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मध्यकालीन इतिहास NOTES
मध्यकालीन इतिहास NOTES
इस्राभ का उदम
खद
ु ा के प्रति ऩूर्ण सभऩणर् ही इस्राभ है । इस्राभ का उदम भक्का भें हुआ। इसके संस्थाऩक भुहम्भद साहफ कुयै श
जनजाति के थे।
मुहम्मद साहफ
जन्भ -570 ई
भह
ु म्भद साहफ के अनम
ु ातममों के ऩाांच कितव्म-
करभा
ऩांच फाय नवाज
योजा
हज मात्रा
63 वषण की आमु भें 632 ई भें उनका तनधन हो गमा। भुहम्भद साहफ ने अऩनी भत्ृ मु के फाद अऩना कोई
उत्ियाधधकायी तनमुक्ि नहीं ककमा था।
कुयान भें खरीपा शब्द प्रतितनधध के लरए प्रमुक्ि हुआ। यह ॉं खरीपा को ऩथ्
ृ वी ऩय खद
ु ा का प्रतितनधध भाना
गमा।
अफफ
ू क्र (632 - 634)
इस्लाम धमम के प्रारं भिक अनुयायी इन्हंने संपूर्म अरब तथा उसके 13 अगस्त 634 ई कह अबू बक्र की
इसी उद्दे श्य से इन्हंने सैभनक दलहं पडहसी राज्य कह जीतने का प्रयत्न मृत्यु हह गयी ।एवं उमर कह
का गठन भकया। भकया। उत्तराभधकारी बनाया।
अफूफक्र की बांतत पवस्वायवादी लभश्र को इस्राभी गणयाज्म भें जभीन का फंदोफस्त औय जनगणना
नीततमों का अनुसयण ककमा। लभरामा। की।
फीिे हुए मुगों की घटनाओां के सांफांध भें जानकायी दे ने वारे साधनों को ऐतिहालसक स्रोि की सांऻा दी जािी है ।
भध्मकारीन बायि के इतिहास के अध्ममन के लरए भौलरक स्रोि साहहत्यमक स्रोि ही है ।
ऩूवण इस्राभ कार भें अयफों के फीच वंशावर्रमां र्रखने की ऩयं ऩया ववकर्सि थी जजन्हें अन्साफ कहिे थे।
PCS सभीऺा [4] भध्मकारीन इतिहास
'सीयि' हजयि भुहम्भद की जीवतनमों का संकरन है ।
भोहम्भद बफन कार्सभ के अर्बमान, उसके शासन प्रफंध आदद के संफंध भें मह एक प्राभाणर्क स्रोि है ।
अऻाि रेखक द्वाया इसे अयफी भें र्रखा गमा ऩयं िु इसका पायसी अनुवाद अफूफकय कूपी ने ककमा।
यचना- अल्फेरुनी द्वाया (अयफी बाषा भें ) सवणप्रथभ सचाऊ (सचाऊ) ने इसका अंग्रेजी भें अनुवाद ककमा।
दहंदी बाषा भें इसका अनुवाद यजनीकांि शभाण द्वाया ककमा गमा।
इस ग्रंथ भें अल्फेरुनी ने भहभूद गजनवी के सभम के बायि की याजनीतिक, आधथणक, साभाजजक व
धार्भणक जस्थतिमों के फाये भें ववस्िि
ृ वर्णन ककमा है ।
ऩुयार्ों का अध्ममन कयने वारा अरफेरूनी प्रथभ भुसरभान था।
भंगोर आक्रभर् के सभम मह खयु ासान से भांगकय तनजाभी द्वाया बायि आ गमा एवं कुिफ
ु ुद्दीन ऐफक
के अधीन नौकयी कय री। ऐफक की आऻा ऩय ही मह ऩुस्िक र्रखना हसन तनजाभी ने प्रायं ब ककमा
ऩयं िु मह ऩूर्ण इल्िि
ु र्भश के कार भें हुआ।
शहाफद्द
ु ीन उपण भई
ु जद्द
ु ीन भह
ु म्भद गोयी ने बायि भें िक
ु ण याज्म की स्थाऩना की।
भह
ु म्भद गोयी ने बी बायि ऩय अनेक आक्रभर् ककमे।
