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10 कक्षा -12 (ज्ञानससिंधु ह िं दी नोट् स- २०२३)

जातक कथा
( १ ) उलूकजातकम्
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश पाठ्य - पुस्तक ' संस्कृत दिग्दर्शिका ' के ' जातक कथा '
नामक पाठ के ‘उलूकजातकम्’ शीर्भक से अवतरित है ।
➢ अतीते प्रथमकल्पे जनााः एकमभर्रूपं सौर्ाग्यप्राप्तं
प्राचीन काल के प्रथम कल्प में लोगों ने एक सुन्दि सौर्ाग्यशाली
➢ सवाकािपरिपूर्णं पुरुर्ं िाजानमकुवभन् ।
औि समग्र आकृभत से परिपूर्णभ पुरुर् को िाजा बनाया ।
➢ चतुष्पिा अपप सपिपत्य एकं ससिंह िाजानमकुवभन् ।
जानविों ने र्ी एकपित होकि एक शेि को िाजा बनाया ।

➢ तत : शकुपनगर्णा : दहमवत् - प्रिेशे एकस्मिन् पार्ार्णे सपिपत्य


उसके बाि पक्षीगर्ण दहमालय प्रिेश में एक शशला पि एकपित होकि '
➢ ‘ मनुष्येर्ु िाजा प्रज्ञायते तथा चतुष्पिेर्ु च ।
मनुष्यों में िाजा सुना जाता है औि जानविों में र्ी
➢ अिाकं पुनिन्तिे िाजा नास्तस्त ।
लेपकन हमािे बीच में िाजा नहीं है ।
➢ अिाजको वासो नाम न वतभते ।
पबना िाजा के िहना उचचत नहीं है ।
➢ एको िाजस्थाने स्थापचयतव्याः ' इभत उक्तवन्ताः ।
पकसी एक को िाजा के पि पि स्थापपत किना चादहए ' — ऐसा कहा ।
➢ अथ ते पिस्पिमवलोकयन्ताः एकमुलूकं दृष्ट्वा ' अयं नो िोचते ' इत्यवोचन ।

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11 कक्षा -12 (ज्ञानससिंधु ह िं दी नोट् स- २०२३)

तब उन्होंने एक िस
ू िे पि दृष्टि डालते हुए एक उल्लू को िेखकि कहा — ' यह
हमको अच्छा लगता है ।
➢ अथैकाः शकुपनाः सवेर्ां मध्यािाशयग्रहर्णाथं पिकृत्व : अश्रावयत् ।
इसके बाि एक पक्षी ने सर्ी के बीच में िाय जानने के शलए तीन बाि घोर्र्णा
की ।
➢ तताः एकाः काकाः उत्थाय ‘ भतष्ठ तावत् '
तब एक कौआ उठकि बोला — जिा ठहिो
➢ अस्य एतस्मिन् िाज्याभर्र्ेककाले एवंरूपं मुखं ,
इसका इस िाज्याभर्र्ेक के समय ऐसा मुख है
➢ क्रुद्धस्य च कीदृशं र्पवष्यभत !
तो क्रुद्ध होने पि कैसा होगा ?
➢ अनेन दह क्रुद्धेन अवलोपकता : वयं तप्तकटाहे
इसके क्रुद्ध होकि िेखने पि तो हम लोग गमभ कडाही में
➢ प्रशक्षप्तास्तस्तला इव ति तिैव धडक्ष्यामाः ।
डाले भतलों की र्ांभत वहीं - वहीं पि र्ुन जायेंगे
➢ ईदृशो िाजा मह्यं न िोचते इत्याह
ऐसा िाजा मुझे अच्छा नहीं लगता । ऐसा बोला ।
➢ न मे िोचते र्द्रं वाः उलूकस्याभर्र्ेचनम् ।
मुझे आपका उल्लू को िाज्याभर्र्ेक किना अच्छा नहीं लगता
➢ अक्रुद्धस्य मुखं पश्य कथं क्रुद्धो र्पवष्यभत ।।
इसके अक्रुद्ध मुख को िेखो , क्रुद्ध होने पि यह कैसा लगेगा ?
➢ स एवमुक्त्वा ‘ मह्यं न िोचते ' ' मह्यं न िोचते '
वह ऐसा कहकि ' मुझे अच्छा नहीं लगता , मुझे अच्छा नहीं लगता ' ,
➢ इभत पवरुवन् आकाशे उिपतत् ।

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12 कक्षा -12 (ज्ञानससिंधु ह िं दी नोट् स- २०२३)

ऐसा चचल्लाता हुआ आकाश में उड गया ।


➢ उलूकोऽपप उत्थाय एनमन्वधावत् ।
उल्लू र्ी उठकि उसके पीछे िौडा ।
➢ तत आिभ्य तौ अन्योन्यवैरिर्णौ जातौ ।
तर्ी से लेकि वे एक िस
ू िे के बैिी हो गए ।
➢ शकुनयाः अपप सुवर्णभहंसं िाजानं कृत्वा अगमन् ।
पक्षीगर्ण र्ी सुवर्णभहंस को िाजा बनाकि चले गए ।

