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शशु -सं कार

(बंगाल के महान स नगमान द सर वती ारा ो )


वभाव- नयम अथवा दै व उपायसे स तान ा त कर य द वह
द घजीवी, नीरोग स र और प डत न हो तो इससे पता-
माताके मनके क क अव ध नह रहती। असत् पु ारा माता-
पता न य क भोगते ह । त शा ने मानवके उस अभावको
भी पूण करनेका उपाय कर दया है। पु के ज म हण करनेके
बाद उस करणका अवल बन कर जातपु का सं कार काय
स करनेसे-पु प डत, क व, वा मी भृ त नाना स गुण
स होता है । नीचे उसक या द जाती है-

पु के ज म लेते ही-नाड़ी े दके पूव- पता वण ारा पु का


मुखावलोकन कर घरम जाकर गु , पंचदे वता और ता रणीक
पूजा कर वसुधारा (धाराहोम) दे गा। उसके बाद पंचा त दान
कर कां य ( फू ल ) पा म समानांश घृत, मधु लेकर उसके ऊपर
"ऐ" इस म का सात बार जप करना होगा। बादम दा हने
हाथसे अना मका अंगल ु ी ारा इस घृत और मधुको लेकर-
" आयुवचो बलं मेधा ब तां ते सदा शशो"
इस म का पाठ करते-करते शशुके मुखम दे ना होगा। इससे
शशुक आयुवृ होती है । इस लए इसका नाम आयुजनन है
। इस समय पता मन ही मन शशुका एक गु त नाम रखेगा।
इसके बाद बालकक ज ा तीन बार द ण हाथ ारा मा जत
कर पता वेत वा अथवा वणशलाका ारा मधु लेकर
बालकक ज ाम “वा भवकू ट" अथात् “ ल हेसाः"
इस म का पं याकारसे लख दे गा । असु वधा होनेसे अथवा
आप य रहने से अपने इ म को लख द। इससे बालक
स यवाद , जते य, क व और बा मी हो सकता है । यथा-
क ववा मी भवेत् पु ः स यवाद जते यः । -त सार
वा तवम यह वा भवम वागीश व दायक है। यह म
पुर रण पूवक मूख के म तकपर हाथ दे कर एक सौ
आठबार जप करनेसे वह मूख क व हो सकता है और ज ाम
यास करनेपर व ा हो सकता है।
ज ायां यसनादे व मूकोऽ प सुक वभवेत् । -ग वत
वयः ा त महामूख उपयु पम योग कर सकनेपर
जब मूख वको र कर सुक व होता है तब शशुक तो वात ही
नह । इस लए नवजात शशुका वा भवकू ट म ारा ही
सं कार करना क ः है। सं कारके अ त म नाडी े दन होना
आव यक है । कसी बाधा व नवश नाड़ी े दके पूव ही उ
अनु ानको न कर सकनेसे तीन रातम स कया जा सकता
है । पताके र दे शम रहनेसे बालकके पतृ अथवा मातुल
भी उसको कर सकते ह । अ यके ारा नह होगा ।
उसके बाद कु लधमके अनुसार यारह दन अथवा एक मास
शुभाशौचके बाद अव ाके अनुसार यथाश उपचार ारा
कु लदे वताक पूजा करेगा। बादम फर ेत वा, कु श अथवा
वणशलाका ारा पूव वा भव बालकके ओ म लख दे ना
होगा। उससे बालक वा योचारणम समथ होने मा क व व
स होता है । बादम माताके ोड म कु शके ऊपर शशुको
रखकर ा ण स हत समवेत होकर-
"इमंपु ं कामयत कामजाना महैव ह, दे वे यः पु णा त
सव मदम् स ननम् शवशा त तारायै के शवे य तारायै
यः उभाय । शवाय शवयशसे"
इस म का पाठ करते-करते कु श और वण ारा जल छड़क
कर शा त करनी होगी । बाद म शशु को गोदम लेकर-
ा व णुः शवो गा गणेशो भा कर तथा।
का इ ो वायु कु बेर व णो नबृह तः ।
शशोः शुभं कु व तु र तु प थ सवदा।।
इस र ाम का पाठ करना होगा । उसके बाद गोदम शशुको
कु छ। र बाहर लाकर-
त दु व हतं पुर ता ु मु रन् प येयम् शरदः शतं
जीवेयम् शरदः शृणयु ाम शरदः शतम्"
इस म का पाठ करते-करते शशुको सूय दशन कराकर गृहम
जाना होगा। इस दन ा ण को पूजोपकरण; अ व ा द और
द णा दे ने क व ध है।
उ काय गु , पुरो हत, अथा त ा भ ा णके ारा स
होना चा हये । सदाचारी ता क साधकके ारा शा त काय
करा -सकने पर और अ ा होगा; त म भी वह व ा है--
शा त कु या ालक य ा णैः सह साधकः ।। -महो तारोक प
इस नयमसे आयुजनन ु और सं कार करनेसे बालक सव कार
महत् पदवा य होगा, उसम स दे ह लेश भी नह है ।

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