द्वविीम आक्रभण -1178 - मह आक्रभर् गुजयाि ऩय ककमा मह ं ऩय सोरंकी वंश (चारुक्म वंश) का शासन था।
इसी वंश के बीभ द्वविीम (भूरयाज द्वविीम) ने भुहम्भद गोयी को आफू ऩवणि के सभीऩ ऩयाजजि ककमा।
ववजेिा - ऩथ्
ृ वी याज चौहान
ववजेिा - भह
ु म्भद गोयी, ऩथ्
ृ वी याज चौहान भाया जािा है ।
चन्दावय का मद्ध
ु - 1194- भह
ु म्भद गोयी + याजऩि
ू नये श जमचन्र
ववजेिा - भह
ु म्भद गोयी।
कुिफ
ु ुद्दीन की कुछ भहयवऩूणत ववजम-
1194 ई. भें अजभेय को जीिकय मह ं ऩय जस्थि जैन भंददय एवं संस्कृि ववश्वववद्मारम को नष्ट कय तनम्न
चीजें फनामी-
1205 ई. भें भुहम्भद गोयी ऩुन् बायि आमा औय इस फाय उसका भुकाफरा खोक्खयों से हुआ। उसने
खोक्खयों को ऩयाजजि कय उनका फुयी ियह कत्र ककमा। इस ववजम के फाद भुहम्भद गोयी जफ वाऩस
गजनी जा यहा था िो भागण भें 13 भाचत 1206 ई. को उसकी हत्मा कय दी गमी अन्िि् उसके शव को
गजनी रे जा कय दपनामा गमा।
गोयी की भयृ मु के फाद उसके गर
ु ाभ सयदाय कुिफ
ु द्द
ु ीन ऐफक ने 1206 ई. भें गर
ु ाभ वांश की स्थाऩना की।
हदल्री सल्िनि
ददल्री सल्िनि का कार 1206 ई. से प्रायं ब होकय 1526 ई. िक यहा। 320 वषों के इस रंफे कार भें बायि
भें भुजस्रभों का शासन व्माप्ि यहा। ददल्री सल्िनि के अधीन तनम्न ऩांच वंशों का शासन यहा-
ऩाांच वांश-
इल्िि
ु लभश (1210 - 1236 ई)
इल्िि
ु र्भश इल्वायी िक
ु ण िथा अकस्भाि ् भत्ृ मु के कायर् ऐफक अऩने ककसी उत्ियाधधकायी का चन
ु ाव नहीं कय
सका था अि् राहौय के िक
ु ण अधधकारयमों ने ऐफक के वववाददि ऩुत्र आयाभशाह को राहौय की गद्दी ऩय फैठामा।
आयाभशाह एवं इल्िि ु र्भश के फीच ददल्री के तनकट जड़ नाभक स्थान ऩय संघषण हुआ जजसभें आयाभशाह को
फंदी फनाकय हत्मा कय दी गमी इस ियह ऐफक वंश के इल्फायी वांश का शासक प्रायं ब हुआ।
प्रभुख िथ्म-
1. इल्िि
ु र्भश ने 40 गुराभ सयदायों का एक गुट मा संगठन फनामा जजसे 'िक
ु ातन -ए-धचहारगानी' का
नाभ ददमा गमा। इस संगठन को चयगान बी कहा गमा है ।
2. इल्िि
ु र्भश ऩहरा िक
ु ण सल्
ु िान था जजसने शद्ध
ु अयफी र्सक्के चरवामे। उसने सल्िनि कारीन दो
भहत्वऩर्
ू ण र्सक्के 'चांदी का टं का' िथा 'िाांफे का जीिर' चरवामा।
3. इल्िि
ु र्भश ने र्सक्कों ऩय टकसार के नाभ अंककि कयवाने की ऩयं ऩया आयं ब ककमा। र्सक्कों ऩय
इल्िि
ु र्भश ने अऩना उल्रेख खरीपा के प्रतितनधध के रूऩ भें ककमा।
4. इल्िि
ु लभश ने इक्िा व्मवस्था का प्रचरन ककमा औय याजधानी को राहौय से ददल्री स्थानांिरयि ककमा।
5. इल्िि
ु र्भश ने खरीपा से प्रभार् ऩत्र प्राप्ि ककमा था जजसके फाद इल्िि
ु र्भश वैध सल्
ु िान िथा हदल्री
सल्िनि एक वैध स्विंत्र याज्म फन गमा।
6. 1231-32 ई. भें इल्िि
ु र्भश ने कुिफ
