You are on page 1of 2

आत्मत्राण

कवि : रिीन्द्रनाथ ठाकुर


आत्मत्राण कविता का सार -: प्रस्तुत कविता महाकवि रिीद्र ीं नाथ ठाकुर द्वारा बाीं ग्ला में विखी गई थी। इसका वहन्दी में अनुिाद
आचार्य हजारी प्रसाद वद्विे दी जी ने वकर्ा। प्रस्तु त कविता में कवि ने इस बात का िणयन वकर्ा है वक ईश्वर केिि उनकी
सहार्ता करते हैं , जो खुद अपनी सहार्ता करने की कोविि करते हैं । जो मुसीबतोीं का सामना करते हुए अपने कतयव्ोीं का
पािन करते हैं , उन्हें ही जीिन के सींघर्य में जीत वमिती है ।

अथाय त अगर आप वबना कुछ वकर्े र्े चाहें वक भगिान आपकी मुसीबतोीं को ख़त्म कर दें और आपको कभी कोई दु ुः ख ना
वमिे, तो स्वर्ीं भगिान भी आपके विए कुछ नहीीं करें गे। आपको ईश्वर पर भरोसा रखते हुए, हमेिा अपनी मुसीबतोीं का
सामना खुद से ही करना पड़े गा, तभी ईश्वर आपको आत्मबि एिीं िक्ति प्रदान करें गे। वजससे आप तमाम मुसीबतोीं ि कष्ोीं
के बािजूद भी अीं त में विजर्ी हो जाओगे और मुक्तििोीं के आगे कभी घु टने नहीीं टे कोगे।

(क) निम्ननिखित प्रश्नों के उत्तर दीनिए -

प्रश्न 1.कवि वकससे और क्या प्राथय ना कर रहा है ?


उत्तर-कवि ईश्वर-भि है , प्रभु में उसकी गहरी आस्था है इसविए कवि ईश्वर से प्राथय ना कर रहा है वक िह उसे जीिन रूपी मु सीबतोीं से
जू झने की, सहने की िक्ति प्रदान करे तथा िह वनभय र् होकर विपवत्तर्ोीं का सामना करे अथाय त् विपवत्तर्ोीं को दे खकर डरे नहीीं, घबराए
नहीीं। उसे जीिन में कोई सहार्क वमिे र्ा न वमिे , परीं तु उसका आत्म-बि, िारीररक बि कमजोर न पड़े । कवि अपने मन में दृढ़ता
की इच्छा करता है तथा ईश्वर से विपवत्तर्ोीं को सहने की िक्ति चाहता है ।

प्रश्न 2.‘विपदाओीं से मु झे बचाओ, र्ह मे री प्राथय ना नहीीं’ -कवि इस पींक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है ?
उत्तर-इस पींक्ति में कवि र्ह कहना चाहता है वक हे परमात्मा! चाहे आप मु झे दु खोीं ि मु सीबतोीं से न बचाओ परीं तु इतनी कृपा अिश्य
करना वक दु ख ि मु सीबत की घड़ी में भी मैं घबराऊँ नहीीं अवपतु उन चुनौवतर्ोीं का डटकर मु काबिा करू ँ । उसकी प्रभु से र्ह प्राथय ना
नहीीं है वक प्रवतवदन ईश्वर भर् से मु क्ति वदिाएँ तथा आश्रर् प्रदान करें । िह तो प्रभु से इतना चाहता है वक िे िक्ति प्रदान करें । वजससे
िह वनभय र्तापूियक सींघर्य कर सके। िह पिार्निादी नहीीं है , न ही डरपोक है , केिि ईश्वर का िरदहस्त चाहता है ।

प्रश् 3.कनि सहायक के ि निििे पर क्या प्रार्थिा करता है ?


