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Kuala Lumpur, Malaysia

1.निम्िलिखित दो प्रश्िों में से किसी एि प्रश्ि िा उत्तर िगभग 60 शब्दों में दीजिए- (3× 2 = 6)
(ि) राहुि दे श िी सीमा पर पहरा दे रहा था। तभी उसे दरू से िराहिे िी आवाि सि ु ाई दी। उसिे दे िा कि
ववरोधी दे श िे एि लसपाही िो िुत्ते िे िाट लिया है और वह बरु ी तरह िख्मी हो गया है । पर आखिर वह
हमारी सीमा िे पास िर क्या रहा था? अब राहुि समझ िहीीं पा रहा था कि वह शत्रु िो गगरफ्तार िरे या
पहिे उसिा इिाि िरे । िुछ पि सोच िर उसिे उस लसपाही िी चोट से रक्त साफ किया, मरहम िगाया, उसे
दवा दी और िुछ दे र बाद िब उसिा ददद शाींत हो गया तब उससे पछ
ू ताछ शरू
ु िरिा ठीि समझा। इस
उदाहरण में राहुि िे व्यजक्तत्व िो आप मिष्ु यता िववता िे आधार पर उगचत ठहराएींगे या िर चिे हम कफदा
िववता िे आधार पर गित? तिद सहहत उत्तर दीजिए।
उत्तरः (क) उपरोक्त उदाहरण में राहुल एक भारतीय सैनिक है , जो सीमाओं पर तैिात होकर अपिे दे श की रक्षा
कर रहा है। पर उससे भी पहले वह एक इंसाि है और इंसानियत के िाते जो उसका सववप्रथम कतवव्य था, उसिे
वही निभाया। ककसी भी अन्य व्यक्क्त से हमारा कोई भी ररश्ता क्यों ि हो पर सबसे ऊपर और सबसे पहले
इंसानियत का ररश्ता होता है । जब एक घायल सैनिक को राहुल िे दे खा तो वह उसे बंदी भी बिा सकता था,
ककं तु मािवता के हहत को ध्याि में रखते हुए उसिे उसकी दे खभाल की। उसकी तकलीफ को दे खते हुए उसके
प्रनत उसके मि में दया और करुणा का भाव जागा। उसका ऐसा करिा मिुष्यता कववता के आधार पर बबल्कुल
उचित है क्योंकक कवव मैचथलीशरण गुप्त िे दया और करुणा के भाव को सवोपरर बताया है । मैं तो यह भी
मािती हूँ कक ‘कर िले हम कफदा’ कववता में भी जो सैनिक अंनतम सांस तक दे श के ललए लड़ता है , वह भले ही
हमसे अपिे दे श की रक्षा करिे की अपेक्षा कर रहा है , ककं तु वह कभी िहीं िाहे गा कक हम इंसानियत को कुिल
कर दे श की रक्षा करते हुए ककसी को हानि पहुूँिाएूँ। अत: राहुल का यह कायव सराहिीय है और ककसी भी दृक्ष्ि
से इसे गलत िहीं कहा जा सकता।
(ि) पूिम िुछ हदि से स्वस्थ महसूस िहीीं िर रही थी। िभी गचकित्सि िो हदिाती तो िभी िोगों से सिाह
िेती। उसिी एि सहे िी िे उसे िहा कि वह ध्याि िगािा शुरू िरे । उससे उसे बहुत राहत लमिेगी। वह ध्याि
िगािे बैठती किीं तु ववचारों िी उथि-पुथि उसे और परे शाि िर िेती। इस सींबींध में उसिे िई िायदशािाओीं में
भी भाग लिया। िोई किसी तरह से ध्याि िगािे िो िहता तो िोई किसी तरह से। हारिर उसिे ध्याि िगािे
िा ववचार ही छोड़ हदया और कफर से उसी भागदौड़ में िग गई। ‘झेि िी दे ि’ पाठ िे आधार पर पूिम िो
क्या सिाह दे िा चाहें गे?
उत्तरः (ख) उपरोक्त उदाहरण में पिम की जो क्थथनत हदखाई गई है , वह बहुत ही आम समथया बि िुकी है ।
लगभग हर दसरा व्यक्क्त ककसी ि ककसी मािलसक तिाव से गज ु र रहा है। इसका बहुत बड़ा कारण तो यह है
कक आज हर कोई अपिे अपिे जीवि में व्यथत है । एक दसरे से बात करिे, सलाह करिे का समय ककसी के
पास भी िहीं है। ऐसे में तिाव ग्रथत होकर मािलसक रूप से रोगी हो जािा थवाभाववक है । पिम की सहे ली िे
उसे ध्याि लगािे की जो सलाह दी, वह बहुत अच्छी थी। पिम िे प्रयास भी ककया ककं तु असफल होिे पर
प्रयास छोड़ दे िा पिम की भल थी। ध्याि लगािे की ववलभन्ि प्रकियाएूँ हमारे दे श में मौजद हैं, हमें क्जस
प्रकिया से ध्याि लगािे में मदद लमले, उसका अिुसरण कर सकते हैं। यहद कोई भी प्रकिया ि समझ में आए,
तो हम अपिे आप ही अपिे हदमाग को धीरे -धीरे शांत अवथथा में ले जािे का प्रयास कर सकते हैं। जैसा कक

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झेि की दे ि पाठ में बताया गया है। यहद हम एक शांत वातावरण में बैठकर केवल अपिे वविारों पर ध्याि दें
तो हम पाएंगे कक अचधकांश समय हम अतीत या भववष्य में व्यतीत कर रहे हैं। वे दोिों काल लमथ्या है अतः
उिकी सोि छोड़कर यहद हम वतवमाि को महसस कर लें और उसमें जीिा शरू
ु कर दें तो समझ लीक्जए कक
हमें तिाव मुक्त रहिे का साधि लमल गया है।
प्रश्ि 2.परू ि पाठ्यपस्
ु ति सींचयि िे किनहीीं तीि प्रश्िों में से किनहीीं दो प्रश्िों िे उत्तर दीजिए- (3 × 2 = 6)
(ि) ठािुरबारी िे सम्बनध में िेिि िे ववचार गााँव वािों से किस प्रिार लभनि थे?
उत्तरः (क) ‘हररहर काका’ पाठ के मख्
ु य पात्र ‘हररहर’ भोले-भाले ककसाि थे। गाूँव की ठाकुरबारी में उिका काफी
आिा-जािा था। वहाूँ के महन्त व अन्य सदथय हररहर का काफी आदर करते थे व हररहर को भी उि पर अिि
ववश्वास था। गाूँव के अचधकांश लोग ठाकुरबारी के प्रनत अत्यचधक श्रद्धा भाव रखते थे, ककन्तु लेखक के वविार
उि सबसे लभन्ि थे। लेखक का माििा था कक गाूँव के िािुकार व कामिोर लोग ठाकुरबारी में जाकर समय
बबावद करते हैं और धमव-ििाव के िाम पर पजा-पाठ की आड़ में बह़िया पकवाि खाते हैं, लोगों को लिते हैं।
लेखक को वहाूँ के पुजारी व महन्त एक आूँख भी िहीं भाते थे। वाथतव में लेखक का अववश्वास ही सही
साबबत हुआ। महन्त िे अन्य लोगों के साथ लमलकर हररहर की ज़मीि छीििे का जो दथ ु साहस ककया, उससे
ठाकुरबारी के प्रनत सभी लोगों की श्रद्धा िि गयी। निश्छल व सदािारी होिा िाहहए, यही सबसे बड़ा धमव व
धालमवक कृत्य है।
(ि) टोपी शुक्िा िो किि भावात्मि चुिौनतयों िा सामिा िरिा पड़ा था? लशक्षा प्रणािी में किस प्रिार िे
पररवतदि िाए िाएाँ कि छात्रों िो यह सब ि सहिा पड़े?
उत्तरः ‘िोपी शुक्ला’ पाठ दो ऐसे दोथतों की कहािी है जो सववथा लभन्ि वातावरण में पले हैं। दोिों की परवररश
अलग-अलग रीनत से हुई है व दोिों िे पयावप्त लभन्ि-लभन्ि परम्परायें दे खी हैं। इतिी असमाितायें होते हुए भी
दोिों घनिष्ठ लमत्र बिे। इफ्फि मुक्थलम पररवार से था व िोपी हहन्द पररवार से। इफ्फि के घर िोपी का बहुत
आिा-जािा था। दोिों अपिे मि की सारी बातें केवल एक-दसरे को ही बताते थे। संयोगवश इफ्फि के वपता का
तबादला हो गया और िोपी अकेला रह गया। अब तो वह बबल्कुल उदास रहिे लगा। इस अकेलेपि की उदासी
का प्रभाव प़िाई पर पड़ा और वह लगातार दो बार फेल हो गया। कक्षा में सभी बच्िे उसका मज़ाक उड़ाते,
अध्यापक भी उसका उदाहरण दे -दे कर सबको प़िाई में ध्याि दे िे को कहते और वह शमव से लाल हो जाता था।
घर और ववद्यालय, दोिों जगह उसे अपमािजिक भावात्मक िुिौनतयों का सामिा करिा पड़ रहा था। ककसी
छात्र को ऐसी क्थथनत से ि गुजरिा पड़े, इसके ललए आवश्यक है कक छात्रों के थवाभाववक रुझाि को दे खते हुए
उन्हें आगे ब़ििे के अवसर हदये जायें। ववशेष रूप से अध्यापकों को तो छात्रों के मिोववज्ञाि को समझते हुए
उिसे आत्मीयतापणव व्यवहार करिा िाहहए।
(ग) िई श्रेणी में िािे, िई िॉवपयों और परु ािी किताबों से आती ववशेष गींध से िेिि िा बाि मि क्यों उदास
हो िाता था?
उत्तरः लेखक की प़िाई में ववशेष रुचि िहीं थी और ि ही उिके पररवार के लोग प़िाई का महत्व समझते थे।
इसललए लेखक और उिके अचधकांश साथी उदास मि से ही ववदप्रत्यक्ष कर के हदखा दे ते थे। अगली कक्षा में
आिे की खश
ु ी उतिी िहीं हो पाती थी क्जतिा इस बात का डर होता था कक अध्यापकों की उिसे अपेक्षाएूँ ब़ि
जाएूँगी। िई कक्षा में िए अध्यापकों का थवभाव ि जािे कैसा होगा। यह सब बातें लेखक के मि को उदास
कर हदया करती थीं और अगली कक्षा में आिे की खुशी कहीं िीिे दब जाती थी।
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(ि) सआदत अिी िौि था? उसे िुश रििा ििदि िे लिए क्यों आवश्यि था?
