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प्रथम प्रकरण

हे ईश ेाज्ञक नाज्ञ वाे !, प्राप्त वर ावता अहो ! न हेें ेक्तत और कनराग्य वाे , मेल ाव वृपया वहो ] १ [ न ें ु अष्टावक्र उवाचः प्रप्रय तात यदि तू ेेक्ष, तज प्रकषयों वो ,जनाे प्रकष तजें, ु ु ान्तोष, वरूणा ात, क्षेा, पीयष कत नज्ञत ] २ [ .नज्ञत तजेंू ज्ञ ही काय, जल, अक्ग्ज्ञ, धरा और ज्ञ ही तू आवाश हन, ु ेक्तत हे तु ााक्ष्य त, चनतन्य रूप प्रवाश हन ु ू ] ३ [ . यदि पथव वरव िे ह ताक वो, िे ही ेें आकाा हो े ृ तब तू अती ाख शाांनत, बन्धज्ञ ेतत तक, प्रकश्काा हो ] ४ [. ु ु कणण आश्रे वा ज्ञ आत्ेा, ाे वोई ाम्बन्ध हन, आवार हीज्ञ अाांग वकल, ााक्ष्य ताक प्रबांध हन ] ५ [ . े ाख िुःख धेण अधेण ेज्ञ व -, प्रकवार हैं तेरे ज्ञहीां, े ु ु वताण, वृतत्त्क वा और तताण ताक ती घेरे ज्ञहीां ] ६ [ . ाकणस्क दृष्टा एव तू , और ाकणिा उन्ेतत हन , ु यदि अन्य वो दृष्टा वहे, भ्रे, तू ही बन्धज्ञ यतत हन ] ७ [ . ु तू अहे ् रुपी ापण िां प्रषत, वह रहा वताण ेैं ही , प्रकश्काा रुपी अमेय पीवर वह रहा, वताण ज्ञहीां ] ८ [ . ेैं ाध, बद्ध, प्रबद्ध, चेतज्ञ, नाज्ञेय चनतन्य हूूँ, ु ु ु अनाज्ञ रुपी कज्ञ जला वर, नाज्ञ ाे ेैं धन्य हूूँ ] ९[ . ाब जगत वक्पपत अात, रज्जु ेैं ापण वा आताा हन इा बोध वा वारण कव तझेें, भ्रे वा ही काा हन ]११[. ु अष्टावक्र उवाचः जो ेतत ेाज्ञे ,ेतत स्क वो, बद्ध ेाज्ञे बद्ध हन , ु ु जनाी ेनत कनाी गनत, कवकांिांती ऐाी प्रमाद्ध हन ११---. पररपण,पणण हन, एव प्रकत, चनतन्य ााक्षी शाांत हन , ू ण ू ु यह आत्ेा नज्ञुःस्पह प्रकेल , ाांाारी लगती भ्राांत हन १२---. ृ यह िे ह ेज्ञ बप्रद्ध अहे ्, ेेवार , भ्रे, हन अनज्ञत्य हैं, ु वटस्थ बोध अद्कनत नज्ञश्चय , आत्ेा ही नज्ञत्य हन १३---. ू बहुवाल ाे तू िे ह व अमतेाज्ञ ेें आबद्ध हन, े वर नाज्ञ रूपी अरर ाे बेधज्ञ, नज्ञत्य तब नज्ञबणद्ध हन १४---. नज्ञक्ष्िय नज्ञरां जज्ञ स्क प्रवामशत , आत्े तत्क अाांग हन,

तू ही अज्ञष्ठाप्रपत ाेाधी, वर रहा तया प्रकाांग हन १५---. ु यह प्रकश्क तझेें ही व्याप्त हन , तझेें प्रपरोया ाा हुआ, ु ु तू कस्ततुः चनतन्य, ाब तझेें ाेाया ाा हुआ१६---. ु ु नज्ञरपेक्ष अप्रकवारी तू ही, चचर शाक्न्त ेक्तत वा ेल हन, ु ू चचन्ेात्र चचद्घज्ञ रूप त, चनतन्य शक्तत ाेल हन १७---. ू ू िे ह मेथ्या आत्े तत्क ही , नज्ञत्य नज्ञश्चल ात्य हन , उपिे श यह ही यथाथण, जग आकागेज्ञ, ाे ेतत हन १८---. ु ज्यों प्रकश्क ेें प्रनतबबम्ब अपज्ञे रूप वा ही काा हन, त्यों बाह्य अांतिे ह ेें , परब्रह्े वा आकाा हन १९---. ज्यों घट ेें अन्तुः बाह्य क्स्थत ाकणगत आवाश हन , त्यों नज्ञत नज्ञरां तर ब्रह्े वा ाब प्राणणयों ेें प्रवाश हन २१---.

द्ववतीय प्रकरण
बोधस्करूपी ेैं नज्ञरां जज्ञ , शाांत प्रवृनत ाे परे , ठचगत ेोह ाे वाल इतज्ञे , व्यथण ाांानत ेें वरे १----. ृ ज्यों िे ह िे ही ाे प्रवामशत, जगत ती ज्योनतत तथा, या तो जगत ाम्पणण या वछ ती ज्ञहीां ेेरा यथा २----. ू ु इा िे ह ेें ही प्रकिे ह जग ाे त्याग कनत आ गई ृ आश्चयण ३---- कव पथवत्क ताक ाे ब्रह्े दृक्ष्ट ता गई ! ृ ज्यों फज्ञ और तरां ग ेें , जल ाे ज्ञ वोई मतन्ज्ञता, े त्यों प्रकश्क ,आत्ेा ाे ाक्जत , तद्रप एव अमतन्ज्ञता ४---ू ृ ज्यों तांतओां ाे कस्त्र नज्ञमेणत, तन्तु ही तो ेल हैं. ु ू त्यों आत्ेा रूपी तांतओां ाे, ाक्जत प्रकश्क ाेल हैं५----. ु ू ृ ज्यों शवरा गन्ज्ञे व रा ाे ही प्रकनज्ञमेणत व्याप्त हन , ण े त्यों आत्ेा ेें ही प्रकश्क , प्रकश्क ेें आत्ेा ती व्याप्त हन ६----. ाांाार तामात हो रहा, बबज्ञ आत्ेा व नाज्ञ ाे, े ज्यों ापण तामात हो रहा हा,रज्जू व अनाज्ञ ाे७----. े ज्योनतेणयी ेेरा रूप ेैं, उााे पथव कवां चचत ज्ञहीां , ृ जग आत्ेा वी ज्योनत ाे ,ज्योनतत नज्ञमेष कांचचत ज्ञहीां ८---अनाज्ञ ाे ही जगत वक्पपत -, तााता ेझेें अहे, ु रज्जू ेें ,अदह ाीपी ेें चाांिी , रप्रक कवरण ेें जल रहे ९-----. ेाटी ेें घट जल ेें लहर , लय स्कणण तषज्ञ ेें रहे , ू कनाे जगत ेझाे ाक्जत , ेझेें प्रकलय वण वण अहे११----. ु ु ृ