उत्तर-विपरीत पररक्तस्थवतर्ोीं के समर् कोई सहार्क अथाय त् सहार्ता न वमिने पर कवि प्राथय ना करता है वक हे प्रभु ! विपरीत
पररक्तस्थवतर्ोीं में भिे ही कोई सहार्क न हो, पर मे रा बि और पौरुर् न डगमगाए तथा मे रा आत्मबि कमजोर न पड़े । कविपूणय आत्म-
विश्वास के साथ सभी बाधाओीं पर विजर् प्राप्त करने की िक्ति माँ गता है ।
प्रश् 4.अों त िें कनि क्या अिुिय करता है ?
उत्तर-अींत में कवि ईश्वर से र्ह अनु नर् करता है वक सुख के समर् भी हर पि ईश्वर को ध्यान में रख सके, ईश्वर स्मरण कर सके तथा
दु ख रूपी रावत्र में जब सींपूणय विश्व उसे अकेिा छोड़ दे और अिहे िना करे , उस समर् उसे अपने प्रभु पर, उनकी िक्तिर्ोीं पर तवनक
भी सींदेह न हो। उसकी प्रभु पर आस्था बनी रहे।
प्रश् 5. “आत्मत्राण’ शीर्थक की सार्थकता कनिता के सोंदर्थ िें स्पष्ट कीनिए।
उत्तर-कविता के िीर्य क ‘आत्मत्राण’ द्वारा बतार्ा गर्ा है वक चाहे जै सी भी पररक्तस्थवतर्ाँ जीिन में आएँ , हम उनका सामना सहर्य एिीं
कृताथय होकर करें । कभी वकसी भी पररक्तस्थवत में आत्मबि, आत्मविश्वास ि आत्मवनभयरता न खोकर दीन-दु खी अथिा असहार् की भाँ वत
रुदन न करें । ‘आत्मत्राण’ िीर्यक से एक ऐसी प्राथय ना का प्रकटीकरण र्ा उदर् होना प्रतीत होता है , वजससे मु सीबत, दु ख तथा हावन के
समर् स्वर्ीं की रक्षा की जा सके। इसके विए आत्मविश्वास और प्राथय ना दोनोीं से ही बि वमिता है और स्वर्ीं की रक्षा होती है इसविए
इसका िीर्य क ‘आत्मत्राण’ रखा गर्ा है ।
प्रश् 6.अपिी इच्छाओों की पूनतथ के निए आप प्रार्थिा के अनतररक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं ? निखिए।
उत्तर-अपनी इच्छाओीं की पूवतय के विए हम वनम्न प्रर्ास करते हैं
1.अपनी इच्छाओीं की पूवतय के विए सही वदिा चुनते हैं और जी-जान से पररश्रम करते हैं ।
2. जीिन में आने िािी बाधाओीं से न तो घबराते हैं न पीछे हटते हैं ।
3.दू सरोीं को सहर्ोग और सिाह भी दे ते हैं ।
4.अपने प्रर्ासोीं की समीक्षा करते रहते हैं , सुधार करते हैं तथा छोटी-से-छोटी सफिता को भी स्वीकार करते हैं ।
5.जब तक इच्छा पूरी न हो जाए धैर्य ि सहनिीिता से कार्य करते हैं ।
प्रश् 7.क्या कनि की यह प्रार्थिा आपकन अन्य प्रार्थिा गीतनों से अिग िगती है ? यनद हााँ, तन कैसे?

उत्तर-
हाँ , कवि की र्ह प्राथय ना अन्य प्राथयना-गीतोीं से अिग है , क्योींवक इस प्राथयना-गीत में कवि ने वकसी साीं साररक र्ा
भौवतक सुख की कामना के विए प्राथयना नहीीं की, बक्ति उसने हर पररक्तस्थवत को वनभीकता से सामना करने का साहस
ईश्वर से माँ गा है । िह स्वर्ीं कमयिीि होकर आत्म-विश्वास के साथ विर्र् पररक्तस्थवतर्ोीं पर विजर् पाना चाहता है । इन्हीीं बातोीं
के कारण र्ह प्राथयना-गीत अन्य प्राथयना-गीतोीं से अिग है ।

You might also like