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शरणागतिका रहस्य

(गि ब्लॉगसे अगेका) सचचा शरणागि भक्त देखिा िो भगवान्के ऄपने गुणोंकी िरफ भी नहीं और गुणोंकी िरफ भी नहीं देखिा । वह भगवान्के उचे-उचे ँ ँ प्रेतमयोंकी िरफ भी नहीं देखिा कक उचे प्रेमी ऐसे-ऐसे ँ होिे हैं; ित्त्वको जाननेवाले जीवन्मुक्त ऐसे-ऐसे होिे हैं । प्रायः लोग ऐसी कसौटी लगािे हैं कक यह भगवान्का भजन करिा है िो बीमार कै से हो गया ? भगवान्का भक्त हो गया िो ईसको बुखार क्यों अ गया ? ईसपर दुःख क्यों अ गया ? ईसका बेटा क्यों मारा गया ? ईसका धन क्यों चला गया ? ईसका संसारमें ऄपयश क्यों हो गया ? ईसका तनरादर क्यों हो गया । अकद-अकद । ऐसी कसौटी कसना तबलकु ल फालिू बाि है, बड़े नीचे
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज

दजेकी बाि है । ऐसे लोगोंको क्या समझायें ! वे सत्संगके नजदीक ही नहीं अये, आसी वास्िे ईनको आस बािका पिा ही नहीं है कक भतक्त क्या होिी है ? शरणागति क्या होिी है ? वे आन बािोंको समझ ही नहीं सकिे, परन्िु आसका ऄर्थ यह भी नहीं है कक भगवान्का भक्त दररद्र होिा ही है, ईसका संसारमें ऄपमान होिा ही है, ईसकी तनन्दा होिी ही है । शरणागि भक्तको िो तनन्दा-प्रशंसा, रोग-नीरोगिा अकदसे कोइ मिलब ही नहीं होिा । आनकी िरफ वह देखिा ही नहीं । वह यही देखिा है कक मैं हँ और भगवान् हैं, बस । ऄब संसारमें क्या है, क्या नहीं है ? तिलोकीमें क्या है ? क्या नहीं है ? प्रभु ऐसे हैं, वे ईत्पति, तस्र्ति और प्रलय करनेवाले हैं—आन बािोंकी िरफ ईसकी दृति जािी ही नहीं । ककसीने एक संिसे पूछा—अप ककस भगवान्के भक्त हो ? जो ईत्पति, तस्र्ति, प्रलय करिे हैं, ईनके भक्त हो क्या ?’ िो ईस सन्िने ईिर कदया—‘हमारे भगवान्का िो ईत्पति, तस्र्ति, प्रलयके सार् कोइ सम्बन्ध है ही नहीं । यह िो हमारे प्रभुका एक ऐश्वयथ है । यह कोइ तवशेष बाि नहीं है ।’ शरणागि भक्तको ऐसा होना चातहये । ऐश्वयथ अकदकी िरफ ईसकी दृति ही नहीं होनी चातहये ।
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज

ऊतषके शमें गंगाजीके ककनारे टीबड़ी पर शामको सत्संग हो रहा र्ा । गरमी पड़ रही र्ी । ईधरसे गंगाजीकी ठण्डी हवाकी लहर अयी िो एक सज्जनने कहा—‘कै सी ठण्डी हवाकी लहर अ रही है ।’ पास बैठे दूसरे सज्जनने ईनसे कहा—‘हवाको देखनेके तलये िुम्हें वक्त कै से तमल गया ? यह ठण्डी हवा अयी, यह गरम हवा अयी—आस िरफ िुम्हारा खयाल कै से चला गया ?’ भगवान्के भजनमें लगे हो िो हवा ठण्डी अयी या गरम अयी, सुख अया या दुःख अया—आस िरफ जबिक खयाल है, िबिक भगवान्की िरफ खयाल कहाँ ? आसी तवषयमें हमने एक कहानी सुनी है । कहानी िो नीचे दजेकी है, पर ईसका तनष्कषथ बड़ा ऄचछा है ।
(शेष अगेके ब्लॉगमें) —‘शरणागति’ पुस्िकसे

स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज

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