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भारत की ‘उभरती तकनीक’ और उससे जुड़ी नई चुनौतियां

21 वीं सदी की शुरुआत सूचना प्रौद्योगिकी में तेज़ बढ़ोतरी से हुई. कम्प्यूटिंग की क्षमता में लगातार बढ़ोतरी और ज़्यादा सुनिश्चित करेगी कि नई और
बेहतर तकनीक मानव इतिहास के किसी दूसरे समय के मुक़ाबले इस वक़्त और ज़्यादा तेज़ी से उभरेगी. ‘उभरती तकनीक’ शब्द को या तो नई तकनीक
के रूप में परिभाषित किया जा सकता है या मौजूदा तकनीक में तरक़्क़ी जारी रखने को जो अगले कु छ वर्षों में व्यापक तौर पर उपलब्ध होगी. 3 डी
प्रिंटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, नैनो टेक्नोलॉजी, 5 जी वायरलेस, कम्युनिके शन, स्टेम सेल थेरेपी और बंटी हुई खाता-बही ऐसी तकनीक के
कु छ उदाहरण हैं. उभरती तकनीक में निवेश के ज़रिए भारत महत्वपूर्ण आर्थिक, सामाजिक और सैन्य फ़ायदा हासिल कर सकता है और इससे बहुध्रुवीय
विश्व व्यवस्था में बड़ा नाम होने की भारत की आकांक्षा को बल मिल सकता है. लेकिन इसके लिए भारत को अच्छी शिक्षा के अभाव और अविकसित
रिसर्च-डेवपलमेंट के बुनियादी ढांचे जैसी समस्या पर ध्यान देना होगा जिससे कि उभरती तकनीकी के विकास से मिलने वाले नतीजे का अधिकतम फ़ायदा
उठाया जा सके .
भारत ने उभरती तकनीक के क्षेत्र में अपनी रिसर्च क्षमता को बढ़ाने के लिए पिछले कु छ वर्षों के दौरान कई सुधार और पहल का एलान किया है.
2015 में 4500 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय सुपर कम्प्यूटिंग मिशन की शुरुआत की गई जिससे कि 2022 तक पूरे देश में 73 देसी सुपर कम्प्यूटर
लगाया जाए. 
भारत ने उभरती तकनीक के क्षेत्र में अपनी रिसर्च क्षमता को बढ़ाने के लिए पिछले कु छ वर्षों के दौरान कई सुधार और पहल का एलान किया है.
2015 में 4500 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय सुपर कम्प्यूटिंग मिशन की शुरुआत की गई जिससे कि 2022 तक पूरे देश में 73 देसी सुपर कम्प्यूटर
लगाया जाए. 8,000 करोड़ रुपये की क्वांटम टेक्नोलॉजी और एप्लीके शन पर राष्ट्रीय मिशन की घोषणा फरवरी 2020 में की गई. इसका मक़सद
संचार, कम्प्यूटिंग, मैटेरियल डेवलपमेंट और क्रिप्टोग्राफी के लिए क्वांटम टेक्नोलॉजी के विकास पर नज़र रखना है. भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास
संगठन (DRDO) ने कई ऐसी लैब की भी स्थापना की है जो भविष्य की तकनीक जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम और कॉग्निटिव तकनीक,
असिमेट्रिक टेक्नोलॉजी और स्मार्ट मैटेरियल पर ध्यान दे रही है. इसके अलावा, ख़बरों के मुताबिक़ भारतीय सेना अत्याधुनिक मिलिट्री सिस्टम जैसे
डायरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW), मैन्ड कॉम्बैट प्लेटफॉर्म और स्वार्म ड्रोन विकसित कर रही है. इसके अतिरिक्त, विदेश मामलों के मंत्रालय ने हाल में
नई, उभरती और रणनीतिक तकनीक (NEST) डिवीज़न का गठन किया है जो नई और उभरती तकनीक को लेकर विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनी
पहलुओं को देखेगा और वैश्विक तकनीकी शासन के मंचों पर सक्रिय भारतीय भागीदारी का इंतज़ाम करेगा.
