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विषय सूची
1. राज्यों के विधान-मंडलों का गठन __________________________________________________________________ 4
4. ऄिवध _____________________________________________________________________________________ 8
6.1 साधारण विधेयक के मामले में संसद और राज्य विधानमंडल में विधायी प्रक्रिया की तुलना _________________________ 9
6.2 धन विधेयक के मामले में संसद और राज्य विधानमंडल के विधायी प्रक्रिया की तुलना ___________________________ 10
विसदनीय व्यिस्था का प्रारं भ कें द्र में पहली बार मोंर्ेग्यू-चेमसफोडह सुधारों (भारत शासन
ऄवधवनयम, 1919) िारा क्रकया गया था। भारत शासन ऄवधवनयम, 1935 िारा 11 में से 6
प्रान्तों ऄथाहत् बंगाल, बॉमबे, मद्रास, वबहार, ऄसम और संयुक्त प्रान्त के वलए विसदनीय विधान
मंडल की व्यिस्था की गयी।
ऄवधकांश राज्यों में एक सदनीय व्यिस्था है, जबक्रक कु छ राज्यों में विसदनीय व्यिस्था है। ितहमान
में सात राज्यों में विसदनीय विधानमंडल है। (विसदनीय विधानमंडल का ऄथह है िैसा
विधानमंडल वजसमें दो सदन हैं: एक ईच्च सदन और दूसरा वनम्न सदन)।
िैसे राज्य जहाँ दो सदन हैं िे हैं- अंध्र प्रदेश, तेलग
ं ाना, वबहार, महाराष्ट्र, कनाहर्क, ईत्तर प्रदेश
और जममू-कश्मीर (जममू कश्मीर ने विसदनीय विधानमंडल को स्ियं के संविधान िारा ऄपनाया
है)।
मध्य प्रदेश के वलए भी विधानपररषद की व्यिस्था की गयी है। लेक्रकन राष्ट्रपवत िारा आसके प्रभािी
होने की ऄवधसूचना जारी नहीं की गयी है। तवमलनाडु विधानसभा िारा पाररत एक संकल्प के
अधार पर, संसद ने तवमलनाडु विधानपररषद ऄवधवनयम, 2010 पाररत क्रकया है। लेक्रकन आससे
पहले क्रक यह लागू हो सके तवमलनाडु विधानसभा ने विधानपररषद के ईत्सादन का प्रस्ताि पाररत
कर क्रदया।
शेष राज्यों में एक सदनीय व्यिस्था है। यहाँ राज्य विधावयका का गठन राज्यपाल और
विधानसभा से वमलकर होता है। विसदनीय व्यिस्था िाले राज्यों में राज्य विधावयका का गठन
राज्यपाल, विधानपररषद और विधानसभा से वमलकर होता है। जहाँ विधानपररषद ईच्च सदन है
तथा िहीं विधानसभा वनम्न सदन है।
संविधान संसद को राज्यों में विधानपररषदों के सृजन (जहाँ यह मौजूद नहीं है) और ईत्सादन
(जहाँ यह मौजूद है) की शवक्त प्रदान करता है। विधानपररषद के ईत्सादन (ईन्मूलन) और सृजन
का जो तंत्र है िह साधारण है तथा पाररभावषक ऄथह में यह संविधान का संशोधन नहीं होता।
संसद का आस ईद्देश्य से बनाया गया ऄवधवनयम ऄनु. 368 के प्रयोजन के वलए संविधान का
संशोधन नहीं समझा जाता और संसद में आसे साधारण बहुमत से पाररत कर क्रदया जाता है।
यह प्रक्रिया संबंवधत राज्य के विधानसभा के एक संकल्प िारा विशेष बहुमत (सभा के कु ल सदस्यों
का बहुमत एिं ईपवस्थत और मतदान करने िाले सदस्यों का कम-से-कम दो वतहाइ का बहुमत) से
पाररत प्रस्ताि िारा एिं तत्पिात् संसद के एक ऄवधवनयम िारा क्रकया जाता है।
आसे समाप्त कर क्रदया। 1986 में तवमलनाडु में और 1969 में पंजाब तथा पविम बंगाल में
विधानपररषद को समाप्त कर क्रदया गया।
1.3. विधानसभा
प्रत्येक राज्य की विधानसभा प्रादेवशक वनिाहचन क्षेत्रों से व्यस्क मतावधकार के अधार पर प्रत्यक्ष
चुनाि िारा वनिाहवचत सदस्यों से वनर्थमत होती है। विधानसभा के सदस्यों की संख्या ईनकी
जनसंख्या के अधार पर 500 से ज्यादा और 60 से कम नहीं हो सकती।
हालाँक्रक, ऄरुणाचल प्रदेश, वसक्रिम और गोिा के मामले में न्यूनतम संख्या 30 तय है और
वमजोरम के मामले में यह 40 है। आसके ऄवतररक्त वसक्रिम और नागालैंड के कु छ सदस्यों का
वनिाहचन परोक्ष रीवत से भी क्रकया जाता है।
राज्यपाल अंग्ल-भारतीय समुदाय से एक सदस्य को मनोनीत कर सकते हैं, यक्रद ईनका पयाहप्त
प्रवतवनवधत्ि विधानसभा में नहीं हो। संविधान िारा प्रत्येक राज्य में जनसंख्या ऄनुपात के अधार
पर ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों के वलए सीर्ों के अरक्षण का प्रािधान क्रकया
गया है। प्रत्येक जनगणना के बाद पुनः समायोजन भी क्रकया जाता है।
1.4. विधानपररषद
विधानपररषद के सदस्य परोक्ष रूप से वनिाहवचत होते हैं। विधानपररषद की सदस्य संख्या
विधानसभा की सदस्य संख्या के ऄनुरूप बदलती रहती है। पररषद की सदस्य संख्या सभा के एक
वतहाइ से ऄवधक नहीं हो सकती है और 40 (जममू-कश्मीर एक ऄपिाद है जहाँ विधानपररषद में
36 सदस्य हैं) से कम नहीं हो सकती है। आस प्रािधान को आसवलए ऄपनाया गया है ताक्रक ईच्च
सदन विधानमंडल में ज्यादा प्रभािशाली ना हो जाए।
हालांक्रक संविधान िारा ऄवधकतम और न्यूनतम सदस्य संख्या तय कर दी गयी है, लेक्रकन पररषद की
िास्तविक संख्या संसद िारा तय की जाती है। विधानपररषद का गठन वनम्नवलवखत रीवत से होता है:
1/3 सदस्य स्थानीय वनकायों जैसे नगर पावलकाओं, वजला बोडों, अक्रद के सदस्यों िारा चुने जाते
हैं।
1/3 सदस्यों का वनिाहचन राज्य विधानसभा के सदस्यों िारा क्रकया जाता है।
1/12 सदस्यों का वनिाहचन राज्य में रहने िाले ऐसे व्यवक्तयों िारा होता है जो क्रकसी
विश्वविद्यालय के कम-से-कम तीन िषह से स्नातक हैं।
1/12 सदस्यों का वनिाहचन 3 िषह से ऄध्यापन कर रहे लोग करते हैं, लेक्रकन ये ऄध्यापक
माध्यवमक विद्यालयों से कम के नहीं होने चावहए।
बाकी बचे हुए सदस्यों (1/6) का मनोनयन राज्यपाल िारा ईन लोगों के बीच से क्रकया जाता है जो
सावहत्य, विज्ञान, कला, सहकाररता अन्दोलन और समाज सेिा का विशेष ज्ञान ि व्यािहाररक
ऄनुभि रखते हों।
आस प्रकार, मोर्े तौर पर ऄगर कहा जाए तो 5/6 सदस्यों का वनिाहचन परोक्ष चुनाि के िारा होता है
और 1/6 सदस्य राज्यपाल िारा मनोनीत क्रकए जाते हैं।
राज्य विधानमंडल के सदस्यों के सदस्यता के वलए वनरहहताएँ (ऄनु. 191) संसद के सदस्यों (ऄनु.
102) के ऄनुरूप है। (सन्दभह के वलए कें द्रीय विधावयका के नो्स देखें)। वनरहहता की कु छ शततें लोक
प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम, 1951 में और दल-बदल कानून में भी िर्थणत हैं। ऄनु. 191 के तहत या
लोक प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम, 1951 के अधार पर राज्य विधानमंडल के क्रकसी सदस्य के वनरहहता
संबंधी प्रश्न पर राज्यपाल चुनाि अयोग की राय के ऄनुसार फै सला करे गा। अयोग की राय
राज्यपाल पर अबद्धकर है। आस समबन्ध में राज्यपाल का वनणहय ऄंवतम होगा।
नोर्: दल-बदल विरोधी क़ानून से समबवन्धत प्रािधानों का िणहन कें द्रीय विधावयका िाले ऄध्याय में
क्रकया गया है।
2.3 स्थानों का ररक्त होना
राज्य विधानसभा का कोइ सदस्य वनम्नवलवखत मामलों में ऄपने स्थान को ररक्त करता है:
दोहरी सदस्यता: कोइ व्यवक्त एक साथ राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों का सदस्य नहीं रह
सकता है। यक्रद कोइ व्यवक्त दोनों सदनों के वलए वनिाहवचत हो जाता है तो राज्य विधानमंडल िारा
बनायी गयी विवध के तहत एक सदन से ईसका स्थान ररक्त हो जाएगा।
वनरहहता: राज्य विधानमंडल का कोइ सदस्य यक्रद वनरहह या ऄयोग्य पाया जाता है तो ईसका स्थान
ररक्त हो जायेगा।
त्यागपत्र: कोइ सदस्य ऄपना वलवखत त्यागपत्र विधानपररषद के सभापवत या विधानसभा के
ऄध्यक्ष को सौंप सकता है। त्यागपत्र स्िीकार हो जाने के बाद ईसका स्थान ररक्त हो जायेगा।
ऄनुपवस्थवत: राज्य विधानमंडल क्रकसी सीर् को ररक्त घोवषत कर सकती है यक्रद कोइ सदस्य वबना
क्रकसी पूिह ऄनुमवत के 60 क्रदनों तक ऄनुपवस्थत रहता है।
ऄन्य मामले: राज्य विधानमंडल के क्रकसी भी सदन से क्रकसी सदस्य का पद ररक्त हो सकता है-
o यक्रद न्यायालय िारा ईसके वनिाहचन को ऄमान्य ठहरा क्रदया जाए,
o यक्रद ईसे सदन से बखाहस्त कर क्रदया जाए,
o यक्रद िह राष्ट्रपवत और ईपराष्ट्रपवत के पद पर वनिाहवचत हो जाए और
o यक्रद िह क्रकसी राज्य का राज्यपाल वनयुक्त हो जाए।
हाल ही में में ईत्पन्न ऄरुणाचल प्रदेश संकर् पर सुप्रीम कोर्ह ने ऄपना फै सला सुनाते हुए कहा क्रक
ऄध्यक्ष को संविधान की दसिीं ऄनुसूची के तहत दलबदल के वलए विधायकों को ऄयोग्य ठहराए
जाने का वनणहय लेने से ईस वस्थवत में बचना चावहए जबक्रक स्ियं ईसके विरुद्ध पद से हर्ाए जाने
के वलए संकल्प का नोरर्स लंवबत है।
दसिीं ऄनुसच
ू ी के ऄनुसार दल पररितहन के अधार पर वनरहहता के प्रश्नों पर ऄध्यक्ष या सभापवत
का विवनिय ऄंवतम होता है।
हालांक्रक आस संबंध में ऄध्यक्ष या सभापवत के वनणहय के ईपरांत न्यावयक हस्तक्षेप संभि है।
विधानपररषद सदस्य ऄपने सदस्यों में से ही सभापवत का वनिाहचन करते हैं। हालाँक्रक, िह वनम्नवलवखत
मामलों में सभापवत का पद ररक्त करता है:
यक्रद ईसकी विधानपररषद सदस्यता समाप्त हो जाए।
यक्रद िह ईपसभापवत को वलवखत त्यागपत्र सौंप दे।
यक्रद ईसे हर्ाने संबंधी प्रस्ताि सदन के कु ल सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प िारा पास हो
जाए। आस तरह का कोइ प्रस्ताि 14 क्रदन की पूिह सूचना के बाद ही प्रस्तुत क्रकया जा सकता है।
पीठासीन ऄवधकारी के रूप में सभापवत को विधानसभा ऄध्यक्ष की तरह सारी शवक्तयां प्राप्त रहती हैं,
वसफह धन विधेयक के मामले को छोड़कर, जहाँ विधानसभा ऄध्यक्ष ही ईसके धन विधेयक होने का
वनणहय लेता है। ऄध्यक्ष की तरह सभापवत के िेतन और भत्ते का वनधाहरण राज्य विधानमंडल िारा
क्रकया जाता है जो क्रक राज्य की संवचत वनवध पर भाररत होता है और सदन में मतदान के योग्य नहीं
होता है।
विधानपररषद सदस्य ऄपने सदस्यों में से ही ईपसभापवत का वनिाहचन करते हैं। हालाँक्रक, िह
वनम्नवलवखत मामलों में ईपसभापवत का पद ररक्त करता है:
यक्रद ईसकी विधानपररषद सदस्यता समाप्त हो जाए।
यक्रद िह सभापवत को वलवखत त्यागपत्र सौंप दे।
यक्रद ईसे हर्ाने संबंधी प्रस्ताि सदन के सभी सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प िारा पास हो
जाए। आस तरह का कोइ प्रस्ताि 14 क्रदन की पूिह सूचना के बाद ही प्रस्तुत क्रकया जा सकता है।
ईपसभापवत, सभापवत की ऄनुपवस्थवत में ईसके सभी कायों को करता है तथा िह सभापवत के समान
शवक्तयां धाररत करता है।
4. ऄिवध
4.1 विधानसभा की ऄिवध
विधानपररषद कभी विघरर्त न होने िाला एक स्थायी सदन है। लेक्रकन आसके एक वतहाइ सदस्य
प्रत्येक दो िषह की समावप्त पर सेिावनिृत हो जाते हैं। आस प्रकार, यह राज्यसभा की तरह एक
स्थायी वनकाय है।
5.1 सत्र
राज्यपाल विधानसभा के सदन को ऐसे समय और स्थान पर ऄवधविष्ट होने के वलए अहूत करता
है जो िह ठीक समझे। सदन साधारणतः राजधानी में ईसके वलए अरवक्षत भिन में ऄवधिेशन
करता है। ककतु कु छ सभाओं का ऄवधिेशन ऄन्य भिनों में भी हुअ है। लगभग सभी विधानसभाओं
के ऄवधिेशन एक ही नगर में होते हैं। महाराष्ट्र तथा जममू-कश्मीर विधानसभा आसके ऄपिाद हैं।
महाराष्ट्र विधानसभा का शीतकालीन ऄवधिेशन, नागपुर में होता है और जममू-कश्मीर
विधानसभा का शीतकालीन सत्र जममू में होता है।
सदन के एक सत्र की ऄंवतम बैठक और अगामी सत्र की पहली बैठक के वलए वनयत तारीख के बीच
छह माह का ऄंतर नहीं होगा। ऄन्य शब्दों में विधानसभा का ऄवधिेशन िषह में कम से कम दो बार
ऄिश्य होगा। सदन का सत्रािसान राज्यपाल िारा क्रकया जा सकता है।
5.2 राज्यपाल का ऄवभभाषण
1. यह संसद के क्रकसी भी सदन में प्रस्तुत यह राज्य विधानमंडल के क्रकसी भी सदन में प्रस्तुत
क्रकया जा सकता है। क्रकया जा सकता है।
2. यह क्रकसी मंत्री या क्रकसी गैर-सरकारी यह क्रकसी मंत्री या क्रकसी गैर-सरकारी सदस्य िारा
सदस्य िारा प्रस्तुत क्रकया जाता है। प्रस्तुत क्रकया जाता है।
3. वजस सदन में प्रारं भ क्रकया जाता है ईसमें वजस सदन में प्रारं भ क्रकया जाता है ईसमें यह प्रथम,
यह प्रथम, वितीय और तृतीय वितीय और तृतीय िाचन/पाठन से गुजरता है।
िाचन/पाठन से गुजरता है।
4. यह तभी पाररत माना जाता है जब संसद यह तभी पाररत माना जाता है जब राज्य
के दोनों सदनों की संशोधन या वबना विधानमंडल के दोनों सदनों की संशोधन या वबना
संशोधन के सहमवत हो। संशोधन के सहमवत हो।
5. दोनों सदनों के बीच गवतरोध तब ईत्पन्न दोनों सदनों के बीच गवतरोध तब ईत्पन्न होता है
होता है जब दूसरे सदन िारा पहले सदन जब विधानपररषद, विधानसभा िारा पाररत
से पाररत विधेयक को ऄस्िीकार कर क्रदया विधेयक को ऄस्िीकार करे या संशोधन प्रस्तावित
जाये या दूसरे सदन िारा विधेयक को ऐसे
करे जो विधानसभा को स्िीकायह न हो या 3 माह
संशोधनों के साथ पाररत क्रकया जाये जो
तक विधेयक को पाररत न करे ।
पहले सदन को मान्य न हो या दूसरा सदन
विधेयक को 6 माह तक पाररत न करे ।
6. संविधान में क्रकसी विधेयक पर गवतरोध संविधान में क्रकसी विधेयक के मसौदे के संबंध में
की वस्थवत के वनपर्ान हेतु संसद के दोनों गवतरोध की वस्थवत में विधानमंडल के दोनों सदनों
सदनों की संयुक्त बैठक का प्रािधान है। की संयुक्त बैठक का कोइ ईपबंध नहीं है।
7. लोकसभा दूसरी बार विधेयक को पाररत विधानसभा विधेयक पास करने में विधानपररषद
कर राज्यसभा पर ऄवभभािी नहीं हो पर ऄवभभािी हो सकती है। जब एक विधेयक
सकती और आसका विलोमतः भी सही है। विधानसभा िारा दूसरी बार पाररत कर पररषद को
भेजा जाता है तब यक्रद पररषद आसे क्रफर से
ऄस्िीकार कर दे या सुधार के वलए क्रफर कहे या एक
माह तक आसे पाररत न करे तो यह ईसी रूप में
पाररत माना जायेगा वजस रूप में विधानसभा ने आसे
पाररत क्रकया था।
8. क्रकसी विधेयक पर ईत्पन्न गवतरोध को हल दूसरी बार विधेयक को पाररत करते समय वसफह आसे
करने के वलए, चाहे िह संसद के क्रकसी भी विधानसभा से स्िीकृ वत की अिश्यकता होती है।
विधान पररषद िारा अरं भ एिं पाररत तथा
सदन के वलए हो, संयुक्त बैठक का ईपबन्ध
विधानसभा को पारे वषत विधेयक को यक्रद
है।
विधानसभा ऄस्िीकार कर दे तो िह समाप्त हो
जाता है।
1. आसे के िल लोकसभा में पुरःस्थावपत आसे के िल विधानसभा में पुरःस्थावपत क्रकया जा सकता
क्रकया जा सकता है न क्रक राज्यसभा है।
में।
4. आसे राज्यसभा िारा संशोवधत या आसे विधानपररषद िारा संशोवधत या ऄस्िीकृ त नहीं
ऄस्िीकृ त नहीं क्रकया जा सकता है। क्रकया जा सकता है आसे विधानसभा को वसफाररशों या
आसे लोकसभा को वसफाररशों या वबना क्रकसी वसफाररश के 14 क्रदनों के भीतर लौर्ा देना
वबना क्रकसी वसफाररश के 14 क्रदनों के चावहए।
भीतर लौर्ा देना चावहए।
6. यक्रद लोकसभा क्रकसी वसफाररश को यक्रद विधानसभा क्रकसी वसफाररश को स्िीकार कर लेती
स्िीकार कर लेती है तो आसे दोनों है तो आसे दोनों सदनों िारा पररिर्थतत रूप में पाररत
सदनों िारा पररिर्थतत रूप में पाररत मान वलया जाता है।
मान वलया जाता है।
9. धन विधेयक के समबन्ध में दोनों दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का कोइ प्रािधान नहीं है।
सदनों की संयुक्त बैठक का कोइ
प्रािधान नहीं है।
10. संसद िारा पाररत धन विधेयक जब क्रकसी धन विधेयक को राज्यपाल के समक्ष पेश
राष्ट्रपवत के समक्ष पेश क्रकया जाता है। क्रकया जाता है, िह सहमवत दे भी सकता है या
िह आसपर सहमवत दे भी सकता है या ऄस्िीकार कर सकता है आसके ऄवतररक्त िह राष्ट्रपवत
नहीं भी, लेक्रकन आसे पुनर्थिचार के की सहमवत के वलए सुरवक्षत रख सकता है लेक्रकन
वलए लौर्ा नहीं सकता है। पुनर्थिचार के वलए राज्य विधावयका को नहीं लौर्ा
सकता है।
राष्ट्रपवत सहमवत दे भी सकता है और नहीं भी, लेक्रकन
पुनर्थिचार के वलए लौर्ा नहीं सकता है।
नोर्: संविधान संशोधन विधेयक राज्य विधानमंडल में प्रारं भ नहीं क्रकया जा सकता।
o िह विधेयक को ऄपनी स्िीकृ वत देने से मना कर दे; तो विधेयक कानून बनने में विफल रहता है।
o धन विधेयक के ऄलािा क्रकसी ऄन्य विधेयक के मामले में, िह विधेयक को पुनर्थिचार के वलए
लौर्ा सकता है।
o िह राष्ट्रपवत के विचाराथह विधेयक को सुरवक्षत रख सकता है। संिैधावनक प्रािधानों के तहत ईच्च
न्यायालय की शवक्तयों को कम करने के मामले में आसे सुरवक्षत रखना ऄवनिायह है। राज्यपाल िारा
क्रकसी धन विधेयक को सुरवक्षत रखे जाने की वस्थवत में, राष्ट्रपवत ईस पर ऄपनी सहमवत दे भी
सकते हैं या ऄस्िीकार कर सकते है।
वनदेवशत करते हुए विधानमंडल को पुनर्थिचार के वलए लौर्ाने को कह सकते हैं। आस मामले में,
विधानमंडल को ऐसे विधेयक पर 6 माह के भीतर ऄिश्य ही पुनर्थिचार करना होता है, ईसके
बाद यक्रद आसे पाररत क्रकया जाता है तो, आसे पुन: राष्ट्रपवत के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। लेक्रकन
यह स्पष्ट है क्रक जब कोइ विधेयक राष्ट्रपवत के विचाराथह अरवक्षत है, तब वबना राष्ट्रपवत के सहमवत
के िह कानून के रूप में प्रभािी नहीं होगा। आसके ऄवतररक्त, संविधान में राष्ट्रपवत को विधेयक पर
सहमवत देने (या ऄपनी सहमवत न देने) के वलए कोइ समय सीमा तय नहीं की गयी है। फलस्िरूप,
राष्ट्रपवत राज्य विधानमंडल के क्रकसी विधेयक को ऄवनवित काल के वलए ऄपने पास रोक सकते
है।
आसके ऄलािा, जब कोइ विधेयक राष्ट्रपवत के विचाराथह रखा जाता है, तो िह संिैधावनकता के
क्रकसी प्रश्न पर आसे ऄनु.143 के तहत ईच्चतम न्यायालय के पास सलाह हेतु भेज सकता है।
राष्ट्रपवत राज्यपाल
संसद के दोनों सदनों िारा पाररत विधेयक पर सहमवत दे सकता राज्य विधावयका िारा पाररत
है। विधेयक पर सहमवत दे सकता है।
घोषणा कर सकता है क्रक िह सहमवत नहीं देगा, तो आस मामले घोषणा कर सकता है क्रक िह सहमवत
में विधेयक कानून नहीं बन पाता है। नहीं देगा, तो आस मामले में विधेयक
कानून नहीं बन पाता है।
धन विधेयक के ऄवतररक्त क्रकसी ऄन्य विधेयक के मामले में, धन विधेयक के ऄलािा क्रकसी ऄन्य
संसद िारा पाररत क्रकसी विधेयक को पुनर्थिचार के वलए लौर्ा विधेयक के मामले में, राज्य
सकता है। यक्रद विधेयक को संशोधन के साथ या संशोधन के विधानमंडल िारा पाररत क्रकसी
वबना पुनः पाररत कर क्रदया जाता है तो राष्ट्रपवत आस पर विधेयक को पुनर्थिचार के वलए लौर्ा
सहमवत देने हेतु बाध्य है। सकता है। यक्रद विधेयक को संशोधन
के साथ या संशोधन के वबना पुनः
पाररत कर क्रदया जाता है तो
राज्यपाल आस पर सहमवत देने हेतु
बाध्य है।
राष्ट्रपवत के पुनर्थिचार के वलए सुरवक्षत राज्य विधेयक के मामले राज्यपाल ऄगर क्रकसी विधेयक को
में िह वनम्नवलवखत कदम ईठा सकता है : एक बार राष्ट्रपवत के पुनर्थिचाराथह
तथा ईनके सदस्यों को कु छ विशेष ऄवधकार, ईन्मुवक्तयाँ तथा सुरक्षा प्रदान की गइ हैं।
यह ध्यान देने योग्य है क्रक संविधान ने ईन लोगों जो राज्य विधानमंडल या आसके क्रकसी सवमवत
की कारिाइयों में बोलने और भाग लेने के वलए ऄवधकृ त हैं, के विशेषावधकारों में विस्तार क्रकया है।
आसमें महावधिक्ता और राज्य के मंत्री सवममवलत हैं। आन्हें दो व्यापक श्रेवणयों में बाँर्ा गया है:
o सामूवहक विशेषावधकार का प्रयोग प्रत्येक सदन िारा सामूवहक रूप से क्रकया जाता है। आनमें,
ररपोर्ह अक्रद प्रकावशत करने का ऄवधकार, बाहरी व्यवक्तयों को सदन की कायहिाही से बाहर
विशेषावधकार सवमवत
यह एक स्थायी सवमवत है वजसका संसद / राज्य विधानसभा के प्रत्येक सदन में गठन होता है।
लोकसभा की विशेषावधकार सवमवत में 15 जबक्रक राज्यसभा की सवमवत में 10 सदस्य होते हैं
वजनको िमशः ऄध्यक्ष एिं सभापवत िारा वनयुक्त क्रकया जाता है।
आसका प्रमुख कायह, सभा ऄथिा ईसके क्रकसी सदस्य ऄथिा क्रकसी सवमवत के सदस्य के विशेषावधकार
के भंग क्रकए जाने से संबंवधत प्रत्येक प्रश्न की जांच करना, जो ईसे सभा ऄथिा ऄध्यक्ष िारा सौंपा
जाए। प्रत्येक मामले के तयों को ध्यान में रखते हुए आस बात का वनश्चय करना क्रक ्या
विशेषावधकार को भंग क्रकया गया है और ऄपने प्रवतिेदन में आस संबंध में ईपयु्त वसफाररश करना।
अधार पर दो पत्रकारों को एक िषह के कारािास का अदेश क्रदया। आससे पूिह 2003 में तवमलनाडु
विधानसभा ऄध्यक्ष ने AIADMK सरकार के समबन्ध में अलोचनात्मक लेखों के प्रकाशन के वलए
विशेषावधकार से संबंवधत एक िाद में ईच्चतम न्यायालय के फै सले से वनम्नवलवखत पहलुओं का ईल्लेख
क्रकया जा सकता है:
िारा ऄवधकृ त कोइ प्रावधकारी संसद िारा बनाए गए क्रकसी कानून के ऄवधकार क्षेत्र से बाहर
जाकर कोइ विशेषावधकार प्राप्त करना चाहता है, या कोइ नोरर्स जारी क्रकया जाता है तो ऐसे
है। न्यायालय ऐसे में विशेषावधकार हनन के मामले में सदन या ईसके ऄध्यक्ष िारा वलए गये गलत
वनणहय के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
होगा। साथ ही आनके वबना यह ऄपने सदस्यों को कतहव्यों के वनिहहन में क्रकसी ऄिरोध से सुरक्षा
प्रदान करने में भी सक्षम नहीं होगा।
अलोचना
कभी-कभी आसका प्रयोग मीवडया िारा की गयी सांसदों/विधायकों की अलोचना का विरोध करने
तथा कानूनी कायहिाही के विकल्प के रूप में क्रकया जाता है।
विशेषावधकार ईल्लंघन से संबंवधत कानून राजनीवतज्ञों को ईनके स्ियं के मामलों में ही न्याय
करने का ऄवधकार प्रदान करते हैं। आससे वहतों के र्कराि तथा ऄवभयुक्त को वनष्पक्ष सुनिाइ की
अधारभूत गारं र्ी से िंवचत करने की वस्थवत बन जाती है।
िस्तुतः आस सन्दभह में एक कानून का वनमाहण क्रकया जाना अिश्यक है जो विधायी विशेषावधकारों
को संवहताबद्ध करे साथ ही, विशेषावधकार हनन की वस्थवत में पैनल के कायों की सीमाओं को
विवहत करे तथा आस हेतु एक सुवनवित प्रक्रिया का भी वनधाहरण कर सके । विधावयका को ऄपनी
शवक्त का ईपयोग ऄिमानना या विशेषावधकार के ईल्लंघन के मामले में ही करना चावहए ताक्रक
सदन की स्ितंत्रता की रक्षा भी हो सके और अलोचकों की स्ितंत्रता को भी कम नहीं क्रकया जाए।
ऄन्य विधेयकों के मामले में भी, पररषद विधानसभा के ऄधीनस्थ है। यह क्रकसी विधेयक को ईसके
पाररत होने के बाद ऄवधकतम 4 माह के वलए रोक सकता है। ऄसहमवत के मामले में विधानसभा
विधानसभा विधानपररषद
वमजोरम- 40
सदस्यों का सािहभौवमक व्यस्क मतावधकार के 1/3 सदस्य स्थानीय वनकायों; जैस-े नगर
वनिाहचन अधार पर प्रत्यक्ष रूप से जनता के
पावलकाओं, वजला बोडों, अक्रद के सदस्यों
िारा
िारा चुने जाते हैं।
1/3 सदस्यों का वनिाहचन राज्य
विधानसभा के सदस्यों िारा क्रकया जाता
है।
1/12 सदस्यों का वनिाहचन राज्य में रहने
िाले ऐसे व्यवक्तयों िारा होता है जो क्रकसी
विश्वविद्यालय के कम-से-कम तीन िषह से
स्नातक हैं।
1/12 सदस्यों का वनिाहचन 3 िषह से
विज्ञान, कला, सावहत्य, सहकाररता अंदोलन या समाज सेिा अक्रद से संबंवधत व्यवक्तयों िारा
गरठत की जाती है। दूसरी ओर, राज्यसभा में ऄवधकांश सदस्यों को चुना जाता है (250 में से
अर्थथक वनयोजन हो या मद्य वनषेध, कु र्ीर ईद्योगों को बढ़ािा देना हो या व्यापक चसचाइ
सुविधाओं की व्यिस्था करनी हो, व्यिहार में आन सभी का क्रियान्ियन राज्य सरकार िारा ही
क्रकया जाता है। जन साधारण की क्रदन-प्रवतक्रदन की समस्याओं का समाधान राज्य सरकारों िारा
ही क्रकया जाता है। यद्यवप सभी राज्य एक ही संविधान िारा शावसत है क्रफर भी ईसकी राजनीवत
में वभन्नता विद्यमान है।
राज्य-राजनीवत के वनधाहरक तत्ि वनम्नवलवखत है:
संिध
ै ावनक तत्ि: संिैधावनक ढांचा, राज्य राजनीवत का संस्थानात्मक वनधाहरक तत्ि है। संविधान
में "राज्यों का संघ" िा्यांश का प्रयोग क्रकया गया है। राज्य की राजनीवत, कें द्रीय शासन और
राजनीवत से व्यापक रूप से प्रभावित होती है।
राजनीवतक तत्ि: राजनीवतक तत्ि के ऄंतगहत कें द्रीय नेतृत्ि और प्रधानमंत्री का व्यवक्तत्ि राज्य
राजनीवत को प्रभावित करता है। आसके ऄवतररक्त एक ही समय में विवभन्न राज्यों की राजनीवतक
वस्थवत में भी ऄंतर देखा जा सकता है। आसका कारण है मुख्यमंत्री का राज्यों की राजनीवत में प्रमुख
भूवमका वनभाना। के न्द्र और राज्यों की दलीय वस्थवत भी राज्य राजनीवत को प्रभावित करती है।
ऄल्पसंख्यकों अक्रद की वस्थवत एिं संख्या विशेष की राजनीवत, दल व्यिस्था और न्यावयक प्रक्रिया
को प्रभावित करती है।
अर्थथक तत्ि: यक्रद एक राज्य के पास पयाहप्त वित्तीय साधन है तो ईस राज्य की राजनीवत के स्ितंत्र
और स्िस्थ रूप से विकवसत होने की अशा की जा सकती है। वपछले एक दशक से अर्थथक विकास
का पहलू राज्य राजनीवत में महत्िपूणह कारक बनता जा रहा है। राज्य विशेष में संपन्न होने िाले
चुनािों में मतदाता सरकारों को आस कसौर्ी पर मापने लगे हैं क्रक िह राज्य के विकास और शासन
की गुणिता की दृवष्ट से क्रकतना काम कर पाइ।
भौगोवलक तत्ि: भौगोवलक वस्थवत राज्य के अर्थथक विकास की और परोक्ष रूप से राज्य राजनीवत
को प्रभावित करती है। सीमा पर वस्थत राज्यों में यक्रद कभी पृथकतािादी प्रिृवत्तयों का ईदय होता
है तो आसका प्रमुख कारण ईसकी भौगोवलक वस्थवत हो सकती है। आसका ईदाहरण नागालैंड और
वमजोरम है। आसके ऄवतररक्त, कु छ राज्य जनसंख्या ि क्षेत्र की दृवष्ट से विशाल और विविधताओं से
पूणह है। ऐसे राज्यों की राजनीवतक में एक-दूसरे से भेद होना स्िाभाविक है।
लाभ के पद की पररभाषा
संविधान में ‘लाभ के पद’ की पररभाषा नहीं दी गयी है क्रकन्तु पूिह वनणहयों के अधार पर वनिाहचन
अयोग के िारा लाभ के पद के परीक्षण हेतु वनम्नवलवखत पांच प्रमुख कसौरर्यों को अधार माना गया है:
o ्या पद पर वनयुवक्त सरकार के िारा की गयी है?
