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Paarad
Paarad
पूर्व लेखो में हमने जाना की र्ैध संलग्न कों भी चतर्ु व गव कहा जाता है. ‚चार गनु ा ऄच्छा‛ जो
हहंदू मान्यता की मूल अधार हनहत है. सभी ईपरोक्त गहतहर्हधयों से – प्राचीन काल से ऄथव
की भूहमका का ऄपने अप में एक ऄलग ही महत्र् रहा है. ऄगर हम ऄपना जीर्न पूणवता के
साथ जीना चाहते है तो जीर्न में स्थैयवता लाना ऄत्यंत अर्श्यक है. और ये स्थैयवता के र्ल
देर्ी लक्ष्मी जी प्रदान कर सकती है. आसीहलए ये कहार्त भी बहुत प्रहसद्द है की ऄगर अप
ऄपने शत्रओ ु कों जड़ से नष्ट करना चाहते हो तो ईसके सभी अहथव क स्त्रोतों पर घात करो
र्ो ऐसे ही तबाह हो जाएगा.
ऄहधकाश लोग ऐसा मानते है की अहथव क पक्ष या अहथव क बचत ‚तंत्र प्रयोग‛ से नष्ट हकया
जा सकता है. आसमें कोइ दो मत नहीं की ऐसा हो सकता है. परन्तु यह पूणव सत्य नहीं...
क्यक
ु ी जब तक अप सदगरुु देर् की छत्रछाया में है तब तक अपका हर्नाश ऄसंभर् है, हााँ ये
ऄलग हर्षय है की हम आस् तथ्य कों स्र्ीकार नहीं कर पाते क्यकु ी हमारा ज्ञान भण्डार
आतना हर्शाल या हर्स्ततृ होने के बार्जूद हम ऄपनी ईत्कं ठा कों ऄपने तक ही रखते है...
अर्श्यकता है तो सत्य कों समझने की... हमत्रों, सदगरुु देर् (डा. नारायण दत्त श्रीमाली जी)
ने आस् भ्रम कों जड़ से हमटाने का ऄथक प्रयास हकया है यहााँ तक की ईन्होंने ऄपना सम्पूणव
जीर्न ऄध्यात्म का ज्ञान और ईसके ऄनंत गढ़ु रहस्यो कों देने में व्यतीत कर हदया...पर हम
हकतना मोल समझ पाये है आस बात का ये तो हम ही जानते है...है ना...
मैंने सदगरुु देर् के हर्चारों कों समझने का तच्ु छ प्रयास हकया है और जो सफलता मझु े मेरे
जीर्न में हमली है र्ह सदगरुु देर् जी के ज्ञान और अशीर्ाव द से हमली है और जो ईन्होंने
ईनके हशष्यों में भी हनस्र्ाथव हर्तररत कीया है.
ऄक्सर लोग सोचते है की ‚तंत्र बाधा‛– हजससे ऄथव का मागव हबलकुल शन्ु य हो जाता है –
ये कथन सर्वथा गलत है...ऄगर अप धन का ऄजव न करते है जो दैर्ी शहक्त से बंहधत है या
जो देर्ी लक्ष्मी से कीहलत है तो ईसके खोने के संयोग एकदम शन्ु य समान है. आससे कोइ
फकव नहीं पड़ता की अप हकसी ‚तंत्र बाधा‛ से गज ु रे हो पहले परन्तु अप पनु ः लक्ष्मी
कीलन हर्धान करे हजसके बाद अपकी सम्रहि और संपहत्त कों हकसी भी प्रकार की हाहन या
‘तंत्र बाधा’ हो ही नहीं सकती.
जरा एक बार सदगरु ु देर् जी के ईन सनु हरे शब्दों कों याद कररये - ‚कोइ भी तांहत्रक अपको
हकसी भी प्रकार की क्षहत नहीं पंहुचा सकता क्यक ु ी मै अपको आस् तरह तैयार कर रहा हू की
अप हर दष्ु प्रभार् डालने र्ाली शहक्तयो से डट कर लड़ सकते है. मै एसी शहक्तया अपकों दे
रहा हू हजनसे हकसी भी प्रकार का तंत्र प्रयोग अप पर हनष्फल हो जाएगा क्यक ु ी अप
हनहखलेश्वरानंद के हशष्य है.‛ और मैंने ऄपने व्यहक्तगत जीर्न में आसे ऄक्षरशः पाया है
ऄनभु र् हकया है. और हजतनी भी सफलता मझ ु े हमली है र्ह के र्ल ईनके अहशर्ाव दा और
ज्ञान के कारण हमली है. और यही कारण रहा है क्यों मैंने कइ बार पारद प्रयोगों कों अपके
सामने ईजागर हकया...
चहलए तो ऄब जानते है की ऐसे कौन से प्रयोग है और
क्या है पारद का ईपयोग ????
क्या ईससे स्र्णव या चांदी बनाया जा सकता है ?
क्या र्ायगु मन हिया संभर् है या नहीं ? परन्तु अज के लेख में ये हर्चारणीय हबंदु नहीं
आसहलए आस् पर कभी और बात करेंगे. मै यहां के र्ल आतना बताना चाहता हू की ऄगर पारद
पर ऄचूक तांहत्रक हिया सेकी जाए,र्ो भी हनहित समय में और समस्त संस्कारो के साथ,
हदव्य मंत्रो के सही ईच्चारण और ‚अभिभिक्त और प्राण प्रभतभित भर्ग्रह‛ की स्थापना कर
जो हिया संपन्न की जाती है ऐसे पारद के अपके घर में होने से अपके हकसी भी स्र्प्न या
आच्छाओं कों पूणव होने से कोइ रोक नहीं सकता. परन्तु हा,ाँ पारद से हर्ग्रह बनाने की हिया
हबलकुल पथृ क है और र्ैसे ही पारद हर्ग्रह पर हभन्न मंत्रो के ईच्चारणों से कायव पूहतव फल भी
ईसी हदशा में प्राप्त होंगे.
जब बात अहथव क पक्ष की अती है – हफर ‚पारद लक्ष्मी‛ की स्थापना ऄत्यंत ही
अर्श्यक है. क्यक
ु ी ईनकी स्थापना पूजा घर में हो जाने पर ऄसंभर् हस देखने र्ाली
पररहस्थया देखते ही देखते बदलते नजर अने लगती है.
सदगरुु देर् जी ने आसका रहस्य ‚भसद्देश्वरी नर्राभत्र‛ पर –‘श्री सूक्त’ पढकर ईद्घाहटत हकया
था की ऄगर हम आसे ध्यान से पढ़े तो आसमें बताया है की भले ही हमें संपहत्त ना हमले पर हमें
ये समझना होगा की ऄगर आसके ममव कों समझ हलया जाए तो सफलता सम्भर् है. क्यक ु ी
सक्त
ू के १६ श्लोक में पारद लक्ष्मी साधना की सम्पूणव भर्भध प्रभिया र्भणवत है. और ऄगर
र्णव न के ऄनस ु ार पारद लक्ष्मी कों हनहमव त हकया जाए तो ४ परुु षाथव के लाभ हमें हमल सकते
है. और ऄगर जब भी कोइ हिया ऄसफल रहे तो भी ‚पारदेश्वरी‛ हमें जीर्न भर सहायक
रहती है. आसका ऄथव हसफव धन संपहत्त के रूप ही नहीं बहकक समस्त प्रकार की संपहत्त
ऄथाव त महा लक्ष्मी के १००८ रूप की प्राहप्त होती है. और हम ऄपने नसीब पर रोते रहते है
क्यक ु ी हमने ‚श्री सक्त
ू ‛ और ‚लक्ष्मी सक्त ू ‛ के गप्तु ऄथो कों समझा ही नहीं.
पारद लक्ष्मी का हनमाव ण हर्शि ु संस्काररत पारद और राजस मंत्र से हकया जाता है. और आस
मंत्र का प्रत्येक ऄक्षर ‚िगर्ती महालक्ष्मी‛ की हदव्य काया में समाहहत है. और आसी के
पिात देर्ी हमें र्ह हदव्यता, र्ैभर् और यशस्र्ीता प्रदान करती है.
आस् प्रकार के हर्ग्रह कों अप सोमर्ार या बधु र्ार कों स्थाहपत कर सकते है.. हफर एसी कोइ
महु श्कल चाहे र्ह व्यापार से संबंहधत हो या पररर्ार, अहथव क, सामाहजक सभी प्रकार की
बाधाओं कों हमटाने में सक्षम है.परन्तु दःु ख आस् बात का है की हम ऄब भी सदगरुु देर् के
ज्ञान कों समझ नहीं पाए है और नही ईन पर पूणव हर्शर्ास. हमारा हर्शर्ास तो हहलता
डुलता रहता है. हम ईन नकली ज्योहतषो पर या ढोंहगयों पर हर्श्वास करना ज्यादा ईहचत
समझ लेते है और पररणाम ना हमलने पर ऄपने नसीब कों कोसते हे या रोते रहते है..
क्या हमलेगा आस एक ही बात कों दौहरा कर के र्ल धन, समय और ईजाव की हाहन...और
क्या ?
सो मेरे भमत्रों अगर समस्या है तो उसका समाधान िी मौजूद है.. हर प्रश्न का उत्तर होता
है. है ना ???
बहुत से लोग पारद हर्ग्रह िय कर लेते है और कहते है की ईन्हें योथोहचत पररणाम ही नहीं
हमला.. तो आसका बड़ा ही सीधा सधा ईत्तर है की ऄगर पारद पूणव संस्काररत, ऄभीमंहत्रत,
‚स्र्णव ग्रास‛ हदए हुए हो तो कोइ शंका ही नहीं ईत्पन्न हो सकती. याद रहे, ऄगर घर में
पूजा स्थान पर ऄगर प्राण प्रहतहित यन्त्र एर्ं हर्ग्रह स्थाहपत हकया हुअ हो तो ऄसफलता
की कोइ गंज ु ाइश ही नहीं बचती और नाही आस् बात का कोइ फकव पड़ता है की हकन ग्रहों की
हस्थहत क्या है या र्े अप पर हर्परीत पररणाम कर रहे हो.. ऄगर पूणव संस्काररत ‚पारद
भिर्भलंग‛ या ‚पारद लक्ष्मी‛ घर में स्थाहपत हो तो ऄकाल मत्ृ य,ु भय, रोग या दररद्रता
व्याप्त ही नहीं हो सकती और नाही कीहस प्रकार की कोइ हाहन हो सकती है.
मै सफल हुअ हू आस ज्ञान से.. आस हिया से.. और आसका लाभ अप भी ईठा सकते है.
ऄंत में आतना ही कह सकता हू की अदर कररये ऄपने सदगरुु देर् प्रदत्त ज्ञान का और एक
बार पूणव समपव ण और हर्शर्ास करके देहखये और हफर देहखये हजंदगी कै से नहीं बदलती...
और कब तक अप ऄपनी समस्याओं कों लेकर जूझते रहेंगे, रोते रहेंगे या कोसते रहेंगे ऄपने
नसीब कों ????
****NPRU****
Posted by Nikhil at 9:43 PM No comments: Links to this post
Labels: PAARAD
आज का हमारे चचाा का ििषय ‚पारद‛ है. आज के सन्दभा में ऐसा कोई नहीं जो पारद धातु
के बारे में ना जानता हो. ये एक ऐिस अद्बुत धातु है िजसमे गितशीलता, शभ्रु ता और आभा है
जो मनष्ु य कों अपनी ओर खींचती है. और आप शायद ििशिास ही नहीं करें गे पारद की
शभ्रु ता और आभा आपको िकतना आनंद प्रदान करने में सक्षम है शायद ये अिनिाचनीय है...
कल्पना कीिजये जब ये िदव्य पारद आपको स्िीकार कर लेता हे पणू ा रूप से तो ऐसा क्या है
िजसे ये प्रदान करने में सक्षम नहीं और िकतने सौभाग्यिान है आप इस परु े ब्रमांड में.. यहााँ तक
की स्िगादतू भी प्रशसं ा करें गे की कहीं न कही आपने ऐसे पण्ु य कमा िकये है िजसके फलस्िरूप
आपको भगिान ने स्ियं इस भिि के िलए चयिनत िकया है. इस िदव्य धातु के कई अितररि
नाम है – रस, रसराज, पारा, रसेंद्र, पारद, जीि, सीमि, िशििीया, दृत्रपु ा... और सबसे अनोखा
तथ्य यह है की भारत में बड़ी ही दल ु ाभता है परन्तु अिधकांश तथ्य भी के िल यही उपलब्ध है.
परु ातन काल से प्राचीन ग्रथं ों के माध्यम से एसी कई चचााए चली आई है िजसमे पारद के
प्रिास का उल्लेख है जो अब “रस” से “रसराज” िफर “रसेंद्र” और अंितम प्रिास में पारद कों
“िसद्चरस’ से संिित िकया गया है. जो मानि जाती कों कायाकल्प एिं दीघाायतु ा िो भी एसी
ििस्मयकारी शिियों के साथ एक स्िस्थ जीिन देने में समथा है.
परन्तु ध्यान रहे की ‘ससद्धरस’ का िनमााण करना कोंइ बच्चों का खेल नहीं. और इसके िलए
आधारभतू िियाओ ं कों समझना पहले आिश्यक है.क्यक ु ी जब भी आप प्रििया की शरु िात
करते है तो पारद की परोक्ष अपरोक्ष रूप से पररमाजान करना और उसे मल ू रूप से स्िीकार
करना.. क्यक ु ी इस से स्ियं पारद भी आपकों स्िीकार कर रहा है और जब ये िद्रपहलु बन
जाता है तब साधक पारद के मल ू रूप कों आत्मसात कर आगे बढ़ पाता है. पर दुःु ख की बात
ये की अिधकााँश व्यिि धैया के अभाि के कारण मिु श्कल से ८ िे सस्ं कार में भाग खड़े होते है.
प्रश्न ये उठता है की क्या महत्ता है इन संस्कारों की ?
हमारी धािमाक पस्ु तकों में ििणात ही की पारद की अशद्च
ु ता कों दरू करने के िलए प्रथम अष्ट
संस्कार अत्यंत आिश्यक है. पर ना मालमु क्यों हमारे मनीिषयो ने इस तथ्य कों गप्तु रखना
उिचत समझा बजाय उजागर करने के की पारद कों ििशद्च ु बनाने के िलए िनस्पित िििान का
बड़ा महत्ि है. और जब िनस्पितयों से शिु द्चकरण ििया की जाती है तब पारद इन िनस्पितयों
की सभी धनात्मकता कों शोिषत कर लेता है और िफर ८ िे संस्कार के पश्चात भी उसका मल ू
तत्ि ििद्यमान रहता है उसी आभा और तेज के साथ जो तपस्िी कों सफलता और सौभाग्य देने
में सहायक होता है.
अगर आप ध्यानपिू ाक समझे तो प्राचीन मनीिषयो ने पारद के अष्ट संस्कारों की तल
ु ना एक
बालक के प्राथिमक सस्ं कारों से की है. िजनका इस प्रकार से नामकरण कर “सस्ं कार” रखा है
िजसके बाद व्यिि सभी िसिद्चयो कों अिजात करने हेतु सक्षम बन जाता है. अब हम ये भी
जानेंगे की बालक की बाल्यकाल की कोंसी एसी गितिििधया होती है िजन्हें हमारे मनीिषयो ने
पारद की संस्कारो से तल
ु ना की है –
स्िेदन (गोता लगाना) – एक बालक सदेि जल में गोता लगाना खेलना कूदना अपने आप कों
दिू षत कर लेने में आनंद अनभु ि करता है.
मदान (िघसना) – पहली ििया के पश्चात िह धल ु िमटटी में अपने आप कों धसू ररत करता है
िजससे की उसे नहला के साफ़ िकया जाता है.
मर्ू ा न (मसलना) – और िफर मािलश के पश्चात बालक में तीव्र ठाक के होने के कारण िह
िनद्रा अिस्था में चला जाता है.
उत्थापन (उिदत करना) – िफर आप बालक कों जागते है.
पातन (साफ़ करना) – िफर आप बालक कों शद्च ु जल से स्नान करा के साफ़ सथु रा करते है.
िनयमन (तयार करना) – िफर आप बालक कों तैयार करते है अच्र्ी बाते समझा कर.
बोधन (उत्तेिजत करना) – िफर आप बालक कों और पररपक्ि और समझदार बनाने के िलए
एसी बाते करते है िजस से िह उकसाता होकर चीजों कों समझता है.
दीपन (भखू ) – इस प्रिास के दौरान बालक की भख
ू भी बढती है.
िफर इसके बाद बढती उम्र के अनसु ार िह खाना खाना सीखता है. ठीक उसी प्रकार से ििभीन्न
प्रकार के सस्ं कार और िनस्पितया समय अनसु ार पारद में अनोखी शिियो कों ििकिसत करती
है. और एक चरण के बाद पररणाम स्िरूप जो हमारे समक्ष जो शेष है उसे “िसद्चरस” या
“िदव्य रसेंद्र” कहते है.
पर सबसे महत्िपणू ा बात ध्यान में रखने लायक ये है की इस पणू ा यात्रा कों सफलता पिू ाक
संपन्न करने के िलए एक अहमगणु की आिश्यकता है और िो है “धैय”ा . और यही िह कड़ी
है जहां व्यिि कमजोर पड़ जात है. याद रहे, िजस धातु की ििया आप कर रहे है िह जीिित
जागतृ धातु है इसीिलए पररणाम भी आपके प्रयास और भािना पर िनभार करता है.
****NPRU****
Posted by Nikhil at 10:01 PM No comments: Links to this post
Labels: PAARAD, SWAPN SIDDHI
2.Tantrotsaundaryam Tribhuvanmohankarakah
Real definition of beauty can be told only by the person who has seen
universal beauty not only in outer form but also in internal form,
experienced it and by seeing it through his eyes has imbibed it inside
him. The moment which is filled with complete pleasure, the pleasure
which weakens all other feelings put sorrow, anxiety and worries in
dormant state. There is no place of all these feelings in the moments
when beauty is being experienced. At that time, there is only bliss
element which is imbibed inside person through his eyes by nature.
And this feeling is experienced by senses of karma and knowledge of
fortunate sadhak. One which is present in basic form is beautiful.
Where there is not present any type of deformity, which is completely
capable, universal, present in that natural form in which universal
basic power has imagined so, all these is beauty. And how one can
define it when all definitions vanish.
It is beauty which gives birth to art. How can art be possible without
beauty because art is medium to exhibit any beauty, express it?
Terming Lord Shri Krishna as Jagat Guru (Guru of world), personality
having competence in all arts is result of his inner and outer beauty.
This situation is also referred to be complete in 16 arts. Those who have
attained beauty, there is no art whose knowledge they cannot possess.
Certainly base of life is beauty only. That’s why Saundarya sadhna have
an important place in Tantra, may be they are pertaining to Yakshini,
Apsara or Kinnari. Ancient tantra and proponents of tantra have
unarguably accepted the significance of Saundarya sadhnas.
When momentary beauty can teach a person art of diving within it,
can change vision/attitude of person, can introduce him to his inner
self, can express his inner feelings outside, then one can imagine what
will happen when person imbibes this beauty permanently. That’s why
there is no chance of sadhak to face any shortcoming after success in
Apsara and Yakshini sadhna. Sadhak attains luxury, prosperity and
fame through these sadhnas. Along with it, every moment of sadhak’s
life is filled with happiness and joy. Sadhak enjoy each moment of his
life with supreme delight. These facts were put forward by Sadgurudev
among sadhak many a times, got rid of misconceptions related to
Saundarya sadhnas and compelled sadhaks to think about significance
of these sadhnas. It is also a fact that there has always been a thrill
among sadhak category regarding Apsara and Yakshini sadhnas. Many
a times, sadhak has a desire in mind that they can manifest that
beautiful princess, embodiment of beauty, attain her company and
transform their from ill-fortune of life to good fortune.
For fulfilling such desires of sadhak, Sadgurudev from time to time put
forward these prayogs in front of sadhak and made them do it too.
Along with it, he provided abstruse and secretive facts many a time for
benefits of all. In this context, he cited two herbs and told hidden points
regarding it. In fact, in field of tantra there are many facts famous
among sadhaks regarding herbs and miraculous results from their
tantric prayogs. It has been the experience of sadhaks that if at a
particular time, related procedure is done upon particular herb and it
is made energized in various ways then chances of sadhak attaining
success increases multiple times. And in some tantra sadhnas, there are
present Vidhaans related to herbs without which attaining success is
impossible. This fact pertains to accomplished herbs. But attaining Dev
herbs is very rare. If they are searched without suitable sadhna or
chanting of mantra, they are not visible or they do not exhibit their
quality if no tantric procedure is done upon them. But if any person
attains the complete procedure and do related Tantric procedure, then
herb, like gods, is capable of fulfilling any desire of sadhak.
In this context he provided the description of two special herbs
Yauvanbhringa
Shrangaatika
Yauvanbhringa means capable of providing/activating youth. In
accordance with its qualities, this rare herb is used in few selected
Aushadhi Kalps capable of doing Kayakalp. But from Tantra point of
view, this herb is extremely important. If seen from tantric point of
view, when juice of this herb is energized and cloth soaked with this
juice is worn then it gives birth to intense beauty and attraction. As a
result, Itar Yonis like Yakshini and Apsara starts roaming around
sadhak invisibly. Due to connection of this herb with Dev category,
sadhak can attain quick results. In context of apsara and yakshini
sadhnas, Sadgurudev has said regarding this herb that if person does
sadhna after wearing the dhoti soaked in juice of Yauvanbhringa then
Apsara and Yakshini feel intense attraction and sadhak feels easiness in
sadhna. Along with it, sadhak is saved from many obstacles which may
arise during sadhna duration.
Second herb relating to Saundarya sadhna which Sadgurudev told was
Shrangaatika. Qualities of this herb are in accordance with its name.
Basic meaning of Shrangaatika is to amplify and expand beauty. This
herb can also be called amazing in tantra world due to its miraculous
qualities. There are many medicinal qualities of this herb too but from
Tantra point of view, it is very important because through this herb,
person establish a contact with particular Lok. There is strong
connection of this herb with Yaksha or Dev Lok. Sadhak in order to
accomplish his Isht or fulfill his desire has to pay special attention to
consciousness in Mantra Jap and it is indisputable truth that More
concentration sadhak puts in his reciting of mantras, more quickly he
is able to connect internally with related Lok and get results. This
connection sometimes is not established which can be due to many
reasons. But this herb is called to be expanding because after doing
tantric procedure on this herb, sadhak connecting cord is connected
very quickly. Therefore sadhak keeps this herb as basic/underlying
power. Sadgurudev has said regarding it that if Aasan having qualities
of Shrangaatika herb is made and Apsara/ Yakshini or Saundarya
sadhna is done while sitting on it, then sadhak moves one more step
forward towards ascertained success since sadhak’s inner connection is
established directly with Dev Lok or Lok of related Itar Yoni.
In this manner
Yauvanbhringa Dhoti
And Shrangaatika Aasan
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िमत्रो, सदगरुु देि ने हमेशा कहा हैं की िजस यगु मे आप हो,उस यगु के अस्त्रों से ही, उस यगु
के यद्चु को जीता जा सकता हैं,और आज के यगु मे साधना मे सफलता पाना भी िकसी यद्च ु
से कम नही हैं.िजसमे साधक की िबिभन्न मनोििृ तयों का संग्राम जो होता हैं.आज जब साधना
करने के िलए जैसा िातािरण चािहये,िैसा उपलब्ध हो नही पाता हैं, न ही आज हमारा
खानपान और अन्य मानिसक,शारीररक िचतं न भी ऐसा हैं, तब िदव्य उपकरणों की
आिश्यकता पहले से भी कहीं आिधक आज हैं.और जब भी िदव्य शब्द का उल्लेख आता हैं
तो कहीं न कहीं पारद का उल्लेख या स्मरण भी हो जाता हैं.सदगरुु देि ने अथक श्रम करके इन
दलु ाभतम ििधानयि ु ििग्रहों को जन सामान्य के िलए उपलब्ध कराया और एक से एक
िदव्यतम िस्तओ ु का पररचय कराया,िजनकी उपिस्थित मात्र से उन उच्चता और िदव्यता की
भाि भिू म स्ित ही बनने लगती हैं. जो की कई कई अथो मे उच्च योिगयों के िलए भी दल ु ाभ
हैं.आज भले ही हमें लगे की पारद सहत्रिन्िता देह तारा और अन्य ििग्रह शायद कहीं
व्यिसाियकता के िलए ही.... आप सभी के सामने लाये गए हैं पर िजन्होंने भी ८० के दशक
मे सदगरुु देि द्रारा आयोिजत िशििरों मे भाग िलया हैं, िह जानते हैं. यह सब सदगरुु देि द्रारा
ही पहले प्रकाश मे लाया गया हैं.
पारद िििानं तो लप्तु प्राय ही हो गया था जो कुर् यिद शेष रहा तो उसका कुर् औिषिध स्िरुप
बस.. िह भी िगने चनु े कुर् के पास ..पर पारद और तंत्र की तो कोई बात करने तो बहुत दरू ,
यह तो लोगों को पता भी नही था पर सदगरुु देि जी द्रारा इस िििानं को पनु ुः सामने लाया
गया और जो सस्ं कार और इन के माध्यम से िजन िदव्यतम िस्तओ ु का िनमााण हो सकता हैं
तो उन्होंने एक सदगरुु देि तत्ि की मयाादानसु ार अपने सामने इनका िनमााण काया अनेको
िशििरों मे कराया.और हर िशििर मे िह पारद तंत्र के अद्भुत रहस्य उद्घािटत करते ही रहे.पर
यह हमारी कमजोरी रही की हम उनके इस प्रयास को सही अथो मे समझ ही नही पाए,और
समझना की बात भी हटा दी जाए अब तो नए साधको को यह भी नही मालमू की ऐसा भी
कुर् होता रहा.यह भाग्य या समय या पररिस्तिथयााँ कहें की उस उच्चतम िान का संरक्षण
और उसका प्रोत्साहन देने के जगह .... सभी मौन हो गए ..
और यह बहुत ही दभु ााग्यपिू ाक िस्थित हैं की िजस िििानं को सदगरुु देि जी ने अथक श्रम
करके ,उसके िकतने न दल ु ाभ ग्रंथो और प्रिििधयों का पररचय उन्होंने हम सभी को कराया.
आज उसकी यह अिस्था की, एक उच्च कोिट का पारद ििग्रह प्राप्त होना ..िकतना किठन हैं
आप सभी जानते हैं.और यह तो एक बेकार का तका हैं की मानलो की कोई भी, िकसी भी तरह
का बना हुआ पारद ििग्रह िही ाँ पररणाम भी देगा, जो सदगरुु देि ने उस पारद ििग्रह के बारे मे
िलखा हैं.सदगरुु देि जी ने पारद िििानं ,पारद िशििलंग पजू न और रसेश्वरी दीक्षा जैसे अद्भुत
के सेट्स का िनमााण कराया िजनमे आप स्ियम सनु सकते हैं की उन्होंने िकतना महत्त्ि और
गररमा के साथ इन ििषयों को हम सबके सामने रखा और यह क्यों न हो क्या जो तंत्र िििानं
का सिोच्चतम अिं तम तत्रं कहा जाता हैं.िह क्या िकसी भी तरह के िमलािट से बने पारद
ििग्रह से संभि हो जायेगा?और पारद तंत्र तो सिोच्चतम तंत्र हैं और यह तो सदगरुु देि ने ही
बताया हैं तब अब भी हमें इस िििानं और इस िििानं के पणू ा मापदडं ो पर िनमाािणत पारद
ििग्रहों पर हमें संदहे हैं या होगा?. श्रद्चा ििश्वास का अपना ही एक अथा हैं पर उसी गररमा को
अधं श्रद्चा से नही माप सकते हैं.सदगरुु देिजी ने तो हमें आखें दी हैं और िह िान भी अन्यथा
उन्हें क्या आिश्यकता रही की एक एक ििग्रह के बारे मे उन्होंने सक्ष्ू मता से अपने िशष्यों का
पररचय कराया,और आप मंत्र तन्त्र यन्त्र िििानं के परु ाने अंक देखें तो पायेंगे की लगभग हर
अंक मे पारद िििानं का कुर् न कुर् पररचय सदगरुु देि देते ही रहे .
िमत्रो, आज िस्थित इस यगु मे बहुत ही िबडम्बनाकारक हो गयी हैं.अब समझ मे आता हैं की
सदगरुु देि जी ने उस काल मे ही आने िाले, इस यगु की अिस्था को देख िलया था और
आज के यगु के िलए ही उन्होंने इन पारद ििग्रहों का िनमााण का िान िदया था क्योंकी आज न
तो शारीररक, न चाररित्रक, न मानिसक, न ही नैितक बल की िह िस्थित हैं जो होना
चािहए,तब साधना कै से सभं ि हो?और इसिलए सदगरुु देि ने तत्रं के आिद आचाया
भगिान िशि के साथ अश ं रूपी पारद ििग्रह का यह अद्भुत ििस्मयकारी अचरज से भरा
स्िरुप हम सबके सामने रखा.क्या हम अब भी अपने अहम मे अटके रहेंगे ..क्या अभी भी
हम इन िदव्यतम िस्तओ ु का अथा नही समझेंगे ,और जो िदव्यतम िस्तएु ं आज प्राप्त हो रही
हैं िह कल भी हो ऐसा तो कुर् भी िनिश्चत नही हैं.आज इसी श्रंखला मे ...
1.परम िदव्यतम पारद सदगरुु देि ििग्रह
िमत्रो ,सदगरुु देि ने गरूु प्रत्यक्ष िसिद्च के सेट्स मे यह बताया हैं की िजन्हें गरू ु पणू ाता के साथ
िसद्च हो गए हैं उन्हें कोई भी साधना करने की आिश्यकता नही हैं.पर यह भी उन्होंने कहा हैं
की
गरूु प्रत्यक्ष क्यों ? जबिक गरू ु तो सामने बैठे हैं,तब यह प्रत्यक्ष िसिद्च की क्या आिश्यकता
?
इस प्रश्न को स्ियम ही सदगरुु देि अत्यतं मनोहारी स्िर मे समझाते हैं की तमु लोगों ने शरीर
को गरू ु माना हैं पर गरू ु िकसी शरीर का नाम नही बिल्क िान की अगाध ब्रम्हांडित रािश
का एक पंजु ीभतू स्िरुप होता हैं .और तम्ु हे इस शरीर के अंदर जो िान हैं जो सदगरुु देि तत्ि हैं
उसे आत्मसात करना हैं.िह िान ही तम्ु हारा गरू ु हैं. अगर िह तम्ु हे तम्ु हारे लक्ष्य तक ले जाए
,गितशील करें तो िही तम्ु हारा गरू ु हैं.
िमत्रो,यह सत्य हैं की िजस शरीर का आधार लेकर यह ििशाल िदव्यतम िान रािश हमारे
सामने उपिस्थत हुयी हैं िह भी हमारे िलए परम पजू नीय हैं पर अगर हम शरीर पर ही अटके रह
गए तो ..िास्तििक सदगरुु देि तत्ि से कौन हमें पररचय कराएगा?.क्योंकी हम ने शरीर को ही
गरूु मान िलया. तब अब कौन सी प्रत्यक्ष िसिद्च की आिश्यकता हैं?.
सदगरुु देि की िदव्यतम लीला का यह अद्भुत रूप हैं की उनके आत्मित सन्यासी िशष्य
िशष्याओ ने बहुत सोच ििचार कर सदगरुु देि जी के पारद ििग्रह िनमााण के िलए सहमित
प्रदान कर दी हैं.और यह तो हम सभी का परम सौभाग्य हैं की ऐसा संभि हो पाया हैं,अष्ट
संस्कार से यि ु पणू ातुः शास्त्रीय प्रििया से िनमाािणत सदगरुु देि के पारद ििग्रह के बारे मे क्या
िलखा जाए .
सदगरुु देि स्ियं कहते हैं की िजसके ह्रदय मे सदगरुु देि अगर सत्य अथो मे स्थािपत हो जाए
तो उसके िलए तो सभी साधनाए िफर िह चाहे शमशान हो या दैििक या साबर हो या उग्र या
िकसी भी तंत्र से सबंिधत हैं िह तो मात्र बच्चो का खेल ही हो जाती हैं.िफर उसे कोई लाख
या सिा लाख मत्रं जप की आिश्यकता नही होती क्योंकी उस साधक एक अदं र जब पणू ाता के
साथ सदगरुु देि तत्ि हैं तब कै से न कोई भी साधना िसद्च होगी,तब उसे हर ििषय का िान
होगा हैं.और क्यों न होगा सदगरुु देि जब पणू ा िान के स्िरुप हैं तो िह िजनके अंदर स्थािपत
होंगे उनमे उनकी उच्चता िदव्यता और िान की ििशालता िदखाई देगी हैं,िह स्ित ही
िनमालत्ि का एक उदाहरण होंगे.और ऐसा तो हर िशष्य और िशष्याओ को होना ही होगा, पर
अब यह हम पर हैं की हम िकतनी तीव्रता से इस पथ पर चले और िान को आत्मसात करें .
पर कहने मात्र से ..जयकारा लगाने मात्र से ..या कुर् माला मंत्र जप से तो यह संभि नही हैं
,जबिक आज हमारी मनोििृ तयााँ कै सी हैं यह तो स्ियं ही ....
तब एक ऐसे परम दल ु ाभ ििग्रह की आिश्यकता तो हैं ही,और जब सदगरुु देि स्ियं पारद की
िदव्यता के साथ हमारे पजू न साधना कक्ष मे होंगे तो भला कै से हमें सफलता नही िमलेगी,हम
उनका पंचोपचार पजू न से लेकर अपने मनोभाि यि ु पजू न िम कर सकते हैं.एक तरफ पारद
देि की कृपा और दसू री ओर सदगरुु देि.अब भला मागा मे कै से बाधाएं रह पायेगी और यह
के बल साधना मे ही नही बिल्क जीिन के समस्त पक्ष के िलए हैं.क्योंकी जहााँ सदगरुु देि हैं,
िही पणू ाता हैं, िही ाँ सफलता हैं, िही ाँ गररमा हैं ,िही उच्चता हैं, िही आनंद तत्ि हैं.यह
अिसर बार बार नही आते हैं न ही इन्हें व्यिसाियकता से जोड़ना चािहये,बिल्क इस दल ु ाभ
अिसर को पहचानना और उसके अनरू ु प काया करना ही चािहये.आप मे से जो भी इस ििषय
पर और भी जानकारी चाहते हैं िह nikhilalchemy2@yahoo.com पर सपं का कर सकते
हैं.