उत्तरः सआदत अली वज़ीर अली के वपता का भाई अथावत ् उसका िािा था। थवभाव में दोिों बबल्कुल लभन्ि थे।
वज़ीर अली सच्िा दे शभक्त था, दे श के हहत में अपिी जाि दे सकता था और ककसी की जाि ले भी सकता
था। वहीं दसरी ओर सआदात अली ऐश पसंद आदमी था। दे श भक्क्त जैसी कोई भाविा उसके हदल में िहीं थी।
अंग्रेजों द्वारा वज़ीर अली को अवध के तख्त से हिाकर वह पद सहादत अली को सौंप हदया गया। उसिे
अपिी आधी जायदाद और दस लाख रुपए किवल को हदए। उसे खश
ु रख कर अंग्रेज अवध पर कब्जा बिाए
रखिा िाहते थे।
(ि) िवव ‘मैगथिीशरण गुप्त’ िे सच्चे मिुष्य िी क्या पहचाि बताई है?
उत्तरः ‘मिुष्यता’ कववता के अंतगवत कवव ‘मैचथलीशरण गुप्त’ िे सच्िे मिष्ु य की पहिाि बताई है । केवल
मिुष्य के रूप में जन्म लेिे से कोई मिुष्य िहीं कहलाता। दया, करुणा, परोपकार, सहािुभनत, निरालभमाि आहद
गुणों के बल पर हम अपिे मिुष्य होिे को साथवक कर सकते हैं। ववलभन्ि उदाहरण दे कर कवव िे यह थपष्ि
ककया है कक केवल अपिी थवाथव लसद्चध में ही जीवि व्यतीत करिा पशुओं की प्रववृ त्त होती है । मिुष्य कहलािे
योग्य वह है जो सभी के हहत-अहहत के ववषय में सोिते और कायव करते
हुए जीवि व्यतीत करे ।
(ग) झेि िी िौि-सी दे ि िापानियों िो लमिी हुई है ? स्पष्ट िीजिए।
उत्तरः पाठ ‘झेि की दे ि’ के अंतगवत लेखक ‘रवींद्र केलेकर’ िे जापाि में प्रिललत बौद्ध दशवि की एक ऐसी
पद्धनत का वणवि ककया है क्जसके कारण जापािी अपिी व्यथत और तिावग्रथत हदिियाव के बीि भी कुछ िैि
भरे पल पा लेते हैं और थवयं को तिाव मुक्त करके कफर से उस दौड़ भाग में शालमल होिे के ललए तैयार कर
लेते हैं। यह परं परा ‘झेि परं परा’ कहलाती है । लेखक िे अपिे अिुभव से यह महसस ककया कक यह झेि परं परा
जापानियों को लमली हुई एक बहुत बड़ी दे ि है जो उन्हें मािलसक रोगी होिे से बिाती है।
प्रश्ि 4.निम्िलिखित दो प्रश्िों में से किसी एि प्रश्ि िा उत्तर िगभग 60 शब्दों में दीजिए- (3 × 2 = 6)
(ि) िब से हमिे होश सींभािा है , वपतािी िो घर से दफ्तर, दफ्तर से घर िी दरू ी तय िरते हुए, घर और
दफ्तर िी छोटी-बड़ी समस्याओीं िो हि िरिे िी िोलशश िरते हए ही दे िा है। मााँ भी उििी िोलशशों में
भागीदार बिी रही। िब हम थोड़े बड़े हुए, घर िे िामों में हाथ बींटािे िगे। अब हम अपिे पैरों पर िड़े हो गए
हैं। हम चाहते हैं कि अब वे जिींदगी िा मिा िें। किनतु हमारे भववष्य िो बिािे िे लिए उनहोंिे शायद िरूरत
से ज्यादा बोझ अपिे िींधों पर िे लिया और बबस्तर पर आ गए। मध्यम वगद िे हर व्यजक्त िी िगभग यही
जस्थनत है। पाठ ‘झेि िी दे ि’ से िो सींदेश लमिता है , क्या उससे इस जस्थनत िो बदिा िा सिता है ? पाठ िे
आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तरः(क) मध्यम वगव का लगभग प्रत्येक व्यक्क्त अपिे भववष्य को सख
ु मय बिािे के ललए वतवमाि को दाव
पर लगा रहा है। वतवमाि के पलों को परी तरह से जी िहीं पाता, अपिे पैसे को भी अपिे ऊपर ि खिव करके
भववष्य के ललए या अपिे बच्िों के ललए जोड़ता जाता है। यह सोि ठीक िहीं है । यहद हमिे वतवमाि को परी
तरह िहीं क्जया तो भववष्य को खश
ु िम
ु ा बिािे की कोलशश करिा व्यथव है । उपरोक्त उदाहरण में भी एक वपता
िे समय और धि का वववेकपणव इथतेमाल िहीं ककया। भववष्य की योजिा बिाकर िलते ककं तु अपिे थवाथथ्य
और वतवमाि पलों का भी ख्याल रखते तो बेहतर होता।

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पाठ झेि की दे ि में लेखक िे जापानियों का उदाहरण दे कर यही समझाया है कक वह अपिे दे श को अमेररका
जैसे दे श से आगे निकालिे की होड़ में लगे हुए हैं। जीवि की रफ्तार इतिी ब़िा ली है कक खुद के ललए समय
ही िहीं है। यह क्थथनत तिाव पैदा करती है और यह तिाव हमें मिोरुग्ण बिा दे ता है। इससे बििे का केवल
यही उपाय है कक वतवमाि में क्जएं, क्योंकक वही एकमात्र सत्य है । उसका भरपर, बेहतरीि इथतेमाल करें ताकक
जब वह अतीत बिे तो उसकी सख
ु द यादें हों और भववष्य अपिे आप ही सख
ु द होता िला जाए।
(ि) व्यजक्त निमादण से ग्राम निमादण और स्वाभाववि ही दे श निमादण ति िे गााँधी िी िे सपिों िो अनिा
हिारे िे परू ा िरिे हदिाया। एि गााँव से प्रारीं भ हुआ उििा अलभयाि आि िगभग 80 गााँव ति फैिा हुआ है ।
व्यजक्त निमादण िे लिए मूि मींत्र दे ते हुए उनहोंिे युवाओीं में उत्तम चररत्र शुद्ध आचार-ववचार निष्ििींि व
त्याग िी भाविा वविलसत िरिे तथा निभदयता िो आत्मसात िर आम आदमी िी सेवा िो आदशद िे रूप में
स्वीिार िरिे िा आह्वाि किया है। ‘मिुष्यता’ िववता िे आधार पर बताइए कि अनिा हिारे और िवव
मैगथिीशरण गुप्त िी सोच में क्या समािता आप महसूस िर रहे हैं।
उत्तरः (ख) उपरोक्त उदाहरण में एक कमवठ, समाजसेवी व्यक्क्त अन्िा हजारे के ववषय में जो बताया गया है , वह
अद्भुत और प्रशंसिीय है। उन्होंिे कभी भी थवाथव प्रेररत होकर कायव िहीं ककया। समाज और दे श का हहत
हमेशा उिके ललए सवोपरर रहा। जो सि की राह पर िलता है , निभवयता उसके कदम िमती है , त्याग करके जो
सुख लमलता है , वही मिुष्य जीवि का असली सुख है । कवव ‘मैचथली शरण गुप्त’ िे भी मिुष्यता कववता में
यही संदेश हदया है कक मिुष्य रूप में जन्म लेिे मात्र से हम मिुष्य िहीं कहलाते। दया, करुणा, परोपकार,
सहािुभनत, दाि और तप जैसे गुण ही हमें अपिे मिुष्य जीवि को साथवक बिािे में मदद करते हैं। अतः इि
दोिों की सोि में अत्यचधक समािता है । कवव िे जो कुछ कहा है , समाजसेवी अन्िा हजारे िे उस पर अमल
करके मािवता के ललए एक लमसाल कायम की है ।
प्रश्ि 5. पूरि पाठ्यपुस्ति सींचयि िे किनहीीं तीि प्रश्िों में से किनहीीं दो प्रश्िों िे उत्तर दीजिए- (3 × 2 = 6)
(ि) पाठ ‘सपिों िे से हदि’ िे आधार पर बताइए कि आप पी. टी. सर व हैडमास्टर शमाद िी में से किससे
प्रभाववत हैं और क्यों?
उत्तरः हमारे बिपि की कुछ यादें हमेशा हमारे साथ रहती हैं और समय-समय पर खट्िे -मीठे अिुभव दे ती रहती
हैं। पाठ ‘सपिों के से हदि’ में लेखक िे भी अपिे बिपि की कुछ यादों को हमारे समक्ष प्रथतुत ककया है ,
क्जसमें उन्होंिे अपिे ववद्यालय के दो अध्यापकों का ववशेष क्जि ककया है। उिमें से एक हैं-पी. िी. सर, माथिर
प्रीतमिन्द, जो कक बहुत ही सख्त थवभाव के हैं। छात्रों को अिुशासि में रखिे के ललए वे ककसी भी हद तक
जा सकते हैं, यहाूँ तक कक खाल खींििे के मुहावरे को प्रत्यक्ष करके हदखा दे ते हैं। दसरे हैं-हैडमाथिर शमाव जी,
जो बहुत िम्र थवभाव के हैं। छात्रों को शारीररक दण्ड दे िा उिके उसलों के खखलाफ है । पी. िी. सर का खौफ
इस कदर है कक उिके मुअत्तल हो जािे पर भी उिके कालांश में छात्र घबराते रहते हैं। उिके मूँह ु से बमक्ु श्कल
निकलिे वाली ‘शाबाश’ बच्िों को फौज के तमगों जैसी मल्यवाि लगती है । मेरे वविार से दोिों के ही िररत्र में
अनत है। एक लशक्षक को ि तो इतिा कठोर होिा िाहहए कक छात्र उिका सम्माि करिे की बजाए उिसे डरते
रहें और ि इतिा िम्र कक छात्र अिश
ु ासिहीि हो जाएूँ।
(ि) अम्मी शब्द सि ु िर टोपी िे घरवािों िी क्या प्रनतकिया हुई?