ब्रह्ेा ाे ले पयंत तण, जग शेष हो तब ती ेेरा, ृ अक्स्तत्क, अक्षय , नज्ञत्य, प्रकस्ेय, ज्ञेज्ञ हो ेझवो ेेरा११---. ु ेैं िे हधारी हूूँ, तथाप्रप अद्कनत हूूँ, प्रकस्ेय अहे, आकागेज्ञ ाे हीज्ञ जग वो व्याप्त वर क्स्थत ेहे १२-----. ेझवो ज्ञेज्ञ आश्चयणेय .ेझाा ज्ञ वोई िक्ष हन ! ु ु स्पशण बबज्ञ ही िे ह धारू, जगत तया ाेवक्ष हन १३------. ूँ ेैं आत्ेा आश्चयण कत हूूँ , स्कयां वो ही ज्ञेज्ञ हन, या तो ाब या वछ ज्ञहीां, ज्ञ काणी हन ज्ञ कचज्ञ हन १४------. ु जहाूँ नेय, नाता,नाज्ञ तीज्ञों कास्तप्रकवता ेैं ज्ञहीां, अनाज्ञाे तामात हैं वकल -, आत्ेा ात्ये ेही१५------. े चनतन्य रा अद्कनत शद्ध,ेें ,आत्े तत्क ेदहे ेही, ु द्कनत िुःख वा ेल, मेथ्या जगत, औषचध ती ज्ञहीां१६-----. ु ू अनाज्ञाे हूूँ मतन्ज्ञ वक्पपत -, अन्यथा ेैं अमतन्ज्ञ हूूँ, ेैं नज्ञप्रकणवपप हूूँ, बोधरूप हूूँ, आत्ेा अप्रकनछन्ज्ञ हूूँ१७------. ेें बांध ेोक्ष प्रकहीज्ञ, कास्तक ेें जगत ेझेें ज्ञहीां, ु हुई भ्राांनत शाांत प्रकचार ाे, एवत्क ही परेां ेही१८-------. यह िे ह और ाारा जगत, वछ ती ज्ञहीां चनतन्य वी, ु एव ेात्र ात्ता वा पाारा, वपपज्ञा तया अन्य वी १९----ज्ञरव, स्कगण, शरीर, बन्धज्ञ, ेोक्ष तय हैं, वपपज्ञा, तया प्रयोजज्ञ आत्ेा वा, चनतन्य वा इज्ञाे बज्ञा२१----. हूूँ तथाप्रप जज्ञ ाेहे, द्कनत ताक ज्ञ चचत अहो, ू एवत्क और अरण्य कत, कवाे िारा अपज्ञा वहो२१----. ू ज्ञ ेैं िे ह ज्ञ ही िे ह ेेरी, जीक ती ेें हूूँ ज्ञहीां, ेात्र हूूँ चनतन्य, ेेरी क्जजीप्रकषा बन्धज्ञ ेही२२-----. ेैं ेहोिचध, चचत्त रूपी पकज्ञ ती ेझेें अहे , ु प्रकप्रकध जग रूपी तरां गें, मतन्ज्ञ ज्ञ ेझेें रहे २३----. ु ेैं ेहोिचध चचत्त रूपी, पकज्ञ ाे ेझेें ेही, ु प्रकप्रकध जगरूपी तरां गें, ताक बज्ञ वर बह रहीां २४----. ेैं ेहोिचध, जीक रूपी, बहु तरां चगत हो रहीां, नाज्ञ ाे ेैं हूूँ यथाकत, ज्ञ प्रकाांगनत हो रही२५-----.

ततीय प्रकरण ृ
अद्कनत आक्त्ेव अेर तत्क ाे, ाकणथा ते ् प्रकन हो, ु तयों प्रीनत, ाांग्रह प्रकत्त ेें , ऋत नाज्ञ ाे अज्ञमतन हो१---. ज्यों ाीप व अनाज्ञ ाे,चाांिी वा भ्रे और लोत हो, े त्यों आत्ेा व अनाज्ञ ाे,भ्रमेत ेनत, अनत क्षोत हो२----. े आत्ेा रूपी जलचध ेें, लहर ाा ाांाार हन, ेैं हूूँ कही, अथ प्रकदित, क़िर तयों िीज्ञ, हीज्ञ प्रकचार हैं------. अनत ान्िरे चनतन्य पाकज्ञ, जाज्ञवर ती आत्ेा, ु अन्यान्य प्रकषयाातत यदि,तू ेढ़ हन, जीकात्ेा४-------. ू आत्ेा वो ही प्राणणयों ेें,आत्ेा ेें प्राणणयों आश्चयण ेेताातत ेनज्ञ!, यह जाज्ञ वर ती नानज्ञयों५-----. ु क्स्थत परे अद्कनत ेें, तू शद्ध, बद्ध, ेेक्ष हन , ु ु ु ु आश्चयण हन यदि तू अती !, प्रकषयामतेख वाेेच्छ हन ६-----. ु ु वाे ररपु हन नाज्ञ वा, यह जाज्ञते ऋप्रष जज्ञ ाती, आश्चयण ७------.वाेाातत हो ावता हन ेरणाान्ज्ञ ती ! प्रकरत नज्ञत्यानज्ञत प्रककेचव, तोग हैं नज्ञरपेक्ष ेें, आश्चयण हन यद्यप्रप ेेक्षु !, तय तथाप्रप ेोक्ष ेें ८-----. ु ु नाज्ञी जज्ञ तो तोग पीडा , ताक ेें ाेताक हैं, हषण िोध वा आत्ेा ,पर वोई ती ज्ञ प्रताक हन ९----. िे ह ेें कनिेह ऋत अथों ेें ,हन नाज्ञी कही, हों ताक ाे नज्ञांिा प्राांशा , ेें वोई अन्तर ज्ञहीां ११------ . अनाज्ञ क्जावा शेष, ऐाा धीर इा ाांाार वो, ेात्र ेाया ेाज्ञ, तत्पर ेत्यु व ात्वार वो ११-----. े ृ इच्छा रदहत ेज्ञ ेोक्ष ेें ती, ेदह ेदहे ेदहेा ेहे , उा आत्े नाज्ञी ाे तप्त जज्ञ वी, ााम्यता कवााे अहे १२----. ृ धीर नाज्ञी जाज्ञता हन, जगत छल हन प्रपांच हन, ग्रहण त्याग ाे ेज्ञ परात्पर, ज्ञ रेे वहीां रां च हन १३-----. कााज्ञा व वषाय वपेष, क्जाज्ञे अांता ाे तजे, े नज्ञद्णकि िन प्रकव ाख या िुःख, पर शाक्न्त अांता ेें ाजे१४-----. ां ु ु

चतुथथ प्रकरण
आत्े नाज्ञी धीर जज्ञ व, वेण अनतशय गढ़ हैं, े ू जग मलप्त जज्ञ ाे ााम्यता, कवां चचत वरें के ेढ़ हैं १----. ू िे कता इन्द्रादि ती, इच्छव हैं क्जा पि वो ेही, ु क्स्थत उाी पि पर अहो२-----.योगी वो कवां चचत ेि ज्ञहीां ! नज्ञमलणप्त अांता पाप पण्य ाे-, आत्े नाज्ञी वा रहे , ु ज्यों गगज्ञ वा धूे ाे ,ाम्बन्ध कवां चचत ज्ञ रहे ३------. प्रकश्कात्ेा व रूप ेें, िे खा जगत क्जा ाांत ज्ञे, े उाे वोई इक्च्छत वायण ाे, ज्ञहीां रोव ावता अज्ञांत ेें ४------. ब्रह्ेा ाे पयंत चीांटी, चार जीक प्रवार हैं, बा प्रकन वो इच्छा अनज्ञच्छा, त्याग पर अचधवार हन ५-------. हन आत्ेा परेात्े ेय, वोई प्रकरला जाज्ञता, नाज्ञी ही नज्ञद्णकि वकल वर ाव जो ठाज्ञता ६--------. ां े े

पंचम प्रकरण
अष्टावक्र उवाचः ज्ञहीां ाांग हन तेरा कवाी ाे, शद्ध तू चनतन्य हन, ु त्याज्य, तज्ञ अमतेाज्ञ ताज िे , ेोक्ष पा तू अज्ञन्य हन १-----. तझाे नज्ञुःात ाांाार, जनाे जलचध ाे हो बलबला ु ु ु ृ आत्ेा व एवत्क बोध ाे, ेोक्ष शाक्न्त पथ खला२------. े ु दृश्य जग प्रत्यक्ष कवां तु , रज्जू ापण प्रतीत हन, चनतन्य पर तेरी आत्े तत्क ेें , ात्य दृढ़ प्रतीनत हन----.३ आशा नज्ञराशा-, िुःख ाख-, जीकज्ञ ेरण ाेताक हैं-, ु ु ब्रह्े दृक्ष्ट-, प्रन क्स्थत, पर ज्ञ इावा प्रताक हन ४------.

षष्टम प्रकरण
अष्टावक्र उवाचः घटकत जगत, प्रवृनत नज्ञुःात आवाश काट ेें अज्ञांत हन, ृ अतुः इाव ग्रहण त्याग और लय ेें ती नज्ञक्श्चांत हन १-------. े ेें ाेद्र ादृश्य हूूँ, यह जग तरां गों तपय हन, ु ु अतुः इाव ग्रहण, लय और त्याग वा तया ेपय हन २------. े ू ाीपकत ेैं हूूँ यथा जग ेें रजत ाे भ्राक्न्त हन ,

अतुः इावो ग्रहण लय ज्ञ त्याग, नाज्ञ ही, शाक्न्त हन ३------. ेें आत्ेा अद्कनत व्यापव , प्राणणयों वा ेल हूूँ, ू अतुः इाव ग्रहण लय और त्याग ेें नज्ञेपय हूूँ४------. े ूण

सप्तम प्रकरण
ेझ अज्ञांत ेहोिचध ेें, प्रकश्क रूपी ज्ञाक जो, ु ेज्ञ स्करूपी पकज्ञ प्रकचमलत, पर ज्ञ ेैं ाम्तक जो १------. ेझ अज्ञांत ेहोिचध ेें, जग वपलोल स्कताक जो, ु उिय, चाहे अस्त, अब ेैं कप्रद्ध क्षय, ाेताक जो२-----. ृ ेैं अज्ञांत ेहोिचध , जग वपपज्ञा नज्ञुःाार हन, अब शाांत, ेैं क्स्थत अकस्था, ेें ज्ञ वोई प्रकवार हन ३----. आाक्तत प्रकषयों व प्रनत, ेज्ञ िे ह वी ेेरी ज्ञहीां, े आत्ेन , ेतत हूूँ स्पहा ाे, प्रकषयों वी चेरी ज्ञहीां४------. ु ृ आश्चयण ेैं चनतन्य और यह प्रकश्क ेात्र प्रपांच हन !, अतुः जग वी लात हानज्ञ ेैं, रूचच ज्ञहीां रां च हन ५-----.

