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आत्मत्राण - Q-A
आत्मत्राण - Q-A
अथाय त अगर आप वबना कुछ वकर्े र्े चाहें वक भगिान आपकी मुसीबतोीं को ख़त्म कर दें और आपको कभी कोई दु ुः ख ना
वमिे, तो स्वर्ीं भगिान भी आपके विए कुछ नहीीं करें गे। आपको ईश्वर पर भरोसा रखते हुए, हमेिा अपनी मुसीबतोीं का
सामना खुद से ही करना पड़े गा, तभी ईश्वर आपको आत्मबि एिीं िक्ति प्रदान करें गे। वजससे आप तमाम मुसीबतोीं ि कष्ोीं
के बािजूद भी अीं त में विजर्ी हो जाओगे और मुक्तििोीं के आगे कभी घु टने नहीीं टे कोगे।
प्रश्न 2.‘विपदाओीं से मु झे बचाओ, र्ह मे री प्राथय ना नहीीं’ -कवि इस पींक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है ?
उत्तर-इस पींक्ति में कवि र्ह कहना चाहता है वक हे परमात्मा! चाहे आप मु झे दु खोीं ि मु सीबतोीं से न बचाओ परीं तु इतनी कृपा अिश्य
करना वक दु ख ि मु सीबत की घड़ी में भी मैं घबराऊँ नहीीं अवपतु उन चुनौवतर्ोीं का डटकर मु काबिा करू ँ । उसकी प्रभु से र्ह प्राथय ना
नहीीं है वक प्रवतवदन ईश्वर भर् से मु क्ति वदिाएँ तथा आश्रर् प्रदान करें । िह तो प्रभु से इतना चाहता है वक िे िक्ति प्रदान करें । वजससे
िह वनभय र्तापूियक सींघर्य कर सके। िह पिार्निादी नहीीं है , न ही डरपोक है , केिि ईश्वर का िरदहस्त चाहता है ।
उत्तर-
हाँ , कवि की र्ह प्राथय ना अन्य प्राथयना-गीतोीं से अिग है , क्योींवक इस प्राथयना-गीत में कवि ने वकसी साीं साररक र्ा
भौवतक सुख की कामना के विए प्राथयना नहीीं की, बक्ति उसने हर पररक्तस्थवत को वनभीकता से सामना करने का साहस
ईश्वर से माँ गा है । िह स्वर्ीं कमयिीि होकर आत्म-विश्वास के साथ विर्र् पररक्तस्थवतर्ोीं पर विजर् पाना चाहता है । इन्हीीं बातोीं
के कारण र्ह प्राथयना-गीत अन्य प्राथयना-गीतोीं से अिग है ।