उत्तरः पाठ ‘िोपी शुक्ला’ दो ऐसे लमत्रों की कहािी है क्जिकी परवररश बबल्कुल लभन्ि पररक्थथनतयों में हुई, अलग
पाररवाररक वातावरण, मान्यताएूँ भी अलग, कफर भी दोिों में घनिष्ठ सम्बन्ध बि गए। िोपी हहन्द पररवार से
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था जबकक इफ्फि कट्िर मुसलमाि पररवार से। िोपी िे इफ्फि के घर से एक िया शब्द सीखा ‘अम्मी’ और
अपिे घर पर जब उसके मूँह
ु से अपिी माूँ के ललए यह शब्द निकला तब उसके पररवार वालों की तीखी िजरें
उस पर उठी, खािे की मेज़ पर सभी हाथ अिािक रुक गए, उसकी दादी िोपी की माूँ पर बरस पड़ीं कक वह उसे
ऐसे लड़के से लमत्रता करिे से रोकती क्यों िहीं है। माूँ िे िोपी को बहुत मारा ककन्तु कफर भी िोपी िे इफ्फि
से दोथती तोड़िा थवीकार िहीं ककया।
(ग) िेिि िे साथ हररहर िािा िे सींबींधों पर प्रिाश डालिए।
उत्तरः हररहर काका एक सीधे-सादे ककसाि थे। खेतीबाड़ी से समय लमलिे पर वे गाूँव की ठाकुरबाड़ी में जाकर
धालमवक ििाव में समय व्यतीत करते थे। लेखक को हररहर के प्रनत गहरी आसक्क्त थी क्जसके बहुत से वैिाररक
और व्यावहाररक कारण थे। एक तो यह कक हररहर उिके पड़ोस में रहते थे, दसरा लेखक जब छोिे थे तब
हररहर काका उन्हें एक वपता से भी अचधक दल
ु ार करते थे। लेखक बिपि में हररहर काका के कंधे पर बैठकर
घमा करते थे। लेखक जब सयािे हुए तो उिकी पहली दोथती हररहर काका से ही हुई और हररहर काका अपिे
मि की सभी बातें लेखक के साथ ककया करते थे। लेखक को उिके साथ समय बबतािा बहुत अच्छा लगता
था।
(ि) िेिि ‘रवीींद्र िेिेिर’ िे िापाि में मािलसि रोग अगधि होिे िे क्या िारण बताए हैं?
उत्तरः लेखक ‘रवींद्र केलेकर’ को एक बार जापाि जािे का अवसर लमला। वहाूँ उिके एक लमत्र िे उन्हें बताया
कक वहाूँ के 80 फीसदी लोग मािलसक रूप से रोगी हैं। इसका कारण है , उिकी भागदौड़ भरी क्जंदगी। जापाि
जैसा छोिा-सा दे श अमरीका जैसे बड़े दे श से प्रनतथपधाव में लगा रहता है , क्जसके कारण जापानियों को अपिे
जीवि की रफ्तार बहुत ब़िािी पड़ती है । एक महीिे का काम एक हदि में करिे का प्रयास करते हैं। वहाूँ कोई
बोलता िहीं, सब बकते हैं, कोई िलता िहीं, सब दौड़ते हुए हदखाई दे ते हैं। इससे तिाव पैदा होता है और यही
तिाव मािलसक रोगों का रूप ले लेता है।
(ि) विीर अिी िो िाींबाि लसपाही िहिा किस प्रिार उगचत है ?
उत्तरः वज़ीर अली एक भारतीय सैनिक था। उसके हदल में अपिे दे श के प्रनत प्रेम और अंग्रेजों के प्रनत िफरत
कि-कि कर भरी थी। वह अकेला ही परी अंग्रेजी सेिा को िकमा दे िे के ललए काफी था। यह जािते हुए भी
कक लेक्फ्ििेंि और करिल लाव लश्कर के साथ उसे तलाश रहे हैं वह अकेला उिके खेमे में दाखखल हो गया।
उन्हीं के हाथों से उन्हें सबक लसखािे के ललए कारतस भी ले ललए और जाते-जाते अपिा पररिय भी दे गया।
ऐसे व्यक्क्त को जांबाज़ लसपाही कहिा बबल्कुल उचित है ।
(ग) िवव ‘सुलमत्रािनदि पनत’ िे झरिों िा सिीव वणदि किया है। िैसे?
उत्तरः कवव सलु मत्रािन्दि पन्त’ प्रकृनत प्रेमी कवव मािे जाते हैं। ‘पववत प्रदे श में पावस’ कववता इसका जीवन्त
उदाहरण है । पावस ऋतु के दौराि पववतीय क्षेत्रों का िजारा ककस प्रकार बदलता रहता है, इसका जीवन्त वणवि
करते हुए कवव िे बताया है कक पववतों के बीि बहते हुए झरिे, ऊूँिाई से चगरिे के कारण जो ध्वनि उत्पन्ि
करते हैं, वह मािो झरिों द्वारा पववतों की प्रशंसा में गाया जािे वाला गीत है । सफेद झागयक्
ु त झरिों का
सौन्दयव मोती की माला की समािता कररहा है और सम्पणव दृश्य में िार िाूँद लगा रहा है।
प्रश्ि 6. परू ि पाठ्यपस्
ु ति सींचयि िे किनहीीं तीि प्रश्िों में से किनहीीं दो प्रश्िों िे उत्तर दीजिए- (3 × 2 = 6)
(ि) ठािुरबारी िे सम्बनध में िेिि िे ववचार गााँव वािों से किस प्रिार लभनि थे?
उत्तरः(क) ‘हररहर काका’ पाठ के मुख्य पात्र ‘हररहर’ भोले-भाले ककसाि थे। गाूँव की ठाकुरबारी में उिका काफी
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आिा-जािा था। वहाूँ के महन्त व अन्य सदथय हररहर का काफी आदर करते थे व हररहर को भी उि पर अिि
ववश्वास था। गाूँव के अचधकांश लोग ठाकुरबारी के प्रनत अत्यचधक श्रद्धा भाव रखते थे, ककन्तु लेखक के वविार
उि सबसे लभन्ि थे। लेखक का माििा था कक गाूँव के िािुकार व कामिोर लोग ठाकुरबारी में जाकर समय
बबावद करते हैं और धमव-ििाव के िाम पर पजा-पाठ की आड़ में बह़िया पकवाि खाते हैं, लोगों को लिते हैं।
लेखक को वहाूँ के पज
ु ारी व महन्त एक आूँख भी िहीं भाते थे। वाथतव में लेखक का अववश्वास ही सही
साबबत हुआ। महन्त िे अन्य लोगों के साथ लमलकर हररहर की ज़मीि छीििे का जो दथ ु साहस ककया, उससे
ठाकुरबारी के प्रनत सभी लोगों की श्रद्धा िि गयी। निश्छल व सदािारी होिा िाहहए, यही सबसे बड़ा धमव व
धालमवक कृत्य है।
(ि) टोपी शुक्िा िो किि भावात्मि चुिौनतयों िा सामिा िरिा पड़ा था? लशक्षा प्रणािी में किस प्रिार िे
पररवतदि िाए िाएाँ कि छात्रों िो यह सब ि सहिा पड़े?
उत्तरः ‘िोपी शुक्ला’ पाठ दो ऐसे दोथतों की कहािी है जो सववथा लभन्ि वातावरण में पले हैं। दोिों की परवररश
अलग-अलग रीनत से हुई है व दोिों िे पयावप्त लभन्ि-लभन्ि परम्परायें दे खी हैं। इतिी असमाितायें होते हुए भी
दोिों घनिष्ठ लमत्र बिे। इफ्फि मुक्थलम पररवार से था व िोपी हहन्द पररवार से। इफ्फि के घर िोपी का बहुत
आिा-जािा था। दोिों अपिे मि की सारी बातें केवल एक-दसरे को ही बताते थे। संयोगवश इफ्फि के वपता का
तबादला हो गया और िोपी अकेला रह गया। अब तो वह बबल्कुल उदास रहिे लगा। इस अकेलेपि की उदासी
का प्रभाव प़िाई पर पड़ा और वह लगातार दो बार फेल हो गया। कक्षा में सभी बच्िे उसका मज़ाक उड़ाते,
अध्यापक भी उसका उदाहरण दे -दे कर सबको प़िाई में ध्याि दे िे को कहते और वह शमव से लाल हो जाता था।
घर और ववद्यालय, दोिों जगह उसे अपमािजिक भावात्मक िुिौनतयों का सामिा करिा पड़ रहा था। ककसी
छात्र को ऐसी क्थथनत से ि गुजरिा पड़े, इसके ललए आवश्यक है कक छात्रों के थवाभाववक रुझाि को दे खते हुए
उन्हें आगे ब़ििे के अवसर हदये जायें। ववशेष रूप से अध्यापकों को तो छात्रों के मिोववज्ञाि को समझते हुए
उिसे आत्मीयतापणव व्यवहार करिा िाहहए।
(ग) िई श्रेणी में िािे, िई िॉवपयों और पुरािी किताबों से आती ववशेष गींध से िेिि िा बाि मि क्यों उदास
हो िाता था?
उत्तरः लेखक की प़िाई में ववशेष रुचि िहीं थी और ि ही उिके पररवार के लोग प़िाई का महत्व समझते थे।
इसललए लेखक और उिके अचधकांश साथी उदास मि से ही ववदप्रत्यक्ष कर के हदखा दे ते थे। अगली कक्षा में
आिे की खुशी उतिी िहीं हो पाती थी क्जतिा इस बात का डर होता था कक अध्यापकों की उिसे अपेक्षाएूँ ब़ि
जाएूँगी। िई कक्षा में िए अध्यापकों का थवभाव ि जािे कैसा होगा। यह सब बातें लेखक के मि को उदास
कर हदया करती थीं और अगली कक्षा में आिे की खश
ु ी कहीं िीिे दब जाती थी।
(ि) िववता पवदत प्रदे श में पावस िे आधार पर झरिों िे सौंदयद िो प्रस्तुत िीजिए।
उत्तरः कवव ‘सलु मत्रािंदि पंत’ एक प्रकृनत प्रेमी कवव हैं। कववता ‘पववत प्रदे श में पावस’ के अंतगवत उन्होंिे पववतीय
क्षेत्र के पररवनतवत हो रहे दृश्य का सजीव वणवि ककया है । झरिों के सौंदयव का वणवि करते हुए वे कहते हैं कक
बहते हुए झरिों की आवाज ऐसी लगती है मािो वे पववतों की प्रशंसा के गीत गाते हुए बह रहे हों। ऊपर से
चगरिे के कारण झरिों के पािी में जो झाग बिता है , उसके कारण वे मोती की लडड़यों के समाि संद
ु र हदखते
हैं, जो पुरे पववतीय क्षेत्र के सौंदयव में िार िांद लगा दे ते हैं। इस प्रकार कवव िे झरिों की मधुर आवाज और
उिके श्वेत रं ग में अद्भुत सौंदयव महसस ककया है ।
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(ि) िेजफ्टिेंट िो ऐसा क्यों िगा कि पूरे भारत में अींग्रेिों िे खििाफ एि िहर दौड़ गई है ?
