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चविट्टु नाटकम्

◦ चविट्टु नाटकम् के रल के ईसाइयों द्वारा अविनीत ककया जाने िाला संगीतात्मक लोकनाट्य
है।
◦ िारतीय लोकनाट्यों की परं परा में यह एक मात्रा ईसाई लोकनाट्य है। इस नाट्यरूप में
यूरोपीय विषयों को िारतीय लोकनाट्य विल्प विध में प्रस्तुत ककया जाता है। के रल के
स्थानीय संगीत और नृत्य कला की इस पर विविष्ट छाप पड़ी है।
उद्भि और विकास
◦ के रल दुवनया की कई संस्कृ वतयों का संगम स्थल रहा है। अवत प्राचीनकाल से यूनानी, रोमन, यहुदी,
सीररयाई, अरब, चीनी, पुततगाली, डच, प्रफांसीसी, अंग्रेज और कई अन्य देिों के लोग यापापाररयों,
यावत्रयों, साहसी नाविकों, इवतहासकारों अथिा धमतप्रचारकों के रूप में यहााँ आते रहे हैं।
◦ सबसे अवधक संख्या में ईसाई लोग यहााँ बस गए। इन लोंगो ने युद्ध अभ्यास के वलए कलरर-
प्रविक्षण के न्र स्थवपत ककए।
◦ बाद के कदनों में रोम के वन्रत ईसाइयों ने, पुततगाल से आए पादररयों ने वजसमें वहन्दू और ईसाई
संस्कृ वत के समन्िय का विरोध ककया। पररणामस्िरूप पूित प्रचवलत ‘कलरर’ में होने िाले प्रदितन को
बंद करना पड़ा।
◦ अब उनकी जगह नयी विद्या की खोज आंरम्ि हुई वजनसे वपछले नाट्यरूपों के अिाि की पूर्तत हो
सके । इन्हीं बदलती धर्मतक पररवस्थयों में चविट्टु नाटकम् का उद्भि हुआ।
◦ इनके नये प्रयोक्ताओं ने िी स्थानीय कलारूपों की उपेक्षा नहीं की। उन्होंने बहुतेरे िारतीय
लोककला तत्त्िों का समीचीन समािेि ककया। जबकक कथानक बाईवबल, यूरोपीय इवतहास
िालतमेन की जीिन की घटनाओं पर आधररत थे। अतः चविट्टु नाटकम् को के रल का लोकनाट्य
कहना समीचीन नहीं होगा। इसे मात्रा के रल में विकवसत एक नाट्यरूप माना जा सकता है।
नाट्य िैविष्ट्ट्य

