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विषय सूची
1. राज्यों के विधान-मंडलों का गठन __________________________________________________________________ 4

1.1 विसदनीय और एक सदनीय विधान मंडल__________________________________________________________ 4

1.2 राज्यों में दूसरे सदन का सृजन और ईत्सादन ________________________________________________________ 4

1.3. विधानसभा _____________________________________________________________________________ 5

1.4. विधानपररषद ____________________________________________________________________________ 5

2. राज्य विधानमंडल की सदस्यता ___________________________________________________________________ 6

2.1 ऄहहताएँ _________________________________________________________________________________ 6

2.2 वनरहहताएँ _______________________________________________________________________________ 6

2.3 स्थानों का ररक्त होना________________________________________________________________________ 6

3. राज्य विधानमंडल के पीठासीन ऄवधकारी ____________________________________________________________ 7

3.1 विधानसभा ऄध्यक्ष _________________________________________________________________________ 7


3.1.1 सदस्यों को ऄयोग्य घोवषत करने की ऄध्यक्ष की शवक्त पर सुप्रीम कोर्ह का वनणहय ___________________________ 7
3.1.2 ऄध्यक्ष की भूवमका से संबध
ं ी निीनतम मुद्दे _____________________________________________________ 7

3.2 विधानसभा ईपाध्यक्ष _______________________________________________________________________ 7

3.3 विधानपररषद का सभापवत ___________________________________________________________________ 8

3.4 विधानपररषद का ईपसभापवत _________________________________________________________________ 8

4. ऄिवध _____________________________________________________________________________________ 8

4.1 विधानसभा की ऄिवध _______________________________________________________________________ 8

4.2. विधानपररषद की ऄिवध ____________________________________________________________________ 8

5. राज्य विधानमंडल का सत्र_______________________________________________________________________ 9

5.1 सत्र ____________________________________________________________________________________ 9

5.2 राज्यपाल का ऄवभभाषण_____________________________________________________________________ 9

6. राज्य विधान-मंडल में विधायी प्रक्रिया ______________________________________________________________ 9

6.1 साधारण विधेयक के मामले में संसद और राज्य विधानमंडल में विधायी प्रक्रिया की तुलना _________________________ 9

6.2 धन विधेयक के मामले में संसद और राज्य विधानमंडल के विधायी प्रक्रिया की तुलना ___________________________ 10

6.3 विधेयक पर राज्यपाल की स्िीकृ वत _____________________________________________________________ 11

6.4 राज्यपाल और राष्ट्रपवत के िीर्ो शवक्त की तुलना ____________________________________________________ 12

7. राज्य विधानमंडल का विशेषावधकार ______________________________________________________________ 13

7.1 निीनतम मुद्दा ___________________________________________________________________________ 14

8. विधानसभा बनाम विधानपररषद _________________________________________________________________ 15

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9. राज्यसभा तथा विधानपररषद ___________________________________________________________________ 16

10. विधानपररषद की ईपयोवगता __________________________________________________________________ 17

11. राज्य-राजनीवत का महत्ि एिं प्रकृ वत _____________________________________________________________ 17

12. राज्य विधानमंडल से संबवं धत ऄन्य निीनतम मुद्दे ____________________________________________________ 18

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हमारे संविधान में कें द्र और राज्य दोनों के शासन के वलए संसदीय प्रणाली ऄपनाइ गइ है। कें द्रीय
विधान-मंडल में दो सदन हैं। संविधान में मूलतः यह ईपबंध था क्रक ऄवधक जनसंख्या िाले राज्यों में
विधान-मंडल विसदनीय होगा। अंध्र प्रदेश, वबहार, मध्य प्रदेश, तवमलनाडु , महाराष्ट्र, कनाहर्क, पंजाब,
ईत्तर प्रदेश और पविमी बंगाल में दो सदन तथा शेष राज्यों में एक ही सदन का ईपबंध क्रकया गया था।
कु छ राज्यों ने विधानपररषद को ऄनािश्यक सदन माना तथा ऐसे राज्यों के ऄनुरोध पर बाद में संसद
ने विवध बनाकर विधानपररषद का ईत्सादन कर क्रदया।

1. राज्य के विधान-मं ड लों का गठन


 भारतीय संविधान के भाग VI में ऄनुच्छेद 168 के ऄंतगहत राज्यों के विधान-मंडलों के गठन की
व्यिस्था की गइ है। आसी ऄनुच्छेद के ऄंतगहत यह ईल्लेख है क्रक राज्य विधान-मंडल राज्यपाल और
विधानसभा से वमलकर बनेगा तथा वजन राज्यों में विसदनीय व्यिस्था है िहाँ की विधानपररषद
भी आसमें सवममवलत होगी।

1.1 विसदनीय और एक सदनीय विधान मं ड ल

 विसदनीय व्यिस्था का प्रारं भ कें द्र में पहली बार मोंर्ेग्यू-चेमसफोडह सुधारों (भारत शासन
ऄवधवनयम, 1919) िारा क्रकया गया था। भारत शासन ऄवधवनयम, 1935 िारा 11 में से 6
प्रान्तों ऄथाहत् बंगाल, बॉमबे, मद्रास, वबहार, ऄसम और संयुक्त प्रान्त के वलए विसदनीय विधान
मंडल की व्यिस्था की गयी।
 ऄवधकांश राज्यों में एक सदनीय व्यिस्था है, जबक्रक कु छ राज्यों में विसदनीय व्यिस्था है। ितहमान
में सात राज्यों में विसदनीय विधानमंडल है। (विसदनीय विधानमंडल का ऄथह है िैसा
विधानमंडल वजसमें दो सदन हैं: एक ईच्च सदन और दूसरा वनम्न सदन)।
 िैसे राज्य जहाँ दो सदन हैं िे हैं- अंध्र प्रदेश, तेलग
ं ाना, वबहार, महाराष्ट्र, कनाहर्क, ईत्तर प्रदेश
और जममू-कश्मीर (जममू कश्मीर ने विसदनीय विधानमंडल को स्ियं के संविधान िारा ऄपनाया
है)।
 मध्य प्रदेश के वलए भी विधानपररषद की व्यिस्था की गयी है। लेक्रकन राष्ट्रपवत िारा आसके प्रभािी
होने की ऄवधसूचना जारी नहीं की गयी है। तवमलनाडु विधानसभा िारा पाररत एक संकल्प के
अधार पर, संसद ने तवमलनाडु विधानपररषद ऄवधवनयम, 2010 पाररत क्रकया है। लेक्रकन आससे
पहले क्रक यह लागू हो सके तवमलनाडु विधानसभा ने विधानपररषद के ईत्सादन का प्रस्ताि पाररत
कर क्रदया।
 शेष राज्यों में एक सदनीय व्यिस्था है। यहाँ राज्य विधावयका का गठन राज्यपाल और
विधानसभा से वमलकर होता है। विसदनीय व्यिस्था िाले राज्यों में राज्य विधावयका का गठन
राज्यपाल, विधानपररषद और विधानसभा से वमलकर होता है। जहाँ विधानपररषद ईच्च सदन है
तथा िहीं विधानसभा वनम्न सदन है।

1.2 राज्यों में दू स रे सदन का सृ ज न और ईत्सादन

 संविधान संसद को राज्यों में विधानपररषदों के सृजन (जहाँ यह मौजूद नहीं है) और ईत्सादन
(जहाँ यह मौजूद है) की शवक्त प्रदान करता है। विधानपररषद के ईत्सादन (ईन्मूलन) और सृजन
का जो तंत्र है िह साधारण है तथा पाररभावषक ऄथह में यह संविधान का संशोधन नहीं होता।
संसद का आस ईद्देश्य से बनाया गया ऄवधवनयम ऄनु. 368 के प्रयोजन के वलए संविधान का
संशोधन नहीं समझा जाता और संसद में आसे साधारण बहुमत से पाररत कर क्रदया जाता है।
 यह प्रक्रिया संबंवधत राज्य के विधानसभा के एक संकल्प िारा विशेष बहुमत (सभा के कु ल सदस्यों
का बहुमत एिं ईपवस्थत और मतदान करने िाले सदस्यों का कम-से-कम दो वतहाइ का बहुमत) से
पाररत प्रस्ताि िारा एिं तत्पिात् संसद के एक ऄवधवनयम िारा क्रकया जाता है।

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 आसी िम में आसकी अलोचना करते हुए कहा गया क्रक अर्थथक रूप से कमजोर राज्य दो सदनों के
ऄपव्यय का खचह िहन नहीं कर सकते हैं। आस प्रकार, आस व्यिस्था को प्रत्येक राज्य की आच्छा पर
छोड़ क्रदया गया क्रक िे विसदनीय व्यिस्था को ऄपनाते हैं या नहीं। आस प्रािधान के तहत, अंध्र
प्रदेश ने 1957 में ऄपने यहाँ विधानपररषद का गठन क्रकया तथा आसी प्रक्रिया के तहत 1985 में

आसे समाप्त कर क्रदया। 1986 में तवमलनाडु में और 1969 में पंजाब तथा पविम बंगाल में
विधानपररषद को समाप्त कर क्रदया गया।

1.3. विधानसभा

 प्रत्येक राज्य की विधानसभा प्रादेवशक वनिाहचन क्षेत्रों से व्यस्क मतावधकार के अधार पर प्रत्यक्ष
चुनाि िारा वनिाहवचत सदस्यों से वनर्थमत होती है। विधानसभा के सदस्यों की संख्या ईनकी
जनसंख्या के अधार पर 500 से ज्यादा और 60 से कम नहीं हो सकती।
 हालाँक्रक, ऄरुणाचल प्रदेश, वसक्रिम और गोिा के मामले में न्यूनतम संख्या 30 तय है और
वमजोरम के मामले में यह 40 है। आसके ऄवतररक्त वसक्रिम और नागालैंड के कु छ सदस्यों का
वनिाहचन परोक्ष रीवत से भी क्रकया जाता है।
 राज्यपाल अंग्ल-भारतीय समुदाय से एक सदस्य को मनोनीत कर सकते हैं, यक्रद ईनका पयाहप्त
प्रवतवनवधत्ि विधानसभा में नहीं हो। संविधान िारा प्रत्येक राज्य में जनसंख्या ऄनुपात के अधार
पर ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों के वलए सीर्ों के अरक्षण का प्रािधान क्रकया
गया है। प्रत्येक जनगणना के बाद पुनः समायोजन भी क्रकया जाता है।

1.4. विधानपररषद

 विधानपररषद के सदस्य परोक्ष रूप से वनिाहवचत होते हैं। विधानपररषद की सदस्य संख्या
विधानसभा की सदस्य संख्या के ऄनुरूप बदलती रहती है। पररषद की सदस्य संख्या सभा के एक
वतहाइ से ऄवधक नहीं हो सकती है और 40 (जममू-कश्मीर एक ऄपिाद है जहाँ विधानपररषद में
36 सदस्य हैं) से कम नहीं हो सकती है। आस प्रािधान को आसवलए ऄपनाया गया है ताक्रक ईच्च
सदन विधानमंडल में ज्यादा प्रभािशाली ना हो जाए।
हालांक्रक संविधान िारा ऄवधकतम और न्यूनतम सदस्य संख्या तय कर दी गयी है, लेक्रकन पररषद की
िास्तविक संख्या संसद िारा तय की जाती है। विधानपररषद का गठन वनम्नवलवखत रीवत से होता है:
 1/3 सदस्य स्थानीय वनकायों जैसे नगर पावलकाओं, वजला बोडों, अक्रद के सदस्यों िारा चुने जाते
हैं।
 1/3 सदस्यों का वनिाहचन राज्य विधानसभा के सदस्यों िारा क्रकया जाता है।
 1/12 सदस्यों का वनिाहचन राज्य में रहने िाले ऐसे व्यवक्तयों िारा होता है जो क्रकसी
विश्वविद्यालय के कम-से-कम तीन िषह से स्नातक हैं।
 1/12 सदस्यों का वनिाहचन 3 िषह से ऄध्यापन कर रहे लोग करते हैं, लेक्रकन ये ऄध्यापक
माध्यवमक विद्यालयों से कम के नहीं होने चावहए।
 बाकी बचे हुए सदस्यों (1/6) का मनोनयन राज्यपाल िारा ईन लोगों के बीच से क्रकया जाता है जो

सावहत्य, विज्ञान, कला, सहकाररता अन्दोलन और समाज सेिा का विशेष ज्ञान ि व्यािहाररक
ऄनुभि रखते हों।
आस प्रकार, मोर्े तौर पर ऄगर कहा जाए तो 5/6 सदस्यों का वनिाहचन परोक्ष चुनाि के िारा होता है
और 1/6 सदस्य राज्यपाल िारा मनोनीत क्रकए जाते हैं।

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2. राज्य विधानमं ड ल की सदस्यता


2.1 ऄहह ताएँ
संविधान के ऄनुसार राज्य विधावयका के सदस्यों के रूप में चुने जाने के वलए वनम्नवलवखत ऄहहताएँ
होनी चावहए:
 ईसे भारत का नागररक होना चावहए।
 ईसे चुनाि अयोग िारा ऄवधकृ त क्रकसी व्यवक्त के समक्ष संविधान की तीसरी ऄनुसूची में वनधाहररत
प्रािधानों के तहत शपथ या संकल्प लेनी होती है।
 ईसकी अयु विधानसभा के वलए कम से कम 25 िषह और विधानपररषद के वलए कम से कम 30
िषह होनी चावहए।
 ईसमें संसद िारा वनधाहररत योग्यताएं भी होनी चावहए।
संसद िारा लोक प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम, 1951 िारा कु छ वनम्नवलवखत ऄवतररक्त ऄहहताएं भी
वनधाहररत की गयी है:
 विधानपररषद में वनिाहचन के वलए क्रकसी व्यवक्त को समबवन्धत राज्य के क्रकसी विधानसभा
वनिाहचन क्षेत्र का वनिाहचक होना चावहए और राज्यपाल िारा नावमत होने के वलए ईसे समबंवधत
राज्य का वनिासी होना चावहए।
 विधानसभा सदस्य बनने िाला व्यवक्त समबंवधत राज्य के क्रकसी वनिाहचन क्षेत्र में मतदाता भी होना
चावहए।
 यक्रद कोइ व्यवक्त ऄनुसूवचत जावत या जनजावत के वलए अरवक्षत सीर् से चुनाि लड़ता है तो ईसे
ऄिश्य ही िमशः ऄनुसूवचत जावत या जनजावत का सदस्य होना चावहए।
2.2 वनरहह ताएँ

 राज्य विधानमंडल के सदस्यों के सदस्यता के वलए वनरहहताएँ (ऄनु. 191) संसद के सदस्यों (ऄनु.
102) के ऄनुरूप है। (सन्दभह के वलए कें द्रीय विधावयका के नो्स देखें)। वनरहहता की कु छ शततें लोक
प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम, 1951 में और दल-बदल कानून में भी िर्थणत हैं। ऄनु. 191 के तहत या
लोक प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम, 1951 के अधार पर राज्य विधानमंडल के क्रकसी सदस्य के वनरहहता
संबंधी प्रश्न पर राज्यपाल चुनाि अयोग की राय के ऄनुसार फै सला करे गा। अयोग की राय
राज्यपाल पर अबद्धकर है। आस समबन्ध में राज्यपाल का वनणहय ऄंवतम होगा।
नोर्: दल-बदल विरोधी क़ानून से समबवन्धत प्रािधानों का िणहन कें द्रीय विधावयका िाले ऄध्याय में
क्रकया गया है।
2.3 स्थानों का ररक्त होना
राज्य विधानसभा का कोइ सदस्य वनम्नवलवखत मामलों में ऄपने स्थान को ररक्त करता है:
 दोहरी सदस्यता: कोइ व्यवक्त एक साथ राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों का सदस्य नहीं रह
सकता है। यक्रद कोइ व्यवक्त दोनों सदनों के वलए वनिाहवचत हो जाता है तो राज्य विधानमंडल िारा
बनायी गयी विवध के तहत एक सदन से ईसका स्थान ररक्त हो जाएगा।
 वनरहहता: राज्य विधानमंडल का कोइ सदस्य यक्रद वनरहह या ऄयोग्य पाया जाता है तो ईसका स्थान
ररक्त हो जायेगा।
 त्यागपत्र: कोइ सदस्य ऄपना वलवखत त्यागपत्र विधानपररषद के सभापवत या विधानसभा के
ऄध्यक्ष को सौंप सकता है। त्यागपत्र स्िीकार हो जाने के बाद ईसका स्थान ररक्त हो जायेगा।
 ऄनुपवस्थवत: राज्य विधानमंडल क्रकसी सीर् को ररक्त घोवषत कर सकती है यक्रद कोइ सदस्य वबना
क्रकसी पूिह ऄनुमवत के 60 क्रदनों तक ऄनुपवस्थत रहता है।
 ऄन्य मामले: राज्य विधानमंडल के क्रकसी भी सदन से क्रकसी सदस्य का पद ररक्त हो सकता है-
o यक्रद न्यायालय िारा ईसके वनिाहचन को ऄमान्य ठहरा क्रदया जाए,
o यक्रद ईसे सदन से बखाहस्त कर क्रदया जाए,
o यक्रद िह राष्ट्रपवत और ईपराष्ट्रपवत के पद पर वनिाहवचत हो जाए और
o यक्रद िह क्रकसी राज्य का राज्यपाल वनयुक्त हो जाए।

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3. राज्य विधानमं ड ल के पीठासीन ऄवधकारी


3.1 विधानसभा ऄध्यक्ष
 विधानसभा सदस्य ऄपने सदस्यों में से ही ऄध्यक्ष का वनिाहचन करते हैं। सामान्यतः ऄध्यक्ष का पद
विधानसभा के कायहकाल तक होता है। हालाँक्रक, वनम्नवलवखत मामलों में विधानसभा ऄध्यक्ष का
पद ररक्त हो सकता है:
o यक्रद ईसकी विधानसभा की सदस्यता समाप्त हो जाए।
o यक्रद िह ईपाध्यक्ष को वलवखत में ऄपना त्यागपत्र सौंप दे।
o यक्रद ईसे हर्ाने संबंधी प्रस्ताि सदन के कु ल सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प िारा पास हो
जाए। आस तरह का कोइ प्रस्ताि 14 क्रदन की पूिह सूचना के पिात् ही प्रस्तुत क्रकया जा सकता
है।
 विधानसभा ऄध्यक्ष की शवक्तयां लोकसभा ऄध्यक्ष के ही समान है।
3.1.1 सदस्यों को ऄयोग्य घोवषत करने की ऄध्यक्ष की शवक्त पर सु प्रीम कोर्ह का वनणह य

 हाल ही में में ईत्पन्न ऄरुणाचल प्रदेश संकर् पर सुप्रीम कोर्ह ने ऄपना फै सला सुनाते हुए कहा क्रक
ऄध्यक्ष को संविधान की दसिीं ऄनुसूची के तहत दलबदल के वलए विधायकों को ऄयोग्य ठहराए
जाने का वनणहय लेने से ईस वस्थवत में बचना चावहए जबक्रक स्ियं ईसके विरुद्ध पद से हर्ाए जाने
के वलए संकल्प का नोरर्स लंवबत है।
 दसिीं ऄनुसच
ू ी के ऄनुसार दल पररितहन के अधार पर वनरहहता के प्रश्नों पर ऄध्यक्ष या सभापवत
का विवनिय ऄंवतम होता है।
हालांक्रक आस संबंध में ऄध्यक्ष या सभापवत के वनणहय के ईपरांत न्यावयक हस्तक्षेप संभि है।

3.1.2 ऄध्यक्ष की भू वमका से सं बं धी निीनतम मु द्दे

 सदन के ऄध्यक्ष की वनष्पक्ष भूवमका पर संदह


े पैदा करने िाले दृष्टान्तों में िृवद्ध हुइ है यह भारतीय
लोकतंत्र के वलए चचता की बात है। ईदाहरण के वलए,
o गुजरात और तवमलनाडु की विधानसभा में सभी प्रमुख विपक्षी दलों का वनलंबन।
o ऄरुणाचल प्रदेश विधानसभा के प्रकरण में सदन के ऄध्यक्ष को हर्ाया जाना।
 यह हाल ही में, ईच्चतम न्यायालय ने ऄरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपवत शासन लगाए जाने के मुद्दे पर
वनणहय लेते समय सदन के ऄध्यक्ष की भूवमका पर सविस्तार चचाह की।
 आस प्रकरण में सदन के ऄध्यक्ष को हर्ाने के वलए प्रस्ताि सदन में लाया गया था। जब यह प्रस्ताि
लंवबत था, तब ऄध्यक्ष ने कु छ विधायकों को ऄयोग्य घोवषत कर क्रदया था।
न्यायालय की प्रमुख रर्प्पणी
 आस वनणहय ने पहली बार कानूनी वसद्धांत के रूप में यह वनधाहररत क्रकया क्रक यक्रद सदन के ऄध्यक्ष
को हर्ाने का "प्रस्ताऺि" पहले से ही लाया जा चुका है तो िह सदन के सदस्यों को ऄयोग्य घोवषत
नहीं कर सकता है, ऄवपतु ईसे पहले यह वसद्ध करना होगा क्रक ईसे सदन के बहुमत का विश्वास
प्राप्त है।
3.2 विधानसभा ईपाध्यक्ष
विधानसभा ईपाध्यक्ष का चुनाि भी सदस्यों के बीच से होता है। ऄध्यक्ष की भांवत िह भी विधानसभा
के कायहकाल तक ऄपने पद पर बना रहता है। हालाँक्रक, वनम्नवलवखत मामलों में ईसका पद ररक्त हो
सकता है:
 यक्रद ईसकी विधानसभा सदस्यता समाप्त हो जाए।
 यक्रद िह ऄध्यक्ष को ऄपना आस्तीफा वलवखत में सौंप दे।
 यक्रद ईसे हर्ाने संबंधी प्रस्ताि सदन के सभी सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प िारा पास हो
जाए। आस तरह का कोइ प्रस्ताि 14 क्रदन की पूिह सूचना के पिात् ही प्रस्तुत क्रकया जा सकता है।

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ईपाध्यक्ष, ऄध्यक्ष की ऄनुपवस्थवत में ईसके सभी कायों को समपाक्रदत करता है। आस वस्थवत में ईसे
ऄध्यक्ष के समान शवक्तयां प्राप्त होती है।
विधानसभा ऄध्यक्ष सदस्यों के बीच से सभापवत पैनल का गठन करता है। ईनमें से कोइ एक ऄध्यक्ष
और ईपाध्यक्ष की ऄनुपवस्थवत में विधानसभा की ऄध्यक्षता करता है। जब िह ऄध्यक्ष के रूप में कायह
करता है तो ईसके पास ऄध्यक्ष के समान शवक्तयां होती हैं।

3.3 विधानपररषद का सभापवत

विधानपररषद सदस्य ऄपने सदस्यों में से ही सभापवत का वनिाहचन करते हैं। हालाँक्रक, िह वनम्नवलवखत
मामलों में सभापवत का पद ररक्त करता है:
 यक्रद ईसकी विधानपररषद सदस्यता समाप्त हो जाए।
 यक्रद िह ईपसभापवत को वलवखत त्यागपत्र सौंप दे।
 यक्रद ईसे हर्ाने संबंधी प्रस्ताि सदन के कु ल सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प िारा पास हो
जाए। आस तरह का कोइ प्रस्ताि 14 क्रदन की पूिह सूचना के बाद ही प्रस्तुत क्रकया जा सकता है।
पीठासीन ऄवधकारी के रूप में सभापवत को विधानसभा ऄध्यक्ष की तरह सारी शवक्तयां प्राप्त रहती हैं,
वसफह धन विधेयक के मामले को छोड़कर, जहाँ विधानसभा ऄध्यक्ष ही ईसके धन विधेयक होने का
वनणहय लेता है। ऄध्यक्ष की तरह सभापवत के िेतन और भत्ते का वनधाहरण राज्य विधानमंडल िारा
क्रकया जाता है जो क्रक राज्य की संवचत वनवध पर भाररत होता है और सदन में मतदान के योग्य नहीं
होता है।

3.4 विधानपररषद का ईपसभापवत

विधानपररषद सदस्य ऄपने सदस्यों में से ही ईपसभापवत का वनिाहचन करते हैं। हालाँक्रक, िह
वनम्नवलवखत मामलों में ईपसभापवत का पद ररक्त करता है:
 यक्रद ईसकी विधानपररषद सदस्यता समाप्त हो जाए।
 यक्रद िह सभापवत को वलवखत त्यागपत्र सौंप दे।
 यक्रद ईसे हर्ाने संबंधी प्रस्ताि सदन के सभी सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प िारा पास हो
जाए। आस तरह का कोइ प्रस्ताि 14 क्रदन की पूिह सूचना के बाद ही प्रस्तुत क्रकया जा सकता है।
ईपसभापवत, सभापवत की ऄनुपवस्थवत में ईसके सभी कायों को करता है तथा िह सभापवत के समान
शवक्तयां धाररत करता है।

4. ऄिवध
4.1 विधानसभा की ऄिवध

विधानसभा की ऄिवध 5 िषह होती है, लेक्रकन:


 राज्यपाल आसे 5 िषह से पूिह भी विघरर्त कर सकता है।
 5 िषह के आस कायहकाल को राष्ट्रपवत िारा अपातकाल की ईद्घोषणा के दौरान बढ़ाया भी जा
सकता है। विधानसभा का जीिन काल बढ़ाने के वलए संसद को विवध बनानी होगी। विस्तार एक
बार में एक िषह का ही हो सकता है। ककतु, वजस तारीख को ईद्घोषणा प्रिृत्त नहीं रहती है ईस
तारीख से यह विस्तार 6 माह से ऄवधक नहीं हो सकता।

4.2. विधानपररषद की ऄिवध

 विधानपररषद कभी विघरर्त न होने िाला एक स्थायी सदन है। लेक्रकन आसके एक वतहाइ सदस्य
प्रत्येक दो िषह की समावप्त पर सेिावनिृत हो जाते हैं। आस प्रकार, यह राज्यसभा की तरह एक
स्थायी वनकाय है।

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5. राज्य विधानमं ड ल का सत्र


राज्य विधानमंडल का सत्र भी संघीय विधावयका के समान है। सत्र अहूत करने, स्थगन, सत्रािसान,
विघर्न, अक्रद के बारे में जानकारी के वलए कें द्रीय विधावयका के नो्स देखें।

5.1 सत्र
 राज्यपाल विधानसभा के सदन को ऐसे समय और स्थान पर ऄवधविष्ट होने के वलए अहूत करता
है जो िह ठीक समझे। सदन साधारणतः राजधानी में ईसके वलए अरवक्षत भिन में ऄवधिेशन
करता है। ककतु कु छ सभाओं का ऄवधिेशन ऄन्य भिनों में भी हुअ है। लगभग सभी विधानसभाओं
के ऄवधिेशन एक ही नगर में होते हैं। महाराष्ट्र तथा जममू-कश्मीर विधानसभा आसके ऄपिाद हैं।
महाराष्ट्र विधानसभा का शीतकालीन ऄवधिेशन, नागपुर में होता है और जममू-कश्मीर
विधानसभा का शीतकालीन सत्र जममू में होता है।
 सदन के एक सत्र की ऄंवतम बैठक और अगामी सत्र की पहली बैठक के वलए वनयत तारीख के बीच
छह माह का ऄंतर नहीं होगा। ऄन्य शब्दों में विधानसभा का ऄवधिेशन िषह में कम से कम दो बार
ऄिश्य होगा। सदन का सत्रािसान राज्यपाल िारा क्रकया जा सकता है।
5.2 राज्यपाल का ऄवभभाषण

राज्यपाल दो ऄिसरों पर विधान-मंडल में ऄवभभाषण करता है (ऄुन. 176)।


 प्रत्येक साधारण वनिाहचन के पिात् प्रथम सत्र के अरं भ पर।
 प्रत्येक िषह के प्रथम सत्र के अरं भ पर।
राज्यपाल को विधान मंडल में ऄवभभाषण करने का ऄवधकार है ऄथाहत् यक्रद दोनों सदन हैं तो एक साथ
समिेत दोनों सदनों में या के िल विधानसभा है तो एक ही सदन में। आस प्रयोजन के वलए राज्यपाल
सदस्यों की ईपवस्थवत की ऄपेक्षा कर सके गा।
राज्यपाल राज्य के विधान-मंडल में लंवबत क्रकसी विधेयक के संबध ं में संदश े या कोइ ऄन्य संदश
े भेज
सके गा। संदश े की प्रावप्त पर ईस सदन का यह कतहव्य हो जाता है क्रक िह सुविधानुसार शीघ्रता से ईस
पर विचार करे । यह शवक्तयां िैसी ही हैं जैसी संसद के संबंध में राष्ट्रपवत में वनवहत है।
6. राज्य विधान-मं ड ल में विधायी प्रक्रिया
विसदनीय व्यिस्था िाले राज्यों में विधायी प्रक्रिया कु छ मामलों को छोड़कर लगभग सभी मामलों में
संसद के समान होता है।
6.1 साधारण विधे य क के मामले में सं स द और राज्य विधानमं ड ल में विधायी प्रक्रिया की
तु ल ना

संसद राज्य विधानमंडल

1. यह संसद के क्रकसी भी सदन में प्रस्तुत यह राज्य विधानमंडल के क्रकसी भी सदन में प्रस्तुत
क्रकया जा सकता है। क्रकया जा सकता है।

2. यह क्रकसी मंत्री या क्रकसी गैर-सरकारी यह क्रकसी मंत्री या क्रकसी गैर-सरकारी सदस्य िारा
सदस्य िारा प्रस्तुत क्रकया जाता है। प्रस्तुत क्रकया जाता है।

3. वजस सदन में प्रारं भ क्रकया जाता है ईसमें वजस सदन में प्रारं भ क्रकया जाता है ईसमें यह प्रथम,
यह प्रथम, वितीय और तृतीय वितीय और तृतीय िाचन/पाठन से गुजरता है।
िाचन/पाठन से गुजरता है।

4. यह तभी पाररत माना जाता है जब संसद यह तभी पाररत माना जाता है जब राज्य
के दोनों सदनों की संशोधन या वबना विधानमंडल के दोनों सदनों की संशोधन या वबना
संशोधन के सहमवत हो। संशोधन के सहमवत हो।

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5. दोनों सदनों के बीच गवतरोध तब ईत्पन्न दोनों सदनों के बीच गवतरोध तब ईत्पन्न होता है
होता है जब दूसरे सदन िारा पहले सदन जब विधानपररषद, विधानसभा िारा पाररत
से पाररत विधेयक को ऄस्िीकार कर क्रदया विधेयक को ऄस्िीकार करे या संशोधन प्रस्तावित
जाये या दूसरे सदन िारा विधेयक को ऐसे
करे जो विधानसभा को स्िीकायह न हो या 3 माह
संशोधनों के साथ पाररत क्रकया जाये जो
तक विधेयक को पाररत न करे ।
पहले सदन को मान्य न हो या दूसरा सदन
विधेयक को 6 माह तक पाररत न करे ।

6. संविधान में क्रकसी विधेयक पर गवतरोध संविधान में क्रकसी विधेयक के मसौदे के संबंध में
की वस्थवत के वनपर्ान हेतु संसद के दोनों गवतरोध की वस्थवत में विधानमंडल के दोनों सदनों
सदनों की संयुक्त बैठक का प्रािधान है। की संयुक्त बैठक का कोइ ईपबंध नहीं है।

7. लोकसभा दूसरी बार विधेयक को पाररत विधानसभा विधेयक पास करने में विधानपररषद
कर राज्यसभा पर ऄवभभािी नहीं हो पर ऄवभभािी हो सकती है। जब एक विधेयक
सकती और आसका विलोमतः भी सही है। विधानसभा िारा दूसरी बार पाररत कर पररषद को
भेजा जाता है तब यक्रद पररषद आसे क्रफर से
ऄस्िीकार कर दे या सुधार के वलए क्रफर कहे या एक
माह तक आसे पाररत न करे तो यह ईसी रूप में
पाररत माना जायेगा वजस रूप में विधानसभा ने आसे
पाररत क्रकया था।

8. क्रकसी विधेयक पर ईत्पन्न गवतरोध को हल दूसरी बार विधेयक को पाररत करते समय वसफह आसे
करने के वलए, चाहे िह संसद के क्रकसी भी विधानसभा से स्िीकृ वत की अिश्यकता होती है।
विधान पररषद िारा अरं भ एिं पाररत तथा
सदन के वलए हो, संयुक्त बैठक का ईपबन्ध
विधानसभा को पारे वषत विधेयक को यक्रद
है।
विधानसभा ऄस्िीकार कर दे तो िह समाप्त हो
जाता है।

6.2 धन विधे य क के मामले में सं स द और राज्य विधानमं ड ल के विधायी प्रक्रिया की


तु ल ना

1. आसे के िल लोकसभा में पुरःस्थावपत आसे के िल विधानसभा में पुरःस्थावपत क्रकया जा सकता
क्रकया जा सकता है न क्रक राज्यसभा है।
में।

2. यह के िल एक मंत्री िारा ही यह के िल एक मंत्री िारा ही पुरःस्थावपत क्रकया जा


पुरःस्थावपत क्रकया जा सकता है न क्रक सकता है न क्रक क्रकसी गैर-सरकारी सदस्य िारा।
क्रकसी गैर-सरकारी सदस्य िारा।

3. आसे के िल राष्ट्रपवत की वसफाररश के आसे के िल राज्यपाल की संस्तुवत के पिात् ही


पिात् ही पुरःस्थावपत क्रकया जा पुरःस्थावपत क्रकया जा सकता है।
सकता है।

4. आसे राज्यसभा िारा संशोवधत या आसे विधानपररषद िारा संशोवधत या ऄस्िीकृ त नहीं
ऄस्िीकृ त नहीं क्रकया जा सकता है। क्रकया जा सकता है आसे विधानसभा को वसफाररशों या
आसे लोकसभा को वसफाररशों या वबना क्रकसी वसफाररश के 14 क्रदनों के भीतर लौर्ा देना
वबना क्रकसी वसफाररश के 14 क्रदनों के चावहए।
भीतर लौर्ा देना चावहए।

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5. लोकसभा, राज्यसभा की वसफाररशों विधानसभा, विधानपररषद की वसफाररशों को स्िीकार


को स्िीकार या ऄस्िीकार कर सकती या ऄस्िीकार कर सकती है।
है।

6. यक्रद लोकसभा क्रकसी वसफाररश को यक्रद विधानसभा क्रकसी वसफाररश को स्िीकार कर लेती
स्िीकार कर लेती है तो आसे दोनों है तो आसे दोनों सदनों िारा पररिर्थतत रूप में पाररत
सदनों िारा पररिर्थतत रूप में पाररत मान वलया जाता है।
मान वलया जाता है।

7. लोकसभा िारा राज्यसभा की क्रकसी विधानसभा िारा विधानपररषद की क्रकसी वसफाररश


वसफाररश को न मानने पर, विधेयक को न मानने पर विधेयक को दोनों सदनों िारा आसके
को दोनों सदनों िारा आसके मूल रूप मूल रूप में पाररत मान वलया जाता है।
में पाररत मान वलया जाता है।

8. यक्रद राज्यसभा विधेयक को 14 क्रदनों यक्रद विधानपररषद विधेयक को 14 क्रदनों के भीतर


के भीतर लोकसभा को न लौर्ाए तो विधानसभा को न लौर्ाए तो तय सीमा के ऄन्दर आसे
तय सीमा के ऄन्दर आसे पाररत मान पाररत मान वलया जाता है।
वलया जाता है।

9. धन विधेयक के समबन्ध में दोनों दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का कोइ प्रािधान नहीं है।
सदनों की संयुक्त बैठक का कोइ
प्रािधान नहीं है।

10. संसद िारा पाररत धन विधेयक जब क्रकसी धन विधेयक को राज्यपाल के समक्ष पेश
राष्ट्रपवत के समक्ष पेश क्रकया जाता है। क्रकया जाता है, िह सहमवत दे भी सकता है या
िह आसपर सहमवत दे भी सकता है या ऄस्िीकार कर सकता है आसके ऄवतररक्त िह राष्ट्रपवत
नहीं भी, लेक्रकन आसे पुनर्थिचार के की सहमवत के वलए सुरवक्षत रख सकता है लेक्रकन
वलए लौर्ा नहीं सकता है। पुनर्थिचार के वलए राज्य विधावयका को नहीं लौर्ा
सकता है।
राष्ट्रपवत सहमवत दे भी सकता है और नहीं भी, लेक्रकन
पुनर्थिचार के वलए लौर्ा नहीं सकता है।

नोर्: संविधान संशोधन विधेयक राज्य विधानमंडल में प्रारं भ नहीं क्रकया जा सकता।

6.3 विधे य क पर राज्यपाल की स्िीकृ वत


जब कोइ विधेयक राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत क्रकया जाता है तो राज्यपाल के पास वनम्नवलवखत विकल्प
होते हैं:
o िह विधेयक को स्िीकृ वत प्रदान कर दे; आसके बाद यह कानून बन जाएगा।

o िह विधेयक को ऄपनी स्िीकृ वत देने से मना कर दे; तो विधेयक कानून बनने में विफल रहता है।

o धन विधेयक के ऄलािा क्रकसी ऄन्य विधेयक के मामले में, िह विधेयक को पुनर्थिचार के वलए
लौर्ा सकता है।
o िह राष्ट्रपवत के विचाराथह विधेयक को सुरवक्षत रख सकता है। संिैधावनक प्रािधानों के तहत ईच्च
न्यायालय की शवक्तयों को कम करने के मामले में आसे सुरवक्षत रखना ऄवनिायह है। राज्यपाल िारा
क्रकसी धन विधेयक को सुरवक्षत रखे जाने की वस्थवत में, राष्ट्रपवत ईस पर ऄपनी सहमवत दे भी
सकते हैं या ऄस्िीकार कर सकते है।

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 लेक्रकन धन विधेयक के ऄवतररक्त क्रकसी ऄन्य विधेयक के मामले में, राष्ट्रपवत आसे राज्यपाल को

वनदेवशत करते हुए विधानमंडल को पुनर्थिचार के वलए लौर्ाने को कह सकते हैं। आस मामले में,

विधानमंडल को ऐसे विधेयक पर 6 माह के भीतर ऄिश्य ही पुनर्थिचार करना होता है, ईसके

बाद यक्रद आसे पाररत क्रकया जाता है तो, आसे पुन: राष्ट्रपवत के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। लेक्रकन

राष्ट्रपवत के वलए आस पर सहमवत देना बाध्यकारी नहीं है (ऄनु. 201)।

 यह स्पष्ट है क्रक जब कोइ विधेयक राष्ट्रपवत के विचाराथह अरवक्षत है, तब वबना राष्ट्रपवत के सहमवत

के िह कानून के रूप में प्रभािी नहीं होगा। आसके ऄवतररक्त, संविधान में राष्ट्रपवत को विधेयक पर

सहमवत देने (या ऄपनी सहमवत न देने) के वलए कोइ समय सीमा तय नहीं की गयी है। फलस्िरूप,
राष्ट्रपवत राज्य विधानमंडल के क्रकसी विधेयक को ऄवनवित काल के वलए ऄपने पास रोक सकते
है।
 आसके ऄलािा, जब कोइ विधेयक राष्ट्रपवत के विचाराथह रखा जाता है, तो िह संिैधावनकता के

क्रकसी प्रश्न पर आसे ऄनु.143 के तहत ईच्चतम न्यायालय के पास सलाह हेतु भेज सकता है।

6.4 राज्यपाल और राष्ट्रपवत के िीर्ो शवक्त की तु ल ना

राष्ट्रपवत राज्यपाल

संसद के दोनों सदनों िारा पाररत विधेयक पर सहमवत दे सकता राज्य विधावयका िारा पाररत
है। विधेयक पर सहमवत दे सकता है।

घोषणा कर सकता है क्रक िह सहमवत नहीं देगा, तो आस मामले घोषणा कर सकता है क्रक िह सहमवत
में विधेयक कानून नहीं बन पाता है। नहीं देगा, तो आस मामले में विधेयक
कानून नहीं बन पाता है।

धन विधेयक के ऄवतररक्त क्रकसी ऄन्य विधेयक के मामले में, धन विधेयक के ऄलािा क्रकसी ऄन्य
संसद िारा पाररत क्रकसी विधेयक को पुनर्थिचार के वलए लौर्ा विधेयक के मामले में, राज्य
सकता है। यक्रद विधेयक को संशोधन के साथ या संशोधन के विधानमंडल िारा पाररत क्रकसी
वबना पुनः पाररत कर क्रदया जाता है तो राष्ट्रपवत आस पर विधेयक को पुनर्थिचार के वलए लौर्ा
सहमवत देने हेतु बाध्य है। सकता है। यक्रद विधेयक को संशोधन
के साथ या संशोधन के वबना पुनः
पाररत कर क्रदया जाता है तो
राज्यपाल आस पर सहमवत देने हेतु
बाध्य है।

आसके ऄवतररक्त राज्यपाल के पास


एक और विकल्प होता है; िह
राष्ट्रपवत के विचाराथह आसे सुरवक्षत
रख सकता है।

राष्ट्रपवत के पुनर्थिचार के वलए सुरवक्षत राज्य विधेयक के मामले राज्यपाल ऄगर क्रकसी विधेयक को
में िह वनम्नवलवखत कदम ईठा सकता है : एक बार राष्ट्रपवत के पुनर्थिचाराथह

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 धन विधेयक के मामले में, िह सहमवत दे भी सकता है और रखता है तो आस विधेयक के बाद के


नहीं भी। ऄवधवनयमन की वजममेदारी राष्ट्रपवत
की होती है। आसमें राज्यपाल की कोइ
 क्रकसी ऄन्य विधेयक के मामले में,
भूवमका नहीं होती है।
o घोषणा कर सकता है क्रक िह आसे सहमवत देता है या
नहीं, या
o राज्य विधावयका को पुनर्थिचार के वलए लौर्ा सकता
है; राज्य विधावयका को आस पर 6 महीने के भीतर
ऄिश्य पुनर्थिचार करना होगा। यक्रद यह पुनः पाररत
(संशोधन के साथ या संशोधन के वबना) कर क्रदया
जाता है तो आसे सीधे राष्ट्रपवत के समक्ष पेश करना
होगा। लेक्रकन राष्ट्रपवत आस पर सहमवत देने के वलए
बाध्य नहीं है यद्यवप राज्य विधानमंडल ने आसे दुबारा
पाररत क्रकया हो।

7. राज्य विधानमं ड ल का विशे षावधकार


 संिैधावनक प्रािधानों के तहत संसद और राज्य विधानमंडलों के विशेषावधकार समान हैं (ऄनु.
105 और 194)। संविधान िारा संसद / राज्य विधान-मंडलों के दोनों सदनों, ईनकी सवमवतयों

तथा ईनके सदस्यों को कु छ विशेष ऄवधकार, ईन्मुवक्तयाँ तथा सुरक्षा प्रदान की गइ हैं।
 यह ध्यान देने योग्य है क्रक संविधान ने ईन लोगों जो राज्य विधानमंडल या आसके क्रकसी सवमवत
की कारिाइयों में बोलने और भाग लेने के वलए ऄवधकृ त हैं, के विशेषावधकारों में विस्तार क्रकया है।
आसमें महावधिक्ता और राज्य के मंत्री सवममवलत हैं। आन्हें दो व्यापक श्रेवणयों में बाँर्ा गया है:
o सामूवहक विशेषावधकार का प्रयोग प्रत्येक सदन िारा सामूवहक रूप से क्रकया जाता है। आनमें,

ररपोर्ह अक्रद प्रकावशत करने का ऄवधकार, बाहरी व्यवक्तयों को सदन की कायहिाही से बाहर

करना, विशेषावधकारों के ईल्लंघन के वलए सदस्यों/बाहरी व्यवक्तयों को दंवडत करना आत्याक्रद


सवममवलत हैं।
o व्यवक्तगत विशेषावधकार सदस्यों िारा व्यवक्तगत रूप से प्रयोग क्रकये जाते हैं। ईदाहरणाथह
सदन में ऄवभव्यवक्त की स्ितंत्रता, सत्र के दौरान न्यावयक जाँच से छू र्, सत्र से 40 क्रदन पहले

से 40 क्रदन बाद तक वसविल वगरफ्तारी से छू र् आत्याक्रद।


 विशेषावधकारों के स्रोत: मूलतः आसे विरर्श हाईस ऑफ कॉमन्स से वलया गया है। सभी
विशेषावधकारों को संवहताबद्ध करने के वलए कोइ कानून नहीं है। ये पांच विवभन्न स्रोतों
संिैधावनक प्रािधान, संसद के विवभन्न कानून, दोनों सदनों के वनयम, संसदीय सममेलन और
न्यावयक वनिहचन पर अधाररत हैं।
 विशेषावधकारों का ईल्लंघन: विशेषावधकारों के ईल्लंघन और ईसके वलए सजा के वनधाहरण
हेतु स्पष्ट वनयमों का ऄभाि है। कनाहर्क विशेषावधकार पैनल के ऄनुसार, कोइ भी ऐसी
ऄवभव्यवक्त ऄथिा कोइ भी ऐसा वनन्दा-लेख छापना या प्रकावशत करना विशेषावधकार
ईल्लंघन के ऄंतगहत अ सकता है, जो सदन, आसकी सवमवतयों या आसके सदस्यों के चररत्र या
संसद सदस्य के नाते ईनके अचरण के सन्दभह में ऄपमानजनक है।

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विशेषावधकार सवमवत
 यह एक स्थायी सवमवत है वजसका संसद / राज्य विधानसभा के प्रत्येक सदन में गठन होता है।
लोकसभा की विशेषावधकार सवमवत में 15 जबक्रक राज्यसभा की सवमवत में 10 सदस्य होते हैं

वजनको िमशः ऄध्यक्ष एिं सभापवत िारा वनयुक्त क्रकया जाता है।
 आसका प्रमुख कायह, सभा ऄथिा ईसके क्रकसी सदस्य ऄथिा क्रकसी सवमवत के सदस्य के विशेषावधकार

के भंग क्रकए जाने से संबंवधत प्रत्येक प्रश्न की जांच करना, जो ईसे सभा ऄथिा ऄध्यक्ष िारा सौंपा

जाए। प्रत्येक मामले के त‍यों को ध्यान में रखते हुए आस बात का वनश्चय करना क्रक ्‍या
विशेषावधकार को भंग क्रकया गया है और ऄपने प्रवतिेदन में आस संबंध में ईपयु्‍त वसफाररश करना।

7.1 निीनतम मु द्दा

 हाल ही में कनाहर्क विधानसभा के ऄध्यक्ष ने ऄपनी "विशेषावधकार सवमवत" की वसफाररशों के

अधार पर दो पत्रकारों को एक िषह के कारािास का अदेश क्रदया। आससे पूिह 2003 में तवमलनाडु

विधानसभा ऄध्यक्ष ने AIADMK सरकार के समबन्ध में अलोचनात्मक लेखों के प्रकाशन के वलए

पांच पत्रकारों की वगरफ्तारी का वनदेश क्रदया था।

विशेषावधकार से संबंवधत एक िाद में ईच्चतम न्यायालय के फै सले से वनम्नवलवखत पहलुओं का ईल्लेख
क्रकया जा सकता है:

 राज्य विधानमंडल के प्रत्येक सदन को ऄपने विशेषावधकारों के ईल्लंघन या ऄिमानना के वलए


दवडडत करने की शवक्त है।
 प्रत्येक सदन ऄपने विशेषावधकारों के ईल्लंघन के मामले में एकमात्र न्यायाधीश है। न्यायालयों को
आस मामले में हस्तक्षेप करने का कोइ ऄवधकार-क्षेत्र नहीं है। हालाँक्रक, यक्रद विधावयका या आसके

िारा ऄवधकृ त कोइ प्रावधकारी संसद िारा बनाए गए क्रकसी कानून के ऄवधकार क्षेत्र से बाहर
जाकर कोइ विशेषावधकार प्राप्त करना चाहता है, या कोइ नोरर्स जारी क्रकया जाता है तो ऐसे

मामले में न्यायालय हस्तक्षेप कर सकती है।


 विधानमंडल के क्रकसी भी सदन को स्ियं के वलए ऐसा कोइ कानून बनाने की कोइ विशेषावधकार
की शवक्त नहीं है, जो विवध संगत न हो। ऐसे मामलों में न्यायालय यह वनधाहररत कर सकता है क्रक

िास्ति में सदन को ऐसा कोइ विशेषावधकार प्राप्त नहीं है।


 ऄपनी ऄिमानना के वलए विधानमंडल िारा बंदी बनाये गये क्रकसी व्यवक्त के समबन्ध में ईच्च
न्यायालय ऄनु. 226 (ऄनु 32 के तहत ईच्चतम न्यायालय) के तहत बंदी प्रत्यक्षीकरण की यावचका

पर सुनिाइ कर सकता है। यह सुनिाइ आस अधार पर क्रकया जा सकता है क्रक यावचकाकताह के


मौवलक ऄवधकारों का ईल्लंघन तो नहीं हुअ है न्यायालय ईस कै दी को जमानत पर पर ररहा कर
सकता है।
 एक बार जब विशेषावधकार सदन को प्राप्त हो जाते हैं, तब सदन आसे ऄपने ऄनुसार प्रयुक्त करता

है। न्यायालय ऐसे में विशेषावधकार हनन के मामले में सदन या ईसके ऄध्यक्ष िारा वलए गये गलत
वनणहय के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।

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महत्ि
 यह सांसदों और विधायकों की ऄवभव्यवक्त की स्ितंत्रता की रक्षा करते हैं और आन सदनों में होने
िाले मामलों पर मुकदमेबाजी के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करते हैं।
 आन विशेषावधकारों के वबना सदन ऄपने ऄवधकार, गररमा और सममान को बनाए रखने में ऄसमथह

होगा। साथ ही आनके वबना यह ऄपने सदस्यों को कतहव्यों के वनिहहन में क्रकसी ऄिरोध से सुरक्षा
प्रदान करने में भी सक्षम नहीं होगा।
अलोचना
 कभी-कभी आसका प्रयोग मीवडया िारा की गयी सांसदों/विधायकों की अलोचना का विरोध करने
तथा कानूनी कायहिाही के विकल्प के रूप में क्रकया जाता है।
 विशेषावधकार ईल्लंघन से संबंवधत कानून राजनीवतज्ञों को ईनके स्ियं के मामलों में ही न्याय
करने का ऄवधकार प्रदान करते हैं। आससे वहतों के र्कराि तथा ऄवभयुक्त को वनष्पक्ष सुनिाइ की
अधारभूत गारं र्ी से िंवचत करने की वस्थवत बन जाती है।
 िस्तुतः आस सन्दभह में एक कानून का वनमाहण क्रकया जाना अिश्यक है जो विधायी विशेषावधकारों
को संवहताबद्ध करे साथ ही, विशेषावधकार हनन की वस्थवत में पैनल के कायों की सीमाओं को

विवहत करे तथा आस हेतु एक सुवनवित प्रक्रिया का भी वनधाहरण कर सके । विधावयका को ऄपनी
शवक्त का ईपयोग ऄिमानना या विशेषावधकार के ईल्लंघन के मामले में ही करना चावहए ताक्रक
सदन की स्ितंत्रता की रक्षा भी हो सके और अलोचकों की स्ितंत्रता को भी कम नहीं क्रकया जाए।

8. विधानसभा बनाम विधानपररषद


यह स्पष्ट है क्रक विधानपररषद की वस्थवत विधानसभा की तुलना में राज्यसभा और लोकसभा के तजह पर
तुलनात्मक रूप से कमजोर है। राज्यसभा की वस्थवत सरकार पर वनयंत्रण के समबन्ध में और वित्तीय
मामलों को छोड़कर सभी मामलों में लोकसभा के बराबर है। दूसरी ओर, विधानपररषद वनम्नवलवखत

मामलों में विधानसभा के ऄधीनस्थ है:


 क्रकसी धन विधेयक को वसफह विधानसभा में ही प्रस्तुत क्रकया जाता है न क्रक विधानपररषद में।
पररषद धन विधेयक में ना ही कोइ संशोधन और ना ही ईसे ऄस्िीकार कर सकती है। आसे या तो
वसफाररशों के साथ या ईनके वबना 14 क्रदनों के ऄन्दर विधेयक को िापस करना होता है।

 ऄन्य विधेयकों के मामले में भी, पररषद विधानसभा के ऄधीनस्थ है। यह क्रकसी विधेयक को ईसके

पाररत होने के बाद ऄवधकतम 4 माह के वलए रोक सकता है। ऄसहमवत के मामले में विधानसभा

ऄपने आच्छानुसार काम करती है।


 दूसरी ओर, विधानपररषद िारा लाये गये प्रस्ताि को विधानसभा तत्काल प्रभाि से समाप्त करने

की शवक्त रखती है।


 विधानपररषद को ऄपने ऄवस्तत्ि के वलए विधानसभा की आच्छा पर वनभहर रहना पड़ता है।
विधानसभा, विधानपररषद को संसद के एक ऄवधवनयम िारा समाप्त करा सकती है।

 मंत्रीपररषद का ईत्तरदावयत्ि के िल विधानसभा के प्रवत होता है।


 विधानपररषद के सदस्य राष्ट्रपवत और ईपराष्ट्रपवत के चुनाि में तथा राज्यसभा के सदस्यों के
चुनाि में भाग नहीं लेते हैं।

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विधानसभा विधानपररषद

सदस्यों की 60 से 500 तक (जनसंख्या के न्यूनतम 40 या विधानसभा की कु ल संख्या का


स्िीकायह
अधार पर) ऄपिाद: गोिा, एक वतहाइ से ऄवधक नहीं
संख्या
ऄरुणाचल प्रदेश और वसक्रिम- 30,

वमजोरम- 40

सदस्यों का सािहभौवमक व्यस्क मतावधकार के  1/3 सदस्य स्थानीय वनकायों; जैस-े नगर
वनिाहचन अधार पर प्रत्यक्ष रूप से जनता के
पावलकाओं, वजला बोडों, अक्रद के सदस्यों
िारा
िारा चुने जाते हैं।
 1/3 सदस्यों का वनिाहचन राज्य
विधानसभा के सदस्यों िारा क्रकया जाता
है।
 1/12 सदस्यों का वनिाहचन राज्य में रहने
िाले ऐसे व्यवक्तयों िारा होता है जो क्रकसी
विश्वविद्यालय के कम-से-कम तीन िषह से
स्नातक हैं।
 1/12 सदस्यों का वनिाहचन 3 िषह से

ऄध्यापन कर रहे वशक्षक करते हैं, लेक्रकन


ये ऄध्यापक माध्यवमक स्कू लों से कम के
नहीं होने चावहए।

राज्यपाल के अंग्ल-भारतीय समुदाय के एक कु ल संख्या के 1/6


नामांकन के सदस्य को
िारा

ऄिवध सामान्य ऄिवध- 5 िषह; हालाँक्रक, विधानपररषद एक स्थायी सदन है (राज्यसभा


राज्यपाल कभी भी विधानसभा की तरह) और विघर्न के योग्य नहीं है; हर दूसरे
को भंग कर सकता है। संसद के एक िषह एक-वतहाइ सदस्य सेिावनिृत हो जाते हैं।
क़ानून के िारा अपातकाल के आसके सदस्यों का कायहकाल 6 िषों का होता है।
दौरान ऄिवध को एक बार में 1
िषह के वलए बढ़ाया जा सकता है।

9. राज्यसभा तथा विधानपररषद


विधानपररषद को राज्यसभा की तुलना में कम महत्ि प्राप्त है ्‍योंक्रक:
 राज्यसभा, संविधान के संघीय चररत्र का प्रवतवनवधत्ि करता है। आसकी वस्थवत एक नाममात्र के
वनकाय से कहीं ऄवधक है। आसवलए संविधान में लोकसभा और राज्यसभा के बीच ऄसहमवत की
वस्थवत में संयुक्त बैठक का प्रािधान है। हालाँक्रक, ऄंततः ऄपनी संख्याबल के कारण लोकसभा ईच्च
वनकाय सावबत होगा।

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 राज्य विधानमंडल के मामले में, संविधान ने आंग्लैंड की प्रणाली को ऄपनाया है। राज्य
विधानपररषद को राज्यसभा की तुलना में सीवमत शवक्तयां प्रदान की गयी हैं। राज्य विधान मंडल
में दोनों सदनों के मध्य गवतरोध ईत्पन्न होने की वस्थवत में संयुक्त बैठक का प्रािधान नहीं है। ऄतः
विधानपररषद के ऄसहमत होने पर भी विधेयक पाररत हो सकता है।
 विधानपररषद ऄलग-ऄलग क्षेत्रों जैसे स्थानीय संस्थाओं, स्नातकों, ऄध्यापकों, विधानसभाओं और

विज्ञान, कला, सावहत्य, सहकाररता अंदोलन या समाज सेिा अक्रद से संबंवधत व्यवक्तयों िारा

गरठत की जाती है। दूसरी ओर, राज्यसभा में ऄवधकांश सदस्यों को चुना जाता है (250 में से

के िल 12 नामांक्रकत होते हैं)।

10. विधानपररषद की ईपयोवगता


 यह ऄपनी विलंबकारी शवक्त के अधार पर विधानसभा िारा बनाये गये कु छ दोषपूणह, लापरिाह
और ऄवििेकशील विधानों की जांच करती है।
 ऄप्रत्यक्ष चुनािी प्रक्रिया और विशेष ज्ञान रखने िाले व्यवक्तयों के नामांकन के कारण
विधानपररषद कइ मामले में बेहतर क्षमता िाला सदन है।
 वितीय प्रशासवनक सुधार अयोग ने यह सुझाि क्रदया है क्रक विधानपररषद को पंचायती राज
संस्थाओं के प्रवतवनवध के रूप में काम करना चावहए और संविधान में ईपयुक्त संशोधनों के माध्यम
से पररषद के वलए अिश्यक शवक्तयों का प्रािधान करना चावहए ताक्रक यह स्थानीय प्रशासन को
मजबूत करने का काम करे ।

11. राज्य-राजनीवत का महत्ि एिं प्रकृ वत


 भारतीय संघ के राजनीवतक और अर्थथक ढांचे में सक्रिय रहने के कारण विवभन्न प्रदेशों की
राजनीवत में काफी समानताएं मौजूद है परं तु ईनकी सरं चना और ईपलवब्धयों में विवभन्नताएं भी
हैं। प्रत्येक राज्य में िगह, जावत, सामावजक एिं अर्थथक शवक्तयों, और सामावजक एिं अर्थथक
विकास के ऄलग-ऄलग स्तर मौजूद हैं जो ईसकी राजनीवत को प्रभावित करते हैं।
 भारत की संघात्मक व्यिस्था में राज्य राजनीवत का विशेष महत्ि है। भारतीय लोकतंत्र की
सफलता आस बात पर वनभहर करती है क्रक राज्य ऄपने विकास कायहिमों को क्रकस गवत से
क्रियावन्ित कर पाते हैं। भूवम सुधार कानून हो या वशक्षा में पररितहन लाने का कोइ कायहिम,

अर्थथक वनयोजन हो या मद्य वनषेध, कु र्ीर ईद्योगों को बढ़ािा देना हो या व्यापक चसचाइ

सुविधाओं की व्यिस्था करनी हो, व्यिहार में आन सभी का क्रियान्ियन राज्य सरकार िारा ही
क्रकया जाता है। जन साधारण की क्रदन-प्रवतक्रदन की समस्याओं का समाधान राज्य सरकारों िारा
ही क्रकया जाता है। यद्यवप सभी राज्य एक ही संविधान िारा शावसत है क्रफर भी ईसकी राजनीवत
में वभन्नता विद्यमान है।
राज्य-राजनीवत के वनधाहरक तत्ि वनम्नवलवखत है:
 संिध
ै ावनक तत्ि: संिैधावनक ढांचा, राज्य राजनीवत का संस्थानात्मक वनधाहरक तत्ि है। संविधान

में "राज्यों का संघ" िा्‍यांश का प्रयोग क्रकया गया है। राज्य की राजनीवत, कें द्रीय शासन और
राजनीवत से व्यापक रूप से प्रभावित होती है।
 राजनीवतक तत्ि: राजनीवतक तत्ि के ऄंतगहत कें द्रीय नेतृत्ि और प्रधानमंत्री का व्यवक्तत्ि राज्य
राजनीवत को प्रभावित करता है। आसके ऄवतररक्त एक ही समय में विवभन्न राज्यों की राजनीवतक
वस्थवत में भी ऄंतर देखा जा सकता है। आसका कारण है मुख्यमंत्री का राज्यों की राजनीवत में प्रमुख
भूवमका वनभाना। के न्द्र और राज्यों की दलीय वस्थवत भी राज्य राजनीवत को प्रभावित करती है।

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कें द्रीय सरकार के राज्य सरकार से संबंध िस्तुतः दलीय संरचना पर कम तथा प्रधानमंत्री और
मुख्यमंत्री के समीकरण पर ऄवधक वनभहर है। कें द्र के वलए वमली-जुली सरकार िाले राज्य की
राजनीवतक वस्थवत को प्रभावित करना सामान्यतया सरल होता है।
 सांस्कृ वतक ि सामावजक तत्ि: भारतीय संघ के कु छ राज्य काफी विकवसत और कु छ बहुत वपछड़े
हैं। राज्य विशेष में जावतयों की संख्यात्मक वस्थवत, ऄनुसूवचत जावतयों ि जनजावतयों,

ऄल्पसंख्यकों अक्रद की वस्थवत एिं संख्या विशेष की राजनीवत, दल व्यिस्था और न्यावयक प्रक्रिया
को प्रभावित करती है।
 अर्थथक तत्ि: यक्रद एक राज्य के पास पयाहप्त वित्तीय साधन है तो ईस राज्य की राजनीवत के स्ितंत्र
और स्िस्थ रूप से विकवसत होने की अशा की जा सकती है। वपछले एक दशक से अर्थथक विकास
का पहलू राज्य राजनीवत में महत्िपूणह कारक बनता जा रहा है। राज्य विशेष में संपन्न होने िाले
चुनािों में मतदाता सरकारों को आस कसौर्ी पर मापने लगे हैं क्रक िह राज्य के विकास और शासन
की गुणिता की दृवष्ट से क्रकतना काम कर पाइ।
 भौगोवलक तत्ि: भौगोवलक वस्थवत राज्य के अर्थथक विकास की और परोक्ष रूप से राज्य राजनीवत
को प्रभावित करती है। सीमा पर वस्थत राज्यों में यक्रद कभी पृथकतािादी प्रिृवत्तयों का ईदय होता
है तो आसका प्रमुख कारण ईसकी भौगोवलक वस्थवत हो सकती है। आसका ईदाहरण नागालैंड और
वमजोरम है। आसके ऄवतररक्त, कु छ राज्य जनसंख्या ि क्षेत्र की दृवष्ट से विशाल और विविधताओं से
पूणह है। ऐसे राज्यों की राजनीवतक में एक-दूसरे से भेद होना स्िाभाविक है।

12. राज्य विधानमं ड ल से सं बं वधत ऄन्य निीनतम मु द्दे


लाभ के पद एिं संसदीय सवचि से संबद्ध मुद्दा : िषह 2015 में, क्रदल्ली सरकार ने छह मंवत्रयों के वलए

21 संसदीय सवचिों की वनयुवक्त की थी।

 आस पद को "लाभ के पद” 'की पररभाषा से छू र् नहीं प्रदान की गयी थी।


 क्रदल्ली सरकार के िारा संसदीय सवचि के पद को लाभ के पद की पररभाषा से छू र् प्रदान करने
संबंधी प्रािधान करने के वलए क्रदल्ली विधानसभा सदस्य (ऄयोग्यता वनिारण) ऄवधवनयम, 1997
में संशोधन करने हेतु प्रस्ताि लाया गया।
 सवचि, ऄनुच्छेद 239 AA(4) के तहत मंत्री भी नहीं होते हैं ्‍योंक्रक ईन्हें न तो राष्ट्रपवत िारा
वनयुक्त क्रकया जाता है और न हीं ईन्हें पद एिं गोपनीयता की शपथ क्रदलाइ जाती है।
 लेक्रकन राष्ट्रपवत ने संशोधन प्रस्ताि को ऄपनी सहमवत देने से मना कर क्रदया है।

लाभ के पद की पररभाषा
संविधान में ‘लाभ के पद’ की पररभाषा नहीं दी गयी है क्रकन्तु पूिह वनणहयों के अधार पर वनिाहचन
अयोग के िारा लाभ के पद के परीक्षण हेतु वनम्नवलवखत पांच प्रमुख कसौरर्यों को अधार माना गया है:
o ्‍या पद पर वनयुवक्त सरकार के िारा की गयी है?

o ्‍या पद के धारणकताह को सरकार ऄपनी स्िेच्छा से पद से हर्ा सकती है?

o ्‍या पाररश्रवमक का भुगतान सरकार के िारा क्रकया जाता है?

o पद के धारणकताह के कायह ्‍या हैं?

o ्‍या आन कायों को संपन्न करने की प्रक्रिया पर सरकार का वनयंत्रण बना रहता है?

