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अनुकर्म

शशशश शशशश
शशशशशश
शशशशश शशश शशशशशश
शशशशशशश
पर्थम सगर्
िद्वितय सगर्
तृितय सगर्
चतुथर् सगर्
मोक्ष धाम
पंचम सगर्
श ीग र
ु वन दना
।। शी गणेशाय नमः ।।

शशशश शशशश शशशशशश


शश शश शशशशशश शशशशश शश
शशशशशशशशशशशश शशशश । शशशशश शशशशशशशशश
शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश ।। शशशशशशशश शशशश शशशशशश 1।।
िसिद्ध बुिद्ध के पर्दाता, पावर्तीनन्दन, गणनायक शर्ी गणेश जी को मैं बार-बार
नमस्कार करता हूँ।(1)
शशशशश शशशशशशशश शशशशश । शशशशशशशशशशशशशशशशशशश
शशशशश शशशशशशशशशशशशशशश ।। शशशशश शशशशशशशशशशशशशश 2।।
वीणा एवं पुस्तक धारण करने वाली सरस्वती देवी को मैं नमस्कार करता हूँ। िवद्या
पर्दान करने वाले पूज्य गुरुदेव को मैं सादर पर्णाम करता हूँ।(2)
शशशशश शशशशशशशशशश।शशशशशशशश शशशशशशशशशश
शशशशश शशशशशशशशशशश ।। शशशश शशशशशशशशशशश 3।।
मैं स्वेच्छा से योगीराज (पूज्यपाद संत शर्ी आसारामजी बापू) के पावन चिरत का
वणर्न कर रहा हूँ। महान् पुरुषों की जन्मगाथा भी भवताप को नाश करने वाली होती है।(3)
शशशशशशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशश।
शशशशशशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशश।।4।।
योगिवद्या में िवचक्षण, धमरशासतो मे िवशारद एवं बहिवदा मे अगगणय कोई (महान संत)
भारतभू िम म े अवतिर त ह ु आ ह ै । (4)
शशशशशशशशश शशशशशशश । शशशशशशशश शशशशशशशशशश
शशशशशशश शशशशश शशशशशशशशश ।। शशशशशशशशशशशश 5।।
परमात्मा ने हमारे िलये ये महान् योगी भेजे हैं। (भगव ान श ी कृ ष ण न े ) गीता
में कहा ही है िक (जब-जब धमर की हािन और अधमर की वृिद होती है तब-तब) मैं अपने रूप को रचता
हू ँ। (अथार्त् साकार रूप में लोगों के सम्मुख पर्कट होता हूँ।)(5)
शशशशश शश शशश शशशश शशशशशशशश शशशशश शशशशशशश।
शशशश शशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशशशशश शशश।।6।।
जब संत पृथवी पर जनम लेते है तब िनशय ही पृथवी पर सुिभक होता है। समय पर बादल वषा करते है और पृथवी
धनधानय से युकत हो जाती है।(6)
शशशशश शशशशशशश शशशश । शशशश शशशशश शशशशशशश
शशशशशश शशशशशश शशशशश शशशश शशशशशशशशशश।।7।।
निदयों में िनमर्ल जल स्वयं ही सब ओर बहने लग जाता है। मनुष्य सब पर्सन्न
होत े ह ै और इसी प क ा र मृ ग एवं पशु -पक्षी आिद जीव भी सब पर्सन्न रहते हैं।(7)
शशशशशश शशशश शशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशशशश।
शशशशश शशशशशशशश शशशश ।। शशश शशशशशश शशशशशशशश 8।।
महान् आत्माओं के जन्म के समय वृक्ष फल देने लग जाते हैं। संसार में ऐसा
पर्तीत होता है मानों किलयुग में तर्ेतायुग आ गया हो।(8)
शशशशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशश श।
शशशशशशशशश शशशशशशश शशशशशशशशश ।। शशशशशशशशशशशशशश 9।।
अब मैं बर्ह्मिवद्या के पर्चार के िलए और सब पर्ािणयों के िहत के िलए आसुमल
की िदव्य कथा का वणर्न कर रहा हूँ।(9)
शशशशशश शशशशश शशशशश । शशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशशशशशशशशश शशशश ।। शशश शशशशशशशशशशशशशशशश 10।।
शशशशशशशश शशशशशशशश । शशशशश शशशशशशशशशश
शशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशशशशशश।।11।।
अखण्ड भारत में िसन्ध पर्ान्त के नवाबशाह नामक िजले में बेराणी नाम नगर में
अपने कमर् में कुशल, सत्य सनातन धमर् में िनष्ठ, वैश् यवंश के भूषणरूप थाऊमल नाम
के िवख्यात सेठ रहते थे।(10, 11)
शशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशश।
शशशशशशशशश शशशशशशशशशशशश ।। शशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशश
12।।
वे धमार्त्माओं में अगर्गण्य, गौबर्ाह्मणों के रक्षक, सत्य भाषी, िवशु द्धआत्मा,
नगरसेठ के रूप में जाने जाते थे। (12)
शशशशशश शशशश शशशशशशशशशश । शशशशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशशशश शशशश शशशशशशशशश ।। शशशशशशशशशश 13।।
उनकी धमर्पत्नी का नाम महँगीबा था, जो कुशल गृिहणी एवं अपने कुल के धमर का पालन करने वाली
पितवर्ता नारी थी। (13) अनुकर्म
शशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशश शशशश शशशशशशशश शशश।
शशशशशशश शशशशशशशशशश । शशशशशशशशशशशशशश शशशश
शशशशशशशशश शशशशशशश ।। शशशशशश शशशशशशशशशशश 14।।
िवकर्म संवत 1998 चैत वदी छठ रिववार को माता महँगीबा के गभर् से
योगवेत्ताओं में शर्ेष्ठ योगी आसुमल का जन्म हुआ।(14)
शशशशशशश शशशशशशश शशशश शशशशशशशश शशशशशशश।
शशशशशश शशशशशश शशशशशशशश ।। शशशशशशशशशशश 15।।
हष
ृ पु ष कु ल दीपक , गौरवणर् सु नद
् र बालक को अपनी आँखों से देखकर माता
(महँगीबा) बहुत पर्सन्न हुईं।(15)
शशशशशश शशश शशश शशशशशशशश । शशशशशश शशशशशशशशशशशश
शशशशशशशश शशशशशशशशशश शशशशश ।। शशशशशशश शशशशशशश शशशशश 16।।
(घर में ) पुतर् पैदा हुआ है यह सुनकर िपता थाऊमल भी बहुत पर्सन्न हुए। शर्ेष्ठी
के घर पुतर्रत्न की पर्ािप्त सुनकर सब सम्बन्धी लोग भी उन्हें बधाइयाँ दे रहे थे।(16)
शशशशशश शशशशशशशशशशशश । शशशशशशशश शशशशशश
शशशशशशशश शशशशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशश ।।17।।
शशश शशशशशशशशश शशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशशशश।
शशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशश।।18।।
िपता ने बर्ाह्मणों को दान और सम्मान के द्वारा, गौओं को तृणदान के द्वारा,
दिरदर्नारायणों को अन्नदान के द्वारा और स्वजनों को लड्डू आिद िमठाई के द्वारा.... इस
पर्कार सभी गर्ामिनवािसयों को संतुष्ट िकया क्योंिक पुतर्रत्न की पर्ािप्त सदा ही
आननददायक होती है। (17, 18)
शशशशश शशशश शशशशशश शशशशशशश शशशशशशशश।
शशश शशशशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशश शशशश।।19।।

शशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशश
शशश शशशशशशश शशशशशशश शशशशशश ।। शशशशशशशश शशशशशशशशशश 20।।
गली में कुछ स्तर्ी-पुरष ु बालक के जन्म पर चचार् कर रहे थे िकः "तीन कन्याओं
के बाद पुतर्रत्न की पर्ािप्त अशु भहै। इस अशु भयोग से धनहािन होगी, इसिलये को यज्ञ
आिद िवशेष कायर करने चािहये।"(19, 20)
शशशशश शशशशश शशशशशशश । शशश शशशशशशश शशशशशशशशश
शशशशशशशशशश ! शश शशशश शशशश शशशश ।। शशशशश शशशशशशशशशश 21।।
शशश शशशशशशश शशश शशशशशशशश शशशशश शशशशश शश।
शशशशशशशशशशश शशश ।। शशशशशश शशशशशशशशशशशशश 22।।
(उसी समय) कोई व्यिक्त एक िहंडोला (झूला) देने के िलए आया और कहने लगाः
"सेठजी ! आपके घर मे सचमुच कोई नरशेष पैदा हुआ है। यह सब मैने सवप मे देखा है, अतः आप मेरे इस
झूले को गर्हण करें।" इसके बाद सेठजी ने अपने पूजनीय कुलपुरोिहत को (अपने गर)
बुलवाया। (21, 22)
शशशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश।
शशश शशशश शशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशश शशश।।23।।
शशशशशशशशशश शश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश।
शशश शशशश शशश शशशश ।। शशशशशशशशश शशशशशशशशशशश 24।।
शशशशशशश शशशशशशशश शशशश । शशशशशशशशशशशशशशशशशशशश
।।
शशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशश 25।।
शश शशशशशशशशशशशशश शशशशशशशश शशशश शशशशशश।
शशशशशशशशशश शशशशश ।। शशशशशशशशशश शशशशशशशशश 26।। श
पंचांग में बच्चे के िदनमान देखकर पुरोिहत भी आश् चयर्चिकतहो गया और बोलाः
"सेठ सािहब ! योगवेत्ताओं में शर्ेष्ठ यह कोई योगी आपके घर में अवतिरत हुआ है।
यह भवसागर में डूबते हुए लोगों को भव से पार करेगा। ऐसे लोग संसार में युगों के
बाद आया करते हैं। धिनक व्यिक्तयों के घर में ऐसे योगयुक्त तपस्वी जन जन्म धारण
िकया करते हैं और उनकी कृपा से घर ऋिद्ध-िसिद्ध से पिरपूणर् हो जाया करता है। शर्ीमन्
! आपके इस पुत के पभाव से आपका वयापार अपने आप चलने लगेगा और थोडे ही समय मे वह दुगुना हो जायेगा। (23,
24, 25, 26)
शशशशशशशशशशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशश।
शशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशश शशशशशशश शशश शशशशश।।27।।
शशशशशशशशशशशशश शशश शशशशश । शशशशशशशशश शशशशशशशश शश
शशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश।।28।।
तब िपता ने पुतर् का नामकरण संस्कार करवाया और दिरदर्नारायणों को लड्डू और
गुड़ बाँटा गया। बर्ाह्मणों को धन, वस्तर् आिद िदये गये क्योंिक दान से लक्ष्मी, आयु,
िवद्या, यश और बल बढ़ता है। (27, 28)
शशशशशशशशश शशशशशशश । शशशशशशश शशशशशशशशश
शशशशश शशशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशश।।29।।
दुदैर्व से भारतो का िवभाजन हो गया। तब ये सब लोग बन्ध-ु बान्धवोंसिहत गुजरात
पर्ान्त में आ गये। (29) अनुकर्म
शशशशशशशशशशशशशशशशशशशश । शशशशशशशशशशशश
शशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशश।।30।।
भारत म े भी अमदाव ा द म े आकर इ न हो न े नवीन आव ास िन िश त िकया जहा नया
नगर था और सब लोग अपिरिचत थे।(30)
शश शशशशशश शशशश शशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशश श।
शशशशश शशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशश।।31।।
धन,धानय, भू िम , गाँव और सब पर्कार के िमतर्ों को एवं अपनी जन्मभूिम को छोड़कर
सेठ थाऊमल (भारत क े गु ज रात प ा न त म े ) आ गये।(31)
शशशशशशशशश शशशशशशश शशशशशशशश शशशशशश श।
शशशशशशशशश शशशशशशशश शशशशश शशशशशशशशश शशश।।32।।
भारत िव भाज न क े समय रक तप ात एवं अन े क दु ः खो को कोई भु क तभो ग ी (भोग न े व ा ल ा )
ही जानता हू ँ , दूसरा कोई व्यिक्त नहीं जानता।(32)
शशशशशशशशश शशशशश शशशशशशशशश । शशशशशश शशशश शशशशश
शशश शशशशशशशशशशशशशश शशश शशशशशश शशशशश।।33।।
(दैव ने) िनदोर्ष लोगों को मानो अकारण स्वगर् से नरक में डाल िदया। आश् चयर्है
िक मायापित की माया को कोई मनुष्य नहीं जान सकता।(33)
शशशशशश शशशशशश शशशशशशश शशशशशश शशशशशश।
शशशशशशशशशशश शशशश ।। शशश शशशशशशशशशशशशश 34।।
िपता जी के साथ बालक आसुमल नये िनवास में आये। (वहाँ) पर्सन्न वदनवाला
(वह) बालक परम संतोष को पर्ाप्त हुआ। (34)
शशशशशश शशशशशशशशशशशश । शशशशशशशश शशशशशशशश
शशशशश शशशशशशशशशशशशशश शशशश शशशश शशशशशशश।।35।।
(बालक मन में सोच रहा था िक) 'इस धरती पर यहाँ (गुजरात मे) द्वािरकाधीश स्वयं
िवराजमान है। आज वास्तव में पूवर्जन्म में कृत पुण्यों का उदय हो गया है।' (35)
शशशशशशशश श शशश शशशशशश । शशशशशशशश शशशशशशशशशश
शशशशशशशशशशशशशशशशश ।। शशशशशशशशश श शशशशशशशशश 36।।
िपता जी ने स्वेच्छा से बालक को पढ़ने के िलये भेजा। अपने पूवर् संस्कारों
के योग से (वह बालक आसुमल) कुछ ही समय में साक्षर हो गया।(36)
शशशशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशश । शशशशशशशश
शश शश श शशशशशशशश शशशशश ।। शशशशशशशशशशशशशशशशश 37।।
उसकी (बालक आसुमल की) बुिद्ध अपूवर् और िवलक्षण थी। अतः वह शीघर् की छातर्ों
में िवशेषतः सवर्िपर्य हो गया।(37)
शशशशशशश श शशशशश शशश शशशशशशशशशशशशश ।
शशशशशश शशशशशशशशशशशशश शशशशश शशश शशशशशशशशश।।38।।
राितर् के समय वे (बालक आसुमल) अपने िपताजी की चरणसेवा िकया करते थे और
पूणर् संतुष्ट हुए िपताजी भी (आसुमल को) शुभाआशीवाद िदया करते थे।(38)
शशशशशशशशशशश शशशश शशशशशश शशश शशशशश।
शशशश शशशशशशशशशशशश ।।शशशशशशशश शशशशशशशशशशश 39।।
धािमरक कायों मे रत सुतवतसला माता पुत (आसुमल) से असीम स्नेह रखती थीं एवं सदैव
रामायण आिद की कथा सुनाया करती थीं।(39)
शशशश शशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशश शशश शशशशश।
शशशशशशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशशश शशश शशशशशश।। 40।।
शशशशशश शशश शशशश। शशशश शशश शशशशशशशशश
शशशशशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशश।।41।।
माता अपने धािमर्क संस्कारों से सदैव पुतर् (आसुमल) को सुसंस्कृत करती रहती थीं।
वह ध्यान में िस्थत बालक के आगे स्वयं मक्खन रख िदया करती थीं। िफर माता बालक को
स्वाभािवक ही कहा करती थी िकः "आशयर की बात है िक भगवान यशोदानंदन ने तुमहारे िलये यह मकखन भेजा
ह ै । "(40, 41)
शशशशशशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशश।
शशशशशशशशशशशशशशशशशशश ।। शशशशशशशशशशशशशशशशशशशश 42।।
(माता के द्वारा िसंिचत वे) धािमरक संसकार अब वटवृक का रप धारण कर रहे है। आज सब
भक तजन उन धािमर क सं स क ार ो स े ही आन न द का अनु भ व कर रह े ह ै । (42)
श श शशशशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशशशश।
शशशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशश।।43।।
माता के पर्भाव से एवं िपताजी के शुभाशीवार्द से वे आसुमल बर्ह्मिवद्या में
िनष्णात एवं पूजनीय बन गये।(43)
शशशशश शशशशश शशशश।शशशशशशशश शश शशशशशशशश
शशश शशशशशश शशशशशशशशशश ।। शशशशश शशशशशशश शशशशशशशशशश 44।।
(आसुमल ने) अनेक भाषाएँ पढ़ीं िकन्तु संस्कृत भाषा पर िवशेष ध्यान िदया, क्योंिक
वेद आिद सभी शास्तर् संस्कृत में ही हैं। (44)
शशशशशश शशशशशशशशश शशशश शशशशश शशशशशशशशशशश।
शशशशश शशशशशश शशशश शशशशशश शशशशशशशशशश।।45।।
(इस पर्कार) पूवर् जन्म में पढ़ी हुई समस्त िवद्याएँ स्मरण हो आईं की यह जीव सत्य
सनातन है और संसार क्षणभंगुर एवं अिनत्य है।(45) अनुकर्म
शशशशशश शशशशशशशशशश । शशशशशशशशश शशशशशशशश
शशशशशशशशशशशशशशशशश।। शशशश शशशशशशश शशशशशशशशश 46।।