2.तन्त्रोत्सौन्दयं सत्रभुवन्मोहनकारकः
सौंदया की सही अथो में क्या पररभाषा हो सकती है यह तो िही व्यिि बता सकता है िजसने
ब्रह्ांडीय सौंदया को न िसफा बाह्य रूप में िरन आतरं रक रूप से भी देखा हो, अनभु ि िकया हो
तथा द्रश्य के रूप में आाँखों से उतार कर हमेशा हमेशा के िलए अपने अदं र समािहत कर िलया
हो िो क्षण िजसमे िसफा पणू ा रूप से रस भरा हुआ है. िह रस, जो की सभी भाि भिं गमा को
क्षीण कर देता है, गौण कर देता है चाहे िह दुःु ख हो, ििषाद हो या िचतं ा हो. सौंदया की
अनभु िू त के क्षणों में इन सब भािो का स्थान ही कहााँ. िहााँ तो िसफा आनदं तत्ि होता है जो
की िसफा द्रष्टा की आाँखों से उतरता है प्रकृित द्रारा. और उस अनभु ि की अनभु िू त करती है
भाग्यिान साधक की िानेिन्द्रयााँ और कमेिन्द्रयााँ. जो कुर् मलू है, िही सौंदया है. जहां पर िकसी
भी प्रकार का कोई ििकार नहीं है, जो पणू ा रूप से योग्य है, ब्रह्ांडीय है, उसके मल ू रूप में है
िजस रूप में कभी उसकी रचना के िलए ब्रह्ांडीय मल ू शिि ने कल्पना की थी िही तो है
सौंदया. और क्या पररभाषा भी हो सकती है जहां पर समस्त पररभाषाओ की ही समािप्त कर देता
है.
सौंदया ही तो जन्म देता है सभी कलाओ ं को. जहां सौंदया नहीं िहााँ पर कला कै से संभि है.
क्योंिक कला भी तो िकसी न िकसी सौंदया को ही प्रदिशात करने का माध्यम है, अिभव्यिि का
िसचं न है. िफर कै से न याद आये कलाओ से पररपणू ा व्यितत्ि भी, श्रीकृष्ण को जगतगरुु की
संिा उनके आतंररक और बाह्य सौंदया का पररणाम भी तो है. और इसी को तो कहा गया है १६
कलाओ से पणू ा होना िफर सौंदया िजसने प्राप्त कर िलया क्या उसको जीिनमें कौन सी कला का
िान नहीं हो सकता? िनश्चय ही जीिन का आधार सौंदया ही तो है. और इसी िलए तत्रं में भी तो
सौंदया साधनाओ का इतना महत्त्ि है, चाहे िह यिक्षणी अप्सरा या िकन्नररयो से सबंिधत
साधनाएं हो. आिद तन्त्रो तथा तंत्राचायों ने हमेशा ही सौंदया साधनाओ की महत्ता का
िनििािािदत रूप से स्िीकार िकया है.
जब क्षिणक सौंदया व्यिि को अपने अंदर डूब जाने की कला िसखा देता है, उसकी द्रिष्ट को ही
बदल सकता है, उसका स्ि से पररचय करा सकता है उसके अदं र के भािो को बाहर ला
सकता है तो िफर क्या असंभि होगा अगर स्थायी रूप से इस सौंदया को व्यिि आत्मसात कर
ले. और इसी िलए तो अप्सरा और यिक्षणी साधनाओ में सफलता के बाद साधक के जीिन में
अभाि रहना सभं ि कै से. साधक को ऐश्वया, िैभि तथा यश की प्रािप्त इन साधनाओ के माध्यम
से हो ही जाती है, साथ ही साथ साधक के जीिन में सख ु तथा आनंद का अनभु ि हर क्षण में
बस जाता है. याँू साधक अपने जीिन के हर एक क्षण को चरम आनंद के साथ जीता है. यही
बात सदगरुु देि ने कई कई बार साधको के मध्य रख कर सौंदया साधनाओ से सबंिधत भ्रािन्तयो
को दरू िकया था तथा इन साधनाओ की महत्ता के बारे में साधको के मानस को आड़ोिलत
िकया था. याँू भी, अप्सरा और यिक्षणी साधनाओ के सबंध में तो साधक िगा में हमेशा ही एक
रोमाचं रहा ही है. कई कई साधक अपने मन में यह अिभलाषा िलए हुये होते है की िह जीिन
में एक बार इन पणू ा सौंदया को धारण करने िाली सौंदया सम्रािीओ को प्रत्यक्ष करे तथा उनका
साहचया प्राप्त कर जीिन के दभु ााग्य को सौभाग्य में परािितात कर सके .
साधको की इसी अिभलाषाओ की पिू ता के िलए सदगरुु देि ने समय समय पर इन प्रयोगों को
साधको के मध्य रखा तथा सम्पन्न भी करिाए. साथ ही साथ, इन साधनाओ से सबंिधत गढ़ु
तथा रहस्यपणू ा गप्तु सत्रू ों को कई बार सदगरुु देि ने सभी के लाभाथा प्रदान िकया है. इसी िम में
कभी उन्होंने दो िनस्पित तंत्र से सबंिधत िििरण भी कई बार िदया तथा उसके गोपनीय सत्रू ों
को बताया है. िस्ततु ुः,तत्रं के क्षेत्र में साधको के मध्य िनस्पित तथा उनके तांित्रक प्रयोगों के
चमत्कारी पररणाम के बारे में कई प्रचिलत तथ्य है. साधको का अनभु ि रहा है की ििशेष
िनस्पितयों को ििशेष समय में उनसे सबंिधत प्रिियाओ के द्रारा िलया जाए तथा उनमे
ििििध प्रकार से प्राणप्रितष्ठा तथा चैतन्यीकरण कर िदया जाए तो साधक की सफलता प्रािप्त
की सभं ािना कई कई गनु ा बढ़ जाती है. तथा कई तत्रं साधनाओ में तो िनस्पितयों का ििधान
होता ही है िजसके िबना सफलता प्राप्त करना असंभि है. यह तथ्य तो िसद्च िनस्पितयों के
सबंध में है. लेिकन देि िनस्पितयों की प्रािप्त अित दल ु ाभ है िबना योग्य साधना या मंत्रजप
इनको खोजा जाए तो यह द्रश्यमान नहीं होती है या िबना पणू ा तत्रं ोि प्रििया के इसे िनकाला
जाए तब ये अपना कोई भी गणु प्रदिशात नहीं करती है. लेिकन अगर कोई व्यिि इसको पणू ा
प्रििया के साथ प्राप्त कर उससे सबंिधत तंत्रोि प्रयोग को कर ले तो यह िनश्चय ही देिताओ ं
की तरह ही साधक की कोई भी अिभलाषा को पणू ा करने में समथा होती है.
इसी िम में उन्होंने दो ििशेष िनस्पितयों के बारे में िििरण प्रदान िकया था.
यौिनभगंृ ा
श्रंगािटका
यौिनभंगृ ा का अथा है यौिन को प्रदान करने िाली या यौिन को जागतृ करने िाली. अपने गणु
के अनसु ार यह दल ु ाभ िनस्पित का प्रयोग कुर् चिु नन्दा िसद्च कायाकल्प प्रदाता ििशेष औषिध
कल्पों में होता है. लेिकन तत्रं की द्रिष्ट से यह िनस्पित अत्यिधक महत्िपणू ा है. तांित्रक द्रिष्ट से
देखा जाए तो इस िनस्पित के रस या स्िरस को अिभमिं त्रत कर उस रस से आच्र्ािदत िस्त्र
को धारण करने से यह तीव्र सौंदया आकषाक को जन्म देता है. फल स्िरुप यिक्षणी तथा अप्सरा
जैसी इतरयोनी साधक के आस पास अप्रत्यक्ष रूप में ििचरण करने लगती है. इस िनस्पित
का सबंध देि िगा से होने के कारण िनश्चय ही साधक इसका लाभ तीव्र रूप से प्राप्त करता है.
अप्सरा तथा यिक्षणी साधनाओ के सन्दभा में सदगरुु देि ने इस िनस्पित के बारे में कहा है की
व्यिि अगर यौिनभंगृ ा के रस में िभगोई हुई या इसके रस से आच्र्ािदत की हुई धोती को
धारण कर साधना करे तो अप्सरा तथा यिक्षिणयो का तीव्र आकषाण होता है तथा साधक को
साधना में सहजता की प्रािप्त होती है. साथ ही साथ साधक साधना में आने िाले कई ििघ्नों से
भी बच सकता है.
सौंदया साधनाओ के सन्दभा में जो िद्रतीय िनस्पित के बारे में सदगरुु देि ने बताया था िह है
श्रंगािटका. यह िनस्पित के गणु भी उसके नाम के अनसु ार है. श्रंगािटका का मल ू अथा है श्रंगृ ार
को बढ़ाना, ििस्तार देना. अथाात सौंदया का िजतना भी संभि हो िनखार करना. यह िनस्पित
भी तत्रं जगत में उसके चमत्काररक गणु ों के कारण एक आश्चया ही कही जा सकती है. इस
िनस्पित के भी कई िचिकत्सक गणु भी है लेिकन तांित्रक द्रिष्ट से यह अिधक महत्िपणू ा है क्यों
की इस िनस्पित के माध्यम से व्यिि का सपं का सत्रू ििशेष लोक लोकातं र से जडु जाता है.
यक्ष लोक या देि लोक से इस िनस्पित का घिनष्ठ जड़ु ाि है. साधक को अपने इष्ट या
मनोकामना की पिू ता के िलए मन्त्र जप में चेतना का ििशेष ध्यान रखना पड़ता है और यह एक
िनििािािदत सत्य है की साधक िजतना िस्थर िचत्त एिं एकाग्र हो कर मन्त्र जाप करता है उतना
ही तीव्र रूप से उसका सबंिधत लोक लोकांतर से आतरं रक सपं का सत्रू जड़ु पता है तथा उसको
पररणाम की प्रािप्त होती है. यह सपं का सत्रू कई बार बन नहीं पाता िजसके पीर्े कई कारण होते
है. परन्तु इस िनस्पित को ििस्तार का नाम इस िलए भी िदया गया है क्यों की इस िनस्पित पर
ििशेष तांित्रक प्रििया करने पर साधक का संपका सत्रू अित तीव्र रूप से जडु जाता है. इस िलए
इस िनस्पित को साधक अपने साथ ही आधार शिि पर रखता है. सदगरुु देि ने इस सबंध में
कहा है की श्रगं ािटका िनस्पित यि ु आसन का िनमााण अगर िकया जाए और उस पर बैठ कर
अप्सरा, यिक्षणी या सौंदया साधनाओ को िकया जाए तो साधक इस प्रििया से अपनी
सिु निश्चत सफलता की तरफ एक और कदम बढ़ा देता है क्यों की साधक का आतंररक संपका
सीधे देि लोक से तथा सबंिधत इतरयोनी के लोक लोकांतर से हो जाता है.
****NPRU****
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अतीव च सुगोपययांच कथथतुां नैव शक्यते |
अतीवयसीत थियय यस्मयत तस्मयत कथययथमते ||
रूपयथण बहु सांख्ययनी िकृ ते: सथतत भयवथन |
तेषयां मध्ये िधयनां तू नील रूप मनोहरां ||
हे पयववती , यह अत्यांत गोपनीय एवां वयचयथतत थवद्यय होने के कयरण इसे वणवन
करने की शथि मेरे पयस नही हैं.चूूँकक आप मेरी अत्यांत थिय हैं,इसथलए मैं इसे
आपको बतय रहय हूँ .हे भयथवनी !िकृ थत के अनेक रूप हैं एवां उनकी सांख्यय भी अनेक
हैं, उन समस्त रूपों मे नील रूप सवव िधयन हैं. पृकृथत रूपय थवद्ययओ मे नील रूपय
मनोहरय ही सवव िधयनय हैं.
भगवती तयरय कय स्वरुप तो अपने आप मे एक ओर तो बहुत ही सरलतो दूसरी
ओर अथत रहस्यमय हैं सरल इसथलए कक वे मयूँ हैं और मयूँ को जयनने के थलए भलय
कौन सी उपमय और उपमेय की आवश्यकतय हैं बस मयूँ तो मयूँ हैं. इतनय ही बहुत
हैं पर जहयूँ परम योथगयों ने उनकी सवव व्ययपकतय और उनके वयत्सल्य की सीमय
को समझनय चयहय, वह भी आश्चयव चककत हो गए .क्योंकक “हरर अनांत हरर कथय
अनततय” वयली उथि चररतयथव होती जयती हैं .
जैसय कक पूवववती लेखो मे यह स्पस्ट करने कय ियत्न हुआ हैं कक हर महयथवद्यय की
उपयसनय मे उनके भैरव स्वरुप कक उपयसनय कय एक महत्त्व पूणव स्थयन होतय हैं,
थजसे ककसी भी तरह से नज़र अांदयज नही ककयय जय सकतय हैं. भले ही यह सयधक
को लगे कक वह मूल सयधनय को छोड़कर अतय सयधनय मे लगय हुआ हैं पर यह सयरे
क्रम वयस्तव मे उसी सयधनय को पूणवतयय अपने आप मे समयथहत करने कय िययस हैं
और सोचने कक बयत हैं कक वह आद्य शथि भलय की ककसी एक अनुष्ठयन मे आथधधत
होगी ? कदयथप नही ..हयूँ यह जरुर हैं कक वह अपने करुणयमय स्वरुप मे अपने
पुत्र, पुथत्रयो के िथत वयत्सल्य मे कु छ भी कर दें और यह तो हर मयूँ कय एक गुण हैं
ही .
इसी तरह भगवती तयरय के भैरव “अक्षोभ्य भैरव” हैं और इनकय स्थयन भगवती
की थवशयल जटयओ मे ही हैं.इसी तरह से एक ही थवग्रह मे उनके भैरव कय
उपथस्थथत भी भलय ककतनी सुख दययक हैं और वही ूँ सयधनय सफलतय मे परम लयभ
दययक भी क्योंकक भगवती की उपयसनय होते होते स्वयम ही उनके भैरव की भी
उपयसनय भी होती जयती हैं.जहयूँ थसर पर सुशोथभत नयग एक ओर जहयूँ
कु ण्डथलनी शथि कय ितीक हैं तो दूसरी ओर शीतलतय कय भी ितीक और एक इसी
तरह कय सतदेश कक हर सयधक को अपनय कदमयग शीतल रखनय ही चयथहये, क्योंकक
जहयूँ अनेको िकयर के अथभमयन हैं उसके से एक हैं थवद्यय कय अहांकयर ,सयधनय
थसथि कय भी अहांकयर ..और इससे सयधक कय बच पयनय बहुत करिन हैं ,वही ूँ
भगवती तयरय जैसय कक हम थनवेदन करते आये हैं कक सयधक कय यह अांहकयर थमटय
देती हैं .
तांत्र ग्रांथो मे वर्णणत हैं,कक एक समय भगवती पयववती ने भगवयन शांकर से पूांछय कक “
हे सवेश्वर वह थवद्यय कौन सी हैं , थजसे ियप्त कर परम थवद्वयन व्ययस मुथन ने इतने
उच्च कोरट के ग्रांथो कय थनमयवण ककयय ??”
भगवयन शांकर कहते हैं “हे पयववती तयरय महयथवद्यय के िभयव से ही व्ययसमुथन ग्रतथ
रचनय मे समथव हुये ,हे थगररनांकदथन ..तयरय महयथवद्यय अज्ञयन रूपी इधन के थलए
अथि के समयन हैं.थजसे ियप्त कर धमव, अथव, कयम, मोक्ष सभी आसयनी से ियप्त हो
जयतेह,ैं इस थवद्यय के िभयव से कोई भी वयस्तु अियपय नही हैं. श्री तयरय कय सयधक
कयव्य कलय मे िवीण हो कर गांगय िवयह के सयमयन कथवतय करतय हैं, रयजय को वश
मे कर सकतय हैं,थवपरीत लोगों की वयणी कय स्तम्भनां कर सकतय हैं.इस थवद्यय के
आरयधन से अनेको चमत्कयर सयधक के अांदर स्वयां ही आजयते हैं .कहयां तक कहें कक
इस थवद्यय के िभयव से सयधक सववग्य तक होने की अवस्थय मे आ जयतय हैं .”
इस तरह से देखय जयए तो यह सयधनय तो इस कथलयुग मे कल्प वृक्ष की तरह हैं,
एक ओर कोई थवशेष थनयम नही,वही भगवती के इस स्वरुप मे कोई थवशेष थनयमों
कय पयलन करने कक कोई थवशेष िथतबितय नही ,और इस परम वयत्सल्य मय
स्वरुप की बयत ही थनरयली हैं. अनेक सयधक इस बयत से एक मत होंगे कक
सदगुरुदेव जी ने भी अनेको बयर इस महयथवद्यय के बयरे मे कहय की आज के युग मे
यह सयधनय /थवग्रह अपने आप मे कल्प वृक्ष के सयमयन गुण की बयत कही हैं.
और क्यय कहय जयए यह तक कई कई बयर मांत्र तांत्र यतत्र थवज्ञयनां पथत्रकय मे भी
सदगुरुदेव ने अपनी कदव्य लेखनी से थलखय कक थसफव इस महयथवद्यय कय कवच
पयि भी यकद ककयय जयए, तब भी वह फल दययक हैं. तब थजनके पयस यह पयरद
थवग्रह हो उसकी बयत तो थनरयली हैं ही,क्योंकक उसके सयमने ककसी भी िकयर कय
मांत्र जप और कवच आकद कय पयि अपने आप मे ककतनय फल दययक हैं इसकय तो
अनुमयन भी नही लगययय जय सकतय हैं .
भगवती के अनेको स्वरुप हैं.इस महयथवद्यय के अनेको नयम हैं कै सय कक तांत्र ममवग्य
कहते हैं .
दथक्षण आम्नयय मे –चचतयमथणतयरय,एकजटय,थसिजटय,थत्रजटय,क्रुमयवररकय,क्रूरचतडय,
महयचांडय,चतुवेदयदयरी
पथश्चम आम्नयय –हूँस तयरय,मथणधर वज्रणी, असूरेखय ,महोग्र तयरय, वज्र रे खय,सवव
थवघ्नुत्सयररणी
उत्तर आम्नयय –तयरय ,उग्रय,महोग्रय, वज्रय, नीलय ,सरस्वती, कयमेश्वरी, भ्रद्र कयली .
उध्वव आम्नयय –वयग्वयकदनी, नील सरस्वती, महयनील, शयरदय, चीन सुांदरी, नील
सुांदरी, महयनील सुांदरी, उग्र तयरय,शयांकरी
अधर आम्नयय मे – रसययन ,उग्र वैतयल, अथिमुख वैतयल आकद ..
पर यहयूँ एक महत्वपूणव िश्न उितय हैं कक आथखर पयरद ही क्यों ? ककसी अतय
धयतु कय थवग्रह मे वह बयत क्यों नही .
पयरद यहयूँ मेरय मतलब अष्ट सांस्कयररत (पयरे पर इतने सांस्कयर तो ककये गए ही हो .)
पयरय अपने आप मे अथत बहुमूल्य पदयथव हैं, एक ओर जहयूँ यह भगवयन शांकर कय
ितीक हैं और उसके सयथ उनकी शथि अथयवत भगवती तयरय कय सांयोग तो थशव
और शथि कय सांयोग होगय जो की पूणवतय िदयन करने वयलय हैं ,सयथ ही सयथ
पयरद मे स्वयम ही लक्ष्मी तत्व कय समयवेश होतय हैं जो कक आज के भौथतक जीवन
और युग धमव को देखते हुये एक बहुमूल्य तथ्य कहय जय सकतय हैं .
सांस्कयररत पयरे के बयरे मे आज भी अनेको ग्रतथ उपलधध हैं. और अनेको लोग
पयरद सांस्कयर करने कय स्व दयवय भी करते हैं पर जब तक ककसी योग्य से उनके
सांस्कयर कय िमयणीकरण न करय थलयय जयए तब तक सयरी िकक्रयय िश्न थचतह मे
होगी ही .
पयरद कय कोई भी थवग्रह अपने आप मे एक महत्वपूणव अांग हैं, एक श्रेष्ठतय युि
जीवन कय .और ऐसे थवग्रह पर यय सयमने यय सयधनय करने कय अपने आप मे एक
अलग सय ही अनुभव हैं .क्योंकक जैसे ही आपने इनकी स्थयपन की वैसे ही पयरद
देव और आपकय एक अांतर सबांध बन् जयतय हैं और वह भी आपको धीरे धीरे
पररमयर्णजत करने लगते हैं और यह तो दुलवभ हैं क्योंकक बयजयर से ियप्त ककयय
कोई भी थवग्रह मे जो पयरे कय बनय हो यय उसके बयरे मे क्लेम ककयय जय रहय हो
कक वह इतने सांस्कयर से सांस्कयररत हैं यह तो अब व्यथि थवशेष पर ही हैं .
भगवती तयरय की उपयसनय तो मनुष्य तो क्यय देव वगव और परम योथगयों ने
भी सम्पन्न हैं और आज भी ऐसय हैं ,हयूँ यह बयत जरुर हैं कक उनकय स्वरुप कु छ
कु छ भगवती महयकयली कय सयमजस्य होने के कयरण बहुधय वह एक ही मयन ली
जयती हैं
पयरद मे अत्ययथधक आकषवण कय गुण हैं और यह गुण उसकयसयरे थवश्व की
समस्त चीजों पर लगतय हैं और इससके आकषवण से देव क्यय, कोई भी नही बच
सकतय हैं ,और थजनके पयस भी यह अष्ट सांस्कयररत पयरद थवग्रह जो कक शयत्रीय
िकक्रयय पूरी करतय हुआ हो ,उसे तो बस सयधनय करते जयए और स्वयम अपने
जीवन मे बदलयहट कय अनुभव करें .
क्यय इस थवग्रह पर कोई सयधनय कक आवश्यकतय हैं? सयधनय तो जीवन कय एक
अथनवययव अांग हैं और श्रेष्ठ सयधक सयधनय को एक बोझ नही बथल्क जीवन कक एक
उतनी अथनवययव आवश्यकतय समझते हैं थजतनी कक स्वयांस लेनय .इस थवग्रह के सयमने
कोई भी भगवती तयरय से सबांथधत सयधनय की जय सकती हैं और उनसे थमलने
वयले पररणयम भी अपने आप मे थवलक्षण होंगे . सदगुरुदेव जी ने अनेको सयधनय
और मांत्र इस महयथवद्यय कक सयधनय के सबांध मे कदए हैं उनमे से कोई सय भी मांत्र
जो आपको रुथचकर लगतय हो वह ककयय जय सकतय हैं .
अगर ककसी तरह से सयधनय करने मे वह मांत्रयत्मक रूप वयली कोई कदक्कत हो तो
आप त्रोत सयधनय कर सकते हैं थजसमे भगवती तयरय कय कोई भी त्रोत को आप
११/२१/५१ पयि रोज कर सकते हैं और यह भी पूणव फल दययक हैं ही .जहयूँ तक
वत्रों की बयत हैं और आसन के रां ग की तो सदगुरुदेव जी ने गुलयबी रां ग कय
थनदेश अनेको बयर इस सयधनय के सबांध मे ककयय हैं .
इस अथद्वतीय थवग्रह से सबांथधत कु छ महत्वपूणव और दुलवभ सयधनयए धलॉग और
तांत्र कौमुदी मे समय समय पर आएूँगी ही .
आज हमयरे मध्य ऐसे व्यथित्व हैं थजनके इतने ियत्न के कयरण इस स्तर के थवग्रह
कय थनमयवण हो पययय हैं तो समय और कयल की गथत को ध्ययन मे रखते हुये ऐसे
अद्भुत थवग्रह कय स्थयपन यकद घर मे होतय हैं और सयमने पूजन होतय हैं तो
अच्छय और यकद सयधनयत्मक रूप से मांत्र जप जैसी कक्रययए होती हैं तो और भी
तीव्रतय से पररणयम अनुभव ककये जय सकते हैं.पयरद और भगवती तयरय के थवग्रह
कय यह सांयोग तो स्व अनुभव करने योग्य हैं क्योंकक की सभी उच्च मयनथसक यय
आध्ययथत्मक अवस्थय और भौथतक अवस्थय मे स्थयथयत्व के थलए समय और
सयधनय की आवश्यकतय तो हैं और जो इस बयत कय अनुभव करते हैं उतहें क्यय अब
भी इस दुलवभ थवग्रह ियप्त करने के बयरे मे सोचनय होगय ..
PAARAD SAHASTRANVITATA DEH TARA RAHASYAM - 4
So with the help of Parad, such idol by the name of Parad Sahatraanivata has come in front of
us. It makes all these procedure possible in peaceful way and there are no arbitrary procedures
in name of Tantra, no violation of moral and societal rules and no disturbance in materialistic
and personal life of sadhak. This is affection of our Praanadhar Sadgurudev that if he has
made up his mind, then it is final. Universe does not have enough capability to stop that
activity.
Today is the time to get this amazing idol and give meaning to life and not to lose this
invaluable opportunity. And such idols are not available in market, though it is being done. In
its name, some lead idol is given and sadhak unknowingly considers it as authentic one. Here
sadhak has to use his brains because one right decision taken at right time has ability to
transform your whole life provided person stays firm on his decision.
Otherwise we are all aware of our current state that sadhaks fluctuate between resolution,
alternatives, this procedure and that procedure. In such troublesome and doubtful times if
such idol is available, then it is more than enough. The one who has to give one speed and
direction to his sadhna, he will continuously do sadhna. He will never be lazy and will not
leave everything on Sadgurudev. Definitely one state comes when he devotes everything to
Sadgurudev but for attaining that particular stage some activity needs to be done and this
Parad Sahatraanivata idol will make that activity easy and simple.
Shiv Shakti BinaDevi !YoDhaaryetMoodadhi |
Na Yogi Syann Bhogi Syaat kalp KotiShatairapi ||
The fool who involves himself in other dharnaas without Shiva and Shakti, he neither
becomes Yogi nor Bhogi even in hundred kalpas (a day of brahma consisting of 4320,000,000
year of mortals).
Such idol is capable of providing you abundant wealth, taking sadhak to higher level of
knowledge, providing you those hidden secrets of Tantra and taking sadhak forward on this
path. Then what is left to think“
Many sadhaks wants to do shamshaan sadhna and achieve competence in it.It is very
fortunate that one of the forms of Bhagwati Tara is Shamshaan Tara. If sadhak desires then
she also brings sadhak to necessary emotional platform otherwise entering into these sadhna
will be like playing with your life and making mockery of supreme Tantra procedures. First
emotional platform needs to be created then at appropriate time Sadgurudev automatically, if
he feels sadhak is capable, will move sadhak forward on the path. Otherwise if sadhak has in
its mind to do something wrong in the name of those procedures then sadhak can try its level
best, it is not possible to imbibe those highest level secrets.
And if such type of Parad Idol of Bhagwati Tara is attained then automatically this emotional
platform starts getting created and Bhagwati herself moves sadhak on path which is beneficial
for him, which is in accordance with his sanskars, by which he can amplify his own purpose
of life and pride of Sadgurudev.
Now only your decision is left““““..
========================================
नािस्त तंत्र सम शास्त्रं,न भि के श्वात परुः |
न योगी शंकारद िानी, न देिी िनलया परा ||
तत्रं के समान श्रेष्ठ कोई भी शास्त्र नही हैं ,के शि की तल
ु ना मे कोई भी भि श्रेष्ठ नही हैं .
शकं र की अपेक्षा कोई भी श्रेष्ठ योगी िानी नही हैं और नील सरस्िती की अपेक्षा कोई भी श्रेष्ठ
देिता नही हैं .
भगिती तारा के अनेको स्िरुप हैं , िे कहीं पर उग्रतारा के नाम से तो, कहीं एकजटा के नाम
से, तो कहीं नील सरस्िती के नाम से जानी जाती हैं,और उनके सहस्त्रनाम मे उनके सभी
नाम का अपना अपना एक गह्य ु अथा तो सदैि से ही हैं.साधक गण मख्ु यता तारा देिी की
साधना या तो धन लाभ और िह भी प्रचरु ता से पाने के िलए करते हैं और यह भी तो संभि
करने उन्ही का एक सामान्य सा गणु हैं .पर एक रूप िजस को बहुत सामान्य सा समझ िलया
जाता हैं िह हैं उनका नीलसरस्स्िती स्िरुप हैं.क्योंिक आज धन की कहीं ज्यादा
आिश्यकता हैं और िान की िकसे???
तंत्र साधक यह जानकर आश्चया चिकत हो जायेंगे की एक ओर यह स्िरुप जहााँ ििद्या और
िह भी सम्पणू ता ा के साथ, को देने मे सक्षम हैं, िही इस ‚नील सरस्िती स्िरुप‛ से अनेको
तांित्रक साधनाए,घोर से घोरतम और ििकटतम भी सभं ि हैं ,यहााँ तक ही शमशान साधना
से लेकर शि साधना तक क्योंिक िान को हमेशा एक रूप मे या एकांगी ही नही देखा
जाना चािहए . आज जो िान शब्द का जो अथा या प्रतीक हैं िह तो िास्ति मे पढ़ी पढाई
यारटी रटाई ििद्या हैं जबिक शास्त्रों मे स्पस्ट हैं की जो स्ि अनभु ि यि ु हो, जो जीिन का
सही अथा और आत्मानभु ि और अपने िास्तििक स्िरुप से व्यिि का स्ि पररचय करा दे,उसे
आत्मालीन करा दें , िही िान हैं .
और िान की अनेको श्रेिणयााँ हैं और कोई भी िान, यहााँ तक की िजन व्यििगत गोपनीय
ििषय पर बात करना उिचत नही कहा जा सकता हैं. उन पक्ष भी िान आिखर िान ही तो हैं,
और एक श्रेष्ठ परुु ष यह जानता है की िान मे कोई कमी नही बिल्क उस िान को िकस तरह
िह व्यिि अपने िहत मे, देश िहत मे, समाज िहत मे और इससे भी आगे की सम्पणू ा
चराचर के िहत मे कै से प्रयोिगत करता हैं ..अतं र इस बात का हैं .
तत्ििानात परं नािस्त नािस्त देि : सदिशिात |
नािस्त भािस्तु मध्यास्थान्न्स्ती नीला सम् पदम ||
िान से श्रेष्ठ कोई तत्ि नही हैं,सदािशि से श्रेष्ठ कोई देिता नही हैं.मध्यस्थ (सषु म्ु ना )से श्रेष्ठ
कोई भाि नही हैं, और नील सरस्स्िती से श्रेष्ठ कोई पद नही हैं.
तो इस स्िरुप की,इस िानमय ििग्रह की कोई न कोई ििशेषता तो हैं ही और यह स्िरूप परू े
पणू ाता के साथ इस पारद सह्त्त्रािन्िता देह तारा ििग्रह मे हैं.
जब िान ही नही होगा तो
कै से एक साधक अपने जीिन को समझेगा ?
उसके जीिन का लक्ष्य क्या हैं ?
उसे कै से अपने जीिन को एक अथा देना हैं ?
कै से अपनी िशष्यता को सही अथो मे साकार करना हैं?
जीिन मे क्या आनंदमयता हैं ?
क्या िात्सल्यमयता हैं ?
और कै से िह भोग को समझेगा ?
और भोग मे प्रितृ होकर भी अतं र मन से अर्ूता कै से रह पायेगा ?.
क्योंिक सारी िियाए सारी साधनाए उस िान के िलए ही तो हैं िजसे योगी, महायोगी,
देिता और सभी पाना चाहते हैं.िजस सिोच्च िान के बाद कोई भी और इच्र्ा शेष नही
रहती, न ही कोई सक ं ल्प, न ही कोई ििकल्प जहााँ आत्मा अपने आप को अपने सत्य
स्िरुप को जान लेती हैं और लगातार अनभु ि करती रहती हैं, और यह सारा िान जो
अंधकार मे जन्मो से पड़ा हैं,िजस पर जन्मो जन्मो के पाप, अिानता,ििगत कमो की कािलख
के कारण यह िान सश ु प्तु अिस्था मे पड़ा हुआ था,और यह तो भगिती की दया दृष्टी से ही
संभि हैं की व्यिि अपने आप को जान पाए , अपने सत्य स्िरुप से पररिचत हो सके . यह तो
भगिती तारा की कृपा से ही तो सभं ि हैं .
िबना शिि साधना के कै से उस उच्च अिस्था को या इस उच्च िान अिस्था को पाया जा
सकता हैं,साक्षात् िकया जा सकता हैं .
श्रणु ु देिि ! रहस्यं मे परं तत्ि िदािम ते |
यस्या:मात्रेण भिु िं मिु िं ििन्दित ||
अनेन ध्यान मात्रेण भिु ि मिु िंच ििन्दित |
अनेन ध्यान मात्रेण साधकस्य मितभािेत ||
भैरि कहते हैं की ... ‚हे देिी िजनके स्मरण मात्र से साधक भोग और मोक्ष पाता हैं, मैं
उस गोपनीय परम तत्ि को तमु से कहता हाँ ,श्रिण करो. इसके ध्यान मात्र से साधक को भोग
और मोक्ष की प्रािप्त होती हैं और साथ मे साधक इसके ध्यान मात्र से िानिान, मितिान हो
जाता हैं |‛
साधक स्ियम यहााँ एक पल रुक कर सोचे भाल और िकस साधना मे , और िकस देि मे
इतनी शिि हैं जो यह असभं ि को भी सभं ि बना सकने मे समथा हैं .
