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तमिलनाडु का लोकनाट्य तेरूकु त्तु

• दो शब्दों के िेल बना है- तेरू यानी पथ और कु त्तु यानी नाटक अथाात सड़क चौराहे पर खेले जाने
वाला नाटक ।
तेरूकु त्तु नाट्य का मवकास
तमिल िहाकाव्य मसलप्पाददकारि िें 11 प्रकार के कु थु का उल्लेख है ।
वतािान स्वरुप आज से लगभग तीन सौ वर्ा अमस्तत्व िें आया।
तमिलनाडु उत्तरी भाग के िंददरों िें ‘मथरुमवझा’ नािक उत्सव के अवसर पर तेरूकु त्तु
का प्रदशान मवशेर् रूप से होता है सिान्यतया यह िहोत्सव पंगुनी (िाचा-अप्रैल) और
आदद (जुलाई-अगस्त) के िहीनों िें आयोमजत होता है।
पारं पररक रूप से तेरूकु त्तु का प्रदशान अच्छी फसल तथा वर्ाा की कािना हेतु िंददर िें
अनुष्ठानों के रूप िें दकया जाता था।
कालांतर िें यह िंददरों के आलावा गााँव के मतराहे या चौराहे पर भी िंमचत होने लगे ।
कथावस्तु –मवर्य
• नाटक की कथावस्तु िहाभारत, रािायण, पेररया पुराणि और संगि काल की अन्य तमिल
सामहमत्यक कृ मतयों पर आधाररत होती है ।

• िहाभारत पर आधाररत प्रिुख नाटक हैं- द्रौपदी कल्याणि (द्रौपदी का मववाह), सुपमतराय
कल्याणि (सुभद्रा का मववाह), अल्ली अजुन ा न (अल्ली के साथ अजुान का मववाह), पंचल कपाटि
(द्रौपदी की प्रमतज्ञा), अजुान तपि (अजुान का तप), कृ ष्णन टीटू (कृ ष्ण का अमभयान), अमभिन्यु
कैं टाई (अमभिन्यु की हार), कणा िोक्षयि् (कणा की पराजय), पमतनेट्टि पोर (अठारहवें ददन की
लड़ाई), अरावन कलप्पमल (युद्धक्षेत्र िें अरावन का बमलदान)

• अन्य पौरामणक प्रसंग आधाररत - महरण्यमवलासि्, महरण्य संहारि्, वल्ली मथरुिानि िुरुगन
(कार्ताकेयकी एक लड़की से प्यार िें असफल होने की कहानी है), सत्यवान सामवत्री,

• तमिल सामहत्य आधाररत - कोवलि चररति (मशल्पददकाराि पर आधाररत), मसरुथोंदर चररत्रि


( शैव संत मसरुथोंदर के जीवन और सिय से संबंमधत)

• पाश्चात्य सामहत्य से - थुदिरा अवलि (एंटीगोन का तमिल रूपांतरण)


नाट्य वैमशष्ट्य

• िंच - तेरूकु त्तु का रं गिंच 18’ X18 फीट का सितल होता है, मजसके तीन ओर दशाक
बैठते है। रं गिंच की चौथी ओर एक ऊाँचा चबुतरा बनाया जाता है मजस पर गायक और
सामजदे बैठते हैं।
• गायन-वादन िंडली - सामिदे िंडली िें गायक के अमतररक्त िृदंग, िजीरा और
नागस्वरि के वादक होते है। वाद्यवृंद को मपनपटु टु कहते हैं। सभी संवाद गेय होते हैं,
गद्य-संवाद छोटे-छोटे प्रश्नोत्तर के रूप िें होते है, मजनका गायन पात्र और गायन िंडली
दोनो ही करते हैं। संगीत बहुत तीव्र और नाटकीय होता है । सभी पात्र घुाँघरू पहनते हैं।
• पूवा रं ग - तेरूकू त्तु का पूवारंग गणेश पूजा से आरं भ होता हैं उसके बाद मवमभन्न देवी-
देवताओं यथााः मशव, पावाती (िीनाक्षी) सरस्वती और मत्रिूमत की वंदनाएाँ की जाती है।
तेरूकू त्तु िंच पर द्रौपदी की पूजा अमनवाया रूप से की जाती है।
• िुख्य पात्र : सूत्रधार (करटयकारण) और मवदूर्क (कोिली)
कथा आरं भ से पहले सूत्रधार (करटयकारण) िंच पर आता है और उस ददन की
कथा की घोर्णा करता है। वही नाटकीय कथा-वस्तु का पररचय देता है और पात्रों का
पररचय दशाकों को कराता है, दृश्य पररवतान की सूचना देता है तथा कथा प्रवाह
को आगे बढ़ाता है। वह शुरू से अंत तक िंच पर उपमस्थत रहता है। यदद दशाक शोर
िचाते हैं तो डांटकर चुप कराने का काया भी उसी का होता है।
मवदूर्क (कोिली ) िनिाने ढंग से संवाद बोलकर दशाकों को हाँसाता है। वह
गंभीर भूमिकाओं के मनयि कायदों से सदा िुक्त रहता है। तेरूकू त्तु िें स्त्री पात्रों
की भूमिका पुरूर् ही करते हैं।
• आहाया - िुख-सज्जा और वेश-भूर्ा तड़क-भड़क वाली होती हैं। पात्र आवश्यकतानुसार
िुखौटे का प्रयोग भी करते हैं।
• भार्ा - तेरूकू त्तु की भार्ा तमिल है।

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