अष्टम प्रकरण
वछ त्यागता वछ ग्रहण वरता, ेज्ञ िणखत हप्रषणत वती, ु ु ु यही ताक ेज्ञ व प्रकवार , बांधज्ञ यतत हैं, बांचधत ाती१--------. े ु ज्ञ ही ग्रहण, ज्ञ ही त्याग , िुःख ाे परे ेज्ञ ेोक्ष हन, ु एव रा ेज्ञ वी अकस्था, ाकणिा नज्ञरपेक्ष हन २-----. ेज्ञ मलप्त होता जब वहीां, तो बांध बांधज्ञ हे तु हन, नज्ञमलणप्त होता जब कही ेज्ञ , ेोक्ष वा ेज्ञ ाेतु हन ३-----. ताक ही बांधज्ञ ेहत "ेैं", " ेैं वा हज्ञज्ञ ही ेोक्ष हन ", त्याग और ग्रहण ाे हो परे ेज्ञ, तब ेज्ञज्ञ नज्ञरपेक्ष हन ४----------.

नवम प्रकरण
अष्टावक्र उवाचः वेण वृत और अवृत िुःख ाख -, शाांत वब कवाव हुए े ु ु त्यतत कनत, अव्रती चचत्त, नज्ञरपेक्ष हैं क्जज्ञव दहये१-----. े ृ उत्पक्त्त और प्रकज्ञाश धेाण तात प्रकश्क नज्ञताांत हन !, जगत व प्रनत क्जजीप्रकषा, ज्ञहीां ाांत वी ती शाांत हन २-----. े

त्रनताप िप्रषत, हे य, नज्ञक्न्ित , जगत वकल भ्राक्न्त हन, े ू त्यतत हन , नज्ञुःाार जग वो, त्यागज्ञे ेें शाक्न्त हन ३-----. कह अकस्था वाल वौज्ञ ाी, जब ेज्ञज नज्ञद्णकि हो, ां ु ालत ाे ाांतष्ट, माप्रद्ध पथ चले , स्कच्छां ि हो४------. ु ु बहु ेत ेतान्तर योचगयों वी, ेनत भ्रमेत वरते यथा, अध्यात्े और कनराचगयों वी, शाक्न्त तांग वरें तथा५-----. प्रारब्ध व अज्ञाार तेरी, िे ह गनत व्यकहार हन, े ु तू कााज्ञाएां ावल तज िे , कााज्ञा ाांाार हन ६------. जब इक्न्द्रयों ही इक्न्द्रयों ेें, िे ह कते िे ह ेें, तत्वाल बांधज्ञ ेतत प्राणी, आत्ेा नज्ञज गह ेें ७-----. ु हे य तात तज िे कााज्ञाएां !, कााज्ञा ाांाार हन, वृत वेण अब जो ती वरे , प्रारब्ध वा ही प्रवार हन ८-----.

दशम प्रकरण
ाब अज्ञथों वा ेल वारण, अथण हन और वाे हन, ू इज्ञवी उपेक्षा ेल धेण हन, वेण ेें नज्ञष्वाे हन १------. ू धज्ञ, मेत्र, क्षेत्र , नज्ञवत, स्त्री, बांधु स्कप्ज्ञ ाेाज्ञ हैं, े इन्द्र जाल ाेाज्ञ, पाूँच या तीज्ञ दिज्ञ व प्रकधाज्ञ हैं२-----. े क्जा कस्तु ेें इच्छा बाे , ाेझो कहाां ाांाार हन, कनराग्य ताक प्रधाज्ञ चचत्त ाे,जाज्ञ ाब नज्ञुःाार हन ३------. ाांाार तष्णा रूप हन,तष्णा जहों ाांाार हन , ृ ृ कनराग्य आश्रय हो ेज्ञा, तष्णा रदहत ाख ाार हन ४-----. ु ृ यह अप्रकद्या ती अात और अात जड़ ाांाार हन, चनतन्य रूप प्रकशद्ध, तझवो तो जगत नज्ञुःाार हन ५-----. ु ु िे ह, ज्ञारी, राज्य, ात आातत जज्ञ व ाख ाती, े ु ु हर जज्ञे ेें ेरण धेाण, ज्ञष्ट ये होंगे ाती६-----. धेण, अथण, और वाे दहत, बहु वेण तो कवतज्ञे कवए, जगत रुपी कज्ञ ेें तो ती, शाक्न्त दहत तटव दहये७-----. े िे ह, ेज्ञ, काणी ाे श्रे, िुःख पणण बहु तज्ञे कवए, ु ू ू उपराे वर अब तो तनज्ञव, प्रकश्राांनत चचत दहय ेें कवए८-----.

एकादश प्रकरण
अष्टावक्र उवाचः ताकों प्रकताकों व स्कताकों ाे नज्ञुःात जो प्रकवार हैं े ृ क्जाे नात, तलेश प्रकहीज्ञ ाखेय, शाक्न्त रा ाांचार हन १-----.. ु ाकण दृष्टा ईश नज्ञश्चय, िारा वोई ज्ञहीां, ू क्जाे नात कह अनत शाांत, उावी वाेज्ञा वोई ज्ञहीां२------. ाांपक्त्त और आपक्त्त नज्ञश्चय, िन क योग प्रकधाज्ञ हैं, ाांतष्ट काांछा शोवहीज्ञ हैं, क्जज्ञवो इावा नाज्ञ३-------. ु जीकज्ञ ेरण ाख और िुःख िन कीय हैं जो जाज्ञता, ु ु ताक वताण शन्य होवर, वेण प्रकचध पहचाज्ञता४-------. ू चचांता ाे िुःख हन अन्यथा वछ ती ज्ञहीां जो जाज्ञते, ु ु अन्तुः ाेादहत शाांत के ाब ईश इच्छा ेाज्ञते५------. ज्ञ ेैं िे ह, ज्ञ ही िे ह ेेरी, नज्ञत्य बोध स्करुप हूूँ, वृत ६-----.अवृत वा प्रकस्ेरण और ेैं प्रकिे ह अरूप हूूँ ब्रह्े ाे पयंत तण, बा एव ेैं ही हूूँ यथा, ृ नज्ञप्रकणवपपी शाांत, अन हन लात हानज्ञ वी प्रथा७-----. आश्चेणय यद्यप्रप जगत, मेथ्या तथाप्रप क्षणणव हन, बोधस्करूपी ेेण नाता, शाांत मलप्त ज्ञ तनज्ञव हन ८------.

द्वादश प्रकरण
जनक उवाचः िे ह काचचव ेाज्ञमाव, वेों वो वर स्कच्छां ि हूूँ, चनतन्य आत्ेाज्ञांि क्स्थत, पणण परेाज्ञांि हूूँ१-------. ू शब्िादि इक्न्द्रयों व प्रनत, अब प्रीनत ताक अताक हन े अब प्रकक्षेपों वा ज्ञ आत्ेा पर ती वोई प्रताक हन,----२ ेैं आत्े रूप हूूँ, अतुः इज्ञ नज्ञयेों व ज्ञ कयकहार हैं३-----. े ग्राह्य त्याज्य प्रकयोग नज्ञुःात-, िर हषण प्रकषाि ाे, ू ृ अब हूूँ यथाकत आत्े क्स्थत, ब्रह्े नाज्ञ प्रााि ाे ४----आश्रे , अज्ञाश्रे, ध्याज्ञ कजणज्ञ, आदि ाे उन्ेतत हूूँ, ु इज्ञाे परात्पर आत्े क्स्थत , आत्ेा उन्ेतत हूूँ५-----. ु त्याग और ाांवपप ेज्ञ व, ेल ेें अनाज्ञ हैं , े ू ज्ञ ेज्ञ ेेरा अब वेण वताण और ज्ञ उपराे हन ६------.