महाबुिद्धमान सेठ थाऊमल व्यापार कायर् करते थे। उस समय उनका ज्येष्ठ पुतर्
(व्यापार में) उनकी सहायता करता था।(46)
शशशशशशशश शशशशशश शशशशशशशश शशशशशशश शशशशशशश।
शशशशशशशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशश।।47।।
बुिद्धमान लोग कहते हैं िक व्यापार में लक्ष्मी बढ़ती है। इस पर्कार उनका
पिरवार तब (पुनः) पर्ितिष्ठत हो गया। (47)
शशशशशशशशशशशश शशशशशशश । शशशशश शशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशशशश शशशश शशशश श शशशशशश।।48।।
मनुष्य जो सोचता है वह नहीं होता, िकन्तु होता वही है िजसे भगवान सोचते हैं।
उस समय अचानक ही सेठ थाऊमलजी का देहान्त हो गया।(48)
शशशश शशशशशशशशशशशश । शशशशशशशशशशशश शश
शशशशशशशशशशशशशशशश।।शशशशशश शशशशश शशशशशशशश 49।।
(पित की मृत्यु देखकर) माता और सारा पिरवार रूदन करने लगा, िकन्तु आसुमल
पर्यत्नपूवर्क उन सबको धीरज बँधा रहे थे।(49)
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
शश शश शशशशशशशश शशशशश शश
शश शशशशश शशशशशश शशश शशशश श शशशशश।
शशश शशशश शशशशश ।। शशशशश शश शशशशशशशशशशश 50।।

(आसुमल ने अपने पिरवारजनो से कहाः) "यह संसार नश् वरहै। यहाँ कोई जीव सदा जीिवत नहीं
रहता। मुझे बताइये िक मेरे दादा आिद सब िपतृ कहाँ चले गये?" (50)
शशशशशशशशशशशशशशशश शशशशश । शशशशशशशशशशशशश शशशश
शशशशशशशशशशशश शशशशश शशशशशश शशशशश शशशशश।।51।।
(आसुमल) ने अपने िपताजी की) अिन्तम िकर्या की और िपण्डदान आिद सवर् कायर्
सनातन रीित के अनुसार सम्पन्न िकये।(51)
शशशशशशशशशशशशशशश शश शशशशश शशशशशशशशशशशशशश शशशशशश।
शशशशशशशशशशशशशश शशशशशशश ।। शशशशशशशशशश शशशशशशशश 52।।

अब आसुमल अपने बड़े भाई के साथ सब व्यापार पर स्वयं िनगरानी रखते थे,
िकन्तु वे (अपनी पूजा-पाठ आिद के कारण दया भाव से) क्षुधापीिड़त लोगों को अन्न िबना
मूल्य ही िदला िदया करते थे।(52)
शशशश श शशशशशशशशश । शशशशश शशश शशशशशशश
शशशश शशशशशश शशशशशश ।। शशशशश शशशश शशशशशशश 53।।

अथवा अपने जप आिद कायोर्ं में समािधस्थ होकर समय व्यतीत करते थे और वहाँ
(दुकान पर) देर से जाया करते थे।(53)
शशशशशशश शशश शशशशशशशश शशशशशशशशश शशशशशशशशश ।
शशशशशशश शश शशशश ! शशशशश शशशशशश ।। श शशशशशशश 54।।
इससे कुिपत होकर बड़े भर्ाता ने माता से िनवेदन िकया िकः "माताजी ! इसके
(आसुमल के) साथ कायर् करना मुझे पसन्द नहीं है।"(54)
शशशशशशशशश शशशशशशशश । शशशशशश शशशशशशशश
शशशश शशशशशशश शशशश ।। शशशशशश शशशशशशश शशशशशशशशशश 55।। श
इसके बाद बुिद्धमान आसुमल स्वयं िसद्धपुर नामक नगर में आये और यत्नपूवर्क
वहाँ अपना कोई कायर् करने लगे।(55)
शशशशशशशशशशशश श शशशशशश । शशशश शशश शशशशशशशशशश
शशश शशशशश शशशशश शशशश ।। शशशशशशश शशशशशशशशशश 56।।

अपने कायर् के समय भी वे लगातार भगवान शर्ीकृष्ण का जप िकया करते थे। अतः
(उस तपस्या एवं जप आिद साधना के कारण) भगवा न न े उन ह े वाक् िसिद का वरदान िद या।
(56)
शशशशशशश शशशशशशशशश।शशशशशशश शशशश श शशशशशशश
शशशश शशशशशशशशशशश शशशशशशशशश शशशशश शशशश।।57।।
वे (आसुमल) िसद्धपुर में िसिद्ध पर्ाप्त करके अपने घर को लौट आये। भगवान
स्वयं अपने भक्तों के योगक्षेम का वहन करते हैं।(57)
शशश शशशशशशशशशशशशश शशशशशशशश शशशशशशश शशशशशशशशश।
शशशशशशशश शशश शशशशशश ।। शशशशशशशशशशशशशशशश 58।।
इस पर्कार अपने नगर में िसद्ध पुरुषों में उनकी गणना की जाती थी। अतएव स्तर्ी-
पुरुष उनके दर्शन के िलये रात -िदन वहाँ आया करते थे।(58)
शशश शशश शशशशशशशश शशशशशशशश । शशशशश शशशशशशश
शशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशश ।। शशशशशशशशशशशश
59।।
िजस िकसी तरह (इस पिरवार में) पुनः लक्ष्मी का स्वयं आगमन हो गया। भर्ाता अपने
आप पसन हो गये और माता भी बहुत पसन हुई।(59)
शशशशशशश शशशशशशशशशशशशशश । शशशशशशश शशशशशशशशशश
।।
शशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश श 60।।
धमरशासतो मे पढकर (आसुमल का) मन (संसार से) िवरक्त हो गया और आसुमल अपने नगर
में पूजनीय एवं पर्ितिष्ठत हो गये।(60) अनुकर्म
शशशशशशशशश शशशशशशशश । शशशशशशश शशशशशशशश
शशशशश शशशशश शशशश शशशशश श शशशश शशशश।।61।।
यह मूढ़ जीव वस्तुतः अपनी आत्मा के स्वरूप को नहीं जानता। माया से मोिहत होकर
जीव इस संसार मे बार-बार जन्म लेता है।(61)
शशशश शशशशशश शशशश। शशशशशशश शशशश शशशशशश
शशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशश
शशशशशशशशशश।।62।।
शशशश शशशशशशशशशशश ।शशशशशशशश शशशशशशशशशशश
शशशशशश शशशशशशश शशशशशशश शशशशशशशश शशशशशश।।63।।
एक िदन माता ने पर्सन्न होकर सस्नेह उनसे (आसुमल से) कहाः "मैं अब वृद्ध हो गई
हू ँ और (घर का) कायर् करने में असमथर् हो गई हूँ। िनश् चयही अब मैं एक गुणवती पुतर्वधू
चाहती हूँ इसिलए अब तुम्हारे िववाह के िलए मैं स्वयं पर्यत्न करूँगी।"(62, 63)
शशशशशश शशशशश शशशश । शशशशशश शशशशश शशशशश
शश शशशशश शशशशशशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशशश।। 64।।
शशश शशशशशशशशशशश । शशशशशशशशशशशश शश
शशशशशशशश शशशशशशशशश ।। शशशशशशशशशश शशशशशशशशश 65।।
(आसुमल ने कहाः) "मैं िववाह करना नहीं चाहता। िववाह वृथा बन्धन है। मैं तुम्हारी
सेवा के िलए यथाशिक्त पर्यत्न करूँगा। मुझे जनकल्याण के िलए एवं सब पर्ािणयों के
िह त क े िल ए भगव ान वासु द े व न े िव श े ष रप स े इस मृ त यु ल ोक म े भ े ज ा ह ै । "(64, 65)
शशशशश शशशशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशशशश शशशशशशश।
शशशशशशशशशशशश शशशशशशश ।। शशशशशश शशशशशशशशशशश 66।।