o ्या आन कायों को संपन्न करने की प्रक्रिया पर सरकार का वनयंत्रण बना रहता है?
िारा पाररत क्रकये जाने के पिात भी तब तक "कानून" नहीं माना जाता है, जब तक आस पर
क्रदल्ली के लेवफ्र्नेंर् गिनहर और भारत के राष्ट्रपवत िारा स्िीकृ वत प्रदान नहीं कर दी जाती है।
क्रदल्ली सरकार का तकह है क्रक संसदीय सवचि क्रकसी भी पाररश्रवमक या सरकार की ओर से भत्तों के
वलए पात्र नहीं हैं, ऄतः आस पद को “लाभ के पद” की पररभाषा से छू र् प्रदान की जानी चावहए।
पंजाब, हररयाणा, और राजस्थान अक्रद जैसे कइ राज्यों में कभी-कभार यह पद सृवजत क्रकया गया
है।
हालांक्रक, ईच्च न्यायालय में विवभन्न यावचकाओं में संसद सवचि की वनयुवक्त को चुनौती दी गइ है।
जून 2015 में, कलकत्ता ईच्च न्यायालय ने पविम बंगाल में 24 संसदीय सवचिों की वनयुवक्त
ऄसंिैधावनक ठहराते हुए वनरस्त कर दी।
आसी प्रकार की कारह िाइ बंबइ ईच्च न्यायालय, वहमाचल प्रदेश ईच्च न्यायालय अक्रद िारा भी की
गइ है।
ितहमान में, गुजरात, पंजाब और राजस्थान जैसे विवभन्न राज्यों में आस प्रकार के पदों का ऄवस्तत्ि
है।
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2.9. न्यावयक ऄवतिमण और न्यावयक सकियता (Judicial Overreach and judicial activism) ___________________ 15
न्यायालय है ि ईसके ऄधीन ईच्च न्यायालय हैं। एक ईच्च न्यायालय के ऄधीन (और राज्य स्तर के
नीचे) ऄधीनस्थ न्यायालयों (वजला न्यायालय एिं ऄन्य ऄधीनस्थ न्यायालय) की श्रेवणयां हैं।
यह एकीकृ त न्याय प्रणाली के न्रीय कानूनों के साथ-साथ राज्य के कानूनों को प्रिर्वतत करती है।
दूसरी तरफ, संयुि राज्य ऄमेररका में संघीय कानून का प्रितहन संघीय न्यायपावलका द्वारा जबकक
राज्यों के कानूनों का प्रितहन संबद् राज्य न्यायपावलकाओं द्वारा ककया जाता है।
आस एकीकृ त न्याय प्रणाली को भारत शासन ऄवधवनयम, 1935 से ग्रहण ककया गया है।
2. ईच्चतम न्यायालय
भारत के ईच्चतम न्यायालय का ईघाटाटन 28 जनिरी 1950 को ककया गया। यह भारत शासन
भारतीय संविधान के भाग V में ऄनुच्छेद 124 से 147 तक ईच्चतम न्यायालय की संरचना,
स्ितंत्रता, क्षेत्रावधकार, शवियाँ और कायहप्रणाली अकद का िणहन ककया गया है। संसद के पास
ईच्चतम न्यायालय के क्षेत्रावधकार, शवियों अकद के बारे में कानून बनाने का ऄवधकार है।
मूलतः आस न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और 7 ऄन्य न्यायाधीश थे। संसद को यह शवि है
कक िह विवध बनाकर न्यायाधीशों की संख्या विवहत करे । ितहमान समय में ईच्चतम न्यायालय में
न्यायाधीशों की संख्या मुख्य न्यायाधीश सवहत 31 है।
2.1. वनयु वि
ऄनुच्छेद 124(3) के ऄनुसार कोइ भी व्यवि ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में वनयुवि के
वलए तभी ऄहह होगा जब िह:
भारत का नागररक हो, और
ककसी एक ईच्च न्यायालय ऄथिा दो या दो से ऄवधक ऐसे न्यायालयों में कम-से-कम पाँच िषों तक
न्यायाधीश रहा हो, या
ककसी ईच्च न्यायालय ऄथिा दो या दो से ऄवधक ऐसे न्यायालयों में कम-से-कम दस िषों तक
िकालत कर चुका हो, या
राष्ट्रपवत की राय में प्रख्यात न्यायविद (पारं गत विवधिेत्ता) हो।
ऄनुच्छेद 124 (2) के ऄनुसार ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की वनयुवि भारत का राष्ट्रपवत ईच्चतम
न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ि ईच्च न्यायालयों के कु छ ऐसे न्यायाधीशों से परामशह करने के पश्चात्,
वजनसे राष्ट्रपवत आस प्रयोजन के वलए परामशह करना अितयक समझे, ऄपने हस्ताक्षर और मुरा सवहत
ऄवधपत्र द्वारा ईच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को वनयुि करे गा और िह न्यायाधीश तब तक
पद धारण करे गा जब तक िह 65 िषह की अयु प्राप्त नहीं कर लेता है।
ईच्चतम न्यायालय ने ‘परामशह’ शलद की व्याख्या तीन न्यायाधीश िादों (Three Judges
Cases) (1982, 1993, 1998) में विवभन्न तरीके से ककया है। तीसरे न्यायाधीश िाद के ईपरांत
ितहमान पररदृतय में ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की वनयुवि कॉलेवजयम, वजसमें ईच्चतम
न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा चार ऄन्य िररष्ठतम न्यायाधीश शावमल होते हैं, के सलाह पर
(प्रकृ वत में बाध्यकारी) राष्ट्रपवत द्वारा की जाती है।
तीसरे न्यायाधीश िाद, 1998 में न्यायालय ने मत कदया कक भारत के मुख्य न्यायाधीश और चार
ज्येष्ठतम न्यायाधीशों से वमलकर बनने िाली कॉलेवजयम में जो बहुमत की राय होगी िही
वनधाहरक होगी।
ऄनुच्छेद 124(2) में यह ईललेख है कक ईच्चतम न्यायालय में वनयुि कोइ न्यायाधीश ऄपनी वनयुवि के
पश्चात् तब तक नहीं हटाया जा सकता (मृत्यु को छोड़कर) जब तक कक िह:
65 िषह की अयु प्राप्त नहीं कर लेता।
राष्ट्रपवत को संबोवधत करते हुए ऄपना त्यागपत्र सौंप दे।
सावबत कदाचार या ऄसमथहता के अधार पर भारत के संविधान के ऄनु. 124(4) में वनधाहररत
प्रकिया के तहत राष्ट्रपवत द्वारा हटा कदया जाए।
2.1.4. िे त न
भारतीय संविधान का ऄनु. 125 िेतन, भत्ते, पेंशन अकद के वनधाहरण की वजममेदारी संसद पर
डालता है। हालांकक संसद ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की वनयुवि के बाद न्यायाधीशों के
विशेषावधकारों और ऄवधकारों में कोइ पररितहन नहीं कर सकती है। ईच्चतम न्यायालय के
न्यायाधीशों के िेतन, भत्ते तथा पेंशन भारत की संवचत वनवध पर भाररत होते हैं और संसद में गैर-
मतदान योग्य होते हैं।
2.2. न्यायाधीशों को हटाना
ऄनुच्छेद 127(1) के ऄनुसार यकद ककसी समय ईच्चतम न्यायालय के सत्र को अयोवजत करने या
जारी रखने के वलए ईस न्यायालय के न्यायाधीशों की गणपूर्वत न हो रही हो तो भारत का मुख्य
न्यायाधीश राष्ट्रपवत की पूिह सहमवत से और संबंवधत ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से
परामशह करने के पश्चात्, ककसी ईच्च न्यायालय के ककसी ऐसे न्यायाधीश को, जो ईच्चतम न्यायालय
का न्यायाधीश वनयुि होने के वलए समयक् रूप से ऄहह है, न्यायालय की बैठकों में ईतनी ऄिवध के
वलए, वजतनी अितयक हो, तदथह न्यायाधीश के रूप में वनयुि कर सकता है।
तदथह न्यायाधीश का कत्तहव्य होता कक िह ईच्चतम न्यायालय की बैठकों में ईपवस्थवत हो। जब िह
आस प्रकार ईपवस्थत होता है तब ईसको ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की सभी ऄवधकाररता,
शवियाँ और विशेषावधकार प्राप्त होते हैं।
ऄनु. 128 के ऄनुसार भारत का मुख्य न्यायाधीश, ककसी भी समय, राष्ट्रपवत की पूिह सहमवत से
ककसी व्यवि से, जो ईच्चतम न्यायालय या फे डरल न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर
चुका है या जो ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है और ईच्चतम न्यायालय का
न्यायाधीश वनयुि होने के वलए समयक् रूप से ऄर्वहत है, ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप
में बैठने और कायह करने का ऄनुरोध कर सकता है।
प्रत्येक ऐसा व्यवि, वजससे आस प्रकार ऄनुरोध ककया जाता है, आस प्रकार बैठने और कायह करने के
दौरान, ऐसे भत्तों का हकदार होगा जो राष्ट्रपवत अदेश द्वारा ऄिधाररत करे ।
ऐसे न्यायाधीश को ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की सभी ऄवधकाररता, शवियाँ और
विशेषावधकार प्राप्त होते हैं, ककन्तु ईसे ईच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगा।
संविधान के ऄनु. 130 के ऄनुसार, ईच्चतम न्यायालय का स्थान कदलली में घोवषत है। राष्ट्रपवत के
ऄनुमोदन से मुख्य न्यायाधीश ईच्चतम न्यायालय के स्थान स्थानों के वलए ऄन्य जगहों को ऄवधकृ त कर
सकता है।
ईच्चतम न्यायालय के पास मूल, ऄपीलीय तथा सलाहकारी क्षेत्रावधकार हैं (ऄनु. 131-144)।
यह न के िल एक संघीय न्यायालय है बवलक ऄपील के वलए ऄंवतम न्यायालय भी है। साथ ही,
संविधान का ऄंवतम व्याख्याता और नागररकों को मूल ऄवधकारों की गारं टी भी प्रदान करने िाला
भी है। आसके ऄलािा आसे सलाहकारी और पयहिेक्षीय ऄवधकार भी हैं।
ऄनु. 131 के ऄनुसार ईच्चतम न्यायालय के पास वनम्नवलवखत विवशष्ट मूल क्षेत्रावधकार हैं:
भारत सरकार और एक या ऄवधक राज्यों के बीच वििाद;
एक पक्ष में भारत सरकार और ककसी भी राज्य या राज्यों का होना एिं एक या ऄवधक राज्यों का
दूसरी पक्ष में होना; और
दो या ऄवधक राज्यों के बीच वििाद, जहां वििाद में कोइ ऐसा मुद्दा है वजसमें कानून या तथ्य का
प्रश्न हो।
ईच्चतम न्यायालय के आस क्षेत्रावधकार में वनम्नवलवखत विस्तार समावहत नहीं है:
ऄंतराहज्यीय जल वििाद;
वित्त अयोग से संबंवधत मामले;
कें र और राज्यों के बीच खचह का समायोजन;
िावणवज्यक प्रकृ वत के साधारण वििाद;
ररट क्षेत्रावधकार
ऄनु. 32 के ऄधीन ईच्चतम न्यायालय के पास मूल ऄवधकारों के प्रितहन के संबंध में ररट
क्षेत्रावधकार हैं। ईच्चतम न्यायालय को ऄवधकार प्राप्त है कक िह बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas
ईच्चतम न्यायालय ने स्ितंत्रता के बाद ऄपील की सिोच्च ऄदालत के रूप में विरटश वप्रिी काईं वसल को
प्रवतस्थावपत ककया। ऄपीलीय क्षेत्रावधकार को वनम्नवलवखत शीषहकों में विभावजत ककया गया है:
संिध
ै ावनक मामले: संिैधावनक मामलों में ईच्चतम न्यायालय के ऄपीलीय क्षेत्रावधकार के तहत ईच्च
न्यायालय के द्वारा कदए गये फै सले के वखलाफ ऄपील की जा सकती है। यकद ईच्च न्यायालय ही आसे
प्रमावणत करे कक मामले में विवध का प्रश्न वनवहत है वजसमें संविधान की व्याख्या की अितयकता
है, तो ऄपील की जा सकती है (ऄनु. 132)।
दीिानी मामले: दीिानी मामलों के तहत ककसी भी मामले को ईच्चतम न्यायालय में लाया जा
ऄनु. 143 के ऄनुसार कु छ मामलों में ईच्चतम न्यायालय के पास विशेष सलाहकारी क्षेत्रावधकार है,
वजसमें विशेष रूप से राष्ट्रपवत को ईच्चतम न्यायालय से सलाह लेने का ऄवधकार है। आसे दो श्रेवणयों में
बांटा गया है:
सािहजवनक महत्ि के ककसी मसले पर विवधक प्रश्न ईठने पर या वजसके ईत्पन्न होने की संभािना
हो।
संविधान पूिह के ककसी संवध, समझौता, िाचा, प्रसंविदा, सनद अकद से ईत्पन्न ककसी भी वििाद
या सिाल पर।
पहले मामले में, ईच्चतम न्यायालय सलाह दे भी सकता है और मना भी कर सकता है, जबकक दूसरे
मामले में ईच्चतम न्यायालय को सलाह देना ऄवनिायह है। हालांकक, दोनों ही मामलों में राष्ट्रपवत के वलए
सलाह मानना बाध्यकारी नहीं हैं। ईच्चतम न्यायालय के सलाह को मानना या न मानना राष्ट्रपवत के
उपर है।
2.7.4. ईच्चतम न्यायालय का ऄवभले ख न्यायालय होना
ईच्चतम न्यायालय ऄवभलेख न्यायालय है (ऄनु. 129)। ऄवभलेख न्यायालय ऐसा न्यायालय होता है
वजसे विवध द्वारा ऄवभव्यि रूप से आस प्रकार घोवषत ककया जाए। ऄवभलेख न्यायालय की वनम्नवलवखत
विशेषताएं होती हैं:
(i) आसके वनणहय और कायहिावहयां शाश्वत स्मृवत और साक्ष्य के वलए रखी जाती हैं। ईसके ऄवभलेख का
साक्ष्य की दृवष्ट से महत्ि होता है। जब िह न्यायालय में प्रस्तुत ककया जाता है तो ईसे प्रश्नगत नहीं ककया
जा सकता। ऄवभलेख में जो ऄंतर्विष्ट होता है ईसका िह वनश्चायक साक्ष्य होता है। एिं
(ii) ऄवभलेख न्यायालय को ऄिमानना के वलए दंड देने की शवि होती है।
हमारे संविधान ने ईच्चतम न्यायालय को ऄवभव्यि रूप से ऄिमानना के वलए दंड देने की शवि दी
हैं (ऄनु. 129)। िास्ति में ऄनुच्छेद 129 और 215 ने पहले से विद्यमान वस्थवत को मान्यता दी है।
ये ऄनुच्छेद कोइ नइ शवि प्रदान नहीं करते।
न्यायालय ऄिमानना ऄवधवनयम, 1971 आन ऄनुच्छेदों के ऄवतररि है। िह आनका ऄलपीकरण
नहीं करता।
ऄिमानना दो प्रकार का होता है: वसविल ऄिमानना और दांवडक ऄिमानना।
वसविल ऄिमानना: जब कोइ व्यवि जानबूझकर न्यायालय के ककसी वनणहय, वडिी, अदेश या
अदेवशका की ऄिञापा करता है या न्यायालय के कदए गए ककसी िचन को भंग करता है या ईसका
सममान नहीं करता है तो ईसे वसविल ऄिमानना कहते हैं।
ऄनु. 137 के ऄनुसार ईच्चतम न्यायालय के पास स्ियं के द्वारा कदए गए वनणहय या अदेश की
समीक्षा का ऄवधकार है। हालांकक यह ऄनुच्छेद आसके फै सले की समीक्षा के अधार की कोइ सीमा
तय नहीं करता है, परन्तु आस शवि के प्रयोग करने के अधार को संसदीय विधान द्वारा एिं ऄनु.
145 के तहत ईच्चतम न्यायालय के द्वारा स्ियं ही प्रवतबंवधत ककया जा सकता है।
ऄपने फै सले की समीक्षा के वलए दायर यावचका को ‘पुनर्विचार यावचका” कहते हैं। जबकक एक
दूसरे प्रकार के समीक्षा यावचका को “ईपचारात्मक यावचका” (दोषहरी यावचका Curative
Petition) कहा जाता है।
ईच्चतम न्यायालय द्वारा घोवषत सभी क़ानून भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर, सभी ऄदालतों पर
बाध्यकारी हैं। [ऄनु. 141]
भारत के राज्यक्षेत्र के सभी वसविल और न्यावयक प्रावधकारी ईच्चतम न्यायालय की सहायता में
कायह करें गे। [ऄनु. 144]
ईच्चतम न्यायालय के ऄवधकाररयों और सेिकों की वनयुवियाँ भारत का मुख्य न्यायाधीश करे गा या
ईस न्यायालय का ऐसा ऄन्य न्यायाधीश या ऄवधकारी करे गा वजसे िह वनर्ददष्ट करे । ईच्चतम
न्यायालय के प्रशासवनक व्यय वजनके ऄतंगत
ह ईस न्यायालय के ऄवधकाररयों और सेिकों के िेतन,
भत्ते और पेंशन शावमल हैं, भारत की संवचत वनवध पर भाररत होंगे। [ऄनु. 146]
ऄनु. 142 के ऄनुसार ईच्चतम न्यायालय ऄपनी ऄवधकाररता का प्रयोग करते हुए ऐसी वडिी
पाररत कर सके गा या ऐसा अदेश पाररत कर सके गा जो ईसके समक्ष लंवबत ककसी िाद या विषय
में पूणह न्याय करने के वलए अितयक हो।
ऄनुच्छेद 142 और न्यावयक संयम की अितयकता (Article 142 And The Need For Judicial
Restraint)
राजमागों के ककनारे शराब की वबिी को प्रवतबंवधत करने एिं बाबरी मवस्जद विध्िंस से संबंवधत मामलों
पर संयुि ैायल का अदेश देने जैसे कइ मामलों में ईच्चतम न्यायालय के द्वारा ऄनु. 142 के लगातार
ईपयोग की अलोचना की जा रही है। आसवलए यह ऄनुच्छेद लगातार चचाह में बना हुअ है।
नचता का कारण
ऄसीवमत शवि: ऄनु. 142 ऄसीवमत शवि का स्रोत नहीं है और आसका ईपयोग संयम के साथ करना
चावहए। आसका आस प्रकार प्रयोग ककया जाना चावहए कक यह न्यावयक ऄवतसकियता प्रतीत ना हो।
नागररकों के ऄवधकारों को प्रभावित करता है: आन दो वनणहयों ने एक ओर जहाँ अरोपी के ऄवधकारों
को प्रभावित ककया है, िहीं दूसरी ओर आसके कारण लाखों लोगों के समक्ष बेरोजगारी की वस्थवत
ईत्पन्न हो गइ है।
‘शवि के पृथक्करण' के वसद्ांत के विरुद्: ईललेखनीय है कक शवि का पृथक्करण संविधान के मूल ढाँचे
का वहस्सा है।
चूंकक ईच्चतम न्यायालय के 31 न्यायाधीश, वनणहय करने के वलए दो या तीन न्यायाधीशों को
वमलाकर बनने िाली बेंच के रूप में तेरह वडिीजनों में बैठते हैं और प्रत्येक बेंच एक-दूसरे से स्ितंत्र
होती है। ऄत: वििेकावधकारों के बारे में ऄवनवश्चतता ईत्पन्न होती है।
हालांकक पूिह में ईच्चतम न्यायालय ने ऄनु. 142 का प्रयोग ईवचत रूप से ककया है, जैस-े यूवनयन काबाहआड
के स, ताजमहल की सफाइ, जेलों से विचाराधीन (ऄंडरैायल) कै कदयों की ररहाइ आत्याकद। कफर भी, ऄनु.