ु भीनाय का तनभाणर् ऩूया कयवामा ।उसने जोधऩुय भें अिायककन का
दयवाजा तनर्भणि कयवामा।
7. इल्िि
ु र्भश ने फदामूं भें एक जाभा भजस्जद को तनर्भणि कयवामा िथा बायि भें प्रथभ भकफये को तनर्भणि
कयाने का श्रेम इल्िि
ु र्भश को ही प्राप्ि है ।
इल्िि
ु र्भश का अंतिभ अर्बमान फार्भमान के ववरुद्ध था खोंखयो के ववरुद्ध मह उसका अंतिभ अर्बमान था
ु र्भश फीभाय हो गमा औय उसे ददल्री रामा गमा जह ं 30 अप्रैर 1236 ई को उसकी भत्ृ मु
यास्िे भें इल्िि
हो गमी ।
इल्िि
ु र्भश का भकफया ददल्री भें जस्थि है ।
अराउद्दीन ने खरीपा से अऩने ऩद की स्वीकृति नहीं री, उसने शासन के कामों भें इस्राभ के र्सद्धांिों को
प्रभख
ु िा न दे कय याज्मदहि को सवोऩरय भाना।
प्रथभ अध्मादे श :-
दान, उऩहाय एवं ऩें शन के रूऩ भें अभीयों को दी गई बर्ू भ को जब्द कय उस ऩय अधधकाधधक कय रगा
ददमा गमा। जजससे उनके ऩास धनाबाव हो गमा।
अराउद्दीन ने गप्ु िचय ववबाग को संगदठि कय 'फयीद'( गप्ु िचय अधधकायी) एवं 'भन
ु दहन' (गप्ु िचय) की
तनमजु क्ि की।
अराउद्दीन ने भधतनषेध ,बांग खाने ,एवं जआ
ु खेरने ऩय ऩर्
ू िण ् प्रतिफंध रगा ददमा।
अराउद्दीन ने अभीयों के आऩसी भेर -जोर, सावणजतनक सभायोह एवं वैवादहक संफंधों ऩय प्रतिफंध रगा
ददमा ।
अराउद्दीन के चायों अध्मादे श ऩूर्ि
ण ् सपर यहे ।
साम्राज्म ववस्िाय - अराउद्दीन साम्राज्मवादी प्रवजृ त्ि का था। इसने उत्िय बायि याज्मों को जीि कय उन ऩय
प्रत्मऺ शासन ककमा। दक्षऺर् बायि के याज्म को अल्राह उद्दीन ने अऩने अधीन कय उसने वावषणक कय वसूरा।
गुजयाि ववजम - 1298 ई भें अराउद्दीन ने उरगू खां एवं नुसयि खां को गुजयाि ववजम के र्रए बेजा ।जजसभें
याजा कर्ण र्संह ऩयाजजि हुआ ।एवं ऩुत्री दे वर दे वी के साथ बाग कय दे वधगयी के शासक याभचंर दे व के महां
शयर् र्रमा। णखरजी सेना कर्ण की संऩजत्ि एवं उसकी ऩत्नी कभरा दे वी को साथ रेकय वाऩस ददल्री आमा,
कारांिय भें अराउद्दीन ने कभरा दे वी से वववाह कय उसे अऩनी सफसे वप्रम यानी फनामा ।
गुजयाि अलबमान के दौयान ही नुसयि खाां ने दहंद ू दहजडे भलरक कापूय को 1000 दीनाय भें खयीदा अि् इसे
हजाय दीनायी कहा जािा है औय अराउद्दीन को िोहपे के रूऩ भें ददमा। शीघ्र ही वह सुल्िान के कापी नजदीक
आ गमा औय 1307 ई भें सुल्िान ने उसे ददल्री सल्िनि का भलरक-ए-नाइफ फना ददमा।
अराउद्दीन की दक्षऺण ववजम- अराउद्दीन द्वाया दक्षऺर् ववजम के ऩीछे उद्देश्म धन की चाह व ववजम रारसा
थी। वह इन याज्मों को अऩने अधीन कय वावषणक कय वसूर कयना चाहिा था ।दक्षऺर् बायि की ववजम का श्रेम
भर्रक कापूय को ही जािा है । अराउद्दीन के शासनकार भें दक्षऺर् भें सवणप्रथभ 1303 ई भें िेरंगाना ऩय