ब्रह्े चचांतज्ञ ती हन बांधज्ञ, उााे ती उन्ेतत हूूँ, ु आत्ेा ेें ही हूूँ प्रनतक्ष्ठत, आत्ेा ाे ाांयतत हूूँ७------. ु यदि आत्ेकत ही स्कताक स्कतुः, कह तो वृत वृत धज्ञ -््य हन , नाज्ञी हैं के ती, स्कये पायें, या कव ााधज्ञ जन्य हन ८------.

त्रयोदश प्रकरण
जनक उवाचः वौपीज्ञ धारण पर ती िलत, जो अकस्था चचत्त वी, ु ण कह वछ ज्ञहीां व ताक ाे, अज्ञतनत होती नज्ञत्य वी१-----. े ु ू ु िे ह वा िुःख हन वहीां तो काणी ेज्ञ वा िुःख वहीां, ु ु त्याग वर अतएक तीज्ञों आत्ेाख पाया यहीां२------. ु िे हादि ाे वृत वेण उज्ञाे तो आत्ेा नज्ञमलणप्त हन, वृत वेण जो ती आ पड़ा, वरव उाे ाख, तप्त हन ३-----. े ु ृ वेण और नज्ञष्वेण बांधज्ञ यतत ताक व लोग ाे, े ु ेैं ाकणथा ही अाांग, प्रेदित िे ह योग प्रकयोग ाे ४-----ु नज्ञरपेक्ष, नज्ञुःस्पह हूूँ यथा, गनतस्कप्ज्ञ, अथण अज्ञथण ाे, ृ अथ जागता ाोता तथाप्रप ेदित, नज्ञुःस्पह ाे५------. ु ृ ाख अनज्ञत्य हन, ेेण बहु जन्ेों ेें जाज्ञा इामलए, ु अशत ६----- शत ाब त्याग नज्ञुःस्पह ताक हूूँ प्रेदित दहये ु ु ु ृ

चतुदथश प्रकरण
जनक उवाचः प्रकषय ाेकी प्रताक ाे और शन्य चचत्त स्कताक ाे ू ाप्त हैं,जाग्रत तथाप्रप, प्रकरत प्रकश्क प्रताक ाे१-----. ु पज्ञाणत्ेिशी अब ेेरी प्रकषयाज्ञरक्तत शन्य हन, ू ु ू नाज्ञ धज्ञ और शास्त्र मेत्रों ेें ती रूचच अनत न्यज्ञ हन २------. ू अयआत्ेा ही ब्रह्े हन और ब्रह्े ही ाकणन हन , ेझे ेोक्ष वी चचांता ज्ञहीां, ाकणग्य जब ाे प्रकन हन ३------. ु ाांवपप शन्य प्रकवपप ाे ेज्ञ, बाह्य पर उन्ेत्त हन, ू यह िशा जाज्ञे कही, जो स्कये नाज्ञ प्रकत्त हन ४--------.

पंचदश प्रकरण
अष्टावक्र उवाचः ातबप्रद्ध जज्ञ उपिे श कवां चचत, ेात्र ाे ही माद्ध हों, ु पर जज्ञ अात क्जनााु ज्ञ, पयंत आयु प्रबद्ध हों१-----. ु राग प्रकषयों ाे ही बांधज्ञ और प्रकरक्तत ेोक्ष हन , नाज्ञ वा हन ाार इतज्ञा, शेष ाब ाापेक्ष हन २-------. तत्त्कबोध हन त्यतत क्जज्ञवो, तोग प्रप्रय हन प्रकलााता, तत्कन वो जड़ आलाी, वरे ेव वी काचालता३------. ू ज्ञ तू िे ह, ज्ञ ही िे ह तेरी, वताण तू तोतता ज्ञहीां, चनतन्य तू नज्ञरपेक्ष ााक्षी, नज्ञत्य प्रकचरे हर वहीां४-----. ते नज्ञप्रकणवारी, नज्ञप्रकणवपपी, बोधरूपी अनत ेहे, ु राग द्केष प्रकवार ेज्ञ व, ज्ञ आत्ेा कवां चचत गहे ५-----. े ाब प्राणणयों ेें आत्ेा और ाब प्राणणयों वो आत्ेा ेें जाज्ञ तज ेेता अहे, ाकणत्र हन ब्रह्ेात्ेा ६------स्फररत अांता ेें तेरे, जगत होता लहर ाा, ु पर आत्ेा चनतन्य तू तो, ािा रहता एव ाा७------. हे तात ते श्रद्धा वरो !, ज्ञहीां ेोह ाे वोई तरे , ु तू आत्ेा परेात्ेा ेय, तू तो प्रवृनत ाे ती परे ८-----. यह िे ह बहु गण मलप्त और आकागेज्ञ ाे यतत हन, ु ु ेत ाोच तू तो आत्ेा, आकागेज्ञ ाे ेतत हन ९-----. ु िे ह चाहे जाए तत्क्षण या कव वपप व अांत ेें, े ज्ञहीां कप्रद्ध क्षय चनतन्य तत्क वी, ेल उावा अज्ञांत ेें ११-----. ू ृ अष्टावक्र उवाचः तू ेहोिचध, प्रकश्क रूप तरां ग कनत आप्त हन, ृ पर जगत वी कप्रद्ध क्षय ाे आत्ेा ज्ञहीां व्याप्त हन ११-----. ृ हे तात ते चनतन्य !, तेाे मतन्ज्ञ जग कवां चचत ज्ञहीां, ु ु तया त्याज्य और तया ग्राह्य, इावी वपपज्ञा ाेचचत ज्ञहीां१२-----. ु तू एव नज्ञेणल अव्ययां चनतन्य रूप आवाश ेें, वहाूँ जन्े, वेण, अहे वहाूँ, तू आत्े कत स्क प्रवाश ेें१३------. तया वगज्ञा, तया घघरू, ाब स्कणण व ही प्रवार हैं, ां े ूँू तू आत्ेा उाेें ती तेरे मतन्ज्ञ १४-------.मतन्ज्ञ आवार हैंयह ेैं हूूँ और ेैं यह ज्ञहीां, ाब भ्रमेत ेज्ञ व प्रकवपप हैं, े

ाब आत्ेा हैं अमतन्ज्ञ इज्ञेें , मतन्ज्ञता ज्ञहीां अपप हन १५----. परेाथणतुः तू एव, तझाे अन्य वोई ज्ञ नाज्ञ हन, ु ाांाार, ाांाारी, अाांाारी भ्रमेत अनाज्ञ हन १६------. ाांाार भ्रे और वछ ज्ञहीां, क्जाे नात कह चनतन्य हन, ु बहु कााज्ञाओां ाे रदहत, कह शाांत व्यक्तत अज्ञन्य हन १७-----. तक उिचध ेें तू ही था, और हन रहे गा एव त, ू ेोक्ष बांधज्ञ हीज्ञ, ाख उन्ेतत प्रकचरे गा एव त१८------. ु ु ू ाांवपप और प्रकवपप ाे, चनतन्य अब तू चचत्त वो, क्षोमतत ज्ञ वर, आज्ञांि ेज्ञ, ाख रूप ेें पा नज्ञत्य वो १९-----ु चनतन्य ात्ता ेतत रूप हो, आत्ेा एवेेक ही, ु क़िर ध्याज्ञ चचांतज्ञ ेज्ञज्ञ कवावा, आत्े तू स्कयेेक ही२१-------.

शोडष प्रकरण
अष्टावक्र उवाचः बहु ताांनत बहु शास्त्रीय अध्ययज्ञ , और वथज्ञ वरते रहे , पर प्रकस्ेरण इज्ञवा कवए बबज्ञ, शाक्न्त ज्ञ वनतपय अहे १-----. तेरा वेण, तोग ाेाचध ेें, यदि चचत्त ती उन्ेख रहे, ु यदि ेल ेें नज्ञष्वाे, प्रकन व ब्रह्े तो ान्ेख अहे २-------. े ू ु हैं तलाांत श्रे ाे जीक ाब, इावो ज्ञहीां वोई जाज्ञता, यह नाज्ञ गम्य, हैं धन्य जो इा ेेण वो पहचाज्ञता३------. चक्षुओां व खोलज्ञे और बांि ाे ती जो िुःखी, े ु उा मशरोेणण आलाी वो वौज्ञ वर ावता ाखी------.४ ु वृत और अवृत व द्कांि ाे, ेज्ञ ेतत हो तब ेक्तत हन , े ु ु धज्ञ, अथण, ेोक्ष और वाे इच्छा, शन्यता ही यक्तत हन ५-----. ू ु प्रकषय वा द्केषी प्रकरत हन, प्रकषयलोलप मलप्त हन, ु त्याग और ग्रहण ाे जो परे , जज्ञ ाकणथा नज्ञमलणप्त हैं६------. जब तव हन तष्णा अप्रककेवी, ताक रहता ाेल हन, ू ृ त्याग और ग्रहण वी ताकज्ञा ाांाार कक्ष वा ेल हन ७------. ू ृ राग ेें प्रकनत, नज्ञकनत ेें द्केष, ताक वा िोष हन, ृ ृ धी, ेाज्ञ, जज्ञ, नज्ञद्णकि, ाे बालव व्यकहृत नज्ञिोष हन ८------. ां िुःख नज्ञकनत व मलए, जग त्याग रागी वी चाह हन , े ु ृ पर कीतरागी जग ेें ती, ाख शाक्न्त पाता अथाह हन ९------. ु