उभरती तकनीक के क्षेत्र में रिसर्च पर दो व्यापक दृष्टिकोण हैं. पहले दृष्टिकोण में विकास  और वैज्ञानिक सिद्धांत हैं जो उभरती तकनीक की बुनियाद हैं
जबकि दूसरे दृष्टिकण में इन सिद्धांतों को व्यावसायिक और औद्योगिक तरीक़े से उत्पादों में बदलना है. आम तौर पर विश्वविद्यालय और अकादमिक संस्थान
पहले दृष्टिकोण पर आधारित प्रोजेक्ट पर काम करते हैं जबकि पेशेवर रिसर्च लैबोरेटरी दूसरे दृष्टिकोण पर ध्यान देती है. अफ़सोस की बात ये है कि दोनों
दृष्टिकोणों के बारे में बुनियादी ढांचे पर पैसा खर्च नहीं किया गया है और रिसर्च का अच्छा माहौल बनाने के लिए इस कमी पर ध्यान देने की ज़रूरत है.
2018 में भारत ने अपनी GDP का सिर्फ़ 3% शिक्षा पर खर्च किया जो कोठारी आयोग की तरफ़ से की गई सिफ़ारिश का आधा है. पिछले एक
दशक में प्राइवेट सेक्टर ने इस अंतर को भरने की कोशिश की है और पूरे भारत में कई नये कॉलेज और यूनिवर्सिटी खुली हैं. 
निजी शैक्षणिक संस्थानों को स्वायत्ता
भारत के उच्च शिक्षा सेक्टर में सरकारी और प्राइवेट- दोनों तरह के संस्थान हैं लेकिन सस्ता होने की वजह से सरकारी विश्वविद्यालयों की सबसे ज़्यादा
मांग है. हालांकि सालाना मांग के मुक़ाबले उनकी सीटें कम हैं. वैसे तो सरकार ज़्यादा तेज़ी से नये शिक्षा संस्थानों की स्थापना कर रही है लेकिन मांग
और आपूर्ति में काफ़ी ज़्यादा अंतर बरकरार है. इस अंतर की मुख्य वजह शिक्षा क्षेत्र के लिए अपर्याप्त पैसे का बंदोबस्त है. 2018 में भारत ने अपनी
GDP का सिर्फ़ 3% शिक्षा पर खर्च किया जो कोठारी आयोग की तरफ़ से की गई सिफ़ारिश का आधा है. पिछले एक दशक में प्राइवेट सेक्टर ने इस
अंतर को भरने की कोशिश की है और पूरे भारत में कई नये कॉलेज और यूनिवर्सिटी खुली हैं. लेकिन ये कई मानकों में पीछे हैं और इसके लिए अक्सर
सरकार के ज़रूरत से ज़्यादा नियमों को ज़िम्मेदार ठहराते हैं.
