You are on page 1of 6

• Class 9

• Hindi

• वाख
Question 1:

'रस्सी' यहााँ किसिे लिए प्रयुक्त हुआ है और वह िैसी है?


ANSWER:

यहााँ रस्सी से िवययत्री िा तात्पयय स्वयं िे इस नाशवान शरीर


से है। उनिे अनुसार यह शरीर सदा साथ नहीं रहता। यह
िच्चे धागे िी भााँयत है जो िभी भी साथ छोड़ दे ता है और
इसी िच्चे धागे से वह जीवन नैया पार िरने िी िोलशश िर
रही है।

Question 2:

िवययत्री द्वारा मुक्क्त िे लिए किए जाने वािे प्रयास व्यथय क्यों हो
रहे हैं?
ANSWER:

िवययत्री िे िच्चेपन िे िारण उसिे मक्ु क्त िे सारे प्रयास


ववफि हो रहे हैं अथायत ् उसमें अभी पूणय रुप से प्रौढ़ता नहीं
आई है क्जसिी वजह से उसिे प्रभु से लमिने िे सारे प्रयास
व्यथय हैं। वह िच्ची लमट्टी िे उस बतयन िी तरह है क्जसमें
रखा जि टपिता रहता है और यही ददय उसिे हृदय में द:ु ख
िा संचार िरता रहा है, उसिे प्रभु से उसे लमिने नहीं दे
रहा।

Question 3:

िवययत्री िा 'घर जाने िी चाह' से क्या तात्पयय है?


ANSWER:

िवययत्री िा 'घर जाने िी चाह' से तात्पयय प्रभु से लमिन है।


उसिे अनुसार जहााँ प्रभु हैं वहीं उसिा वास्तववि घर है।

Question 4:

भाव स्पष्ट िीक्जए -

(ि) जेब टटोिी िौड़ी न पाई।

(ख) खा-खािर िुछ पाएगा नहीं,

न खािर बनेगा अहंिारी।


ANSWER:

(ि) यहााँ भाव है कि मैंने ये जीवन उस प्रभु िी िृपा से पाया


था। इसलिए मैंने उसिे पास पहुाँचने िे लिए िठिन साधना
चन
ु ी परन्तु इस चन
ु ी हुई राह से उसे ईश्वर नहीं लमिा। मैंने
योग िा सहारा लिया ब्रह्मरं ध िरते हुए मैंने पूरा जीवन बबता
ठदया परन्तु सब व्यथय ही चिा गया और जब स्वयं िो
टटोििर दे खा तो मेरे पास िुछ बचा ही नहीं था। अथायत ्
िाफी समय बबायद हो गया और रही तो खािी जेब।

(ख) भाव यह है कि भूखे रहिर तू ईश्वर साधना नहीं िर


सिता अथायत ् व्रत पज
ू ा िरिे भगवान नहीं पाए जा सिते
अवपतु हम अहंिार िे वश में वशीभूत होिर राह भटि जाते
हैं। (कि हमने इतने व्रत रखे आठद)।

Page No 98:

Question 5:

बंद द्वार िी सााँिि खोिने िे लिए ििद्यद ने क्या उपाय सुझाया


है?
ANSWER:

िवययत्री िे अनस
ु ार ईश्वर िो अपने अन्त:िरण में खोजना
चाठहए। क्जस ठदन मनुष्य िे हृदय में ईश्वर भक्क्त जागत
ृ हो
गई अज्ञानता िे सारे अंधिार स्वयं ही समाप्त हो जाएाँगे। जो
ठदमाग इन सांसाररि भोगों िो भोगने िा आदी हो गया है
और इसी िारण उसने ईश्वर से खद
ु िो ववमख
ु िर लिया है,
प्रभु िो अपने हृदय में पािर स्वत: ही ये सााँिि (जंजीरे ) खुि
जाएाँगी और प्रभु िे लिए द्वार िे सारे रास्ते लमि जाएाँगे।
इसलिए सच्चे मन से प्रभु िी साधना िरो, अपने अन्त:िरण
व बाह्य इक्न्ियों पर ववजय प्राप्त िर हृदय में प्रभु िा जाप
िरो, सुख व दख
ु िो समान भाव से भोगों। यही उपाय
िववयत्री ने सुझाए हैं।

Question 6:

ईश्वर प्राक्प्त िे लिए बहुत से साधि हियोग जैसी िठिन साधना


भी िरते हैं, िेकिन उससे
भी िक्ष्य प्राक्प्त नहीं होती। यह भाव किन पंक्क्तयों में व्यक्त हुआ
है?
ANSWER:

यह भाव यनम्न पंक्क्तयों में से लिया गया है :-

आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।

सष
ु म-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया ठदन आह!

जेब टटोिी, िौड़ी न पाई।


माझी िो दाँ ,ू क्या उतराई?

िेखखिा िे अनस
ु ार ईश्वर िो पाने िे लिए िोग हि साधना
िरते हैं पर पररणाम िुछ नहीं यनििता। इसिे ववपरीत होता
यह है कि हम अपना बहुमल् ू य वक्त व्यथय िर दे ते हैं और
अपने िक्ष्य िो भुिा दे ते हैं। जब स्वयं िो दे खते हैं तो हम
वपछड़ जाते हैं। हम तो ईश्वर िो सहज भक्क्त द्वारा भी
प्राप्त िर सिते हैं। उसिे लिए िठिन भक्क्त िी िोई
आवश्यिता नहीं है।

Question 7:

'ज्ञानी' से िवययत्री िा क्या अलभप्राय है?


ANSWER:

यहााँ िवययत्री ने ज्ञानी से अलभप्राय उस ज्ञान िो लिया है जो


आत्मा व परमात्मा िे सम्बन्ध िो जान सिे ना कि उस
ज्ञान से जो हम लशक्षा द्वारा अक्जयत िरते हैं। िवययत्री िे
अनस
ु ार भगवान िण-िण में व्याप्त हैं पर हम उसिो धमों
में ववभाक्जत िर मंठदरों व मक्स्जदों में ढूाँढते हैं। जो अपने
अन्त:िरण में बसे ईश्वर िे स्वरुप िो जान सिे वही ज्ञानी
िहिाता है और वहीं उस परमात्मा िो प्राप्त िरता है।
तात्पयय यह है कि ईश्वर िो अपने ही हृदय में ढूाँढना चाठहए
और जो उसे ढूाँढ िेते हैं वही सच्चे ज्ञानी हैं।

You might also like