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Annapurna Vrat Vidhi (अन्नपर्णा

ू व्रत
विधि)
 स व्रतको करने वाले मार्गशीर्ष

को प्रात: काल गंगा अथवा प्रात:काल
मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि नदी या घर में सिर से स्नान कर रे शम
का डोरा लेकर रोली से रं ग लें और उसमें सत्रह गांठे चन्दन की दे वें ।
इसके उपरान्त अन्नपर्णा ू की की
उन गांठों की पज ू ा करें । करें । गांठों में भगवती
तथा नाना प्रकार
सल ु भ स्थापना करें । सात दर्वा ू , दस अ से भगवती अन्नपर्णा ू पज ू न करें और कहें -
हे माता अन्नपर्णे ू ! मझ
ु े अन्न, पश,ु पत्र ु , यश तथा लक्ष्मी प्रदान करो। अन्नपर्णे
ू ! मझ ु े अन्न, पश,ु परु ोश्वर्य
प्रदत्त करो। इसके साथ ही आय,ु आरोग्य क ऐश्वर्य प्रदत्त करो।
आपको प्रणाम करता हूँ। प्रकार से प्रार्थना करके
तथा स्त्री बायीं
दे वि! मैं
परुु ष दायीं
में धागे को धारण करें और शांत चित्त से
कथा सन ु े। कथा के
में सत्रह हरे धान के चावल व दर्वा ू लेकर
यह सोलह वाक्य कहें :- हे माता अन्नपर्णा ू ! आपतो सर्वशक्तिमयी हैं, अत: सर्वपष्ु पमयी यह दर्वाू
नमस्कार है । अर्पण करता हूँ, आपको

 सके बाद वर और अभय को तल्


इ ु य शोभनवर्णवाली
करें ।
हे
के
का आवाहन हाथ में फूल लेकर
दे वदे वेश ! भगवा करनेवाली बन्धकू फूल
की गयी इस प्रकार से
की प्राणवल्लभा
को;स्वीकार करो. तम्हें
कर न्दाय नमः
दे वी
दे वी मेरे द्वारा
नमस्कार है । उपर्युक्त
इस मंत्र से नंदा
जल अर्पित करें । इसके श्चात गिरीशकान्ता भगवती उमा
अर्घ्य और आचमनीय,
को
करे । संसार की माता जगत मंगल को भी मंगल प्रदान करनेवाली, महे श्वर करे और फूल लेकर यह कहें - हे
जगत
चन्दन तथा मधप ु र्क
के
महिष व कार्तिकेय की माता !
नमस्कार
भगवती
है । इस
धप ू , दीप,
वस्त्र,सिन्दरू ,आभष
ू ण,ताम्बल
ू ह न‍

अनेक प्रकार
,
सगु न्ध प्रदक्षिणा को निकाल कर
सौभाग्यादि द्रव्य उन्हें समर्पित करें । फिर साष्टांग प्रणाम करें , और अपनी भज
ु ा भगवती के चरणों में रखें। हे
माँ! करनेवाली यह डोरा, जिसे मैंने
सम्पर्ण
ू हो गया। हे माँ! इस डोरे धन सम्पत्ति को प्रदत्त
· किया था, उसका व्रत आज
। ग्रहण करो।

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