मौजूदा समय में महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे अपना फी स्ट्रक्चर निर्धारित करने, कोर्स तय करने और अच्छे वेतन पर शिक्षकों को नियुक्त करने की आज़ादी के
मामलों में भारतीय विश्वविद्यालयों को वित्तीय और काम-काज की स्वायत्तता नहीं है. इन पाबंदियों की वजह से प्राइवेट यूनिवर्सिटी पर बहुत ज़्यादा असर
पड़ता है क्योंकि वो वित्तीय मदद के लिए सरकार से पैसा नहीं ले सकतीं और मजबूरन उन्हें खर्च कम करने के उपाय करने पड़ते हैं जिससे शिक्षा की
क्वालिटी खराब होती है. 2019 के एक सर्वे से पता चला कि भारत के सिर्फ़ 47% ग्रैजुएट नौकरी के योग्य हैं. लेकिन नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के
तहत जो क़ानूनी बदलाव प्रस्तावित हैं, उनका उद्देश्य ज़रूरत से ज़्यादा नियमों को कम करना और शैक्षणिक संस्थानों को महत्वपूर्ण स्वायत्तता उपलब्ध कराना
है. इसके अलावा टॉप रैंक विदेशी यूनिवर्सिटी को भारत में कैं पस खोलने के लिए आकर्षित करने की कोशिश एक स्वागत योग्य क़दम है क्योंकि इससे
भारतीय उच्च शिक्षा के सेक्टर में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के ज़रिए छात्रों को फ़ायदा होगा. इससे टॉप सरकारी शैक्षणिक संस्थानों के ग्रैजुएट छात्रों के बेहतर शिक्षा
और रिसर्च के अवसरों के लिए विदेशी यूनिवर्सिटी को तरजीह देने और यदा-कदा भारत लौटने के बदले अक्सर उसी देश में नौकरी करने के रुझान को
रोका जा सके गा.
भारत में ज़्यादातर वैज्ञानिक रिसर्च सरकारी पैसे पर चलने वाले शैक्षणिक संस्थानों जैसे IISc, IIT और AIIMS या विशेष संगठनों जैसे ICAR,
ICMR, CSIR, DRDO और ISRO में होती है. लेकिन ये संगठन भी सीमित क्षमता और पैसे की कमी का सामना कर रहे हैं. 
उच्च शिक्षा के साथ भारत में रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) के बुनियादी ढांचे पर भी लगातार ध्यान देने की ज़रूरत है. भारत में ज़्यादातर वैज्ञानिक
रिसर्च सरकारी पैसे पर चलने वाले शैक्षणिक संस्थानों जैसे IISc, IIT और AIIMS या विशेष संगठनों जैसे ICAR, ICMR, CSIR,
DRDO और ISRO में होती है. लेकिन ये संगठन भी सीमित क्षमता और पैसे की कमी का सामना कर रहे हैं. भारत अपनी GDP का सिर्फ़
0.65% R&D गतिविधियों पर खर्च करता है जो चीन के खर्च के एक तिहाई से भी कम है. अक्सर ये खर्च भी सरकारी संगठनों के रवैये की वजह
से पूरा नहीं हो पाता. हालांकि भारत इसमें बदलाव करने जा रहा है. अलग-अलग मंत्रालयों की तरफ़ से रिसर्च के लिए एक-दूसरे से अलग रक़म देने
की मौजूदा व्यवस्था को राष्ट्रीय रिसर्च फाउंडेशन (NRF) के ज़रिए बदल दिया जाएगा. इससे असरदार सरकारी रिसर्च के माहौल को प्रोत्साहन मिलने की
संभावना है.
भारत के आकार जैसे देश और उसके विकास के चरण को देखते हुए R&D गतिविधियों के लिए प्राथमिक तौर पर सरकारी खर्च पर निर्भर रहने से सीमित
संसाधनों का ठीक से इस्तेमाल नहीं होगा और उसकी विशाल संभावनाओं का लाभ उठाने में देरी होगी. उभरती तकनीक में मिली-जुली सरकारी और
प्राइवेट कोशिश ठीक है जहां सरकारी सेक्टर तकनीक का विकास करेगा और उसके व्यवसायीकरण का काम प्राइवेट सेक्टर को सौंपना चाहिए. ऐसा करने से
सरकारी साधनों का सही इस्तेमाल होगा. हाल में DRDO की तकनीक के आधार पर प्राइवेट सेक्टर में उत्पादित पिनाका रॉके ट का सफल परीक्षण भारत
को इस मॉडल को लेकर भरोसा देता है. इसके अलावा जिन सेक्टर में पहले प्राइवेट निवेश पर पाबंदी थी जैसे अंतरिक्ष, रक्षा और सेमीकं डक्टर उत्पादन,
वहां प्राइवेट निवेश को इजाज़त देने का भारत का फ़ै सला और उदार FDI नीति विदेशी कं पनियों को भारत में निवेश के लिए आकर्षित कर सकती है.
