेद - सं ज्ञा, सर्वनाम, हर्शेषण, हिया रर वव्यय
✓ उपसर्व एर्ं प्रत्यय
✓ सं धि रर समास
✓ मुिार्रे रर लोकोहियााँ
सं ज्ञा
परिभाषा - किसी प्राणी, स्थान, वस्तु तथा भाव िे नाम िा बोध ििाने वाेे ब्द सं ज्ञा ितते त।
सं ज्ञा िे भेद - सं ज्ञा िे मुख्य रूप से तीन भेद तैं-
1. व्यकिवाचि सं ज्ञा
2. जाकतवाचि सं ज्ञा
3. भाववाचि सं ज्ञा
1. व्यकिवाचि सं ज्ञा - जजस सं ज्ञा ब्द से एि ती व्यकि, वस्तु या स्थान िे नाम िा बोध तो उसे
'व्यकिवाचि सं ज्ञा' ितते तैं
प्रायः व्यकिवाचि सं ज्ञा में व्यकियों दे बों, बतिों, नकदयों, पववतों, त्योतािों, पुस्तिों, कदबाओं, समाचाि
पत्ों कदनों मतीनों आकद िे नाम आते तैं
2. जाकतवाचि सं ज्ञा - जजस सं ज्ञा ब्द से किसी जाकत िे सं पूणव प्राजणयों, वस्तुओ,ं स्थानों आकद िा
बोध तोता तो, उसे 'जाकतवाचि सं ज्ञा' ितते तैं
ज।से - गाय, आदमी, पुस्ति, नदी आकद
3. भाववाचि सं ज्ञा- जजस सं ज्ञा ब्द से प्राजणयों या वस्तुओ ं िे गुण, धमव, दबा, िायव, मनोभाव
आकद िा बोध तो, उसे 'भाववाचि सं ज्ञा' ितते तैं ज।से – कमत्ता, बचपन, बुिाई आकद

भाववाचि सं ज्ञा िी िचना मुख्य पााँ च प्रिाि िे ब्द ों से तोती त।-


i. जाकतवाचि सं ज्ञा से – कमत् – कमत्ता; बच्चा – बचपन; बूढ़ा – बुढ़ापा
ii. सववनाम से – अपना – अपनापन; मम – ममता
iii. कवबेषण से – बुिा – बुिाई; ऊंचा – ऊंचाई; मोटा – मोटापा
iv. किया से – जीना – जीवन; पढ़ना – पढ़ाई; खेेना – खेे
v. अव्यय से – दूि – दूिी; ऊपि – ऊपिी; बीघ्र – बीघ्रता
सववनाम
परिभाषा - 'सं ज्ञा िे स्थान पि प्रयुि तोने वाेे ब्द सववनाम ितेाते तैं ’
ज।से - मैं, तुम, वत, तम, आप, उसिा आकद

सववनाम िे भेद - सववनाम िे कनम्नजेजखत छ: भेद तैं –


1. पुरुषवाचि सववनाम
2. कनश्चयात्मि सववनाम
3. अकनश्चयवाचि सववनाम
4. सम्बन्धवाचि सववनाम
5. प्रश्नवाचि सववनाम
6. कनजवाचि सववनाम
(i) पुरुषवाचि सववनाम - जजन सववनामों िा प्रयोग ितने वाेे, सुनने वाेे व जजसिे कवषय में
िता जाए िे स्थान पि किया जाता त।, उन्हें पुरुषवाचि सववनाम ितते तैं
पुरुषवाचि सववनाम तीन प्रिाि िे तोते तैं-
उत्तमपुरुष – बोेने वाेा ज।से - मैं, तम
मध्यमपुरुष – जजससे बात िी जाए ज।से - तुम, आप
अन्यपुरुष – जजसिे बािे में बात िी जाए ज।से – वत, वे, यत