142 के प्रयोग के दौरान समाज के विवभन्न िंवचत िगों को समपूणह न्याय प्रदान करने के वलए कु छ वनयमों
के ऄनुसरण पर विचार ककया जाना चावहए, जैसे:
ऄनु. 142 से संबंवधत मामलों को कम से कम पाँच न्यायाधीशों से वमलकर बनने िाली संविधान
पीठ को भेजा जाना चावहए ताकक ऄनु. 142 से संबंवधत ऄवनवश्चतताओं को कम ककया जा सके ।
वजन मामलों में ऄदालत के द्वारा ऄनु. 142 का प्रयोग ककया जाता है, ईनके संबंध में सरकार को
आसके लाभकारी एिं नकारात्मक प्रभािों का ऄध्ययन करने के वलए एक श्वेतपत्र लाना चावहए।
वनणहय की वतवथ से छह माह के बाद या आससे संबंवधत वतवथ से आस प्रकिया को अरमभ ककया जा
सकता है।
ईच्चतम न्यायालय को ऄपने बार-बार दोहराए गए ईस वसद्ांत का पालन करना चावहए वजसके
ऄनुसार ऄन्य कोइ िैधावनक ईपाय ईपललध होने पर संविधान के ऄनु. 142 का प्रयोग ऄनुवचत है।
ईच्चतम न्यायालय कें र और राज्य द्वारा बनाये गये ककसी भी ऄवधवनयम या विधान जो संविधान
का ऄवतिमण करते हैं, को शून्य घोवषत कर सकता है। न्यावयक समीक्षा संविधान की सिोच्चता को
कायम रखने, संघीय संतल
ु न को बनाये रखने और नागररकों के मूल ऄवधकारों की सुरक्षा के ईद्देतय
से अितयक हैं। ईच्चतम न्यायालय ने गोलकनाथ मामले (1967), बैंकों के राष्ट्रीयकरण के मामले
(1970), वमनिाह वमलस मामला (1980) अकद जैसे विवभन्न मामलों में आस शवि का प्रयोग ककया
है।
ईच्चतम न्यायालय में ककसी विधायी ऄवधवनयम या ककसी कायहकारी अदेश की संिैधावनक िैधता
को तीन अधारों पर चुनौती कदया जा सकता है:
o यह मूल ऄवधकारों (भाग 3) का ईललंघन करता हो,
o यह विधावयका द्वारा ईसके ऄवधकार क्षेत्र के बाहर जाकर बनाया गया हो,
o यह संिैधावनक प्रािधानों के प्रवतकू ल हो।
यद्यवप न्यावयक समीक्षा शलद का ईललेख संविधान में कहीं नहीं ककया गया है, लेककन कइ
ऄनुच्छेदों के प्रािधान स्पष्ट रूप से ईच्चतम न्यायालय को न्यावयक समीक्षा की शवि प्रदान करते
हैं।
भारतीय ईच्चतम न्यायालय “विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया” (Procedure established by
Law) जबकक ऄमेररकी ईच्चतम न्यायालय “विवध की ईवचत समयक प्रकिया” (Due process of
Law) (दोनों के बीच ऄंतर की चचाह बाद में की गयी है) को ध्यान में रखते हुए वनणहय देती है। कइ
मामलों में यह देखा गया है कक भारतीय ईच्चतम न्यायालय ने कइ वनणहयों में ‘विवध की ईवचत
प्रकिया’ का आस्तेमाल ककया है और यह शीघ्रता से वनणहयन प्रकिया में स्थान पा वलया है। न्यायमूर्वत
पी. एन. भगिती ने मेनका गांधी िाद में कहा कक जब कोइ ऄवधकार से िंवचत हो रहा है तब
संविधान न्यायालय को “वनष्पक्ष प्रकिया” के तहत ऄपना काम करने की छू ट देता है।
2.7.8. कु छ ऄन्य महत्िपू णह वसद्ां त वजसका प्रयोग न्यावयक समी क्षा के मामले में ककया
जाता है
पृथक्करण का वसद्ांत
ऄनु. 13 में यह कहा गया है कक विवधयां ऄसंगत होने की या ईललंघन की मात्रा तक शून्य होंगी।
ऄसंगतता या ईललंघन का प्रभाि संपण
ू ह विवध या कायह पर नहीं पड़ता। ऄनु. 13 ईसके प्रभाि को
ऄसंगतता की मात्रा तक बांधे रखता है। यकद ये शलद नहीं होते तो ऄसंगत विवध पूरी की पूरी शून्य
हो जाती। आस प्रकार स्पष्ट है कक विवध का िही भाग शून्य घोवषत ककया जाएगा जो मूल ऄवधकार
के विरूद् हो। दूसरे शलदों में पृथक्करण का वसद्ांत लागू होगा। आस प्रकार पृथक्करण का वसद्ांत यह
है कक यकद ककसी ऄवधवनयम का ऄवतितहन (ईललंघन) करने िाला ईपबंध मूल ऄवधकार के
प्रवतकू ल या ऄसंिैधावनक है तो ईस विशेष भाग को पृथक ककया जा सकता है और के िल ईललंघन
करने िाले ईपबंध को ही शून्य घोवषत ककया जाएगा, समपूणह ऄवधवनयम को नहीं।
नोट: शवि के पृथक्करण का वसद्ांत िस्तुतः कायहपावलका, विधावयका एिं न्यायपावलका के बीच
शवियों का विभाजन है।
2.8. न्याय प्रणाली के िै चाररक अधार
2.8.1. विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया (Procedure established by Law) बनाम विवध
की ईवचत प्रकिया (Due process of Law)
‘विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया’ का जन्म मूलतः आं ग्लैंड में हुअ है। आसका शावलदक ऄथह विवध द्वारा
वनधाहररत प्रकियाओं और ईनके प्रयोगों’ से है। आस वसद्ांत के तहत न्यायालय विधायी सक्षमता की
दृवष्ट से ककसी क़ानून की समीक्षा करता है और यह ऄवभवनधाहररत करती है कक विधावयका द्वारा
वनधाहररत प्रकिया का पालन ककया जा रहा है या नहीं। यकद कायहपावलका की ककसी कायहिाही को
न्यायालय में चुनौती दी जाती है तो न्यायालय कायहपावलका की कायहिाही को वनम्नवलवखत तरीके
से जांच कर सकती है:
o क्या कोइ ऐसा क़ानून ऄवस्तत्ि में है जो कायहपावलका को ऐसी विवध बनाने की ऄनुमवत देती
है;
o क्या विधावयका आस तरह के क़ानून को पाररत करने के वलए ऄवधकृ त थी;
o जब विधावयका ईस क़ानून को बना रही थी तब स्थावपत प्रकिया का पालन ककया गया या
नहीं।
यकद ईपयुहि जांच से न्यायालय संतुष्ट है तो िह कायहपावलका के ईस कायहिाही को जारी रखेगी।
न्यायालय क़ानून की वसफह वनष्पक्ष और प्राकृ वतक औवचत्य के अधार की ही जांच नहीं करती है
ऄवपतु यह भी जांच करती है कक ईसे कानूनी प्रकियागत औपचाररकताओं के अधार पर पाररत
ककया गया है या नहींI
दूसरी ओर, ‘विवध की ईवचत प्रकिया’ वसद्ांत का जन्म ऄमेररका में हुअ, वजसके तहत
न्यायपावलका को ज्यादा शवियां प्रदान की गयी हैं। आसके तहत न्यायालय ककसी विवध की ईपयुहि
तीन अधारों पर जांच के ऄलािा न्याय के प्राकृ वतक वसद्ांत के तहत और ऄवधक व्यापक दृवष्टकोण
से जांच करती है। विवध की ईवचत प्रकिया से तात्पयह यह है कक विधावयका द्वारा पाररत क़ानून
वनष्पक्ष, तकह पूणह और विचारपूणह हो न कक कालपवनक, दमनकारी और स्िेच्छाचारी। आस प्रकार,
यह कायहपावलका और विधावयका दोनों की स्िेच्छाचाररता के वखलाफ ककसी व्यवि को सुरक्षा
प्रदान करती है।
ऄनु. 21 के तहत भारतीय संविधान ने के िल विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया का प्रािधान ककया है।
हालांकक, मेनका गाँधी बनाम भारत संघ िाद, 1978 में ईच्चतम न्यायालय ने संविधान के ऄनु.
21 की व्याख्या में प्राकृ वतक न्याय के वसद्ांत को शावमल ककया।
प्राकृ वतक न्याय का वसद्ांत तीन वनयमों के तहत कायह करता है:
o ककसी भी व्यवि को वबना सुनिाइ के सजा नहीं दी जा सकती है।
o कोइ भी व्यवि ऄपने ही मामले का न्यायाधीश नहीं हो सकता है।
o एक प्रावधकरण वबना ककसी पूिाहग्रह के कायह करे गा।
प्राकृ वतक न्याय के वसद्ांतों की विषय-िस्तु स्िेच्छाचाररता की संभािनाओं को ख़त्म कर देती है
और वनणहय लेने की प्रकिया में वनष्पक्षता पर जोर देती है। आनकी प्रकृ वत सािहभौवमक होती हैं।
ईच्चतम न्यायालय ने यह वनणहय कदया है कक प्राकृ वतक न्याय का वसद्ांत सभी ऄवधकाररयों,
व्यवियों और खुद न्यायपावलका पर भी बाध्यकारी रूप से लागू है। हालांकक, िे हमारे संविधान में
स्पष्ट रूप से शावमल नहीं हैं, लेककन कफर भी न्यायालय आसे ऄन्तर्वनवहत विशेषता मानती है।
मेनका गाँधी बनाम भारत संघ िाद, 1978 में ईच्चतम न्यायालय ने कहा है कक प्राकृ वतक न्याय के
वसद्ांतों को हम संविधान के ऄनु. 21 (जीिन का ऄवधकार) में देख सकते हैं और विधावयका आस
मामले में ‘विवध की ईवचत प्रकिया’ का पालन करने हेतु बाध्य है।
संविधान में ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की स्िाधीनता और वनष्पक्षता सुवनवश्चत करने के वलए
वनम्नवलवखत ईपबंध हैं:
वनयुवियां राष्ट्रपवत द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश (ईच्चतम न्यायालय और ईच्च न्यायालय के
न्यायाधीश की दशा में) से परामशह के पश्चात् की जाती है। आससे यह सुवनवश्चत हो जाता है कक
वनयुवियां राजनीवतक अधार पर या वनिाहचन में लाभ के वलए नहीं की जा रही है और
राजनीवतक तत्त्ि समाप्त हो जाता है।
न्यायाधीशों को भयमुि होकर काम करने की छू ट है। वनणहय में चाहे वजतनी गंभीर भूल हो जाए
ईसे कदाचार नहीं माना जाता। न्यायाधीश को सावबत कदाचार या ऄसमथहता के अधार पर ही
राष्ट्रपवत द्वारा हटाया जा सकता है। राष्ट्रपवत, न्यायाधीश को अदेश तभी देगा जब संसद के दोनों
सदनों के विशेष बहुमत द्वारा समािेदन पाररत ककया जाए और राष्ट्रपवत को प्रस्तुत ककया जाए।
यह एक जरटल और कष्टसाध्य प्रकिया है।
कायहपावलका राष्ट्रपवत के प्रसादपयंत पद धारण करती है। यह वनयम वसविल सेिकों और सैन्य
बलों के वलए लागू होता है। राज्यपालों की भी यही वस्थवत है। ककतु प्रसाद का वसद्ांत न्यायाधीशों
को लागू नहीं होता। यकद िे कदाचरण नहीं करते हैं तो ईन्हें पद से नहीं हटाया जा सकता।
ईच्चतम न्यायालय के ऄवधकारी और सेिक मुख्य न्यायाधीश द्वारा वनयुि ककए जाते हैं और
न्यायालय का प्रशासवनक व्यय भारत की संवचत वनवध पर भाररत होता है (ऄनु. 146 और 229)।
न्यायाधीशों के िेतन, भत्ते, पेंशन और छु ट्टी संसद् द्वारा बनाइ गइ विवध द्वारा ऄिधररत ककए जाते
हैं और ईसमें न्यायाधीशें के वलए ऄलाभकारी पररितहन नहीं ककया जा सकता। न्यायाधीश की
पदािवध के दौरान ईसका िेतन और भते घटाए नहीं जा सकते (के िल ऄनु. 360 के ऄधीन वित्तीय
अपात में कम ककए जा सकते हैं)।
ककसी न्यायाधीश के ऄपने कत्तहव्यों के वनिहहन में ककए गए अचरण के विषय में संसद या राज्य
विधान-मंडल में कोइ चचाह नहीं हो सकती (ऄनु. 121)।
ईच्चतम न्यायालय का सेिावनिृत्त न्यायाधीश भारत के ककसी न्यायालय या प्रावधकारी के समक्ष
ऄवभिचन या कायह नहीं कर सकता। (कोइ व्यवि जो ककसी ईच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश
रहा हो ईच्चतम न्यायालय या वजस न्यायालय में िह वनयुि ककया गया था ईससे वभन्न ककसी ईच्च
न्यायालय के समक्ष ऄवभिचन या कायह कर सकता है)।
ईच्चतम न्यायालय और ईच्च न्यायालय को ऄपनी ऄिमानना के वलए दंड देने की शवि प्राप्त है।
भारत और ऄमेररकी न्यावयक व्यिस्था में बुवनयादी ऄंतर है। जहाँ भारत में एकीकृ त न्यावयक प्रणाली है
िहीं ऄमेररकी न्यावयक प्रणाली संघीय वसद्ांत पर अधाररत है। कफर भी आनमें कइ समानतायें भी हैं।
भारतीय ईच्चतम न्यायालय को ऄमेररकी ईच्चतम न्यायालय की तुलना में वनम्नवलवखत मामलों में ज्यादा
ऄवधकार प्राप्त हैं:
ऄमेररकी सिोच्च न्यायालय के ऄपीलीय क्षेत्रावधकार संघीय संबंध से ईत्पन्न होने िाले मामलों तक
ही सीवमत हैं, जबकक हमारा ईच्चतम न्यायालय संघीय न्यायालय होने के ऄलािा संविधान का
जबकक आस मामले में ऄमेररकी सिोच्च न्यायालय को संविधान द्वारा सीवमत ककया गया है।
िहीं ऄमेररकी सिोच्च न्यायालय को वनम्नवलवखत दृवष्टकोण से ऄवधक ऄवधकार प्राप्त हैं:
भारतीय ईच्चतम न्यायालय के मूल क्षेत्रावधकार संघीय मामलों तक ही सीवमत हैं जबकक ऄमेररकी
सिोच्च न्यायालय न के िल संघीय मामलों को बवलक नौसैवनक बलों, समुरी गवतविवधयों, राजदूतों
कारण व्यापक है जबकक भारतीय सन्दभह में ‘विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया’ का आस्तेमाल ककया
जाता है।
judicial activism)
राज्य के विवभन्न ऄंगों और न्यायपावलका के मध्य शासन के दो ऄन्य महत्िपूणह ऄंगों ऄथाहत्
शवियों की पुनव्याहख्या के माध्यम से कायहपावलका या विधावयका की शवियों को न्यावयक
न्यायपावलका द्वारा ऄपने ऄवधकारों का प्रयोग सकियता के नाम पर ऄवधग्रहण कर जब
ही न्यावयक सकियता कहलाता है। न्यायपावलका ईनका बेवहचक प्रयोग करती है तो आसे
न्यावयक ऄवतिमण कहा जाता है।
ICMIS के कायह:
वलनस्टग की वतवथ, के स की वस्थवत, सूचना सममन की ऑनलाआन सुविधा, कायाहलय ररपोटह तथा
ईच्चतम न्यायालय के पंजीकरण कायाहलय में दावखल िादों के संबध
ं में समग्र रूप से हुइ प्रगवत की
ऑनलाआन जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
यह न्यायालय से संबंवधत शुलकों और प्रकिया शुलक के भुगतान के वलए एक ऑनलाआन गेटिे तथा
एक ऑनलाआन कोटह फी कै लकु लेटर के रूप में कायह करे गा।
ICMIS के लाभ:
यह ऄवधििाओं और पंजीकरण कायाहलय दोनों के वलए फाआनलग प्रकियाओं को सुव्यिवस्थत
करे गा।
यह पारदर्वशता को सुवनवश्चत करे गा, के स से जुड़ीं जानकारी तक असान पहुंच प्रदान करे गा और
कम समय में यावचका दावखल करने में मदद करे गा।
2.10.1. ईच्चतम न्यायालय कॉले वजयम की कायह िाही पवललक डोमे न में
VISIONIAS
www.visionias.in
3. न्यायाधीशों की श्रेवणयां_________________________________________________________________________ 4
3.2. कायहकारी मुख्य न्यायाधीश [ऄनुच्छेद 223] (Acting Chief Justice) ____________________________________ 5
3.3. ऄपर और कायहकारी न्यायाधीश [ऄनुच्छेद 224] (Additional and Acting Judges) _________________________ 5
1. पररचय
भारत के संविधान में प्रत्येक राज्य के वलए एक ईच्च न्यायालय की व्यिस्था की गइ थी, लेककन
न्यावयक क्षेत्र, शवियां, प्रकिया और आनसे संबवं धत ऄन्य मुद्दों के बारे में बताया गया है।
ितहमान में देश में राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के वलए 24 ईच्च न्यायालय हैं। भारत में ईच्च
न्यायालय संस्था का सिहप्रथम गठन 1962 में तब हुअ, जब कलकत्ता, बम्बइ और मद्रास ईच्च
न्यायालयों की स्थापना हुइ। भारतीय ईच्च न्यायालय ऄवधवनयम, 1861 के ईपबंधों के तहत आन
तीन ईच्च न्यायालयों की स्थापना की गइ। 1866 में चौथे ईच्च न्यायालय की स्थापना आलाहाबाद
में हुइ। माचह 2013 तक, ईच्च न्यायालयों की संख्या 21 थी, तत्पश्चात 'पूिोत्तर क्षेत्र (पुनगहठन) एिं
ऄन्य संबंवधत कानून (संशोधन) ऄवधवनयम, 2012' द्वारा मवणपुर, वत्रपुरा और मेघालय में तीन
ईच्च न्यायालयों की स्थापना की गइ।
कु छ ईच्च न्यायालयों के न्यावयक क्षेत्र का ऄन्य राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों तक विस्तार हैं:
o बंबइ ईच्च न्यायालय का न्यावयक क्षेत्र महाराष्ट्र, गोिा, दादरा एिं नगर हिेली और दमन एिं
दीि तक विस्तृत है।
o कलकत्ता ईच्च न्यायालय का न्यावयक क्षेत्र पवश्चम बंगाल और ऄंडमान एिं वनकोबार द्वीप
समूह तक विस्तृत है।
o गुिाहाटी ईच्च न्यायालय का न्यावयक क्षेत्र ऄरुणाचल प्रदेश, ऄसम, नागालैंड और वमजोरम
तक विस्तृत है।
o के रल ईच्च न्यायालय के न्यावयक क्षेत्र में के रल और लक्षद्वीप को सवम्मवलत ककया गया है।
o मद्रास ईच्च न्यायालय का न्यावयक क्षेत्र तवमलनाडु और पुदच
ु रे ी तक विस्तृत है।
o पंजाब एिं हररयाणा ईच्च न्यायालय का न्यावयक क्षेत्र पंजाब और हररयाणा राज्यों के साथ-
साथ संघ राज्य क्षेत्र चंडीगढ़ तक विस्तृत है।
o के िल कदल्ली एकमात्र ऐसा संघ राज्य क्षेत्र है, वजसका ऄपना एक ईच्च न्यायालय है।
संसद एक ईच्च न्यायालय के न्यावयक क्षेत्र का विस्तार, ककसी संघ राज्य क्षेत्र में कर सकती है ऄथिा
ककसी संघ राज्य क्षेत्र को, ईच्च न्यायालय के न्यावयक क्षेत्र से बाहर कर सकती है।
ककसी व्यवि के पास ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में वनयुवि के वलए वनम्नवलवखत ऄहहताएँ
होनी चावहए:
िह भारत का नागररक हो।
ईसे भारत के राज्यक्षेत्र में न्यावयक कायह में 10 िषह का ऄनुभि हो (न्यावयक कायह का तात्पयह
न्यायाधीश के कायह से ही नहीं है, यह ऄन्य न्यावयक कायह भी हो सकता है), या
िह ककसी ईच्च न्यायालय (न्यायालयों) में लगातार 10 िषह तक ऄवधििा रह चुका हो (यह ऄहहता
ईच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश की ऄहहता के समान है)।
आस प्रकार, संविधान में ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में वनयुवि के वलए कोइ न्यूनतम अयु
वनधाहररत नहीं की गयी है। हालांकक, संविधान में ईच्चतम न्यायालय के विपरीत एक प्रवतवित विवधिेत्ता
को ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में वनयुि करने हेतु कोइ प्रािधान नहीं है।
2.2. न्यायाधीशों का कायह काल [ऄनु च्छे द 217(1)]
संविधान में ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कायहकाल वनवश्चत नहीं ककया गया है। हालांकक,
वनम्नवलवखत प्रािधानों का ईपबंध ककया गया है:
िह 62 िषह की अयु तक पद पर रहता है। ईसकी अयु से संबंवधत ककसी भी प्रश्न का वनणहय भारत
के मुख्य न्यायाधीश से परामशह करने के पश्चात् राष्ट्रपवत द्वारा ककया जाएगा एिं राष्ट्रपवत का
वनणहय ऄंवतम होगा।
िह राष्ट्रपवत को त्यागपत्र दे सकता है।
संसद की वसफाररश से राष्ट्रपवत ईसे पद से हटा सकता है।
ईसकी वनयुवि ईच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में हो जाने पर या ककसी दूसरे ईच्च
न्यायालय में स्थानांतरण हो जाने पर पद ररि हो जाएगा।
2.3. अयु का ऄिधारण
यकद ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अयु के बारे में कोइ प्रश्न ईठता है तो ईसका विवनश्चय भारत
के मुख्य न्यायमूर्वत से परामशह करने के पश्चात् राष्ट्रपवत द्वारा ककया जाएगा। राष्ट्रपवत का विवनश्चय
ऄंवतम होगा। (ऄनु. 217)।
ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की अयु का ऄिधारण ऐसे प्रावधकरण द्वारा और ऐसी रीवत से
ककया जाएगा जो संसद विवध द्वारा ईपबंवधत करे (ऄनु. 124)। आसका कोइ तकह सम्मत कारण नहीं
कदखाइ देता कक क्यों ईच्च न्यायालय और ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच ऄंतर रखा
गया है।
3. न्यायाधीशों की श्रे वणयां
ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की वनम्नवलवखत श्रेवणयां होती हैं:
3.1. वनयवमत न्यायाधीश
ककसी ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की वनयुवि राष्ट्रपवत द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश
एिं संबंवधत राज्य के राज्यपाल से परामशह करने के पश्चात् की जाती है।
जबकक ईच्च न्यायालय के ऄन्य न्यायाधीशों की वनयुवि राष्ट्रपवत द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश
एिं संबंवधत राज्य के राज्यपाल एिं ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामशह के पश्चात् की
जाती है।
3.2. कायह कारी मु ख्य न्यायाधीश [ऄनु च्छे द 223] (Acting Chief Justice)
राष्ट्रपवत ककसी ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश को ईस ईच्च न्यायालय का कायहकारी मुख्य न्यायाधीश
वनयुि कर सकता है, जब:
ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद ररि हो, या
ईच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश ऄस्थायी रूप से ऄनुपवस्थत हो, या
यकद ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ऄपने कायह वनिहहन में ऄक्षम हो।
3.3. ऄपर और कायह कारी न्यायाधीश [ऄनु च्छे द 224] (Additional and Acting
Judges)
राष्ट्रपवत वनम्नवलवखत पररवस्थवतयों में योग्य व्यवियों को ईच्च न्यायालय के ऄपर न्यायाधीशों के रूप में
ऄस्थायी रूप से वनयुि कर सकता है, वजसकी ऄिवध दो िषह से ऄवधक नहीं होगी:
यकद ऄस्थायी रूप से ईच्च न्यायालय का कामकाज बढ़ गया हो, या
ईच्च न्यायालय में बकाया कायह ऄवधक है।
आसी प्रकार राष्ट्रपवत ईस वस्थवत में भी योग्य व्यवियों को ककसी ईच्च न्यायालय का कायहकारी
न्यायाधीश वनयुि कर सकता है, जब ईच्च न्यायालय का न्यायाधीश (मुख्य न्यायाधीश के ऄलािा):
ऄनुपवस्थवत या ऄन्य कारणों से ऄपने कायों का वनष्पादन करने में ऄसमथह हो,
ककसी न्यायाधीश को ऄस्थायी तौर पर संबवं धत ईच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश वनयुि ककया
गया हो।
एक कायहकारी न्यायाधीश तब तक कायह करता है, जब तक कक स्थायी न्यायाधीश ऄपना पदभार न