स्टार्टअप बने रिसर्च के कें द्र
स्टार्टअप भी उभरती तकनीक में अत्याधुनिक रिसर्च के कें द्र के रूप में उभरे हैं. भारत और दुनिया भर में कई स्टार्टअप आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, नैनो
टेक्नोलॉजी और नैनो मेडिसिन के इस्तेमाल के ज़रिए व्यावहारिक एप्लीके शन विकसित कर रहे हैं. ये निवेश आकर्षित करने का किफ़ायती तरीक़ा है क्योंकि
भरोसा देने वाले आइडिया में निवेश करने के लिए दुनिया भर के लोग तैयार रहते हैं. बड़ी बहुराष्ट्रीय कं पनियों की परियोजनाओं के उलट, स्टार्टअप को
सरकार से कु छ मदद की ज़रूरत पड़ती है. इस मदद में अक्सर कु छ प्रोत्साहन देना और बेहतर नियामक माहौल सुनिश्चित करना शामिल है. कॉरपोरेट
टैक्स में छू ट या विशेष मशीनों के आयात पर कर में छू ट देने से भारतीय नौजवानों को स्टार्टअप शुरू करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा और उनके उद्यमी
वाले उत्साह को बढ़ावा मिलेगा. ई कॉमर्स और वित्तीय तकनीक के क्षेत्र में सफल देसी स्टार्टअप का भारतीय अनुभव नीति निर्माताओं को उभरती तकनीक
के क्षेत्र में भी स्टार्टअप को सक्रिय तौर पर प्रोत्साहन का भरोसा देगा.
भारत और दुनिया भर में कई स्टार्टअप आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, नैनो टेक्नोलॉजी और नैनो मेडिसिन के इस्तेमाल के ज़रिए व्यावहारिक एप्लीके शन विकसित
कर रहे हैं. ये निवेश आकर्षित करने का किफ़ायती तरीक़ा है क्योंकि भरोसा देने वाले आइडिया में निवेश करने के लिए दुनिया भर के लोग तैयार रहते
हैं.
भारत के पास मानवीय पूंजी की कोई कमी नहीं है और ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भारत की रैंकिं ग 48 वीं है. भारत को अपने प्रदर्शन को बेहतरीन
करने में विशाल संभावनाओं का फ़ायदा ज़रूर उठाना चाहिए. अस्थायी रिसर्च की पहल और कभी-कभी होने वाला बजट आवंटन भारत में रिसर्च का अच्छा
माहौल विकसित करने के लिए पर्याप्त नहीं है. शिक्षा और हर स्तर पर R&D का बुनियादी ढांचा बेहतर करने के लिए भारत में सरकारी और प्राइवेट-
दोनों सेक्टर के लगातार निवेश की ज़रूरत है.
उभरती तकनीक का क्षेत्र भारत के लिए चुनौती और मौक़ा- दोनों पेश करते हैं. लेकिन अपने सुधारवादी क़दमों को जारी रखकर वो चुनौतियों से पार पा
सकता है और वैज्ञानिकों के लिए आविष्कार और कं पनियों के लिए उत्पादन को आसान बनाकर वो मौक़ों को दबोच सकता है. इन तकनीकों में संभावना है
कि वो भारत को तकनीकों के नये युग में छलांग लगाने का मौक़ा मुहैया कराए. उसी तरह जैसे भारत ने लैंडलाइन को छोड़ कर मोबाइल तकनीक में
छलांग लगाई, वैसे ही जैसे कु छ वर्ष पहले तक बैंकिं ग से कोसों क़दम दूर भारत छलांग लगाकर बेहतर वित्तीय-तकनीकी माहौल वाला देश बन गया.