ििशेषतुः किलयगु े नराणां भिु ि मिु िद्म |
नील तंत्र महातंत्र सिा तन्त्रोत्तमोतम् तंत्र||
तस्य उपासकस्चैि ब्रम्हाििष्णिु शिादय: |
चंद्रसयु ााश्च िरुण : कुबेरोंिग्नस्तथा परुः ||
दिु ााशाश्च िािशस्ठाश्च दत्तात्रेयो बहृ स्पित :|
बहना िकिम होत्तें सिे देिा उपासका ||
किलयगु मे ििशेषतुः नील रूपा तारा महाििद्या ही एक मात्र हैं, जो मानि समहू को भिु ि
मिु ि प्रदान करने िाली हैं. यह तत्रं ही एक महातत्रं हैं. और सिोत्तम तन्त्रो से भी श्रेष्ठतम तत्रं
हैं .ब्रम्हा, ििष्ण,ु िशि, चंद्र, सयू ा, िरुण, कुबेर, अिग्न, प्रभिृ त, देिगण और
दिु ाासा,ििशष्ठ,दत्तात्रेय, बहृ स्पितऔर समस्त ऋिष गण इसके अथाात भगिती तारा उपासक हैं
और अिधक क्या कहा जाए,एक प्रकार से समस्त देि शिि ही इसके उपासक हैं .
यह तारा महाििद्या और ऐसे ििग्रह को प्राप्त करना बहुत ही भाग्य या सौभाग्य या परम भाग्य
ही कहा जा सकता हैं, याँू तो आज गली गली मे इस ििद्या का िान कराने िाले बैठे हैं पर
उनके स्ि जीिन मे क्या इसकी कोई उपलिब्ध िदखती हैं. जो इसके उपासक बने बैठे हैं,
उनके शब्द शिि और िाक् चातयु ा को ही देख ले . सदगरुु देि स्पस्ट कहते रहे की पोिथन
पढ के िान देने िाला भी गरू ु ही हैं और िह भी प्रणम्य हैं पर श्रेष्ठ गरू
ु तो िह होता हैं,
िजसे कोई पोथी की आिश्यकता ही न हो,िजसने आिखन देखी की िस्थित स्ि अनभु ि की
हो, िह जहााँ चाहे, जैसा चाहे, िजस ग्रन्थ को चाहे, िैसा कह सके , उद्चरण दे सके , िह होता
हैं एक ‚सदगरुु देि‛ अन्यथा अब तो इस नाम का भी मानो मखौल सा बनने लगा हैं पर
सत्य बहुत देर र्ुपता ही नही हैं .
एक क्षण को रुक कर सोचे, िजसे पणू ाता के साथ भगिान आजं नेय या हनमु ान िसद्च हैं,
िजसने उन्हें पणू ाता के साथ आत्मसात िकया हैं और िह स्ियम ही बल हीन हो तो कै से
संभि हैं यह ...??
भगिती तारा के साधना मे एक बहुत ही ध्यान रखें िाली तथ्य है उन की, जब तक उनके
भैरि की साधना या पजू न न िकया जाए उनकी साधना पणू ा नही होती हैं और उनके भैरि हैं
अक्षौभ्य , जो उनकी जटाओ मे ही िनिािसत रहते हैं, और यह तथ्य तो हर उस साधक को
जानना ही चािहए जो िकसी भी महाििद्या की साधना मे लगा हुआ हैं,हााँ इस तथ्य को िसफा
एक जगह र्ोड़ा जा सकता हैं िह उसे, िजसे सीधे सदगरुु देि ने ही िसफा महाििद्या मत्रं के
िलए स्ित िनदेिशत िकया हो अन्यथा इस िनयम से िकसी को र्ूट नही .
और आज कै से संभि हैं उन तन्त्रो की िियाओ ं को करना ?
िजसके िलए न तो समाज, न ही स्िास्थ्य, न ही नैितक िनयम और न ही काननू ी िनयम
अनमु ित देंगे ?.
तब क्या िह सारी िियाए मजाक बन् गयी हैं या उनके नाम पर कुित्सक आचरण करने
िालों की भीड़ सामने आ गयी हैं. तत्रं िियाओ ं का मानो माखौल सा उडाया जाने लगा हैं
तो इन्ही बातों को ध्यान मे रखते हुये सदगरुु देि जी ने अनेको बार पारद का सहयोग ले कर
निीनतम रचना की िे अच्र्ी तरह से समझते रहे हैं की आज के साधको मे न तो उतनी
उच्चता हैं, न ही उतना समपपाण संभि हैं,और आज की पीढ़ी मे चाररित्रक हास और पतन
की तो कोई सीमा ही नही ,न ही िह शारीररक बल और तेज उनमे हैं . तो क्या इन्हें पीर्े र्ोड़
िदया जाए .??.पर सदगरुु देि ऐसा कब कर सकते रहे ..‛उन्होंने तो बारम्बार बो ा की इस
बार तुमने नही, मैंने तुम्हारा हाथ थमा हैं और तुम्हे उस पूणवता तक े कर जाऊीँगा
ही यही उनका वचन रहा ‚.
तो पारद के संयोग से ऐसा ििग्रह जो आज पारद सह्त्त्रिन्िता देह तारा के नाम से हमारे
सामने आया हैं िह इन्ही िियाओ ं को सौम्यता के साथ सपं न्न करा देता हैं, जहााँ तत्रं के
नाम पर ,न कोई मनमानी ििया, न नैितक, सामािजक िनयमों का उल्लघन , न ही साधक के
भौितक और व्यििगत जीिन मे िकसी भी प्रकार का ििक्षेप. यही तो हमारे प्राणाधार
सदगरुु देि की करुणा हैं की जब उन्होने अपना मानस बना िलया तो बना िलया िफर ब्रम्हांड
मे सामथ्या नही की उनकी ििया को रोक सकें .
आज यह अद्भुत ििग्रह को प्राप्त कर अपने जीबन को एक अथा देने का और इस देि दल ु ाभ
अिसर को न चक ु ने का समय हैं .और ऐसे ििग्रह कोई बाज़ार मे थोक के भाि मे तो िमलते
नही हैं हलािक आज यही हो रहा हैं इनके नाम पर कोई भी शीशा या लेड का कोई भी
ििग्रह थमा िदया जाए और साधक अपने मे ही डूबा रहे .यहााँ पर साधक को अपने िििेक
से िनणाय लेना होता है, क्योंिक एक सही और समय पर िलया गए िनणाय परू े जीिन को
बदल सकने की सामथ्या रखता हैं अगर व्यिि अपने िनणाय पर से िडगे न .
अन्यथा आज हमारी िस्थित जो हैं िह सभी कोई िात हैं की साधक िगा संकल्प, ििकल्प
और इस प्रििया और उस प्रििया के मध्य झल ू ता ही रहता हैं .और ऐसे कष्टकारी ििभ्रम्
कारी समय मे अगर ऐसा ििग्रह प्राप्त हो तो, यही ही काफी हैं ,और िजसे अपनी साधना
को एक गित, एक िदशा तीिाता से देना हैं िह तो सदैि साधनामय होगा ही िह कदािप
आलसी या सदगरुु देि पर सब कुर् र्ोड़ कर नही चलेगा ,हााँ एक अिस्था आती हैं
ऐसी,जहााँ सब कुर् सदगरुु देि मय हो जाता हैं पर उस अिस्था लाने के िलए भी तो कुर्
करना शेष होगा और यह पारद ििग्रह जो सह्त्स्त्रािन्िता तारा के नाम से हैं इसी ििया को
तो सरल और सहज बना देता हैं .
िशि शिि िबना देिी ! यो धायेत मढ़ू िध |
न योगी स्यान्न भोगी स्यात कल्प कोिट शतैरिप ||
िशि और शिि के िबना जो मढ़ू , अन्य धारणाओ ं मे प्रितृ होता हैं िह सैकड़ों कल्पों मे न तो
योगी होता हैं, न ही भोगी .
जहााँ एक ओर ऐसा ििग्रह जो धन धन्य को पणू ाता से उपलब्ध कराने मे ,िान की उच्च
सीमा तक साधक को पंहुचा सकने मे,जीिन और तंत्र की उन गोपनीय रहस्यों को प्राप्त कराने
मे समथा हैं या साधक को अग्रसर करा सकने मे समथा हैं तब क्या और क्या सोचना शेष हैं.
अनेको साधक शमशान साधना मे जाने की या उसमे दक्षता हािसल करने की सोचते हैं
और यह भी िकतने सौभाग्य की बात हैं की भगिती तारा एक रूप श्मशान तारा हैं जी
साधक की यिद इच्र्ा हैं तो उसके िलए आिश्यक िह भाि भिू म भी स्ित तैयार कर ही देती
हैं अन्यथा इन साधनाओ मे प्रिेश करना िसफा अपने जीिन से िखलिाड या उन उद्ङात
तंत्र िियाओ ं का मजाक उड़ाना ही कहा जायेगा ,पहले भाि भिू म तो बने िफर उपयि ु समय
पर सदगरुु देि स्ित ही, यिद उन्हें लगता हैं की िह साधक योग्य हैं तो आगे इस मागा पर बढ़ा
देंगे .अन्यथा साधक के मन मे उन िियाओ ं के नाम पर यिद कुर् ओर अनिु चत करने का हैं
तो साधक िकतना भी कोिशश करले संभि ही नही हैं ऐसे उच्चतम रहस्यों को हस्तगत
करना .
और यिद इस प्रकार के भगिती तारा का पारदीय ििग्रह प्राप्त हो जाए ,तो स्ित ही िह
भािभिू म बनने लगती हैं और साधक को उस मागा पर भगिती स्ियं ही बढ़ा देती हैं जो
उसके िलए िहतकर हो , जो उसके संस्कार मे हो, िजसके माध्यम से अपने जीिन के हेतु
को और अपने सदगरुु देि के गौरि को प्रििधात कर सकें ..
अब आपको िनणाय लेना ही शेष हैं..
****NPRU****
Posted by Nikhil at 2:53 AM No comments:
Labels: MAHAVIDYA RAHASYAM, PAARAD
NaaymaatmaBalHeenenLabhyah |
I.e. strength is required the most. It also means that Shakti
(power) has supreme necessity. Without strength and Shakti,
self-enlightenment does not happen. But what will be the
source of Shakti? It is point worth pondering over and it can
be possible only by relying on Tantra, relying on sadhna, by
sacrificing your everything in divine lotus feet of Sadgurudev
(Here everything does not mean wealth rather it is all about
accepting shortcomings like fraud, ego and guile in front of
him and rise of feeling of completely devoting oneself into
lotus feet of Sadgurudev). Without it, in this Kalyuga, where
person’s age, strength, courage, aura, patience and celibacy
etc. is feeble how can it be possible to attain the ambition
of life? Keeping this aim in mind, our sages stressed a lot on
this fact that without Tantra sadhna, progress of human life
is not possible.
There are millions and billions of sadhna and this holy Ganga
of sadhna knowledge is flowing continuously from millions of
years. May be it has slowed down a bit for some time but its
flow has always been continuous.
You all are quite aware of the super-human work of
Sadgurudev to re-establish all dimensions of Tantra and
sadhna in today’s era. The description of new Idols and
yantra and their sadhna which Sadgurudev put forward
through the medium of Parad is indescribable. When Parad,
which has been called Shambhu beej, reflect its full
consciousness and all its auspicious qualities in sadhak, then
what can be said about the fate of sadhak because it is not
an ordinary activity. Even getting a Sanskarit Parad is rare
then what can be said about the making of such idol….that
too after passing through all hidden shastra and tantric
procedures. This is invaluable idol, which if sadhak uses it in
sadhna in appropriate manner then what can be impossible
for him.
Parad Shri Yantra is also something like it. Thought it has
now just become symbol of attainment of wealth but its
reality is exactly opposite to above. This Yantra is good-
fortune of life, it is acheivement of life, and it is like
elevating yourself in this short life and writing your name on
high peaks of Himalaya
But it does not seem that there is anything special about it??
This is because we have neither tried to understand its
speciality nor given a thought why it has been called King of
Yantra and best yantra. If all Tantras appreciate it then
definitely it will be something special.
In one of the editions of Mantra Tantra Yantra Magazine,
Sadgurudev has written that when he was continuously
attaining high-order sadhna and was at those heights of
sadhna which is even beyond the imagination of high-level
yogis. At that time he got a message from his Sadgurudev
that “Nikhil , the heights of sadhna which you have touched
is unparalleled but it is also nothing until you imbibe
completely the vast form of Bhagwati Tripur Sundari . When
you will be able to do so you will find that all sadhnas done
uptil now have become just a play”
Please try to understand importance of this divine message
about the supremacy of vast Shodashi Tripur Sundari sadhna,
which is in fact ruler of Shri yantra. In Shri yantra, complete
establishment of her takes place. And getting such energised
Parad Shri Yantra is achievement of life. It is affection of
yogis of Siddhashram if it is possible in the fate of sadhak
and that too parad Shri Yantra.
There are many types of Shri Yantra, Sadgurudev has told
that
Shri Yantra
Kachchap Shri Yantra
Sumeru Prishtheey Shri Yantra
Vaaraaheey Shri Yantra
Maatangeey Shri Yantra
Navnidhi Shri Yantra
Dhara Prishtheey Shri Yantra
Bhu Garbheey Shri Yantra
Parad Shri Yantra
are various types of Shri Yantra and there are many more
too. Every Shri Yantra is Shri yantra and all sadhnas can be
done on it but every particular Shri yantra has got a specific
importance. Some are made for business purpose, some for
establishment at home; some are established on ground so
that high and luxurious house can be made on it.
Today we have best Shri yantra – Parad Shri yantra. And we
are also fortunate that Kachchap Shri yantra is also available
.Here the point worth understanding is that if someone has
to do sadhna which has come on blog, then it can be done
on any of Parad Shri Yantra. There are no conditions but
that parad Yantra should fulfil all the desired rules.
Otherwise if it is Parad Shri Yantra of lead disguised by
covering it with mercury layer and someone gives it to
you…then what can be said…..
This is fraud.
If one has to attain complete results of sadhna, then there
are no alternatives to desired sadhna article. Sadhak will
need the same article as directed in sadhna. In today’s time
we do sadhna by putting so much of effort and money and
success is becoming rare these days. In such a scenario,
doing it with false or wrong sadhna articles is like flirting
with failure. This fact has to be necessarily kept in mind. If
this sadhna could have been done by crystal Shri Yantra then
writer would have written in article…….but it is not so.This
prayog requires Parad Shri Yantra. Those who want complete
success, they will use appropriate sadhna article
otherwise…Many sadhnas can be done on Shri yantra and it is
not required to take new Shri Yantra every time for other
sadhna .One Shri Yantra can bring good luck to you and your
future generations because when sadhna is done in front of
it, its auspiciousness goes on increasing by itself.
We have given all sadhnas possible on Shri yantra in first
edition of Tantra Kaumadi. And many rare and most difficult
sadhnas become possible only through poojan (as per rules)
of some special Samagri.
All the yantra available today are contained within this
yantra. The type of shaktis and sub-shaktis which reside in it
includes everything. And it is not just a talk nor a subject of
laughter. Take one example……this yantra is also used in
parad Vigyan.
You will think which purpose it serves there ….
For your info….High-level yogis of Parad Vigyan took a
resolution to free entire world from poverty and progressed
in this field. And when it is about getting rid of poverty and
establishing prosperity then very vast form of Shri, Bhagwati
Shodashi Tripur Sundari will be present.
You can guess it from this fact that Sadgurudev taught gold-
construction procedure through the medium of Shri Yantra
practically.
This is amazing that is this possible and answer to it is yes.
But this procedure is not for all. It should not be that
everyone starts writing that would you tell it. This is to be
decided by Sadgurudev. It is up to you to prove eligibility
and develop your ability otherwise it is not possible even in
your dreams that you keep on throwing challenge and
someone will get impressed and teach you.
Presence of this type of Shri Yantra in your worship-room is
incredible incident since it may be sadhna of any god or
goddess, it may be done through Dakshin maarg or Vaam
Maarg , it is Satvik procedure or Tamsik procedure or Raajsik
procedure , in all of them Shri Yantra is used. It gives boost
to your sadhna. It is combined form of all shaktis of entire
world, which we have limited only to wealth. Its 2813
special angles and Shaktis are beyond our thinking capacity.
Today scientists are working hard day and night so that they
can understand all triangles of Shri yantra and power hidden
in them. But more they discover, more they feel amazed.
Just recently the rare prayog related to Parad Shri Yantra
which wasgiven by Rozy Nikhil Ji is indescribable in itself. By
doing it you can get rid of all shortcomings of your life and
increase your qualities multiple times. This is not an end
rather when by sadgurudev’s grace, high-level Vidhaans will
be attained from his ascetic disciples, they can be also done
on it.And for each prayog one need not take new Shri
yantra.
It is true that every Shri Yantra has got a very special
quality. And whenever we get permission, we will make you
available Shri Yantra whose names are given above. But
there is still time left, and those who cannot take right
decision on time and waits for future, they cannot be
sadhaks .Steps taken today will form the foundation stone of
our future.Parad Shri Yantra has to be kept with lot of
caution because many times it can be broken accidently and
broken Shri Yantra does not serve any purpose. That’s why
whenever you get it, keep it with all precaution. Reason is
that it cannot be assembled so easily since the hidden
procedure which had been done at the time of its
construction is broken and it cannot be joined.
Today there are so many sadhak among us by seeing whose
knowledge everyone is amazed and in root of it lies Shri
Yantra (by blessing of Sadgurudev) only which virtually is
indicator of everything. If we give one shape to all states of
life then all those states which gives supremacy to life ,will
be Shri yantra only.
Those fortunate ones who have got chance to go to sadhna
room of Sadgurudev ji pretty well know that there was
present huge and supreme Shri Yantra at his personal sadhna
place. Will still we not understand importance of Shri
Yantra?
Muhurat of that marvellous sadhna given on blog, which can
be done on Parad Shri Yantra, is coming very soon. Decision
has to be taken now to establish this rare yantra in sadhna
room, do its sadhna and experience that excellence
yourself.
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बल ल :|
पयरदीय श्री यतत्र भी कु छ ऐसय हैं .हयलयकक यह थसफव आज हमयरे बीच धन ियथप्त
कय मयनो एक ितीक बस बन् कर रह गयय हैं , जबकक वस्तु थस्तथथ इसके पूरे
थवपरीत हैं .यह श्री यतत्र तो जीवन कय सौभयग्य हैं , जीवन की उच्चतय हैं, एक अल्प
जीवन मे अपने आप को उछयल कर थहमयलय के उच्च थशखरों मे अपनय नयम अांककत
कर लेनय जैसय हैं .
पर यह लगतय तो नही हैं .की इसमें ऐसय क्यय इतनय थवशेष हैं .??
श्री यतत्र
कछ्छछ्छप श्री यतत्र
सुमेरु पृष्ठीय श्री यतत्र
वयरयहीय श्री यतत्र
मयततगीय श्री यतत्र
नवथनथध श्री यतत्र
धयरयपृष्ठीय श्री यतत्र
भू गभीय श्री यतत्र
पयरद श्री यतत्र
इस तरह के अनेको भेद और भी हैं इस तरह से हर श्री यतत्र होतय तो श्री यतत्र
ही हैं और उस पर सयरी की सयरी सयधनयए भी की जय सकती हैं पर अतय श्री यांत्रों
कय महत्व भी कोई कम नही .कु छ व्ययपयरके थलए तो, कु छ घर मे स्थयथपत करने के
थलए तो, कु छ जमीन मे स्थयथपत कर उस पर उच्च और समृि शयली भवनों कय
थनमयवण करने के थलए होते हैं.
आज हमयरे सयमने सवोत्तम श्री यतत्र- पयरद श्री यतत्र हैं .और इसमें से भी हमें
सौभयग्य हैं की कछ्छछ्छप श्री यतत्र भी उपलधध हैं .यहयूँ यह समझने वयली बयत हैंकक
जो धलॉग मे आई सयधनय के थनथमत्त यकद वह सम्पन्न करनय हो तो वह ककसी भी
पयरद श्री यतत्र पर सांभव हो सकती हैं .उसके थलए कोई शतव नही हैं पर वह पयरद
श्री यतत्र पूरे चयहे गए थनयमों पर खरय उतरे अतयथय शीशे कय पयरद श्री यतत्र हो
उस पर भले ही पयरे की परत चढय कर उसे ही पयरद श्री यतत्र बतय कर कोई दे , दें
.....तो उस पर ...क्यय कहनय कु छ शेष हैं .
यह तो छल हैं .
यह तो अद्भुत हैं की क्यय ऐसय भी सांभव हो सकतय हैं और इसकय उत्तर हैं हयूँ .
पर यह थवथध सभी के थलए नही की हर कोई थलखने लगे की क्यय आप बतयएूँगे
.यह तो सदगुरुदेव जी के थनणवय कय क्षेत्र हैं आप अपनी पयत्रतय थसि करें और
वह योग्यतय थवकथसत करें अतयथय थसफव चेलेंज हर तरफ फे कते रहे और कोई
उनसे िभयथवत हो कर आपको कोई सीखय जययेगय यह तो कदन मे क्यय स्वप्न तक
मे सांभव नही हैं .
आपके घर मे पूजय स्थयन मे इस िकयर कय श्री यतत्र होनय तो एक अथितम घटनय
हैं क्योंकक की सभी देव यय देवी की सयधनय हो कफर वह चयहे दथक्षण मयगव से
हो यय वयम मयगव से यय सयथत्वक िकक्रयय हो यय तयमथसक यय रयजथसक िकक्रयय हो
सभी मे इस श्री यांत्र कय ियोग होतय हैं, इससे आपकी सयधनय को बल ही
थमलतय हैं ,यह सयरे सांसयर की समष्ट शथियों कय एक पूांजी भूत स्वरुप हैं,थजसे
के बल आज हमने धन तक ही सीथमत मयन थलयय हैं इसके २८१३ थवथशष्ट कोणों
और शथियों कय तो कोई अनुमयन ही नही .
यह बयत जरुर हैं कक हर श्री यतत्र कय अपनय ही एक अथत थवथशष्ट गुण होतय
हैं,और थजन भी श्री यांत्रों के नयम मैंने ऊपर कदए हैं,जैसी ही आज्ञय और अनुमथत
थमलेगी आपके थलए सुलभ करवयए जययेंगे पर अभी तो समय हैं ,और जो समय
पर सही थनणवय नथह ले पयए और भथवष्य कयल के थलए बैिय रहे , वह तो सयधक
नही हो सकतय हैं. आज के इन कदमो से ही तो भथवष्य की एक आधयर थशलय
बनेगी .पयरद श्री यतत्र को बहुत ही सांभयल कर रखनय होतय हैं क्योंकक दुघवटनय वस्
यह अनेक बयर टू ट जयतय हैं और खांथडत श्री यांत्र कय कोई उपयोग नही .आपको
पुनः एक नयय श्री यतत्र चयथहये ही होगय .इस कयरण जब भी इसको पयए बहुत ही
सयवधयनी से रखे.कयरण यह हैंकक इसे कोई आसयनी से जोड़य नही जय सकतय हैं
.क्योंकक थनमयवण करते समय जो भी गोपनीय िकक्रयय हो रही थी वह भी तो टू ट
गयी हैं उसको जोड़य नही जयसकतय हैं .
आज हमयरे बीच मे अनेको सयधक ऐसे हैं थजनके ज्ञयन थवज्ञयनां को देख कर सभी
आश्चयव चककत हैं और इन सभी के मूल मे सदगुरुदेव जी के आशीवयवद स्वरुप श्री
यतत्र ही हैं .जो वयस्तव मे सब कु छ कय ितीक हैं .अगर जीवन की सयरी थस्थथतयों
को एक रूप मे ढलय जयए तो वह सयरी स्थथतयों जो जीवन को उच्चतय देती हैं
वह श्री यतत्र ही होगय .
Mahavidya Kali and Tara have been called one and the
same at many places. But this fact is only to make
normal sadhak understand. But those who are the
connoisseurs of Tantra, they pretty well know that
despite their basic form Aadya Shakti being same , still
there are many differences between these two forms.
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यकद भयग्ययवयशयतन्नयथ ! तयरय थवद्यय िलभ्यते |
इच्छय थसथिभयववत े स्य कक मोक्षष्टथसिये ||
यकद भयग्ययवशयद्वयतस ! कोरट जतम तपोबलयत |
लभेत तयरकयां थवद्यय सय भवेत कल्प पयदप ||
भैरिी भैरि से कहती हैं ..की हे नाथ यिद सौभाग्य से तारा ििद्या /तारा ििग्रह यिद कहीं से
प्राप्त हो जाए तो उसे इच्र्ा िसिद्च स्ित प्राप्त हो जाती हैं ,तब िफर अष्ट िसिद्च और मोक्ष की
क्या कथा हैं ?िह तो ‚यं यं िचन्त्तते कामं तं तं प्राप्नोित िनिश्चत”ं के अनसु ार सिा शिि
सम्पन्न हो जाता हैं, हे ित्स यिद देिात करोड़ों जन्म के तपोबल से तारा ििद्या /तारा ििग्रह
प्राप्त हो जाए तो िह परुु ष कल्पिक्ष
ृ के सामान सफल हो जाता हैं.
पारद तो अपने आप मे सिाश्रेष्ठ धातु हैं और इसकी िजतनी प्रशश ं ा की जाए उतना ही कम
हैं. व्यिि के शरीर मे उसका सत्ि अश ं सिाश्रष्ठे पदाथा होता हैं ,तो इसी बात से कल्पना की
जा सकती हैं की तंत्र के आद्य गरू ु का यह सत्ि अंश हैं तो िह क्या स्थान रखता होगा. और
आज के समय मे अष्ट संस्काररत पारद प्राप्त होना तो क्या, ऐसा व्यिि िमलना ही एक तो
दल
ु ाभ हैं उस पर जो सिा ििश्व की िहत की िचतं ा करता हो और उसमे से भी ऐसे का जो
पारद िििानं मे रूिच रखे और उसमे सभी कोई ििरला होगा होगा जो शास्त्रीय रूप से भी
एक दो संस्कार कर पाने मे सफल हो ,पर कोई अत्यंत िबरला ही इस प्रकार के अष्ट संकार
सम्पन्न्कर इस प्रकार का अित दल ु ाभ ििग्रह बना सकने मे सक्षम होगा .जब अष्ट संकाररत
पारे से िनिमात ििग्रह की बात उठे तो ..िफर िाणी मौन हो कर उस ििग्रह की और िह स्ियम
उस साधक के भाग्य को देखती हैं की इसने ऐसा क्या िकया हैं की इसके यहााँ इस प्रकार का
ििग्रह जा रहा हैं ऐसे ििग्रह िसफा एक साधक के िलए नही बिल्क उसके पीढ़ी दर पीढ़ी सभी
िंशजो का सौभाग्य बन् जाते हैं . और इस किल काल मे यिद ऐसा तारा ििग्रह प्राप्त हो िह
ही सिोत्तम हैं .
िाराणसी के सिाश्रेष्ठ तंत्र साधक श्री अरुण कुमार शमाा जी की कृितयों का िजन्होंने ने भी
अध्ययन िकया होगा िह भी इस बात से सहमत होगा की भगिती तारा के महा पीठ से ही
उनकी तत्रं साधना यात्रा प्रारंभ हुयी उनके पररिार मे कई कई पीढयों से भगिती तारा ही
कुलाराध्या रही हैं ,और उनकी रचनाओ ं मे उनके िान की उद्रात्ता मे भगिती का स्पष्ट अनग्रु ह
देख जा सकता हैं और अनभु ि िकया भी जा सकता हैं. और उनकी लेखनी और उनका
अद्भुत तंत्र िान का जो कुर् अंश स्िरुप, जो उनकी लेखनी से िनकला हैं िह ही अपने आप
मे अिप्रतम हैं .और उन्होंने स्ियम कई कई बार भगिती तारा के अनग्रु ह की बात कही हैं.
और यह कोई संयोग की बात नही हैं, बिल्क एक िनिश्चतता हैं .
महाििद्यासु सिाासु कलौ िसिद्चरनमु त्ता |
सिा ििद्यामयी देिी काली िसिद्चनामु त्ता ||
कािलका तारका ििद्या सिााम्नायैर नमस्कृतां |
तयोरजन मात्रेण िसद्च : साक्षात् सदािशि||
किलयगु मे सभी महाििद्याओ से उत्तम िसिद्च िमलती हैं, तथािप किल काल मे सिा
ििद्यामयी देिी कह के काली, तारा को ही सिोत्तम िसिद्च बताई गयी हैं .कािलका और
ताररका नाम की ये दो ििद्याये सिा शास्त्रों से प्रशिं शत और अनमु ोिदत हैं,और उनके पजू न
साधना मात्र से सदािशि प्रसन्न हो जाते हैं,
जहााँ पारद हैं िहां साक्षात् िशि तो हैं ही और पारद और तारा का यह अद्भुत सामजं स्य तो
देिताओ ं के िलए भी दल ु ाभ हैं जो इस पारदीय तारा के ििग्रह मे हैं.अनेक साधक, जो
महाििद्या के आराधक हैं और उनके घर मे िशििलंग हैं,और िे साधक तो सौभाग्य शाली हैं
िजनके यहााँ पारद िशििलंग हैं ,पर यह अत्यतं हो गोपनीय तथ्य हैं की िजसका अनेको
साधको को भान तक नही हैं की पहले महादेिी की पजू ा की जाती हैं तत्पश्चात िशि पजू ा
अन्यथा महादेिी और भगिान िशि उस पजू ा को स्िीकार नही करते हैं .
कहा गया हैं
महाििद्यां पिू जयत्िा िशिपजू ां समाचरे त |
अन्यथा करणादेिी ! न् पजू ाफलमाप्नयु ात|| (िलंगाचान चिन्द्रका )
महाििद्या काली और तारा को कई कई जगह एक ही कहा गया हैं पर िह तो एक सामान्य
साधक को समझाने की बात हैं पर जो तंत्र ममाग्य हैं िह भली भांती जानते हैं की मल
ू रूपा
आद्या शिि के एक ही होने के उपरान्त भी बहुत भेद हैं इस दो स्िरूपों मे .
यह कोई संयोग नही हैं की भगिती काली कृष्ण स्िरुप मे और तारा नील स्िरूपा हैं , जहााँ
काला रंग ब्रम्म्हांड की समस्त ऋणात्मक उजाा का प्रतीक हैं तो नीला रंग सम्पणू ा आकाश
तत्ि जो सिा व्यापी हैं, उसका प्रतीक हैं .जहााँ काला रंग भयािहता दृिष्टगत करता हैं िही
नीला रंग नील िणा मनोरम हैं .
एक ओर भगिती कािलका हैं जो साधक को मोक्ष प्रदाियनी हैं,िासना से मि ु करती हैं,िही ाँ
भगिती तारा जीिन के सिोच्चता प्रेममयता, स्नेह्यता से अपने साधक को आप्लािित
करती हैं ,उनके साधक का जीिन अद्भुत स्नेह से भरा परू ा होगा, भगिती अपने साधक एक
जीिन मे िनश्चल स्नेह और प्रेम का सचं ार करती ही हैं अब यह िकसी भी स्िरुप मे हो .भाई
बिहन , िपता पत्रु ी या अन्य कोई भी स्िरुप मे हो .पर होगा सिा िनश्र्लता से .
सयू ा पत्रु यमराज भगिती काली के नाम से ही भी भय से कांपते हैं ,िही भगिती तारा तो
सयू ा की शिि हैं उनके प्रकाश से सारा ििश्व जीिित और गितशील होता हैं.जहााँ भगिती
काली सम्पणू ा राित्र का सञ्चालन करती हैं िही भगिती तारा सारे िदन का सञ्चालन अपने
हाथ मे लेती हैं .
भगिती काली कृपाण िलए हुये हैं ,जो इस बातका प्रतीक हैंिक िे अिान को नष्ट करती हैं
और जहााँ उसके हस्त मे मडंु हैं िह इस बात का प्रतीक हैं की सारे शरीर का सार, मैंने मडंु
िलया हैं अतुः व्यथा की सब बाते र्ोडो .िही ाँ भगिती तारा कृपाण के साथ कैं ची भी धारण
िकये हुये हैं, कैं ची का िििेचन तो िपर्ले भाग मे हो ही चक
ु ा हैं औत िे झठू े अंहकार को
नष्ट करती हैं न् की साधक के आत्मािभमान को .क्योंिक िबना स्ििभमान के मानि जीिन
पशिु त या कें चएु ित हो जायेगा.
काली आद्य हैं जो की शन्ू य का प्रतीक हैं, िजनको पररभािषत ही नही िकया जा सकता हैं
और यहााँ एक सक्ष्ू म भेद यह हैं की यिद आद्य को शन्ू य माने तो िफर चाहे सहं ार िम से
िगने या सिृ ष्ट िम से दोनों से िगनने पर भगितो तारा निमी कहलाती हैं और इसी कारण
निमी ितिथ से भगिती तारा का ििशेष योग होता हैं .क्योंिक ९ का अंक पणू ाता का प्रतीक
हैं जीिन मे सि कुर् पाने और उपभोग का प्रतीक हैं सिा दृष्टी से यि
ु होने का और जीिन
मे उत्साह, ओज, उमगं ता सभी का प्रतीक हैं .
कहााँ भी गया हैं की
पञ्च शन्ू ये िस्थता तारा ,सिाान्ते किलका िस्थता ||
अथाात पांचिे शन्ू य तक मतलब पांचो महाभतू तक/ पञ्च तत्ि तक भगिती तारा हैं िे भी
सत्िगणु ािन्िता हैं,और उनसे भी जो परे सत्ता हैं िह काली हैं. काली जहााँ के िल्य दाियनी
हैं,िही ाँ तारा सत्िगणु ािन्िता और तत्ि ििद्या प्रदाियनी हैं.
तीन प्रकार के भाि तत्रं साधना मे मे बताये गए हैं,पशु भाि , िीर भाि और िदव्य भाि.