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 एक कें द्र शावसत प्रदेश के रूप में क्रदल्ली की विशेष वस्थवत के कारण, कोइ विधेयक विधानसभा

िारा पाररत क्रकये जाने के पिात भी तब तक "कानून" नहीं माना जाता है, जब तक आस पर
क्रदल्ली के लेवफ्र्नेंर् गिनहर और भारत के राष्ट्रपवत िारा स्िीकृ वत प्रदान नहीं कर दी जाती है।
 क्रदल्ली सरकार का तकह है क्रक संसदीय सवचि क्रकसी भी पाररश्रवमक या सरकार की ओर से भत्तों के
वलए पात्र नहीं हैं, ऄतः आस पद को “लाभ के पद” की पररभाषा से छू र् प्रदान की जानी चावहए।

 पंजाब, हररयाणा, और राजस्थान अक्रद जैसे कइ राज्यों में कभी-कभार यह पद सृवजत क्रकया गया
है।
 हालांक्रक, ईच्च न्यायालय में विवभन्न यावचकाओं में संसद सवचि की वनयुवक्त को चुनौती दी गइ है।

 जून 2015 में, कलकत्ता ईच्च न्यायालय ने पविम बंगाल में 24 संसदीय सवचिों की वनयुवक्त
ऄसंिैधावनक ठहराते हुए वनरस्त कर दी।
 आसी प्रकार की कारह िाइ बंबइ ईच्च न्यायालय, वहमाचल प्रदेश ईच्च न्यायालय अक्रद िारा भी की
गइ है।
 ितहमान में, गुजरात, पंजाब और राजस्थान जैसे विवभन्न राज्यों में आस प्रकार के पदों का ऄवस्तत्ि
है।

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भारतीय संविधान एिं शासन


12. ईच्चतम न्यायालय

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विषय सूची
1. भारतीय न्यायपावलका की सामान्य संरचना __________________________________________________________ 3

2. ईच्चतम न्यायालय _____________________________________________________________________________ 3

2.1. वनयुवि ________________________________________________________________________________ 4


2.1.1. ऄहहताएँ ____________________________________________________________________________ 4
2.1.2. वनयुवि और कॉलेवजयम _________________________________________________________________ 4
2.1.3. पदािवध ____________________________________________________________________________ 5
2.1.4. िेतन ______________________________________________________________________________ 6

2.2. न्यायाधीशों को हटाना ______________________________________________________________________ 6

2.3. कायहकारी मुख्य न्यायाधीश की वनयुवि ___________________________________________________________ 7

2.4. तदथह न्यायाधीश __________________________________________________________________________ 7

2.5. सेिावनिृत्त न्यायाधीश ______________________________________________________________________ 7

2.6. ईच्चतम न्यायालय का स्थान___________________________________________________________________ 7

2.7. ईच्चतम न्यायालय के क्षेत्रावधकार _______________________________________________________________ 7


2.7.1. मूल क्षेत्रावधकार (Original Jurisdiction) ___________________________________________________ 8
2.7.2. ऄपीलीय क्षेत्रावधकार ___________________________________________________________________ 8
2.7.3. सलाहकारी क्षेत्रावधकार _________________________________________________________________ 9
2.7.4. ईच्चतम न्यायालय का ऄवभलेख न्यायालय होना _________________________________________________ 9
2.7.5. वनणहय या अदेश का पुनर्विलोकन (संशोवधत क्षेत्रावधकार) _________________________________________ 10
2.7.6. ईच्चतम न्यायालय की ऄन्य मुख्य शवियां ____________________________________________________ 11
2.7.7. न्यावयक समीक्षा की शवि ______________________________________________________________ 12
2.7.8. कु छ ऄन्य महत्िपूणह वसद्ांत वजसका प्रयोग न्यावयक समीक्षा के मामले में ककया जाता है ____________________ 13

2.8. न्याय प्रणाली के िैचाररक अधार ______________________________________________________________ 13


2.8.1. विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया (Procedure established by Law) बनाम विवध की
ईवचत प्रकिया (Due process of Law) _________________________________________________________ 13
2.8.2. प्राकृ वतक न्याय का वसद्ांत ______________________________________________________________ 14
2.8.3. ईच्चतम न्यायालय की स्िाधीनता सुवनवतत कने िाले ईपबंध ________________________________________ 14
2.8.4. ऄमेररकी सिोच्च न्यायालय के साथ तुलना ____________________________________________________ 15

2.9. न्यावयक ऄवतिमण और न्यावयक सकियता (Judicial Overreach and judicial activism) ___________________ 15

2.10. आं टीग्रेटेड के स मैनज


े मेंट आनफामेशन वसस्टम (ICMIS) ______________________________________________ 16
2.10.1. ईच्चतम न्यायालय कॉलेवजयम की कायहिाही पवललक डोमेन में _____________________________________ 16

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1. भारतीय न्यायपावलका की सामान्य सं र चना


 भारतीय संविधान के द्वारा एकीकृ त न्यायपावलका की स्थापना की गइ है, वजसके शीषह पर ईच्चतम

न्यायालय है ि ईसके ऄधीन ईच्च न्यायालय हैं। एक ईच्च न्यायालय के ऄधीन (और राज्य स्तर के
नीचे) ऄधीनस्थ न्यायालयों (वजला न्यायालय एिं ऄन्य ऄधीनस्थ न्यायालय) की श्रेवणयां हैं।
 यह एकीकृ त न्याय प्रणाली के न्रीय कानूनों के साथ-साथ राज्य के कानूनों को प्रिर्वतत करती है।
दूसरी तरफ, संयुि राज्य ऄमेररका में संघीय कानून का प्रितहन संघीय न्यायपावलका द्वारा जबकक

राज्यों के कानूनों का प्रितहन संबद् राज्य न्यायपावलकाओं द्वारा ककया जाता है।
 आस एकीकृ त न्याय प्रणाली को भारत शासन ऄवधवनयम, 1935 से ग्रहण ककया गया है।

2. ईच्चतम न्यायालय
 भारत के ईच्चतम न्यायालय का ईघाटाटन 28 जनिरी 1950 को ककया गया। यह भारत शासन

ऄवधवनयम, 1935 के द्वारा स्थावपत संघीय न्यायालय का ईत्तरावधकारी था।

 भारतीय संविधान के भाग V में ऄनुच्छेद 124 से 147 तक ईच्चतम न्यायालय की संरचना,

स्ितंत्रता, क्षेत्रावधकार, शवियाँ और कायहप्रणाली अकद का िणहन ककया गया है। संसद के पास

ईच्चतम न्यायालय के क्षेत्रावधकार, शवियों अकद के बारे में कानून बनाने का ऄवधकार है।

 मूलतः आस न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और 7 ऄन्य न्यायाधीश थे। संसद को यह शवि है

कक िह विवध बनाकर न्यायाधीशों की संख्या विवहत करे । ितहमान समय में ईच्चतम न्यायालय में
न्यायाधीशों की संख्या मुख्य न्यायाधीश सवहत 31 है।

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2.1. वनयु वि

2.1.1. ऄहह ताएँ

ऄनुच्छेद 124(3) के ऄनुसार कोइ भी व्यवि ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में वनयुवि के
वलए तभी ऄहह होगा जब िह:
 भारत का नागररक हो, और
 ककसी एक ईच्च न्यायालय ऄथिा दो या दो से ऄवधक ऐसे न्यायालयों में कम-से-कम पाँच िषों तक
न्यायाधीश रहा हो, या
 ककसी ईच्च न्यायालय ऄथिा दो या दो से ऄवधक ऐसे न्यायालयों में कम-से-कम दस िषों तक
िकालत कर चुका हो, या
 राष्ट्रपवत की राय में प्रख्यात न्यायविद (पारं गत विवधिेत्ता) हो।

2.1.2. वनयु वि और कॉले वजयम

ऄनुच्छेद 124 (2) के ऄनुसार ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की वनयुवि भारत का राष्ट्रपवत ईच्चतम
न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ि ईच्च न्यायालयों के कु छ ऐसे न्यायाधीशों से परामशह करने के पश्चात्,
वजनसे राष्ट्रपवत आस प्रयोजन के वलए परामशह करना अितयक समझे, ऄपने हस्ताक्षर और मुरा सवहत
ऄवधपत्र द्वारा ईच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को वनयुि करे गा और िह न्यायाधीश तब तक
पद धारण करे गा जब तक िह 65 िषह की अयु प्राप्त नहीं कर लेता है।
 ईच्चतम न्यायालय ने ‘परामशह’ शलद की व्याख्या तीन न्यायाधीश िादों (Three Judges
Cases) (1982, 1993, 1998) में विवभन्न तरीके से ककया है। तीसरे न्यायाधीश िाद के ईपरांत
ितहमान पररदृतय में ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की वनयुवि कॉलेवजयम, वजसमें ईच्चतम
न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा चार ऄन्य िररष्ठतम न्यायाधीश शावमल होते हैं, के सलाह पर
(प्रकृ वत में बाध्यकारी) राष्ट्रपवत द्वारा की जाती है।
 तीसरे न्यायाधीश िाद, 1998 में न्यायालय ने मत कदया कक भारत के मुख्य न्यायाधीश और चार
ज्येष्ठतम न्यायाधीशों से वमलकर बनने िाली कॉलेवजयम में जो बहुमत की राय होगी िही
वनधाहरक होगी।

ईच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की वनयुवि


 दूसरे न्यायाधीश िाद, 1993 में ईच्चतम न्यायालय ने वनणहय कदया कक सबसे िररष्ठ न्यायाधीश को
ही भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में वनयुि करना चावहए।

वनयुवि से संबवं धत ईच्चतम न्यायालय का हावलया वनणहय


हाल ही में सरकार ने ईच्चतम न्यायालय को आस संबंध में प्रकिया ञापापन (मेमोरें डम ऑफ़ प्रोसीजर)
सौंपा है।
पृष्ठभूवम
 कॉलेवजयम व्यिस्था को समाप्त करने तथा ईच्चतम न्यायालय एिं ईच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों
की वनयुवि तथा ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्थानांतरण हेतु 99िें संविधान संशोधन
ऄवधवनयम के माध्यम से ‘राष्ट्रीय न्यावयक वनयुवि अयोग’ (NJAC) के गठन की घोषणा की गयी
थी।
 आसका गठन तीन िररष्ठ न्यायाधीशों, दो प्रख्यात लोगों और कानून मंत्री (कु ल 6 सदस्य) से
वमलकर होना था।
 हालाँकक, आससे पहले कक आसे ऄवधसूवचत ककया जाता, आसे आस अधार पर चुनौती दी गइ कक
सरकार द्वारा न्यायपावलका की स्ितंत्रता में हस्तक्षेप ककया जा रहा है।

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आस संबध
ं में ईच्चतम न्यायालय का वनणहय
 ईच्चतम न्यायालय ने ईि संशोधन को ऄसंिैधावनक करार देते हुए वनरस्त कर कदया।
 ईच्चतम न्यायालय ने यह कहा कक ईि संशोधन "न्यायपावलका की स्ितंत्रता" के वसद्ांतों के साथ-
साथ "शवि के पृथक्करण" के वसद्ांतों के भी विपरीत है।
 प्रस्तावित NJAC को वनरस्त करने के बाद, ईच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने कें र से ईच्च
न्यायपावलका में न्यायाधीशों की वनयुवि के वलए एक प्रकिया ञापापन (Memorandum of
Procedure: MoP) तैयार करने के वलए मुख्य न्यायाधीश से परामशह करने हेतु कहा।
 विदेश मंत्री के नेतृत्ि में मंवत्रयों के समूह (GoM) ने ईपयुहि पर कायहिाही करते हुए न्यायाधीशों
की वनयुवि के वलए MoP को ऄंवतम रूप कदया। हालाँकक आसे लेकर ईच्चतम न्यायालय एिं कें र
सरकार के बीच ऄभी तक अम सहमवत नहीं बन पायी है। प्रस्तावित MoP के मुख्य प्रािधान
वनम्नवलवखत हैं:
MoP की मुख्य विशेषताएं
 आसमें ईच्च न्यायपावलका में न्यायाधीशों की वनयुवि के वलए, "मुख्य मापदंड" के रूप में योग्यता
और सत्यवनष्ठा (merit and integrity) को सवममवलत करने का प्रािधान है।
 वपछले पांच िषों के दौरान ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा कदए गए वनणहयों का मूलयांकन और
न्यावयक प्रशासन में सुधार के वलए की गइ पहलों को ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में
पदोन्नवत के वलए योग्यता का अधार होना चावहए।
 यह ईच्च न्यायालयों और ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की वनयुवि करने के वलए मानक के रूप
में कायह-वनष्पादन के मूलयांकन को प्रस्तावित करता है।
 यह प्रस्तावित करता है कक ईच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की वनयुवि के वलए "मुख्य मानदंड"
"ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायाधीशों की िररष्ठता" होनी चावहए।
 MoP वनर्ददष्ट करता है कक ईच्चतम न्यायालय में ऄवधकतम तीन न्यायाधीश बार कौंवसल के
प्रख्यात सदस्यों और ऄपने संबंवधत क्षेत्रों में प्रमावणत ैैक ररकॉडह िाले प्रवतवष्ठत न्यायविदों में से
वनयुि ककए जाने चावहए।
 ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के ररकाडह को सुरवक्षत रखने, कॉलेवजयम की बैठकों का कायहिम
वनधाहररत करने, वनयुवियों से संबंवधत ऄनुशस
ं ाओं के साथ-साथ वशकायतें प्राप्त करने के वलए
ईच्चतम न्यायालय में स्थायी सवचिालय स्थावपत ककया जाना चावहए।
 कें रीय कानून मंत्री को पदस्थ CJI के ईत्तरावधकारी की वनयुवि के संबंध में ऄनुशंसा ईसकी
सेिावनिृवत्त से कम से कम एक महीने पहले मांगनी चावहए।
 ककसी भी व्यवि की न्यायाधीश के रूप में वनयुवि को लेकर नए अपवत्त अधारों के रूप में राष्ट्रीय
सुरक्षा और सािहजवनक वहत को सवममवलत ककया गया है। यकद सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा और
सािहजवनक वहत के अधार पर अपवत्तयां हैं तो िह कॉलेवजयम को सूवचत करे गी। आसके बाद
कॉलेवजयम ऄंवतम वनणहय लेगा।
2.1.3. पदािवध

ऄनुच्छेद 124(2) में यह ईललेख है कक ईच्चतम न्यायालय में वनयुि कोइ न्यायाधीश ऄपनी वनयुवि के
पश्चात् तब तक नहीं हटाया जा सकता (मृत्यु को छोड़कर) जब तक कक िह:
 65 िषह की अयु प्राप्त नहीं कर लेता।
 राष्ट्रपवत को संबोवधत करते हुए ऄपना त्यागपत्र सौंप दे।
 सावबत कदाचार या ऄसमथहता के अधार पर भारत के संविधान के ऄनु. 124(4) में वनधाहररत
प्रकिया के तहत राष्ट्रपवत द्वारा हटा कदया जाए।

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2.1.4. िे त न

 भारतीय संविधान का ऄनु. 125 िेतन, भत्ते, पेंशन अकद के वनधाहरण की वजममेदारी संसद पर
डालता है। हालांकक संसद ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की वनयुवि के बाद न्यायाधीशों के
विशेषावधकारों और ऄवधकारों में कोइ पररितहन नहीं कर सकती है। ईच्चतम न्यायालय के
न्यायाधीशों के िेतन, भत्ते तथा पेंशन भारत की संवचत वनवध पर भाररत होते हैं और संसद में गैर-
मतदान योग्य होते हैं।
2.2. न्यायाधीशों को हटाना

ऄनुच्छेद 124(4) के ऄनुसार ईच्चतम न्यायालय के ककसी न्यायाधीश को ईनके पद से के िल सावबत


कदाचार या ऄसमथहता के अधार पर ही हटाया जा सकता है। संसद ने संविधान के ईपबंधों की ऄनुपूर्वत
के वलए ऄपनी शवि का प्रयोग करते हुए न्यायाधीश (जांच) ऄवधवनयम, 1968 ऄवधवनयवमत ककया है।
ईच्चतम न्यायालय के ककसी न्यायाधीश को ईसके पद से हटाये जाने की प्रकिया की रूपरे खा आस प्रकार
हैः
 आसके वलए राष्ट्रपवत को एक समािेदन देकर यह प्राथहना करनी होगी कक न्यायाधीश को हटाया
जाए। यकद प्रस्ताि लोक सभा में लाया जाना है, तो ईस पर लोक सभा के कम से कम 100 सदस्यों
के और यकद राज्य सभा में लाया जाना है, तो राज्य सभा से कम से कम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर
होने चावहए।
 सभापवत या ऄध्यक्ष (यथावस्थवत) ऐसे व्यवियों से परामशह ले सकता है जो िह ठीक समझे और
ऐसी सामग्री पर विचार कर सकता है जो ईपललध हो और प्रस्ताि को ग्रहण कर सके गा या ग्रहण
करने से आंकार कर सके गा।
 यकद प्रस्ताि ग्रहण कर वलया जाता है तो 3 व्यवियों की एक सवमवत गरठत की जाएगी वजसमें से-
o एक ईच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या न्यायाधीशों में से होगा।
o एक ईच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों में से होगा।
o एक व्यवि पारं गत विवधिेत्ता होगा।
 यकद सवमवत आस वनष्कषह पर पहुंचती है कक न्यायाधीश कदाचार का दोषी है या ऄसमथहता से ग्रस्त
है तो न्यायाधीश के हटाए जाने का प्रस्ताि और साथ ही सवमवत के प्रवतिेदन पर ईस सदन में
विचार ककया जाएगा वजसमें िह लंवबत है।
 आस प्रस्ताि को संसद के प्रत्येक सदन द्वारा ऄपनी कु ल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा ईपवस्थत
और मत देने िाले सदस्यों के कम से कम दो वतहाइ बहुमत द्वारा पाररत ककया जाना चावहए। आस
प्रकार पाररत समािेदन राष्ट्रपवत को प्रस्तुत ककया जाता है।
 राष्ट्रपवत न्यायाधीश को हटाने का अदेश जारी करता है।
नोट: ईच्चतम न्यायालय या ईच्च न्यायालय के ककसी भी न्यायाधीश को अज तक ईनके पद से हटाया
नहीं जा सका है। हालांकक संसद में न्यायमूर्वत िी. रामास्िामी, न्यायमूर्वत सौवमत्र सेन, न्यायमूर्वत पी.
डी. कदनाकरण को ईनके पद से हटाये जाने की प्रकिया प्रारं भ की गयी थी।
न्यायमूर्वत िी. रामास्िामी का मामला
1991 में 9िीं लोकसभा की ऄिवध जब समाप्त हो रही थी तब 108 सदस्यों ने ईच्चतम न्यायालय के एक
न्यायाधीश िी. रामास्िामी को हटाने के प्रस्ताि की सूचना दी। प्रस्ताि ग्रहण ककया गया और न्यायाधीश
(जांच) ऄवधवनयम, 1968 के ऄधीन एक सवमवत गरठत की गइ। 9िीं लोक सभा के विघटन के पश्चात्
ईच्चतम न्यायालय के समक्ष कु छ प्रश्न ईठाए गए वजनका ईत्तर न्यायालय ने आस प्रकार कदयाः
 न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताि लोक सभा के विघटन से व्यपगत नहीं होता है।
 हटाने की प्रकिया के दो प्रिम होते हैं:
o पहला प्रिम है कायहिाही का प्रारं भ, ऄन्िेषण और न्यायाधीश (जांच) ऄवधवनयम, 1968 के
ऄधीन सावबत ककया जाना। आस प्रिम का न्यावयक पुनर्विलोकन हो सकता है।
o दूसरा प्रिम अरोप सावबत कर कदए जाने के पश्चात् अरं भ होता है। िह संसदीय प्रकिया का
भाग है और ईसका न्यावयक पुनर्विलोकन नहीं हो सकता।

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2.3. कायह कारी मु ख्य न्यायाधीश की वनयु वि

 ऄनु. 126 के ऄनुसार जब भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद ररि होता है या जब मुख्य


न्यायाधीश, ऄनुपवस्थवत के कारण या ऄन्यथा ऄपने पद के कत्तहव्यों का पालन करने में ऄसमथह
होता है तब ईच्चतम न्यायालय के ऄन्य न्यायाधीशों में से एक न्यायाधीश को, वजसे राष्ट्रपवत आस
प्रयोजन के वलए वनयुि करे , कायहकारी मुख्य न्यायाधीश के रूप में ईस पद के कत्तहव्यों का पालन
करता है।

2.4. तदथह न्यायाधीश

 ऄनुच्छेद 127(1) के ऄनुसार यकद ककसी समय ईच्चतम न्यायालय के सत्र को अयोवजत करने या
जारी रखने के वलए ईस न्यायालय के न्यायाधीशों की गणपूर्वत न हो रही हो तो भारत का मुख्य
न्यायाधीश राष्ट्रपवत की पूिह सहमवत से और संबंवधत ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से
परामशह करने के पश्चात्, ककसी ईच्च न्यायालय के ककसी ऐसे न्यायाधीश को, जो ईच्चतम न्यायालय
का न्यायाधीश वनयुि होने के वलए समयक् रूप से ऄहह है, न्यायालय की बैठकों में ईतनी ऄिवध के
वलए, वजतनी अितयक हो, तदथह न्यायाधीश के रूप में वनयुि कर सकता है।
 तदथह न्यायाधीश का कत्तहव्य होता कक िह ईच्चतम न्यायालय की बैठकों में ईपवस्थवत हो। जब िह
आस प्रकार ईपवस्थत होता है तब ईसको ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की सभी ऄवधकाररता,
शवियाँ और विशेषावधकार प्राप्त होते हैं।

2.5. से िावनिृ त्त न्यायाधीश

 ऄनु. 128 के ऄनुसार भारत का मुख्य न्यायाधीश, ककसी भी समय, राष्ट्रपवत की पूिह सहमवत से
ककसी व्यवि से, जो ईच्चतम न्यायालय या फे डरल न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर
चुका है या जो ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है और ईच्चतम न्यायालय का
न्यायाधीश वनयुि होने के वलए समयक् रूप से ऄर्वहत है, ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप
में बैठने और कायह करने का ऄनुरोध कर सकता है।
 प्रत्येक ऐसा व्यवि, वजससे आस प्रकार ऄनुरोध ककया जाता है, आस प्रकार बैठने और कायह करने के
दौरान, ऐसे भत्तों का हकदार होगा जो राष्ट्रपवत अदेश द्वारा ऄिधाररत करे ।
 ऐसे न्यायाधीश को ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की सभी ऄवधकाररता, शवियाँ और
विशेषावधकार प्राप्त होते हैं, ककन्तु ईसे ईच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगा।

2.6. ईच्चतम न्यायालय का स्थान

संविधान के ऄनु. 130 के ऄनुसार, ईच्चतम न्यायालय का स्थान कदलली में घोवषत है। राष्ट्रपवत के
ऄनुमोदन से मुख्य न्यायाधीश ईच्चतम न्यायालय के स्थान स्थानों के वलए ऄन्य जगहों को ऄवधकृ त कर
सकता है।

2.7. ईच्चतम न्यायालय के क्षे त्रावधकार

ईच्चतम न्यायालय के पास मूल, ऄपीलीय तथा सलाहकारी क्षेत्रावधकार हैं (ऄनु. 131-144)।
 यह न के िल एक संघीय न्यायालय है बवलक ऄपील के वलए ऄंवतम न्यायालय भी है। साथ ही,
संविधान का ऄंवतम व्याख्याता और नागररकों को मूल ऄवधकारों की गारं टी भी प्रदान करने िाला
भी है। आसके ऄलािा आसे सलाहकारी और पयहिेक्षीय ऄवधकार भी हैं।

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2.7.1. मू ल क्षे त्रावधकार (Original Jurisdiction)

ऄनु. 131 के ऄनुसार ईच्चतम न्यायालय के पास वनम्नवलवखत विवशष्ट मूल क्षेत्रावधकार हैं:
 भारत सरकार और एक या ऄवधक राज्यों के बीच वििाद;
 एक पक्ष में भारत सरकार और ककसी भी राज्य या राज्यों का होना एिं एक या ऄवधक राज्यों का
दूसरी पक्ष में होना; और

 दो या ऄवधक राज्यों के बीच वििाद, जहां वििाद में कोइ ऐसा मुद्दा है वजसमें कानून या तथ्य का
प्रश्न हो।
ईच्चतम न्यायालय के आस क्षेत्रावधकार में वनम्नवलवखत विस्तार समावहत नहीं है:
 ऄंतराहज्यीय जल वििाद;
 वित्त अयोग से संबंवधत मामले;
 कें र और राज्यों के बीच खचह का समायोजन;
 िावणवज्यक प्रकृ वत के साधारण वििाद;

 संविधान पूिह संवध या समझौते से ईत्पन्न वििाद;


 कोइ ऐसा वििाद जो संवध, समझौते अकद के बाहर पैदा हुअ है वजसमें स्पष्ट हो कक संबंवधत
न्यायक्षेत्र ईस वििाद से संबंवधत न हो।

ररट क्षेत्रावधकार
 ऄनु. 32 के ऄधीन ईच्चतम न्यायालय के पास मूल ऄवधकारों के प्रितहन के संबंध में ररट
क्षेत्रावधकार हैं। ईच्चतम न्यायालय को ऄवधकार प्राप्त है कक िह बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas

corpus), परमादेश (Mandamas), ईत्प्रेषण (Certiorari), प्रवतषेध (Prohibition) एिं


ऄवधकार पृच्छा (Quo warranto) अकद पर वनदेश जारी कर संविधान के ऄनु. 32 के तहत
नागररकों के मूल ऄवधकारों की रक्षा करें । आस संबंध में कोइ भी व्यवि ऄपील के िवमक माध्यम से
न जाकर सीधे ईच्चतम न्यायालय में ऄपील कर सकता है।
 संसद क़ानून द्वारा ईच्चतम न्यायालय को (मूल ऄवधकारों के प्रितहन के ऄवतररि) ऄन्य मामलों के
वलए भी वनदेश या अदेश या ररट जारी करने की ऄनुमवत दे सकती है (ऄनु. 139)।

2.7.2. ऄपीलीय क्षे त्रावधकार

ईच्चतम न्यायालय ने स्ितंत्रता के बाद ऄपील की सिोच्च ऄदालत के रूप में विरटश वप्रिी काईं वसल को
प्रवतस्थावपत ककया। ऄपीलीय क्षेत्रावधकार को वनम्नवलवखत शीषहकों में विभावजत ककया गया है:
 संिध
ै ावनक मामले: संिैधावनक मामलों में ईच्चतम न्यायालय के ऄपीलीय क्षेत्रावधकार के तहत ईच्च
न्यायालय के द्वारा कदए गये फै सले के वखलाफ ऄपील की जा सकती है। यकद ईच्च न्यायालय ही आसे
प्रमावणत करे कक मामले में विवध का प्रश्न वनवहत है वजसमें संविधान की व्याख्या की अितयकता
है, तो ऄपील की जा सकती है (ऄनु. 132)।
 दीिानी मामले: दीिानी मामलों के तहत ककसी भी मामले को ईच्चतम न्यायालय में लाया जा

सकता है, यकद ईच्च न्यायालय प्रमावणत कर दे कक:


o मामला विवध के सारिान प्रश्न पर अधाररत है या
o ऐसा प्रश्न है वजसका वनणहय ईच्चतम न्यायालय के द्वारा तय ककये जाने की जरुरत है(ऄनु.
133)।

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 अपरावधक मामले: ऄनु. 134 में यह िर्वणत है कक ईच्चतम न्यायालय ईच्च न्यायालय के अपरावधक
मामलों के वनणहयों के वखलाफ सुनिाइ करता है, यकद ईच्च न्यायालय ने:
o अरोपी व्यवि के दोषमुि बरी करने के अदेश को पलट कदया हो और ईसे मृत्युदड
ं की सजा
दी हो।
o ककसी ऄधीनस्थ न्यायालय से ककसी मामले को ऄपने पास मंगिाकर अरोपी को दोषी सावबत
करते हुए मौत की सजा दी हो।
 विशेष ऄनुमवत से ऄपील (Appeal by Special Leave): ईच्चतम न्यायालय भी ककसी फै सले ि
गैर-सैन्य ऄदालत या ऄवधकरण द्वारा कदए गये फै सले के वखलाफ ऄपील के वलए विशेष ऄनुमवत
प्रदान कर सकती है {ऄनु. 136 (1)}। ऄपील की ऐसी शवि ईच्चतम न्यायालय की वििेकाधीन
शवि में अएगा और यह ककसी भी मामले से संबंवधत हो सकता है। आस प्रािधान का दायरा बहुत
व्यापक है और यह पूणत
ह या ईच्चतम न्यायालय के क्षेत्रावधकार में वनवहत है। आस शवि का प्रयोग,
ईच्चतम न्यायालय में ही ‘एक ऄसाधारण और सिोपरर शवि के रूप में’ संयम और सािधानी के
साथ के िल ऄसाधारण पररवस्थवतयों में ककया जाता है।
2.7.3. सलाहकारी क्षे त्रावधकार

ऄनु. 143 के ऄनुसार कु छ मामलों में ईच्चतम न्यायालय के पास विशेष सलाहकारी क्षेत्रावधकार है,
वजसमें विशेष रूप से राष्ट्रपवत को ईच्चतम न्यायालय से सलाह लेने का ऄवधकार है। आसे दो श्रेवणयों में
बांटा गया है:
 सािहजवनक महत्ि के ककसी मसले पर विवधक प्रश्न ईठने पर या वजसके ईत्पन्न होने की संभािना
हो।
 संविधान पूिह के ककसी संवध, समझौता, िाचा, प्रसंविदा, सनद अकद से ईत्पन्न ककसी भी वििाद
या सिाल पर।
पहले मामले में, ईच्चतम न्यायालय सलाह दे भी सकता है और मना भी कर सकता है, जबकक दूसरे
मामले में ईच्चतम न्यायालय को सलाह देना ऄवनिायह है। हालांकक, दोनों ही मामलों में राष्ट्रपवत के वलए
सलाह मानना बाध्यकारी नहीं हैं। ईच्चतम न्यायालय के सलाह को मानना या न मानना राष्ट्रपवत के
उपर है।
2.7.4. ईच्चतम न्यायालय का ऄवभले ख न्यायालय होना

ईच्चतम न्यायालय ऄवभलेख न्यायालय है (ऄनु. 129)। ऄवभलेख न्यायालय ऐसा न्यायालय होता है
वजसे विवध द्वारा ऄवभव्यि रूप से आस प्रकार घोवषत ककया जाए। ऄवभलेख न्यायालय की वनम्नवलवखत
विशेषताएं होती हैं:
(i) आसके वनणहय और कायहिावहयां शाश्वत स्मृवत और साक्ष्य के वलए रखी जाती हैं। ईसके ऄवभलेख का
साक्ष्य की दृवष्ट से महत्ि होता है। जब िह न्यायालय में प्रस्तुत ककया जाता है तो ईसे प्रश्नगत नहीं ककया
जा सकता। ऄवभलेख में जो ऄंतर्विष्ट होता है ईसका िह वनश्चायक साक्ष्य होता है। एिं
(ii) ऄवभलेख न्यायालय को ऄिमानना के वलए दंड देने की शवि होती है।
 हमारे संविधान ने ईच्चतम न्यायालय को ऄवभव्यि रूप से ऄिमानना के वलए दंड देने की शवि दी
हैं (ऄनु. 129)। िास्ति में ऄनुच्छेद 129 और 215 ने पहले से विद्यमान वस्थवत को मान्यता दी है।
ये ऄनुच्छेद कोइ नइ शवि प्रदान नहीं करते।
 न्यायालय ऄिमानना ऄवधवनयम, 1971 आन ऄनुच्छेदों के ऄवतररि है। िह आनका ऄलपीकरण
नहीं करता।
 ऄिमानना दो प्रकार का होता है: वसविल ऄिमानना और दांवडक ऄिमानना।
 वसविल ऄिमानना: जब कोइ व्यवि जानबूझकर न्यायालय के ककसी वनणहय, वडिी, अदेश या
अदेवशका की ऄिञापा करता है या न्यायालय के कदए गए ककसी िचन को भंग करता है या ईसका
सममान नहीं करता है तो ईसे वसविल ऄिमानना कहते हैं।

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 दांवडक ऄिमानना: दांवडक ऄिमानना तब होता है जब कोइ ऐसी बात प्रकावशत की जाए या कोइ
ऐसा कायह ककया जाए वजससे न्यायालय का प्रावधकार कम होता है या न्यावयक कारह िाइ पर
प्रवतकू ल प्रभाि पड़ता है या ईसके समयक् ऄनुिम में हस्तक्षेप होता है या ककसी ऄन्य रीवत से
न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप होता है।
 ईच्चतम न्यायालय की ऄिमानना के वलए दंड देने की शवि ऄपने ऄिमानना तक ही सीवमत नहीं
हैं। न्यायालय पूरे देश में ककसी भी न्यायालय या ऄवधकरण के ऄिमानना के वलए दंड दे सकता है।

न्यायालय की ऄिमानना (Contempt of Court)


संिध
ै ावनक प्रािधान
 भारतीय संविधान के ऄनु. 129 और 215 के ऄंतगहत िमशः ईच्चतम न्यायालय तथा ईच्च न्यायालयों
को ऄपनी ऄिमानना के वलए ककसी व्यवि को दवडडत करने का ऄवधकार प्रदान ककया गया है। आस
संबंध में न्यायालय ऄिमानना ऄवधवनयम, 1971 का ऄवधवनयमन ककया गया है। आस ऄवधवनयम में
न्यायपावलका की ऄिमानना की शवियों को पररभावषत ककया गया है। आसके ईद्देतय हैं:
o ककसी न्यायालय के प्रावधकार की ननदा या ईसकी प्रवतष्ठा को धूवमल करने से रोकना,
o ककसी न्यावयक कायहिाही की यथोवचत प्रकिया में ककसी भी प्रकार के ऄनाितयक हस्तक्षेप को
रोकना,
o एक विवधक प्रावधकरण के रूप में न्यायालय की भूवमका को सशि करना तथा यह सन्देश देना
कक कानून सिोपरर है और ईससे उपर कोइ नहीं है, तथा
o यह सुवनवश्चत करना कक कोइ भी ऄपनी स्ितंत्र आच्छा के ऄनुरूप न्यायालय के अदेशों का
ईललंघन न कर सके ।
ऐसी शवियों की अितयकता
 ऄिमानना संबंधी प्रािधान, न्यायाधीशों को मीवडया की अलोचना ऄथिा सामान्य जनता के
विचारों से संबंवधत ककसी प्रकार के दबाि से संरक्षण प्रदान करने के वलए ककये गये हैं, ताकक िे वबना
ककसी भय तथा पक्षपात ऄथिा वबना ककसी प्रकार के बाहरी दबाि के ऄपने कत्तहव्यों का वनिहहन कर
सकें ।
न्यायालय की ऄिमानना शवि के विपक्ष में तकह
 ऄिमानना का प्रािधान संविधान के ऄनु. 19(1)(a) के तहत सुवनवश्चत िाक् एिं ऄवभव्यवि की
स्ितंत्रता पर ऄनाितयक रोक लगाता है।
 कु छ विद्वानों का मानना है कक ऄनु. 19(2) में िाक् एिं ऄवभव्यवि की स्ितंत्रता पर युवियुि
वनबहन्धन के रूप में ‘न्यायालय की ऄिमानना’ शावमल है।
 संविधान सभा में, पंवडत ठाकु र दास भागहि ने कहा था कक ऄिमानना के वलए दवडडत करने की
शवि का संबंध के िल न्यायालय के ककसी अदेश या वनदेश की ऄिञापा से है जो कक पहले से ही
दंडनीय ऄपराध है।

2.7.5. वनणह य या अदे श का पु न र्विलोकन (सं शोवधत क्षे त्रावधकार)

 ऄनु. 137 के ऄनुसार ईच्चतम न्यायालय के पास स्ियं के द्वारा कदए गए वनणहय या अदेश की
समीक्षा का ऄवधकार है। हालांकक यह ऄनुच्छेद आसके फै सले की समीक्षा के अधार की कोइ सीमा
तय नहीं करता है, परन्तु आस शवि के प्रयोग करने के अधार को संसदीय विधान द्वारा एिं ऄनु.
145 के तहत ईच्चतम न्यायालय के द्वारा स्ियं ही प्रवतबंवधत ककया जा सकता है।
 ऄपने फै सले की समीक्षा के वलए दायर यावचका को ‘पुनर्विचार यावचका” कहते हैं। जबकक एक
दूसरे प्रकार के समीक्षा यावचका को “ईपचारात्मक यावचका” (दोषहरी यावचका Curative
Petition) कहा जाता है।

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दोषहारी यावचका (Curative Petition)


 ईच्चतम न्यायालय ने न्याय के प्रवत ऄपने लगाि को यह संप्रक्ष
े ण करके रे खांककत ककया है कक यकद
कहीं पर स्पष्ट रूप से ऄन्याय हुअ है तो यह दोष दूर ककया जाना चावहए। यकद ऄन्याय समाप्त नहीं
होगा तो न्यायालय की प्रवतष्ठा वगर जाएगी। आस हेतु एक निीन ईपबंध सृवजत ककया गया है वजसे
दोषहारी यावचका नाम कदया गया है। ऐसी यावचका ठोस और सुदढ़ृ अधार पर ही ग्रहण की
जाएगी। जैस-े जहां नैसर्वगक न्याय के वसद्ांतों का ईललंघन हुअ है या जहां न्यायाधीश पक्षपात से
ग्रस्त है। ऐसी यावचका को एक ज्येष्ठ ऄवधििा प्रमावणत करे गा। ईसके बाद ईसे तीन ज्येष्ठतम
न्यायाधीशों को और वजस वनणहय के विरुद् यावचका है िह वनणहय देने िाले न्यायाधीशों को
पररचावलत की जाएगी। िह सूचीबद् तभी की जाएगी जब न्यायाधीशों के बहुमत की यह राय है कक
िह सुनिाइ की सूची में रखे जाने योग्य है। यकद पीठ की यह राय है कक यावचका तंग करने के वलए
और वनराधार है तो िह याची को यह अदेश दे सकता है कक िह खचे के रूप में एक बड़ी रकम दे।
 दोषहारी यावचका की ऄिधारणा सबसे पहले भारत के सुप्रीम कोटह ने रूपा ऄशोक हुराह बनाम
ऄशोक हुराह एिं ऄन्य मामले में विकवसत की थी (2002)।
 जकाररया लाकरा बनाम भारत संघ में न्यायालय ने दोषहारी यावचका आस अधार पर स्िीकार
ककया था कक स्कू ल के प्रमाण पत्र से यह स्पष्ट होता था कक ऄवभयुि, वजसे मृत्युदड
ं कदया गया था,
ऄपराध ककए जाने के समय ऄियस्क था।

2.7.6. ईच्चतम न्यायालय की ऄन्य मु ख्य शवियां

 ईच्चतम न्यायालय द्वारा घोवषत सभी क़ानून भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर, सभी ऄदालतों पर
बाध्यकारी हैं। [ऄनु. 141]
 भारत के राज्यक्षेत्र के सभी वसविल और न्यावयक प्रावधकारी ईच्चतम न्यायालय की सहायता में
कायह करें गे। [ऄनु. 144]
 ईच्चतम न्यायालय के ऄवधकाररयों और सेिकों की वनयुवियाँ भारत का मुख्य न्यायाधीश करे गा या
ईस न्यायालय का ऐसा ऄन्य न्यायाधीश या ऄवधकारी करे गा वजसे िह वनर्ददष्ट करे । ईच्चतम
न्यायालय के प्रशासवनक व्यय वजनके ऄतंगत
ह ईस न्यायालय के ऄवधकाररयों और सेिकों के िेतन,
भत्ते और पेंशन शावमल हैं, भारत की संवचत वनवध पर भाररत होंगे। [ऄनु. 146]
 ऄनु. 142 के ऄनुसार ईच्चतम न्यायालय ऄपनी ऄवधकाररता का प्रयोग करते हुए ऐसी वडिी
पाररत कर सके गा या ऐसा अदेश पाररत कर सके गा जो ईसके समक्ष लंवबत ककसी िाद या विषय
में पूणह न्याय करने के वलए अितयक हो।

ऄनुच्छेद 142 और न्यावयक संयम की अितयकता (Article 142 And The Need For Judicial
Restraint)
राजमागों के ककनारे शराब की वबिी को प्रवतबंवधत करने एिं बाबरी मवस्जद विध्िंस से संबंवधत मामलों
पर संयुि ैायल का अदेश देने जैसे कइ मामलों में ईच्चतम न्यायालय के द्वारा ऄनु. 142 के लगातार
ईपयोग की अलोचना की जा रही है। आसवलए यह ऄनुच्छेद लगातार चचाह में बना हुअ है।
नचता का कारण
 ऄसीवमत शवि: ऄनु. 142 ऄसीवमत शवि का स्रोत नहीं है और आसका ईपयोग संयम के साथ करना
चावहए। आसका आस प्रकार प्रयोग ककया जाना चावहए कक यह न्यावयक ऄवतसकियता प्रतीत ना हो।
 नागररकों के ऄवधकारों को प्रभावित करता है: आन दो वनणहयों ने एक ओर जहाँ अरोपी के ऄवधकारों
को प्रभावित ककया है, िहीं दूसरी ओर आसके कारण लाखों लोगों के समक्ष बेरोजगारी की वस्थवत
ईत्पन्न हो गइ है।

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 ‘शवि के पृथक्करण' के वसद्ांत के विरुद्: ईललेखनीय है कक शवि का पृथक्करण संविधान के मूल ढाँचे
का वहस्सा है।
 चूंकक ईच्चतम न्यायालय के 31 न्यायाधीश, वनणहय करने के वलए दो या तीन न्यायाधीशों को
वमलाकर बनने िाली बेंच के रूप में तेरह वडिीजनों में बैठते हैं और प्रत्येक बेंच एक-दूसरे से स्ितंत्र
होती है। ऄत: वििेकावधकारों के बारे में ऄवनवश्चतता ईत्पन्न होती है।
हालांकक पूिह में ईच्चतम न्यायालय ने ऄनु. 142 का प्रयोग ईवचत रूप से ककया है, जैस-े यूवनयन काबाहआड
के स, ताजमहल की सफाइ, जेलों से विचाराधीन (ऄंडरैायल) कै कदयों की ररहाइ आत्याकद। कफर भी, ऄनु.
142 के प्रयोग के दौरान समाज के विवभन्न िंवचत िगों को समपूणह न्याय प्रदान करने के वलए कु छ वनयमों
के ऄनुसरण पर विचार ककया जाना चावहए, जैसे:
 ऄनु. 142 से संबंवधत मामलों को कम से कम पाँच न्यायाधीशों से वमलकर बनने िाली संविधान
पीठ को भेजा जाना चावहए ताकक ऄनु. 142 से संबंवधत ऄवनवश्चतताओं को कम ककया जा सके ।
 वजन मामलों में ऄदालत के द्वारा ऄनु. 142 का प्रयोग ककया जाता है, ईनके संबंध में सरकार को
आसके लाभकारी एिं नकारात्मक प्रभािों का ऄध्ययन करने के वलए एक श्वेतपत्र लाना चावहए।
वनणहय की वतवथ से छह माह के बाद या आससे संबंवधत वतवथ से आस प्रकिया को अरमभ ककया जा
सकता है।
 ईच्चतम न्यायालय को ऄपने बार-बार दोहराए गए ईस वसद्ांत का पालन करना चावहए वजसके
ऄनुसार ऄन्य कोइ िैधावनक ईपाय ईपललध होने पर संविधान के ऄनु. 142 का प्रयोग ऄनुवचत है।

2.7.7. न्यावयक समीक्षा की शवि

 ईच्चतम न्यायालय कें र और राज्य द्वारा बनाये गये ककसी भी ऄवधवनयम या विधान जो संविधान
का ऄवतिमण करते हैं, को शून्य घोवषत कर सकता है। न्यावयक समीक्षा संविधान की सिोच्चता को
कायम रखने, संघीय संतल
ु न को बनाये रखने और नागररकों के मूल ऄवधकारों की सुरक्षा के ईद्देतय
से अितयक हैं। ईच्चतम न्यायालय ने गोलकनाथ मामले (1967), बैंकों के राष्ट्रीयकरण के मामले
(1970), वमनिाह वमलस मामला (1980) अकद जैसे विवभन्न मामलों में आस शवि का प्रयोग ककया
है।
 ईच्चतम न्यायालय में ककसी विधायी ऄवधवनयम या ककसी कायहकारी अदेश की संिैधावनक िैधता
को तीन अधारों पर चुनौती कदया जा सकता है:
o यह मूल ऄवधकारों (भाग 3) का ईललंघन करता हो,
o यह विधावयका द्वारा ईसके ऄवधकार क्षेत्र के बाहर जाकर बनाया गया हो,
o यह संिैधावनक प्रािधानों के प्रवतकू ल हो।
 यद्यवप न्यावयक समीक्षा शलद का ईललेख संविधान में कहीं नहीं ककया गया है, लेककन कइ
ऄनुच्छेदों के प्रािधान स्पष्ट रूप से ईच्चतम न्यायालय को न्यावयक समीक्षा की शवि प्रदान करते
हैं।
 भारतीय ईच्चतम न्यायालय “विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया” (Procedure established by
Law) जबकक ऄमेररकी ईच्चतम न्यायालय “विवध की ईवचत समयक प्रकिया” (Due process of
Law) (दोनों के बीच ऄंतर की चचाह बाद में की गयी है) को ध्यान में रखते हुए वनणहय देती है। कइ
मामलों में यह देखा गया है कक भारतीय ईच्चतम न्यायालय ने कइ वनणहयों में ‘विवध की ईवचत
प्रकिया’ का आस्तेमाल ककया है और यह शीघ्रता से वनणहयन प्रकिया में स्थान पा वलया है। न्यायमूर्वत
पी. एन. भगिती ने मेनका गांधी िाद में कहा कक जब कोइ ऄवधकार से िंवचत हो रहा है तब
संविधान न्यायालय को “वनष्पक्ष प्रकिया” के तहत ऄपना काम करने की छू ट देता है।

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2.7.8. कु छ ऄन्य महत्िपू णह वसद्ां त वजसका प्रयोग न्यावयक समी क्षा के मामले में ककया
जाता है

पृथक्करण का वसद्ांत
 ऄनु. 13 में यह कहा गया है कक विवधयां ऄसंगत होने की या ईललंघन की मात्रा तक शून्य होंगी।
ऄसंगतता या ईललंघन का प्रभाि संपण
ू ह विवध या कायह पर नहीं पड़ता। ऄनु. 13 ईसके प्रभाि को
ऄसंगतता की मात्रा तक बांधे रखता है। यकद ये शलद नहीं होते तो ऄसंगत विवध पूरी की पूरी शून्य
हो जाती। आस प्रकार स्पष्ट है कक विवध का िही भाग शून्य घोवषत ककया जाएगा जो मूल ऄवधकार
के विरूद् हो। दूसरे शलदों में पृथक्करण का वसद्ांत लागू होगा। आस प्रकार पृथक्करण का वसद्ांत यह
है कक यकद ककसी ऄवधवनयम का ऄवतितहन (ईललंघन) करने िाला ईपबंध मूल ऄवधकार के
प्रवतकू ल या ऄसंिैधावनक है तो ईस विशेष भाग को पृथक ककया जा सकता है और के िल ईललंघन
करने िाले ईपबंध को ही शून्य घोवषत ककया जाएगा, समपूणह ऄवधवनयम को नहीं।
नोट: शवि के पृथक्करण का वसद्ांत िस्तुतः कायहपावलका, विधावयका एिं न्यायपावलका के बीच
शवियों का विभाजन है।
2.8. न्याय प्रणाली के िै चाररक अधार

2.8.1. विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया (Procedure established by Law) बनाम विवध
की ईवचत प्रकिया (Due process of Law)

 ‘विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया’ का जन्म मूलतः आं ग्लैंड में हुअ है। आसका शावलदक ऄथह विवध द्वारा
वनधाहररत प्रकियाओं और ईनके प्रयोगों’ से है। आस वसद्ांत के तहत न्यायालय विधायी सक्षमता की
दृवष्ट से ककसी क़ानून की समीक्षा करता है और यह ऄवभवनधाहररत करती है कक विधावयका द्वारा
वनधाहररत प्रकिया का पालन ककया जा रहा है या नहीं। यकद कायहपावलका की ककसी कायहिाही को
न्यायालय में चुनौती दी जाती है तो न्यायालय कायहपावलका की कायहिाही को वनम्नवलवखत तरीके
से जांच कर सकती है:
o क्या कोइ ऐसा क़ानून ऄवस्तत्ि में है जो कायहपावलका को ऐसी विवध बनाने की ऄनुमवत देती
है;
o क्या विधावयका आस तरह के क़ानून को पाररत करने के वलए ऄवधकृ त थी;
o जब विधावयका ईस क़ानून को बना रही थी तब स्थावपत प्रकिया का पालन ककया गया या
नहीं।
 यकद ईपयुहि जांच से न्यायालय संतुष्ट है तो िह कायहपावलका के ईस कायहिाही को जारी रखेगी।
न्यायालय क़ानून की वसफह वनष्पक्ष और प्राकृ वतक औवचत्य के अधार की ही जांच नहीं करती है
ऄवपतु यह भी जांच करती है कक ईसे कानूनी प्रकियागत औपचाररकताओं के अधार पर पाररत
ककया गया है या नहींI
 दूसरी ओर, ‘विवध की ईवचत प्रकिया’ वसद्ांत का जन्म ऄमेररका में हुअ, वजसके तहत
न्यायपावलका को ज्यादा शवियां प्रदान की गयी हैं। आसके तहत न्यायालय ककसी विवध की ईपयुहि
तीन अधारों पर जांच के ऄलािा न्याय के प्राकृ वतक वसद्ांत के तहत और ऄवधक व्यापक दृवष्टकोण
से जांच करती है। विवध की ईवचत प्रकिया से तात्पयह यह है कक विधावयका द्वारा पाररत क़ानून
वनष्पक्ष, तकह पूणह और विचारपूणह हो न कक कालपवनक, दमनकारी और स्िेच्छाचारी। आस प्रकार,
यह कायहपावलका और विधावयका दोनों की स्िेच्छाचाररता के वखलाफ ककसी व्यवि को सुरक्षा
प्रदान करती है।
 ऄनु. 21 के तहत भारतीय संविधान ने के िल विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया का प्रािधान ककया है।
हालांकक, मेनका गाँधी बनाम भारत संघ िाद, 1978 में ईच्चतम न्यायालय ने संविधान के ऄनु.
21 की व्याख्या में प्राकृ वतक न्याय के वसद्ांत को शावमल ककया।

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2.8.2. प्राकृ वतक न्याय का वसद्ां त

 प्राकृ वतक न्याय का वसद्ांत तीन वनयमों के तहत कायह करता है:
o ककसी भी व्यवि को वबना सुनिाइ के सजा नहीं दी जा सकती है।
o कोइ भी व्यवि ऄपने ही मामले का न्यायाधीश नहीं हो सकता है।
o एक प्रावधकरण वबना ककसी पूिाहग्रह के कायह करे गा।
 प्राकृ वतक न्याय के वसद्ांतों की विषय-िस्तु स्िेच्छाचाररता की संभािनाओं को ख़त्म कर देती है
और वनणहय लेने की प्रकिया में वनष्पक्षता पर जोर देती है। आनकी प्रकृ वत सािहभौवमक होती हैं।
 ईच्चतम न्यायालय ने यह वनणहय कदया है कक प्राकृ वतक न्याय का वसद्ांत सभी ऄवधकाररयों,
व्यवियों और खुद न्यायपावलका पर भी बाध्यकारी रूप से लागू है। हालांकक, िे हमारे संविधान में
स्पष्ट रूप से शावमल नहीं हैं, लेककन कफर भी न्यायालय आसे ऄन्तर्वनवहत विशेषता मानती है।
मेनका गाँधी बनाम भारत संघ िाद, 1978 में ईच्चतम न्यायालय ने कहा है कक प्राकृ वतक न्याय के
वसद्ांतों को हम संविधान के ऄनु. 21 (जीिन का ऄवधकार) में देख सकते हैं और विधावयका आस
मामले में ‘विवध की ईवचत प्रकिया’ का पालन करने हेतु बाध्य है।

2.8.3. ईच्चतम न्यायालय की स्िाधीनता सु वनवश्चत करने िाले ईपबं ध

संविधान में ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की स्िाधीनता और वनष्पक्षता सुवनवश्चत करने के वलए
वनम्नवलवखत ईपबंध हैं:
 वनयुवियां राष्ट्रपवत द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश (ईच्चतम न्यायालय और ईच्च न्यायालय के
न्यायाधीश की दशा में) से परामशह के पश्चात् की जाती है। आससे यह सुवनवश्चत हो जाता है कक
वनयुवियां राजनीवतक अधार पर या वनिाहचन में लाभ के वलए नहीं की जा रही है और
राजनीवतक तत्त्ि समाप्त हो जाता है।
 न्यायाधीशों को भयमुि होकर काम करने की छू ट है। वनणहय में चाहे वजतनी गंभीर भूल हो जाए
ईसे कदाचार नहीं माना जाता। न्यायाधीश को सावबत कदाचार या ऄसमथहता के अधार पर ही
राष्ट्रपवत द्वारा हटाया जा सकता है। राष्ट्रपवत, न्यायाधीश को अदेश तभी देगा जब संसद के दोनों
सदनों के विशेष बहुमत द्वारा समािेदन पाररत ककया जाए और राष्ट्रपवत को प्रस्तुत ककया जाए।
यह एक जरटल और कष्टसाध्य प्रकिया है।
 कायहपावलका राष्ट्रपवत के प्रसादपयंत पद धारण करती है। यह वनयम वसविल सेिकों और सैन्य
बलों के वलए लागू होता है। राज्यपालों की भी यही वस्थवत है। ककतु प्रसाद का वसद्ांत न्यायाधीशों
को लागू नहीं होता। यकद िे कदाचरण नहीं करते हैं तो ईन्हें पद से नहीं हटाया जा सकता।
 ईच्चतम न्यायालय के ऄवधकारी और सेिक मुख्य न्यायाधीश द्वारा वनयुि ककए जाते हैं और
न्यायालय का प्रशासवनक व्यय भारत की संवचत वनवध पर भाररत होता है (ऄनु. 146 और 229)।
 न्यायाधीशों के िेतन, भत्ते, पेंशन और छु ट्टी संसद् द्वारा बनाइ गइ विवध द्वारा ऄिधररत ककए जाते
हैं और ईसमें न्यायाधीशें के वलए ऄलाभकारी पररितहन नहीं ककया जा सकता। न्यायाधीश की
पदािवध के दौरान ईसका िेतन और भते घटाए नहीं जा सकते (के िल ऄनु. 360 के ऄधीन वित्तीय
अपात में कम ककए जा सकते हैं)।
 ककसी न्यायाधीश के ऄपने कत्तहव्यों के वनिहहन में ककए गए अचरण के विषय में संसद या राज्य
विधान-मंडल में कोइ चचाह नहीं हो सकती (ऄनु. 121)।
 ईच्चतम न्यायालय का सेिावनिृत्त न्यायाधीश भारत के ककसी न्यायालय या प्रावधकारी के समक्ष
ऄवभिचन या कायह नहीं कर सकता। (कोइ व्यवि जो ककसी ईच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश
रहा हो ईच्चतम न्यायालय या वजस न्यायालय में िह वनयुि ककया गया था ईससे वभन्न ककसी ईच्च
न्यायालय के समक्ष ऄवभिचन या कायह कर सकता है)।
 ईच्चतम न्यायालय और ईच्च न्यायालय को ऄपनी ऄिमानना के वलए दंड देने की शवि प्राप्त है।

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2.8.4. ऄमे ररकी सिोच्च न्यायालय के साथ तु ल ना

भारत और ऄमेररकी न्यावयक व्यिस्था में बुवनयादी ऄंतर है। जहाँ भारत में एकीकृ त न्यावयक प्रणाली है
िहीं ऄमेररकी न्यावयक प्रणाली संघीय वसद्ांत पर अधाररत है। कफर भी आनमें कइ समानतायें भी हैं।
भारतीय ईच्चतम न्यायालय को ऄमेररकी ईच्चतम न्यायालय की तुलना में वनम्नवलवखत मामलों में ज्यादा
ऄवधकार प्राप्त हैं:
 ऄमेररकी सिोच्च न्यायालय के ऄपीलीय क्षेत्रावधकार संघीय संबंध से ईत्पन्न होने िाले मामलों तक
ही सीवमत हैं, जबकक हमारा ईच्चतम न्यायालय संघीय न्यायालय होने के ऄलािा संविधान का