संभाले। हालांकक, ऄपर या कायहकारी न्यायाधीश 62 िषह की अयु प्राप्त करने के पश्चात् पद धारण नहीं
कर सकते हैं।
ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ककसी भी समय ईस ईच्च न्यायालय ऄथिा ककसी ऄन्य ईच्च
न्यायालय के सेिावनिृत्त न्यायाधीश को ऄस्थायी ऄिवध के वलए बतौर कायहकारी न्यायाधीश काम
करने के वलए कह सकते हैं। िह ऐसा राष्ट्रपवत की पूिह संस्तुवत एिं संबंवधत व्यवि की मंजूरी के
पश्चात् ही कर सकता है। ऐसा न्यायाधीश राष्ट्रपवत द्वारा तय भत्तों का ऄवधकारी होता है।
ईसे ईस ईच्च न्यायालय के सभी न्यावयक क्षेत्र, शवियां एिं सुविधाएं और विशेषावधकार प्राप्त होते
हैं, ककतु ईसे ऄन्यथा ईस ईच्च न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगा।
4. न्यायाधीशों को हटाना
ऄनुच्छेद 217(1)(b) में प्रािधान है कक ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को ऄनुच्छेद 124(4) के
तहत प्रदत्त ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रकिया के समान ही हटाया जाएगा।
आस प्रकार, ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश को भी 'सावबत कदाचार' या 'ऄसमथहता' के अधार पर
ही पद से हटाया जा सकता है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामशह के बाद राष्ट्रपवत ककसी न्यायाधीश का स्थानांतरण एक ईच्च
न्यायालय से दूसरे ईच्च न्यायालय में कर सकता है।
1977 में ईच्चतम न्यायालय ने व्यिस्था दी कक ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का स्थानांतरण
के िल ऄपिादस्िरूप और लोक कल्याण को ध्यान में रखकर ही ककया जा सकता है न कक दंड के
रूप में। 1994 में ईच्चतम न्यायालय ने पुनः कहा कक न्यायाधीशों के स्थानांतरण में मनमानी रोकने
के वलए न्यावयक समीक्षा अिश्यक है।
तीसरे न्यायाधीश िाद (1998) में ईच्चतम न्यायालय ने राय दी कक ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों
के स्थानांतरण के मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश को ईच्चतम न्यायालय के चार िररष्टतम
न्यायाधीशों तथा दो ईच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों (एक िहां के , जहाँ से न्यायाधीश का
स्थानांतरण हो रहा है; एक िहां के जहाँ िह जा रहा हो) से परामशह करना चावहए।
स्थानांतरण के मामले में न्यायाधीश िेतन के ऄवतररि राष्ट्रपवत द्वारा वनधाहररत प्रवतपूरक भत्तों का
हकदार होता है।
ईच्च न्यायालय में दीिानी मामलों पर ऄपील, पहली ऄपील या दूसरी ऄपील होती है।
ईच्च मूल्य (व्यापक रूप में) के मामलों में वजला न्यायाधीशों और ऄधीनस्थ न्यायाधीशों के वनणहयों
के विरुद्ध कानून एिं तथ्य के प्रश्न पर सीधे ईच्च न्यायालय में ऄपील की जा सकती है।
जब कोइ ऄधीनस्थ न्यायालय ऄिर न्यायालय के वनणहय के विरुद्ध की गयी ऄपील पर वनणहय देता
है, तो वनचले ऄपीलीय न्यायालय के वनणहय विरुद्ध दूसरी ऄपील ईच्च न्यायालय में की जाती है,
परन्तु वसफह कानून के प्रश्नों पर, तथ्यों के प्रश्नों पर नहीं।
कलकत्ता, बंबइ और मद्रास ईच्च न्यायालय में ऄंत:न्यायालीय ऄपील का प्रािधान है। जब ईच्च
न्यायालय का कोइ एक न्यायाधीश मामले पर वनणहय देता है तो ऄपील ईसी न्यायालय की
खंडपीठ में की जा सकती हैं।
प्रशासवनक एिं ऄन्य ऄवधकरणों के वनणहयों के विरुद्ध ऄपील ईच्च न्यायालय की खंड पीठ के समक्ष
की जा सकती है। 1997 में ईच्चतम न्यायालय ने व्यिस्था की कक ये ऄवधकरण ईच्च न्यायालय के
ररट क्षेत्रावधकार के विषयाधीन हैं। पररणामस्िरूप, ऄवधकरण के फै सले के विरुद्ध कोइ पीवड़त
व्यवि वबना पहले ईच्च न्यायालय में गए सीधे ईच्चतम न्यायालय में नहीं जा सकता।
5.3.2 अपरावधक मामले
सत्र न्यायाधीश या ऄवतररि सत्र न्यायाधीश के वनणहयों के विरुद्ध ईच्च न्यायालयों में तब ऄपील
की जा सकती हैं जब ककसी को सात िषह या आससे ऄवधक के वलए कारािास की सजा हुइ हो।
ऄधीनस्थ न्यायालयों द्वारा दी गयी सजा-ए-मौत (मृत्युदड
ं ) पर कायहिाही से पहले ईच्च न्यायालय
द्वारा आसकी पुवष्ट की जानी चावहए।
कु छ विवशष्ट मामलों में सहायक सत्र न्यायाधीश, महानगर दंडावधकारी या ऄन्य दंडावधकारी के
वनणहयों के विरुद्ध ईच्च न्यायालय में ऄपील की जा सकती है।
ईच्च न्यायालय को आस बात का ऄवधकार है कक सैन्य न्यायालयों के ऄवतररि िह ऄपने ऄवधकार क्षेत्र के
सभी न्यायालयों एिं ऄवधकरणों के कियाकलापों पर नजर रखे। आस प्रकार िह:
मामलों को ऐसे न्यायालयों से स्ियं के पास मंगिा सकता है।
सामान्य वनयम तैयार और जारी कर सकता है, और ईनके प्रयोग तथा कायहिाही को वनयवमत
करने के वलए प्रपत्र वनधाहररत कर सकता है।
ईच्च न्यायालय, वजला न्यायालय और ईनके ऄधीनस्थ न्यायालयों पर वनयंत्रण रखता है।
वजला न्यायाधीशों की वनयुवि, तैनाती और पदोन्नवत एिं व्यवि की राज्य न्यावयक सेिा (वजला
न्यायाधीशों से ऄलग) में वनयुवि के मामलों में राज्यपाल, ईच्च न्यायालय से परामशह लेता है।
यह राज्य न्यावयक सेिा (वजला न्यायाधीशों के ऄलािा ऄन्य) के सदस्यों की तैनाती, स्थानांतरण,
ऄनुशासन, ऄिकाश स्िीकृ वत, पदोन्नवत अकद से संबंवधत मामलों को देखता है।
यह ऄधीनस्थ न्यायालय में लंवबत ककसी मामलें को ऄपने पास मंगिा सकता है, यकद ईसमें
महत्िपूणह कानूनी प्रश्न शावमल हो और संविधान की व्याख्या की अिश्यकता हो। यह या तो आस
मामले को वनपटा सकता है या ऄपने वनणहय के साथ मामले को संबंवधत न्यायालय को लौटा
सकता है।
आसके कानून (वनणहय) को ईन सभी ऄधीनस्थ न्यायालयों को मानने की बाध्यता होती है, जो ईसके
न्यावयक क्षेत्र में अते है।
ऄधीनस्थ न्यायालय
वजला न्यायाधीश के न्यायालय को और सोपान िम में ईससे वनचले न्यायालयों को ऄधीनस्थ न्यायालय
कहा जाता है। दूसरे शब्दों में ईच्चतम न्यायालय और ईच्च न्यायालय को छोड़कर सभी न्यायालय
ऄधीनस्थ न्यायालय हैं।
ऄवभलेख न्यायालय के रूप में ईच्च न्यायालय की शवियां, ईच्चतम न्यायालय की संबंवधत शवियों के
समान ही हैं। कृ पया आसे ईच्चतम न्यायालय िाले ऄध्याय में देखें।
5.7. न्यावयक पु न र्विलोकन की शवि (ऄनु च्छे द 13 और ऄनु च्छे द 226)
ईच्च न्यायालय कें द्र एिं राज्यों के ककसी भी ऄवधवनयम या कायहकारी अदेश को शून्य और ऄमान्य
घोवषत कर सकता है, ऄगर िह संविधान का ईल्लंघन करता हो। विधायी कानून और कायहकारी अदेश
की संिैधावनक िैधता को वनम्नवलवखत अधारों पर एक ईच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, यकद
यह:
मूल ऄवधकारों का हनन करता हो (भाग तीन)
वजस प्रावधकरण द्वारा तैयार ककया गया है, ईसके कायह क्षेत्र से बाहर हो, तथा
संिैधावनक ईपबंधों के विरुद्ध हो।
6. ऄधीनस्थ न्यायालय
संविधान के भाग VI में ऄनुच्छेद 233 से 237 तक ऄधीनस्थ न्यायालयों के संगठन एिं कायहपावलका से
आनकी स्ितंत्रता सुवनवश्चत करने िाले वनम्नवलवखत ईपबंधों का िणहन ककया गया है:
वजला न्यायाधीशों की वनयुवि, पदस्थापना और पदोन्नवत राज्यपाल द्वारा राज्य के ईच्च न्यायालय के
परामशह से की जाती है। वजला न्यायाधीश के पद पर वनयुवि के वलए एक व्यवि में वनम्नवलवखत
योग्यताओं का होना अिश्यक हैं:
ईसे कें द्र या राज्य सरकार की सेिा में कायहरत नहीं होना चावहए।
ईसे कम-से-कम सात िषह तक ऄवधििा या प्लीडर के रूप में कायह करने का ऄनुभि होना चावहए।
ईसकी वनयुवि के वलए ईच्च न्यायालय द्वारा वसफाररश की गयी हो।
'वजला न्यायाधीश' पद के ऄंतगहत नगर दीिानी न्यायाधीश, ऄपर वजला न्यायाधीश, संयुि वजला
न्यायाधीश, सहायक वजला न्यायाधीश, लघु न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, मुख्य प्रेवसडेंसी मवजस्रेट,
ऄवतररि मुख्य प्रेवसडेंसी मवजस्रेट, सत्र न्यायाधीश, ऄवतररि सत्र न्यायाधीश और सहायक सत्र
न्यायाधीश शावमल हैं।
6.2. ऄन्य न्यायाधीशों की वनयु वि [ऄनु च्छे द 234]
राज्यपाल, वजला न्यायाधीश के ऄवतररि राज्य की न्यावयक सेिा के ऄन्य पदों पर भी राज्य लोक सेिा
अयोग और ईच्च न्यायालय के परामशह के बाद व्यवियों की वनयुवि कर सकता है।
6.3. ऄधीनस्थ न्यायालयों पर वनयं त्र ण [ऄनु च्छे द 235]
वजला न्यायालयों और ऄन्य ऄधीनस्थ न्यायालयों में न्यावयक सेिा से संबद्ध व्यवि की पदस्थापना,
पदोन्नवत, ऄिकाश और ऄन्य मामलों पर वनयंत्रण का ऄवधकार राज्य के ईच्च न्यायालय के पास होता
है।
6.4. सं र चना और ऄवधकार क्षे त्र
ऄधीनस्थ न्यायालयों की संरचना को नीचे प्रस्तुत रे खा-वचत्र द्वारा विस्तार से बताया गया है।
ऄधीनस्थ न्यायपावलका की संगठनात्मक संरचना सभी राज्यों में वभन्न हैं तथा मोटे तौर पर वचत्र
में दशाहये ऄनुसार िगीकृ त हैं। ये सबसे वनचले स्तर पर, न्याय की दो शाखाओं दीिानी और
फौजदारी में विभि हैं। दीिानी और फौजदारी मामलों में विवभन्न क्षेत्रीय नामों जैसे- न्याय
पंचायत, पंचायत ऄदालत, ग्राम कचहरी अकद के तहत पंचायत न्यायालय कायहरत हैं।
मुंवसफ न्यायाधीश के न्यायालय ऄगले स्तर के दीिानी न्यायालय होते हैं, वजनके क्षेत्रावधकार ईच्च
न्यायालयों द्वारा वनधाहररत ककये जाते हैं। मुंवसफ न्यायाधीश के उपर ऄधीनस्थ न्यायाधीश होते हैं
वजनमें ऄसीवमत धन-संबंधी क्षेत्रावधकार वनवहत होते हैं। मुंवसफ न्यायाधीश के वनणहय के विरुद्ध
पहली ऄपील आन्ही न्यायालयों में की जाती हैं।
वजला स्तर पर, वजला एिं सत्र न्यायाधीश वजले का सिोच्च न्यावयक ऄवधकारी होता है वजसे
दीिानी एिं फौज़दारी मामलों में मूल और ऄपीलीय क्षेत्रावधकार प्राप्त है।
है) के साथ ही ऄधीनस्थ न्यायाधीशों के वनणहयों के विरुद्ध प्रथम सुनिाइ करते हैं तथा दीिानी एिं
फौज़दारी मुकदमों दोनों पर ऄसीवमत क्षेत्रावधकार के ऄवधकारी होते हैं।
वजला न्यायाधीशों में ऄधीनस्थ न्यायाधीशों से संबंवधत पयहिेक्षी शवियां भी वनवहत होती हैं। जब
िह दीिानी मामलों की सुनिाइ करता है तो ईसे वजला न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है तथा
फौज़दारी मामलों की सुनिाइ करने पर सत्र न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है।
आसके अदेश के विरुद्ध ऄपील ईच्च न्यायालय में की जाती है। सत्र न्यायाधीश को ककसी ऄपराधी
को अजीिन कारािास और मृत्युदड
ं सवहत कोइ भी सजा देने का ऄवधकार होता है। हालांकक,
ऄनुमोदन कर दे।
कम महत्ि िाले मुकदमों की सुनिाइ प्रांतीय लघु न्यायालयों (Provincial Small causes
courts) द्वारा की जाती है। दण्ड प्रकिया संवहता (CrPC, 1973) के लागू होने के बाद से,
बनाए रखने का कायह करता है, न्यावयक और मेरोपोवलटन मवजस्रेट ईच्च न्यायालयों के प्रशासवनक
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o ऄवधसंघ (confederation)।
संघीय प्रणाली शासन की एक ऐसी प्रणाली है वजसके ऄंतगात एक ही भू-भाग के शासन को वद्व-
स्तरीय सरकार (ऄथिा द्वैध सरकार) द्वारा वनयंवत्रत ककया जाता है। आस व्यिस्था में राष्ट्रीय
(कें द्रीय/संघीय) सरकार संपूणा देश से संबंवधत मुद्दों तथा समस्याओं पर विवध-वनमााण तथा शासन
करती है, जबकक प्रांतीय या स्थानीय स्तर की सरकारें स्थानीय मुद्दों पर ध्यान कें कद्रत करती हैं।
यद्यवप भारत एक संघीय राज्य है, परन्तु आसका संघीय स्िरूप सदैि चचाा का विषय रहा है। कु छ
विद्वानों ने आसे ‘संघीय कल्प’ (संघ जैसा या ऄिा संघ) की संज्ञा दी है, जबकक कु छ आसे
एकात्मक/ऐककक या ऄवधसंघ मानते हैं।
आसके ऄवतररि, यद्यवप भारत में एक संघीय स्िरूप िाली सरकार है, परं तु भारतीय संविधान में
संघ या महासंघ जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं ककया गया है (ऄथाात् संविधान स्पष्ट रूप से भारत को
एक संघ के रूप में घोवषत नहीं करता है)। संविधान के ऄनुच्छेद 1 में कहा गया है कक “भारत,
ऄथाात् आं वडया, राज्यों का संघ होगा” (India, that is Bharat, shall be a Union of
States.)।
आसका स्पष्टीकरण डा. भीमराि ऄम्बेडकर द्वारा संविधान सभा में कदये गये ििव्य से प्राप्त ककया
जा सकता है। “यूवनयन शब्द का प्रयोग जानबूझ कर ककया गया है, मैं बता सकता हाँ कक प्रारूप
सवमवत ने आसका प्रयोग क्यों ककया है। प्रारूप सवमवत यह स्पष्ट करना चाहती थी कक भारत एक
ऐसा संघ बने जो राज्यों द्वारा ककये गये ककसी समझौते का पररणाम न हो, जो संघ समझौते का
पररणाम नहीं होते ईनमें राज्यों को संघ से ऄलग होने का ऄवधकार नहीं होता।”
ऄिवशष्ट शवियां/ऄिवशष्ट विधायी शवियां: संसद को ककसी ऐसे विषय के संबंध में जो, समिती
सूची या राज्य सूची में प्रगवणत नहीं है, विधान वनमााण की ऄनन्य शवि है (ऄनु. 248)। ऄमेररकी
संविधान के विपरीत तथा कनाडा के संविधान के समान ऄिवशष्ट विधायी शवियां कें द्र सरकार में
वनवहत हैं।
‘तीन सूची’ िाले आस प्रािधान को भारत शासन ऄवधवनयम, 1935 से ग्रहण ककया गया है।
यकद समिती सूची के ककसी विषय को लेकर के न्द्र तथा राज्य के कानूनों में कोइ मतभेद ईत्पन्न
होता है तो कें द्रीय कानून राज्य कानून पर प्रभािी होगा।
राज्यों के विधान के क्षेत्र में कें द्र का प्रिेश
कें द्र सरकार कु छ विशेष पररवस्थवतयों में राज्य सूची के ककसी भी विषय पर विवध बना सकती है। ये
पररवस्थवतयााँ वनम्नवलवखत हैं:
जहां राज्य सभा दो वतहाइ बहुमत से संकल्प पाररत करके संसद को ककसी विषय पर विवध बनाने
का प्रावधकार दे। ऐसा संकल्प एक िषा से ऄनवधक ऄिवध के वलए प्रिृत्त रहता है, ककतु ईसे अगे
एक िषा के वलए बढ़ाया जा सकता है। समय का यह विस्तार चाहे वजतनी बार ककया जा सकता है।
ऐसे संकल्प के अधार पर संसद द्वारा बनाइ गइ विवध संकल्प के प्रिृत्त न रहने के पिात् छह मास
की ऄिवध तक प्रभािी रहती है (ऄनु. 249)।
जहां ऄनु. 352 के ऄधीन अपात की ईद्घोषणा की गइ है, िहां संसद को ईद्घोषणा के अधार पर
राज्य सूची में ककसी प्रविवष्ट की बाबत विवध बनाने की शवि वमल जाती है (ऄनु. 250)।
जहां दो या ऄवधक राज्यों के विधानमंडल, संकल्प द्वारा, संसद् से राज्य-सूची में सवम्मवलत ककसी
विषय के संबंध में विवध पाररत करने का अग्रह करते हैं। ऐसी विवध प्रारं भ में ईन्हीं राज्यों पर
लागू होती है वजन्होंने अग्रह ककया था। ऄन्य राज्य ईसे ऄंगीकार कर सकते हैं (ऄनु. 252)।
ऄनुच्छेद 252 के ऄधीन पाररत ऄवधवनयमों के कु छ ईदाहरण हैं; पुरस्कार प्रवतयोवगता ऄवधवनयम
1955; नगर भूवम (ऄवधकतम सीमा और विवनयमन) ऄवधवनयम, 1976, िन्य जीि (संरक्षण)
ऄवधवनयम, 1972 और मानि ऄंग प्रवतरोपण ऄवधवनयम, 1994।
संसद ऄंतरराष्ट्रीय संवधयों को प्रभावित करने के वलए विवध ऄवधवनयवमत कर सकती है, चाहे
ईनसे संबंवधत विषय राज्य-सूची में अते हों (ऄनु. 253)।
भारतीय संविधान वनमााताओं ने के न्द्र-राज्य प्रशासवनक संबंधों के संदभा में संविधान में विस्तृत ईपबंध
ककए हैं, ताकक के न्द्र-राज्य संबंधों में वििादों को न्यूनतम ककया जा सके । आनका वििरण वनम्नवलवखत है:
ऄनुच्छेद 256 के ऄनुसार प्रत्येक राज्य की कायापावलका शवि का आस प्रकार प्रयोग ककया जाएगा
वजससे संसद द्वारा बनाइ गइ विवधयों का और ऐसी विद्यमान विवधयों का, जो ईस राज्य में लागू
हैं, ऄनुपालन सुवनवित रहे और संघ की कायापावलका शवि का विस्तार ककसी राज्य को ऐसे
वनदेश देने तक होगा जो भारत सरकार को ईस प्रयोजन के वलए अिश्यक प्रतीत हों।
डा. भीमराि ऄम्बेडकर ने ऄनुच्छेद 256 के प्रयोजन को दो महत्िपूणा कथनों के माध्यम से
व्याख्या की है: “पहला, िह सत्ता जो कायाकारी विवधयों (समिती क्षेत्र से संबंवधत) को लागू करती
है, भले ही िह कें द्रीय विधान मण्डल द्वारा पाररत की गइ हो ऄथिा राज्य विधान मण्डल द्वारा
पाररत की गइ हो, िे राज्यों के वलए लागू होंगी। दूसरा, ककसी विशेष वस्थवत में समिती सूची के
विषयों के संदभा में संसद यकद यह विचार करती है कक ककसी कानून के ऄनुपालन के वलए
कायाकारी शवि कें द्रीय सरकार के पास होनी चावहए, िहां ऐसा करने के वलए संसद के पास शवि
होगी।”
ईपरोि के ऄवतररि कें द्र को यह ऄवधकार है कक िह एक या ऄवधक राज्यों को वनम्नवलवखत
मामलों पर ऄपनी कायाकारी शवियों के प्रयोग के वलए वनदेश से सकता है:
o राष्ट्रीय या सैन्य महत्ि के संचार के साधनों के रख-रखाि तथा वनमााण के संदभा में वनदेश
जारी ककया जा सकता है।
o रे लिे की सुरक्षा संबंधी वनदेश दे सकता है।
o बच्चों को प्राथवमक स्तर पर मातृभाषा में वशक्षा के वलए वनदेश जारी कर सकता है।
o राज्य में ऄनुसवू चत जनजावतयों के कल्याण के वलए विवशष्ट योजनाओं को लागू करने हेतु।
नोट: संपूणा देश में संसदीय कानूनों को लागू करने के वलए ये वनदेश अिश्यक हैं।
एक या ऄवधक राज्यों द्वारा आन वनदेशों का पालन नहीं करने पर ऄनुच्छेद 365 में िर्तणत वस्थवत
व्युत्पन्न हो जाएगी, जहााँ राष्ट्रपवत को यह अभास हो सकता है या हो जाता है कक ऐसी वस्थवत
ईत्पन्न हो गइ है, वजसमें राज्य की सरकार/सरकारें संविधान के प्रािधानों के ऄनुसार नहीं चलायी
जा रही हैं। पररणामस्िरुप ऄनुच्छेद 356 के तहत ईि राज्य/राज्यों में राष्ट्रपवत शासन लगाया जा
सकता है और राज्य के प्रशासन को कें द्रीय वनयंत्रण के तहत लाया जा सकता है।
ऄनुच्छेद 258(A) के ऄनुसार ककसी राज्य का राज्यपाल, भारत सरकार की सहमवत से ईसे या
ईसके ऄवधकाररयों को संबंवधत राज्य की कायापावलका शवि के विस्तार िाले विषय/विषयों को,
सशता या वबना शता के सौंप सकता है।
कें द्रीय तथा राज्य सेिाओं के ऄवतररि, संविधान के ऄनुच्छेद 312 में के न्द्र ि राज्य दोनों के वलए
‘ऄवखल भारतीय सेिाओं’ के सृजन के संबंध में ईपबंध है।
राज्यों के पास यह प्रावधकार है कक िह ऄवखल भारतीय सेिाओं के ऄवधकाररयों को वनलंवबत कर
सके । लेककन, ईनकी वनयुवि तथा ऄनुशासनात्मक कायािाही का ऄवधकार के िल राष्ट्रपवत में
वनवहत है।
देश के प्रशासन में महत्िपूणा योगदान देने तथा वनणाायक क्षेत्रों के प्रबंधन हेतु एकीकृ त तथा
सुगरठत ऄवखल भारतीय सेिाओं के सृजन का ईपबंध संविधान में ककया गया है।
आनकी भती, प्रवशक्षण, पदोन्नवत, ऄनुशासनात्मक मामले अकद से संबंवधत ईपबंधों का वनधाारण
के न्द्र सरकार करती है। ऄवखल भारतीय सेिाओं के सदस्य वनयुवि के ईपरांत राज्यों में तैनात ककए
जाते हैं, जहां िे राज्य सरकार के ऄधीन काया करते हैं।
हालांकक, यह तका कदया जाता है कक ऄवखल भारतीय सेिाएं संघिाद के वसिांत के विपरीत हैं।
परं त,ु भारतीय प्रसंग में ऄवखल भारतीय सेिाओं के ऄवधकारी के न्द्र तथा राज्य दोनों के प्रशासवनक
मामलों की वजम्मेदारी का वनिाहन करते हैं, प्रशासवनक मामलों में दोनों को सहयोग करते हैं तथा
सम्पूणा देश के प्रशासन में एकरूपता सुवनवित करते हैं।
ितामान में तीन ऄवखल भारतीय सेिाएं हैं: भारतीय प्रशासवनक सेिा, भारतीय पुवलस सेिा तथा
भारतीय िन सेिा) (ऄनुच्छेद 312 के प्रािधानों के तहत तीसरे ऄवखल भारतीय सेिा के रूप में
1966 में भारतीय िन सेिा का सृजन ककया गया)।
भारत राज्यों का संघ है, जहां के न्द्र सरकार की भूवमका महत्िपूणा है। परं तु, ऄपनी नीवतयों को
लागू करने के वलए के न्द्र सरकार राज्यों पर वनभार है।
के न्द्र ि राज्य के मध्य प्रभािी िाताा एिं ऄंतसारकारी सहयोग के वलए भारतीय संविधान के
ऄनुच्छेद 263 के ऄंतगात ऄंतरााज्यीय पररषद् के रूप में एक ऐसा मंच ईपलब्ध कराया गया है,
जहााँ सभी महत्िपूणा नीवतयों को बहुपक्षीय संिाद, बहस तथा अमसहमवत के वलए प्रस्तुत ककया
जाता है। आस ऄनुच्छेद के तहत राष्ट्रपवत को यह ऄवधकार कदया गया है, कक िह आस पररषद् के
कताव्यों की प्रकृ वत को पररभावषत करें ।
2.2.6.1. कें द्र और राज्यों के मध्य सहयोग सु वनवित करने में भू वमका