विज्ञान की प्रगति और मानवीय मूल्यों का ह्रास


• 14 May 2020
• 7 min read
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• सामान्य अध्ययन-III
वर्तमान वैज्ञानिक युग में चाहे कोई भी क्षेत्र हो वैज्ञानिक अविष्कारों एवं खोजो से बनाई गई वस्तुओं का प्रचलन दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। चाहे रेल
हो या हवाई जहाज़, चलचित्र हो या चिकित्सा उपकरण या फिर कं प्यूटर या स्मार्टफोन हमारे जीवन की दिनचर्या में इनका समावेशन प्रत्येक जगह पाया जाता
है।
जहाँ एक तरफ मानव विज्ञान की प्रगति के उच्चतम शिखर तक पहुँचने का प्रयास कर रहा है वहीं दूसरी तरफ वर्तमान युग में मानवीय मूल्यों तथा आस्था,
सहानुभूति, ईमानदारी, दया, प्रेम, संयम आदि का ह्रास होता जा रहा है। मानव व्यक्तिवादी और भौतिकवादी होता जा रहा है जिसकी प्रवृत्ति प्रगति
कल्याणकारी से अधिक शोषणकारी हो गयी है। इन दोनों प्रवित्तियों के गुणों के परीक्षण से स्पष्ट होता है कि विज्ञान की प्रगति से मानवीय मूल्यों का ह्रास हो
रहा है। देखा जाए तो यह धारणा वास्तविक प्रतीत होती हैं लेकिन दोनों में कारण, परिणाम संबंध व्याप्त हैं या नहीं या महज एक संयोग है कि एक में
वृद्धि दूसरे के ह्रास का कारण बन रहा है। किसी परिणाम तक पहुँचने के लिये इसकी सूक्ष्म जाँच आवश्यक है। 
अगर हम गौर करें तो पाएंगे कि जिस प्रकार मानव विकास हेतु विज्ञान आवश्यक है उसी प्रकार मानवता के विकास हेतु मानवीय मूल्यों का होना बहुत
जरूरी है विज्ञान की प्रगति का अर्थ वैज्ञानिक सोच, शोध, आविष्कार आदि में वृद्धि होना है। अगर विज्ञान संबंधित वस्तुओं के प्रयोग में वृद्धि होती हैं तो
विज्ञान की प्रगति ही मानी जाती है हमारी दिनचर्या में विज्ञान संबंधित वस्तुओं के उपयोग में काफी वृद्धि हुई है। आजकल घरों में उपयोग में आने वाली
मशीनें यथा टी.वी, फ्रिज, ए.सी, कार आदि सभी वस्तुएँ वैज्ञानिक प्रगति को ही इंगित करती हैं। शासन के संचालन से लेकर चिकित्सीय कार्यों में भी
इसकी उपयोगिता किसी से छिपी नहीं है। लोक-संगीत तथा मनोरंजन आदि कार्य हेतु भी इसका भरपूर प्रयोग होता है। संगीत के वाद्य यंत्र, संगीत की
रिकॉर्डिंग उसकी टेलीकास्टिंग आदि चीजें नवीन आधुनिक यंत्रों पर ही निर्भर है। धार्मिक कार्यों को भी संपादित करने में आजकल वैज्ञानिक खोजों की सहायता
ली जा रही है इस हेतु माइक-स्पीकर, रिकॉर्डर आदि की जो व्यवस्था की जाती है वह प्रगति का सूचक है। सामाजिक आयोजनों या वैवाहिक कार्यक्रमों में
भी विज्ञान से संबंधित विकास के प्रमाण आजकल बखूबी मिलते हैं।
अगर मानवीय मूल्यों की बात की जाए तो जो मूल्य मानव जीवन के स्वभाविक एवं सुव्यवस्थित संचालन के लिये आवश्यक होते हैं, मानवीय मूल्य कहलाते