संरक्षक भी है तथा यह दीिानी और अपरावधक (एकीकृ त न्यायपावलका के कारण) मामलों के


ऄपील हेतु सिोच्च ऄदालत है।
 ईच्चतम न्यायालय ऄपने वििेकानुसार वबना ककसी वनबंधन के भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर न
के िल ककसी न्यायालय बवलक ककसी ऄवधकरण के फै सले की सुनिाइ कर सकता है जबकक ऄमेररकी
सिोच्च न्यायालय के पास ऐसी कोइ शवि नहीं है।
 भारतीय ईच्चतम न्यायालय ऄपने सलाहकारी क्षेत्रावधकार को स्िीकार करती है जबकक ऄमेररकी
ईच्चतम न्यायालय ने आसे ऄस्िीकार कर कदया है। ऄनु. 143 के तहत ईच्चतम न्यायालय में

सलाहकारी क्षेत्रावधकार वनवहत है।


 भारतीय ईच्चतम न्यायालय के ऄवधकारक्षेत्र और शवि को संसद द्वारा विस्तृत ककया जा सकता है,

जबकक आस मामले में ऄमेररकी सिोच्च न्यायालय को संविधान द्वारा सीवमत ककया गया है।
िहीं ऄमेररकी सिोच्च न्यायालय को वनम्नवलवखत दृवष्टकोण से ऄवधक ऄवधकार प्राप्त हैं:
 भारतीय ईच्चतम न्यायालय के मूल क्षेत्रावधकार संघीय मामलों तक ही सीवमत हैं जबकक ऄमेररकी
सिोच्च न्यायालय न के िल संघीय मामलों को बवलक नौसैवनक बलों, समुरी गवतविवधयों, राजदूतों

अकद से संबंवधत मामलों को भी देख सकती है।


 ऄमेररकी सिोच्च न्यायालय के मामले में न्यावयक समीक्षा का दायरा ‘विवध की ईवचत प्रकिया’ के

कारण व्यापक है जबकक भारतीय सन्दभह में ‘विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया’ का आस्तेमाल ककया

जाता है।

2.9. न्यावयक ऄवतिमण और न्यावयक सकियता (Judicial Overreach and

judicial activism)

 हाल ही में ईच्चतम न्यायालय ने न्यावयक ऄवतिमण (जूवडवशयल ओिररीच) के वखलाफ

न्यायाधीशों को अगाह ककया और कहा कक न्यायाधीशों को कानून की सीमा के भीतर ही रहना


चावहए और व्यविगत धारणाओं और विचारधारा से न्याय को प्रभावित नहीं होने देना चावहए।

न्यावयक सकियता न्यावयक ऄवतिमण

राज्य के विवभन्न ऄंगों और न्यायपावलका के मध्य शासन के दो ऄन्य महत्िपूणह ऄंगों ऄथाहत्
शवियों की पुनव्याहख्या के माध्यम से कायहपावलका या विधावयका की शवियों को न्यावयक
न्यायपावलका द्वारा ऄपने ऄवधकारों का प्रयोग सकियता के नाम पर ऄवधग्रहण कर जब
ही न्यावयक सकियता कहलाता है। न्यायपावलका ईनका बेवहचक प्रयोग करती है तो आसे
न्यावयक ऄवतिमण कहा जाता है।

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2.10. आं टीग्रे टे ड के स मै ने ज में ट आनफामे श न वसस्टम (ICMIS)

(Integrated Case Management Information System:ICMIS)

 मामलों की वडवजटल फाआनलग के वलए ईच्चतम न्यायालय के ‘आं टीग्रेटेड के स मैनज


े मेंट आन्फॉमेशन

वसस्टम’ (ICMIS) का हाल ही में ऄनािरण ककया गया।

ICMIS के कायह:

 आस वसस्टम के माध्यम से के स की इ-फाआनलग का विकलप प्रदान ककया गया है, साथ ही के स

वलनस्टग की वतवथ, के स की वस्थवत, सूचना सममन की ऑनलाआन सुविधा, कायाहलय ररपोटह तथा
ईच्चतम न्यायालय के पंजीकरण कायाहलय में दावखल िादों के संबध
ं में समग्र रूप से हुइ प्रगवत की
ऑनलाआन जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
 यह न्यायालय से संबंवधत शुलकों और प्रकिया शुलक के भुगतान के वलए एक ऑनलाआन गेटिे तथा
एक ऑनलाआन कोटह फी कै लकु लेटर के रूप में कायह करे गा।
ICMIS के लाभ:
 यह ऄवधििाओं और पंजीकरण कायाहलय दोनों के वलए फाआनलग प्रकियाओं को सुव्यिवस्थत
करे गा।
 यह पारदर्वशता को सुवनवश्चत करे गा, के स से जुड़ीं जानकारी तक असान पहुंच प्रदान करे गा और
कम समय में यावचका दावखल करने में मदद करे गा।

2.10.1. ईच्चतम न्यायालय कॉले वजयम की कायह िाही पवललक डोमे न में

 हाल ही में ईच्चतम न्यायालय कॉलेवजयम ने ऄपनी सभी ऄनुशस


ं ाओं को पवललक डोमेन में रखने
का वनणहय वलया है। आन ऄनुशंसाओं के साथ ईन कारणों का भी ईललेख होगा वजनके अधार पर
कॉलेवजयम ने ईच्च न्यायालयों और ईच्चतम न्यायालय में वनयुवि, स्थानांतरण या प्रोन्नवत के वलए
नामों की संस्तुवत की या नामों को ऄस्िीकार करने का वनणहय वलया।

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Classroom Study Material

भारतीय संविधान एिं शासन


13. ईच्च न्यायालय एिं ऄधीनस्थ न्यायालय

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विषय सूची
1. पररचय ___________________________________________________________________________________ 3

2. ईच्च न्यायालय का संगठन [ऄनुच्छेद 216] ____________________________________________________________ 4

2.1. ऄहहताएँ [ऄनुच्छेद 217(2)] __________________________________________________________________ 4

2.2. न्यायाधीशों का कायहकाल [ऄनुच्छेद 217(1)] ______________________________________________________ 4

2.3. अयु का ऄिधारण _________________________________________________________________________ 4

3. न्यायाधीशों की श्रेवणयां_________________________________________________________________________ 4

3.1. वनयवमत न्यायाधीश________________________________________________________________________ 4

3.2. कायहकारी मुख्य न्यायाधीश [ऄनुच्छेद 223] (Acting Chief Justice) ____________________________________ 5

3.3. ऄपर और कायहकारी न्यायाधीश [ऄनुच्छेद 224] (Additional and Acting Judges) _________________________ 5

3.4. सेिावनिृत्त न्यायाधीश [ऄनुच्छेद 224A]__________________________________________________________ 5

4. न्यायाधीशों को हटाना _________________________________________________________________________ 5

4.1. न्यायाधीशों का स्थानांतरण [ऄनुच्छेद 222] _______________________________________________________ 6

5. ईच्च न्यायालय का क्षेत्रावधकार और शवियां___________________________________________________________ 6

5.1. प्रारं वभक क्षेत्रावधकार _______________________________________________________________________ 6

5.2. ररट क्षेत्रावधकार __________________________________________________________________________ 7

5.3. ऄपीलीय क्षेत्रावधकार _______________________________________________________________________ 7


5.3.1 दीिानी मामले ______________________________________________________________________________ 7
5.3.2 अपरावधक मामले ___________________________________________________________________________ 7

5.4. पयहिेक्षीय क्षेत्रावधकार [ऄनुच्छेद 227] ___________________________________________________________ 7

5.5. ऄधीनस्थ न्यायालयों पर वनयंत्रण_______________________________________________________________ 8

5.6. ऄवभलेख न्यायालय ________________________________________________________________________ 8

5.7. न्यावयक पुनर्विलोकन की शवि (ऄनुच्छेद 13 और ऄनुच्छेद 226) _________________________________________ 8

6. ऄधीनस्थ न्यायालय ___________________________________________________________________________ 8

6.1. वजला न्यायाधीशों की वनयुवि [ऄनुच्छेद 233]______________________________________________________ 9

6.2. ऄन्य न्यायाधीशों की वनयुवि [ऄनुच्छेद 234] ______________________________________________________ 9

6.3. ऄधीनस्थ न्यायालयों पर वनयंत्रण [ऄनुच्छेद 235] ___________________________________________________ 9

6.4. संरचना और ऄवधकार क्षेत्र ___________________________________________________________________ 9

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1. पररचय
 भारत के संविधान में प्रत्येक राज्य के वलए एक ईच्च न्यायालय की व्यिस्था की गइ थी, लेककन

सातिें संशोधन ऄवधवनयम, 1956 के द्वारा संसद को ऄवधकार कदया गया कक िह दो या दो से


ऄवधक राज्यों एिं ककसी संघ राज्य क्षेत्र के वलए एक साझा ईच्च न्यायालय की स्थापना कर सकती
है। संविधान के भाग VI में ऄनुच्छेद 214 से 231 तक ईच्च न्यायालयों के गठन, स्ितंत्रता,

न्यावयक क्षेत्र, शवियां, प्रकिया और आनसे संबवं धत ऄन्य मुद्दों के बारे में बताया गया है।

 ितहमान में देश में राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के वलए 24 ईच्च न्यायालय हैं। भारत में ईच्च

न्यायालय संस्था का सिहप्रथम गठन 1962 में तब हुअ, जब कलकत्ता, बम्बइ और मद्रास ईच्च

न्यायालयों की स्थापना हुइ। भारतीय ईच्च न्यायालय ऄवधवनयम, 1861 के ईपबंधों के तहत आन

तीन ईच्च न्यायालयों की स्थापना की गइ। 1866 में चौथे ईच्च न्यायालय की स्थापना आलाहाबाद

में हुइ। माचह 2013 तक, ईच्च न्यायालयों की संख्या 21 थी, तत्पश्चात 'पूिोत्तर क्षेत्र (पुनगहठन) एिं

ऄन्य संबंवधत कानून (संशोधन) ऄवधवनयम, 2012' द्वारा मवणपुर, वत्रपुरा और मेघालय में तीन
ईच्च न्यायालयों की स्थापना की गइ।
 कु छ ईच्च न्यायालयों के न्यावयक क्षेत्र का ऄन्य राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों तक विस्तार हैं:
o बंबइ ईच्च न्यायालय का न्यावयक क्षेत्र महाराष्ट्र, गोिा, दादरा एिं नगर हिेली और दमन एिं
दीि तक विस्तृत है।
o कलकत्ता ईच्च न्यायालय का न्यावयक क्षेत्र पवश्चम बंगाल और ऄंडमान एिं वनकोबार द्वीप
समूह तक विस्तृत है।
o गुिाहाटी ईच्च न्यायालय का न्यावयक क्षेत्र ऄरुणाचल प्रदेश, ऄसम, नागालैंड और वमजोरम
तक विस्तृत है।
o के रल ईच्च न्यायालय के न्यावयक क्षेत्र में के रल और लक्षद्वीप को सवम्मवलत ककया गया है।
o मद्रास ईच्च न्यायालय का न्यावयक क्षेत्र तवमलनाडु और पुदच
ु रे ी तक विस्तृत है।
o पंजाब एिं हररयाणा ईच्च न्यायालय का न्यावयक क्षेत्र पंजाब और हररयाणा राज्यों के साथ-
साथ संघ राज्य क्षेत्र चंडीगढ़ तक विस्तृत है।
o के िल कदल्ली एकमात्र ऐसा संघ राज्य क्षेत्र है, वजसका ऄपना एक ईच्च न्यायालय है।

संसद एक ईच्च न्यायालय के न्यावयक क्षेत्र का विस्तार, ककसी संघ राज्य क्षेत्र में कर सकती है ऄथिा

ककसी संघ राज्य क्षेत्र को, ईच्च न्यायालय के न्यावयक क्षेत्र से बाहर कर सकती है।

कायहपावलका और न्यायपावलका का पृथक्करण


 संविधान के ऄनु. 50 में यह वलखा है कक राज्य न्यायपावलका को कायहपावलका से पृथक् करने के वलए
कदम ईठाएगा। आस वनदेश के ऄनुसरण में संसद ने विवध बनाकर न्यावयक कृ त्य ऄनन्य रूप से
न्यायपावलका को सौंप कदए हैं।
 आस पृथक्करण से पहले कु छ राज्यों में कायहपावलका के ऄवधकारी भारतीय दंड सवहता के ऄधीन
मामले वनपटाते थे। िे जमानत के अिेदनों की सुनिाइ भी करते थे।
 दंड प्रकिया संवहता, 1973 के ऄवधवनयवमत ककए जाने के पश्चात् न्यावयक प्रणाली में कायहपावलका के
ऄवधकाररयों को कोइ काम नहीं सौपा गया है। न्यायपावलका को पूरी तौर से कायहपावलका से ऄलग
कर कदया गया है।

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2. ईच्च न्यायालय का सं ग ठन [ऄनु च्छे द 216]


 प्रत्येक ईच्च न्यायालय, एक मुख्य न्यायाधीश और ऐसे ऄन्य न्यायाधीशों से वमलकर बनेगा, जो
अिश्यकतानुसार राष्ट्रपवत द्वारा समय-समय पर वनयुि ककए जाएं।
2.1. ऄहह ताएँ [ऄनु च्छे द 217(2)]

ककसी व्यवि के पास ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में वनयुवि के वलए वनम्नवलवखत ऄहहताएँ
होनी चावहए:
 िह भारत का नागररक हो।
 ईसे भारत के राज्यक्षेत्र में न्यावयक कायह में 10 िषह का ऄनुभि हो (न्यावयक कायह का तात्पयह
न्यायाधीश के कायह से ही नहीं है, यह ऄन्य न्यावयक कायह भी हो सकता है), या
 िह ककसी ईच्च न्यायालय (न्यायालयों) में लगातार 10 िषह तक ऄवधििा रह चुका हो (यह ऄहहता
ईच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश की ऄहहता के समान है)।
आस प्रकार, संविधान में ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में वनयुवि के वलए कोइ न्यूनतम अयु
वनधाहररत नहीं की गयी है। हालांकक, संविधान में ईच्चतम न्यायालय के विपरीत एक प्रवतवित विवधिेत्ता
को ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में वनयुि करने हेतु कोइ प्रािधान नहीं है।
2.2. न्यायाधीशों का कायह काल [ऄनु च्छे द 217(1)]

संविधान में ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कायहकाल वनवश्चत नहीं ककया गया है। हालांकक,
वनम्नवलवखत प्रािधानों का ईपबंध ककया गया है:
 िह 62 िषह की अयु तक पद पर रहता है। ईसकी अयु से संबंवधत ककसी भी प्रश्न का वनणहय भारत
के मुख्य न्यायाधीश से परामशह करने के पश्चात् राष्ट्रपवत द्वारा ककया जाएगा एिं राष्ट्रपवत का
वनणहय ऄंवतम होगा।
 िह राष्ट्रपवत को त्यागपत्र दे सकता है।
 संसद की वसफाररश से राष्ट्रपवत ईसे पद से हटा सकता है।
 ईसकी वनयुवि ईच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में हो जाने पर या ककसी दूसरे ईच्च
न्यायालय में स्थानांतरण हो जाने पर पद ररि हो जाएगा।
2.3. अयु का ऄिधारण

 यकद ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अयु के बारे में कोइ प्रश्न ईठता है तो ईसका विवनश्चय भारत
के मुख्य न्यायमूर्वत से परामशह करने के पश्चात् राष्ट्रपवत द्वारा ककया जाएगा। राष्ट्रपवत का विवनश्चय
ऄंवतम होगा। (ऄनु. 217)।
 ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की अयु का ऄिधारण ऐसे प्रावधकरण द्वारा और ऐसी रीवत से
ककया जाएगा जो संसद विवध द्वारा ईपबंवधत करे (ऄनु. 124)। आसका कोइ तकह सम्मत कारण नहीं
कदखाइ देता कक क्यों ईच्च न्यायालय और ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच ऄंतर रखा
गया है।
3. न्यायाधीशों की श्रे वणयां
ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की वनम्नवलवखत श्रेवणयां होती हैं:
3.1. वनयवमत न्यायाधीश

 ककसी ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की वनयुवि राष्ट्रपवत द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश
एिं संबंवधत राज्य के राज्यपाल से परामशह करने के पश्चात् की जाती है।
 जबकक ईच्च न्यायालय के ऄन्य न्यायाधीशों की वनयुवि राष्ट्रपवत द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश
एिं संबंवधत राज्य के राज्यपाल एिं ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामशह के पश्चात् की
जाती है।

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 दो या दो से ऄवधक राज्यों के साझा ईच्च न्यायालय में वनयुवि के मामले में राष्ट्रपवत सभी संबंवधत
राज्यों के राज्यपालों से भी परामशह करता है।
 तीसरे न्यायाधीश िाद (1998) के ईपरांत ईच्चतम न्यायालय ने कहा कक ईच्च न्यायालय के
न्यायधीशों की वनयुवि के मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश को ईच्चतम न्यायालय के दो
िररितम न्यायाधीशों से परामशह करना चावहए। आस प्रकार, ऄके ले भारत के मुख्य न्यायाधीश की
राय से परामशह प्रकिया पूरी नहीं होगी।

3.2. कायह कारी मु ख्य न्यायाधीश [ऄनु च्छे द 223] (Acting Chief Justice)

राष्ट्रपवत ककसी ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश को ईस ईच्च न्यायालय का कायहकारी मुख्य न्यायाधीश
वनयुि कर सकता है, जब:
 ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद ररि हो, या
 ईच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश ऄस्थायी रूप से ऄनुपवस्थत हो, या
 यकद ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ऄपने कायह वनिहहन में ऄक्षम हो।

3.3. ऄपर और कायह कारी न्यायाधीश [ऄनु च्छे द 224] (Additional and Acting
Judges)

राष्ट्रपवत वनम्नवलवखत पररवस्थवतयों में योग्य व्यवियों को ईच्च न्यायालय के ऄपर न्यायाधीशों के रूप में
ऄस्थायी रूप से वनयुि कर सकता है, वजसकी ऄिवध दो िषह से ऄवधक नहीं होगी:
 यकद ऄस्थायी रूप से ईच्च न्यायालय का कामकाज बढ़ गया हो, या
 ईच्च न्यायालय में बकाया कायह ऄवधक है।
आसी प्रकार राष्ट्रपवत ईस वस्थवत में भी योग्य व्यवियों को ककसी ईच्च न्यायालय का कायहकारी
न्यायाधीश वनयुि कर सकता है, जब ईच्च न्यायालय का न्यायाधीश (मुख्य न्यायाधीश के ऄलािा):
 ऄनुपवस्थवत या ऄन्य कारणों से ऄपने कायों का वनष्पादन करने में ऄसमथह हो,
 ककसी न्यायाधीश को ऄस्थायी तौर पर संबवं धत ईच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश वनयुि ककया
गया हो।
एक कायहकारी न्यायाधीश तब तक कायह करता है, जब तक कक स्थायी न्यायाधीश ऄपना पदभार न
संभाले। हालांकक, ऄपर या कायहकारी न्यायाधीश 62 िषह की अयु प्राप्त करने के पश्चात् पद धारण नहीं
कर सकते हैं।

3.4. से िावनिृ त्त न्यायाधीश [ऄनु च्छे द 224A]

 ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ककसी भी समय ईस ईच्च न्यायालय ऄथिा ककसी ऄन्य ईच्च
न्यायालय के सेिावनिृत्त न्यायाधीश को ऄस्थायी ऄिवध के वलए बतौर कायहकारी न्यायाधीश काम
करने के वलए कह सकते हैं। िह ऐसा राष्ट्रपवत की पूिह संस्तुवत एिं संबंवधत व्यवि की मंजूरी के
पश्चात् ही कर सकता है। ऐसा न्यायाधीश राष्ट्रपवत द्वारा तय भत्तों का ऄवधकारी होता है।
 ईसे ईस ईच्च न्यायालय के सभी न्यावयक क्षेत्र, शवियां एिं सुविधाएं और विशेषावधकार प्राप्त होते
हैं, ककतु ईसे ऄन्यथा ईस ईच्च न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगा।

4. न्यायाधीशों को हटाना
 ऄनुच्छेद 217(1)(b) में प्रािधान है कक ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को ऄनुच्छेद 124(4) के
तहत प्रदत्त ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रकिया के समान ही हटाया जाएगा।
 आस प्रकार, ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश को भी 'सावबत कदाचार' या 'ऄसमथहता' के अधार पर
ही पद से हटाया जा सकता है।

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4.1. न्यायाधीशों का स्थानां त रण [ऄनु च्छे द 222]

 भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामशह के बाद राष्ट्रपवत ककसी न्यायाधीश का स्थानांतरण एक ईच्च
न्यायालय से दूसरे ईच्च न्यायालय में कर सकता है।
 1977 में ईच्चतम न्यायालय ने व्यिस्था दी कक ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का स्थानांतरण
के िल ऄपिादस्िरूप और लोक कल्याण को ध्यान में रखकर ही ककया जा सकता है न कक दंड के
रूप में। 1994 में ईच्चतम न्यायालय ने पुनः कहा कक न्यायाधीशों के स्थानांतरण में मनमानी रोकने
के वलए न्यावयक समीक्षा अिश्यक है।
 तीसरे न्यायाधीश िाद (1998) में ईच्चतम न्यायालय ने राय दी कक ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों
के स्थानांतरण के मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश को ईच्चतम न्यायालय के चार िररष्टतम
न्यायाधीशों तथा दो ईच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों (एक िहां के , जहाँ से न्यायाधीश का
स्थानांतरण हो रहा है; एक िहां के जहाँ िह जा रहा हो) से परामशह करना चावहए।
 स्थानांतरण के मामले में न्यायाधीश िेतन के ऄवतररि राष्ट्रपवत द्वारा वनधाहररत प्रवतपूरक भत्तों का
हकदार होता है।

5. ईच्च न्यायालय का क्षे त्रावधकार और शवियां


 ईच्च न्यायालय, नागररकों के मूल ऄवधकारों का रक्षक होने के ऄवतररि, राज्य में सिोच्च ऄपीलीय
न्यायालय भी होता है। आसके पास पयहिेक्षीय और सलाहकार की भूवमका वनभाने के ऄवतररि
संविधान की व्याख्या करने की शवि भी वनवहत है।
 हालांकक, संविधान में ईच्च न्यायालय की शवियों एिं क्षेत्रावधकार के बारे में विस्तृत ईपबंध नहीं
ककये गए हैं। आसमें के िल आतना कहा गया है कक एक ईच्च न्यायालय का क्षेत्रावधकार और शवियां
िही होंगी जो संविधान के लागू होने से तुरंत पूिह थी।
 लेककन स्ितंत्रता के पश्चात् संविधान में एक नया प्रािधान जोड़ा गया, िह है राजस्ि मामलों पर
ईच्च न्यायालय का क्षेत्रावधकार (जो संविधान पूिह काल में आसके पास नहीं था)।
ईच्च न्यायालय के पास प्रारं वभक क्षेत्रावधकार, ररट क्षेत्रावधकार, ऄपीलीय क्षेत्रावधकार, पयहिक्ष
े ीय
क्षेत्रावधकार, ऄधीनस्थ न्यायालयों पर वनयंत्रण, ऄवभलेख न्यायालय और न्यावयक समीक्षा/पुनर्विलोकन
की शवियां प्राप्त हैं।

5.1. प्रारं वभक क्षे त्रावधकार

 मूल ऄवधकारों का प्रितहन (ऄनुच्छेद 226 के तहत)


 संविधान की व्याख्या के संबंध में ऄधीनस्थ न्यायालय से स्थानांतररत मामलों में।
 ऄवधकाररता का मामला, िसीयत, वििाह, तलाक, कं पनी कानून एिं न्यायालय की ऄिमानना से
संबंवधत मामले।
 संसद सदस्यों और राज्य विधानमंडल के सदस्यों के वनिाहचन से संबंवधत वििाद।
 राजस्ि मामलें या राजस्ि संग्रह के वलए बनाये गए ककसी ऄवधवनयम या अदेश के संबंध में।
 ईच्च महल के मामलों में चार ईच्च न्यायालयों (ऄथाहत् कलकत्ता, बम्बइ, मद्रास और कदल्ली ईच्च
न्यायालय) के मूल नागररक क्षेत्रावधकार है।
1973 से पूिह कलकत्ता, बंबइ और मद्रास ईच्च न्यायालयों के पास ऄपने संबंवधत क्षेत्र के भीतर ईत्पन्न
होने िाले मामलों पर मूल क्षेत्रावधकार, दीिानी और अपरावधक दोनों, विद्यमान था। हालांकक,
अपरावधक प्रकिया संवहता (CrPC), 1973 द्वारा मूल अपरावधक न्यावयक क्षेत्र का पूरी तरह वनरसन
कर कदया गया।

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5.2. ररट क्षे त्रावधकार

 संविधान का ऄनुच्छेद 226 एक ईच्च न्यायालय को नागररकों के मूल ऄवधकारों के प्रितहन और


ककसी ऄन्य ईद्देश्य के वलए भी ररट जारी करने की ऄनुमवत देता है। ये ररट हैं- बंदी प्रत्यक्षीकरण,
परमादेश, ईत्प्रेषण, प्रवतषेध एिं ऄवधकार पृच्छा। ककसी ऄन्य ईद्देश्य के वलए पद का ऄथह है- एक
सामान्य कानूनी ऄवधकार के प्रितहन के वलए भी ररट जारी करना।
 यकद न्यायादेश देने का कारण आसके क्षेत्रावधकार राज्यक्षेत्र की सीमाओं में है तो ईच्च न्यायालय
ककसी भी व्यवि, प्रावधकरण और सरकार को ऄपने क्षेत्रावधकार के राज्यक्षेत्र की सीमाओं के भीतर
ही नहीं बवल्क आसके बाहर भी ऐसा न्यायादेश दे सकता है।
 ईच्च न्यायालय का ररट क्षेत्रावधकार, ईच्चतम न्यायालय की तुलना में ऄवधक व्यापक है। ईच्चतम
न्यायालय वसफह मूल ऄवधकारों के प्रितहन के संबंध में ररट जारी कर सकता है, िहीं ईच्च न्यायालय
आसके साथ ही ककसी भी विवधक ऄवधकार के ईल्लंघन पर भी ररट जारी कर सकता है। ईच्च
न्यायालय का ररट क्षेत्रावधकार संविधान के मूल ढांचे का ऄंग है।
5.3. ऄपीलीय क्षे त्रावधकार

5.3.1 दीिानी मामले

 ईच्च न्यायालय में दीिानी मामलों पर ऄपील, पहली ऄपील या दूसरी ऄपील होती है।
 ईच्च मूल्य (व्यापक रूप में) के मामलों में वजला न्यायाधीशों और ऄधीनस्थ न्यायाधीशों के वनणहयों
के विरुद्ध कानून एिं तथ्य के प्रश्न पर सीधे ईच्च न्यायालय में ऄपील की जा सकती है।
 जब कोइ ऄधीनस्थ न्यायालय ऄिर न्यायालय के वनणहय के विरुद्ध की गयी ऄपील पर वनणहय देता
है, तो वनचले ऄपीलीय न्यायालय के वनणहय विरुद्ध दूसरी ऄपील ईच्च न्यायालय में की जाती है,
परन्तु वसफह कानून के प्रश्नों पर, तथ्यों के प्रश्नों पर नहीं।
 कलकत्ता, बंबइ और मद्रास ईच्च न्यायालय में ऄंत:न्यायालीय ऄपील का प्रािधान है। जब ईच्च
न्यायालय का कोइ एक न्यायाधीश मामले पर वनणहय देता है तो ऄपील ईसी न्यायालय की
खंडपीठ में की जा सकती हैं।
 प्रशासवनक एिं ऄन्य ऄवधकरणों के वनणहयों के विरुद्ध ऄपील ईच्च न्यायालय की खंड पीठ के समक्ष
की जा सकती है। 1997 में ईच्चतम न्यायालय ने व्यिस्था की कक ये ऄवधकरण ईच्च न्यायालय के
ररट क्षेत्रावधकार के विषयाधीन हैं। पररणामस्िरूप, ऄवधकरण के फै सले के विरुद्ध कोइ पीवड़त
व्यवि वबना पहले ईच्च न्यायालय में गए सीधे ईच्चतम न्यायालय में नहीं जा सकता।
5.3.2 अपरावधक मामले

 सत्र न्यायाधीश या ऄवतररि सत्र न्यायाधीश के वनणहयों के विरुद्ध ईच्च न्यायालयों में तब ऄपील
की जा सकती हैं जब ककसी को सात िषह या आससे ऄवधक के वलए कारािास की सजा हुइ हो।
ऄधीनस्थ न्यायालयों द्वारा दी गयी सजा-ए-मौत (मृत्युदड
ं ) पर कायहिाही से पहले ईच्च न्यायालय
द्वारा आसकी पुवष्ट की जानी चावहए।
 कु छ विवशष्ट मामलों में सहायक सत्र न्यायाधीश, महानगर दंडावधकारी या ऄन्य दंडावधकारी के
वनणहयों के विरुद्ध ईच्च न्यायालय में ऄपील की जा सकती है।

5.4. पयह िे क्षीय क्षे त्रावधकार [ऄनु च्छे द 227]

ईच्च न्यायालय को आस बात का ऄवधकार है कक सैन्य न्यायालयों के ऄवतररि िह ऄपने ऄवधकार क्षेत्र के
सभी न्यायालयों एिं ऄवधकरणों के कियाकलापों पर नजर रखे। आस प्रकार िह:
 मामलों को ऐसे न्यायालयों से स्ियं के पास मंगिा सकता है।
 सामान्य वनयम तैयार और जारी कर सकता है, और ईनके प्रयोग तथा कायहिाही को वनयवमत
करने के वलए प्रपत्र वनधाहररत कर सकता है।

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 आन न्यायालयों के ऄवधकाररयों द्वारा रखे जाने िाले लेखा, सूची अकद के वलए प्रपत्र वनधाहररत कर
सकता है।
 शेररफ, क्लकह , ऄवधकारी एिं िकीलों के शुल्क अकद वनवश्चत करता है।
आस शवि ने राज्य के सम्पूणह न्याय प्रशासन के वलए ईच्च न्यायालय को वजम्मेदार बना कदया है।
यह प्रकृ वत में न्यावयक एिं प्रशासवनक दोनों है। संविधान में ऄधीनस्थ न्यायालयों के ऄधीक्षण की
आसकी शवि पर कोइ वनबहन्धन नहीं है तथा आस शवि का स्ित: प्रयोग ककया जा सकता है। यह
ध्यान देने योग्य है कक ईच्चतम न्यायालय के पास ईच्च न्यायालय की आस शवि के समान कोइ शवि
नहीं है।
5.5. ऄधीनस्थ न्यायालयों पर वनयं त्र ण

 ईच्च न्यायालय, वजला न्यायालय और ईनके ऄधीनस्थ न्यायालयों पर वनयंत्रण रखता है।
 वजला न्यायाधीशों की वनयुवि, तैनाती और पदोन्नवत एिं व्यवि की राज्य न्यावयक सेिा (वजला
न्यायाधीशों से ऄलग) में वनयुवि के मामलों में राज्यपाल, ईच्च न्यायालय से परामशह लेता है।
 यह राज्य न्यावयक सेिा (वजला न्यायाधीशों के ऄलािा ऄन्य) के सदस्यों की तैनाती, स्थानांतरण,
ऄनुशासन, ऄिकाश स्िीकृ वत, पदोन्नवत अकद से संबंवधत मामलों को देखता है।
 यह ऄधीनस्थ न्यायालय में लंवबत ककसी मामलें को ऄपने पास मंगिा सकता है, यकद ईसमें
महत्िपूणह कानूनी प्रश्न शावमल हो और संविधान की व्याख्या की अिश्यकता हो। यह या तो आस
मामले को वनपटा सकता है या ऄपने वनणहय के साथ मामले को संबंवधत न्यायालय को लौटा
सकता है।
 आसके कानून (वनणहय) को ईन सभी ऄधीनस्थ न्यायालयों को मानने की बाध्यता होती है, जो ईसके
न्यावयक क्षेत्र में अते है।

ऄधीनस्थ न्यायालय
वजला न्यायाधीश के न्यायालय को और सोपान िम में ईससे वनचले न्यायालयों को ऄधीनस्थ न्यायालय
कहा जाता है। दूसरे शब्दों में ईच्चतम न्यायालय और ईच्च न्यायालय को छोड़कर सभी न्यायालय
ऄधीनस्थ न्यायालय हैं।

5.6. ऄवभले ख न्यायालय

ऄवभलेख न्यायालय के रूप में ईच्च न्यायालय की शवियां, ईच्चतम न्यायालय की संबंवधत शवियों के
समान ही हैं। कृ पया आसे ईच्चतम न्यायालय िाले ऄध्याय में देखें।
5.7. न्यावयक पु न र्विलोकन की शवि (ऄनु च्छे द 13 और ऄनु च्छे द 226)

ईच्च न्यायालय कें द्र एिं राज्यों के ककसी भी ऄवधवनयम या कायहकारी अदेश को शून्य और ऄमान्य
घोवषत कर सकता है, ऄगर िह संविधान का ईल्लंघन करता हो। विधायी कानून और कायहकारी अदेश
की संिैधावनक िैधता को वनम्नवलवखत अधारों पर एक ईच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, यकद
यह:
 मूल ऄवधकारों का हनन करता हो (भाग तीन)
 वजस प्रावधकरण द्वारा तैयार ककया गया है, ईसके कायह क्षेत्र से बाहर हो, तथा
 संिैधावनक ईपबंधों के विरुद्ध हो।
6. ऄधीनस्थ न्यायालय
संविधान के भाग VI में ऄनुच्छेद 233 से 237 तक ऄधीनस्थ न्यायालयों के संगठन एिं कायहपावलका से
आनकी स्ितंत्रता सुवनवश्चत करने िाले वनम्नवलवखत ईपबंधों का िणहन ककया गया है:

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6.1. वजला न्यायाधीशों की वनयु वि [ऄनु च्छे द 233]

वजला न्यायाधीशों की वनयुवि, पदस्थापना और पदोन्नवत राज्यपाल द्वारा राज्य के ईच्च न्यायालय के
परामशह से की जाती है। वजला न्यायाधीश के पद पर वनयुवि के वलए एक व्यवि में वनम्नवलवखत
योग्यताओं का होना अिश्यक हैं:
 ईसे कें द्र या राज्य सरकार की सेिा में कायहरत नहीं होना चावहए।
 ईसे कम-से-कम सात िषह तक ऄवधििा या प्लीडर के रूप में कायह करने का ऄनुभि होना चावहए।
 ईसकी वनयुवि के वलए ईच्च न्यायालय द्वारा वसफाररश की गयी हो।
'वजला न्यायाधीश' पद के ऄंतगहत नगर दीिानी न्यायाधीश, ऄपर वजला न्यायाधीश, संयुि वजला
न्यायाधीश, सहायक वजला न्यायाधीश, लघु न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, मुख्य प्रेवसडेंसी मवजस्रेट,
ऄवतररि मुख्य प्रेवसडेंसी मवजस्रेट, सत्र न्यायाधीश, ऄवतररि सत्र न्यायाधीश और सहायक सत्र
न्यायाधीश शावमल हैं।
6.2. ऄन्य न्यायाधीशों की वनयु वि [ऄनु च्छे द 234]

राज्यपाल, वजला न्यायाधीश के ऄवतररि राज्य की न्यावयक सेिा के ऄन्य पदों पर भी राज्य लोक सेिा
अयोग और ईच्च न्यायालय के परामशह के बाद व्यवियों की वनयुवि कर सकता है।
6.3. ऄधीनस्थ न्यायालयों पर वनयं त्र ण [ऄनु च्छे द 235]

वजला न्यायालयों और ऄन्य ऄधीनस्थ न्यायालयों में न्यावयक सेिा से संबद्ध व्यवि की पदस्थापना,
पदोन्नवत, ऄिकाश और ऄन्य मामलों पर वनयंत्रण का ऄवधकार राज्य के ईच्च न्यायालय के पास होता
है।
6.4. सं र चना और ऄवधकार क्षे त्र

ऄधीनस्थ न्यायालयों की संरचना को नीचे प्रस्तुत रे खा-वचत्र द्वारा विस्तार से बताया गया है।

 ऄधीनस्थ न्यायपावलका की संगठनात्मक संरचना सभी राज्यों में वभन्न हैं तथा मोटे तौर पर वचत्र
में दशाहये ऄनुसार िगीकृ त हैं। ये सबसे वनचले स्तर पर, न्याय की दो शाखाओं दीिानी और
फौजदारी में विभि हैं। दीिानी और फौजदारी मामलों में विवभन्न क्षेत्रीय नामों जैसे- न्याय
पंचायत, पंचायत ऄदालत, ग्राम कचहरी अकद के तहत पंचायत न्यायालय कायहरत हैं।
 मुंवसफ न्यायाधीश के न्यायालय ऄगले स्तर के दीिानी न्यायालय होते हैं, वजनके क्षेत्रावधकार ईच्च
न्यायालयों द्वारा वनधाहररत ककये जाते हैं। मुंवसफ न्यायाधीश के उपर ऄधीनस्थ न्यायाधीश होते हैं
वजनमें ऄसीवमत धन-संबंधी क्षेत्रावधकार वनवहत होते हैं। मुंवसफ न्यायाधीश के वनणहय के विरुद्ध
पहली ऄपील आन्ही न्यायालयों में की जाती हैं।
 वजला स्तर पर, वजला एिं सत्र न्यायाधीश वजले का सिोच्च न्यावयक ऄवधकारी होता है वजसे
दीिानी एिं फौज़दारी मामलों में मूल और ऄपीलीय क्षेत्रावधकार प्राप्त है।

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 वजला न्यायाधीश, मुंवसफ न्यायाधीशों (यकद ऄधीनस्थ न्यायाधीशों द्वारा कायहिाही नही की जाती

है) के साथ ही ऄधीनस्थ न्यायाधीशों के वनणहयों के विरुद्ध प्रथम सुनिाइ करते हैं तथा दीिानी एिं
फौज़दारी मुकदमों दोनों पर ऄसीवमत क्षेत्रावधकार के ऄवधकारी होते हैं।
 वजला न्यायाधीशों में ऄधीनस्थ न्यायाधीशों से संबंवधत पयहिेक्षी शवियां भी वनवहत होती हैं। जब
िह दीिानी मामलों की सुनिाइ करता है तो ईसे वजला न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है तथा
फौज़दारी मामलों की सुनिाइ करने पर सत्र न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है।
 आसके अदेश के विरुद्ध ऄपील ईच्च न्यायालय में की जाती है। सत्र न्यायाधीश को ककसी ऄपराधी
को अजीिन कारािास और मृत्युदड
ं सवहत कोइ भी सजा देने का ऄवधकार होता है। हालांकक,

ईसके द्वारा कदए गए मृत्युदड


ं पर तभी ऄमल ककया जाता है, जब राज्य का ईच्च न्यायालय ईसका

ऄनुमोदन कर दे।
 कम महत्ि िाले मुकदमों की सुनिाइ प्रांतीय लघु न्यायालयों (Provincial Small causes

courts) द्वारा की जाती है। दण्ड प्रकिया संवहता (CrPC, 1973) के लागू होने के बाद से,

फौज़दारी मामलों की सुनिाइ न्यावयक मवजस्रेट द्वारा ही की जाती है।


 कायहकारी मवजस्रेट के विपरीत, जो राज्य सरकार के वनयंत्रण के ऄधीन कानून और व्यिस्था

बनाए रखने का कायह करता है, न्यावयक और मेरोपोवलटन मवजस्रेट ईच्च न्यायालयों के प्रशासवनक

वनयंत्रण में न्यावयक कायों का वनिहहन करते हैं।

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भारतीय संविधान एिं शासन


14. संघीय प्रणाली

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विषय सूची
1. संघिाद की ऄिधारणा (Concept of Federalism) ___________________________________________________ 3
1.1. भारत में संघिाद (Federalism in India) _______________________________________________________ 3
2. भारत में संघीय प्रणाली तथा कें द्र राज्य संबध
ं _________________________________________________________ 4
2.1. विधायी संबंध (ऄनुच्छेद 245-255) ____________________________________________________________ 4
2.2. प्रशासवनक संबंध (ऄनुच्छेद 256-263) __________________________________________________________ 7
2.2.1. संघ द्वारा राज्य सरकारों को वनदेश __________________________________________________________ 7
2.2.2. संघ के ऄधीन अन िाले ककसी विषय का राज्य को प्रत्यायोजन ______________________________________ 7
2.2.3. संघ को कृ त्य सौंपने की राज्यों की शवि ______________________________________________________ 8
2.2.4. ऄवखल भारतीय सेिाएं __________________________________________________________________ 8
2.2.5. दो या ऄवधक राज्यों के वलए संयुि लोक सेिा अयोग का गठन ______________________________________ 8
2.2.6. ऄंतरााज्यीय पररषद् (Inter State Council) __________________________________________________ 8
2.2.6.1. कें द्र और राज्यों के मध्य सहयोग सुवनवित करने में भूवमका______________________________________ 9
2.2.6.2. पररषद् के कामकाज से संबंवधत मुद्दे ______________________________________________________ 9
2.2.6.3. पररषद् को और मजबूत बनाने की अिश्यकता ______________________________________________ 9
2.2.6.4. पररषद् के संबंध में पुछ
ं ी अयोग की वनम्नवलवखत वसफाररशें भी विचारणीय है________________________ 10
2.2.6.5. ईभरते मुद्दे ______________________________________________________________________ 10
2.2.7. ऄंतरााज्यीय नदी जल वििाद _____________________________________________________________ 10
2.2.7.1. ऄंतरााज्यीय नदी जल वििाद: ऄद्यवतत तथ्य _______________________________________________ 10
2.2.7.2. ऄंतरााज्यीय नदी वििाद (संशोधन) विधेयक, 2017 _________________________________________ 11
2.2.8. ऄन्य प्रािधान _______________________________________________________________________ 12
2.3 वित्तीय संबंध (ऄनुच्छेद 268-293)_____________________________________________________________ 12
2.4 के न्द्र-राज्य संबंधों में की प्रिृवत्तयााँ ______________________________________________________________ 14
2.4.1. स्ितंत्रता के बाद भारतीय संघिाद का विकास _________________________________________________ 14
2.4.2. प्रथम प्रशासवनक सुधार अयोग ___________________________________________________________ 14
2.4.3. सरकाररया अयोग ____________________________________________________________________ 15
2.4.4. एम. एम. पुंछी अयोग _________________________________________________________________ 16
2.5. विविध मुद्दे _____________________________________________________________________________ 29
2.5.1. कु छ राज्यों को विशेष श्रेणी का दजाा ________________________________________________________ 29
2.5.2. नीवत अयोग (Niti Ayog) ______________________________________________________________ 31
2.5.3. के न्द्र प्रायोवजत योजनाएं ________________________________________________________________ 32
2.5.3.1 के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं को तार्ककक बनाना _______________________________________________ 32
2.5.4. संघिाद ि विदेश नीवत _________________________________________________________________ 33
2.5.5. संघ शावसत प्रदेश से संबवं धत मामले ________________________________________________________ 34
2.6 कें द्र-राज्य संबंध के कु छ निीन पहलू _____________________________________________________________ 37
2.7. के न्द्र-राज्य संबंध को मजबूत बनाने हेतु निीन योजना ________________________________________________ 39
2.7.1. एक भारत श्रेष्ठ भारत पहल ______________________________________________________________ 39

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1. सं घ िाद की ऄिधारणा (Concept of Federalism)


 ककसी राष्ट्र में कें द्रीय शवि तथा आसके विवभन्न घटक आकाइयों के मध्य शवियों का विभाजन
सामान्यतः वनम्नवलवखत तीन विवधयों से होता है:
o संघीय (Federal),

o एकात्मक (unitary) तथा

o ऄवधसंघ (confederation)।
 संघीय प्रणाली शासन की एक ऐसी प्रणाली है वजसके ऄंतगात एक ही भू-भाग के शासन को वद्व-
स्तरीय सरकार (ऄथिा द्वैध सरकार) द्वारा वनयंवत्रत ककया जाता है। आस व्यिस्था में राष्ट्रीय
(कें द्रीय/संघीय) सरकार संपूणा देश से संबंवधत मुद्दों तथा समस्याओं पर विवध-वनमााण तथा शासन
करती है, जबकक प्रांतीय या स्थानीय स्तर की सरकारें स्थानीय मुद्दों पर ध्यान कें कद्रत करती हैं।

आस प्रकार दो सरकारों के बीच शवि विभाजन के दोहरे ईद्देश्य हैं:


o सरकार के एक स्तर पर शवियों के ऄत्यवधक संकेंद्रण को रोकना तथा
o संघ (यूवनयन) के माध्यम से राष्ट्र की शवि में िृवि करना।
संघ के लक्षण:
संघीय संविधान में साधारणतया वनम्नवलवखत लक्षण होते हैं:
 वद्व-स्तरीय सरकार (ऄथिा द्वैध सरकार): आसके ऄंतगात प्रत्येक स्तर पर सरकार की ऄपनी स्ियं
की प्रशासवनक तथा विधायी क्षमता होती है। ये दोनों सरकारें ऄपनी शवियां एक ही स्रोत
(संविधान) से प्राप्त करती हैं।
 स्ितंत्र कर अधार: प्रत्येक स्तर पर सरकार के पास एक स्ितंत्र कर अधार होता है।
 वलवखत संविधान: एक वलवखत संविधान द्वारा सरकारों के मध्य शवियों का विभाजन होता है।
 स्ितंत्र न्यायपावलका: के न्द्र ि राज्य सरकारों के मध्य ईठने िाले वििादों का समाधान करने के
वलए एक स्ितंत्र न्यायपावलका होती है।
 संविधान की सिोच्चता: ऐसी व्यिस्था में दोनों सरकारों के वलए संविधान का पालन एिं ईसका
सम्मान करना ऄवनिाया होता है।

1.1. भारत में सं घ िाद (Federalism in India)

 यद्यवप भारत एक संघीय राज्य है, परन्तु आसका संघीय स्िरूप सदैि चचाा का विषय रहा है। कु छ

विद्वानों ने आसे ‘संघीय कल्प’ (संघ जैसा या ऄिा संघ) की संज्ञा दी है, जबकक कु छ आसे
एकात्मक/ऐककक या ऄवधसंघ मानते हैं।
 आसके ऄवतररि, यद्यवप भारत में एक संघीय स्िरूप िाली सरकार है, परं तु भारतीय संविधान में
संघ या महासंघ जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं ककया गया है (ऄथाात् संविधान स्पष्ट रूप से भारत को
एक संघ के रूप में घोवषत नहीं करता है)। संविधान के ऄनुच्छेद 1 में कहा गया है कक “भारत,

ऄथाात् आं वडया, राज्यों का संघ होगा” (India, that is Bharat, shall be a Union of

States.)।
 आसका स्पष्टीकरण डा. भीमराि ऄम्बेडकर द्वारा संविधान सभा में कदये गये ििव्य से प्राप्त ककया
जा सकता है। “यूवनयन शब्द का प्रयोग जानबूझ कर ककया गया है, मैं बता सकता हाँ कक प्रारूप
सवमवत ने आसका प्रयोग क्यों ककया है। प्रारूप सवमवत यह स्पष्ट करना चाहती थी कक भारत एक
ऐसा संघ बने जो राज्यों द्वारा ककये गये ककसी समझौते का पररणाम न हो, जो संघ समझौते का
पररणाम नहीं होते ईनमें राज्यों को संघ से ऄलग होने का ऄवधकार नहीं होता।”

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 आस प्रकार भारत की वस्थवत संयुि राज्य ऄमेररका के संघीय प्रणाली से वभन्न है। संयुि राज्य
ऄमेररका की संघीय प्रणाली राज्यों के बीच हुए समझौते का पररणाम है। जबकक भारतीय संघीय
व्यिस्था ककसी संवध या करार का पररणाम नहीं है। हमारा संविधान भारत के लोगों द्वारा बनाया
गया है, राज्यों द्वारा नहीं। िस्तुत: संविधान वनमााण के समय संविधान वनमााताओं के समक्ष सबसे
ज्िलंत मुद्दा भारत की ‘एकता ि ऄखण्डता’ को सुरवक्षत रखना था। आसका पररणाम यह हुअ कक
भारतीय संविधान में कु छ प्रािधान एकात्मक/ऐककक राज्य के हैं, जबकक ऄवधकतर प्रािधान
संघीय (union) व्यिस्था के सूचक हैं।
 भारतीय संविधान में एकात्मक/ऐककक लक्षण के ईदहारण:
o ऄिवशष्ट शवियां संघ सरकार में वनवहत हैं।
o राज्यों का सृजन या विनाश/विघटन राज्यों की सहमवत के वबना हो सकता है।
o संयुि राज्य ऄमेररका के विपरीत एकल नागररकता की ऄिधारणा।
o ऄवखल भारतीय सेिाओं के ऄवधकारी राज्यों में महत्िपूणा पदों पर वनयुि होते हैं।
o राज्यों में राज्यपाल की भूवमका महत्िपूणा होती है, वजसकी वनयुवि के न्द्र सरकार द्वारा होती
है।
o लेखा परीक्षण का काया वनयंत्रक एिं महालेखा परीक्षक द्वारा होता है, वजसकी वनयुवि के न्द्र
सरकार करती है।
o ईच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की वनयुवि राष्ट्रपवत द्वारा की जाती है।
 हमारे संविधान के वनमााता एक शविशाली संघीय सरकार तथा राज्यों की स्िायत्तता संबंधी
विशेषताओं का पयााप्त वमश्रण चाहते थे। देश की एकता ि ऄखण्डता को बनाए रखने के वलए
भारतीय संविधान में संघिाद की ओर झुकाि है। एस. अर. बोम्मइ बनाम भारत संघ िाद में
सिोच्च न्यायालय ने वनणाय कदया कक धमावनपरे क्षता की तरह संघिाद भी संविधान के मूल ढांचे का
ऄंग है।
2. भारत में सं घीय प्रणाली तथा कें द्र राज्य सं बं ध
 प्रकृ वत में संघीय होने के कारण हमारे संविधान में के न्द्र ि राज्यों के मध्य विधायी, कायाकारी तथा
वित्तीय शवियों का विभाजन ककया गया है। परन्तु, न्यावयक शवियों के प्रयोग के मामले में हमारे
यहााँ एक एकीकृ त न्यावयक प्रणाली को ऄपनाया गया है, जो के न्द्र तथा राज्य दोनों के कानूनों को
प्रिर्ततत करती है। ईल्लेखनीय है कक संयुि राज्य ऄमेररका जैसे दूसरे संघ में न्यावयक शवियों का
भी बंटिारा ककया गया है।
 हमारे देश में ‘एक शविशाली के न्द्र के साथ संघ प्रणाली’ को ऄपनाया गया है, वजसमें के न्द्र के द्वारा
ऄवधक शवियों का प्रयोग ककया जाता है। यह कें द्र सरकार को कु छ विशेष पररवस्थवतयों में राज्यों
के विधायी, प्रशासवनक तथा वित्तीय मामलों पर वनयंत्रण प्रदान करने िाले प्रािधानों से भी स्पष्ट
होता है।
2.1. विधायी सं बं ध (ऄनु च्छे द 245-255)
 भारतीय संविधान के विवभन्न ईपबंधों से यह स्पष्ट होता है कक विधायी काया या विवध-वनमााण की
शवि के िल एकल स्तरीय सरकार में वनवहत नहीं है। ये शवियां के न्द्र ि राज्य के मध्य तीन
सूवचयों- संघ सूची, राज्य सूची एिं समिती सूची के माध्यम से विभावजत की गइ हैं। आन सूवचयों
का ईल्लेख संविधान की सातिीं ऄनुसूची में ककया गया है।
o संघ सूची में राष्ट्रीय महत्ि के विषय शावमल हैं (नीचे सारणी देखें)। संसद को आनसे संबंवधत
कायाकारी तथा विधायी ऄवधकार प्राप्त हैं। ितामान में आस सूची में कु ल 100 विषय हैं (मूल
रूप से 97 विषय)।
o राज्य सूची में राज्यों के प्रशासन से संबंवधत महत्िपूणा विषय सवम्मवलत हैं। आनसे संबंवधत
विधायी तथा कायाकारी ऄवधकार राज्यों को प्राप्त है। ितामान में आस सूची में 61 विषय हैं
(मूल रूप से 66 विषय)।

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o समिती सूची में के न्द्र एिं राज्य दोनों के वलए समान महत्ि िाले विषय सवम्मवलत हैं। आस
पर संसद तथा राज्य विधावयका दोनों कानून बना सकती हैं। वििाद की वस्थवत में कें द्रीय
कानून प्रभािी होगा। ितामान में आस सूची में 52 विषय हैं (मूल रूप् से 47 विषय)।
स्तर विषय क्षेत्र प्रािधान
के न्द्र रक्षा, परमाणु, उजाा, विदेश मामले, नागररकता, पररिहन, ऄनुच्छेद 246 +
अधारभूत संरचना, डाक सेिा, बैंककग, प्राकृ वतक संसाधन सातिीं ऄनुसच
ू ी
अकद। (सूची-I)

राज्य लोक व्यिस्था/पुवलस, जन स्िास्थ्य, कृ वष, जल, भूवम, ऄनुच्छेद 246 +


राज्य लोक सेिाएं अकद। सातिीं ऄनुसच
ू ी
(सूची-II)
के न्द्र+राज्य अपरावधक विवध, अर्तथक/सामावजक/पररिार वनयोजन, ऄनुच्छेद 246 +
(समिती सूची) वििाह कानून अकद। सातिीं ऄनुसच
ू ी
(सूची-III)

 ऄिवशष्ट शवियां/ऄिवशष्ट विधायी शवियां: संसद को ककसी ऐसे विषय के संबंध में जो, समिती
सूची या राज्य सूची में प्रगवणत नहीं है, विधान वनमााण की ऄनन्य शवि है (ऄनु. 248)। ऄमेररकी
संविधान के विपरीत तथा कनाडा के संविधान के समान ऄिवशष्ट विधायी शवियां कें द्र सरकार में
वनवहत हैं।
 ‘तीन सूची’ िाले आस प्रािधान को भारत शासन ऄवधवनयम, 1935 से ग्रहण ककया गया है।
 यकद समिती सूची के ककसी विषय को लेकर के न्द्र तथा राज्य के कानूनों में कोइ मतभेद ईत्पन्न
होता है तो कें द्रीय कानून राज्य कानून पर प्रभािी होगा।
राज्यों के विधान के क्षेत्र में कें द्र का प्रिेश
कें द्र सरकार कु छ विशेष पररवस्थवतयों में राज्य सूची के ककसी भी विषय पर विवध बना सकती है। ये
पररवस्थवतयााँ वनम्नवलवखत हैं:
 जहां राज्य सभा दो वतहाइ बहुमत से संकल्प पाररत करके संसद को ककसी विषय पर विवध बनाने
का प्रावधकार दे। ऐसा संकल्प एक िषा से ऄनवधक ऄिवध के वलए प्रिृत्त रहता है, ककतु ईसे अगे
एक िषा के वलए बढ़ाया जा सकता है। समय का यह विस्तार चाहे वजतनी बार ककया जा सकता है।
ऐसे संकल्प के अधार पर संसद द्वारा बनाइ गइ विवध संकल्प के प्रिृत्त न रहने के पिात् छह मास
की ऄिवध तक प्रभािी रहती है (ऄनु. 249)।
 जहां ऄनु. 352 के ऄधीन अपात की ईद्घोषणा की गइ है, िहां संसद को ईद्घोषणा के अधार पर
राज्य सूची में ककसी प्रविवष्ट की बाबत विवध बनाने की शवि वमल जाती है (ऄनु. 250)।
 जहां दो या ऄवधक राज्यों के विधानमंडल, संकल्प द्वारा, संसद् से राज्य-सूची में सवम्मवलत ककसी
विषय के संबंध में विवध पाररत करने का अग्रह करते हैं। ऐसी विवध प्रारं भ में ईन्हीं राज्यों पर
लागू होती है वजन्होंने अग्रह ककया था। ऄन्य राज्य ईसे ऄंगीकार कर सकते हैं (ऄनु. 252)।
ऄनुच्छेद 252 के ऄधीन पाररत ऄवधवनयमों के कु छ ईदाहरण हैं; पुरस्कार प्रवतयोवगता ऄवधवनयम
1955; नगर भूवम (ऄवधकतम सीमा और विवनयमन) ऄवधवनयम, 1976, िन्य जीि (संरक्षण)
ऄवधवनयम, 1972 और मानि ऄंग प्रवतरोपण ऄवधवनयम, 1994।
 संसद ऄंतरराष्ट्रीय संवधयों को प्रभावित करने के वलए विवध ऄवधवनयवमत कर सकती है, चाहे
ईनसे संबंवधत विषय राज्य-सूची में अते हों (ऄनु. 253)।

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 जब ककसी राज्य में ऄनु. 356 के ऄधीन राष्ट्रपवत शासन ऄवधरोवपत ककया जाता है तो संसद को
राज्य की विधायी शवियों का प्रयोग करने की शवि वमल जाती है। संसद या राष्ट्रपवत द्वारा (जहां
संसद ने राष्ट्रपवत को प्रावधकार प्रदान कर कदया हो) बनाइ गइ विवध तब तक प्रिृत्त रहती है जब
तक कक राज्य विधान मंडल द्वारा िह पररिर्ततत या वनरवसत न कर दी जाए (ऄनु. 257)।
कु छ ऄन्य प्रािधान जो राज्य विधान मंडल पर कें द्रीय वनयंत्रण संबध
ं ी ईपबंध करते हैं:
 संविधान, राज्यपाल को राज्य विधान-मंडल द्वारा पाररत कु छ वनवित प्रकार की विधेयकों को
राष्ट्रपवत के विचाराथा अरवक्षत करने हेतु प्रावधकृ त करता है (ऄनु.200)। यह प्रािधान राज्य
सरकारों के मध्य ऄसंतोष का एक कारण है, क्योंकक के न्द्र सरकार ऐसे विधेयकों पर वनणाय लेने में
कइ बार ऄत्यवधक समय लगाती है तथा स्पष्ट कारण बताए वबना आन्हें रोक कर रखती है।
 राज्य सूची से संबंवधत ऐसा विधेयक वजसे राज्य विधान मंडल में प्रस्तुवत के वलए राष्ट्रपवत की
पूिाानुमवत अिश्यक है (ऄनु. 304)। जैस-े व्यापार तथा िावणज्य की स्ितंत्रता पर प्रवतबंध लगाने
िाले विधेयक।
 वित्तीय अपात के दौरान राष्ट्रपवत, राज्यों के वित्त विधेयक तथा धन विधेयक को अरवक्षत करने
का वनदेश दे सकता है (ऄनु. 360)।
 आसके ऄवतररि ऄनुच्छेद 169 संसद को राज्य विधानपररषद् का ईत्सादन करने में सशि बनाता
है।
 समिती सूची कें द्र ि राज्य दोनों को समान विषय पर विवध बनाने का ऄवधकार प्रदान करती है।
हालांकक दोनों में वििाद या ऄसंगतता की वस्थवत में ऄनु. 254 में वनवहत ऄसंगवत के वनयम
(Rule of repugnancy) के ऄनुसार कें द्र की सिोच्चता के वसिांत का प्रयोग ककया जाएगा। आस
वनयम के तहत यकद समिती सूची के विषय पर राज्य सरकारों तथा के न्द्र सरकार के मध्य कोइ
विसंगवत हो तो कें द्रीय विवध, राज्य विवधयों पर प्रभािी होगी तथा राज्य विधान मंडल द्वारा
बनायी गयी विवध विरोध की मात्रा तक शून्य होगी।
o परं तु आसका एक ऄपिाद है, यकद राज्य विधान-मंडल द्वारा बनायी गयी विवध को राष्ट्रपवत के
विचाराथा अरवक्षत ककया गया है तथा राष्ट्रपवत ईस विवध को ऄनुमवत दे देता है, तो ईस राज्य में,
राज्य विधान मंडल द्वारा बनायी गयी विवध प्रभािी होगी। परन्तु, संसद आस विषय पर भी एक
विवध बनाकर राज्य विधान मंडल की विवध को वनरस्त करने में सक्षम है।
संविधान में समिती सूची को शावमल करने की अिश्यकता क्यों पड़ी?
 आसमें कोइ संदह े नहीं कक राष्ट्रीय वहत के वलए एकीकृ त विवध की अिश्यकता होती है। ऄतः आस
कारण से भी समिती सूची के विषयों पर संसद को विवध बनाने का ऄवधकार कदया गया है। परं तु
ितामान में प्रत्येक राज्य में ऄलग-ऄलग मुद्दे/समस्याएं हैं वजनके समाधान के वलए ऄलग-ऄलग
दृवष्टकोण अिश्यक है। ऐसी वस्थवत में राज्य विधान मंडल द्वारा बनायी गयी विवधयां कइ बार
ऄवधक महत्िपूणा होती हैं।
 आसके ऄवतररि के न्द्र सरकार आन्हें वनदेश दे सकती है। ऄतः सुशासन सुवनवित करने हेतु संविधान
में एक समिती सूची की अिश्यकता महसूस की गइ। समिती सूची के संबंध में सरकाररया अयोग
ने महत्िपूणा वसफाररशें प्रस्तुत की है, वजनपर अगे चचाा की गइ है।
 संविधान में विधायी शवियों की भौगोवलक सीमाओं को भी संघीय पररकल्पना के ऄनुसार
पररभावषत ककया गया है। संसद संपूणा भारत या ईसके ककसी एक क्षेत्र के वलए विवध बना सकती
है। पुनः संसद को ऄवतररि क्षेत्रीय विधायी शवियां प्राप्त हैं वजसका ऄथा है कक संसदीय विवध ईन
भारतीय नागररकों तथा ईनकी संपवत्तयों पर भी लागू होती है, जो विश्व के ककसी भी भाग में रह
रहे हैं।