इसका अथा तो बहुत व्यापक हैं पर जो मल ू बात समझने लायक हैं, िह हैं की पशु भाि
िजसमे हर सामान्य साधक रहता हैं और कई कई बार तो िसिद्च पाए व्यिि भी इसी भाि
िाले हो सकते हैं, जो की अष्ट पाशो से बंधे हो .
जो िनयमो मे,मान्यताओ ं मे, उच्च नीच मे, जाित भेद मे,आचार ििचार मे बंधा हो,
िजसमे लज्जा और घणृ ा जैसे पाश से जो जीिन आच्र्ािदत हो, िह भले ही चाहे िकस भी
देि शिि की उपासना करें या प्रदशान करें या उसमे िकसी कारणिस िसिद्च भी पा ले पर
िह जीिन िास्ति मे पशिु त हैं ,और पशु भाि इसी बात का द्योतक हैं.
जो इस अिस्था से ऊपर उठ जाता हैं और यह तो िसफा और िसफा सदगरुु देि कृपा से सभं ि
है, अन्यथा अपने आप को उच्च बताने िाले कई कई हैं ,जो कहते कुर् हैं और िजनका
आंतररक जीिन परू ी तरह से अष्ट पाशों से बंधा होता हैं .यहााँ तक की िजन अनेको ने तंत्र
के नाम पर इस परम मागा को अत्यािधक क्षित पहुचं ाई हैं या आज भी यह काया कर रहे हैं ...
ऐसे अनेको ..साधक िास्ति मे पशु भाि के ही रहे हैं .
और जो सिोच्च भाि हैं ‚िदव्य भाि ‚ जो की के बल और के बल सदगरुु देि कृपा से ही
सभं ि हैं , जब सदगरुु देि यह िनिश्चत कर ले ते हैं यह मानस बना लेते हैं की इस साधक को
िदव्यता दे ही देनी हैं ,यहााँ ध्यान रहे िसिद्च देनी की बात नही बिल्क िसिद्चयों को आत्मसात
कर उससे भी उच्च स्थान की बात हैं ,िहााँ सदगरुु देि की कृपा कटाक्ष साधक के िलए िदव्य
भाि का मागा प्रसस्त कर देता हैं , िह स्ियम अनभु ि करता हैं की यह सारा जगत िसफा और
िसफा सदगरुु देि रूपी परम तत्ि ही तो हैं और उनसे अलग कुर् भी नही .और यह तो बहुत ही
किठन हैं पर जब सदगरुु देि ही ठान ले, तब भला क्या किठन होगा और इसी तथ्य का एक
प्रमाण का एक स्िरुप भगिती तारा हैं ,िे ही सदगरुु देि की परम करूणा का एक अंश हैं .और
उनका पारद का ििग्रह प्राप्त होना इस बात का पररचायक हैं की साधक को िकस स्थान पर
अब सदगरुु देि देखना चाहते हैं या उन्होने अब अपना मानस बना िलया अब बस थोडा सा
और श्रम भर साधक को करना शेष रह जाता हैं .
क्योंिक भगिती तारा की साधना अगर सही अथो मे देख जाए .िनष्पक्ष भाि से तो
के िल और के बल िदव्य भाि का व्यिि ही कर सकता हैं या िजसे भगिती स्ियम चनु कर
अपनी साधना के िलए मागा प्रसस्त कर दें.
स्नानािद मानस : शौचौ मानस : प्रिरो जप |
पजू नम मानसं िदव्यम मानसं तपााणािदकम ||
इस साधना के िलए साधक या िदव्य भाि के साधक के िलए सभी काल शभु हैं, अशभु
काल नाम का कुर् नही हैं, िदिा , राित्र, सध्ं या या महािनशा की आराधना मे कोई अतं र नही
हैं,इसमें शिु द्च अशिु द्च की कोई अपेक्षा नही हैं.स्नान िकये हुये या िबना स्नान िकये हुये का
कोई अंतर नही हैं.भोजन िकये हुये या न िकये हुये का कोई कोई अंतर नही.
इस भाि के साधक को और भि सागर मे डूबना नही पडता हैं.
और यह सब संभि कहााँ ,िह भी आसानी से ... धीरे धीरे हो सकता हैं तो िह एक मात्र
ऐसे भगिती तारा के पारदीय ििग्रह स्थापन से जो स्ित ही अपनी करुणामयता से अपने
साधक को ऐसे उच्चस्तर पर ला देती हैं .यह और कोई देि या देिी नही कर सकते हैं .यहं पर
एक साधक रुक कर सोचें की इससे ,इस िदव्य भाि की अिस्था से उच्च क्या हो सकता हैं
जहााँ मात्र आनंद और आनंद का ही साम्राज्य हो .
िही ाँ मानि जीिन आज िजस तरह से भौितक धन के पीर्े दौड़ रहा हैं िह तो यगु का एक
गणु हैं पर उससे भी तो एक सामान्य क्या उच्च साधक भी अपना मंहु नही मोड सकता हैं यह
कहने से तो काम नही चलता की मझु े धन की कोई लालसा नही हैं .िबना भौितक धन के
सब शन्ू य सा हो जाता हैं ,और भगिती तो प्रबल धन यहां पर भौितक धन से ही मेरा
मतलब है, प्रदाियनी हैं .अनेको ऐसे साधक हैं िजन्होंने इस महाििद्या की थोड़ी सी या अल्प
भी साधना की हैं और उन्हें अचानक भौितक लाभ कहीं िकसी आकिस्मक धन लाभ के
रूप मे, तो िकसी को प्रमोशन के रूप मे, तो िकसी को िकसी व्यापाररक सौदे के रूप मे
हुआ ही हैं .जब सामन्य रूप से मंत्र जप या स्त्रोत की इस महाििद्या भगिती तारा की इतनी
महत्िता हैं तब अगर उनके पारदीय स्िरूप जो की सहत्रािन्िता देह तारा के रूप मे हैं उसके
स्थापन के बाद की क्या िस्थित होगी अगर साधक साधना पथ पर सतत गितशील रहे तो .
स्ियम सदगरुु देि जी ने कहा हैं की इस साधना से पिू ा उनके साथ जब सैकड़ों िशष्य रहते
थे तब उनको रोज के भोजन आिद का प्रबध कै से हो िह भी िचिं तत रहे और यह
स्िाभििक ही है गरू ु ही तो मााँ होता है. और एक मााँ अपने बच्चे को आहार आिद देने
मे कै से कोई कृपणता कर सकती हैं ?अगर करती हैं तो िफर िह मााँ कहााँ....
और उन्होंने जब यह तारा साधना करने गए तब उन्हें जो गरू ु िमले उन्होंने कहााँ िक
पहले ६ महीने मेरी सेिा करनी होगी और जब मैं सेिा से सतं ष्ठु हो जाऊंगा तब ही यह
साधना प्रदान करूाँगा .सदगरुु देि जी के िनिेदन पर की आपके संतष्ठु होने का क्या भरोषा
कहीं आप िकसी भी र्ोटी सी बात पर नाराज़ हो गए तो ..मेरे तो ६ महीने की मेहनत ?
तो उन गरू ु देि ने कहा की अगर िबस्िास नही हैं तो िापस चले जा .मैंने नही बल ु ाया हैं
तझु े .जो िशष्य सशं य करता हैं िह नष्ट हो जाता हैं .सश
ं यात्मा ििनश्यित
सदगरुु देि कहते हैं िक उन्होंने रुक कर सेिा की, िह तारा साधना की और उसके बाद से
उन्हें कभी भी िकसी भी प्रकार का आभाि नही रहा न उनको न उनके साथ गितशील रहें
िाले िशष्यों को, सभी उत्तम से उत्तम भोजन करते और साधन मय रहते .क्योंिक सदगरुु देि
का बहुत स्पस्ट भाि रहा हैं और उन्होने कहााँ भी कई कई जगह हैं की जो गरू
ु तमु से ही धन
की याचना करता हैं िह भी तरह तरह से ..िह तम्ु हे दे भी क्या सकता हैं . जो खदु एक
याचक हो िह तम्ु हे प्रदान भी क्या करे गा .
और जब पारदीय सहत्रािन्िता तारा के ििग्रह से सामने यिद कोई साधक साधना करे गा तब
उसकी अिस्था क्या होगी ,उसका िकतने धनधान्य से पररपणू ा होगा िह तो कल्पना के परे
हैं.पर यह भी िनिश्चत हैंिक इस तरह का ििग्रह, हर िकसीके भाग्य मे नही के बल, कुर् ही
भाग्यशाली होंगे जोई यह पा पाएंगे.प्रकृित की अपनी ही एक लीला हैं िह कब िकसी
को,इतने आसानी से कमा फलो से मि ु होने दे सकती हैं .
अब यह तो सौभाग्य हैं इस प्रकार के अित दल
ु ाभ पारद सह्त्त्रिन्िता तारा ििग्रह का पाना और
अपने नाम को और अपने आप को ऐसे उच्च स्तर के िलए तैयार करने का इतना दल ु ाभ
सरल और सहज अिसर को समझ पाने का ...
PAARAD SAHASTRAANVIT DEH TARA RAHASYA -2
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श्रद्चया अश्रद्चया िािप पठे न्तारारहस्यकम,
सोsिचरे नैि कालेन् जीिन्मि ु िशिो: भिेत ||
जो श्रद्चा या अश्रद्चा से इस महादेिी तारा के रहस्य को जानते हुये इनकी की उपासना /साधना करता
हैं,िह शीघ्र ही जीिन्मि ु होकर िशि स्िरुप हो जाता हैं .
सम्पणू ा तंत्र की आधार िशला मे ....या याँू कहा जाए की साधना क्षेत्र की आधार िशला मे एक मख्ु य
आधार सदगरुु देि तत्ि हैं तो साथ ही साथ एक ओर तत्ि हैं िह हैं श्रद्चा ..िबना श्रद्चा के साधक लाख
कोिशश कर ले िह इस साधना क्षेत्र मे सफल हो ही नही सकता और यह तथ्य तो साधक िजतना उच्च
स्तरीय साधना िम मे प्रिेश पाते जायेंगे उतना ही गंभीर ििषय होते जाता हैं पर भगिती तारा की
साधना मे एक बहुत ही अद्भुत तथ्य हैं की उनकी साधना या उपासना या कुर् भी साधना प्रििया
िकया जाये िह िफर चाहे श्रद्चा से की जाए या अश्रद्चा से सही, साधक को फल प्राप्त होता ही हैं
,और यह तो अपने आप मे बहुत उच्च कोिट के िरदान स्िरुप जैसा हैं ही. कारण यह हैं की अगर
साधक सच मे श्रद्चा यि ु ता हुआ तो िह प्राप्त कर ही लेगा पर प्रारंिभक साधक इस श्रेणी का कै से हो
सफल हो सकता हैं, िह कोिशश तो करता हैं इस श्रद्चा तत्ि को पाने की, पर हर िार असफल ही होता
हैं क्योंिक ‚श्रद्चा िान लभते िानम‛ के अनसु ार िबना श्रद्चा के िान कै सा ?कै से संभि हैं ?
भगिती तारा के स्िरूप और उनके िात्सल्य की बात ही िनराली हैं, साधक का सबसे बड़ा शत्रु अगर
कुर् हैं तो िह हैं उसका अहक ं ार और यह इतनी सक्ष ू मता से साधक को अपने जाल मे आबिधत कर
लेता हैं की साधक स्िािभमान से कब अहक ं ार की अिस्था मे प्रििष्ठ कर जाता हैं, उसका उसे पता ही
नही चलता हैं ,और इस अहक ं ार रूपी ििष का पररणाम बहुत ही भयंकर होता हैं सामान्य रूप मे
साधक के सहयोगी से िह साधक स्ियं दरु ी कर लेता हैं उसे अचानक अिभमान होने लगता हैं, जो की
कल तक न था की िह बहुत कुर् हैं और कुर् समय मे तो उसका सब कुर् नष्ट हो ही जाता हैं.भगिती
तारा ही एक मात्र महाशिि हैं, जो साधक के अहक ं ार का हरण कर उसे िनमालत्ि से पररपणू ा कर देती
हैं, िे खिा गिा हाररणी हैं.
उच्च कोटीस्थ तािं त्रक आचाया गह्य ु तम पजू ा साधना प्रििया मे िजस बात का अक्सर उल्लेख करते हैं
िह सामान्य साधक के समझ से परे हैं.िह यह की मानि जीिन के चार परुु षाथा मे धमा को लगभग १०
कला से यि ु बताया जाता हैं और अथा को १२ कला से यि ु पर एक सामान्य साधक जान कर आश्चया
चिकत हो जायेगा की इस प्रकार तो काम को १४ कला यि ु होना चिहये पर उसे १६ कला से जोड़ा
जाता हैं ,इसका साधारण मतलब यह हुआ की अष्ट पाश मे से काम भाि रूपी पाश से मि ु होना
िकतना किठन हैं .क्योंिक काम तत्ि से पणू ा मुिि की बात नही हैं, ऐसी अिस्था मे साधक का जीिन ही
िनस्तेज हो जायेगा, सारा उमंग, उत्साह, ओज सब कुर् एक काम तत्ि के अतं गात ही तो हैं.काम के िजस
भाि से एक सामान्य साधक का ज्यादा पररचय होता हैं, िह हैं देिहक सख ु रूपी िासनात्मक भाि और
इस भाि से, ऐसी कोई शिि नही हैं जो मि ु ता िदला सके .और यही पर एक बार पनु ुः भगिती तारा
का प्राकट्य होता हैं क्योंिक िह ही तो तारने िाली हैं और उनके िलए क्या तारना हैं? क्या नही? िह
साधक की अपेक्षा कहीं जायदा जानती हैं .
पर यह कै से माना जाए ?.
तो भगिती तारा द्रारा िलए गए आयधु ो को ध्यान से देखने पर उनके एक हस्त मे कै ची दृिष्टगत होती हैं
.आिखर जब खड्ग हैं तब कै ची की क्या आिश्यकता ?? िह इसिलए की भगिती तारा ही तारने िाली
हैं.क्योंिक दस महाििद्या मे कोई महाशिि मे िान प्रदाियनी हैं, तो कोई धन प्रदाियनी हैं, तो कोई अभय
प्रदाियनी हैं, तो कोई समस्त सख ु प्रदाियनी हैं, पर भगिती तारा तो तारने िाली हैं और जो तारने
िाला होगा, िह साधक के एक- एक बधं न को काटते जायेगा, इस दृष्टी से भगिती तारा और
सदगरुु देि तत्ि मे कोई अतं र कहााँ हैं .और कै ची इसिलए हैं की अित सक्ष्ू म बधं न को काटने मे खडग
नही, कै ची की ही आिश्यकता होती हैं .
भगिती आद्या मााँ महाकाली और तारा िास्ति मे एक ही स्िरुप हैं या ऐसा कहा जाये की भगिती
काली ही नीलिणाा होकर तारा रूप मे हैं या तारा ही कृ ष्ण िणा होकर काली के रूप मे हैं तो कहीं
जायदा उिचत होगा .याँू तो दोनों स्िरूपों मे अनेको भेद हैं भले ही तंत्र ग्रंथो दोनों स्िरूपों को एक ही
कहते हैं और यह भी तथ्य सामने रखते हैं की दोनों मे कोई अतं र नही हैं और इनमे अतं र रखने िाला
नका का गामी होता हैं .अगर ताित्िक दृष्टी से देकह जाए तो सम्पणू ा ििश्व िही एक आद्या शिि का ही
लीला ििलास हैं .िही तो कहती हैं ‚ अहम एकोहम िद्रतीयोनािस्त ...‛ इस रूप से सभी एक हैं पर जब
सक्षू मता से देखा जाये तो पता चलता हैं की भगिती काली तो िनष्कल ब्रहम के स्िरुप को प्रदिशात
करती हैं और िही तारा सकल ब्रह् के स्िरुप को ..भगिती काली के स्िरुप मे सम्पणू ा आकाश तत्ि
भी प्रलय काल मे ििलीन हो जाता हैं तब क्या शेष रहता होगा, यह सोचा भी नही जा सकता हैं, इस
कारण उनकी साधना सरल नही हैं अत्यािधक किठन हैं, भले ही साधक या अन्य सामान्य जन उनकी
साधना मे िकतने मन से प्रििष्ठ हुये हैं क्योंिक उनका स्िरुप तो ..अपने आप मे रहस्यमयता की चरम
हैं...पर जहााँ अंत नही.िही भगिती तारा अपने िात्सल्यमयता से साधक को िान रूपी अमृत से जो
उनके पष्ठु ी प्रदाता स्तनों से प्रिािहत हैं साधक को पररपणू ाता दे ही देती हैं और िात्सल्यमयी मााँ जब
स्ियम ही, साधक को ििशद्च ु िानमय अमृत को स्ियं ही स्तनपान के माध्यम से कराने को तैयार हो तो
साधक को अब और क्या कुर् करना देखना..शेष हैं.बस जय मााँ तारा ..जय जय तारा ही शेष रह
जाता हैं ...यही भािमय कंठो से िनकल सकता हैं .भगिती तारा ने ही जब भगिान िशि द्रारा हलाहल
ििष का पान िकये जाने पर जब उन्हें द्रारा उस ििष की ज्िाला को सहन न कर पाने की हालत मे ,
स्ियम अपना स्तनपान करा कर उसी कष्ट से बचाया था तब िकसे उनकी शिि मे कोई शक होगा..
भगिती काली की साधना किठन हैं और यह भी एक सत्य हैं की भगिती काली िदगम्बरा हैं और उनके
पास साधक को जा सकने की अिस्था मे या तो परम योिगत्ि अिस्था लाना पड़ेगी या स्ियं िशशिु त
हो जाये तभी तो साधक अपनी िदगम्बरा मााँ के पास जा सकता हैं .पर भगिती तारा तो स्ियम ही
साधक को अपने िात्सल्यमयता से िशशिु त कर देती हैं.भला कौन सी मााँ अपने नन्हे से िशशु को
साधना करते देख पायेगी ..मााँ तो मााँ हैं ...और इसी भाि के कारण , िे उसके अिान का स्ियं ही हरण
कर लेती हैं उसे िनमालत्ि दे देती हैं .हैं न् िकतना आसान,सरल,सहज और िकतना भाि भरा स्पशा जो
के बल एक मााँ ही अपने बच्चे को दे सकती हैं , िह भी सम्पणू ाता के साथ .
अनेको इसे उदाहरण हैं जब साधको ने िसफा एक रात की साधना करके या िसफा कुर् स्त्रोत पाठ
करके अिद्रतीय किित्ि शिि या िान पाया हैं और कौन सा स्िरुप इतना दयालु होगा .उनके गले
मे सशु ोिभत ५० मंडु ो की माला िास्ति मे सम्पणू ा मातृका शिि का पररचायक हैं और ऐसे साधक
को िफर कोई अन्य साधना की कहााँ आिश्यकता क्योंिक सारे मंत्रो की रचना मे इन्ही मातृकाओ की
ही शिि जो हैं.जीिन मे तीन प्रकार के ताप बताये गए हैं. दैिहक, दैििक और आध्याित्मक और इनसे
मिु ि या इनसे तरना या ..कै से संभि हैं .पर इन सबसे भी तारने िाली एक ही महाशिि हैं, इस स्िरुप
की तुलना ही नही और जब यह अपने पारदीय स्िरुप मे िह भी सहस्त्र स्िरुप मे साधक के सामने हो,
तब और क्या कहना/करना शेष रह जाता हैं .भगिती तारा धन प्रदाियनी हैं और यहााँ धन का मतलब
सब कुर् से हैं ..िह चाहे ििद्या धन हो या भौितक धन हो या आध्याित्मक धन हो,रूप सौंदया धन हो,
यश धन से लेकर जीिन की सारी उच्चतम अिस्था कहीं न् कहीं धन का ही कोई न् कोई स्िरुप ही हैं,
सभी कुर् आ जाता हैं इस पररभाषा मे ..िजसे िजस प्रकार का धन चािहये उसके िबना मांगे ही मााँ
तारा सब कुर् उसे स्ित दे देती हैं इतनी िात्सल्यमयता अन्य िकसी भी स्िरुप मे कहााँ ..भले ही उन
सारे स्िरूपों के मल ू मे मााँ एक ही हो .जैसे एक स्त्री मााँ, बिहन, पत्नी आिद अनेक रूप एक साथ
धारण िकये रहती हो और सभी मे िबिभन्न रूप मे उसका स्नेह ही अलग अलग होता हो पर जो मधरु ता,
स्नेहमयता,िात्सल्य, मााँ के स्िरुप मे अपने िशशु के िलए हैं िह भला अन्यत्र कहााँ दशानीय.अपनी
सतं ान की रक्षा के समय िोधािस्था मे िह िकसी की भी परिाह नही करती यहााँ तक अपने स्िामी का
भी ...यही तो उनकी गररमा हैं ...उनका स्नेह हैं तभी तो िे आद्य मााँ हैं ,पराम्बा हैं .
इस बात का एक प्रमाण की जब भी िकसी का भी बंगाल के िीरभिू म िजले िस्थत तारा पीठ जाना हो
तो आप पाएंगे की िहां आप िबलकुल एक एक र्ोटे बच्चे की तरह अपनी मााँ ,जो सारे जगत की मााँ हैं
उससे िबलकुल एक बच्चे की तरह िलपट सकते हैं और ऐसा कहााँ और िकस स्िरुप मे संभि हैं ..और
ऐसा इसिलए हैं की मााँ तो मााँ हैं .अिान, अहक ं ार नष्ट करती जाती हैं, साधक को उसका भान भी नही
होता हैं,और सम्पणू ा कंु डिलनी शिि के सम्पणू ाता के साथ जाग्रत होने का कोई ििग्रह अगर िचत्रण करता
हैं तो िह तारा स्िरुप हैं उनके माथे पर अििस्थत सपा इसी बात का प्रतीक हैं .क्योंिक िनमाल्त्िता कहााँ
से आयगी.यह कोई बाहर से थोपी जाने िाली चीज तो हैं नही .और भगिती तारा का प्रगटीकरण भी तो
साधक के मन ..आत्म और ह्रदय सभी से जड़ु ा हुआ हैं क्योंिक िजन तथ्यों को िह नष्ट करती हैं िह
कहीं न कहीं अिानता से जड़ु े हुये हैं .चाहे आपने साधना की हो या नही .आपके पास अगर ऐसा
ििग्रह हैं तो यह अिस्था स्ित बनने लगती हैं क्योंिक पारद दशान से स्ित: पारद देि आपके अंदर का
ििष, मैल, पाप और अन्य किमयााँ दरू कर आपको िदव्य पथ पर चलने का योग्य बनाते ही रहते हैं पर
जब पारद, स्ियम भगिती के इस स्िरुप को आत्सात कर साधको सब कुर् देने तैयार हो जाए तब
कहााँ और कै से नन्ु यता संभि ..इसिलए सदगरुु देि जी ने पारद काली ििग्रह से तो हम सभी को
पररचय कराया पर पारद तारा के बारे मे मौन ही रखा क्योंिक यहााँ िफर क्या शेष ..पर जब
इससे भी एक बात आगे की ..भगिती के सहस्त्रस्िरूपा की बात हो तो ..यह तो साधक के
परम भाग्य का ही प्रतीक हैं .
और िनिश्चत रूप से गली गली मे ऐसा ििग्रह िमल ही नही सकता हैं ,न ही यह रास्ते की कोई चीज हैं.न
ही यह पहले से बना कर कर रखी जाने िाली कोई चीज हैं .जब तक गरू ु मंडल का आदेश न हो इतने
उच्च कोिट का ििग्रह का िनमााण काया िकया ही नही जाता क्योंिक साधक को ध्यान मे रख करही इस
ििग्रह का िनमााण िकया जाता हैं और ऐसा ििग्रह िजसके सामने कुर् भी न िकया जाए ..न ही कोई
श्रद्चा या अश्रद्चा की बात हो और जो बस स्थािपत हो, उतने मात्र से सब कुर् सभं ि करने की िदशा मे
साधको को अग्रसर कर दें िह कोई सामान्य सी घटना नही, यह तो परम भाग्य का प्रतीक हैं . और
आज हैं ही िकतने साधक िजसके पास पास यह सहस्त्र स्िरूपा पारद तारा ििग्रह हो ...
और अब बात आती हैं श्रद्चा और अश्रद्चा से भी आगे ... की चाहे साधक पिित्र हो या अपिित्र हो,
िकसी भी स्थान पर,िकसी भी काल मे इनकी पजू ा कर सकता हैं, साधना कर सकता हैं क्योंिक काल
पर िनयत्रं ण रखने िाले भगिान आिदत्य के शिि,मााँ तारा जो स्ियम हैं और कौन सा देि या देिी
इतना र्ूट साधक को दे सकती हैं .यह बात जरुर हैं की भले ही आज साधक की मनिस्थित ऐसी न हो
पर जब यह ििग्रह सामने रहे तो स्ित ही यह अिस्था आ जाती हैं इस अिस्था को पाना मानो अबधतु
अिस्था को पाना हैं ..जहााँ सब कुर् िदव्य हैं ही .
क्योंिक भगिती के इस स्िरुप की साधना की पात्रता तो िसफा िदव्य भाि का साधक को ही सभं ि हैं
जो सब मे एक उसी परम तत्ि सदगरुु देि को न के बल देखें बिल्क पल प्रितपल अनभु ि करे , और यह
कोई मजाक की चीज तो नही हैं पर यह अिस्था कै से संभि हैं ..िह भी नए नए साधको के
िलए,जबिक उच्चस्थ साधको तक के सामने तो अनेको िफसलन हैं,कहीं अपनी ििद्या का घमंड हैं,
तो कहीं अपनी साधना िसिद्च का घमंड, तो कहीं स्ियम अपने को बााँध कर, ढांक कर रखी गयी
मयाादा का घमंड,तब यहााँ िफर भगिती की करूणा ही तो हैं की िे स्ियम, यह सारे घमंडो को, अिानो
को स्ियम अपनी करूणा से ..स्नेह से दरू करती जाती हैं .तब जब सब कुर्् यह संभि हैं के बल
एक ऐसे ििग्रह होने मात्र से ,िह भी इस तरह से धीरे धीरे ,िजससे साधक के भौितक
जीिन पर िकसी भी प्रकार का व्याघात न हो,उसका जीिन इस तरह से उच्च्ता पर
जाए की,मानो हौले से मााँ ने उसे अपनी गोदी मे सिाकाल के िलए ले िलया
हो,जहां न शद्च
ु ता अशद्च ु ता की बात हो ,न श्रद्चा अश्रद्चा की बात हो,न जहााँ
आचार ििचार की बात हो. जहााँ मााँ ही िनमाल्त्ि देती जा रही हो िहां ...िसफा
और िसफा एक मााँ का मानो अपने नन्हे से िशशु को सब कुर् िह भी जल्दी से जल्दी
देने की भािना ही तो हैं पर िह ख्याल भी रखती हैं की इसे कोई कष्ट भी न हो ..
और ऐसा तो सभी का भाग्य तो नही हो सकता हैं..
यह अिस्था िजससे के िलए देिता भी मानि स्िरुप मे आने को व्याकुल होते हैं, िह तो भगिती तारा
की साधना से ही तो सभं ि हैं ..क्योंिक भले ही कोई भी अन्य स्िरुप की साधना साधक कर ले .पर पणू ा
िनश्र्लता, िान यि ु ता और समस्त दोषों और बंधनों से तारने के िलए भगिती तारा के िकसी न िकसी
स्िरुप का आश्रय तो लेना ही पड़ेगा .
साधक की साधना सामन्यतुः बंधन मे होती हैं अनेको दोषो से, कहीं िह शारीररक हैं, िफर िह चाहे
चाहे स्िप्न दोष हो, से लेकर िकसी भी प्रकार की शारीररक या मानिसक न्यनू ता ही क्यों न हो ..पर
इस स्िरुप मे मााँ उसे ..इनसे मि
ु ही नही करिाती हैं बिल्क उस भाि भिू म पर ला ही देती हैंजो उच्च
योिगयों के िलए भी एक स्िप्न हैं .जहााँ िस मााँ और मााँ और और उनका िशशिु त साधक हैं.
और आज अगर सदगरुु देि जी की कृ पा से ऐसा संभि हुआ हैं की इस तरह का ििग्रह उपलब्ध हुआ हैं
तो उसे तो स्थािपत करना ही चिहये .क्योंिक आज िजन्होंने आिा दी हैं िह कल भी िैसी रहे, यह कहा
नही जा सकता हैंक्योंिक तंत्र मे न तो कोई भतू काल हैं न ही कोई भििष्यकाल ..अगर कुर् हैं तो िह
िसफा और िसफा ितामान काल और जो ितामान को को सधु ार लेता हैं िह भतू कालके अिभशापों से
और भििष्य काल के सभं ािित पतनो से भी बच कर उच्चता प्राप्त कर लेता हैं. ऐसा कोई सामान्य ििग्रह
कर ही नही सकता हैं .और िसफा पारद ििग्रह हो इससे भी नही बिल्क अष्ट संकाररत पारे से सम्पणू ा
िियाओ ं से बने इस सहस्त्र स्िरूपा भगिती तारा की बात की अलग हैं और ..यह भी के बल कुर् उन्ही
के भाग्य से सभं ि हुआ हैं, िजनके यहााँ इस तरह का ििग्रह पहुचना सदगरुु देि कृ पा के स्िरुप सभं ि हो
रहा हैं.क्योंिक यह कोई सामान्य घटना नही हैं .अगर इस बात का, ऊपर िलखे एक एक भाि का यिद
कोई मल्ू यांकन हो तो .अन्यथा ...
अब िसफा िजनके कमो का उदय हुआ हैं..िजनके सौभाग्य का उदय काल हैं..
जो समय की सक्ष्ू म लीला को समझने का प्रयत्न करते हैं.
जो भगिती के लीला ििलास को देख रहे हैं िही इस पारद ििग्रह जो को सहस्त्रािन्िता तारा का स्िरुप हैं
उसे पा पाएंगे .क्योंिक जो आज सभं ि हैं शायद िह कल न रहे ..क्योंिक िान िििानं मे िसफा इस और
‚इसी पल‛ की ही तो बात हैं अगले पल मे भगिती की क्या इच्र्ा हैं िह भगिती या सदगरुु देि ही
जाने ..
पर आज तो यह क्षण हैं ,,अब भी िकस बात की देरी .....
या अभी भी ..सोच ििचार ..
िैसे सोच ििचारके िलए तो सारी उम्र पड़ी हैं ,समय और हाथ मे आया अिसर खोने के बाद ...
**** NPRU****
Posted by Nikhil at 10:34 PM No comments:
Labels: MAHAVIDYA RAHASYAM, PAARAD
“Nikhil Pranaam”
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“ तांत्र मूखों की अपेक्षयओं पर नहीं चलतय “
ये सूत्र मेरे जीवन की धरोहर हैं.....क्योंकक थजस कदन मैंने तांत्र के क्षेत्र में पैर रखय थय
तो मयस्टर ने मेरय कोई भव्य स्वयगत नहीं ककयय थय, अथपतु मुझे अपने सयमने थबिय
कर ये बयते कहीं थी और सयथ ही सयथ दो थवकल्प कदए थे –
और एक कदन मयस्टर ने मुझे एक ऐसय ियोग कदयय थजसे सम्पन्न करने के बयद से
आज तक मैं उतनी ही हैरयन हूँ, थजतनी उस समय हुई थी जब मैंने उस ियोग के
नतीजे को सयथवक होते हुए देखय थय और वो सयथवकतय ज्यों की त्यों आज तक कययम
है.
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‚रसििद्या पराििद्या त्रैलोक्यैऽपी सदु ल ु ाभाुः‛
िास्ति में तंत्र क्षेत्र अद्भुत है , तंत्र क्षेत्र हर एक पक्ष तथा हर एक तथ्य या ििया में कई कई
प्रकार के रहस्यों को अपने आप में समेटे हुिे होता है. भगिान आिदिशि के ििििध स्िरुप
तथा आिद शिि के ििििध स्िरुप के सिं ाद के रूप में ििििध तत्रं प्रचलन में आये, इसी प्रकार
तंत्रिान की सिाश्रेष्ठ प्रिियाओ के साथ ६४ प्रकार के तंत्र प्रचलन में आया िजसमे रसििद्या,
रसतंत्र या पारद तंत्र अंितम तंत्र कहा गया और इसी िचंतन की साथाकता पर हमारे आिद
रसचायो तथा तंत्राचायो ने प्रशंशा भर स्िीकार िकया तथा ििििध रहस्य से यि ु कई प्रकार की
रसिियाओ ं को जनमानस को प्रदान िकया. परमकल्याण स्िरुप यह ििद्या तथा पारद से
सबंिधत गोपनीय ििषय को ही रसििद्या कहा जाता है. और पारद को ििििध तथा ििशेष
प्रिियाओ के माध्यम से बद्च कर िशि िरदान के माध्यम से उसका लाभ मनष्ु यों को प्राप्त होता
आया है.
ब्रहमांड में ३ प्रमख
ु ििद्याएाँ है जो की सिम्मिलत रूप में भगिती ित्रपरु संदु री का ब्रह्ांडीय रूप
राजराजेश्वरी ही है.
अपराििद्या
परापरा ििद्या
पराििद्या
गन्धवव तिंत्र के अनसु ार यह तीनों एक ही साधना के तीन िम है; अपरा आतरं रक िान प्रािप्त है,
परापरा आतंररक तथा बाह्य िान के सिम्मिलत स्िरुप का सेतु है िजसमे अपराििद्या सिम्मिलत
हो जाती है तथा पराििद्या ब्रह्ांडीय िान प्रािप्त का स्िरुप है िजसमे अपरा तथा परापरा भी
सिम्मिलत हो जाते है. इस िलए मल ू रूप से पराििद्या सिृ ष्ट के समस्त भोग तथा मोक्ष सिा प्राप्त
कराने के िलए समथा है. जेसे की ऊपर कहा गया है की िास्ति में इस संिक्षप्त पराशिि का
ििस्ततृ रूप श्रीभगिती राजराजेश्वरी ित्रपरु संदु री है. तथा उन्ही की ििििध प्रकार की शिियों
को एक ब्रह्ांडीय के न्द्र में स्थािपत होने पर जो आकृित का िनमााण होता है िह श्रीयंत्र है.