(ii) कनश्चयवाचि सववनाम - जो सववनाम कनिटस्थ अथवा दूिस्थ व्यकि या पदाथव िी ओि कनजश्चत
सं िे त ििते तैं, उन्हें कनश्चयवाचि सववनाम ितते तैं
इसिे मुख्य दो प्रयोग तैं-
(i) कनिट िी वस्तुओ ं िे जेए - यत, ये
(ii) दूि िी वस्तुओ ं िे जेए – वत, वे
(iii) अकनश्चयवाचि सववनाम - जजस सववनाम से किसी ऐसे व्यकि या पदाथव िा बोध तोता तो
जजसिे कवषय में कनजश्चत सूचना नतीं कमेती, उसे अकनश्चय वाचि सववनाम ितते तैं
ज।स-े िु छ, िोई

(iv) सम्बन्धवाचि सववनाम - दो उपवाक्ों िे बीच में प्रयुि तोिि एि उपवाक् िी सं ज्ञा या
सववनाम िा सम्बन्ध दूसिे उपवाक् िे साथ दबावने वाेा सववनाम सम्बन्धवाचि सववनाम ितेाता त।
ज।स-े जो, जजसे, जजसिा, जजसिो

(v) प्रश्नवाचि सववनाम - जजस सववनाम िा प्रयोग प्रश्न पूछने िे जेए तोता त।, उसे प्रश्नवाचि
सववनाम ितते तैं
ज।स-े क्ा, किससे, िौन

(vi) कनजवाचि सववनाम - ऐसे सववनाम जजनिा प्रयोग विा या ेेखि (स्वयं ) अपने जेए ििते
तैं, कनजवाचि ितेाते तैं
ज।से – आप, अपना, स्वयं , खुद आकद
कवबेषण
परिभाषा - 'ऐसे ब्द जो सं ज्ञा या सववनाम िी कवबेषता बतेाते तैं, कवबेषण ितेाते तैं ’
कवबेषण जजस ब्द िी कवबेषता बतेाता त।, वत ब्द 'कवबेष्य' ितेाता त।
ज।से - नीेा आिाब

कवबेषण िे प्रिाि –
1. गुणवाचि कवबेषण
2. सं ख्यावाचि कवबेषण
3. परिमाणवाचि कवबेषण
4. सं िे तवाचि कवबेषण
5. व्यकिवाचि कवबेषण
(i) गुणवाचि कवबेषण - ऐसे ब्द जो किसी सं ज्ञा या सववनाम िे गुण, दोष, रूप, िं ग, आिाि,
स्वभाव अथवा दबा िा बोध ििाते तैं, उन्हें गुणवाचि कवबेषण ितते तैं
ज।स-े पुिाना िमीज, िाेा िु त्ता, मीठा आम आकद

(ii) सं ख्यावाचि कवबेषण - ऐसे ब्द जो किसी सं ज्ञा या सववनाम िी कनजश्चत / अकनजश्चत सं ख्या,
िम या गणना िा बोध ििाते तैं, वे सं ख्यावाचि कवबेषण ितेाते तैं
यत दो प्रिाि िे तोते तैं-
(अ) कनजश्चत सं ख्या वाचि - ज।स-े एि, दूसिा, तीनों, चौगुना आकद
(ब) अकनश्चय सं ख्यावाचि - ज।से िई, िु छ, बहुत, सब आकद

(iii) परिमाण वाचि - ऐसे ब्द जो किसी वस्तु, पदाथव या जगत िी मात्ा, तौे या माप िा
बोध ििाते तैं वे परिमाण वाचि कवबेषण ितेाते तैं
इसिे दो उपभेद तैं –
(अ) कनजश्चत परिमाण वाचि - ज।से दो ेीटि, पााँ च किेो, एवं तीन मीटि आकद
(ब) अकनजश्चत परिमाण वाचि - ज।से थोडा, बहुत, िम, ज्यादा आकद
(iv) सं िे तवाचि कवबेषण - ऐसे ब्द जो सववनाम तैं किन्तु वाक् में कवबेषण िे रूप में प्रयुि
तो िते त। अथावत् सं ज्ञा िी कवबेषता प्रिट िि िते तैं वे सं िे तवाचि कवबेषण ितेाते तैं चूं कि मूे
रूप में ये सववनाम तैं इसजेए ये कवबेषण 'साववनाकमि कवबेषण' भी ितेाते तैं
ज।से- इस, उस, िोई