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 जबकक राज्य के िल ऄपने भौगोवलक सीमाओं के वलए विवध बना सकते हैं तथा ककसी राज्य द्वारा
वनर्तमत विवधयां राज्य की सीमाओं के बाहर लागू नहीं होती हैं। हालांकक आसके कु छ ऄपिाद
विद्यमान हैं।
 राज्यपाल को ककसी संसदीय विवध को राज्य के ऄनुसूवचत क्षेत्रों में लागू करने से रोकने का वनदेश
देने या ईस विवध में वनर्कदष्ट संशोधन को ऄपिाद के साथ लागू करने हेतु सशि ककया गया है।
2.2. प्रशासवनक सं बं ध (ऄनु च्छे द 256-263)

भारतीय संविधान वनमााताओं ने के न्द्र-राज्य प्रशासवनक संबंधों के संदभा में संविधान में विस्तृत ईपबंध
ककए हैं, ताकक के न्द्र-राज्य संबंधों में वििादों को न्यूनतम ककया जा सके । आनका वििरण वनम्नवलवखत है:

2.2.1. सं घ द्वारा राज्य सरकारों को वनदे श

 ऄनुच्छेद 256 के ऄनुसार प्रत्येक राज्य की कायापावलका शवि का आस प्रकार प्रयोग ककया जाएगा
वजससे संसद द्वारा बनाइ गइ विवधयों का और ऐसी विद्यमान विवधयों का, जो ईस राज्य में लागू
हैं, ऄनुपालन सुवनवित रहे और संघ की कायापावलका शवि का विस्तार ककसी राज्य को ऐसे
वनदेश देने तक होगा जो भारत सरकार को ईस प्रयोजन के वलए अिश्यक प्रतीत हों।
 डा. भीमराि ऄम्बेडकर ने ऄनुच्छेद 256 के प्रयोजन को दो महत्िपूणा कथनों के माध्यम से
व्याख्या की है: “पहला, िह सत्ता जो कायाकारी विवधयों (समिती क्षेत्र से संबंवधत) को लागू करती
है, भले ही िह कें द्रीय विधान मण्डल द्वारा पाररत की गइ हो ऄथिा राज्य विधान मण्डल द्वारा
पाररत की गइ हो, िे राज्यों के वलए लागू होंगी। दूसरा, ककसी विशेष वस्थवत में समिती सूची के
विषयों के संदभा में संसद यकद यह विचार करती है कक ककसी कानून के ऄनुपालन के वलए
कायाकारी शवि कें द्रीय सरकार के पास होनी चावहए, िहां ऐसा करने के वलए संसद के पास शवि
होगी।”
 ईपरोि के ऄवतररि कें द्र को यह ऄवधकार है कक िह एक या ऄवधक राज्यों को वनम्नवलवखत
मामलों पर ऄपनी कायाकारी शवियों के प्रयोग के वलए वनदेश से सकता है:
o राष्ट्रीय या सैन्य महत्ि के संचार के साधनों के रख-रखाि तथा वनमााण के संदभा में वनदेश
जारी ककया जा सकता है।
o रे लिे की सुरक्षा संबंधी वनदेश दे सकता है।
o बच्चों को प्राथवमक स्तर पर मातृभाषा में वशक्षा के वलए वनदेश जारी कर सकता है।
o राज्य में ऄनुसवू चत जनजावतयों के कल्याण के वलए विवशष्ट योजनाओं को लागू करने हेतु।
नोट: संपूणा देश में संसदीय कानूनों को लागू करने के वलए ये वनदेश अिश्यक हैं।
 एक या ऄवधक राज्यों द्वारा आन वनदेशों का पालन नहीं करने पर ऄनुच्छेद 365 में िर्तणत वस्थवत
व्युत्पन्न हो जाएगी, जहााँ राष्ट्रपवत को यह अभास हो सकता है या हो जाता है कक ऐसी वस्थवत
ईत्पन्न हो गइ है, वजसमें राज्य की सरकार/सरकारें संविधान के प्रािधानों के ऄनुसार नहीं चलायी
जा रही हैं। पररणामस्िरुप ऄनुच्छेद 356 के तहत ईि राज्य/राज्यों में राष्ट्रपवत शासन लगाया जा
सकता है और राज्य के प्रशासन को कें द्रीय वनयंत्रण के तहत लाया जा सकता है।

2.2.2. सं घ के ऄधीन अन िाले ककसी विषय का राज्य को प्रत्यायोजन

 सामान्यतः कायाकारी शवियां सातिीं ऄनुसच


ू ी में िर्तणत विषयों के ऄनुसार विभावजत की गइ हैं।
लेककन, ऄनुच्छेद 258(1) के संिध
ै ावनक प्रािधान के ऄनुसार, राष्ट्रपवत संबंवधत राज्य सरकार की
सहमवत से ईसे संघ के ककसी कायापालकीय कृ त्य (सशता या वबना शता) को सौंप सकता है।
 ऄनुच्छेद 258(2) के ऄनुसार, वजन विषयों पर राज्य के विधान मंडल को विवध बनाने की शवि
नहीं है, िहााँ संसद संघीय कानूनों के प्रितान के वलए ककसी राज्य या ईसके प्रावधकाररयों को
ऄवधकृ त कर सकती है।

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2.2.3. सं घ को कृ त्य सौंपने की राज्यों की शवि

 ऄनुच्छेद 258(A) के ऄनुसार ककसी राज्य का राज्यपाल, भारत सरकार की सहमवत से ईसे या
ईसके ऄवधकाररयों को संबंवधत राज्य की कायापावलका शवि के विस्तार िाले विषय/विषयों को,
सशता या वबना शता के सौंप सकता है।

2.2.4. ऄवखल भारतीय से िाएं

 कें द्रीय तथा राज्य सेिाओं के ऄवतररि, संविधान के ऄनुच्छेद 312 में के न्द्र ि राज्य दोनों के वलए
‘ऄवखल भारतीय सेिाओं’ के सृजन के संबंध में ईपबंध है।
 राज्यों के पास यह प्रावधकार है कक िह ऄवखल भारतीय सेिाओं के ऄवधकाररयों को वनलंवबत कर
सके । लेककन, ईनकी वनयुवि तथा ऄनुशासनात्मक कायािाही का ऄवधकार के िल राष्ट्रपवत में
वनवहत है।
 देश के प्रशासन में महत्िपूणा योगदान देने तथा वनणाायक क्षेत्रों के प्रबंधन हेतु एकीकृ त तथा
सुगरठत ऄवखल भारतीय सेिाओं के सृजन का ईपबंध संविधान में ककया गया है।
 आनकी भती, प्रवशक्षण, पदोन्नवत, ऄनुशासनात्मक मामले अकद से संबंवधत ईपबंधों का वनधाारण
के न्द्र सरकार करती है। ऄवखल भारतीय सेिाओं के सदस्य वनयुवि के ईपरांत राज्यों में तैनात ककए
जाते हैं, जहां िे राज्य सरकार के ऄधीन काया करते हैं।
 हालांकक, यह तका कदया जाता है कक ऄवखल भारतीय सेिाएं संघिाद के वसिांत के विपरीत हैं।
परं त,ु भारतीय प्रसंग में ऄवखल भारतीय सेिाओं के ऄवधकारी के न्द्र तथा राज्य दोनों के प्रशासवनक
मामलों की वजम्मेदारी का वनिाहन करते हैं, प्रशासवनक मामलों में दोनों को सहयोग करते हैं तथा
सम्पूणा देश के प्रशासन में एकरूपता सुवनवित करते हैं।
 ितामान में तीन ऄवखल भारतीय सेिाएं हैं: भारतीय प्रशासवनक सेिा, भारतीय पुवलस सेिा तथा
भारतीय िन सेिा) (ऄनुच्छेद 312 के प्रािधानों के तहत तीसरे ऄवखल भारतीय सेिा के रूप में
1966 में भारतीय िन सेिा का सृजन ककया गया)।

2.2.5. दो या ऄवधक राज्यों के वलए सं यु ि लोक से िा अयोग का गठन

 दो या दो से ऄवधक राज्य, एक प्रस्ताि के माध्यम से एक संयुि अयोग के गठन की मांग कर सकते


हैं। आस हेतु संबंवधत राज्यों की विधावयकाओं की सहमवत जरूरी है। संसद एक कानून के माध्यम से
ऐसे संयुि अयोग का गठन कर सकती है।
 संविधान में यह भी प्रािधान है कक दो या दो से ऄवधक राज्यों के ऄनुरोध पर संघ लोक सेिा
अयोग ईन राज्यों में ककसी भी सेिा हेतु वजसमें विशेष योग्यता िाले ऄभ्यर्तथयों की अिश्यकता
हो, एक संयुि वनयुवि की योजना बना सकती है।

2.2.6. ऄं त राा ज्यीय पररषद् (Inter State Council)

 भारत राज्यों का संघ है, जहां के न्द्र सरकार की भूवमका महत्िपूणा है। परं तु, ऄपनी नीवतयों को
लागू करने के वलए के न्द्र सरकार राज्यों पर वनभार है।
 के न्द्र ि राज्य के मध्य प्रभािी िाताा एिं ऄंतसारकारी सहयोग के वलए भारतीय संविधान के
ऄनुच्छेद 263 के ऄंतगात ऄंतरााज्यीय पररषद् के रूप में एक ऐसा मंच ईपलब्ध कराया गया है,
जहााँ सभी महत्िपूणा नीवतयों को बहुपक्षीय संिाद, बहस तथा अमसहमवत के वलए प्रस्तुत ककया
जाता है। आस ऄनुच्छेद के तहत राष्ट्रपवत को यह ऄवधकार कदया गया है, कक िह आस पररषद् के
कताव्यों की प्रकृ वत को पररभावषत करें ।

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 ऄंतरााज्यीय पररषद् राज्यों के मध्य ईठने िाले वििादों की जांच करता है तथा आन पर सलाह देता
है। आसके ऄवतररि यह दो राज्यों या के न्द्र-राज्य के मध्य समान वहत के मुद्दों की खोज कर सकता
है तथा ईन पर संिाद कर सकता है। यह नीवत तथा कायों के समन्िय में सहयोग प्रदान करता है।
 ऄनुच्छेद 263 के तहत ऄंतरााज्यीय पररषद् की स्थापना 1990 में की गइ थी। सिाप्रथम आस

पररषद् को सरकाररया अयोग की ऄनुशंसा पर स्थावपत ककया गया थाI


 आस पररषद् का ऄध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। आस पररषद् में सभी राज्यों एिं कें द्रशावसत प्रदेशों के
मुख्यमंत्री तथा प्रधानमंत्री द्वारा नावमत कें द्र सरकार के 6 कै वबनेट मंत्री सवम्मवलत होते हैं।
 ऄब तक ऄंतरााज्यीय पररषद् की 11 बैठकें अयोवजत की जा चुकी हैं तथा कु छ महत्िपूणा वनणाय
वलए गए हैं, जो वनम्नवलवखत हैं:

o राष्ट्रपवत के विचाराथा रखे गए विधेयकों का समयबि वनराकरण,


o के न्द्र ि राज्य के मध्य करों के विभाजन में िैकवल्पक योजना की स्िीकृ वत तथा
o देश में ऄनुच्छेद 356 के दुभाािनापूणा ईपयोग पर प्रवतबंधI
ऄंतरााज्यीय पररषद् से संबवं धत ऄन्य तथ्य:

2.2.6.1. कें द्र और राज्यों के मध्य सहयोग सु वनवित करने में भू वमका
 यह कें द्र-राज्य और ऄंतरााज्यीय संबंधों को मजबूत करने और नीवतयों पर चचाा के वलए सिाावधक
प्रभािशाली मंच है।

 यह नीवत वनमााण एिं ईसके त्िररत कायाान्ियन हेतु परस्पर सहयोग, समन्िय और विकास के एक
ईपकरण के रूप में काया करता है।
 यह राज्यों के मुख्यमंवत्रयों को ऄिसर प्रदान करता है कक िे राज्यों की चचताओं और मुद्दों को
पररषद् के समक्ष विचार के वलये रखें। ऄतः यह कें द्र और राज्यों के बीच ऄविश्वास को दूर करने में
सक्षम है I

2.2.6.2. पररषद् के कामकाज से सं बं वधत मु द्दे

 आसे के िल एक िाताा मंच के रूप में देखा जाता है आसवलए आस छवि को बदलने की अिश्यकता हैI
पररषद् को ऄपने कायाकरण से यह दशााने की अिश्यकता है कक आसके मंच पर ईठाये गए मुद्दें
ऄपने वनधााररत लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम हैं।
 आसकी वसफाररशें सरकार पर बाध्यकारी नहीं होती हैं।
 आसकी बैठक वनयवमत रूप से नहीं होती है। हाल ही में , निंबर 2017 में आसकी स्थायी सवमवत की
12िीं बैठक अयोवजत की गयी थी।

2.2.6.3. पररषद् को और मजबू त बनाने की अिश्यकता

 वित्त अयोग और ऄंतरााज्यीय पररषद् को साथ वमलकर संविधान के भाग XI और XII के


प्रािधानों को कियावन्ित करना चावहए, ताकक समुवचत वित्तीय हस्तांतरण और राजनीवतक
विकें द्रीकरण सुवनवित ककया जा सके ।
 आसे ऄंतरााज्यीय वििादों की जांच करने की शवि दी जानी चावहए वजसका ईल्लेख संविधान में भी
ककया गया हैI ककन्तु, 1990 में राष्ट्रपवत के अदेश के द्वारा आसके गठन के समय आसे यह शवि
प्रदान नहीं की गयीI

 आसे कें द्र और राज्यों के बीच के िल प्रशासवनक ही नहीं ऄवपतु राजनीवतक और विधायी अदान-
प्रदान के एक सशि मंच के रूप में भी विकवसत ककया जाना चावहए I

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2.2.6.4. पररषद् के सं बं ध में पुं छी अयोग की वनम्नवलवखत वसफाररशें भी विचारणीय है


 राज्यों के साथ ईवचत परामशा के पिात् वनधााररत एजेंडे पर विचार करने के वलये ऄंतरााज्यीय
पररषद् की प्रवतिषा कम से कम तीन बैठकों का अयोजन ककया जाना चावहए।
 आस पररषद् की संगठनात्मक संरचना में ऄवखल भारतीय सेिाओं के ऄवतररि कानून, प्रबंधन और
राजनीवत विज्ञान के विशेषज्ञों को भी सवम्मवलत ककया जाना चावहए।
 पररषद् के वलए एक स्थाइ सवचिालय की स्थापना की जानी चावहए, वजसमें कें द्रीय और राज्य
लोक सेिा के ऄवधकाररयों को प्रवतवनयुवि के माध्यम से वनयुि ककया जा सकता हैं। आसके
ऄवतररि सवचिालय को प्रासंवगक क्षेत्रों के विषय विशेषज्ञों का सहयोग प्रदान करने के साथ ही
कायाात्मक स्ितंत्रता भी प्रदान की जानी चावहए।
 सरकार द्वारा राष्ट्रीय विकास के कायों को भी ऄंतरााज्यीय पररषद् को स्थानांतररत ककया जा
सकता है।

2.2.6.5. ईभरते मु द्दे


 नीवत अयोग की गिर्ननग काईं वसल की सांगठवनक संरचना ऄंतरााज्यीय पररषद् के लगभग समान
है, जो कें द्र-राज्य के मुद्दों को संबोवधत करती है,।
 ककन्तु, ऄंतरााज्यीय पररषद् की विवशष्टता आसका संविधान के प्रािधानों के ऄनुरूप स्थावपत होना
है, जबकक नीवत अयोग के संबंध में संविधान में ऐसे ककसी प्रािधान का ईल्लेख नहीं हैI आसे के िल
एक कायाकारी अदेश द्वारा स्थावपत ककया गया है।
 ऄंतरााज्यीय पररषद् का संिैधावनक अधार राज्यों को ऄवधक सशि भूवमका प्रदान करता हैI ऄत:
यह स्पष्ट है कक राज्यों को नीवत वनमााण और कियान्ियन में महत्िपूणा स्थान प्राप्त होने से कें द्र-
राज्य संबंधों के सहज संचालन के वलए सहयोगी और समन्ियपूणा िातािरण का वनमााण होगा।

2.2.7. ऄं त राा ज्यीय नदी जल वििाद

 संविधान के ऄनु. 262(1) के ऄनुसार, “संसद ककसी ऄंतरााज्यीय नदी या नदी बेवसन में जल के
ईपयोग, वितरण या वनयंत्रण के संबंध में ककसी भी प्रकार की वशकायत या वििाद की वस्थवत में
विवध बनाकर ऄवधवनणाय प्रदान कर सकती है।” आसी पररप्रेक्ष्य में संसद ने ऄंतरााज्यीय जल वििाद
ऄवधवनयम, 1956 को ऄवधवनयवमत ककया है।

ऄंतरााज्यीय जल वििाद ऄवधवनयम, 1956


प्रमुख विशेषताएाँ
 रिब्यूनल (ऄवधकरण) का गठन।
 रिब्यूनल की शवियााँ वसविल कोटा के समान होंगी।
 रिब्यूनल के वनणायों के कियान्ियन हेतु योजनाओं के वनमााण की शवि।
 रिब्यूनल के विघटन एिं वनयम बनाने की शवि।
 जल वििादों का न्यावयक वनणाय (ऄवधवनणाय)।
 डाटा बैंक एिं सूचना का रखरखाि।
 सिोच्च न्यायालय एिं ऄन्य न्यायालयों के क्षेत्रावधकार को सीवमत करना।

2.2.7.1. ऄं त राा ज्यीय नदी जल वििाद: ऄद्यवतत तथ्य


पृष्ठभूवम
 भारत की ऄवधकांश नकदयााँ ऄंतरााज्यीय स्तर पर वििादग्रस्त हैं। भारत की सबसे बड़ी 12 नकदयों
में से 9 ऄंतरााज्यीय नकदयााँ हैं। भारत की मुख्यभूवम का 85% भाग बड़ी एिं मध्यम अकार िाली
ऄंतरााज्यीय नकदयों के ऄंतगात सवम्मवलत है।

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 ऄंतरााष्ट्रीय एिं ऄंतरााज्यीय सीमाओं से होकर बहने िाली सभी नकदयों का विवनयमन एिं विकास
ही संभावित वििादों का मूल कारण है।
 तेजी से बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण एिं औद्योगीकरण अकद के कारण जल की मांग तीव्र गवत से
बढ़ी है वजससे यह समस्या और भी विकराल होती जा रही है।
नदी जल वििादों के प्रभाि
 दीघाकाल तक चलने िाले एिं बार-बार ईत्पन्न होने िाले वििादों के कारण लोगों के मध्य विवभन्न
प्रकार की ऄसुरक्षाएं बढ़ती हैं तथा ईनकी अजीविका पर विपरीत प्रभाि पड़ता है।
 साथ ही, आसका विस्तृत प्रभाि राष्ट्र-राज्य की संघीय एकता पर भी पड़ता है। ये चचताएाँ ऄकारण
नहीं हैं। 2016 में कािेरी वििाद को लेकर तवमलनाडु एिं कनााटक के बीच नृजातीय एिं नागररक
स्तर पर होने िाले संघषा एिं चहसा की घटनाएाँ आसका ज्िलंत ईदाहरण हैं।
 आसका दूसरा ईदाहरण पृथक तेलंगाना राज्य के वलए हुअ अंदोलन है। आस अंदोलन के मुख्य
कारणों में से एक क्षेत्रीय स्तर पर ककया गया जल संसाधन का ऄसमानतापूणा अबंटन था।
 जल संसाधनों के ऄसमानतापूणा अिंटन के विषय का राजनीवतकरण भारत में नीवत-वनमााताओं के
समक्ष बड़ी चुनौती के रूप में ईभर रहा है। भारत में राज्यों एिं संघीय ढााँचे के वलए आस प्रकार के
राजनीवतक अंदोलनों के गहरे वनवहताथा हैं।
ितामान प्रािधानों की अलोचना
ितामान प्रािधानों की वनम्नवलवखत अधारों पर अलोचना की जाती हैंःः
 1956 के ऄवधवनयम के तहत, प्रत्येक ऄंतरााज्यीय जल वििाद के वलए पृथक रिब्यूनल गरठत ककये
जाने का प्रािधान है।
 ये रिब्यूनल वििादों के समाधान में ऄत्यवधक समय लगाते हैं। कािेरी एिं रािी-व्यास जैसे
रटब्यूनल िमशः विगत 26 एिं 30 िषो से ऄभी तक ककसी ऄंवतम वनणाय पर नहीं पहुाँच सके हैं।
मौजूदा प्रािधानों में ऄवधवनणाय हेतु वनवित समयसीमा का प्रािधान नहीं है।
 रिब्यूनल के वनणाय को लागू करने के वलए पयााप्त तंत्र का ऄभाि है।
 ऄंवतम समाधान का मुद्दा: ककसी भी पक्ष के ऄनुरूप वनणाय नहीं होने पर िह सिोच्च न्यायालय में
चला जाता है। ऄब तक अठ में से मात्र तीन मामलों में ही रिब्यूनलों के वनणायों को राज्यों ने
स्िीकार ककये हैं।

2.2.7.2. ऄं त राा ज्यीय नदी वििाद (सं शोधन) विधे य क, 2017

हाल ही में कें द्रीय जल संसाधन, नदी विकास एिं गंगा संरक्षण मंत्री ने लोकसभा में ऄंतरााज्यीय नदी
वििाद (संशोधन) विधेयक, 2017 प्रस्तुत ककया। यह ऄंतर-राज्यीय नदी जल वििादों के सन्दभा में कदए
गए ऄवधवनणायों को लागू कराने का प्रािधान करता है एिं ितामान कानूनी एिं संस्थागत ढांचे को
मजबूत बनाने पर बल देता है।
संशोधन विधेयक के महत्िपूणा प्रािधान
 आसके तहत के न्द्र सरकार द्वारा वििाद समाधान सवमवत (Dispute Redressal Committee;
DRC) के गठन का प्रािधान है, वजसका काया रिब्यूनल में ककसी भी मामले को भेजने से पूिा
सद्भािनापूणा ढंग से समाधान का प्रयास करना होगा। आसके वलए वनधााररत ऄिवध 1 िषा होगी
वजसे 6 माह तक के वलए अगे बढ़ाया जा सकता है।
 एकल रिब्यूनलः यह विधेयक ितामान में स्थावपत विवभन्न रिब्यूनलों के स्थान पर एक चसगल
स्टैंवडग रिब्यूनल (वजसकी ऄनेक बेंच हों) का प्रस्ताि करता है, वजसमें एक ऄध्यक्ष, एक ईपाध्यक्ष
एिं ऄवधकतम 6 सदस्य होंगे।
 सदस्यों की अयु एिं कायाकाल- ऄध्यक्ष का कायाकाल 5 िषा या 70 िषा की अयु (दोनों में जो भी
पहले पूणा हो) होगा।रिब्यूनल के ईपाध्यक्ष एिं ऄन्य सदस्यों का कायाकाल, जलवििाद की समावप्त
के साथ ही खत्म हो जाएगा।

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 समयसीमाः रिब्यूनल को ककसी वििाद का समाधान साढे चार िषों में करना होगा।
 ऄंवतम रूप से वनणाय: रिब्यूनल का वनणाय ऄंवतम एिं बाध्यकारी होगा।
 डाटा संग्रहः कें द्र सरकार के द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर डाटा संग्रह एिं डाटा बैंक के रखरखाि हेतु एक
एजेंसी को वनयुि एिं प्रावधकृ त करने का प्रािधान है।
 तकनीकी सहायताः रिब्यूनल को तकनीकी सहायता देने के वलए जांचकतााओं की वनयुवि का
प्रािधान है। ऐसे विशेषज्ञों की वनयुवि सेंिल िाटर आंजीवनयररग सर्तिस से की जाएगी।
मुद्दे:
 अिश्यकता ईत्पन्न होने पर प्रस्तुत विधेयक में आन स्थायी रिब्यूनलों की बेंचों की स्थापना का
प्रस्ताि ककया गया है। आस प्रकार, यह स्पष्ट नहीं है कक ककस प्रकार ये ऄस्थायी शाखाएाँ, ितामान
व्यिस्था से वभन्न है।
 सिोच्च न्यायालय ने हाल ही में यह वनणाय कदया है कक िह ऄंतरााज्यीय जल वििाद ऄवधवनयम
(ISWDA) के ऄंतगात स्थावपत जल रिब्यूनलों के ऄवधवनणायों के विरुि ऄपील सुन सकता है। आस
प्रकार, आससे भी न्यावयक प्रकिया में देरी होगी।
क्या ककया जाना चावहए:
 नकदयों को राष्ट्रीय संपवत्त घोवषत करनाः आसके माध्यम से राज्यों की ईस प्रिृवत्त पर ऄंकुश लगाना
संभि हो सके गा वजसके ऄंतगात िे नदी जल को ऄपना ऄवधकार मानते हैं।
 जल को समिती सूची में सवम्मवलत करनाः यह वसफाररश वमवहर शाह सवमवत की ररपोटा पर
अधाररत है वजसमें जल प्रबंधन हेतु कें द्रीय जल प्रावधकरण की ऄनुशंसा की गयी है। यह जल
संसाधन पर संसदीय स्थायी सवमवत के द्वारा भी समर्तथत है।
 संस्थागत तंत्र के ऄलािा, राज्यों में जल वििाद के मानिीय पहलू के प्रवत ईत्तरदावयत्ि की भािना
भी जागृत करना अिश्यक है।
 जल वििादों को राजनीवत से दूर रखना अिश्यक है। साथ ही, यह भी अिश्यक है कक राजनीवतक
दल आन वििादों का ऄनािश्यक राजनीवतकरण करके ऄनुवचत लाभ ईठाने से बचें।

2.2.8. ऄन्य प्रािधान

 आसके ऄवतररि ऄनुच्छेद 355 के न्द्र पर यह कताव्य अरोवपत करता है कक िह ककसी बाह्य अिमण
या अंतररक ऄशांवत से प्रत्येक राज्य की रक्षा करे तथा प्रत्येक राज्य की सरकार का आस संविधान
के प्रािधानों के ऄनुसार चलाया जाना सुवनवित करे ।
 राष्ट्रीय अपात (ऄनु. 352) की वस्थवत में के न्द्र के पास यह ऄवधकार होता है कक िह राज्यों को
ककसी भी विषय पर कायाकारी वनदेश जारी कर सके ।
 राज्यों में राष्ट्रपवत शासन (ऄनु. 356) के समय राष्ट्रपवत राज्य सरकार की शवियां तथा काया स्ियं
ग्रहण कर सकता है या राज्यपाल या ऄन्य राज्य प्रावधकारी को प्रावधकृ त कर सकता है।

2.3 वित्तीय सं बं ध (ऄनु च्छे द 268-293)

भारतीय संविधान में के न्द्र ि राज्यों के मध्य राजस्ि के वितरण पर विस्तृत चचाा की गइ है। संविधान
के भाग XII में ऄनु. 268-293 तक राज्यों के मध्य वित्तीय संबंधों का ईल्लेख है। के न्द्र ि राज्यों के मध्य
वित्तीय संबंधों का वनम्नवलवखत शीषाकों के ऄंतगात ऄध्ययन ककया जा सकता है:
 संघ द्वारा ईदगृहीत (levied) ककए जाने िाले ककन्तु राज्यों द्वारा संगह
ृ ीत (collected) तथा
विवनयोवजत ककए जाने िाले शुल्क (ऄनुच्छेद 268): स्टाम्प शुल्क, औषवध तथा प्रसाधन पर
ईत्पाद शुल्क संघ द्वारा ईदगृहीत ककतु राज्य द्वारा विवनयोवजत ककए जाते हैं।राज्य के भीतर
ईदगृहीत ऐसे शुल्क भारत के संवचत वनवध के भाग नहीं होंगे ऄवपतु ईस राज्य को सौंप कदए
जाएंगे।

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 सेिा कर, वजसे संघ द्वारा ईदगृहीत ककया जाएगा और संघ तथा राज्यों द्वारा संगह
ृ ीत एिं
विवनयोवजत ककया जाएगा: सेिा कर संघ द्वारा अरोवपत ककए जाएंगे परं तु के न्द्र ि राज्य दोनों
द्वारा संगृहीत ि विवनयोवजत ककए जाएंगे। आनके संग्रहण ि विवनयोजन के वसिान्त संसद द्वारा
वनर्तमत ककए गए हैं।
 संघ द्वारा ईदगृहीत और संगह
ृ ीत ककन्तु राज्यों को सौंपे जाने िाले कर (ऄनुच्छेद 269):
o संपवत्त के संबंध में कृ वष भूवम के ऄवतररि ईत्तरावधकार शुल्क।
o संपवत्त के संबंध में कृ वष भूवम के ऄवतररि संपदा शुल्क।
o रे लिे, समुद्र तथा िायु पररिहन के संबंध में माल या यावत्रयों पर टर्तमनल टैक्स।
 संघ द्वारा ईदगृहीत तथा संगह
ृ ीत लेककन के न्द्र ि राज्यों के बीच वितररत ककए जाने िाले कर (ऄनु.
270): कु छ कर संघ द्वारा ईदगृहीत तथा संगृहीत ककए जाते है, लेककन िे संघ ि राज्यों में वनवित
ऄनुपात में वितररत कर कदए जाते हैं। यह विभाजन वित्तीय संसाधनों के न्यायपूणा वितरण पर
अधाररत है। आस श्रेणी के सभी कर तथा शुल्क संघ सूची में ईल्लेवखत हैं।
नोट: आन करों के वितरण के तरीके वित्त अयोग की वसफाररश पर राष्ट्रपवत द्वारा वनधााररत ककए जाते
हैं।
 कु छ शुल्कों और करों पर संघ के प्रयोजनों के वलए ऄवधभार (ऄनु. 271): ऄनुच्छेद 269 एिं ऄनु.
270 में ककसी बात के होते हुए भी संसद आन शुल्कों या करों में ऄवधभार द्वारा िृवि कर सकती है।
ऐसे ऄवधभार के संपूणा अगम भारत की संवचत वनवध के भाग होंगे। आसमें राज्य की ककसी भी
प्रकार की वहस्सेदारी नहीं होगी।
 राज्य द्वारा ईदगृहीत, संग्रवहत तथा ईपयोग ककए जाने िाले करः आस प्रकार के कर को राज्य सूची
की प्रविवष्ट 20 में ईल्लेवखत ककया गया हैं। ये विशेष रूप से राज्य से संबंवधत हैं।
 सहायक ऄनुदान (ऄनुच्छेद 275): संसद भारत की संवचत वनवध से राज्यों को सहायता के वलए
ऄनुदान दे सकती है (ऄनु. 275)। यह मुख्यतः जनजातीय क्षेत्रों में कल्याणकारी कायों के प्रोत्साहन
के वलए है। आसी में ऄसम राज्य को कदया जाने िाला विशेष ऄनुदान भी शावमल है। आसे िैधावनक
ऄनुदान भी कहा जाता है तथा वित्त अयोग की वसफाररश पर कदया जाता है। आसके ऄवतररि
ऄनु. 282, लोक प्रयोजनों के वलए राज्यों को ऄनुदान प्रदान करने का प्रािधान करता है, ककन्तु
यह ऄनुदान संघ सरकार के वििेक के ऄधीन होता है।
 राज्यों द्वारा ईधार लेना (ऄनुच्छेद 294): भारत सरकार ककसी राज्य को ईधार दे सकती है या
ककसी राज्य द्वारा वलए गए ईधार पर गारण्टी दे सकती है।
 राष्ट्रपवत की पूिाानम
ु वत (ऄनुच्छेद 274): ऐसा कोइ भी विधेयक या संशोधन राष्ट्रपवत के पूिा
ऄनुमवत के वबना संसद के ककसी भी सदन में प्रस्तुत नहीं ककया जा सकता है, यकदः
o कोइ विधेयक या संशोधन जो ऐसा कर या शुल्क ऄवधरोवपत करता है वजससे राज्य वहतबि
है।
o कोइ विधेयक या संशोधन जो भारतीय अयकर ऄवधवनयम में पररभावषत ‘कृ वष अय’ के ऄथा
में पररितान करता हो।
o ईन वसिान्तों को प्रभावित करता है, वजनसे राज्यों को धनरावश वितररत की जाती है।
o जो संघ के प्रयोजनों के वलए ऄवधभार अरोवपत करता हो।
 ऄनुच्छेद 301 में भारत के राज्यक्षेत्र में सिात्र व्यापार, िावणज्य और समागम की स्ितंत्रता की
गारं टी दी गइ है। लेककन, संसद के पास लोकवहत में आस पर प्रवतबंध लगाने की शवि है।
 कृ वष अय को छोड़कर अय पर कर लगाने, ईदगृहीत करने की शवि संघ के पास है, कफर भी
राज्य विधावयका िृवत्त, व्यापार अकद पर कर लगा सकती है।

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 गैर कर-राजस्ि का वितरण: गैर-कर राजस्ि जैस-े पोस्ट, रे लिे, बैंककग, प्रसारण, वसक्का और मुद्रा,

कें द्रीय सािाजवनक क्षेत्रक ईपिम, लािाररश संपवत अकद संघ सरकार के पास जाते हैं। जबकक

चसचाइ, िन, मत्स्यन, राज्य सािाजवनक क्षेत्रक ईपिम अकद से संबंवधत गैर-कर राजस्ि राज्य
सरकार के पास जाते हैं।

2.4 के न्द्र-राज्य सं बं धों में की प्रिृ वत्तयााँ

2.4.1. स्ितं त्र ता के बाद भारतीय सं घ िाद का विकास

 भारतीय संघिाद का पहला चरण स्ितंत्रता से 1960 के मध्य तक विस्तृत है। प्रधानमंत्री
जिाहरलाल नेहरू सभी राज्यों के मुख्यमंवत्रयों को समय-समय पर के न्द्र सरकार के गवतविवधयों से
ऄिगत कराते रहे। ईन्होंने प्रत्येक राज्य को पत्र वलखकर विवभन्न मामलों के संबंध में सूवचत ककया
तथा राष्ट्रीय मुद्दों पर सहमवत बनाइ। भारतीय संघिाद का यह वनबााध काल आसवलए ऄवधक
सफल रहा क्योंकक लगभग सभी राज्यों में एकदलीय सरकार थी।
 लेककन, सन् 1967 के चुनाि के बाद कांग्रेस की नौ राज्यों में हार हुइ तथा आससे के न्द्र सरकार की
वस्थवत कमजोर हुइ। पररणामतः के न्द्र-राज्य संबंधों के नये युग या दूसरे चरण की शुरूअत हुइ।
राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारों ने कें द्रीयकरण की प्रिृवत्तयों तथा के न्द्र सरकार के हस्तक्षेप का
विरोध ककया। राज्यों ने स्िायत्तता की मांग ईठाइ तथा ऄवधक शवियों ि वित्तीय संसाधनों की
मांग की। आसके पररणामस्िरूप के न्द्र ि राज्य के मध्य विवभन्न मुद्दों पर तनाि ईत्पन्न हुए। आनमें से
कु छ मुद्दे वनम्नवलवखत हैं:
o राज्यपालों की वनयुवि तथा बखाास्तगी,

o राज्यपालों की भेदभाि से ग्रवसत ि पक्षपातपूणा भूवमका,

o राज्यों में राष्ट्रपवत शासन,

o राज्यों में विवध ि व्यिस्था बनाए रखने के वलए कें द्रीय बलों की तैनाती,
o राज्य विधेयकों को राष्ट्रपवत के विचाराथा अरवक्षत करना,

o वित्त का विभाजन (के न्द्र-राज्य के मध्य),


o राज्य सूची के विषयों पर संघ का ऄवतिमण अकद।
 के न्द्र में गठबंधन सरकारों की लंबी ऄिवध के साथ 1980 के दशक के ईत्तरािा में संघिाद के

तीसरे चरण की शुरूअत हुइ। क्षेत्रीय दलों जैसे- DMK या RJD ने भारतीय राजनीवत में
लगभग डेढ़ दशक तक खुले तौर पर ऄपने वहतों की मांग की। आस तरह की मुखरता से राष्ट्रीय
दलों ने के न्द्र के कायाकरण में क्षेत्रीय दलों को ऄवधक महत्ि कदया। क्षेत्रीय दलों के बढ़ते प्रभाि
के बािजूद के न्द्र ि राज्यों के मध्य कइ मुद्दों पर वििाद बना रहा। ये मुद्दे विचाराथा हैं तथा आस
कदशा में कइ प्रयास ककए गए हैं।

2.4.2. प्रथम प्रशासवनक सु धार अयोग

 कें द्र सरकार के द्वारा मोरारजी देसाइ की ऄध्यक्षता में 1966 में छह सदस्यीय प्रथम प्रशासवनक

सुधार अयोग (ए,अर.सी.) की वनयुवि की गयी। आसे ऄन्य मामलों के साथ कें द्र-राज्य संबंधों के

परीक्षण का दावयत्ि भी सौंपा गया। 1969 में, ARC ने कें द्र-राज्य संबंधों पर प्रस्तुत ऄपनी ररपोटा
में 22 वसफाररशें प्रस्तुत कीं। अयोग के द्वारा प्रस्तुत की गयी कु छ महत्िपूणा वसफाररशें
वनम्नवलवखत हैं:

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o संविधान के ऄनुच्छेद 263 के तहत एक ऄंतरााज्यीय पररषद् का गठन ककया जाए।
o राज्यपाल के रूप में पद धारण करने िाले व्यवि का सािाजवनक जीिन और प्रशासन में लंबा
ऄनुभि हो तथा ईसका गैर-पक्षपातपूणा दृवष्टकोण हो।
o राज्यों को ऄवधकतम सीमा तक शवियों का प्रत्यायोजन।
o कें द्र पर राज्यों की वनभारता कम करने के वलए राज्यों को ऄवधक वित्तीय संसाधनों का
स्थानांतरण करना।
o राज्यों के ऄनुरोध पर ऄथिा ऄन्य ककसी मामले में राज्य में कें द्रीय सशस्त्र बलों की तैनाती।
लेककन, ARC की वसफाररशों पर कें द्र सरकार ने कोइ महत्िपूणा कारा िाइ नहीं की। आस कदशा में ऄगला
महत्िपूणा विकास सरकार के द्वारा सरकाररया अयोग का गठन था।

2.4.3. सरकाररया अयोग

 कें द्र सरकार ने सिोच्च न्यायालय के सेिावनिृत्त न्यायाधीश अर. एस. सरकाररया की ऄध्यक्षता में
कें द्र-राज्य संबंधों पर 1983 में तीन सदस्यीय अयोग का गठन ककया। अयोग ने ऄपनी ररपोटा
ऄक्टू बर 1987 में 247 वसफाररशों के साथ प्रस्तुत की।
 अयोग राजव्यिस्था से संबंवधत संरचनात्मक पररितानों के पक्ष में नहीं था। अयोग ने विविध
संस्थानों से संबंवधत मौजूदा संिध
ै ावनक व्यिस्था और वसिांतों को ईवचत और पयााप्त माना।
 परन्तु, अयोग ने कायाात्मक या पररचालन संबंधी पहलूओं में बदलाि की अिश्यकता पर बल
कदया। आसने संघ की शवियों को सीवमत करने की मांग को पूणा रूप से ऄस्िीकार कर कदया तथा
यह विचार व्यि ककया कक राष्ट्रीय एकता और ऄखंडता की रक्षा के वलए एक मजबूत कें द्र अिश्यक
है।
 हालांकक अयोग की यह मान्यता थी कक ऄवत-कें द्रीकरण की प्रकिया से बचा जाना चावहए। अयोग
की कु छ महत्िपूणा वसफाररशें वनम्नवलवखत हैं:
o ऄनुच्छेद 263 के तहत एक स्थायी ऄंतरााज्यीय पररषद् का गठन ककया जाना चावहए।
o ऄनुच्छेद 356 (राष्ट्रपवत शासन) का प्रयोग सभी ईपलब्ध विकल्पों के विफल हो जाने पर ही
ऄथाात् बहुत ही कम मामलों में एिं ऄपररहाया पररस्थवतयों में, ऄंवतम विकल्प के रूप में
ककया जाना चावहए।
o ऄवखल भारतीय सेिाओं को और मजबूत बनाया जाना चावहए तथा कु छ ऄन्य ऄवखल
भारतीय सेिाओं का सृजन ककया जाना चावहए।
o कराधान की ऄिवशष्ट शवियााँ संसद में वनवहत रहनी चावहए, जबकक ऄन्य ऄिवशष्ट शवियों
को समिती सूची में शवमल ककया जाना चावहए।
o राष्ट्रपवत द्वारा राज्य सरकार के विधेयकों को ऄनुमवत प्रदान करने से ऄस्िीकार करने की
वस्थवत में, आससे संबंवधत कारणों को राज्य सरकार को स्पष्ट रूप से सूवचत ककया जाना
चावहए।
o क्षेत्रीय पररषदों को नए वसरे से गरठत ककया जाना चावहए और संघिाद की भािना को
बढ़ािा देने के वलए आन्हें पुन: सकिय ककया जाना चावहए।
o संघ को राज्यों की सहमवत के वबना राज्यों में सशस्त्र बलों को तैनात करने की शवि होनी
चावहए। हालांकक, राज्यों से परामशा ककया जाना िांछनीय है।
o समिती सूची के विषयों पर कानून बनाने से पहले कें द्र को राज्यों से परामशा करना चावहए।
o राज्यपाल की वनयुवि के संबंध में मुख्यमंत्री से परामशा करने की प्रकिया संविधान में ही
वनधााररत की जानी चावहए।
o राज्यों में राज्यपाल के पांच िषा के कायाकाल को ऄत्यंत ऄवनिाया पररवस्थवतयों के ऄलािा
बावधत नहीं ककया जाना चावहए।
o वत्रभाषा सूत्र को समान रूप से सभी क्षेत्रों में आसकी िास्तविक भािना के ऄनुरू प लागू करने
के वलए कदम ईठाए जाने चावहए।
o कें द्र द्वारा रे वडयो और टेलीविजन जैसे विभागों को स्िायत्तता प्रदान की जानी चावहए। साथ
ही, ईनके पररचालन में विकें द्रीकरण को बढ़ािा देना चावहए।

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नोट : कदसंबर 2007 तक, कें द्र सरकार सरकाररया अयोग की 179 (247 में से) वसफाररशों लागू कर
चुकी हैं। सरकाररया अयोग की वसफाररशों के अलोक में सरकार द्वारा ईठाया गया सिाावधक महत्िपूणा
कदम 1990 में ऄंतरााज्यीय पररषद का गठन था।

2.4.4. एम. एम. पुं छी अयोग

ऄप्रैल 2007 में ईच्चतम न्यायालय के भूतपूिा मुख्य न्यायाधीश मदन मोहन पुछ
ं ी की ऄध्यक्षता में 'कें द्र-
राज्य संबंधों’ की समीक्षा के वलये एक अयोग का गठन ककया गया। अयोग ने 30 माचा, 2010 को सात
खंडों िाली एक ररपोटा सरकार को प्रस्तुत की। अयोग के ररपोटा के खंड दो में कें द्र-राज्य संबध
ं ों से
संबंवधत संिैधावनक योजनाओं की पड़ताल की गयी है। आसमें कदए गए कु छ सुझाि वनम्नवलवखत हैं:
(कें द्र-राज्य संबध
ं ों पर निीनतम सवमवत होने के कारण, आसकी वसफाररशें विस्तृत रूप से दी गइ हैं।)
 समिती सूची में शावमल विषयों पर कानून वनमााण के दौरान राज्यों से परामशा करने के संबध
ं में:
o समिती सूची (सूची III) में ऐसे विषय शावमल हैं वजन पर संघ और राज्य दोनों कानून बना
सकते हैं।
o कें द्र-राज्य संबंधों को बेहतर बनाने के वलए तथा समिती सूची में शावमल विषयों से संबंवधत
कानूनों के प्रभािी कायाान्ियन हेतु यह अिश्यक है कक समिती सूची में शावमल विषयों से
संबंवधत विधेयक संसद में पुरःस्थावपत करने से पूिा कें द्र और राज्यों के मध्य संबंवधत विषय
पर व्यापक सहमवत वनर्तमत बनाइ जाये।
o सहमवत स्थावपत करने के काया को ऄंतरााज्यीय पररषद् के माध्यम से संपन्न ककया जा सकता
है। यकद अिश्यक हो तो पररषद् विधेयकों से संबंवधत वििादास्पद मुद्दों को समाप्त करने के
वलए राज्यों के मंवत्रयों की एक सवमवत का गठन कर सकती है।
o आस प्रकार विधेयक में शावमल प्रशासकीय और राजकोषीय मुद्दों पर राज्यों का सहयोग भी
प्राप्त ककया जा सके गा।
o पररषद् में संपन्न की गयी समस्त कायािाही का ररकॉडा राज्यों के विचारों सवहत सं सद को
ईपलब्ध कराया जाना चावहए।
o आस प्रकार समिती सूची के विषयों पर विधेयक पुरःस्थावपत करने की प्रकिया में आन सभी
तथ्यों का प्रयोग ककया जाना चावहए।
 सूची II से सूची III में प्रविवष्टयों के स्थानांतरण के संबध
ं में:
o ऄनुच्छेद 368(2) में िर्तणत प्रकिया के ऄनुसार संसद को संविधान के ककसी भी प्रािधान में
संशोधन करने की शवि प्रदान की गयी है (बशते ऐसा संशोधन संविधान के मूल ढााँचे के
प्रवतकू ल न हो)।
o आस सन्दभा में एक बड़ा प्रश्न यह है कक क्या संसद को आस प्रकिया के माध्यम से राज्यों की
विधायी शवियों को एकतरफा ढंग से समाप्त या सीवमत करने का ऄवधकार होना चावहए
ऄथिा आसमें राज्यों की भूवमका भी सुवनवित की जानी चावहए?
o आस पररदृश्य में यह स्पष्ट है कक राज्य सूची में शावमल तथा समिती सूची में स्थानांतररत
विषयों के संबंध में राज्यों के वलए ऄवधक स्ितंत्रता को सुवनवित करना ही कें द्र-राज्य संबंधों
को बेहतर बनाने की कुं जी हैं।
o आस संदभा में, एक संयुि संस्थागत तंत्र के माध्यम से यह जांच करना ईपयुि होगा कक क्या
कें द्रीय कानून (स्थानांतररत विषय पर) के ऄन्तगात संबंवधत विषय के प्रशासन ने ऄपने ईद्देश्य
की पूर्तत की है तथा क्या राज्यों के ऄनन्य ऄवधकार क्षेत्र को सीवमत करने िाली आस व्यिस्था
को जारी रखना िांछनीय है?
o यकद आस प्रकार की गयी जांच से सकारात्मक वनष्कषा नहीं प्राप्त होता है तो कें द्र तथा राज्यों के
बीच बेहतर संबंधों के वहत में संबंवधत विषय को पहले की भांवत राज्य सूची में स्थानांतररत
कर कदया जाना चावहए।
o कें द्र एिं राज्यों के बीच आस प्रकार विकवसत संबंधों के माध्यम से यह अशा की जा सकती है
कक राज्य भी संविधान के भाग IX और IX-A में वनधााररत विषयों और संबंवधत शवियों को
पंचायतों और नगरपावलकाओं को स्थानांतररत करने हेतु प्रोत्सावहत होंगे।

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 समिती (सूची) क्षेत्रावधकार संबध
ं ी मामलों के प्रबंधन के संबध
ं में,
o समिती सूची के विषयों पर कें द्र और राज्यों की संयुि वजम्मेदारी है। ऄतः स्िाभाविक रूप से
समिती क्षेत्रावधकार तथा राज्य सूची से समिती सूची में स्थानांतररत विषयों पर वनयवमत
परामशा के माध्यम से ही कानून वनमााण प्रकिया संपन्न की जानी चावहए।
o पुंछी अयोग के द्वारा समिती या ऄवतव्यापी क्षेत्रावधकार संबंधी विषयों के प्रबंधन में
ऄंतरााज्यीय पररषद् के वलए एक वनयवमत वनरीक्षणकताा (auditing) की भूवमका की
वसफाररश की गयी है।
 राष्ट्रपवत के विचाराथा अरवक्षत विधेयकों के संबध
ं में
o ऄनुच्छेद 201 के ऄनुसार, राष्ट्रपवत राज्यपाल द्वारा ईसके विचार के वलए अरवक्षत ककए गए
विधेयक को ऄनुमवत प्रदान कर सकता है या ऄनुमवत रोक सकता है।
o यकद राष्ट्रपवत ककसी भी संदश
े के साथ विधेयक को िापस लौटाता है, तो राज्य विधान मंडल
विधेयक को राष्ट्रपवत के विचार हेतु पुनः प्रस्तुत ककये जाने के वलए छह महीने की ऄिवध के
भीतर कफर से पुनर्तिचार करे गा।
o राज्यों ने आस तथ्य के अधार पर चचता व्यि की है कक राष्ट्रपवत के विचार हेतु अरवक्षत
विधेयक कभी-कभी ऄवनवित काल तक रोक वलए जाते हैं। यहााँ तक की कभी कभी यह
ऄिवध राज्य विधान मंडल के कायाकाल से भी ऄवधक हो जाती है। कें द्र द्वारा आस प्रकार
राज्यों के विधेयकों को रोका जाना लोकतांवत्रक पहलूओं की ऄिहेलना करने के साथ ही मूल
ढांचे का ईल्लंघन करना भी होगा (संविधान के संघीय चररत्र के संदभा में)।
o आसवलए, राष्ट्रपवत के द्वारा विधेयक पर ऄनुमवत देने या ऄनुमवत रोकने संबंधी सूचना ईवचत
समयसीमा के ऄंदर राज्य को दी जानी चावहए।
o वजस प्रकार ऄनुच्छेद 201 में राज्यों के विधान मंडलों के वलए (राष्ट्रपवत द्वारा िापस लौटाये
गए) विधेयकों पर पुनर्तिचार के वलए छह महीने की ऄिवध वनधााररत की गयी है, ईसी प्रकार
आस ऄिवध (ऄथाात् 6 माह की ऄिवध) को राष्ट्रपवत के वलए भी लागू ककया जा सकता है।
 संवध या करार करने के संबध
ं में संघीय कायापावलका की शवि तथा कें द्र-राज्य संबध

o विदेशी राष्ट्रों के साथ संवधयााँ और समझौतें करने तथा विदेशी राष्ट्रों के साथ संवधयों,
समझौतों और ऄवभसमयों के कायाान्ियन संबंधी विषय पर कें द्र सरकार (सूची I की प्रविवष्ट
14) को ऄवधकार प्राप्त हैं।
o ईल्लेखनीय है कक ऄनुच्छेद 253 के ऄनुसार संसद को ककसी ऄन्य देश या देशों के साथ की
गयी ककसी संवध, करार या ऄवभसमय ऄथिा ककसी ऄंतरााष्ट्रीय सम्मेलन, संगम या ऄन्य
वनकाय में ककये गए ककसी विवनिय के कायाान्ियन के वलए भारत के सम्पूणा राज्यक्षेत्र या
ईसके ककसी भाग के वलए विवध बनाने की शवि है।
o संवध करने की संघ की विस्तृत शवि को देखते हुए अयोग ने आस शवि के व्यिवस्थत प्रयोग
हेतु आस विषय पर कानून वनमााण की सलाह दी हैI अयोग का मानना है कक संघीय संरचना
में विधायी और कायाकारी शवियों के सन्दभा में संघ की संवध या करार संबंधी शवि का
वनरपेक्ष या मनमाना प्रयोग नहीं ककया जाना चावहए।
o कइ राज्यों ने आस विषय पर ऄपनी चचता व्यि की तथा अयोग से आस संबंध में राज्यों के
वहतों की रक्षा करने के वलए ईवचत ईपाय सुझाने की मांग की। पूंछी अयोग ने सूची I की
प्रविवष्ट 14 के विषय पर प्रस्तावित कें द्रीय कानून में वनम्नवलवखत पहलुओं को शावमल ककए
जाने की वसफाररश की:
(a) चूंकक संवध, सम्मेलन या करार का संबंध राज्यों के अंतररक या बाह्य सभी प्रकार के मुद्दों से
संबंवधत होता हैं। ऄतः आस शवि के प्रयोग के संबंध में एक समान प्रकिया का पालन नहीं
ककया जा सकता। पुनः संवध में जरटल, दीघाकाल तक चलने िाली, बहु-स्तरीय िातााएं

शावमल होती हैं, वजसके ऄंतगात समायोजन, समझौता तथा लेन-देन संबंधी प्रकियाएं शावमल
होती हैं। ऄतः समझौता िाताा में शावमल होने िाले सभी वहतधारकों से संवध की प्रकिया में
कानूनी प्रािधानों के ऄक्षरशः पालन करने की ऄपेक्षा नहीं की जा सकती। जहां संविधान में

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ईवल्लवखत कें द्र की शवियों को नजरऄंदाज नहीं ककया जा सकता, िहीं ऄलग-ऄलग क्षेत्रों में
वनिास करने िाले तथा विवभन्न व्यिसायों में शावमल व्यवियों के ऄवधकारों से भी समझौता
नहीं ककया जा सकता है। आसवलए संघ की संवध करने संबंधी शवियों को विवनयवमत करने के
वलए एक कानून की अिश्यकता है।
(b) वजन समझौतों का संबंध मूलतः रक्षा, विदेशी मामलों अकद से है तथा वजनका भारतीय संघ

के राज्यों या व्यविगत ऄवधकारों पर कोइ ऄसर नहीं पड़ता है, ईन्हें एक ऄलग श्रेणी में रखा
जा सकता है। आस प्रकार के मुद्दों पर कें द्र वबना ककसी संसदीय चचाा के ही समझौते को ऄं वतम
रूप दे सकता है। हालांकक, आस समझौते को ऄंवतम रूप कदए जाने से पूिा आसे कें द्र सरकार के
संबंवधत मंत्रालय की संसदीय सवमवत के समक्ष भेजा जाना बुविमतापूणा होगा।
(c) ऄन्य संवधयााँ जो नागररकों के ऄवधकारों और दावयत्िों को प्रभावित करने के साथ ही राज्य
सूची में शावमल विषयों पर प्रत्यक्ष प्रभाि डालती हैं, ईन्हें राज्यों और संसद के प्रवतवनवधयों
की ऄवधकावधक भागीदारी के माध्यम से ही ऄंवतम रूप प्रदान ककया जाना चावहए। आस
प्रयोजन के वलए प्रस्तावित संवध के विषय तथा संवध में शावमल राष्ट्रीय वहतों से संबंवधत मुद्दों
को समावहत करने िाला एक नोट तैयार ककया जाना चावहए। आस नोट को संवध में शावमल
संबंवधत कें द्रीय मंत्रालय द्वारा तैयार ककया जा सकता है तथा राज्यों के विचारों और सुझािों
को जानने के वलए राज्यों में भेजा जा सकता है। ईसके ईपरांत प्राप्त विचारों और सुझािों से
िाताा प्रकिया में शावमल टीम को संवक्षप्त रूप में ऄिगत कराया जा सकता है।
(d) ऐसे संवध या समझौते हो सकते हैं वजनके लागू ककए जाने पर राज्यों की वित्तीय और
प्रशासवनक क्षमता पर ऄवतररि बोझ पड़े ऄथिा यह भी संभि है कक राज्यों को कु छ विशेष
ईत्तरदावयत्िों का वनिाहन करना पड़े। ऐसी वस्थवत में कें द्र के द्वारा राज्यों पर पड़ने िाले
ऄवतररि बोझ को िहन करने में सहायता प्रदान करनी चावहए। आस संबंध में कें द्र एिं राज्य
अपसी सहमवत से ककसी सूत्र का वनधाारण कर सकते हैं। संवध और समझौतों के कारण ईत्पन्न
होने िाले वित्तीय ईत्तरदावयत्िों के कारण राज्यों पर पड़ने िाले प्रभाि को समय-समय पर
गरठत होने िाले वित्त अयोगों के वलए विचार का स्थायी संदभा होना चावहए। संवध/समझौते
के कायाान्ियन के दौरान राज्यों पर पड़ने िाले ऄवतररि वित्तीय बोझ को कम करने के वलए
अयोग को क्षवतपूर्तत फामूाले की वसफाररश करने के वलए कहा जा सकता है।
 राज्यपाल की वनयुवि और हटाने के संबध
ं में
o संविधान द्वारा प्रदत्त राज्यपाल के पद की वस्थवत और महत्ि को देखते हुए तथा राज्य में
संिैधावनक शासन बनाए रखने में ईनकी महत्िपूणा भूवमका को ध्यान में रखते हुए, यह
महत्िपूणा है कक संविधान में राज्यपाल के पद पर वनयुवि के वलए अिश्यक योग्यता या
पात्रता का स्पष्ट प्रािधान हो।
o ितामान में ऄनुच्छेद 157 में के िल यह स्पष्ट ककया गया है कक राज्यपाल के पद पर वनयुि

होने िाले व्यवि को भारत का नागररक होना चावहए तथा ईसने 35 िषा की अयु पूरी कर
ली हो।
o सरकाररया अयोग ने पात्रता मानदंडों के संबंध में जिाहरलाल नेहरू के ईिरण का हिाला
देते हुए राज्यपाल का चयन करने हेतु कु छ प्रमुख मानदंडो की वसफाररशें की थी।वजसे
राज्यपाल वनयुि ककया जान हो ईसके संबंध में अयोग द्वारा सुझाये गए मानदंड हैं:
(a) िह जीिन के ककसी विशेष क्षेत्र में प्रख्यात व्यवि होना चावहए।
(b) िह राज्य के बाहर का व्यवि होना चावहए।
(c) िह तटस्थ व्यवि होना चावहए तथा राज्यों की स्थानीय राजनीवत से वनकटता से संबि नहीं
होना चावहए।