उत्तरः लेक्फ्ििेंि को महसस हो गया था कक परे भारत में अंग्रेजों के खखलाफ लहर दौड़ गई है । वज़ीर अली िे
अफगानिथताि को भारत पर आिमण के ललए निमंबत्रत ककया था। इससे पहले भी यह काम शमसद्
ु दौला
द्वारा ककया जा िुका था। यहद ऐसा ही िलता रहा, तो अन्य दे शों के साथ लमलकर भारतीय दे शभक्त अपिी
ताकत को ब़िा लेंगे और जल्दी ही भारत को अंग्रेजी शासि से मक्
ु त करा दें गे।
(ग) िवव ‘िैफी आज़मी’ िे धरती िो दल्
ु हि क्यों िहा है ?
उत्तरः कववता ‘कर िले हम कफदा’ के अन्तगवत कवव कैफी आज़मी िे सैनिक की भाविाओं को शब्द हदए हैं।
सैनिक जब धरती की रक्षा करते हुए उसे अपिे खि से रं ग दे ते हैं, तब धरती लाल जोड़े में सजी दल्ु हि-सी
प्रतीत होती है। क्जस प्रकार अपिी दल्
ु हि की रक्षा के ललए युवक प्रण लेता है और उसे निभाता है , उसी प्रकार
सैनिक अपिी धरती की रक्षा करिे के ललए वििबद्ध है , जो उसके खि से रं गकर दल्
ु हि-सी प्रतीत हो रही है।
प्रश्ि 8. निम्िलिखित दो प्रश्िों में से किसी एि प्रश्ि िा उत्तर िगभग 60 शब्दों में दीजिए- (3 ×2 = 6)
(ि) िुछ हदि से सजृ ष्ट बहुत उदास रहिे िगी थी। िैसी िौिरी उसिे चाही थी, उसे लमि गई। वेति भी ठीि-
ठाि था। पर िहीीं ि िहीीं मि में अतजृ प्त िा एहसास था। उसिे घर िे पास ही एि वद्
ृ ध आश्रम में िािर
बुिुगों िी सेवा शुरू िी। उसमें उसे िो तजृ प्त लमिी वैसे पहिे िभी महसूस िहीीं िी थी। अब तो दफ्तर से
सीधा वही पहुाँचती। ि िािे िा होश ि आराम िा। पररणाम यह हुआ कि वह िुद बीमार हो गई, उसिी
दे िभाि िौि िरता। बेहतर होता कि वह परोपिार िरिे िे साथ-साथ स्वयीं िा भी ध्याि रिती। मिुष्यता
िववता में परोपिार, दया, िरुणा िा सींदेश हदया गया। क्या सजृ ष्ट उस पर ठीि से अमि िर रही है ? तिद
सहहत उत्तर दीजिए।
उत्तरः ‘मिुष्यता’ कववता के अंतगवत कवव ‘मैचथलीशरण गुप्त’ िे दया, करुणा, परोपकार, सहािुभनत आहद मािवीय
गुणों को अपिािे पर जोर हदया है । उिका माििा है कक क्जस व्यक्क्त में यह मािवीय गुण होते हैं, वही मिुष्य
कहलािे के योग्य होता है। उपरोक्त उदाहरण में सक्ृ ष्ि वद्
ृ ध आश्रम में जाकर बुजुगों की सेवा कर रही है और
उससे उसे असीम तक्ृ प्त भी लमल रही है , ककं तु अपिे थवाथथ्य को िजरअंदाज करिा उचित िहीं है । यहद
मिुष्यता कववता में सबकी मदद करिे के ललए कहा गया है तो उि सब में हम भी आते हैं। यहद हम अपिी
ओर ध्याि िहीं दें गे, खुद को थवथथ िहीं रख पाएंगे तो दसरों का ख्याल कैसे रखेंगे। एक बीमार व्यक्क्त दसरे
की बीमारी को दर िहीं कर सकता, एक रोता हुआ व्यक्क्त दसरे को िहीं हं सा सकता। अत: मिुष्यता कववता के
संदेश को परी तरह समझिा जरूरी है । हम दसरों से अलग िहीं हैं। दसरों का ख्याल रखिे, दसरों का हहत
करिे का अथव यह है कक अपिे साथ-साथ सबका हहत करें । यहद सक्ृ ष्ि इस बात को समझ लेती है तो कह
सकते हैं कक उसिे मिष्ु यता कववता के संदेश पर परी तरह से अमल कर ललया है ।
(ि) रीिा वपछिे 20 साि से एि ववद्यािय में अध्यापि िायद िर रही थी। इस दौराि उसिे अपिे बच्चों िो
पाि पोस िर बड़ा किया, घर िो भी सींभािा और घर िे बड़े बि
ु ुगों िो भी। दौड़ते भागते बरसों बीत गए, अब
उससे इतिी भागदौड़ िहीीं हो पाती है । इसलिए उसिे घर पर मदद िे लिए एि िड़िी िो रिा हुआ है । शरीर
से तो आराम लमि गया, किीं तु मािलसि तिाव बढ़िे िगा है । िब भी वह िािी होती है िुछ ि िुछ ववचार
मि में चिते रहते हैं। िरे तो क्या िरे ! शारीररि स्वास््य और मािलसि स्वास््य में सींति
ु ि िैसे बिाया
िाए? क्या रीिा िी इस समस्या िा हि झेि िी दे ि पाठ से लमि सिता है ? पाठ िे आधार पर अपिी राय
दीजिए।
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उत्तरः हम अपिे शरीर से क्जतिा काम लेते रहें गे उतिा ही वह िुथत तंदरु
ु थत रहे गा। ककं तु एक उम्र के बाद
शरीर में भी इतिी ताकत िहीं रह जाती और हम पहले की तरह भागदौड़ िहीं कर पाते। तो ऐसे समय में
ककसी की मदद लेिे में कोई बरु ाई िहीं है । ध्याि रहे ; हमें परी तरह से ककसी पर निभवर िहीं होिा है बस थोड़ी
मदद लेिी है , ताकक सभी काम सि
ु ारु रूप से िल सकें। उपरोक्त उदाहरण में रीिा िे भी ऐसा ही ककया ककं त
शायद शरीर के काम बहुत कम हो जािे के कारण वह खाली रहिे लगी और खाली समय में वविारों की उथल-
पथ
ु ल उसे परे शाि करिे लगी। यह ठीक िहीं है । यहद हमें समय लमला है तो उसमें हम अपिा कोई रुचि का
कायव कर सकते हैं, पथ
ु तकें प़ि सकते हैं, सकारात्मक सोि के साथ आगे ब़ि सकते हैं। पाठ ‘झेि की दे ि’ से
लमला संदेश निक्श्ित ही रीिा की मदद कर सकता है। जैसा कक पाठ में बताया गया कक वतवमाि ही एकमात्र
सत्य है। अतः रीिा को िाहहए कक जो आज उसके पास है उसका आिंद ले, अतीत से खे और भववष्य की
योजिाएूँ बिाए ककं तु उन्हें खुद पर हावी ि होिे दें ।
प्रश्ि 9. पूरि पाठ्यपुस्ति सींचयि िे किनहीीं तीि प्रश्िों में से किनहीीं दो प्रश्िों िे उत्तर दीजिए- (3 × 2 = 6)
(ि) ‘हररहर िािा’ पाठ िे आधार पर बताइए कि हमारे समाि में ररश्तों िा क्या महत्व है ?
उत्तरः भारत एक ऐसा दे श है जहाूँ सदा से मािवीय सम्बन्धों को, पाररवाररक सम्बन्धों को, संथकारों व संथकृनत
को सवोपरर मािा गया है। संयुक्त पररवार व्यवथथा भी यहाूँ सदा से ही प्रिलि में रही है , ककन्तु अत्यचधक
आधुनिकीकरण व भौनतकवादी मािलसकता िे वातावरण को बहुत बदल हदया है । मािवीय मल्यों का थथाि
थवाथव, लालि, छल-कपि िे ले ललया है। ररश्ते कमज़ोर पड़िे लगे व थवाथव उि पर हावी होता गया है। पाठ
‘हररहर काका’ में हररहर की व्यथा हमारे समाज के हर िौथे वद्
ृ ध की व्यथा है । प्रेम, भाईिारा केवल ककताबी
बातें रह गयी हैं। जब तक अपिा मतलब निकलता है , तभी तक लोग एक-दसरे से सम्बन्ध रखते हैं, थवाथव
सधते ही दध में से मक्खी की तरह दर कर दे ते हैं। वपछले कई दशकों से यही क्थथनत बिी हुई है , क्जसका
प्रभाव समाज में ब़िते अपराधों व असुरक्षा के रूप में सामिे आ रहा है । मेरा माििा है कक धि कम भी हो तो
खुश रहा जा सकता है , ककन्तु ररश्ते मधुर ि हों या दोथतों से सम्बन्धों में मधुरता ि हो तो जीवि बोझ लगिे
लगता है।
(ि) इफ्फि िी दादी िा मि पीहर िािे िो क्यों मचिता रहता था?
उत्तरःइफ्फि की दादी परब की रहिे वाली थी। एक ज़मींदार पररवार में , दध-दही-घी खाते हुए उिका बिपि
बीता था। केवल दस बरस की थीं जब ब्याह कर लखिऊ आ गई थीं। ससुराल का वातावरण, रहि-सहि
बबल्कुल ववपरीत था। जहाूँ मायके में ककसी भी अवसर पर खब गािा-बजािा होता था, इधर ससुराल में उसे बुरा
समझा जाता था। इस मौलवी पररवार में वह दध-घी को भी तरस गई। यहाूँ तक कक इफ्फि के जन्म के
अवसर पर भी वह गािे-बजािे का शौक परा िहीं कर सकी। उसे अपिे गाूँव का बीज पेड़, खल
ु ा वातावरण बहुत
याद आता था और उसका जी वहीं जािे के ललए तरसता रहता था।
(ग) िेिि ग्रीष्माविाश िायद िे लिए क्या योििाएाँ बिाया िरते थे? आप अपिा ग्रीष्माविाश िायद किस
प्रिार िरते हैं?