( २ ) नृत्यजातकम्
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश पाठ्य - पुस्तक ‘ संस्कृत दिग्दर्शिका ' के जातक
कथा पाठ के ' नृत्यजातकम् ' नामक पाठ से संगृहीत है ।

➢ अतीते प्रथमकल्पे चतुष्पिा : ससिंह िाजानमकुवभन् ।


पवगत प्रथम कल्प में चौपायों ने ससिंह को िाजा बनाया ।
➢ मत्स्या आनन्दमत्स्यं , शकुनयाः सुवर्णभहंसम् ।
मछशलयों ने आनन्द मछली को एवं पशक्षयों ने सुवर्णभ हंस को िाजा बनाया ।
➢ तस्य पुन : सुवर्णभिाजहंसस्य िदु हता हंसपोभतका अतीव रूपवती आसीत् ।
उस सुवर्णभ िाजहंस की पुिी हंसपोभतका अत्यन्त सुन्दिी थी ।

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13 कक्षा -12 (ज्ञानससिंधु ह िं दी नोट् स- २०२३)

➢ स तस्यै विमिात् यत्


उसने उस हंसकुमािी को वि दिया
➢ सा आत्मनश्चित्तरुचचतं स्वाभमनं वृर्णुयात् इभत ।
पक वह अपने मनोनुकूल पभत को चुन ले ।
➢ हंसिाज : तस्यै विं ित्त्वा दहमवभत शकुपनसचे संन्यपतत् ।
हंसिाज ने उसे वि िेकि दहमालय पि पशक्षयों की सर्ा बुलायी ।
➢ नानाप्रकािा : हंसमयूिाियाः शकुपनगर्णा : समागत्य
नाना प्रकाि के हंस मयूि आदि पक्षीगर्ण आकि
➢ एकस्मिन् महभत पार्ार्णतले संन्यपतन् ।
एक पवशाल शशला पि एकपित हुए ।
➢ हंसिाज : आत्मनाः चचत्तरुचचतं स्वाभमकम् आगत्य वृर्णुयात्
हंसिाज ने ‘ अपने चचत्त को रुंचने वाला पभत आकि चुनलो

➢ इभत िदु हतिमादििेश ।


' ऐसा पुिी को आिेश दिया ।
➢ सा शकुनसङ्के अवलोकयन्ती
उसने पक्षी समूह को िेखते हुए
➢ मशर्णवर्णभग्रीवं चचिप्रेक्षर्णं मयूिं दृष्ट्वा
नीलमशर्ण के िंग की गिभन औि िंग - पबिंगे पंखों वाले मयूि को िेखकि
➢ ' अयं मे स्वाभमको र्वतु ' इत्यर्ार्त ।
यह मेिा स्वामी हो , ऐसा कहा |
➢ मयूि : ' अद्यापप तावन्मे बलं न पश्यसस
मोि ने अर्ी ‘ मेिे बल को नहीं िेखा है '
➢ ' इभत अभतगवेर्ण लज्जाञ्च त्यक्त्वा

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14 कक्षा -12 (ज्ञानससिंधु ह िं दी नोट् स- २०२३)

ऐसा कह अभत गवभ से औि लज्जा त्यागकि


➢ तावन्महत : शकुपनसङ्घस्य मध्ये पक्षौ प्रसायभ नर्तितुमािब्धवान्
उस पवशाल पशक्षयों की सर्ा के बीच पंख फैलाकि नाचना आिम्भ कि दिया
➢ नृत्यन् चाप्रभतच्छिोऽर्ूत् ।
औि नाचते हुए नग्न हो गया ।
➢ सुवर्णभिाजहंस : लस्मज्जत : ' अस्य नैव ह्ीाः अस्तस्त
स्वर्णभ वर्णभ िाजहंस ने लस्मज्जत होकि , ' इसे न लज्जा है
➢ न बहार्णां समुत्थाने लज्जा ।
न पंखों को उठाने में संकोच ,
➢ नािै गतिपाय स्विदु हतिं िास्याभम ' इत्यकथयत् ।
इस लज्जा - हीन को अपनी पुिी नहीं िंग
ू ा ऐसा कहा ।
➢ हंसिाजाः तिैव परिर्न्मध्ये आत्मनाः र्ापगनेयाय '
हंसिाज ने उसी परिर्ि् के बीच अपने र्ांजे
➢ हंसपोतकाय िदु हतिमिात् ।
हंसकुमाि को पुिी िे िी ।
➢ मयूिो हंसपोभतकामप्राप्य लस्मज्जत :
मोि हंस - पुिी को न पाकि लस्मज्जत होकि
➢ तिात् स्थानात् पलाचयताः ।
उस स्थान से र्ाग गया ।
➢ हंसिाजोऽपप हृिमानस : स्वगृहम् अगच्छत् ।
हंसिाज र्ी प्रसि मन से अपने घि को चला गया ।

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