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हिन्दी गतिविधि

शाश्वत कृ ष्णा
रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो

रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।


रक्तस्राव से भीग गया हूं मैं कु ल्हाड़ी अब मत मारो।

आसमां के बादल से पूछो मुझको कै से पाला है।


■ हर मौसम में सींचा हमको मिट्टी-करकट झाड़ा है।
■ उन मंद हवाओं से पूछो जो झूला हमें झुलाया है।
पल-पल मेरा ख्याल रखा है अंकु र तभी उगाया है।
■ तुम सूखे इस उपवन में पेड़ों का एक बाग लगा लो।
रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।
■ इस धरा की सुंदर छाया हम पेड़ों से बनी हुई है।
मधुर-मधुर ये मंद हवाएं, अमृत बन के चली हुई हैं।
■ हमीं से नाता है जीवों का जो धरा पर आएंगे।
हमीं से रिश्ता है जन-जन का जो इस धरा से जाएंगे।
■ शाखाएं आंधी-तूफानों में टू टीं ठूंठ आंख में अब मत डालो।
रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।
■ हमीं कराते सब प्राणी को अमृत का रसपान।
हमीं से बनती कितनी औषधि नई पनपती जान।
■ शाश्वत कृ ष्णा
■ रोल नंबर – 33
■ कक्षा- 8 - E

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