(घर में) अपने िववाह की चचार् सुनकर वे (आसुमल) स्वयं घर से भाग गये और िफर
उनकी खोज में बन्ध-ु बान्धवों को सात िदन लग गये।(66)
शशशशशशशशशश शशशशश ।शशशशशशशशश शशशशशशशशशश
शशशशशशशशशशश शशशशश ।। शशशशशशशशशशशशश शशशशश 67।।
खोज करने पर भरच नगर मे िसथत अशोक आशम मे वे िमले। उस समय भी उनहे िववाह का बनधन रिचकर
नहीं था।(67)
शशशशशशशशशश शशशश शशशशशश शशशशशशशशश शशशशशशशशशशश।
शशशशशशशशशशश शशशशशशशशश ।। शशशशश शशशशशशशशशशशश 68।।
माता ने अपने पुतर् को िववाह के िलये िफर समझाया। माता की आज्ञा िरोधायर् शरररररर

करके (न चाहते हुए भी) वे िववाह के िलए सहमत हो गये।(68)
शशशशशशश शशशशशशश ।शशशशशशशश शशशशशशशशशश
शशशशशशश शशश शशशशशशशश ।। शशशशशशशशशशशशशशशशशश 69।।
सब बन्धु-बान्धवोंसिहत आिदपुर नामक नगर में बारात गई और वहाँ शुभ सौभाग्यवती
सुन्दर कन्या लक्ष्मीदेवी के साथ शादी की।(69)
शशशशशशशश शशश शशशश शशशशश । शशशशशशशशशश शशशशशशशशशशश
शशशशशशशशशशशशशशश।।शशशशशश शश शशशशशशशशश 70।।

(िववाह के बाद आसुमल ने िवचार िकयाः) 'मैंने िववाह करके माता को तो पर्सन्न
कर िदया (िकन्तु) अब मैं स्वयं (सांसािरक बन्धनों) से बँध गया हूँ। सचमुच इस समय
संसार में कमलपतर् की तरह रहना ही मेरे िलये िहतपर्द है।'(70)
शशशशश शशशशशश शशशश शशशशशशशशश शशशशशशश।
शशशशशशशश श शशशशशश ।। शशशश शशशशशश शशशशशशशश 71।।
माया से मोिहत जीव काम-कर्ोधािद से अिभभूत होकर संसार में आसक्त हो जाता है
और वह सुख मानता है । (71)
शशशश शशशशशशश शशश शशश । शशशशशशशश शशशशशशशशशशशश
शशश शशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशश शशशशशशशश शशशशशश ।।
72।।
शशशश शशशश शशशश ।
शशशशश शशशशश शशशशश शशश शशशशश
शशशशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशश शशशशशशश शशशशशश।।73।।
(अपने गृहस्थ) धमर पर िवचार करते हुए उनहोने (आसुमल ने ) अपनी पत्नी को समझायाः "ह े
िपर्ये ! मैं अपने कायर् की िसिद्ध के िलए अब जा रहा हूँ। हे सुमुखी ! तू अपने धमर् का
पालन कर और सदैव माँ की सेवा कर। मैं पर्भुपर्ािप्त करके शीघर् ही वापस आ जाऊँगा।"
(72, 73)
शशशशशशश शशशशशशशशशशशश शशशशशशशशश शशशश शश।
शशशशशश श शशशशशशशशश ।। शशशशशशशश शशश शशशशश 74।।
(इस पर्कार पत्नी को समझाकर आसुमल) भगव ान द ा िर क ा ध ीश क े प ण ा म करक े
वृन्दावन गये। वहाँ से वे हिरद्वार और िफर हृिषकेश गये।(74)
शशश शशशशशशशशशशश शश शशश शशशशशशशशशशशशश।
शशशशशश शशशशशशशश ।। शशशशशशशशशश शशशशश 75।।
लेिकन (इन तीथोर्ं में भर्मण करने पर भी। उनकी ज्ञानिपपासा शांत नहीं हुई। वहाँ
से वे दैवयोग से स्वयं ही नैनीताल के अरण्य में गये।(75)
शशश शशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशश शशशशशशश।
शशशशशश शशशशशशशशश ।।श शशशश शशशशशशशश शशशशश 76।।
तब वहाँ पर पूज्य शर्ी लीलाशाहजी महाराज के दर्शन हुए। वे उस समय योगवेत्ताओं
में शर्ेष्ठ योगिनष्ठ योगी थे।(76) अनुकर्म
शशशशशश शशशशश शशशशश।शशशशशशशशशशशशशशशशशशशश
शश शशशशशश शशशशशशशशशश ।।शशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशश 77।।
(उन िदनों) वे समस्त भारतवषर् में बर्ह्मिवद्या में िवशारद, पुण्यात्मा, तपस्वी एवं
एक बर्ह्मवेत्ता (पूज्य शर्ी लीलाशाहजी महाराज) थे।(77)
शशशशशश शशशशशशश श शशशश शशशशशशशशशशश।
शशशश शशशशशशश शशशशशश ।। शशशशशशशशशशशशशशशशश 78।।
आसुमल को देखकर वे (योगीराज) मन में पर्सन्न हुए। योगी लोग अपनी योगमाया के
पर्भाव से योगवेत्ता को पहचान लेते हैं।(78)
शशशश शशशशशशशशशशश शशशशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशश।
शशशशशश शशशशशशशशशशश ।। शशशशशशशशशशश शशशशश 79।।
उनका (आसुमल का) िदव्य स्वरूप एवं पूवर् जन्म की साधना को जानकर योगीराज पर्सन्न
ह ु ए। (उन्होंने मन-ही -मन अनुभव िकया िकः) 'आज मैने (िशषय के रप मे) एक रत्न पर्ाप्त िकया।' (79)
शशशशशशश शशशशशशशश श शशशशशशशश शशशशशशशशशशशशश।
शशशशश शशशशशशशश।।शशशशश शशशशशशशशशशश 80।।
(तब आसुमल) योिगराज को पर्णाम करके उनके पास बैठ गये (क्योंिक) महान् पुरुषों
के दर्शन से हृदय चन्दन की तरह शीतल हो जाता है। (80)
शशशशशशश शशशश शशशशशशश शशशशशश श शशशशशश शशशशशश।
शशशशशशशशशशशशशश शशशश ।। शशश शश शशशश शशशशशशश 81।।

योगीराज ने स्वयं उनसे पूछाः "तुम कौन हो? कहाँ से आये हो और यहाँ (आशम मे)
िकसिलये आये हो? तुम्हारे मन में क्या िवचार है?"(81)
शशशशशशशशशश शशशश शशशशशशश शशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशशशशश।
शशशशशशशशशशश शशशश शशशशशशशशशश ।। शशशशशशशशशशशशश 82।।
शशशश शशशशशशशशशश शश श शशशशशश शशशशश शशशश ।
शशशशश शशशशशशशशशशशशशश शशशशशश।।83।।
(आसुमल ने कहाः) "मैं कौन हूँ यह तो मैं (स्वयं भी) नहीं जानता। यह तो मैं आज (आप
से) जानना चाहता हँू। मै तो इस संसार की माया से मोिहत होकर इस मृतयुलोक मे भटक रहा हँू। गुर के िबना जीव
अपने आत्मस्वरूप का ज्ञान नहीं पा सकता। आपके चरणकमलों में मैं इसिलए
(स्वरूपबोध) के िलए आया हूँ।" (82, 83)
शशशशश शशश ! शशशश शशशशशशशशशशशशश शशशशशशश ।
शशशशश शशशशश शशशश शशशशशशश ।। शशशश शशशशशशशशश 84।।
(पूज्य सदगुरुदेव शर्ी लीलाशाह जी महाराज बोलेः) "अच्छा वत्स ! सेवा करो और
िवशेष रूप से आशर्म की सेवा करो। सेवा से ही मनुष्य इस संसार में िनशि ्चत रूप से
कल्याण पर्ाप्त कर सकता है।"(84)
शशशशशश शशशशश शशशशश शशशश शशशशशशशशशशश।
शशशशशशशशशश शशश शशशशशशशशशशशश ।। शशशशशशश 85।।
(इस पर्कार आशर्म में सेवा करते हुए आसुमल को) सत्तर िदन बीत गये तब
योगीराज पर्सन्न हुए और उन्होंने बुिद्धमान आसुमल को गुरुमंतर् िदया।(85)
शशशशशश शशशशशश शशशशशश । शशशशशश शशशशशशशश शशशशशशश
शशशशश शशशश शशशश ।।
शशशशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशशशश 86।।

गुरुदेव ने (आसुमल को) स्वयं ही पर्ेरणा दी िकः "िनत्य साधना करो।" (आसुमल भी) वहाँ
िचरकाल तक ठहर कर साधना में लीन हो गये।(86)
शशशशशश शशशशशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशशश शशशशशशश ।
शशशशशशशशश श शशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशश।।87।।
(वहाँ पर) गुरुदेव ने ध्यानयोग आिद की समस्त िकर्याएँ उन्हें िसखाई। वहाँ
समािधस्थ उन्होंने (आसुमल) ने भगवान के दर्शन िकये। (87)
शशशशशशशशश शशशश शशशश ।शशशश शशशशशशशशश शशशशशशशशश
शशशशशश शशशशशशशशशशशशश ।। शश शशशश शशशश शशशशशशशशशश 88।।
"अब तुम अपने घर जाओ। तुम योगिसद्ध हो जाओगे, िकन्तु गृहस्थ धमर् का अनादर
मत करना।(88)
शशश शशशशशशश शशशशशशशश शशशशश शशशशश शशशश शशशश।
शशशशशशश शशशशशशशशशशशशशश शशशशशश।।89।।
इस पर्कार िसिद्ध पर्ाप्त करके और गुरद ु ेव को बार-बार नमस्कार करके शर्ेष्ठ मन
वाले आसमुल अपने घर को वािपस आये।(89)
शशशशशशशशशश शशशशशशश । शशशश शशशशशशशशश
शशशशशश शशशशशशश शशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशशशश।।90।।
योगी (आसुमल) को (घर) आया देखकर सब नगरिनवासी एवं सजजन, बन्धु-बान्धव आिद सब सचमुच
पर्सन्न हुए।(90)
शशशश शशशशशशशशशशश श।शशशश शशशशशशशश शशशशशशशश
शशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशश शशशश शशशश शशशशशशशश।।91।।
वे (आसुमल) नगर एवं समस्त (गुजरात) पर्ान्त में िसद्ध पुरुष हुए और उनके
आशीवादमात से लोगो के सब कायर िसद होते है।(91)
शशशशश शशशशशशशशश श शशशश शशशश शशश शशशशशशशश।
शशशश शशश श शशशशशशशशशश शशशश शशशशशश शशशशशशश 92।। ।।
उनका समय वस्तुतः समािध और ध्यानयोग में बीतता था और िवशेष करके वे अपने
घर में धमर्शास्तर्ों का अध्ययन करते थे।(92)
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
शश शश शशशशशश शशशशश शश

शशशशशशशश शशश शशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश
शशशश श शशशश शशशश।।शशशशशशशशशश शशशशशशश 93।।

