You are on page 1of 2

विगत ढाई िर्ष…. स्ववणषम अविस्मरणीय हृदय स्पर्ष….

विगत ढाई िर्ष, विगत ढाई िर्ष, विगत ढाई िर्ष


चुनौवतयााँ एिं संघर्ष परं तु स्वीकायष सहर्ष
कमान की विम्मेदाररयााँ, ििाबदे हीय ो॑ के तकष
एकां त कक्ष के वनर्ष य, स्ववर्ष म अविस्मरर्ीय ह्रदय स्पर्ष
विगत ढाई िर्ष, विगत ढाई िर्ष, विगत ढाई िर्ष

िकष अप संग आगाि


नई विम्मेदाररय ं का अहसास
आपातकाल के अनुभि का ममष
अन्य वकसी अनह नी की आर्ं का और आभास
धैयष धारर् अटल कारर् हाबषर प्रिेर् का रावि प्रहर
स्ववर्ष म अविस्मरर्ीय हृदय स्पर्ष
विगत ढाई िर्ष, विगत ढाई िर्ष, विगत ढाई िर्ष

कभी झुलसाता िे ठ मास


कभी र्रद चााँ दनी से आच्छावदत आकार्
कभी चक्रिात का खौफ
त कभी र्ां त सागर का क मल अहसास
पूिी तट के हर बंदरगाह पर िहाि के लं गर एिं रस्सिय ं का स्पर्ष
कैमरे में कैद प्राकृवतक विहं गम दृश्य, ये धरा, ये सागर, ये अर्ष
स्ववर्ष म अविस्मरर्ीय हृदय स्पर्ष
विगत ढाई िर्ष, विगत ढाई िर्ष, विगत ढाई िर्ष

विपरीत पररस्सथिवतय ं में ििान ं का उत्साहिधषन


त कभी सागर के अमर्ष में पस्त ह ते उपकरर्
कभी गुप्त सूचनाओं में िाग के बीता ि रावि प्रहर
त कभी दै दीप्यमान सूयष के दर्ष न कराती ि यादगार सहर
कभी िावर्षक वनरीक्षर् त कभी सुरक्षा प्रर्ाली का अभ्यास
कभी वमि दे र् की पररक्रमा त कभी ख ि एिं बचाि का राहत कायष
अटल, अविचलीत, अविराम हर पल, हर क्षर्
स्ववर्ष म अविस्मरर्ीय हृदय स्पर्ष
विगत ढाई िर्ष, विगत ढाई िर्ष, विगत ढाई िर्ष
आि कूंच का वमला संदेर्
ितष मान विम्मेदारी ना रहे गी अि र्े र्
प्रिम कमान का कायषकाल यह
वसखला गया अनुभि विर्े र्
नेतृत्व िहन और धैयष धरर् की क्षमताऐं िीिंत हुई
अिक पररश्रम और लगन से सफल कायषकाल अिवध अब अंत हुई
हे “दु गाष ” अब आज्ञा द अग्रसर ह ऊाँ अब नि पि पर
भािुक ह पदभार सौो॑पता हं तु म्हें हे “दे िेन्दर”
स्ववर्ष म अविस्मरर्ीय हृदय स्पर्ष
विगत ढाई िर्ष, विगत ढाई िर्ष, विगत ढाई िर्ष

विितष माि कमाि अविकारी

यह कविता समादे र्क(क॰ ि॰) संदीप सेदाित द्वारा कमाि अविकारी


का पदभार सौपं ते समय रवित है ।

कमाि के हस्ांतरण की प्रविया

You might also like