पराशिि िास्ति में िहृ द ििषय है िजस पर एक लेख में ििििरण देना िकसी भी प्रकार से सभं ि
नहीं है. यहााँ पर इसका उल्लेख करना आिश्यक इस िलए है क्यों की श्रीआिद िशि के भैरि
स्िरुप के श्रीमख ु से उच्चाररत उपरोि पंिि एक सामान्य पंिि न हो कर अनिगनत रहस्यों को
अपने अंदर समेटे हुिे है िजसमे रसििद्या को पराििद्या के साथ जोड़ा गया है. पंिि का अथा है
की रसििद्या तथा पराििद्या सिम्मिलत रूप में तीनों लोको में भी प्राप्त करना अित दल ु ाभ है तथा
इसका िििेचन इस प्रकार से है की रसििद्या अथाात पारद का पराििद्या अथाात भगिती
ित्रपरु संदु री का ब्रह्ांडीय स्िरुप स्थल
ू के न्द्र श्रीयंत्र को प्राप्त करना अथाात पारद श्रीयंत्र ित्रलोक
में भी िनश्चय ही दल ु ाभ है.
िस्ततु ुः हम श्रीयत्रं को लक्ष्मी का यत्रं मानते है जब की यह एक मात्र िमथ्या धारणा है, श्रीयत्रं
भगिती ित्रपरु सदंु री के भी िहृ द स्िरुप या ब्रह्ाण्ड व्यापी शिि के स्िरुप िजसे राजराजेश्वरी
भी कहा गया है, उनकी ही प्रितकृित है. िनश्चय ही ऐसा ििग्रह समस्त प्रकार की मनोकामना की
पिू ता कर सकता है तथा भोग एिं मोक्ष के साथ साथ साधक को सिोनती की प्रािप्त करा सकता
है, इसी िलए इस यत्रं का इतना अिधक प्रचार तथा प्रसार हुआ है लेिकन काल िम में इसकी
आकृित मात्र रह गई है लेिकन सबंिधत ििधान लप्तु प्राय होने लगा है. क्यों की जब बात श्रीयत्रं
की हो तब बात समस्त ब्रह्ाण्ड की शिियों को एक जगह पर एकित्रत कर के स्थापन करने
की ििया है. िस्ततु ुः िबना योग्य और पणू ा ििधान के यह काया िकसी भी प्रकार से संभि है?
नहीं. और ऐसे अशद्च ु और अचेतन यत्रं , यत्रं न हो कर मात्र एक आकृित िचत्र या मिू ता ही है
िजसे स्थािपत कर लाभ प्राप्त करने की आशा रखना व्यथा ही है और िफर जब बात पारद श्री
यंत्र की आती है तो िनश्चय ही उसके शििस्थापन तथा प्राण प्रितष्ठा का िम िकतना दल ु ाभ हो
सकता है यह एक साधक ही समज सकता है. पणू ा ििधान सबंिधत प्रिियाओ के मात्र नाम भी
िदए जाए तो भी एक पस्ु तक बन सकती है
पारद के अष्ट सस्ं कार करने पर पारद की मल ू शिु द्च होती है मात्र ऐसे ही पारद का प्रयोग इस
ििग्रह के िनमााण में िकया जाता है. इसके बाद इस प्रकार के पारद को मंत्रो के माध्यम से सक्ष्ू म
शोिधत िकया जाता है. तथा उसे ििििध रसरसायन तथा तंत्रोि प्रिियाओ के माध्यम से
यंत्रांकन िकया जाता है. यह यंत्रांकन भी िकतना दल ु ाभ तथा श्रमसाध्य होता है, श्रीििद्या
उपासक तथा साधकगण इसके बारे में जानते है. आकृित में िकसी भी प्रकार का थोडा सा भी
अतं र आने पर िह शिि के न्द्र नहीं बन पाता, िजसके कारण उस आधार पर स्थािपत शिि
तथा दसू री आधाररत शिियों को स्थान प्राप्त नहीं होता और यंत्र को चेतना प्राप्त ही नहीं हो
पाती. इस अंकन के बाद इसमें िहृ द रूप से भगिान गणेश का स्थापन िकया जाता है, बहोत
कम लोग जानते है की भगिान गणेश के ५१ िहृ द स्िरुप है जो की व्यिि के जीिन के समस्त
प्रकार के ििघ्नों का नाश कर सभी दगु ाित का स्तम्भन करते है. साथ ही साथ ५१ पीठ शिियों
का स्थापन, अष्ट योिगनी स्थापन षोडश माित्रका शिियों का स्थापन िकया जाता है. िजसके
माध्यम से व्यिि जीिन सख ु से जडु ी हुई सभी शिियों का आशीष प्राप्त कर जीिन के सभी
क्षेत्र तथा सभी पक्षों में उन्नित प्राप्त कर सकता है इस ििया के बाद का िम अत्यिधक गढ़ु है
िजसमे समस्त दस मल ू महाििद्या तथा ६ स्िरुप महाििद्याओ का भैरि सह स्थापन िकया
जाता है. िनश्चय ही साधक को यह िम साधक को एक तरफ जहां धन, यश, सन्मान पद
प्रितष्ठा उन्नित शीघ्र प्रदान करता सकता है उसी प्रकार ििििध साधनाओ से सबंिधत आध्यात्म
ििषय के रहस्यों से भी साधक को अिगत करा देता है. साथ ही साथ साधक के अंदर की सत्
रज तथा तम या िान इच्र्ा तथा ििया शिियों के जागरण को प्राप्त कराने िाली ित्रििद्या
अथाात महासरस्िती, महालक्ष्मी तथा महाकाली का स्थापन िकया जाता है इस गोपनीय िम
में लक्ष्मी के ििििध स्िरुप का ििशेष स्थापन प्रयोग सम्प्पन होता है. अतं में ििििध
प्रिियाओ से भगिती कामाख्या लिलताम्बा तथा राजराजेश्वरी का स्थापन करने के बाद
ििििध तांित्रक मंत्रो तथा मद्रु ाओ से इसे अभीिसिं चत िकया जाता है तथा अचान ििया की
जाती है.
इस प्रकार से िनिमात पारदश्रीयत्रं साधक को भला क्या कुर् प्राप्त कराने की सामथ्या नहीं रखता.
िस्ततु ुः ऐसे ििशद्च ु पणू ा चैतन्य प्राण प्रितिष्ठत पारद श्री यत्रं पर दल
ु ाभ प्रयोग सम्प्पन होते है. कई
प्रकार की िमथ्या धारणाओ में यह एक धारणा गता की गई है की यह यंत्र मात्र धन सबंिधत यंत्र
है, जब की िनश्चय ही ऐसा नहीं है. ऐसे यंत्र पर एक तरफ जहां परालौिकक साधना सम्प्पन की
जाती है िही ाँ दसू री तरफ तांित्रक षट्कमा भी ऐसे ििग्रह के माध्यम से िकये जा सकते है.
पारदश्री यत्रं के प्रितष्ठा िम में एक गोपनीय िम कनकािती स्थापन भी है. इस प्रकार की
ििया के माध्यम से प्रितिष्ठत हुिे पारदश्रीयंत्र के माध्यम से स्िणा िनमााण की प्रििया भी सम्प्पन
की जा सकती है. िही ाँ दसू री और योग तांित्रक साधना या पराजगत साधना करते समय इस
प्रकार के ििग्रह को सामने रखने पर सफलताओ को सम्भािना कई गनु ा बढ़ जाना स्िाभाििक
ही है.
इस िम में पारद श्रीयत्रं से सबंिधत कुर् दल ु ाभ प्रयोग आपके सामने रखे जा रहे है िजसके
माध्यम से समस्त साधक गण इसका लाभ प्राप्त कर सके . सिा प्रथम प्रयोग भगिती ित्रपरु संदु री
के चिे श्वरी स्िरुप से सबंिधत प्रयोग है. यह दल ु ाभ प्रयोग ििधान सहज है लेिकन साधक को
यह ििििध प्रकार की उपलिब्धयों की प्रािप्त शीघ्र ही करिाने में समथा है िजसके माध्यम से
साधक अपने जीिन के दोनों पक्ष भोग तथा मोक्ष का पणू ा श्रगंृ ार कर सकता है.
चिे श्वरी ििधान :-
इस प्रयोग को साधक िकसी भी रिििार की राित्र को कर सकता है. समय १० बजे के बाद का
रहे.
साधक स्नान आिद से िनितृ हो कर लाल िस्त्र को धारण करे तथा लाल आसान पर उत्तर
िदशा की तरफ मख ु कर बैठ जाए.
अपने सामने साधक िकसी बाजोट पर सफ़े द िस्त्र पर पारदश्रीयंत्र को स्थािपत करे तथा उसके
बाद साधक मन ही मन अपना संकल्प या इच्र्ा व्यि करे , जेसे की धन प्रािप्त, पदोन्नित या
कोई ििशेष इच्र्ा.
इसके बाद साधक मंत्र का जाप करे . यह जाप मंगू ा माला से करे .
साधक प्रथम िनम्न मन्त्र की एक माला जाप करे
ॎ ऐ ं ह्रीं श्रीं सौुः
(OM AING HREEM SHREEM SAUH)
एक माला हो जाने पर साधक िनम्न मंत्र का २१ माला जाप करे
ॎ ऐ ं ह्रीं श्रीं ित्रपरु े शी चिे श्वरी नमुः
(OM AING HREEM SHREEM TRIPURESHI CHAKRESHWARI
NAMAH)
२१ माला मंत्र जाप हो जाने पर साधक योनी मद्रु ा द्रारा जाप समपाण करे तथा देिी को नमस्कार
करे . यह एक िदिसीय प्रयोग करने पर साधक कई प्रकार से अपने जीिन को संिार सकता है,
धन सबंिधत समस्याओ का समाधान होता है, साधक के काया क्षेत्र में साधक को मान सन्मान
की प्रािप्त होती है, साधक की िाणी में एक िमठास तथा लोच आजाती है िजसके माध्यम से
साधक िकसी भी व्यिि को प्रभािित करने में समथा हो जाता है. साधक को माला का ििसजान
नहीं करना है इस माला का प्रयोग साधक कई बार कर सकता है.
इस प्रकार के कई और दल ु ाभ प्रयोग भी जो की पणू ा ििशद्च
ु चैतन्य प्राण प्रितिष्ठत पारद श्री यत्रं
पर िकये जाते है, िजसे आने िाले लेखो में िदया जायेगा.
****NPRU****
Posted by Nikhil at 8:44 AM 1 comment:
Labels: DHAN PRADAYAK SADHNA, PAARAD
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पारद ििग्रहों की अद्भुतता उनकी उपयोिगता न के बल आधाि्त्मक रूप से बिल्क भौितक जीिन मे
भी अब हम सभी बखबू ी जानते हैं . और यह भी अच्र्ी तरहसे समझते हैं की अगर सच मे जीिन की
उस अद्रतीय उचाईया की स्पशा करना हैं तो िबना पारद के यह संभि ही नही ..अगर िसफा संठू रख कर
िैद्य बने रहना हैं तो कोई बात नही ..पर जब बात परम हाँस स्िामी िनिखलेश्वरानंद जी के िशष्य की
हो तो ...तब कै से हम सभी दसू रे नम्बर पर संतष्ठु हो जाये .
पर हर बार एक नया ििग्रह ...???
ऐसा इसिलए की पहली बात तो यह हैं की यह कोई व्यिासियकता िाली बात नही भले की कई
कई के िदमाग मे यह बात आये.. इसे ऐसे समझे ...सदगरुु देि जी ने पहले गरू ु मंत्र िदया िफर जब
हमारा एक स्तर आया तो हमें कोई इसके साथ दसू रा मंत्र िदया और इसके बाद जब हमारी कुर् ओर
प्रगित हो गयी तब ..कोई िसद्च ििद्या ..िफर महाििद्या साधनाए दी ..िफर इनसे भी आगे कृ त्या
साधना जैसी साधना और िफर इससे भी आगे ब्रम्हाडं भेदन जैसी ..िफर इससे भी आगे ... की
साधनाए तो क्या यह व्यािसाियकता हैं ..??ऐसा ििचार लाना अपनी अल्प बिु द्च का ही पररचायक
हैं ..ज्यो ज्यों स्तर बढ़ता गया त्यों त्यों उच्च स्तरीय िान के दरिाजे हमारे िलए खल ु ते गए
...पहले पात्रता थी ही नही इसिलए बताया गया ही नही अन्यथा सभी सिोच्च साधना ही पहले
करते ..और दसू री बात यह भी हैं की अगर िम से आप आगे नही बढते तो ......आप मे िह उच्चता
आती भी नही की आप एक अपने तातकािलक स्तर से उच्चता िाली साधना भले ही पा ले
पर...... उसे सफलता पिू ाक कर पाए ..और न आत्मसात कर ही पायें .
अगर हम याद करें तो पायेंगे की सदगरुु देि जी ने एक अिद्रतीय पारद ििग्रह की बात कहीं ..और उस
बारे मे िसफा एक लेख िदया था .बाद मे उन्होंने हमारी उत्साह हीनता देख कर उन्होंने मौन साध
िलया ..पर बाजार के तथाकिथतो ने उससे बाजार भर िदया ..िह था अत्यंत उच्च कोिटस्थ
‚पारदीय महाकाली ‚ िजसके उन्होंने दो भेद भी बताये ..शमशान काली और बैजन्तीय काली .और
इनके िनमााण मे आने िाली एक अद्भुत तथ्य की अगर थोडा सा भी प्रििया मे खासकर प्राण
प्रितष्ठा ,िसिद्च दात्री और चैतन्यीकरण मे तो जब लिलता सह्त्त्रनाम का पाठ िकया जा रहा हो उस
समय मतलब िनमााण काल मे ....... यह ििग्रह स्ियं ही टूट टूट जाता हैं . पर आप बाजार मे देखें
हजारो की तादाद मे पारदीय काली ििग्रह हैं ..मतलब सभी उनके बनाने िाले िकतने उच्च कोिट के
.....??
पर यह तो र्ल हैं ..... पारद सस्ं कार के नाम पर एक िनम्न कोिट का मजाक और अपना िसफा
स्िाथा िसिद्च ..
मााँ भगिती काली ..महाििद्या मे प्रथम पज्ू य ..और आद्या हैं .... पर इस कारण अन्य सभी स्िरूपों की
उपेक्षा नही की जा सकती हैं .न ही उनका महत्ब कम .. क्योंिक मल ू रूपमे मााँ तो एक ही हैं .याँू कहा
जाता हैं की भगिती काली और भगिती तारा मल ू रूप से एक हैं और बस उनमे उनके रंग का ही
अंतर हैं ..पर यह तो गोपनीय बाते र्ुपाने का एक रूप हुआ की कोई भगिती तारा के सत्य स्िरुप
के बारे मे उतना न जाने ..
भगिती तारा का एक नाम ‚ ताररणी ‚ भी हैं तो िकस बात से तारने िाली यह प्रश्न का ििषय हैं ??.
क्या म्रत्यु ही तारने का एक माध्यम हैं ??? या ..पर ऐसा नही हैं ..जीिन की िजस भी िाधा से आप
परे शां हैं या जो भी आपके आध्यित्मक मागा मे िाधा हैं, उन सब से आपको पार कराने िाली अगर
कोई महाशिि हैं िह के बल और के बल भगिती तारा ही हैं अन्य कोई भी नही ...
अल्पिानी साधक को िान िििानं की न्यनू ता से पार करा कर ..उच्च कोिट का प्रिा परुु ष
..के बल भगिती तारा ही करा सकती हैं .
जीिन मे आिथाक दररद्रता ,घर पररिार मे धन की न्यनू ता ...को भगिती तारा ही तार कर
उच्चता दे सकती हैं
काव्य शिि मे िनपणु ता ,उच्च कोिट के ििद्रानो द्रारा ह्रदय से आपका सम्मान और आपके
िान के सयू ा का चहं ओर प्रकाश ..भगिती तारा के माध्यम से ..
काम भाि पर पणू ा ििजय ...जो की एक अिनिाया स्थित हैं ,जब तक इस अिस्था से व्यिि
ऊपर नही उठ सकता ..तंत्र जगत मे उसका प्रिेश सभं ि ही नही हैं .भले ही उसने कई कई िसिद्चयााँ
अिजात कर रखी ही ..और यह कई कई तरीके से संभि हो सकता हैं योग मागा से ..तंत्र मागा से
..और योग तांित्रक मागा से भी ..िही अनेको सम्प्रदाय मे कई कई साधनाए हैं पर ..मल ू सभी मे
जब तक भगिती तारा की .........उस भाि से तारने िाली भगिती तारा ही हैं .जो कोई अन्य
महाििद्या नही कर सकती है .
अगर नील सरस्स्िती रूप देखें तो भला अब क्या और संभािनाए शेष रहती हैं .क्योंिक
ििद्या को िसफा काव्य शिि या बहुत अच्र्ा िलखने तक ही नही ..क्योंिक अगर आपको आप द्रारा
पढ़े गए ग्रन्थ हमेशा याद नही हैं तो क्या अथा हैं जीिन मे बात तो यह हैं की आप जब चाहे िजस
ििषय पर चाहे ..बोल या िलख सकें उसका उद्चरण लगातार धाराप्रिाह दे सकें ......अद्भुत मेधा
शिि की साधना मे मल ू रूप मे भगिती तारा ही हैं भले ही हम समझे या न समझे .
क्या भगिती तारा िसफा और िसफा ...एक महाििद्या हैं ..क्या उन्हें ऐसा मानना उिचत हैं?
बिल्क ऐसा नही हैं ...सारा बौद्च तंत्र की मलू शिि ..मल ू आराध्या शिि ..या ऐसे कहें की िजस पर
िटका हैं िह भगिती तारा ही हो हैं .. उनके िहां पर भगिती तारा के २१ स्िरुप माने गए हैं और
... हर रूप के बारे मे िलखना मानो एक परू ा तंत्र शास्त्र को ही अनािृत करना हैं ...
और पारद तारा के ििग्रह के बारे मे तो कोई कहना भी नही चाहता ...सामान्य रूप से कोई उल्लेख भी
नही करे गा और कोई भी सक्षम गरू ु इस बारे मे िसफा अपने सिाािधक योग्य िशष्य िशष्याओ को
र्ोडकर अन्य िकसी ..से इस बारे मे बात ही नही करे गा या बात ही बदल देगा ..क्योंिक ..जो सारी
नन्ु ताओ को तार कर आपको सयू ाित बना सकने मे सक्षम हो िह कोई ..साधारण बात तो नही हैं ..
हमारा सारा जीवन सूयव पर आधाररत हैं और यह सारा सवश्व भी ....यह का गया हैं की सारा
सवस्व का के आधीन हैं ...भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की ...यह का भी सूयव के आधीन हैं
.उसके वशीभूत हैं ..और इतने परम तेजस्वी और सभी प्रासणयों के आत्मा के प्रतीक भगवान
सूयव की आधार भूता कोई शसक्त और कोई नही बसकक यही भगवती तारा ही हैं.
और भगिती के इस ििग्रह की बात ही कुर् ओर हैं ..िसफा इसी ििग्रह मे भगिान िशि जो भगिती के
इस स्िरुप के भैरि हैं ..िजन्हें अक्षोभ्य कहा जाता हैं स्ियं मााँ की जटाओ मे ििराजमान हैं ..
और ..एक बहुत ही अद्भुत बात की व्यिि िजस प्रकार का ध्यान करता हैं उसके सामने उसी प्रकार
का ििग्रह होना चािहये ..आप श्मशान काली की उपासना करते हो और आपके पास िैजन्तीय
काली का ििग्रह हो तो भला सफलता कै से िमलेगी भले ही मल ू रूप मे आशार शिि एक ही हो ...
ठीक इसी तरह आलीढ़ और प्रत्यालीढ़ शब्द के अथा मे हैं .
आज जो भी हमें भगिती तारा की जो िचत्र िमलता हैं अगर उसमे .उनका उनका कौन सा पैर आगे
िनकला हैं इस पर ..शायद ही साधक ध्यान देते हैं ..साधक उच्चारण तो प्रत्यालीढ़ शब्द का ध्यान
मे कर रहे हैं और उनके सामने आलीढ़ िस्थित िाला िचत्र हैं तो भला सफलता कै से ?? यह तथ्य इस
साधना के बहुत लबं े समय से लगे साधक भी नही जानते हैं ..अिनिभग्य हैं ...यह अलग बात हैं की
उनके श्रम को देख कर सदगरुु देि की कृ पा से ....उन्हें पररणाम भी िमले पर ......क्योंसक तिंत्र जगत
कोई माने या न माने की बात नही करता हैं वह तो एक सिीक प्रसिया हैं की अगर आपने
सही ढिंग से जैसा कहा गया हैं अगर उसी मनोभाव से साधना की सारे प्रमासणक उपकरणों
के द्वारा तो सफ ता कै से नही सम ेगी ...हाीँ यह बात अवश्य ध्यान मे रखे की ..अगर एक भी
तथ्य रह जाता हैं तो सफ ता प्रासप्त ओर सिंदेह होना स्वाभासवक हैं ? और िमल भी नही सकती
..हााँ सदगरुु देि कृ पा की बात तो सिोपरर हैं .िह क्या नही संभि कर सकती पर मैं अभी बात िसफा
प्रििया की कर रहा हाँ .
और जब बात आये पारदीय सह्त्त्रािन्िता तारा की तो .....शायद की कोई जो इस ििषय के जान कर
और अित योग्य साधक हैं .... यह कह सके की हााँ मेरे पास यह पारदीय सहि्न्िता भगिती तारा ििग्रह
हैं .
पर मुझे इस सवग्रह की कोई आवश्यकता ही नही .मैंने तो इस साधना मे सससद्ध पायी हैं ..??
ये सब तथ्य हीन बाते हैं ...पर साक्षात् आद्या शिि स्िरूपा भगिती तारा के िकसी एक ििशेष
स्िरुप के िकसी एक अत्यंत सामान्य से शिि के अंश की साधना कर उसमे सफल होने से .... व्यिि
िसद्च नही हो जाता हैं ..िह भले ही हिा मे उड़ता िफरे ..क्योंिक भगिती अनत स्िरूपा हैं और उनके
अनन्त स्िरूपों की साधना कहााँ सभं ि हैं और चिलए मान भी लीिजए की यह हो भी गया ..तो
आपने िसफा साधना की उसमे िसिद्च पायी ......भला कभी ..उस अिस्था को आत्मसात कर पाए
जो ..की सिोच्च अिस्था हैं ???.
और एक ऐसा ििग्रह जो सहत्रिन्िता मतलब हजार स्िरुप की शिि रखे ..तो उसे तो उसकी मिहमा
और उसके प्रभाि को लेखनी बद्च िकया ही नही जा सकता हैं . पर ऐसा सवग्रह प्राप्त होना ..इसे
ससफव भाग्य ही नही कहा जा सकता हैं .क्योंसक यह तो बहुत छोिा सा शब्द हो जायेगा .इसके
स ए ..कोई नया शब्द ही गढना पडेगा ..क्योंसक .ज्ञान ..सवज्ञानिं , काव्य शसक्त ,मानवीय
कसमयों से मुसक्त , जीवन की उच्चता ,और अनेको मनो सवकारों से मुक्तता .. तो सहजता से
सिंभव हैं .
एक और बहुत ही ििशेष तथ्य हैं िजसका उल्लेख एक बार पहले भी हमने िकया हैं की ..बहुत कम
साधको को यह िात होगा की भगिती बल्गामख ु ी की साधना करने िाले को मााँ भोग भी प्रदान
करती हैं .यह तो स्िपन मे सोचा भी नही जा सकता हैं .क्योंिक भगिती बल्गामख ु ी की साधना मे
इतने कड़े िनयम जो हैं .
ठीक इसी तरह भगिती तारा अपने साधको को ..िनश्र्ल स्नेह या प्रेम भी प्रदान करती हैं .और हम
सभी आज यह भली भांित जानते हैं िक सदगरुु देि जी ने कई कई बार यह समझाया की ब्रह् पर
िलखना आसान हैं पर प्रेम/स्नेह पर तो िलखा ही नही जा सकता हैं .आज जो भी िस्तिथ हैं िह
देिहक िस्थित के बारे मे..हैं ..देिहक आकषाण को ही प्रेम मान िलया जाता हैं पर ..सच मे जो
आित्मक प्रेम हैं..स्नेह हैं िह तो भगिती की कृ पा से ही संभि हैं और ऐसा भगिती के इस स्िरुप की
साधना के साधक के साथ होता हैं.उन्हें यह भगिती प्रदान करती हैं .क्योंिक िबना िनश्र्ल प्रेम का
अनभु ि िकये िबना उच्चस्थ साधना मे िसिद्च कहााँ संभि हैं और भले ही प्रेमी प्रेिमका के माध्यम से
ही अिधकतर प्रेम को समझया गया हैं पर .यह तो एक प्रकार हो गया .प्रेम को बाटं ना सा हो गया
..िास्ति मे िनश्र्ल प्रेम ..सदगरुु देि िशष्य िशष्याओ के मध्य , िपता पत्रु ी , िपता पत्रु के मध्य, िमत्रो
के मध्य , िकसी के भी मध्य हो सकता हैं .क्योंिक िनश्र्लता को को िकसी बंधन मे बांधना कहााँ
संभि हैं.और इस िनश्र्ल स्नेह को भगिती तारा साधक एक जीिन मे भर देती हैं .
भगिती तारा मााँ के नाम मे से कुर् नाम स्ित ही उनकी महत्िता का पररचय देते हैं ..जैसे ..
परमेश्वरी ...जो इश्वर से भी आगे की स्थित हैं .(जैसे ब्रहम से आगे की स्थित पार ब्रहम हैं )
महालक्ष्मी ..आिद शिि िजनसे सम्पणू ा ििश्व गितमान हैं
पण्ु या ..समस्त पण्ु य की अिधस्ठाथी
भि ताररणी..भि सागर मतलब समस्त संसाररक मायाजाल से मि ु करने िाली ..िनमालात्ि प्रदान करने
िाली
महामाया ....माया को भी जो अपनी माया मे रखती हैं िह आद्या ..
भैरिी ....समस्त नारी जाती की आधार भतू ा परमोच्च स्िरूपा
श्री ििद्या ..समस्त तंत्रों के िसरमौर की आधार भतू ा
कला ..१६ कला ही नही बिल्क समस्त ६४ कलाओ कीआधार भतू ा
ििया ...िबना ििया के कोई भी साधना कहााँ संभि हैं ...इनके िबना कोई भी ििया संभि नही ..तो
समस्त िियाओ ं की आधारभतू ा हैं ..
....
भगिती तारा की साधना करने िाला ..खासकर ऐसे परम दल ु ाभ पारदी य सह्त्त्रािन्िता तारा के ििग्रह
के सामने साधना करते रहने से स्ित ही व्यिि की उन्नित ... पशभु ाि से उठकर िीर भाि और िीर
भाि से उठकर िदव्य भाि मे बनने लगती हैं ..पशु भाि मतलब जो हम अष्ट पाश मे लज्जा ,घृणा ,
शोक ..आिद मे फसें हुये हैं ..से अगर िदव्य भाि मतलब ..जहााँ सारा ििस्ि मे िदव्यता ही..... न
के बल अनभु ि बिल्क साक्षात होती हैं..और ऐसी अिस्था के साधक के दशान करने मे देिता भी अपने
को धन्य अनभु ि करते हैं .
क्योंिक भगिती तारा की साधना तो ..िचनाचार माध्यम से ही संभि हैं .और यह अिस्था ..परम दल ु ाभ
हैं ..इसके नाम पर जो भी कुित्सक लोगों की िियाए ..तंत्र के नाम पर होती हैं ..उनका क्या कहें पर
....एक ओर जहााँ सदगरुु देि की परम आशीिााद स्िरुप यह ििग्रह जो की िसफा भगिती तारा ििग्रह
ही नही बिल्क सह्त्त्रिन्िता तारा ििग्रह हैं और जहााँ सदगरुु देि के परम आशीिााद स्िरुप .. इस
ििग्रह ..जो की बौद्च तंत्र के अित उच्च आचायों के भी मध्य गोपनीय रहा हैं उसका प्राप्त हो जाना
..और िजससे स्ित ही यह अिस्था आ जाना की साधक िीर भाि ही नही बिल्क िदव्य भाि मे
स्ित ही धीरे धीरे आ जाए ....भला यह सौभाग्य तो देिताओ ं को भी दल ु ाभ हैं ..और इसससे जो भी
तंत्र जगत या साधना जगत मे इतनी उच्चता प्राप्त करना ..सहज हो जाए .
हमने िबदं ु साधना मे स्त्री सहयोगी की अिनिायाता पर अत्यतं ििस्तार से चचाा की पर ......पशु भाि
और अनेको इिन्द्रय लोलपु लोगों के कारण ..जो तंत्र जगतकी समाज मे जो िनदं नीय अिस्था बनी
..इसको देख कर ही सदगरुु देि ..ने अत्यंत करूणा िश ...िबंदु रे तस गिु टका के बारे मे हमको अिगत
कराया की िकस तरह ..बाह्य उपादानो से भी कई कई गणु ा जयादा सरल तम तरीका पारद के माध्यम
से हो सकता हैं िजसमे कोई भी स्त्री सहयोगी की िकसी भी प्रकार से आिश्यकता नही होती और सौम्य
साित्िक रूप से घर पर ही यह साधना की जा सकती हैं ...और इस तरह ..तंत्र के नाम पर जो
व्यिभचार मचा हुआ हैं ..जो घृणास्पद िियाए जो .सामािजक नैितक िनयमों का मखोल उड़ा गया हैं
िह ..अब नही हो .और आप सभी ने िकतने उत्साह से उस गिु टका को प्राप्त िकया ...यह तो बेहद
प्रशंनीय हैं .
अगर आपने .िहमालय के योिगयों की गप्तु िसिद्चयों का अध्धयन िकया हैं तो उसमे स्पस्ट िलखा हैं
की जो व्यिि श्यामा साधना को उत्तीणा कर लेता हैं उसके बाद ही सही तरीके से तंत्र जगत मे उसका
प्रिेश होता हैं ..मतलब हमने जो सोचा हैं उससे तो तंत्र कहीं कहीं और उच्चता पर हैं ..
पर क्या यह िियाए इतनी आसान हैं ..???संभि नही हैं .
आज स्त्री परुु ष दोनों के मानससक, शारीररक ,और भावनात्मक सयिं म का जो भयिंकर
पराभव या अवसनती हो रही हैं ,,उसे भ े ही देश का और पररसस्थतयािं का पररणाम कह
कर बच जाए ..पर ..इस सिंयम हीनता, ..चाररसत्रक पतन ...की अवस्था मे ..उच्च तिंत्र मे प्रवेश
सभव ही नही हैं ..चाहे आप ..सकतने भी नारे गाते रहे ..आप स्वयिं अपनी मानससक अवस्था
जानते हैं .
सदगरुु देि का इस धारा पर भौितक रूप से आकर .इतना श्रम करना ..को भला आज तक कौन पहचान
सका हैं ..कौन उसका मल्ू य आंक सका हैं .िकसे आज परिाह हैं िक ..उनके कायों को समझ कर ...काया
कर सकें ..पर उन्होंने िसफा कहा ही नही कर िदखाया भी हैं .िह जानते हैं की आज की पररिस्थित मे
कै से एक साधक ..पशु भाि से ..िदव्य भाि तक की यात्रा कर सकें ...और उनके गहन पररश्रम और
.प्रबलतम साधनात्मक पररश्रम का फल हैं यह पारदीय सह्त्त्रिन्िता भगिती तारा ििग्रह ..जो की
अनेको उन प्रिियाओ ं द्रारा गंिु फत है. जो िसद्चाश्रम मे भी दल ु ाभ हैं .
सदगरुु देि सदैि से ििद्रोही रहे हैं उन्होंने कई कई बार यह कहा भी .... की अनेको बार िसद्चाश्रम के
महयोिगयों ने भी उनसे प्राथाना की प्रभु जो िान ..जो इतने उच्चतम ििग्रह हैं जो हमें भी नही प्राप्त हो
पाते िह आप इतने सहजता से सरलता से इन गृहस्थ िशष्य िशष्याओ को क्यों दे देते हैं .जबिक ये
ना पात्रता रखते हैं न ही इस िान के लायक हैं .न ही मल्ू य समझते हैं ..तब ये क्यों ....और ये ही क्यों
आपकी इतने स्नेह का लाभ उठाते हैं ..और सदगरुु देि मस्ु कुराते हुये कहते हैं की यह सही हैं की तमु
सभी सन्याशी िशष्य मेरे सिा िप्रय हो पर ये गृहस्थ ..इतने किठनाई से बंधे हुये हैं और इनके चेहरे पर
एक मस्ु कान लाने के िलए भी ..मझु े चाहे िकतना भी अथक श्रम करना पड़े मैं करूाँगा क्योंिक ये मेरे ही
अश ं हैं, मेरे प्राण हैं,मेरी आत्मा हैं ..अगर ये मेरे िबना नही रह सकते तो भला मैं इनके िबना कै से
...इसिलए ििगत जीिनोंकी अपेक्षा इस जीिन मे मैंने इनका हाथ पकड़ा हैं और इस जीिन मे ही
इनको पणू ाता देनी हैं ,
िमत्रो आपने कई कई बार स्ित ही पड़ा होगा की सदगरुु देि मंत्र तंत्र यन्त्र िििानं पित्रका मे इस
साधना के बारे िलखा की स्िणा नगरी लंका के अिधपित रािण और देिताओ ं के कोषाध्यक्ष कुबेर
को यह सम्पन्नता भगिती तारा की कृ पा से ही प्राप्त हुयी हैं .