(v) व्यकिवाचि कवबेषण - ऐसे ब्द जो मूे रूप से व्यकिवाचि सं ज्ञा त। किन्तु वाक् में
कवबेषण िा िायव िि िते तैं, उन्हें व्यकिवाचि कवबेषण ितते तैं
ज।से - बनािसी साडी, िश्मीिी सेब, बीिानेिी भुजजया आकद
किया
परिभाषा – जजस ब्द से किसी िायव िे ििने या तोने िा बोध तोता त।, उसे किया ितते त।
किया िे भेद –
1. िमव िे आधाि पि
2. सं िचना िे आधाि पि
3. िाे िे आधाि पि
1. िमव िे आधाि पि – िमव िे आधाि पि किया िे दो भेद तोते त।
A. सिमवि किया
B. अिमवि किया
A. सिमवि किया – जजस किया िा प्रभाव िताव िो छोड िि िमव पि पडे, वत सिमवि किया
ितेाती त। ज।से - बच्चा जचत् बना िता त।,
गीता जसताि बजा िती त।
सिमवि किया िे भेद – इसिे दो भेद तोते त।
(i) एि िमवि किया – जजस वाक् में किया िे साथ एि िमव प्रयुि तो उसे एि िमवि किया ितते
त। ज।से - मााँ पढ़ िती त।

(ii) कििमि किया – जजस वाक् में किया िे साथ दो िमव प्रयुि तो उसे कििमवि किया ितते त।
ज।से – अध्यापि छात्ों िो िम्प्यूटि जसखा िते त।

B. अिमवि किया – जजस वाक् में किया िा प्रभाव या फे िताव पि पडता त।, उसे अिमवि
किया ितते त। ज।से – आबा गाती त।
2. सं िचना िे आधाि पि –
A. सं युि किया
B. नामधातु किया
C. प्रेिणाथवि किया
D. पूवविाजेि किया
E. िृ दं त किया

(अ) सं युि किया- जब दो या दो से अजधि जभन्न अथव िखने वाेी कियाओं िा मेे तो,उसे
सं युि किया ितते तैं ज।से-अकतजथ आने पि स्वागत ििो इस वाक् में 'आने' मुख्य किया त। तथा
'स्वागत ििो' सतायि किया त।
(ब) नामधातु किया - सं ज्ञा, सववनाम, कवबेषण ब्द जब धातु िी तित प्रयुि तोते तैं, उन्हें
'नामधातु' ितते तैं औि इन नामधातु ब्द ों में जब प्रत्यय ेगािि किया िा कनमावण किया जाता त।
तब वे ब्द 'नाम धातु किया' ितेाते त।
ज।से - ताथ (सं ज्ञा) तजथया (नामधातु) - तजथयाना (किया)
अपना (सववनाम)अपना (नामधातु) अपनाना (किया)
(स) प्रेिणाथवि किया- जब िताव स्वयं िायव िा सं पादन न िि किसी दूसिे िो ििने िे जेए प्रेरित
ििे या ििवाए उसे प्रेिणाथवि किया ितते तैं
ज।स-े सिपं च ने गााँ व में ताेाब बनवाया
(द) पूवविाजेि किया - जब किसी वाक् में दो कियाएाँ प्रयुि हुई तों तथा उनमें से एि किया
दूसिी किया से पतेे सम्पन्न हुई तो तो पतेे सम्पन्न तोने वाेी किया पूवि
व ाजेि किया ितेाती त।
ज।से - बाेवीि खेेिि पढ़ने ब।ठेगा
वत पढ़िि सो गया