उत्तरः लेखक जब छोिे थे, उिका प़ििे में मि बबल्कुल िहीं लगता था। जब ग्रीष्मावकाश होता तो शरू
ु के कुछ
हदि तो खेलिे कदिे में बीत जाते। कफर योजिा बिािी शरू
ु करते कक रोज ककतिा काम करें गे और ककतिे
हदि में खत्म हो जाएगा। ग्रीष्मावकाश खत्म हो जाता ककं तु उिका कायव परा िहीं हो पाता था। तब भी छात्रों
के िेता ओमा से प्रोत्साहहत होते थे जो काम करिे से अचधक सथता सौदा अध्यापकों की डांि या मार खािे को
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समझता था। मैं अपिा ग्रीष्मावकाश कायव बहुत मि से करती हूँ क्योंकक वह बहुत कुछ लसखाता है और ग्रीष्म
अवकाश का समय भी कायव करते हुए बहुत ही मिोरं जक और ज्ञािवधवक बि जाता है ।
प्रश्ि 12.“आत्मत्राण’ िववता में िवव िी प्राथदिा से क्या सींदेश लमिता है ? अपिे शब्दों में लिखिए। [3]
उत्तर:“आत्मत्राणकववता रवीन्द्रिाथ ठाकुर द्वारा ललखखत कववता है । आत्मत्राण कववता में कवव मिष्ु य को भगवाि के प्रनत
ववश्वास बिाए रखिे का संदेश दे ता है । वह प्रभु से प्राथविा करता है कक िाहे ककतिा कहठि समय हो या ककतिी ही
ववपदाएूँ जीवि में हों, परन्तु हमारी आथथा भगवाि पर बिी रहिी िाहहए। इिके अिुसार जीवि में थोड़े से दःु ख आते ही
हैं और इस कारण से भगवाि पर से ववश्वास हि जाता है । कवव भगवाि से प्राथविा करता है कक ऐसे समय में आप मेरे
मि में अपिे प्रनत ववश्वास को बिाए रखिा। उिके अिुसार भगवाि पर ववश्वास ही उन्हें सारी ववपदाओं व कहठिाइयों से
उबरिे की शक्क्त दे ता है । दसरे वह भगवाि मिुष्य को ववषम उत्त पररक्थथनतयों में निडर होकर लड़िे के ललए प्रेररत करते
हैं। उिके अिुसार भगवाि में वे शक्क्तयाूँ हैं कक वह असंभव को संभव बिा सकते हैं। परन्तु कवव भगवाि से प्राथविा
करते हैं। कक पररक्थथनतयाूँ कैसी भी हों, वह उिसे थवयं आमिा-सामिा करें । भगवाि मात्र उसका सहयोग करें । इससे होगा
यह कक वह थवयं इतिा मजबत हो जाएगा कक हर पररक्थथनत में कमजोर िहीं पड़ेगा और उसका डिकर सामिा करे गा।
प्रश्ि 13.घर वािों िे मिा िरिे पर भी टोपी िा िगाव इफ्फि िे घर और उसिी दादी से क्यों था? दोिों िे अििाि,
अटूट ररश्ते िे ‘ बारे में मािवीय मल्
ू यों िी दृजष्ट से अपिे ववचार लिखिए। [3]
उत्तर: िोपी को इफ्फि से और इफ्फि की दादी से जो प्रेम था, वह अकथिीय था। उसे क्जतिा प्रेम वहां लमला, उसे अपिे
घर में िहीं लमला। यही कारण है कक घरवालों के मिा करिे पर भी िोपी को लगाव इफ्फि के घर और उसकी दादी से
था। इफ्फि की दादी िे तो जैसे उसके कोमल मि में गहरा थथाि पा ललया था। यह प्रेम ही जो था, क्जसिे ि ६ लमव को
दे खा, ि उम्र को, बस हृदय को दे खा और जीवि में आत्मसात हो गया। प्रेम ऐसा भाव है क्जसमें व्यक्क्त जानत-पांनत, धमव,
ऊूँि-िीि, बड़े-छोिे के सभी बंधिों को भल जाता है । मािवीय मल्यों में प्रेम सबसे सुंदर भाव है । प्रेम ककसी जानत-पानत,
ऊूँि-िीि, बड़े-छोिे का गल
ु ाम िहीं होता। हमारे बीि में प्रेम ववलभन्ि रूपों में ववद्यमाि है जैसे–माता-वपता का संताि से,
भाई का भाई और बहि से, बहि का बहि और भाई से, िािा-िािी, बुआ या मामा-मामी का अपिे भतीजे-भतीक्जयों-भांजों
से, गुरु का लशष्य से, बड़ों का छोिों से, एक लमत्र का दसरे लमत्र से, मिष्ु य का पश-ु पक्षक्षयों से, वप्रय का वप्रयतमा से, पनत का
पत्िी से, दादा-दादी या िािा-िािी का अपिे िाती-पोतों से, भक्त का भगवाि से, भखे इन्साि का रोिी से, पड़ोसी का
पड़ोसी से रहता है । ये सभी रूप प्रेम के ही हैं। इसललए कहा गया प्रेम ि दे खे जात-पात, ि उमर का फासला”।
प्रश्ि 9.पाठ िे आधार पर प्रनतपाहदत िीजिए कि दस
ू रों िे दःु ि से दःु िी होिे वािे अब िम लमिते हैं। [3]
उत्तर:इस पाठ में लेखक सल
ु ेमाि, पैगंबर लशकर, शेख अयाज़ और अपिी माताजी के माध्यम से यह संदेश दे िा िाहता है
कक अब संसार में इस तरह के लोग िहीं है , जो ककसी दसरे के दःु ख में उसी प्रकार दःु खी होते हैं मािो उिका अपिा ही
दःु ख हो इंसाि आज इतिा थवाथी हो गया है कक इस थवाथव के वशीभत होकर वह दसरों के हहतों का भी हिि करिे से
िहीं िकता। ईश्वर िे उसे यह सुंदर दनु िया दी ताकक वह इसमें सभी प्राखणयों के साथ लमलकर रहे , लेककि वह यह भल
गया है कक इस दनु िया में उसके अनतररक्त और कोई भी रहता है । वे अपिे ललए इसका व अन्य जीव-जन्तओ
ु ं का िाश
करिे से भी िहीं िका। उसे यही भ्रम है कक वह इस पथ्ृ वी पर सबसे शक्क्तशाली है । इस मद में मदमथत होता हुआ, वह
जािे अिजािे थवयं के ललए गड्ढा खोद िक
ु ा है ।

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प्रश्ि 9.‘टी सेरेमिी’ िी तैयारी और उसिे प्रभाव पर चचाद िीजिए। [3]
उत्तर:जापािी में िाय पीिे की ववचध को “िा-िो-य’ कहते हैं क्जसका अथव होता है -“िी-सेरेमिी और िाय वपलािे
वाला “िाजीि” कहलाता है। जहाूँ िाय वपलाई जाती है , वहाूँ की सजावि पारम्पररक होती है और इस थथाि में
केवल तीि लोग बैठकर िाय पी सकते हैं। यहाूँ अत्यन्त शांनत और गररमा के साथ-साथ िाय वपलाई जाती हैं।
िी-सेरेमिी में िाजीि द्वारा अनतचथयों का उठकर थवागत करिा, आराम से अंगीठी सल
ु गािा, िायदािी रखिा,
दसरे कमरे से िाय के बतवि लािा, िाय को बतविों में डालिा, सभी कियाएं गररमापणव ढं ग से की जाती हैं। िाय
पीिे के बाद लेखक िे महसस ककया कक जैसे उिके हदमाग की गनत मंद पड़ गई हो। धीरे -धीरे उसका हदमाग
िलिा भी बंद हो गया। उन्हें लगा कक मािो वे अिंतकाल से जी रहे हैं। वे भत और भववष्य दोिों का चिंति
ि करके वतवमाि काल में जी रहे हों।
प्रश्ि 12.‘िर चिे हम कफदा’ िववता िा प्रनतपाद्य अपिे शब्दों में लिखिए। [3]
उत्तर: इस कववता में दे शभक्क्त की भाविा को प्रनतपादत ककया गया हैं। इस कववता को प़िकर हमें अपिे दे श
के सैनिकों पर गवव होता है । इि सैनिकों िे अत्यंत ववषम पररक्थथनतयों का सामिा करते हुए दे श की रक्षा हे तु
अपिा अमर बललदाि हदया। मरते दम तक वे दे श रक्षा के प्रयासों में लगे रहे और अपिी इस धरोहर को अपिे
साचथयों को सौंपकर वीरगनत को प्राप्त हुए। दे श की धरती अत्यंत पववत्र है । हम सभी को लमलकर इस दे श की
रक्षा करिी है। इस दे श की रक्षा में अिेक सैनिकों िे अपिा रक्त बहाया है। हहमालय हमारे दे श के माि-
सम्माि का प्रतीक है । हमें ककसी भी हालत में इसके लसर को झुकिे िहीं दे िा है ।
प्रश्ि 9.परम्पराएाँ या मानयताएाँ िब बींधि िगिे िगें तो उििा टूट िािा ही क्यों अच्छा है ? [3]
उत्तर: यथाथव में परं पराएूँ या मान्यताएूँ जब बंधि बि बोझ लगिे लगे तब उिका िि जािा ही अच्छा है क्योंकक तभी हम
समय के साथ आगे ब़ि पाएूँगे। इस कहािी के सन्दभव में दे खा जाए तो तताूँरा-वामीरो का वववाह एक गलत परं परा या
मान्यता जो कहती है कक कोई वववाह गाूँव से बाहर के युवक के साथ िहीं हो सकता, के कारण िहीं हो सकता था क्जसके
कारण उन्हें जाि दे िी पड़ती है । इस तरह की परं पराएूँ या मान्यताएूँ ककसी का भला करिे की जगह िुकसाि करती हैं
बंधिों में जकड़कर व्यक्क्त और समाज का ववकास, सख
ु -आिंद, अलभव्यक्क्त आहद रूक जाती है । ‘तताूँरा-वामीरों’ िे इन्हें
तोड़िे के ललए अपिे प्राणों की आहुनत दे दी।
प्रश्ि 9 िारतूस’ पाठ िे आधार पर वज़ीर अिी िी चाररबत्रि ववशेषताओीं िा उदाहरण सहहत वणदि िीजिए।