अमतेाज्ञ क्जावो ेोक्ष वा, और िे ह ेेता ातत हन , नाज्ञी और योगी ज्ञहीां, बा िुःख तोगी अशतत हन ११--------. ु यदि ब्रह्ेा, प्रकष्णु मशक तेरे, उपिे श वताण ती रहें , तो ती बबज्ञा प्रकस्ेनत व, बबज्ञ त्याग ज्ञ शाक्न्त अहे ११------. े ृ

सप्तदश प्रकरण
अष्टावक्र उवाचः जो नज्ञत्य तप्त पप्रकत्र,इक्न्द्रय यतत एवावी रेें, ु ृ के, नाज्ञ योगायतत, फल और ेक्तत ज्ञ उज्ञवी थेे१----. ु ु तत्क नाज्ञी वो इा जगत व िुःख विाप्रप ज्ञ तााते. े ु के तो स्कये त, ब्रह्े तत्क व ेल रूप उपााते२-------. े ू ू ज्यों ापलवी पपलक वो चख, गज ज्ञीे पपलक ज्ञ चखे, त्यों आत्े रेणी, आत्े ाख ाे वोई ती ाख ज्ञ रखे३-----. ु ु तोगे हुए तोगों ेें जो कवां चचत ज्ञहीां आातत हन, िलत जगत ेें व्यक्तत जो, अततत ाे ती प्रकरतत हन ४-------.. ु ण ु तोग ेोक्ष वी चाहज्ञाेय-, जज्ञ जगत ेें ारल हैं, पर तोग ेोक्ष वी चाहज्ञा , ाे ज्ञर परे अनत प्रकरल हन ५-----. जीकज्ञ, ेरण, धज्ञ, धेण, ेोक्ष क ् वाे ेें नज्ञरपेक्ष हो, त्याग और ग्रहण ेें आत्ेनाज्ञी ज्ञ वती ाापेक्ष हों६------. ाांाार लय अथका रहे, इाव प्रनत ज्ञ प्रकद्केष हन, े काांछारदहत, ाांतष्ट, धन्य के ब्रह्े ताक प्रकशेष हन ७------. ु ाघता, स्पशण, ाज्ञता, िे खता, खाता हुआ, ांू ु चेतज्ञा चनतन्य वी नाज्ञी वी ाब वरता हुआ८-------. ाांाार ाागर क्षीण क्जावा, दृक्ष्ट ती अब न्यज्ञ हन , ू व्यथण चेष्टा इक्न्द्रयाां तष्णा प्रकरक्तत शन्य हन ९-------. ू ृ जागता, ाोता, पलव ज्ञ बांि वरता खोलता, उत्वृष्ट प्राणी क़िर अहो११------आज्ञि दिव्य ेें डोलता ! अष्टावक्र उवाचः ेतत जज्ञ ाकणत्र शाांत, पप्रकत्र ेज्ञ वा हन अहे, ु ाब कााज्ञाओां ाे रदहत,ाकणत्र शोमतत अनत ेहे ११--. िे खता, स्पशण, ाज्ञता, ाघता, खाता हुआ, ु ूां आत्े नाज्ञी अमलप्त द्कांि प्रकेतत, ाब वरता हुआ१२----. ु

स्तनत नज्ञांिा ज्ञहीां,िोचधत और हप्रषणत ती ज्ञहीां ु ेज्ञ चचत्त ज्ञीरा ेतत जज्ञ वा, लेता िे ता ती ज्ञहीां१३----. ु ज्ञ ही प्रप्रनतेय ज्ञारी वो अथका ेत्यु िे ख ाेीप ेें, ृ अप्रकचल ेज्ञा ेज्ञ चचत्त क्स्थत, ब्रह्े रूप अरूप ेें १४----. ाख िुःख ेें, ज्ञर ज्ञारी ेें , ाांपक्त्त और प्रकपक्त्त ेें, ु ु ाकणत्र ाे दृष्टा हन नाज्ञी, ाक्ष्ट ेें या व्यक्तत ेें १५-------. ृ आत्े नाज्ञी वो प्रयोजज्ञ प्रकश्क ाे कवां चचत ज्ञहीां, ज्ञ क्षोत, वरुणा, िीज्ञता, आश्चयणेय चचांनतत ज्ञहीां१६----. नज्ञमलणप्त, ज्ञ प्रकषया प्रकद्केषी, ज्ञ प्रकषय स्पांदित रहे, प्राप्त और अप्राप्त ेें, ेज्ञ प्रकरत आज्ञांदित रहे १७----. दहत अदहत, वारण अवारण वा ज्ञहीां िौबणपय हन, जो ेतत जज्ञ नज्ञद्णकि ेज्ञ,चचत्त शन्य, अथ वकपय हन १----.८ ां न ु ू अांतगणमलत आशाएां , दृढ़ ेज्ञ अहे ेेता वछ ज्ञहीां, ु वरे वेण पर नज्ञमलणप्त ेज्ञ, यदि दृक्ष्ट क्षेता, तच्छ ेही१९---. ु ाांवपप और प्रकवपप, अांतेणज्ञ वी कक्त्त शाांत हन, ृ स्कप्ज्ञ और जड़ता ाे कक्जणत, चचत्त ाौम्य नज्ञताांत हन २१------.

अष्टादश प्रकरण
अष्टावक्र उवाचः ब्रह्े बोध व उिय पर,ाब भ्राक्न्त स्कप्ज्ञ ाी शेष हो, े उा तेजोेय आज्ञि ब्रह्े वो ज्ञेज्ञ ेेरा प्रकशेष हो१------. बहु ाांपिा वो जोड़ वरव, तोग ेाज्ञक तोगता, े पर त्याग कनत व बबज्ञा, ज्ञहीां ात्य ाख वी योग्यता२----. े ु ृ वेणजन्य प्रकषाि रूपी, रप्रक ाे अांतेणज्ञ जला, शाक्न्त रूपी अमेय धारा, व बबज्ञा तया ाख तला३-----. े ु परेाथण ेें आत्ेा ही ात्य हन , जगत भ्राक्न्त ताक हन, ताकाताक प्रकताक ेें स्कताकों वा ही अताक हन ४------. यह ात्य पड़ ज्ञ तो िर ज्ञ ाांवोच ाे हीप्राप्त हन, ू नज्ञप्रकणवपपी, नज्ञप्रकणवारी, िोषहीज्ञ हन आप्त हन ५-------. उपराांत ेोह नज्ञकनत पर ही, नज्ञज स्करुप वा ताज्ञ हो, ृ कीतरागी, पारिशी जज्ञ वी शोता, ेाज्ञ हो६-----. ेतत और ाज्ञातज्ञ आत्ेा, हन जगत वकल वपपज्ञा, े ु यह जाज्ञ बालव वी तरह अनाज्ञ७... हन तयो अज्ञेज्ञा -