जो भी इस प्रकार के ििग्रह प्राप्त कर उसके सामने यिद परू े िििध ििधान के साथ स्िणा प्रदायक तारा
मंत्र का परू ा अनष्ठु ान करे तो सदगरुु देि जी की कृ पा से रोज उसे स्िणा मद्रु ् याए प्राप्त भी हो सकती
हैं .क्योंिक यह जीिन मे सफलता और सम्पन्नता की देिी हैं .
साथ ही साथ पारद िििानं मे िजनकी रूिच हैं उन्हें तो यह प्राप्त करना ही चिहये ..क्योंिक देह िाद तो
तभी व्यिि सफल हो सकता हैं जबिक िह लोह िाद अथाात पारे के माध्यम से ...स्ि.....िनमााण मे
सफल हो ...अगर धातु मे पररितान नही कर सकते हैं तो भला अमल्ू य मानि देह मे सीधे प्रयोग करना
िकतना उिचत हैं .इसिलए .पारद िििानी भगिती तारा की उपासना िकसी न िकसी रूप मे करते ही हैं
,यह तथ्य बहुत कम को िाता हैं इस कारण इस की उपेक्षा करने के करण भी अनेको को पारद तंत्र
िििानं मे असफलता िमलती हैं .
और िमत्रो अब हमें इतना दल ु ाभ पारदीय सहत्रििता भगिती तारा ििग्रह आज हमें सहज होने जा
रहा हैं .और ऐसा करने मे िकतना श्रम और साधनात्मक तपस्या हमारे सन्याशी भाई बिहनों की लग रही
हैं .िह शब्दों मे िलखा नही जा सकता .
और बस स्थािपत करना हैं .और कोई भी साधना .जो भगिती तारा की आपको मालमू हो ..या कोई भी
मंत्र जोभगिती तारा का हो आपको अच्र्ा लगता हो ..या बस ..मााँ के स्िरुप को जो परू े मनोभाि
से िनहार भी सके ..उनकी अिस्था .स्ित ही िदव्यभाि की बन् ने लगती हैं .और जो साधना करें गे
..उनके तो भाग्य और सौभाग्य की क्या कहें ..
सदगरुु देि कहते हैं की भगिती तारा की साधनाऔर िकसी को ऐसा ििग्रह प्राप्त हो जाए तो .. कोई भी
तारा साधना इस ििग्रह के सामने की जाए ....िनश्चय ही व्यिि दसू रों की प्रभािित करने िाली शिि
व्यिि प्राप्त करता हैं ही ,उनकी िाणी मे ऐसा प्रभाि हो जाता हैं की िह परू ी दिु नया को िश मे करने
की सामथ्या रखता हैं .मक़ ु दमे जएु घडु दौड़ सभी मे िह ििजय प्राप्त करने लगता हैं .पत्रु पौत्र होते हैं
,घर मे इतना धन आने हैं की व्यिि ििलासी जीिन सम्पन्न होने लगता हैं सारे शत्रु दास उसके नौकर
की भांती िश मे हो जाते हैं .पाररिाररक ऋण दरू हो कर घर मे सख ु शांती हो जाित हैं .
घर मे स्थायी लक्ष्मी िनिास करने लगती हैं .और समस्त प्रकार की िसिद्चयों की प्रािप्त होने से िह पणू ा
यश धन मान पद प्रितष्ठा प्राप्त करने मे सफल हो जाता हैं .
अब और िकतना इस परम दल ु ाभ ििग्रह के बारे मे िलख जाए ...जो बिु द्च सम्पन्न हैं ..जो काल और
समय की उपयोिगता समझते हैं उनके िलए इशारा भी बहुत हैं ..
ADBHUT VAA DURLABH "PAARAD PAARAS GUTIKA" RAHASYA
Kaansosmitaam Harinayprakaraamaadraam jwalanteem Treepta
Tarpyanteem |
Padme Sthithaam Padmvarnaam Tamihopahve Shreeyam ||
“He Kundalini, you are the power of soul and praan and you always
irrigate from fire like vibrant nectar flowing from that thousand petal lotus.
Your activation leads to experience of electrifying splendor and all the
chakras get enlightened. Then the Amrit flowing from thousand petals
gets more intense and gives satisfaction to satisfaction itself. You are
situated in lotus petal with the colour of lotus and your activation instills
divinity in this dirty body and activates the other present lotuses and
combines them with shree element. We repeatedly pray to you.
There is no such element present in universe whose power and positive
energy can’t be imbibed by parad. The most important reason behind it is
that it is living liquid of that almighty which is known by us by the name of
Aadya Shiva. If they are the base for the birth of universe, then they are
also reason for its end. He only is the master of all activities starting from
construction to destruction. Construction and then its rhythm, how both
these activities can be done, secret of it is embedded in one and only
SadaShiv.
When we want to know how is that supreme god by whose dreaming
only, universe gets controlled……Then the only answer is that…..
“Raso Vai Sah “
This is the truth only that he is in the form of Ras. Whose liquidity can
destroy the ego of any obstacle with in a moment. In the form of life-
liquid, it gives strength to construction and maintenance and then the
toxicity of harmony combined with destruction absorbs universe in that
reason which was responsible for its birth. It can’t be destroyed, can’t be
washed, can’t be burnt, and can’t be divided……Because it is always
related to that reason.
Therefore significance of Parad has been accepted by all the sects.There
is no such religion who has not respected it and where its qualities are not
adopted. Somewhere it has been called Aatma, somewhere Ruh,
somewhere life-liquid and somewhere Seemav. Such number of scriptures
is not written on any god or goddesses which are written only on Parad in
all the languages of world by all the religion and all the sects.If I talk about
me, I have the collection of more than 5000 scriptures...out of which most
of them are obsolete. And all these, I have got due to blessing and
guidance of my Praanadhar.
If Ras Vigyan is considered as last Tantra, then it is not an exaggeration.
There is no such activity related to universe which is not carried out by
Ras. May it be construction, maintenance or destruction. Secrets of this
science have been written in various tantra scriptures and slokas in coded
language. What is required is that one should understand these secrets
and imbibe them and thereafter attain completeness. Very frequently we
see how we see the glimpses of Lord Shiva or how we attain success
through the medium of Ras Vigyan. Answer to it is very simple. We all
know that lord Shiva is called Bhole Nath meaning who is capable of
giving everything very easily. This description also applies to parad. Only
one rule we have to keep in mind for these two things.
While praising Shiva, one mantra is used –
Namah Shambhvaay Ch | Namah Mayobhavaay Ch |Namah Shankaraay
Ch |Mayaskaraay Ch….
Have you ever understood its essence???
It means that I i.e. completeness can be found only when Sadhak
Shambhvaay i.e is stable in every circumstances….faces even-odd
situations in similar way, accept the poison and nectar in similar manner
then only Mayobhavaay i.e. he can attain me or that knowledge.
Though the process to attain complete Shiva element is hidden in above
mantra but revealing it is not our aim here.Through the various sanskars
of Parad, Parad is combined with various herbs, metals, elements, gems
and passed through various states…..cold, heat, light, hard and as a result
after each sanskars, there is successive addition in power and capability of
Parad, whose appropriate utilization can fulfill our desires.
It is not that construction of gutika by binding parad is done in higher
sanskars of Parad. Rather, its power increases from the first sanskar itself.
And if the gutika of starting sanskars is constructed and tantra prayogs are
done on it then results are amazing.
One such Gutika was described in the January- February edition of
Mantra Tantra Yantra Vigyan of 1987 which is known by yogis and Ras
siddhs by the name of “Parad Paaras Gutika”.If its construction is done
with complete Tantrokt Vidhaan, then this gutika can bring about
revolution in Tantra world….The important fact is that to get various
benefits from this gutika, you have to do sadhna. This is not a normal
gutika rather parad is purified through special sequence and its
construction is done with full consciousness using complete authentic
tantra Padhati , then only complete power of Parad is manifested.
Normal Parad Gutikas should not be considered Parad Paaras Gutika.
Here Parad should be considered Parad only not lead, zinc or tin .Use of
impure Parad can cause harm also.
Sadgurudev in this special edition has mentioned various prayogs on that
gutika and he himself made these gutikas and gave it to sadhaks and
disciples. Every prayog in itself is amazing if it is done with completeness.
After that time, this gutika has remained unavailable and nobody has been
able to make it available. Now we have made them in few numbers.
There are such 108 prayogs which can be done on this gutika. All these
prayogs are very simple and easy and do not need any special sadhna
article except rosary. And all these prayogs can be done on this gutika
according to one’s own capability. It is not immersed and after one
prayog, other prayogs are also done on it.As compared to other gutikas,
making price of it is very less.
Like:-
Dhanda Yakshini Sadhna Prayog :For completely accomplishing Dhanda
Yakshini for the financial gain.
Santaan Praapti Prayog (to get child)
Chakra Jaagran Prayog
Aatmbal Prapti Prayog (For attaining self-confidence)
Pourash Prapti Prayog (For attaining manhood)
For getting material out of the vaccum
For Adrishya Kaarini Vidya Siddhi
For Vaayu Gaman Siddhi (For travelling in air)
For getting incomparable power
For Vashikaran and Sammohan power
For Aatma Aavahan Siddhi (calling souls)
For Para Vigyan Siddhi
Aim Beej Siddhi Prayog
Aghor Vivah Baadha Nivarak prayog
Names given above are such prayogs and mantra and process of all
prayogs are different and capable of providing success. If sadhak do
complete hard-work then he should attain this gutika and fully utilize
it.He can definitely take full benefits from this Vidya.
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कयांसोथस्मतयां थहरण्यिकयरयमयद्रयवम् ज्वलततीं तृप्तय तपयवथततम् |
“हे कु ण्डथलनी,तुम आत्मशथि स्वरूपय और ियण हो और उस सहस्रदल कमल से झरते हुए अथि
समयन दैदीपयमयन अमृत के चसचन से सदैव आद्रव अथयवत चसथचत रहने वयली हो, तुम्हयरी जयगृथत
से थजस थवद्युत आभय कय अनुभव होतय है और सम्पूणव चक्र झांकृत होकर मयनो दयथमनी तुल्य
िकयश मयन हो जयते हैं, तब तुम्हयरे सहस्र दलों से टपकते अमृत कय िवयह और तीव्र होकर तृथप्त
को भी तृप्ततय िदयन करतय है | तुम कमल दल में स्वयां कमल के रां ग की होकर थस्थत हो और
तुम्हयरी जयगृथत इस मथलन देह को भी कदव्यतय िदयन करती हुयी इसमें उपथस्थत थवथभन्न
कमलों को चैततय कर श्रीयुि कर देती है | तुम्हे मेरय बयरम्बयर नमन है |”
ब्रह्मयण्ड में उपथस्थत ऐसय कोई तत्व नहीं है,थजसकी ओजशथि और धनयत्मक ऊजयव को पयरद
आत्मसयत नहीं कर सकतय है | इसकय सबसे महत्वपूणव कयरण ये है की ये स्वयां उस परमेश्वर कय
जीवतद्रव्य है,थजसे हम आद्यथशव के नयम से जयनते हैं | सृथष्ट की उत्पथत्त कय यकद वे आधयर हैं तो
उसके अांत कय कयरण भी|सृजन से लेकर सांहयर तक की सम्पूणव कक्रयय के वे एक मयत्र स्वयमी है |
सृजन और कफर उसकय लय, ये दोनों ही कक्रयय कै से की जय सकती है,इसके रहस्य को स्वयां में
समेटे एक मयत्र सदयथशव |
“रसो वै सः”
हयूँ सत्य ही तो है वो मयत्र रस रूप ही तो होतय है | थजसकी द्रव्यतय ककसी भी बयधय के अहांकयर
को पल भर में नष्ट कर सकती है | जीवन द्रव्य के रूप में थजससे सृजन और पयलन कय बल
थमलतय है और कफर लयसांहयरयोग की थवषयितय सृथष्ट को उसी कयरण में थवलीन कर देती
है.जहयूँ से उसकय आगमन हुआ थय | इसे नष्ट नहीं ककयय जय सकतय है,थभगोयय नहीं जय सकतय
है,जलययय नहीं जय सकतय है, नय ही थवभि ककयय जय सकतय है....क्यूांकक ये सदैव सदैव उसी
कयरण से सांबि होतय है |
हयूँ इसथलए पयरद की महत्तय सभी सांिदययों ने स्वीकयरी है,सांसयर कय ऐसय कोई धमव नहीं है,जहयूँ
इतहें सम्मयन नय थमलय हो,जहयूँ इन के गुणों को अपनययय नय गयय हो | कहीं इतहें आत्मय कहय
गयय है,तो कही रूह,कही जीवन द्रव्य तो कहीं सीमयव | इतने ग्रतथ ककसी देवी देवतयओं पर नहीं
हैं,थजतने मयत्र पयरद पर थवश्व की लगभग सभी भयषयओं,सभी धमों और सभी सांिदययों में थलखे
गए हैं | यकद मैं स्वयां की बयत कहूँ तो ५००० से ज्ययदय ग्रतथ और सांथचकयांये तो खुद मेरे पयस
हैं...थजनमे से बहुत से तो आज लुप्त िययः ही हैं | और ये सभी मुझे मेरे ियणयधयर की कृ पय दृथष्ट
और मयगवदशवन से ियप्त हुए हैं |
यकद रसथवज्ञयन को अांथतम तांत्र मयनय जयतय है तो इसमें कोई अथतथशयोथि नहीं है | ब्रह्मयण्ड
से सम्बांथधत ऐसी कोई कक्रयय नहीं है थजसकय सांपयदन रस से नय होतय हो | कफर वो चयहे सृजन
हो,पयलन हो यय कफर सांहयर | थवथभन्न तांत्र ग्रांथो और सूथियों में कू ट भयषय में इस थवज्ञयनां के
रहस्य थलखे गए हैं | आवशयकतय है मयत्र इस थवज्ञयन के रहस्य को समझकर आत्मसयत करने की
और तदुपरयांत पूणवत्व ियप्त करने की | बहुधय हम कहते हैं की भगवयन थशव के दशवन हम कै से करें
यय हम रसथवज्ञयन के मयध्यम से कै से सफलतय की ियथप्त करें | इसकय उत्तर बहुत सरल सय है |
हम सभी जयनते हैं की भगवयन थशव को भोले नयथ कहय जयतय है अथयवत सहज सब कु छ देने में
समथव,यही थववेचनय तो रस अथयवत पयरद की भी होती है | बस एक ही थनयम हमें इन दोनों
बयतों के थलए ध्ययन रखनय पड़तय है |
इसकय अथव यही है की मुझे अथयवत पूणवत्व को तभी पययय जय सकतय है जब सयधक शम्भवयय
अथयवत ित्येक थस्थथत में थस्थरिज्ञ हो...सम-थवषम पररथस्थथतयों को समयन भयव से थनवयवथहत
करे , थवष और अमृत दोनों को एक भयव से ग्रहण करे तभी वह मयोभवयय अथयवत मुझे यय इस
ज्ञयन को ियप्त कर पयतय है यय उपलधध हो पयतय है|
वैसे उपरोि मांत्र में पूणव थशवत्व को ियप्त करने की िकक्रयय ही छु पी हुयी है,ककततु उसकय
अनयवरण करनय यहयूँ हमयरय उद्देश्य नहीं है | पयरद के थवथभन्न सांस्कयरों के द्वयरय पयरद कय
योग,थवथभन्न वनस्पथतयों,धयतुओं,तत्वों,रत्नों और अवस्थयओं यथय..शीत,तयप,मृद,ु किोर से ककयय
जयतय है,और उसके पररणयम स्वरुप ित्येक सांस्कयर के बयद पयरद की शथि और सयमथ्यवतय में
उत्तरोत्तर वृथि होती जयती है,थजसके उथचत ियोग से सयधक अपने मनोरथ को थसि कर सकतय
है |
ऐसय नहीं है की पयरद कय बांधन कर उसके द्वयरय गुरटकय कय थनमयवण पयरद के उच्च सांस्कयरों में
होतय है | अथपतु िथम सांस्कयर से ही उसकी शथि कय थवकयस होने लगतय है और यकद इन
ियरां थभक सांस्कयरों से युि गुरटकय कय थनमयवण कर उन पर तांत्र के ियोग ककये जयए तो पररणयम
अद्भुत होतय है |
१९८७ के मांत्र तांत्र थवज्ञयनां के जनवरी फरवरी के थवशेषयांक में एक ऐसी ही गुरटकय कय
थववरण आयय थय थजसे नयथ योगी और रस थसि “पयरद पयरस गुरटकय” के नयम से जयनते हैं |
इसकय थनमयवण यकद पूणव तांत्रोि थवधयन से ककयय जयये तो ये गुरटकय तांत्र जगत में क्रयथतत लयने में
समथव है...हयूँ महत्वपूणव तथ्य ये है की इस गुरटकय से थवथभन्न िकयर के लयभ ियप्त करने के थलए
आपको सयधनय करनी पड़ेगी | ये कोई सयमयतय गुरटकय नहीं है अथपतु थवशेष क्रम से पयरद कय
शोधन कर और उसकय पूणव ियमयथणक थवधयनुसयर सांस्कयर तांत्र पिथत कय आश्रय लेकर ही
इसकय थनमयवण पूणव चेतनय के सयथ ककयय जयतय है,तभी पयरद की पूणव शथि कय ियकट्य होतय है|
सयमयतय पयरद गुरटकयओं को पयरद पयरस गुरटकय नहीं समझनय चयथहए | यहयूँ पयरद कय अथव
पयरद ही समझय जयये कोई सीसय,जस्तय,रयांगय नहीं | इसमें अशुि पयरद कय ियोग हयथन भी
पहुांचय सकतय है |
यथय :-
धनदययथक्षणी सयधन ियोग- धनदय यथक्षणी को पूणव अनुकूल और थसि कर आर्णथक लयभ ियथप्त
हेतु |
ऊपर कदए गए ियोग मयत्र कु छ नयम है,और इन सभी ियोगों के मांत्र और कक्रययएूँ थभन्न थभन्न हैं
और पूणव सफलतय दययक भी | यकद सयधक पूणव पररश्रम करे इस गुरटकय को ियप्त कर इसकय
ियोग करे तो थनश्चय ही इस थवद्यय कय वो पूणव लयभ उिय सकतय है |
****NPRU****
Posted by Nikhil at 3:31 AM 6 comments:
Labels: PAARAD
****NPRU****
Posted by Nikhil at 4:00 AM No comments:
Labels: PAARAD, TANTRA SIDDHI
For the development of Rass Tantra the hard work and devotion performed by yogis
nobody else could do the same that’s why we can say that this science is presented in
its present full fledge form just because of them. It was the same yogis who with their
strong reverence explored the hidden aspect of nature and then successfully co-
joined those natural powers with different elements, particles and flora and further
joined these things with parad (mercury) and successfully recorded its results on the
paper as well. And due to their written records we have great grand literature about
this science. Rass Ratnaker, Rasarnav granths belongs to this category and there are
many other granths too which are either not available or the people who has don’t
want to give them to anybody. I still remember in 1994 Sadgurudev compose and
compile a granth named PARAD KANKAN and in order to get it printed he called
a gurubhai who was working in a press but as soon as he said that to get this granth
printed desired pages were not available and also there is no chance to create that
type of pages through the cutting and re-setting of normal pages. As Sadgurudev
heard it he immediately torn that hand written manuscript and we lost valuable
knowledge without knowing its basics due to our bad luck.
While leaving it behind I remembered once Pragyanand ji told me that under the
supervision of Sadgurudev many of his pupils had written precious literature on the
secrets and mysterious of tantra though they did not get them printed yet keep them
carefully in the form of diaries. Out of those he showed me one diary having 500
pages with the title RASENDRA MANI PRADEEP, in which there were countless
procedures were written through which amazing gutikas can be made with the help
of parad. Out of these practices one was based on the fact that how with the trio
combination of different mantras, flora and sabar mantras Khechri gutikas, Sparsh
Mani, Mahasidhi Sabar gutika and 54 another gutikas like this can be made. The
first procedure recorded in that was about the making process of this Mahasidhi
Sabar gutika……with the help of not only Mahasidhs can be enchanted and called
but also fulfilled every desire and also was helpful to sidh the tough sabar sadhnas.
For the making of this gutika Ashht Sanskarit Parad is used that too should be
sanskarit with the mantra of RASANKUSH BHAIRAV and BHAIRAVI but these
mantra should be systematically organized as per JAPP DEEPNI system so that
parad can get desired effect which is must for the creation of this Mani. Than one
should offer Swarn grass and get it mixed with MUKTA PISHHTI. When it make
proper good mixture then again this mixture should be blended with Black Venom (
kala vish), Pure Tamrr Bhasam, Purple tutia ( dhatura),Sinhika,
Mastyakshi,Shwetarak and Tambool for 120 hours and at the time of mixing them
one should enchant the mantra-
OM SARA PARAA,BHED UTARA,DET GYAN UJAARA,DOOR ANDHIYARA,SHIV
KI SHAKTI URTI AAYE,BHEETAR SAMAAY,KARE DOOR ANDHIYAARAA JO
NA KARE TO SHANKAR KO TRISHOOL TAADE,SHAKTI KO KHADAG
GIRE,CHHOO
When it seems that mixture is getting dried then again put some more mixture in it
and when 120 hours get passed then get that Pishti dried and make it shrav sambut
by Putting it fire for decided time period. After that when this whole mixture cools
down then again with that Pishti blend 1/10 part of parad by keep on enchanting
Mammalini Mantra then slowly-slowly make it hot and offer VILVRAS’s liquid to it.
By offering near about 1/10 liquid make it complete dry. Now firstly melt it and then
convert in the form of gutika. In this whole process parad make itself fire proof due
to that gutika took light blood color which is fully authentic. But if parad remain fails
to get the quality of fire proof then it is decided that whole procedure is failed. By
putting this gutika in front of you continuously for 3 hours enchant RASANKUSH
mantra with DEEPNI KRIYA while doing this one should display Gorakh Mann
Mudra. Now with the help of pran pratishthit mantras get it pratishthit and then
sthapan (make presented) 64 RASS SIDHS in it. And then by making
SHHODASH UPCHAR on it you can do desired practical. If this gutika can be get
sidh by moving the beads of rosary for 21 times of KANAK DHARA mantra then
this gutika can settle down Maa Laxmi in your desired place forever and ever which
will bless your life with comforts and luxuries.
By offering Swarn grass to Ashht Sanskarit parad and then put it in glass
bottle with the fresh urine of donkey and further then putting this bottle
under the earth for 6 months then this parad converts itself in BHASAM
which has the capacity to change copper into gold.
Posted by Nikhil at 10:29 PM 2 comments:
Labels: PAARAD, SWARNA RAHASYAM
तांत्र शयत्र के रस तांत्र शयखय में स्वणव लक्ष्मी की सयधनय कय अत्यांत महत्वपूणव स्थयन है और यकद
इस मांत्र कय पूणव थवधयन से थनर्णमत थवशुि सांस्कयररत पयरद थशवचलग के सयमने २१ कदनों में ५४
हजयर मतत्र जप कर थलयय जयये तो स्वणव थनमयवण की कक्रयय में शीघ्र सफलतय थमल जयती है,
ऐसय मुझे सदगुरुदेव के सतययसी थशष्य रयघव दयस बयबय जी ने बतययय थय.समृि होनय हमयरय
अथधकयर है और रस शयत्र के मयध्यम से ऐश्वयव ियप्त ककयय जय सकतय है.इसमें मतत्र योग तथय
कक्रयय थवशेष कय योग करनय पड़तय है. ित्येक कक्रयय की सफलतय के पीछे मतत्र थवशेष की शथि
कययव करती है. ऐसय नहीं है की ककसी भी रसययन थसथि मतत्र से कोई भी रस कययव को सफल
कर कदयय जयये, हयूँ ये अलग बयत है की सद्गुरु िसन्न होकर मयस्टर चयबी ही आपको दे दे, परततु
वो उनकी िसन्नतय कय थवषय है. नीचे जो २ ियोग कदए गए हैं वे स्वणव लक्ष्मी मतत्र से सम्बांथधत
ही हैं, यकद इन कीथमयय के ियोगों को न करे तब भी थनत्य िथत इस मतत्र की एक मयलय आर्णथक
अनुकूलतय और धन की ियथप्त सयधक को करवयती ही है.
मतत्र कमलगट्टे की मयलय यय पयरद मयलय से जप होनय चयथहए.
मतत्र-
ॎ ह्रीं महयलक्ष्मी आबि आबि मम गृहे स्थयपय स्थयपय स्वणव थसथिम् देथह देथह
नमः II
मतत्र जप के बयद सयधक यय रस शयत्र के थजज्ञयसुओं को थनम्न ियोग करके अवश्य देखनय
चयथहए, इन ियोगों को मैंने रयघवदयस बयबय जी को सफलतय पूववक करते देखय है, और एक बयत
मैंने ध्ययन दी थी की वे ,पदयथव कय रूपयांतरण करते समय इस मांत्र कय स्फु ट स्वर में उच्चयरण
ककयय करते थे और स्वच्छ वत्र धयरण करके ही ये ियोग ,सयफ़ जगह पर ककये जयते हैं.
१. २५ ग्रयम शुि नीले थोथे को श्वेत आक के आधय पयूँव दूध से खरल करके उस कज्जली में शुि
सीसय १० ग्रयम थमलय कर सम्पुट बनयकर २० ककलो कां डों की अथि देने से भस्म तैययर हो जयती
है. १० ग्रयम रजत को गलयकर उसमे १ रत्ती भस्म डयलने पर स्वणव की ियथप्त होती है. स्वणव
लक्ष्मी मतत्र के मयध्यम से भस्म स्वणव बीज से यौथगत हो कर चयूँदी में स्वणव की उत्पथत्त कर देती
है.
२. शुि जस्तय कय बुरयदय और शुि पयरद १-१ तोले को लेकर मांत्र जप करते हुए जांगली गोभी
के रस में २४ घांटे तक घोंटे,उसके बयद उसे सम्पुट बनयकर ८ तोले सूत से लपेटकर ३ ककलो
बकरी की मेंगनी में रखकर आग लगय दे .आग बांद वययु में लगयनय है, नय की खुले स्थयन पर,
स्वयांग शीतल होने पर जो भस्म थमलेगी , वो चयांदी और शुि तयम्बय , दोनों कय रूपयांतरण स्वणव
में कर देती है.
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In Tantra Shastra, in the branch of Ras Shastra the Swarna Lakshmi Sadhna keeps
unique significance in it. and if this mantra is done with whole procedure of
before Vishudhh Sanskarit Paaradh Shivling in 21 days completes the 54 thousands
mantra jap then you get success in gold making process very soon. As this was being
told me by Sadgurudevji's sanyasi disciple Shree Raghav Das babaji. Becoming
wealthy is our birth right.And by Ras Shastra we can achieve it. See, in this the
balance of mantra yog and kriga yog is needed. At success of each level, a specific
mantra works. It is not like that by any rasayan siddhi mantra u can accomplish any
level. Oh yaa that totally different part if sadgurudev get happy and give u the main
key. But thats the subject of his happiness. Isnt it!!.... well below give two
experiments are related with swarna lakshmi mantra. If you do not perform the
whole procedure but only do the one mala on daily basis of the below mantra, you
will get positivty in Financial matters and generates wealth for you.
Mantra should be done by Kamalgatta mala or Parad mala.
After doing mantra jap sadhak or seeker of ras shastra should do this experiment
necessarily. I have seen all these experiments performing raghav Das Babji
successfully. And one thing which i noticed was while converting substance he
chanted the mantra in bursting sound with clean cloths at clean place.
1. 25 gms blue copper sulphat should be mixed in 250ml White AAK milk and in
that kajjali mix the pure lead 10gms and mixed it properly. after giving flames to 20
kg cow dung cakes converts into ashes. Now melt 10 gm silver and mix 1 ratti
ash.you will get gold in result. Via Swarna Laksmi mantra and getting together with
ashes the silver gets converts into gold.
2. take pure zink powder and pure mercury in 1-1 tola, while mantra chanting just
grind it in wild califlower juice for 24 hours. then make a round ball of it and rapp
up in 8 tala sut , 3 kg goat's mengni and then fire it. fire it closed air not it open
space, after getting cold whatever ash will find would be pure silver or copper and
coverts both into gold.
पयरद ियणशथि को तीव्रतय के सयथ आकर्णषत कर लेतय है ,और इसकी चांचल िकृ थत को जब
मांत्रो,वनस्पथतयों और रत्नों तथय धयतुओं के योग से बढ ककयय जयतय है तब ये बढ स्वरुप में
आपके ककसी भी अभीष्ट को पूणव करने की क्षमतय रखतय है. यथक्षणी सयधनय के थलए थनथश्चत
यथक्षणी सययुज्य गुरटकय एक अथनवययव सयमग्री है .ये गुरटकय थजस ककसी के भी पयस होती है,यक्ष
लोक से उसकय सांपकव सरल हो जयतय है.यकद सयधक इसको सयमने रख कर सयधनय करतय है तो
थनश्चय ही उसे सफलतय ियप्त होती ही है.अभी तक इस गुरटकय की थनमयवण थवथध को अत्यांत ही
गुप्त रखय गयय थय परततु सदगुरुदेव ने अपने थशष्यों को हमेशय ही ज्ञयन रुपी मशयल हयथ में
थमयई है,अज्ञयन के ,भ्रम के अतधकयर को दूर करने के थलए. आज इन पन्नों पर मैं आपको वही
कलेजे कय टु कड़य थनकयल कर दे रहय हूँ तयकक मेरे गुरु भयई बहन उस सफलतय को ियप्त कर सके
जो की उनकय सयधनय के क्षेत्र में स्वप्न रही है.
१५ ग्रयम अष्ट सांस्कयररत पयरद लेकर उसमे १ रत्ती हीरक भस्म,२ ग्रयम स्वणव कय चूण,व ३ ग्रयम
रजत चूणव दयल कर थशवचलगी और पयन के रस से खरल करे ,ये खरल की कक्रयय अपने आसन पर
बैि कर की जयनी चयथहए,खरल करने के सयथ सयथ रसययन थसथि मांत्र कय भी जप ककयय जयनय
है.
ओम नमो नमो हररहरयय रसययन थसचि कु रु कु रु स्वयहय
ऐसय ८ घांटे तक करने के बयद उस खरल पयत्र में सेंधय नमक और गरम पयनी डयलकर खरल करे
थजससे पयनी कयलय होतय जययेगय.तब उस पयनी को बहयर फे क दे ,ध्ययन रखनय कही पयरद
बयहर न थगर जयये और ये नमक थमथश्रत पयनी डयलकर तब तक खरल करे जब तक पयनी कयलय
आतय रहे जब,पयनी सयफ़ आने लग जयये तब उस पयरद को, जो की थपष्टी रूप में हो गयय होगय
को थनकयल कर सूती कपडे से छयन ले,कपडे में िोस पयरद बचय होगय थजसे थनकयल कर गोली
बनय ले और ३ कदन के थलए थशवचलगी के रस में रख दे ,थजससे वो किोर हो जयये. तत्पश्चयत
इस गुरटकय को शुक्रवयर के कदन ियतःकयल में श्वेत वत्र पर स्थयथपत कर ले और स्वयां भी श्वेत
वत्र धयरण कर पहले गुरु पूजन ,गणपथत पूजन और दीपक पूजन करे , तथय गुरु मांत्र की २१
मयलय जप करे ,उस गुरटकय के सयमने घृत कय दीपक स्थयथपत होनय चयथहए.
सबसे पहले गुरटकय कय पांचोपचयर से पूजन करे तत्पश्चयत यथक्षणी कय आवयहन थनम्न मांत्र और
मुद्रय से उस गुरटकय में करे ,ययद रथखये की थजस यथक्षणी कय आप आवयहन कर रहे हो अमुक की
जगह उसी कय नयम लेनय है –
ओम आां क्रौं ह्रीं नमः अस्तु भगवथत अमुकां यथक्षणी एथह एथह सांवोषट
इसके बयद यथक्षणी को उस गुरटकय में आसन िदयन करे ,ये कक्रयय अनयथमकय के द्वयरय गुरटकय को
स्पशव करते हुए करे ,इस मांत्र कय ११ बयर उच्चयरण करनय है.
ओम आां क्रौं ह्रीं नमः अस्तु भगवथत अमुकां यथक्षणी थतष्ट ि: ि:
इसके बयद थनम्न मांत्र कय २१ बयर उच्चयरण करते हुए अक्षत को उस गुरटकय पर डयले.
ओम आां क्रौं ह्रीं नमः अस्तु भगवथत अमुकां यथक्षणी मम सथन्नथहतय भव भव वषट्
कफर थनम्न मांत्र कय उचयचरण करते हुए पांचोपचयर से उस गुरटकय कय पूजन करे .
ओम आां क्रौं ह्रीं नमः अस्तु भगवथत अमुकां यथक्षणी जल अक्षत पुष्पयकदकयन् गृण्ह गृण्ह नमः
इसके बयद थनम्न मतत्र की २१ मयलय मांत्र जप यथक्षणी मयलय से करें , ये सम्पूणव कक्रयय ३ कदनों
तक करनी है.
ओम ह्रीं श्रीं क्लीं धलूम् ऐं श्रीं पद्मयवती देव्यै अत्र अवतर अवतर थतष्ठ थतष्ठ सवव जीवयनयां रक्ष रक्ष
हां फट् स्वयहय
इसके बयद थवसजवनी मुद्रय से थनम्न मांत्र कय उच्चयरण करते हुए यथक्षणी कय थवसजवन करे .
ओम आां क्रौं ह्रीं नमः अस्तु भगवथत अमुकां यथक्षणी स्वस्थयनां गच्छ गच्छ ज:ज:
इस क्रम को पूणव करने पर एक तेजथस्वतय सी उस गुरटकय में दृथष्टगोचर होती है और वो थोड़ी
गमव भी लगती है.इसकय अथव ये है की अब उसमे यथक्षणी की िनयश्चेतनय कय सयुज्ज्यी करण हो
गयय है. इस गुरटकय पर इसी पिथत से ककसी भी यथक्षणी की सयधनय की जय सकती है और यकद
मयत्र ये घर में भी रहे और थनत्य इसके सयमने पूजन हो तब भी ये आर्णथक अनुकूलतय देती है और
भथवष्य की दुघवटनयओं से बचयती है.