यह कें द्र-राज्य और ऄंतरााज्यीय संबंधों को मजबूत करने और नीवतयों पर चचाा के वलए सिाावधक
प्रभािशाली मंच है।
यह नीवत वनमााण एिं ईसके त्िररत कायाान्ियन हेतु परस्पर सहयोग, समन्िय और विकास के एक
ईपकरण के रूप में काया करता है।
यह राज्यों के मुख्यमंवत्रयों को ऄिसर प्रदान करता है कक िे राज्यों की चचताओं और मुद्दों को
पररषद् के समक्ष विचार के वलये रखें। ऄतः यह कें द्र और राज्यों के बीच ऄविश्वास को दूर करने में
सक्षम है I
आसे के िल एक िाताा मंच के रूप में देखा जाता है आसवलए आस छवि को बदलने की अिश्यकता हैI
पररषद् को ऄपने कायाकरण से यह दशााने की अिश्यकता है कक आसके मंच पर ईठाये गए मुद्दें
ऄपने वनधााररत लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम हैं।
आसकी वसफाररशें सरकार पर बाध्यकारी नहीं होती हैं।
आसकी बैठक वनयवमत रूप से नहीं होती है। हाल ही में , निंबर 2017 में आसकी स्थायी सवमवत की
12िीं बैठक अयोवजत की गयी थी।
आसे कें द्र और राज्यों के बीच के िल प्रशासवनक ही नहीं ऄवपतु राजनीवतक और विधायी अदान-
प्रदान के एक सशि मंच के रूप में भी विकवसत ककया जाना चावहए I
संविधान के ऄनु. 262(1) के ऄनुसार, “संसद ककसी ऄंतरााज्यीय नदी या नदी बेवसन में जल के
ईपयोग, वितरण या वनयंत्रण के संबंध में ककसी भी प्रकार की वशकायत या वििाद की वस्थवत में
विवध बनाकर ऄवधवनणाय प्रदान कर सकती है।” आसी पररप्रेक्ष्य में संसद ने ऄंतरााज्यीय जल वििाद
ऄवधवनयम, 1956 को ऄवधवनयवमत ककया है।
हाल ही में कें द्रीय जल संसाधन, नदी विकास एिं गंगा संरक्षण मंत्री ने लोकसभा में ऄंतरााज्यीय नदी
वििाद (संशोधन) विधेयक, 2017 प्रस्तुत ककया। यह ऄंतर-राज्यीय नदी जल वििादों के सन्दभा में कदए
गए ऄवधवनणायों को लागू कराने का प्रािधान करता है एिं ितामान कानूनी एिं संस्थागत ढांचे को
मजबूत बनाने पर बल देता है।
संशोधन विधेयक के महत्िपूणा प्रािधान
आसके तहत के न्द्र सरकार द्वारा वििाद समाधान सवमवत (Dispute Redressal Committee;
DRC) के गठन का प्रािधान है, वजसका काया रिब्यूनल में ककसी भी मामले को भेजने से पूिा
सद्भािनापूणा ढंग से समाधान का प्रयास करना होगा। आसके वलए वनधााररत ऄिवध 1 िषा होगी
वजसे 6 माह तक के वलए अगे बढ़ाया जा सकता है।
एकल रिब्यूनलः यह विधेयक ितामान में स्थावपत विवभन्न रिब्यूनलों के स्थान पर एक चसगल
स्टैंवडग रिब्यूनल (वजसकी ऄनेक बेंच हों) का प्रस्ताि करता है, वजसमें एक ऄध्यक्ष, एक ईपाध्यक्ष
एिं ऄवधकतम 6 सदस्य होंगे।
सदस्यों की अयु एिं कायाकाल- ऄध्यक्ष का कायाकाल 5 िषा या 70 िषा की अयु (दोनों में जो भी
पहले पूणा हो) होगा।रिब्यूनल के ईपाध्यक्ष एिं ऄन्य सदस्यों का कायाकाल, जलवििाद की समावप्त
के साथ ही खत्म हो जाएगा।
आसके ऄवतररि ऄनुच्छेद 355 के न्द्र पर यह कताव्य अरोवपत करता है कक िह ककसी बाह्य अिमण
या अंतररक ऄशांवत से प्रत्येक राज्य की रक्षा करे तथा प्रत्येक राज्य की सरकार का आस संविधान
के प्रािधानों के ऄनुसार चलाया जाना सुवनवित करे ।
राष्ट्रीय अपात (ऄनु. 352) की वस्थवत में के न्द्र के पास यह ऄवधकार होता है कक िह राज्यों को
ककसी भी विषय पर कायाकारी वनदेश जारी कर सके ।
राज्यों में राष्ट्रपवत शासन (ऄनु. 356) के समय राष्ट्रपवत राज्य सरकार की शवियां तथा काया स्ियं
ग्रहण कर सकता है या राज्यपाल या ऄन्य राज्य प्रावधकारी को प्रावधकृ त कर सकता है।
भारतीय संविधान में के न्द्र ि राज्यों के मध्य राजस्ि के वितरण पर विस्तृत चचाा की गइ है। संविधान
के भाग XII में ऄनु. 268-293 तक राज्यों के मध्य वित्तीय संबंधों का ईल्लेख है। के न्द्र ि राज्यों के मध्य
वित्तीय संबंधों का वनम्नवलवखत शीषाकों के ऄंतगात ऄध्ययन ककया जा सकता है:
संघ द्वारा ईदगृहीत (levied) ककए जाने िाले ककन्तु राज्यों द्वारा संगह
ृ ीत (collected) तथा
विवनयोवजत ककए जाने िाले शुल्क (ऄनुच्छेद 268): स्टाम्प शुल्क, औषवध तथा प्रसाधन पर
ईत्पाद शुल्क संघ द्वारा ईदगृहीत ककतु राज्य द्वारा विवनयोवजत ककए जाते हैं।राज्य के भीतर
ईदगृहीत ऐसे शुल्क भारत के संवचत वनवध के भाग नहीं होंगे ऄवपतु ईस राज्य को सौंप कदए
जाएंगे।
कें द्रीय सािाजवनक क्षेत्रक ईपिम, लािाररश संपवत अकद संघ सरकार के पास जाते हैं। जबकक
चसचाइ, िन, मत्स्यन, राज्य सािाजवनक क्षेत्रक ईपिम अकद से संबंवधत गैर-कर राजस्ि राज्य
सरकार के पास जाते हैं।
भारतीय संघिाद का पहला चरण स्ितंत्रता से 1960 के मध्य तक विस्तृत है। प्रधानमंत्री
जिाहरलाल नेहरू सभी राज्यों के मुख्यमंवत्रयों को समय-समय पर के न्द्र सरकार के गवतविवधयों से
ऄिगत कराते रहे। ईन्होंने प्रत्येक राज्य को पत्र वलखकर विवभन्न मामलों के संबंध में सूवचत ककया
तथा राष्ट्रीय मुद्दों पर सहमवत बनाइ। भारतीय संघिाद का यह वनबााध काल आसवलए ऄवधक
सफल रहा क्योंकक लगभग सभी राज्यों में एकदलीय सरकार थी।
लेककन, सन् 1967 के चुनाि के बाद कांग्रेस की नौ राज्यों में हार हुइ तथा आससे के न्द्र सरकार की
वस्थवत कमजोर हुइ। पररणामतः के न्द्र-राज्य संबंधों के नये युग या दूसरे चरण की शुरूअत हुइ।
राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारों ने कें द्रीयकरण की प्रिृवत्तयों तथा के न्द्र सरकार के हस्तक्षेप का
विरोध ककया। राज्यों ने स्िायत्तता की मांग ईठाइ तथा ऄवधक शवियों ि वित्तीय संसाधनों की
मांग की। आसके पररणामस्िरूप के न्द्र ि राज्य के मध्य विवभन्न मुद्दों पर तनाि ईत्पन्न हुए। आनमें से
कु छ मुद्दे वनम्नवलवखत हैं:
o राज्यपालों की वनयुवि तथा बखाास्तगी,
o राज्यों में विवध ि व्यिस्था बनाए रखने के वलए कें द्रीय बलों की तैनाती,
o राज्य विधेयकों को राष्ट्रपवत के विचाराथा अरवक्षत करना,
तीसरे चरण की शुरूअत हुइ। क्षेत्रीय दलों जैसे- DMK या RJD ने भारतीय राजनीवत में
लगभग डेढ़ दशक तक खुले तौर पर ऄपने वहतों की मांग की। आस तरह की मुखरता से राष्ट्रीय
दलों ने के न्द्र के कायाकरण में क्षेत्रीय दलों को ऄवधक महत्ि कदया। क्षेत्रीय दलों के बढ़ते प्रभाि
के बािजूद के न्द्र ि राज्यों के मध्य कइ मुद्दों पर वििाद बना रहा। ये मुद्दे विचाराथा हैं तथा आस
कदशा में कइ प्रयास ककए गए हैं।
कें द्र सरकार के द्वारा मोरारजी देसाइ की ऄध्यक्षता में 1966 में छह सदस्यीय प्रथम प्रशासवनक
सुधार अयोग (ए,अर.सी.) की वनयुवि की गयी। आसे ऄन्य मामलों के साथ कें द्र-राज्य संबंधों के
परीक्षण का दावयत्ि भी सौंपा गया। 1969 में, ARC ने कें द्र-राज्य संबंधों पर प्रस्तुत ऄपनी ररपोटा
में 22 वसफाररशें प्रस्तुत कीं। अयोग के द्वारा प्रस्तुत की गयी कु छ महत्िपूणा वसफाररशें
वनम्नवलवखत हैं:
कें द्र सरकार ने सिोच्च न्यायालय के सेिावनिृत्त न्यायाधीश अर. एस. सरकाररया की ऄध्यक्षता में
कें द्र-राज्य संबंधों पर 1983 में तीन सदस्यीय अयोग का गठन ककया। अयोग ने ऄपनी ररपोटा
ऄक्टू बर 1987 में 247 वसफाररशों के साथ प्रस्तुत की।
अयोग राजव्यिस्था से संबंवधत संरचनात्मक पररितानों के पक्ष में नहीं था। अयोग ने विविध
संस्थानों से संबंवधत मौजूदा संिध
ै ावनक व्यिस्था और वसिांतों को ईवचत और पयााप्त माना।
परन्तु, अयोग ने कायाात्मक या पररचालन संबंधी पहलूओं में बदलाि की अिश्यकता पर बल
कदया। आसने संघ की शवियों को सीवमत करने की मांग को पूणा रूप से ऄस्िीकार कर कदया तथा
यह विचार व्यि ककया कक राष्ट्रीय एकता और ऄखंडता की रक्षा के वलए एक मजबूत कें द्र अिश्यक
है।
हालांकक अयोग की यह मान्यता थी कक ऄवत-कें द्रीकरण की प्रकिया से बचा जाना चावहए। अयोग
की कु छ महत्िपूणा वसफाररशें वनम्नवलवखत हैं:
o ऄनुच्छेद 263 के तहत एक स्थायी ऄंतरााज्यीय पररषद् का गठन ककया जाना चावहए।
o ऄनुच्छेद 356 (राष्ट्रपवत शासन) का प्रयोग सभी ईपलब्ध विकल्पों के विफल हो जाने पर ही
ऄथाात् बहुत ही कम मामलों में एिं ऄपररहाया पररस्थवतयों में, ऄंवतम विकल्प के रूप में
ककया जाना चावहए।
o ऄवखल भारतीय सेिाओं को और मजबूत बनाया जाना चावहए तथा कु छ ऄन्य ऄवखल
भारतीय सेिाओं का सृजन ककया जाना चावहए।
o कराधान की ऄिवशष्ट शवियााँ संसद में वनवहत रहनी चावहए, जबकक ऄन्य ऄिवशष्ट शवियों
को समिती सूची में शवमल ककया जाना चावहए।
o राष्ट्रपवत द्वारा राज्य सरकार के विधेयकों को ऄनुमवत प्रदान करने से ऄस्िीकार करने की
वस्थवत में, आससे संबंवधत कारणों को राज्य सरकार को स्पष्ट रूप से सूवचत ककया जाना
चावहए।
o क्षेत्रीय पररषदों को नए वसरे से गरठत ककया जाना चावहए और संघिाद की भािना को
बढ़ािा देने के वलए आन्हें पुन: सकिय ककया जाना चावहए।
o संघ को राज्यों की सहमवत के वबना राज्यों में सशस्त्र बलों को तैनात करने की शवि होनी
चावहए। हालांकक, राज्यों से परामशा ककया जाना िांछनीय है।
o समिती सूची के विषयों पर कानून बनाने से पहले कें द्र को राज्यों से परामशा करना चावहए।
o राज्यपाल की वनयुवि के संबंध में मुख्यमंत्री से परामशा करने की प्रकिया संविधान में ही
वनधााररत की जानी चावहए।
o राज्यों में राज्यपाल के पांच िषा के कायाकाल को ऄत्यंत ऄवनिाया पररवस्थवतयों के ऄलािा
बावधत नहीं ककया जाना चावहए।
o वत्रभाषा सूत्र को समान रूप से सभी क्षेत्रों में आसकी िास्तविक भािना के ऄनुरू प लागू करने
के वलए कदम ईठाए जाने चावहए।
o कें द्र द्वारा रे वडयो और टेलीविजन जैसे विभागों को स्िायत्तता प्रदान की जानी चावहए। साथ
ही, ईनके पररचालन में विकें द्रीकरण को बढ़ािा देना चावहए।
ऄप्रैल 2007 में ईच्चतम न्यायालय के भूतपूिा मुख्य न्यायाधीश मदन मोहन पुछ
ं ी की ऄध्यक्षता में 'कें द्र-
राज्य संबंधों’ की समीक्षा के वलये एक अयोग का गठन ककया गया। अयोग ने 30 माचा, 2010 को सात
खंडों िाली एक ररपोटा सरकार को प्रस्तुत की। अयोग के ररपोटा के खंड दो में कें द्र-राज्य संबध
ं ों से
संबंवधत संिैधावनक योजनाओं की पड़ताल की गयी है। आसमें कदए गए कु छ सुझाि वनम्नवलवखत हैं:
(कें द्र-राज्य संबध
ं ों पर निीनतम सवमवत होने के कारण, आसकी वसफाररशें विस्तृत रूप से दी गइ हैं।)
समिती सूची में शावमल विषयों पर कानून वनमााण के दौरान राज्यों से परामशा करने के संबध
ं में:
o समिती सूची (सूची III) में ऐसे विषय शावमल हैं वजन पर संघ और राज्य दोनों कानून बना
सकते हैं।
o कें द्र-राज्य संबंधों को बेहतर बनाने के वलए तथा समिती सूची में शावमल विषयों से संबंवधत
कानूनों के प्रभािी कायाान्ियन हेतु यह अिश्यक है कक समिती सूची में शावमल विषयों से
संबंवधत विधेयक संसद में पुरःस्थावपत करने से पूिा कें द्र और राज्यों के मध्य संबंवधत विषय
पर व्यापक सहमवत वनर्तमत बनाइ जाये।
o सहमवत स्थावपत करने के काया को ऄंतरााज्यीय पररषद् के माध्यम से संपन्न ककया जा सकता
है। यकद अिश्यक हो तो पररषद् विधेयकों से संबंवधत वििादास्पद मुद्दों को समाप्त करने के
वलए राज्यों के मंवत्रयों की एक सवमवत का गठन कर सकती है।
o आस प्रकार विधेयक में शावमल प्रशासकीय और राजकोषीय मुद्दों पर राज्यों का सहयोग भी
प्राप्त ककया जा सके गा।
o पररषद् में संपन्न की गयी समस्त कायािाही का ररकॉडा राज्यों के विचारों सवहत सं सद को
ईपलब्ध कराया जाना चावहए।
o आस प्रकार समिती सूची के विषयों पर विधेयक पुरःस्थावपत करने की प्रकिया में आन सभी
तथ्यों का प्रयोग ककया जाना चावहए।
सूची II से सूची III में प्रविवष्टयों के स्थानांतरण के संबध
ं में:
o ऄनुच्छेद 368(2) में िर्तणत प्रकिया के ऄनुसार संसद को संविधान के ककसी भी प्रािधान में
संशोधन करने की शवि प्रदान की गयी है (बशते ऐसा संशोधन संविधान के मूल ढााँचे के
प्रवतकू ल न हो)।
o आस सन्दभा में एक बड़ा प्रश्न यह है कक क्या संसद को आस प्रकिया के माध्यम से राज्यों की
विधायी शवियों को एकतरफा ढंग से समाप्त या सीवमत करने का ऄवधकार होना चावहए
ऄथिा आसमें राज्यों की भूवमका भी सुवनवित की जानी चावहए?
o आस पररदृश्य में यह स्पष्ट है कक राज्य सूची में शावमल तथा समिती सूची में स्थानांतररत
विषयों के संबंध में राज्यों के वलए ऄवधक स्ितंत्रता को सुवनवित करना ही कें द्र-राज्य संबंधों
को बेहतर बनाने की कुं जी हैं।
o आस संदभा में, एक संयुि संस्थागत तंत्र के माध्यम से यह जांच करना ईपयुि होगा कक क्या
कें द्रीय कानून (स्थानांतररत विषय पर) के ऄन्तगात संबंवधत विषय के प्रशासन ने ऄपने ईद्देश्य
की पूर्तत की है तथा क्या राज्यों के ऄनन्य ऄवधकार क्षेत्र को सीवमत करने िाली आस व्यिस्था
को जारी रखना िांछनीय है?
o यकद आस प्रकार की गयी जांच से सकारात्मक वनष्कषा नहीं प्राप्त होता है तो कें द्र तथा राज्यों के
बीच बेहतर संबंधों के वहत में संबंवधत विषय को पहले की भांवत राज्य सूची में स्थानांतररत
कर कदया जाना चावहए।
o कें द्र एिं राज्यों के बीच आस प्रकार विकवसत संबंधों के माध्यम से यह अशा की जा सकती है
कक राज्य भी संविधान के भाग IX और IX-A में वनधााररत विषयों और संबंवधत शवियों को
पंचायतों और नगरपावलकाओं को स्थानांतररत करने हेतु प्रोत्सावहत होंगे।
शावमल होती हैं, वजसके ऄंतगात समायोजन, समझौता तथा लेन-देन संबंधी प्रकियाएं शावमल
होती हैं। ऄतः समझौता िाताा में शावमल होने िाले सभी वहतधारकों से संवध की प्रकिया में
कानूनी प्रािधानों के ऄक्षरशः पालन करने की ऄपेक्षा नहीं की जा सकती। जहां संविधान में
के राज्यों या व्यविगत ऄवधकारों पर कोइ ऄसर नहीं पड़ता है, ईन्हें एक ऄलग श्रेणी में रखा
जा सकता है। आस प्रकार के मुद्दों पर कें द्र वबना ककसी संसदीय चचाा के ही समझौते को ऄं वतम
रूप दे सकता है। हालांकक, आस समझौते को ऄंवतम रूप कदए जाने से पूिा आसे कें द्र सरकार के
संबंवधत मंत्रालय की संसदीय सवमवत के समक्ष भेजा जाना बुविमतापूणा होगा।
(c) ऄन्य संवधयााँ जो नागररकों के ऄवधकारों और दावयत्िों को प्रभावित करने के साथ ही राज्य
सूची में शावमल विषयों पर प्रत्यक्ष प्रभाि डालती हैं, ईन्हें राज्यों और संसद के प्रवतवनवधयों
की ऄवधकावधक भागीदारी के माध्यम से ही ऄंवतम रूप प्रदान ककया जाना चावहए। आस
प्रयोजन के वलए प्रस्तावित संवध के विषय तथा संवध में शावमल राष्ट्रीय वहतों से संबंवधत मुद्दों
को समावहत करने िाला एक नोट तैयार ककया जाना चावहए। आस नोट को संवध में शावमल
संबंवधत कें द्रीय मंत्रालय द्वारा तैयार ककया जा सकता है तथा राज्यों के विचारों और सुझािों
को जानने के वलए राज्यों में भेजा जा सकता है। ईसके ईपरांत प्राप्त विचारों और सुझािों से
िाताा प्रकिया में शावमल टीम को संवक्षप्त रूप में ऄिगत कराया जा सकता है।
(d) ऐसे संवध या समझौते हो सकते हैं वजनके लागू ककए जाने पर राज्यों की वित्तीय और
प्रशासवनक क्षमता पर ऄवतररि बोझ पड़े ऄथिा यह भी संभि है कक राज्यों को कु छ विशेष
ईत्तरदावयत्िों का वनिाहन करना पड़े। ऐसी वस्थवत में कें द्र के द्वारा राज्यों पर पड़ने िाले
ऄवतररि बोझ को िहन करने में सहायता प्रदान करनी चावहए। आस संबंध में कें द्र एिं राज्य
अपसी सहमवत से ककसी सूत्र का वनधाारण कर सकते हैं। संवध और समझौतों के कारण ईत्पन्न
होने िाले वित्तीय ईत्तरदावयत्िों के कारण राज्यों पर पड़ने िाले प्रभाि को समय-समय पर
गरठत होने िाले वित्त अयोगों के वलए विचार का स्थायी संदभा होना चावहए। संवध/समझौते
के कायाान्ियन के दौरान राज्यों पर पड़ने िाले ऄवतररि वित्तीय बोझ को कम करने के वलए
अयोग को क्षवतपूर्तत फामूाले की वसफाररश करने के वलए कहा जा सकता है।
राज्यपाल की वनयुवि और हटाने के संबध
ं में
o संविधान द्वारा प्रदत्त राज्यपाल के पद की वस्थवत और महत्ि को देखते हुए तथा राज्य में
संिैधावनक शासन बनाए रखने में ईनकी महत्िपूणा भूवमका को ध्यान में रखते हुए, यह
महत्िपूणा है कक संविधान में राज्यपाल के पद पर वनयुवि के वलए अिश्यक योग्यता या
पात्रता का स्पष्ट प्रािधान हो।
o ितामान में ऄनुच्छेद 157 में के िल यह स्पष्ट ककया गया है कक राज्यपाल के पद पर वनयुि
होने िाले व्यवि को भारत का नागररक होना चावहए तथा ईसने 35 िषा की अयु पूरी कर
ली हो।
o सरकाररया अयोग ने पात्रता मानदंडों के संबंध में जिाहरलाल नेहरू के ईिरण का हिाला
देते हुए राज्यपाल का चयन करने हेतु कु छ प्रमुख मानदंडो की वसफाररशें की थी।वजसे
राज्यपाल वनयुि ककया जान हो ईसके संबंध में अयोग द्वारा सुझाये गए मानदंड हैं:
(a) िह जीिन के ककसी विशेष क्षेत्र में प्रख्यात व्यवि होना चावहए।
(b) िह राज्य के बाहर का व्यवि होना चावहए।
(c) िह तटस्थ व्यवि होना चावहए तथा राज्यों की स्थानीय राजनीवत से वनकटता से संबि नहीं
होना चावहए।
और 356 के तहत वबना चरम कदमों को ईठाये ही संघ द्वारा अिश्यक हस्तक्षेप ककया जा
सके ।
o "स्थानीय अपातकाल" के वलए अिश्यक मानकों का सृजन एिं ऐसे मानकों के ईपलब्ध रहने
के कारण संघ द्वारा विशेष तथा स्थानीय पररवस्थवतयों के ऄनुरूप अिश्यक कदमों को ईठाये
जाने के दौरान राज्य सरकार काया करती रहेगी तथा विधानसभा भी ऄवस्तत्ि में बनी रहेगी।
o स्थानीय अपातकाल को लागू ककया जाना ऄनुच्छेद 355 के तहत प्राप्त ऄवधदेश के ऄंतगात
पूरी तरह से िैध है। आस सन्दभा में संघ सूची की प्रविवष्ट 2A वजसके ऄन्तगात ककसी भी राज्य
में नागररक प्रशासन की सहायता हेतु संघ के द्वारा सशस्त्र बलों की तैनाती की जाती है तथा
राज्य सूची की प्रविवष्ट 1 महत्िपूणा है जो राज्य में लोक व्यिस्था बनाये रखने से संबंवधत है।
ऄनुच्छेद 246 और ऄनुच्छेद 162 के ऄनुच्छेद 243G एिं 243W के साथ संबध
ं ों के संदभा में
o न्याय व्यिस्था ऄपने दावयत्िों का प्रभािी ढंग से वनिाहन कर सके , यह सुवनवित करना संघ
और राज्य सरकारों की संयुि वजम्मेदारी है।जहां सिोच्च न्यायालय और ईच्च न्यायालयों के
प्रशासवनक व्यय िमशः संघ और राज्यों की संवचत वनवध पर भाररत होते हैं, िहीं ऄधीनस्थ
न्यायालयों के वलए संविधान द्वारा ऐसी कोइ वित्तीय व्यिस्था नहीं प्रदान की गयी है।
o न्यावयक योजना तथा बजट वनमााण का काया न्यायपावलका और कायापावलका के द्वारा संयुि
रूप से ककया जाना चावहए। आस हेतु ककसी संयुि मंच की स्थापना की जा सकती है।
विशेष श्रेणी के राज्य की ऄिधारणा को पहली बार 5िें वित्त अयोग द्वारा 1969 में प्रस्तुत ककया
गया था।
विशेष राज्य का दजाा प्रदान करने के पीछे वनवहत तका यह था कक कु छ राज्यों में ऄन्तर्तनवहत
विशेषताओं के कारण ईनका संसाधन अधार कम हैं और विकास के वलए संसाधन जुटाना ईनके
वलए संभि नहीं है।
विशेष राज्य के दजे के वलए कु छ अिश्यक शतें वनधााररत की गयीं:
o पहाड़ी और दुगाम क्षेत्र;
o कम जनसंख्या घनत्ि या अकदिासी अबादी का बड़ा वहस्सा;
o पड़ोसी देशों के साथ सीमा पर सामररक स्थान;
o अर्तथक और ढांचागत वपछड़ापन तथा
o राज्य वित्त की ऄलाभकारी प्रकृ वत।
विशेष राज्य के दजे पर वनणाय करने का ऄवधकार पहले राष्ट्रीय विकास पररषद् के पास था।
अंध्र प्रदेश के विभाजन के पिात् से विशेष राज्य के दजे की मांग ने राज्य भर में व्यापक विरोध
प्रदशान तथा संसद में बहस को प्रेररत ककया है।
यहां यह मांग राज्य के विभाजन के बाद से ईभरी है। जबकक वबहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओवडशा
और राजस्थान द्वारा यह मांग एक लम्बे समय से की जा रही है।
सहायता का ऄंश कम होकर के िल 15 प्रवतशत हो गया है। जबकक यह आन राज्यों को प्राप्त होने
िाली के न्द्रीय सहायता का प्रमुख मागा था।