(घर आने के) पन्दर्ह िदन बाद ही आसुमल पुनः घर छोड़कर चले गये। िनश् चयही
योगी का मन अपने घर में नहीं लगता था। (93)
शशशशशशशशशशशशशश शशश । शशशश शशशशशशशशशशशशशश
शशश शशशश शशशश शशशशशश ।। शशशश शशशशशशशशशशशशश 94।।
तब (आसुमल का) िनवास सुनकर माता भी मोटी कोरल मे आई और िफर पुतर् को घर लौट
जाने के िलये समझाया।(94)
शश शशशशशशशशशशशश शशशश ! शशशशशशशश । शशशशशशश
शशशशशश शशशशशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशश शशशशशश।।95।।
(आसुमल ने कहाः) "ह े माता ! मेरा अनुष्ठान अभी कुछ बाकी है। मैं इस वर्त को पूणर्
करके िफर घर अवश् यआ जाऊँगा।"(95)
शशश शशशशशशशश शशशश शशशशशशशश । शशशशशश शशशशशश
शशशशशशश शशशशश शशशशशश ।। शशशशशशश शशशशश शशशशशश 96।।
(आसुमल ने) इस पर्कार संतुष्ट हुई माता को गर्ाम में भेज िदया। महान् लोगों के
कायर् महान् लोग ही जानते हैं, अन्य लोग नहीं जानते।(96)
शशशशशशशशश शशशशशशश श शशशश शशशशशशशशशशश ।
शशशशशशशश शशश शशशशश शशशश शशशशशशशशशशशशश।।97।।
अनुष्ठान की समािप्त पर जब वे (आसुमल) गर्ाम से रवाना हुए तब सब गर्ामवासी लोग
सचमुच िवलाप करने लगे।(97)
शशशशशश श शशशशशशश । शशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशश शशशशशशश शशशश शशशशश शशशशशशश 98।। ।।
वहाँ से वे (आसुमल) मुम्बई नगर में आये, जहा पर गुरदेव लीलाशाहजी महाराज सवयं
िवराजमान थे।(98)
शशशशशशश शशशशशश शशशशशश । शशशशशशशशश शशशश शशश
शशशशशशशशशश शशशशशशशशश शश शशशशशश शशशशशशशशशशश 99।। ।।
गुरुदेव के दर्शन करके वे (आसुमल) कृतकृत्य हो गये और गुरुदेव भी उस
िसिद्धपर्ाप्त साधक को देखकर बहुत पर्सन्न हुए।(99)
शशशशश ! शश शशशशश शशशशशशश शशशशशशश शशशशशशशशशशशश।
शशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशश शशश शश शशशशशशशशशश।।100।।
"बेटा ! तेरी िदव्य साधना, दृढ़ िनश् चयएवं बर्ह्मिवद्या में पर्गित देखकर मेरा
मन बहुत पर्सन्न हो रहा है।"(100)
शशशशशशशशशशशश शशश शशशशशशशशश शशशशशशशशश शश।
शशश शशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशश।।101।।
गुरुदेव के साथ जब उनकी भेंट हुई तब उनको (आसुमल को) स्वयं ही स्वरूपबोध
(आतमजान) हो गया।(101)
शशशशशशशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशश । शशशशशशशशशशशश
शशशशशशशशशश शशशशश शशशशशशशशशश शशशश शश।।102।।
गुरुदेव की आशीष से वे (आसुमल) भी आ त म ा न न द म े िसथ र हो गय े और आन न दस ा ग र
में िनमग्न वे (संसार की) माया से मुक्त हो गये।(102)
शशशशश शशशशशशशश शशशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशशशशशश
शशशशशशशशशश।
शशशशशश शशश शशशशशशश शशशश शशशशशशशशशशश।।103।।
शशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशश । शशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशश
शशश शशशश शशश शशशशशशशशशशशशशश शशशशशश।।104।।
"वत्स ! तुमने इस समय बर्ाह्मी िस्थित पर्ाप्त कर ली है और योगिवद्या में तुम
िसद्ध हो गये हो। योगी को काम-कर्ोधािद शतर्ु कभी नहीं सताया करते। अब तुमने (योगबल
से) समदृिष्ट पर्ाप्त कर ली है और तुम पूणर्काम हो गये हो। ऐसा पुरष ु सबको (पर्ाणीमातर्)
को समभाव से देखता है।"(103, 104)
शशशशशशश शशशशशशशश शशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशश।
शशशशशशश शशशशशशशशशशश ।। शशश शशशशशशशशशशशश 105।।
गुरुदेव से पूणर्ता पर्ाप्त करके (मनुष्य के) सब पाप नष्ट हो जाते हैं। अपूणर्
(मनुष्य) पूणर्ता को पर्ाप्त कर लेता है और नर स्वयं नारायण हो जाता है।(105)
शशशशशशशश शशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशश शशशश शशश।
शशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशश 106।।।।
िवकर्म संवत 2021 आिशन सुदी िदितया को आसुमल को गुरकृपा से अपने सवरप का बोध हुआ।(106)
शशशशशशशशश शशश शशशश । शशशशशशशशशशशशशशशशश
शशश शशशशशश शशश शशशशशश ।। शशशशशशश शशशशशशशश 107।।
जब जीव अपनी तपसया से समदृिष पापत कर लेता है तब वह बाहण, हाथी एवं कुत े को सम भाव स े
देखता है। (अथार्त् उसे समदृिष्ट से जीवमातर् में सत्य सनातन चैतन्य का ज्ञान हो
जाता है।(107)
शशशश शशशश ! शशशशशशशशशश शशशशशशशशशशश शशशशशशशश।
शशशशशशशशशशशशश शशशश ।। शशशशशशशशशश शशशशशशशशश 108।।
शशशशशशशशशश शशशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशश शशशश।
शशश शश शशशश शशशशशशश शशशशशशशश शश शशशशश।।109।।
शशशश शशशशशशशशशश शशशश । शशशश शशशश शशशशशशशशश
शशशशशशश शशशशशशशशशश ।। शशशशशशशशश शशशशशशशशश 110।।
(परम सदगुरु पूज्यपाद स्वामी शर्ी लीलाशाहजी महाराज ने कहाः) "वत्स ! अब तुम जाओ
और संसार के जीवों को मोक्ष का मागर् िदखाओ। अब तुम मेरे आशीवार्द से 'आसुमल' के
स्थान पर िनश् चयही 'आसाराम' हो। अपन े आप का उद ा र करन े क े िल ए क े िल य े तो करोड ो
लोग लगे हुए है, िकन्तु सच्चा उद्धार तो ज्ञानी के द्वारा ही होता है। बेटा ! तुम जाओ और मेरी
आजा से जनता को धमर का उपदेश करो। िवदान लोग जनसेवा को ही पभुसेवा कहते है।"(108, 109, 110)
शशशशशशश शशशशशशशश श शशशशशशशशशशश शशशशशश।
शशशशशशश शशश शशशश ।। शशशशशशश श शशशशशशशश 111।।
गुरुदेव को पर्णाम करके वे (संत शर्ी आसारामजी बापू) वहाँ से डीसा के आशर्म
में आये और वहाँ बनास नदी के तट पर िनत्य पर्ित साधना करने लगे।(111)
शशशशशश शशशश शशशशश शशशशश शशशशशशशशशश श शशशशश।
शशशशशशश शशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशश।।112।।
वे पर्ातः सायं बनास (नदी के तट पर) जाकर धयान मे मगन हो जाया करते थे। वे ममता,
अहंकार एवं राग और द्वेष से रिहत थे।(112)
शशशशश शशश शशश शशशशशश शशशश श शशशशशशशशशश ।
शशशशशश शशशशशशशशश शशशशशश शशश शशशशशशशश।।113।।
एक िदन वे (नदी के तट पर) जप-धयानािद करके जब अपने आशम की ओर आ रहे थे तब उन तपसवी ने
मागर् में एक जनसमूह को देखा।(113)
शशशशशशशश शशशशशशशशश शशशशशशश शशशशश शशशशशशश ।
शशश शशश शशशशशश ।। शशशश श शशशशशशशशश 114।।
शशशशश शशश शशशशशशशशश शशशश शशशशशशशशशशश।
शशशशशश शशशशश शशशशशशशशश शशशशशश शशशशशश।।115।।
ये लोग एक मृत गाय के पास चारों ओर खड़े उसे देख रहे थे। उन मनस्वी संत
ने (उनमें से) एक आदमी को अपने पास बुलाकर उससे कहाः "तुम जाकर उस गाय पर इस
जल का अिभषेचन करो।" (उन संत ने) िदये हुए जल के अिभषेचन से वह गाय उठकर चल पड़ी।
(114, 115)
शशश ! शशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशश।
शशशशशशशशशश शशश शशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशश।।116।।
(गाय को चलती देखकर लोगों ने आश् चयर्व्यक्त िकया और कहाः) "अहो ! पृथ्वी पर
तपिस्वयों की शिक्त िविचतर् है !" (इस पर्कार) गाँव के सब िनवासी (संत की) कीितर् का
गुणगान करने लगे।(116)
शशशशशश शशशश शशशशश शशशशशशशशशश । शशशशशश शशशशशशश
शशशशशशशशशश शशशश।। शशशशशशशशशश शशशशशशशश 117।।
शशशशशशशशशशशशशशश । शशशशशशश श शशशशशशश
शशशशश शशशशशशशश शशशशशश ।। शशशश शशशश शशशशशशशशशश 118।।
(एक बार संत शर्ी आसारामजी ने तपस्वी धमर् पालने की इच्छा से िभक्षावृित्त
करने का मन बनाया और गाँव में एक घर के आगे जाकर कहाः) "नारायण हिर...." यह सुनकर
अभाव से पीिड़त गृहस्वािमनी ने अित कठोर वाणी में कहाः "तुम नौजवान और हट्टे-कट्टे
होत े हु ए भी यह भीख मा ग त े तु म ह े ल ज जा नही आती ? तुम स्वयं कमाकर अपना उदरपालन
करो।(117, 118)
शशशशशश शशशशशश शशशशश । शशशशशशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशश शशशशशशशशशशश शशशशश शशशशश शशशशशशशश।।120।।
योगीराज द्वारा समझाया हुआ वह भी (तीसरे) िववाह से िवरक्त हो गया। उनके शुभ
आशीवाद से वह भी महातमा बन गया।(120)
शशशशशशश शशश शशशश शशशशशशशशशश शशशशशश।
शशशशशश शशशशशशशशशशशश शशशशश शशशशशश शशशश।।121।।
उनके िमतर् िवलाल श
रररर (संत जी के) दर्शन के िलए आया। वह रास्ते में
सोचने लगाः 'कुिटया में साधना में मग्न (ये संत) भोजन कहा स े करत े ह ै ?' (121)
शशशश शशशशशशशश शशशश शशशशशशशशशश शशशशशशशशश।
शशशशश श शशशश शश शशशशशशशशशश शश शशशशशशशश 122।।।।
शशशशशशश शशशशशश शशशशशश शशशशशश शशशशशशशश।
शशशशशशश शशशशशशशश शश शशशशशशशश शशशशशशशशश 123।। ।।
शशशशशशशशश शशशशशशशशशशश शशशश शशशशश शशशशश।
शशश श शशशशशशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशश।। 124।।
उसने अपने मन में जो िवचार िकया था, पूज्य बापू ने सत्संग में उसका िजकर्
िकया और कहाः "तेरा सोचना िमथ्या है (क्योंिक) मेरे आशर्म में भोजन के िलए आज भी
आटा है और अगले िदन की िचनता भगवान वासुदेव करेगे। अपने भकतो के योगकेम की रका तो भगवान शीकृषण सवयं
करते हैं।" इस पर्कार वे िवलाल शभ ी(सत्संग के पर्भाव से) भगवद् आराध न ा म े लग
गये।(122, 123, 124)
शशशशशशशश शशशशश शशशशशशश । शशशशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशशशशशशशश शशशशशशश ।। शशशशशशश शशशशशशशशशशश 125।।
(एक बार) नदी के पार करने की इच्छावाले एक पंगु को रूदन करता हुआ देखकर (शी
आसारामजी बापू ने ) शीघ ही उसको अपने कंधे पर बैठाकर नदी पार करवा दी।(125)
शशशशशश शशशशशशशशशशशशशश । शशशशशश शशशशशशशशश
शशशशशश शशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशश ।। शशशशशशशशशशश 126।।
शशश शशशशश शशश शशशशशशश शशशशशश शशश शशशशशशशशशश।
शशशशशशश शशशशशशशशशशश ।। शशशशशशशशश शशशशशश 127।।
(मजदूर ने कहाः) "मैं काम करने में असमथर् हूँ क्योंिक मेरे पैर चोट लगी हुई
ह ै । स े ठ न े मु झ े काम स े िन काल िद या ह ै । अब म ै क या करँ ? कहाँ जाऊँ? मुझे यह
िचन्ता सता रही है िक अब मैं अपने पिरवार का पालन कैसे करूँगा?" (126, 127)
शशशशशशशश शश शशशशश शशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश।
शशश श शशशश शशशशशशशश ।। शशशशश शशशशशशशशशश 128।।
(पूज्य बापू ने कहाः) "अब तुम िफर वहाँ जाओ। तुम्हारा कायर् िसद्ध हो जायेगा।" इस
पर्कार उनके (संत के) शुभाशीवाद से वह सफल हो गया। (128)
शशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशश।
शशशशश शशशशशशशश शशशश ।। शशशशश शशशशशशशशशशश शशश 129।।
शराब पीने वाले, मांस खाने वाले लोग एवं अन्य व्यसनी भी पूज्य बापू के पर्भाव से
सदाचारी हो गये।(129)
शशशशशशश शशशशशशशशश । शशशशशशशश शशशशशशश
शशशशशश शशशशश शशशश शशशश शशशशशशशशशशश।।130।।
(वहाँ उनके) पर्वचन में अनेक पर्कार के स्तर्ी और पुरुष आते थे। (वहाँ) योगी
की कृपा से वह डीसा नगर उस समय वृंदावन-सा हो गया था।(130)
शशशशशशशशश शशश शशशश । शशशश शशशशशशश शशशश
शशशशशश शशशशश शशशशशश ।। शशशशशशशशशशशशशशशशशश 131।।
अनेक दुःखी लोग सदा वहाँ (सत्संग में) आया करते थे और वे रोग, शोक एवं िचनता से मुकत
होकर ह ृ द य म े शा ित प ा प त करत े थ े । (131)
शशशशशश शशशश शशशश। शशशशशश शशशशशश शशशशश
शशशशशश शशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशश शशशशशशशश 132।। ।।
संत की कृपा से पापी लोग भी (भवसाग र स े ) पार हो जाया करते हैं िकन्तु पापी के
साथ धािमर्क लोग भी डूब जाया करते हैं।(132)
शश शशशश शशश शशशश।शशशशशशशशश शशशशशशशश
शशशशशश शशशशशशशशशशश ।। शशशशशशशशशशश शशश 133।।
(एक बार सभा में योगीराज ने शर्ोताओं से पूछाः) "आप सब लोग िवशेष रप से िवचार कर
बताइये िक योगिसद्ध साधुओं में और साधारण मनुष्यों में क्या अन्तर है? (133)
शशश शशशशशश शशशश शश । शशशशश शशशश श शशशशशशशश
शशशशश शशशशशश शशशशश शशशशशशशश शशशशशशश।।134।।
(उनमें से) एक शर्ोता ने कहाः "(योगी और साधारण जन में) कोई भेद नहीं है।
िवद्वान लोग कहते हैं िक सब मानव समान हैं।"(134)
शशशश शशशशशश शशशश। शशशशश श शशशशशशशशशशश
शशशशशशशशशशशशशशश । शशशशश श शशशशशशश135।।
(शोता से यह उतर सुनकर) तपस्वी योगीराज केवल एक वस्तर् (केवल अधोवस्तर्) के साथ
आशम को छोडकर चल पडे।(135)
शशशशशशशशशश शशशशशशशशशश शशशशश शशशशश शशशशशशशशशशश।
शशशशशश शशशशश शशशश शशशशशश शशशशशशशशशशशश।।136।।
(वहाँ सभा में िस्थत) सभी शर्ोताओं ने बार-बार (संत से) पर्ाथर्ना की िकन्तु साधु
लोग तो अपने िनशय पर सदैव िसथर रहते है।(136)
शशशशश शशशशश शशशश । श शशशशशश शशशशशशशशश
शशशशशशशश शशशशश शशशश ।। शशशशशशशशशशशशशशशशशश 137।।
तपस्वी लोग माया से मोिहत कभी नहीं होते, काम और राग से रिहत (संत लोग) मोह
और ममता को त्याग देते हैं।(137)
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
शश शश शशशशशशश शशशशश शश

