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नज़ीर अकबराबादी
नज़ीर अकबराबादी
(1)दनि
ु या में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफलिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी
जरदार बेनवा है सो है वो भी आदमी
निअमत जो खा रहा है सो है वो भी आदमी
टुकड़े जो चबा रहा है सो है वो भी आदमी
1
शब्दार्थ: इमाम - नमाज़ पढ़ने वाले, खुतबाख्वाँ - कुरान शरीफ़ का अर्थ बताने वाला
ताड़ता - भाँप लेना,
व्याख्या - कवि आदमी को आईना दिखाते हुए कहता है कि जिसने मस्जिद बनाई
है । नमाज़ और कुरान को बनाने वाले भी आदमी ही हैं और उस मस्जिद में नमाज
पढ़ने और पढ़वाने वाले भी आदमी ही हैं। मस्जिद के बाहर से जत
ू े चरु ाने वाला भी
आदमी है और उस पर नज़र रखने वाला भी आदमी है । कवि के कहने का अभिप्राय
यह है कि पाप करने वाला भी आदमी है और पुण्य करने वाला भी आदमी ही है ।
शब्दार्थ :जान वारना - प्राण न्योछावर करना, पगड़ी उतारना - बेइज़्ज़ती करना/
अपमान करना, तेग-तलवार
व्याख्या - कवि आदमी को आदमी की सच्चाई दिखाते हुए कहता है कि किसी की
जान बचाने वाला भी आदमी ही है और किसी की जान लेने वाला भी आदमी ही है ।
किसी की इज्जत को मिट्टी में मिलाने वाला भी आदमी है और मस
ु ीबत में किसी को
मदद के लिए पुकारने वाला भी आदमी ही है और उसकी पुकार सुनकर दौड़कर आने
वाला भी आदमी है । कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि यदि आदमी किसी को
मस
ु ीबत में डालने वाला है तो उस मस
ु ीबत में पड़े हुए आदमी को बचाने वाला भी
कोई आदमी ही होता है ।
2
यां आदमी मुरीद है और आदमी ही पीर
अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए नजीर
और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमी
शब्दार्थ :अशराफ़ - शरीफ़ शब्द का बहुवचन, शाह – राजा/ सम्राट, वजीर – मंत्री,
दिलपजीर - जो दिल को अच्छा लगे, मरु ीद – भक्त/शिष्य/ चाहनेवाला, पीर –
धर्मगुरु/ संत/ भगवान का भक्त, नजीर - कवि का नाम/ मिसाल, कारे – काम
प्रश्न अभ्यास
प्रश्न 1 - पहले छं द में कवि की दृष्टि आदमी के किन किन रूपों का बखान करती है ?
क्रम से लिखिए।
3
उत्तर - चारों छं दों में कवि ने आदमी के सकारात्मक और नकारात्मक रूपों का
तल
ु नात्मक प्रस्तत
ु ीकरण किया है वे इस प्रकार हैं-
सकारात्मक नकारात्मक
मालदार कमज़ोर
उत्तर - ‘आदमी नामा’ शीर्षक कविता के इन अंशों को पढ़कर आपके मन में मनष्ु य
के प्रति हमारी धारणा कई तरह की बनती है । मनष्ु य कई तरह के होते हैं। कोई
अच्छा होता है तो कोई बुरा। कोई आलीशान महलों में रहता है तो उस महल को
बनाने वाला मज़दरू किसी झोपड़ी में रहता है । कोई धर्मात्मा होता है तो कोई पापी
होता है ।
4
प्रश्न 4 - इस कविता का कौन सा भाग आपको सबसे अच्छा लगा और क्यों?
उत्तर - कविता का वह भाग जिस भाग में मस्जिद बनाने वाले, मौलवी, नमाज
पढ़ने वाले और मस्जिद के बाहर से जूते चुराने वाले का जिक्र हुआ है वह भाग मुझे
सबसे अच्छा लगा। इस भाग में कवि ने जबरदस्त कटाक्ष किया है । कवि के अनस
ु ार
भगवान ् को मानने वाला भी एक आदमी ही होता है और उस भगवान ् के घर के बाहर
से भगवान ् को मानने वालों के जूते चुराने वाला भी आदमी ही होता है । यहाँ कवि ने
समझाया है कि दनि
ु या में जो पाप करता है या जो पुण्य करता है वे दोनों ही मनुष्य
ही हैं। ताज्जुब की बात यह है कि जूते चुराने वाले आज से तीन सौ साल पहले भी थे
और अब भी हैं।
उत्तर - चाहे राजा हो या प्रजा दोनों आदमी ही हैं। कहने का अभिप्राय है कि राजा
किसी पेड़ से नहीं टपकता है बल्कि आदमी में से ही कोई राजा बनता है । चाहे कोई
धनी हो या निर्धन हो दोनों आदमी ही हैं। अर्थात अमीरी गरीबी आदमी की मेहनत
का नतीजा होता है पर दोनों आखिर होते तो आदमी ही हैं।
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प्रश्न 2 - अशराफ और कमीने से ले शाह ता वजीर,
ये आदमी ही करते हैं सब कारे दिलपजीर
उत्तर - शरीफ से लेकर कमीने तक और राजा से लेकर मंत्री तक सभी आदमी ही हैं।
वह आदमी ही है जो किसी दस
ू रे आदमी के दिल को खुश करने वाला काम करता है ।
आदमी हर वर्ग के होते हैं और हर फितरत के होते हैं। कुछ अच्छे तो कुछ बरु े भी होते
हैं।
उत्तर - पाप करने वाला भी आदमी है और पुण्य करने वाला भी आदमी है । कुछ
लोग भक्तिभाव में इतने लिप्त होते हैं कि मस्जिद में इबादत करने जाते हैं या
मंदिर में पूजा करने जाते हैं। कुछ लोगों को उनकी भक्ति से कोई लेना दे ना नहीं
होता बल्कि वे मंदिर या मस्जिद के बाहर से जत
ू े चरु ाने के काम में लगे रहते हैं।
जहाँ एक तरफ धर्म की रोशनी होती है वहीं उसकी ओट में पाप भी पलता रहता है ।
कहने का तात्पर्य यह है कि नमाज़ और कुरान को बनाने वाले भी आदमी ही हैं और
उस मस्जिद में नमाज पढ़ने और पढ़वाने वाले भी आदमी ही हैं। मस्जिद के बाहर से
जूते चुराने वाला भी आदमी है और उसपर नजर रखने वाला भी आदमी है ।
6
उत्तर - किसी की इज्जत लेने वाला भी आदमी है । किसी को मदद के लिए पुकारने
वाला भी आदमी है और उसकी पक
ु ार पर दौड़कर आनेवाला भी आदमी है । इसी
दनि
ु या में कुछ ऐसे लोग मिल जाएँगे जो दस
ू रे की इज्जत उतारने में लगे रहते हैं, तो
कुछ ऐसे लोग भी मिल जाएँगे जो किसी की मान मर्यादा रखने में कोई कसर नहीं
छोड़ते। कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि यदि आदमी किसी को मस
ु ीबत में डालने
वाला है तो उस मस
ु ीबत में पड़े हुए आदमी को बचाने वाला भी कोई आदमी ही होता
है ।
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