कारतस’ पाठ के आधार पर वज़ीर अली की िाररबत्रक ववशेषताएूँ यह हैं-वज़ीर अली एक सच्िा दे शभक्त और थवालभमािी
सैनिक है । वह हहंदथ
ु ताि को गल
ु ाम बिािे वाले अंग्रज
े ों से िफरत करता है तथा ककसी भी प्रकार से अंग्रेजों को हहंदथ
ु ताि
से भगा दे िा िाहता है । वज़ीर अली अत्यंत वीर एवं साहसी है । दश्ु मि भी उसकी वीरता का लोहा मािते हैं। वह किवल
कॉललंज के खेमे में निडर भाव से जाकर उससे कारतस लेकर िला आता है । वज़ीर अली एक कुशल और ितुर शासक है ।
उसिे अपिे पाूँि महीिे के शासि में अवध की ररयासत को अंग्रेजी प्रभाव से थवतंत्र कर हदया था।
(ि) मीराबाई िे श्रीिृष्ण से अपिी पीड़ा हरिे िी प्राथदिा किस प्रिार िी है ? अपिे शब्दों में लिखिए। [3]
उत्तर: (क) मीराबाई श्रीकृष्ण से अपिी पीड़ा हरिे की प्राथविा करती हुई कहती हैं- हे प्रभु! क्जस प्रकार आपिे कई भक्तों
को अिेक प्रकार से सहायता कर उिके दख
ु को दर ककया है उसी प्रकार आप मेरी भी पीड़ा को दर कर मझ
ु े सांसाररक
कष्िों से दर करें वह कहती हैं कक आपिे द्रौपदी को वथत्र ब़िाकर भरी सभा में उसकी लाज रखी। िरलसंह का रूप धारण
करके हहरण्यकश्यप को मार कर प्रहलाद को बिाया था। मगरमच्छ िे जब हाथी के पैर को अपिे मुूँह में दबोि ललया तो
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उसे बिाया और उसकी पीड़ा को दर ककया था। उसी प्रकार मेरी भी सभी प्रकार की पीड़ाओं और बाधाओं को आप दर
करें ।
(ि) पवदतीय प्रदे श में वषाद िे सौनदयद िा वणदि ‘पवदत प्रदे श में पावस’ िे आधार पर अपिे शब्दों में िीजिए। [3]
उत्तर: (ख) ‘पववत प्रदे श में पावस’ कववता के माध्यम से सुलमत्रािंदि पंत िे पववतीय प्रदे श में वषाव ऋतु के सौंदयव का सुंदर
चित्रण ककया है । वषाव ऋतु में पववतों पर हररयाली छा जाती है , सुंदर फल खखल जाते हैं। िदी, तालाब, तलैया आहद पािी से
भर जाते हैं। वषाव के कारण पेड़ और पववत अदृश्य हो जाते हैं। पववत मािो पंख लगाकर कहीं उड़ गए हों तथा तालाबों से
उठता हुआ कोहरा धुएूँ की भाूँनत प्रतीत होता है । पववतों से बहते हुए झरिे मोनतयों की लडड़यों से प्रतीत होते है । जब
मौसम साफ होता है । तो यह सब कुछ बड़ा सुंदर हदखाई दे ता है । आकाश में तेजी से इधर-उधर घमते हुए बादल, अत्यंत
आकषवक लगते हैं।

प्रश्ि 11.‘मिुष्यता’िववता में िवविे सबिो एि साथ होिर चििे िी प्रेरणा क्यों दी है ? इससे समाि िो क्या
िाभ हो सिता है ? स्पष्ट िीजिए।
अथवा ‘आत्मत्राण िववता में िवव िी प्राथदिा से क्या सींदेश लमिता है ? अपिे शब्दों में लिखिए।
उत्तर:‘मिुष्यता’ कववता में कवव िे सबको एक साथ िलिे की प्रेरणा इसललए दी है ताकक समाज में बंधुत्व,
एकता, सौहाद्रव और आपसी हे लमेल का भाव कायम रहे । सभी एक वपता परमेश्वर की संताि हैं इसललए सभी को
प्रेम भाव से रहिा िाहहए, सहायता करिी िाहहए और एक होकर िलिा िाहहए। इससे हमारे बीि ईष्र्या-द्वेष के
भाव का अंत हो जाएगा। मैत्री भावे से आपस में लमलकर रहिे से सभी कायव सफल होते हैं, ऊूँि-िीि, वगव भेद
िहीं रहता और समाज का कल्याण होता है । समथव भाव भी यही है कक हम सबकी भलाई करते हुए, सबको
साथ लेकर िलते हुए अपिी कल्याण करें । बंधत्ु व के िाते हमें सभी को साथ लेकर िलिा िाहहए क्योंकक
समाज का सही मायिे में ववकास ओर लाभ तभी संभव है जब सबका ववकास हो। अथवा
‘आत्मत्राण’ कववता में कवव की प्राथविा से यह संदेश लमलता है कक मिष्ु य के सामिे ककतिी भी कहठि
पररक्थथनतयाूँ आएूँ उसे ईश्वर पर से अपिा ववश्वास िहीं खोिा िाहहए। उसे संसार के सभी लोगों से वंििा
लमले पर प्रभु पर से उसका ववश्वास डगमगाए िहीं। मािव को ईश्वर से दख
ु ों को दर करिे की प्राथविा िहीं
अवपतु उसकी प्राथविा होिी िाहहए कक ईश्वर उसे इतिी शक्क्त दे क्जससे वह उि दख
ु ों को थवयं से दर कर
सके। मिुष्य को प्रभु से समथत ववपदाओं से लड़िे की आत्मशक्क्त की प्राथविा करिी िाहहए। समय ककतिा भी
ववषम हो, उसे केवल धैयव के साथ थवयं से उि क्थथनतयों से जझिा िाहहए और प्रभु से मात्र आत्मशक्क्त की
याििा होिी िाहहए।
प्रश्ि 11.‘िर चिे हम कफदा’ िववता िा प्रनतपाद्य अपिे शब्दों में स्पष्ट िीजिए। [3]
अथवा
िववता िी पूष्ठभूलम में ‘तोप’ िी अतीत में भूलमिा और उसिी वतदमाि जस्थनत िा वणदि िीजिए। िवव िो
क्यों िहिा पड़ा कितिी ही िडी हो तोप “एि हदि तो होिा ही है उसिा मुि बींद।”
उत्तर: (क) ‘कैफी आजमी’ द्वारा रचित यह गीत सि 1962 के भारत-िीि युद्ध की ऐनतहालसक पष्ृ ठभलम पर
ललखा गया है। िीि िे नतब्बत की ओर से भारत पर आिमण ककया था और भारतीय वीरों िे इस आिमण
का सामिा वीरता से ककया। दे श के सम्माि और रक्षा के ललए सैनिक हर िुिौनतयों को थवीकार करके अपिे
जीवि का बललदाि करिे के ललए तैयार रहते हैं। अपिी अंनतम साूँस तक दे श के माि की रक्षा कर उसे शत्रुओं

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से बिाते हैं। कवव इस गीत के द्वारा दे शभक्क्त की भाविा को ववकलसत कर समथत दे शवालसयों को जागरूक
करिा िाहता है। उत्तर हचथयारों से लैस सेिा तब तक कारगर िहीं होती जब तक कक उिमें अदम्य साहस और
उत्साह ि हो। यह गीत उसी उत्साह और अदम्य साहस को बिाए रखिे का काम करता है।
अथवा
‘ववरे ि डंगवाल’ द्वारा रचित कववता ‘तोप’ एक प्रतीकात्मक कववता है । अपिी पष्ृ ठभलम में शरू
ु आत के हदिों में
अंग्रेजों के आतंक का प्रतीक था। अपिे जमािे में तोप िे ि जािे ककतिे शरमाओं की धक्जजयाूँ उड़ा दी थीं।
पर, यह मात्र धरोहर के रूप में थथावपत हो गई। लड़के ऊपर खेलते हैं तथा पक्षी इसके अंदर घोंसलो बिािे का
काम करते हैं। दर-दर से सैलािी इसे दे खिे आते हैं। वतवमाि में इसकी तेज समाप्त हो गई है । इसी तोप को
प्रतीक बिाकर कवव कहता आतंक का शासि अचधक हदिों तक िहीं िल सकता है। कोई ककतिा भी शक्क्तवाि
हो तोप की तरह एक हदि उसके आतंक का साम्राजय समाप्त हो ही जाता है।
प्रश्ि 12. िल्पिा िीजिए कि एि पत्रिार िे रूप में आप हररहर िािा िे बारे में अपिे समाचार पत्र िो क्या-
क्या बतािा चाहें गे और समाि िो उसिे उत्तरदानयत्व िा बोध िैसे िराएींगे? [3]
अथवा
टोपी और इफ्फि अिग-अिग धमद और िानत से सींबींध रिते थे पर दोिों एि अटूट ररश्ते से बींधे थे। इस
िथि िे आिोि में ‘टोपी शुक्िा’ िहािी पर ववचार िीजिए।
उत्तर: एक पत्रकार के रूप में हररहर काका के बारे में अपिे समािार पत्र को सचित ककया जाएगा कक धि की
लालसा में उसके सगे संबंधी उसे परे शाि कर रहे हैं। अपिे समािार पत्र में समाज की शीषव संथथा के पुरोधा
महंत के िररत्र के बारे में ववथतार वववरण दे िा िाहूँगा। धि केंहद्रत मािलसकता से समाज को बिािे के ललए
लोगों को अपित्व व सौहाद्रव से भरे सामाक्जक जीवि जीिे के लाभ से पररचित करवािा होगा। इसके ललए
िुक्कड़ िािक के आयोजि तथा िी.वी. आहद पर घर-घर की कलह आहद को हदखािे के थथाि पर प्रेम, सौहादव
व भाईिारे की भाविा से ओतप्रोत धारावाहहकों का प्रसारण ककया जािा िाहहए लोग जागरूक हों और अपित्व
के महत्व को समझते हुए अपिे उत्तरदानयत्व का निववहि कर सकें।
अथवा
‘िोपी शुक्ला’ पाठ समाज के ललए सांप्रदानयक सौहादव का संदेश है । िोपी और इफ्फि अलग-अलग धमव और