शशशशशश श शशशशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशश
शशशशशशशशशशशशशशश ।।शशशशशशशशश शशशश शशशश 138।।
वहाँ से वे (योगीराज) नारेश् वरके गहन वन में आ गये। वहाँ पर नमर्दा नदी के
तट पर कर समािधस्थ हो गये।(138)
श शशशशशशशशशशश श शशशशशशशश । शशशशशशश शशशशशशशशशश
शशशशशशश शशशश शशशश शशश ।। शशशशशशशशश शशशशशशशशशश 139।।

शशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशशशशशशशश शशश शशशशशश शशशश शशशशशशशशशशशश।।140।।
समदृिष्टवाले (िसंह आिद) िहं स जीवो स े एवं चोरो स े नही डरत े । सू य ो द य हो
गया। (नदी के) जल मे मेढक कूद रहे थे। उन मेढको के छप-छप शबद से योगी का धयान भंग हो गया। पातिवरिधयो
से िनवृत्त होकर वे (योगीराज) पुनः वहीं पर बैठ गये।(139, 140)
शशशशशश शशश शशशशश शशशशशश श शशशशशशशशश शशशशशशशशशश।
शशशशशशशशशश शशशशशशशशशशश ।। शशशशशशशशश शशशशशशशशशशश 141।।
"मुझे भूख तो लग रही है िकन्तु अब मैं (िभ क ा क े िल ए ) कहीं न जाऊँगा। मैं आज
भगवा न श ी कृ ष ण क े वा क य - 'योगक्षेमं वहाम्यहं' की परीक्षा करूँगा।"(141)
शशश शशशश शशशशश शशशश । शशशशशशश शशशशशशश
शशशशशशश शशशशश शशशशशश शशशश शशशशशशश शशशशश श।।142।।
तब दो िकसान वहाँ नदी तट पर (संत के पास) आये (और कहने लगेः) "शीमन् ! आप यह दूध
एवं कुछ मधुर फल (हमस े ) गर्हण करें।"(142)
शशशशशश शशश शशशशश शशशशशशश शशशशशशशशशशशश।
शशश शशशशशशशश शशशशश शशशशशश ।। शशशशशश शशशशशशशशशशश 143।।
(पू. बापू ने उन दोनों से पूछाः) "आप कहा से आये है और आप दोनो को यहा िकसने भेजा है? मैं
मानता हूँ िक यह दूध िनशि ्चत ही मेरे िलए नहीं है।"(143)
शशशशशश शशशशशशशश शशशशशश श शशशशशशश शशशशश शशशश ।
शशशशशशश श शशशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशश।। 144।।
(संत शर्ी ने मन ही मन सोचाः) "यह दूध यहाँ िकसने भेजा है,यह तो मैं नहीं
जानता, अतः इस िवषय में कुछ नहीं कह सकता। िनश् चयही वह िनराकार ही यहाँ साकार हो रहा
ह ै । "(144)
शशशशशशशश शशशशशशश शशशशशश । शशशश शशश शशशशशशशश
शशशशश शशशशशशशशश शशशशशश ।। शशशशश शशशशशश शशशशशशशशश 145।।
शशशशशशश शशशश शशशशशशश शशशश शशशशश श शशशशशशश ।
शशशशशशशशश शशशश शशशशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशश।।146।।
(िकसानों ने कहाः) "हमन े स व प म े जो रप द े ख ा था , अवश् यही वह आपकी आकृित
से िमलता जुलता था। अतः यह दूध आपके िलए ही है, इस िवषय में आप कोई िवचार न करें।
शीमान् जी ! हमार े नगर म े इस समय कोई सं त -महात्मा नहीं है। इसिलए गर्ाम के सब
िनवासी लोग आपको गाँव में ले जायेंगे।"(145, 146)
शशशशशशशशशशश शशश शशशशशश । शशश शशशशशश शशशशशशशशशश
शशशशशशशशशशशशशश शशशशशशश ।। शशशशशश शशशशशश 147।।
यह कहकर वे दोनों तो (दूध-फल वहा रखकर अपने ) गाँव की ओर चले गये। (तब
योगीराज ने भी अपने मन को िवचार िकया िक) मोह माया के िवनाश हेतु साधुओं के िलए
भ म ण करत े रहन ा ही उिच त ह ै । (िकसी एक स्थान पर ठहरना ठीक नहीं।(147)
शशशशशशशशशशश शशश शशशशशशश । शशशशश शशशशशशशश शशशशशशश
शशशशशश श शशशशशशशश शशशशशशशशशश शशशशशश।।148।।
वहाँ गुरद ु ेव की आज्ञा पर्ाप्त करके इन्होंने पहाड़ देखने का मन बनाया और
वहाँ से भर्मण के िलए वे हृषीकेश आये।(148)
शशशशश शशशश शशशशशशश । शशशश शशश शशशशशशशशश
शशशशशश शशशशशशशशशश ।। शशशश शशशशशशशशशशशशशश 149।।
वहाँ से िटहरी नगर में आये और मागर् में लंका नामक स्थान को भी देखा। वहाँ
से (पहाड़ की) पदयातर्ा अिधक कष्टपर्द हो गई।(149)
शशशश शशशशश शशशशशश शशशशशशशशश शशशशशशशश ।
शशशशशशशश शशशश शशशशशशशशश ।। शशशशशशशशशश शशशश शशशशशश 150।।
वहाँ िहमशालाओं से आच्छािदत मागर् अत्यंत ही किठन था। वहाँ पर गर्ीष्म ऋतु
में तो सैंकड़ों यातर्ी यातर्ा के िलये आया करते हैं।(150)
शशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशश । शशशशशशशशशश
शशशश शशशशशशशशशश शशशशशश ।। शशशशशश शशशशशश शशशशशश 151।।
यह वह पिवतर् भूिम थी जहाँ से गंगा का उदगम हुआ है। जहाँ पर स्नान आिद करके
पापी लोग भवसागर से पार हो जाते हैं।(151)
शशशश शशशश शशशशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशश।
शशशशशशशशशशशशशश शशशशश शशशशशशश शशशशशशश शशशशशश।।152।।
वहाँ उस समय योगमद से उद्धत एक संन्यासी रहा करता था। वहाँ के सब साधु-
संन्यासी लोग उस योगी से डरते थे।(152)
शशशशश शशश शशशशशशशश शशशशश शशशशशशशश।
शशशश शश शशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशशश ।। शशशशशशशशशशशश
153।।
(पूज्य बापू ने जाकर उस संन्यासी की कुिटया का द्वार खटखटाया तो वह संन्यासी
भीतर स े ही बोलाः ) "यह मेरी कुिटया के कपाट कौन खटखटा रहा है? मैं यह जानना चाहता
हू ँ िक यह कपाट खटखटान े वाला मृ त ह ै या जीिव त ह ै ?"(153)
शशशशशशश शशशशशशशशशश शशशशशशशश शश शशशशशशश।
शशशश शशशश शशशशशशशशश ।। शशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशशश 154।।
(पू. बापू ने कहाः) "शीमन् ! मैं जीिवत नहीं अिपतु पूणर्तया मृत हूँ। आपके दर्शन करना
चाहता हूँ। आप बाहर आकर देखें, यह व्यिक्त आपकी पर्तीक्षा कर रहा है।
शशश श शशशशशशशशश शशशशशशशश शशशशश शशशश शशशशशशश ।
शशशशशशशशशशशश शशशशशश शशशश शशशशश शशश।।155।।
शशश शश शशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशश शश।
शशशशशशशशशशशशशशश शशशशश शशश शशशश शशशशशशश 156।। ।।
तब बाहर आकर उस योगी ने अपने सामने खड़े बापू को देखकर आश् चयर्चिकत
होकर आदर पू वर क वचन बोल े ः "आशयर की बात है मेरे पूवरपुणयो के पताप से आपके दशरन हुए है।" िफर उन दोनो
में िवशेष रूप से आध्याित्मक चचार् हुई।(155, 156)
शशशशशशशश शशशशशशशशश शशशशशश शशशश शशशश।
शशश शशशश शशश शशशश ।। शशशशशश शशशशशशशश 157।।
(संन्यासी ने कहाः) "यहाँ हमेशा जीिवत नर तो अनेक आते हैं िकन्तु मृत व्यिक्त
तो सचमुच आप ही आये हैं।"(157)
शशशशशशशशशशशशशशशशशश । शशशशशश शशशशशश शशशश
शशशशशशशश शशशशशश शशश शशशशशशशश शशशशशशशश 158।। ।।
(उस भेंट के बाद) योगीराज ने बदरीनाथ और केदारनाथ की यातर्ा भी की तथा
तीथोर्ं में इधर-उधर घूमते हुए उन्होंने वहाँ गुफा भी देखी।(158)
शशशशशशशश शशशशश शशशशशशशशशश । शशशशशशशशशशशशशशश
शशश शशशशशश शशशशशशशशश ।। शशशशशशशश शशशशश शशशशश 159।।