(घ) िृ दन्त किया - किया ब्द ों मे जुडन वाेे प्रत्यय 'िृ त' प्रत्यय ितेाते तैं तथा िृ त प्रत्ययों िे
योग से बने ब्द िृ दन्त ितेाते तैं किया ब्द ों िे अन्त में प्रत्यय योग से बनी किया िृ दन्त
ितेाती त।
ज।स-े किया िृ दन्त किया
चे - चेना, चेता, चेिि
जेख - जेखना, जेखता, जेखिि
(3) िाे िे आधाि पि –
(अ) भूतिाजेि किया - किया िा वत रूप जजसिे िािा बीते समय में िायव िे सम्पन्न तोने िा
बोध तोता त।, भूतिाजेि किया ितेाती त।
ज।से - वत कवदेब चेा गया
(ब) वतवमानिाजेि किया - किया िा वत रूप जजससे वतवमान समय में िायव िे सम्पन्न तोने
िा बोध तोता त।, वतवमानिाजेि किया ितेाती त।
ज।से - गीता तॉिी खेे िती त।
(स) भकवष्यत् िाजेि किया - किया िा वत रूप जजसिे िािा आने वाेे समय में िायव सम्पन्न
तोने िा बोध तोता त।, भकवष्यत् िाजेि किया ितते तैं
ज।से - गागी छु कियों में िश्मीि जाएगी

अकविािी ब्द – वे ब्द जजनिा जेंग, वचन, िािि, एवं िाे िे अनुसाि रूप परिवकतवत नतीं
तोता त।, अकविािी या अव्यय ब्द ितेाते त।
ज।से – यतााँ , वतााँ , धीिे, तेज
समास
समास ब्द िा अथव - सं जिप्त या छोटा ििना त।
परिभाषा - दो या दो से अजधि ब्द ों िे मेे या सं योग िो समास ितते तैं
मुख्यतः समास िे छ: भेद तोते तैं-
1. तत्पुरुष समास
2. िमवधािय समास
3. िन्द्व समास
4. किगु समास
5. अव्ययीभाव समास
6. बहु ब्रीकत समास
1. िं ि समास - इस समास में दोनों पद प्रधान तोते तैं इसिे दोनों पद योजि जचह्न िािा जुडे
तोते तैं तथा समास कवग्रत ििने पि 'औि', 'या' अथवा ' तथा 'एवं ' आकद ेगते तैं

ज।स-े समस्त पद समास कवग्रत


िात-कदन िात औि कदन
माता-कपता माता औि कपता
ताकन-ेाभ ताकन या ेाभ

2. किगु समास - इस समास िा पतेा पद सं ख्यावाचि तोता त। तथा दूसिा पद प्रधान तोता त।
ज।से - समस्त पद कवग्रत
नवित्न नौ ित्नों िा समूत
सप्तात सात कदनों िा समूत
बता्द ी सौ अ्द ों (वषो) िा समूत
3. अव्ययीभाव समास - इस समास िा पतेा पद अव्यय तोता त। औि इसमें पतेा पद प्रधान
तोता त।
ज।से- समस्त पद कवग्रत
यथाबकि बकि अनुसाि
प्रकतकदन ति कदन
बेखबि कबना खबि िे

4. िमवधािय समास - इस समास िे पतेे तथा दूसिे पद में कवबेषण, कवबेष्य अथवा उपमान -
उपमेय िा सं बं ध तोता त।
समस्त पद कवग्रत
कवबेषण कवबेष्य
मतापुरुष मतान त। जो पुरुष
स्वेतपत् श्वेत त। जो पत्
मतात्मा मतान त। जो आत्मा
उपमेय उपमान
मुखचन्द्र चन्द्रमा रूपी मुख
चिणिमे िमे िे समान चिण
5. बहुब्रीकत समास - जजस समास में पूववपद व उत्तिपद दोनों ती गौण तों औि अन्य पद प्रधान
तों, वत बहुब्रीकत समास ितेाता त।

समस्त पद समास कवग्रत


घनश्याम बादे ज।सा िाेा अथावत् िृ ष्ण
नीेिं ठ नीेा िं ठ त। जजसिा अथावत् जबव
दबानन दस आनन तैं जजसिे अथावत् िावण