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(d) िह ऐसा व्यवि होना चावहए वजसने सामान्य तौर पर और विशेष रूप से हाल के कदनों में
राजनीवत में सकियतापूिक
ा भागीदारी नहीं की है।
o यहााँ ईल्लेखनीय है कक "प्रख्यात", "तटस्थ व्यवि", "हाल के कदनों में राजनीवत में सकियतापूिाक
भागीदारी नहीं" जैसे पदों एिं िाक्यांशों की ऄलग-ऄलग पररस्थवतयों में ऄलग-ऄलग व्याख्या की
गयी है।
o राज्यपाल को पांच िषा का एक वनवित कायाकाल प्रदान ककया जाना चावहए तथा ईसकी
पदच्युवत कें द्र सरकार की आच्छा पर वनभार नहीं होना चावहए। ऄनुच्छेद 156 (i) में "राष्ट्रपवत के
प्रसादपयंत" िाक्यांश को “ईवचत प्रकिया” शब्दािली से प्रवतस्थावपत ककया जाना चावहए, वजसके
तहत राज्यपाल को ईसके पद से हटाये जाने से पूिा ऄपना पक्ष रखे जाने की ऄनुमवत दी जानी
चावहए।
o संविधान के ऄनुच्छेद 61 में राष्ट्रपवत के वलए वनधााररत की गयी महावभयोग की प्रकिया को
राज्यपाल के वलए भी ऄपनाया जाना चावहए। राज्यपाल के पद की गररमा को सुवनवित करने के
वलए यह प्रािधान अिश्यक है।
 राज्यपाल की वििेकाधीन शवियों के संबध
ं में
o ऄनुच्छेद 163(2) के वनिाचन से यह स्पष्ट होता है कक राज्यपाल के पास संविधान द्वारा स्पष्ट रूप
से प्रदान की गयी वििेकाधीन शवियों के ऄवतररि भी वििेकावधकारों की एक व्यापक
ऄपररभावषत शवि है।
o आस मान्यता को समाप्त ककये जाने की अिश्यकता है कक संविधान द्वारा आस ऄनुच्छेद के तहत
राज्यपाल को प्रदत्त सभी शवियां ईसकी वििेकाधीन शवियों के ऄंतगात अती हैं।
o ऄनुच्छेद 163(2) के तहत वििेकाधीन शवियों के दायरे की समुवचत व्याख्या की जानी चावहए।
यह स्पष्ट ककया जाना चावहए कक ऄनुच्छेद 163 राज्यपाल को ऄपनी मंवत्रपररषद् की सलाह के
वबना या ईसकी सलाह के विरुि काया करने के वलए वििेकाधीन शवियााँ प्रदान नहीं करता है।
o अयोग का मानना है कक राज्यपाल द्वारा प्रयोग की जाने िाली वििेकाधीन शवियों का क्षेत्र
सीवमत है और आस सीवमत क्षेत्र में ईसके द्वारा वलए गए वनणाय स्िेच्छाचारी ऄथिा मनमाने
अधार पर नहीं होने चावहए। ईसके द्वारा वलया गया कोइ भी वनणाय तका पूणा, औवचत्यपूणा तथा
सद्भािना पर अधाररत होना चावहए।
o राज्य के विधान मंडल द्वारा पाररत ककए गए विधेयकों के संबंध में राज्यपाल को यह घोवषत करने
की शवि है कक िह ककसी विधेयक को ऄनुमवत देता है या ऄनुमवत रोक लेता है ऄथिा विधेयक
को राष्ट्रपवत के विचार के वलए सुरवक्षत रखता है। ईसके पास विधान मंडल द्वारा पाररत विधेयकों
(धन विधेयक को छोड़कर) को सदन के पास पुनर्तिचार के वलए ऄपने संदश े ों के साथ लौटाने का
वििेकावधकार भी है। ऄगर आस तरह के पुनर्तिचार के पिात् विधेयक को संशोधनों के साथ या
वबना ककसी संशोधन के पाररत ककया जाता है तो राज्यपाल विधेयक पर सहमवत देने के वलए
बाध्य है।
o आसके ऄलािा, राज्यपाल के द्वारा विधेयकों को ऄनुमवत प्रदान करने या रोक लेने ऄथिा राष्ट्रपवत
के विचाराथा सुरवक्षत करने के वलए समयसीमा वनधााररत करना जरूरी है।
o अरवक्षत विधेयक पर राष्ट्रपवत के संदश
े के पिात् कायािाही करने के वलए राज्य विधान मंडल के
वलए वनधााररत 6 महीने की समय सीमा को राष्ट्रपवत को वनणाय वलए जाने के वलए भी वनधााररत
की जानी चावहए (ऄथाात् राष्ट्रपवत के वलए भी 6 माह की समय-सीमा वनधााररत की जानी
चावहए)।
o वत्रशंकु विधानसभा के मामले में मुख्यमंत्री की वनयुवि में राज्यपाल की भूवमका के प्रश्न पर पूिा में
विशेषज्ञ अयोगों के द्वारा मत और वसफाररशें प्रस्तुत की गयी हैं। आन सभी विचारों को ध्यान में
रखते हुए, आस संबंध में संिैधावनक परम्पराओं के रूप में पालन ककये जाने हेतु कु छ वनवित
कदशावनदेशों को वनधााररत ककया जाना अिश्यक है। ये कदशावनदेश वनम्नवलवखत हो सकते हैं:

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(a) विधानसभा में सबसे ज्यादा सदस्यों का समथान प्राप्त दल या दलों के गठबंधन को सरकार
बनाने के वलए अमंवत्रत ककया जाना चावहए।
(b) यकद चुनाि-पूिा गठबंधन या मोचाा है, तो आसे एक राजनीवतक दल के रूप में माना जाना
चावहए और यकद आस तरह का गठबंधन बहुमत प्राप्त कर लेता है, तो गठबंधन के नेता को
राज्यपाल द्वारा सरकार बनाने के वलए अमंवत्रत ककया जाएगा।
(c) यकद ककसी भी दल या चुनािपूिा गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत नहीं है, तो राज्यपाल को नीचे
दी गयी प्राथवमकता के ऄनुसार मुख्यमंत्री का चयन करना चावहए:
 दलों का ऐसा समूह वजसने चुनाि-पूिा गठबंधन ककए हैं तथा वजनके पास सिाावधक
सदस्यों का समथान प्राप्त हैं।
 सबसे बड़ी एकल पाटी वजसने ऄन्य सदस्यों के समथान से सरकार बनाने के वलए दािा
प्रस्तुत ककया हो।
 चुनाि के बाद वनर्तमत गठबंधन, वजसके सभी सहयोगी सरकार में शावमल होने पर
सहमत हों।
 चुनाि के बाद ऐसा गठबंधन जहााँ कु छ दल सरकार में शावमल होना चाहते हों तथा कु छ
बाहर से समथान करना चाहते हों।
o मुख्यमंत्री की बखाास्तगी के प्रश्न पर राज्यपाल के द्वारा प्रत्येक वस्थवत में मुख्यमंत्री को सदन में
बहुमत सावबत करने के वलए कहा जाना चावहए तथा बहुमत वसि करने के वलए अिश्यक
समयसीमा भी वनधााररत करना चावहए।
 बाह्य अिमण एिं अंतररक ऄशांवत से राज्यों की रक्षा करने के संघ के दावयत्ि के संबध ं में
o भारत की एकता और ऄखंडता को बनाये रखने हेतु संघ को अंतररक ऄशांवत जैसी वस्थवतयों
में राज्यों की रक्षा करने का दावयत्ि प्रदान ककया गया है।
o दृष्टव्य है कक ‘अतंररक ऄशांवत’ अम तौर पर राज्यों के द्वारा प्रशावसत एिं वनपटे जाने िाले
विषय हैं। हालांकक कें द्र सरकार, राज्य के वबना ककसी ऄनुरोध के भी आस दावयत्ि की पूर्तत हेतु
अिश्यक शवि का प्रयोग कर सकती है। यह प्रािधान संविधान में िर्तणत संघीय योजना से
पूणत
ा ः संगत है।
o आस प्रकार ऐसे मामले में एिं पररवस्थवतयों की प्रकृ वत, समय और अंतररक ऄशांवत की
गंभीरता के ऄनुरूप कें द्र के द्वारा विविध कारा िाइयााँ की जा सकती हैं।
o हालााँकक, कें द्र सरकार समस्या को वनयंवत्रत करने के वलए राज्य को आसके संसाधनों की सबसे
ईवचत प्रयोग की सलाह दे सकती है। ऄवधक गंभीर पररवस्थवतयों में, राज्यों के प्रयासों को
सशि करने के वलए संघ द्वारा व्यवि, सामग्री ऄथिा वित्त के रूप में सहायता प्रदान करना
अिश्यक हो सकता है।
o चहसक पररवस्थवतयों (आतनी गंभीर नहीं कक ऄनुच्छेद 352 के तहत अपातकाल घोवषत ककया
जाए) ऄथिा ऄशांवत की दीघा पररवस्थवतयों में राज्य की पुवलस को कानून व्यिस्था बनाए
रखने हेतु कें द्रीय बलों की अिश्यकता पड़ सकती है। समस्याजनक घटनाओं के दोबारा घरटत
होने से रोकने के वलए भी अिश्यक कदम ईठाये जा सकते हैं।
o ऄनुच्छेद 355 के ऄनुसार संघ का यह कताव्य होगा कक िह बाह्य अिमण और अंतररक
ऄशांवत से प्रत्येक राज्य की संरक्षा करे और प्रत्येक राज्य की सरकार का आस संविधान के
ईपबंधो के ऄनुसार चलाया जाना सुवनवित करे ।
o दृष्टव्य है कक अतंररक ऄशांवत की वस्थवत वनर्तमत हो गयी है ऄथिा नहीं, आसका वनणाय पूरी
तरह से संघ पर छोड़ कदया गया है। यद्यवप कानूनी रूप से संघ सरकार कोइ भी कदम ईठाने
में समथा है, ककन्तु ईससे यह ऄपेक्षा की जाती है कक ककसी राज्य में सशस्त्र बलों की तैनाती से
पहले यह राज्यों की सहमवत प्राप्त करने का प्रयास करे गा।

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o बाहय अिमण या अंतररक ऄशांवत के कारण राज्य प्रशासन ऄथिा संिैधावनक मशीनरी को
गंभीर क्षवत पहुंचने की वस्थवत में ऄनुच्छेद 355 के तहत ऄपने दावयत्िों के वनिाहन हेतु संघ के
समक्ष ईपलब्ध सभी िैकवल्पक साधनों के प्रयोग के पिात् ही ऄनुच्छेद 356 का प्रयोग ककया
जाना चावहए। दूसरे शब्दों में 356 का प्रयोग प्रत्येक "राज्य में संिैधावनक मशीनरी की

विफलता" की वस्थवत में ही ककया जाना चावहए।


o ऄनुच्छेद 356 के प्रयोग की कसौटी ‘राज्यों में संिैधावनक मशीनरी की विफलता’ को स्पष्ट
ककये जाने की अिश्यकता है। आस काया को संविधान संशोधन के माध्यम से अिश्यक कदशा
वनदेशों को शावमल करने के द्वारा ककया जा सकता है।
o एस. अर. बोम्मइ बनाम भारत संघ मामले (1994) में सिोच्च न्यायालय के ऐवतहावसक
वनणाय के प्रकाश में आन कदशा-वनदेशों को वनधााररत ककया जाना चावहए। आससे कें द्र-राज्य
संबंधों को सहज बनाने में मदद वमलेगी।
 ऄनुच्छेद 355 और 356 के तहत "स्थानीय अपातकाल" (local emergency) के संबध
ं में
o ितामान पररदृश्य में अपातकाल को लागू करने से संबंवधत प्रािधानों को कठोर बना कदया
गया है। ऄनुच्छेद 352 और 356 का प्रयोग के िल ऄंवतम ईपाय के रूप में ही ककया जा
सकता है।
o ऄतः ऄनुच्छेद 355 के तहत राज्यों की रक्षा करने के संघ के दावयत्ि को देखते हुए यह
अिश्यक है कक एक संिैधावनक या कानूनी ढांचे की स्थापना की जाये ताकक ऄनुच्छेद 352

और 356 के तहत वबना चरम कदमों को ईठाये ही संघ द्वारा अिश्यक हस्तक्षेप ककया जा
सके ।
o "स्थानीय अपातकाल" के वलए अिश्यक मानकों का सृजन एिं ऐसे मानकों के ईपलब्ध रहने
के कारण संघ द्वारा विशेष तथा स्थानीय पररवस्थवतयों के ऄनुरूप अिश्यक कदमों को ईठाये
जाने के दौरान राज्य सरकार काया करती रहेगी तथा विधानसभा भी ऄवस्तत्ि में बनी रहेगी।
o स्थानीय अपातकाल को लागू ककया जाना ऄनुच्छेद 355 के तहत प्राप्त ऄवधदेश के ऄंतगात
पूरी तरह से िैध है। आस सन्दभा में संघ सूची की प्रविवष्ट 2A वजसके ऄन्तगात ककसी भी राज्य
में नागररक प्रशासन की सहायता हेतु संघ के द्वारा सशस्त्र बलों की तैनाती की जाती है तथा
राज्य सूची की प्रविवष्ट 1 महत्िपूणा है जो राज्य में लोक व्यिस्था बनाये रखने से संबंवधत है।

ऄतः यह स्पष्ट है कक ऄनुच्छेद 355 न के िल संघ पर एक दावयत्ि अरोवपत करता है बवल्क


आस दावयत्ि को पूरा करने के वलए सभी अिश्यक युवियुि कदमों को ईठाने तथा साधनों के
प्रयोग हेतु भी प्रावधकृ त करता है।
o आस शवि का प्रयोग करने के वलए एक स्ितंत्र संविवध के द्वारा कानूनी ढांचे का वनमााण ककया
जाना चावहए। आस सन्दभा में अपदा प्रबंधन ऄवधवनयम 2005 तथा सांप्रदावयक चहसा और

पुनिाास विधेयक की रोकथाम, 2006 के मॉडल से प्रेरणा ली जा सकती है।


o ऄनुच्छेद 355 के ऄन्तगात ईवल्लवखत "बाहय अिमण" या "अंतररक ऄशांवत" के दायरे रहते
हुए ऄसाधारण पररवस्थवतयों को सुस्पष्ट करते हुए आसे एक विशेष क़ानून में समावहत ककया
जाना चावहए। ऐसी पररवस्थवतयों में वनम्नवलवखत विषय शावमल हो सकते हैं:
(a) ऄलगाििादी तथा चहसा की ऐसी ऄन्य घटनाएाँ जो भारत की संप्रभुता और ऄखंडता के समक्ष
खतरा ईत्पन्न करें ।
(b) सांप्रदावयक या विवभन्न धार्तमक गुटों के बीच चहसा जो देश की धमावनरपेक्षता के वलए खतरा
हो।

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(c) प्राकृ वतक या मानि वनर्तमत अपदाएं वजनकी प्रकृ वत ऐसी हो कक आनका सामना करना राज्य
की क्षमता से परे हो।
 राज्य को वनदेश देने की संघ की शवि के संबध
ं में
o यद्यवप राज्यों ने समय-समय पर ऄनुच्छेद 256 और 257 के तहत संघ द्वारा प्रयोग की जाने
िाली आन शवियों पर अपवत्त व्यि की हैं, क्योंकक ये राज्यों की स्िायत्तता के वलए न के िल
घातक हैं बवल्क एक संघीय व्यिस्था के वलए भी हावनकारक हैं। लेककन, राज्यों द्वारा की गयी
ये अपवत्तयााँ मात्र आन प्रािधानों में संशोधन का अधार नहीं हो सकती। ऄनुच्छेद 256 और
257 का सुरक्षा िाल्ि के रूप में महत्त्ि है। भले ही आनका िास्ति में कभी प्रयोग न ककया
जाये, ककन्तु कफर भी आसे बनाए रखा जाना अिश्यक है।
o हाल के ऄनुभिों से ईपयुाि प्रािधानों की साथाकता वसि होती है जहां कें द्र को कु छ क्षेत्रों में
सांप्रदावयक चहसा या विद्रोह को रोकने के वलए वनदेश देना पड़ा।
o आस सन्दभा में यह प्रश्न ऄनुत्तररत ही रह जाता है कक यकद कें द्र द्वारा कदए गए वनदेशों का
राज्यों के द्वारा गैर-ऄनुपालन ककया जाता है तो ऐसी वस्थवत में क्या ककया जाना चावहए।
हालााँकक, संविधान में आस वस्थवत के वलए कोइ स्पष्ट प्रािधान नहीं ककये गए हैं ककन्तु,
ऄनुच्छेद 356 का प्रयोग एक स्िाभाविक समाधान प्रतीत होता है।वनदेशों के गैर ऄनुपालन
की वस्थवत में ऄनुच्छेद 356 का प्रयोग िास्ति में एक चरम ईपाय है।
o मौजूदा समय एिं व्यिस्था में ऐसी घटनािम के घरटत होने की वस्थवत में यह समझना सम्भि
नहीं है कक संविधान वनमााताओं ने आन पररवस्थवतयों में ईपचारात्मक प्रािधानों का ईल्लेख
क्यों नहीं ककया।
o आस सन्दभा में राज्यों की स्िायत्तता का सम्मान करने िाली स्िस्थ परम्पराओं के पालन तथा
संघ की ओर से आस शवि का संयवमत प्रयोग, राज्यों द्वारा व्यि की गइ चचता को दूर करने
की कदशा में एक दीघाकावलक समाधान हो सकता है।
o एक ऄन्य संबंवधत मुद्दा, ऄनुच्छेद 256 में प्रयुि "विद्यमान विवधयााँ" (existing laws)
िाक्यांश के बारे में है। आसमें यह ईल्लेख है कक प्रत्येक राज्य की कायापावलका शवि का आस
प्रकार प्रयोग ककया जाएगा वजससे संसद द्वारा बनायी गइ विवधयों का और ऐसी विद्यमान
विवधयों का, जो ईस राज्य में लागू हैं, ऄनुपालन सुवनवित हो।
o विद्यमान विवधयों के ऄन्तगात राष्ट्रपवत के ऄध्यादेश और संबवं धत राज्य के वलए लागू
ऄंतरााष्ट्रीय संवधयााँ तथा परं परागत ऄंतरााष्ट्रीय कानूनों सवहत ऄन्य कानून अते हैं। विवध का
शासन सभी कानूनों के कायाकारी ऄनुपालन की मांग करता है।
o एक प्रश्न यह ईठाया गया है कक क्या ऄनुच्छेद 257(3) के दायरे का विस्तार ककया जाना
चावहए वजसके ऄन्तगात रे लिे के संरक्षण हेतु संघ की शवि का िणान ककया गया है।
o यह सुझाि भी कदया जा रहा है कक आसमें रे लिे के ऄलािा ऄन्य प्रमुख प्रवतष्ठानों जैसे कक
प्रमुख बांध, ऄंतररक्ष स्टेशन, परमाणु प्रवतष्ठान, संचार कें द्र अकद को भी आस प्रािधान के
ऄंतगात शावमल करना चावहए। फलस्िरूप राज्यों को वनदेश देने की संघ की कायाकारी शवि
का भी विस्तार हो जाएगा। आसके ऄंतगात संघ सरकार की ऐसी पररसम्पवत्तयां वजन्हें संघ के
द्वारा राष्ट्रीय महत्त्ि का घोवषत ककया गया है, का संरक्षण करना राज्यों के दावयत्ि के रूप में
िर्तणत ककया गया है। आस िम में ऄनुच्छेद 257(3) को तदनुसार संशोवधत करना होगा।
 राज्यों के बीच समन्िय, कें द्र-राज्य संबध
ं तथा ऄंतरााज्यीय पररषद् के संबध
ं में
o संघिाद िस्तुतः विविधता का प्रबंधन करने के वलए एक जीिंत ऄिधारणा है। संघिाद को
साकार करने हेतु ऄन्य संस्थागत तंत्र स्थावपत ककये जाने चावहए।तभी आसके माध्यम से
विवभन्न घटक आकाआयों के बीच तथा संघ एिं राज्यों के बीच सहयोग एिं समन्िय सुवनवित
ककया जा सके गा।

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o सैिावन्तक स्तर पर सहकारी संघिाद को स्िीकृ त करना सरल है। ककन्तु, व्यािहाररक रूप से
सरकार के सभी स्तरों पर परामशा के पयााप्त साधनों के वबना आसका कियान्ियन करठन है।
o संविधान में आस ईद्देश्य की पूर्तत हेतु के िल सीवमत संस्थागत व्यिस्थाएं प्रदान की गयी हैं। यह
एक विसंगवत है कक संविधान द्वारा प्रदत्त व्यिस्थाओं का भी पयााप्त ईपयोग नहीं ककया गया
है। आस संदभा में, अयोग ने ऄनुच्छेद 263(A) से 263(C) में िर्तणत सभी कायों के वलए
ऄंतरााज्यीय पररषद् को एक िाआब्रेंट फोरम बनाने के वलए आसके सुदढ़ृ ीकरण तथा मुख्य धारा
में लाने एिं वनयवमत बनाने की वसफाररश की है।
o हालांकक यह ऄनुच्छेद पररषद् को स्ियं वििाद वनपटाने की शवि नहीं प्रदान करता है, ऄवपतु
यह के िल वििादों की जांच के पिात् आनके वनपटारे हेतु सलाह देने के संबंध में है।
o ऄतः पररषद् को ऄनुच्छेद 263(A) में वनधााररत शवियों और कायों को प्रदान ककया जाना
चावहए। आसके माध्यम से पररषद् खंड (B) और (C) में िर्तणत कायो को प्रभािी तथा ऄथापण
ू ा
रूप से संपन्न कर सके गी।
o आसके ऄवतररि, पररषद् का स्ियं का ऄधा-न्यावयक शवियों से युि विशेषज्ञ सलाहकारी
वनकाय या प्रशासवनक न्यायावधकरण होना चावहए। जो अिश्यकता पड़ने पर तथा मांगे जाने
पर पररषद् को वसफाररशें दे सके ।
o संक्षेप में, संघीय वसिांतों और स्िस्थ संिैधावनक परम्पराओं के ऄनुरूप सभी ऄंतरााज्यीय
मामलों के समाधान हेतु ऄंतरााज्यीय पररषद् का विशेषज्ञ मंच के रूप में प्रयोग करना ितामान
पररदृश्य में ऄवनिाया हो गया है।
o यकद पररषद् को तकनीकी और प्रबंधन में विशेषज्ञ कमाचारी ईपलब्ध कराये जाये तथा एक
स्ितंत्र संिैधावनक संस्था के रूप में काया करने की स्िायत्तता प्रदान की जाये तो यह सहमवत
वनमााण एिं वििादों के स्िैवच्छक समाधान का सिोत्तम मंच वसि हो सकती है।
o आसे ऄपने प्रावधकार का ईपयोग करने हेतु पयााप्त संसाधन ईपलब्ध कराए जाने चावहए।
पररषद् को यह ऄवधकार होना चावहए कक ऄपने दावयत्िों के वनिाहन की प्रकिया में यह
सरकारों और ऄन्य सािाजवनक वनकायों के ऄलािा नागररक समाज को भी सवम्मवलत कर
सके ।
o आसकी बैठकें वनयवमत रूप से होनी चावहए। प्रत्येक बैठक हेतु पयााप्त तैयारी के साथ एजेंडे को
वनवित ककया जाना चावहए वजसमें वििाद में शावमल पक्षों के द्वारा समझौते के चबदुओं के
साथ ही ईनके द्वारा ऄपनाइ गइ वस्थवत का िणान होना चावहए।
o पररषद् के सवचिालय में संघ और राज्यों के संयुि कमाचाररयों को अत्मविश्वास और समन्िय
बढ़ाने के वलए प्रेररत ककया जा सकता है। सहमवत पर पहुाँचने ऄथिा मतभेदों को कम करने
हेतु ऄंतरााष्ट्रीय संबंधों तथा न्यावयक प्रकियाओं में प्रयोग होने िाले समझौते, मध्यस्थता तथा
वििाचन जैसी तकनीकों का प्रयोग पररषद् की सवचिालय प्रकियाओं में ककया जाना चावहए।
o आन सभी प्रयासों के माध्यम से विवभन्न राज्यों तथा ईनकी सरकारों के मध्य सामंजस्यपूणा
तथा समरसतापूणा संबंधों का विकास हो सके गा। ऄंततः, ऄंतरााज्यीय और कें द्र-राज्य मतभेदों
के प्रबंधन के वलए एक विश्वसनीय, शविशाली और वनष्पक्ष तंत्र का विकास करने हेतु अयोग
ने ऄनुच्छेद 263 में ईपयुि संशोधनों की वसफाररश की है।
 क्षेत्रीय पररषदों और मंवत्रयों के ऄवधकार प्राप्त सवमवतयों (Zonal Councils and
Empowered Committees of Ministers) के संबध
ं में
o िस्तुतः आस अयोग की वनयुवि के पूिा ही कें द्र और राज्यों के मध्य सिासम्मवत के वलए ऄवधक
वनकायों के गठन की अिश्यकता ईत्पन्न हो गयी। क्योंकक यह धारणा स्थावपत होती जा रही
थी कक शासन ऄवधकावधक कें द्रीकृ त होता जा रहा है और राज्य ऄपने वलए वनयत क्षेत्रों में
स्िायत्तता खो रहे हैं।
o जबकक विधायी शवियां स्पष्ट रूप से सीमांककत हैं तथा वित्तीय संबंधों की वित्त अयोग द्वारा
अिवधक समीक्षा की जाती है। यही कारण है कक आसी क्षेत्र में समन्िय के वलए ऄवधक मंचों
की अिश्यकता महसूस की जा रही है।

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o राज्य पुनगाठन ऄवधवनयम, 1956 के तहत पांच क्षेत्रीय पररषदों का गठन िस्तुतः ईभरते हुए
क्षेत्रीय वििादों के समाधान एिं बढ़ती क्षेत्रीय और सांप्रदावयक भािनाओं जैसी समस्याओं पर
सहयोग एिं सामंजस्य को बढ़ािा देने के वलए ककया गया। तत्पिात, ईत्तर पूिी पररषद् को
ईत्तर पूिा पररषद् ऄवधवनयम, 1971 के तहत स्थावपत ककया गया।
o आनमें से प्रत्येक क्षेत्रीय पररषद् में संबंवधत राज्यों के मुख्यमंत्री सदस्य के रूप में तथा कें द्रीय
गृह मंत्री ऄध्यक्ष के रूप में शावमल होते हैं। संबंवधत राज्यों द्वारा प्रस्तुत एजेंडे के साथ क्षेत्रीय
पररषदों की िषा में कम से कम दो बार बैठक होनी चावहए ताकक आन बैठकों के माध्यम से
ऄंतरााज्यीय संबंधों पर प्रभाि डालने िाली नीवतयों और मुद्दों के संबंध में ऄवधकतम समन्िय
सुवनवित ककया जा सके । एक सशि ऄंतरााज्यीय पररषद् का सवचिालय क्षेत्रीय पररषदों के
सवचिालय के रूप में भी काया कर सकता है।
o राजकोषीय मामलों पर ऄंतरााज्यीय समन्िय हेतु राज्यों के वित्त मंवत्रयों की ऄवधकार प्राप्त
सवमवत एक सफल प्रयोग सावबत हुइ है। ऄन्य क्षेत्रों में भी समान मॉडल को संस्थागत बनाने
की अिश्यकता है।
o आसी प्रकार उजाा, खाद्य, वशक्षा, पयाािरण और स्िास्थ्य जैसे क्षेत्रों में जहां विकास की समान
अिश्यकता तथा विभेकदत ईतरदावयत्ि की वस्थवत हैं, नीवतयों का समन्िय करने के वलए
मुख्यमंवत्रयों के एक फोरम का गठन ककया जा सकता है।वजसकी ऄध्यक्षता चिीय प्रणाली के
तहत विवभन्न राज्यों के मुख्यमंत्री द्वारा की जाएगी। वनदेशक वसिांतों का कायाान्ियन
मुख्यमंवत्रयों के फोरम के वलए एक स्थायी एजेंडा हो सकता है जो नीवत अयोग को आन
वनदेशों से संबंवधत वसफाररशें कर सकते हैं। दृष्टव्य है कक नीवत वनदेशक तत्त्ि संयुि राष्ट्र द्वारा
वनधााररत सहस्रावब्द विकास लक्ष्यों से पूणा साम्य रखते हैं।
o यह ध्यान देने योग्य है कक संयुि राज्य ऄमेररका, ऑस्िेवलया और कनाडा जैसे ऄन्य संघों में
भी सािाजवनक नीवत विकास और सुशासन संबंधी मामलों में समन्िय सुवनवित करने हेतु
आसी प्रकार के फोरमों की स्थापना की गयी है। मुख्यमंवत्रयों के आस फोरम को ऄंतरााज्यीय
पररषद् द्वारा भी सहयोग प्रदान ककया जा सकता है।
 ऄंतरााज्यीय नकदयों के जल से संबवं धत वििादों के समाधान के संबध
ं में
o ऄंतरााज्यीय जल वििादों से संबंवधत ितामान मामलों में फै सले की वस्थवत स्पष्ट रूप से
ऄसंतोषजनक है, क्योंकक आसके द्वारा शायद ही कभी परस्पर स्िीकार योग्य वनणाय प्रस्तुत
ककया गया है। आसवलए कानून में पररितान एिं प्रकिया में बदलाि की अिश्यकता है।
 बेहतर प्रशासन के वलए ऄवखल भारतीय सेिाएं और कें द्र-राज्य सहयोग के संबध
ं में
o ऄवखल भारतीय सेिाएं भारतीय संविधान की ऄनूठी विशेषता हैं। ऄवखल भारतीय सेिाओं
को स्थावपत करने के व्यापक ईद्देश्यों में संघ और राज्यों के बीच बेहतर समन्िय, प्रशासन में
एक समान मानकों को बढ़ािा देना, संघ के प्रशासवनक ऄवधकाररयों को क्षेत्रीय
िास्तविकताओं के प्रत्यक्ष ऄनुभि में सक्षम बनाना, राज्य प्रशासवनक मशीनरी को व्यापक
दृवष्टकोण से युि सिोत्तम प्रवतभाओं को ईपलब्ध कराना अकद शावमल हैं।
o आसके ऄवतररि भती में राजनीवतक प्रभाि को कम करना तथा प्रशासन में ऄनुशासन और
वनयंत्रण को बढ़ािा देना भी आन सेिाओं को ऄपनाने के ईद्देश्य हैं।
o आन ईद्देश्यों के महत्ि को ध्यान में रखते हुए अयोग ने स्िास्थ्य, वशक्षा, आं जीवनयररग और
न्यायपावलका जैसे कु छ ऄन्य क्षेत्रों में ऄवखल भारतीय सेिाओं के गठन की पुरजोर वसफाररश
की है।स्ितंत्रता से पूिा भी आनका ऄवस्तत्ि था तथा प्रशासन की गुणित्ता में िृवि हेतु आनके
द्वारा महत्िपूणा योगदान कदया गया था।
o ऄवखल भारतीय सेिाओं के प्रशासन से जुड़े कइ मुद्दे हैं वजन पर प्रशासवनक सुधार अयोग की
ररपोटा में ईवचत रूप से चचाा की गयी है तथा वजनकी ऄत्यवधक प्रासंवगकता भी है। हालांकक,
अयोग के द्वारा शासन के तीसरे स्तर (पंचायत) के प्रारं भ होने के संदभा में ऄवखल भारतीय
सेिाओं के ईपयुि एकीकरण की वसफाररश की गयी है। पुनः स्थानीय वनकायों की क्षमता को
बढ़ाने और वनयोजन प्रकिया को मजबूत करने की अिश्यकता है। ऐसे में ऄवखल भारतीय
सेिाओं के ऄवधकारी एक प्रमुख भूवमका वनभा सकते हैं।

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o एक ऄन्य महत्िपूणा विषय राज्य सरकारों और स्थानीय वनकायों के ऄवधकाररयों की ऄवखल
भारतीय सेिाओं में प्रिेश की व्यिस्था है।सभी तीन स्तरों पर संरचनात्मक एकीकरण की
अिश्यकता है, वजसके ऄन्तगात ऄवखल भारतीय सेिाओं में शावमल ककये जाने िाले पदों के
स्तर का स्पष्ट वनधाारण (demarcation), िस्तुवनष्ठ वनष्पादन मूल्यांकन प्रणाली (objective
performance appraisal system), कररयर के व्यिवस्थत विकास जैसे मुद्दे सवम्मवलत हैं।
आसके ऄवतररि, आस प्रकिया के ऄंतगात पेशेिर दृवष्टकोण का वनमााण करने संबंधी योजनाओं
का वनमााण तथा पोचस्टग और स्थानान्तरण की एक तका संगत प्रणाली का विकास ककया जाना
चावहए।
o कै वबनेट सवचि की ऄध्यक्षता में कार्तमक सवचि और राज्यों के संबंवधत मुख्य सवचिों को
शावमल कर एक सलाहकार पररषद् का गठन होना चावहए।
 राज्य सभा का राज्यों के ऄवधकारों की रक्षक की भूवमका में होने के संबध
ं में
o संघिाद का संपण ू ा सार शासन में शवि का एक ईवचत संतुलन बनाए रखने में है तथा आस
संबंध में राज्य सभा की भूवमका महत्िपूणा है। आसमें कोइ संदह े नहीं कक भारतीय संघात्मक
प्रणाली में राज्यसभा संघ के राज्यों का प्रवतवनवधत्ि करती हैं तथा संघीय नीवत-वनमााण की
प्रकिया में राज्यों के ऄवधकारों की रक्षा करना, आसका दावयत्ि है।
o अयोग का मानना है कक ईच्च सदन का राज्यों के एक प्रवतवनवध मंच के रूप में काया करने के
मागा में ऄनेक बाधक तत्ि हैं। आसकी संरचना और कायाप्रणाली को बावधत करने िाले कारकों
को दूर ककया जाना चावहए, भले ही आसके वलए संिैधावनक प्रािधानों में संशोधन करना पड़े।
o यह तब और ऄवधक महत्िपूणा हो जाता है जब कें द्रीकरण की प्रिृवत्त मजबूत तथा राजनीवत
विखंडकारी होती जा रही हो। ऐसी वस्थवत में राज्यसभा का राज्यों के प्रवतवनवध के रूप में
भूवमका वनभाना और भी ऄवधक महत्त्िपूणा है।
o जब भी एक या एक से ऄवधक राज्यों के संबंध में संघ की नीवतयां वनर्तमत की जाती हैं, तो यह
ईवचत होगा कक संबंवधत राज्यों के प्रवतवनवधयों से जुड़े राज्यसभा की सवमवतयों में शावमल
सदस्यों को राज्यों और संघ को स्िीकाया िैकवल्पक समाधानों को प्रस्तुत और चचाा करने एिं
अने की ऄनुमवत दी जानी चावहए।
o आसी प्रकार खवनज समृि राज्यों या पहाड़ी राज्यों को क्षवतपूर्तत प्रदान करने पर राज्यसभा की
सवमवतयों में बातचीत की जा सकती है। आसी तरह, यकद संघ सरकार ऄन्य देशों के साथ संवध
या समझौते करती है तो आनसे प्रभावित होने िाले राज्यों को सहायता प्रदान करने के ईद्देश्य
से राज्यसभा के मंच का ईपयोग ककया जा सकता है।
o िास्ति में, राज्यसभा, वििादास्पद और प्रशासवनक संबंधों में संघ और राज्यों के बीच ईभरने
िाले तनाि के चबदुओं के वलए स्िीकाया समाधानों पर संिाद का ऄिसर प्रदान करती है।
 राज्यसभा में राज्यों के समान प्रवतवनवधत्ि के संबध
ं में
o शासन के सभी संस्थाओं में समानता और समान प्रवतवनवधत्ि के वसिांत के साथ ही राज्यों के
वलए बहुदलीय विविधता पूणा राजनीवत, वजतना व्यविगत स्तर पर प्रासंवगक है ईतना ही
राज्यों के वलए भी।
o ठीक आसी प्रकार, समानता के विचार को स्िीकार करने का तात्पया संघ से राज्यों को होने
िाले राजकोषीय हस्तांतरण के मामले में वपछड़े राज्यों के पक्ष में सकारात्मक भेदभाि का
विचार भी महत्िपूणा है। ऄन्य संघात्मक व्यिस्थाओं में (जैसे संयुि राज्य ऄमेररका), ईच्च
सदन में संघीय आकाआयों को ऄपने क्षेत्र और जनसंख्या के अकार में वभन्नता के बािजूद एक
समान स्थान प्रदान ककया गया है।
o भारत मे लोकसभा में सीटों की संख्या पहले से ही जनसंख्या के ऄनुपात में अिंरटत की गयी
हैं। ऄतः राज्यसभा के स्तर पर आस वसिांत को दोहराने की अिश्यकता नहीं महसूस की गइ।
o राज्यों के बीच सत्ता का संतल
ु न िांछनीय है। यह राज्यसभा में प्रवतवनवधत्ि की समानता से
ही संभि है। राज्यसभा की पररकल्पना मूल रूप से राज्यों के प्रवतवनवध सदन के रूप में की
गयी है और यकद यह आस रूप काया करने में विफल रही है, तो यह गठबंधन राजनीवत की
प्रकृ वत और दलीय व्यिस्था के विकास के कवमयों के कारण हैं।

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o संघीय संतल ु न के मूल ईद्देश्य को प्राप्त करने के वलए राज्यसभा की काया प्रणाली में सुधार
ककया जाना िांछनीय है। राज्यसभा में राज्यों की जनसंख्या में वभन्नता के बािजूद समान
स्थान प्रदान करने के वलए संबंवधत प्रािधानों में संशोधन ककया जाना चावहए।
o कु लदीप नैय्यर बनाम भारत संघ (2006) िाद में राज्यसभा की संघीय व्यिस्था में राज्यों के
सदन के रूप में भूवमका को ख़ाररज करने का वनणाय दोषपूणा है और समीक्षा योग्य है।
o आस सन्दभा में, संसद को जनप्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम के खंड 3 को पुनस्थाावपत करना चावहए
क्योंकक यह मूल रूप से साझेदारी युि शासन में संघीय संतल
ु न को स्थावपत करता है।
o राज्यसभा की सदस्यता के वलए चुनाि लड़ने िाले प्रत्याशी की ईस राज्य की भूवम से
िास्तविक संबिता होनी चावहए जैसा कक जनप्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम द्वारा वनधााररत ककया
गया था (2003 में संशोधन के माध्यम से यह ऄवनिायाता समाप्त कर दी गयी)। यह प्रािधान
आसकी ऄनुभूवत कराने के वलए अिश्यक हैं, कक राज्य राष्ट्रीय नीवत वनमााण प्रकिया एिं
शासन में बराबर के भागीदार हैं।

 ऄनुच्छेद 246 और ऄनुच्छेद 162 के ऄनुच्छेद 243G एिं 243W के साथ संबध
ं ों के संदभा में

o ऄनुच्छेद 243G (पंचायतों की शवियााँ, प्रावधकार और ईत्तरदावयत्ि) और 243W


(नगरपावलकाओं की शवियााँ, प्रावधकार और ईत्तरदावयत्ि) का वनिाचन कइ बार आस प्रकार
ककया जाता है वजससे यह ऄथा वनकलता है कक स्थानीय वनकायों के शवियों और कायो का
हस्तांतरण राज्यों के वििेकावधकार का विषय है।
o आस प्रकार के वनिाचन, आस सन्दभा में ककये गए संिैधावनक संशोधन तथा सम्पूणा ईद्देश्य को
वनरथाक वसि कर देते हैं।
o यद्यवप यह राज्यों के वििेकावधकार पर छोड़ा गया है कक ककन विषयों से संबंवधत शवियों
और ईत्तरदावयत्िों को िे हस्तांतररत करना चाहते हैं। ककन्तु, ईन्हें यह वनणाय लेने का
ऄवधकार नहीं है कक िे ककसी भी विषय तथा आससे संबंवधत शवियों और कायो का स्थानीय
वनकायों को हस्तांतरण न करे । स्थानीय वनकायों को "स्ि-शासन" की संस्था का दजाा प्रदान
ककया गया है। ककन्तु, संविधान में आनके ऄवधकारक्षेत्र को स्पष्ट रूप से पररभावषत नहीं ककया
गया है।
o स्थानीय वनकायों को शवियों के हस्तांतरण का दायरा ईपयुि संशोधनों के माध्यम से
संिैधावनक रूप से पररभावषत ककया जाना चावहए। ऄन्यथा विकें द्रीकृ त शासन की ऄिधारणा
ऄवनवित काल तक िास्तविकता में रूपांतररत नहीं हो पायेगी।
o यह दृवष्टकोण "सहायक (subsidiarity) के वसिांत” पर अधाररत होनी चावहए जो िास्ति
में संिैधावनक संशोधन की योजना में वनवहत है। राज्य सरकार को स्थानीय स्िशासन से
संबंवधत नीवतगत मामलों तक ही ऄपने अप को सीवमत कर लेना चावहए।
o ऄनुच्छेद 246(3) (राज्यसूची में प्रगवणत विषय पर राज्यों की विधायी शवि) और 162
(राज्यसूची में प्रगवणत विषय पर राज्यों की कायाकारी शवि) का 73िें और 74िें संविधान
संशोधनों के अलोक में वनिाचन करना होगा।
o आसी रूप में पंचायत और नगरपावलका जैसी संस्थाओं को स्िशासन की संस्थाओं के रूप में
काया करने का ईवचत ऄथा और ऄवभव्यवि प्रदान की जा सके गी।
 न्यावयक बजट में कें द्र-राज्य वहस्सेदारी पर सुझाि देने हेतु न्यावयक पररषदों के संबध
ं में

o न्याय व्यिस्था ऄपने दावयत्िों का प्रभािी ढंग से वनिाहन कर सके , यह सुवनवित करना संघ
और राज्य सरकारों की संयुि वजम्मेदारी है।जहां सिोच्च न्यायालय और ईच्च न्यायालयों के
प्रशासवनक व्यय िमशः संघ और राज्यों की संवचत वनवध पर भाररत होते हैं, िहीं ऄधीनस्थ
न्यायालयों के वलए संविधान द्वारा ऐसी कोइ वित्तीय व्यिस्था नहीं प्रदान की गयी है।
o न्यावयक योजना तथा बजट वनमााण का काया न्यायपावलका और कायापावलका के द्वारा संयुि
रूप से ककया जाना चावहए। आस हेतु ककसी संयुि मंच की स्थापना की जा सकती है।

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o कें द्रीय विवध एिं न्याय मंत्रालय द्वारा स्थावपत एक विशेषज्ञ सवमवत ने आस ईद्देश्य के वलए
राज्य और संघीय स्तर पर एक "न्यावयक पररषद्" की स्थापना की वसफाररश की है। अयोग
ने आस वसफाररश का समथान ककया है।
o आन पररषदों को विधान मंडल द्वारा ऄनुमोकदत ककये जाने हेतु न्यावयक बजट ही तैयार नहीं
करना चावहए ऄवपतु संघ और राज्यों के बीच सूची I, II और III के ऄंतगात न्यायालयों के
कामकाज के अंकड़ों के अधार पर बजट संबंधी व्यय को अनुपावतक रूप से साझा करने हेतु
ऄनुशस ं ा भी करनी चावहए।
o यद्यवप आसका ऄथा यह कदावप नहीं है कक राज्यों को ऄधीनस्थ न्यायालयों पर खचा होने िाले
संपूणा व्यय को ईठाना पड़े। दृष्टव्य है कक पहले ही राज्यों को सूची I और सूची III के तहत
संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करने के वलए पयााप्त संसाधनों का व्यय करना पड़ता
है
o ऄंत में अयोग का मानना है कक संघ सरकार को संघीय कानूनों से ईत्पन्न िादों के प्रभािी
वनणायन हेतु न्यायालयों की अिश्यक संख्या का अकलन करना चावहए। संविधान के
ऄनुच्छेद 247 के तहत वनधााररत ऄवतररि न्यायालयों की स्थापना करना चावहए।
 संघीय शवि संतल ु न पर वनरं तर जोर देने की अिश्यकता के संदभा में
o आस प्रश्न पर कक संविधान द्वारा वनधााररत मागा पर प्रशासन को अगे बढ़ाने के वलए क्या एक
नया शवि संतुलन अिश्यक है। संविधान वनमााता देश की जनता की बहुलिादी पहचान और
राजनीवत की विविध ऐवतहावसक परं पराओं को ध्यान में रखते हुए ईवचत ही आस वनष्कषा पर
पहुंचे कक एक संघीय प्रणाली ऄके ले ही देश को संयुि, लोकतांवत्रक गणराज्य के रूप में
विकास के पथ पर ऄग्रसर कर सकती है।
o हालांकक अयोग आस तथ्य को लेकर अश्वस्त है कक देश की सुरक्षा अिश्यकताओं के ऄवतररि
ऄन्य विषयों में भी संघ के पक्ष में शवियों का कें द्रण वपछले कु छ िषों में तेजी से बढ़ा है।
o आसने विकासात्मक मामलों में भी ऄनािश्यक रूप से ईच्च-कें द्रीकरण की प्रिृवत को बढ़ाया है।
संघीय संिैधावनक परम्पराओं में ईभरते हुए आन विरोधाभासों को न के िल संघ-राज्य संबंधों
को बेहतर बनाने के वलए ऄवपतु वजस एकता और ऄखंडता को बनाए रखने के वलए संघ के
पक्ष में शवि संतुलन की पररकल्पना की गइ थी, ईसे सुरवक्षत रखने के वलए भी आन्हें दूर ककया
जाना चावहए।
o 73िें और 74िें संविधान संशोधनों के पिात् शवि संतल
ु न की यह ऄिधारणा और भी
ऄवधक महत्िपूणा हो गयी है।
o आसे वित्त अयोग द्वारा प्रदत्त वित्तीय संशाधनो के द्वारा काफी हद तक प्रशासवनक व्यिस्थाओं
के माध्यम से पूरा ककया जा सकता है।
o सुरक्षा संबंधी अिश्यकताएं संघ को ऄवधक शविशाली बनाने की ऄिधारणा पर जोर देती
हैं। िहीं विकास के मोचे (वशक्षा, स्िास्थ्य अकद) पर राज्यों और स्थानीय स्िशासी संस्थाओं
की स्िायत्तता का सम्मान करना चावहए।
o संघ को शवियों और कायों को कें द्रीकृ त करने की प्रिृवत्त से सािधान रहना चावहए। के न्द्र की
भूवमका को नीवतयों का वनमााण करने, वित्त पोषण करने एिं समन्िय को सुगम बनाने तक
सीवमत होना चावहए ताकक राज्यों और स्थानीय वनकायों के माध्यम से विकें द्रीकरण की
संकल्पना को पूणारूपेण साकार ककया जा सके ।
 प्रशासवनक संबधं ों को सरल बनाने के संबध
ं में
o संघ की राज्यों की कायापावलका शवियों से संबंवधत मामलों में राज्यों को वनदेश देने की शवि
और आसका स्िरुप ऄवधक गंभीर प्रकृ वत का मुद्दा है।
o आस सन्दभा में राज्यों के विचारों का परीक्षण करने के पिात् अयोग आस वनष्कषा पर पहुंचा
कक ऄनुच्छेद 256 और 257 के तहत संघ की राज्यों को वनदेश देने की शवि कायम रहनी
चावहए। आन शवियों के कारण ही राज्यों द्वारा संघ सरकार के विधायी और कायाकारी
शवियों को महत्ि कदया जाता है।
o पररवस्थवतयों की गंभीरता और प्रशासवनक अिश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए यह वनणाय
करने का ऄवधकार संघ के पास होना चावहए कक कौन से वनदेश कब प्रदान ककये जाने चावहए।

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 मुख्यतः वित्त अयोग द्वारा वनधााररत ककये जाने िाले राजकोषीय संबध
ं ों के बारे में
o अयोग का मानना है कक वित्त अयोगों के माध्यम से राजकोषीय हस्तांतरण की संिैधावनक
योजना को और मजबूत करने की अिश्यकता है तथा ऄन्य रूपों में ककये जाने िाले
हस्तांतरण को कम ककया जाना चावहए।
o एक व्यिस्था यह भी हो सकती है कक वित्त अयोग को एक वनयवमत सवचिालय के साथ
स्थायी वनकाय बना कदया जाये, वजसके सभी सदस्य का कायाकाल प्रत्येक पांच िषों में बदल
कदया जाए।
o संघ के द्वारा वित्त अयोग के गठन की प्रकिया को आस प्रकार वनधााररत की जानी चावहए कक
आसके गठन एिं आसके द्वारा विचार ककये जाने िाले विषयों को वनधााररत करने में राज्यों को
भी भागीदार बनाया जा सके ।
 ऄंतरााज्यीय पररषद् को मजबूत और सशि बनाने की अिश्यकता के संबध ं में
o ऄंतर-सरकारी संबंधों के समन्िय हेतु एक मंच वनमााण के मुद्दे पर पुंछी अयोग ने ऄंतरााज्यीय
पररषद् को ऄंतरााज्यीय संबंधों में महत्िपूणा भूवमका वनभाने िाली संस्था के रूप में मजबूत
बनाने और सकिय करने की अिश्यकता है।
o िषा में कम से कम तीन बार आसकी बैठक होनी चावहए।
o यकद ऄंतरााज्यीय पररषद् में अम सहमवत से वनणाय न वलए जा सके तब भी यहााँ राष्ट्रीय वहत
के मामलों में बहुमत से वनणाय वलया जा सकता है।
o ऄन्य क्षेत्रों में, मंवत्रयों की एक ऄवधकार प्राप्त सवमवत को एक वनधााररत समय-सीमा के भीतर
ऄध्ययन और ररपोटा प्रस्तुत करने के वलए कहा जा सकता है ताकक समस्या को सुलझाने का
ऄवधक स्िीकाया तरीका विकवसत ककया जा सके ।
o पररषद् को आसके फै सले का ऄनुपालन कराने में सक्षम होना चावहए वजसके वलए ईवचत
िैधावनक प्रािधान ककए जाने चावहए।
o सरकार को कें द्र-राज्य संबंधों को सुसंगत बनाने की कदशा में काया करते हुए ऄंतरााज्यीय
पररषद् की पूरी क्षमता का ईपयोग करने हेतु एक ईपयुि योजना तैयार करने पर काया करने
की अिश्यकता है।
o आनमें से कु छ सुझाि बदलती पररवस्थवतयों में ऄत्यंत अिश्यक हो गए हैं। शासन के मुद्दों को
यथासंभि राजनीवतक और प्रशासवनक प्रकियाओं के माध्यम से सुलझाया जाना चावहए न कक
लम्बी ऄिवध की न्यायालयी प्रकिया के माध्यम से।
o ऄंतरााज्यीय पररषद् आस ईद्देश्य की पूर्तत हेतु विकवसत की जा सकने िाली सबसे व्यिहाया,
समथा संिैधावनक तंत्र प्रतीत होता है, बशते आसे ईवचत रूप से पुनगारठत ककया जाये तथा
विवधित ऄवधकार प्रदान ककये जायें।
ऄंतरााज्यीय पररषद्
 1990 में राष्ट्रपवत के अदेश के माध्यम से गरठत ऄंतरााज्यीय पररषद् की ितामान वस्थवत आस प्रकार
है:
o पररषद् एक परामशादात्री वनकाय है।
o पररषद् की बैठकों को कै मरे के सामने अयोवजत ककया जाता है।
o बैठक में पररषद् के समक्ष विचार के वलए रखे जाने िाले सभी प्रश्नों का वनणाय सहमवत के
अधार पर ककया जाता हैं।
o वजस विषय पर सहमवत स्थावपत हो गयी है, ईस पर ऄंवतम वनणाय ऄध्यक्ष के द्वारा ककया
जायेगा।
ऄंतरााज्यीय पररषद् को वनम्नवलवखत काया सौंपे गये हैं:
(a) ऐसे विषयों की जांच करना और ईन पर चचाा करना जो आसके समक्ष प्रस्तुत ककये जायें ऄथिा
वजनका संबंध कु छ या सभी राज्यों ऄथिा संघ और एक या ऄवधक राज्यों के ईभयवनष्ठ वहतों
से हैं।
(b) ककसी विषय के संबंध में नीवत और कारा िाइ के बेहतर समन्ियन के वलए ईस विषय तथा
विषय से संबंवधत विशेष वसफाररशें करना।
(c) राज्यों के सामान्य वहत के ऐसे ऄन्य मामलों पर विचार करना वजसे ऄध्यक्ष द्वारा पररषद् में
भेजा जाए।

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o पररषद् को संविधान के ऄनुच्छेद 263(A) में पररकवल्पत काया ऄब तक प्रदान नहीं ककया
गया है ऄथाात् राज्यों के बीच ईत्पन्न होने िाले वििादों पर विचार-विमशा करने और सलाह
देने का काया।
o 2008 में वद्वतीय प्रशासवनक सुधार अयोग ने वसफाररश की थी कक ऄनुच्छेद 263(A) के
तहत ऄंतरााज्यीय पररषद् की संघषा समाधानकताा की भूवमका में पररकल्पना की गइ थी।
पररषद् की आस भूवमका का प्रयोग राज्यों के मध्य या सभी राज्यों या संघों के मध्य वििादों के
प्रभािी ढंग से समाधान हेतु ककया जा सकता है।
o प्रशासवनक सुधार अयोग के द्वारा यह विचार भी व्यि ककया गया कक ऄनुच्छेद 263 के तहत
ककसी मामले की गंभीरता के ऄनुरूप समाधान हेतु सक्षम बनाने के वलए पररषद् की संरचना
को लचीला स्िरुप प्रदान ककया जा सकता है।
o ईच्चतम न्यायालय ने भी संघ और राज्यों से संबंवधत कु छ विशेष प्रकार के वििादों में पररषद्
को न्यावयक भूवमका प्रदान करने का सुझाि कदया है। विशेष रूप से नीवत-वनमााण के ऐसे
मामलों पर जहां अमसहमवत के माध्यम से समाधान की अिश्यकता है। ऄंतरााज्यीय पररषद्
संिैधावनक संस्थाओं के बीच वििाद के संबंध में स्िीकाया समाधान के वलए प्रयास कर सकती
है।
o 1990 के राष्ट्रपवत के अदेश के तहत पररषद् को ऄपनी प्रकियाओं को वनधााररत करने का
ऄवधकार है। हालांकक ईसे वनधााररत प्रकिया पर सरकार की सहमवत भी प्राप्त करनी होगी।
o ऄनुच्छेद 263 के तहत ऄंतरााज्यीय पररषद् को कायाात्मक रूप से पूणा समथा बनाया जाना
चावहए। पररषद् के वलए पूणातः पेशेिर सवचिालय स्थावपत ककया जाना चावहए, वजसे
विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ ही प्रवतवनयुवि के माध्यम से संघ और राज्य के
ऄवधकाररयों द्वारा सहायता प्रदान की जानी चावहए।
o ऄंतरााज्यीय पररषद् के संिैधावनक और ऄधा-न्यावयक कायों को देखते हुए, पररषद् के गठन में,
ऄवखल भारतीय सेिाओं के ऄलािा कानून, प्रबंधन और राजनीवत विज्ञान से संबि विशेषज्ञों
को भी शावमल ककया जाना चावहए।
o प्रस्तावित कानून के माध्यम से ऄंतरााज्यीय पररषद् को सरकारी विभागों से ऄलग एक
संगठनात्मक और प्रबंधन संरचना प्रदान करना चावहए।
2.5. विविध मु द्दे

2.5.1. कु छ राज्यों को विशे ष श्रे णी का दजाा

 विशेष श्रेणी के राज्य की ऄिधारणा को पहली बार 5िें वित्त अयोग द्वारा 1969 में प्रस्तुत ककया
गया था।
 विशेष राज्य का दजाा प्रदान करने के पीछे वनवहत तका यह था कक कु छ राज्यों में ऄन्तर्तनवहत
विशेषताओं के कारण ईनका संसाधन अधार कम हैं और विकास के वलए संसाधन जुटाना ईनके
वलए संभि नहीं है।
 विशेष राज्य के दजे के वलए कु छ अिश्यक शतें वनधााररत की गयीं:
o पहाड़ी और दुगाम क्षेत्र;
o कम जनसंख्या घनत्ि या अकदिासी अबादी का बड़ा वहस्सा;
o पड़ोसी देशों के साथ सीमा पर सामररक स्थान;
o अर्तथक और ढांचागत वपछड़ापन तथा
o राज्य वित्त की ऄलाभकारी प्रकृ वत।
 विशेष राज्य के दजे पर वनणाय करने का ऄवधकार पहले राष्ट्रीय विकास पररषद् के पास था।
 अंध्र प्रदेश के विभाजन के पिात् से विशेष राज्य के दजे की मांग ने राज्य भर में व्यापक विरोध
प्रदशान तथा संसद में बहस को प्रेररत ककया है।
 यहां यह मांग राज्य के विभाजन के बाद से ईभरी है। जबकक वबहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओवडशा
और राजस्थान द्वारा यह मांग एक लम्बे समय से की जा रही है।

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विशेष श्रेणी िाले राज्य के लाभ
विशेष श्रेणी के राज्य का दजाा वमलने से प्राप्त होने िाले लाभों की प्रकृ वत, कइ राज्यों को आस प्रकार की
मांग करने के वलए प्रेररत करती है। आन्हें वनम्नवलवखत चबदुओं के ऄंतगात देखा जा सकता है:
 सामान्य कें द्रीय सहायता (56.25%) का एक बड़ा वहस्सा 11 विशेष श्रेणी के राज्यों के बीच तथा
शेष (43.75%) 18 सामान्य श्रेणी राज्यों के बीच वितररत ककया जाता है।
 के िल विशेष श्रेणी के राज्यों के वलए विशेष योजना सहायता और विशेष कें द्रीय सहायता ऄनुदान
प्रदान ककया जाता है।
 बाह्य सहायता प्राप्त पररयोजनाओं (EAPs) के वलए विशेष श्रेणी िाले राज्यों को 90 प्रवतशत
सहायता ऄनुदान के रूप में प्रदान की जाती है, जबकक सामान्य श्रेणी िाले राज्यों के वलए, यह
ऊण के रूप में प्रदान की जाती है।
 कें द्र प्रायोवजत योजनाओं में राज्यांश सामान्य श्रेणी के राज्यों की तुलना में विशेष श्रेणी िाले
राज्यों के वलए कम है।
 विशेष श्रेणी िाले राज्यों के वलए ईत्पाद शुल्क में महत्िपूणा ररयायतें ि ऄन्य तरह के कर से छू ट
प्राप्त होती हैं वजससे आन राज्यों की सीमा में ईद्योगों और विवनमााण आकाआयों को अकर्तषत करने में
सहायता वमलती है।
 कें द्रीय कर राजस्ि के बंटिारे के सन्दभा में विशेष राज्यों से कोइ विशेष व्यिहार नहीं ककया जाता
है।
नोट: भारत में कें द्र से राज्यों को संसाधन के अिंटन के तरीकों को नीचे कदए गए वचत्र के माध्यम से
समझा जा सकता है:

विशेष श्रेणी िाले राज्यों की कायाप्रणाली से संबवं धत मुद्दे


 विशेष राज्य का दजाा प्रदान करने का अधार बहस का विषय रहा है।
 पूिा ऄनुभिों से यह पता चलता है कक आस बात की कोइ गारं टी नहीं है कक विशेष राज्य का दजाा
प्राप्त होने के बाद भी राज्य की अर्तथक प्रगवत हो पायेगी।
 आसका तात्पया यह है कक अर्तथक विकास के वलए एक सशि अर्तथक नीवत का पालन करने की
अिश्यकता है। विशेष राज्य से संबंवधत विशेषताएं सकारात्मक प्रोत्साहन के रूप में काया कर
सकती हैं, लेककन सब कु छ प्रत्येक राज्य की नीवत पर वनभार करता है।
 14िें वित्त अयोग की वसफाररशों के बाद राज्यों को प्राप्त होने िाला वहस्सा बढ़ गया है। ऄतः
विशेष राज्य की प्रासंवगकता ऄब लगभग पूरी तरह समाप्त हो सकती है।
विशेष िगा के राज्यो की वस्थवत: सरकार के हावलया दृवष्टकोण
आस संबंध में वपछले कु छ िषो में कइ पररितान हुए हैं। आनमें से ऄवधकतर पररितान संघीय बजट 2015-
16 में सवम्मवलत ककए गए थे। आनके पररणामस्िरूप 'विशेष श्रेणी के राज्यों' को प्राप्त होने िाले लाभों
में पयााप्त कमी हुइ है।
 राज्यों को कर-ऄंतरण हेतु के न्द्रीय करों का विभाज्य पूल 32 प्रवतशत से बढ़कर 42 प्रवतशत कर
कदया गया है।
 के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं (CSS) के विस्तार के बाद कु ल योजना सहायता में सामान्य के न्द्रीय

सहायता का ऄंश कम होकर के िल 15 प्रवतशत हो गया है। जबकक यह आन राज्यों को प्राप्त होने
िाली के न्द्रीय सहायता का प्रमुख मागा था।

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 ऄतः ऄब के िल बाह्य सहायता प्राप्त पररयोजनाओं (90 प्रवतशत ऄनुदान) के वलए सहायता प्राप्त
होने के लाभ का अकषाण ही शेष रह जाता है। 'विशेष दजे िाले राज्यों' में बाह्य सहायता प्राप्त
पररयोजनाएाँ बहुत कम हैं।
 संघीय बजट 2015-16 ने त्िररत चसचाइ लाभ कायािम (AIBP) के ऄंतगात अिंटनों को बहुत ही
कम कर कदया है।
 वित्त अयोग ऄपने अिंटनों में विशेष एिं सामान्य िगा के राज्यों के बीच भेद नहीं करता है।
ितामान में 11 राज्यों को विशेष िगा वस्थवत प्राप्त है, ये राज्य हैं - जम्मू और कश्मीर, ईत्तराखंड,
वहमाचल प्रदेश तथा सभी पूिोत्तर राज्य।

2.5.2. नीवत अयोग (NITI AYOG)

 1 जनिरी 2015 को कें द्रीय कै वबनेट द्वारा एक संकल्प पाररत कर नीवत अयोग (नेशनल आं वस्टट्यूट
फॉर िांसफोर्नमग आं वडया) की स्थापना की गयी। यह भारत सरकार का प्रमुख नीवतगत चथक टैंक
है। आसका ईद्देश्य सहकारी संघिाद की भािना को दृढ़ता प्रदान करते हुए नीवतयों तथा योजनाओं
का वनमााण करना है।