यह वह पिवतर् भूिम है जहाँ युग-युगान्तरों से बर्ह्म में िनरत लोग तपस्या करने
के िलए आते हैं।(159)
शशशशशश शशशशशशशशशशशशश शशशशशशश शशशशशश शशश।
शशशशशशशशशश शश शशशशशशशशश ।। शशशशशशश शशशशश शशशशशश 160।।
िविभन्न तीथर् स्थानों में स्नान और योिगयों के दर्शन संसार में पुण्यवान् लोग ही
करते हैं, अन्य नहीं।(160)
शशशशशशशशशशशशश शशशशशशश शशशशशशशशशशश शशशश शश।
शशशशशश शशश शशशश शशशशशशशशश शशशशशशशशशश।।161।।
िफर वे (बापू) आबू पवरत पर आकर वहा का घनघोर वन एवं परम अदभुत (पर्ाकृितक) सौन्दयर् देखकर
वे मंतर्मुग्ध हो गये।(161)
शशशशशशशशशशशश शशशशशशश । श शशशश शशशशशश शशशशशशशश
शशशश शशशशशशशशश शशशश ।। शशशशशशशश शशशशश शशश 162।।
वहाँ बर्ह्मानन्द में िनमग्न वे (बापू) स्वेच्छा से पर्ातः सायं पवर्तों पर एवं
वनों में इधर-उधर घूमते थे।(162)
शशशशशश शशशशशश शशशशशश शशशश शशशशशशशशश।
शशशशशशशशशश शशशशश शशशश ।। शशशशशशशशश शशश शशशशश 163।।
एक बार वहाँ वन में घूमते हुए योगीराज ने िरक्त हस्त एवं रास्ता भूल गया हो ऐसे
एक भयभीत सैिनक को देखा।(163)
शशशशशशशश शशशशश शशशशशशश । शशशशशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशश शशशशशशशश ।। शशशशशशश शशशशशशशश 164।।
(वह सैिनक बोलाः) "िहं स जानव र (यहाँ) चारों ओर घूम रहे हैं। मैं खाली हाथ
यहाँ आ गया हूँ। िनश् चयही आज आप दैव योग से इधर आ गये।" (164)
शशशश शश शशश शशशशशशशशशशशशशशश । शश शशशशशशशशश
शशशशशशशशश शशशशशशशशश शश शशशशशश शशशशश।।165।।
तब (पूज्यपाद संत शर्ी आसारामजी) बापू ने उससे कहाः "यह तुम्हारा िवचार िनरथर्क
ह ै । (वस्तुतः) तुम अपने आत्मस्वरूप को नहीं पहचानते, इसीिलए तुम डर रहे हो।(165)
शशशशशशशशश शशश शशशशशश । शशशशशशशश शशश शशशशश
शशशश शशशशशश शशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशश शशशशश।। 166।।
शशशश शशशशशश शशशशशशशश शशशश शशशशशशशशश शशशश शश।
शशशश शशश शशशशशश शशशशशश शशशशशशश शशशशशशश शशश।।167।।
(वास्तव) में शस्तर् का बल बल नहीं होता, तुम्हारी आत्मा का बल ही (वास्तिवक) बल
ह ै । तु म वस तु त ः स त य सनातन आ त म ा हो और इन िहं स जीवो स े वृथ ा ही डर रह े हो। तु म
मुझे देखो, इन िहंसर् जीवों से मैं नहीं डरता और ये जीव भी मेरे से कभी नहीं डरते।
मैं इस िनजर्न वन में िनत्य घूमता हूँ।"(166, 167)
शशशशशशशशशश शशशशशशश शशशशशशशशशशशश शशश शशशश।
शशशशशशश शशशशशशशशशशशशशश शशशशशशश श शशशशशशश 168।। ।।
(वस्तुतः) अस्तर्-शसतो का बल वयथर है। बहिवदा का बल ही असली बल है। संसार मे बह को
जाननेवाले लोग मौत से भी नही डरते।(168)
शशशशशशशशशश शशशशशशश । शशशशशशश शशशशशशश
शशशशशशश शशशशशश शशशशश ।।शशशशश शशशश शशशशशशशशशशशशश 169।।
(एक िदन) तार बाबू मनोहर दर्शन के िलए वहाँ आया। वहाँ योिगराज को पर्णाम करके
थोड़ी देर के िलए वहाँ बैठ गया।(169)
शशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशशश शशशश शश।
।।
शशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशश श 170।।
परन्तु दैवयोग से वह (वहाँ) समािधस्थ हो गया। (सायं) सात बजने के समय उसका
धयान टू टा।(170)
।।
शशशश शशश श शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश श
शशशश शशशशशशशशशशश शशश शश शशशशशशशशशश।।171।।
"मैं नहीं जानता हूँ िक इतने लम्बे समय तक मैं यहाँ पर कैसे बैठ गया !
संतों की शिक्त का अनुभव करके मेरा मन बहुत ही पर्सन्न हो रहा है।"(171)
शशशशशशशशशशशशशशशशशशश । शशशशशशश शशशशश शशशश
शशशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशश शशशशशशश।।172।।
(योगीराज वहाँ से हिरद्वार आ गये और) हिर द ा र म े िव क म सं व त 2028 में
पावन गंगा के तट पर पूज्य गुरुदेव शर्ी लीलाशाह जी महाराज के दर्शन हु(172) ए।
शशशशशशश शशशशश शशशश । शशशशशशशशशश श शशशशशशश
शश शशशशशशश शशशश ! शशशशश शशशशश ।। शशश शशशशशशशश 173।।
पूज्य गुरुदेव को मस्तक झुकाकर पर्णाम िकया और आदर के साथ उनसे कहाः "गुरुदेव
! मेरे योग्य कोई सेवा की आज्ञा करें।"(173)
श शशशशश शशश शशशशशश । शशशश शशशशशशशशशशशशशश
शशशशश शशशशश शशशशशशश शशशशशशश शशशशश।।174।।
शशशशश शशश शशशशशश शशशशशशशश । शशशशशश शशशशश
शशशशश शशशशशशशशशशशश।।शशशश शशशशशशशशशशशशशशशशश 175।।
शशशशश शशशश शशशशश शशशशशश । शशशशशश शशशशशशशशशश
शशशशशशशश शशशशशशशशशश शशशशश शशशशश शशशशश।।176।।
(गुरुदेव ने पर्त्युत्तर िदयाः) "मैं तुमसे धन या धान्य नहीं चाहता और न ही
गुरुदिक्षणा माँगता हूँ। हे तपोधन ! मैं तुमसे केवल जनसेवा की इच्छा करता हूँ। इस
असार संसार में करोड़ों लोग भटक रहे हैं। तुम उन संसार में डूबे हुए लोगों का कष्ट
दूर करो। (वत्स !) मेरे द्वारा जो कायर् शेष रह गया है, उसे पूणर् करने का तुम पर्यत्न
करो।" (बापू ने गुरुदेव से कहाः) "मैं आप गुरुदेव की कृपा से यथाशिक्त उस शेष कायर् को
पूणर् करने का पर्यत्न करूँगा।"(174, 175, 176)
श शशशश शशशशशशशशशशशश । शशशश शशशशशशशशश शशशशश
शशशशशशशशशश शशशशशशशश शशशशशश श शशशशशशशश।।177।।
संसार के लोग वस्तुतः संत को पहचानते नहीं हैं। गुरुभक्त (बापू आसारामजी)
िवरक्त होते हुए भी लोगों को आसक्त-से पर्तीत हो रहे हैं।(177)
शशशशशशशशश शशशशशशशशशशश । शशशशशशशशशश शशशशशशशशशश
शशशशशश शशशशशशशशशशशश शशशश श शशशशशश।।178।।
पूज्य गुरुदेव की आज्ञा मानकर वे (योगीराज) स्वेच्छा से सात वषर् का अज्ञातवास
समाप्त करके अपने गृहनगर (अमदावाद) में आये।(178)
शशशशशशशशशशशशशशशशशशश । शशशशशशशशश शशशश शशशश
शशशशशशशशशशश शशशशशशश ।। श शशशशश शशशश शशशशशश 179।।
िवकर्म संवत 2028 शावण सुदी पूिणरमा को पातः काल (सात साल के एकान्तवास के बाद) बापू
पुनः घर में आये। (179)
शशशशशशश शशशशशशश शशश । शशशशशशश श शशशशशशशश
शशशश शशशशशशशशशशश शशशश शशश शशशशशशशशश 180।। ।।
वे इधर-उधर सत्संग िकया करते थे और उनका अपना साधनाकायर् िनरन्तर चलता
रहता था।(180)
शशशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशश । शशशशशशशशशश शशशशशशश
शशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशश ।। शशशशश शशशश 181।।
शानत, दान्त और तपस्वी, एकान्त-पर्कृितपर्ेमी बापू साबरमती नदी के तट पर आकर
धयानयोग िकया करते थे।(181)
शशशशशशशशशशशशशशशशशशश श शशशशश शशश शशशशशशशश।
शशश शशशशशशशशशशशशश।।शशशशशशशशशश शशशशशशशशशश 182।।
मोटेरा गाँव के पास वे जपािद िकया करते थे। तब वहीं पर भक्तजनों ने (उनके
िलए) एक पणर्शाला का िनमार्ण िकया।(182)
शशशशशशशशशश शशशशशश शश शशशशशशशशशश शशशशशशशशशश।
शशशशशशशशशश शशशश शशशशशशशशशशशशशशशशश।।183।।
'मोक्षकुटीर' नाम की वह मंगलदायक पणर्शाला इस समय 'मोक्षधाम' के रूप में
पिरणत हो गई है।(183)
शशशशशश शशशशशशशशश शशशशश शशशशशशशश शशश।
शशशशशशशशश शशश शशशशशश ।। शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश 184।।
योगवेत्ताओं में शर्ेष्ठ बापू यहाँ (इसी मोक्षधाम में) उपदेश करते हैं। यहाँ
रात िदन स्तर्ी पुरुष सत्संग के िलए आते रहते हैं।(184)
शशशशश शशशशशशशशश शशशशश शशशशशश शशशशशशशशशश ।
शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश।।185।।
पूज्य बापू स्वेच्छा से इस समय समस्त िवश् वमें जनकल्याण की भावना से इधर-
उधर (देश-परदेश) में उपदेश देते हैं।(185)
शशशशशशशशशश शश शशशशशशशशश शशशशश शशशशशशशशश।
शशशशश शशशशशशश शशशशशशशशश शशश शशशशशश।।186।।
सचमुच पुण्यशाली लोग ही (उपदेश का) शवण करते है। दूसरे लोग नही करते। (जैस)े उिदत सूयर्
को उल्लू कभी भी नहीं देख सकता। (इसी पर्कार पापी लोग सत्संग से लाभ नहीं उठा सकते।
(186)
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
शश शशशशशशशशश शश
शशशशशशशशशश शशशशश । शशशशशशशशशशश शशशशशश
शशश शशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशश।।187।।
अणु पर्माण बीज से जैसे िवशाल वटवृक्ष बन जाता है इसी पर्कार यह मोक्षकुटीर
इस समय मोक्षधाम के रूप में पिरणत हो रही है।(187)
शशशशशशशशशश शशशशशशशशश शशश शशशशशश शशशशशशश।
शशशशशश शशशशशशशशश श शशशशश शशशशशशशशशश।।188।।
हजार ो स त ी -पुरुष (इस आशर्म में) दर्शन के िलए आते हैं और वे इस मोक्षधाम
के दर्शन करके सु-शाित ख पापत करते है।(188)
शशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशश ।
शशशशशशशशशशशशशशशशशशशश ।। शशशश शशशशशशश शशशश 189।।

िवशेषरूप से आशर्म की पर्ाकृितक शोभा को देखकर (दर्शनािथर्यों )का मन दुःख-
शोकािद से मुकत होकर िनमरल हो जाता है।(189)
शशशशशशशशशश शशशश शशशशशशशशशशशश श शशशशश।
शशश शशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशश शशश शशशश।।190।।
गुरुमंतर् के िबना कभी भी िसिद्ध नहीं होती है, अतएव (गुरुमंतर् की) दीक्षा पर्ाप्त
करने के िलए लोग सदा ही (इस धाम में) आते रहते है।(190)
शशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशश शशशशशश । शशशशशश शशशशशशश
शशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशश-
शशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशश।।191।।
(मोक्षधाम की) पर्ाकृितक रमणीय शोभा को देखकर सब भक्त लोग पर्सन्न हो जाते
ह ै । सौ न दयर पू णर एवं रमणी य दृ श यो स े यु क त यह मोक ध ा म स व यं ही न न दन व न ज ै स ा
पर्तीत होता है।(191)
शशशशशशशशशशशशश शशशश । शशशशशशशश शशशशशशशशश
शशश शशशशशशशशशशशश ।। शशश शशशशशशशशशशशशशश 192।।
(एक बार नदी में भयंकर बाढ़ आने के कारण) आशम की भूिम जल मे िनमगन हो गई तब बापू के
पर्भाव के कारण (वह बाढ़ का) जल सवतः ही उतर गया।(192)
शशशशश शशशशश शशशशशशश 'शशशश शशशशशश शशशशशश'।
शशशशशशशश शशशशशशशशशशश ।। शशशशशशशशशश शशशशशशशशश 193।।
साधकों ने पूज्य बापू की कृपा से अित सुन्दर 'नारी उत्थान आशर्म' की स्थापना की।
(193)
शशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशश । शशशशशशश शशशशश
।।
शशशशशश शशशशश शशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश श 194।।
(इस आशर्म में) सेवा और साधना में रत माताएँ कीतर्न, जप, धयान करती है। सचमुच वे
बर्ह्मिवद्या में िवशारद होती हैं।(194)
शशशशशशशशश शशशशश शशशशशश शशशशशशशशशश शशशशशशशशश ।
शशशशशश शशशशशशशशशश शशशशशशशशश शशशशशश शश।।195।।
अपने आशर्म में साधक लोग िनत्य खेतीबाड़ी का कायर् करते हैं और साधक
जनो के िलये शाक-सब्जी, कन्दमूल आिद बोते हैं।(195)
शशशशशश शशशशश शशशशशशश । शशशशश शशशशशशशश शशशश
शशशशशशश शशशशशशशश शशशश शशशशशशशशशशशशशशशशश शशशश।।196।।
आशम मे गाये भी है और साधक लोग उनका पालन करते है। कयोिक गाय के दूध से सचमुच िवदा, बुिद्ध और
बल बढ़ता है।(196)
शशशशशश शशशशशशश शशशशशशश शशशशश शशशशश शशश
शशश ! शशशशशशशशशशशशशश शशशशशशश शशशशशश।।197।।
(यहाँ आशर्म में) हवन की व े द ी द े खक र मन बह ु त ही प स न होता ह ै । ऐसा लगता ह ै
मानो भारत में हमारा वह (ऋिष-मुिनयों का) पर्ाचीन युग िफर आ गया हो।(197)
शशशशशशशशश शशशशश शशशश । शशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशशशश शशशशशशश शशशशशश ।। शशशशशशशशशशशशशशश 198।।