जानत से संबंध रखते थे पर दोिों एक अिि ररश्ते से बंधे थे। हहंदथ
ु ताि में हहंद और मुसलमािों के बीि प्रेम
और भाईिारे से भरे वातावरण की िाह रखिे वालों के ललए यह एक प्रेरणा प्रद रििा है। कहािी में िोपी और
इफ्फि का पालि-पोषण ‘, धालमवक कट्िरता से भरे तथा दो अलग-अलग परं पराओं से जुड़े पररवारों में हुआ था,
ककं तु दोिों एक-दसरे के क्जगरी दोथत बिे, दोिों की कहािी एक-दसरी के बबिा अधरी थी। यहद इसी प्रकार
कट्िरवाद को हिाकर दोिों कौमों के लोग एक-दसरे के साथ भाईिारे का संबंध जोड़ लें, तो दे श में मजहबी दं गों
में इंसानियत का खि बहिे से रोका जा सकता है ।
प्रश्ि 9. मैदाि में सभी ि होिे दे िे िे लिए पलु िस बींदोबस्त िो वववरण दे ते हुए सभ
ु ाष बाबू िे िि
ु स
ू और
उििे साथ पलु िस िे व्यवहार िी चचाद िीजिए।
अथवा
बढ़ती आबादी िे पयादवरण पर पड़िे वािे दष्ु प्रभावों िी चचाद िरते हुए स्पष्ट िीजिए कि, “िेचर िी सहिशजक्त
िी भी एि सीमा होती है।”
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उत्तर: पुललस कलमश्िर का िोहिस था कक कोई सभा िहीं हो सकती और यहद सभा में भाग लेंगे तो दोषी समझे
जाएूँगे। इधर कौंलसल का िोहिस था कक मोिम
ु ें ि के िीिे िार बजकर िौबीस लमिि पर झंडा फहराया जाएगा
तथा थवतंत्रता की प्रनतज्ञा प़िी जाएगी। खल
ु ा िैलेंज दे कर ऐसी सभा पहले िहीं की गई थी और यह सभा तो
कहिा िाहहए कक खल
ु ी लड़ाई थी। िार बजकर दस लमिि पर सभ
ु ाष बाब जल
ु स लेकर आए। उिको िौरं गी पर
ही रोका गया और पलु लस िे लाहठयाूँ िलािी शरू
ु कर दी। पलु लस अत्यंत बबवर हो िक
ु ी थी। पर सभ
ु ाष बाब
जयोनतमवय गांगल
ु ी के साथ आगे ब़िते रहे । सभ
ु ाष बाब को पकड़ ललया गया और गाड़ी में बैठाकर लालबाजार
लॉकअप में भेज हदया गया। इस प्रकार पलु लस िे आंदोलिकाररयों के साथ अत्यंर िर व्यवहार ककया।
अथवा
ब़िती हुई आबादी का पयाववरण पर बड़ा ही प्रनतकल प्रभाव पड़ा। रहिे योग्य भलम की कमी दर करिे के ललए
मिुष्य िे समद्र
ु को पीछे धकेलिा शुरू कर हदया तथा पेड़ों को राथते से हिािा शुरू कर हदया। इससे पयाववरण
असंतुलि की क्थथनत आ गई, मौसम िि अव्यवक्थथत हो गयो, गमी में बहुत अचधक गमी पड़िे लगी, बेवक्त
की बरसातें होिे लगीं, जलजले, सैलाब तथा तफाि आकर हाहाकार मिािे लगे तथा नित्य िई-िई बीमाररयाूँ
धरती पर ब़ििे लगीं। धरती के सहिे की भी एक सीमा होती है। समय-कुसमय आिेवाली प्राकृनतक आपदाएूँ
इिके ही पररणाम हैं। जब सहिशीलता की हद हो गई तब समुद्र िे गुथसे में भरकर इतिा भयािक रूप धारण
कर ललया कक मुंबई वाले त्राहह-त्राहह कर उठे । इस कथि के द्वारा यही संदेश हदया गया है कक मिुष्य प्रकृनत
का अिुचित दोहि ि करे , वरिा प्रकृनत द्वारा रौद्र रूप में भरकर ककया गया वार उससे झेला िहीं जाएगा।
प्रश्ि 11.िववता िे आधार पर मिुष्यता’ िे गुणों/िक्षणों िी चचाद ववस्तारपूवि
द िीजिए। [3]
अथवा
िववता िे आिोि में सैनिि िे िीवि िी चुिौनतयों िा उल्िेि िरते हुए भाव स्पष्ट िीजिए-‘राम भी तुम,
तुम्ही िक्ष्मण सागथयो।
उत्तर:‘मिुष्यता’ कववता में कवव िे मिुष्यता के अिेक गुणों की ििाव की है ताकक समाज में बंधुत्व, एकता
सौहादव और आपसी हे लमेल का भाव कायम रहे । सभी एक वपता परमेश्वर की संताि हैं इसललए सभी को प्रेम
भाव से रहिा िाहहए, सहायता करिी िाहहए और एक होकर िलिा िाहहए। इससे हमारे बीि ईष्र्या-द्वेष के
भाव का अंत हो जाएगा। मैत्री भाव से आपस में लमलकर रहिे से सभी कायव सफल होते हैं, ऊूँि-िीि, वगव भेद
िहीं रहता और समाज का कल्याण होता है । कवव िे मािवता के गुणों को दे दीप्यमाि रखिे वाले अिेक
ऋवषयों और मुनियों की ििाव, कववता में करी है। मिुष्यता का सबसे बड़ा गुण यही है कक हमें सबकी भलाई
करते हुए, सबको साथ लेकर िलते हुए ही अपिी कल्याण करिा िाहहए। समाज का सही मायिे में ववकास ओर
लाभ तभी संभव है जब सबका ववकास हो।
अथवा
सैनिकों का जीवि रोमांि से भरा हुआ परं तु बड़ा ही कष्िमय होता है । कवव सैनिकों से कहता है उन्हें सीमा पर
अपिे खि से लक्ष्मण रे खा खींि दे िी िाहहए ताकक उसे लाूँघकर कोई रावण रूपी आतताई अंदर िहीं आ सके।
यहद कोई हाथ हम पर उठिे लगे तो उसे हाथ को फौरिे तोड़ दे िा िाहहए। यहाूँ पर मातभ
ृ लम की तल
ु िा सीता
से की गई है क्जिका दामि छिे का कोई साहस ि कर सका। सैनिक यह भी प्रेरणा दे ता है कक हम ही में राम
भी हैं और लक्ष्मण भी। अथावत ् हम हर तरह से अपिी मातभ
ृ लम की रक्षा करिे में सक्षम हैं। यहीं वीर और रौद्र
का लमला जुला रूप लमलता है ।
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प्रश्ि 12.‘स्िूि हमारे लिए ऐसी िगह ि थी िहााँ िुशी से भागे िाए” कफर भी िेिि और साथी स्िूि क्यों
िाते थे? आि िे स्िूिों िे बारे में आपिी क्या राय है ? क्यों? ववस्तार से समझाइए। [3]
अथवा
हररहर िािा िे ववरोध में महीं त और पि
ु ारी ही िहीीं उििे भाई भी थे। इसिा िारण क्या था? हररहर िािा
उििी राय क्यों िहीीं माििा चाहते थे। ववस्तार से समझाइए।
उत्तर:लेखक को थकल जािा बबलकुल भी अच्छा िहीं लगता था। लेककि जब पी. िी. साहब उन्हें परे ड में
शाबाशी दे ते तो उन्हें बहुत अच्छा लगता था। थकाउि की परे ड में जब उन्हें धल
ु े हुए साफ कपड़े और गले में
दोरं गी रूमाल के साथ परे ड करिे को लमलता तो भी उन्हें मजा आता था। परे ड के दौराि उिके बिों की ठक-
ठक उिके कािों में मधुर संगीत की तरह लगती थी। इि सब कारणों से लेखक और उिके साथी थकल जाते
थे। आज के थकल प्रािीि काल के थकल से लभन्ि हैं। यहाूँ शारीररक दं ड दे िा वक्जवत है । बच्िों के आकषवण के
अिेक साधि थकलों में उपलब्ध हैं। कक्षाओं और पाठ्यिम की व्यवथथा बाल मिोववज्ञाि के अिुसार करी गयी
है। इि सबके ललए सबसे बड़ा कारण बच्िों को थकल के प्रनत लगाव को ब़िावा दे िा है।
अथवा
हररहर काका के ववरोध में उिके भाइयों के साथ ठाकुरबाड़ी का महं त और पुजारी भी था। इि लोगों के ववरोध
का सबसे बड़ा कारण उिकी जायदाद थी। उिके सब भाई िाहते थे हररहर काका समथत जायदाद उिके िाम
ललख दें और महंत िाहते थे कक हररहर काका समथत जायदाद मठ के िाम कर दें । ये लोग समथत िैनतक
मल्यों को ठुकराकर, सभी प्रकार की मयावदाओं को तार-तार कर धि और जमीि की ललप्सा से ग्रलसत होकर
हररहर काका के साथ अमािवीय व्यवहार कर रहे थे। हररहर काका को अिुमाि हो िुका था कक वे यहद इि
लोगों की बात मािकर अपिी संपवत्त इि लोगों के िाम कर दे ते हैं तो इन्हें दध की मक्खी की तरह निकाल
फेकेंगे। उिके ललए भरपेि भोजि लमलिा मुक्श्कल हो जाएगा। इसललए वे उिकी राय िहीं माि रहे थे।
प्रश्ि 9.“बड़े भाई साहब’ िहािी िे आधार पर िगभग 60 शब्दों में लिखिए िी िेिि िे समूची लशक्षा प्रणािी
िे किि पहिुओीं पर व्यींग्य किया है ? आपिे ववचारों से इसिा क्या समाधाि हो सिता है ? तिदपूणद उत्तर
लिखिए। अथवा
‘अब िहााँ दस ू रों िे दःु ि से दःु िी होिे वािे पाठ िे आधार पर स्पष्ट िीजिए कि बढ़ती हुई आबादी िा
पशुपक्षक्षयों और मिुष्यों िे िीवि पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ? इसिा समाधाि क्या हो सिता है ? उत्तर
िगभग 60 शब्दों में दीजिए।
उत्तर: ‘बड़े भाई साहब’ पाठ में लेखक िे समिी लशक्षा के निम्ि तौर-तरीकों पर व्यंग्य ककया है।