योजना अयोग से ऄसमानताएाँ:


 यद्यवप सांगठवनक संरचना की दृवष्ट से यह योजना अयोग के समान ही है, परन्तु कायाात्मक स्तर पर
दोनों में पयााप्त वभन्नता हैं। नीवत अयोग का काया के िल एक नीवतगत चथक टैंक के समान हैं तथा आसे
पूिािती योजना अयोग को प्राप्त दो ऄन्य कायों, पंचिषीय योजनाओं का वनमााण तथा राज्यों को
धन का हस्तांतरण, से मुि रखा गया है।
 नीवत अयोग तथा योजना अयोग के मध्य नीवत वनमााण के दृवष्टकोण में व्याप्त प्रमुख ऄसमानता यह
है कक जहााँ योजना अयोग टॉप-डाईन दृवष्टकोण के ऄंतगात ‘सबके वलए एक समाधान’ (one-size-
fits-all plan) के ऄनुसार काया करता था, िहीं नीवत अयोग राज्यों को ऄवधक महत्त्ि प्रदान करते
हुए योजनाओं के वनमााण में ईनकी ऄवधकावधक भागीदारी को सुवनवित करता है।

नीवत अयोग: सहकारी संघिाद के मंच के रूप में


संरचनात्मक सहयोग के माध्यम से सहकारी संघिाद को बढ़ािा देना, नीवत अयोग को प्रदान ककये गये
सिाावधक महत्त्िपूणा ऄवधदेशो में से एक है। सहकारी संघिाद के ऄंतगात सवम्मवलत हैं:
 राष्ट्रीय ईद्देश्यों के अलोक में राष्ट्रीय विकास प्राथवमकताओं, क्षेत्रकों तथा रणनीवतयों में साझे
दृवष्टकोण के साथ राज्यों की ऄग्रसकिय भागीदारी (Proactive partnership) को सुवनवित
करना।
 संरचनात्मक सहयोग तथा व्यिस्थाओं के माध्यम से राज्यों के मध्य सहकारी संघिाद की भािना
को सुदढ़ृ करना। यह आस तथ्य की पुवष्ट करता है कक सशि राज्यों (states) द्वारा ही एक सशि
राष्ट्र (State) का वनमााण संभि हैं।
सहकारी संघिाद को साकार करने के वलये वनम्नवलवखत कदम ईठाये गए हैं:
 मुख्यमंवत्रयों के तीन ईपसमूहों का गठन ककया गया है। आनका ईद्देश्य कें द्र सरकार को (i) कें द्र
प्रायोवजत योजनाओं को युविसंगत एिं तार्ककक बनाने, (ii) कौशल विकास तथा (iii) स्िच्छ भारत
ऄवभयान के सन्दभा में सलाह प्रदान करना है। तीनों ईपसमूहों ने ऄपनी ररपोटा सरकार को सौंप दी
है। आनकी कु छ ऄनुसंशाओं का कियान्ियन भी ककया जा चुका है जबकक कु छ ऄन्य पर विचार ककया
जा रहा है।

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 स्िास्थ्य, वशक्षा और जल प्रबंधन में राज्यों के प्रदशान का अकलन करने िाले सूचकांकों के माध्यम
से सामावजक क्षेत्रक में सुधार: स्िास्थ्य, वशक्षा तथा जल जैसे महत्त्िपूणा सामावजक क्षेत्रकों के
िार्तषक सुधारात्मक पररणामों के अकलन के वलए नीवत अयोग ने कु छ सूचकांकों का वनमााण
ककया है। आसके द्वारा जहााँ एक ओर राज्य बेहतर पररणामों के वलए प्रवतस्पधाा करते हैं िहीं दूसरी
ओर सिोत्तम प्रकियाओं और निाचारों के द्वारा परस्पर सहयोग भी करते हैं। यह प्रवतस्पधी तथा
सहकारी संघिाद का ईदाहरण है।
 यह राज्य तथा कें द्रीय मंत्रालयों को एक ही मंच पर एक साथ लाकर दोनों पक्षों से जुड़े मुद्दों के
समाधान की सुविधा प्रदान करता है। ईदाहरण के वलए, हाल ही में नीवत अयोग ने तेलंगाना
राज्य तथा विवभन्न कें द्रीय मंत्रालयों के मध्य लंवबत मुद्दों को सुलझाने के वलए ऐसी पहल की है।
चुनौवतयााँ
 नीवत अयोग से भारत के वलए एक दीघाकालीन दृवष्टकोण के विकास हेतु विचारों के स्रोत तथा
राज्यों एिं कें द्र के मध्य कनिजेंस के एक माध्यम के रूप में काया करने की ऄपेक्षा है। साथ ही,
आसके द्वारा विवभन्न विभागों के मध्य समन्िय का काया भी ककए जाने की ऄपेक्षा हैं।
 आन दो कदए गए कायों के कियान्ियन में नीवत अयोग तथा ऄंतरााज्यीय पररषद्, जो एक
संिैधावनक वनकाय है एिं कै वबनेट सवचिालय, जो ितामान में विवभन्न विभागों के मध्य समन्िय
का काया देखता है; के कायों में परस्पर ऄवतव्यापन (ओिरलैचपग) की समस्या ईत्पन्न हो सकती है।

2.5.3. के न्द्र प्रायोवजत योजनाएं

 ईन क्षेत्रों में जहां राष्ट्रीय प्रयासों की जरूरत है, िहां के न्द्र सरकार हस्तक्षेप कर सकती है। भारत
सरकार के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं तथा विवभन्न कायािमों एिं नीवतयों के माध्यम से ऐसा करने की
कोवशश करती है। के न्द्र सरकार ने राष्ट्रीय प्राथवमकताओं के अधार पर स्िास्थ्य, वशक्षा, कृ वष,
कौशल विकास, रोजगार, शहरी विकास, ग्रामीण अधारभूत संरचना अकद हेतु योजनाएं शुरू की
हैं। आन क्षेत्रों में से कइ राज्यों की गवतविवधयों के ऄंतगात अते हैं।
 सकल बजटीय सहायता के प्रवतशत के रूप में सभी के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं में सरकार की
वहस्सेदारी लगातार तीन पंचिषीय योजनाओं से बढ़ रही है। 11िीं पंचिषीय योजना में यह
41.59% थी जब कक 10िीं ि 9िीं पंचिषीय योजना में िमशः 38.64 तथा 31% रही है। राज्य
विवभन्न मंचों पर के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं में लचीलेपन की कमी तथा राज्यों के संसाधनों पर
प्रवतकू ल दबाि से संबंवधत मुद्दे ईठाते रहे हैं, जैसे:
o अिश्यक धन प्रदान करने में राज्यों की ऄसमथाताः के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं के तहत के न्द्र से
प्राप्त धन का ईपयोग करने के वलए राज्यों से भी एक वनवित प्रवतशत में धन का योगदान
ककया जाना अिश्यक होता है। राज्यों के वलए सहायता का पैटना वभन्न होता है, अमतौर पर
के न्द्र सरकार ईत्तरी-पूिी राज्यों के वलए 90% सहायता और ऄन्य राज्यों के वलए 75 से
100% सहायता योगदान करती है। कु छ राज्य, विशेषकर ईत्तरी-पूिी राज्य, वबहार,
झारखण्ड अकद यह वशकायत करते हैं कक ईनके पास संसाधनों की सीमा है, तथा िे के न्द्र
प्रायोवजत योजनाओं के वलए अिश्यक धन के ईपयोग हेतु राज्य द्वारा प्रदान ककए जाने िाले
धन का वनधााररत वहस्सा प्रदान करने में सक्षम नहीं है।

2.5.3.1 के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं को तार्कक क बनाना


पृष्ठभूवम
 भारत सरकार द्वारा नीवत अयोग के माध्यम से के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं को तार्ककक बनाने एिं
ईन्हें पुनसंरवचत करने के वलए मुख्यमंवत्रयों के एक ईपसमूह का गठन ककया गया।
 आस ईपसमूह के द्वारा यह ऄनुशस ं ा की गयी है कक कें द्र द्वारा ईन्हीं योजनाओं को प्रायोवजत ककया
जाना चावहये वजनका संबंध राष्ट्रीय विकास एजेंडे से हो।

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 यह भी वसफाररश की गयी है कक योजनाओं को कोर (core) और ऑप्शनल (optional) योजनाओं
के रूप में दो भागों में विभावजत ककया जाना चावहए। कोर योजनाओं में भी सामावजक सुरक्षा और
िंवचत िगो के समािेशन पर अधाररत योजनाओं को ‘कोर ऑफ़ द कोर’ योजनाओं’ (core of the
core) के रूप में पररभावषत जाना चावहए।
 ईपसमूह ने यह भी वसफाररश की है कक कोर योजनाओं में वनिेश के ितामान स्तर को बनाये रखना
चावहए, ताकक योजनाओं के ऄवधकतम विस्तार में कोइ कमी न हो।
बजट 2016-17 में ऄनुदान के वलए नया ढांचा
 सरकार ने मुख्यमंवत्रयों के ईपसमूह की वसफाररशों के अधार पर सरकारी ऄनुदान का पुनगाठन
ककया है।
 सरकार ने ‘कोर ऑफ़ द कोर’ के रूप में पररभावषत योजनाओं के वित्त पोषण के मौजूदा पैटना को
बरकरार रखा है।
 राष्ट्रीय विकास एजेंडे के वहस्से िाली कोर योजनाओं पर व्यय कें द्र और राज्यों के बीच 60:40 के
ऄनुपात में साझा ककया जायेगा। (8 पूिोत्तर राज्यों और 3 वहमालयी राज्यों के वलए यह ऄनुपात
90:10 होगा।)
 ऄगर, ईपरोि िगीकरण की पररभाषा में अने िाली, कु छ योजनाओं में कें द्र का ऄनुदान 60:40
से कम है, तो ऐसी योजनाओं/ईप-योजनाओं का मौजूदा वित्तपोषण पैटना जारी रहेगा।
 ऄन्य ऑप्शनल योजनाएाँ राज्यों के वलए िैकवल्पक रहेंगी और आन पर व्यय होने िाली रावश कें द्र
और राज्य सरकारों के बीच 50:50 के ऄनुपात में विभावजत की जाएगी। (8 पूिोत्तर राज्यों और
3 वहमालयी राज्यों के वलए यह ऄनुपात 80:20 होगा।) ऐसी कु छ योजनाएाँ सीमा क्षेत्र विकास
कायािम, राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना, श्यामा प्रसाद मुखजी रुबान वमशन अकद हैं।
 कें द्रीय बजट 2016-17 में कें द्र प्रायोवजत योजनाओं की कु ल संख्या को सीवमत करते हुए 28 कर
कदया गया है।

कोर ऑफ़ द कोर (6 योजनायें) कोर (18 योजनायें)


 महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारं टी  हररत िांवत (a) कृ वष ईन्नवत योजना
योजना (b) राष्ट्रीय कृ वष विकास योजना
 राष्ट्रीय सामावजक सहायता कायािम  श्वेत िांवत-राष्ट्रीय पशुधन विकास
 ऄनुसूवचत जावतयों के विकास के वलए ऄम्ब्रेला योजना (पशुधन वमशन, पशु वचककत्सा
योजना सेिा डेयरी विकास)
 ऄनुसूवचत जनजावतयों के विकास के वलए ऄम्ब्रेला  प्रधानमन्त्री कृ वष चसचाइ योजना
योजना (जनजातीय वशक्षा और िन बंधु योजना)  स्िच्छ भारत ऄवभयान
 वपछड़े िगों एिं ऄन्य सुभेद्य िगो के विकास के  राष्ट्रीय स्िास्थ्य वमशन
वलए ऄम्ब्रेला योजना  एकीकृ त बाल विकास योजना
 ऄल्पसंख्यकों के विकास के वलए ऄम्ब्रेला योजना  सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना

(a) बहुक्षेत्रीय योजना (b) मदरसा एिं


ऄल्पसंख्यकों के वलए शैक्षवणक योजना

2.5.4. सं घ िाद ि विदे श नीवत

 यद्यवप विदेश नीवत कें द्र सरकार के विवशष्ट क्षेत्रावधकार के ऄंतगात अता है और संविधान राज्यों
को आन विषयों में पहल करने की ऄनुमवत नहीं देता है, तथावप पविम बंगाल सरकार ने हाल में
बांग्लादेश के साथ वद्वपक्षीय संवध के मागा में बाधा ईत्पन्न कर एिं तीस्ता नदी जल समझौते को
रोककर/बावधत कर कें द्रीय विदेशी नीवत को चुनौती दी है।

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 कु छ राज्य तका देते रहे हैं कक विदेश नीवत वनमााण में राज्यों की भागीदारी होनी चावहए, विशेष
रूप ऄंतरााष्ट्रीय सीमा पर वस्थत राज्य ईन मुद्दों पर स्पष्ट ििा है, जो ईन्हें प्रत्यक्ष या ऄप्रत्यक्ष रूप
से प्रभावित करते हैं।
 आसी तरह जब चीन के साथ सीमा व्यापार के विषय पर चचाा हुइ तो वसकक्कम के विचार भी जानने
का प्रयास ककया गया। तवमलनाडु ने सदैि श्रीलंका में तवमलों पर होने िाले ऄत्याचार के मुद्दे पर
हस्तक्षेप की मांग की। ईत्तर-पूिा के राज्य म्यांमार, बांग्लादेश, चीन, भूटान और नेपाल के साथ
सीमाएं साझा करते हैं तथा पूिी भारत के राज्यों के आन देशों से ऄच्छे संबध है, ये राज्य मांग करते
हैं कक आनकी ऄथाव्यिस्थाओं को ‘एक्ट इस्ट पॉवलसी’ से ऄपेक्षाकृ त ऄवधक लाभ प्राप्त होना चावहए।
 पूिोत्तर के राज्यों के नेता मांग करते हैं कक अर्तथक एिं राजनीवतक विषयों पर पड़ोसी देशों से
िाताा के दौरान ईनके विचार भी वलये जाने चावहए।
 यह राज्यों के परामशा तथा भागीदारी प्रकिया को संस्थागत करने का विषय है, जो ककसी विदेशी
या सुरक्षा नीवत के ईपाय से प्रभावित होते हैं।
 हररयाणा, मध्यप्रदेश, झारखण्ड ि छत्तीसगढ़, तेलंगाना को छोड़कर सभी भारतीय राज्य ऄन्य
देशों के साथ या तो स्थल सीमा साझा करते है या ऄन्तरााष्ट्रीय समुद्री सीमा से जुड़े हैं। आस संदभा में
आन राज्यों के पास ऐसे वहत या मुद्दे होते हैं, जो देश की विदेश या सुरक्षा नीवतयों के साथ
ऄंतसंबंवधत हैं।
 विवभन्न शासन व्यिस्थाओं में, वजनमें संयुि राज्य ऄमेररका भी एक है, राज्यों के वहतों को विदेश
एिं सुरक्षा नीवतयों के वनमााण ि कियान्ियन में सवम्मवलत ककया जाता है।
 यह बड़े तथा छोटे राज्यों के मध्य संपन्न हुए समझौते का भाग है वजसके पररणामस्िरूप िहां
संविधान का वनमााण ककया गया।
 संयुि राज्य ऄमेररका का संविधान आसके ईच्च सदन सीनेट को विदेश नीवत के वनमााण में प्रमुख
सदन के रूप में सशि बनाता है, जो ऄन्तरााष्ट्रीय समझौतों को स्िीकृ वत प्रदान करता है तथा
राजदूतों की वनयुवियों पर आसकी स्िीकृ वत अिश्यक है।
 संयुि राज्य ऄमेररका के समान यह व्यिस्था भारतीय व्यिस्था में लागू करना ऄत्यंत करठन होगा
तथावप स्पष्ट रूप से ऐसी पररवस्थवत अ गयी है कक वमजोरम तथा नागालैंण्ड जैसे राज्य भारत की
म्यांमार नीवत के के िल पररणामों को भुगतने के बजाय आस नीवत के वनमााण को प्रभावित करते हैं।

2.5.5. सं घ शावसत प्रदे श से सं बं वधत मामले

संघ शावसत प्रदेश और आसका प्रशासन


 प्रत्येक संघ शावसत प्रदेश का प्रशासन राष्ट्रपवत द्वारा वनयुि "प्रशासक" के माध्यम से ककया जाता
है।
 संघ शावसत प्रदेश के "प्रशासक" के पास राज्य के राज्यपाल के समान शवियां प्राप्त होती हैं लेककन
िह राष्ट्रपवत का प्रवतवनवध है न की राज्य का संिैधावनक प्रमुख।
 प्रशासक को लेवटटनेंट गिनार, मुख्य अयुि या प्रशासक के रूप में नावमत ककया जा सकता है।
 संविधान के ऄनुच्छेद 239 और 239AA के तहत आनके प्रशासवनक शवियां और कायों को
पररभावषत ककया गया है।
राज्य और संघ शावसत प्रदेशों के मध्य शवियों का ऄंतर
 कें द्र सरकार संघ शावसत प्रदेशों के संदभा में राज्य सूची के सभी विषयों पर विधायी तथा
कायापावलका शवियों का प्रयोग कर सकती है जबकक पूणा राज्य का दजाा प्राप्त क्षेत्रों में सरकार
द्वारा आन शवियों का प्रयोग संभि नहीं है।
 ऄनुच्छेद 240 के ऄनुसार, राष्ट्रपवत को संघ शावसत प्रदेशों के वलए विवनयम बनाने की शवि प्राप्त
है, जब तक कक ईस राज्य के वलए कोइ विधावयका न हो। यहां तक कक ऄगर कोइ विधावयका है,
तो प्रशासक ईसे राष्ट्रपवत की स्िीकृ वत के वलए अरवक्षत कर सकता है, जो धन विधेयक को
छोड़कर आसे ऄस्िीकार कर सकता है।

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 राज्यों में मुख्यमंवत्रयों की वनयुवि राज्यपाल करता है लेककन कें द्र शावसत प्रदेश के वलए मुख्यमंत्री
और मंवत्रयों की वनयुवि राष्ट्रपवत करता है, जो राष्ट्रपवत के प्रसादपयंत पद धारण करता है।
 "न्यावयक अयुि" से संबंवधत कु छ विधायी प्रस्तािों के वलए प्रशासक की पूिा मंजरू ी अिश्यक है।
 संघ शावसत सरकार के वनम्नवलवखत विषयों से संबंवधत ककसी विधेयक या विधेयक में संशोधन पेश
करने हेतु प्रशासक की पूिा ऄनुमवत अिश्यक होती है:
o कर ऄवधरोपण, ईन्मूलन, छू ट, पररितान या विवनयमन से संबंवधत विषय,
o वित्तीय ईत्तरदावयत्ि से संबंवधत ककसी कानून में संशोधन के प्रस्ताि तथा
o UTs की संवचत वनवध से संबंवधत कोइ विषय।
पुडुचरे ी का मामला
ितामान में पुडुचरे ी के लेवटटनेंट गिनार और मुख्यमंत्री के बीच ऄवधकृ त शवियों को लेकर संघषा की
वस्थवत बनी हुइ है।
 मुख्यमंत्री द्वारा आस बात पर बल कदया गया है कक लेवटटनेंट गिनार को मंवत्रपररषद् की सलाह के
ऄनुसार काम करना चावहए और ईसे ककसी भी वनिााचन क्षेत्र में जाने की पूिा सूचना प्रदान करनी
चावहए।
 िहीं लेवटटनेंट गिनार ने कहा कक िह "िास्तविक प्रशासक" है। साथ ही प्रशासवनक मामलों पर
ईन्हें विशेष शवियां प्राप्त हैं। आसवलए सभी फाआलों को ईनकी मंजरू ी के वलए भेजा जाना चावहए।
गिमेंट ऑफ़ यूवनयन टेररटरी एक्ट, 1963 में ऄस्पष्टता
 यह ऄवधवनयम "संघ राज्य क्षेत्र पांवडचेरी" के शासन हेतु विधान सभा तथा एक मंवत्रपररषद् का
प्रािधान करता है। यह ऄवधवनयम विधान सभा को “विधायी सीमा" के ऄंतगात राज्य सूची या
समिती सूची में िर्तणत ककसी भी मामले के संबंध में संपूणा पुडुचेरी कें द्रशावसत प्रदेश या आसके
ककसी विशेष वहस्से के वलए कानून बनाने की शवि प्रदान करता है।
 हालांकक, आस ऄवधवनयम में कहा गया है कक राज्य का प्रशासन भारत के राष्ट्रपवत द्वारा वनयुि
लेवटटनेंट गिनार के माध्यम से ककया जाएगा। ऄवधवनयम की धारा 44 के ऄनुसार मुख्यमंत्री की
ऄध्यक्षता िाली मंवत्रपररषद्, वजन विषयों पर विधान सभा को कानून बनाने की शवि प्राप्त है,
ईन पर प्रशासक को ईसके कायों के संचालन में सहायता और सलाह देगी। यकद ककसी मुद्दे पर
ऄसहमवत हो तो यही धारा प्रशासक को ऄपने वििेकानुसार कानून बनाने की शवि भी प्रदान
करती है।
मुख्यमंत्री के पक्ष में तका :
वनिाावचत सरकार के ऄवधकारों को कम करना
 कदल्ली और पुडुचरे ी संघ शावसत प्रदेशों में विधान सभा और मंवत्रपररषद् का प्रािधान ककया गया
है। आसवलए, आन क्षेत्रों के प्रशासक से मुख्यमंत्री और ईनकी मंवत्रपररषद् की सहायता और सलाह के
ऄनुसार काया करना ऄपेवक्षत है।
 जनता के प्रवत जिाबदेही - विधान सभा में जनता के प्रवतवनवध होने के नाते, िे जनता के कल्याण
के वलए जिाबदेह हैं। लेवटटनेंट गिनार को ऄवधक शवियााँ प्राप्त होने की वस्थवत में संभि है कक िह
जनकल्याण से संबंवधत ककसी मामले में मंवत्रपररषद् द्वारा वलए गए नीवतगत वनणाय को मंजूरी न
प्रदान करे ।
 कें द्र के समानांतर शवि - प्रशासक को वनिाावचत सरकार की ऄिहेलना कर, जनता से सीधे
वमलना, वनदेश देने या वनरीक्षण अकद से संबंवधत काया नहीं करने चावहए। प्रशासक को सरकार के
साथ समन्िय के साथ काया करना चावहए।
 लेवटटनेंट गिनार और मुख्यमंत्री के बीच शवि संतल
ु न का ऄभाि - लेवटटनेंट गिनार मंत्रीमंडल के
वनणाय को प्रायः ऄस्िीकार कर देते हैं जो कक संविधान के प्रािधानों के विपरीत है क्योंकक
विधावयका और मंवत्रपररषद् का वित्तीयन लोक वनवध (पवब्लक फं ड) से होता है।

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 ऄनुच्छेद 240 (1) के ऄनुसार विधायी वनकाय के सृजन के बाद राष्ट्रपवत का प्रशासवनक वनयंत्रण
समाप्त हो जाता है आसवलए राष्ट्रपवत द्वारा वनयुि प्रशासक के पास वनिाावचत प्रवतवनवधयों की
पररषद् से ऄवधक शवि नहीं हो सकती है।
लेवटटनेंट गिनार के पक्ष में तका :
 पुडुचरे ी सरकार के कायासच
ं ालन से संबवं धत वनयम 21 (5) - आसके ऄनुसार, प्रशासक ककसी भी
मामले से संबंवधत फाआल की मांग कर सकता है। ककसी संदह
े या प्रश्न पर ऄद्यतन सूचना हेतु
मुख्यमंत्री से ऄनुरोध कर सकता है।
 ऄनुच्छेद 239AA - परं तु लेवटटनेंट गिनार और ईसके मंवत्रयों के बीच ककसी विषय पर मतभेद की
वस्थवत में, िह, ईसे राष्ट्रपवत को विवनिय के वलए वनदेवशत करे गा और राष्ट्रपवत द्वारा ईस पर
ककए गए विवनिय के ऄनुसार काया करे गा तथा ऐसा विवनिय होने तक ईप-राज्यपाल ककसी ऐसे
मामले में, जहााँ िह विषय, ईसकी राय में, आतना अिश्यक है वजसके कारण तुरंत कारा िाइ करना
ईसके वलए अिश्यक है िहां, ईस विषय में ऐसी कारा िाइ करने या ऐसा वनदेश देने के वलए, जो
िह अिश्यक समझे, सक्षम होगा।
 कदल्ली ईच्च न्यायालय के फै सले - कदल्ली के मुख्यमंत्री और प्रशासक से संबंवधत मामले में कदल्ली के
ईच्च न्यायालय ने ऄगस्त 2016 में प्रशासक की सिोच्चता को बरकरार रखा।
 वनयम 47 - आसके ऄनुसार, प्रशासक मुख्यमंत्री के परामशा से संघ शावसत प्रदेश की सरकार में
सेिा करने िाले ऄवधकाररयों की सेिा शतों को विवनयवमत करता है।
पुडुचरे ी और कदल्ली के प्रशासक के बीच शवियों मे ऄंतर :
 कदल्ली के प्रशासक को पुडुचरे ी के प्रशासक की तुलना मे ऄवधक शवि प्राप्त है। कदल्ली के प्रशासक
के पास "कायापावलका शवि” है जो ईसे सािाजवनक व्यिस्था, पुवलस और भूवम से जुड़े मामलों में
मुख्यमंत्री से परामशा लेने के पिात् कोइ भी वनदेश देने की शवि प्रदान करता है, यकद ईसे यह
शवि ऄनुच्छेद 239 के तहत राष्ट्रपवत द्वारा जारी ककसी भी अदेश के तहत प्रदान की गइ हो।
 कदल्ली का प्रशासक गिनामेंट ऑफ़ नेशनल कै वपटल टेररटरी ऑफ़ डेल्ही एक्ट, 1991 और
िांजैक्शन ऑफ़ वबज़नेस ऑफ़ गिनामेंट ऑफ़ नेशनल कै वपटल टेररटरी ऑफ़ डेल्ही रूल्स 1993
द्वारा वनदेवशत है जबकक पुडुचेरी का प्रशासक गिमेंट ऑफ़ यूवनयन टेररटरी एक्ट 1963 द्वारा
वनदेवशत होता है।
 संविधान के ऄनुच्छेद 239 एिं 239 AA और गिनामेंट ऑफ़ नेशनल कै वपटल टेररटरी
ऑफ़ डेल्ही एक्ट, 1991 में स्पष्ट रूप से ईवल्लवखत है कक पुडुचेरी की तुलना मे कें द्र को कदल्ली के
संबंध में ऄवधक ऄवधकार प्राप्त है।

कदल्ली का मामला
पृष्ठभूवम
 िषा 2015 में नइ कदल्ली में अम अदमी पाटी की सरकार के सत्ता में अने के बाद से राज्य सरकार
और कें द्र सरकार के बीच वनरं तर संघषा जारी है।
 राज्य सरकार ने कें द्र सरकार पर ऄपने कामकाज में लेवटटनेंट गिनार (ईप राज्यपाल) के माध्यम से
वनरं तर हस्तक्षेप करने एिं लोकतांवत्रक रुप से वनिाावचत राज्य सरकार से ईसके ऄवधकार छीनने
का अरोप लगाया जाता है।
 दूसरी ओर कें द्र सरकार ने राज्य सरकार को कानून के शासन का सम्मान न करने के वलए दोषी
ठहराया है। ईसका कहना है कक यह ऄनावधकृ त रूप से शवियों को ग्रहण कर सरकार को
ऄसंिैधावनक तरीके से संचावलत करने का प्रयत्न कर रही है।
मुद्दा: कदल्ली का विशेष मामला
 कदल्ली के मुख्यमंत्री एिं लेवटटनेंट गिनार के बीच जारी संघषा नया नहीं है। कदल्ली की प्रत्येक
िवमक सरकार ऄवधक शवियां देने की मांग करती रही है। ककन्तु, कदल्ली एक पूणा राज्य नहीं है
आसवलए आसकी कइ शवियां कें द्र सरकार में वनवहत है।

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 भारतीय संविधान का ऄनुच्छेद 239AA कहता है कक कदल्ली सरकार को लोक व्यिस्था, पुवलस
एिं भूवम के संबंध में कानून वनर्तमत करने की शवि प्राप्त नहीं है। हालांकक काया संचालन वनयम
(transfer of business rule) 45 कहता है कक कें द्र सरकार द्वारा अदेश जारी ककए जाने पर
कदल्ली सरकार आन तीनों विषयों के संबंध में शवियां प्राप्त कर सकती है। ऄवधक शवियों की मांग
करते समय राज्य सरकार द्वारा आस खंड को ही अधार के रूप में ककया जाता है।
 ककन्तु, कायासच
ं ालन वनयम एिं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन ऄवधवनयम भी मुख्यमंत्री एिं ईसकी
मंवत्रपररषद् पर भी प्रवतबंध अरोवपत करता है। आसके ऄनुसार, आन विधेयकों को राष्ट्रपवत की पूिा
स्िीकृ वत की अिश्यकता होती है।सवचिों की वनयुवि भी लेवटटनेंट गिनार आत्याकद की सहमवत से
होती है। कें द्र सरकार द्वारा आन प्रािधानों को यह तका देते हुए ईल्लेख ककया गया है कक लेवटटनेंट
गिनार की कारा िाआयााँ संविधान के ऄवधदेश के ऄनुसार और पूणा रूप से कानून की सीमा के ऄंतगात
है।
क्या ककया जाना चावहए:
 यह सही है कक कदल्ली सरकार लोकतांवत्रक रूप से भारी बहुमत से वनिाावचत सरकार है। ककतु
संविधान एिं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ऄवधवनयम ने एक ढांचा वनधााररत ककया है वजसके ऄंतगात
कदल्ली का प्रशासन संचावलत ककया जाना चावहए। ये कानून वनिाावचत सरकार को प्राप्त होने
िाली शवियों एिं लेवटटनेंट गिनार को दी गइ वििेकाधीन शवियों में स्पष्ट रुप से विभेद करते हैं।
 आस प्रकार, भले ही कें द्र सरकार की कारा िाआयों की नैवतकता, िाद-वििाद का विषय हो सकती है।
ककतु, आसकी िैधता लगभग सुवनवित है।
 कदल्ली ईच्च न्यायालय ने वनणाय कदया कक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, संघ शावसत क्षेत्र बना रहेगा और
आसके प्रशासवनक प्रमुख लेवटटनेंट गिनार है।
 वनष्कषा यह है कक लेवटटनेंट गिनार और मुख्यमंत्री के बीच सामंजस्यपूणा कामकाज होना चावहए।
पूिािती सरकारों ने भी आस प्रकार के मुद्दों का सामना ककया था ककतु ईन्होंने ऄपने मतभेदों को
अपसी बातचीत से सुलझा वलया।
 आस संघषा में ऄंवतम रुप से शासन और कदल्ली की जनता को हावन होगी। जब भारत की जनता ने
सरकार को जनादेश कदया है तो िह आसके ऄनुपालन की ऄपेक्षा करती है। ऄब यह सरकार पर
वनभार है कक िह आसका मागा ककस प्रकार वनधााररत करती है।
 चूाँकक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) कदल्ली की राजधानी है और आस प्रकार कें द्र सरकार का कु छ
वनयंत्रण िांवछत होगा, आसके ऄवधकतर क्षेत्र कें द्रीय राजधानी क्षेत्र से बाहर हैं। आस प्रकार, कें द्र
और राज्य सरकार को एक व्यिस्था वनर्तमत करने के वलए काया करना चावहए। आस संबंध में
िास्तविक चुनौती राजनीवतक आच्छाशवि की है।
राज्य के राज्यपाल की तुलना में संघ शावसत प्रदेश के प्रशासक को ऄवधक शवियां प्राप्त हैं। हालांकक,
प्रशासक को ऄपनी मागावनदेशन क्षमताओं द्वारा सरकार को वनदेश एिं सलाह प्रदान करना चावहए।
वनिाावचत सरकार को प्रशासन में प्राथवमकता देनी चावहए।
ितामान में, पुडुचेरी विधान सभा ने एक प्रस्ताि पाररत ककया है वजसके तहत कें द्र सरकार से गिमेंट
ऑफ़ यूवनयन टेररटरी एक्ट 1963 में अिश्यक संशोधन की मांग की गइ है। आस प्रस्ताि में वनिाावचत
सरकार की शवियों में िृवि और लेवटटनेंट गिनार की शवियों में कमी करने की ऄनुशस
ं ा की गइ है।
2.6 कें द्र-राज्य सं बं ध के कु छ निीन पहलू

प्रवतस्पधी संघिाद (Competitive Federalism)


 हाल के ऄध्ययनों से पता चलता है कक भारतीय ऄथाव्यिस्था में सफल प्रवतस्पधी संघिाद के लक्षण
कदखाइ पड़ रहे हैं, विशेष रूप से इज़ ऑफ़ डू आंग वबज़नेस के सन्दभा में। साथ ही, ऄब राज्य
सुविधाओं में सुधार कर वनिेश अकर्तषत करने हेतु प्रयासरत हैं।
प्रवतस्पधी संघिाद क्या है?

 प्रवतस्पधी संघिाद एक ऐसी संकल्पना है, जहााँ कें द्र राज्यों से तथा राज्य कें द्र से एिं राज्य परस्पर
एक-दूसरे के साथ भारत के विकास हेतु ककये गए संयुि प्रयासों में प्रवतस्पधाा करते हैं।

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 आस संकल्पना के ऄंतगात ककसी नीवत के संपण
ू ा राष्ट्र के वलए प्रयुि ककये जाने के स्थान पर, विवभन्न

राज्यों की प्राथवमकताओं के अधार पर वभन्न –वभन्न नीवतयााँ ऄपनाइ जाती हैं।


 प्रवतस्पधाात्मक संघिाद की ऄिधारणा विकास की बॉटम-ऄप ऄप्रोच पर रटकी हुइ है क्योंकक आसमें
विकास प्रकिया मूल रूप से राज्यों के द्वारा वनधााररत होती है।

श्रम सुधार के ईदाहरण

 गुजरात –िषा 2015 में श्रम सुधारों की एक पूरी श्रृंखला प्रारम्भ की गयी, वजसके कारण

औद्योवगक आकाआयों के श्रवमकों द्वारा हड़ताल करना ऄसंभि हो गया। आसके साथ ही, आसमें
कमाचाररयों के बखाास्त ककये जाने की वस्थवत में मुअिजा-भत्ता प्राप्त करने के वलए वनधााररत
समयािवध को भी कम ककया गया।
 कनााटक- िषा 2016 में सरकार ने नयी खुदरा नीवत की घोषणा की वजसके माध्यम से प्रवतष्ठानों
को देर तक खुला रखना संभि हो गया। श्रम कानूनों में सुधार के द्वारा स्टॉक की वलवमट को समाप्त
कर कदया गया तथा मवहलाओं को रावत्र में काया करने की ऄनुमवत दी गयी।
 राजस्थान – निंबर 2014 में सरकार ने, तीन श्रम सुधार कानूनों पर राष्ट्रपवत की स्िीकृ वत प्राप्त

की वजनके माध्यम से 300 तक कमाचाररयों िाली कं पवनयााँ वबना सरकार की पूिाानुमवत के ऄपने
कमाचाररयों को वनकाल सकती हैं या आकाइ को बंद कर सकती हैं।

 संकल्पना के रूप में प्रवतस्पधी संघिाद की ईत्पवत्त पविमी देशों में हुइ।
 संयुि राज्य ऄमेररका के वलबटी फाईं डेशन द्वारा प्रवतपाकदत प्रवतस्पधी संघिाद की ऄिधारणा के
ऄनुसार, ”यह एक ऐसी प्रकिया है वजसमें राज्य ऄपने नागररकों को न्यूनतम लागत पर सिोत्तम

सेिाएाँ और िस्तुएाँ प्रदान करने के विस्तृत मुद्दों पर अपस में प्रवतस्पधाा करते हैं।”
भारत में प्रवतस्पधाात्मक संघिाद
 भारत सरकार ने योजना अयोग को नीवत अयोग से प्रवतस्थावपत कर कदया है, वजसका प्रमुख
काया भारत में प्रवतस्पधी संघिाद विकवसत करना है।
 ऄब राज्य सरकारें नीवतगत मागादशान और वित्तीय संसाधनों के वलए पूरी तरह कें द्र पर वनभार नहीं
हैं।
 कें द्र सरकार ने कें द्रीय कर राजस्ि में राज्यों की वहस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी है।
 सरकार ने घोषणा की है कक राज्य ऄपनी प्राथवमकताओं के अधार पर योजना वनमााण कर सकते
हैं तथा िे के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं में बदलाि के वलए भी स्ितंत्र हैं।
 हालांकक, राज्यों को साझा राष्ट्रीय ईद्देश्यों की पररवध में रहकर ही काया करना चावहए।
प्रवतस्पधी संघिाद के मामले में प्रगवत
 प्रवतस्पधी संघिाद की संकल्पना ने राज्यों को सुधार प्रकियाओं के स्िीकरण हेतु प्रेररत ककया है
वजसके माध्यम से राज्यों में कारोबारी प्रकिया असान एिं लंवबत पररयोजनाओं को शीघ्र मंजरू ी
वमल सके ।
 राज्यों के मध्य वनिेश के वलए प्रवतस्पधाा, कोइ नइ बात नहीं है। हम अंध्र प्रदेश और कनााटक द्वारा
ईनके मुख्य प्रौद्योवगकी के न्द्रों- हैदराबाद और बेंगलुरू के वनमााण के वलए वनिेशकों को अकर्तषत
करने हेतु सकिय प्रयास करते हुए देख चुके हैं।
 प्रवतस्पधी संघिाद की प्रगवत को वपछले िषा में वनिेश में प्रवतस्पधाा के वलए राज्यों द्वारा ककये गए
विवभन्न सुधारों के सन्दभा में देखा जा सकता है।

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ईदाहरण- भूवम सुधार

 गुजरात – िषा 2016 में कु छ विकास पररयोजनाओं को संचावलत करने हेतु सामावजक प्रभाि
अकलन और सहमवत प्रािधान को समाप्त करने के वलए भूवम ऄवधग्रहण और पुनिाास ऄवधवनयम
में संशोधन ककया गया।

 महाराष्ट्र – िषा 2016 में भूवम राजस्ि संवहता में कु छ वनजी भूवम की वबिी हेतु स्िीकृ वत देने के
वलए संशोधन ककया गया। दृष्टव्य है कक पहले वनजी भूवम के िल लीज पर दी जा सकती थी। िषा
2015 में गुंथि
े ारी ऄवधवनयम में संशोधन के द्वारा मध्यम अकार के भू-खण्डों को आनकी वबिी हेतु
छोटे भू-खण्डों में विभावजत करने की स्िीकृ वत दी गयी।

 अंध्रप्रदेश –िषा 2015 में भूवम को सरकार द्वारा वनजी संस्थाओं को लीज पर कदए जाने की ऄिवध

को 33 िषा से बढ़ाकर 99 िषा कर कदया गया।

 राजस्थान –िषा 2016 में राजस्थान शहरी (हक़ प्रमाणन ) भूवम विधेयक -2016 पाररत ककया
गया वजसके माध्यम से राज्य सरकार के द्वारा भूवम के खरीदे जाने के बाद हक़ की गारं टी दी गयी।

 ईत्तर प्रदेश –िषा 2016 में व्यिसाय प्रारं भ करने िाली आकाआयों के वलए ईत्तर प्रदेश I.T. एिं

स्टाटा-ऄप नीवत 2016 को विधान सभा के द्वारा मंजूरी दी गयी।

2.7. के न्द्र-राज्य सं बं ध को मजबू त बनाने हे तु निीन योजना

2.7.1. एक भारत श्रे ष्ठ भारत पहल

पहल के सन्दभा में

भारत की एकता और ऄखंडता को मजबूत बनाने के वलए यह एक ऄवभनि पहल है वजससे विवभन्न

राज्यों एिं कें द्र शावसत प्रदेशों की संस्कृ वत, परं पराओं तथा प्रथाओं के ज्ञान के माध्यम से राज्यों के मध्य
एक बेहतर समझ एिं संबंध को बढ़ािा वमलेगा।
 आस कायािम के ऄंतगात सभी राज्यों और कें द्र शावसत प्रदेशों को सवम्मवलत ककया जाएगा।

 आस योजना के ऄनुसार, दो राज्य एक िषा के वलए एक ऄवद्वतीय साझेदारी अरम्भ करें गे।वजसमें
सांस्कृ वत और विद्यार्तथयों के अदान-प्रदान को लवक्षत ककया जाएगा। आस पहल के शुभारं भ के
ऄिसर पर राज्यों के मध्य 6 सहमवत पत्रों (MOUs) पर हस्ताक्षर भी ककए गए।

 आसमें एक विशेष राज्य का विद्याथी, एक-दूसरे की संस्कृ वत को जानने के वलए दूसरे राज्य की
यात्रा करे गा।
 वजला स्तरीय समन्िय को बढ़ािा कदया जाएगा तथा यह राज्य स्तरीय समन्िय से स्ितंत्र होगा।
 िार्तषक कायािमों में विवभन्न राज्यों और वजलों को जोड़ने में यह गवतविवध ऄत्यवधक सहायक
होगी।

 यह संस्कृ वत, पयाटन, भाषा, वशक्षा व्यापार अकद के क्षेत्रों में अदान-प्रदान के माध्यम से लोगों
को जोड़ेगी।
 नागररक कइ राज्यों/कें द्र शावसत प्रदेशों में भ्रमण कर सांस्कृ वतक विविधता का ऄनुभि करें गे और
यह महसूस करें गे कक भारत एक है।

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“एक भारत श्रेष्ठ भारत” का ईद्देश्य:

 हमारे राष्ट्र की विविधता में एकता का प्रचार करना और आसे बनाए रखना तथा देश के लोगों के
बीच पारं पररक रूप से विद्यमान भािनात्मक बंधन के ताने-बाने को मजबूत करना।
 राज्यों के बीच एक िषा की ऄिवध िाली योजनाबि भागीदारी द्वारा सभी भारतीय राज्यों और
संघ शावसत प्रदेशों के बीच एक प्रगाढ़ और समवन्ित भागीदारी के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की
भािना को बढ़ािा देना।
 भारत की विविधता को समझने और ईसकी सराहना करने में लोगों को सक्षम बनाने के वलए
समृि विरासत एिं संस्कृ वत, रीवत-ररिाज एिं परं पराओं को प्रदर्तशत करना तथा आस प्रकार
पहचान की समान भािना को बढ़ािा देना।
 दीघाकावलक भागीदारी की स्थापना करना तथा ऐसे िातािरण का वनमााण करना जो राज्यों के
बीच सिोत्तम कायाप्रणाली और ऄनुभिों को साझा कर सीखने को बढ़ािा देता है।

महत्ि:
 एक भारत श्रेष्ठ भारत का विचार लोगों को बंधन और भाइचारे की स्िाभाविक डोर को अत्मसात
करने में सक्षम बनाकर एक बेहतर राष्ट्र के वनमााण में मदद करे गा।
 यह योजना विवभन्न सांस्कृ वतक विचारों के अदान प्रदान के माध्यम से संपण
ू ा राष्ट्र हेतु जिाबदेही
और स्िावमत्ि की भािना को संप्रवे षत करने में मदद करे गी।

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Classroom Study Material

भारतीय संविधान एिं शासन


15. पंचायतें (भाग IX) एिं नगरपाविकाएँ (भाग IX-A)

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विषय सूची
1. पंचायती राज संस्थाएँ {ऄनु. 243 से ऄनु. 243(O) तक} _________________________________________________ 5

1.1. भारत में पंचायती राज का विकास ______________________________________________________________ 5

1.2. 73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1992 की विशेषताएँ ______________________________________________ 6

1.3. पंचायतों की संरचना _______________________________________________________________________ 7

1.4. पंचायतों का काययकाि ______________________________________________________________________ 7

1.5. पंचायतों की शवियाँ ि ईत्तरदावयत्ि ____________________________________________________________ 7

1.6 पंचायती राज की वि-स्तरीय संरचना _____________________________________________________________ 7


1.6.1. ग्राम स्तर पर पंचायतें ___________________________________________________________________ 7
1.6.1.1. ग्राम सभा _______________________________________________________________________ 8
1.6.1.2. ग्राम पंचायत _____________________________________________________________________ 8
1.6.1.3. न्याय पंचायत _____________________________________________________________________ 8
1.6.2. पंचायत सवमवत _______________________________________________________________________ 8
1.6.3. वजिा पररषद् ________________________________________________________________________ 9

1.7. पंचायती राज संस्थाओं के कायय ________________________________________________________________ 9


1.7.1. ग्राम पंचायतों के कायय ___________________________________________________________________ 9
1.7.2. पंचायत सवमवत के कायय _________________________________________________________________ 9
1.7.3. वजिा पररषद् के कायय ___________________________________________________________________ 9

1.8. वित्तीय स्रोत ____________________________________________________________________________ 10


1.8.1. पंचायतों के अय के स्रोत ________________________________________________________________ 10
1.8.1.1. ग्राम पंचायत ____________________________________________________________________ 10
1.8.1.2. पंचायत सवमवत __________________________________________________________________ 10
1.8.1.3. वजिा पररषद् ____________________________________________________________________ 10
1.8.2. पंचायतों के वित्तीय संसाधनों से संबंवधत समस्याएं ______________________________________________ 11
1.8.3. पंचायतों का वित्तीय सशविकरण ककस प्रकार ककया जाए _________________________________________ 11

1.9. पंचायती राज से संबंवधत मुद्दे (समस्याएं) ________________________________________________________ 11

1.10. पंचायती राज के विए रोडमैप (सुझाि) _________________________________________________________ 13

1.11. पंचायत ईपबंध (ऄनुसूवचत क्षेिों में विस्तार) ऄवधवनयम 1996 ________________________________________ 14
1.11.1. PESA की पृष्ठभूवम __________________________________________________________________ 14
1.11.2. PESA से संबंवधत समस्याएँ ____________________________________________________________ 15

1.12. िन ऄवधकार ऄवधवनयम (FOREST RIGHTS ACT: FRA) __________________________________________ 15


1.12.1. FRA के ऄंतगयत प्रदत्त ऄवधकार __________________________________________________________ 15
1.12.2. िन ऄवधकार ऄवधवनयम से संबंवधत चचताएँ _________________________________________________ 16
1.12.3. क्या ककया जाना चावहए _______________________________________________________________ 17

1.13. ऄर्द्य-सरकारी संस्थाएँ तथा सम्बंवधत समस्याएँ ___________________________________________________ 17

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2. शहरी स्थानीय शासन (Urban Local Governments) ________________________________________________ 18

2.1. 74िां संविधान संशोधन ऄवधवनयम ____________________________________________________________ 18


2.1.1. मुख्य प्रािधान _______________________________________________________________________ 18

2.2. संगठन ________________________________________________________________________________ 19

2.3. शहरी स्थानीय वनकायों के कायय _______________________________________________________________ 20

2.4. शहरी शासन के प्रकार _____________________________________________________________________ 20


2.4.1. नगर वनगम (Municipal Corporation) ____________________________________________________ 20
2.4.2. नगरपाविका (Municipality) ____________________________________________________________ 20
2.4.3. ऄवधसूवचत क्षेि सवमवत (Notified area committee) __________________________________________ 21
2.4.4. नगर क्षेिीय सवमवत (Town Area committee) ______________________________________________ 21
2.4.5. छािनी पररषद् (Cantonment Board) ____________________________________________________ 21
2.4.6. टाईन वशप _________________________________________________________________________ 21
2.4.7. न्यास पत्तन (Port Trust) ______________________________________________________________ 21
2.4.8. विशेष ईद्देश्य एजेंसी (Special Purpose Agency) ___________________________________________ 22

2.5. नगरीय वनकायों की सीमाएँ__________________________________________________________________ 22

2.6. वित्तीय स्रोत ____________________________________________________________________________ 22


2.6.1. वित्त से संबंवधत समस्याएं _______________________________________________________________ 23
2.6.2. वित्तीय सुधारों के संदभय में सुझाि__________________________________________________________ 23
2.6.3. म्युवनवसपि बांड _____________________________________________________________________ 24
2.6.4. 14िां वित्त अयोग और स्थानीय सरकार ____________________________________________________ 25
2.6.4.1. वित्त अयोग के प्रमुख सुझाि__________________________________________________________ 25

2.7. स्थानीय स्िशासन के विए योजनाएं ____________________________________________________________ 26


2.7.1. वजिा योजना सवमवत (DPCs) ___________________________________________________________ 26
2.7.1.1. DPCs से सम्बंवधत समस्याएं_________________________________________________________ 27
2.7.1.2. वजिा योजना सवमवतयों में सुधार ______________________________________________________ 27
2.7.2. महानगर योजना सवमवत ________________________________________________________________ 27

2.8. स्थानीय शासन की कें द्रीय पररषद् _____________________________________________________________ 28

2.9. वनिायचन संबंधी मामिों में न्यायािय के हस्तक्षेप पर प्रवतबंध ___________________________________________ 28

3. हाि के कु छ चर्चचत मुद्दे एिं निीन पहि ____________________________________________________________ 28

3.1. प्रत्यक्ष वनिायवचत महापौर/मेयर (Directly Elected Mayor) _________________________________________ 28

3.2. जनगणना नगरों का िैधावनक शहरी स्थानीय वनकायों में पररितयन _______________________________________ 29
3.2.1. िैधावनक शहरी स्थानीय वनकाय (ULBs) क्या हैं? _____________________________________________ 29
3.2.2. जनगणना नगर क्या है? ________________________________________________________________ 29
3.2.3. पररितयन की अिश्यकता क्यों? ___________________________________________________________ 30

3.3. शहरी विकास मंिािय: नए सुधार _____________________________________________________________ 30


3.3.1. सुधार हेतु सुझाये गए प्रमुख प्रािधान _______________________________________________________ 30

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3.4. ग्राम ईदय से भारत ईदय ऄवभयान _____________________________________________________________ 31


3.4.1. ऄवभयान की मुख्य विशेषताएं ____________________________________________________________ 31

3.5. राष्ट्रीय ग्राम स्िराज ऄवभयान ________________________________________________________________ 31

3.6 ऄमृत: ऄटि वमशन फॉर रे जि


ु नेशन एंड ऄबयन ट्ांसफॉमेशन_____________________________________________ 32

3.7. स्माटय वसटीज़ वमशन (Smart Cities Mission) ___________________________________________________ 33

3.8. स्िच्छ भारत वमशन _______________________________________________________________________ 35

3.9. वपछड़ा क्षेि ऄनुदान वनवध___________________________________________________________________ 36

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पंचायतें
1. पं चायती राज सं स्थाएँ {ऄनु . 243 से ऄनु . 243(O) तक}
 भारत के ऄवधकांश राज्यों में ग्रामीण स्थानीय स्िशासन की स्थापना हेतु राज्य विधावयकाओं के
ऄवधवनवयमों के तहत पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना की गयी हैं ताकक िोकतंि का वनचिे
स्तरों पर भी विस्तार ककया जा सके ।
 आन पंचायती राज संस्थाओं को ग्रामीण विकास का दावयत्ि सौंपा गया है। ईल्िेखनीय है कक
पंचायती राज संस्थाओं को 73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1992 के तहत संिध
ै ावनक दजाय
प्रदान ककया गया है।

1.1. भारत में पं चायती राज का विकास

 भारत में पंचायती राज निीन ऄिधारणा नहीं है। प्राचीन समय में भारतीय गांिों में पंचायतें
(पांच व्यवियों की पररषद्) होती थीं, वजन्हें काययकारी तथा न्यावयक दोनों शवियां प्राप्त थीं। भूवम
वितरण, कर संग्रहण अकद जैसे ऄनेक मुद्दें आन पंचायतों के वनयंिणाधीन थे तथा ये पंचायतें
स्थानीय वििादों का समाधान करती थीं।
 गांधी जी पंचायती राज के सशविकरण के समथयक थे। आस सन्दभय में ईनके विचारों के
पररणामस्िरूप ही हमारे संविधान के भाग IV (राज्य के नीवत के वनदेशक तत्ि) में पंचायतों के
गठन का प्रािधान शावमि है। ऄनुच्छेद 40 के ऄनुसार, पंचायतों के गठन का ईत्तरदावयत्ि राज्यों
का है तथा राज्य ईन्हें अिश्यक शवियाँ तथा ऄवधकार प्रदान करें गे ताकक िे सरकार की इकाइ के
रूप में कायय करने में सक्षम हो सकें । परं तु, यह ऄनुच्छेद पंचायतों के गठन के विए कदशा-वनदेश
नहीं देता है। ऄतः आस प्रकार यह एक औपचाररक संस्था है।
 पंचायतों की संरचना के विषय में सियप्रथम बििंतराय मेहता सवमवत (सामुदावयक विकास
काययक्रम की जांच सवमवत, 1952) ने 1957 में वसफाररश की थी। सवमवत ने निंबर 1957 में
ऄपनी ररपोटय में िोकतांविक विके न्द्रीकरण की योजना की वसफाररश की। वजसे भारत में ऄतंतः
पंचायती राज के रूप में जाना गया। बििंतराय मेहता सवमवत ने वि-स्तरीय व्यिस्था की
वसफाररश की थी वजसमें ग्राम पंचायत, क्षेि पंचायत (ब्िॉक स्तर पर पंचायत सवमवत) तथा वजिा
पंचायत (वजिा स्तर पर वजिा पररषद्) तीन स्तर थे। आसने ग्राम स्तर की पंचायतों के विए प्रत्यक्ष
चुनाि की वसफाररश की। राजस्थान, भारत में पंचायती राज स्थावपत करने िािा पहिा राज्य
था, वजसका अरम्भ 2 ऄक्टू बर 1959 को नागौर वजिे से ककया गया।
 1 कदसम्बर 1977 को पंचायती राज पर विचार हेतु ऄशोक मेहता सवमवत का गठन ककया गया।
आस सवमवत ने ऄगस्त 1978 में ऄपनी ररपोटय प्रस्तुत की। ऄशोक मेहता सवमवत ने पंचायती राज
को सशि बनाने हेतु विवभन्न वसफाररशें कीं वजसमें वनम्नविवखत प्रमुख है:
o विस्तरीय पंचायतें,
o वनयवमत सामावजक िेखा परीक्षण,
o पंचायती चुनाि में राजनीवतक दिों की भागीदारी,
o वनयवमत चुनाि,
o पंचायतों में ऄनुसूवचत जावतयों तथा ऄनुसूवचत जनजावतयों के विए अरक्षण तथा
o राज्य मंविमण्डि में पंचायती राज मंिी की व्यिस्था अकद।
 आसके ऄवतररि, 1985 में गरठत जी. िी. के . राि सवमवत ने पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत
करने के विए कु छ वसफाररशें कीं।

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 1986 में एि. एम. चसघिी सवमवत गरठत की गइ। आस सवमवत ने पहिी बार पंचायतों के

वनयवमत, स्ितंि ि वनष्पक्ष चुनाि सुवनवित करने के विए संिध


ै ावनक प्रािधानों पर विचार

ककया। आस सवमवत की वसफाररशों के अधार पर 1989 में राजीि गांधी सरकार ने पंचायती राज

को संिैधावनक दजाय प्रदान करने के विए िोकसभा में एक विधेयक (64िां संविधान संशोधन
विधेयक) पेश ककया। यह विधेयक राज्यसभा में पाररत नहीं हो सका।
 पुनः िी.पी. चसह सरकार ने भी सदन में एक विधेयक प्रस्तुत ककया, परं तु सरकार के वगरने के
कारण यह विधेयक समाप्त हो गया।
 ऄंततः पी. िी. नरचसहा राि सरकार ने िोकसभा में वसतंबर 1991 में एक विधेयक प्रस्तुत ककया।

यह विधेयक ऄंततः 73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1992 के रूप में पाररत हुअ तथा 24

ऄप्रैि 1993 को िागू हुअ।

1.2. 73िें सं विधान सं शोधन ऄवधवनयम, 1992 की विशे ष ताएँ

 73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1992 िारा संविधान में एक नया भाग (भाग IX) जोड़ा
गया।
 आसके साथ ही, संविधान में 11िीं ऄनुसच
ू ी भी जोड़ी गइ। आस सूची में पंचायतों के विए 29
विषय सवम्मवित ककए गये।
 आस ऄवधवनयम िारा पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना, सशविकरण तथा ईनके कायय संचािन
के विए संिैधावनक प्रािधान ककये गये। आस संशोधन ऄवधवनयम के कु छ प्रािधान राज्यों के विए
बाध्यकारी हैं, जबकक कु छ प्रािधान राज्य विधान मण्डि के वििेक पर छोड़ कदये गए हैं।
 नये कानून में राज्यों के विए बाध्यकारी प्रािधान वनम्नविवखत हैं:
o ग्राम सभाओं का संगठन।
o ग्राम, ब्िॉक तथा वजिा स्तर पर वि-स्तरीय पंचायती संरचना की स्थापना।
o िगभग सभी पदों पर और सभी स्तरों पर प्रत्यक्ष चुनाि का होना।
o पंचायती राज संस्थाओं में चुनाि िड़ने हेतु न्यूनतम अयु 21 िषय होनी चावहए।
o वजिा ि ब्िॉक स्तर पर ऄध्यक्ष पद का चुनाि ऄप्रत्यक्ष रूप से होना चावहए।
o ऄनुसूवचत जावतयों तथा जनजावतयों के विए सीटों का अरक्षण ईनकी जनसंख्या के ऄनुपात
में होना चावहए एिं मवहिाओं के विए पंचायतों में एक वतहाइ अरक्षण होना चावहए।
o पंचायती राज संस्थाओं में चुनाि हेतु राज्य वनिायचन अयोग का गठन।
o पंचायती राज संस्थाओं का काययकाि पांच िषय है, यकद आसे पहिे भंग ककया जाता है तो छः
माह के भीतर नया चुनाि करिाया जाएगा।
o प्रत्येक राज्य में एक राज्य वित्त अयोग की स्थापना की जाएगी।
 कु छ प्रािधान जो राज्यों पर गैर-बाध्यकारी हैं तथा आस संबंध में के िि कदशा-वनदेश प्रदान करते
हैं, ये हैं:
o आन संस्थाओं में के न्द्रीय और राज्य विधान सभाओं के सदस्यों को प्रवतवनवधत्ि देना।
o वपछड़े िगों को अरक्षण प्रदान करना।
o करारोपण, शुल्क अकद के संबंध में पंचायती राज संस्थाओं को वित्तीय शवियां प्रदान करना
तथा ईन्हें स्िायत्त वनकाय बनाने की कदशा में प्रयास करना।

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1.3. पं चायतों की सं र चना

 73िें संविधान संशोधन के ऄनुसार वि-स्तरीय पंचायती राज व्यिस्था स्थावपत की गइ। यह

व्यिस्था प्रत्यक्ष चुनाि पर अधाररत है। ये तीन स्तर- ग्राम स्तर, मध्यिती स्तर तथा वजिास्तर हैं।

 20 िाख से कम अबादी िािे छोटे राज्यों को मध्यिती स्तर से छू ट दी गइ है ऄथायत् ईन्हें


पंचायतों में मध्यिती स्तर रखने या न रखने की स्ितंिता है।
 पंचायत के सभी सदस्य प्रत्यक्ष रूप से वनिायवचत ककये जाते हैं। राज्यों को यह ऄवधकार है कक िह
राज्य विधावयका तथा संसद के सदस्यों को भी वजिा तथा मध्यिती स्तर में प्रवतवनवधत्ि प्रदान
करें ।
 मध्यिती पंचायत को सामान्यतः पंचायत सवमवत के रूप में जाना जाता है। ग्राम पंचायत का
ऄध्यक्ष मध्यिती पंचायत का सदस्य होता है। यकद ककसी राज्य में मध्यिती पंचायत नहीं है तो िह
वजिा पंचायत का सदस्य होगा।
 पंचायतों में ऄनुसूवचत जावत तथा जनजावत को अरक्षण प्रदान ककया गया है। पंचायतों में
मवहिाओं के विए एक वतहाइ सीटें अरवक्षत की गइ हैं, यह अरक्षण सभी िगों में क्षैवतज रूप में
है।
 ऄध्यक्ष पदों के विए भी अरक्षण प्रदान ककया जाता है। सीटों के अरक्षण में रोटेशन (अितयन)
पर्द्वत का प्रयोग ककया जाता है। राज्य विधानमंडि विवध िारा यह ईपबंध कर सकता है कक
ऄध्यक्ष का पद ऄनुसूवचत जावत या ऄनुसूवचत जनजावत या वपछड़ा िगय या मवहिा के विए
अरवक्षत होगा।