रजत कल्प –दो तोलय श्वेत सोमल लेकर उस पर थत्रवणयवत्मक मांत्र कय जप १००८ बयर करे और
िीक इसी िकयर कयली गयय के दूध पर भी इतनी बयर ही मांत्र कय जप करे ,बयद में दौलय यतत्र से
इस सोमल को उस दूध में पथचत करे .जब दूध समयप्त हो जयये तो,सोमल को थनक्कल कर गांगय
जल से धकर उसके सयमने ११००० बयर मांत्र जप करें . कफर १० ग्रयम तयम्बे को अथि में गलय
कर उसमे इस सोमल की २ रत्ती मयत्र को मोम में लपेट कर दयल दे और चखव दे.सयरय तयम्बय
चयांदी में पररवर्णतत हो जययेगय.ये कक्रयय श्री कयलीदत्त शमयव जी की है,जो अनुभूत की हुयी है.
Mercury attracts the Pranashakti very soon and when its trembling nature is
controlled via Mantra, Herbs and Stones and metals all togetherly when
empower mercury then this parad becomes the ultimate source for u to
accomplish ur wishes. For Yakshini sadhna the Nishchit Yakshini Sayujya
Gutika is cumpulsory. Whomsoever will possess this gutika would definitely
achieve the success. Till now the procedure of making this gutika has been
kept very secretful. But Sadgurudev always given a torch in form of
knowledge in their hands to remove the darkness and illusions from our
lives. Today on these pages I m giving that beloved part of my heart so that
my co guru brothers and sisters can achieve those steps of success which just
a dream of them. Take 15 gms Ashta Sanskarit Parad, 1 ratti HIrak bhasma, 2
gms gold powder, 3 gms silver powder on shivlingi and grind it in pan juice,
now take this grinded mixture(hey hey it should be done on asan only) and
while grinding just chant the Rasayan Siddhi Mantra also.
OM NAMO NAMO HARIHARAAYA RASAAYANAY SIDDHIM KURU
KURU SWAAHAA.
Do it continuously for 8 hours..after that put some white rock salt and warm
water and again grind it so that the color becomes black. Then take out that
black water and throw it.Be careful the mercury should not go away while
throwing water.now now put this roch salt water and grind it again till the
moment th balck water comes out. When the clean water comes out and
becomes fine then take cotton thin cloth and filter it. The remaining
alchemy in the cloth is solid mercury. And make a tablet of it. And then keep
it in shivlingi juice for 3 days. So that it will become more solid and dense.
Then after on Friday morning take this gutika establish it on white cloth in
worship area. U also wear a white clothes.Then start Guru pujan, Ganapati
Pujan, Lamp Pujan then Guru mantra 21 malas, then enlight the lamp infront
of that gutika. First of all the panchopchar pujan must be done. Then call
Yakshini via following mantra and mudra on this gutika. Be careful
whichever yakshini u are calling should pronounce her name instead of
‘amuk’…okkk-
Now after completing the series the gutika becomes glowy and it is reflects. And
some what hot also.it also means that the pranashchetna of yakshini is established.
Well on this gutik with same procedure many more yakshini sadhna can be
performed. And if at all she just stay at home and daily worship rituals happenes
then also financial condition would be always remain favourable and protects u from
future accidents aslo.
Rajat kalpa
Take 2 tola or 10 gms swet somal and on it chant Trivarnatmak mantra for 1008
times and exactly in same was on black cow milk also. Then by Daula Yantra
make somal drink such black cow milk. when milk gets over then take out
somal from it and wash it from Ganga Jal.Then chant for 11000 times the
mantra. Then melt the 10 gms copper in fire and take 2 ratti of somal and wrap
up it in wax and rotate it with ful speed. The whole copper would be converted
into silver. This process is given by Shree Kalidutt Sharmaji which have
experienced personally..
****NPRU****
Posted by Nikhil at 11:00 AM No comments:
Labels: PAARAD, SWARNA RAHASYAM, YAKSHINI SADHNA
यह थवद्यय (.******”पयरद तांत्र थवज्ञयनां “*** ) जनतय को धमव , अथव, कयम की ियथप्त करयती
, रयजयओं को नष्ट रयज्य की ियप्ती और रयज्य वृथि में सहययक और गृहस्थो को दीघयवयु ,
यौवन िदयन करने वयली और मुमक्ष ु ओं
ु को मुथि िदयन करती हैं
पयरद तांत्र के जयनकयर आज बहुत ही कम हैं और जो हैं भी तो उन दूर दरयज
पहयडो पर हैं जहयूँ की जन सयमयतय पहुूँच पयनय थबलकु ल असांभव हैं . और
जो हमयरे बीच हैं उनके बयरे में तो समझ पयनय शययद और भी करिन हैं .पर जो
आज हमयरे मध्य हैं वे यह तथ्य उद्घयरटत करते हैं की ....
रस ग्रतथ लगभग 60 ,000 गुरटकय यय गोलक के बयरे में बतयते हैं और इन सभी के थनमयवण
की िकक्रयय और लयभ पर सभी मौन ही हैं . एक से एक अद्भुत रहस्य से भरय यह क्षेत्र हैं .
रोगपांकयथधधमियनय..पयरदयनयच्च पयरदः ||
रोग रूपी सयगर में डू बे हुए मयनव को पयर यय मुि कर दे .यह पयरद तांत्र थवज्ञयनां से ही
सांभव हैं ककस रोग की बयत यहयूँ की गयी हैं??? वस्तुतः यहयूँ पर आध्ययथत्मक , देथहक
,मयनथसक , भौथतक सभी रोग को शयथमल ककयय गयय.
“सकल पदयरथ हैं जग मयही ,भयग्यहीन नर कछु पयवत नयही “
आथखर कब तक टू टे हुए .भयग्य यय अजगर के सयमयन सोये भयग्य कय रोनय रोते रहय जयए
..आथखर कहीं तो ...अांत हो ..........कम से कम
तांत्र क्षेत्र के सयधको और सदगुरुदेव के थशष्य होने के बयद तो यह हयथ पर
हयथ धरे ...... शोभय ही नही देतय हैं ...
तो कै से सभव हो .जीवन की हर िथतकू लतय में थवजय श्री कय वरण करनय ...क्यय यह
सांभव हैं .??
क्यों नही ...और यही बयत आती हैं रस शयत्र की ...उसकी उपयोथगतय की ...
रस शयत्र अपने आप मे अत्यांत ही उच्च कोरट के ज्ञयन और थवज्ञयनां से आपूररत हैं .पर
थवगत कु छ कयलों में इसको मयनो भुलय ही कदयय गयय .पर अब एक नयी
िकयश ककरणे पुनः अपनी उज्ज्वलतय और अपने तेज से इस अत्यांत उच्च कोरट
स्थ तांत्र थवज्ञयनां से हमयरय पररचय करय रही हैं .
कोई भी थवज्ञयनां ककतनय उच्च कोरट कय क्यों न हो अगर वह हमयरे कदन िथत कदन के जीवन
में उपयोगी अगर नय हो सके तो उसकय क्यय अथव हैं .
पयरद तांत्र थवज्ञयनां के सयथ ऐसय नही हैं .
यह तो ....“भोगस्थ मोक्षस्थ करस्थ एव च “.
की धयरणय को सयमने ित्यक्ष रूप से रखतय हैं .
इसी श्रांखलय में ..
जब जीवन पर सांकट आन पड़य हो तब ककस गुरटकय कय सहयरय ले .??
जब अत्यथधक श्रमसयध्य और थक्लष्ट सयधनयओ को कर पयने कय मन नही हो पय रहय हो तब
...??
जब पररवयर में कदन रयत कलह और दररद्रतय कय सयम्रयज्य छयतय ही जय रहय हो तब ..??
क्यय हर छोटी छोटी सी समस्यय के थलए सदगुरुदेव कय आवयहन ककयय जयए यय उनके ऊपर
सब छोड़ कर ......क्यय यह मययवदय की दृष्टी से उथचत होगय ...??
क्यय हर समस्यय के थलए परम महयमांत्र गुरु मांत्र कय ही सीधे उपयोग ककयय जयए
..क्यय यह उथचत होगय .??
षट्कमव की कक्रययये जैसे वशीकरण ,उच्चयटन,..जैसे कय उपयोग न करके थसफव भय से इस ओर
....क्यय यह उथचत हैं..??
क्यों न सदगुरुदेव द्वयरय हमयरे सयमने लयए गए ज्ञयन को आधयर बनय कर .स्व थनभवर बने
...श्रेष्ठ सयधक बने ..और थशष्यतय के रयजमयगव पर कु छ ओर कदम बढ़यये ..
वैतयल सयधनय , भगवयन दत्तयत्रेय ित्यक्ष सयधनय , धन आगमन सयधनय
..जैसी लगभग १००८ सयधनयए थजस पर सांभव की जय सकती हो ......उस गुरटकय के बयरे
में जयनकयरी ..
सूयव थवज्ञयनां ...., पयरद थवज्ञयनां.... ,कयल थवज्ञयनां.... , और स्थयन थवज्ञयनां.... ,वययु थवज्ञयनां.... ,
और अतय थवज्ञयनां सीखने में एक अत्यांत आवश्यक गुरटकय ...थजसकी महत्वतय थगनयई ही नही
जय सकती हैं ..
शमशयन सयधनय में न के बल स्व रक्षय हेतु वरन हर शमशयन स्थ सयधनय पूणव सफलतय हेतु
भी ....... .
जीवन को पूणव थनरोगी बनयये रखने हेतु ..
जो हर सयधनयओ में सफलतय दे सकने में समथव हैं .
जो जीवन की असफलतय को सफलतय में बदल देने में समथव हैं ...
जो जीवन को उच्चतय ,श्रेष्ठतय , लक्ष्य तक तीव्रतय से आपको अग्रसर कर सकती हैं ....
जैसय की नयम ही बतय रहय हैं कक “पयरद स्वणव अणु थसथि गोलक” तो यह नयम ही
क्यों कदयय गयय ..????
तांत्र थवज्ञयनां में हर नयम यय शधद कय एक थवथशष्ट अथव हैं ही ..... आथखर अणु से
क्यय तयत्पयव हैं.? पदयथव की सबसे छोटी इकयई थजसके मयध्यम से पदयथव पररवतवन ककयय जय
सकतय हैं पर यह पदयथव पररवतवन कै से सांभव हो ? तो इसके थलए महर्णष कणयद ने एक
पूरय थवथशष्ट ग्रतथ ही रच कदयय हैं .जो “ कणयदोपथनषद “ के नयम से थवख्ययत रहय हैं ... इस
अणु थवज्ञयनां के थलए एक ही नयम सबसे पहले सयमने आतय हैं वह हैं **सूयव थवज्ञयनां ** और
इस थवज्ञयनां में ” थसियश्रम सूयव लेंस “ .......इसकी ियथप्त तो सभी कय स्वप्न रहय हैं ..इसकय सूयव
थवज्ञयनां में एक महत्वपूणव स्थयन हैं आथखर यह हैं क्यय ..?? एक अथत थवथशष्टतम लेंस थजसमे
.थवथभन्न कोणों से मयध्यम से अणुओ कय सांलयन यय थवखांडन करके पदयथो कय
रूपयांतरण ककयय जयतय हैं .क्यय थसफव इतनय ही ..बथल्क बथल्क नव जीवन
और पुनजीवन तक देने में समथव हैं यह सूयव थवज्ञयनां ..पर यह थसियश्रम सूयव लेंस ियप्त
करनय तो बहुत ही दुष्कर हैं .
पयरद में एक थवशुि धयतु “ स्वणव” कय सांयोग ..!!!! वहभी शयत्रीय मययवदयनुसयर ....यह तो
सोने में सुहयगय भी नही कहय जय सकतय क्योंकक वहयां तो थसफव धयतु हैं ..और यहयूँ पर
..समस्त सांसयर को पुनर जीवन देने में समथव तत्व की बयत ...यह सांयोग कर पयनय तो इस
मयगव के थसिहस्त लोगों के थलए भी सपनय सय हैं ..
और कफर “अणु थसथि “..यह तो स्वपन रहय हैं महय योथगयों कय भी..क्योंकक सयरय थवश्व हैं क्यय
???..थसफव अणुओ कय थवथभन्न सांयोजन .. और जब इसकी थसथितय ियप्त हो जयए तो .. क्यय
अब शेष रहय .......!!!
इस गोलक के सयमने एक थवथशष्ट मांत्र कय जप करने पर यह पयरदशी हो
जयतय हैं ..पयरद और पयरदशी ..!!!!! यह तो सांभव ही नही हैं ??.पर यह सच हैं
. सदगुरुदेव ने यह बहुत पहले स्पस्ट ककयय थय .और अनेको
बयर यह कहय की पयरद के गुणों की तो कोई सीमय ही नही हैं .और जो
इसकय सहयरय नही लेतय वह व्यथव ही अपनय समय और शथि नष्ट करतय हैं हम इस
को स्वयां करके देख सकते हैं .अगर हम में थशष्यतय कय गुण हो तो .सदगुरुदेव के शधदों पर
अगर थवश्वयस हो तो ......
शमशयन सयधनय :::: तो व्यथि के जीवन कय सौभयग्य हैं,पर यह क्यय इतनी सरल हैं ??. यहयूँ
पर िकक्रयय..सरल से दुष्कर दोनों हैं ,पर एक भी मयमूली सी गलती क्षम्य नही हैं
. थोड़ी सी गलती ..कयफी महगी हो सकती हैं . पर एक थवथशष्ट मांत्र कय
जप इस गुरटकय पर ककये जयने से न के बल .यह समस्त शमशयथनक कययों में न के बल
पूणव सुरक्षय देती हैं बथल्क ..इन कक्रयययो में और उच्चतर सयधनयओ में सफलतय भी िदयन
करयती हैं .
और जब चबदु शुि होने लगय ..तो थशवतत्व की ओर ...जो की वयस्तव में सदगुरुदेव तत्व हैं
.....एक कदम और बढ़ गयय ...और जो भी कदम ..जो भी सयधनय ..सदगुरुदेव के श्री चरण
कमलों में ले जयए ..क्यय वह एक उच्च कोरट स्थ गुरु सयधनय न होगी ..???
षट्कमव सयधनय में :: आज हर छोटी छोटी सी बयत के थलए सदगुरुदेव पर आथश्रत होनय
.उनपर सयरय भयर डयल देनय ..यह एक थशष्य को शोभय नही देतय हैं यह मययवदयनुकूल भी नही हैं
..अगर यही सब होनय थय .यय सदगुरुदेव ऐसय चयहते तो एक लयख से ज्यदय सयधनयए
.मांत्र उतहोंने क्यों दी .धूमयवती सयधनय में तो सदगुरुदेव ने स्पस्ट कह ही कदयय की
आथखर गुरु के पयस भी क्यों जयनय ..जब की स्वयम गुरु ने तुम्हे थवथध दी हैं गुरु भी
आथखर उसी देव शथि के पयस जयकर वह कययव करे गय ..तो तुम सीधे क्यों नही उसी देव
शथि के पयस जयते हो ...अब और क्यय शेष रह गयय ..
पथत /पत्नी बयत नही मयनते ...समयज /ऑकफस में सम्मयन नही
..बच्चो को सस्कयर थबहीन होते बेबसी में देखनय .........योग्य हो सकने वयले जीवन
सयथी को देख कर भी ..अपने भयग्य को कोसनय ..यहयूँ वहयां के तयथतत्रको के पीछे भयगते रहे की
वह कर दे ......थवथभन्न में रोग को थलए रहनय ..हर पल जीवन से ..शत्रुओं से समझौतय ...हर
जगह जीवन में हयरनय ...योग्य होकर भी थतल थतल करके हयथ मलते रहनय ...
क्यों नही इन षट्कमव के मयध्यम से ..इन इतनी सरल िकक्रयय जो इस गोलक के मयध्यम
से सांभव हैं हम अपने जीवन की कदशय जो अधोमुखी हैं .उसे उध्ववमख
ु ी बनय दे हम स्वयां ..
सदगुरुदेव ने व्यथव के अहांकयर को गलत मयनय हैं पर स्वयथभमयन की वे सदैव िशांशय करते
रहे .
हम डरते हैं ..अपने ही थपतय के द्वयरय कदए गए ज्ञयन को उपयोग करने में ...
तो थभखयरी वत ..थनरीह ..असहयय .. उतहोंने नही बनययय ..बथल्क हमने चुनय हैं .
उतहोंने कहयूँ की पररथस्थतयों से समझौतय नही बथल्क तुममे मेरय लह वह रहय हैंउसे तो
ध्ययनमे रखो ..आगे बढ़ो ...थवजय श्री थमलेगी ही तुमको ..
न के बल अष्ट लक्ष्मी बथल्क इनमें से ित्येक लक्ष्मी के १०८ स्वरूपों कय भी स्थयपन इस गोलक में
ककयय जयनय चयथहये थजस से यह पयरद गोलक वयस्तव में ही सयधक के थलए सौभयग्य के रयस्ते
खोल दे. वयरयही देवी स्थयपन कय तो यह गोलक स्तम्भन के थलए भी सयधक के
थलय उपयोथगत हो सके पर स्तम्भन कय क्यों की सयधक ककसी भी िकयर के तांत्र वयधय से मुि रह
सके तब इसी महय शथि कीस्थयपन अथनवययव हैं ही .जब पयरद व्यथि को कयलयतीत कर सकने की
क्षमतय देतय हैं तब भगवयन् महयकयल कय स्थयपन तो इस गोलक मैं ही होनय ही हैं अतयथय कै से
कु छ भी उपलथधधयय स्थययी रह पययेगी. महयकयल कय स्थयपन तो कर थलयय पर कयल की
अथधस्ियथी मयूँ महयकयली, के कदव्यतम स्वरुप मयूँ दथक्षण कयली , मयूँ कयम कलयकयली , गुह्य
कयली , थसथििदय कयली के स्वरुप को तो भूलय कै से जय सकतय हैं इन सभी मयूँ जगदम्बय के स्वरुप
की स्थयपन अगर ऐसे महय शथि पीि जो सयक्षयत् मयूँ परयम्बय कय स्थयन हैं ,
जब चबदु उद्भव रे तस गुरटकय हैं तो अब हमें इस पयरद अणु थसथि गोलक की आवश्यकतय ही
क्यों ??
हर गुरटकय कय अपनय एक अथव हैं . चबदु रे तस गुरटकय ........एक सम्पूणव जीवन पररवतवन के
थलए हैं ....सम्पूणव चक्र जयगरण के थलए हैं ........अततः थस्थत .ब्रम्हयांड तांत्र से सीधे सयधक
के बयह्य ब्रम्हयांड तांत्र से सांपकव के थलए हैं ...........अपने स्व तत्व को जयनने के
थलए .......आत्मसयत करने के थलए हैं ..हर सयधनय में पूणव
सफलतय और िोस सफलतय ियप्त हो उसके थलए एक िोस आधयर बनयने के थलए हैं
...और यह कोई चमत्कयर वयली गुरटकय नही हैं , यह पूरे जीवन भर चलने वयली.... चबदु
सयधनय के थलए हैं ..क्योंकक जो समग्र पररवतवन कर दे ......वह एक कदन की िकक्रयय तो
होगी ही नही .
.चबदु गुरटकय से सयधक षट्कमव ियोग नही कर सकतय हैं .चबदु गुरटकय शमशयन सयधनय में कयम
नही आ सकती हैं . वैतयल सयधनय ,भगवयन दत्तयत्रे य
ित्यक्षीकरण सयधनय, लक्ष्मी के अनेको रूपों को अपने यहयूँ स्थयपन करने में कयम नही आ
सकती हैं . सूयव थवज्ञयनां .क्षण थवज्ञयनां ..कयल थवज्ञयनां ..और .अतय
थवज्ञयनों में इसकय सीधय कोई हस्तक्षेप नही हैं ..
पर कफर अथव क्यय हुआ ...??
ककतनी भी बड़ी उपलथधध ियप्त हो .पर उसके थलए एक पयत्रतय .....एक योग्यतय ..एक
िोस आधयर .. समस्त अततः शरीर कय शुथिकरण ..शरीरस्थ समस्त चक्रों कय जयगरण ...
समस्त मयनथसक..आध्ययथत्मक शथियों कय हममे उदय होनय जरुरी हैं ..अतयथय .इन
उपलथधधयों को पयनय नय के बल करिन बथल्क बहुत ही श्रम सयध्य हैं ..
यही तो सदगुरुदेव कय सपनय रहय हैं . जो वैकदक ऋथषयों कय उद्घोष रहय हैं
की “वसुधव
ै कु टु म्बकम “ के आधयर पर हम िोस आधयर बने अपने समयज कय
..देश कय और पुनः सांस्कृ थत को ऊपर ले जयए ....
उसके थलए ..
******NPRU*******
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Why should not we make knowledge of Sadgurudev as our base and become self-
dependent and great sadhaks and put some strides forward on Rajmarg of Shishyta.
As the name says “Parad Swarn Anu Siddh Golak”, why only this name was given……
Every name or word carries a special meaning in Tantra Science…………. What does
word Anu (Atom) signifies? The smallest unit of the material by which material
transformation can be done but how material transformation is possible? For this,
MaharishiKanaad has created a special scripture which is famous by the
name “Kanadopnashid”……………..For this atomic science, one name that comes into
our mind,that is **Surya Vigyanam**and in this science “Siddhashram Surya
Lens”…………and getting this lens has been the dream of everyone……it has got an
important place in Surya Vigyan. What is this lens all about? It is a very special lens
whereby using various angles, atoms can be combined or splited and as a result,
material transformation takes place. Only this……………..this Surya Vigyan is capable
of giving a new life………However, it is very cumbersome to get this Siddhashram
Surya Lens.
Adding pure metal Gold in Parad….!!! That too using Shastra principles……. This is not
a big task because there , we are talking about only metal but here we are talking
about element which is capable of giving rebirth to the whole world…….It is dream even
for siddhs of this path to make this possible.
And then “Anu Siddhi”……..this has remained a dream even for Mahayogis because
what is this entire world?.....Only the different combination of atoms….if one gets
accomplishment in it……..then what is left…..!!!
Shamshaan Sadhna:::: is the the boon for a person’s life, but is it that much
easy???. Here the procedures are both easy and difficult but even any slightest of
mistake is not forgiven. Even a minute mistake can prove to be disastrous. However
Chanting one special mantra on this gutika not only provides complete security in
shamshaan procedures but also provides success in these procedures and higher-order
sadhnas.
Why not by help of shatkarmas…….a simple procedure which is possible through this
golak can transform the direction of our life in higher direction.
Sadgurudev has always considered the unnecessary ego to be wrong but he has
always praised the self-pride.
He said that do not make compromise with circumstance. My blood is running in your
veins, you should keep this thing in mind …….Move forward……You will be
successful…
But we kept aside the weapon of sadhna and started singing ab soup diya is jeevan ka
Bhaar…..
How this Rare Gutika is Created??
You all are aware of some process which can be done on this gutika or Golak and this
Gutika/Golak is made from Parad of more than 8 sanskars.But why this sanskarsevery
time??
इससे पहले की हम आगे बढे यह जयननय जरूरी हैं की , क्यय हैं ये कदव्य गोलक ? ओर कै से इसकय
थनमयवण ककयय जयतय हैं . यु तो इससे सांबथां धत लेख में कु छ तो में पररचय दे ही चूकय ही हूँ पर कफर
भी यह गोलक पयरद के कदव्य सांस्कयरो से युि ही अपने आप में ही कदव्यतम हैं कफर यकद इसे
इसे स्वणव ग्रयस , रजत ग्रयस के सयथ ककतनी ही कदव्य जड़ी बूरटयों से सहयोग से इसकय
थनमयवण ककयय गयय , अब क्यय शेष रह जयतय हैं
, लगभग १६ कदन इस कययव में िथत कदन के ६ घांटे के थहसयब से लगे ४ घांटे कदन में तो दो घांटे
रयत में शयत्रीय इस गोलक के थनमयवण में ऐसय ही थनयम हैं . कफर थजतने भी भयई इस में
भयग ले रहे थे उस सभी के नयम से व्यथिगत रूप से इस की चैततय
करण , अथभचसथचथतकरण , ओर थवथशष्ट कक्रययओं को कर के इसकय ियथथमक चरण पूरय ककयय
गयय , इतनय अथधक श्रम के बयद तो यह गोलक पहली बयर हम सभीके सयमने आयय . तो अतय
िकक्रयों के बयद अतय िकक्रयों के थलए इसे ओर अग्रसर करने के थलए भलय सदगुरुदेव जी के
जतम कदवस से अथधक महत्वपूणव कोई कदन हो सकतय हैं.
पर अब ओर क्यय इसमें क्यय करनय शेष होगय हम सभी सोच रहे थे , ियतः कयथलन पूणव
सद्गुरु पूजन ियरां भ हुआ लगभग ४ घांटे चलय इसमें सदगुरुदेव के पूणव पूजन
उपरयत , स्वणयवकषवण भैरव स्थयपन हुए जो की पयरद सयधनय के पूणव आधयढ़ें, नयथ ही नहीं
नव नयथ ओर भगवयन् दत्तयत्रेय कय स्थयपन ियोग इस गुरटकय पर क्योंकक नयथ सांिदयय के
आकद गुरु ने ही ही तो इस पयरद सांस्कयर को िसयररत ककयय कफर नव नयथ तो थशव पुत्र
हैं पयरद जो थशव वीयव हैं तो थशव तत्व को कै से भुलय सकते हैं . जीवन में नव ग्रहों के महत्त्व को
कै से टयल सकते हैं पर इनके सयथ नवग्रहों की मयतय मुतथय कोकै से भूल सकते हैं , इन नव ग्रहों की
की कृ पय सयधक को थमले ही पयरद के मयध्यम से.
पर इसके बयद अष्ट लक्ष्मी स्थयपन क्रम आयय तो न के बल अष्ट लक्ष्मी बथल्क इनमें से ित्येक
लक्ष्मी के १०८ स्वरूपों कय भी स्थयपन इस गोलक में ककयय गयय थजस से यह पयरद गोलक
वयस्तव में ही सयधक के थलए सौभयग्य के रयस्ते खोल दे. अब समय थय वयरयही देवी स्थयपन कय तो
यह गोलक स्तम्भन के थलए भी सयधक के थलय उपयोथगत हो सके पर स्तम्भन कय क्यों की
सयधक ककसी भी िकयर के तांत्र वयधय से मुि रह सके तब इसी महय शथि कीस्थयपन अथनवययव हैं
ही .जब पयरद व्यथि को कयलयतीत कर सकने की क्षमतय देतय हैं तब भगवयन् महयकयल कय
स्थयपन तो इस गोलक मैं ही होनय ही हैं अतयथय कै से कु छ भी उपलथधधयय स्थययी रह
पययेगी. महयकयल कय स्थयपन तो कर थलयय पर कयल की अथधस्ियथी मयूँ महयकयली, के कदव्यतम
स्वरुप मयूँ दथक्षण कयली , मयूँ कयम कलयकयली , गुह्य कयली , थसथििदय कयली के स्वरुप को तो
भूलय कै से जय सकतय हैं इन सभी मयूँ जगदम्बय के स्वरुप की स्थयपन अगर ऐसे महय शथि पीि जो
सयक्षयत् मयूँ परयम्बय कय स्थयन हैं , वह भी सदगुरुदेव जीके जतम कदवस पर तो आप ही सोचे की
क्यय सदगुरुदेव जी ओरगुरुदेव थत्रमुर्णतजी के आशीवयवद के थबनय ककसी मैं भी ऐसी सयमथ्यव हैं की
वह जो यह सांभव करपयतय , सांभव ही नहीं हैं .
यह सब स्थयपन पूरय हुआ हमयरी सम्पूणव गुरुशयथिके कदव्य आशीवयद
से थजनकी छत्र छययय , कृ पय तले, वरद हस्त तले, हमयरे ऊपर हम सभी आगे बढ़ ही रहे हैं .
शयत्रों में इस कदव्य गोलक के बयरे में जो वर्णणत हैं वह मैं आपके सयमने सयमने अपनी ओर से
कोथशश कर रहय हूँ . यह गोलक तो जीवन कय कदव्यतम वरदयन हैं , मयत्र इसे ियप्त कर
लेनय से ज्ययदय जरुरी हैं की थजन कक्रययओं की बयत से में कु छ कय उल्लेख ककयय
हैं वह सम्पूणत
व य से पूरी की गयी हो तभी तो यह ,इस परहोने वयली कक्रययओं कय यह आधयर
भुत आधयर बनेगी .
पयरद के इस स्वणव अणु थसथि गोलक को यकद सयमने रख कर दस महयथवद्यय मेंसे हर के के थसि
पीि पर जय कर पहले दस तत्व से सम्बांथधत एक थवशेष मतत्र कय यकद १०८ बयर
जप करके उस महयशथि के दशवन करें जयये तो सम्बांथधत महयथवद्यय की कृ पय तो ियप्त होती हैं
वे स्वयां अांपने वरदययक स्वरुप से सयधक के कययों में सहयोगी रहती हैं यही तो
थनथश्चत कयय रूपेण सयधनय हैं . उसके बयद शयत्र कहते हैं की इस कदव्य गोलक पर षट कमव
भी सफलतय पूवक
व सांपन्न हो पयते हैं थजनमें मोहन उच्चयटन मयरण थवद्वेषण भी शयथमल हैं , इन
ियोगों को हेय दृष्टी से न देखें जीवन की आपधयपी में जब व्यथि बुरी तरह फस जयतय हैं अनेको के
पयस जयकर अपनी समस्यों के थलए थगड़ थगडयतय हैं तब उसे पतय चलतय हैं की इन क्यय क्यय
अथव हैं ,
इस कदव्य पयरद गुरटकय पर तो भगवयन दत्तयत्रेय कय स्थयपन हुआ हैं तो उनके परम पयवन
दशवन कय सदेह अथधकयरी बनयनय तो देव दुलभ
व हैं ही वह भी इस पयरद गुरटकय के मयद्यम
से सांभव हैं , ओर जहयूँ महयकयली हैं वहयां पर उनके स्वरुप से सम्बांथधत गण वीर बैतयल भी
इसके मयध्यम से आसयनी से थसि ककये जय सकते हैं , शमशयन में होने वयले ियोगों के थलए
तोमयनो तो वरदयन हैं ही यकद आपके पयस यह गुरटकय आपके गले में हैं ,तो क्यय कहयूँ
जयये , क्योंकक जहयूँ भगवयन् महयकयल ओर मयूँ परयम्बय स्वरूपी महयकयली हो वहयां कौन सी
थस्थथत आपको भय भीत कर सकती हैं हैं कफर आप हैं ककनके थशष्य एक
बयर अपन ह्रदय टटोले तो सही आप खुद ही जयन जययेंग,े
पयरद तो थशव चबदु हैं ओर हमयरय वीयव हमयरय चबदु हैं , अब हमने थशव वीयव तो शुि
करथलयय पर जब हमयरय स्वयां कय ही चबदु अशुि हैं तब क्यय कहे, उच्चतर सयधनों के अमृत को
कै से , कै से कोई अशुि पयत्र में शुि वस्तु डयलने तैययर होगय , कै से मयनेगय कोई की उसके चबदु कय
अभी तक शोधन नहीं हुआ,पर जब तक आपकय चबदु शुि न हो जयये उच्चतर कक्रययओ के थलए
कै से व्यथि को योग्य मयनय जयय .पर चबदु शोधन की
अद्भुत थवथध तो शयत्रों में भी वर्णणत नहीं हैं पर यह भी सांभव हो जयतय हैं इस पयरद
गुरटकय /गोलक के मयध्यम से एक थवशेष ियोग के द्वयरय. ओर जब चबदु शोथधत होतय हैं तो व्यथि
के चेहरे पर एक आभय एक िकयश कदखयई देतय हैं.
क्यय आप मयन पयएांगे की , शयत्र तो कहते हैं की एक थवशेष ियोग के मयध्यम से व्यथि अद्रश्य भी
ही सकतय हैं , क्यों नहीं हैं सांभव क्यय सदगुरुदेव जी ने इस थवषय पर सम्बांथधत ककतनी ही सयधनय
नहीं दी हैं . अब हम ही कमजोर ओर आलसी बने तो उनकय क्यय दोष .