(i) इस लशक्षा प्रणाली में अंग्रेजी लशक्षा पर बहुत अचधक बल हदया जाता है । इसके बबिा बालक का परा ववकास
िहीं हो पाता है।
(ii) इस प्रणाली में रिं त ववद्या को ब़िावा हदया जाता है , जो बालक के थवाभाववक ववकास के ववपरीत है।
(iii) इस लशक्षा प्रणाली में बीजगखणत और रे खागखणत को समझिा लोहे के ििे िबािे जैसा है।
(iv) इस लशक्षा में इंग्लैंड को इनतहास प़ििा जरूरी है। वहाूँ के बादशाहों के िाम याद रखिा आसाि िहीं है।
इसका कोई लाभ भी िहीं है।
(v) इस लशक्षा प्रणाली में बे-लसर-पैर की बातें प़िाई जाती हैं क्जसका कोई लाभ िहीं है।
(vi) छोिे -छोिे ववषयों पर लंबे-िौड़े निबंध ललखिे को कहा जाता है।
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हम लेखक के वविारों से सहमत हैं क्योंकक इस प्रकार की लशक्षा प्रणाली में बालकों की मौललकता िष्ि हो जाती
है, उसको थवाभाववक ववकास िहीं हो पाता। अथवा
ब़िती हुई आबादी का पयाववरण पर बहुत दष्ु प्रभाव पड़ा। इस ब़िती हुई आबादी िे प्रकृनत के संतल
ु ि को गड़बड़ा
हदया। इस आबादी िे समद्र
ु को पीछे धकेलिा शुरू कर हदया, पेड़ों को राथते से हिािा और प्रदषण को ब़िािा
शरू
ु कर हदया। पशु-पक्षी बक्थतयाूँ छोड़कर कहीं भाग गए। वातावरण में गमी होिे लगी। इस प्रकार ब़िती
आबादी से पयाववरण प्रदवषत हो गया। ईश्वर िे धरती के साथ-साथ अिचगित ऐसी वथतए
ु ूँ बिाई हैं, जो मािव
हहत में हैं, लेककि थवयं को बचु धमाि समझिे वाला मािव इि सबसे लाभ उठाकर थवाथी हो गया। थवाथव के
वशीभत होकर उसिे िई-िई खोज करिी शुरू कर दीं। िई-िई खोजों की लालसा में उसिे प्रकृनत का अत्यक्ष्ि
कक दोहि करिा शुरू कर हदया। दोहि इतिा अचधक था कक सहिशील प्रकृनत व्याकुल हो उठी। प्रकृनत के इस
असंतुलि का पररणाम यह भी हुआ कक पक्षक्षयों िे बक्थतयों से भागिा शुरू कर हदया। अब भयंकर गमी पड़िे
लगी। भकंप, बा़ि, तफाि जैसी प्राकृनतक आपदा आिे लगीं। नित्य िए-िए रोग पिपिे लगे।
इि सभी समथयाओं का समाधाि है कक आबादी पर रोक लगाई जाए। प्रदषण को नियंबत्रत ककया जाए और
प्रकृनत ‘ के साथ छे ड़-छाड़ बंद करके अचधकाचधक वक्ष
ृ ारोपण ककया जाए।
प्रश्ि 12. मीराबाई िे हरर से स्वयीं िा िष्ट दरू िरिे िी िो वविती िी है । उसमें स्वयीं िा िृष्ण से िौि-सा
सींबींध बताया है ? जिि भक्तों िे उदाहरण हदए हैं, उिमें से एि पर िी गई िृष्ण िृपा िो सींक्षेप में लिखिए।
उत्तर: मीराबाई िे हरर (श्रीकृष्ण) से थवयं के कष्िों को दर करिे की जो वविती की है उसमें उन्होंिे थवयं को
श्रीकृष्ण की सेववका के रूप में दशावया है । वह श्रीकृष्ण की अिन्य भक्त थीं। वह थवयं को चगररधर की दासी
कहती हैं। वह उिसे अपिे कष्िों को दर करिे की प्राथविा करती हैं। हरर से अपिी पीड़ा को हरिे की वविती
करते समय मीरा उन्हें समय-समय पर की गई उिकी दया का थमरण कराती हैं।
मीरा िे हरर से अपिी पीड़ा हरिे की वविती करते समय उिकी उदारता के अिेक उदाहरण हदए हैं। द्रौपदी के
िीरहरण का उदाहरण-हक्थतिापुर की सभा में जब पांडव कौरवों से जुए में सब कुछ हार गए थे, तब उन्होंिे
द्रौपदी को भी दांव पर लगा हदया, परं तु दभ
ु ावग्यवश वे द्रौपदी को भी हार बैठे। जब दश
ु ासि भरी सभा में पांडवों
का अपमाि करिे के उद्दे श्य से द्रौपदी का िीरहरण करिे लगा तो द्रौपदी िे भगवाि श्रीकृष्ण को थमरण कर
सहायता के ललए प्राथविा की। उिकी करुण पुकार सुि श्रीकृष्ण िे उिकी साड़ी के िीर को इतिा ब़िा हदया कक
दश
ु ासि साड़ी खींिते-खींिते थक गया, परं तु द्रौपदी का िीरहरण ि कर पाया। इस प्रकार श्रीकृष्ण िे द्रौपदी की
लाज की रक्षा की।
प्रश्ि 13. आप िैसे िह सिते हैं कि हररहर िािा सींयुक्त पररवार िे मूल्यों िे प्रनत एि समवपदत व प्रेरि
मािव थे। पहठत पाठ िे आधार पर समझाइए। [3]
उत्तर: हररहर काका िार भाई थे। हररहर काका की दो शाहदयाूँ हुई थीं, परं तु उिके कोई बच्िा िहीं हुआ और
उिकी दोिों बीववयाूँ भी मर िक
ु ी थीं। उिका पररवार एक संयक्ु त पररवार था। पररवार के पास 60 बीघा जमीि
थी। उस हहसाब से हररहर काका के हहथसे में 15 बीघा जमीि आती थी। वैसे तो उिके भाइयों िे अपिी
पक्त्ियों से कह रखा था कक वे हररहर काका की खब सेवा करें -पर वे इस बात का पालि िहीं करती थीं।
हररहर काका को खािे में बिाखि
ु ा भोजि ही लमलता था। जब कभी उिकी तबबयत खराब हो जाती, तो उिको
कोई पािी तक िहीं पछता था। अपिे ही घर में उिके साथ बहुत बुरा व्यवहार ककया जाता था, परन्तु इतिा
सब कुछ होिे के बाद भी वह अपिे भाइयों के साथ ही रहिा िाहते थे। वे संयुक्त पररवार के मल्यों के प्रनत
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एक समवपवत व प्रेरक मािव थे। यहद वह िाहते तो अपिे पररवार से अलग रहकर सुखी जीवि बबता सकते थे,
परन्तु उन्हें लमलजल
ु कर रहिे में ही सख
ु की अिभ
ु नत होती थी। उिके भाइयों िे उिकी सेवा करके उन्हें
प्रभाववत करिा िाहा क्जससे कोका अपिे हहथसे की जमीि उिके िाम करके उन्हें समद्
ृ ध कर दें , परं तु जब
इससे भाइयों को कुछ प्राप्त ि हुआ तो उिकी पक्त्ियों तथा बच्िों िे काका को जबरि घर में कैद कर ललया।
उन्हें बरु ी तरह मारा-पीिा और जमीि के कागजातों पर जबरदथती अंगठा लगवा ललया। हररहर काका अपिे
पररवार के थवाथव को भली-भाूँनत समझते थे, परं तु कफर भी वे अपिे पररवार के प्रत्येक सदथय से अत्यंत प्रेम
करते थे।
प्रश्ि 13.िीवि मूल्यों िे आधार पर इफ्फि और टोपी शुक्िा िे सींबींधों िी समीक्षा िीजिए। [3]
उत्तर: इफ्फि और िोपी शुक्ला दो लभन्ि-लभन्ि धमों को माििे वाले हैं। इफ्फि मस
ु लमाि है तो िोपी शक्
ु ला पक्का हहंद
है । धालमवक लभन्िता होते भी दोिों में प्रगा़ि लमत्रता है । िोपी इफ्फि को बहुत िाहता है । उसके वपता का तबादला होिे
पर वह दःु खी होता है । वह इफ्फि की दादी को प्यार करता है तथा दादी भी उसे बहुत प्यार करती है । दोिों के सम्बन्ध
मािवीय धरातल पर हैं। इिके बीि में धमव की दीवार िहीं है । यही हमारी सामाक्जक संथकृनत की प्रमुख ववशेषता है । हमें
सभी धमों का सम्माि करिा िाहहए। मािवीय प्रेम सवोपरर है । धमव को इसमें बाधक िहीं बििा िाहहए।

प्रश्ि 9.“अब िहााँ दस


ू रे िे दःु ि से दःु िी होिे वािे पाठ िे आधार पर ‘ लिखिए कि प्रिृनत में असींतुिि क्यों
हो रहा है ? इसिे पररणाम क्या हैं ?
उत्तर: मिुष्य िे अपिी बद्
ु चध के बल पर अन्य प्राखणयों का अचधकार छीि ललया है । इससे प्रकृनत में असंतुलि
आ गया। प्रकृनत में आए असंतुलि का यह पररणाम हुआ कक पक्षक्षयों िे बक्थतयों में जािा बन्द कर हदया। अब
गमी का मौसम जयादा लम्बा हो गया है और तापमाि में बहुत ब़िोत्तरी होती जा रही है । मौसम का िि बबगड़
गया है। बेवक्त बरसात होिे लगी है । भकंप, बा़ि, तफाि जैसी प्राकृनतक आपदाएूँ आिे लगी हैं। नित्य िये रोग
पिपिे लगे हैं। प्रदषण हदि-ब-हदि ब़िता जा रहा है।
इस असंतल
ु ि से मौसमों का आिा-जािा अनिक्श्ित हो गया है। अब गमी में जयादा गमी पड़िे लगी है , वषाव
कभी समय पर िहीं होती, कभी बहुत कम होती है, कभी बहुत जयादा होती है और बा़ि ला दे ती है । प्रकृनत में
आए असंतल
ु ि के कारण िए-िए रोगों का प्रकोप ब़िता जा रहा है।

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