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अंकिया नाट

◦ दो शब्दों िे मेल से बना है - अंकिया और नाट। अंकिया शब्द विशेषण है और नाट शब्द
विशेष्य
◦ शंिरदेि से पहले ‘अंि’ शब्द िा प्रयोग असवमया एिांिी नाटिों िे वलए किया जाता था।
◦ विद्वानों िा तिक है कि -‘अंकिया नाट’ एि ही अंि िा होता है इसवलए इसे ‘अंकिया’ िहा
जाए और ‘नाट’ शब्द संस्िृ त रं गमंच से लेिर ‘अंकिया नाट’ शब्द रूढ़ हुआ।
◦ शंिरदेि ने अपने नाटिों िो नाटटिा, नाट, यात्रा और नृत्य आकद से अविवहत किया है। यह
शब्द उसिे पश्चात् प्रचवलत हुआ होगा।
नाट िी ‘िाओना’
◦ अंकिया नाट प्रदशकन िो िाओना िहा जाता हैं। िाओना असमी िाषा िा शब्द है वजसिा
अथक होता है- नाट्य प्रस्तुत िरना।
◦ िाओना िा सम्बन्ध् संस्िृ त शब्द िािना ;िािायतीत से जोड़ा जाता है। संस्िृ त में िािना
से तात्पयक होता था- प्रदशकन िरना, प्रसाटरत िरना तथा पटरिल्पना िरना।
◦ िओना शब्द आचायक शंिरदेि िे समय में ही ‘अंकिया नाट’ प्रदशकन िे वलए रूढ़ हो चुिा था

◦ वसद्धहस्त मुख्य अविनेता िो ििटरया तथा अन्य सिी अविनेता िो नटु िा या नर्त्कि िहा
जाता है।
◦ ििटरया किसी िी िूवमिा िो जीने में मावहर होता है।
सत्र
◦ सत्रावधिार -यह सत्र िे प्रधन, संचालि, गुरु तथा पथ
प्रदशकि होते हैं। सत्र िे प्रशासवनि िायक से लेिर
आनुष्ठावनि एिं अन्य सामावजि िायक सत्रावधिार िे
मागक दशकन में होता है।

◦ डेिावधिार - सत्रावधिार िे नीचे डेिावधिार होता


है। सत्रावधिार िे देहािसान िे बाद उसे सत्रवधिार
बनने िा अवधिार होता है।
◦ िक्त -सदस्य जो कदनिर सत्र िे धर्मकि कियािलाप
तथा अथोपाजकन में लगे रहते हैं। प्ररत्येि िक्त िे साथ
पांच से सात वशष्य होते हैं, वजनिी वशक्षा-दीक्षा िी
वजम्मेिारी िक्तों िी होती है।
श्रीमंत शंिर देि (1449-1557)

◦ शंिरदेि िा जन्म सन् 1449 ई. िे अक्टू बर महीने में असम िे ितकमान वजला नौगााँि िे बरदेिा
नामि गााँि में हुआ था।

◦ उनिे वपता िु सुमिर वशरोमवण िुईयां थे।

◦ सन् 1481 ई. में िे गृहत्याग िर तीथाकटन िे वलए वनिले। यह उनिा प्रथम भ्रमण था। उनिे साथ
यात्रा दल में सत्रह व्यवक्त थे।

◦ इस यात्रा दल ने गया, िाराणसी, प्रयाग, गोिु ल, िृंदािन, गोिर्ध्क, िालीहद, वमवथला, मथुरा,
िु रुक्षेत्र, रामहद, बराह िु ण्ड, सीता िु ण्ड, आयोध्या, द्वारिा, बदटरिाश्रम, जगन्नाथपुरी तथा सेतु-
खण्ड (रामेश्वरम) इत्याकद तीथों िा भ्रमण किया।
शंिर देि िा नाट्य सृजन