पर इसके सयथ शयत्र यह भी कह ते हैं की कदव्य मुद्रयओं कय ज्ञयन भी तो हो ,हमें हो इसकय ियोग
करने के थलए , शमशयन में होने वयली कक्रययओं कय ये गोलक कदव्य आधयर हैं जो न के बल ककसी
भी अथिय थस्थथत में सयधक की रक्षय करे गय बथल्क वह सयधक को उच्चतम कक्रययओं कय अथधकयरी
बनयने की कदशय में आगे बढ़तय हैं ही . शयत्र तो यह भी कहते हैं की जैसे ही एक व्यथि इसे
अपने हयूँथ में लेतय हैं यह उस व्यथि के थहसयब से उसके तत्वयनुसयर अपने स्वरूपमें पररवर्णतत कर
लेतय हैं . ओर यह सयधक की की ऋ णयत्मक उजयव उससे लेकर उसे धनयत्मक उजयव देकर
अपनय स्वरुप तत्कयल पररवतवन करनय ियरां भ करदेतय हैं
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parad is the fortune of the life , for to fulfill or enriching the divinity to th e
person life there is no more element has the power as like this mercurial
science. This mercury not only through divine herbs but through various metal
and notonly that type of the things but things in imaginable things he worked
with them and provide the final out come to us which is just amazing, common
person never ever believe that ,this parad provide a person a infiniteness. and
this science is not for common also. as you all fully aware that there was the
third workshop has been organized by us through the blessing poojya
sadgurudev ji and poojya gurudev trimurti ji once again we have got
successful and liuke this way we all moved one more step towards
sadgurudev divine holy lotus feet. like previous organized workshop in this
time also our gurubrother showed a higher degree of co operation among
other. and why this so much co operation has been possible this is only and
only the result of blessing of sadgurudev ji and gurudev trimurtiji and nothing
else , we are just your guru brother and always will be , we will have the
blessing of sadgurudev ji divine lotus feet what more we or any onecan
asked.(is there any need to ask?)
more than our expectation nearly 30 person took part in this kamakhya
workshop, for any shishy , no other day is more holier than his beloved
sadgurudev ji, and on this this great holiest day we have started our
workshop, in the earlymorning hour we all are worked hard to celebrate this
holy daus and in addition to that the process of siddhita to parad swaran anu
siddhi golak had also been started and its special process through which this
get contacted with individual sadhak is started.
before that we move forward , this is necessary to know that what is this
golak, and how /what is the process of creation or making this divine golak, as
I have already given a little bit introduction in mine previous post, but again...
this highly divine material is in itself a divinity , since this is made of highly
sanskarised parad which is itself a great divine material. but in addition to that
if swarna grass, silver grass (special process through which gold and silver
induces in that means as a eating.) and various divine herbs is also used ,
when all theses process successfully happened on that now the divine golak
becomes a unique and on elf it s kind. i s there anything still remaining.
every day 6 hour required for to make this golak in that four hours in days and
two house in night is the schedule and this is for continuation for next 16 days
in continuous, this is unshakable rule the process and after that for each our
brother who was taking part in this workshop individually chaitainyikaran and
abhisinchitikaran and other confidential process had been completed for
aiming individual. And this is the just basic step of preparation when after that
hard work , this Parad An siddhi golak come in front of us. and for inducing
other divinity through various process is there would be any more valuable
days for us.
but what more is needed for this parad golak we all are thinking., inth
emorning hours sadgurudevji complete poojanm had been completed and and
thatalone took about 4 hours.after that swarankarshan bhairav had been
sthapit onthis parad gutika . since he is the basese of parad sadhana. not only
a nath but all the 9 nath and ain addition to that bhagvaan dattatrey also been
stahpit on this golak, since nath sect fore most guru dattatrey is the one
,behind that this science spread all over world.and other reason is that nav
nath is consider as the son of shiv tatav and parad is the veery tatav of lord
shiva, than how one can forget shiv tatav. No one deny the importance of nine
planet popularly known as nav graha, and also we could not forget the mother
ofnav grah i.e muntha, sadhak will receive the blessing of all the nine planet
thorough this golak is at he aim.
after that the stapan of asht lakshami had been started, not only the eight
lakshmi but in each lakshmi’s 108 form also get induces in this parad golak.
and only for that the sadhak will have all type of richness. now to protect the
sadhak from any tantra avadhan there is only a devi varahi whom is the
goddess ofstambhann, has also been stahpit. when parad gives a person a
stage called kalatit than how can we forget lord mahakaal and after that
goddess of kaal means time mother mahakali poojan had been started other
wise how can the achievement of any sadhak can be maintained. andmothe
mahakali forms like kamkalakali, guhy kali, sarva siddhida kali has also
induces, and if all the process had been goingto complte the divine mother
area and that too onthe sadgurudev ji birth days than think about a minit
without sadggurudev ji and gurudev timurtijis blessing can any one do that, no
one....
and allthis sthapan sankar process had been successfuly complted only under
the divine umberela of sadgurudev ji and gurudev trimurtiji, and we are
moning ahead under this divine shadow.
what has been already diescribed bythe holy books in this regards I am just
giving the details to have this golak is itself a great siddhita and only to get is
not enough untill you thoroughly understand the situation. only than higher
level of sadhana has been completed. successfully on that. and for coming
workshop this has been a great foundation steps.
parad is consider as shiv veery and our veery is our bindu , through various
sanskar we have purified shiv veery but what about our own bindu. how can
the purest essence of higher sadhana , any one fill in our impure dirty pot.
without bindu shodhan person is not entiled or eligibilty to go for higher
sadhana. but how that can be possible even the scripture have silence over
that , but that also possible though this golak through a special process. when
bindu shodhan happened a true aura surround the person body.
first place this golak in your hand do chant 108 times a special mantra that
has been called das tatv mantra . and visit each 10 peeth of mother divine
and before taking darshan one must get notice that each one had to chant a
pratical maha mantra . and after completing that mantra sadhak can have
darshan that is most important, so that all the ten mahavidya very helpful to
you all. and this is the nishchit kay rupen sadhana. and so after that all the six
type of tantra basic karam like maran mohan uchchatan, kindly do not see all
theses prayog with as low class one.when any person get stuck in this wheel
of modern life than only he has the chance to get rid of that he continously
visit to various one than he know that is the arth or meaning of that.”shat
karam ”
bhagvaan dattatrey sthapan also had been been completely on this parad
gutika and having the eligibility to have the darshan of such a great holiest
one is itself a sign of fgreat fortune. and that too has been easily possible on a
side when mahakali also sthapan on this gutika/golak than her gan like vaitaal
can also controlled through sadhana, and this golak is like boon for prayog
that will be happened in shamshan sadhana. since where bhagvaan
mahakaal and goddess mahakali is there , than tell me which incident can
make you fearful or create problem orfear. and for a sec just have a time and
think whose shsishy you are, just search this question in your heart you will
get the result.
Can you believe that Sadgurudev ji has provide so many sadhana related to a
person completely get invisible for a duration he like , in patrika old issue and
in books too, if we will not want that type of sadhana or having the doubt than
whose fault is this. Surely this is not this fault.
But in addition to that our holy books also said that one should know the divya
mudraye to get full result. And this golak is the main protecting armour and
base of the various prayog happened on the shamshan, and provide the way
to proceed the higher path. Holy scripture also said that when any one take
this golak in his hand this golak as per the person tatav ,start changing its
appearance.
****NPRU****
Tantra kaumudi :(monthly free e magazine) :
Available only to the follower of the blog and member of Nikhil Alchemy yahoo group
Our web site : http://nikhil-alchmey2.com
Kindly visit our web site containing not only articles about tantra and Alchemy but on parad
gutika and coming work shop info , previous workshop details and most important about Poojya
sadgurudevji
Our Blog for new posts : http://nikhil-alchemy2.blogspot.com
Our yahoo group : http://tech.groups.yahoo.com/group/nikhil_alchemy/
प्रिम मभत्रों ,
इतना कुछ alchemy science के फाये भें मरखा जा यहा हैं इस ब्रॉग के भाध्मभ से, ऩय
हभेशा की तयह ककसी बी प्रिऻानॊ के आधाय बूत सािधाननमा नह ॊ बूरना चाहहए , इस मरए
इस ऩोस्ट को हहॊद भें अनुिाहदत कयके आऩके सभऺ ऩुन् मह यखा जा यहा हैं.
तो इसमरए अलर /अमसड को फहुत ह सािधानी से धीये धीये जर भें मभराना चाहहए.
महद अलर /अमसड के बफना काभ नह ॊ चर सकता हैं तो अलर को ऩूणग सािधानी से
इस्तेभार कये .अऩने मरए face visior ( कायखाने भें उऩमोग ककमे जाते ,चेहया
को फचने िारा उऩकयण ) ,यफय के दस्ताने , प्राजस्टक मा यफय के apron
का उऩमोग कयें ह , आऩ को मे सफ अजूफा रगेगा ऩय उससे तो अच्छा होगा महद
असािधानी से आऩके चेहया जर जामे.
महद आऩ hydrofluoric acid /अलर िमोग भें राते हैं तो आऩको अत्माचधक सािधानी
का ऩारन कयना चाहहए ह . महद मह आऩकी त्िचा ऩय चगय जामे तो फहुत ह भुजस्कर
होगा इसका िबाि ख़त्भ कयना . औय फेहद जव्रन मक्क्ष
ु त होगा .
इसी तयह से Glacial acetic acid's इसकी ध्रूभ /धुआॊ पेपडों के अॊदय के tissue cell
जरा दे ता हैं , आऩ खुद ह सोच सकते हैं की इसकी ध्रूभका क्क्षमा ऩरयणाभ होगा.
Dear brother,
Before replying to your question, first I want to make it clear on, certain
points
1. Alchemy Science or Alchemical process and should be learned under
the guidance and close supervision of an expert of this science otherwise
it would become very danger for life.
2. One should not consumes/eat parad (parad ka bhakshan) since it’s a
very toxic element .at first parad should be converted to samsakarit stage
up to a level and be converted to Ash ( beej jarit parad ki bhasm) as
per guru supervision . Only then, when and how much quantity is to be
consumes is only prescribed by guru (A master).
3. The aim and objective of this Nikhil_Alchemy group`/blog is only to
aware and introduction of this divine science .without proper supervision
and carefulness all the process described in this book, here could turn to
very harmful.
4. Siddh parad simply means that is not impure and should not be
proved harmful /dengor to ones body.
Be carefull my dear brother.
plz point out and AGAIN and AGAIN read this massages. ....... ok
MERCURY. Beware of any process involving distillation of mercury
unless you have had extensive training in such techniques and possess
a fume hood and relevant equipment.
Mercury is no substance for the kitchen table chemist! Never handle it
with bare hands. It may be fun but you'll absorb small amounts which
accumulate until they reach harmful levels. Should you spill any, collect it
immediately,you can absorb it in small quantities using a sponge.
Squeeze the metal from the sponge into a jar
containing some water, cover, and set aside. Do not dispose off down
the sink, try selling to a scrap dealer instead. Same applies with broken
thermometers, sponge up any spillage and put the lot, along
with broken thermometer bits, into your water jar. Remember that despite
its apparent solidity mercury is highly volatile and you can easily inhale
the toxic fumes.
...........oh... ACIDS.
Never forget the old dictum inscribed on Enoch's
pillars (maybe) and in every sane textbook.
ADD ACID TO WATER...NEVER WATER TO ACID!
Why? The water will heat up rapidly in contact with the denser acid and
things will start spurting around your wife/mother's kitchen and all over
YOU. And do add that acid very slowly to the water with full precautions.
Can't do without acids but handle them with care. Wear a full
face visor, (you can buy those as industrial face protectors), rubber
gloves, and a plastic or rubber apron. You'll look odd but not half as
much as you would with half your face burned off! If you must use
hydrofluoric acid be especially careful, this stuff can eat through glass. If
it gets on your skin it is very difficult to remove completely and can
cause severe ulceration. Glacial acetic acid's fumes are enough to spot
preserve living tissue cells, imagine what it will do to the inner lining of
your lungs if you inhale it.
It's not just extra strong vinegar. Should you accidentally splash any
acid on your bare skin don't panic, wash it away immediately with lots of
cold running water. If you're a chem freak don't even think about
preparing a neutralizing agent. The professor of inorganic chem. Is tryat
the University of Edinburgh in the late 40's had a drop of sulphuric acid
spurt into his eye. To show off to his students he calculated the relevant
amount of neutralising agent required and washed the acid out.
He neutralised the acid O.K. but lost his bloody eye! Cold water, running
fast O.K.?
If you spill the stuff once again don't panic. Keep a bag of kitty litter
around, unused naturally. If you've a neutralizing agent handy such as
bicarbonate of soda, or even
ground chalk, scatter this liberally over the acid. No matter what you do
you've ruined the floor already .Scatter kitty litter very liberally over the
neutralized acid until it's all absorbed. Put on those rubber
gloves and carefully sweep the lot into a plastic dust pan. Pour into a
plastic bag, and dump. Wash what's left off the floor area very
thoroughly with a squeeze mop and lashings of water and hope
nobody notices the mess that's left. Blame it on the cat. If you must
dispose of acid the acid to water rule can be suspended. Put on that
visor and the gloves and get your cold water tap running fast, but not
spraying around. Very carefully and slowly trickle small quantities of your
acid into the water, be very .very slow and careful with this process and
you'll be all right.
i know if u use this all tips so u safe dear in ur procedure. ......ok
मे रेख अिकामशत स्िर्ण रहस्यम ऩुस्क का ह बाग है , जो की तंत्र कौमुदी भें िनत अॊक
रेखभारा के रूऩ भें हदए जामेंगे. हाॉ एक फात भैं औय फता दॉ ू की सदगुरुदे ि की चचचगत कृनत “
अल्केमी तंत्र” भें एक किमा द हुमी है की जफ अघोय ने मेरे द्िारा स्िर्ण का ननमाणर् करिाया.
उस िकिमा को साधकों ने राखो फाय ककमा है ऩय सपरता हाथ नह ॊ आई, ऩय सफ एक फात
बूर जाते हैं की ग्रन्थ मसद्धाॊत फताते हैं उसकी गोऩनीमता का खर
ु ासा तो सदगुरुदे ि ह कयें गे
न. ऩय कोई फात नह ॊ भैं मसपग इतना ह इशाया कय सकता हूॉ की महद ककसी बी िकाय से
भतरफ िनस्ऩनतमों, ऩदाथो मा साधना के मोग से उन ऩाॊचो ऩदाथग को अजनन स्थामी कय मरमा
जामे औय ऩायद स्िणग जारयत हो िे सबी ऩदाथग अजनन भें हटके यहें गे औय बस्भ हो जामेंगे औय
आऩको ससद्ध सूत की िाजप्त हो जामेगी तथा ननश्चम ह िो किमा मसद्ध होकय आऩको आऩका
भनोयथ ऩूया कयिा दे गी. इस फाय के मरए इतना ह ..............
As yogis think there is no basic element in nature and everything is made by the mixture of
PAARAD (MERCURY) and SULPHUR (GANDHAK).
It is strange but true and ADHYAATM (SPIRITUALITY) has proved it. This SIDHAANT
(PRINCIPLE) can understand with open mind which means vyaapk drishti. Remember all the
basic and constructive (srijan) elements are only PAARAD and SULPHUR and with their
mixture metals took birth. So PAARAD is as PRAKRITI PURUSH SATV and GANDHAK is
PRAKRITI SATV. We all know new thing can born with the combination of man and woman.
Science also believes that by GUNSUTRA (CROMOSOMES) it is decided that who will born- a
boy or a girl. Everyone has the qualities of both male and female and these qualities decided
person‟s behavior. But sometimes if a problem happens during yog then new baby get sexual
differences. Same thing is with metals. This is proved by INDIANS and WESTERN RAS
SIDHS. When we dissolve anything we get male and female features because it can make a new
thing like it. ALCHEMY is based on the principle that it is possible to change every person,
thing and metal. Here change means TO GIVE NEW FORM (ROOPANTRAN) not construction
(NIRMAAN). To see results we can use birds and animals by transform medicine in their body
and watch its positive and negative effects.
But in RAS SHASTRA when a new medicine is made it checks its effect on NON LIVING
THINGS (NIRJEEV VASTU). Because MERCURY and SULPHUR had divine qualities and
when they enter in some metal or living body they end every type of impurity and make them
pure. Here according to TATV meaning of purity is different as by the purity of metal means to
reach at that place where nature wants to take it in proper environment. And when in fire it does
not melt it means now the metal is completely pure because fire only burns its impurities. You
must think this principle is from DARSHAN (PHILOSOPHY) and this is the reason of less
number of RAS SIDHS. For man nature, situation and time do the same thing which fire does for
metals. Gold is most precious metal of nature and RAS SHAASTRA named it KUNDAN which
means after placing it on fire for many times it does not lose its weight and shines more brightly.
Nature also wants to make other metals like this but in different environment PAARAD(
MERCURY) and SULPHUR(GANDHK) fails to make good mixture and metals become impure
then Pure Gold. For example-
PURE GOLD= PURE MERCURY+PURE SULPHUR
SILVER= PURE MERCURY+ LESS SULPHUR
COPER= PURE SULPHUR+LESS MERCURY
LEAD= LESS MERCURY+IMPURE SULPHUR
JASTAA=IMPURE MERCURY+LESS SULPHUR
IRON=LESS MERCURY+IMPURE SULPHUR
By this system metals are made and remember in pure and impure metals MERCURY and
SULPHUR is always present. And if yog can be making under control then surely perfect body
take birth. Here I am doing ROOPAANTRAN by making balance. Only nature can give birth to
new bodies. All the VEDHAK KIRYA and KRAAMAN SANSKAR in RAS TANTRA are
based on this principle. This is also the secret of metal transformation. You don‟t believe that our
SIDHS do this metal change thousands times and remember if this VEDHAK KIRYAEN and
KRAAMAN SANSKAR can change metal then they can give new life to human also. And this
life will free from pain and problems. Always keep in mind that every pure metal, soul,Aura Of
body, and gold will have golden shine. You know as saadhak do more sadhnaa he becomes more
pure from inside same in the case of metals. I hope you understand what I mean.
This Article is a part of un-published SWARN RAHASYAM book which will explain in every
article of TANTRA KOUMUDI. And in a book ALCHEMY TANTRA by SADGURUDEV
this process is also explain under the title “JAB AGHORI NE MERE DWARA SWARN KA
NIRMAAN KARVAYA”. Many people try it but fail because in books only principle are
written but the vidhi will tell by SADGURUDEV. But I can only give idea that if by vegetation
(vanaspati), things or Tantra sadhnaa you get that using Swarn Jarit Parad and basic five things
Fire stable (Agni Sthayi) on fire then that things will change in BHASM and you will get
SIDDH SOOT and you will get what you want. This is all for now…
****ARIF****
Posted by Nikhil at 8:10 PM 3 comments:
Labels: PAARAD, SWARNA RAHASYAM
पदयथव पररवतवन ककतनय अच्छय लगतय है नय सुनकर, एक पदयथव कय दूसरे पदयथव में रूपयांतरण. सकदयों से इस
थवषय को समझने की सीखने की पर,ये थसफव पढ़ने और सुनने में ही सहज लगतय है ये थवषय इतनय सरल है नहीं
और नय ही इस थवषय के रहस्य ही इतने सहज ियपय है की थजनकय ज्ञयन पयकर हम इस कदव्य थवषय में
पयरां गततय हयथसल कर सके . एक बयत मैं आपको बतय दूूँ सदगुरूदेव ने इस थवषय को न थसफव जन सयमयतय के
थलए सरल रूप में िस्तुत ककयय अथपतु थवषय की गोपनीयतय को भी सूत्रबि रूप में सभी थशष्यों के समक्ष रख
कर इस दुष्ियपय थवषय को समझने और सीखने में सहज कर कदयय. ‘सूत रहस्यम’ एक ऐसय ही ग्रतथ है थजसमे
मैंने सूयव थवज्ञयनां और पयरद तांत्र के अत्यथधक गोपनीय रहस्यों को सदगुरूदेव के द्वयरय ियप्त कर थलखय है. उसी
ग्रतथ में से कु छ थवथधयों और रहस्यों को क्रमशः ‘तांत्र-कौमुदी’ के इन पन्नों पर िथत अांक हम देते रहेंग.े इस बयर
कय ये लेख उसी की कड़ी है.
१९७१ में िििानं ने ९२ अणओ ु की खोज की और बताया की ब्रह्ाण्ड में इतने ही अणु हैं इससे ज्यादा
नहीं, १९८७ में पनु ुः घोषणा की गयी की १0३ अणु होते हैं. मतलब समझे आप, अरे नहीं समझे , अरे
िििानं की िगनती बदलती रहती है समयानसु ार क्यंिू क उसकी रहस्यों का खोज कें द्र बिहगात होता है और
इसी कारण आज भी िो सम्पणू ा १४७ अणओ ु ं को नहीं खोज पाया पर अध्यात्म का खोज कें द्र होता है
अन्तुःगत. और सहस्त्रािब्दयों पहले ही िसद्चाश्रम ने ये स्पष्ट कर िदया था की १४७ अणु होते है, और ये
समस्त अणु उपिस्थत होते हैं सयू ा की रिश्मयों में. सयू ा की िे रिश्मयााँ िजनका परोक्ष रूप से रंग श्वेत
दृिष्टगोचर होता है िस्ततु ुः िे ७ अलग अलग रंगों से यि ु होती है तथा िजनका सयं ि ु रूप सफ़े द ही
िदखाई देगा. बैंगनी, जामनु ी,नीला,हरा, पीला,नारंगी और लाल ये सात रंग होते हैं इन िकरणों के . िेदों में
सयू ा को ७ अश्वो के रथ पर आरोहण करते हुए बताया है तो उसका बहुत ही गढ़ू अथा है. अथाात सयू ा
िििानं को यिद समझना हो तो पहले उसकी ७ िणीय िकरणों को समझना होगा. प्रत्येक िकरण २१
अणओ ु ं के गणु ों से यि ु होती है, इस प्रकार ७X२१=१४७ हो गए ना. प्रत्येक अणु का अपना गणु होता
है.
समग्र सृिष्ट इन्ही १४७ अणओ ु ं से िनिमात है , चाहे कम हो या ज्यादा पर है इसी से िनिमात, जैसे एक
कागज २१ अणओ ु से िनिमात है तो स्िणा ९७ अणओ ु से िनिमात है, इस प्रकार अणओ ु ं की संख्या प्रत्येक
िस्तु या प्राणी में िभन्न िभन्न होगी. और सयू ा िििानं का मल ू ही ये है की यिद उन अणओ ु ं को उनके गणु ों
को समझ िलया जाये तो पदाथा का रूपातं रण सहज हो जायेगा. प्रत्येक अणु का अपना गणु है, अथाात
१४७ अणओ ु ं के अपने अपने गणु हैं िजन्हें समझने के बाद िनमााण और रूपांतरण की ििया सहज हो
जाती है क्यंिू क ये ििया ब्रह् ििया है संजीिन ििया है,इसके िलए साधक को सद्गरुु प्रदत्त ब्रह् मंत्र का
अपने मख ु से उच्चारण करने का अभ्यास करना पड़ता है उस ििया में िसद्च होना पड़ता है, और मैं
आपको बता दाँू की मख ु का अथा िजव्हा, कंठ, दांत,श्वास या आहार नली नहीं होता मख ु का अथा होता है
नािभ, जब मंत्र स्िािधष्ठान का अथा ही होता है स्ियं का अिधष्ठान , भिन या घर जहा से मंत्र नािभ तक
पहुचता है और नािभ तक पहुच कर समस्त िायु और उपिस्थत अिग्न की ऊजाा से तेजोमय होकर जीिन
देता है पदाथा या जीि को. और िजस भी साधक को ये मंत्र िसद्च होता है िो निीन सृिष्ट का सृजन कर
सकता है जीिन दान दे सकता है, भगिान कृ ष्ण ने अपने गरुु संदीपन ऋिष के पत्रु को, अिभमन्यू पत्रु
परीिक्षत को ऐसे ही तो जीिन िदया था और १९८४ की अमरनाथ यात्रा में सदगरू ु देि द्रारा सिु मत्रा को
पनु ुः जीिन देने की घटना कौन भल ू सकता है, प्रत्येक िकरण िजनका अपना िणा या रंग होता है उनका
स्िामी एक ब्रह्ऋिष होता है और होता है उनका अपना एक मंत्र,याद रिखये ये मंत्र २१-२१ ििशेष
अणओ ु ं के गणु ों से यि ु होते हैं और इन मन्त्रों के बीजाक्षरों का परस्पर सम्पटु पदाथों के गणु धमा या
संयोजन के अनसु ार िकया जाता है िजसका िान साधक को सद्गरुु प्रदान कर देते है, तब साधक यिद स्ियं
के शास्त्र रूप्नो का िनमााण करता है तो ििभि कर लेता है उसी अनरू ु प अपनी आत्मा को भी(इस ििषय
की गढू ता तो आगे आने िाले अक ं ो में स्पष्ट की जायेगी, क्यिंू क इसी ििषय पर १००० पन्ने िलखे जा
सकते हैं) ,पदाथा तो प्रकृ ित में सदैि ही उपिस्थत रहते हैं ये अलग बात है की िो िदखाई ना दे पर जब
िकसी भी शिि या उपादान के माध्यम से उनके घटक अणओ ु ं का परस्पर योग कर िदया जाये तो िे प्रकट
अिस्था में िदखने लगते हैं. एक सयू ा िििानी या रस शास्त्र का िाता ये भली भांित जानता है की उसे कब
िकस अणु को पकड़ना है और कब उसका िकसी और अणु से योग या ििखंडन करना है,महत्िपणू ा यही
है की कब उन अणओ ु ं को िकस तरीके से ििभि िकया जाये और कै से उनका योग कर िकसी निीन
पदाथा की प्रािप्त की जाये. और ये भी अत्यतं दष्ु कर काया है , याद रिखये पढ़ने में िकतना आसान लगता है
न अणओ ु ं को ििभि कर उनका योग करना, पर ऐसा है नहीं क्यंिू क यिद सही तरीके से ििखंडन या
संलयन की ििया न हो पाए तो जो ऊजाा मि ु होती है िो अत्यिधक ििनाशकारी होती है और कई
सिदयों तक अपने ििनाश से मानि सस्ं कृ ित और जीिन को प्रभािित कर देती है, मझु े पता है िहरोिशमा
और नागासाकी को आप भल ू े नहीं होंगे. खैर मैं आपको इतना बता दाँू की इन िकरणों का योग या
ििखंडन करते समय २ महत्िपणू ा उपादान होते हैं िजनका प्रयोग करने से सफलता िमलती है १. १४७
फलको से यि ु लेंस िजसमे से िभन्न िभन्न अणओ ु ं से यिु िकरण ही गजु र सकती है और िजसको गित
देकर उससे मनोिांिर्त तत्िों के अणओ ु ं का योग कराया जा सके और दसू रा ‚अणु िसिद्च मातंड
गोलक‛ िजसको योगी अपने गले में धारण करते है और िजसके द्रारा बगैर लेंस के भी अणओ ु ं को
ििभि या सल ं ियत िकया जा सकता है. इसका िनमााण ही अत्यतं दष्ु कर है, और िजसे प्राप्त कर उन सप्त
मन्त्रों को सहज ही िसद्च िकये जा सकते हैं िजन्हें सप्त ऋिष मंत्र कहा जाता है और जो की १४७ अणओ ु ं
को िसद्च करने में प्रयोग िकये जाते हैं. इस गिु टका और लेंस का िनमााण पारद के द्रारा ही होता है या ये
कहना चािहए की सतू के द्रारा होता है ऐसे सतू के द्रारा िजस पर २२ संस्कार हो चक ु े हो क्यंिू क १८
संस्कार के बाद पारद ििपरीत गित करने लगता है अथाात भस्म रूप से पनु ुः जीिित होता हुआ ठोस और
द्रव्य की अिस्था में आने लगता है तथा २२िे में परू ी तरह पारदशी और सृजन क्षमता से यि ु हो जाता है
, ऐसे पारद से ही अणु िसिद्च मातंड मत्रं का लोम ििलोम प्रयोग कर इस प्रकार का गोलक और लेंस
िनिमात िकया जाता है. ये ििया अत्यंत दष्ु कर और गोपनीय है.
सयू ा तंत्र के अंतगात असाध्य तांित्रक िियाओ ं को भी सरलता से संपन्न िकया जा सकता है जैसे लक्ष्मी
प्रािप्त के िलए आका भिु नेश्वरी की साधना का ििधान है तो िशीकरण के िलए पंजु ीभतू सयू ा िशीकरण मंत्र
की साधना का, यहााँ मैं उसी िशीकरण प्रयोग को उल्लेिखत कर रहा ह.ाँ िजसके द्रारा सभी निग्रहों की
शिि को अपने अनक ु ू ल बनाते हुए लक्ष्मी तक का िशीकरण िकया जा सकता है सामान्य मनष्ु य की तो
बात ही र्ोिडये और जो मुझे सदगरू ु देि ने इस ग्रन्थ के िलए बताया था और िजसका प्रयोग कर मैंने लाभ
भी िलया.
रिििार की प्रातुः से इस मंत्र का प्रयोग िकया जाता है. िदशा पिू ा रहेगी, िस्त्र िा आसन सफ़े द होंगे.
सयू ोदय के पिू ा स्नान कर सयू ा को कुमकुम िमले जल का अपाण कर उनकी पजू ा करे और उनसे तथा
सदगरू ु देि से पणू ा सफलता की प्राथाना करे . बाद में आसन पर बैठकर दैिनक साधना िििध के अनसु ार गरुु
पजू न कर धपू , दीप, नैिेद्य अिपात कर गरुु मंत्र की १६ माला करे रुद्राक्ष माला से िनम्न मंत्र की ११ माला
जप करें ये ििया अगले रिििार तक करनी है. इसके बाद जब भी इस मंत्र का प्रयोग करना हो तो अमक ु
की जगह साध्य परुु ष या स्त्री का नाम लेकर १०८ बार जप ३ िदनों तक करें . प्रभाि देखकर आप खदु
आश्चया के सागर में डूब जायेंगे.
ॐ नमो भगवते श्री सूयावय ह्रीं सहस्र सकरणाय ऐ िं अतु ब
परािमाय नवग्रहदशसदक्पा क्ष्मीदेवताय धमवकमवससहताय
अमुकनाम नाथय नाथय मोहय मोहय आकषवय आकषवय दासानुदासिं
कुरु कुरु वशिं कुरु कुरु स्वाहा .
‘सूत रहस्यम” के पन्नों में उद्धृत ऐसे कई रहस्य जो की गातार प्रत्येक अिंक में
खु ने को बेक़रार हैं , तो प्रतीिा कीसजये अग े अिंक का सकसी नवीन रहस्य के
उद्घािन के स ए.
In 1971, the 92 molecules were discovered in science and reported a similar molecule in
the universe are no more than that, in 1987, the 115 molecules were re-announced. Did u
get the meaning or you understand, Ohhh didnt understand, varies over time because
the number of science discovery center of his secrets is salient and hence still can not
find that the entire 147 molecules is the spiritual center search. And millennia before it
were made clear that the 147 Siddhashram molecules and all molecules that are present
in the sun rays. Sun rays that their indirectly color white is visible fact they are equipped
with 7 different colors and that joint will appear white. Purple, blue, green, yellow,
violet, orange and red colors that are seven of these rays.7 Ashva chariot of the sun in
the Vedas, the ascent is described then it is very esoteric meaning. If you understand the
science that is before the sun rays to understand its 7 letter. Each beam 21 properties
containing molecules, thus 7X21 = 147....Isnt it hnna? So each molecule has its own
merits.
The whole universe is made up of 147 molecules, whether more or less based on this
only, as if a paper is made from 21 molecules and gold by 97 molecules, thus the number
of molecules will be different in each object or creature. If we understands the the Sun
Science core, the molecules their properties will be easy and seamless conversion of the
substance. Each molecule has its own merits, ie 147 molecules to understand their
properties after the construction and conversion that is comfortable because every one
have it's action animation divine action, for it provided Sadhguru seeker divine spells
from your home have to practice to pronounce the mantra and has to be proven, and let
me tell you the meaning of the mukh is Jiwha, throat, teeth, mouth breathing or does
not feed tube,actually it means ‘navel’,the meaning of the mantra swadhishtana is of the
self-installation, building or home is where the mantra and reached to navel and
through all the air and present glory of the energy of fire gives life’s substance or
organism and the mantra that the seeker has proven he can create new creation can
donate life, Lord Krishna, the son of his master stimulus sage, Abhimanyu son was
tested and so life like that of 1984 Amarnath Yatra Sadgurudeo in the event to life to
Sumitra. Who can forget this hnnnna? That each beam color is your character or his
owner is and is a Brahmrishi their own spells, this spell 21-21 Remember the special
properties of molecules are equipped with these Mantras
Beejaksharoan feature or combination of substances according to the cross Sampaut
and which is provided to sadhak by his Sadguru and turn that knowledge seeker, then
you own scriptures Rupno seeker makes up the split takes the same suit your soul the
upcoming points of the subject will be clear, because this subject can be written over
1000 pages), the nature of matter always present in the live show he's not giving it is
different when any power or mutual aid through the sum of their component molecules
must be delivered to start appearing in the condition they appear.A Sun scientist or a
scholar of Ras shastra when he knows very well how these molecules and how to catch
her yoga or some other molecule to fragmentation, when the key is that which way the
molecules to be done and how to split Let them do yoga a new material receipt. And it is
also extremely difficult task, think how easy it is to read Remember not to split the
molecules to their totals, but it is not the right way because you can not fission or fusion
of the action so extreme that the energy is free is disastrous for many centuries and their
destruction does influence human culture and life, I know you would not ve forgotten
the Hiroshima and Nagasaki case. Are you? Well I shall tell you the sum of these rays or
fission while 2 are an important factor that brings success to us.1.Aflao containing 147
different molecules containing the beam from which the lens can pass and speed by
which the sum of her wishful elements molecules can be made and another "Anu siddhi
Maartnde golok" which Yogi wear around your neck and by which without lenses or
Sanalyith the molecules can be separated. The building itself is extremely difficult, and
find that the seven Mantras can be proven that the comfortable mantra is called Sapta
Rishi to prove that the 147 molecules are used. The pill and manufacture of mercury by
itself is Lens or should say this is by cotton yarn by such rites have been over 22 are the
values after 18 because mercury that is consumed by contrary motion seems to live
again have been solid and liquid curve seems to come and 22 they completely
transparent and generating capacity that consists of is, like mercury the molecule
accomplishment Maartnde spells hair inverted using this type of eyeball and lens made
is. The action is extremely difficult and confidential.
Under the Surya Tantra unworkable Tantric actions also can be easily performed as to
achieve Lakshmi the legislation of the process of Arc Bhubaneswari,for hypnotising the
punjibhut sun to Vashikaran mantra sadhana, here I am specifying similar use.Through
which the Nine planets power making their friendly for us and the Lakshmi vashikaran
can also happen.leave the common man spell and what ever Sadgurudeo taught me from
these texts and to which I use and got advantages.
"Soot Rahasyam”quoted in the pages of many secrets who constantly are impatient to
open up in each issue infront u,so my dear reader just wait and watch the next issue for
the opening of a new mystery.
Free E-Magzine bi monthly (only for free registered follower of this blog and Group
memember)
"Lakshmi and Vashikaran Visheshank" is going to be relesed
Soon on First week of Dec 2010.
(Containing, article on Ayurved,Tantra, yantra,Mantra, Surya vigyan,Astrology and Parad
Tantra) PLZ Click here to know the Details/List of articles coming in this issue