1 जनिरी 2015 को कें द्रीय कै वबनेट द्वारा एक संकल्प पाररत कर नीवत अयोग (नेशनल आं वस्टट्यूट
फॉर िांसफोर्नमग आं वडया) की स्थापना की गयी। यह भारत सरकार का प्रमुख नीवतगत चथक टैंक
है। आसका ईद्देश्य सहकारी संघिाद की भािना को दृढ़ता प्रदान करते हुए नीवतयों तथा योजनाओं
का वनमााण करना है।
ईन क्षेत्रों में जहां राष्ट्रीय प्रयासों की जरूरत है, िहां के न्द्र सरकार हस्तक्षेप कर सकती है। भारत
सरकार के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं तथा विवभन्न कायािमों एिं नीवतयों के माध्यम से ऐसा करने की
कोवशश करती है। के न्द्र सरकार ने राष्ट्रीय प्राथवमकताओं के अधार पर स्िास्थ्य, वशक्षा, कृ वष,
कौशल विकास, रोजगार, शहरी विकास, ग्रामीण अधारभूत संरचना अकद हेतु योजनाएं शुरू की
हैं। आन क्षेत्रों में से कइ राज्यों की गवतविवधयों के ऄंतगात अते हैं।
सकल बजटीय सहायता के प्रवतशत के रूप में सभी के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं में सरकार की
वहस्सेदारी लगातार तीन पंचिषीय योजनाओं से बढ़ रही है। 11िीं पंचिषीय योजना में यह
41.59% थी जब कक 10िीं ि 9िीं पंचिषीय योजना में िमशः 38.64 तथा 31% रही है। राज्य
विवभन्न मंचों पर के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं में लचीलेपन की कमी तथा राज्यों के संसाधनों पर
प्रवतकू ल दबाि से संबंवधत मुद्दे ईठाते रहे हैं, जैसे:
o अिश्यक धन प्रदान करने में राज्यों की ऄसमथाताः के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं के तहत के न्द्र से
प्राप्त धन का ईपयोग करने के वलए राज्यों से भी एक वनवित प्रवतशत में धन का योगदान
ककया जाना अिश्यक होता है। राज्यों के वलए सहायता का पैटना वभन्न होता है, अमतौर पर
के न्द्र सरकार ईत्तरी-पूिी राज्यों के वलए 90% सहायता और ऄन्य राज्यों के वलए 75 से
100% सहायता योगदान करती है। कु छ राज्य, विशेषकर ईत्तरी-पूिी राज्य, वबहार,
झारखण्ड अकद यह वशकायत करते हैं कक ईनके पास संसाधनों की सीमा है, तथा िे के न्द्र
प्रायोवजत योजनाओं के वलए अिश्यक धन के ईपयोग हेतु राज्य द्वारा प्रदान ककए जाने िाले
धन का वनधााररत वहस्सा प्रदान करने में सक्षम नहीं है।
यद्यवप विदेश नीवत कें द्र सरकार के विवशष्ट क्षेत्रावधकार के ऄंतगात अता है और संविधान राज्यों
को आन विषयों में पहल करने की ऄनुमवत नहीं देता है, तथावप पविम बंगाल सरकार ने हाल में
बांग्लादेश के साथ वद्वपक्षीय संवध के मागा में बाधा ईत्पन्न कर एिं तीस्ता नदी जल समझौते को
रोककर/बावधत कर कें द्रीय विदेशी नीवत को चुनौती दी है।
कदल्ली का मामला
पृष्ठभूवम
िषा 2015 में नइ कदल्ली में अम अदमी पाटी की सरकार के सत्ता में अने के बाद से राज्य सरकार
और कें द्र सरकार के बीच वनरं तर संघषा जारी है।
राज्य सरकार ने कें द्र सरकार पर ऄपने कामकाज में लेवटटनेंट गिनार (ईप राज्यपाल) के माध्यम से
वनरं तर हस्तक्षेप करने एिं लोकतांवत्रक रुप से वनिाावचत राज्य सरकार से ईसके ऄवधकार छीनने
का अरोप लगाया जाता है।
दूसरी ओर कें द्र सरकार ने राज्य सरकार को कानून के शासन का सम्मान न करने के वलए दोषी
ठहराया है। ईसका कहना है कक यह ऄनावधकृ त रूप से शवियों को ग्रहण कर सरकार को
ऄसंिैधावनक तरीके से संचावलत करने का प्रयत्न कर रही है।
मुद्दा: कदल्ली का विशेष मामला
कदल्ली के मुख्यमंत्री एिं लेवटटनेंट गिनार के बीच जारी संघषा नया नहीं है। कदल्ली की प्रत्येक
िवमक सरकार ऄवधक शवियां देने की मांग करती रही है। ककन्तु, कदल्ली एक पूणा राज्य नहीं है
आसवलए आसकी कइ शवियां कें द्र सरकार में वनवहत है।
प्रवतस्पधी संघिाद एक ऐसी संकल्पना है, जहााँ कें द्र राज्यों से तथा राज्य कें द्र से एिं राज्य परस्पर
एक-दूसरे के साथ भारत के विकास हेतु ककये गए संयुि प्रयासों में प्रवतस्पधाा करते हैं।
गुजरात –िषा 2015 में श्रम सुधारों की एक पूरी श्रृंखला प्रारम्भ की गयी, वजसके कारण
औद्योवगक आकाआयों के श्रवमकों द्वारा हड़ताल करना ऄसंभि हो गया। आसके साथ ही, आसमें
कमाचाररयों के बखाास्त ककये जाने की वस्थवत में मुअिजा-भत्ता प्राप्त करने के वलए वनधााररत
समयािवध को भी कम ककया गया।
कनााटक- िषा 2016 में सरकार ने नयी खुदरा नीवत की घोषणा की वजसके माध्यम से प्रवतष्ठानों
को देर तक खुला रखना संभि हो गया। श्रम कानूनों में सुधार के द्वारा स्टॉक की वलवमट को समाप्त
कर कदया गया तथा मवहलाओं को रावत्र में काया करने की ऄनुमवत दी गयी।
राजस्थान – निंबर 2014 में सरकार ने, तीन श्रम सुधार कानूनों पर राष्ट्रपवत की स्िीकृ वत प्राप्त
की वजनके माध्यम से 300 तक कमाचाररयों िाली कं पवनयााँ वबना सरकार की पूिाानुमवत के ऄपने
कमाचाररयों को वनकाल सकती हैं या आकाइ को बंद कर सकती हैं।
संकल्पना के रूप में प्रवतस्पधी संघिाद की ईत्पवत्त पविमी देशों में हुइ।
संयुि राज्य ऄमेररका के वलबटी फाईं डेशन द्वारा प्रवतपाकदत प्रवतस्पधी संघिाद की ऄिधारणा के
ऄनुसार, ”यह एक ऐसी प्रकिया है वजसमें राज्य ऄपने नागररकों को न्यूनतम लागत पर सिोत्तम
सेिाएाँ और िस्तुएाँ प्रदान करने के विस्तृत मुद्दों पर अपस में प्रवतस्पधाा करते हैं।”
भारत में प्रवतस्पधाात्मक संघिाद
भारत सरकार ने योजना अयोग को नीवत अयोग से प्रवतस्थावपत कर कदया है, वजसका प्रमुख
काया भारत में प्रवतस्पधी संघिाद विकवसत करना है।
ऄब राज्य सरकारें नीवतगत मागादशान और वित्तीय संसाधनों के वलए पूरी तरह कें द्र पर वनभार नहीं
हैं।
कें द्र सरकार ने कें द्रीय कर राजस्ि में राज्यों की वहस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी है।
सरकार ने घोषणा की है कक राज्य ऄपनी प्राथवमकताओं के अधार पर योजना वनमााण कर सकते
हैं तथा िे के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं में बदलाि के वलए भी स्ितंत्र हैं।
हालांकक, राज्यों को साझा राष्ट्रीय ईद्देश्यों की पररवध में रहकर ही काया करना चावहए।
प्रवतस्पधी संघिाद के मामले में प्रगवत
प्रवतस्पधी संघिाद की संकल्पना ने राज्यों को सुधार प्रकियाओं के स्िीकरण हेतु प्रेररत ककया है
वजसके माध्यम से राज्यों में कारोबारी प्रकिया असान एिं लंवबत पररयोजनाओं को शीघ्र मंजरू ी
वमल सके ।
राज्यों के मध्य वनिेश के वलए प्रवतस्पधाा, कोइ नइ बात नहीं है। हम अंध्र प्रदेश और कनााटक द्वारा
ईनके मुख्य प्रौद्योवगकी के न्द्रों- हैदराबाद और बेंगलुरू के वनमााण के वलए वनिेशकों को अकर्तषत
करने हेतु सकिय प्रयास करते हुए देख चुके हैं।
प्रवतस्पधी संघिाद की प्रगवत को वपछले िषा में वनिेश में प्रवतस्पधाा के वलए राज्यों द्वारा ककये गए
विवभन्न सुधारों के सन्दभा में देखा जा सकता है।
गुजरात – िषा 2016 में कु छ विकास पररयोजनाओं को संचावलत करने हेतु सामावजक प्रभाि
अकलन और सहमवत प्रािधान को समाप्त करने के वलए भूवम ऄवधग्रहण और पुनिाास ऄवधवनयम
में संशोधन ककया गया।
महाराष्ट्र – िषा 2016 में भूवम राजस्ि संवहता में कु छ वनजी भूवम की वबिी हेतु स्िीकृ वत देने के
वलए संशोधन ककया गया। दृष्टव्य है कक पहले वनजी भूवम के िल लीज पर दी जा सकती थी। िषा
2015 में गुंथि
े ारी ऄवधवनयम में संशोधन के द्वारा मध्यम अकार के भू-खण्डों को आनकी वबिी हेतु
छोटे भू-खण्डों में विभावजत करने की स्िीकृ वत दी गयी।
अंध्रप्रदेश –िषा 2015 में भूवम को सरकार द्वारा वनजी संस्थाओं को लीज पर कदए जाने की ऄिवध
राजस्थान –िषा 2016 में राजस्थान शहरी (हक़ प्रमाणन ) भूवम विधेयक -2016 पाररत ककया
गया वजसके माध्यम से राज्य सरकार के द्वारा भूवम के खरीदे जाने के बाद हक़ की गारं टी दी गयी।
ईत्तर प्रदेश –िषा 2016 में व्यिसाय प्रारं भ करने िाली आकाआयों के वलए ईत्तर प्रदेश I.T. एिं
भारत की एकता और ऄखंडता को मजबूत बनाने के वलए यह एक ऄवभनि पहल है वजससे विवभन्न
राज्यों एिं कें द्र शावसत प्रदेशों की संस्कृ वत, परं पराओं तथा प्रथाओं के ज्ञान के माध्यम से राज्यों के मध्य
एक बेहतर समझ एिं संबंध को बढ़ािा वमलेगा।
आस कायािम के ऄंतगात सभी राज्यों और कें द्र शावसत प्रदेशों को सवम्मवलत ककया जाएगा।
आस योजना के ऄनुसार, दो राज्य एक िषा के वलए एक ऄवद्वतीय साझेदारी अरम्भ करें गे।वजसमें
सांस्कृ वत और विद्यार्तथयों के अदान-प्रदान को लवक्षत ककया जाएगा। आस पहल के शुभारं भ के
ऄिसर पर राज्यों के मध्य 6 सहमवत पत्रों (MOUs) पर हस्ताक्षर भी ककए गए।
आसमें एक विशेष राज्य का विद्याथी, एक-दूसरे की संस्कृ वत को जानने के वलए दूसरे राज्य की
यात्रा करे गा।
वजला स्तरीय समन्िय को बढ़ािा कदया जाएगा तथा यह राज्य स्तरीय समन्िय से स्ितंत्र होगा।
िार्तषक कायािमों में विवभन्न राज्यों और वजलों को जोड़ने में यह गवतविवध ऄत्यवधक सहायक
होगी।
यह संस्कृ वत, पयाटन, भाषा, वशक्षा व्यापार अकद के क्षेत्रों में अदान-प्रदान के माध्यम से लोगों
को जोड़ेगी।
नागररक कइ राज्यों/कें द्र शावसत प्रदेशों में भ्रमण कर सांस्कृ वतक विविधता का ऄनुभि करें गे और
यह महसूस करें गे कक भारत एक है।
हमारे राष्ट्र की विविधता में एकता का प्रचार करना और आसे बनाए रखना तथा देश के लोगों के
बीच पारं पररक रूप से विद्यमान भािनात्मक बंधन के ताने-बाने को मजबूत करना।
राज्यों के बीच एक िषा की ऄिवध िाली योजनाबि भागीदारी द्वारा सभी भारतीय राज्यों और
संघ शावसत प्रदेशों के बीच एक प्रगाढ़ और समवन्ित भागीदारी के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की
भािना को बढ़ािा देना।
भारत की विविधता को समझने और ईसकी सराहना करने में लोगों को सक्षम बनाने के वलए
समृि विरासत एिं संस्कृ वत, रीवत-ररिाज एिं परं पराओं को प्रदर्तशत करना तथा आस प्रकार
पहचान की समान भािना को बढ़ािा देना।
दीघाकावलक भागीदारी की स्थापना करना तथा ऐसे िातािरण का वनमााण करना जो राज्यों के
बीच सिोत्तम कायाप्रणाली और ऄनुभिों को साझा कर सीखने को बढ़ािा देता है।
महत्ि:
एक भारत श्रेष्ठ भारत का विचार लोगों को बंधन और भाइचारे की स्िाभाविक डोर को अत्मसात
करने में सक्षम बनाकर एक बेहतर राष्ट्र के वनमााण में मदद करे गा।
यह योजना विवभन्न सांस्कृ वतक विचारों के अदान प्रदान के माध्यम से संपण
ू ा राष्ट्र हेतु जिाबदेही
और स्िावमत्ि की भािना को संप्रवे षत करने में मदद करे गी।
VISIONIAS
www.visionias.in
1.11. पंचायत ईपबंध (ऄनुसूवचत क्षेिों में विस्तार) ऄवधवनयम 1996 ________________________________________ 14
1.11.1. PESA की पृष्ठभूवम __________________________________________________________________ 14
1.11.2. PESA से संबंवधत समस्याएँ ____________________________________________________________ 15
3.2. जनगणना नगरों का िैधावनक शहरी स्थानीय वनकायों में पररितयन _______________________________________ 29
3.2.1. िैधावनक शहरी स्थानीय वनकाय (ULBs) क्या हैं? _____________________________________________ 29
3.2.2. जनगणना नगर क्या है? ________________________________________________________________ 29
3.2.3. पररितयन की अिश्यकता क्यों? ___________________________________________________________ 30
पंचायतें
1. पं चायती राज सं स्थाएँ {ऄनु . 243 से ऄनु . 243(O) तक}
भारत के ऄवधकांश राज्यों में ग्रामीण स्थानीय स्िशासन की स्थापना हेतु राज्य विधावयकाओं के
ऄवधवनवयमों के तहत पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना की गयी हैं ताकक िोकतंि का वनचिे
स्तरों पर भी विस्तार ककया जा सके ।
आन पंचायती राज संस्थाओं को ग्रामीण विकास का दावयत्ि सौंपा गया है। ईल्िेखनीय है कक
पंचायती राज संस्थाओं को 73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1992 के तहत संिध
ै ावनक दजाय
प्रदान ककया गया है।
भारत में पंचायती राज निीन ऄिधारणा नहीं है। प्राचीन समय में भारतीय गांिों में पंचायतें
(पांच व्यवियों की पररषद्) होती थीं, वजन्हें काययकारी तथा न्यावयक दोनों शवियां प्राप्त थीं। भूवम
वितरण, कर संग्रहण अकद जैसे ऄनेक मुद्दें आन पंचायतों के वनयंिणाधीन थे तथा ये पंचायतें
स्थानीय वििादों का समाधान करती थीं।
गांधी जी पंचायती राज के सशविकरण के समथयक थे। आस सन्दभय में ईनके विचारों के
पररणामस्िरूप ही हमारे संविधान के भाग IV (राज्य के नीवत के वनदेशक तत्ि) में पंचायतों के
गठन का प्रािधान शावमि है। ऄनुच्छेद 40 के ऄनुसार, पंचायतों के गठन का ईत्तरदावयत्ि राज्यों
का है तथा राज्य ईन्हें अिश्यक शवियाँ तथा ऄवधकार प्रदान करें गे ताकक िे सरकार की इकाइ के
रूप में कायय करने में सक्षम हो सकें । परं तु, यह ऄनुच्छेद पंचायतों के गठन के विए कदशा-वनदेश
नहीं देता है। ऄतः आस प्रकार यह एक औपचाररक संस्था है।
पंचायतों की संरचना के विषय में सियप्रथम बििंतराय मेहता सवमवत (सामुदावयक विकास
काययक्रम की जांच सवमवत, 1952) ने 1957 में वसफाररश की थी। सवमवत ने निंबर 1957 में
ऄपनी ररपोटय में िोकतांविक विके न्द्रीकरण की योजना की वसफाररश की। वजसे भारत में ऄतंतः
पंचायती राज के रूप में जाना गया। बििंतराय मेहता सवमवत ने वि-स्तरीय व्यिस्था की
वसफाररश की थी वजसमें ग्राम पंचायत, क्षेि पंचायत (ब्िॉक स्तर पर पंचायत सवमवत) तथा वजिा
पंचायत (वजिा स्तर पर वजिा पररषद्) तीन स्तर थे। आसने ग्राम स्तर की पंचायतों के विए प्रत्यक्ष
चुनाि की वसफाररश की। राजस्थान, भारत में पंचायती राज स्थावपत करने िािा पहिा राज्य
था, वजसका अरम्भ 2 ऄक्टू बर 1959 को नागौर वजिे से ककया गया।
1 कदसम्बर 1977 को पंचायती राज पर विचार हेतु ऄशोक मेहता सवमवत का गठन ककया गया।
आस सवमवत ने ऄगस्त 1978 में ऄपनी ररपोटय प्रस्तुत की। ऄशोक मेहता सवमवत ने पंचायती राज
को सशि बनाने हेतु विवभन्न वसफाररशें कीं वजसमें वनम्नविवखत प्रमुख है:
o विस्तरीय पंचायतें,
o वनयवमत सामावजक िेखा परीक्षण,
o पंचायती चुनाि में राजनीवतक दिों की भागीदारी,
o वनयवमत चुनाि,
o पंचायतों में ऄनुसूवचत जावतयों तथा ऄनुसूवचत जनजावतयों के विए अरक्षण तथा
o राज्य मंविमण्डि में पंचायती राज मंिी की व्यिस्था अकद।
आसके ऄवतररि, 1985 में गरठत जी. िी. के . राि सवमवत ने पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत
करने के विए कु छ वसफाररशें कीं।
ककया। आस सवमवत की वसफाररशों के अधार पर 1989 में राजीि गांधी सरकार ने पंचायती राज
को संिैधावनक दजाय प्रदान करने के विए िोकसभा में एक विधेयक (64िां संविधान संशोधन
विधेयक) पेश ककया। यह विधेयक राज्यसभा में पाररत नहीं हो सका।
पुनः िी.पी. चसह सरकार ने भी सदन में एक विधेयक प्रस्तुत ककया, परं तु सरकार के वगरने के
कारण यह विधेयक समाप्त हो गया।
ऄंततः पी. िी. नरचसहा राि सरकार ने िोकसभा में वसतंबर 1991 में एक विधेयक प्रस्तुत ककया।
यह विधेयक ऄंततः 73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1992 के रूप में पाररत हुअ तथा 24
73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1992 िारा संविधान में एक नया भाग (भाग IX) जोड़ा
गया।
आसके साथ ही, संविधान में 11िीं ऄनुसच
ू ी भी जोड़ी गइ। आस सूची में पंचायतों के विए 29
विषय सवम्मवित ककए गये।
आस ऄवधवनयम िारा पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना, सशविकरण तथा ईनके कायय संचािन
के विए संिैधावनक प्रािधान ककये गये। आस संशोधन ऄवधवनयम के कु छ प्रािधान राज्यों के विए
बाध्यकारी हैं, जबकक कु छ प्रािधान राज्य विधान मण्डि के वििेक पर छोड़ कदये गए हैं।
नये कानून में राज्यों के विए बाध्यकारी प्रािधान वनम्नविवखत हैं:
o ग्राम सभाओं का संगठन।
o ग्राम, ब्िॉक तथा वजिा स्तर पर वि-स्तरीय पंचायती संरचना की स्थापना।
o िगभग सभी पदों पर और सभी स्तरों पर प्रत्यक्ष चुनाि का होना।
o पंचायती राज संस्थाओं में चुनाि िड़ने हेतु न्यूनतम अयु 21 िषय होनी चावहए।
o वजिा ि ब्िॉक स्तर पर ऄध्यक्ष पद का चुनाि ऄप्रत्यक्ष रूप से होना चावहए।
o ऄनुसूवचत जावतयों तथा जनजावतयों के विए सीटों का अरक्षण ईनकी जनसंख्या के ऄनुपात
में होना चावहए एिं मवहिाओं के विए पंचायतों में एक वतहाइ अरक्षण होना चावहए।
o पंचायती राज संस्थाओं में चुनाि हेतु राज्य वनिायचन अयोग का गठन।
o पंचायती राज संस्थाओं का काययकाि पांच िषय है, यकद आसे पहिे भंग ककया जाता है तो छः
माह के भीतर नया चुनाि करिाया जाएगा।
o प्रत्येक राज्य में एक राज्य वित्त अयोग की स्थापना की जाएगी।
कु छ प्रािधान जो राज्यों पर गैर-बाध्यकारी हैं तथा आस संबंध में के िि कदशा-वनदेश प्रदान करते
हैं, ये हैं:
o आन संस्थाओं में के न्द्रीय और राज्य विधान सभाओं के सदस्यों को प्रवतवनवधत्ि देना।
o वपछड़े िगों को अरक्षण प्रदान करना।
o करारोपण, शुल्क अकद के संबंध में पंचायती राज संस्थाओं को वित्तीय शवियां प्रदान करना
तथा ईन्हें स्िायत्त वनकाय बनाने की कदशा में प्रयास करना।
73िें संविधान संशोधन के ऄनुसार वि-स्तरीय पंचायती राज व्यिस्था स्थावपत की गइ। यह
व्यिस्था प्रत्यक्ष चुनाि पर अधाररत है। ये तीन स्तर- ग्राम स्तर, मध्यिती स्तर तथा वजिास्तर हैं।
73िां संविधान संशोधन ऄवधवनयम पंचायतों में वनरं तरता प्रदान करता है। पंचायतों का सामान्य
काययकाि 5 िषय है। यकद पंचायत समय से पहिे भंग कर दी जाती है तो छह माह के भीतर चुनाि
कराया जाना अिश्यक है।
पंचायतों के चुनाि के विए एक राज्य वनिायचन अयोग का प्रािधान है जो चुनािों का ऄधीक्षण,
वनदेशन तथा वनयंिण करता है और चुनाि संपन्न कराता है।
राज्य विधावयकाएँ, जमीनी स्तर पर स्िशासी संस्थाओं को सक्षम बनाने के विए ऄवधकार ि
शवियाँ प्रदान करती हैं। पंचायतों को अर्चथक विकास ि सामावजक न्याय का ईत्तरदावयत्ि भी
सौंपा जा सकता है।
11िीं ऄनुसूची में िर्चणत 29 विषयों से संबंवधत अर्चथक ि सामावजक न्याय के विए काययक्रम जैसे-
कृ वष, प्राथवमक ि माध्यवमक वशक्षा, स्िास््य ि स्िच्छता, पेयजि, ग्रामीण अिास, कमजोर िगों
यह सबसे वनचिे स्तर या अधारभूत स्तर से संबंवधत है। एक या ऄवधक गाँिों के विए जो पंचायत
होती है, ईसमें ग्राम सभा (प्रत्यक्ष िोकतंि का प्रतीक), ग्राम पंचायत तथा न्याय पंचायत
सवम्मवित होती हैं।
न्याय पंचायतें, प्राचीन ग्राम पंचायतों की तरह स्थानीय वििादों के समाधान के विए हैं। यह
त्िररत तथा कम खचीिा न्याय प्रदान करने के विए स्थावपत की गइ है। न्याय पंचायतों का
ऄवधकार क्षेि ऄिग-ऄिग राज्यों में ऄिग-ऄिग है
ऄवधकतर ग्राम पंचायतों में न्याय पंचायतों का काययकाि 5 िषय है। राज्य कानूनों के ऄनुसार
सामान्यतः आनका काययकाि 3 से 5 िषय रखा जाता है।
ये पंचायतें अपरावधक तथा वसविि दोनों मामिे देखती हैं। न्याय पंचायतें ऄवधकतम 100 रुपये
तक जुमायना िगा सकती हैं। आनमें िकीि की भूवमका नहीं होती है। दोनों पक्ष स्ितः ही ऄपने-
ऄपने तकय देते हैं।
1.6.2. पं चायत सवमवत
पंचायती राज की मध्यिती संरचना को पंचायत सवमवत कहते हैं। यह वजिा पररषद् एिं ग्राम
पंचायत के मध्य सम्पकय सूि का कायय करती है।
कु छ पंचायतों में विधानसभा तथा विधान पररषदों के सदस्यों के साथ-साथ संसद के सदस्य भी
पंचायत सवमवत के सदस्य होते हैं। पंचायत सवमवत के ऄध्यक्ष का चुनाि ऄप्रत्यक्ष रूप से पंचायत
सवमवत के वनिायवचत सदस्यों िारा ककया जाता है।
पंचायती राज संस्थायें िे कायय करती हैं वजनका राज्य के कानूनों में ईल्िेख ककया गया है। आन्हें
