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फै शन पर निबंध

आज आम नागरिक भौतिकवादी प्रवृति से ग्रसित होकर जहाँ सब कु छ भोगना चाहता है, वही
वह प्रगतिशील एवं नयेपन के नाम पर जिंदगी को फै शनपरस्ती में ढालना उचित मानता है.

यही कारण है कि आज का शिक्षित युवावर्ग नित्य नए फै शन शो की तरफ आकृ ष्ट रहता है.
अब तो हर क्षेत्र में, हर वर्ग एवं समाज में उतरो तर फै शन परस्ती का मौह बढ़ता जा रहा है.
प्रोढ़ लोग भी फै शन शों में स्वयं को सम्मिलित करने में गौरव का अनुभव कर रहे है.

फै शन का प्रचलन-बीसवी सदी के उतरार्द में पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से समाज में खुलेपन
की नीव पड़ी. फिर यह धन बटोरने के आशय से फिल्मों के द्वारा फै शनपरस्ती को बढ़ावा
दिया गया.

प्रारम्भ में युवाओं के द्वारा किसी फिल्म अभिनेता की तरह बाल सँवारने, पेंट कोट आदि
पहनने तथा चलने फिरने की नकल का फै शन चला.

युवतियों द्वारा भी अभिनेत्रियों के पौशाक आदि की नकल की जाने लगी. परन्तु बाद में
विभिन्न कं पनियों द्वारा बाजार में अपने उत्पादों, प्रसाधन सामग्रियों वस्त्रों, तथा डिजाइनों का
तेजी से प्रचार-प्रसार करने की द्रष्टि से विज्ञापनबाजी की गई.

आये दिन महानगरों में रेम्प शों किये जाने लगे और दूरदर्शन के प्रत्येक चैनल पर उनका
प्रतिदिन अधिकाधिक प्रचार होने लगा, तो उसके प्रभाव से फै शनपरस्ती का ऐसा नशा चढ़ा
कि अब वह नशा उतरने की बजाय लगातार चढ़ता ही जा रहा है. इससे सारा सामाजिक
जीवन फै शन की चपेट में आ गया है.

फै शन के प्रकार एवं रूप

वर्तमान काल में फै शन के विविध रूप देखने को मिल रहे है. विशेषत युवतियों एवं प्रोढ़ाएं नए
नए विज्ञापनबाजी करती प्रतीत होती है.

जैसे ऊँ ची से ऊँ ची एडी के चैंडल पहनना, पारदर्शी बिकनी पहनकर घूमना, नाभि तक नग्न
शरीर का प्रदर्शन करना, सौदर्य प्रसाधन के द्वारा चेहरे को जरुरत से ज्यादा आकर्षक बनाना
आदि फै शन के रूप उनमे शामिल हो गये है.उनकी देखा देखि कहे अथवा बड़ी बड़ी कं पनियों
की विज्ञापनबाजी का प्रभाव मानें.
युवा व प्रोढ़ व्यक्ति भी अब फै शनपरस्त हो गये है. चाहे भरपेट भोजन न मिले, रोजगार की
सुव्यवस्था हो या न हो, पुरानी पीढ़ी के लोग दुत्कारते रहे, तो भी नई पीढ़ी फै शन परस्ती को
सभ्य जीवन का श्रेष्ट प्रदर्शन मानने लगी है.

इस प्रकार समाज में उठाना बैठना, वार्तालाप करना, चलना फिरना, खाना-पहनना आदि सब
फै शन के अनुसार ढाला जा रहा है.

फै शन का दुष्प्रभाव एवं हानि

आज फै शनपरस्ती के कारण कई दुष्परिणाम दिखाई दे रहे है. अब धार्मिक क्रियाओं और


अनुष्ठानों को दकियानूसी आचरण माना जाता है. युवक-युवतियों की वेशभूषा काम वासना को
जाग्रत करने वाली बन गई है.

तड़क-भड़क एवं आकर्षक वस्त्रों पर काफी धन खर्च किया जा रहा है. सिनेमाओं तथा दूरदर्शन
पर ऐसे नग्न अश्लील द्रश्य दिखाए जाते है, चुम्बन, आलिंगन एवं सेक्स का खुलकर प्रचार
होता है.

मारघाड़ की झलकियाँ भी रहती है. समाज में आये दिन व्याभिचार, यौनाचार एवं दुराचार के
समाचार प्रकाशित होते है. उन सबका मूल कारण फै शनपरस्ती ही तो है.

फै शन के लिए काफी धन की जरुरत होती है. कु छ युवा इस कारण धनार्जन के नाजायज


तरीके अपनाते है, कु छ युवतियाँ कॉलगर्ल बन जाती है. तथा सौदर्य प्रतियोगिताओं के नाम पर
अपनी अस्मिता को बेचने पर जरा भी संकोच नही करती है. हमारी संस्कृ ति एवं समाज पर
इस फै शनपरस्ती का अत्यंत बुरा प्रभाव पड़ रहा है.

उपसंहार

समय के अनुसार स्वयं को ढालना ठीक है. परन्तु कोरे फै शन के मोह में पड़कर स्वयं को
अंध पतन की ओर धके लना ठीक नही है. सामाजिक जीवन में बढ़ते हुए फै शन का जो
दुष्प्रभाव पड़ रहा है, वह प्राय सभी को ज्ञात है.

लेकिन इसका कोई विरोध नही कर पा रहा है. अतएवं बढ़ती हुई फै शन परस्ती पर नियंत्रण
रखना हमारा आवश्यक कर्तव्य बन गया है.

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