(यहाँ आशर्म में) सुन्दर शारदासदन भी है जहाँ िवद्वान एवं कुशल लोग रात-िदन
पुस्तकों का मुदर्ण कायर् करते हैं।(198)
शशशशशशशशशश शशश शशशशशश शशशशशश शशशशशशशश।
शशशशशशशशश शशशशशशशश शशशशशश शशशशशशश शशशशशशशशशशश।।
199।।
(यहाँ आशर्म में) सदा अन्नपूणार् क्षेतर् भी सबके मनोरथ हमेशा पूणर् करता है।
यहाँ पर यातर्ी भक्तजन सदा पिवतर् एवं शुद्ध भोजन करते हैं।(199)
शशशशश शशशशश शशशशशशशश । शशशशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशश शशशशशशशशश शशशशशशशश शशशश शशशशशशशशशशशश।।200।।
योग वेदान्त सिमित में बहुत कायर् हैं। िष् शयल ोग उत्साह से कायर् करते हैं
िजनकी गणना यहा करना संभव नही है।(200)
शशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशशशशश।
शशशशश शशशशशशशशशशशशशशशश ।। शशशशशशश शशशशशशशशश 201।।
यह 'ऋिष पर्साद' (नाम की मािसक पितर्का) वास्तव में इसी आशर्म से पर्काश ितहोती
ह ै । िव द ा न लोग कहत े ह ै िक यह 'ऋिष पर्साद' ही गुर प स ा द ह ै । (201)

शशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश
शश शशशशशशशशशशश शशशशशश ।। शशशशशशश शशशश शशशशशशशश 202।।

ऋिद्ध-िसद्धपर्दायक इस पिवतर् रामायण का जो िनत्य पर्यत्नपूवर्क पाठ करता है, वह
िनशि ्चत ही कल्याण पर्ाप्त करता है।(202)
अनुकर्म
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
शश शश शशशशश शशशशश शश
शशशशश शशशश ! शशशशशश शशशश शशशशशश
शशशशशश शशशशशश शश शशशशशशश शशशश।
शशशशशश शशशश शश शशशशशशशशशशशश
शशश शशशशशशश शशशशशशशशशशशश।।203।।
(िशषय पूछता हैः) "ह े गुर द े व ! यह बताइये िक मैं कौन हूँ और (यहाँ इस संसार में)
कहाँ से आया हूँ (तथा इस) संसार के साथ मेरा क्या सम्बन्ध है। मैं िविध (िवधाता, दैव)
के िवधान को नहीं जानता अतः यह जानना चाहता हूँ िक इस संसार में मैं पुनः कैसे आ
गया।"(203)
शशशशशशश शशशश शशशशशशशशशशशश
शशशशशश शशशश शशश । शशशशशशशशशशशश
शशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशश
शशशश शशशश शशशशशशशशशशशशशश।।204।।
(गुरुदेव कहते हैं-) "तू जीव है और िनशि ्चत रूप से तू उस परमेश् वरका अंश
ह ै (िकन्तु) तू अपने स्वरूप को नहीं जानता। (यही कारण है िक संसार की) मोह-माया और
ममता में िलप्त तू बार-बार गभर्रूपी गुफा में जन्म धारण करता है।(204)
श शशशशशशशशशशश श श शशशशशशश
शशशश शशशशशशशशशश शशशशशशशशश।
शशशशशशश शशशशशश शशशशशशश शशशशशशश
शशशशशशश शशशशशशश शशशशशश।।205।।
वह (ईश र ) सृिष्टकत्तार् है और कालों का काल है। तू जीवरूप में िस्थत होते हुए भी
सनातन है तथा क्षणभंगुर और मायामय तीसरे तत्त्व को योगवेत्ता लोग संसार कहते
ह ै । (205)
श शशशश शशशशश श श शश शशशशश
शशशशश शशशशशश शश शशशशश शशशश।
शशशश शशशशशश शश शशशशशशश
शशशशशशश शशशश शशशशशशशशशशशश।।206।।
(ह े व त स !) न तू शरीर है और न यह शरीर तेरा है। इस शरीर के साथ तेरा कोई भी
सम्बन्ध देखकर मैं स्वयं चिकत हूँ।(206)
शशशशश शशशशशशश शशशशशश शशशशशश

शशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशश शशश शशशशशशशश शशशशश
शशशशशशशशश शशशशश शशशशशशश श शशशश।।207।।
(वत्स !) इससे पहले तूने अनेक जन्म धारण िकये हैं और मृत्यु (के कष्ट) को भी
अनेक बार देखा है। क्या तू जानता है िक मोह के कारण ही संसार में सभी पर्ाणी जन्म
एवं मृत्यु को पर्ाप्त होते हैं?(207)
शशश श शशशशशश शशशशशशशशश
शशशशशशशशश श शशशशशशशशशशश।
शशशश शशशशशशश शशशशशश शशशशश-
शशशशशशश शशशशशशश ।। शश शशशशशशशशश 208।।
धन, कामोपभोग एवं राजसत्ता मनुष्य जीवन का साध्य नहीं है। िनश् चयही संसाररूपी
समुदर् में भगवान का नाम ही साध्य है। शेष सब कायर् साधन हैं।(208)
शशशशशश शशशश शशशशशशश शशशशशश
शशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशश ।
शशशशश शशशशशश शश शशशशशश शशशश
शशश श शशशशशश शशश शशशशशशश 209।। ।।
संसार में राग रखना और भगवान से वैराग्य होना यह िनशि ्चत ही तेरा िवपरीत
कायर् है। सम (ईश र ) के साथ तू पर्ेम कर और संसार के साथ वैराग्य कर।(209)
शशशशशशशश शशशश शशशशशशश शशशशशश
शशशशशशशश शशश । शशशशश शशशश
शशशशशशशशश शशशशशशश शशशश
शशशशशश शशशशशशश ।। शशशश शशशशशशश 210।।
रे मूढ़ ! तू िनत्य धन कमाने में लगा रहता है। जप का अजर्न को कभी नहीं करता।
तू आजीिवका के िलये ही धनसंचय कर िकन्तु मोक्ष पाने के िलए तो भगवान का भजन कर।
(210)
शशशश शशशशशश शशशशशशशशशशश
शशशश शशशशशश शशशशशशशशशशश।
शशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशश
श शशश शशशश शशशशश शशशशशशशशशश।। 211।।
मनुष्य लोक की यातर्ा तो धन से िसद्ध होती है िकन्तु परलोक की यातर्ा जप से िसद्ध
होती ह ै । स वगर म े भगवा न नाम का िसक ा ही चलता ह ै । उसक े िब ना स वगर म े मनु ष य की
कोई गित नहीं है।(211)
शशशश शशशशशशशशशशश शशशशशशशशशश

शशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशश
शशशशश शश शशश ! शशशश शशशशशश
शशशशशशशशश शशशश ।। शश शशशशशशशशश 212।।
वत्स ! तू भगवान का अंश है, िनरंजन है और संसार की माया से रिहत है। अरे जीव
! तू िफर भी माया से डरता है? यह माया तो तेरे भगवान की दासी है।(212)
शशशशशशशशश शशशश शशशशशशशशशश
श शशशशशशशशश श शशशशश शशशशश।
शश शशशशशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशशशश शशशशशश शशशश शशश शशशश।।213।।
यह मोह िनश् चयही ममता का सहोदर भाई है। यह जीव को राग से मुक्त नहीं करता।
अतः जो (लोग) मोह-माया और ममता में रत हैं वे िनत्य ही नये-नये नरकों में जाते
ह ै । (213)
शशशशशशशशशशशशशश शशशश शशश शशशश

शशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशश
शशशशश शशशशशश श शशशशश शशशशशश
शशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशश।।214।।
िवधाता यिद मनुष्य को कुबेर (धनभणडारी) बना दे अथवा राजाओं का राजा चकर्वतीर्
समर्ाट बना दे तो भी मनुष्य लोक में (मनुष्य) की तृष्णा सचमुच कभी जीणर् (शात) नहीं होती।
(214)
शशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशश
शशशशशशशशश शश शशशशशशशशशशश।
शशशशशशशशश शश शशशशशशशशशशशशशश
शशशशश शशशशशश शशशश श शशशश।।215।।
(िशषय बोलाः) "मेरा घर धन और धान्य से पिरपूणर् हैं। सौम्य मुखवाली सुन्दर मेरी
पत्नी है। मेरे पुतर्, पौतर् आिद एवं बान्धव-िमतर् सब मेरे अनुकूल हैं िकन्तु िफर भी
िचत्त शांित नहीं पर्ाप्त करता है।" (215)
शशशश ! शशशशशशशशशशश शशशशशशशशशश
शशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशशश।
शशशशशशशश शशशश शशशशशश शशशश
शशशश शशशशशशशशशश शशशशशशशशश।।216।।
"ह े व त स ! तू इस मनुष्य लोक में पर्सन्न है िकन्तु यह संसार क्षण भंगुर है। यह तो
बादल की छाया है। इसके तत्काल बाद सूयर् की वह धूप िफर आ जायेगी।(216)
शशशशशशशशशशशशश शशशशशशशश
शशशशशशशशशश शशशश । शशशश शशशशशशशश
शशशशशश शशशश श शश शशशशशशशशशश-
शशशशशशश शशशशशशशशश शश शशशशश शशशशश।। 217।।
जीव अपने पुरातन कमों के योग से िनशय ही नरक का िनवास पापत करता है। जीव वासतव मे मोक का मागर ही
नहीं जानता। इसी कारण से संसार में इस जीव की मुिक्त नहीं होती है।(217)
शशशशशशशशशश शशशशश शशशशश
शशशशशश शशशश शशशशशशशशशश।
शशशश शशशश शशशशशशश शशशशशश
शशशशशश शशशशशशश ।। शश शशशशशशशशशशश 218।।
तू संसार की माया और ममता की छोड़कर भगवान से अपना सम्बन्ध स्थािपत कर।
पराये (लोगो) से योग और पर्भु से िवयोग ही इस जगत में तेरे दुःख का कारण है। (218)
शशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशशश शशश शशशशशशशशशश।
शशशशशश शशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशश
शशशशशश शशशश ।। शशशश शशशशशशश 219।।
जब तक मनुषय का मन राग आिद से मुकत (और) िवषयों से िवरक्त नहीं होता तब तक इस
संसार से मनुष्य की मुिक्त नहीं हो सकती। जीव िवषयों के िलए वृथा ही पर्यत्न करता है।
(219)
शशशशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशश शशशशशशश । शशशशश शशशशशशश
शशशश श शशशशश शशशशशशशशशशश
श शशशशश शशशश ।। शशशशशशशशशशश 220।।
तुमने सौम्य गुणों से युक्त, मन को जानने वाली सुशील युवती पत्नी तो पर्ाप्त करली
िकन्तु तुम्हारा मन यिद भगवान के चरणकमलों में लगा तो तुम्हारे इस मनुष्य जीवन का कोई
लाभ नही है।(220)
शशशशशशशशश शशशश शशशशशशशशश
शशशशशश शशशश शशशशशशशश।
शशशशश शशशश शश शशश ! शशशश
शशशशशशशशशश शशशश ।। श शश शशशश शशशशशश 221।।
रे मूढ़ ! मनुष्य ! इस संसार में यह काम ही जीव के बन्धन का कारण है। परन्तु राम
इस संसार सागर से पार करने के िलए है। (इसिलए) तू काम को छोड़कर राम का भजन कर
(क्योंिक) जहा काम है वहा वासतव मे राम नही रहते।(221)
शशशशश शशशशश शशशशश श शशशश
शशशश शशशश शश । श शशशशश शशशशशश
शशशशशश शशशशशश श शशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशशशशश शशशश ।। शशशशशशश शशशशशश 222।।
यह जीव माया, ममता और मोह को छोड़कर जब तक परमात्मा के साथ राग नहीं करता
तब तक वह न तो मोक्ष पर्ाप्त कर सकता है और न ही इस भवबन्धन से मुिक्त। केवल पुनः
जनम को पापत करता है।(222)
शशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशश
शशशशश शशशश शशशशशशशश शशशशश शशशश।
शशशशश शशशशशशश शशशशशशशशशशश
शशशशशशशश शशशश।।शशशशशशश शशशशशशशश 223।।
यह मनुष्य लोग क्षणभंगुर है। कोई भी जीव यहाँ दीघर्काल तक नहीं रहता। यहाँ
संसार के जड़ चेतन सब पदाथर् नष्ट हो जाते हैं और समय पाकर पुनः पर्गट हो जाते
ह ै । (223)
शशशशशशशशशश शश शशशशशशशशशशशश
शशशशशशशश शशशशशश । श शशशशशशशशशश
शशशश शशशशश शशश शशशशशशशशशश
शशशशश शशशशश शश शशशश शशशशशशश।। 224।।
तेरे पर्याणकाल में ये पुतर्-पौतर्, धन आिद तेरे साथ नही जाते है। बेचारा जीव सचमुच सब
कुछ छोड़कर खाली हाथ ही देवलोक को पर्याण करता है।(224)
शशशशशशशशशशशशश शशशशश शशशश
शशशशशशशशशशशश शशशश शशशशशशशशश ।
शशश शश शशशशशश शश शशशशशशशश
शशशशश शशशशशश।।शशशशशश शशशशशशशश 225।।
पर्भु की कृपा से माया जीव को छोड़ देती है और माया से मुक्त जीव ही मोक्ष को
पर्ाप्त करता है। इसिलए तू िनत्य भगवान वासुदेव का भजन कर क्योंिक केवल हिर का नाम
ही जीव को मोक प द ा न करता ह ै । (225)
शशशशशशशशशश शशशशशशशशश
शशशशशशशशशश श शशशशशशशश।
शशशशशशशशशश शशशशशश शशशशश
'शशशशशशशशशश'शशशशश शशशशशशशशशशश ।। श 226।।
संत की कृपा संसार के ताप को हरने वाली है। वह कल्याणकारी है और परोपकारी
ह ै । इसिल ए तु म सं त की कृप ा को प ा प त करो। 'ऋिषपर्साद' ही सं त की कृ प ा ह ै । (226)
शशशशशश शश शशशश शशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशशशश।
शशशशश शशशश शशशशशश शशशशशशशशश
शशशशश शशशश श शशश शशशशशशश 227।। ।।
सवर्पर्थम अपने गुरुदेव की पूजा करनी चािहए क्योंिक सारे देवताओं से गुरु
अिधक महान् हैं। गुरु के िबना (मनुष्य का अज्ञानरूपी) अन्धकार नष्ट नहीं होता और मनुष्य
भवसाग र पार नही कर सकता।(227)
शशशशशशशशश शशशशशश शशशशशश शशशशशशशश
शश शशशशशशशश शशशश शशश शशशशश।
शशशशशशशशशश शशशशशश श शशश शशशशशशश
शशशशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशशश।।228।।
गुरुदेव के द्वारा पर्दत्त गुरुमंतर् को पर्ाप्त करके जो व्यिक्त शर्द्धा से उस मंतर्
का जप करता है, वह सदैव मनचाहा फल पर्ाप्त कर लेता है और उसके सब मनोरथ पूणर् जो
जाते है।(228)
शशशशशश शशशश शशश शशशशशशशशशशश
शशशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशशशशश।
शशशशश शशशशशशश शशशशशशशशशशशशश
शश शशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशश।।229।।
पर्भु के िबना संसार में मनुष्यों की गित नहीं होती। अतः हमेशा पर्भुपर्ीित करनी
चािहए। संसार में गुरु अनेक पर्कार के हैं िकन्तु (पर्भुपर्ीित जगाने के िलए) जो बहवेता
ह ै उनको ही सदगुर बनान ा चािह ए।(229)
शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश
शश शशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशश ।
शशशशशश शशशशशश शशशशशशशशश
शशशशशशशश शशशशशशश शशशशशश।।230।।
जो गुर राग-द्वेष आिद दोषों से एवं िवषयों से िवरक्त हैं, बर्ह्मिवद्या में िवशेष
दक्ष यानी कुशल हैं, जो तयागी, तपस्वी, संसार के ताप को दूर करने वाले और परोपकारी हैं
उनको ही गुरु बनाना चािहए।(230)
शशश शशशश शशशशशशशश शशशश
शशश शशशशशशश । शशश शशशशशशश
शशशशशशशशशशशश शशशश शशशशशश
शशश शशशशशश श शशशशश शशशशशश।।231।।
संतों का संग सदैव पर्ािणमातर् के िहत के िलए होता है परन्तु कुसंग सदा िवनाश
के िलये होता है। िवधाता चाहे नरक में िनवास दे दे िकन्तु दुजर्न आदमी का संग कभी न
देवे। (231)
शशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशश
शशशशशश शशशशशशशशश । शशशशशश शशशशशश
शशशशशशशश शश शशशशशशशशशश शश
शशशश शशशश शशशशशशशशशशशशश।।232।।
संत लोग कहते हैं िक संसार में सुख की अनुभूित िमथ्या पर्तीत होती है। िनश् चय
ही स त सं ग ित म े अथवा भगवा न नारा यण क े कीतर न म े सुख ह ै और श े ष सब वस तु ओं म े
संपूणर् दुःख है।(232)
शशशशशशशशश श शशशशश शशशश
शशशशशशश शशशशशश । शशशशशश शशशशशश
शशश शश शशशशशशश शशशशश श शशशश
शशशश शशशश शशशशशशश ।। शशशशशशशश 233।।
संसार की माया जीव को नहीं छोड़ती। काम भी मनुष्य का पर्बल शतर्ु है। इसीिलए
संसार में जीव की मुिक्त सुलभ नहीं है। संतों का संग ही एकमातर् मागर् है। (233)
शशशश शश शशशश शशशशशशशशशशश
शशशशश शशशशशशश । शश शशशशशशशशशश
शशशशशशशशशशशशशश शशशश शश शशशश
शशश शशशशशशशशशश शश शशशशशशश शशशश।। 234।।
संतों का संग भवबन्धन से मुिक्त िदलाने वाला है। वह संसार के शोक-मोह से
छुडाता है। संतो का संग (सत्संग) वास्तव में अमृत की धारा है, िकन्तु संसार में भाग्यवान
लोग ही इस सतसंगरपी अमृत का पान करते है।(234)
शशशशश शशशशशशशशशशश शशश शशशश
शशशशशशश शशशशशश । श शशशशशशशशशशशशश
शशशशश शशशश शशशशशश शशशशशश
शशशश श शश शशशशशश शशशशशशशश।।235।।
बापू जैसे योगवेत्ताओं में शर्ेष्ठ पुरष ु पृथ्वी पर रोज-रोज नहीं आते हैं।
(इसिलये रे मनुष्य !) तू समय रहते इस अवसर का लाभ उठा ले। अन्यथा, िफर से ऐसा मौका हाथ
नहीं लगेगा।(235)
शशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशश
शशशश शशशशशश शशशशशशशश।
शशश शशशश शशशशशशशशशशश शशश-
शशशशशश श शशशशशशशशश शशशशशश शशशश।। 236।।
िनश् चयही परमात्मा ने लोगों का उद्धार करने के िलए इन पुरुष को भेजा है। इस
पर्कार के धमर्धुरंधर पुरुष मनुष्य लोक में दीघर् काल तक नहीं रहते।(236)
शशशश शशशशश शश शशशश शशशशशश
शशशशश शशशश शशशश श शशश !
शशशशशशशशशशशशशशश शशशशशश शशशश
शशशशशशश शशश शशश शशशशशश शशशश।।237।।
गंगा तुम्हारे घर में स्वयं आ गई है तो भी रे मूखर् ! तू उससे लाभ नहीं उठाता ? तू
उनसे अपनी आत्मकृपा के िलए यत्न कर। चन्दर्मा के चले जाने पर राितर् शोभा नही
देती।(237)
अनुकर्म
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शशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशश शशशशशशशश।शशशशशशशशश शशशशशशशशश
शशशशश शशशशशश शशशशशशशशश शशशशशशशशशशश शशशशशशशश।
शशशशशशशशशश शशशशशशशशशश । शशशशशशशशशशश शशशशशशशश
शशशशश शशशशशश शशशशशशशशशश शशशशशशशशश शशशशशशशशशशश।।1।।
शशशशशशशशश शश शशशशशशशश शशशशशशशशशश शशशशशशश।
शशशशशशशशश शशशशश शशश शशशशशशशशशश शशशशशशश।
शशशश शश शश शशशशशशश शशशश शशशशशशश शशशशशशश।
।।
शशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशश 2।।
शशशशशश शशशशश शशशशशशशशश । शशशशशश शशशशशशश शशशशशशशश

शशशश शशशशशश शशशशशशशशश शशशशशशशश शशशशश शशश
शशशशशश शशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशशश शशशशशशश।
शशशशशश शशशशशश शश शशशशशश शशशशशशशशशशश शशश शशशश।।
3।।
शशशश शशशशशश शशशशशशश । शशश शशशशशश शशशशशशशशशश
शशशशशशश शशशशशशशशश शशश शशशशशश शशशशशशशशशशशश।
शशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशश शशशशशशशशश शशशशशश शश।
शशशशशशशशशश शशशशशशशश।।शशशशश शशशशश शशशशश शशशशशशश 4।।
शशशशशशशशशशशशश शशशश शशशश शश-शशश शशशशश शशशशश।
शशशशशशश शशशशशश शशशशशशशशशश । शशशशशशशशशशशशशशशशशश
शश शशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश-
शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशश शशशशशशशशशशश।।5।।
परम सुख देने वाले, शात, सम्पूणर् गुणों के िनिध, धयानिनष, शेष िवदा के आधार, पर्िसद्ध
कीितर्वाले, पृथ्वी पर धमर् की साक्षात् मूितर्, िवश् विवख्यात, समस्त पर्ािणयों के कल्पवृक्ष,
पूज्यपाद महान् संत शर्ी आसारामजी बापू की वन्दना करते हैं।(1)
जो धमर के पचार के िलए समपूणर िवश मे भमण करते है, सेवाभाव से सभी के दुःख एवं दैन्य को
सतत दूर करते हैं, िजनके चरण-शरण मे आने वाले मनुषय को सवरत सौखय पापत होता है, ऐ से पूज यपादसं तश ी
आसारामजी बापू सभी मनुषय के वनदनीय है।(2)
आज हम सभी नगर-गृहवासी आपके पिवतर् दर्शन पर्ाप्त कर धन्य हैं। जो कामना हृदय
में िचरलिसत थी, वह पूणर् हो गयी। िवमल मन से आपकी भिक्त के पिवतर् गीत सुन-सुनकर
तथा आपके गुण-समूह को पुनः पुनः स्मरण कर सभी भक्तजन आनन्दमग्न हैं।(3)
संसार में जब मानवों के पूवर् पुण्यों का उदय होता है, तभी भाग्यिसद्ध संतों का
दर्शन पर्ाप्त होता है। आज हमारा पूवर्पुण्य पर्किटत हुआ है यह सवर्था सत्य है। अतः
जान के पकाश, सदयहृदय अपने गुरु पूज्यपाद शर्ी आसारामजी बापू को हम नमन करते हैं।(4)
िनत्य, िदव्य, भ व य एवं नवीन भावपू णर उपद े श ो स े जो भारत रा ष ट को स म पू णर िव श
में कीितर्युक्त करते हुए शोभायमान हैं, ऐसे उन धािमरको मे अगमणय, जानगमय संत शी आसारामजी बापू
ह ै । हम उनको सतत नमन करत े ह ै । (5)
अनुकर्म
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