वनम्नविवखत शीषयकों के माध्यम से समझा जा सकता हैं:
कु छ राज्य ग्राम पंचायतों के ऄवनिायय तथा िैकवल्पक कायों में ऄंतर करते हैं जबकक कु छ राज्य आस
ऄंतर को नहीं मानते हैं। साियजवनक सड़कें , छोटी चसचाइ पररयोजनाएँ, साियजवनक शौचािय,
प्राथवमक स्िास््य, टीकाकरण, पेयजि की अपूर्चत, साियजवनक कु ओं का वनमायण, ग्रामीण
विद्युतीकरण, सामावजक स्िास््य और प्राथवमक ि प्रौढ़ वशक्षा अकद से संबंवधत कायय पंचायतों के
विए ऄवनिायय हैं।
पंचायतों के िैकवल्पक कायय ईनके संसाधनों पर वनभयर करते हैं। सड़कों के ककनारे िृक्षारोपण, पशु
प्रजनन कें द्र, बाि तथा मातृत्ि विकास, कृ वष को बढ़ािा देना अकद पंचायतों के ऐवच्छक कायय हैं।
73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम के बाद ग्राम पंचायतों के कायों के दायरे में िृवर्द् की गइ।
िार्चषक विकास योजनाओं का वनमायण, िार्चषक बजट, प्राकृ वतक अपदा में राहत, साियजवनक भूवम
पर ऄवतक्रमण हटाना और गरीबी ईन्मूिन काययक्रमों की वनगरानी जैसे महत्िपूणय कायय भी ऄब
पंचायतों को सौंप कदए गए हैं। साथ ही, साियजवनक वितरण प्रणािी, गैर परं परागत उजाय स्रोत,
बायोगैस संयंि, ग्राम पंचायतों के िाभार्चथयों का चयन अकद कायय भी ग्रामपंचायतों को सौंप कदये
गये हैं।
1.7.2. पं चायत सवमवत के कायय
पंचायत सवमवत विकास गवतविवधयों के के न्द्र में होती है। कृ वष, भूवम सुधार जिसंभर का विकास,
सामावजक एिं कृ वष िावनकी, तकनीकी एिं व्यिसावयक वशक्षा अकद पंचायत सवमवतयों के कायय
हैं।
दूसरे प्रकार के कायय कु छ विवशष्ट योजनाओं ि काययक्रमों के कक्रयान्ियन से संबंवधत हैं, वजसके विए
वनवध वनधायररत की जाती है। आसका ऄथय है कक पंचायत सवमवत के िि ईस विवशष्ट पररयोजना पर
धन खचय कर सकती है जो ईसके कायय क्षेि में है। य़द्यवप स्थान तथा िाभाथी का चयन पंचायत
सवमवत िारा तय ककया जाता है।
1.7.3. वजिा पररषद् के कायय
वजिा पररषद्, वजिे के भीतर पंचायत सवमवतयों को एकजुट करती है। यह ईनकी गवतविवधयों में
समन्िय करती है तथा ईनके कामकाज की वनगरानी करती है।
मवहिाओं तथा बच्चों का कल्याण अकद जैसे कल्याणकारी कायय भी ककए जाते हैं।
आसके ऄवतररि वजिा पररषदें, के न्द्र तथा राज्य सरकार िारा प्रायोवजत योजनाओं का संचािन
भी करती हैं।
पंचायतें ऄपने कायों को कु शितापूियक तभी कर सकती हैं, जब ईनके पास पयायप्त वित्तीय संसाधन
ईपिब्ध हो। संसाधनों के विए पंचायतें मुख्यतः राज्य सरकार पर वनभयर होती हैं।
ईनके पास कराधान की शवियां भी हैं तथा कु छ अय पररसंपवतयों से भी प्राप्त होती है। ईन्हें राज्य
सरकारों के कर, शुल्क, टोि टैक्स तथा फीस अकद में भी वहस्सा प्राप्त होता है। विवभन्न स्तरों पर
पंचायतों के पास वित्त के वनम्नविवखत साधन हैं:
ऄवधकांश राज्यों में करारोपण की शवि ग्राम पंचायतों में वनवहत है। गांिों में ईत्पादों की वबक्री
पर शुल्क, मिेशी कर, ऄचि संपवत्त कर, िावणवज्यक फसिों पर कर, जि वनकासी कर, स्िच्छता
शुल्क, जि अपूर्चत शुल्क, प्रकाश शुल्क अकद पंचायतों िारा िगाये गये कु छ कर और शुल्क हैं।
पंचायतें ऄस्थायी रूप से स्थावपत वथयेटर पर कर, मिेशी कर तथा मनोरं जन शुल्क िसूि करती
हैं। ग्राम पंचायतों को ऄपने स्िावमत्ि की भूवम, जंगि, पशुचारा से भी अय के रूप में धन प्राप्त
होता है। िे गोबर वबक्री तथा जानिरों के शिों की वबक्री से अय प्राप्त करती हैं। राज्य के भू-
राजस्ि में भी ईनका वहस्सा होता है।
पंचायत सवमवतयाँ पेयजि या चसचाइ जि पर कर, टोि टैक्स िसूि सकती हैं। पंचायत ऄपनी
पररसंपवतयों से भी अय प्राप्त करती है। िे राज्य सरकार से ऄनुदान प्राप्त करती हैं।
पंचायत सवमवतयों िारा अरम्भ की जाने िािे योजनाओं के विए वनवध, राज्य सरकार तथा वजिा
पररषदों िारा प्रदान की जाती है।
वजिा पररषदें भी करारोपण के विए ऄवधकृ त हैं। िे ऐसे कारोबार पर कर िगा सकती हैं, जो
गाँिों में छः माह से ऄवधक समय से चि रहा हो। िे मध्यस्थों, कमीशन एजेंटों, िस्तुओं की वबक्री
अकद पर भी कर िगा सकती हैं।
ईन्हें विकास योजनाओं को िागू करने के विए भी धन कदया जाता हैं। वजिा पररषदें, राज्यों िारा
राज्य सरकारें सामान्यतया पंचायतों के वित्तीय सशविकरण पर ध्यान नहीं देती हैं। पंचायतों की
वित्तीय समस्याओं से संबंवधत कु छ मुद्दे वनम्नविवखत हैं:
राज्य ि के न्द्र सरकारों पर ऄत्यवधक वनभयरता: पंचायतें, सरकारी ऄनुदानों पर ऄत्यवधक वनभयर हैं
तथा ईनके अंतररक संसाधन के स्रोत ऄत्यवधक कमजोर है। आसका एक अंवशक कारण ईनके पास
करारोपण की न्यून शवि तथा दूसरा अंवशक कारण कर संग्रहण की ऄवनच्छा है।
प्राप्त वनवध में िचीिेपन का ऄभाि: संघ तथा राज्य सरकारों िारा कदया जाने िािा ऄनुदान
योजना अधाररत होता है तथा पंचायतों के पास आनके खचय की शवियां सीवमत होती हैं।
ऄवधक ईत्तरदावयत्ि एिं कम वित्तीय संसाधन: ऄपनी दयनीय राजकोषीय वस्थवत के कारण राज्य
सरकारें पंचायतों को धन देने को ईत्सुक नहीं होती हैं। 11िें ऄनुसूची में ईवल्िवखत प्राथवमक
वशक्षा, स्िास््य, जि-अपूर्चत, स्िच्छता, चसचाइ अकद जैसे काययक्रम राज्य सूची के विषय हैं तथा
आनके कायायन्ियन का ईत्तरदावयत्ि भी राज्यों का है। समग्र वस्थवत यह है कक पंचायतों के पास
ईत्तरदावयत्ि ऄवधक है तथा संसाधन ऄपयायप्त हैं।
हस्तक्षेप, सेिा भािना के बजाय शवि ऄजयन पर ध्यान देना आत्याकद पंचायती राज की सफिता में
सबसे बड़ी बाधाएँ हैं। आसके ऄवतररि राज्य सरकारों िारा पंचायतों की शवि का ऄवतक्रमण
ककया जाना, िोकतांविक विके न्द्रीकरण की भािना का ईल्िंघन है।
प्रशासवनक समस्याएँ: पंचायती राज संस्थाओं को कइ प्रशासवनक समस्याओं का सामना करना
पड़ता है, जैस-े स्थानीय प्रशासन का राजनीवतकरण, िोकप्रवतवनवध तथा नौकरशाही तत्िों के
मध्य सहयोग का ऄभाि, प्रशासवनक कर्चमयों हेतु यथोवचत प्रोन्नवत के ऄिसर तथा पाररतोवषक का
ऄभाि और सरकारी कर्चमयों का विकासात्मक काययक्रमों के प्रवत ईदासीन दृवष्टकोण आत्याकद
पंचायती राज के सुचारू तथा कु शि कक्रयान्ियन में बाधा ईत्पन्न करते हैं।
पंचायती राज संस्थाओं का राजनीवतकरणः यह ऄनुभि ककया जा रहा है कक पंचायती राज
संस्थाएँ, राजनीवतक दिों, विशेष रूप से राज्य में सत्तासीन दि का संगठनात्मक ऄंग बनती जा
रही हैं। कइ राज्यों में राज्य सरकारें पंचायती राज संस्थाओं को ऄपनी सुविधा के अधार पर कायय
करने की ऄनुमवत देती है, न कक िोकतांविक विके न्द्रीकरण के दशयन के अधार पर।
जाना चावहए। सभी ग्राम पंचायतों को ICT ऄिसंरचना तथा कु शि मानि श्रम प्रदान ककया जाना
चावहए। ईन्हें ब्रॉडबैण्ड से जोड़ा ककया जाना चावहए। साथ ही, सबसे वनचिे स्तर तक इ-गिनेस
व्यिस्था को विस्ताररत करने हेतु ऄन्य ईपाय करने चावहए।
(vi) विके न्द्रीकृ त वनयोजन: एकीकृ त बॉटम-ऄप (नीचे से उपरी स्तर की ओर) सहभागी योजना िागू
की जानी चावहए। क्षेििार योजनाओं (sectoral plans) को वजिा योजनाओं के साथ एकीकृ त ककया
जाना चावहए। विके न्द्रीकृ त योजना के विए तकनीकी तथा व्यिसावयक पेशेिर प्रदान ककये जाने
चावहए। पंचायती राज प्रवतवनवधयों तथा ऄवधकाररयों को पयायप्त प्रवशक्षण प्रदान ककया जाना चावहए।
1.11. पं चायत ईपबं ध (ऄनु सू वचत क्षे िों में विस्तार) ऄवधवनयम 1996
यह कानून भारत सरकार िारा ऄनुसूवचत क्षेिों के विए वनर्चमत ककया गया है। ये क्षेि 73िें
संविधान संशोधन में शावमि नहीं हैं।
यह विशेष ऄवधवनयम ऄनुसूवचत क्षेिों में भाग-IX के प्रािधानों को िागू करता है। PESA आन
आस ऄवधवनयम में ग्रामसभा को भूवम ऄवधग्रहण के संबंध में परामशय प्रदान करने, िघु िन ईत्पादों
के स्िावमत्ि से िेकर खवनज के पट्टे प्रदान करने के संबंध में परामशय अकद करने तक की विस्तृत
शवियाँ प्रदान की गइ हैं।
PESA ईस समय ऄवस्तत्ि में अया, जब भारतीय ऄथयव्यिस्था में प्रत्यक्ष विदेशी वनिेश को
अकषयक बनाने हेतु ऄनेक प्रयास ककए जा रहे थे। ऄवधकांश: खनन क्षेि ऄनुसूवचत क्षेिों में वस्थत
है, जहां यह क़ानून िागू है। यहाँ बहुराष्ट्रीय कम्पवनयों और भारतीय कापोरे ट क्षेि के अने से
खवनज संसाधनों का ऄंधाधुंध दोहन सस्ती दरों पर और तीव्र गवत से हो रहा था।
PESA की एक महत्िपूणय विशेषता यह है कक प्रत्येक ग्राम सभा को ऄपनी परं परा, संस्कृ वत,
पहचान, तथा परं परागत प्रकार से वििाद समाधान के तरीके के संदभय में विशेष शवियां दी गइ
है।
आसके ऄिािा ग्राम सभा या पंचायतों को वनम्नविवखत शवियां दी गइ हैं:
o भूवम ऄवधग्रहण ि पुनिायस के मामिों पर परामशय की शवि।
o िघु खवनजों के विए खनन पट्टा ि पययिेक्षण िाआसेंस हेतु ऄनुदान।
o िघु जि वनकायों हेतु योजना वनमायण एिं प्रबंधन की शवि।
o नशीिे पदाथों की वबक्री, ईपभोग को वनयंवित या प्रवतबंवधत करने की शवि।
o िघु िन ईपजों के ईत्पादन पर स्िावमत्ि।
o भूवम विखण्डन को रोकने की शवि।
o ग्राम बाजारों के प्रबंधन की शवि।
o ऄनुसूवचत जनजावतयों की ऊण संबंधी अिश्यकताओं को वनयंवित करने की शवि।
o पंचायतों को व्यापक शवियाँ प्रदान करते हुए आस कानून ने ईन्हें ऄवतररि वजम्मेदारी सौंपी
है वजससे िे स्थानीय स्िशासन के रूप में कायय करने में सक्षम हो। आसमें यह रक्षोपाय है कक
ईच्चस्तरीय पंचायतें, वनम्नस्तरीय पंचायतों के ऄवधकार ि शवियों का हरण न कर सकें ।
वसर्द्ान्तों को िागू नहीं ककया कदया। आन वसर्द्ान्तों के वबना PESA मूि रूप में कभी िागू नहीं हो
सकता है। जैस-े PESA के ऄनुसार राज्य कानून, जनजावतयों की प्रथाओं के ऄनुरूप होंगे तथा
प्रथाओं के ऄनुसार ही पारम्पररक संसाधनों का प्रबंधन ककया जाएगा।
ऄस्पष्ट पररभाषाएँ: आस कानून में कु छ शब्दों की पररभाषा ऄस्पष्ट है। िघु जि वनकाय, िघु
खवनज की कोइ स्पष्ट पररभाषा नहीं दी गयी है।
यह ऄवधवनयम कदसम्बर, 2006 में पाररत हुअ था। आसका मुख्य ईद्देश्य िनों में वनिास करने िािे
समुदायों के भूवम सवहत ऄन्य संसाधनों पर ऄवधकार को सुवनवित करना है।
आस ऄवधवनयम के ऄंतगयत, सकदयों पूिय से पारं पररक रूप से िनों में रहने िािे समुदायों के साथ
विवभन्न िन कानूनों के कारण हुए ऄन्याय को अंवशक रूप से ही सही समाप्त करने का बेहतर
प्रयास ककया गया है। साथ ही, आन समुदायों के पारं पररक िनावधकारों को मान्यता प्रदान की गइ
है।
यह ऄवधवनयम कइ दशकों तक विवभन्न जनजावतयों, ईनके संगठनों, जनजातीय मुद्दों से संबंवधत
ऄसंख्य सामावजक काययकतायओं एिं बुवर्द्जीवियों के ऄथक प्रयास एिं संघषय का पररणाम हैं।
स्िावमत्ि संबध
ं ी ऄवधकार (Title rights): 4 हेक्टेयर तक की ईस भूवम पर जनजावतयों,
िनिावसयों या िन में रहने िािे समुदायों के स्िावमत्ि को मान्यता वजस पर िे कृ वष संबंवधत कायय
कर रहे हैं। आनके ऄंतगयत, नइ भूवम को अबंरटत नहीं ककया जाएगा। बवल्क, वजस भूवम पर संबंवधत
पररिार िारा खेती की जा रही है, के िि ईसी पर ऄवधकार के दािे को स्िीकार ककया जाएगा।
यह अरोप िगाया जा रहा है कक कें द्र सरकार िारा ईठाए गए विवभन्न कदमों ने आस ऄवधवनयम के
प्रािधानों को कमजोर ककया है:
कें द्र सरकार ने विवभन्न ऄन्य ऄवधवनयमों के माध्यम से आस ऄवधवनयम में प्रदत्त ऄवधकारों एिं
सुरक्षा को कमजोर ककया है वजसके ऄंतगयत ककसी सरकारी पररयोजना के कायायन्ियन के विए िनों
से जनजावतयों के विस्थापन, पुनिायस एिं बसाने हेतु ‘ग्राम सभा’ की सहमवत की ऄवनिाययता
ऄप्रभािी हो गयी है।
मध्यम अकार िािी कोयिा ईत्खनन पररयोजनाओं हेतु िोक सुनिाइ एिं ग्राम सभा की सहमवत
संबंधी प्रािधान को समाप्त कर कदया गया है।
खान एिं खवनज (विकास एिं विवनयमन) ऄवधवनयम, प्रवतपूरक िनीकरण कोष ऄवधवनयम एिं
िन ऄवधकार ऄवधवनयम के वनयमों में ऄनेक संशोधनों के माध्यम से आस ऄवधवनयम के प्रािधानों
को वनबयि कर कदया गया है।
सरकार ऄपनी ‘इज ऑफ डू आंग वबजनेस’ संबंधी प्रवतबर्द्ता को सुवनवित करने के विए
जनजावतयों के वनिास िािे िन क्षेिों में वनजी क्षेि की पररयोजनाओं को तेजी से सहमवत दे रही
है।
राष्ट्रीय िन्यजीि बोडय (वजसके ऄध्यक्ष प्रधानमंिी होते हैं) में स्ितंि सदस्यों (विशेषज्ञों) की संख्या
15 से घटाकर 3 कर दी गइ है। ऄब आसमें सरकारी ऄवधकाररयों का प्रभुत्ि हो गया है।
आसके साथ ही, आस ऄवधवनयम के विवभन्न प्रािधानों का जानबूझकर िास्तविक कक्रयान्ियन नहीं
होने कदया जा रहा है। न तो व्यविगत स्तर पर और ना ही सामुदावयक स्तर पर िन संसाधन
संबंधी पट्टा प्रदान ककया गया है।
कु छ राज्य सरकारों ने भी ऄपने विवभन्न वनयमों एिं अदेशों िारा आस ऄवधवनयम के प्रािधानों को
कमजोर करने का प्रयास ककया है यथा :
तेिांगना ने िनभूवम पर कृ वष के पारं पररक तरीके को गैर-कानूनी घोवषत कर कदया है, जो आस
ऄवधवनयम का स्पष्ट ईल्िंघन है।
भूवम ऄवधग्रहण की शवि को मूतय रूप देने के विए संथाि एिं छोटानागपुर काश्तकारी
ऄवधवनयमों में विवभन्न संशोधन ककए हैं।
महाराष्ट्र सरकार ने ‘ग्राम वनयमों’ के तहत िनों के प्रबंधन का दावयत्ि ग्राम सभा के स्थान पर
ये संस्थाएँ पूणत
य ः या ऄंशतः सरकार िारा प्रबंवधत होती हैं तथा ये या तो स्िायत्त या ऄर्द्य
सरकारी संस्थाएँ होती हैं। ये संस्थाएँ राज्य के विवशष्ट ऄवधवनयमों या सोसाआटी पंजीकरण
ऄवधवनयम िारा गरठत होती है।
आनका गठन अमतौर पर विवशष्ट सेिाओं के वितरण, विवशष्ट योजनाओं के कायायन्ियन के विए
ककया जाता है। आस प्रकार की संस्थाओं के ईदाहरण हैं - वजिा ग्रामीण विकास एजेंसी (DRDA),
वजिा स्िास््य सोसायटी (DHS), वजिा जि एिं स्िच्छता सवमवत (DWSC), मत्स्य ककसान
अिास योजना जैसी विवभन्न योजनाओं को DRDA िारा धन अिंरटत ककया जाता है।
नगरपाविकाएँ
2. शहरी स्थानीय शासन (Urban Local Governments)
शहरी स्थानीय शासन से अशय, जनता िारा वनिायवचत प्रवतवनवधयों के माध्यम से शहरी क्षेि के
प्रशासन की प्रणािी से है। 74िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1992 ने स्थानीय शहरी वनकायों
को संिैधावनक दजाय प्रदान ककया।
2.1. 74िां सं विधान सं शोधन ऄवधवनयम
74िें संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान के भाग IX-A में ‘नगरपाविकाएँ’ (The
Municipalities) नामक एक ऄध्याय ऄंतर्चिष्ट ककया गया। आसके साथ ही ऄवधवनयम के िारा
संविधान में 12िीं ऄनुसच
ू ी जोड़ी गइ वजसमें नगरपाविकाओं के विए 18 काययकारी विषय
सवम्मवित ककये गये।
यह ऄवधवनयम प्रत्येक राज्य में वनम्नविवखत तीन प्रकार की संरचनाओं का प्रािधान करता है:
o नगर पंचायत (या ककसी ऄन्य नाम से): ग्रामीण क्षेि से शहरी क्षेि में पररिर्चतत होते क्षेिों के
विए।
o नगरपाविका पररषद्: छोटे शहरी क्षेिों के विए।
o नगर वनगम: बड़े शहरी क्षेिों के विए।
आस ऄवधवनयम के मुख्य प्रािधानों को दो िगों में विभावजत ककया जा सकता है: ऄवनिायय
प्रािधान तथा ऐवच्छक प्रािधान।
राज्यों के विए बाध्यकारी कु छ ऄवनिायय प्रािधान वनम्नविवखत हैं:
o संक्रमण क्षेिों (िे क्षेि जो ग्रामीण से नगरीय क्षेिों में पररिर्चतत हो रहे हैं), छोटे शहरी क्षेिों
तथा बड़े शहरी क्षेिों में क्रमशः नगर पंचायत, नगरपाविका पररषद् तथा नगर वनगम का
गठन।
o शहरी स्थानीय वनकायों में ऄनुसूवचत जावतयों/ऄनुसूवचत जनजावतयों को िगभग ईनकी
जनसंख्या के ऄनुपात में अरक्षण।
o मवहिाओं के विए एक वतहाइ सीटों का अरक्षण।
o राज्य वनिायचन अयोग, वजसका गठन पंचायती राज वनकायों के चुनािों के विए ककया गया
था (73िें संविधान संशोधन के ऄंतगयत), शहरी स्थानीय स्िशासी वनकायों के चुनािों को भी
संपन्न कराएगा।
o पंचायती राज वनकायों के वित्तीय मामिों के संबंध में गरठत राज्य वित्त अयोग िारा शहरी
स्िशासी वनकायों के वित्तीय मामिों को भी देखा जायेगा।
o शहरी स्थानीय स्िशासी वनकायों का काययकाि पांच िषय वनधायररत है। आनके पांच िषय से पूिय
भंग हो जाने की वस्थवत में छः माह के भीतर नए चुनाि कराये जाने अिश्यक हैं।
आसके ऄिािा कु छ ऐवच्छक प्रािधान भी ककये गए हैं, जो राज्यों पर बाध्यकारी नहीं हैं। हािाँकक
राज्यों िारा आन पर ध्यान कदया जाना चावहए। ये प्रािधान आस प्रकार हैं-
o आन वनकायों में संघ तथा राज्य विधानमण्डिों के सदस्यों को प्रवतवनवधत्ि प्रदान करना।
o वपछड़े िगों के विए अरक्षण की व्यिस्था।
o कर, चुंगी, टोि टैक्स तथा शुल्क के संबंध में वित्तीय शवियां प्रदान करना।
o नगरीय वनकायों को स्िायत्तता प्रदान करना तथा आस ऄवधवनयम िारा संविधान में जोड़ी गइ
12िीं ऄनुसच
ू ी में िर्चणत विषयों के संबंध में शवियों का हस्तांतरण और/या अर्चथक विकास
की योजना तैयार करना।
2.2. सं ग ठन
एक वनगम या नगर पाविका के संगठन को सामान्यतः दो भागों में विभावजत ककया जा सकता है:
विचारात्मक (Deliberative), और काययकारी (Executive)।
विचारात्मक भाग: वनगम, पररषद् या नगरपाविका बोडय ऄथिा िोगों िारा वनिायवचत
प्रवतवनवधयों से वमिकर बनी पररषद् विचारात्मक भाग का वनमायण करती है। यह विचार-विमशय
तथा संिाद करने िािी आकाइ है। यह एक विधावयका की तरह कायय करती है। यह नगरपाविका
की सामान्य नीवतयों तथा वनष्पादन पर बहस करती है, शहरी स्थानीय वनकायों का बजट पास
करती है तथा करों, संसाधन बढ़ोत्तरी, सेिाओं के मूल्य वनधायरण और नगरीय प्रशासन के ऄन्य
पहिुओं के संदभय में व्यापक नीवतयों का वनमायण करती है।
o आसके साथ ही यह नगरीय प्रशासन की वनगरानी करती है तथा ककए गए ऄथिा नहीं ककए
गए कायों के विए काययकाररणी का ईत्तरदावयत्ि तय करती है। ईदाहरण के विए, यकद जि
अपूर्चत ठीक से प्रबंवधत नहीं की जाती है तथा शहर में महामारी फै ि जाती है तो यह
विचारात्मक इकाइ, प्रशासन की भूवमका की अिोचना करती है तथा सुधार के संदभय में
सुझाि देती है।
काययकारी भाग: नगरपाविका में प्रशासन के काययकारी भाग को नगरपाविका ऄवधकाररयों तथा
स्थाइ कमयचाररयों िारा देखा जाता है।
शहरी स्थानीय वनकायों के कायों को दो भागों में विभावजत ककया जाता है: ऄवनिायय कायय तथा
वििेकाधीन कायय।
ऄवनिायय कायय िे कायय हैं वजन्हें नगरीय वनकायों िारा संपन्न ककया जाना अिश्यक है। आसमें जि
अपूर्चत, सड़कों, गवियों, पुिों, ईप-मागों और ऄन्य िोक वनमायण से संबंवधत ऄिसंरचनाओं का
वनमायण तथा रख-रखाि, गवियों में प्रकाश की व्यिस्था; जिवनकासी तथा सीिेज;, कचरा संग्रह ि
वनपटान; महामारी रोकथाम तथा वनयंिण अकद शावमि हैं।
o कु छ ऄन्य ऄवनिायय कायों में साियजवनक टीकाकरण; प्रसूवत एिं बािकल्याण के न्द्रों सवहत
ऄस्पतािों और दिाखानों का रख-रखाि; खाद्यों में वमिािट की जांच करना; दाह-संस्कार
और श्मशान का प्रबंधन अकद हैं। कु छ राज्यों में आनमें से कु छ कायों को राज्य सरकार िारा
ऄपने हाथों िे विया गया है।
वििेकाधीन कायय िे कायय हैं जो नगरीय वनकायों िारा पयायप्त फण्ड होने पर ही ककये जाते हैं। आस
प्रकार आन्हें कम प्राथवमकता दी जाती है। अश्रय गृहों और ऄनाथाियों का वनमायण तथा रख-
रखाि, वनम्न अय िगय के िोगों के विए भिन वनमायण, साियजवनक समारोहों का अयोजन तथा
ईपचार सुविधाओं का प्रािधान अकद कु छ वििेकाधीन कायय हैं।
2.4. शहरी शासन के प्रकार
नगर क्षेिों के शासन के विए भारत में वनम्नविवखत अठ प्रकार के स्थानीय वनकाय हैं:
2.4.1. नगर वनगम (Municipal Corporation)
नगर वनगम कदल्िी, मुम्बइ, हैदराबाद जैसे बडेऺ शहरों के प्रशासन के विए गरठत ककया गया है।
नगर वनगम के तीन प्रमुख घटक होते हैं:
o पररषद् (वनगम की विधायी शाखा),
o स्थायी सवमवत (पररषद् के कामकाज की सुविधा के विए) तथा
o अयुि (वनगम का मुख्य काययकारी ऄवधकारी)।