1.4. पं चायतों का कायय काि

 73िां संविधान संशोधन ऄवधवनयम पंचायतों में वनरं तरता प्रदान करता है। पंचायतों का सामान्य

काययकाि 5 िषय है। यकद पंचायत समय से पहिे भंग कर दी जाती है तो छह माह के भीतर चुनाि
कराया जाना अिश्यक है।
 पंचायतों के चुनाि के विए एक राज्य वनिायचन अयोग का प्रािधान है जो चुनािों का ऄधीक्षण,
वनदेशन तथा वनयंिण करता है और चुनाि संपन्न कराता है।

1.5. पं चायतों की शवियाँ ि ईत्तरदावयत्ि

 राज्य विधावयकाएँ, जमीनी स्तर पर स्िशासी संस्थाओं को सक्षम बनाने के विए ऄवधकार ि
शवियाँ प्रदान करती हैं। पंचायतों को अर्चथक विकास ि सामावजक न्याय का ईत्तरदावयत्ि भी
सौंपा जा सकता है।
 11िीं ऄनुसूची में िर्चणत 29 विषयों से संबंवधत अर्चथक ि सामावजक न्याय के विए काययक्रम जैसे-

कृ वष, प्राथवमक ि माध्यवमक वशक्षा, स्िास््य ि स्िच्छता, पेयजि, ग्रामीण अिास, कमजोर िगों

का कल्याण, सामावजक िावनकी अकद पंचायती राज संस्थाओं के ऄधीन हैं।

1.6 पं चायती राज की वि-स्तरीय सं र चना

1.6.1. ग्राम स्तर पर पं चायतें

 यह सबसे वनचिे स्तर या अधारभूत स्तर से संबंवधत है। एक या ऄवधक गाँिों के विए जो पंचायत
होती है, ईसमें ग्राम सभा (प्रत्यक्ष िोकतंि का प्रतीक), ग्राम पंचायत तथा न्याय पंचायत
सवम्मवित होती हैं।

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1.6.1.1. ग्राम सभा


 73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम में प्रत्यक्ष िोकतंि की एक संस्था के रूप में ग्राम सभा की
पहचान की गयी है।
 ककसी ग्राम की वनिायचक नामाििी में जो नाम दजय होते हैं, ईन व्यवियों को सामूवहक रूप से
“ग्राम सभा” कहा जाता है, ऄथायत् ग्राम सभा में गाँि स्तर पर गरठत पंचायत क्षेि में वनिायचक
सूची में पंजीकृ त सभी व्यवि सवम्मवित होते हैं। ऄतः आस प्रकार यह देश में प्रत्यक्ष िोकतंि की
महत्िपूणय संस्था है।
 ग्रामसभा की प्रत्येक िषय कम से कम दो बार बैठकें होती हैं। आन बैठकों में, िोगों की अम सभा के
रूप में पंचायतों के िार्चषक िेखा वििरण या प्रशासवनक ररपोटय पर चचाय होती है।
 ग्राम सभा पंचायतों िारा अरम्भ की जाने िािी नयी विकास पररयोजनाओं की भी वसफाररश
करती है। यह गांि के गरीब िोगों की पहचान करने में मदद करती है ताकक ईनकी अर्चथक
सहायता की जा सके ।

1.6.1.2. ग्राम पं चायत


 देश में पंचायती राज व्यिस्था का वनचिा स्तर ग्राम पंचायत है। यह ऄवधकांश राज्यों में ग्राम
पंचायत के रूप में ही जानी जाती है।
 ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाि प्रत्यक्ष रूप से जनता िारा ककया जाता है। ग्राम पंचायत के
सदस्यों की संख्या गांि की जनसंख्या के अधार पर वनधायररत होती है। ऄतः एक पंचायत से दूसरी
पंचायत में सदस्यों की संख्या में ऄंतर होता है।
 कु ि सीटों का 1/3 भाग मवहिाओं के विए अरवक्षत ककया गया है। ऄनुसूवचत जावतयों तथा
जनजावतयों की मवहिाओं के विए भी ऄनुसूवचत जावतयों एिं जनजावतयों हेतु अरवक्षत सीटों में
से 1/3 सीटें अरवक्षत है।
 ग्राम पंचायत का ऄध्यक्ष ऄिग-ऄिग राज्यों में ऄिग-ऄिग नाम से जाना जाता है, जैस-े सरपंच,
प्रधान या ऄध्यक्ष। ग्राम पंचायत के ऄध्यक्ष का चुनाि राज्य विधावयका िारा वनधायररत तरीके से
ककया जाता है (या तो ईन्हें प्रत्यक्ष चुना जाता है या ऄप्रत्यक्ष रूप से ग्रामपंचायत के सदस्यों
िारा)। ग्राम पंचायतों में से एक ईपाध्यक्ष भी होता है। ग्राम पंचायत की बैठक महीने में एक बार
होती है। पंचायतें सभी स्तर पर ऄपने कायों के विए सवमवत का गठन कर सकती हैं।

1.6.1.3. न्याय पं चायत

 न्याय पंचायतें, प्राचीन ग्राम पंचायतों की तरह स्थानीय वििादों के समाधान के विए हैं। यह
त्िररत तथा कम खचीिा न्याय प्रदान करने के विए स्थावपत की गइ है। न्याय पंचायतों का
ऄवधकार क्षेि ऄिग-ऄिग राज्यों में ऄिग-ऄिग है
 ऄवधकतर ग्राम पंचायतों में न्याय पंचायतों का काययकाि 5 िषय है। राज्य कानूनों के ऄनुसार
सामान्यतः आनका काययकाि 3 से 5 िषय रखा जाता है।
 ये पंचायतें अपरावधक तथा वसविि दोनों मामिे देखती हैं। न्याय पंचायतें ऄवधकतम 100 रुपये
तक जुमायना िगा सकती हैं। आनमें िकीि की भूवमका नहीं होती है। दोनों पक्ष स्ितः ही ऄपने-
ऄपने तकय देते हैं।
1.6.2. पं चायत सवमवत

 पंचायती राज की मध्यिती संरचना को पंचायत सवमवत कहते हैं। यह वजिा पररषद् एिं ग्राम
पंचायत के मध्य सम्पकय सूि का कायय करती है।
 कु छ पंचायतों में विधानसभा तथा विधान पररषदों के सदस्यों के साथ-साथ संसद के सदस्य भी
पंचायत सवमवत के सदस्य होते हैं। पंचायत सवमवत के ऄध्यक्ष का चुनाि ऄप्रत्यक्ष रूप से पंचायत
सवमवत के वनिायवचत सदस्यों िारा ककया जाता है।

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1.6.3. वजिा पररषद्

 वजिा पररषद् या वजिा पंचायत, पंचायती राज का सिोच्च स्तर है।


 पंचायत सवमवत के ऄध्यक्ष, वजिा पररषद् के पदेन सदस्य होते हैं। वजिे से संबंवधत संसद सदस्य,
विधान सभा तथा विधानपररषद् के सदस्य, वजिा पररषद् के सदस्य होते हैं।
 वजिा पररषद् के ऄध्यक्ष का चुनाि ऄप्रत्यक्ष रूप से ईसके सदस्यों िारा ईन्हीं के बीच से ककया
जाता है। ईपाध्यक्ष का चुनाि भी आसी प्रकार होता है। वजिा पररषद् की बैठक एक महीने में एक
बार अयोवजत की जाती है। विशेष मुद्दों पर चचाय हेतु विशेष सम्मेिन भी अयोवजत ककए जा
सकते हैं। ककसी विषय से संबंवधत मुद्दों पर चचाय के विए विषय संबंवधत सवमवतयाँ भी बनाइ जा
सकती हैं।
1.7. पं चायती राज सं स्थाओं के कायय

पंचायती राज संस्थायें िे कायय करती हैं वजनका राज्य के कानूनों में ईल्िेख ककया गया है। आन्हें
वनम्नविवखत शीषयकों के माध्यम से समझा जा सकता हैं:

1.7.1. ग्राम पं चायतों के कायय

 कु छ राज्य ग्राम पंचायतों के ऄवनिायय तथा िैकवल्पक कायों में ऄंतर करते हैं जबकक कु छ राज्य आस
ऄंतर को नहीं मानते हैं। साियजवनक सड़कें , छोटी चसचाइ पररयोजनाएँ, साियजवनक शौचािय,
प्राथवमक स्िास््य, टीकाकरण, पेयजि की अपूर्चत, साियजवनक कु ओं का वनमायण, ग्रामीण
विद्युतीकरण, सामावजक स्िास््य और प्राथवमक ि प्रौढ़ वशक्षा अकद से संबंवधत कायय पंचायतों के
विए ऄवनिायय हैं।
 पंचायतों के िैकवल्पक कायय ईनके संसाधनों पर वनभयर करते हैं। सड़कों के ककनारे िृक्षारोपण, पशु
प्रजनन कें द्र, बाि तथा मातृत्ि विकास, कृ वष को बढ़ािा देना अकद पंचायतों के ऐवच्छक कायय हैं।
 73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम के बाद ग्राम पंचायतों के कायों के दायरे में िृवर्द् की गइ।
िार्चषक विकास योजनाओं का वनमायण, िार्चषक बजट, प्राकृ वतक अपदा में राहत, साियजवनक भूवम
पर ऄवतक्रमण हटाना और गरीबी ईन्मूिन काययक्रमों की वनगरानी जैसे महत्िपूणय कायय भी ऄब
पंचायतों को सौंप कदए गए हैं। साथ ही, साियजवनक वितरण प्रणािी, गैर परं परागत उजाय स्रोत,
बायोगैस संयंि, ग्राम पंचायतों के िाभार्चथयों का चयन अकद कायय भी ग्रामपंचायतों को सौंप कदये
गये हैं।
1.7.2. पं चायत सवमवत के कायय

 पंचायत सवमवत विकास गवतविवधयों के के न्द्र में होती है। कृ वष, भूवम सुधार जिसंभर का विकास,
सामावजक एिं कृ वष िावनकी, तकनीकी एिं व्यिसावयक वशक्षा अकद पंचायत सवमवतयों के कायय
हैं।
 दूसरे प्रकार के कायय कु छ विवशष्ट योजनाओं ि काययक्रमों के कक्रयान्ियन से संबंवधत हैं, वजसके विए
वनवध वनधायररत की जाती है। आसका ऄथय है कक पंचायत सवमवत के िि ईस विवशष्ट पररयोजना पर
धन खचय कर सकती है जो ईसके कायय क्षेि में है। य़द्यवप स्थान तथा िाभाथी का चयन पंचायत
सवमवत िारा तय ककया जाता है।
1.7.3. वजिा पररषद् के कायय

 वजिा पररषद्, वजिे के भीतर पंचायत सवमवतयों को एकजुट करती है। यह ईनकी गवतविवधयों में
समन्िय करती है तथा ईनके कामकाज की वनगरानी करती है।

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 यह सम्पूणय वजिे के विए योजना तैयार करती है और आन्हें राज्य सरकार के समक्ष प्रस्तुत करने से
पूिय विवभन्न योजनाओं को एकीकृ त करती है।
 वजिा पररषद्, सम्पूणय वजिे के विकासात्मक कायों की देख-रे ख करती है। कृ वष ईत्पादन में सुधार,

भूवमगत जि दोहन, ग्रामीण विद्युतीकरण, रोजगार से संबवं धत गवतविवधयों का शुभारं भ, सड़क


वनमायण अकद कायय वजिा पररषद् िारा ककये जाते हैं।
 वजिा पररषदों िारा प्राकृ वतक अपदा राहत कायय, ऄनाथाियों की स्थापना, गरीबों के विए घर,

मवहिाओं तथा बच्चों का कल्याण अकद जैसे कल्याणकारी कायय भी ककए जाते हैं।

 आसके ऄवतररि वजिा पररषदें, के न्द्र तथा राज्य सरकार िारा प्रायोवजत योजनाओं का संचािन
भी करती हैं।

1.8. वित्तीय स्रोत

1.8.1. पं चायतों के अय के स्रोत

 पंचायतें ऄपने कायों को कु शितापूियक तभी कर सकती हैं, जब ईनके पास पयायप्त वित्तीय संसाधन
ईपिब्ध हो। संसाधनों के विए पंचायतें मुख्यतः राज्य सरकार पर वनभयर होती हैं।
 ईनके पास कराधान की शवियां भी हैं तथा कु छ अय पररसंपवतयों से भी प्राप्त होती है। ईन्हें राज्य
सरकारों के कर, शुल्क, टोि टैक्स तथा फीस अकद में भी वहस्सा प्राप्त होता है। विवभन्न स्तरों पर
पंचायतों के पास वित्त के वनम्नविवखत साधन हैं:

1.8.1.1. ग्राम पं चायत

 ऄवधकांश राज्यों में करारोपण की शवि ग्राम पंचायतों में वनवहत है। गांिों में ईत्पादों की वबक्री
पर शुल्क, मिेशी कर, ऄचि संपवत्त कर, िावणवज्यक फसिों पर कर, जि वनकासी कर, स्िच्छता

शुल्क, जि अपूर्चत शुल्क, प्रकाश शुल्क अकद पंचायतों िारा िगाये गये कु छ कर और शुल्क हैं।

 पंचायतें ऄस्थायी रूप से स्थावपत वथयेटर पर कर, मिेशी कर तथा मनोरं जन शुल्क िसूि करती

हैं। ग्राम पंचायतों को ऄपने स्िावमत्ि की भूवम, जंगि, पशुचारा से भी अय के रूप में धन प्राप्त
होता है। िे गोबर वबक्री तथा जानिरों के शिों की वबक्री से अय प्राप्त करती हैं। राज्य के भू-
राजस्ि में भी ईनका वहस्सा होता है।

1.8.1.2. पं चायत सवमवत

 पंचायत सवमवतयाँ पेयजि या चसचाइ जि पर कर, टोि टैक्स िसूि सकती हैं। पंचायत ऄपनी
पररसंपवतयों से भी अय प्राप्त करती है। िे राज्य सरकार से ऄनुदान प्राप्त करती हैं।
 पंचायत सवमवतयों िारा अरम्भ की जाने िािे योजनाओं के विए वनवध, राज्य सरकार तथा वजिा
पररषदों िारा प्रदान की जाती है।

1.8.1.3. वजिा पररषद्

 वजिा पररषदें भी करारोपण के विए ऄवधकृ त हैं। िे ऐसे कारोबार पर कर िगा सकती हैं, जो

गाँिों में छः माह से ऄवधक समय से चि रहा हो। िे मध्यस्थों, कमीशन एजेंटों, िस्तुओं की वबक्री
अकद पर भी कर िगा सकती हैं।
 ईन्हें विकास योजनाओं को िागू करने के विए भी धन कदया जाता हैं। वजिा पररषदें, राज्यों िारा

ऄनुदान भी प्राप्त करती हैं।

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1.8.2. पं चायतों के वित्तीय सं साधनों से सं बं वधत समस्याएं

राज्य सरकारें सामान्यतया पंचायतों के वित्तीय सशविकरण पर ध्यान नहीं देती हैं। पंचायतों की
वित्तीय समस्याओं से संबंवधत कु छ मुद्दे वनम्नविवखत हैं:
 राज्य ि के न्द्र सरकारों पर ऄत्यवधक वनभयरता: पंचायतें, सरकारी ऄनुदानों पर ऄत्यवधक वनभयर हैं
तथा ईनके अंतररक संसाधन के स्रोत ऄत्यवधक कमजोर है। आसका एक अंवशक कारण ईनके पास
करारोपण की न्यून शवि तथा दूसरा अंवशक कारण कर संग्रहण की ऄवनच्छा है।
 प्राप्त वनवध में िचीिेपन का ऄभाि: संघ तथा राज्य सरकारों िारा कदया जाने िािा ऄनुदान
योजना अधाररत होता है तथा पंचायतों के पास आनके खचय की शवियां सीवमत होती हैं।
 ऄवधक ईत्तरदावयत्ि एिं कम वित्तीय संसाधन: ऄपनी दयनीय राजकोषीय वस्थवत के कारण राज्य
सरकारें पंचायतों को धन देने को ईत्सुक नहीं होती हैं। 11िें ऄनुसूची में ईवल्िवखत प्राथवमक

वशक्षा, स्िास््य, जि-अपूर्चत, स्िच्छता, चसचाइ अकद जैसे काययक्रम राज्य सूची के विषय हैं तथा
आनके कायायन्ियन का ईत्तरदावयत्ि भी राज्यों का है। समग्र वस्थवत यह है कक पंचायतों के पास
ईत्तरदावयत्ि ऄवधक है तथा संसाधन ऄपयायप्त हैं।

1.8.3. पं चायतों का वित्तीय सशविकरण ककस प्रकार ककया जाए

आसे हम वनम्नविवखत शीषयकों के ऄंतगयत समझ सकते हैं:


 ऄवतररि स्रोतों की खोजः पंचायतों को ईनके कर अधार को विस्तृत करने के विए राजस्ि के
ऄवतररि स्रोत खोजने चावहए। ग्राम पंचायतों को भूवम और आमारतों से संबंवधत पारं पररक करों के
ऄवतररि नए स्रोतों को खोजने की अिश्यकता है। आसके साथ ही नये ईभरते क्षेि तथा गैर कर
ईपायों से ऄपने संसाधन बढ़ाने की अिश्यकता है। पययटन िाहनों, विशेष सुविधाओं, रे स्टोरें ट,

वथयेटर, साआबर कै फे अकद पर शुल्क िगाने की अिश्यकता है।


 बेहतर प्रदशयन की अिश्यकता: पंचायती राज मंिािय ने पंचायतों के सशिीकरण तथा
जिाबदेही को प्रोत्सावहत करने के विए पंचायत सशिीकरण जिाबदेही कोष की स्थापना की है।
 खवनजों में रॉयल्टी: खवनजों से संबंवधत शुल्क और कर हेतु राज्य सरकार के ऄवधकार सीवमत ककये
जाने चावहए तथा आनमें पंचायती राज संस्थानों को पयायप्त वहस्सेदारी दी जानी चावहए। पंचायतों
के विए वित्तीय संसाधनों के हस्तांतरण पर वसफाररश करते समय राज्य वित्त अयोग को आस पहिू
पर विचार करना चावहए।
 कराधान पर प्राथवमक प्रावधकार: कर क्षेि में पंचायतों को करारोपण के संबंध में प्राथवमक
प्रावधकार प्राप्त होना चावहए। जहां ऄंतर-पंचायत कराधान की अिश्यकता है, िहां ईच्चतर स्तर
की पंचायतों (मध्यिती पंचायत ि वजिा पररषद्) को एक सीमा तक समिती शवियाँ दी जा
सकती हैं। जब भी ईच्चतर स्तर की पंचायतों िारा कर ि शुल्क िगाये जाएँ तो ईनका संग्रहण
संबंवधत ग्राम पंचायत िारा ककया जाना चावहए।

1.9. पं चायती राज से सं बं वधत मु द्दे (समस्याएं )

आसे हम वनम्नविवखत शीषयकों के ऄंतगयत समझ सकते हैं:


 कायों का ऄिैज्ञावनक वितरण: पंचायती राज व्यिस्था के तहत विवभन्न स्तरों की संरचनाओं के
बीच कायों के िैज्ञावनक वितरण के मामिे में दोषपूणय पर्द्वत को ऄपनाने के अरोप िगते रहते हैं।
विकास तथा स्थानीय स्िशासन के कायों के वमश्रण ने पंचायती राज संस्थानों की स्िायत्तता
ऄत्यंत कम कर दी है और आसे सरकारी एजेंवसयों के रूप में पररिर्चतत कर कदया गया है। पंचायत
ि पंचायत सवमवतयों के कायों में दोहराि, भ्रम की वस्थवत तथा सुवनवित जिाबदेही एिं
ईत्तरदावयत्ि का ऄभाि पाया जाता है।

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 तीनों स्तरों के बीच ऄसंगत संबध
ं : तीनों स्तर एक कायायत्मक प्रावधकरण के रूप में कायय नहीं
करते, उपरी स्तर िारा वनचिे स्तर को ऄपने ऄधीन समझने की प्रिृवत्त पररिवक्षत होती है। प्रायः
यह अरोप िगाया जाता है कक आनमें श्रेणीक्रम िचयस्ि का मुद्दा अम है जो वजिा पररषद् से
पंचायत सवमवत और तत्पिात ग्राम पंचायत तक श्रेणीबर्द् रूप में कदखती है। आस प्रकार के
पारस्पररक संबंध िोकतांविक विके न्द्रीकरण से ऄसंगतता रखते हैं।
 ऄपयायप्त वित्तः ऄपयायप्त वित्त पंचायती राज की सफिता के मागय में प्रमुख बाधा है। पंचायती राज
संस्थाओं के पास करों और ईपकरों के अरोपण की सीवमत शवियाँ हैं। राज्य सरकारें , ईन्हें ऄत्यल्प
कोष प्रदान करती हैं। ये संस्थाएँ जनता में िोकवप्रयता खोने के भय से कर िगाने तथा ईसे िसूिने
से बचती हैं।
 ऄवधकाररयों तथा प्रवतवनवधयों में सौहाद्रयपण
ू य संबध
ं ों की कमी: पंचायती राज को ऄपनाने का मुख्य
ईद्देश्य िोगों की प्रभािी सहभावगता प्राप्त करना था, परं तु यह संभि नहीं हुअ। आन संस्थाओं में
तकनीकी पदों तथा प्रशासवनक पदों पर सरकार िारा वनयुवियां की जाती है। यहाँ पर खंड
विकास ऄवधकारी, वजिावधकारी तथा जनता के मध्य सहयोग ि समन्िय का ऄभाि पाया जाता
है तथा ऄवधकारी ऄपने कतयव्यों का वनिायह ऄपेवक्षत कु शिता के साथ नहीं करते हैं।
 िैचाररक स्पष्टता का ऄभाि: पंचायती राज की ऄिधारणा तथा ईद्देश्यों में स्पष्टता का ऄभाि है।
कु छ िोग आसे के िि प्रशासवनक संस्था के रूप में मानते है, जबकक कु छ िोग आसे ज़मीनी स्तर पर
िोकतंि की स्थापना के रूप में देखते है जबकक कु छ ऄन्य आसे स्थानीय स्िशासन का एक चाटयर
मानते हैं। सिायवधक कदिचस्प त्य यह है कक ये सभी िैचाररक धारणाएँ एक साथ ऄवस्तत्ि में हैं
जो समय-समय पर परस्पर प्रभािी होने का प्रयास करती हैं।
 पंचायती राज संस्थाओं का ऄिोकतांविक संघटन: विवभन्न पंचायती राज संस्थाओं का गठन
िोकतांविक मानदण्डों ि वसर्द्ान्तों के अधार पर ककया जाता है। पंचायत सवमवत के प्रमुख का
ऄप्रत्यक्ष चुनाि भ्रष्टाचार ि ररश्वतखोरी की संभािना को बढ़ाता है। वजिा पररषद् में पदेन सदस्यों
का सवम्मवित होना (वजनमें ऄवधकांशतः सरकारी कमयचारी होते हैं) िोकतांविक वसर्द्ान्तों के
विपरीत है।
 संरचनात्मक तथा कायायत्मक मोचे पर ऄसफिताः पंचायती राज संस्थानों के कायय वनष्पादन को
जावतिाद तथा गुटबंदी ने ऄत्यवधक प्रभावित ककया है। विकास पररयोजनाओं को समय पर पूरा
करना एक स्िप्न बन गया है। भ्रष्टाचार, ऄक्षमता, प्रकक्रयात्मक वििम्ब, प्रशासन में राजनीवतक

हस्तक्षेप, सेिा भािना के बजाय शवि ऄजयन पर ध्यान देना आत्याकद पंचायती राज की सफिता में
सबसे बड़ी बाधाएँ हैं। आसके ऄवतररि राज्य सरकारों िारा पंचायतों की शवि का ऄवतक्रमण
ककया जाना, िोकतांविक विके न्द्रीकरण की भािना का ईल्िंघन है।
 प्रशासवनक समस्याएँ: पंचायती राज संस्थाओं को कइ प्रशासवनक समस्याओं का सामना करना
पड़ता है, जैस-े स्थानीय प्रशासन का राजनीवतकरण, िोकप्रवतवनवध तथा नौकरशाही तत्िों के
मध्य सहयोग का ऄभाि, प्रशासवनक कर्चमयों हेतु यथोवचत प्रोन्नवत के ऄिसर तथा पाररतोवषक का
ऄभाि और सरकारी कर्चमयों का विकासात्मक काययक्रमों के प्रवत ईदासीन दृवष्टकोण आत्याकद
पंचायती राज के सुचारू तथा कु शि कक्रयान्ियन में बाधा ईत्पन्न करते हैं।
 पंचायती राज संस्थाओं का राजनीवतकरणः यह ऄनुभि ककया जा रहा है कक पंचायती राज
संस्थाएँ, राजनीवतक दिों, विशेष रूप से राज्य में सत्तासीन दि का संगठनात्मक ऄंग बनती जा
रही हैं। कइ राज्यों में राज्य सरकारें पंचायती राज संस्थाओं को ऄपनी सुविधा के अधार पर कायय
करने की ऄनुमवत देती है, न कक िोकतांविक विके न्द्रीकरण के दशयन के अधार पर।

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1.10. पं चायती राज के विए रोडमै प (सु झाि)

 पंचायती राज मंिािय की स्थापना, 27 मइ 2004 को 73िें संविधान संशोधन के प्रािधानों के


कक्रयान्ियन की वनगरानी तथा पंचायती राज संस्थाओं को ऄवधकारों के हस्तांतरण में गवत देने के
विए की गयी थी।
 आस मंिािय िारा विवभन्न क्षमता वनमायण काययक्रमों को कक्रयावन्ित ककया गया, ऄनुसंधान एिं
मूल्यांकन को संचावित ककया गया तथा ऄवधकारों के हस्तांतरण के विए पुरस्कार योजनाओं को
बढ़ािा कदया गया।
 आस मंिािय ने मंवि-स्तरीय तथा वनम्न स्तरीय सम्मेिनों का अयोजन ककया वजससे ऄवधकारों के
हस्तांतरण को बढ़ािा वमिे। आन प्रयासों में देश में पंचायती राज संस्थाओं के कायय-वनष्पादन में
सुधार के विए रोडमैप तैयार करना शावमि था, वजसके कु छ महत्त्िपूणय पहिू आस प्रकार हैं:
(i) वित्तः राज्य सरकारों िारा पंचायतों को हस्तांतररत की जाने िािी समग्र ऄनुदान रावश बढ़ाइ जानी
चावहए तथा के न्द्र ि राज्य सरकारों पर वनभयरता कम करने के विए पंचायतों को कर िसूिने ि एकि
करने का ऄवधक स्पष्ट ऄवधकार कदया जाना चावहए।
 वनवध के आस हस्तांतरण को प्रदशयन से जोड़ा जाना चावहए। आस संदभय में पंचायत सशविकरण और
जिाबदेही प्रोत्साहन योजना (Panchayat Empowerment and Accountability
Incentive Scheme: PEAIS) महत्िपूणय है। यह योजना पंचायतों के सशविकरण के विए
तैयार की गइ है, वजससे पंचायतों में पारदर्चशता तथा ईत्तरदावयत्ि सुवनवित करने का तंि िाया
जा सके ।
 आस वस्थवत में विवभन्न राज्यों के वनष्पादन को हस्तांतरण सूचकांक (Devolution Index: DI)
िारा मापा जा सकता है। आस सूचकांक में ईच्च स्थान पर रहने िािे राज्यों को टोकन पुरस्कार
कदया जाता है। आसके ऄवतररि, PEAIS के तहत राज्यों का मूल्यांकन दो चरणों में होता है।
पहिा चरण (वजसे फ्रेमिकय मापदण्ड कहा जाता है) वनम्नविवखत चार मौविक संिैधावनक
अिश्यकताओं पर अधाररत हैं:
o राज्य वनिायचन अयोग की स्थापना,
o पंचायती राज के चुनािों का अयोजन,
o राज्य वित्त अयोग की स्थापना तथा
o वजिा योजना सवमवतयों (DPCs) का गठन।
 जो राज्य आन अिश्यकताओं को पूरा करते हैं, िे हस्तांतरण सूचकांक पर मूल्यांककत ककये जाने की
योग्यता रखते हैं। आन्हें 3Fs: कायय, कायायन्ियन ऄवधकारी और कोष (Function,
Functionaries and Fund) के ऄनुसरण में मापा जाता है। हािांकक PEAIS के विए विकवसत
DI ऄभी तक पंचायती राज व्यिस्था की जिाबदेही ि प्रदशयन को स्पष्ट करने में सक्षम नहीं हो
सका है।
(ii) सशविकरण: पंचायती राज संस्थाओं हेतु प्रगवतशीि हस्तांतरण को 3Fs के माध्यम से सुवनवित
ककया जाना चावहए। पंचायतों में मवहिाओं के विए अरक्षण बढ़ाया जाना चावहए। PESA कानून को
प्रभािी ढंग से िागू ककया जाना चावहए।
(iii) जिाबदेही: ररपोटय की ऄनुशंसा है कक ग्रामसभा को स्थानीय संस्थाओं ि ऄवधकाररयों पर प्रभािी
वनयंिण कदया जाना चावहए तथा आसे योजनाओं, कायों, िाभार्चथयों, िाभाथी प्रमाणपिों की मंजरू ी के
विए ऄवधकृ त ककया जाना चावहए। आसके ऄवतररि, ग्रामसभा की सभी योजनाओं के विए सामावजक
ऄंकेक्षण ऄवनिायय बनाया जाना चावहए। पंचायतों के खातों, योजनाओं अकद को ऑनिाआन पवब्िक
डोमेन में रखा जाना चावहए। पंचायती राज मंिािय यह ऄपेक्षा करता है कक PRIs शासन को
विकासात्मक प्रकक्रया में महत्िपूणय स्थान कदया जाएगा।

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(iv) इ-गिनेंस: इ-पंचायत का संचािन एक वमशनमोड के ऄंतगयत प्राथवमकता के अधार पर ककया

जाना चावहए। सभी ग्राम पंचायतों को ICT ऄिसंरचना तथा कु शि मानि श्रम प्रदान ककया जाना

चावहए। ईन्हें ब्रॉडबैण्ड से जोड़ा ककया जाना चावहए। साथ ही, सबसे वनचिे स्तर तक इ-गिनेस
व्यिस्था को विस्ताररत करने हेतु ऄन्य ईपाय करने चावहए।
(vi) विके न्द्रीकृ त वनयोजन: एकीकृ त बॉटम-ऄप (नीचे से उपरी स्तर की ओर) सहभागी योजना िागू

की जानी चावहए। क्षेििार योजनाओं (sectoral plans) को वजिा योजनाओं के साथ एकीकृ त ककया
जाना चावहए। विके न्द्रीकृ त योजना के विए तकनीकी तथा व्यिसावयक पेशेिर प्रदान ककये जाने
चावहए। पंचायती राज प्रवतवनवधयों तथा ऄवधकाररयों को पयायप्त प्रवशक्षण प्रदान ककया जाना चावहए।

1.11. पं चायत ईपबं ध (ऄनु सू वचत क्षे िों में विस्तार) ऄवधवनयम 1996

{Panchayat Extension to Scheduled Areas Act 1996 (PESA)}

1.11.1. PESA की पृ ष्ठ भू वम

 यह कानून भारत सरकार िारा ऄनुसूवचत क्षेिों के विए वनर्चमत ककया गया है। ये क्षेि 73िें
संविधान संशोधन में शावमि नहीं हैं।
 यह विशेष ऄवधवनयम ऄनुसूवचत क्षेिों में भाग-IX के प्रािधानों को िागू करता है। PESA आन

क्षेिों में सत्ता के विके न्द्रीकरण को ग्रामसभा स्तर तक िे जाता है।

 आस ऄवधवनयम में ग्रामसभा को भूवम ऄवधग्रहण के संबंध में परामशय प्रदान करने, िघु िन ईत्पादों
के स्िावमत्ि से िेकर खवनज के पट्टे प्रदान करने के संबंध में परामशय अकद करने तक की विस्तृत
शवियाँ प्रदान की गइ हैं।
 PESA ईस समय ऄवस्तत्ि में अया, जब भारतीय ऄथयव्यिस्था में प्रत्यक्ष विदेशी वनिेश को
अकषयक बनाने हेतु ऄनेक प्रयास ककए जा रहे थे। ऄवधकांश: खनन क्षेि ऄनुसूवचत क्षेिों में वस्थत
है, जहां यह क़ानून िागू है। यहाँ बहुराष्ट्रीय कम्पवनयों और भारतीय कापोरे ट क्षेि के अने से
खवनज संसाधनों का ऄंधाधुंध दोहन सस्ती दरों पर और तीव्र गवत से हो रहा था।
 PESA की एक महत्िपूणय विशेषता यह है कक प्रत्येक ग्राम सभा को ऄपनी परं परा, संस्कृ वत,

पहचान, तथा परं परागत प्रकार से वििाद समाधान के तरीके के संदभय में विशेष शवियां दी गइ
है।
 आसके ऄिािा ग्राम सभा या पंचायतों को वनम्नविवखत शवियां दी गइ हैं:
o भूवम ऄवधग्रहण ि पुनिायस के मामिों पर परामशय की शवि।
o िघु खवनजों के विए खनन पट्टा ि पययिेक्षण िाआसेंस हेतु ऄनुदान।
o िघु जि वनकायों हेतु योजना वनमायण एिं प्रबंधन की शवि।
o नशीिे पदाथों की वबक्री, ईपभोग को वनयंवित या प्रवतबंवधत करने की शवि।
o िघु िन ईपजों के ईत्पादन पर स्िावमत्ि।
o भूवम विखण्डन को रोकने की शवि।
o ग्राम बाजारों के प्रबंधन की शवि।
o ऄनुसूवचत जनजावतयों की ऊण संबंधी अिश्यकताओं को वनयंवित करने की शवि।
o पंचायतों को व्यापक शवियाँ प्रदान करते हुए आस कानून ने ईन्हें ऄवतररि वजम्मेदारी सौंपी
है वजससे िे स्थानीय स्िशासन के रूप में कायय करने में सक्षम हो। आसमें यह रक्षोपाय है कक
ईच्चस्तरीय पंचायतें, वनम्नस्तरीय पंचायतों के ऄवधकार ि शवियों का हरण न कर सकें ।

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1.11.2. PESA से सं बं वधत समस्याएँ

 जनजातीय सिाहकार पररषदों की भूवमका को कम करनाः PESA, संविधान की पाँचिीं ऄनुसच


ू ी
के ऄन्तगयत अता है। यह ऄनुसूची जनजातीय मामिों की देखरे ख करने के विए जनजातीय
सिाहकार पररषदों के गठन की शवि देती है तथा आसका ईद्देश्य प्रत्येक राज्य की सरकार को
ऄवतररि न्यावयक, संिैधावनक शवियाँ प्रदान करना है ताकक िे जनजातीय स्िायत्तता से संबंवधत
मुद्दों का समाधान कर सकें ।
o हािाँकक ये पररषदें राजनीवतक रूप से गैर मुखर संस्था के रूप में विकवसत हुइ हैं वजसमें
प्रवतवनवधयों ने राज्य सरकारों की नीवतयों का शायद ही कभी विरोध ककया हो।
o राज्यपाि, मुख्यमंिी से ऄच्छे संबंध बनाए रखने के प्रयास में जनजातीय मामिों में हस्तक्षेप
नहीं करता है। बहुधा जनजातीय मुद्दों से जुड़े काययकताय यह अरोप िगाते हैं कक राज्यपाि
ईनकी समस्याओं से संबंवधत यावचकाओं के मामिों में हस्तक्षेप नहीं करते हैं।
 संचािन का ऄभाि: आस ऄवधवनयम के िागू होने के अठ िषय बाद भी ऄवधकांश राज्यों ने ऄभी
तक आससे संबंवधत वनयम नहीं बनाए हैं। राज्य सरकारें , PESA के प्रािधानों को िागू करने में
ऄक्षम हैं।
 PESA की मूि भािना की ईपेक्षा: राज्य विधावयकाओं ने PESA से संबंवधत कु छ बुवनयादी

वसर्द्ान्तों को िागू नहीं ककया कदया। आन वसर्द्ान्तों के वबना PESA मूि रूप में कभी िागू नहीं हो

सकता है। जैस-े PESA के ऄनुसार राज्य कानून, जनजावतयों की प्रथाओं के ऄनुरूप होंगे तथा
प्रथाओं के ऄनुसार ही पारम्पररक संसाधनों का प्रबंधन ककया जाएगा।
 ऄस्पष्ट पररभाषाएँ: आस कानून में कु छ शब्दों की पररभाषा ऄस्पष्ट है। िघु जि वनकाय, िघु
खवनज की कोइ स्पष्ट पररभाषा नहीं दी गयी है।

1.12. िन ऄवधकार ऄवधवनयम (Forest Rights Act: FRA)

 यह ऄवधवनयम कदसम्बर, 2006 में पाररत हुअ था। आसका मुख्य ईद्देश्य िनों में वनिास करने िािे
समुदायों के भूवम सवहत ऄन्य संसाधनों पर ऄवधकार को सुवनवित करना है।
 आस ऄवधवनयम के ऄंतगयत, सकदयों पूिय से पारं पररक रूप से िनों में रहने िािे समुदायों के साथ
विवभन्न िन कानूनों के कारण हुए ऄन्याय को अंवशक रूप से ही सही समाप्त करने का बेहतर
प्रयास ककया गया है। साथ ही, आन समुदायों के पारं पररक िनावधकारों को मान्यता प्रदान की गइ
है।
 यह ऄवधवनयम कइ दशकों तक विवभन्न जनजावतयों, ईनके संगठनों, जनजातीय मुद्दों से संबंवधत
ऄसंख्य सामावजक काययकतायओं एिं बुवर्द्जीवियों के ऄथक प्रयास एिं संघषय का पररणाम हैं।

1.12.1. FRA के ऄं त गय त प्रदत्त ऄवधकार

 स्िावमत्ि संबध
ं ी ऄवधकार (Title rights): 4 हेक्टेयर तक की ईस भूवम पर जनजावतयों,
िनिावसयों या िन में रहने िािे समुदायों के स्िावमत्ि को मान्यता वजस पर िे कृ वष संबंवधत कायय
कर रहे हैं। आनके ऄंतगयत, नइ भूवम को अबंरटत नहीं ककया जाएगा। बवल्क, वजस भूवम पर संबंवधत

पररिार िारा खेती की जा रही है, के िि ईसी पर ऄवधकार के दािे को स्िीकार ककया जाएगा।

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 पुनिायस एिं विकासात्मक ऄवधकार: आसमें पारं पररक िनिावसयों को गैर कानूनी ढंग से तथा
बिपूियक कराए गए विस्थापन की वस्थवत में पुनिायस की व्यिस्था का प्रािधान है। साथ ही, िनों
की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आन िनिावसयों को मूिभूत सुविधाएँ प्रदान की जाएंगी।
 ईपयोग संबध
ं ी ऄवधकार: िन में रहने िािे आन समुदायों के िघु िन ईत्पादों, पशुचारण हेतु
विवभन्न क्षेिों एिं चारा अकद के ईपयोग से सम्बंवधत ऄवधकारों को सुवनवित ककया गया है।
 िन प्रबंधन ऄवधकार: िन एिं िन्य जीिों को सुरवक्षत करने एिं संरवक्षत करने संबंधी प्रबंधन
कायों में आन िनिावसयों की सहभावगता को स्िीकार ककया गया है।
 ऄहयता: आस ऄवधवनयम के ऄंतगयत प्रदत्त ऄवधकारों हेतु ईन्हीं को योग्य माना जाएगा:
o जो ऄपनी अजीविका के विए ‘िन’ या ‘िन भूवम’ पर अवश्रत हैं एिं ‘प्राथवमक रूप से िनों में
ही वनिास’ करते हों, ऄथिा
o जो ईस क्षेि में ऄनुसूवचत जनजावत के सदस्य हों, ऄथिा
o 75 िषों से ईस िन में ही वनिास कर रहे हों।
 ऄवधकारों को मान्यता देने की प्रकक्रया: आस ऄवधवनयम के तहत, यह प्रािधान है कक ग्रामसभा एक
प्रस्ताि पाररत करके यह ऄनुशसं ा करे गी कक ककस संसाधन पर ककसके ऄवधकारों को मान्यता दी
जाए। आस प्रस्ताि की पुनसयमीक्षा एिं ऄनुमोदन क्रवमक रूप से तािुक एिं वजिा स्तर पर होगा।
आस पुनसयमीक्षा सवमवत (screening committee) में तीन सरकारी ऄवधकारी (िन, राजस्ि एिं
जनजातीय कल्याण विभाग से) तथा तीन सदस्य स्थानीय संस्थाओं के वनिायवचत सदस्य होगें।
1.12.2. िन ऄवधकार ऄवधवनयम से सं बं वधत चचताएँ

यह अरोप िगाया जा रहा है कक कें द्र सरकार िारा ईठाए गए विवभन्न कदमों ने आस ऄवधवनयम के
प्रािधानों को कमजोर ककया है:
 कें द्र सरकार ने विवभन्न ऄन्य ऄवधवनयमों के माध्यम से आस ऄवधवनयम में प्रदत्त ऄवधकारों एिं
सुरक्षा को कमजोर ककया है वजसके ऄंतगयत ककसी सरकारी पररयोजना के कायायन्ियन के विए िनों
से जनजावतयों के विस्थापन, पुनिायस एिं बसाने हेतु ‘ग्राम सभा’ की सहमवत की ऄवनिाययता
ऄप्रभािी हो गयी है।
 मध्यम अकार िािी कोयिा ईत्खनन पररयोजनाओं हेतु िोक सुनिाइ एिं ग्राम सभा की सहमवत
संबंधी प्रािधान को समाप्त कर कदया गया है।
 खान एिं खवनज (विकास एिं विवनयमन) ऄवधवनयम, प्रवतपूरक िनीकरण कोष ऄवधवनयम एिं
िन ऄवधकार ऄवधवनयम के वनयमों में ऄनेक संशोधनों के माध्यम से आस ऄवधवनयम के प्रािधानों
को वनबयि कर कदया गया है।
 सरकार ऄपनी ‘इज ऑफ डू आंग वबजनेस’ संबंधी प्रवतबर्द्ता को सुवनवित करने के विए
जनजावतयों के वनिास िािे िन क्षेिों में वनजी क्षेि की पररयोजनाओं को तेजी से सहमवत दे रही
है।
 राष्ट्रीय िन्यजीि बोडय (वजसके ऄध्यक्ष प्रधानमंिी होते हैं) में स्ितंि सदस्यों (विशेषज्ञों) की संख्या
15 से घटाकर 3 कर दी गइ है। ऄब आसमें सरकारी ऄवधकाररयों का प्रभुत्ि हो गया है।
 आसके साथ ही, आस ऄवधवनयम के विवभन्न प्रािधानों का जानबूझकर िास्तविक कक्रयान्ियन नहीं
होने कदया जा रहा है। न तो व्यविगत स्तर पर और ना ही सामुदावयक स्तर पर िन संसाधन
संबंधी पट्टा प्रदान ककया गया है।
कु छ राज्य सरकारों ने भी ऄपने विवभन्न वनयमों एिं अदेशों िारा आस ऄवधवनयम के प्रािधानों को
कमजोर करने का प्रयास ककया है यथा :
 तेिांगना ने िनभूवम पर कृ वष के पारं पररक तरीके को गैर-कानूनी घोवषत कर कदया है, जो आस
ऄवधवनयम का स्पष्ट ईल्िंघन है।

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 झारखंड सरकार ने वबना जनजावतयों एिं ग्राम सभा की सहमवत प्राप्त ककए, विकास के नाम पर

भूवम ऄवधग्रहण की शवि को मूतय रूप देने के विए संथाि एिं छोटानागपुर काश्तकारी
ऄवधवनयमों में विवभन्न संशोधन ककए हैं।
 महाराष्ट्र सरकार ने ‘ग्राम वनयमों’ के तहत िनों के प्रबंधन का दावयत्ि ग्राम सभा के स्थान पर

सरकारी सवमवतयों को दे कदया है।

1.12.3. क्या ककया जाना चावहए

 सरकार को िन विभाग से संबंवधत प्रशासन एिं िन समुदायों को आस ऄवधवनयम के प्रािधानों के


प्रवत जागरूक करने की अिश्यकता है।
 साथ ही, आस ऄवधवनयम के प्रािधानों के कक्रयान्ियन के मागय में बाधा ईत्पन्न करने िािी िन क्षेि

से संबंवधत नौकरशाही को स्पष्ट चेतािनी दी जानी चावहए कक आस प्रकार के अचरण को स्िीकार

नहीं ककया जाएगा।


 सरकार को जनजातीय मामिों से संबंवधत विभाग को मज़बूत करने की अिश्यकता है। आसके
साथ ही वसविि सोसाआटी की सहभावगता को प्रोत्सावहत करने की अिश्यकता है।
 कोइ भी ऐसा कानून जो िन ऄवधकारों को प्रभावित करता है,ईसे िाने के पूिय व्यापक विचार-

विमशय ककया जाना चावहए।

1.13. ऄर्द्य - सरकारी सं स्थाएँ तथा सम्बं वधत समस्याएँ

 ये संस्थाएँ पूणत
य ः या ऄंशतः सरकार िारा प्रबंवधत होती हैं तथा ये या तो स्िायत्त या ऄर्द्य
सरकारी संस्थाएँ होती हैं। ये संस्थाएँ राज्य के विवशष्ट ऄवधवनयमों या सोसाआटी पंजीकरण
ऄवधवनयम िारा गरठत होती है।

 आनका गठन अमतौर पर विवशष्ट सेिाओं के वितरण, विवशष्ट योजनाओं के कायायन्ियन के विए

ककया जाता है। आस प्रकार की संस्थाओं के ईदाहरण हैं - वजिा ग्रामीण विकास एजेंसी (DRDA),

वजिा स्िास््य सोसायटी (DHS), वजिा जि एिं स्िच्छता सवमवत (DWSC), मत्स्य ककसान

विकास एजेंसी (FFDA) अकद।

 वजिा स्तर पर सिायवधक महत्िपूणय ऄर्द्य सरकारी या स्िायत्त एंजस


ें ी DRDA है। ितयमान में आं कदरा

अिास योजना जैसी विवभन्न योजनाओं को DRDA िारा धन अिंरटत ककया जाता है।

 कु छ विशेषज्ञों ने यह मत व्यि ककया है कक ऄर्द्य सरकारी या स्िायत्त संस्थाओं को पंचायती राज


के कायों ि ऄवधकारों को कमजोर करने की ऄनुमवत नहीं दी जा सकती।
 आनमें से कु छ सवमवतयों को पंचायतों में शावमि करने की अिश्यकता हो सकती है तथा कु छ को
पंचायतों के साथ जीिंत संबंध बनाने के विए पुनगयरठत ककया जा सकता है।
 संघ ि राज्य सरकारों को सामान्यतः पंचायतों के बाहर विशेष सवमवतयों का गठन नहीं करना
चावहए। यद्यवप यकद पेशि
े र या तकनीकी अिश्यकताओं के कारण आस तरह की विशेष सवमवतयों
का गठन अिश्यक हो तो ईसे 11िीं ऄनुसच
ू ी से संबंर्द् ककया जाना चावहए जो पंचायतों के

पययिेक्षण एिं मागयदशयन के तहत कायय करे ।

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नगरपाविकाएँ
2. शहरी स्थानीय शासन (Urban Local Governments)
 शहरी स्थानीय शासन से अशय, जनता िारा वनिायवचत प्रवतवनवधयों के माध्यम से शहरी क्षेि के
प्रशासन की प्रणािी से है। 74िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1992 ने स्थानीय शहरी वनकायों
को संिैधावनक दजाय प्रदान ककया।
2.1. 74िां सं विधान सं शोधन ऄवधवनयम

 74िें संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान के भाग IX-A में ‘नगरपाविकाएँ’ (The
Municipalities) नामक एक ऄध्याय ऄंतर्चिष्ट ककया गया। आसके साथ ही ऄवधवनयम के िारा
संविधान में 12िीं ऄनुसच
ू ी जोड़ी गइ वजसमें नगरपाविकाओं के विए 18 काययकारी विषय
सवम्मवित ककये गये।
 यह ऄवधवनयम प्रत्येक राज्य में वनम्नविवखत तीन प्रकार की संरचनाओं का प्रािधान करता है:
o नगर पंचायत (या ककसी ऄन्य नाम से): ग्रामीण क्षेि से शहरी क्षेि में पररिर्चतत होते क्षेिों के
विए।
o नगरपाविका पररषद्: छोटे शहरी क्षेिों के विए।
o नगर वनगम: बड़े शहरी क्षेिों के विए।

2.1.1. मु ख्य प्रािधान

 आस ऄवधवनयम के मुख्य प्रािधानों को दो िगों में विभावजत ककया जा सकता है: ऄवनिायय
प्रािधान तथा ऐवच्छक प्रािधान।
 राज्यों के विए बाध्यकारी कु छ ऄवनिायय प्रािधान वनम्नविवखत हैं:
o संक्रमण क्षेिों (िे क्षेि जो ग्रामीण से नगरीय क्षेिों में पररिर्चतत हो रहे हैं), छोटे शहरी क्षेिों
तथा बड़े शहरी क्षेिों में क्रमशः नगर पंचायत, नगरपाविका पररषद् तथा नगर वनगम का
गठन।
o शहरी स्थानीय वनकायों में ऄनुसूवचत जावतयों/ऄनुसूवचत जनजावतयों को िगभग ईनकी
जनसंख्या के ऄनुपात में अरक्षण।
o मवहिाओं के विए एक वतहाइ सीटों का अरक्षण।
o राज्य वनिायचन अयोग, वजसका गठन पंचायती राज वनकायों के चुनािों के विए ककया गया
था (73िें संविधान संशोधन के ऄंतगयत), शहरी स्थानीय स्िशासी वनकायों के चुनािों को भी
संपन्न कराएगा।
o पंचायती राज वनकायों के वित्तीय मामिों के संबंध में गरठत राज्य वित्त अयोग िारा शहरी
स्िशासी वनकायों के वित्तीय मामिों को भी देखा जायेगा।
o शहरी स्थानीय स्िशासी वनकायों का काययकाि पांच िषय वनधायररत है। आनके पांच िषय से पूिय
भंग हो जाने की वस्थवत में छः माह के भीतर नए चुनाि कराये जाने अिश्यक हैं।
 आसके ऄिािा कु छ ऐवच्छक प्रािधान भी ककये गए हैं, जो राज्यों पर बाध्यकारी नहीं हैं। हािाँकक
राज्यों िारा आन पर ध्यान कदया जाना चावहए। ये प्रािधान आस प्रकार हैं-
o आन वनकायों में संघ तथा राज्य विधानमण्डिों के सदस्यों को प्रवतवनवधत्ि प्रदान करना।
o वपछड़े िगों के विए अरक्षण की व्यिस्था।
o कर, चुंगी, टोि टैक्स तथा शुल्क के संबंध में वित्तीय शवियां प्रदान करना।
o नगरीय वनकायों को स्िायत्तता प्रदान करना तथा आस ऄवधवनयम िारा संविधान में जोड़ी गइ
12िीं ऄनुसच
ू ी में िर्चणत विषयों के संबंध में शवियों का हस्तांतरण और/या अर्चथक विकास
की योजना तैयार करना।

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 74िें संविधान संशोधन के ऄनुसार, नगर वनगम तथा नगरपाविका (नगरपाविका बोडय या
नगरपाविका सवमवत), सभी राज्यों में ऄब िगभग एक समान ढंग से विवनयवमत हो रही हैं।
 हािांकक, स्थानीय स्िशासन राज्य सूची का विषय है तथा 73िाँ ि 74िाँ संविधान संशोधन
स्थानीय शासन के संदभय में राज्य के विए ढ़ाँचा प्रदान करता है। ऄतः, प्रत्येक राज्य में स्ियं का
ऄपना वनिायचन अयोग है, जो पांच िषय के वनयवमत ऄंतराि पर सभी स्थानीय वनकायों के चुनाि
करिाता है। आसी प्रकार स्थानीय वनकायों के वित्तीय ऄवधकारों को विवनयवमत करने के विए
प्रत्येक राज्य का ऄपना एक वित्त अयोग है।
 नगर वनगम तथा नगर पाविकाओं में ऄनुसूवचत जावतयों/ऄनुसवू चत जनजावतयों के विए सीटें
अरवक्षत की गयी हैं। आसी प्रकार सभी स्थानीय वनकायों (शहरी और ग्रामीण) में मवहिाओं के विए
एक वतहाइ सीटें अरवक्षत की गयी हैं।
 नगरीय वनकायों का गठन क्षेिीय वनिायचन क्षेिों के अधार पर प्रत्यक्ष चुनाि िारा होता है। आन
वनिायचन क्षेिों को िाडय के नाम से जाना जाता है। विधावयका को यह ऄवधकार है कक िह कानून के
िारा वनम्नविवखत व्यवियों को प्रवतवनवधत्ि प्रदान कर सकती है:
o नगरीय वनकायों में विशेष ज्ञान तथा ऄनुभि रखने िािे व्यवियों,
o ईस वनिायचन क्षेि, वजसके ऄंतगयत नगरीय क्षेि पूणयतः या ऄंशतः अता है, का प्रवतवनवधत्ि
करने िािे राज्यसभा तथा िोकसभा के सदस्यों; और
o राज्य विधानसभा तथा विधान पररषद् के सदस्यों को।
 आसके साथ ही राज्य विधावयकाओं को यह ऄवधकार है कक िे नगरपाविका के चेयरमैन के वनिायचन
के संदभय में वनयम वनधायररत करें ।
 सीटों के अरक्षण के िारा समाज के गरीब िगों तथा मवहिाओं का सशविकरण, आस संिैधावनक
संशोधन के महत्िपूणय संिैधावनक प्रािधानों में से एक है। ऄध्यक्ष का पद भी SC / ST और
मवहिाओं के विए अरवक्षत है।
 यह ऄवधवनयम नगर पाविकाओं के काययकाि की ऄिवध पांच िषय वनधायररत करता है। यकद ईनमें
से ककसी को भंग करना है तो ईसे ऄपना पक्ष रखने का ऄिसर कदया जाना चावहए।

2.2. सं ग ठन

एक वनगम या नगर पाविका के संगठन को सामान्यतः दो भागों में विभावजत ककया जा सकता है:
विचारात्मक (Deliberative), और काययकारी (Executive)।
 विचारात्मक भाग: वनगम, पररषद् या नगरपाविका बोडय ऄथिा िोगों िारा वनिायवचत
प्रवतवनवधयों से वमिकर बनी पररषद् विचारात्मक भाग का वनमायण करती है। यह विचार-विमशय
तथा संिाद करने िािी आकाइ है। यह एक विधावयका की तरह कायय करती है। यह नगरपाविका
की सामान्य नीवतयों तथा वनष्पादन पर बहस करती है, शहरी स्थानीय वनकायों का बजट पास
करती है तथा करों, संसाधन बढ़ोत्तरी, सेिाओं के मूल्य वनधायरण और नगरीय प्रशासन के ऄन्य
पहिुओं के संदभय में व्यापक नीवतयों का वनमायण करती है।
o आसके साथ ही यह नगरीय प्रशासन की वनगरानी करती है तथा ककए गए ऄथिा नहीं ककए
गए कायों के विए काययकाररणी का ईत्तरदावयत्ि तय करती है। ईदाहरण के विए, यकद जि
अपूर्चत ठीक से प्रबंवधत नहीं की जाती है तथा शहर में महामारी फै ि जाती है तो यह
विचारात्मक इकाइ, प्रशासन की भूवमका की अिोचना करती है तथा सुधार के संदभय में
सुझाि देती है।
 काययकारी भाग: नगरपाविका में प्रशासन के काययकारी भाग को नगरपाविका ऄवधकाररयों तथा
स्थाइ कमयचाररयों िारा देखा जाता है।

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नगर वनगम में, नगर वनगम अयुि काययकारी प्रमुख होता है, और ऄन्य सभी विभागीय ऄवधकारी
जैस-े आं जीवनयर, वित्त ऄवधकारी, स्िास््य ऄवधकारी अकद आसके वनयंिण और पययिेक्षण में कायय
करते हैं। कदल्िी या मुम्बइ जैसे बड़े नगर वनगमों में अयुि अम तौर पर एक िररष्ठ अइ.ए.एस.
ऄवधकारी होता है। नगरपाविकाओं में, काययकारी ऄवधकारी समकक्ष पद धारण करते हैं तथा
नगरपाविका के समग्र प्रशासन को देखते हैं।
2.3. शहरी स्थानीय वनकायों के कायय

शहरी स्थानीय वनकायों के कायों को दो भागों में विभावजत ककया जाता है: ऄवनिायय कायय तथा
वििेकाधीन कायय।
 ऄवनिायय कायय िे कायय हैं वजन्हें नगरीय वनकायों िारा संपन्न ककया जाना अिश्यक है। आसमें जि
अपूर्चत, सड़कों, गवियों, पुिों, ईप-मागों और ऄन्य िोक वनमायण से संबंवधत ऄिसंरचनाओं का
वनमायण तथा रख-रखाि, गवियों में प्रकाश की व्यिस्था; जिवनकासी तथा सीिेज;, कचरा संग्रह ि
वनपटान; महामारी रोकथाम तथा वनयंिण अकद शावमि हैं।
o कु छ ऄन्य ऄवनिायय कायों में साियजवनक टीकाकरण; प्रसूवत एिं बािकल्याण के न्द्रों सवहत
ऄस्पतािों और दिाखानों का रख-रखाि; खाद्यों में वमिािट की जांच करना; दाह-संस्कार
और श्मशान का प्रबंधन अकद हैं। कु छ राज्यों में आनमें से कु छ कायों को राज्य सरकार िारा
ऄपने हाथों िे विया गया है।
 वििेकाधीन कायय िे कायय हैं जो नगरीय वनकायों िारा पयायप्त फण्ड होने पर ही ककये जाते हैं। आस
प्रकार आन्हें कम प्राथवमकता दी जाती है। अश्रय गृहों और ऄनाथाियों का वनमायण तथा रख-
रखाि, वनम्न अय िगय के िोगों के विए भिन वनमायण, साियजवनक समारोहों का अयोजन तथा
ईपचार सुविधाओं का प्रािधान अकद कु छ वििेकाधीन कायय हैं।
2.4. शहरी शासन के प्रकार

नगर क्षेिों के शासन के विए भारत में वनम्नविवखत अठ प्रकार के स्थानीय वनकाय हैं:
2.4.1. नगर वनगम (Municipal Corporation)

 नगर वनगम कदल्िी, मुम्बइ, हैदराबाद जैसे बडेऺ शहरों के प्रशासन के विए गरठत ककया गया है।
नगर वनगम के तीन प्रमुख घटक होते हैं:
o पररषद् (वनगम की विधायी शाखा),
o स्थायी सवमवत (पररषद् के कामकाज की सुविधा के विए) तथा
o अयुि (वनगम का मुख्य काययकारी ऄवधकारी)।
 पररषद्, जनता िारा प्रत्यक्ष रूप से चुने गए पाषयदों से वमिकर बनती है। आसका प्रमुख मेयर होता
है।
 स्थायी सवमवत पररषद् के कायय को सुगम बनाने के ईद्देश्य से गरठत की जाती है। यह अकार में
बड़ी होती है तथा ऄपने वनणयय स्ियं िेती है। आसके िारा िोक कायय, वशक्षा, स्िास््य कर
वनधायरण, वित्त तथा ऄन्य कायों को सम्पाकदत ककया जाता है।
 अयुि की वनयुवि राज्य सरकार की जाती है तथा यह सामान्यतः अइ.ए.एस. ऄवधकारी होता
है। यह पररषद् तथा स्थायी सवमवत िारा विए गए वनणययों के कक्रयान्ियन हेतु ईत्तरदायी होता है।
2.4.2. नगरपाविका (Municipality)

 नगरपाविका कस्बों और छोटे शहरों के प्रशासन के विए स्थावपत की जाती है। यह कइ ऄन्य नामों
से भी जानी जाती है, जैस-े नगरपाविका पररषद्, नगरपाविका सवमवत, नगरपाविका बोडय,
ईपनगरीय नगरपाविका, शहरी नगरपाविका अकद।

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 आसकी संरचना नगर वनगमों से काफी वमिती-जुिती है, वसिाय आसके कक यहाँ पररषद् के प्रमुख
को ऄध्यक्ष या चेयरमैन कहा जाता है और अयुि के स्थान पर यहाँ मुख्य काययकारी ऄवधकारी/
मुख्य नगरपाविका ऄवधकारी होता है।

2.4.3. ऄवधसू वचत क्षे ि सवमवत (Notified area committee)