आक्रभर् ककमा, िेरंगाना का शासक प्रिाऩरुर दे व द्वविीम ने अऩनी एक सोने की भि
ू ी फनवाकय औय उसके
गरे भें सोने की जंजीयें डारकय आत्भसभऩणर् हे िु भर्रक कापूय के ऩास बेजा। इसी अवसय ऩय प्रिाऩरुर दे व ने
भर्रक कापूय को संसाय प्रर्सद्ध कोहहनयू हीया ददमा था।
1. अराउद्दीन णखरजी ने सेना को नगद वेिन दे ने एवं स्थामी सेना की नींव यखी। ददल्री के शासको भें
अराउद्दीन णखरजी के ऩास सफसे ववशार स्थामी सेना थी।
2. घोडा दागने एवं सैतनकों का हुर्रमा र्रखने की प्रथा की शुरुआि अराउद्दीन णखरजी ने की।
3. अराउद्दीन ने बूयाजस्व की दय को फढाकय उऩज का 1/2 बाग कय ददमा। सुल्िान ने खम्स (मुद्ध भें
रूटा हुआ धन) भें 1/4 बाग के स्थान ऩय 3/4 बाग कय र्रमा।
4. अराउद्दीन ने अऩने शासनकार भें भूल्म तनमंत्रर् प्रर्ारी को दृढिा से रागू ककमा।
अराउद्दीन ने फाजाय व्मवस्था के कुशर सांचारन हे िु कुछ नमे ऩदों को सत्ृ जव ककमा-
I. दीवान-ए-रयमासि- मह व्माऩायी वगण ऩय तनमंत्रर् यखिा था। मे फाजाय तनमंत्रर् व्मवस्था का
संचारन कयिे थे।
II. शहना-ए-भांडी- मह फाजाय का दयोगा मा अधीऺक होिा था।
III. भुहिलसव - जनसाधायर् के आचयर् का यऺक एवं भाऩिौर का तनयीऺर् कयिा था।
प्रशासतनक व्मवस्था :- अराउद्दीन के ऩास बी अन्म सुल्िानों की ियह कामणऩार्रका, व्मवस्थावऩका, एवं
न्मामऩार्रका की सवोच्च शजक्िमां ववद्मभान थी। अराउद्दीन के सभम चाय भहत्वऩूर्ण भंत्री थे जो ऐसे चाय
स्िंब के सभान थे। जजन ऩय प्रशासन रूऩी बवन दटका हुआ था। जो इस प्रकाय है -
1. दीवान-ए-वजायि - भुख्मभंत्री को 'वजीय' कहा जािा था मह- सवाणधधक शजक्िशारी भंत्री होिा था। वजीय
भहत्वऩूर्ण ववबाग होिा था।
जो ववत्ि के अतिरयक्ि शाही सेनाओं का नेित्ृ व बी कयिा था।
2. दीवान-ए-आरयज मा अजत- मह मुद्ध भंत्री व सैन्म भंत्री होिा था मह वजीय के फाद दस
ू या भहत्वऩूर्ण भंत्री
होिा था।
दीवाने-ए-भस्
ु िखयाज :- मह याजस्व एकबत्रि कयने वारे अधधकारयमों के फकामा यार्श की जांच कयने औय
वसूरने का कामण सौंऩा गमा।
अराउद्दीन ने याशतनंग व्मवस्था प्रायं ब की। प्राकृतिक ववऩदा से फचने के र्रए अराउद्दीन ने शासकीम
अन्नबंडायों की व्मवस्था की थी।
अराउद्दीन ने ऩैदावाय का 50% बूर्भ कय (खयाज) के रूऩ भें रेना तनश्चम ककमा था। अराउद्दीन प्रथभ
सुल्िान था जजसने बूर्भ की ऩैभाइश कयाकय उसकी वास्िववक आम ऩय रगान रेना सुतनजश्चि ककमा।
सयाम-ए-अदर - मह एक ऐसा फाजाय होिा था जह ं ऩय वस्त्र, शक्कय, जडी फूटी, भेवा, दीऩक जराने का
िेर एवं अन्म तनर्भणि वस्िऐ
ु बफकने के र्रए आिी थी। सयाम -ए-अदर- ववशेष रूऩ से सयकायी धन से
सहामिा प्राप्ि फाजाय था।