6. तत्पुरुष समास - इस समास में पतेा पद गौण व दूसिा पद प्रधान तोता त। इसमें िािि िे
कवभकि जचह्नों िा ेोप तो जाता त। इस समास िे भी छ: भेद किए गए तैं
(i) िमव तत्पुरुष समास – (िो)
समस्त पद समास कवग्रत
ग्रामगत ग्राम िो गया हुआ
(ii) ििण तत्पुरुष समास – (से)
समस्त पद समास कवग्रत
तस्तजेजखत ताथ से जेजखत
(iii) सं प्रदान तत्पुरुष समास – (िे जेए)
समस्त पद समास कवग्रत
गुरुदजिणा गुरु िे जेए दजिणा
(iv) अपादान तत्पुरुष समास – (से –अेग तोने में)
समस्त पद समास कवग्रत
ऋणमुि ऋण से मुि
(v) सं बं ध तत्पुरुष समास – (िा, िे , िी)
समस्त पद समास कवग्रत
िाजमाता िाजा िी माता
(vi) अजधििण तत्पुरुष समास – (में, पि)
समस्त पद समास कवग्रत
आपबीती आप पि बीती
सं जध
परिभाषा – दो वणों िे पिस्पि मेे से उत्पन्न कविाि िो सं जध ितते त।
सं जध िे भेद – सं जध िे तीन भेद तोते त।
1. स्वि सं जध
2. व्यं जन सं जध
3. कवसगव सं जध

1. स्वि सं जध – दो स्विों िे मेे से उत्पन्न कविाि िो स्वि सं जध ितते त।


स्वि सं जध िे पााँ च भेद तोते त।
A. दीघव सं जध – अ/आ + अ/आ = आ कवद्या + अथी = कवद्याथी
इ/ई + इ/ई = ई कगरि + ईब = कगिीब
उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ भानु + उदय = भानूदय
B. गुण सं जध - अ/आ + इ/ई = ए दे व + इन्द्र = दे वेन्द्र
अ/आ + उ/ऊ = ओ मता + उत्सव = मतोत्सव
अ/आ + ऋ = अि् मता + ऋकष = मतकषव

C. वृकि सं जध – अ/आ + ए/ऐ = ऐ सदा + एव = सद। व


अ/आ + ओ/औ = औ मता + औषध = मतौषध

D. यण सं जध - इ/ई + असमान स्वि = य् अकत + अजधि = अत्यजधि


उ/ऊ + असमान स्वि = व् सु + आगत = स्वागत
ऋ + असमान स्वि = ि् कपतृ + आज्ञा = कपत्ाज्ञा

E. अयाकद सं जध - ए + असमान स्वि = अय ने + अन = नयन


ऐ + असमान स्वि = आय न। + अि = नायि
ओ + असमान स्वि = अव पो + अन = पवन
औ + असमान स्वि = आव पौ + अि = पावि
2. व्यं जन सं जध – जजसमें व्यं जन वणव िा व्यं जन वणव या स्वि से मेे तोने पि उत्पन्न कविाि िो
व्यं जन सं जध ितते त।

व्यं जन सं जध िे कनयम –

1. पतेा वणव + तीसिा / चौथा / य,ि,े,व तथा स्वि → पतेे िा तीसिा


ज।से – वाि् + ईब = वागीब
कदि् + गज = कदग्गज

2. पतेा वणव + न, म → पतेे िा पााँ चवा


ज।से – वाि् + मय = वाड्मय
जगत + नाथ = जगन्नाथ
3. म् + स्पबव व्यं जन → (म → पााँ चवा )
ज।से – अतम् + िाि = अतंिाि
सम् + तोष = सं तोष
4. म् + य, ि, े, व, ब, ष, स, त → म अनुस्वाि ( )
ज।से – सम् + योग = सं योग
5. त् / द् + 'े’ → (त् / द् → े् )
ज।से – उत् + ेास = उल्लास
6. त् / द् + ज / झ → (त् / द् → ज्)
ज।से – सत् + जन = सज्जन
7. त् / द् + ब → (त् या द् → च्) औि (ब् → छ् )
ज।से – उत् + श्वास = उच्छ् वास
8. त् / द् + च / छ → (त् / द् → च्)
ज।से – उत् + चािण = उच्चािण

9. त् / द् + त → (त् / द् → द्) औि (त → ध)
ज।से – उत् + ताि = उिाि

10. स्वि + छ → (छ → च्छ)


ज।से – अनु + छे द = अनुच्छेद

11. स्वि (अ/आ िो छोडिि) + स → (स → ष)