यह आत्ेा ही ब्रह्े ताक, अताक हन पररवपपज्ञा, यह जाज्ञ जज्ञ नज्ञष्वाे वी, तया वेण वी ाांवपपज्ञा ८-----. यह ेैं हूूँ और ेैं यह ज्ञहीां वी, वपपज्ञाएूँ प्रकिीणण हों, आत्ेा हैं एवत्क बोध ाे, तत्क नाज्ञ प्रवीणण हो९---शत शाांत योगी व मलए, प्रकक्षेप हन ज्ञ एवाग्रता, े ु ाख िुःख बोध ज्ञ ेढ़ता हन , और ज्ञ ही व्यग्रता ११---ु ु ू नज्ञप्रकणवपपी आत्ेयोगी, ज्ञ राग ज्ञ अपज्ञत्क हन , लात, हानज्ञ, राज्य , मतक्षा, कनत कज्ञ ेें ाेत्क हन ११---. ृ वहाूँ धेण, वाे, प्रककेव अथण हैं, ेतत योगी व मलए, े ु वेण और अवेण व द्कांि ाे, ेतत हैं क्जज्ञव दहये१२-----. े े ु वतणव्य वेण नज्ञुःशेष, जीकज्ञ ेतत जो योगी ेहा, ु नज्ञुःस्पह , प्रकयोगी, राग बबज्ञ, नज्ञुःस्काथण वृत वरता यहाूँ १३------. ृ प्रकश्राांत योगी व मलए, वत ेोह वत ाांाार हन, े ाांवपप, ेक्तत, ध्याज्ञ ाब, नज्ञुःशेष जग नज्ञुःाार हन १४------. ु जगत दृष्टा ही वहे गा कव जगत नज्ञुःाार हन, आत्े दृष्टा िे ख वर ती िे खता बा ाार हन १५-------. िे खा हन ेैंज्ञे ब्रह्े, यह तो द्कनत ताक वी व्यांजज्ञा , ेैं स्कयां ही 'ब्रह्े' ात्य अद्कनत वी अमतव्यांजज्ञा१६----ाकोच्च क्स्थनत आत्े नाज्ञ ेें , आत्ेा ही शेष हन, प्रकक्षेप ेज्ञ चचत िे ह और ाांाार व नज्ञुःशेष हन १७------. े आत्े नाज्ञी जग ेें रहवर , ेाज्ञता ज्ञहीां गेह हन , प्रकक्षेप और बांधज्ञ ज्ञहीां, और िे ह ेें ती प्रकिे ह हन १८-----. वोई अहे ज्ञहीां वाेज्ञा, वरे वेण पर नज्ञमलणप्त हन, ताक और अताक प्रकहीज्ञ, उावा ेज्ञ ािा ही तप्त हन १९-----. ृ प्रकनत नज्ञकनत ेें िराग्रह, धीर जज्ञ रखते ज्ञहीां, ु ृ ृ जो वेण ती वरज्ञा पड़ा, ाख ाे वरें हटते ज्ञहीां२१-----. ु अष्टावक्र उवाचः कााज्ञा, आलम्ब, बन्धज्ञहीज्ञ नाज्ञ, ाे यतत हन, ु प्रारब्ध रूपी पकज्ञ प्रेररत, शष्व पणण कत ेतत हन २१----. ु ु ज्ञ ही हषण, ज्ञ ही प्रकषाि, नाज्ञी वो वती होता ज्ञहीां ेज्ञ शाांत नज्ञत्य प्रकिे ह, पाता और वछ खोता ज्ञहीां२२----. ु आत्े रेणी प्रकेल ेज्ञ, आज्ञांि ेल नज्ञकाा हो, ू अनतशय परे हो ग्रहण त्याग ाे, ब्रह्े ेें प्रकश्काा हो२३----.

शन्य चचत्त स्कताक नाज्ञी, ेाज्ञ ज्ञ अपेाज्ञ हन , ू ाहज रूप ाे वेण और नज्ञष्वाे ताक प्रधाज्ञ हन २४-----. हन वेण वरता िे ह ेज्ञ, यह आत्ेा कवां चचत ज्ञहीां, जो वेणरत इा ताकज्ञा ाे, प्रकरत, रत अज्ञचचत ज्ञहीां२५----. ु हैं ेढ़ता ेय वेण अनाज्ञी व, नाज्ञी व ज्ञहीां, े े ू अहे ेय हैं ेढ़ , नाज्ञी कवां तु अमतेाज्ञी ज्ञहीां२६------. ू द्कनत ताक प्रकेतत नाज्ञी वो परे प्रकश्राांनत हन, ु जाज्ञता, ाज्ञता ज्ञ िे ख, वपपज्ञा ज्ञ भ्राक्न्त हन २७-------. े ु प्रकक्षेप ज्ञ वोई द्कनत , नाज्ञी इामलए ज्ञ प्रकेतत हन, ु ब्रह्े कत क्स्थत उाे ाांाार वक्पपत तच्छ हन २८-------. ु अन्तुः अहे क्जाव, बबज्ञा ही वेण रत ाांवपप ाे, े नाज्ञी अहे ाे शन्य रत, पर प्रकरत वेण प्रकवपप ाे२९---. ू ेततजज्ञ वतणव्य , आशा द्कांि और उद्प्रकग्ज्ञता ु ाे प्रकरत, होवर परे , पर ब्रह्े ाे ाांलग्ज्ञता३१-----. अष्टावक्र उवाचः ेततजज्ञ वा चचत्त, चेष्टा ेें प्रकत होता ज्ञहीां, ु ृ हे तु बबज्ञ ही ध्याज्ञ क्स्थत, वेण ज्ञाज्ञा बहु ेही३१----. ेढ़ेनत ाज्ञ तत्क वो , ेढ़ता ही पा ाव, े ू ु ू कवां तु नाज्ञी, ेढ़कत आताा, गढ़ ेें जा ाव३२----. े ू ू ेढ़ अनत अभ्याा पाते , चचत वी एवाग्रता , ू कवां तु नाज्ञी वी स्कप्ज्ञकत ही, स्कप्ज्ञ क्स्थत प्रनता३३-----. बहु वेों ाे ती परे ाख, अन वो ज्ञहीां लब्ध हन , ु नाज्ञी परूष वो तत्क ाे, कही परे ाख उपलब्ध हन ३४-----. ु ु ाांाार ेें अभ्याा ाे बज्ञते ज्ञहीां माद्धात्ेा, प्रप्रय पणण बद्ध प्रपांच िुःख ाे हीज्ञ, शद्ध हन आत्ेा३५-------. ू ु ु ु अभ्याा रूपी वेण ाे , ज्ञहीां ेोक्ष मेलता ेढ़ वो, ू वेण ताक प्रकहीज्ञ नाज्ञी, धन्य पाता गढ़ वो३६-----. ू अनाज्ञकश नज्ञज रूप वो -, तला हुआ हन, भ्रमेत हन, ू पर जीक ब्रह्े हन जाज्ञते ही, ब्रह्े ेय ाख अमेत हन ३७----. ु आधार हीज्ञ िराग्रही ेय , जग वा पोषव अन हन, ु ेल छे िज्ञ इा जगत वा, वर ाव जो प्रकन हन ३८----. े ू िशणज्ञ वहाूँ उाे आत्ेा वा,दृष्ट आलांबज्ञ क्जाे, जो दृष्ट वो ज्ञहीां िे खते , अदृष्ट आलांबज्ञ उाे३९---.

उज्ञवो ज्ञहीां ाख शाक्न्त , चचत्त जो रोवते हठ योग ाे, ु आत्े रेणी ाहज ाांये, शाक्न्त ात्य प्रयोग ाे४१-----. अष्टावक्र उवाचः उज्ञवो ज्ञहीां ाख शाक्न्त, चचत्त जो रोवते हठ योग ाे, ु आत्े रेणी , ाहज ाांये, शाक्न्त ात्य प्रयोग ाे४१----. ताक रूप हन ब्रह्े तो, वोई वहता वछ ज्ञहीां, ु वोई िोज्ञों पक्ष ेज्ञ, नज्ञरपेक्ष ेाज्ञे ानट ेही४२-----. िबप्रद्ध जज्ञ अद्कनत ताक वा, ेात्र ही चचांतज्ञ वरें , ु ुण पयंत जीकज्ञ शाक्न्त ाख ाे, हीज्ञ के यापज्ञ वरें ४३----. ु जज्ञ ेेक्ष वी बप्रद्ध तो, अबलम्ब बबज्ञ रहती ज्ञहीां, ु ु ु ेतत जज्ञ नज्ञष्वाे, बबज्ञ अबलम्ब रहते हर वहीां४४----. ु प्रकषय रूपी ब्याग्र ाे, तय तीत हो जग छोड़ते, ेढ़, गढ़ नज्ञगढ़ , ेेण वी ओर ेज्ञ ज्ञहीां ेोड़ते४५-----. ू ू ू कााज्ञा ाे हीज्ञ जज्ञ, के माांह ाे ेदहेा ेही, प्रकषय रूपी कीर कवन्ज्ञर, स्कये ज्ञे होते ज्ञहीां४६-----. ाघता, स्पशण, ाज्ञता िे खता खाता हुआ, ूां ु वेण नज्ञश्चय, ताक नज्ञश्छल, नाज्ञी वा वरता हुआ४७----शद्ध, बप्रद्ध, स्कस्थ चचत ेज्ञ, यतत व्यक्तत यथाथण वो, ु ु ु श्रकण ाे ही ग्रहण, उज्ञव प्रकरतत ताक पिाथण वो ४८------. े हैं शत अशत, प्रारब्ध कश, आगत रदहत हो वेण वो, ु ु नाज्ञी वरे ाब बालकत, बबज्ञ राग द्केष स्क धेण वो ४९----राग द्केष प्रकेतत चचत ेज्ञ, ाकणथा ही स्कतांत्र हन, ु नाज्ञ, नज्ञत ाख, परे पि स्क पर प्रकरल, स्क तांत्र हन ५१----. ु अष्टावक्र उवाचः जब अवताणपज्ञ वा अपज्ञी, आत्ेा वा ताा हो, ावल उावी चचत्त कनतयों चपलतायें ज्ञाश हों ५१----ृ नाज्ञी वी क्स्थनत उश्रुन्खल, हो तथाप्रप शाांत हन . कक्त्त स्पहाणेयी वी, शाक्न्त भ्रे, उद्भ्राांत हन ५२------. ृ क्जा धीर नाज्ञी व चचत्त वी, ाब वपपज्ञाएूँ शेष हों. े प्रारब्ध बा, तोग कवां त, चचत शाांत प्रकशेष हो५३----ु तीथण, पांडडत, िे कता हो, ज्ञारी, ज्ञप पत्रादि हो, ु ृ िे ख वर ती शाांत ेज्ञ, उद्प्रकग्ज्ञ पर ज्ञ विाप्रप हो५४-----.