 यह वनम्नविवखत दो प्रकार के क्षेिों के प्रशासन के विए बनाइ जाती है:


o औद्योगीकरण के कारण तेजी से विकवसत होते कस्बे और
o ऐसे कस्बे जो ऄभी तक नगरपाविका के गठन के विए अिश्यक शतें पूरी नहीं करते, िेककन
वजन्हें राज्य सरकार िारा महत्िपूणय माना जाता है।
 आसे ऄवधसूवचत क्षेि सवमवत कहा जाता है क्योंकक आसे राज्य सरकार की ऄवधसूचना िारा बनाया
जाता है।
 नगरपाविका के विपरीत यह पूणत
य ः नावमत वनकाय (Nomitated body) है, ऄथायत् आसमें ऄध्यक्ष
सवहत सभी सदस्य राज्य सरकार िारा मनोनीत ककये जाते हैं। आस प्रकार, न तो यह एक िैधावनक
वनकाय है, और न ही वनिायवचत वनकाय है।

2.4.4. नगर क्षे िीय सवमवत (Town Area committee)

 यह राज्य विधान मण्डि के एक ऄिग ऄवधवनयम िारा छोटे शहरों के प्रशासन हेतु स्थावपत की
जाती है। यह ऄर्द्य नगरपाविका प्रावधकरण है, वजसे सीवमत संख्या में नागररक कायों की
वजम्मेदारी दी जाती है।
 यह राज्य सरकार िारा पूणत य ः वनिायवचत या पूणत
य ः नावमत या ऄंशतः वनिायवचत और ऄंशतः
नावमत संस्था हो सकती है।
2.4.5. छािनी पररषद् (Cantonment Board)

 आसे छािनी क्षेिों (जहां सैन्य बि और ईनकी टुकवड़यां स्थायी रूप से तैनात हैं) में नागररक
जनसंख्या के नगरीय प्रशासन के विए स्थावपत ककया जाता है। आसे के न्द्र सरकार के कै ण्टोनमेंट
एक्ट, 2006 िारा स्थावपत ककया गया है और यह कें द्र सरकार के रक्षा मंिािय के ऄंतगयत कायय
करती है।
 यह अंवशक रूप से वनिायवचत तथा अंवशक रूप से नावमत वनकाय है तथा ईस स्टेशन की कमान
सँभािने िािा सैन्य ऄवधकारी आसके पदेन ऄध्यक्ष के रूप में कायय करता है। बोडय के वनिायवचत
सदस्यों में से ईपाध्यक्ष का चुनाि ककया जाता है।
 छािनी पररषद् का काययकारी ऄवधकारी भारत के राष्ट्रपवत िारा वनयुि ककया जाता है।
2.4.6. टाईन वशप

 आसे बड़े साियजवनक ईद्यमों िारा ऄपने ईन कर्चमयों तथा श्रवमकों को नागररक सुविधाएं देने के
विए स्थावपत ककया जाता है, जो पिांट के वनकट अिासीय कॉिोवनयों में रहते हैं।
 यह वनिायवचत वनकाय नहीं है और नगर प्रशासक सवहत आसके सभी सदस्य ईद्यम िारा ही वनयुि
ककये जाते हैं।
2.4.7. न्यास पत्तन (Port Trust)

 न्यास पत्तन को मुम्बइ, कोिकाता तथा चेन्न्इ जैसे बंदरगाह क्षेिों में स्थावपत ककया जाता है। आसके
दो ईदेश्य हैं: (a) बंदरगाहों की व्यिस्था ि सुरक्षा तथा (b) नागररक सुविधाएं प्रदान करना।
 आसे संसदीय ऄवधवनयम िारा बनाया गया है तथा आसमें वनिायवचत ि नावमत दोनों सदस्य होते हैं।

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2.4.8. विशे ष ईद्दे श्य एजें सी (Special Purpose Agency)

 राज्यों ने कु छ एजेंवसयों को ईन वनर्ददष्ट गवतविवधयों या विवशष्ट कायों को करने के विए स्थावपत


ककया है, जो िैध रूप से नगर वनगमों, नगर पाविकाओं या ऄन्य स्थानीय शहरी शासन के डोमेन
से संबंवधत हैं।
 दूसरे शब्दों में, ये कायय पर अधाररत हैं, न कक क्षेि पर। आन्हें 'एकि ईद्देश्य' या 'विवशष्ट ईद्देश्य'
िािी आकाइ ऄथिा ‘कायायत्मक स्थानीय वनकायों’ के रूप में जाना जाता है। ईदाहरणतः शहरी
सुधार ट्स्ट, हाईचसग बोडय, प्रदूषण वनयंिण बोडय अकद। आन्हें राज्य विधानमंडि के एक ऄवधवनयम
िारा िैधावनक वनकायों के रूप में या एक काययकारी संकल्प िारा विभागों के रूप में स्थावपत ककया
जाता है। ये एक स्िायत्त वनकाय के रूप में कायय करती हैं और स्थानीय नगरीय वनकायों के
ऄधीनस्थ एजेंवसयां नहीं हैं।
2.5. नगरीय वनकायों की सीमाएँ

 नगर वनकाय के सदस्यों की ऄयोग्यता के संबंध में सैर्द्ांवतक रूप से ईन्हीं प्रकक्रयाओं का पािन
ककया जाता है वजनका राज्य विधानमंडि के सदस्यों की ऄयोग्यता के वनधायरण के संबंध में होता
हैं। परं त,ु ये राज्य विधावयकाओं िारा शावसत होते हैं जो आनसे संबंवधत कानून बना सकती हैं।
सभी राज्यों में आनसे संबंवधत ऄिग-ऄिग कानून हैं जो सदस्यों के मध्य ऄसमानता तथा ऄसुरक्षा
में िृवर्द् करते हैं।
 चुनाि खचय तथा अचार संवहता को और बेहतर तरीके से विवनयवमत करने की अिश्यकता है।
ऄतः आसके संबंध में राज्य चुनाि अयोग को और ऄवधक शवियां दी जानी चावहए।
 नगर वनगमों की तुिना में नगरपाविकाओं की स्िायत्तता को प्रवतबंवधत ककया गया है तथा आन पर
राज्य का ऄत्यवधक वनयंिण है। यह प्रायः चरम वस्थवतयों में नगरपाविकाओं को भंग करने के रूप
में सामने अता है।
 राज्य और कें द्रीय विधावयकाओं की ऄवनच्छा के कारण वित्त के ऄभाि की समस्या है क्योंकक िे
ऄपनी कराधान की शवियों को छोड़ना नहीं चाहते और ऄपनी शवियों को खोने के डर से नगरीय
वनकायों को ितयमान वस्थवत की तुिना में और ऄवधक शवियां नहीं प्रदान करना चाहते। िहीं
दूसरी ओर, नगर वनकाय िोगों के बीच िोकवप्रयता खोने के भय से न तो टैक्स बढ़ाना चाहते हैं, न
ही नया टैक्स िगाना चाहते हैं।
 स्थानीय वनकायों का वनमायण राज्य सरकारों िारा ककया जाता है तथा ईनके ऄनुसार नहीं चिने
की वस्थवत में राज्य सरकार िारा आन्हें भंग भी ककया जा सकता है। राज्य सरकारें आस ऄवधकार का
राजनीवतक फायदा ईठाती हैं।
 के न्द्र ि राज्यों के िारा गरठत कइ सवमवतयों िारा नगरीय वनकायों को ऄवधक वित्तीय तथा
प्रशासवनक स्िायत्तता देने की वसफाररश के बािजूद, दोनों ही स्तर की विधावयकाओं िारा आन
वसफाररशों को िागू करने का कोइ ठोस प्रयास नहीं ककया गया है।
 शहरी विकास नीवतयों में वनयवमतता तथा सुसंगता का ऄभाि है। दोषपूणय और ऄनुपयुि शहरी
वनयोजन के साथ-साथ खराब कायायन्ियन और विवनयमन नगरपाविकाओं के विए एक बड़ी
चुनौती है।
 ऄकु शि तथा ऄनुपयुि स्थानीय शहरी वनकाय ईपयुि वनगरानी प्रणािी के ऄभाि का पररणाम
हैं।
2.6. वित्तीय स्रोत

 आन वनकायों के राजस्ि स्रोत हैं: कर, फीस एिं जुमायना, भूवम, बाजार अकद से प्राप्त अय तथा
राज्य िारा प्राप्त ऄनुदान।
 भूवम और भिनों पर संपवत्त कर, स्थानीय शहरी वनकायों की अय के महत्िपूणय साधन हैं। आसके
ऄवतररि विज्ञापन कर, व्यिसाय कर अकद भी अय के साधन हैं । चुंगी कर, पविम भारत में नगर
वनकायों की अय के महत्िपूणय स्रोत हैं। ितयमान में राजमागो पर यातायात के वनबायध प्रिाह तथा
तीव्र अिागमन को सुवनवित करने के विए आस कर को समाप्त करने का प्रयास ककया जा रहा है।

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 नगरीय वनकाय, वनयमों तथा विवनयमों के ईल्िंघन पर जुमायना भी िगाते हैं। सामान्यतः राज्य,
स्थानीय वनकायों की वित्तीय वस्थवत में सुधार हेतु ऄनुदान प्रदान करते हैं। यह ऄनुदान ऄवनयवमत
होता है तथा जनसंख्या, मविन बस्ती की सघनता तथा शहर की ऄिवस्थवत के अधार पर कदया
जाता है।
 शहरी वनकायों िारा िसूिे जाने िािे कु छ कर आस प्रकार हैं: संपवत्त कर, पेयजि कर, सीिेज कर,
ऄविशमन कर, जानिरों तथा िाहनों पर कर, वथयेटर कर, संपवत्त हस्तांतरण पर शुल्क, कु छ
िस्तुओं पर चुंगी कर, वशक्षा ईपकर तथा व्यिसाय कर आत्याकद।
 आसके ऄवतररि तहबाजारी शुल्क, चबूतरा शुल्क, िाआसेंस शुल्क, नगर पाविका की दुकानों का
ककराया अकद अय के ऄन्य स्रोत हैं।
2.6.1. वित्त से सं बं वधत समस्याएं

पयायप्त वित्त का ऄभाि िस्तुतः स्थानीय शहरी वनकायों िारा सामना की जाने िािी एक प्रमुख समस्या
है। आनके कायय ि दावयत्िों को देखते हुए आन्हें ईपिब्ध अय के स्रोत ऄपयायप्त हैं। आन्हें हम वनम्नविवखत
चबदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं:
 अय के स्रोत का ऄभाि: ऄवधकांशतः आनकी अय के स्रोत के न्द्र तथा राज्य सरकारों िारा ईद्गृहीत
एिं विवनयोवजत तथा स्थानीय वनकायों िारा संगृवहत ककया जाने िािा धन होता है। परं तु ये अय
के साधन नगर वनकायों के सेिा संबंधी कायों के विए पयायप्त नहीं हैं। आसके साथ ही चुनािी कारणों
से ये वनकाय ऄवधक कर िगाने से बचते हैं।
 ऄकु शि कमयचारी: आनके कमयचारी प्रवशवक्षत नहीं होते हैं तथा िे कर संग्रहण प्रभािी रूप से नहीं
कर पाते।
 संपवत्त कर से संबवं धत समस्याएं: चुंगी कर की समावप्त के बाद ज्यादातर राज्यों में संपवत्त कर
स्थानीय वनकायों के राजस्ि का महत्िपूणय साधन है। आसमें सुधार की अिश्यकता है।
 संकुवचत कर अधार: एक ऄनुमान के ऄनुसार शहरी क्षेि में के िि 60-70% संपवत्तयों का
मूल्यांकन होता है। आस वनम्न कर अधार का कारण नगरीय वनकायों की सीमाएं वनवित होना है।
पररणामतः नगरों के विकास के कारण नगरीय संपदाएं, नगरों की िैधावनक सीमा से बाहर चिी
जाती हैं।
 प्रयोिा शुल्क: सामान्यतः वनकायों िारा ईपिब्ध सेिाओं की िास्तविक िागत ऄवधक होती है।
ईदाहरण के विए जि कर, स्िच्छता एिं सीिेज कर, ऄपवशष्ट संग्रहण शुल्क, स्ट्ीट िाआटटग शुल्क
अकद ईनकी िास्तविक िागत की तुिना में कम हैं।
 विश्वसनीय अँकड़ों का ऄभाि: नौकरी, वनिेश या कर संग्रह से संबंवधत विश्वसनीय अंकड़ों की
कमी है।

2.6.2. वित्तीय सु धारों के सं द भय में सु झाि

 राज्यों िारा आन स्थानीय वनकायों को संपवत्तयों पर स्टाम्प शुल्क और पंजीकरण शुल्क का एक


ईवचत प्रवतशत प्रदान ककया जाना चावहए।
 मनोरं जन कर और व्यिसाय कर नगर पाविकाओं को हस्तांतररत कर कदया जाना चावहए।
 नगर वनगम िारा जारी बांड में ऄवधक वनिेश को प्रोत्सावहत करने के विए कें द्र सरकार िारा ऐसे
वनिेश पर करों में छू ट प्रदान की जानी चावहए।
 कें द्र सरकार, राज्य सरकारों और नगर पाविकाओं को एक साथ वमिकर नगर की समस्त भूवम की
एक सूची बनानी चावहये। आसके ऄिािा एक ऐसी रणनीवत तैयार की जानी चावहए वजससे खािी
भूवम का ऐसा ईपयोग ककया जाये कक नगर वनगम की अय में िृवर्द् हो।
 नगर पाविकाओं की वित्तीय वस्थरता की रक्षा करने के विए नगर पाविकाओं में राजकोषीय
ईत्तरदावयत्ि और बजट प्रबंधन पर राज्य िारा एक कानून बनाया जाना चावहए।

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 खातों के कु शि और प्रभािी प्रबंधन के विए एक चाटयडय एकाईं टेंट िारा नगरपाविकाओं के खातों
का िार्चषक िेखा परीक्षण ककया जाना चावहए।
 कर संग्रह और वित्तीय प्रबंधन में सुधार करने के विए और ऄवधक कमयचाररयों की भती की जानी
चावहए।
 संविधान में संशोधन िारा स्थानीय सरकारों के विए ऄिग से कर क्षेि बनाया जाना व्यािहाररक
नहीं है। राज्यों को यह सुवनवित करना चावहए कक स्थानीय वनकायों को कर के संदभय में पयायप्त
शवियाँ दी जाएं जो स्थानीय स्तर पर व्यािहाररक ढंग से संग्रवहत ककया जा सके ।
 आसके साथ ही, सभी संपवत्तयों के कर वििरण को साियजवनक डोमेन में रखा जाना चावहए। एक
नइ, सरि तथा पारदशी कर व्यिस्था का िागू ककया जाना कर संग्रहण में ऄिश्य ही सुधार
करे गा। मुख्य काययकारी के वनयंिण में एक ऄिग विभाग होना चावहए जो समय-समय पर
संपवत्तयों का भौवतक सत्यापन करे ।
 शहर में सभी विकासात्मक गवतविवधयों के प्रभाि का ऄध्ययन ककया जाना चावहए। ईन पर एक
संकुिन (कं जेशन) शुल्क िगाया जाना चावहए। नागररक कानूनों को तोड़ने पर जुमायना िगाने का
ऄवधकार नगर वनकायों को कदया जाना चावहए तथा आससे संबंवधत कानूनों में सुधार ककया जाना
चावहए।
2.6.3. म्यु वनवसपि बां ड

 आशर जज ऄहिूिाविया (2011) की ऄध्यक्षता िािी शहरी ऄिसंरचना संबध


ं ी सवमवत के
ऄनुमान के ऄनुसार भारतीय शहरों को ऄगिे दो दशक ऄथायत् 2031 तक वस्थर कीमतों पर
िगभग 40 रट्वियन रूपए वनिेश करने की अिश्यकता होगी।
 आसी सन्दभय में सेबी िारा 2016 में म्युवनवसपि बांड संबध
ं ी विवनयम जारी ककए गए। आनके
ऄनुसार:
o यकद म्युवनवसपि बांड कु छ वनवित वनयमों के ऄनुरूप हों तथा ईनकी ब्याज दरें बाजार
अधाररत हों तो भारत में म्युवनवसपि बांड को कर-मुि कर कदया जाना चावहए।
o नगर वनगमों को आन्िेस्टमेंट ग्रेड क्रेवडट रे टटग बनाए रखने की अिश्यकता है तथा ईन्हें
पररयोजना िागत का कम से कम 20 प्रवतशत योगदान करना होगा।
o नगर वनगम वपछिे एक िषय में प्राप्त ककसी भी ऊण के संबंध में वडफाल्टर की वस्थवत में नहीं
होनी चावहए।
o नगर वनगमों को ऊण के मूिधन की िापसी सुवनवित करने हेतु ऊण को पूणय पररसंपवत्त
किर (फु ि एसेट किर) प्रदान करना होगा। आन बांड्स को वजस पररयोजना के विए जारी
ककया गया है, ईस पररयोजना के माध्यम से प्राप्त धन को एक ऄिग एस्क्रौ ऄकाईं ट में रखना
होगा। बैंक या वित्तीय संस्थान िारा आस ऄकाईं ट की वनयवमत रूप से वनगरानी की जाएगी।
o 2017 में नीवत अयोग िारा प्रस्तावित वििषीय काययिाही एजेंडा में म्युवनवसपि बांड माके ट
के ईपयोग की बात भी की गइ है।
महत्ि
 भारतीय शहरों का राजस्ि, सकि घरे िू ईत्पाद के 1% से भी कम है। आसी का पररणाम है कक
भारतीय शहर वित्तीय रूप से पयायप्त स्िायत्त नहीं हो सके हैं।
 शहरी स्थानीय वनकायों की पररयोजनाओं की वनम्न व्यिहाररकता एिं िंबी पररपक्वता ऄिवध
होती है एिं साथ ही िागत िसूि कर पाने की संभािना वनम्न से िेकर मध्यम होती है। कम िागत
पर ईधार प्रावप्त आन शहरी स्थानीय वनकायों के विए एक िाभपूणय वस्थवत होगी। वजस नगर वनगम
की रे टटग ऄवधक होगी, ईसके विए ब्याज और ईधार की िागत ईतनी ही कम होगी।
 शहरी स्थानीय वनकायों की वित्तीय स्ितंिता के विए म्युवनवसपि बांड अिश्यक हैं।

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चुनौवतयाँ
 बॉन्ड वनिेशक शहरों में धन तब तक वनिेश नहीं करें गे, जब तक कक िे नगर वनगमों की
राजकोषीय क्षमता के संबंध में अश्वस्त न हो जाए।
 ऄब तक ऄवधकांश म्युवनवसपि बांड वनजी तौर पर जारी ककये गए हैं और ये व्यापार योग्य नहीं
हैं। आससे म्युवनवसपि बांड्स में वनिेश बावधत हुअ है। िास्ति में ये बांड्स राज्य िारा गारं टी प्राप्त
होने चावहए।
 यह ऄसमानताओं का एक स्रोत भी हो सकता है क्योंकक बेहतर रे टटग प्राप्त नगर वनगम, वनिेश का
ऄवधकांश वहस्सा प्राप्त कर सकते हैं। पहिे से ही ऄिसंरचनात्मक विकास में वपछड़े शहर वनिेश के
सन्दभय में क्राईचडग अईट आफ़े क्ट का वशकार बन सकते हैं।
ऄतः आन चुनौवतयों के अिोक में हमें िैवश्वक स्तर पर ऄपनायी जा रही सियश्रेष्ठ परम्पराओं को ऄपनाने
पर विचार करना चावहए। यथा:
 डेििपमेंट बैंक ऑफ सदनय ऄफ्रीका िारा म्युवनवसपि बांड जारी करने में सहायता करने हेतु ऄपनी
बैिेंस शीट का ईपयोग ककया जाता है।
 डेनमाकय में शहरों के समूह (pool of the cities) में से ककसी एक शहर के वडफॉल्ट होने की
वस्थवत में बांड धारकों के वहतों की रक्षा के विए एक एजेंसी कायय करती है।
 जापान में जापान फाआनेंस कापोरे शन फॉर म्युवनवसपि फाआनेंस आस कायय हेतु ‘सॉिरे न गारं टी’
प्रदान करता है। भारत को ऐसी ही सिोत्तम परम्पराओं को ऄपनाना चावहए।
समग्रतः म्युवनवसपि बांड को शहर के वित्तपोषण हेतु के िि एक ऄियि के रूप में देखा जाना चावहए।
शहरों को राजस्ि के विए और ऄवधक स्रोतों की खोज करने की जरुरत है। आस कदशा में नए GST तंि
के माध्यम से एकवित फं ड एक निीन स्रोत वसर्द् हो सकता है। आन सभी प्रयासों के विए शहरी प्रशासन
को सशि बनाए जाने की अिश्यकता है।
2.6.4. 14िां वित्त अयोग और स्थानीय सरकार

 14िें वित्त अयोग ने स्थानीय वनकायों को कदए जाने िािे ऄनुदान में दोगुने से ऄवधक की िृवर्द्
करने की ऄनुशंसा की है। आसके ऄवतररि अयोग िारा ऄनुशस
ं ा की गइ है कक यह धनरावश
स्िच्छता, पेयजि, सामुदावयक पररसंपवत्तयों के रखरखाि अकद जैसी अधारभूत सुविधाओं में
सुधार करने पर व्यय की जाए।

2.6.4.1. वित्त अयोग के प्रमु ख सु झाि

 14िें वित्त अयोग ने स्थानीय स्िशासन के संगठन के रूप में स्थानीय वनकायों में विश्वास और
सम्मान बनाए रखने की अिश्यकता को स्िीकार ककया है।
 कु ि ऄनुशवं सत धनरावश में से, िगभग 2 िाख करोड़ रूपये पंचायतों को और शेष नगरपाविकाओं
को कदया जाना तय ककया गया है। यह एक वनवित रावश है।
 पंचायत और नगर पाविकाओं के विए ऄनुदान को दो श्रेवणयों में विभावजत ककया गया है:
o वनष्पादन ऄनुदान (Performance Grant): आसके तीन प्रमुख िक्ष्य हैं:
 राज्यों के ‘अय और व्यय खाते’ के रखरखाि को प्रोत्सावहत करना।
 ऄपने राजस्ि में िृवर्द् करने और प्रावप्तयों में िृवर्द् को प्रदर्चशत करने में राज्यों की
सहायता करना।
 शहरी स्थानीय वनकायों के सन्दभय में शहरी क्षेिों के विए सेिा स्तर मानदण्ड को
प्रकावशत करना।
o अधारभूत ऄनुदान (Basic Grant): यह स्थानीय वनकायों को दी जाने िािी अधारभूत
रावश है।
 अधारभूत ऄनुदान और वनष्पादन ऄनुदान का ऄनुपात ग्राम पंचायतों और नगरपाविकाओं के
विए क्रमशः 90:10 और 80:20 वनधायररत ककया गया है।

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 राज्य सरकारों िारा वनष्पादन ऄनुदान के वितरण के विए विस्तृत प्रकक्रया के वनमायण का प्रािधान
ककया गया है।
 ऄनुदान रावश को सीधे ही स्थानीय वनकायों को प्रदान ककया जायेगा।
 स्थानीय वनकायों के संसाधनों में िृवर्द् करने के विए अयोग ने राज्य सरकारों को स्थानीय
सरकारों को विज्ञापन कर अरोवपत करने की शवि देने और पंचायतों को स्थानीय ईत्पादक
पररसंपवत्तयां अिंरटत करने का सुझाि कदया है।

ऄसम, ग्राम पंचायत विकास योजना (VPDP) से सम्बंवधत कदशावनदेश तैयार करने िािा देश का पहिा
राज्य है। आन वनदेशों को ऄन्य राज्यों िारा मॉडि कदशावनदेश माना जाता है।

 अयोग के ऄनुसार, खनन से वमिने िािी कु छ रॉयल्टी स्थानीय वनकायों के साथ साझा की जानी
चावहए क्योंकक खनन का स्थानीय िातािरण और ऄिसंरचना पर व्यापक प्रभाि पड़ता है। आससे
स्थानीय वनकायों को स्थानीय अबादी पर खनन के दुष्प्रभाि को कम करने में सहायता वमिेगी।
 पूिय में प्रचवित व्यिस्था के विपरीत, फं ड हस्तांतरण पर अरोवपत शतों को कम ककया गया है।
 यह ग्राम पंचायतों और नगर पाविकाओं को ईन्हें अिंरटत मूिभूत कायय के वनष्पादन हेतु वबना
शतय समथयन प्रदान करता है।
 राज्य वित्त अयोगों की ऄनुशंसाओं के अधार पर राज्यों िारा ककया जाने िािा संसाधनों का
वितरण।
 ईत्तरदावयत्ि और कु शितापूणय तरीके से अधारभूत सेिाओं के वितरण के संबंध में ऄपना ऄवधदेश
प्रदान करने हेतु ग्राम पंचायतों को सशक्त बनाने के विए ग्राम पंचायत िारा अधारभूत सेिाओं
की प्रदायगी पर बि देने के साथ सहभागी तरीके से ग्राम पंचायत विकास योजना तैयार करने का
वनदेश कदया गया है।
महत्ि
 आन कदमों के माध्यम से राज्यों की संवचत वनवध के विए कोष में िृवर्द् की जा सकती है।
 आस योजना में स्थानीय वनकायों िारा िोगों की भागीदारी के साथ ऄपनी विकास योजनाएं तैयार
करने और विकास की प्रकक्रया को ऄवधक समािेशी बनाने की क्षमता है।
 14िें वित्त अयोग ने 73िें और 74िें संिैधावनक संशोधनों िारा अरं भ की गइ विकें द्रीकरण की
प्रकक्रया को और ऄवधक सशि ककया है।
 ये ऄनुशस
ं ाएं सरकार की नीवतयों के साथ समन्िय स्थावपत करते हुए, AMRUT की तजय पर
बेहतर, सुरवक्षत एिं स्िच्छ गांि तथा नगरों के वनमायण में महत्िपूणय भूवमका वनभा सकती हैं।
 स्थानीय सरकारों के कामकाज में धन की कमी एक बड़ी बाधा है। अयोग िारा आन पररितयनों के
माध्यम से स्थानीय वनकायों के कामकाज में सुधार की एक विस्तृत रूपरे खा प्रस्तुत की गइ है।
2.7. स्थानीय स्िशासन के विए योजनाएं

 74िें संविधान संशोधन के पूिय वजिापररषद् तथा नगरपाविका संस्थाओं को वजिा स्तर पर
वनयोजन और अिंटन की शवि प्रदान की गइ थी। 74िें संविधान संशोधन के िारा वजिा योजना
सवमवतयों को सम्पूणय वजिे के विए विकासात्मक योजना तैयार करने का कायय सौंपा गया है।
2.7.1. वजिा योजना सवमवत (DPCs)

 ऄनुच्छेद 243ZD के तहत वजिा स्तर पर योजनाओं के वनमायण हेतु वजिा योजना सवमवत का
प्रािधान ककया गया है। यह सवमवत पंचायतों तथा नगरपाविकाओं िारा तैयार की गइ योजनाओं
को एकीकृ त करती है तथा संपूणय वजिे के विए एक विकास योजना बनाती है।
 वजिा विकास योजना के वनमायण के दौरान वजिा योजना सवमवत, नगरपाविका तथा पंचायतों के
बीच साझे विषयों जैसे:- जि संचयन, प्राकृ वतक संसाधन, ऄिसंरचनाओं का विकास तथा
पयायिरण संरक्षण को ध्यान में रखती है। हािाँकक वजिा पंचायत सवमवतयों के विए यह ऄवनिायय
है कक िे संबंवधत संस्थाओं से परामशय करें ।

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2.7.1.1. DPCs से सम्बं वधत समस्याएं


 ऄवधकतर राज्यों में ये सवमवतयां महज औपचाररक रूप में कायय कर रही हैं। न तो आन्हें सुदढ़ृ ककया
गया है और न ही ये वजिा विकास योजना का कोइ मसौदा तैयार करती हैं।
 पयायप्त धन अिंटन के बाद भी बहुत कम राज्यों ने वजिा योजना तैयार की है।
 कइ राज्यों में वजिे एिं राज्य के बजट एक-दूसरे से ऄिग नहीं हैं। पंचायतों को धन का अिंटन
ईनकी विधायी शवियों के हस्तांतरण से मेि नहीं खाता है।
 पंचायतों को कदया गया धन योजनाओं से ऄवनिायय रूप से संबवं धत कर कदया गया है और आस
प्रकार, वनयोजन के ज़ररए स्थानीय प्राथवमकताओं के वनधायरण तथा ईनके विए कायय करने की
संभािना सीवमत हो जाती है। आस सन्दभय में, ऐसे धन में सिायवधक ऄंश पंचायतों को हस्तांतररत
कायों से सम्बंवधत कें द्र प्रायोवजत योजनाओं का होता है।
 राज्य बजट में ककये गए िास्तविक प्रािधान समग्र वनकासी की ऄपेक्षा वभन्न होते हैं। कु छ राज्यों ने
के न्द्र प्रायोवजत पररयोजनाओं से िाभ प्राप्त करने के विए ऄपने वहस्से का धन ईपिब्ध नहीं
करिाया वजससे स्थानीय इकाआयों के िास्तविक धन के प्रिाह में कमी अइ है।
 सामान्यतया आन सवमवतयों िारा तैयार योजनाएं खराब गुणित्ता की होती हैं। यह के िि
योजनाओं ि कायो का संग्रह माि होता है जो कक चयवनत सदस्यों िारा तदथय या ऄस्थायी अधार
पर सुझाये जाते हैं।

2.7.1.2. वजिा योजना सवमवतयों में सु धार

 वजिे के विए योजना तैयार करने तथा वजिा स्तर पर योजना प्रकक्रया में विशेषज्ञ समूहों िारा
ऄनुशंवसत वसफाररशों को नीवत अयोग के कदशा वनदेशों के साथ िागू ककया जाना चावहए।
 प्रत्येक राज्य सरकार को स्थानीय स्तर की योजनाओं की भागीदारी के विए एक पर्द्वत विकवसत
करनी चावहए तथा ऐसा सहयोग प्राप्त करना चावहए जो योजनाओं के विके न्द्रीकरण को संस्थागत
बनाए।
 राज्य एक योजना कै िेण्डर बना सकते हैं, वजसमें स्थानीय वनकायों के विए योजनाओं को पूरा
करने की समय सीमा वनधायररत हो। आससे आन्हें उपरी स्तर पर भेजा जा सके गा जहां वजिा
सवमवतयों को व्यापक योजना बनाने में मदद वमि सके गी।
 राज्य वनयोजन बोडय को यह सुवनवित करना चावहए कक वजिा योजनाएं, राज्य योजनाओं के साथ
एकीकृ त हों। यह अिश्यक ककया जाना चावहए कक स्थानीय संस्थाओं के वनयोजन के सृदढ़ृ ीकरण के
बाद ही राज्य ऄपनी विकासात्मक योजना तैयार करें ।
 शहरी वजिों के विए जहां टाईन पिाचनग के कायय विकासात्मक प्रावधकरणों िारा पूरे ककये जा रहे
हैं, िहाँ ये प्रावधकरण वजिा वनयोजन समीवतयों की योजना/तकनीक के भाग होने चावहए।

2.7.2. महानगर योजना सवमवत

 महानगरीय योजना सवमवत का कायय महानगरीय क्षेि में विकास योजना के प्रारूप को तैयार
करना है। यह सवमवत विकास हेतु प्रारूप योजना बनाते समय वनम्नविवखत बातों का ध्यान रखेगी:
o नगरपाविकाओं एिं पंचायतों के मध्य साझे वहत से संबंवधत मामिे यथा अधारभूत संरचना
का विकास, पयायिरण संरक्षण, जि तथा ऄन्य भौवतक एिं प्राकृ वतक संसाधनों की भागीदारी,
समवन्ित योजना आत्याकद।
o कें द्र सरकार तथा राज्य सरकार िारा वनधायररत प्राथवमकताएँ एिं िक्ष्य।
o महानगरीय क्षेि में पंचायतों एिं नगर पाविकाओं िारा तैयार की गयी योजनाएँ।
o महानगरीय क्षेि में कें द्र सरकार या राज्य सरकार िारा ककए जाने िािे वनिेश की प्रकृ वत एिं
मािा तथा ईपिब्ध वित्तीय एिं ऄन्य संसाधन।
o राज्यपाि िारा वनर्ददष्ट संस्थाओं एिं संगठनों से परामशय प्राप्त करना।
 संरचना: आसके दो वतहाइ सदस्यों का चुनाि नगर पाविका के वनिायवचत सदस्यों एिं पंचायतों के
ऄध्यक्षों में से ककया जाता है। सवमवत के सदस्यों की संख्या ईस महानगरीय क्षेि में नगरपाविकाओं
एिं पंचायतों की जनसंख्या के ऄनुपात में समानुपावतक रुप से होना चावहए।

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 आस संबध ं में विधानमंडि की ईपबंध बनाने की शवि: राज्य विधानमंडि को आस संबंध में
वनम्नविवखत शवियाँ प्राप्त होंगी:
o आस सवमवत में ऄध्यक्ष के वनिायचन की प्रकक्रया वनधायररत करने का ऄवधकार।
o आस सवमवत में सदस्यों के वनिायचन की प्रकक्रया वनधायररत करने का ऄवधकार।
o सवमवत की संरचना वनधायररत करने का ऄवधकार।
o कें द्र सरकार, राज्य सरकार तथा ऄन्य संस्थाओं का आन सवमवतयों में प्रवतवनवधत्ि वनधायररत
करने का ऄवधकार।
o महानगरीय क्षेिों के विए योजनाओं एिं समन्िय के संबंध में आन सवमवतयों के कायय वनधाय ररत
करने का ऄवधकार।
2.8. स्थानीय शासन की कें द्रीय पररषद्

(Central Council of Local Government)


 यह पररषद् एक परामशयदािी वनकाय है। आसकी स्थापना राष्ट्रपवत के अदेश से भारत के संविधान
के ऄनुच्छेद 263 के ऄंतगयत की गइ थी।
 1958 से पूिय तक आसका संबंध नगर वनकायों के साथ ही ग्रामीण स्थानीय वनकायों से भी था
परन्तु 1958 के बाद से यह वसफ़य शहरी स्थानीय वनकायों से सम्बंवधत मामिों को देखती है। आसमें
कें द्र सरकार के नगर विकास मंिी एिं राज्यों के स्थानीय स्िशासन के प्रभारी मंिी सदस्य होते हैं।
 स्थानीय सरकार से संबंवधत आस पररषद् के वनम्नविवखत कायय हैं:-
o कें द्र सरकार से वित्तीय सहयोग प्राप्त करने के विए ऄनुशस ं ा करना।
o कें द्र के वित्तीय सहयोग से संपन्न ककए गए कायों की समीक्षा करना।
o नीवतगत मामिों पर विचार करना एिं ऄनुशस ं ाएं देना।
o विधायन के विए प्रस्ताि तैयार करना।
o कें द्र एिं राज्यों के बीच सहयोग की संभािना को तिाश करना।
o साझा काययक्रम हेतु ढांचा तैयार करना।

2.9. वनिाय च न सं बं धी मामिों में न्यायािय के हस्तक्षे प पर प्रवतबं ध

 74िां संविधान संशोधन चुनाि संबंधी मामिों में न्यायािय के हस्तक्षेप को प्रवतबंवधत करता है।
आसके ऄनुसार, चुनाि क्षेि एिं चुनाि क्षेि में सीटों के विभाजन संबंधी मुद्दों को न्यायािय में
चुनौती नहीं दी जा सकती।

3. हाि के कु छ चर्चचत मु द्दे एिं निीन पहि


3.1. प्रत्यक्ष वनिाय वचत महापौर/मे य र (Directly Elected Mayor)

 िषय 2016 में देश में महापौर के प्रत्यक्ष वनिायचन और पद को सशि बनाने हेतु एक वनजी सदस्य
िारा संसद में विधेयक प्रस्तुत ककया गया।
ितयमान वस्थवत
 महापौर, भारत में नगर वनगमों के ऄध्यक्ष और अवधकाररक प्रभारी होते हैं।
 काययकारी ऄवधकारी महापौर और पाषयदों के साथ समन्िय रखते हुए वनगम की योजना और
विकास से संबंवधत सभी काययक्रमों के कायायन्ियन की वनगरानी करते हैं।
 ितयमान में छह राज्यों - ईत्तराखंड, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, यूपी और तवमिनाडु - में ऐसे
महापौरों का प्रािधान है जो पांच िषय के काययकाि के विए मतदाताओं िारा प्रत्यक्ष रूप से चुने
जाते हैं।
प्रस्तावित पररितयन
 विधेयक का िक्ष्य एक प्रत्यक्ष वनिायवचत और सशि महापौर का प्रािधान करके नगरों के विए
मजबूत नेतृत्ि स्थावपत करना है।

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 यह कइ सुधारों का भी सुझाि देता है जैसे कक क्षेिीय सभाओं और िाडय सवमवतयों के गठन को
ऄवनिायय बनाना तथा स्थानीय सरकारों को शवियों का हस्तांतरण करके ईन्हें मजबूत बनाना।
 विधेयक आसकी भी वसफाररश करता है कक महापौर की ऄिवध, नगरपाविका की ऄिवध के साथ
ही समाप्त होनी चावहए।
 यह महापौर को नगरपाविका का काययकारी प्रमुख बनाता है।
 यह महापौर को पररषद् के कु छ प्रस्तािों पर िीटो शवि भी देता है और साथ ही, महापौर को
मेयर-आन-काईं वसि के सदस्यों को मनोनीत करने की भी ऄनुमवत देता है।
चचताएँ
 यथावस्थवतिादी व्यिहार और वनवहत स्िाथों का होना पहिी चुनौती है। राज्य सरकारें शहरी स्तर
की संस्थाओं को ऄवधक ऄवधकार नहीं देना चाहती हैं।
 प्रत्यक्ष वनिायवचत महापौर के साथ एक मूिभूत मुद्दा यह है कक दक्षता को बढ़ाने के बजाय, यह
िास्ति में प्रशासन में ऄवस्थरता िा सकता है, विशेषकर तब जब महापौर और नगर पररषद् के
चयवनत ऄवधकांश सदस्य विवभन्न राजनीवतक दिों से जुड़े हों।
 विधेयक महापौर और ईसके िारा मनोनीत ईम्मीदिारों के हाथ में सभी ऄवधकार के न्द्रीकृ त करता
है और एक राजनीवतक काययकारी का प्रािधान करता है वजसे न तो वनिायवचत पररषद् का समथयन
प्राप्त होता है, न ही वनणयय िेने के विए ईनकी स्िीकृ वत की अिश्यकता होती है।
िाभ
 महापौरों को ऄवनयवमतताओं के विए जिाबदेह ठहराया जा सकता है क्योंकक ईन्हें सीधे िोगों
िारा वनिायवचत ककया जाएगा।
 यह हमारे नगर पाविकाओं के बेहतर वित्तीय प्रबंधन को भी प्रोत्सावहत करे गा।
 चूंकक संचार और ररपोर्टटग सीधे महापौर िारा की जायेगी आसविए ऄवधक पारदर्चशता िाने में यह
ईपयोगी होगा।
 यह महापौर कायायिय को राजनीवतक रूप से प्रासंवगक बनाने के साथ ही योग्यता, वनष्पादन और
जिाबदेही युि संस्कृ वत के सृजन में भी योगदान करे गा।
3.2. जनगणना नगरों का िै धावनक शहरी स्थानीय वनकायों में पररितय न

(Converting Census Towns to Statutory ULBs)


 शहरी विकास मंिािय ने सभी 28 राज्यों के 3784 जनगणना नगरों को िैधावनक शहरी स्थानीय
वनकायों में पररिर्चतत करने के विए वनदेश कदया है।
3.2.1. िै धावनक शहरी स्थानीय वनकाय (ULBs) क्या हैं ?

 एक िैधावनक शहरी स्थानीय वनकाय एक नगर पाविका, नगर वनगम, छािनी बोडय या ऄवधसूवचत
शहरी क्षेि हो सकता है।
 िषय 2011 की जनगणना के ऄनुसार ऐसे शहरों की संख्या 4041 है जबकक 2001 में यह संख्या
3799 थी।

3.2.2. जनगणना नगर क्या है ?

 एक जनगणना नगर शहरी विशेषताओं से युि एक क्षेि है यथा:


o न्यूनतम 5000 की जनसंख्या होना चावहए।
o गैर कृ वष गवतविवधयों में िगे हुए पुरुष मुख्य कायय-बि का कम से कम 75% वहस्सा हो।
o प्रवतिगय कक.मी. 400 का जनसंख्या घनत्ि होना चावहए।
 िषय 2011 की जनगणना के ऄनुसार, जनगणना शहरों की कु ि संख्या 3,784 थी जबकक 2001 में
यह 1,362 थी।

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3.2.3. पररितय न की अिश्यकता क्यों?

 योजनाबर्द् शहरी विकास को बढ़ािा देने के विए।


 आसके माध्यम से आन क्षेिों के राजस्ि प्रावप्त में िृवर्द् होगी। आसके ऄवतररि अर्चथक गवतविवधयों के
समग्र विकास के माध्यम से नागररकों को बेहतर सेिाएँ प्रदान करने में सहायता वमिेगी।
 14िें वित्त अयोग के कदशा-वनदेशों के ऄनुसार िैधावनक शहरी स्थानीय वनकाय कें द्रीय सहायता
पाने के हकदार हो जाते हैं।
 ऄमृत वमशन के तहत, िैधावनक शहरी स्थानीय वनकायों की संख्या के अधार पर राज्यों के बीच
50% रावश अिंरटत की जाएगी।

3.3. शहरी विकास मं िािय: नए सु धार

 शहरी शासन, योजना तथा प्रबन्धन में सुधार हेतु शहरी विकास मंिािय ने ऄगिे तीन िषों के
विए राज्य एिं शहरी सरकारों के िारा सुधारों को िागू करने एिं सक्षम बनाने हेतु सुधारों के एक
नए सेट को विकवसत ककया है।
3.3.1. सु धार हे तु सु झाये गए प्रमु ख प्रािधान

विश्वास एिं प्रमाणन की ओर बढ़ना


 ितयमान प्रणािी के ऄंतगयत पहिे प्रमाणन की अिश्यकता होती है और तत्पिात् ऄनुमवत दी
जाती है। अिश्यक यह है कक नागररकों में विश्वास स्थावपत ककया जाए तथा ऄनुमवत पहिे दे दी
जाये और प्रमाणन बाद में भी कदया जा सकता है।
 भिन वनमायण के विए ऄनुमवत देने, नगरपाविका के ऄवभिेखों में टाआटि के बदिाि (mutation)

तथा जन्म-मृत्यु पंजीकरण, शहरी सरकार तथा नागररकों के मध्य िृहद् स्तर पर भौवतक संपकय को
शावमि करने के सन्दभय में आस दृवष्टकोण की वसफाररश की गयी है।
भूवम स्ित्िावधकार (िैंड टाआटचिग) कानूनों का वनमायण
 मैकेंजी के ऄनुसार देश में िगभग 90 % भूवम ररकॉडय ऄस्पष्ट हैं। भू-बाजार विकृ वतयां और ऄस्पष्ट

भू-स्ित्िावधकार प्रवतिषय देश की GDP को 1.30 % तक नुकसान पहुँचाते हैं।


 आस कारण अिश्यकता यह है कक एक वनवित समय सीमा में भू-स्ित्िावधकार कानून बनाकर ईन्हें
कक्रयावन्ित ककया जाए।
स्थानीय शहरी वनकायों की क्रेवडट रे टटग और िैल्यू कै पचर फाआनेंचसग
 नगरपाविका क्षेि का कु ि राजस्ि समग्र सकि घरे िू ईत्पाद का के िि 0.75% है जबकक दवक्षण

ऄफ्रीका में 6 %, ब्राज़ीि में 5 % तथा पोिैंड में 4.5 % है।

 आसविए, नगर पाविकाओं को वनजी व्यवियों के विए सृवजत वनवध/मूल्य से कु छ मूल्य पुनप्रायप्त
करने की अिश्यकता है। शहरों की पूज
ं ीगत अिश्यकताओं के खचों की पूर्चत हेतु म्युवनवसपि
बांड्स जारी ककये जा सकते हैं।
ULBs के पेशि
े र रिैये में सुधार होना चावहए

 गोल्डमैन सैच के ऄनुसार, िररष्ठता की ऄपेक्षा मेधा अधाररत नौकरशाही देश की GDP िृवर्द् में

प्रवतिषय िगभग 1 प्रवतशत की िृवर्द् कर सकती है।

 साथ ही योग्य तकनीकी स्टाफ प्रबंधकीय सुपरिाआजर की कमी के कारण ULBs में निाचार रुक
जाता है।

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 शहरी प्रशासन में पेशेिरों को पार्चश्वक (िेटरि) भर्चतयों िारा शावमि ककया जाने को बढ़ािा कदया
जाना चावहए तथा शहरों में शीषय पदों को खुिी प्रवतयोवगता िारा भरा जाना चावहए।
ईपयुि
य कदमों को प्रोत्सावहत करने हेतु प्रयास
 सुधार प्रोत्साहन वनवध (Reform Incentive Fund) को 2017-18 के 500 करोड़ से
कक्रयान्ियन काि के ऄगिे तीन िषों तक प्रवतिषय 3000 करोड़ तक बढ़ाना।
 AMRUT कदशा-वनदेशों के ऄंतगयत सुधार प्रोत्साहन प्रदान करने के विए सुधार की प्रत्येक श्रेणी के
ऄंतगयत प्रदशयन के अधार पर शहरों को रैं ककग प्रदान करना।
 नयी पहिों का अरम्भ जैसे ट्ांवजट ओररएंटेड डेििपमेंट पॉविसी, मेट्ो नीवत, ग्रीन ऄबयन
मोवबविटी स्कीम, वििेवबविटी आं डक्
े स फॉर वसटीज (Livability Index for Cities), िैल्यू कै पचर
पॉविसी और मि-कीचड़ एिं ऄन्य कचरा प्रबंधन नीवत।
3.4. ग्राम ईदय से भारत ईदय ऄवभयान

(Gram Uday to Bharat Uday Abhiyan)


 राज्यों और पंचायतों के सहयोग से के न्द्र सरकार िारा 14 ऄप्रैि से 24 ऄप्रैि तक 2016 में 'ग्राम
ईदय से भारत ईदय ऄवभयान' (गांि स्िशासन ऄवभयान) शुभारं भ करने का फै सिा ककया गया।
“ग्राम ईदय से भारत ईदय ऄवभयान” (ऄथायत् गांिों के ईदय एिं विकास से भारत का ईदय एिं
विकास) डॉक्टर बी. अर. ऄम्बेडकर की जन्मवतवथ 14 ऄप्रैि 2016 से प्रारं भ होकर “राष्ट्रीय
पंचायती राज कदिस” 24 ऄप्रैि 2016 तक देश भर में अयोवजत ककया गया।

3.4.1. ऄवभयान की मु ख्य विशे ष ताएं

 ऄवभयान का ईद्देश्य गांिों में सामावजक सद्भाि बढ़ाने, पंचायती राज को मजबूत बनाने, ग्रामीण
विकास को बढ़ािा देने और ककसानों की प्रगवत हेतु देशव्यापी प्रयास करना है।
 सभी ग्राम पंचायतों में एक 'सामावजक सद्भाि काययक्रम' अयोवजत ककया जाएगा। यह पंचायती
राज मंिािय और सामावजक न्याय एिं ऄवधकाररता मंिािय के संयुि तत्त्िाधान में अयोवजत
होगा।
 आस काययक्रम में ग्रामीण, डॉ. ऄम्बेडकर के प्रवत सम्मान व्यि करें गे और सामावजक सद्भाि को
मजबूत करने के विए प्रवतबर्द्ता व्यि करें गे।
 सामावजक न्याय को बढ़ािा देने िािी विवभन्न सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान की
जाएगी।
 'ग्राम ककसान सभाओं' का अयोजन ककया जाएगा, जहां कृ वष योजनाओं के बारे में ककसानों को
जानकारी ईपिब्ध कराइ जाएगी, जैसे फसि बीमा योजना, सामावजक स्िास््य काडय अकद।
 आसके ऄिािा समय समय पर पांचिीं ऄनुसच ू ी िािे क्षेिों के राज्यों के अकदिासी मवहिा ऄध्यक्षों
की एक राष्ट्रीय बैठक अयोवजत ककया जाता है वजसका के न्द्रीय विषयिस्तु पंचायत और अकदिासी
विकास होता है।
3.5. राष्ट्रीय ग्राम स्िराज ऄवभयान

राष्ट्रीय ग्राम स्िराज ऄवभयान पूरे देश में पंचायती राज व्यिस्था को मजबूती प्रदान कर, ईन मुख्य
कवमयों को दूर करे गा जो आसे सफि बनाने से रोकते हैं।
ईद्देश्य :
 पंचायतों और ग्राम सभाओं की क्षमता और प्रभाि बढ़ाना।
 िोकतांविक वनणयय िेने और पंचायतों में जिाबदेही स्थावपत करना तथा जन भागीदारी को
बढ़ािा देना।
 ज्ञान का सृजन एिं पंचायतों की क्षमता वनमायण हेतु संस्थागत संरचना को मजबूत करना।

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 संविधान और PESA ऄवधवनयम की भािना के ऄनुरूप पंचायतों को शवियों एिं वजम्मेदाररयों
के हस्तांतरण को बढ़ािा देना।
 पंचायती व्यिस्था के ऄंतगयत ग्राम सभाओं को जन भागीदारी, पारदर्चशता और जिाबदेही हेतु
अधारभूत मंच (basic forum) के रूप में प्रभािी ढंग से कायय करने हेतु सक्षम बनाना।
 जहां पंचायतें नहीं हैं, ईन क्षेिों में िोकतांविक स्थानीय स्ि-शासन को स्थावपत कर आसे मजबूती
प्रदान करना।
 पंचायतों की स्थापना से संबंवधत संविधान िारा ऄवधदेवशत प्रारूप को मजबूती प्रदान करना।

3.6 ऄमृ त : ऄटि वमशन फॉर रे जु ि ने श न एं ड ऄबय न ट्ां स फॉमे श न

(AMRUT: Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation)


ईद्देश्य ऄपेवक्षत िाभाथी मुख्य विशेषताएँ
 शहरी घरों को बुवनयादी  आसे एक िाख और ईससे  यह जि की अपूर्चत,
सेिाएं (जैस-े जि की ऄवधक की अबादी िािे
सीिेज, पररिहन और बच्चों
अपूर्चत, सीिेज, शहरी 500 शहरों और कस्बों में
के विए विशेष प्रािधान
िागू ककया जाएगा। युि हररत स्थिों के
पररिहन) प्रदान करना
 मुख्य नकदयों के ककनारे विकास जैसी ऄिसंरचना
 शहरों में सुविधाओं का
वस्थत कु छ शहर, कु छ सुविधाओं को सुवनवित
वनमायण करना, जो सभी
राजधानी शहर और करने हेतु एक 'पररयोजना
िोगों के जीिन की
पहाड़ी आिाकों, िीपों और दृवष्टकोण (project
गुणित्ता में सुधार िाने के
साथ ही गरीबों और पययटन क्षेिों में वस्थत कु छ
approach)' ऄपनाता है।
िंवचतों पर विशेष ध्यान महत्िपूणय शहरों को भी

के वन्द्रत करे गी। शावमि ककया गया है।

 गत िषय ककए गए सुधारों


की ईपिवब्ध के अधार पर
राज्यों/कें द्र शावसत प्रदेशों
को प्रोत्साहन के रूप में
बजट का 10 प्रवतशत कदया
जाएगा।
o आसके ऄंतगयत राज्यों को
JNNURM की तुिना में
ऄवधक िचीिापन प्रदान
ककया गया है क्योंकक आस
योजना के तहत प्रस्तुत
राज्य कायय योजना में
के िि कें द्र सरकार के साथ
‘व्यापक सहमवत’ की
अिश्यकता है
o 10 िाख तक की अबादी
िािे शहरों और कस्बों के

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विए कें द्रीय सहायता,

पररयोजना की कु ि िागत

का 50 प्रवतशत होगी। िहीं

10 िाख से उपर की
अबादी िािे शहरों के
विए यह पररयोजना
िागत का एक वतहाइ
होगी।
o स्टेट एनुऄि एक्शन पिान
में बताइ गइ ईपिवब्ध के
अधार पर 20:40:40 के
ऄनुपात में तीन ककस्तों में
कें द्रीय सहायता जारी की
जाएगी।
 ऄमृत वमशन के तहत
50% भारांश ककसी भी
राज्य/के न्द्रशावसत प्रदेश को
ईनके िैधावनक कस्बों की
संख्या के अधार पर कदया
जाता है ताकक ईनमे
वनवधयों का अिंटन हो
सके ।
 कें द्र िारा धन हस्तांतरण के
7 कदनों के भीतर ही राज्य
स्थानीय शहरी वनकायों को
धन का हस्तांतरण कर देंगे
और आस धन का ककसी भी
प्रकार का िीके ज नहीं
होगा।

3.7. स्माटय वसटीज़ वमशन (Smart Cities Mission)

ईद्देश्य ऄपेवक्षत िाभाथी मुख्य विशेषताएँ

 अर्चथक विकास को  शहरी अबादी  योजना में राज्यों को 'वसटी चैिज


ें
गवत प्रदान करने के
कम्पटीशन' हेतु शहरों का नामांकन
विए।
करने के विए कहा जाता है। चयवनत
 वनम्नविवखत हेतु कें द्र
शहरों को 5 िषय के विए प्रत्येक िषय
(साआट) बनाने के विए
o ईत्पादन 100 करोड़ रुपये के वहसाब से कें द्रीय

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o दक्षता वनवधयन प्रदान ककया जाएगा।
o ईपभोग  स्माटय वसटी पिान एक स्पेशि पपयस
 वनिास योग्य सतत व्हीकि (SPV) िारा कायायवन्ित
स्थान (ऄपवशष्ट प्रबंधन ककया जाएगा। आस SPV में राज्यों /
अकद) संघ शावसत प्रदेशों और ULBs की
 क्षेिीय ऄसमानताओं
50:50 की आकक्वटी होगी।
को दूर करने के विए।
 क्षेि अधाररत विकास
 क्षेि अधाररत विकास  प्रदान की गइ बुवनयादी सेिाएं:
में वमवश्रत भूवम
o जि की पयायप्त अपूर्चत,
ईपयोग को बढ़ािा देने
के विए। o वबजिी की सुवनवित अपूर्चत,

 अिास वनमायण और o ठोस ऄपवशष्ट प्रबंधन सवहत


समािेशन। स्िच्छता
o (सैवनटेशन) व्यिस्था
 मॉडि स्माटय शहरों की प्रवतकृ वतता
(Replicability) और स्के िेवबविटी

(Scalability)

 विवशष्ट जरूरतों के ऄनुरूप ढािते

हुए स्थानीयकृ त (localised)

बनाया गया है जैस:े रोजगार,


विवनमायण क्षेि को बढ़ािा देने के
विए DMIC के असपास विकास,

वित्तीय सेिाओं अकद के विए GIFT

वसटी, कोवच्च स्माटय वसटी - अइटी


वसटी।
 सततता : निीकरणीय उजाय, कु शि
और आं टेिीजेंट ट्ांसपोटेशन।
ईदाहरण: ऄहमदाबाद नगरपाविका
और गुजरात सरकार िारा वनर्चमत
जनमागय।
 माझा स्िप्न (Maza Swapna), पुणे
में जन भागीदारी दृवष्टकोण।
 PPP: विशेषज्ञता, प्राआिेट पिेयसय +
दक्षता
 शहरी प्रशासन में सुधार - मल्टी

चैनि नागररक सेिाएं (कॉमन सर्चिस

सेंटर, इ-गिनेंस, एम-गिनेंस अकद),

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एकीकृ त पररसंपवत्त प्रबंधन,

वनयोजन अकद,

o सुभेद्यता में कमी: जििायु पररितयन

कारय िाइ योजनाएं + ऄनुकूिन


रणनीवतयाँ

3.8. स्िच्छ भारत वमशन

ईद्देश्य ऄपेवक्षत िाभकारी मुख्य विशेषताएं

 2019 तक स्िच्छ भारत के  नागररकों के स्िास््य में वमशन के वनम्नविवखत घटक हैं: -
वनमायण के विए बड़े पैमाने सुधार और पयायिरण में  घरे िू शौचाियों का वनमायण,
पर ऄवभयान चिाकर खुिे रोगजनक तत्िों को कम  समुदाय और साियजवनक
में शौच को समाप्त करना। करना।
शौचािय,
 ऄस्िास््यकर शौचाियों  ऄवधक रोजगार मुहय
ै ा
का फ्िश शौचाियों में कराने िािे पययटन को  ठोस ऄपवशष्ट प्रबंधन,

रूपांतरण, हाथ से मैिा बढ़ाना।  सूचना, वशक्षा और संचार


ढोने की प्रथा (मैनुऄि  पयायिरण ऄनुकूि और
तथा जन जागरूकता,
स्के िेंचजग) का ईन्मूिन। पाररवस्थवतकी तंि में
 क्षमता वनमायण और
 नगर वनगम के ठोस कचरे सुधार।
प्रशासवनक और कायायिय
का 100% संग्रहण और
व्यय (A&OE)
िैज्ञावनक
कें द्र सरकार और राज्य सरकार /
प्रसंस्करण/वनपटान, पुन:
शहरी स्थानीय वनकायों के बीच
ईपयोग /पुनचयक्रण।
फं चडग पैटनय है- 75%: 25%
 स्िस्थ स्िच्छता प्रथाओं के
संबंध में िोगों में एक (ईत्तर पूिी और विशेष श्रेणी
व्यिहाररक पररितयन राज्यों के विए 90%: 10%)।
िाना।
ईि घटकों के वित्त पोषण में
 स्िच्छता तथा साियजवनक
ऄंतराि की पूर्चत िाभाथी
स्िास््य पर स्िच्छता के
प्रभािों के बारे में योगदान, वनजी वित्त पोषण,
नागररकों के बीच कॉपोरे ट सामावजक ईतरदावयत्ि
जागरूकता पैदा करना। (CSR) के तहत वनजी कं पवनयों
 वडजाआन, वनष्पादन और से प्राप्त धन और वित्त मंिािय के
व्यिस्था को संचावित स्िच्छ भारत कोष से की जा
करने हेतु शहरी स्थानीय सकती है।
वनकायों को सुदढ़ृ बनाना।
 पूंजी व्यय और संचािन
एिं रखरखाि (O&M) की
िागतों में वनजी क्षेि की
भागीदारी के विए समथय
िातािरण बनाना।

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3.9. वपछड़ा क्षे ि ऄनु दान वनवध

(Backward Region Grant Fund: BRGF)

ईद्देश्य ऄपेवक्षत िाभाथी मुख्य विशेषताएं

 वपछड़े राज्यों में पहिे से जारी  वपछड़े गाँि  आसके तहत योजना को उपर से
विकास काययक्रमों को पूरा करने  पंचायती नीचे की बजाए जमीनी स्तर से
के विए अर्चथक संसाधन मुहय
ै ा राज संस्थान उपर की ओर बढ़ने की पर्द्वत पर
कराकर क्षेिीय ऄसंति
ु न को तैयार ककया ककया गया है।
समापत करना, वजससे  आसके कदशा-वनदेश ग्रामीण क्षेिों में

वनम्नविवखत िक्ष्यों को प्राप्त पंचायतों, शहरी क्षेिों में नगर-


ककया जा सके - पाविका तथा वजिा स्तर पर वजिा
o मौजूदा विकास काययक्रमों और योजना सवमवतयों को योजना बनाने
स्थानीय संरचना के बीच जरटि और काययक्रमों के कक्रयान्ियन हेतु
ऄंतर को समापत करना। के न्द्रीय भूवमका प्रदान करते हैं।
o स्थानीय िोगों की जरूरतों को  पंचायती राज मंिािय िारा ईस
प्रवतवबवम्बत करने के विए योजना के विए नेशनि कै पेवसटी
ईपयुक्त क्षमता वनमायण के साथ
वबचल्डग फ्रेमिकय (NCBF) को
पंचायतों और नगर वनकायों को
ऄपनाया गया है वजस योजना में
सशक्त करना, सहभागी
पंचायती राज संस्थाओं के वनिायवचत
योजनाओं को असान बनाना,
प्रवतवनवधयों तथा ऄवधकाररयों के
वनणयय िेना, कक्रयान्ियन और क्षमता वनमायण के साथ ही साथ
वनगरानी करना। ज़मीनी स्तर पर िोकतंि के
सशविकरण की पररकल्पना की
जाती है।
 2015-16 के बाद वपछड़ा क्षेि
ऄनुदान वनवध को ककसी भी
ऄवतररि कें द्रीय सहयोग से पृथक
कर कदया गया है। BRGF को भी
कें द्र के बजटीय सहायता से पृथक
कर कदया गया है।

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