◦ चविट्टु का अथत होता है पांि या कदम, नाटकम् यावन नाटक अथातत ककसी िी और विषय को
पदचाप द्वारा अवियापक्त करना ही चविट्टु नाटकम् है । इसवलए इस नाटक में कदम विविन्न
प्रकार की तालों में वनबद्ध होते हैं
◦ राजा, सेनापवत, देिदूत पुरोवहत और िैद्य आकद श्रेष्ठ पात्रों के वलए पद संचालन विविष्ठ प्रकार
का होता हैं, जबकक चोर, जल्लाद ठग जैसे वनकृ ष्ट पात्रों का पदताल विन्न प्रकार का होता है।
◦ स्त्री पात्रों की िूवमका पुरुषों द्वारा अविनीत ककए जाते है। पुरुष पात्रों का पदताल तांडि से
प्रिावित होता हैं जबकक स्त्री पात्रों के पदताल में लास्य की लटक होती है।
◦ पदताल मूलतः बारह प्रकार के होते हैं। वजसमें कवितम्, कलिम्, एड़क्कलािम् आकद बुवनयादी
पदताल माने जाते हैं।
◦ अंग विक्षेप : कथकवल और मोवहवनट्टृ म् से वििेष साम्य रखता है।
◦ संगीत पक्ष : संगीत चविट्टु नाटकम् का अवनिायत अंग है।
◦ सारे संिाद पद्य में तथा गेय होते हैं। गद्य संिाद नहीं के बरािर प्रयुक्त होते हैं। गीतों के
माध्यम से ही कथािस्तु को आगे बढ़ाया जाता है।
◦ मंच पर गीत की पंवक्तयां गाने िाले तीन यापवक्त होते हैं। पात्रा, गुरु और सहायक । पहले
पात्रा खुद गीत गाता है, उसके बाद गुरु और अन्य सहायक गाने लगते हैं।
◦ िाद्ययंत्रों में बेला, बााँसुरी, बुलबुल, हारमोवनयम के अलािे तेज आिाज िाली इलतालम
और चेण्डा का िी प्रयोग ककया जाता हैं।
िेििूषा तथा रूप-सज्जा : चविट्टु नाटकम् की रूप-सज्जा और िेििूषा यथाथतिादी होती है।
◦ अवधकांि चररत्र राजा और सैवनक होने से िेििूषा माँहगी होती है।
◦ सैवनक पात्र अक्सर यूनानी-रोमन िेि धरण करते हैं।
मंचन
◦ चविट्टु नाटकम् का मंचन िषत में कम से कम दो बार खासकर किसमस ि ईस्टर के अिसरों
पर गााँि के खुले मैदान में ककया जाता है।
◦ लड़की के पटरों से तीन फीट ऊाँचा तथा 40 फीट लम्बा, 12 फीट चैड़ा मंच तैयार ककया
जाता है। मंच के दोनों तरफ द्वारमंडप बनाये जाते हैं। अलंकृत द्वारमंडप राजििन का
प्रवतवनधत्त्ि करता है। प्रकाि यापिस्था मिालों द्वारा की जाती है। मंच के एक कोने में
मसीही िॉस के सामने कांस्यदी जलाई जाती है।
◦ चेण्डा (नगाड़े) की पहली चोट पर अविनेता रूपसज्जा में जुट जाते हैं। तीसरी बार चेण्डा
पर चोट करते ही गुरु नाटक प्रारं ि होने की सूचना देता है।
पूितरंग : गुरु सवहत सिी सहिागी प्राथतना में िाग लेते हैं ।
◦ तत्पश्चात गुरू और लेखक के प्रवत आिार ज्ञापन ककया जाता है।
◦ पहले नाटक के कु छ दृश्यों के बारे में संक्षेप में बताया जाता है ।
◦ कफर दितक के अवििादन हेतु थूंवतयोगर ;सैन्य िेिधारी अल्प ियस दो लड़के मंच पर
उपवस्थत होते हैं। दितकों के अवििादन के बाद गुरु को प्रणाम करते हैं तथा गुरु दवक्षणा के
रूप में कु छ िस्त्र एिं रूपये िेंट करते है।
◦ लड़को को मंच पर से जाते ही, स्त्री िेिधारी लगिग सात आठ पुरुष नततक लास्य कदमों के
साथ प्राथतना करते हुए मंच पर प्रस्तुत होते हैं।

नततकों को मंच पर से जाने के बाद मुख्य खेल आरं ि होता है, वजसका प्रदितन सुबह तक
चलता है सुबह मंगलम गायन से नाट्य प्रदितन समाप्त होता है।
मुख्य पात्र :
oचविट्टु नाटकम् में गुरु वजसे अिान कहा जाता है, पूिातभ्यास से लेकर प्रस्तुवत के अन्त तक
उनकी विविष्ट िूवमका होती है।

oविदूषक, वजसे करटयककारन कहा जाता है। नाटक की घटनाओं और पात्रों किया-यापापारों
पर हास्य-यापंगपूणत रटप्पणी करते हुए दितकों का मनोरं जन करता है। िह नाट्य संचालन में
सहयोग करता है। ककसी िी दृश्य में मंच पर आने और बोलने की पूरी स्िाधीनता उसे प्राप्त
होती है।
नाट्यालेख तथा विल्प : नाट्यालेख छपे हुये रूप में उपलब्ध् नहीं होता है।
oप्राचीनतम और लोकवप्रय नाटक काल्र्समैन है। मलयालम िाषा में िालेमैन का उच्चारण ही काल्र्समैन
है। इसमें सन् 768 ई. से 814 ई. तक पवश्चमी यूरोप और रोम पर िासन करने िाले चाल्र्स बादिाह
और उसके बारह सेनापवतयों के िीरतापूणत युद्दों की उद्वेगपूणत घटनाओं को दिातया गया है।
oकथा की घटना-योजना, पात्रा-सृवष्ट आकद तत्त्िों पर यूनानी पुराणों का स्पष्ट प्रिाि लवक्षत होता हैा
oिारतीय रं गदितन के अनुकूल नायक पररकल्पना, संकलनत्राय, कथागीत आकद का वनिातह ककया गया
है जो इस नाट्यिैली को ियापरूप प्रदान करते हैं।
oकु छ नाटक सामावजक समस्याओं को लेकर िी रचे गयें हैं जैसे धर्मतष्ठ सत्यपाल, ज्ञानसुन्दरी,
कोमलचररत, जानकी आकद।
oआंरि में (16िीं सदी) ये सारे नाटक तवमल िाषा में थे, जो अब अप्राप्य हैं।
oइन कदनों तवमल वमवश्रत मलयालम इन नाटकों की िाषा है।

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