ज।से – अजभ + सेि = अजभषेि

12. ॠ, ि, ष + स्वि
ज।से – िाम + अयन = िामायण
(स) कवसगव सन्धन्ध – कवसगव (:) िे साथ स्वि या व्यं जन िे मेे में जो कविाि तोता त।, उसे ‘कवसगव
सं जध’ ितते तैं
कवसगव सन्धन्ध िे कनयम –
(i) अः + अ → ओ
ज।से – मनः + अकविाम = मनोकविाम

(ii) अः + अ िे अकतरिि स्वि यकद →: िा ेोप


ज।से – अतः + एव = अतएव

(iii) अः + तीसिा / चौथा वणव, य, ि, े, व → कवसगव → ओ


ज।से – तपः + वन = तपोवन
(iv) अ िे अकतरिि स्वि िे साथ कवसगव + तृतीय / चतुथव / पं चम वणव
य, ि, े, व, त, → कवसगव → 'ि्’
ज।से – आयुः + वेद = आयुवदे

(v) : + च / ब → कवसगव → ब्
ज।से – पुनः + च = पुनश्च

(vi) अ / आ : + त / स → कवसगव → स्
ज।से – नमः + ते = नमस्ते

(vii) इ / उ : + ि / ख / प / म → कवसगव → ष्
ज।से – आकव: + िाि = आकवष्काि
उपसगव
परिभाषा – वे ब्द ांब जो ब्द िे पतेे जुडिि ब्द िा अथव बदे दे ते त।, उपसगव ितेाते त।

उपसगव िे भेद – कतन्दी भाषा में मुख्यत: तीन प्रिाि िे उपसगव प्रचजेत त।

उपसगव

सं स्कृ त िे उपसगव कतन्दी िे उपसगव उदूव / कवदे बी उपसगव


मतत्त्वपूणव उपसगव-
अकत – अकतकप्रय, अत्यजधि, अकतरिि
अजध – अजधिाि, अजधबेष, अजधििण
अनु – अनुििण, अनुसंधान, अनुयायी
अप – अपमान, अपयब, अपव्यय
अजभ – अजभमान, अजभयान, अजभषेि
आ – आदेब, आताि, आभाि
उप – उपताि, उपवास, उपदेब
अन – अनपढ़, अनदेखा, अनमोे
अ – अिाे, अटे, अचेत
बे – बेचािा, बेतद, बेच।न
प्रत्यय
परिभाषा – वे ब्द ांब जो ब्द िे बाद ेगिि ब्द िा अथव बदे दे ते त। , प्रत्यय ितेाते त।

प्रत्यय िे भेद – कतन्दी भाषा में तीन प्रिाि िे प्रत्यय तोते त।

प्रत्यय

सं स्कृ त प्रत्यय कतन्दी प्रत्यय कवदे बी प्रत्यय


सं स्कृ त प्रत्यय
इि – मानजसि, धाकमवि, माकमवि
ईय – भाितीय, मानवीय, िाष्ट्रीय
वान् – धनवान, बेवान, गुणवान

कतन्दी प्रत्यय
1. िृ त् प्रत्यय – वे प्रत्यय जो धातु अथवा किया िे अंत में ेगिि नए ब्द ों िी िचना ििते त।
ज।से – ई - बोेी, सोची, सुनी, ताँसी
आ – झूेा, भूेा, खेेा, मेेा
अन – मोतन, िटन, पठन
अि – ेेखि, गायि, पाठि, नायि
आवट – सजावट, कमेावट, जेखावट
आई – जेखाई, जखंचाई, चढ़ाई
2. तकित प्रत्यय – किया िो छोडिि सं ज्ञा, सववनाम, कवबेषण आकद में जुडिि नए ब्द बनाने
वाेे प्रत्यय तकित प्रत्यय ितेाते त।
ता – सुं दिता, मानवता, दुबवेता
इि – बािीरिि, सामाजजि, मानजसि
वान – गुणवान, धनवान, बेवान
ईय – भाितीय, िाष्ट्रीय, नाटिीय