◦ नाटिों िे अविनय िे वलए स्ियं वचत्रपटों िा वनमाकण किया।


◦ संगीतज्ञ, अविनेता और मंच सहायिों िा चयन किया।
◦ मुखौटे और अन्य अविनयोपयोगी िस्तुओं िा संिलन किया।
◦ रं गमंच (रं गशाला) वनर्मकत हुआ और िहााँ प्रिाश िी व्यिस्था िी गई।
◦ इसिे बाद वचन्ह यात्रा नामि नाटि अविनीत हुआ, वजसमें शंिरदेि ने स्ियं अविनय
किया।
◦ शंिरदेि ने छः नाटिों िी रचना िी, िे हैं - वचन्ह यात्रा िं सिध, पत्नी प्रसाद नाट,
िावलयदमन यात्रा, िे वलगोपाल नाटि, पाटरजातहरण नाट, रुवक्मणीहरण नाट और राम-
विजय नाट।
नाट्य िैवशष्ट्य
◦ िाषा : अंकियानाट िी िाषा ब्रजबुवल है। लेकिन इसिे साथ-साथ संस्िृ त और मैवथली वमवश्रत
असवमया बोली िा प्रयोग िी ‘अंकिया नाट’ में हुआ है।
◦ नाटि में वनदेशि िाक्य और सम्भ्रान्त िगक िी िाषा संस्िृ त थी। जबकि संस्िृ त में बोले गए
श्लोि िो पुनः असवमया बोली में दुहराए जाते थे।
◦ गीतों िी रचना एिं अन्य पात्रों िे सिांद मैवथली प्रिावित ब्रजबोली में होते थे।
◦ नामघर : सामान्यतया 100 गज लम्बा और 20 गज चौड़ा होता हैं
◦ इसिे चारों ओर किसी तरह िी दीिार अथिा पदाक नहीं होता है।
◦ इस आयतािार मण्डप िी चौड़ाई िाले बीच िी रं गस्थली पर
िोई मंच नहीं होता है।
◦ नाटिों िा प्रदशकन समतल िूवम पर ही होता है
◦ इस हॉल िे एि छोर पर थापना रखी
जाती है। थापना िो मवणिू ट िी िहा
जाता है
◦ िह सत्रा िा ससंहासन होता है ससंहासन
रं ग-वबरं बे िस्त्रों से ढंिा रहता है तथा इसिे
ऊपर ति बतकन में िपड़े लपेटिर
श्रीमद्भागित रखा रहता है।
◦ नामघर िे स्तम्ि िाफी िारी और िव्य होते हैं। जब ििी ‘िाओना’ खेली जाती है तब इन स्तम्िों
िो रं ग-वबरं गे सुन्दर िढेे़ हुए िस्त्रों से ढि कदया जाता है। स्तम्िों िे शीषक स्थान पर तरह-तरह िे
मुखौटे टंगे रहते हैं।
◦ नामघर में दशकि दो तरपफ यानी आमने-सामने बैठते हैं।
◦ नामघर िे तीसरी ओर मवणिू ट वस्थत होता है, और चौथी ओर से पात्रों िे आने-जाने िा मागक बना
होता है।
◦ पात्रों िे प्रिेश िे वलये यहां दीपि से सुसवित तोरण द्वार बनाया जाता है। इस तोरण द्वार िो
अविगर िहा जाता है।
◦ तोरण िे पास ही मवणिू ट िी ओर मुख िरिे गायन-बायन बैठते हैं।
◦ नामघर िे प्रिेश द्वार पर गरुड़ िी विशालिाय प्रवतमा रखी जाती है।
◦ रं गशाला में प्रिाश-व्यिस्था िे वलए प्रिाश-स्तम्ि बनाए जाते हैं वजन्हें गाछ िहा जाता है। इन
गाछों िा आिार िृक्ष जैसा होता है वजनिी शाखाओं पर सैिड़ों वमट्टी िे दीपि तथा मशालें जलाई
जाती हैं।
प्रस्तुवत प्रकिया
◦ सूत्राधर नांदी गीत िी धुन िे साथ नृत्य िरना है और पात्र प्रिेश तथा नाटि िी घोषणा
िरता है। नांदी गीत िे रूप में सूत्रधार िे द्वारा गाया गया गीत िाटटमा गान िहलाता है।

◦ सूत्रधार ही प्रस्तािना, प्रिेश गीत और प्रचोरना गीत प्रस्तुत िरता है। मंच पर पहले
प्रचोरना, प्रशंसा गीत प्रस्तुत किया जाता है और इसिे बाद िाटटमा गान। प्रचोरना िा
आरम्ि संस्िृ त श्लोि में इस प्रिार होता है।

◦ ‘‘िो-िो सिासदाः, स्ियं शृणुत सांिधनतः’’।

◦ इसिे पश्चात् ‘नाट’ शुरू होने िी घोषणा वनदेशि/ गुरु द्वारा िी जाती है। सूत्रधार नाटि िे
विषय से दशकि िो अिगत िराता है और कफर प्रमुख पात्रों िा प्रिेश आरम्ि होता है।
◦ दैिी चटरत्रों िे प्रिेश से पहले सूत्रधार प्रस्तािना में िहता है- ‘‘आिाशे कि िाद्य बाजत’’ -
आिाश में िौन-सा बाजा बज रहा है?
◦ इसिे बाद किसी दैिी ध्िवन िी बजने िी आिाज होती है और कफर िहा जाता है कि ‘देि
दुन्दुवि बाजत’ - देिताओं िी दुन्दुवि बज रही है।
◦ इस पर कफर िहा जाता है- ‘‘आह परम ईश्वर िृ ष्ण वमलल’’ और इस िांवत राम या िृ ष्ण
जैसे प्रधन चटरत्रा िो श्रोताओं िे सामने लाया जाता है। नाटि िे पात्र मंच पर नृत्य िरते
हुए प्रिेश िरते हैं या वथरिते हुए नेपथ्य संगीत खोलों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
धेमाली
◦ अंकिया नाट में मुख्य नाटि आरम्ि होने से पहले होने िाली इस किया िो धेमाली िहा
जाता है।
◦ इसमें नाटििार अपने-अपने इष्ट देिताओं िे गुण-गान िरते हैं।
◦ अंकिया नाट में बारह प्रिार िे ‘धेमाली’ िे प्रचलन िा उल्लेख वमलता है। इनमें प्रमुख हैं
ना-धेमाली, बोर धेमाली, नाट धेमाली, देि- धेमाली, राम- धेमाली, घोषा-धेमाली, गरूदा-
मदकना धेमाली तथा बरपेटा धेमाली आकद। इनमें से ‘ना-धेमाली’ माध्िदेि ने आरम्ि किया
जबकि शंिरदेि िे समय में ‘देि-धेमाली’ िा प्रचलन था। अन्य सिी ‘धेमाली’ इन दोनों िे
बाद आरम्ि हुए।

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