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अिस्रक् -परशुं गदे -षु-कुसलशं पद्मं धिुष ्-कुष्णडकां

दणडं शष्तत-मसिं च चमण जलजं घणटां िुरा-भाजिम ्


शूलं पाश-िुदशणिे च दधतीं हस्तैः प्रिन्िा-ििां Kunjika Strotram
िेिे िैरर-भमददण िीम ् इह महालक्ष्मीं िरोज-ष्स्र्थताम ्
सशि उिाच
घणटा-शूल-हलानि शंख-मुिले चक्रं धिुः िायकं
हस्ताब्जैर-् दधतीं घिान्त-विलिच ्-नछतांशु-तुल्य प्रभाम ्
श्रर्
ु ु दे िी प्रिक्ष्यासम, कंु ष्जका स्तोत्रम उत्तमम ्।
गौरी-दे ह-िमुद्भि
ु ां त्रत्र-जगताम ् आधार-भत
ू ां महा-पि
ू ाणम ् अत्र
येि मंत्र प्रभािेर् चंडी जापः शुभो भिेत॥ १॥
िरस्ितीम ् अिुभजे शुम्भादद-दै त्य-अददण िीम ्

माला-पज
ू न: ि किचं िा अगणला स्तोत्रं कीलकं ि रहस्यकम ्।
(Sumeru pe jal daal ke yeh mantra padhe) ि ित
ू तं िा अवप ध्यािं च ि न्यािो ि च िाचणिम ्॥ २॥

ऐं ह्ीं अिमासलकायै िमः


कंु ष्जका पाठ मात्रेर् दग
ु ाण पाठ फलं लभेत ्।
! पाठ-समपपण ! अनत गुह्यतरं दे िी दे िािाम अवप दल
ु भ
ण म ्॥ ३॥

ॐ गुह्यानत-गुह्य-गोप्त्त्री-त्िं, गह
ृ ार्ा-स्मत ्-कृतं जपम ् गोपिीयं प्रयत्िेि स्ियोनिर इि पािणनत।
सिद्धधर्-भितु मे दे वि ! त्ित ्- प्रिादात ्-महेश्िरर!
मारर्ं मोहिं िश्यं स्तम्भि उच्चाटिाददकम ्।

मंत्र जाप खत्म होिे के बाद िीचे का मंत्र बोलकर आपका जाप भगिती के बाये हार्थ मे ( पाठ मात्रेर् िंसिद्ध्येत ् कंु ष्जका स्तोत्रम उत्तमम ्॥ ४॥
मािसिक दृष्टीकोर् िे ) िमवपणत करे
॥ अर्थ मंत्रः ॥
िमा प्रार्थणिा

आिाहिं ि जािासम, ि जािासम तिाचणिं ओम ् ऐं ह्ीं तलीं चामुंडायै विच्चे॥

पूजां चैि ि जािासम , िम्यतां परमेश्िरी


मंत्रहीिं क्रक्रयाहीिं भततीहीिं िुरेश्िरी ओम ् ग्लौं हुं तलीं जूं िः ज्िालय ज्िालय ज्िल ज्िल

यतपूष्जतं मया दे वि पररपूर्ां तदस्तु मे !! प्रज्िल प्रज्िल ऐं ह्ीं तलीं चामंड


ु ायै विच्चे ज्िल हं िं लं िं फट् स्िाहा॥

॥ इनत मंत्रः ॥
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ॐ तलीं मध्य माभ्यां िम: ! ( अंगुठे िे मध्यमा को स्पशण करे ) यस्तु कंु ष्जकाया दे वि हीिां िप्त्तशतीं पठे त ्।
ॐ चामुंडायै अिासमकाभ्यां िम: ( अंगुठे िे अिासमका का स्पशण करे ) ि तस्य जायते सिद्धधर अरणये रोदिं यर्था॥
ॐ विच्चे कनिष्ष्ठ काभ्यां िम: ( अंगुठे िे करांगुली का स्पशण करे ) ॥ इनत श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे सशि पािणती िंिादे कंु ष्जका स्तोत्रं िंपूर्म
ण ्॥
ॐ ऐं ह्ीं तलीं चामुंडायै विच्चे करत लकर पष्ृ ठाभ्यां िम: ॥ओम ् तत्ित ् ॥
( दोिो हार्थ के तलिे और कर पष्ृ ठ का स्पशण करे )

हृदयादद न्याि :

ॐ ऐं हृदयाय िम : ! ( दादहिे हार्थ िे हृदय स्पशण करे )


ॐ ह्ीं सशरिे स्िाहा ! ( दादहिे हार्थ िे सिर स्पशण करे )
ॐ तलीं सशखायै िषट ! ( दादहिे हार्थ िे सशखा को स्पशण करे )
ॐ चामंड
ु ायै किचाय हुम ! ( दादहिा हार्थ बाये कंधे पर बाया हार्थ दादहिेकंधे)
ॐ विच्चे िेत्र त्रयाय िौषट (दोिो आंखों पर और मध्यमा आज्ञा चक्र स्पशण )
ॐ ऐं ह्ीं तलीं चामुंडायै विच्चे अस्त्राय फट
( दादहिे हार्थ की तजणिी और मध्यमा को िर के उपर िे घुमाकर बाये हार्थ पर
ताली बजाये )

अक्षर न्यास :
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दादहिे हार्थ िे उतत अंग को स्पशण करे

ॐ ऐं िमः सशखायां,
ॐ ह्ीं िमः दक्षिर्-िेत्र,े (right)
ॐ तलीं िमः िाम-िेत्रे, (left)
ॐ चां िमः दक्षिर्-कर्े, (right)
ॐ मंु िमः िाम-कर्े, (left)
ॐ डां िमः दक्षिर्-िािा-पुटे, (right)
ॐ यैं िमः िाम-िािा-पुटे, (left)

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