स्थाऩयम करा के ऺेत्र भें अराउद्दीन ने - अराई दयवाजा, सीयी का ककरा, हजाय खांबा भहर, जमैमि
खाना भत्स्जद का तनभातण कयामा।
अराउद्दीन अऩना अंतिभ सभम अत्मंि कदठनाई से व्मिीि कयिा हुआ जरोदय योग से ग्रर्सि होकय,5
जनवयी 1316 को भत्ृ मु को प्राप्ि हो गमा।
कुिफ
ु ुद्दीन भुफायक खखरजी - कुिफ
ु ुद्दीन भुफायक णखरजी 1316 ई. को ददल्री के र्संहासन ऩय फैठा ।इसे नग्न
स्त्री ऩुरुष की संगि ऩसंद थी। भुफायक णखरजी कबी-कबी याज दयफाय भें जस्त्रमों का वस्त्र ऩहन कय आ
जािा था। फयनी के अनुसाय भुफायक कबी-कबी नग्न होकय दयफायी के फीच दौडा कयिा था।
नालसरुद्दीन खश
ु यशाह - मह 15 अप्रैर 1320 को ददल्री के र्संहासन ऩय फैठा। वह दहंद ू धभण से ऩरयवतिणि
भुसरभान था। उसने अऩने नाभ के खि
ु फे- ऩदामे औय साथ ही ऩैगांफय के सेनाऩति की उऩाधध धायर् की।
5 र्सिंफय 1320 को गाजी भर्रक एवं खश ु यशाह के भध्म मुद्ध हुआ जजसभें खश
ु यशाह ऩयाजजि हुआ। 8
र्सिंफय 1320 को गाजी भर्रक ददल्री के िख्ि ऩय फैठा।
ववजेिा -भुगर
मुद्ध का प्रायं र्बक ऺर् हे भू के ऩऺ भें यहा था। ऩयं िु इसी सभम हे भू की ऑ ंख भें िीय रग जाने से
उसकी सेना भें बगदड भच गमी अंिि् उसे ऩडकय उसकी हत्मा कय दी गमी ।इस ियह से मुद्ध का
ऩरयर्ाभ भुगरों के ऩऺ भें यहा।
1. मुद्ध भें फंदी फनामे गमे व्मजक्िमों के ऩरयवाय के सदस्मों को दास फनामे जाने की ऩयं ऩया को िोडिे हुए
अकफय ने दास प्रथा ऩय 1562 ई से ऩूर्ि ण ् योक रगा ददमा।
2. प्रायं ब भें अकफय 'हयभ दर' के प्रबाव भें था। इस दर के प्रभुख सदस्म -धाम भाहभ अनगा,जीजी
अनगा ,आधभ खां,भुनीभ खां ,र्शहाफुद्दीन अहभद खां थे। जफ िक अकफय ने इस दर के प्रबाव भें काभ
ककमा िफ िक उसके शासन को 'ऩेदटकोट सयकाय' व ऩदाण शासन बी कहा जािा है ।
16 भई 1562 ई .को आधभ खां को अकफय ने छि से दो फाय नीचे कपकवामा परि: उसकी भत्ृ मु हो
गमी मह सभाचाय फीभाय भाहभ अनगा को जो याज्म की संयक्षऺका के रूऩ भें कामण कय यही थी अकफय
ने सुनामा जी इसके प्रबाव स्वरूऩ 40 ददन फाद वह भय गमी ,इस प्रकाय अकफय ने स्वमं को 'हयभ दर'
से ऩूर्ि
ण ् स्विंत्र कय र्रमा।
याजस्थान ववजम - याजस्थान के याजऩूि शासक अऩने ऩयाक्रभ आत्भ सम्भान एवं स्विंत्रिा के र्रए
प्रर्सद्ध थे अकफय ने याजऩूिों के प्रति ववशेष नीति -अऩनािे हुए उन याजऩूि शासको से र्भत्रिा एवं
वैवादहक संफंध स्थावऩि ककमे जजन्होंने उसकी अधीनिा स्वीकाय कय री ककंिु जजन्होंने अधीनिा
स्वीकाय नहीं कक उनसे मुद्ध के द्वाया अकफय ने अधीनिा स्वीकाय कयवाने का प्रमत्न ककमा।
1. आभेय (जमऩुय) - 1562 ई. भें अकफय द्वाया अजभेय की शेख भुईनुद्दीन धचश्िी दयगाह की मात्रा के