कवां वरों, ज्ञानतयों, पत्रों, बांधु बाांधक आदि ाे ु हो नतरस्वृत या हो पक्जत, प्रकलग िुःख ाख आदि ाे५५----. ू ु ु लोव दृक्ष्ट ाे जो ाख िुःख, उज्ञाे नाज्ञी हन परे . ु ु आश्चयणेय ऐाी िशा वा नाज्ञ, नाज्ञी ही वरे ५६-------. चचत्त नाज्ञी वा नज्ञप्रकणवारी, शन्य ज्ञ आवार हन, ू ाांवपप हीज्ञ नज्ञराेया, वतणव्यता ाांाार हन ५७-----. ेढ़ जज्ञ वताण ही हन, वेण यद्यप्रप ज्ञही वरें ,, ू नाज्ञी अवताण ही रहे, वेण यद्यप्रप बहु वरें ५८-----. शयज्ञ तोजज्ञ और कचज्ञ ेें, नाज्ञ ही आधार हन , आत्े ाखेय शाांत ाम्यव, नाज्ञी वा व्यकहार हन ५९. ु नाज्ञी वा व्यकहार प्रेररत,आत्ेनाज्ञ स्कताक ाे, तलेश, क्षोत प्रकहीज्ञ, ाागरकत, प्रकरतत प्रताक ाे६१----. अष्टावक्र उवाचः ेढ़ वी नज्ञकनत ती, प्रकनत रूपी हन तथा, ू ृ ृ नानज्ञयों वी प्रकनत हन, रूप नज्ञकनत वी यथा ६१---ृ ृ ेढ़ वा कनराग्य तो, गह आदि ेें दृष्टव्य हन, ू ृ िे ह ेें लय राग धीर वा, ब्रह्े ही गांतव्य हन ६२----. ताकज्ञा या अताकज्ञा ेें, ेढ़ जज्ञ आातत हैं, ू कवां तु नाज्ञी जज्ञ वी दृक्ष्ट आत्ेा अज्ञरतत हन ६३-----. ु वरे बालकत व्यकहार नाज्ञी, वाेज्ञाओां ाे परे , प्रारब्ध कश रत वेण, रत ज्ञ ताकज्ञाओां वो वरे ६४----. िे खता, स्पशण, ाज्ञता, ाघता खाता हुआ, ु ूां आत्े नाज्ञी, धन्य ाे ेज्ञ, नज्ञस्तरण पाता हुआ६५-----. ाकणिा आवाश कत नाज्ञी, ािा नज्ञप्रकणवार हन, आताा, ााधज्ञ, ााध्य, और उावा वहाूँ ाांाार हन ६६-----. जो ाेाचध ाहज ेें, और पणाणज्ञन्ि स्करुप ेें, ू ातत ही वरता रेण, जय जयनत अपज्ञे ही रूप ेें ६७-------. नज्ञरावाांक्षी तत्क नाज्ञी, ेोक्ष ेें और तोग ेें, राग द्केष प्रकहीज्ञ हर पल ब्रह्े व ाांयोग ेें ६८------. े मतन्ज्ञता अनाज्ञ हन, जो द्कनत वा आधार हन, जो आत्ेबोध प्रबद्ध, उावा छटता ाांाार हन ६९----. ु ू प्रकश्क ेात्र प्रपांच नाज्ञी व मलए वछ ती ज्ञहीां, े ु चनतन्य आत्ेा अज्ञतकी वो, तच्छ ाारी ती ेही ७१---. ु ु

अष्टावक्र उवाचः शे वहाूँ पर त्याग अथका वेण प्रकचध, शाक्न्त वहाूँ, अनाज्ञता वा हन पाारा, भ्रमेत , भ्रे, भ्राक्न्त यहाूँ७१-----. वहाूँ ेोक्ष, बांधज्ञ नानज्ञयों वो, हषण और प्रकषाि हन , ाब ब्रह्ेेय ब्रह्ेाण्ड ेाया, प्रवृनत ब्रह्े प्रााि हन ७२------. ाांाार ेें पयंत बप्रद्ध, ेाया वी ही ेाया हन, ु नज्ञष्वाे बद्ध, प्रबद्ध दृक्ष्ट ेें, जगत वकल छाया हन ७३----. े ु ु प्रकश्क, प्रकद्या, िे ह, जग, ाब हैं वहाूँ, अज्ञाार ती, ु आत्े नाज्ञी व मलए ाब व्यथण हैं, नज्ञुःाार ती७४-----. े जड़,ेढ़, वेों वो त्याग वर ती, मलप्त अांता ेें वहीां, ू ाांवपप और प्रकवपप ेज्ञ ाे ेतत होते हैं ज्ञहीां७५------. ु ेढ़ ाज्ञवर आत्े तत्क ती, ेढ़ता ज्ञहीां छोड़ते, ू ु ू नज्ञप्रकणवपप हो बाह्य ाे, अांतुःवरण ज्ञहीां ेोड़ते७६----. क्जा नाज्ञ ाे ाब नानज्ञयों व, वेण होते ज्ञष्ट हैं, े के तथाप्रप वेण रत, पर ेज्ञ प्रकरत, स्पष्ट हन ७७---. नज्ञप्रकणवारी और नज्ञतणय व मलए, वछ ती ज्ञहीां, े ु ते ् वहाूँ, ज्योनत वहाूँ और त्याग आदि वछ ज्ञहीां ७८-----. ु आत्े नाज्ञी वी प्रवृनत तो, अनज्ञकणचज्ञ ेहाज्ञ हन, वहाूँ धनयण और प्रककेव हन , वहाूँ नज्ञये और प्रकधाज्ञ हैं७९----. योगी ज्ञरव और स्कगण, जीकज्ञ ेक्तत वा इच्छव ज्ञहीां, ु ु बहुत वहज्ञा नज्ञष्प्रयोजज्ञ, योग दृक्ष्ट ाे वछ ज्ञही८१-----. ु अष्टावक्र उवाचः चचत्त अेत ाे हन पररत, योगी वा शीतल तथा, ू ृ लात हानज्ञ ाे परे , ज्ञहीां प्राथणज्ञा वरता यथा८१-----. ाौम्य जज्ञ वी स्तनत और िष्ट वी नज्ञांिा ज्ञहीां, ु ु नज्ञष्वाे योगी तप्त, ाख और िुःख वी चचांता ज्ञहीां८२----. ु ु ृ हषण, रोग प्रकहीज्ञ नाज्ञी , ताकुः ाम्यव ाक्ष्ट हन, ृ ज्ञ ही ेत और ज्ञ ही जीप्रकत , जगत ेें ाे दृक्ष्ट हन ८३----. ृ पत्र स्त्री ाे प्रकरत, स्किे ह वी चचांता ज्ञहीां, ु ेतत आशाओां ाे नाज्ञी, शोतता हन हर वहीां ८४-----ु स्कच्छां ि बहु िे शों ेें प्रकचरण, जो मेला पयाणप्त हो, ाकणिा ही ेदित ेज्ञ, ाोये जहाूँ ायाणस्त हो८५----. ु ू