पररषद्, जनता िारा प्रत्यक्ष रूप से चुने गए पाषयदों से वमिकर बनती है। आसका प्रमुख मेयर होता
है।
स्थायी सवमवत पररषद् के कायय को सुगम बनाने के ईद्देश्य से गरठत की जाती है। यह अकार में
बड़ी होती है तथा ऄपने वनणयय स्ियं िेती है। आसके िारा िोक कायय, वशक्षा, स्िास््य कर
वनधायरण, वित्त तथा ऄन्य कायों को सम्पाकदत ककया जाता है।
अयुि की वनयुवि राज्य सरकार की जाती है तथा यह सामान्यतः अइ.ए.एस. ऄवधकारी होता
है। यह पररषद् तथा स्थायी सवमवत िारा विए गए वनणययों के कक्रयान्ियन हेतु ईत्तरदायी होता है।
2.4.2. नगरपाविका (Municipality)
नगरपाविका कस्बों और छोटे शहरों के प्रशासन के विए स्थावपत की जाती है। यह कइ ऄन्य नामों
से भी जानी जाती है, जैस-े नगरपाविका पररषद्, नगरपाविका सवमवत, नगरपाविका बोडय,
ईपनगरीय नगरपाविका, शहरी नगरपाविका अकद।
यह राज्य विधान मण्डि के एक ऄिग ऄवधवनयम िारा छोटे शहरों के प्रशासन हेतु स्थावपत की
जाती है। यह ऄर्द्य नगरपाविका प्रावधकरण है, वजसे सीवमत संख्या में नागररक कायों की
वजम्मेदारी दी जाती है।
यह राज्य सरकार िारा पूणत य ः वनिायवचत या पूणत
य ः नावमत या ऄंशतः वनिायवचत और ऄंशतः
नावमत संस्था हो सकती है।
2.4.5. छािनी पररषद् (Cantonment Board)
आसे छािनी क्षेिों (जहां सैन्य बि और ईनकी टुकवड़यां स्थायी रूप से तैनात हैं) में नागररक
जनसंख्या के नगरीय प्रशासन के विए स्थावपत ककया जाता है। आसे के न्द्र सरकार के कै ण्टोनमेंट
एक्ट, 2006 िारा स्थावपत ककया गया है और यह कें द्र सरकार के रक्षा मंिािय के ऄंतगयत कायय
करती है।
यह अंवशक रूप से वनिायवचत तथा अंवशक रूप से नावमत वनकाय है तथा ईस स्टेशन की कमान
सँभािने िािा सैन्य ऄवधकारी आसके पदेन ऄध्यक्ष के रूप में कायय करता है। बोडय के वनिायवचत
सदस्यों में से ईपाध्यक्ष का चुनाि ककया जाता है।
छािनी पररषद् का काययकारी ऄवधकारी भारत के राष्ट्रपवत िारा वनयुि ककया जाता है।
2.4.6. टाईन वशप
आसे बड़े साियजवनक ईद्यमों िारा ऄपने ईन कर्चमयों तथा श्रवमकों को नागररक सुविधाएं देने के
विए स्थावपत ककया जाता है, जो पिांट के वनकट अिासीय कॉिोवनयों में रहते हैं।
यह वनिायवचत वनकाय नहीं है और नगर प्रशासक सवहत आसके सभी सदस्य ईद्यम िारा ही वनयुि
ककये जाते हैं।
2.4.7. न्यास पत्तन (Port Trust)
न्यास पत्तन को मुम्बइ, कोिकाता तथा चेन्न्इ जैसे बंदरगाह क्षेिों में स्थावपत ककया जाता है। आसके
दो ईदेश्य हैं: (a) बंदरगाहों की व्यिस्था ि सुरक्षा तथा (b) नागररक सुविधाएं प्रदान करना।
आसे संसदीय ऄवधवनयम िारा बनाया गया है तथा आसमें वनिायवचत ि नावमत दोनों सदस्य होते हैं।
नगर वनकाय के सदस्यों की ऄयोग्यता के संबंध में सैर्द्ांवतक रूप से ईन्हीं प्रकक्रयाओं का पािन
ककया जाता है वजनका राज्य विधानमंडि के सदस्यों की ऄयोग्यता के वनधायरण के संबंध में होता
हैं। परं त,ु ये राज्य विधावयकाओं िारा शावसत होते हैं जो आनसे संबंवधत कानून बना सकती हैं।
सभी राज्यों में आनसे संबंवधत ऄिग-ऄिग कानून हैं जो सदस्यों के मध्य ऄसमानता तथा ऄसुरक्षा
में िृवर्द् करते हैं।
चुनाि खचय तथा अचार संवहता को और बेहतर तरीके से विवनयवमत करने की अिश्यकता है।
ऄतः आसके संबंध में राज्य चुनाि अयोग को और ऄवधक शवियां दी जानी चावहए।
नगर वनगमों की तुिना में नगरपाविकाओं की स्िायत्तता को प्रवतबंवधत ककया गया है तथा आन पर
राज्य का ऄत्यवधक वनयंिण है। यह प्रायः चरम वस्थवतयों में नगरपाविकाओं को भंग करने के रूप
में सामने अता है।
राज्य और कें द्रीय विधावयकाओं की ऄवनच्छा के कारण वित्त के ऄभाि की समस्या है क्योंकक िे
ऄपनी कराधान की शवियों को छोड़ना नहीं चाहते और ऄपनी शवियों को खोने के डर से नगरीय
वनकायों को ितयमान वस्थवत की तुिना में और ऄवधक शवियां नहीं प्रदान करना चाहते। िहीं
दूसरी ओर, नगर वनकाय िोगों के बीच िोकवप्रयता खोने के भय से न तो टैक्स बढ़ाना चाहते हैं, न
ही नया टैक्स िगाना चाहते हैं।
स्थानीय वनकायों का वनमायण राज्य सरकारों िारा ककया जाता है तथा ईनके ऄनुसार नहीं चिने
की वस्थवत में राज्य सरकार िारा आन्हें भंग भी ककया जा सकता है। राज्य सरकारें आस ऄवधकार का
राजनीवतक फायदा ईठाती हैं।
के न्द्र ि राज्यों के िारा गरठत कइ सवमवतयों िारा नगरीय वनकायों को ऄवधक वित्तीय तथा
प्रशासवनक स्िायत्तता देने की वसफाररश के बािजूद, दोनों ही स्तर की विधावयकाओं िारा आन
वसफाररशों को िागू करने का कोइ ठोस प्रयास नहीं ककया गया है।
शहरी विकास नीवतयों में वनयवमतता तथा सुसंगता का ऄभाि है। दोषपूणय और ऄनुपयुि शहरी
वनयोजन के साथ-साथ खराब कायायन्ियन और विवनयमन नगरपाविकाओं के विए एक बड़ी
चुनौती है।
ऄकु शि तथा ऄनुपयुि स्थानीय शहरी वनकाय ईपयुि वनगरानी प्रणािी के ऄभाि का पररणाम
हैं।
2.6. वित्तीय स्रोत
आन वनकायों के राजस्ि स्रोत हैं: कर, फीस एिं जुमायना, भूवम, बाजार अकद से प्राप्त अय तथा
राज्य िारा प्राप्त ऄनुदान।
भूवम और भिनों पर संपवत्त कर, स्थानीय शहरी वनकायों की अय के महत्िपूणय साधन हैं। आसके
ऄवतररि विज्ञापन कर, व्यिसाय कर अकद भी अय के साधन हैं । चुंगी कर, पविम भारत में नगर
वनकायों की अय के महत्िपूणय स्रोत हैं। ितयमान में राजमागो पर यातायात के वनबायध प्रिाह तथा
तीव्र अिागमन को सुवनवित करने के विए आस कर को समाप्त करने का प्रयास ककया जा रहा है।
पयायप्त वित्त का ऄभाि िस्तुतः स्थानीय शहरी वनकायों िारा सामना की जाने िािी एक प्रमुख समस्या
है। आनके कायय ि दावयत्िों को देखते हुए आन्हें ईपिब्ध अय के स्रोत ऄपयायप्त हैं। आन्हें हम वनम्नविवखत
चबदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं:
अय के स्रोत का ऄभाि: ऄवधकांशतः आनकी अय के स्रोत के न्द्र तथा राज्य सरकारों िारा ईद्गृहीत
एिं विवनयोवजत तथा स्थानीय वनकायों िारा संगृवहत ककया जाने िािा धन होता है। परं तु ये अय
के साधन नगर वनकायों के सेिा संबंधी कायों के विए पयायप्त नहीं हैं। आसके साथ ही चुनािी कारणों
से ये वनकाय ऄवधक कर िगाने से बचते हैं।
ऄकु शि कमयचारी: आनके कमयचारी प्रवशवक्षत नहीं होते हैं तथा िे कर संग्रहण प्रभािी रूप से नहीं
कर पाते।
संपवत्त कर से संबवं धत समस्याएं: चुंगी कर की समावप्त के बाद ज्यादातर राज्यों में संपवत्त कर
स्थानीय वनकायों के राजस्ि का महत्िपूणय साधन है। आसमें सुधार की अिश्यकता है।
संकुवचत कर अधार: एक ऄनुमान के ऄनुसार शहरी क्षेि में के िि 60-70% संपवत्तयों का
मूल्यांकन होता है। आस वनम्न कर अधार का कारण नगरीय वनकायों की सीमाएं वनवित होना है।
पररणामतः नगरों के विकास के कारण नगरीय संपदाएं, नगरों की िैधावनक सीमा से बाहर चिी
जाती हैं।
प्रयोिा शुल्क: सामान्यतः वनकायों िारा ईपिब्ध सेिाओं की िास्तविक िागत ऄवधक होती है।
ईदाहरण के विए जि कर, स्िच्छता एिं सीिेज कर, ऄपवशष्ट संग्रहण शुल्क, स्ट्ीट िाआटटग शुल्क
अकद ईनकी िास्तविक िागत की तुिना में कम हैं।
विश्वसनीय अँकड़ों का ऄभाि: नौकरी, वनिेश या कर संग्रह से संबंवधत विश्वसनीय अंकड़ों की
कमी है।
14िें वित्त अयोग ने स्थानीय वनकायों को कदए जाने िािे ऄनुदान में दोगुने से ऄवधक की िृवर्द्
करने की ऄनुशंसा की है। आसके ऄवतररि अयोग िारा ऄनुशस
ं ा की गइ है कक यह धनरावश
स्िच्छता, पेयजि, सामुदावयक पररसंपवत्तयों के रखरखाि अकद जैसी अधारभूत सुविधाओं में
सुधार करने पर व्यय की जाए।
14िें वित्त अयोग ने स्थानीय स्िशासन के संगठन के रूप में स्थानीय वनकायों में विश्वास और
सम्मान बनाए रखने की अिश्यकता को स्िीकार ककया है।
कु ि ऄनुशवं सत धनरावश में से, िगभग 2 िाख करोड़ रूपये पंचायतों को और शेष नगरपाविकाओं
को कदया जाना तय ककया गया है। यह एक वनवित रावश है।
पंचायत और नगर पाविकाओं के विए ऄनुदान को दो श्रेवणयों में विभावजत ककया गया है:
o वनष्पादन ऄनुदान (Performance Grant): आसके तीन प्रमुख िक्ष्य हैं:
राज्यों के ‘अय और व्यय खाते’ के रखरखाि को प्रोत्सावहत करना।
ऄपने राजस्ि में िृवर्द् करने और प्रावप्तयों में िृवर्द् को प्रदर्चशत करने में राज्यों की
सहायता करना।
शहरी स्थानीय वनकायों के सन्दभय में शहरी क्षेिों के विए सेिा स्तर मानदण्ड को
प्रकावशत करना।
o अधारभूत ऄनुदान (Basic Grant): यह स्थानीय वनकायों को दी जाने िािी अधारभूत
रावश है।
अधारभूत ऄनुदान और वनष्पादन ऄनुदान का ऄनुपात ग्राम पंचायतों और नगरपाविकाओं के
विए क्रमशः 90:10 और 80:20 वनधायररत ककया गया है।
ऄसम, ग्राम पंचायत विकास योजना (VPDP) से सम्बंवधत कदशावनदेश तैयार करने िािा देश का पहिा
राज्य है। आन वनदेशों को ऄन्य राज्यों िारा मॉडि कदशावनदेश माना जाता है।
अयोग के ऄनुसार, खनन से वमिने िािी कु छ रॉयल्टी स्थानीय वनकायों के साथ साझा की जानी
चावहए क्योंकक खनन का स्थानीय िातािरण और ऄिसंरचना पर व्यापक प्रभाि पड़ता है। आससे
स्थानीय वनकायों को स्थानीय अबादी पर खनन के दुष्प्रभाि को कम करने में सहायता वमिेगी।
पूिय में प्रचवित व्यिस्था के विपरीत, फं ड हस्तांतरण पर अरोवपत शतों को कम ककया गया है।
यह ग्राम पंचायतों और नगर पाविकाओं को ईन्हें अिंरटत मूिभूत कायय के वनष्पादन हेतु वबना
शतय समथयन प्रदान करता है।
राज्य वित्त अयोगों की ऄनुशंसाओं के अधार पर राज्यों िारा ककया जाने िािा संसाधनों का
वितरण।
ईत्तरदावयत्ि और कु शितापूणय तरीके से अधारभूत सेिाओं के वितरण के संबंध में ऄपना ऄवधदेश
प्रदान करने हेतु ग्राम पंचायतों को सशक्त बनाने के विए ग्राम पंचायत िारा अधारभूत सेिाओं
की प्रदायगी पर बि देने के साथ सहभागी तरीके से ग्राम पंचायत विकास योजना तैयार करने का
वनदेश कदया गया है।
महत्ि
आन कदमों के माध्यम से राज्यों की संवचत वनवध के विए कोष में िृवर्द् की जा सकती है।
आस योजना में स्थानीय वनकायों िारा िोगों की भागीदारी के साथ ऄपनी विकास योजनाएं तैयार
करने और विकास की प्रकक्रया को ऄवधक समािेशी बनाने की क्षमता है।
14िें वित्त अयोग ने 73िें और 74िें संिैधावनक संशोधनों िारा अरं भ की गइ विकें द्रीकरण की
प्रकक्रया को और ऄवधक सशि ककया है।
ये ऄनुशस
ं ाएं सरकार की नीवतयों के साथ समन्िय स्थावपत करते हुए, AMRUT की तजय पर
बेहतर, सुरवक्षत एिं स्िच्छ गांि तथा नगरों के वनमायण में महत्िपूणय भूवमका वनभा सकती हैं।
स्थानीय सरकारों के कामकाज में धन की कमी एक बड़ी बाधा है। अयोग िारा आन पररितयनों के
माध्यम से स्थानीय वनकायों के कामकाज में सुधार की एक विस्तृत रूपरे खा प्रस्तुत की गइ है।
2.7. स्थानीय स्िशासन के विए योजनाएं
74िें संविधान संशोधन के पूिय वजिापररषद् तथा नगरपाविका संस्थाओं को वजिा स्तर पर
वनयोजन और अिंटन की शवि प्रदान की गइ थी। 74िें संविधान संशोधन के िारा वजिा योजना
सवमवतयों को सम्पूणय वजिे के विए विकासात्मक योजना तैयार करने का कायय सौंपा गया है।
2.7.1. वजिा योजना सवमवत (DPCs)
ऄनुच्छेद 243ZD के तहत वजिा स्तर पर योजनाओं के वनमायण हेतु वजिा योजना सवमवत का
प्रािधान ककया गया है। यह सवमवत पंचायतों तथा नगरपाविकाओं िारा तैयार की गइ योजनाओं
को एकीकृ त करती है तथा संपूणय वजिे के विए एक विकास योजना बनाती है।
वजिा विकास योजना के वनमायण के दौरान वजिा योजना सवमवत, नगरपाविका तथा पंचायतों के
बीच साझे विषयों जैसे:- जि संचयन, प्राकृ वतक संसाधन, ऄिसंरचनाओं का विकास तथा
पयायिरण संरक्षण को ध्यान में रखती है। हािाँकक वजिा पंचायत सवमवतयों के विए यह ऄवनिायय
है कक िे संबंवधत संस्थाओं से परामशय करें ।
वजिे के विए योजना तैयार करने तथा वजिा स्तर पर योजना प्रकक्रया में विशेषज्ञ समूहों िारा
ऄनुशंवसत वसफाररशों को नीवत अयोग के कदशा वनदेशों के साथ िागू ककया जाना चावहए।
प्रत्येक राज्य सरकार को स्थानीय स्तर की योजनाओं की भागीदारी के विए एक पर्द्वत विकवसत
करनी चावहए तथा ऐसा सहयोग प्राप्त करना चावहए जो योजनाओं के विके न्द्रीकरण को संस्थागत
बनाए।
राज्य एक योजना कै िेण्डर बना सकते हैं, वजसमें स्थानीय वनकायों के विए योजनाओं को पूरा
करने की समय सीमा वनधायररत हो। आससे आन्हें उपरी स्तर पर भेजा जा सके गा जहां वजिा
सवमवतयों को व्यापक योजना बनाने में मदद वमि सके गी।
राज्य वनयोजन बोडय को यह सुवनवित करना चावहए कक वजिा योजनाएं, राज्य योजनाओं के साथ
एकीकृ त हों। यह अिश्यक ककया जाना चावहए कक स्थानीय संस्थाओं के वनयोजन के सृदढ़ृ ीकरण के
बाद ही राज्य ऄपनी विकासात्मक योजना तैयार करें ।
शहरी वजिों के विए जहां टाईन पिाचनग के कायय विकासात्मक प्रावधकरणों िारा पूरे ककये जा रहे
हैं, िहाँ ये प्रावधकरण वजिा वनयोजन समीवतयों की योजना/तकनीक के भाग होने चावहए।
महानगरीय योजना सवमवत का कायय महानगरीय क्षेि में विकास योजना के प्रारूप को तैयार
करना है। यह सवमवत विकास हेतु प्रारूप योजना बनाते समय वनम्नविवखत बातों का ध्यान रखेगी:
o नगरपाविकाओं एिं पंचायतों के मध्य साझे वहत से संबंवधत मामिे यथा अधारभूत संरचना
का विकास, पयायिरण संरक्षण, जि तथा ऄन्य भौवतक एिं प्राकृ वतक संसाधनों की भागीदारी,
समवन्ित योजना आत्याकद।
o कें द्र सरकार तथा राज्य सरकार िारा वनधायररत प्राथवमकताएँ एिं िक्ष्य।
o महानगरीय क्षेि में पंचायतों एिं नगर पाविकाओं िारा तैयार की गयी योजनाएँ।
o महानगरीय क्षेि में कें द्र सरकार या राज्य सरकार िारा ककए जाने िािे वनिेश की प्रकृ वत एिं
मािा तथा ईपिब्ध वित्तीय एिं ऄन्य संसाधन।
o राज्यपाि िारा वनर्ददष्ट संस्थाओं एिं संगठनों से परामशय प्राप्त करना।
संरचना: आसके दो वतहाइ सदस्यों का चुनाि नगर पाविका के वनिायवचत सदस्यों एिं पंचायतों के
ऄध्यक्षों में से ककया जाता है। सवमवत के सदस्यों की संख्या ईस महानगरीय क्षेि में नगरपाविकाओं
एिं पंचायतों की जनसंख्या के ऄनुपात में समानुपावतक रुप से होना चावहए।
74िां संविधान संशोधन चुनाि संबंधी मामिों में न्यायािय के हस्तक्षेप को प्रवतबंवधत करता है।
आसके ऄनुसार, चुनाि क्षेि एिं चुनाि क्षेि में सीटों के विभाजन संबंधी मुद्दों को न्यायािय में
चुनौती नहीं दी जा सकती।
िषय 2016 में देश में महापौर के प्रत्यक्ष वनिायचन और पद को सशि बनाने हेतु एक वनजी सदस्य
िारा संसद में विधेयक प्रस्तुत ककया गया।
ितयमान वस्थवत
महापौर, भारत में नगर वनगमों के ऄध्यक्ष और अवधकाररक प्रभारी होते हैं।
काययकारी ऄवधकारी महापौर और पाषयदों के साथ समन्िय रखते हुए वनगम की योजना और
विकास से संबंवधत सभी काययक्रमों के कायायन्ियन की वनगरानी करते हैं।
ितयमान में छह राज्यों - ईत्तराखंड, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, यूपी और तवमिनाडु - में ऐसे
महापौरों का प्रािधान है जो पांच िषय के काययकाि के विए मतदाताओं िारा प्रत्यक्ष रूप से चुने
जाते हैं।
प्रस्तावित पररितयन
विधेयक का िक्ष्य एक प्रत्यक्ष वनिायवचत और सशि महापौर का प्रािधान करके नगरों के विए
मजबूत नेतृत्ि स्थावपत करना है।
एक िैधावनक शहरी स्थानीय वनकाय एक नगर पाविका, नगर वनगम, छािनी बोडय या ऄवधसूवचत
शहरी क्षेि हो सकता है।
िषय 2011 की जनगणना के ऄनुसार ऐसे शहरों की संख्या 4041 है जबकक 2001 में यह संख्या
3799 थी।
शहरी शासन, योजना तथा प्रबन्धन में सुधार हेतु शहरी विकास मंिािय ने ऄगिे तीन िषों के
विए राज्य एिं शहरी सरकारों के िारा सुधारों को िागू करने एिं सक्षम बनाने हेतु सुधारों के एक
नए सेट को विकवसत ककया है।
3.3.1. सु धार हे तु सु झाये गए प्रमु ख प्रािधान
तथा जन्म-मृत्यु पंजीकरण, शहरी सरकार तथा नागररकों के मध्य िृहद् स्तर पर भौवतक संपकय को
शावमि करने के सन्दभय में आस दृवष्टकोण की वसफाररश की गयी है।
भूवम स्ित्िावधकार (िैंड टाआटचिग) कानूनों का वनमायण
मैकेंजी के ऄनुसार देश में िगभग 90 % भूवम ररकॉडय ऄस्पष्ट हैं। भू-बाजार विकृ वतयां और ऄस्पष्ट
आसविए, नगर पाविकाओं को वनजी व्यवियों के विए सृवजत वनवध/मूल्य से कु छ मूल्य पुनप्रायप्त
करने की अिश्यकता है। शहरों की पूज
ं ीगत अिश्यकताओं के खचों की पूर्चत हेतु म्युवनवसपि
बांड्स जारी ककये जा सकते हैं।
ULBs के पेशि
े र रिैये में सुधार होना चावहए
गोल्डमैन सैच के ऄनुसार, िररष्ठता की ऄपेक्षा मेधा अधाररत नौकरशाही देश की GDP िृवर्द् में
साथ ही योग्य तकनीकी स्टाफ प्रबंधकीय सुपरिाआजर की कमी के कारण ULBs में निाचार रुक
जाता है।
ऄवभयान का ईद्देश्य गांिों में सामावजक सद्भाि बढ़ाने, पंचायती राज को मजबूत बनाने, ग्रामीण
विकास को बढ़ािा देने और ककसानों की प्रगवत हेतु देशव्यापी प्रयास करना है।
सभी ग्राम पंचायतों में एक 'सामावजक सद्भाि काययक्रम' अयोवजत ककया जाएगा। यह पंचायती
राज मंिािय और सामावजक न्याय एिं ऄवधकाररता मंिािय के संयुि तत्त्िाधान में अयोवजत
होगा।
आस काययक्रम में ग्रामीण, डॉ. ऄम्बेडकर के प्रवत सम्मान व्यि करें गे और सामावजक सद्भाि को
मजबूत करने के विए प्रवतबर्द्ता व्यि करें गे।
सामावजक न्याय को बढ़ािा देने िािी विवभन्न सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान की
जाएगी।
'ग्राम ककसान सभाओं' का अयोजन ककया जाएगा, जहां कृ वष योजनाओं के बारे में ककसानों को
जानकारी ईपिब्ध कराइ जाएगी, जैसे फसि बीमा योजना, सामावजक स्िास््य काडय अकद।
आसके ऄिािा समय समय पर पांचिीं ऄनुसच ू ी िािे क्षेिों के राज्यों के अकदिासी मवहिा ऄध्यक्षों
की एक राष्ट्रीय बैठक अयोवजत ककया जाता है वजसका के न्द्रीय विषयिस्तु पंचायत और अकदिासी
विकास होता है।
3.5. राष्ट्रीय ग्राम स्िराज ऄवभयान
राष्ट्रीय ग्राम स्िराज ऄवभयान पूरे देश में पंचायती राज व्यिस्था को मजबूती प्रदान कर, ईन मुख्य
कवमयों को दूर करे गा जो आसे सफि बनाने से रोकते हैं।
ईद्देश्य :
पंचायतों और ग्राम सभाओं की क्षमता और प्रभाि बढ़ाना।
िोकतांविक वनणयय िेने और पंचायतों में जिाबदेही स्थावपत करना तथा जन भागीदारी को
बढ़ािा देना।
ज्ञान का सृजन एिं पंचायतों की क्षमता वनमायण हेतु संस्थागत संरचना को मजबूत करना।
पररयोजना की कु ि िागत
10 िाख से उपर की
अबादी िािे शहरों के
विए यह पररयोजना
िागत का एक वतहाइ
होगी।
o स्टेट एनुऄि एक्शन पिान
में बताइ गइ ईपिवब्ध के
अधार पर 20:40:40 के
ऄनुपात में तीन ककस्तों में
कें द्रीय सहायता जारी की
जाएगी।
ऄमृत वमशन के तहत
50% भारांश ककसी भी
राज्य/के न्द्रशावसत प्रदेश को
ईनके िैधावनक कस्बों की
संख्या के अधार पर कदया
जाता है ताकक ईनमे
वनवधयों का अिंटन हो
सके ।
कें द्र िारा धन हस्तांतरण के
7 कदनों के भीतर ही राज्य
स्थानीय शहरी वनकायों को
धन का हस्तांतरण कर देंगे
और आस धन का ककसी भी
प्रकार का िीके ज नहीं
होगा।
(Scalability)
वनयोजन अकद,
2019 तक स्िच्छ भारत के नागररकों के स्िास््य में वमशन के वनम्नविवखत घटक हैं: -
वनमायण के विए बड़े पैमाने सुधार और पयायिरण में घरे िू शौचाियों का वनमायण,
पर ऄवभयान चिाकर खुिे रोगजनक तत्िों को कम समुदाय और साियजवनक
में शौच को समाप्त करना। करना।
शौचािय,
ऄस्िास््यकर शौचाियों ऄवधक रोजगार मुहय
ै ा
का फ्िश शौचाियों में कराने िािे पययटन को ठोस ऄपवशष्ट प्रबंधन,
वपछड़े राज्यों में पहिे से जारी वपछड़े गाँि आसके तहत योजना को उपर से
विकास काययक्रमों को पूरा करने पंचायती नीचे की बजाए जमीनी स्तर से
के विए अर्चथक संसाधन मुहय
ै ा राज संस्थान उपर की ओर बढ़ने की पर्द्वत पर
कराकर क्षेिीय ऄसंति
ु न को तैयार ककया ककया गया है।
समापत करना, वजससे आसके कदशा-वनदेश ग्रामीण क्षेिों में