हैं। दैनिक जीवन में प्राय: उचित-अनुचित, श्रेष्ठ-निकृ ष्ठ, ग्राह-त्याज्य आदि का हम जो निर्णय लेते हैं उनका आधार मानवीय मूल्य ही होते हैं। जिन
मानदंडों की कसौटी पर किसी घटना की सत्यता, व्यक्ति एवं समाज के ऊपर पड़ने वाले कल्याणकारी या अकल्याणकारी प्रभाव की परख या किसी वस्तु के
गुण की श्रेष्ठता या निकृ ष्टता मापी जाती है, वे मुल्ये कहलाते हैं। मूल्यों के अनुसार ही किसी वस्तु या व्यक्ति के गुण, दोष, योग्यता आदि की पहचान
कर उनके महत्त्व स्थापित किये जाते हैं।
मूल्य के भी कई प्रकार होते हैं जैसे मानवीय मूल्य, सामाजिक मूल्य, नैतिक मूल्य, राजनैतिक मूल्य, धार्मिक मूल्य, राष्ट्रीय मूल्य, ऐतिहासिक मूल्य,
आर्थिक मूल्य आदि। ये मूल्य किसी न किसी आदर्श से जुड़े होते हैं। अहिंसा, नैतिकता, जनहित, राष्ट्रीयता, बंधुत्व, करुणा, त्याग, दया आदि मूल्यों
की आधारभूत इकाईयाँ है। 
दैनिक जीवन में भी हम जाने-अनजाने विभिन्न कार्यकलापों के संबंध में उचित एवं अनुचित का निर्णय लेते हैं। किसी व्यक्ति द्वारा बोला गया सच परिस्थिति
अनुसार पाप या पुण्य अलग-अलग वर्ग में विभाजित हो जाता है। इस प्रकार मूल्य ही औचित्य-अनौचित्य, सत्य-असत्य, कल्याण एवं अकल्याण का
निर्णायक तत्व हो जाता है। 
वैज्ञानिक प्रगति द्वारा मानवीय मूल्यों का ह्रास-
• धार्मिक आस्था में कमी
• व्यक्ति के संयम में कमी
• सादगीपूर्ण जीवन का ह्रास
• मानवीय भावनाओं में कमी
• लोभ एवं लालच के कारण ईमानदारी में कमी
• संयुक्त परिवार की प्रथा के कागार पर
• भौतिकवादी एवं उपभोगवादी संस्कृ ति को बढ़ावा
• स्वार्थ एवं अश्लीलता में वृद्धि के साथ कर्मठता में कमी 
गौर से देखने पर यह प्रतीत होता है कि वैज्ञानिक प्रगति के कारण मानवीय मूल्यों में आई ह्रास संबंधी तथ्य वास्तविक नहीं अपितु भ्रामक है। विज्ञान एक
निरपेक्ष विषय है और वैज्ञानिक सिद्धांतों से निर्मित आधुनिक उपकरणों को मानव के गुलाम के रूप में दिखाया गया है क्योंकि इनके उपयोग का निर्धारण
मानव ही करता है। अंतः यदि मानवीय मूल्यों का वर्तमान में ह्रास हो भी रहा है तो इस स्थिति के लिये वैज्ञानिक प्रगति नहीं अपितु मानव जिम्मेदार होता
है। 
विज्ञान की प्रगति से मानवीय मूल्यों का ह्रास नहीं अपितु मानवीय मूल्यों के विकास को बल मिलता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विज्ञान की प्रगति
एवं विज्ञान जनित उपकरणों को उपयोग में लाने की प्रकृ ति ही तय करती हैं कि मानवीय मूल्यों का उत्थान हो रहा है या पतन? यदि मानव संतुलित एवं
विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाएं तो उसके द्वारा किये जा रहे वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोग से निश्चित ही मानवता फलीभूत होगी एवं मानवीय मूल्यों का विकास
होगा।

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