नज्ञज ताक तमे ेें रहे, ाांाार प्रकस्ेत हो क्जाे, ू ृ यह िे ह जाए या रहे, कवां चचत ज्ञ स्ेनत हो उाे८६----. ृ ाकणथा ही प्रकरत नाज्ञी, वो ज्ञ वोई द्कांि हन, ाकण ताकों ेें रेण वरता, ाकणिा स्कच्छां ि हन ८७-----. कवां वरी, वचज्ञ और ेाटी ेें ती ेेता हीज्ञ हन, ां ताक राज ते ् व धलें, नाज्ञी जो आत्े प्रकीण हैं८८----. े ु ाकणत्र आाक्तत रदहत, वछ कााज्ञा दहय ेें ज्ञहीां, ु तप्त नाज्ञी वी तला तया ााम्यता जग ेें वहीां८९-----. ृ ाब िे खता, ाब बोलता, ाब जाज्ञता नाज्ञी ाती, वोई कााज्ञा दहय ेें ज्ञहीां,तया अन्य हन प्राणी वती९१----. अष्टावक्र उवाचः श्रेष्ठ और नज्ञवृष्ट िोज्ञों, ताकज्ञाएां शेष हों, नज्ञष्वाे शोमतत ाकणिा, चाहें मतक्षु, राजा प्रकशेष हों९१----. नज्ञष्वपट और ारल योगी वो वहाूँ, स्कच्छां िता , तत्क वा नज्ञश्चय वहाूँ, ाांवोच वी प्रनतबन्धता९२-------. आत्े प्रकश्राांनत ेें तक्प्त, शोव आशा ाे परे , ृ नाज्ञी अभ्यान्तर ेें अज्ञतक, तया वहे,कवस्ाे वरे ९३----. ु स्कप्ज्ञ जागत और ाषक्प्त, धीर तीज्ञों वाल ेें, ु ु ृ ाम्बन्ध वकल आत्ेा ाे ही रखें त्रनवाल ेें ९४-----. े बप्रद्ध,चचांता, इक्न्द्रयों व, ादहत ती और रदहत ती, े ु अहे ाे ती ाक्न्ज्ञदहत, नाज्ञी अहे ् ाे प्रकदहत ती९५-----. ज्ञ ाखी, ज्ञ ही िुःखी, ज्ञ ेतत ज्ञ ही ेेक्ष हन, ु ु ु ु ु कवां चज्ञ अकवां चज्ञ ाे परे ,ाांग और प्रकरक्तत तच्छ हन ९६-----. ु प्रकक्षेप ेें प्रकक्षक्षप्त और पांडडत ज्ञहीां पाांडडत्य ेें , जड़ ज्ञहीां जड़ता ेें, चेतज्ञ पणण हन, चनतन्य ेें ९७-----. ू ाेताक हर क्स्थनत ेें नाज्ञी, जो मेला ाांतोष हन, वृत और अवृत वेों ेें नज्ञुःस्पह, ेज्ञ प्रकरक्तत वोष हन ९८-----. ृ ाे ताक स्तनत और नज्ञांिा, हन कही नाज्ञी, परे , ु ज्ञ ेत्यु ेें ज्ञ हषण ेें , उद्प्रकग्ज्ञ, जीकज्ञ वो वरें ९९-----. ृ ज्ञगर कज्ञ ाब एव, क्जावी नाज्ञ, धी, प्रना ेहे, ाे ताक क्स्थत कह ाती, स्थाज्ञ क्स्थनत ेें रहें १११------.

नवदश प्रकरण
जनक उवाचः तत्क नाज्ञ वी ााांाी गरु ाे, मेल गए ेैं वृतन हूूँ, ु ाे काण रूप प्रकचार गए, ेेणन हूूँ१-------. ेझे द्कनत ाे या अद्कनत ाे धज्ञ, ऐथण ाे और वाे ाे, ु कवां चचत प्रयोजज्ञ ती ज्ञहीां, चचतकनत शेष प्रकराे ाे२-----. ृ ेैं नज्ञत्य स्क ेदहेा प्रनतक्ष्ठत,तीज्ञ वालों ाे परे , वहाूँ िे श वालों वी पररचध, प्रनतबबम्ब ाीेा ाे वरें ३-----. शतअशत--, चचांताअचचांता--, आत्ेा या अज्ञात्ेा, ु ु हूूँ नज्ञत्य स्क ेदहेा प्रनतक्ष्ठत, चचत्त ेें परेात्ेा४------. अब स्कप्ज्ञ जाग्रत और ाषक्प्त, तरीय अथका तय वहाूँ, ु ु ु हूूँ नज्ञत्य स्केदहेा प्रनतक्ष्ठत, इज्ञवा ज्ञ अज्ञतक कहाूँ५----. ु बाह्य अभ्यांतर वहाूँ पर ाक्ष्े हन , स्थल हन, ू ू हूूँ नज्ञत्य स्क ेदहेा प्रनतक्ष्ठत, ेझवो ाब अज्ञवल हन ६----. ु ु ू वहाूँ ेत्यु हन , जीकज्ञ वहाूँ, परलोव लौकवव नाज्ञ हन , ृ लय ाेाचध हन वहाूँ?ेझे प्रकन आक्त्ेव नाज्ञ हन७----ु आत्ेा ेें प्रकश्राांनत, पणण ेैं पा गया, अब पणण हूूँ. ू ू धेण, अथण और ेोक्ष वाे वी, पणता ाम्पणण हूूँ ८---ू ण ू

ववंश प्रकरण
जनक उवाचः ेेरे नज्ञरां जज्ञ रूप ेें, वहाूँ पांचतत प्रकवार हैं, ू वहाूँ िे ह, ेज्ञ, वहाूँ इक्न्द्रयों, वहाूँ शन्य पणण प्रवार हन १----. ू ू हूूँ नज्ञप्रकणषय ाब ताक ेें,ज्ञ ही द्कांि, हन ज्ञ अद्कांि हन, ज्ञ तक्प्त, ज्ञ तष्णा, ज्ञ ेज्ञ, अब आत्ेा स्कच्छां ि हन,------२ ृ ृ ेेरे रूप वो वहाूँ रूपता,प्रकद्या अप्रकद्या हन वहाूँ? अहे और ेेवार अथका बांध ेोक्ष ती हन वहाूँ?------३ ेें नज्ञप्रकणशष हूूँ आत्ेा, वहाूँ वेण और प्रारब्ध हैं, े और वहाूँ वकपय, जीकज्ञ ेक्तत आदि प्रबांध हैं४--------. न ु शेष हैं तोततत्क और वतत्क आत्ेाज्ञांि हन, णृ ृ नज्ञुःस्कताकी, स्फरण वहाूँ नाज्ञ फल व द्कांि हैं५-------. े ु स्क स्कये वा रूप -अद्कय , ेैं स्कयां ही नाज्ञ हूूँ, वहाूँ बद्ध और ेेक्ष, द्कनत व द्कांि, ऋत प्रकनाज्ञां हूूँ.?-----६ े ु ु

ेझ अद्कनत स्करुप वो, ाक्ष्ट वहाूँ ाांाार हन,? ु ृ वहाूँ ााध्य, ााधज्ञ, माप्रद्ध ााधव, आत्ेा वा प्राार हन .?----७ ेैं शद्ध, चेतज्ञ आत्ेा,कवां चचत अकवां चचत हन वहाूँ,? ु अज्ञ, लघु, ेदहेा, प्रेाता और प्रेाणणत हन वहाूँ?------८ ु ाकणिा नज्ञक्ष्िय वहाूँ, प्रकक्षेप और एवाग्रता ? ेढ़ता, अनाज्ञ, ाख और हन वहाूँ पर व्यग्रता ?-----९ ू ु कनत नाज्ञ शन्य स्करुप,अब ेझेें वहाूँ व्यकहार हन ? ू ु ृ ाख वहाूँ और िुःख वहाूँ, परेाथणता ाे पार हन?-----११ ु ु जनक उवाचः प्रकेल हूूँ ेझेें वहाूँ, ेाया वहाूँ ाांाार हन ? ु प्रीनत और प्रकरनत वहाूँ ,वहाूँ जीक ब्रह्े अपार हन ?----११ आत्ेा हन वटस्थ और यह ाकणिा अप्रकताज्य हन, ू प्रकनत और नज्ञकनत वहाूँ, ेझे ग्राह्य और तया त्याज्य हन ?-----१२ ु ृ ृ मशक रूप हूूँ ेैं उपाचध बबज्ञ,तयोंकव आत्ेा नज्ञरपेक्ष हन, वहाूँ शास्त्र, गरु, उपिे श, मशष्य हैं, वहाूँ बांधज्ञ ेोक्ष हैं ?------१३ ु आक्स्त और ज्ञाक्स्त वहाूँ, और िो वहाूँ पर एव हन ? ज्ञहीां बहुत वहज्ञे वा प्रयोजज्ञ, ब्रह्े ाकणे ् एव हन १४--------. ।।इतत श्री अष्टावक्रगीता काव्यानवाद।। ु

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