सभम उसकी भुराकाि आभेय के शासक याजा बयभेर से हुई बायभेर प्रथभ याजऩूि था जजसने स्वेच्छा
से अकफय की अधीनिा स्वीकाय की ।
कारांिय भें बायिभर मा ववहाभर की ऩुत्री से अकफय ने वववाह कय र्रमा, जजससे जहांगीय ऩैदा हुआ।
अकफय ने बायिभर के ऩुत्र (दत्िक) बगवान दास एवं ऩौत्र भानर्संह को उच्च भानसव प्रदान ककमा।
2. भेवाड़ - 'भेवाड' याजस्थान का एक भात्र याज्म था जह ं के याजऩूि शासकों ने भुगर शासन का सदै व
ववयोध ककमा अकफय का सभकारीन भेवाड शासक र्ससोददमा वंश का याणा उदम लसांह था। जजसने भुगर
सम्राट अकफय की अधीनिा स्वीकाय नहीं की।
मल्
ु ऱा दो
टोडरमऱ
प्याजा
अकफर
हकीम
फीरफऱ
हुकाम
अफुऱपजऱ पैजी
नूयजहाां गुट
इस गट
ु भें भहयवऩण
ू त सदस्म थे-
नूयजहां फेगभ
एिभादद्द
ु ौरा (नूयजहां का वऩिा)
अस्भि फेगभ (नूयजहां की भां)
आसप खां (नूयजहां का बाई)
शहजाद खयु ण भ (शाहजहां)
मह गुट भुगर दयफाय भें जहांगीय के वववाह के ियु ं ि फाद ही सकक्रम हो गमा। जजसका प्रबाव 1627 ई.
िक यहा।
1620 ई. के अंि िक नूयजहां के संफंध खयु ण भ से अच्छे नहीं यहे क्मोंकक नूयजहां को अफ मह अहसास
हो गमा था कक शाहजहां के फादशाह फनने ऩय उसका प्रबाव शासन के कामों ऩय कभ हो जामेगा।
इसीर्रए शहप्माय (जहांगीय के दस
ू ये ऩुत्र) को भहत्व दे ना प्रायं ब कय ददमा। औय इसकी शादी 'शेय
अपगान' ने उत्ऩन्न अऩनी ऩुत्री राडरी फेगभ की शादी 1620ई. भें शहप्माय से कय दी।
शाहजहां ने संगीिऻ रार खाां को गुर् सभंदय की उऩाधध एवं संगीिऻ -जगन्नाथ को जो दहंदी का कवव
बी था को भहाकवव याम की उऩाधध से सम्भातनि ककमा गमा।
फीजाऩुय - र्संहासन ऩय फैठने के उऩयांि औयं गजेफ ने फीजाऩुय के शासक- आददरशाह द्वविीम को 1657
ई. को संधध का ऩारन न कयने के कायर् दं ड दे ने के र्रए जमऩुय के याजा जमर्संह को 1665 ई. भें
दक्षऺर् बेजा।
जम र्संह ने फीजाऩुय को जीिने के ऩूवण र्शवाजी के णखराप एक भहत्वऩूर्ण रडाई भें सपरिा प्राप्ि कय
22 जून 1665 ई. भें ऩुयांदय की सांधध की।
संधध की शिों के अनुसाय र्शवाजी ने चाय राख छर् वारे 23 ककरे भुगरों को सौंऩ ददमे िथा अऩने
ऩुत्र शंबू को भुगर सेवा भें बेज कय जम र्संह के कहने ऩय स्वमं 22 भाचत 1666 ई. को आगया के
ककरे भें दीवाने आभ भें औयं गजेफ के सभऺ प्रस्िि
ु हुआ ।जहां से र्शवाजी को कैद कय जमऩुय बवन भें
यख ददमा गमा। जहां से र्शवाजी पयाय हो गमे।
र्शवाजी ने यामगढ भें 16 जून 1674 ई. को अऩना याज्मालबषेक कयवाकय छत्रऩति की उऩाधध प्राप्ि
की।
औयं गजेफ को भयाठों के संघषण भें कापी धन-जन की हातन सहनी ऩडी।
लसक्ख ववद्रोह- 16 वीं शिाब्दी भें र्सक्ख संप्रदाम की स्थाऩना गुरु नानक जी ने की।