उदूव प्रत्यय –
गि - िािीगि, बाजीगि, सौदागि
दाि - तवेदाि, जमींदाि, कििायेदाि
इब - साजजब, ख्वाकतब, फिमाइब
मुताविे
अंधे िी ेाठी तोना - एिमात् सतािा
अक्ल िा दुश्मन तोना - मूखव तोना
अक्ल िे घोडे दौडना - िे वे िल्पनाएं ििना
अपना उल्लू सीधा ििना - अपना स्वाथव जसि ििना
आाँ खों िा तािा - अत्यं त प्यािा
आिाब िे तािे तोडना - असं भव िायव िो अंजाम दे ना
आग बबूेा तोना - अत्यजधि िोध ििना
आग में घी डाेना - िोध िो बढ़ाने िा िायव ििना
आिाब टू टना - अचानि बडी कवपकत्त आना
आस्तीन िा सांप तोना - िपटी कमत्
ईद िा चााँ द तोना - बहुत कदनों बाद कदखना
उं गेी पि नाचना - किसी अन्य िे इबािे पि चेना
उल्टी गं गा बताना - िीकत कवरुि िायव ििना
एि औि एि ग्याित तोना - सं गठन में बकि तोना
िमि िसना - त।याि तोना
िान खडे तोना - चौिन्ना तोना
खाि छानना - मािे मािे कफिना
खून खौेना - अत्यजधि िोध तोना
खून-पसीना एि ििना - िठोि परिश्रम ििना
गागि में सागि भिना - थोडे ब्द ों में बहुत िु छ ित दे ना
घी िे कदये जेना - खुजबयां मनाना
जचिना घडा तोना - िु छ भी असि ना तोना, बेबमव तोना
चाि चााँ द ेगना - बोभा में वृकि तोना
जान तथेेी पि िखना - मृत्यु िी पिवात ना ििना
दाे में िाेा तोना - बि तोना
कदन-िात एि ििना - बहुत परिश्रम ििना
नौ दो ग्याित तोना - भाग जाना
पताड टू ट पडना - बडी कवपकत्त आना
ेाे पीेा तोना - िोध ििना
तवा से बातें ििना - तेज गकत से चेना
जमीन आसमान एि ििना - सभी उपाय ििना
जमीन आसमान िा अंति - बडा भािी अंति
टे ढ़ी खीि तोना - िकठन िाम
कते िा ताड ििना - छोटी सी बात िो बढ़ाना
दााँ त खिे ििना - पिास्त ििना
दााँ तों तेे उाँ गेी दबाना - आश्चयवचकित तोना
ेोिोकियााँ :-
अंधेि नगिी चौपट िाजा - अयोग्य प्रबासन
अंधों में िाना िाजा - मूखों िे बीच अल्पज्ञ भी बुकिमान माना जाता त।
अधजे गगिी छेित जाय - अल्पज्ञ अपने ज्ञान पि अजधि इतिाता त।
आ ब।े मुझे माि - जानबूझिि कवपकत्त मोे ेेना
आप भेे तो जग भेा - स्वयं भेे तोने पि आपिो भेे ेोग ती कमेते त।
ऊंट िे मुाँ त में जीिा - आवश्यिता अजधि आपूकतव िम
एि अनाि सौ बीमाि - बहुत अल्प चात अजधि ेोगों िी
िाेा अिि भैंस बिाबि - अनपढ़ तोना
खोदा पताड कनिेी चुकतया - अजधि परिश्रम पि अल्प ेाभ
चोि िी दाढ़ी में कतनिा - दोषी अपने दोष िा सं िे त दे दे ता त।
छोटा मुाँ त बडी बात - सामर्थ्व से अजधि डींग तांिना
जजसिी ेाठी उसिी भैंस - बकिबाेी िी कवजय तोती त।
डू बते िो कतनिे िा सतािा - सं िट िे समय में थोडी सी सतायता भी ेाभप्रध तोती त।
थोथा चना बाजे घना - अल्पज्ञानी व्यकि अजधि डींगें तााँ िता त।
नाच ना जाने आाँ गन टे ढ़ा - स्वयं िे दोष जछपाने तेतु दूसिों में िकमयााँ ूँूाँ ूँना
ज।सी ििनी व।सी भिनी - िमव िे अनुसाि फे कमेता त।
नौ कदन चेे अढ़ाई िोस - अजधि समय में थोडा िाम

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