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Editorial May 2022 36 40
Editorial May 2022 36 40
z इस पृष्ठभूमि में धारा 124A को समाप्त करना केवल इस आधार पर विवेकपूर्ण नहीं होगा कि कुछ अत्यधिक प्रचारित मामलों में इसे गलत
तरीके से लागू किया गया।
आगे की राह
z देशद्रोह कानून में सुधार: इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसी कानून को केवल इसलिये अमान्य नहीं किया जा सकता क्योंकि उसका दुरुपयोग
किया गया है। लेकिन देशद्रोह के मामले में केदारनाथ सिंह निर्णय का औचित्य और धारा 124A का अस्तित्व दोनों ही समय के साथ
असमर्थनीय हो गए हैं।
z वर्ष 1962 में इस निर्णय के बाद से सर्वोच्च न्यायालय के मौलिक अधिकारों के पठन में एक परिवर्तनकारी बदलाव आ चुका है।
z उदाहरण के लिये, हाल के समय में न्यायालय ने अन्य बातों के अलावा भाषा में अशुद्धि के आधार पर और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर
प्रतिबंधों के भारी प्रभाव के आधार पर कई दंडात्मक कानूनों को रद्द किया है।
z भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार लोकतंत्र का एक अनिवार्य घटक है। जो
अभिव्यक्ति या विचार वर्तमान सरकार की नीति के अनुरूप नहीं है उसे देशद्रोह नहीं माना जाना चाहिये।
z धारा 124A का दुरुपयोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिये एक उपकरण के रूप में नहीं किया जाना चाहिये। इस कानून
के तहत अभियोजन में केदारनाथ सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई चेतावनी इसके दुरुपयोग को नियंत्रित कर सकती है। इसे
बदले हुए तथ्यों एवं परिस्थितियों के तहत और आवश्यकता, आनुपातिकता एवं मनमानी के निरंतर विकसित होते परीक्षणों की कसौटी पर
कसने की आवश्यकता है।
z उच्च न्यायपालिका को अपनी पर्यवेक्षी शक्तियों का उपयोग मजिस्ट्रेट और पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने वाले संवैधानिक
प्रावधानों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिये करना चाहिये।
z देशद्रोह की परिभाषा को संकुचित किया जाना चाहिये, जिसमें केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ देश की संप्रभुता से संबंधित
मुद्दों को ही शामिल किया जाए।
z ‘देशद्रोह’ अत्यंत सूक्ष्म शब्द है और इसे सावधानी के साथ लागू करने की आवश्यकता है। यह एक तोप की तरह है जिसका उपयोग चूहे
को मारने के लिये नहीं किया जाना चाहिये। निश्चय ही शस्त्रागार में तोप भी होने चाहिये लेकिन वे प्रायः निवारक के रूप में हों और कभी-
कभी उनका इस्तेमाल गोले दागने के लिये किया जाए।
z लोकतंत्र की रक्षा के लिये हमें यह सुनिश्चित करना चाहिये कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी व्यर्थ न जाए। इसके लिये हमारे
प्रत्येक दंडात्मक कानून को समानता, न्याय और निष्पक्षता की चिंता से प्रेरित होना चाहिये।
नोट :
37 एडिटोरियल मई, 2022 www.drishtiias.com/hindi
नोट :
www.drishtiias.com/hindi एडिटोरियल मई, 2022 38
z इस परिप्रेक्ष्य में, यह देखा गया है कि जापान जैसे देशों ने दुर्लभ मृदा के वैकल्पिक स्रोतों को विकसित करने के लिये5 बिलियन डॉलर का
कोष निर्धारित किया है और वे संयुक्त उद्यम भागीदारी पर बल देते हैं।
z इसी तरह, अमेरिका-चीन व्यापार तनाव के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 2019 में ‘महत्त्वपूर्ण खनिजों की सुरक्षित और विश्वसनीय
आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु संघीय रणनीति’ का विकास किया।
z ‘क्वाड’ का लाभ उठाना: कुछ वर्ष पहले ऑस्ट्रेलियाई और अमेरिकी खनिज एजेंसियों ने अपने महत्त्वपूर्ण खनिज भंडारों के संबंध में संयुक्त
रूप से बेहतर समझ विकसित करने और इस क्रम में अन्य भागों में उनके अस्तित्व का पता लगाने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
z भारत भविष्य की अपनी आवश्यताओं की सुरक्षा के लिये क्वाड प्लेटफॉर्म के तहत द्विपक्षीय संलग्नता की राह पर आगे बढ़ सकता है।
z जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ सहयोग से भारत को अपने दुर्लभ मृदा तत्व (Rare Earth Elements- REE) उद्योग
को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी एवं वित्तीय व्यवहार्यता अंतर को पाटने में मदद मिल सकती है।
z दक्षिण-दक्षिण सहयोग: भारत अपने EV उद्योग के विकास हेतु सहयोग सुनिश्चित करने के लिये विश्व के विकासशील दक्षिण के बीच एक
अंररसरकारी निकाय (वर्ष 1960 में गठित ‘ओपेक’ जैसा निकाय) का गठन कर सकने की संभावना का पता लगा सकता है।
z इसमें भारत के साथ लैटिन अमेरिका से चिली, अर्जेंटीना, ब्राजील, क्यूबा; अफ्रीका से कांगो, गैबॉन, मेडागास्कर, मोज़ाम्बिक एवं दक्षिण
अफ्रीका; और इंडोनेशिया, फिलीपींस तथा रूस जैसे देश शामिल हो सकते हैं।
z कुशल बैटरियों की आवश्यकता: यह सुनिश्चित करने के लिये भी कार्य करने की आवश्यकता है कि लिथियम-आयन बैटरी भारत की गर्म/
आर्द्र परिस्थितियों में कुशलतापूर्वक कार्य कर सके और उनका जीवनकाल दीर्घ हो। सरकार को बैटरियों के शत प्रतिशत पुनर्चक्रण को भी
अनिवार्य बनाना चाहिये और बैटरी का डिज़ाइन पुनर्चक्रण-अनुकूल हो।
z यह उपाय करना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि बैटरी के जीवनकाल का विस्तार न करने और आक्रामक रूप से इसका पुनर्चक्रण न करने के परिदृश्य
में भारत की ऊर्जा निर्भरता पश्चिम एशिया से चीन (जो बैटरी के लिये आवश्यक अधिकांश दुर्लभ मृदा धातुओं पर नियंत्रण रखता है) की
ओर स्थानांतरित हो जाएगी ।
z इसके अलावा, एक बड़ा कदम यह होगा कि भारत में ऐसी बैटरियों के निर्माण के लिये अनुसंधान को प्रोत्साहन दिया जाए जहाँ कोबाल्ट
और निकेल को अन्य धातुओं से प्रतिस्थापित किया जा सके।
नोट :
39 एडिटोरियल मई, 2022 www.drishtiias.com/hindi
नोट :
www.drishtiias.com/hindi एडिटोरियल मई, 2022 40
z ‘क्वाड’ का लाभ उठाना: कुछ वर्ष पहले ऑस्ट्रेलियाई और अमेरिकी खनिज एजेंसियों ने अपने महत्त्वपूर्ण खनिज भंडारों के संबंध में संयुक्त
रूप से बेहतर समझ विकसित करने और इस क्रम में अन्य भागों में उनके अस्तित्व का पता लगाने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
z भारत भविष्य की अपनी आवश्यताओं की सुरक्षा के लिये क्वाड प्लेटफॉर्म के तहत द्विपक्षीय संलग्नता की राह पर आगे बढ़ सकता है।
z जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ सहयोग से भारत को अपने दुर्लभ मृदा तत्व (Rare Earth Elements- REE) उद्योग
को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी एवं वित्तीय व्यवहार्यता अंतर को पाटने में मदद मिल सकती है।
z दक्षिण-दक्षिण सहयोग: भारत अपने EV उद्योग के विकास हेतु सहयोग सुनिश्चित करने के लिये विश्व के विकासशील दक्षिण के बीच एक
अंतरसरकारी निकाय (वर्ष 1960 में गठित ‘ओपेक’ जैसा निकाय) का गठन कर सकने की संभावना का पता लगा सकता है।
z इसमें भारत के साथ लैटिन अमेरिका से चिली, अर्जेंटीना, ब्राज़ील, क्यूबा; अफ्रीका से कांगो, गैबॉन, मेडागास्कर, मोज़ाम्बिक एवं दक्षिण
अफ्रीका; और इंडोनेशिया, फिलीपींस तथा रूस जैसे देश शामिल हो सकते हैं।
z कुशल बैटरियों की आवश्यकता: यह सुनिश्चित करने के लिये भी कार्य करने की आवश्यकता है कि लिथियम-आयन बैटरी भारत की गर्म/
आर्द्र परिस्थितियों में कुशलतापूर्वक कार्य कर सके और उनका जीवनकाल दीर्घ हो। सरकार को बैटरियों के शत-प्रतिशत पुनर्चक्रण को भी
अनिवार्य बनाना चाहिये जिसमें बैटरी का डिज़ाइन पुनर्चक्रण-अनुकूल हो।
z यह उपाय करना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि बैटरी के जीवनकाल का विस्तार न करने और आक्रामक रूप से इसका पुनर्चक्रण न करने के परिदृश्य
में भारत की ऊर्जा निर्भरता पश्चिम एशिया से चीन (जो बैटरी के लिये आवश्यक अधिकांश दुर्लभ मृदा धातुओं पर नियंत्रण रखता है) की
ओर स्थानांतरित हो जाएगी ।
z इसके अलावा, एक बड़ा कदम यह होगा कि भारत में ऐसी बैटरियों के निर्माण के लिये अनुसंधान को प्रोत्साहन दिया जाए जहाँ कोबाल्ट
और निकेल को अन्य धातुओं से प्रतिस्थापित किया जा सके।
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